☼ उत्पादन फलन (Production Function): भौतिक आगतों तथा भौतिक उत्पादन के बीच कार्यात्मक संबंध का अध्ययन करता है। इसमें केवल भौतिक आगतों तथा उत्पादन को ध्यान में रखा जाता है। उनके बाजार मूल्य को नहीं।
☼ कुल
उत्पाद (Total Product): एक निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की
कुल मात्रा को कुल उत्पाद कहा जाता है।
☼ सीमांत उत्पाद (Marginal Product): परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग करने से कुल उत्पादन में जो परिवर्तन होता है उसे सीमांत उत्पाद कहा जाता है।
(यहाँ ΔTP कुल
उत्पादन में परिवर्तन, ΔL काम पर लगाए गए परिवर्ती कारक की
इकाइयों में परिवर्तन)
☼ औसत उत्पाद (Average Product): परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई उत्पादन को औसत उत्पाद कहा जाता है।
☼ उत्पादन
फलन के दो महत्वपूर्ण प्रकार हैं (Two Important Types of Production Function
are): (i) 'समान अनुपात' प्रकार का उत्पादन फलन जिसमें उत्पादन के सभी स्तरों पर
आगत-अनुपात (Input-ratio) समान रहता है, जो कि केवल दीर्घकाल में ही संभव है, और
(ii) “परिवर्ती अनुपात' प्रकार का उत्पादन फलन जिसमें उत्पादन में परिवर्तन होने
के फलस्वरूप आगत-अनुपात में भी परिवर्तन होता है।
☼ कारक के प्रतिफल (Returns to a Factor): यह वह
अवधारणा है जिसमें अन्य कारकों को स्थिर रखकर उत्पादन के केवल एक ही कारक में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पादन के व्यवहार का अध्ययन किया जाता
है।
☼ पैमाने के प्रतिफल (Returns to scale); यह वह
अवधारणा है जिसमें सभी कारकों में समान अनुपात में परिवर्तनों द्वारा उत्पादन के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
☼ परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable
Proportions); परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है कि स्थिर कारक के साथ जैसे-जैसे परिवर्ती
कारक की अधिक से अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो एक ऐसी स्थिति अवश्य आ जाती
है जब परिवर्ती कारक का अतिरिक्त योगदान अर्थात परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद कम
होने लगता है।
☼ परिवर्ती अनुपात के नियम के कारण (Causes of Law of Variable Proportions); (1) कारकों की अविभाज्यता, (2) उत्पादन के स्थिर कारक, (3) स्थिर कारक का इष्टतम से अधिक प्रयोग, (4) अपूर्ण स्थानापन्न।
☼ परिवर्ती अनुपात के नियम का स्थगन
(Postponement of the Law of Variable Proportions) तब संभव है जब केवल प्रौद्योगिकी
में सुधार किया जाए अथवा स्थिर कारक का कोई विकल्प खोजा जाए।
☼ पैमाने के वर्धमान प्रतिफल (Increasing
Returns to Scale): पैमाने के वर्धमान प्रतिफल उत्पादन की उस स्थिति को प्रकट करते
हैं जिसमें यदि सभी कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाए तो उत्पादन में उससे
अधिक अनुपात में वृद्धि होती है। ये आंतरिक किफायतों के कारण लागू होते हैं।
☼ पैमाने के स्थिर/ समान प्रतिफल (Constant
Returns to Scale): पैमाने के स्थिर प्रतिफल उत्पादन की उस स्थिति को प्रकट करते हैं
जिसमें यदि सभी कारकों को निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाएगा तो उत्पादन में उसी अनुपात
में वृद्धि होगी।
☼ पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल (Diminishing
Returns to Scale): पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल उस स्थिति को प्रकट करते है जिसमें
यदि सभी कारकों को निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाएगा तो उत्पादन में उससे कम अनुपात
में वृद्धि होगी।
☼ पैमाने की भीतरी किफायतें (Internal Economies
of Scale): भीतरी किफायतें वे किफायतें हैं जो कोई फर्म अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप
प्राप्त करती है अर्थात् भीतरी किफायतें वे किफायतें हैं जो कोई अकेला कारखाना या अकेली
फर्म बिना दूसरी फर्म की सहायता से प्राप्त करती है। किफायतें एक फर्म को अपने उत्पादन
में वृद्धि करने से प्राप्त होती हैं तथा बिना उत्पादन बढ़ाए प्राप्त नहीं हो सकती
।
☼ पैमाने की आंतरिक किफायतों के महत्त्वपूर्ण प्रकार
(Important Types of Internal Economies of Scale) है। (i) तकनीकी किफायतें, (ii) प्रबंधकीय
किफायतें, (iii) जोखिम संबंधी किफायतें, (iv) क्रय-विक्रय संबंधी किफायतें. (v) श्रम
संबंधी किफायतें, (vi) वित्तीय किफायतें आदि।
☼ पैमाने की बाह किफायतें (External Economies
of Scale); बाह्य किफायतें वे किफायतें हैं जो किसी उद्योग या उद्योगों के समूह में
उत्पादन में वृद्धि होने के कारण सभी फर्मों को उस स्थिति में प्राप्त होती हैं जब
समस्त उद्योग का विस्तार होता है।
☼ बाह्य किफायतों के महत्वपूर्ण प्रकार (Important Types of External Economies) है: (i) केंद्रीयकरण या स्थानीयकरण की किफायतें, (ii) सूचना संबंधी किफायतें, (iii) विकेंद्रीयकरण की किफायतें।
लागत की अवधारणा स्मरण रखें
(Remember an Concepts Cost )
☼ कुल लागत (Total Cost): कुल लागत से अभिप्राय
उस कुल व्यय से है जो उत्पादक द्वारा उत्पादन के स्थिर तथा परिवर्ती कारकों को प्राप्त
करने के लिए करना पड़ता है।
TC = TFC + TVC
☼ कुल लागत (Total Cost) को अल्पकाल के संदर्भ
में बंधे तथा परिवर्ती घटकों में बाँटा जा सकता है। दीर्घकाल परिभाषा से ही समय की
वह अवधि है जिसमें सभी लागतें परिवर्ती लागतें होती हैं।
☼ औसत लागत (Average Cost): औसत लागत से अभिप्राय है प्रति इकाई लागत।
`AC=\frac{TC}Q=\frac{TFC}Q+\frac{TVC}Q`
☼ सीमांत लागत (Marginal Cost): सीमांत लागत एक
इकाई का अधिक उत्पादन करने की अतिरिक्त लागत है। MC = TCn -TCn-1
| चूँकि अतिरिक्त लागत परिभाषा से ही परिवर्ती होती है (बंधी लागत, परिभाषा के अनुसार,
उत्पादन के साथ परिवर्तित नहीं होती), इसका अनुमान निम्न प्रकार से भी लगाया जा सकता
है:
MC = TVCn –
TVCn-1
☼ औसत लागत (AC) परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुरूप
U-आकार की होती है।
☼ कुल लागत (TC) तथा सीमांत लागत (MC) में संबंध
(Relationship between TC and MC): MC एक अतिरिक्त लागत है जब उत्पादन में एक इकाई
की वृद्धि होती है। यह उस दर को बतलाती है जिस पर TC बढ़ती है। इसलिए TC तथा MC में
निम्नलिखित संबंध स्थापित होता है:
(i) जब MC बढ़ती है TC बढ़ती
दर पर बढ़ती है।
(ii) जब MC स्थिर होती है
TC समान रहती है।
(iii) जब MC घटती है TC घटती
दर पर बढ़ती है।
☼ औसत लागत (AC) तथा सीमांत लागत (MC) में संबंध
(Relationship between AC and MC):
यदि औसत लागत (AC) गिर रही
है तब AC > MC
यदि औसत लागत (AC) समान है
तब AC = MC
यदि औसत लागत (AC) बढ़ रही है तब AC <MC