प्रशुल्क
वस्तुओं पर लगाया गया एक कर या शुल्क है जब वे राष्ट्रीय सीमा में प्रवेश करती हैं
और उसे छोड़ती हैं । इस अर्थ में, प्रशुल्क से अभिप्राय आयात शुल्क और निर्यात
शुल्क से है। परंतु व्यावहारिक उद्देश्य के लिए, एक प्रशुल्क आयात शुल्क या सीमा
शुल्क का पर्यायवाची है।
प्रशुल्क के प्रकार (Types of Tariffs)
प्रशुल्कों
का अनेक प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है
(i) उद्देश्य
के आधार पर (On the Basis of Purpose)- प्रशुल्क दो भिन्न उद्देश्यों
के लिए प्रयोग किए जाते हैं : राजस्व और संरक्षण के लिए।
1. राजस्व प्रशुल्क
(Revenue Tariff)- राजस्व प्रशुल्क सरकार को राजस्व प्रदान करने
के लिए होते हैं। ये विलासिता की उपभोग वस्तुओं पर लगाए जाते
हैं। जितने नीचे आयात शुल्क होंगे उतना ही अधिक राजस्व उनसे प्राप्त होता है। ऐसा
इस कारण कि नीचे आयात शुल्क लगाने से आयातित वस्तुओं की कीमत अधिक नहीं बढ़ती और
उपभोक्ता सामान्यतौर से अपनी मांग को अन्य घरेलू उत्पादित वस्तुओं की ओर नहीं
बदलते हैं।
2. संरक्षण प्रशुल्क
(Protective Tariff)- संरक्षण प्रशुल्कों का उद्देश्य, "शुल्कों
द्वारा घरेलू उद्योग की जिन शाखाओं को संरक्षण दिया गया है,
उन्हें बनाए रखें और प्रोत्साहन दें। " आजकल, जब सरकारें आयत शुल्क लगाती
हैं, तो उसका प्रमुख उद्देश्य आयातों को कम करना होता है ताकि संरक्षित उद्योग का
घरेलू उत्पादन बढ़े । आयात शुल्क से राजस्व प्राप्ति तो उसका गौण कार्य है।
(a) उत्पत्ति
और निर्धारित स्थान के आधारों पर (On the Bases of Origin and Desti- nation)- इन
आधारों पर निम्न प्रकार के प्रशुल्क कर लगाए जाते हैं :
1. मूल्यानुसार
प्रशुल्क' (Ad Valorem Tarifl) सर्वाधिक सामान्य प्रकार
का आयात शुल्क मूल्यानुसार प्रशुल्क है। यह आयातित वस्तु के कुल मूल्य की
प्रतिशतता के रूप में लगाया जाता है। आयात शुल्क वस्तु की लागत, बीमा, भाड़ा
(c..I.) मूल्य की निश्चित प्रतिशतता के हिसाब से लगाया जाता है अर्थात यह 25
प्रतिशत, 50 प्रतिशत या कोई और भी प्रतिशत हो सकता है।
2. विशेष प्रशुल्क
(Specific Tariff) विशेष प्रशुल्क आयातित वस्तु की भौतिक इकाइयों
पर लगाया जाता है, जैसे निश्चित रुपए प्रत्येक टी.वी. सेट पर, कपड़े पर प्रति मीटर
के हिसाब से, तेल पर प्रति लीटर के हिसाब से, उर्वरक पर प्रति टन के हिसाब से।
3. मिश्रित प्रशुल्क
(Compound Tariff) प्रायः सरकारें मिश्रित शुल्क लगाती हैं। ये
मूल्यानुसार शुल्कों तथा परिमाण शुल्कों का सम्मिश्रण होते हैं। इस स्थिति में, आयातित
वस्तु की इकाइयों पर प्रतिशतता मूल्यानुसार शुल्क और वस्तु की प्रति इकाई पर परिमाण
शुल्क लगाए जाते हैं।
4. विसर्पी प्रशुल्क
(Sliding Scale Tariff) कभी-कभी सरकारें ऐसे आयात शुल्क भी लगाती हैं
जो आयातित वस्तुओं की कीमतों के अनुसार बदलते हैं। ये विसपी शुल्क कहलाते हैं । ये
या तो परिमाण या मूल्यानुसार होते हैं । सामान्यरूप से विसर्पी शुल्क परिमाण के आधार
पर लगाए जाते हैं।
(b) देशानुसार
विभेद के आधार पर (On the basis of Countrywise Discrimination) निम्न
प्रकार के प्रशुल्क देशानुसार विभेद के आधार पर लगाए जाते हैं :
1. एक कॉलम प्रशुल्क
(Single Column Tariff) जब प्रशुल्क की एक समान दर सभी समान वस्तुओं
पर लगाई जाती है चाहे वे किसी भी देश से आयात की गई हों तो इसे एक कॉलम प्रशुल्क कहते
हैं । यह गैर-विभेदकारी प्रशुल्क होता है जिसकी रचना और लागू करना बहुत सरल और आसान
होता है। परंतु यह लोचशील और पर्याप्त नहीं होता है इससे राजस्व इकट्ठा नहीं किया जा
सकता है।
2. दोहरे कॉलम
प्रशुल्क (Double Column Tariff) इसके अंतर्गत कुछ या सभी प्रकार
की वस्तुओं के लिए शुल्क की दो भिन्न दरें होती हैं। देश की सरकार दोनों दरों की घोषणा
प्रारंभ में या एक प्रारंभ में और दूसरी व्यापार समझौतों के अंतर्गत दरों का फैसला
करने के बाद करती है। इन्हें निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है
(i) सामान्य
और परंपरागत प्रशुल्क (General and Conventional Tariffs) सामान्य
प्रशुल्क वह सूची होती है जिसकी घोषणा वर्ष के प्रारंभ में अपनी वार्षिक प्रशुल्क नीति
के अंतर्गत सरकार करती है। यह एक विशेष दर होती है जो सभी देशों से ली जाती है। दूसरी
ओर, परंपरागत प्रशुल्क दरें दूसरे देशों के साथ व्यापार समझौतों/संधियों पर आधारित
होती हैं । वे भिन्न देशों के लिए भिन्न हो सकती हैं और वस्तु-से-वस्तु परिवर्तित हो
सकती है। वे लोचशील नहीं होती हैं क्योंकि वे केवल परस्पर सहमति से ही परिवर्तित की
जा सकती हैं। क्योंकि वे बेलोच होती हैं अतः वे व्यापार के प्रसार को रोकती हैं।
(ii) अधिकतम
और न्यूनतम प्रशुल्क (Maximum and Minimum Tariffs) सरकारें विभिन्न देशों
से समान वस्तु आयात करने हेतु सामान्यतौर से दो प्रशुल्क दरें निश्चित करती हैं। जिस
देश के साथ सरकार का व्यापारिक समझौता/संधि होती है, उससे आयात पर न्यूनतम प्रशुल्क
दर लगाई जाती है। दूसरी ओर अन्य देशों से आयात पर अधिकतम प्रशुल्क दर लगाई जाती है।
3.बहु-या तीन-कॉलम
प्रशुल्क (Multiple or Triple Column Tariffs) बहु-कॉलम प्रशुल्कों
के अंतर्गत प्रत्येक वर्ग की वस्तु पर दो या अधिक प्रशुल्क दरें लागू की जाती हैं।
परंतु सामान्य रीति प्रशुल्कों की तीन भिन्न सूचियां रखने की है : सामान्य, मध्यवर्ती
और अधिमानी। सामान्य (General) दरें उसी प्रकार लागू ही जाती हैं जिस प्रकार ऊपर वर्णित
अधिकतम दरें। इसी प्रकार, मध्यवर्ती (Intermediate) दरें न्यूनतम दरें होती हैं। स्वतंत्रतापूर्व
अधिमानी (Preference) दरें ब्रिटेन से आयातित वस्तुओं पर लगाई जाती थीं जिन पर कम दरें
अथवा वे प्रशुल्क मुफ्त होती थीं। वर्तमान में सार्क (SAARC) देश एक-दूसरे से अधिमानी
प्रशुल्कों के आधार पर आयात करते हैं
(c) प्रतिशोध
के आधार पर (On the basis of Retaliation) प्रतिशोध के आधार पर दो प्रकार
से आयात प्रशुल्क लगाए जाते हैं :
1. प्रतिरोधात्मक
या प्रतिशोधात्मक प्रशुल्क (Retaliatory Tariffs) प्रतिरोधात्मक प्रशुल्क
एक देश द्वारा दूसरे देश के आयात पर उसकी व्यापार नीति के लिए उसे दंड देने हेतु लगाया
जाता है जो उसके निर्यातों को या व्यापार शेष को हानि पहुंचाता है।
2. प्रतिकारी
शुल्क (Countervailing Duty) यह एक अतिरिक्त शुल्क होता है जो एक वस्तु
पर लगाया जाता है जिसकी निर्यात कीमत एक निर्यात सब्सिडी द्वारा दूसरा देश कम कर देता
है। यह अतिरिक्त शुल्क उस वस्तु की कीमत को बढ़ाने के लिए लगाया जाता है ताकि आयात
करने वाले देश में उसी वस्तु के उत्पादकों को सस्ती विदेशी वस्तु से संरक्षण दिया जा
सके।
प्रशुल्कों
के प्रभाव (EFFECTS OF TARIFFS)
प्रशुल्कों के अनेक प्रभाव
हैं जो उनकी आयात को घटाने की शक्ति पर निर्भर करते हैं। प्रशुल्कों के प्रभावों का
विश्लेषण दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है-एक, समस्त अर्थव्यवस्था की दृष्टि से जिसे
सामान्य संतुलन विश्लेषण कहते हैं और दूसरे, विशेष वस्तु अथवा बाजार की दृष्टि से जिसे
आंशिक संतुलन विश्लेषण कहते हैं। प्रशुल्क "व्यापार, कीमत, उत्पादन और उपभोग में
परितर्वन कर देता है, तथा संसाधनों का पुनर्विभाजन, साधन अनुपातों में परिवर्तन, आय
का पुनर्वितरण, रोजगार में परिवर्तन कर सकता है और भुगतान संतुलन की स्थिति को बदल
सकता है।"
1.आंशिक संतुलन
के अंतर्गत प्रशुल्क के प्रभाव (Effects of a Tariff under Partial Equilibrium) आंशिक
संतुलन
के अंतर्गत प्रशुल्क के प्रभावों का विश्लेषण एक छोटे देश में एक छोटे उद्योग से संबंधित
होता है। जब एक छोटे देश द्वारा एक अकेली वस्तु के आयात पर प्रशुल्क लगाया जाता है
तो यह बाकी की घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करता और न ही इस वस्तु से विश्व
को।
इसकी मान्यताएं
(Its Assumptions)
आंशिक संतुलन विश्लेषण के अंतर्गत
प्रशुल्क के प्रभावों का विश्लेषण निम्न मान्यताओं पर आधारित है
1. केवल एक छोटा देश है।
2. यह एक वस्तु पर प्रशुल्क
लगाता है।
3. वस्तु का मांग तथा पूर्ति
वक्र उस देश से संबंध रखता है जो आयात शुल्क लगाता है।
4. ये वक्र दिए हुए तथा स्थित
माने गए हैं।
5. मांग पक्ष में, उपभोक्ता
की रुचियां, आय तथा अन्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं।
6. पूर्ति पक्ष में, लागत स्थितियों
में परिवर्तन नहीं होते अर्थात बहिर्भाव, नवप्रवर्तन आदि नहीं होते।
7. कीमत के प्रति वस्तु की
विश्व पूर्ति पूर्णतया लोचदार है।
8. परिवहन लागत नहीं है।
9. वस्तु की विदेश कीमत अपरिवर्तित
रहती है।
10. जिस वस्तु पर प्रशुल्क
लगाया जाता है उसमें प्रयुक्त किसी सामग्री पर देश कोई प्रशुल्क नहीं लेता है।
11. आयातित वस्तु और घरेलू
उत्पादित वस्तु पूर्णतया स्थानापन्न है।
व्याख्या
(Explanation)
प्रो. किंडलबर्गर ने प्रशुल्क
के आठ प्रभाव गिनाए हैं : (1) संरक्षण प्रभाव; (2) उपभोग प्रभाव; (3) राजस्व प्रभाव;
(4) पुनर्वितरण प्रभाव; (5) व्यापार की शर्तों पर प्रभाव; (6) प्रतियोगिता प्रभाव;
(7) आय प्रभाव; (8) भुगतान संतुलन प्रभाव।
ये सभी प्रभाव कीमत प्रभाव
का ही परिणाम हैं जिसकी हम पहले व्याख्या करते हैं।
कीमत प्रभाव (Price Effect)-इन मान्यताओं के दिए हुए होने पर प्रशुल्क का कीमत प्रभाव चित्र से स्पष्ट किया गया है,
जहां D तथा S के घरेलू मांग
तथा पूर्ति वक्र हैं। रेखा OP उस स्थिर विश्व कीमत को व्यक्त करती है जिस पर विदेशी
उत्पादक अपनी वस्तु घरेलू बाजार में बेचने को तैयार हैं। इस प्रकार क्षैतिज रेखा
PB आयात का पूर्ति वक्र है जो OP कीमत पर पूर्ण लोचदार है। इस प्रकार मुक्त व्यापार
के अंतर्गत (अर्थात प्रशुल्क लगने से पहले) संतुलन बाजार स्थिति बिन्दु B पर प्राप्त
होती है जहां घरेलू मांग वक्र D, कीमत OP पर विश्व वक्र PB को काटता है । वस्तु की
कुल मांग 0Q3 है। घरेलू पूर्ति OQ है। घरेलू मांग तथा घरेलू पूर्ति के अंतर
को OP कीमत पर वस्तु की QQ3 मात्रा आयात करके पूरा किया जाता है।
मान लीजिए वस्तु के आयात पर
PP1 प्रशुल्क लगाया जाता है। स्थिर विदेशी कीमत दी होने पर, वस्तु की घरेलू
कीमत में प्रशुल्क की पूरी मात्रा के बराबर बढ़ोतरी होती है और वह OP1 हो
जाती है। इस प्रकार वस्तु की कीमत में जो PP1 के बराबर वृद्धि होती है,
वह प्रशुल्क का कीमत प्रभाव है। परिणामस्वरूप, बाजार की नई संतुलन स्थिति बिन्दु N
पर प्राप्त होती है। वस्तु की कीमत ऊंची होने से घरेलू मांग 0Q3 से कम होकर
OQ2 हो जाती है, और घरेलू पूर्ति OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
इस प्रकार वस्तु की कुल मांग OQ2 है । इसे आंशिक रूप से तो घरेलू पूर्ति
द्वारा OQ1 और आंशिक रूप से Q1Q2 आयात करके पूरा
किया जाता है। अत: कीमत प्रभाव के कारण आयात QQ3 से कम होकर Q1Q2
होता है।
प्रशुल्क के संरक्षण, उपभोग,
राजस्व तथा पुनर्वितरण प्रभाव भी चित्र द्वारा
स्पष्ट किए जा सकते हैं।
1. संरक्षण प्रभाव
(Protective Effect) संरक्षण प्रभाव बताता है कि आयात शुल्क लगाकर
घरेलू उद्योग को विदेशी प्रतियोगिता से कैसे बचाया जा सकता है। चित्र में, मुक्त व्यापार
के अंतर्गत OP कीमत पर वस्तु की 0Q3 मात्रा आयात की जाती है। जब PP1
आयात शुल्क लगाया जाता है, तो आयात की मात्रा घटकर Q1Q2 रह जाती
है, जबकि वस्तु का घरेलू उत्पादन (पूर्ति) 0Q से बढ़कर OQ1 हो जाता है ।
इस प्रकार शुल्क लगाने से घरेलू उत्पादन में जो QQ1 वृद्धि हुई है, वह प्रशुल्क
का संरक्षण अथवा उत्पादन प्रभाव है।
प्रो. एल्जबर्थ ने इस संरक्षण
प्रभाव को आगे बढ़ाया है और आयात स्थानापन्नता प्रभाव (Import Substitution
effect) के रूप में इसका विश्लेषण किया है। जब घरेलू उत्पादकों को प्रशुल्क के कारण
बढ़ी हुई कीमत OP1 का सामना करना पड़ता है, तो वे अतिरिक्त उत्पादन की बढ़ती
हुई सीमांत लागत को पूरा कर सकते हैं और उत्पादन को बढ़ाकर OQ1 पर ले जाते
हैं । घरेलू उत्पादन से विदेशी उत्पादन का QQ1 प्रतिस्थापना प्रशुल्क का
आयात स्थानापन्नता प्रभाव है।
2. उपभोग प्रभाव
(Consumption Effect) प्रशुल्क का उपभोग प्रभाव उस वस्तु का उपभोग
घटाता है जिस पर प्रशुल्क लगाया जाता है, और उपभोक्ताओं की निवल (Net) संतुष्टि को
भी घटाता है। इन्हें चित्र में दिखाया गया है। प्रशुल्क लगाने से पहले उपभोक्ता OP
कीमत पर वस्तु 0Q3 मात्रा उपभोग करते थे। जब PP1 प्रशुल्क लगाया
जाता है, तो कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है। अब आयात में Q3Q2
मात्रा की कमी हो जाती है और वस्तु का कुल उपभोग भी OQ3 से गिरकर OQ2
पर आ जाता है। इस प्रकार उपभोग में जो Q1Q2 कमी हुई है वह प्रशुल्क
का उपभोग प्रभाव है। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं की निवल संतुष्टि भी घटती है जो
PP1Nb क्षेत्र के बराबर है। किंडलबर्गर संरक्षण तथा उपभोग प्रभाव को मिलाकर
व्यापार प्रभाव कहता है । PP1 प्रशुल्क लगाने का प्रभाव यह है कि देश के
व्यापार का कुल परिमाण 0Q1 - Q1Q2 मात्रा के बराबर
घट जाता है।
3. राजस्व प्रभाव
(Revenue Effect) प्रशुल्क के परिणामस्वरूप सरकार की प्राप्तियों
(आय) में जो परिवर्तन होता है, वहीं प्रशुल्क का राजस्व प्रभाव है। जो स्थिति चित्र
में दिखाई गई है, उसमें मान्यता यह है कि OP कीमत पर प्रशुल्क शून्य है। इसलिए जब
PP1 आयात शुल्क लगाया जाता है, तो सरकार को आयात शुल्क गुणा आयात की मात्रा
के बराबर राजस्व प्राप्त होता है। इसलिए राजस्व प्रभाव PP1 xQ1Q2
अथवा चतुर्भुज छायांकित क्षेत्र R है।
4. पुनर्वितरण
प्रभाव (Redstributive Effect) प्रशुल्क लगने के बाद उत्पादक को अपनी वस्तु
की अधिक कीमत प्राप्त होती है। यह प्रशुल्क का पुनर्वितरण प्रभाव है। इसे चित्र में
क्षेत्र PP1MA द्वारा दिखाया गया है । यह राशि उत्पादन पर अतिरेक
(surplus) और आर्थिक लगान है जो उत्पादक को प्राप्त होता है। किंडलबर्गर के अनुसार
पुनर्वितरण प्रभाव "उत्पादक के आधिक्य में होने वाली वह बढ़ोतरी है जो उसे उपभोक्ता
बेशी में होने वाली कमी के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है।" (It is an
addition to producers' surplus derived by subtraction from consumers' surplus.)
यहां उपभोग प्रभाव द्वारा मापित उपभोक्ता संतुष्टि की निवल हानि PP1NB है।
इसमें से क्षेत्र R द्वारा दिखाई गई राशि को सरकार राजस्व के रूप में ले जाती है, और
उपभोक्ता बेशी की हानि को त्रिभुज a तथा b द्वारा दिखाया गया है। त्रिभुज a तथा b द्वारा
दिखाई गई यह उपभोक्ता वेशी की निवल हानि न तो उत्पादक को हस्तांतरित की जा सकती है
और न ही सरकार को। इसे किंडलबर्गर ने "प्रशुल्क की निश्चल हानि'"
(deadweight loss) कहा है।'' इसे प्रशुल्क की लागत (Cost of tariff) भी कहा जा सकता
है। इस प्रकार चतुर्भुज PP1MA प्रशुल्क के पुनर्वितरण प्रभाव को मापता है
जो वस्तु के घरेलू उत्पादकों को प्राप्त होता है।
5. भुगतान संतुलन
प्रभाव (Balance of Payments Effect) प्रशुल्क से भुगतान संतुलन
पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि प्रशुल्क से प्रशुल्क लगाने वाले देश के आयात घटते
हैं और निर्यातकर्ता देश के निर्यात कम होते हैं। इस प्रकार प्रशुल्क देश का अंतर्राष्ट्रीय
व्यय घटाता है और भुगतान संतुलन में स्थिरता लाता है। चित्र में भुगतान संतुलन प्रभाव
दिखाया गया है। मुक्त व्यापार स्थितियों के अंतर्गत, OP कीमत पर वस्तु की QQ3
मात्रा आयात की जाती है। चतुर्भुज AQQ3B आयात के कुल मूल्य को व्यक्त करता
है। यह भुगतान शेष के घाटे को प्रदर्शित करता है क्योंकि आयातकर्ता जो कीमत भुगतान
करते हैं वह दूसरे देश को प्राप्त होती है । इस घाटे को पूरा करने के लिए आयातित वस्तु
पर PP1 आयात शुल्क लगाया जाता है। परिणामस्वरूप आयात की मात्रा QQ3
से घटकर Q1Q2 रह जाती है। सरकार को क्षेत्र R के बराबर राजस्व
प्राप्त होता है। भुगतान संतुलन स्थिति में भी सुधार होता है क्योंकि दूसरे देश को
भुगतान की गई राशि aQ1Q2b क्षेत्र के बराबर है जो मुक्त व्यापार
के अंतर्गत भुगतान की गई AQQ3B राशि से कम है।
6. व्यापार की शर्तों पर प्रभाव (Terms of Trade Effect) प्रशुल्क का व्यापार की शर्तों पर ऐसा प्रभाव पड़ता है जिससे प्रशुल्क लगाने वाले देश की व्यापार की शर्तों में सुधार होता है। इसे चित्र में दिखाया गया है।
इस चित्र के भाग (A) में S1
तथा D1 निर्यात करने वाले देश इंग्लैंड के क्रमशः पूर्ति तथा मांग वक्र
हैं, और भाग (B) में S2 तथा D2 आयात करने वाले देश जर्मनी के
क्रमश: पूर्ति तथा मांग वक्र हैं। जर्मनी द्वारा प्रशुल्क लगाए जाने से पहले, दोनों
देशों के बीच व्यापार OP1 कीमत पर होता है। मान लीजिए इंग्लैंड से आयातित
वस्तु पर जर्मनी P2T प्रशुल्क लगा देता है। इससे जर्मनी में वस्तु की कीमत
बढ़ जाती है और वस्तु की मांग गिर जाती है। दूसरी ओर इंग्लैंड में वस्तु की कीमत गिरती
है क्योंकि उसकी निर्यात की मांग घट जाती है। इस प्रकार, प्रशुल्क के परिणामस्वरूप
जर्मनी में कीमत OP1 से बढ़कर OP2 हो जाती है [ भाग (B)] और
इंग्लैंड में कीमत OP1 से गिरकर OP' हो जाती है [भाग (A)] |व्यापार शर्त
प्रभाव यह है कि प्रशुल्क लगाने वाले देश की शर्ते बेहतर हो जाती हैं क्योंकि वह निर्यातकर्ता
देश को आयात शुल्क के कुछ अंश का भुगतान करने पर बाध्य कर सकता है और इस अर्थ में आयात
कुछ सस्ते दामों पर प्राप्त हो सकते हैं। "यह सत्य है कि आयातकर्ता देश में उपभोक्ता
को ऊंची कीमत देनी पड़ती है। परंतु जहां तक आयात का संबंध है, कीमत की इस बढ़ोतरी का
राजस्व प्रभाव, जो प्रशुल्क लगाने के बाद प्रशुल्क गुणा आयात की मात्रा होता है, आंशिक
रूप से निर्यातकर्ता देश के उत्पादकों पर पड़ता है।"
यदि निर्यातकर्ता देश में पूर्ति
बहुत बेलोच होगी और अयातकर्ता देश में मांग बहुत लोचदार होगी तो प्रशुल्क लगाने से
आयात में बहुत परिवर्तन नहीं होगा, वरन् वे बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध होंगे। यदि
निर्यातकर्ता देश का पूर्ति वक्र पूर्ण लोचदार होगा तो प्रशुल्क से व्यापार की शर्तों
में कोई सुधार नहीं होगा।
7. प्रतियोगिता
प्रभाव (Competitive Effect) प्रशुल्क का प्रतियोगिता प्रभाव यह पड़ता
है कि आयातित वस्तु पर प्रशुल्क लगाकर घरेलू उद्योग को विदेशी प्रतियोगिता से बचाया
जाए। यह प्रभाव प्रायः संरक्षण के शिशु उद्योग तर्क से संबद्ध रखता है । परंतु इस प्रसंग
में यह भय प्रकट किया जाता है कि हो सकता है शिशु उद्योग बड़ा होकर भी प्रतियोगिता
में न उतरना चाहे, और यह एकाधिकार प्राप्त कर ले तथा अकुशल बना रहे। प्रो. किंडलबर्गर
का मत है, "प्रशुल्क का प्रतियोगिता प्रभाव वास्तव में प्रतियोगिता विरोधी प्रभाव
है; प्रशुल्क हटाने से प्रतियोगिता बढ़ती है।" इसलिए वह इस पक्ष में है कि अर्थव्यवस्था
के हित में उन उद्योगों पर से प्रशुल्क हटा दिया जाए जो धीमे, भारी और सुस्त' पड़ गए
हों।
8. आय प्रभाव
(Income Effect) आय प्रभाव वह है जो प्रशुल्क लगाने के परिणामस्वरूप
प्रशुल्क लगाने वाले देश की राष्ट्रीय आय पर पड़ता है। यदि यह मान लिया जाए कि दूसरे
देश में बदले की भावना नहीं जागती, तो प्रशुल्क लगाने से आयात घट जाते हैं और आयातित
वस्तुओं की मांग गिर जाती है और घरेलू उत्पादित वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। इससे
निर्यात अतिरेक (Surplus) [X-M] का मूल्य बढ़ेगा जो विदेशी क्षेत्र से आय का अंतर्वाह
(inflow) बढ़ा देगा। आयात से मोड़ी गई समस्त आय बचत के रूप में नहीं रखी जाएगी बल्कि
उसका कुछ भाग देश में व्यय होगा।अपूर्ण रोगजार की स्थिति में इससे मौद्रिक और वास्तविक
आय तथा रोजगार में वृद्धि होगी।
प्रशुल्क का आय प्रभाव चित्र में दिखाया गया
है। बेरोजगारी स्तर पर अर्थव्यवस्था
का कुल व्यय वक्र AD है जो 45° रेखा को E पर काटता है जिससे आय का संतुलन स्तर OY1
होता है। AD वक्र समस्त मांग को भी व्यक्त करता है जो C+ I+G+ (X-M) से बनता है। जब
प्रशुल्क लगाया जाता है, तो उससे आयात -∆M
घट जाते हैं और घरेलू उत्पादित वस्तुओं की मांग बढ़ती है जिससे कुल मांग वक्र सरक कर
AD1 [=C+I+G+ (X-M)1] पर पहुंच जाता है। इससे नया संतुलन बिन्दु
E1 पर प्राप्त होता है। यदि बढ़ा हुआ आय का OYF स्तर पूर्ण रोजगार
का स्तर हो, तो समझो प्रशुल्क ने अर्थव्यवस्था को पूर्ण रोजगार के स्तर पर पहुंचा दिया
है और आय का स्तर बढ़ाकर OYF पर ला दिया है।
एक प्रशुल्क लगाने वाले देश
के आय और रोजगार पर प्रशुल्क का प्रभाव निम्न कारणों से नहीं हो सकता है : प्रथम, जब
घरेलू देश प्रशुल्क लगाता है तो दूसरे देश के निर्यात कम हो जाते हैं जो आगे उसके उत्पादन,
रोजगार और आय को भी कम कर देते हैं । परिणामस्वरूप, दूसरा देश घरेलू देश से अपने आयात
कम कर देगा। इसका मतलब है प्रशुल्क लगाने वाले देश के निर्यात में कमी होना, जो इसके
उत्पादन, रोजगार और आय को कम कर देता है। यदि प्रशुल्क लगाने वाला देश दूसरे देश की
कीमत पर अपने उत्पादन, रोजगार और आय के स्तर को बढ़ाता है तो यह पड़ोसी को भिखारी बनाने
अथवा दूसरे का धन हरण करने की नीति (Begger thy Neighbour Policy) कहलाती है। द्वितीय,
दूसरा देश प्रतिशोधकारी उपाय जैसे प्रशुल्क और प्रतिकारी शुल्क (Countervailing
Duties) अपना सकता है जो घरेलू देश में आय और रोजगार प्रभावों को विफल कर सकते हैं।
सामान्य
संतुलन के अंतर्गत प्रशुल्क के प्रभाव (Effects of a Tariff under General
Equilibrium)
सामान्य संतुलन के अंतर्गत
प्रशुल्क के प्रभावों का अध्ययन एक छोटे देश और एक बड़े देश के बारे में किया जाता
है।
1. एक छोटे देश
में प्रशुल्क के प्रभाव (Effects of Tariff in a Small Country) सामान्य संतुलन विश्लेषण के
अंतर्गत प्रशुल्क के प्रभावों का विश्लेषण तीन रूपों अर्थात् उपभोग प्रभाव, उत्पादन
प्रभाव तथा व्यापार की शर्त प्रभाव के रूप में किया जाता है।
इसकी मान्यताएं
(Its Assumptions)
यह विश्लेषण निम्नमान्यताओं
पर आधारित है :
(i) दो देश हैं, एक इंग्लैंड
और दूसरा बाकी विश्व जिसे जर्मनी मान लीजिए।
(ii) इंग्लैंड घरेलू देश है
जो छोटा है।
(iii) दो वस्तुएं कपड़ा तथा
लिनन हैं, जिनका ये दो देश विनिमय करते हैं।
(iv) कपड़ा इंग्लैंड की निर्यात्य
वस्तु है और लिनन उसकी आयात्य वस्तु है।
(v) अब मानलीजिए कि इंग्लैंड
प्रशुल्क लगाता है और प्रशुल्क का संपूर्ण भार उसी पर पड़ता है।
(vi) विश्व मार्किट में कीमतें
अपरिवर्तित रहती हैं।
(vii) प्रशुल्क से प्राप्त
राजस्व (आय) उपभोग पर व्यय किया जाता है
व्याख्या
(Explanation)
इन मान्यताओं के दिए होने पर,
आयात प्रशुल्क लगाने से आयात्य वस्तु लिनन की घरेलू कीमत बढ़ जाती है जबकि निर्यात्य
वस्तु कपड़ा की कीमत स्थिर रहती है। क्योंकि इंग्लैंड एक छोटा देश है इसलिए वह लिनन
की विश्व कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है।
उत्पादन और उपभोग प्रभाव (Production and Consumption Effects) पहले इंग्लैंड को लीजिए। इंग्लैंड दो वस्तुओं अर्थात कपड़े और लिनन का उत्पादन करता है परंतु कपड़े में विशिष्टीकरण करता है और उसे जर्मनी के लिनन से विनिमय करता है। इसका दोनों वस्तुओं में उत्पादन संभावना वक्र नीचे के चित्र में BB1 है। मुक्त व्यापार के अंतर्गत इसका उत्पादन बिन्दु E उत्पादन संभावना वक्र पर है और उपभोग बिन्दु C2 समुदाय उदासीनता वक्र CI2 पर है। इसके विश्व कीमत अनुपात (अर्थात व्यापार की शर्तों) को P2P2 रेखा की ढलान व्यक्त करती है जो एक साथ उत्पादन
संभावना वक्र BB को E पर तथा
CI2 वक्र को C2 पर स्पर्श करती है। इंग्लैंड का व्यापार त्रिभुज
EFC2 है जो बताता है कि वह लिनन की FC2 आयात मात्रा के बदले
कपड़े की FE मात्रा निर्यात करता है।
यह मान्यता रखने पर कि दोनों
वस्तुओं में विश्व कीमत अनुपात स्थिर रहता है, जब लिनन के आयात पर प्रशुल्क लगाया जाएगा,
तो घरेलू बाजार में कपड़े की सापेक्षता में लिनन की कीमत प्रशुल्क की मात्रा में बढ़ेगी।
जैसा कि चित्र में PP रेखा की ढलान द्वारा दिखाया गया है। परिणामस्वरूप, कपड़े को लिनन
से स्थानापन्न करके इंग्लैंड लिनन का घरेलू उत्पादन बढ़ाएगा और उत्पादन संभावना वक्र
BB1 के नए बिन्दु T पर उत्पादित करेगा। यह प्रशुल्क का उत्पादन अथवा संरक्षण
प्रभाव है। अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार रेखा P1P1 पर चलता है
(जो मुक्त व्यापार रेखा P2P2 के सामानान्तर है),और समुदाय उदासीनता
वक्र CI1 को बिन्दु C1 पर स्पर्श करता है ।
यह बिन्दु अपेक्षाकृत ऊंचे
समुदाय उदासीनता वक्र CI2 पर स्थित बिन्दु C2 की तुलना में अपेक्षाकृत
नीचे समुदाय उदासीनता वक्र CI1 पर स्थित है। यह उपभोग प्रभाव है। उत्पादन
तथा उपभोग प्रभावों के परिणामस्वरूप नया व्यापार त्रिभुज HC1T बनता है जो
बताता है कि अब इंग्लैंड कपड़े की HT मात्रा निर्यात करता है और बदले में लिनन की
HC1 मात्रा आयात करता है।
इस प्रकार एक
छोटे देश में प्रशुल्क के प्रभाव हैं : (1) आयात्य वस्तुओं के घरेलू
उत्पादन में वृद्धि करना और आयात की कमी से उसके उपभोग को कम करना, (2) निर्यात्य वस्तुओं
के उत्पादन और निर्यात कम करना, और (3) देश के कल्याण में कमी लाना।
एक बड़े देश
में प्रशुल्क के प्रभाव (Effects of Tariff in a Large Country) एक
बड़े देश में प्रशुल्क लगाने के प्रभाव यह होते हैं कि उसकी व्यापार की शर्तों में
सुधार होता है, उसके व्यापार की मात्रा कम होती है और उसके कल्याण में सुधार होता है।
उत्पादन और उपभोग प्रभाव (Production and Consumption Effects) क्योंकि प्रशुल्क लगाने वाला बड़ा देश होता है, इसका बाकी विश्व के साथ व्यापार विश्व कीमतों को प्रभावित करता है। नीचे के चित्र में देखें
जहां उत्पादन संभावना वक्र
AA1 का उत्पादन बिन्दु E1 है और विश्व कीमत रेखा P1P1
के साथ CI1 वक्र पर उपभोग बिन्दु C1 है। व्यापार त्रिभुज E1FC1
है जो दर्शाती है कि इंग्लैंड कपड़े की FE1 मात्रा निर्यात करता है और लिनन
की FC1 मात्रा आयात करता है । जब इंग्लैंड प्रशुल्क लगाता है तो विश्व बाजार
में कपड़े की सापेक्ष कीमत बढ़ जाती है और लिनन की सोपक्ष कीमत गिरती है। ऐसा इस कारण
कि प्रशुल्क लगाने वाला देश (इंग्लैंड) बड़ा होने पर उसकी आयात्य लिनन की मांग में
इतनी अधिक कमी हो जाती है कि इसकी कीमत विश्व बाजार में गिर जाती है। ऐसी स्थिति में,
कपड़े की निर्यात कीमत की सापेक्षता में लिनन की आयात कीमत में कमी विश्व कीमत रेखा
P1P1 की तुलना में नई विश्व कीमत रेखा P2P2
को अधिक तिरछा बना देती है। उत्पादन बिन्दु E1 से E2 हो
जाता है जहां घरेलू कीमत रेखा PP इसको स्पर्श करती है और इंग्लैंड विश्व कीमत P2P2
पर व्यापार करता है। उपभोग बिन्दु C2 विश्व कीमत रेखा P2P2
और घरेलू कीमत रेखा P'P' (जो PP के समानांतर है) पर होता है। इस स्थिति में CI1
वक्र के C1 बिन्दु की अपेक्षा C2 ऊंचे वक्र CI2 पर
होता है, जो प्रशुल्क लगाने वाले देश के कल्याण में वृद्धि को दर्शाता है।
इन नए उत्पादन और उपभोग बिन्दुओं
से एक नया व्यापार त्रिभुज E2GC2 बन जाता है जिससे GE2
कपड़े के निर्यात और GC2 लिनन का आयात होता है। प्रशुल्क लगाने से
विशिष्टीकरण (specialisation) कम हुआ है क्योंकि अब कपड़े की कम मात्रा GE2
पहले की FE1 मात्रा की तुलना में उत्पादित होती है और उसका सापेक्षतया लिनन
की अधिक मात्रा GC2 के साथ विनिमय किया जाता है। ऐसा इस कारण कि कपड़े की
विश्व कीमत की अपेक्षा लिनन की कीमत कम हो जाती है। कुल मिलाकर, प्रशुल्क लगाने वाले
देश के कल्याण में निवल लाभ हुआ है, क्योंकि अब इसके नागरिक कम कीमत पर लिनन की पहले
से बहुत अधिक मात्रा GC2 का उपभोग करते हैं, जिसका कारण उपभोग प्रभाव है
जो उत्पादन प्रभाव से कम हुए विशिष्टीकरण प्रभाव को समाप्त कर देता है।
प्रशुल्क का व्यापार की शर्त प्रभाव (Terms of Trade Effect of Tariff) प्रशुल्क का व्यापार की शर्त प्रभाव यह है कि जो देश प्रशुल्क लगाता है उसकी व्यापार की शर्ते बेहतर हो जाती हैं। वह अपने आयात अपेक्षाकृत कम दामों पर प्राप्त कर सकता है क्योंकि विदेशी निर्यातकर्ता को शुल्क के कुछ भाग अथवा सारे शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। परंतु प्रशुल्क लगाने वाले देश की व्यापार की शर्तों में कितना सुधार होगा, यह दोनों देशों की परस्पर मांग पर निर्भर करेगा। मानलीजिए, दो देश जर्मनी तथा इंग्लैंड हैं और ये क्रमशः लिनन तथा कपड़े का उत्पादन करते हैं। यदि इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र अधिक लोचदार है, तो व्यापार की शर्ते जर्मनी की अपेक्षा इंग्लैंड के अधिक अनुकूल होंगी। प्रशुल्क का व्यापार की शर्त प्रभाव को नीचे के चित्र में सामान्य संतुलन विश्लेषण के रूप में स्पष्ट किया गया है।
OE तथा 0G क्रमश: इंग्लैंड
तथा जर्मनी के प्रस्ताव वक्र हैं । मुक्त व्यापार के अंतर्गत व्यापार की शर्ते OT रेखा
के बिन्दु A पर ठहरती हैं जिसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड OC कपड़ा निर्यात करता है और
जर्मनी से OL लिनन आयात करता है। मानलीजिए जर्मनी के लिनन पर इंग्लैंड प्रशुल्क लगा
देता है, इससे इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र OE से सरक कर OE1 जाता है तथा नया संतुलन
B बिन्दु पर होता है। अब इंग्लैंड, जर्मनी के लिनन के बदले कम कपड़ा पेश करता है। अत:
व्यापार की शर्ते इंग्लैंड के पक्ष में OT से OT1 पर आ जाती हैं। अब जर्मनी
से OL1 लिनन के आयात के बदले इंग्लैंड OC1 कपड़ा निर्यात करता
है। अब यह CC1 कम कपड़ा निर्यात और LL1 कम लिनन आयात करता है।
क्योंकि इंग्लैंड के आयात में जो कमी हुई है, वह इसके जर्मनी को किए गए निर्यात में
हुई कमी से कम है अर्थात LL1 < CC1 इसलिए प्रशुल्क लगाने
से व्यापार की शर्ते इंग्लैंड के अनुकूल गई हैं। परंतु क्योंकि इंग्लैंड ने जर्मनी
की कीमत पर अपनी व्यापार की शर्ते बेहतर बनाई हैं, इसलिए जर्मनी भी बदले की भावना से
काम लेगा और अंत में दोनों देशों को हानि उठानी पड़ेगी।
(अ) प्रतिशोध रहित व्यापार की शर्त प्रभाव (Terms of Trade Effect without Retaliation) जब एक देश प्रशुल्क लगाए और दूसरा बदले पर न उतरे, तो प्रशुल्क के दो प्रभाव पड़ते हैं। प्रथम, प्रशुल्क लगाने वाला देश अपनी व्यापार की शर्ते बेहतर बना लेता है। उसे अपने आयात पहले से कम दामों पर प्राप्त होते हैं क्योंकि विदेशी निर्यातकर्ता को शुल्क का कुछ भाग अथवा सारे शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। दूसरे, प्रशुल्क लगाने से व्यापार की मात्रा घट जाती है। सामान्य विश्लेषण सिद्धांत के अनुसार नीचे के चित्र में प्रशुल्क के इन प्रभावों को स्पष्ट किया गया है।
मान-लीजिए दो देश हैं-इंग्लैंड तथा जर्मनी और वे
क्रमशः कपड़े तथा लिनन का उत्पादन करते हैं । OE इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र है और
OG जर्मनी का प्रस्ताव वक्र है । मुक्त व्यापार के अंतर्गत दोनों देशों के बीच व्यापार
की शर्ते OT रेखा के बिन्दु A पर ठहरती हैं। इस बिन्दु पर इंग्लैंड OC कपड़ा निर्यात
करता है और जर्मनी से OL लिनन आयात करता है। मानलीजिए इंग्लैंड अब जर्मनी के लिनन पर
आयात शुल्क लगा देता है। इससे इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र OE से OE1 पर चला
जाता है और जर्मनी के प्रस्ताव वक्र 0G को बिन्दु B पर काटता है। इससे इंग्लैंड की
व्यापार की शर्ते OT से बाईं ओर OT1 पर आ जाती हैं। यह इंग्लैंड की दृष्टि
से व्यापार की शर्तों में सुधार है। अब इंग्लैंड जर्मनी के OE1 लिनन के
बदले OC1 कपड़ा निर्यात करता है। इंग्लैंड जो C1B (= OL1)
लिनन आयात करता है, उसमें से DB मात्रा सरकार को आय शुल्क के रूप में प्राप्त होती
है। इस प्रकार आयात शुल्क लगाने से दो बातें हुईं : (क) इंग्लैंड की व्यापार की शर्ते
बेहतर बनी हैं। अब इंग्लैंड पहले की अपेक्षा कपड़े की CC1 कम मात्रा निर्यात
करता है और पहले से लिनन की LL1 कम मात्रा आयात करता है, LL1 <CC1
। इसलिए इंग्लैंड के लिए व्यापार की शर्तों में सुधार हुआ है और (ख) दोनों देशों के
बीच व्यापार की मात्रा कम हुई है, OC1 +OL1< OC + OL I
परंतु प्रशुल्क लगाने से व्यापार की शर्तों में कितना सुधार होगा, यह दूसरे देश के विदेश प्रस्ताव वन की मांग की लोच पर निर्भर करता है। मानलीजिए जर्मनी का विदेश प्रस्ताव वक्र पूर्ण लोचदार है जिसे नीचे के चित्र में OG के रूप में दिखाया गया है।
मुक्त व्यापार के अंतर्गत प्रस्ताव वक्र OG तथा OE एक-दूसरे को T बिन्दु पर काटते हैं, जिससे पता चलता है कि जर्मनी के OL लिनन के बदले इंग्लैंड के OC कपड़े का विनिमय होता है। जब प्रशुल्क लगाया जाता है, तो इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र OE से बाएं को OE1 पर आ जाता है और 0G वक्र को T1 पर काटता है। परंतु T = T1 मूल्य पर व्यापार की शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं होता। इंग्लैंड की व्यापार की शर्तों में कोई सुधार नहीं होता और दोनों देशों में व्यापार की मात्रा समान मात्रा में गिरती है। इंग्लैंड के कपड़े की मात्रा में हुई कमी CC = जर्मनी की लिनन की मात्रा में हुई कमी LL1 I दूसरी ओर, यदि जर्मनी का प्रस्ताव बेलोच होता है, तो व्यापार की शर्ते प्रशुल्क लगाने वाले देश- इंग्लैंड के पक्ष में हो जाएगी। इसे नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
मुक्त व्यापार के अंतर्गत दोनों
देशों की व्यापार शर्तों को OT रेखा व्यक्त करती है और OL लिनन से OC कपड़ा विनिमय
किया जाता है। A तथा B के बीच जर्मनी का प्रस्ताव वक्र OG अत्यधिक बेलोच है। जब प्रशुल्क
लगाया जाता है तो इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र OE1 जर्मनी के प्रस्ताव वक्र
OG को B पर काटता है और नई व्यापार की शर्तों की रेखा OT1 बनती है। इससे
पता चलता है कि इंग्लैंड की व्यापार की शर्ते बेहतर हो गई हैं क्योंकि उसके कपड़े के
निर्यात में महत्वपूर्ण कमी होती है और वह पहले से कपड़े की CC1 कम मात्रा
निर्यात करता है, जबकि इसके कपड़े से विनिमय किए गए लिनन के आयातों की मात्रा LL1
बढ़जाती है।
(ब) प्रतिशोधी अथवा प्रतिकारात्मक अथवा प्रतिरोधात्मक व्यापार की शर्ते (Terms of Trade with Retaliation) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में साधारण स्थिति यह नहीं होती कि कोई देश प्रशुल्क लगाकार अपनी व्यापार की शर्ते बेहतर बना ले जबकि दूसरा देश प्रतिक्रिया ही न करे और चुपचाप हानि उठा ले। वास्तव में, यदि प्रशुल्क लगाकर इंग्लैंड अपनी व्यापार-शर्ते बेहतर बनाएगा, तो जर्मनी भी बदले में प्रतिशोधी प्रशुल्कं लगा देगा। प्रत्येक देश की इस प्रकार की प्रतिक्रिया का प्रभाव नीचे के चित्र में दिखाया गया है।
मुक्त व्यापार के अंतर्गत इंग्लैंड तथा जर्मनी के प्रस्ताव वक्र OE तथा OG हैं जो एक दूसरे को बिन्दु A पर काटते हैं और व्यापार की शर्ते OT रेखा पर तय होती हैं। जब जर्मनी के लिनन पर इंग्लैंड प्रशुल्क लगाता है, तो इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र OE से बाएं OE1 पर चला जाता है। नई व्यापार की शर्तों का बिन्दु B है जो बताता है कि इंग्लैंड के कल्याण में सुधार हुआ है। अब मानलीजिए कि बदले की भावना से जर्मनी भी इंग्लैंड के कपड़े पर प्रशुल्क लगा देता है। परिणामस्वरूप, जर्मनी का प्रस्ताव वक्र 0G1 पर आ जाएगा। नई व्यापार की शर्ते बिन्दु D पर तय होती हैं। यह D बिन्दु प्रतिशोध से पहले के व्यापार की शर्त बिन्दु B से बहुत नीचे है। अब प्रतिशोध के कारण दोनों देशों में व्यापार की मात्रा बहुत घट गई है। यदि दोनों देश इसी तरह झगड़ते हुए प्रतिशोध प्रशुल्क लगाते रहे, तो व्यापार बिन्दु सरकते हुए क्रमशः D से F पर और F से H पर आ जाएंगे। अत: व्यापार की शर्ते व्यापार रेखा OT के बिन्दु A पर अपरिवर्तित रहेंगी। निष्कर्ष यह निकलता है कि प्रतिशोधी प्रशुल्कों के प्रभावों से दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा घटती है और व्यापार की शर्ते मुक्त व्यापार स्तर पर ही आ जाती हैं। चित्र में यही दिखाया गया है कि व्यापार की मात्रा क्रमश: घटती हुई (OC1 +OL1) से (OC2 +OL2) से (OC2 +OL2) से (OC3 + OL3) रह जाती है तथा व्यापार की शर्ते पलटकर OT रेखा के बिन्दु A पर आ जाती हैं । इस प्रकार, यदि व्यापार की शर्तों को सुधारने के लिए प्रशुल्क लगाया जाए और दूसरा देश भी प्रतिशोध में प्रशुल्क लगाए, तो परिणामस्वरूप दोनों देशों को हानि उठानी पड़ती है।