अर्थशास्त्र के अध्ययन की विधियाँ (STUDY METHODS OF ECONOMICS)

अर्थशास्त्र के अध्ययन की विधियाँ (STUDY METHODS OF ECONOMICS)

अर्थशास्त्र की अध्ययन विधि से आशय (Meaning of Study Method of Economics)

किसी भी ज्ञान एवं विज्ञन के अध्ययन करने का उद्देश्य 'कारण' एवं 'परिणामों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध की स्थापना करके किसी परिणाम, सत्य एवं निष्कर्ष पर पहुँचना होता है। जिस पद्धति अथवा तरीके के द्वारा परिणाम, सत्य एवं निष्कर्ष में पहुँचा जाता है, उसे ज्ञान एवं विज्ञान की अध्ययन प्रणाली अथवा विधि कहते हैं। अन्य विज्ञान के विषयों के समान ही अर्थशास्त्र के विषय सम्बन्धी परिणाम, सत्य एवं निष्कर्ष निकालने के लिए जिन तरीक एवं पद्धतियों को प्रयोग में लाया जाता है, उन्हें 'अर्थशास्त्र' के अध्ययन की प्रणालियों अथवा विधियों के नाम से पुकारा जाता है। अतः अर्थशास्त्र के अध्ययन की विधियाँ “वे उपाय हैं जिनकी सहायता से हम आर्थिक निष्कर्षों का निर्माण करते हैं। उनकी सत्यता की परख करते हैं और आर्थिक घटनाओं की खोज करते हैं।'' कोसा (Cossa) के शब्दों में, “ 'विधि' शब्द का अर्थ उस तर्कपूर्ण प्रणाली से होता है जिसका प्रयोग सच्चाई को खोजने या उसे व्यक्त करने के लिए किया जाता है।''

अर्थशास्त्र में अध्ययन की दो विधियाँ हैं :

(1) निगमन विधि (Deductive Method),

(2) आगनन विध (Inductive Method)।

1. निगमन विधि (Deductive Method) अर्थशास्त्र के नियमों का निर्माण करने से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण विधि निगमन विधि है। इस विधि को परिकाल्पनिक विधि (Hypothetical Method), अमूर्त विधि (Abstract Method) तथा अनुभव से पूर्व विधि (A Priori Method) भी कहा जाता है। प्रो. बोल्डिग ने इस विधि को बौद्धिक प्रयोग की विधि (Method of Intellectual Experiment) का नाम दिया है। इस विधि का प्रयोग परम्परावादी अर्थशास्त्रिये, जैसे—एडम स्मिथ, रिकार्डो तथा नव-परम्परावादी अर्थशास्त्रियों, जैसे—वालरस, मेन्जर आदि तथा आधुनिक अर्थशास्त्री रॉविन्स, फ्रीडमैन आदि ने किया है।

निगमन विधि क्या है ? (What is Deductive Method ?)- निगमन विधि वह विधि है जिसमें सामान्य (General) सत्य के आधार पर हम किसी एक विशिष्ट सत्य को तर्क द्वारा जानने का प्रयत्न करते हैं। सरल शब्दों में, इस प्रणाली के अनुसार सर्वप्रथम हम मानव व्यवहार से सम्बन्धित कुछ सर्वमान्य, प्रचलित एवं नर्विवाद सत्यों को आधार मान लेते हैं और तत्पश्चात् तर्क एवं विश्लेषण की सहायता से किसी विशिष्ट सत्य या नियम का प्रतिपदन कर दिया जाता है। संक्षेप में, इस प्रणाली में हम 'सामान्य से विशिष्ट की ओर' (From General to Particular) जाते हैं

प्रो. विलसन गी के अनुसार, “निगमन विधि से अभिप्राय सामान्य से विशिष्ट अथवा सार्वभौमिक से व्यक्तिगत आधार पर निष्कर्ष निकालने से है। '2

निगमन विधि के समर्थक (Supporters of Deductive Method)- अर्थशास्त्र के अध्ययन में पहले इस विधि का बहुत प्रचार था। रिकार्डो, मिल, सीनियर तथा कैरनेस आदि अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह अर्थशास्त्र के अनुशोलन में सर्वोत्तम हैं क्योंकि न इसमें प्रयोग करना होता है, न ही आँकड़े संग्रह करने पड़ते हैं। मार्शल, इविंग फिशर ने भी इसी प्रणाली को उपयुक्त माना था। ऑस्ट्रिया में पैजर' तथा 'बीजर' भी इसो प्रणाली के समर्थक थे। इन लोगों ने मानव आचरण को प्रमुख विशेषताओं अथवा व्यावसायिक जीवन के कुछ प्रधान तथ्यों जिन्हें वे बिल्कुल नत्य समझते थे, के आधार पर सम्पूर्ण अर्थ-विज्ञान के निर्माण का प्रयस किया।

उदाहरण (Examples)—इस विधि के निम्न उदाहरण है

(1) यह एक स्वयंसिद्ध बात है कि मानव नरणशील है (सामान्य सत्य । इस सामान्य सत्य के आधार पर तर्क की सहायत से यह कहा जा सकता है कि X, जो एक मनुष्य है, अवश्य नरेगा (विशिष्ट सत्य

(2) हम जानते हैं कि 'अन्य बातें सामान्य रहने पर' कीमत के बढ़ने पर वस्तुओं की माँग कम हो जाती है। पेट्रोल एक वस्तु है इसलिए हम कह सलते हैं कि पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जायेगी।

(3) इसी प्रकार एक सामान्य सत्य है कि जीवित रहने के लिए भोजन अत्यन्त आवश्यक है। इस सत्य के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि किसी देश विशेष में जनसंख्या बढ़ने पर खाद्यान्नो की माँग भी बढ़ेगी।

निगमन विधि की अवस्थाएँ (Steps of the Deductive Method)- निगमन विधि की तीन अवस्थाएँ हैं

(1) मान्यताएँ (Assumptions) इस विधि में सबसे पहले आर्थिक व्यवहार के किसी महत्वपूर्ण पहलू के सम्बन्ध में मान्यताएँ स्थापित की जाती हैं।

(2) तर्क (Logic) आर्थिक व्यवहार की मान्यताओं के आधार पर तकं द्वारा निष्कर्ष निकालने के लिए गणित (Mathematics) की भी सहायता ली जाती है।

(3) सत्यता की जाँच (Verification) तर्क द्वारा जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, उन्हें वास्तविक जीवन में लागू करके उनकी सत्यता की जाँच की जात है।

निगमन विधि के गुण (Merits of Deductive Method)—निगमन प्रणाली के निम्न गुण हैं

(1) तर्कसिद्ध (Logical) हम जिस 'सामान्य सत्य' पर नियम को आधारित करते हैं, उस सत्य को भली भाँति परख लेते हैं, उसकी जाँच कर लेते है और तब उस पर नियमों को आधारित करते हैं। इस प्रकार हमारे निष्क तर्कसिद्ध होते हैं।

(2) निश्चितता (Certainty) इस विधि द्वारा प्राप्त किये गये निष्कर्ष तर्कशस्त्र के अधिक निकट होते हैं। इसलिए इनमें बहुत कम त्रुटियाँ होती हैं और यदि होती भी हैं तो तर्क द्वारा उनको निकाला जा सकत है। परिणामस्वरूप यह विधि अधक निश्चित होती है।

(3) सरलता (Simplicity) यह विधि बहुत सरल है क्योंकि इसके अन्तर्गत आँकड़ो को एकत्रित करने तथा बाद में उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता नहीं होती जिस कारण साधारण व्यक्ति भी इनका आसनी से प्रयोग कर सकता है।

(4) सर्वव्यापकता (Universality) इस विधि द्वारा बनाये गये नियम हर समय तथा प्रत्येक देश मे लागू होते हैं वयोंकि उनका आधार मानवीय स्वभाव होता है। उदाहरण के लिए, तुष्टिकरण ह्रास नियम, जिसका प्रतिपादन निगमन विधि के आधार पर किया गया है, सभी कालों व सभी देशों के लिए सत्य है।

(5) आगमन प्रणाली की पूरक (Supplementary to Inductive Method) निगमन विध की सहायता से आगमन विधि द्वारा निष्कर्षों की सत्यता का परीक्षण किया जा सकता है। अत: यह आगमन विधि की पूरक है।

(6) शुद्धता (Verification) इस विधि द्वारा निकाले गये निष्कर्ष शुद्ध और साष्ट होते हैं क्योंकि-(i) इनमें जो त्रुटियाँ होती है, उन्हे तर्क द्वारा दूर किया जा सकता है और (ii) गणित के उपयोग द्वारा अधिक शुद्धता प्रप्त की जा सकती है। निगमन विधि की प्रशंसा करते हुए केयरनेस ने लिखा है कि “यदि पर्याप्त सावधानी के साथ निगगन विधि का प्रयोग किया जाय तो यह अतुलनीय है। यह गानव बुद्धि की अत्यन्त शक्तिशाली खोजमूलक विधि है।"

(7) निष्पक्षता (Impartiality) यह विभि निणक्ष होती है। चूंकि निष्कर्ष सर्वमान्य सत्यों के आभार पर निकाले जाते हैं, अत: कोई भी अन्वेषक उन्हें अपने विचारों या दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं कर सकता।

(8) भविष्यवाणी की जा सकती है (Possibility of Forecast) इसके आधार पर हम अनुमान लगा सकते है और भविष्यवाणी कर सकते हैं, जैसे सामान्य सत्य है कि लेग को उपभोग प्रवृत्ति सीमित होती है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि आय के एक सीमा के आगे बढने से भवष्य में बचन अधिक होगी।

निगमन विधि के दोष (Dermerits of Deductive Method)—निगमा विधि के निम्नलिखित

(1) निष्कर्ष का वास्तविकता से परे होना (Conclusions are Divorced from Reality)-इस विधि से निकाले गये निष्कर्ष अवास्तविक त्या अविश्वसनीय हेते हैं क्योंकि इस विधि में यह जानना कठिन होता है क चे मान्यताएं जिन पर निष्कर्ष आधारित है, सत्य है या असत्या मान्यताएँ गलत होने पर निष्कर्ष भी गलत होगे।

(2) स्थैतिक दृष्टिकोण (Statie Approach)- इस विधि के अन्तर्गत कुछ कल्पनओं को स्थिरमानकर उनके आधार पर अध्ययन एवं खोज की जाती है। वास्तविकता यह है कि कल्पन कभी भी स्थिर नहीं होती, वह तो परिवर्तन करती रहती है। अनः अधार में परिवर्तन हे जाने पर निकाले गये परिणाम एवं निष्कर्ष किस प्रकार सत्य रह सकते हैं ?

(3) निष्कर्षों की सत्यता की जांच का अभाव (Dillicult. to Verify Result)- इस विधि ने हम स्वयंसिद्ध बातो लो आधार मानकर तर्ल द्वारा उनसे निष्कर्ष निकालने हैं परन्तु इन निकाले हुए नकों की यथार्थता की जाँच के लिए हमारे पास कोई तरीका नहीं है। कभी-कभी तो सनस्याएँ इतनी जटिल होती हैं कि इन निष्काों अथवा परिणामों को प्रमाणित करन भी कठिन हो जत है।

(4) सार्वभौमिकता का अभाव (Lack of Universality-चकि प्रत्येक देश का सामाजिक वातवरण, परम्पराएँ, भार्मिक विश्वास, तकनीक का स्तर, राजनीतिक वातावरण आदि एक दूसरे से भिन्न होते हैं, अत: यह

कैसे सम्भब है कि केवल अनुमान एवं नर्क पर आधारित निष्कर्ष जे एक देश सच हों, सभी देशों में समान रूप से लागू होंगे।

(5) अर्थशास्त्र के पूर्ण विकास का सम्भव न होना (IFull Development of Economics is not Possible)- चूंकि इस विधि को सहायता से अर्थशास के सभी पहलुओं का अध्ययन सम्भव नहीं हो सकता, इसलिए यदि इस विधि का प्रयोग किया जायेगा ते अर्थशास्त्र समाज में अपने विकास की चरम सीमा तक नहीं पहुंच सकता है।

2. आगमन विधि (Inductive Method)

आगमन वध भी आर्थिक नियमों का निर्माण करने के लिए एक महत्वपूर्ण तथा लोकप्रिय विधि है। इस विधि को–(1) प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method), (2) ऐतिहासिक विधि (Historical Method), (3) विश्लेषणात्मक विधि (Analytical Method), (4) सांख्यिकी विधि (Statistical Method), (5) अनुभव के बाद की विधि (A Posl-priori Method) भी कहा जाता है।

आगमन विधि क्या है ? (What is Inductive Method ?) यह विधि निगमन विधि के विपरीत है। इसमें हम विशिष्ट सत्यों के आधार पर सामान्य तत्वों का निर्माण करते है। सरल शब्दों में, इस विधि में सर्वप्रथम कुछ तथ्यों का अध्ययन एक निरीक्षण किया जाता है, तत्पश्चात् उनसे कुछ विशिष्ट निको निकाले जाते हैं और अन्त में, विशिष्ट निष्कर्षों की एकरूपता की जच करके सामान्य सिद्धान्तों या नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। संक्षेप में, इस विधि से हम विशिष्ट से सामान्य की ओर' (From Particular to Ceneral) जाते हैं।

(1) विलियम गी के अनुसार, "आगमन विधि विशिष्ट से सामान्य तथा व्यक्तिगत से सार्वभौमिक सत्य तक पहुँचने की प्रक्रिया है।"

(2) प्रो. कीन्स के अनुसार, “आगनन विधि में हम अनेक उदाहरणों के आधार पर एक सामान्य नियम की स्थापना करते हैं।"

उदाहरण (Examples)—इस विधि के निन्न उदाहरण हैं :

(1) हम देखते हैं कि राम एक ननुष्य है, वह मरणर्शल है, श्याम एक मनुष्य है, वह भी मरणशील। राम और श्याग दोनों गरणशील है (विशिष्ट सत्य। इरा विशिष्ट सत्य के आधार पर नर्क की सहायता रो कहा जा सकता है कि सभी मनुष्य मरणशील है।

(2) जब बाजार में पेट्रोल का मूल्य घट जाता है, तब पेट्रोल की खरीद करने वाले ग्राहकों की संख्या में वृद्धि हो जाती है तथा पेट्रोल की अधिक मात्रा खरीदो जाती है। यह विशिष्ट सत्य है जिसे हमने अनुभव के आधार पर शत किया है। अत: अब हम इस विशिष्ट सत्य के आधार पर यह सामान्य सत्य निकाल सकते है कि "नस्तु का मूल्य गिरने पर उसकी माँग बढ़ेगी।" इसे ही अर्थशास्त्र में 'माँग का नियम' का नाम दिया गया है।

आगमन विधि के समर्थक (Supporters of Inductive Method,- जर्मन ऐतिहासिक मत के अर्थशास्त्रियों ने निगमन विध का विरोध लिया है और आगमन विधि को अपनाया है। इसमें जर्मनी के रोशे (Rosher), नीश (Knies), सोलर (Schomoller), हिल्डे ब्रांड (Hilde Brand), फ्रेडरिक लिस्ट (Frederie List) तथा इंग्लैण्ड के ब्लिफ लैरले (Cliffe Lesli) मुख्य हैं। लैश्ले के अनुसार, "अर्थशास्त्र अभी तक निगमन विज्ञान ले स्तर तक नहीं पहुँन सका है। आर्थिक जगत् के नामों का ज्ञान अभी भी अपूर्ण है और इनको जानने के लिए शान्तिपूर्वक आगनन विधि का उपयोग आवश्यक होगा।'' प्रतिष्टित अर्थशास्त्रियों ने इस विधि को दोषपूर्ण नहीं ठहराया। इनमें से कुछ ने इस विधि को कार्य के रूप में भी परिणित किया है। एडम स्मिथ ने अपने अध्ययन में ऐतिहासिक बातों का समावेश किया है। मिल ने इसे गौण स्थान दिया है।

आगमन विधि की अवस्थाएँ (Steps of Inductive Method)- प्रो. क्लार्क के अनुसार आगमन विधि की तोन अवस्थाएं इस प्रकार हैं:

(1) तथ्यों का एकत्रीकरण (Observation of Facts)- इस विधि में पहले किसी आर्थिक व्यवहार के विषय में तथ्य एकत्रित किये जाते है। तथ्य एकत्रित करने के मुख्य उपाय दो हैं—(i) प्रयोग (Experiment) द्वारा, (ii) सांख्यिकी (Statistics) द्वारा। अर्थशास्त्र में प्रयोगे की सम्भावन कम होती है। अर्थशास्त्र में तथ्य एकत्रित करने के लिए सांख्यकी (Statistics) का प्रयोग अधिक किया जाता है। आर्थिक घटनाओं के परिमाणात्मक सम्बन्धों के बारे में नाख्यिकी की सहायता से विश्लेषण करने वाले विषट को अर्थमिती (Econometrics) कहते हैं। कई आधुनिक अर्थशास्त्री (i) आदान-प्रदान विश्लेषण (Input-out- put Analysis) तथा (ii) रेखीय प्रोग्रेमिंग (Linear Programming) को तकनीक का प्रयोग भी तथ्य एकत्रित करने के लिए करते है।

(2) परिकल्पना का निर्माण (Formulation of Hypothesis)- किसी समस्या को साणावत

व्याख्या के परिकल्पना कहते हैं। आगमन विधि में तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् उनके आधार पर परिकल्पना का निर्माण किया जाता है जिनके आधार पर तर्क द्वरा निष्कर्ष निकाले जाते है।

(3) सत्यता की जाँच (Verification)- आगमन विधि की तीसरी अवस्था में निकों को वास्तविक जीवन में लागू करके उनकी सत्यता की जाँच की जाती है।

अर्थशास्त्र में आगमन विधि का प्रयोग (Application of Inductive Method in Economics)—इस विधि का महत्व अर्थशास्त्र के अध्ययन में बहुत अधिक है। माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त इसी विधि के आधार पर बना है। पूँजी का संचय नियम डॉ. एंजिल का उपभोग नियम तथा माँग का नियम भी इसी विधि को उपज है। आधुनिक युग में आगमन विधि के प्रयोग में काफी वृद्धि हो गई है। प्रत्येक देश की सरकार तथा अन्य संस्थाएँ आँकड़े प्रकाशित करती है। अतः अर्थशास्त्रियों को अपने निष्कर्षो को निकालने में अधिक विश्वसनीय तथ्य प्राप्त होते हैं। अत: इसी कारण आधुनिक युग को आगमन युग भी कहा जाता है।

आगमन विधि के गुण (Merits)—आगमन वधि के निम्न गुण हैं :

(1) वास्तविकता के समीप (Near Truth)- यह विधि तथ्यों तथा अंकों पर आधारित होती है इसलिए यह वास्तविकता के काफी करीब होत है। फलस्वरूप गलती की आशंका बहुत कम होती है।

(2) निगमन विधि की पूरक (Complementary to Deductive Method)- इस बिांध के द्वारा निगमन विधि को बहुत सहायता मिलती है क्योंकि यह विधेि तथ्यों तथा अंकों पर निर्भर होती है। इसके द्वारा निगमन विधि की मान्यताओं और परिणामों की वास्तविकता को परख बहुत आसानी से की जा सकती है।

(3) प्रावैगिक (DyTIATIC Apprriach)- आगमन विधि का दृष्टिकोण प्रावैगिक है क्योंकि यह प्रणाली आर्थिक दशाओं की परिवर्तनशीलता पर भी प्रकाश डालती है।

(4) निष्कर्षों की जाँच (Verification of Result)- इस विधि के द्वारा निकाले गये निष्कर्षों तथा नियमों की वास्तविकता को परख व्यक्तिगत निरीक्षण द्वारा की जाती है। अत: इसमें गलतियाँ बहुत कम होती हैं

आगमन विधि के दोष (Demerits)—आगमन विधि में निम दोप है

(1) व्यक्तिगत पक्षपात (Personal Bias) इस विधि में इस बात की राष्भावना रहती है के अवेषक अपने विचारों से निष्कर्षों को प्रभावित करे क्योंकि अन्वेषक प्राय: वही क्षेत्र चुनता है जहाँ उस्के विचारो क मान्यता होती है। उदाहरण के लिए, यदि अन्वेषक यह दिखान चाहे कि जनसंख्या के बढ़ो से भुखमरी बढ़ती है तो वह सर्वेक्षण के लिए कुछ ऐसे ही क्षेत्रों को चुनेगा जहाँ वह यह देखेगा कि जनसंख्या के बढ़ने से भुखमरी फैल रही है। ऐसे निरीक्षण के द्वारा वह जिन विचारो का प्रतिपादन करेगा, वे निष्पक्ष नहीं होंगे।

(2) सर्वसाधारण के लिए कठिन (Difficult for Common Man) बह विधि निगमन विधि की अपेक्षा बहुत कठिन है। इसे समझाना तथा सफलतापूर्वक प्रयोग करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है क्योंकि अर्थिक जात् के तथ्यों व आँकड़ों में बड़ी विभिन्नता पाई जाती है।

(3) सर्वव्यापी नहीं है (Not Universal) इस विधि का प्रयोग अर्थशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, वहाँ अनेक आर्थिक हित एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, वहाँ इस आगमन विधि का प्रयोग नहीं लिया जा सकता। इसके अतिरिक्त मानवीय हित और समृद्धि का अनुमान आदि विषय ऐसे हैं जहाँ प्रयोग एवं निरीक्षण सम्भव नहीं हैं।

(4) सामाजिक विज्ञानों के लिए कम उपयुक्त (Less Useful for Social Sciences) आगमन विध सामाजिक विज्ञान में इतनी लाभदायक नहीं सिद्ध होती है जितनी कि प्राकृतिक विज्ञानों में क्योंकि एक ओर तो सामाजिक शारकों को घटनाओं का निरीक्षण कठिन होता है और दूसरी ओर, नियन्त्रित प्रयोग लगभग असम्भव है।

दोनों विधियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं (Both Methods are Complementary)

आधुनिक समय ने अर्थशास्त्र के अध्ययन के सम्बन्ध में प्राय: सभी वाद-विवाद समाप्त हो गया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार आगमन और निगमन विधियाँ एक-दूसरे की विरोधी न होकर पूरक हैं और इन दोनों के प्रयोग से ही हम टीक तथ्यों पर पहुँच सकते हैं। जहाँ एल की पहुँच नहीं हो, वहाँ दूसरी का उपयोग करके हम निष्कर्षों को अधिक सरल, सत्य और उपयोगी बना सकते हैं। कुछ परिस्थतियों में निगमन विधि अच्छी सिद्ध होती है और कुछ बकार की जाँचों के लिए आगमन विधि अधिक उपयुक्त है। उदाहरणार्थ, विनिमय और वितरण को समस्याओं के लिए साधारणतया निगमन विश्चि को उचित समझा जाता है। ब्याज, मजदूरी और लगान आदि के नियम निगमन विधि के आधार पर ही बनाये गये हैं। इसी प्रकार जहाँ मनुष्य के निजी स्वभाव का अधिक महत्व नहीं होता और प्रकृति का प्रभाव अधिक होता है तथा विश्लेषण करने के लिए सामग्री आसानी से एकत्रित कर ली जाती है, वहाँ आगमन विधिक प्रयोग होता है। उत्पनि ने आगमन विधि का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है।

उपयुक्त विवरण से स्पष्ट होता है क अर्थशस्त्र के अध्ययन के लिए दोनों ही विधियाँ आवश्यक और लाभदायक है। मार्शल, वैगनर, कीन्स तथा श्मोलर आदि अर्थशास्त्रियों ने इस विचार का समर्थन किया है। इसके अतिरिक्त, अर्थशास्त्र के अध्ययन की ये दोनों विधियों एक-दूसरे की विरोधी नहीं है। पैरेटो के अनुसार, “विधियों का वाद-विवाद पूर्णतया समय को नष्ट करना है।" कुछ अन्य नत अन प्रकार हैं :

(1) प्रो. मार्शल के अनुसार, "अन्वेषण की कोई भी एक ऐसी विधि नहीं है जिसे अर्थशास्त्र के अध्ययन की उचित प्रणाली कहा जा सके। प्रत्येक विधि का या तो अकेले गा दूसरी रीतियों के साथ उपयुक्त स्थान पर उपयोग आवश्यक है।"

(2) वैगनर (Wagner) के शब्दों में, "झगड़े का हल निगमन और आगमन विधे के चुनने में नहीं है वरन् निगमन और आगमन विधियों को स्वीकार कर लेने में है।

(3) श्मोलर (Schmoller) के अनुसार, “अर्थ-विज्ञान के अध्ययन के लिए आगमन और निगमन दोनों ही विधियों की उसी प्रकार आवश्यकता पड़ी है जिस प्रकार चलने के लिए दायें ताथ बायें पैरो जी।''

(4) ऐरिक रोल के अनुसार, “निगमन और आगमन का अन्त सम्बन्ध है।" अत: उपर्युक्त मतों से स्पष्ट है कि आर्थिक अध्ययन में दोनों ही विधियों का साथ-साथ प्रयोग किया जना आवश्यक है। आधुनिक अर्थशास्त्री दोनो निश्रित तरीकों का प्रयोग करते हैं। इस मिश्रित विधि को वैज्ञानिक तरीका कहा जाता है। इस वैज्ञानिक तरीके में तीन बातों का समावेश होता है—(अ) तथ्य अथवा सामग्री, (ब) तर्क तथा (स) जाँच या सत्यापन (Verification)। सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र में जो वैज्ञानिक पद्धति प्रयोग में लाई जाती है, उसमें आगमन और निगमन दोन विधियों को अपनाया जाता है।

निगमन तथा आगमन विधियों में भेद Distinction between Deductive and Inductive Method)

निगमन विधि (Deductive Method)

आगमन विधि (Inductive Method)

1.

इसके तर्क का क्रम 'सामान्य से विशिष्ट की ओर' होता है।

इसमें तर्क का क्रम 'विशिष्ट से सामान्य की ओर' होता है।

2.

यह विधि मान्यताओं पर आधारित है।

यह 'अनुभव सर्वेक्षण' पर आधारित है।

3.

इस विधि का प्रतिपादन समर्थन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया था।

इस विधि के जन्मदाता तथा समर्थक ऐतिहासिक सम्प्रदाय के अर्थशास्त्री माने जाते हैं।

4.

यह विधि स्थैतिक विश्लेषण पर आधारित है।

यह विधि प्रावैगिक विश्लेषण पर आधारित है।

5.

यह प्रणाली निष्पक्ष होती है क्योंकि निष्कर्ष सर्वमान्य सत्यों के आधार पर निकाले जाते हैं।

इस विधि में व्यक्तिगत पक्षापान की सम्भावना रहती है। अन्वेषक अपने विचारों से निष्कर्षों को प्रभावित करें।

6.

इस विधि द्वारा बनाये गये नियम हर समय प्रत्येक  देश में लागू होते है।

इस विधि का प्रयोग अर्थशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में नहीं किया जा सकता।

7.

यह विधि बहुत सरल है। इसका प्रयोग साधारण व्यक्ति भी कर सकता है।

सर्वसाधारण के लिए यह विधि कठिन है क्योंकि आर्थिक जगत के तथ्यो और आँकड़ों में बड़ी विविधता पायी जाती है।

8.

इस विधि से नकाले गये निष्कर्ष वास्तविकता से परे हो सकते हैं।

यह विधि तथ्यो तथा अकों पर आधारित है। इसलिए यह वास्तविकता के काफी करीब है।

9.

यह विधि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के लिए अधिक उपयोगी है।

यह विधि समष्टिगत अर्थशास्त्र के लिए अधिक उपयोगी है।


(स) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

सही विकल्प चुनकर लिखिए :


 

1. निगमन विधि का आधार या क्रम है :





ANSWER= (2) सामान्य से विशिष्ट की ओर

 

2. निगमन विधि के प्रमुख समर्थक हैं :





ANSWER= (1) रिकार्डो

 

3. निगमन विधि को कहते हैं





ANSWER= (4) उपर्युक्त सभी।

 

4. आगमन विधि के प्रमुख समर्थक थे :





ANSWER= (3) प्रो. मिल

 

5. "रीति के सम्बन्ध में वाद-विवाद का सही हल निगमन या आगमन रीति के चुनाव में नहीं वरन् निगमन एवं आगमन दोनों के अपनाने में है।" यह कथन है





ANSWER= (4) वैगनर का

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