5.आंकड़ों का चित्रमय प्रस्तुतीकरण
शुष्क एवं अरोचक सांख्यिकीय तत्वों को सरल, आकर्षक एवं रोचक बनाने हेतु ज्यामितीय आकृतियों के रुप में प्रर्दशित करने की क्रिया को चित्रमय प्रदर्शन कहते हैं।
चित्रमय प्रस्तुति के उद्देश्य
1. उलझे हुए आंकड़ों को समझने में सरल बनाना।
2. सांख्यिकीय सूचना को आकर्षक एवं रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।
3. विस्तृत आंकड़ों को तुलनात्मक बनाना।
4. पाठकों पर आकर्षक एवं चरिकालीन प्रभाव छोड़ना।
5. आंकड़ों को विश्व स्तर पर उपयोगी बनाना।
6. व्याख्या एवं विश्लेषण में श्रम एवं समय की बचत करना।
7. आंकड़ों को अधिक स्पष्ट, स्वच्छ एवं पारदर्शी बनाना
चित्रों का महत्व एवं उपयोगिता या लाभ
1. यह आंकड़ों को प्रस्तुत करने का एक प्रभावशाली ढंग है,
क्योंकि चित्र मस्तिष्क पर स्थाई प्रभाव डालते
हैं।
2. ये आंकड़ों को सरल एवं बोधगम्य बना देते हैं।
3. एक अवधि से दूसरी अवधि की तुलना चित्रों के प्रयोग से शीघ्र किया जा
सकता है।
4. इनका प्रयोग प्रदर्शनियों, मेंलों तथा पत्र-पत्रिकाओं में किया जाता है।
5. इनके प्रयोग से श्रम एवं समय की बचत होती है।
6. सांख्यिकीय चित्र अधिक सूचनात्मक होते हैं।
चित्र - रचना संबंधी सामान्य नियम
1. चित्र आकर्षक एवं सरल होने चाहिए।
2. चित्र आंखों को अच्छा लगना चाहिए।
3. चित्र के ऊपर शीर्षक अवश्य होना चाहिए।
4. मापदण्ड निर्धारित करते समय कागज
के आधार पर ध्यान रखना चाहिए।
5. चित्रों का अंकन ज्यामिति के उपकरण की सहायता से करना चाहिए।
6. चित्र सरल एवं बोधगम्य होना चाहिए।
7. चित्र के नीचे कुछ विशेष बातों को रखने के लिए सूचना अवश्य होनी चाहिए।
8. चित्र में प्रयोग किए गए रंगों एवं चिह्रनों की पहचान के लिए तालिका देनी चाहिए।
चित्रों के प्रकार
(क) एक विमितीय (दण्ड) चित्र :- एक विमितीय चित्र को दण्ड चित्र के नाम से जाना जाता है।
विशेषताएं
1. इन्हें बनाने में केवल एक ही विस्तार अर्थात ऊंचाई का प्रयोग
किया जाता है तथा चौड़ाई अथवा मोटाई का नहीं।
2. यह चित्र मुख्य रूप से रेखाओं तथा दण्डों के रूप में बनाये
जाते हैं।
3. दण्ड चित्रों में दण्ड की चौड़ाई भी रखी जाती है किंतु उसका
मापदण्ड से कोई संबंध नहीं होता है।
4. सभी दण्ड एक ही आधार रेखा पर स्थित होने चाहिए।
5. ये दण्ड
समान दूरी पर बनाये जाते हैं।
6. यदि आंकड़ों का कोई विशेष क्रम न हो तो इन्हें बढ़ते हुए
क्रम या घटते हुए क्रम के अनुसार प्रस्तुत करना चाहिए।
7. यह दण्ड उदग्र (Vertical) या क्षैतिज (Horizontal) दोनों
ही प्रकार के हो सकते हैं परन्तु उदग्र दण्ड
अधिक प्रचलित है।
एक विमितीय चित्र को निम्न भागों
में बांटा गया है -
1. रेखा चित्र :- रेखा चित्र सरल लम्ब रेखाओं
द्वारा बनाये जाते हैं। इनमें केवल रेखा की लम्बाई को ही ध्यान में रखा जाता है। लेकिन ये कम आकर्षक होते हैं। अतः ये अधिक लोकप्रिय नहीं है। उदाहरण के लिए, नीचे विभिन्न वर्षों में गेहूं के उत्पादन के आंकड़े दिये हुए है-
वर्ष |
2000 |
2001 |
2002 |
2003 |
2004 |
2005 |
उत्पादन (करोड़ टन में) |
10 |
20 |
40 |
30 |
20 |
10 |
इन आंकड़ों को रेखा चित्र द्वारा निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है-
2. सरल दण्ड चित्र :- ऐसे चित्रों में केवल एक ही प्रकार के चर को लिया जाता है, जैसे- जनसंख्या, खर्च आदि। ये दण्ड आड़ी या खड़ी रेखाओं के आधार पर ही बनाये जाते हैं। दण्डों के बीच में समान अंतर रखा जाता है। आड़ी रेखा पर बनाए गए चित्र ही अधिक प्रचलित है। इन दण्डों में एक रंग भरकर या छायाकरण कर अधिक आकर्षित बनाया जाता है। उदाहरण
वर्ष |
1995 |
1996 |
1997 |
1998 |
मशीनों की संख्या |
500 |
600 |
700 |
800 |
3. बहुगुणी दण्ड चित्र :- जब दो या दो से अधिक चरों के बीच तुलना की
जाती है तब बहुगुणी दण्ड चित्र का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक चर के मूल्य को
प्रदर्शित करने के लिए अलग दण्ड बनाए जाते हैं। एक समय या स्थान से संबंधित
सभी दण्डो को एक साथ मिलाकर बनाया जाता है। दण्डों की लंबाई पद मूल्यों पर निर्भर
करती है।
बहुगुणी दण्ड चित्र को उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। तालिका में आयात एवं निर्यात के आंकड़े दिए गए हैं।
4. उप-विभाजित (अन्तर्विभक्त) दण्ड चित्र :- जब आंकड़ों के जोड़ और उनके विभिन्न विभागों (जैसे- खाद्यान्न के प्रकार) का प्रदर्शन करना हो तो उप-विभाजित दण्ड चित्र का प्रयोग किया जाता है। सर्वप्रथम समय एवं स्थान के अनुसार तथ्यों के जोड़ के आधार पर दण्ड बनाया जाता है। इसके बाद प्रत्येक दण्ड में विभिन्न भागों को दर्शाया जाता है। प्रत्येक दण्ड के विभिन्न भागों को अलग-अलग रंग से दिखाया जाता है। परंतु एक वस्तु से संबंधित दण्डों में एक ही रंग का प्रयोग किया जाता है।
5. प्रतिशत उप-विभाजित दण्ड चित्र :- इस प्रकार
के
दण्ड
चित्र
बनाते
समय
कुल
मूल्यों
को
प्रतिशत
में
व्यक्त
किया
जाता है जिसमें दण्डों की लम्बाई
100 के बराबर रखी जाती
है। दण्डों के विभिन्न
विभागों
को
अलग-अलग
रंग
भरकर
आकर्षक
बनाया
जाता
है। इसे बनाने के
लिए
निम्नलिखित
चरण
है-
a. सभी समय
से संबंधित जोड़ को 100 मनाते हैं।
b. सभी विभागों
को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
c. सभी विभागों
को जोड़ते समय संचयी प्रतिशत ज्ञात करते हैं।
d. विभिन्न समय के लिए विभिन्न दण्ड निर्मित किए जाते हैं जो 100 के बराबर होते हैं। पुनः संचयी प्रतिशत के बराबर विभिन्न विभागों में बांट लिया जाता है। उदाहरण-
(ख) द्वि-विमितीय चित्र :- एक विमान चित्रों अर्थात
दण्ड
चित्रों
में
दण्डों
की
लम्बाई
अर्थात
केवल
एक
ही
विस्तार
का
ध्यान
रखा
जाता
है जबकि द्वि- लिया चित्रों में
दो
विस्तारों
ऊंचाई
और
चौड़ाई
के
आधार
पर
चित्रों
का
निर्माण
किया
जाता
है।
इन
चित्रों
के
क्षेत्रफल
पद-मूल्यों
के
अनुपात
में होते हैं, इसलिए इन्हें
क्षेत्रबल
चित्र
अथवा
धरातल
चित्र
भी
कहते
हैं।
इस
प्रकार
के
मुख्य
चित्र
है-
1. आयत चित्र :- दो या दो से अधिक
चरों के पारस्परिक गुणों को प्रदर्शित
करने
के लिए इस प्रकार के चित्र का प्रयोग किया जाता है।
आयत का क्षेत्रफल मूल्यों का अनुपात बतलाता है। तुलनात्मक
अध्ययन के लिए ऐसे चित्र को एक दूसरे से समीप बनाया जाता है।
इन चित्रों के लिए आंकड़ों को प्रतिशत के आधार पर दर्शाया जाता है।
इसके लिए सभी मूल्यों को प्रतिशत में बदल दिया जाता है।
उदाहरण
-
निम्न आंकड़ों को आयत चित्र एवं प्रतिशत के आधार
पर दिखाया गया है -
व्यय(रु.में) |
परिवार X |
परिवार Y |
1. भोजन |
500 |
640 |
2. कपड़ा |
300 |
480 |
3. शिक्षा |
50 |
320 |
4. मकान
किराया |
150 |
160 |
कुल |
1000 |
1600 |
विधि - आयत
की चौड़ाई का निर्धारण परिवार की कुल आय के अनुपात में किया जाना चाहिए।
जैसे 5:8(1000:1600) । आयात की
लम्बाई
व्यय
के
आंकड़ों के उप- विभाजन के अनुसार करनी चाहिए।
उपयुक्त आंकड़ों
को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है -
व्यय(रु.में) |
परिवार X % |
परिवार Y % |
1. भोजन |
50 |
40 |
2. कपड़ा |
30 |
30 |
3. शिक्षा |
5 |
20 |
4. मकान
किराया |
15 |
10 |
कुल |
100 |
100 |
2. वर्ग चित्र :- जब दो मदों के मूल्यों में अधिक अंतर होता है तब
वर्ग चित्र का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में आयत चित्र का प्रयोग मुश्किल
हो जाता है।
विधि - सर्वप्रथम चित्र बनाते समय सभी मदों के
मूल्यों का वर्गमूल ज्ञात करते हैं। उसके बाद वर्गमूल की प्रत्येक संख्या को एक
सामान्य संख्या से विभाजित करते हैं तब वर्ग की एक भुजा प्राप्त होती है।
निम्न आंकड़ों से वर्ग चित्र की रचना की गयी है -
3. वृत अथवा कोणीय चित्र :-
वृत
चित्र
किसी भी आंकड़े के जोड़ के विभिन्न भागों की सापेक्षिक स्थिति
(
प्रतिशत भाग ) को प्रस्तुत करने की एक आसान विधि है। इसमें एक
वृत के विभिन्न खण्डों की सहायता से किसी भी तथ्य के विभिन्न मूल्यों के सापेक्षिक
भाग को प्रदर्शित किया जाता है। चित्र में वर्गमूलों का प्रयोग वृतों की
त्रिज्याएं निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण - निम्नलिखित
आंकड़ों को वृतखंड चित्र द्वारा प्रस्तुत किया गया है -
खर्च (रु.में) |
परिवार X |
परिवार Y |
1. भोजन |
500 |
640 |
2. कपड़ा |
300 |
480 |
3. शिक्षा |
50 |
320 |
4. मकान
किराया |
150 |
160 |
कुल |
1000 |
1600 |
विधि - परिवार X और परिवार Y के कुल खर्च को 3600 मानते हुए वृतखंड बनाने के लिए निम्न गणना करेंगे -
4. चित्रलेख :- इस विधि के
आविष्कारक
विएना
निवासी
डां०
ओटो
न्यूरथ
है,
इसलिए
इसे
विएना
विधि
भी
कहते
हैं।
चित्रलेख
आसानी से समझा जा सकता है एवं दिमाग पर इसका प्रभाव अधिक समय तक रहता है।
चित्रलेख
में
सांख्यिकीय
आंकड़ों के प्रतीक के रूप में चुनी हुई तस्वीरें दी जाती है। सांख्यिकीय आंकड़ों
का प्रस्तुतीकरण के प्रतीक के रूप में चुनी गई तस्वीरें एक सी होनी चाहिए जो स्वयं
व्याख्यापूर्ण हो, जैसे- कार अथवा स्कूटर के निर्माताओं के आंकड़ों
को प्रस्तुत करने के लिए कार या स्कूटर का चित्र इत्यादि। चित्र आकर्षक
एवं प्रभावपूर्ण होने चाहिए। सरकारी संस्थाएं, अखबारे,
व्यापारिक
प्रतिष्ठान, विज्ञापन एजेंसियां आदि अपने व्यापारिक एवं
आर्थिक सूचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए इन चित्रों को अधिक प्रयोग में लाती है।
नीचे 2004 में तीन प्रकार की कारों के उत्पादन को
दिखलाया गया है -
कार |
उत्पादन (हजार में) |
मारुति |
50 |
फिएट |
30 |
अम्बेसडर |
20 |
इन कारों के उत्पादन को हम चित्र द्वारा निम्न प्रकार से दिखला सकते हैं -
5. मानचित्र :- भौगोलिक आंकड़ों के
प्रस्तुतीकरण
के
लिए
मानचित्र
बहुत
उपयोगी
होता
है।
इसके
अनुसार
किसी
देश
या
क्षेत्र
का
मानचित्र
बना
दिया
जाता
है
और
उसके
विभिन्न
भागों
में हर मूल्य को अलग-अलग
रंगों
द्वारा
प्रस्तुत
किया
जाता
है। इसका प्रयोग विभिन्न
हिस्सों
में
वर्षा,
जनसंख्या
तथा
तापमान
प्रदर्शित
करने
के
लिए
किया
जाता
है।
अपने अध्ययन के आधार पर हम चित्रों के प्रकार को निम्न तरीके से दिखला सकते हैं -
चित्रमय प्रदर्शन की सीमाएं
चित्रमय प्रदर्शन
का प्रयोग सारणीयन एवं वर्गीकरण में नहीं किया जा सकता है।
इसके निम्नलिखित कमजोरियां हैं -
1. चित्रों
में एक ही साथ अधिक तथ्यों को नहीं दिखाया जा सकता है,
इससे
चित्र में जटिलता आ जाएगी।
2. चित्रों
में केवल लगभग मूल्यों या अनुमानों को प्रदर्शित किया जाता है जिससे सही निष्कर्ष नहीं
निकलते।
3. चित्रों
द्वारा प्रस्तुतीकरण आम व्यक्ति के लिए उपयोगी है, विशेषज्ञों के
लिए नहीं।
4. चित्रों
के साथ सारणी का प्रयोग किया जाना चाहिए, अन्यथा चित्रों का प्रचार में दुरुपयोग किया
जा सकता।
5. चित्र केवल सीमित सूचना प्रदान करते हैं। विस्तृत विवरण के लिए किसी दूसरी पद्धति का प्रयोग करना पड़ता है।