JPSC_Poverty and Unemployment in Jharkhand(झारखंड में गरीबी और बेरोजगारी)

Poverty and Unemployment in Jharkhand(झारखंड में गरीबी और बेरोजगारी)

(खाद्य सुरक्षा, कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सूचकांक, मुख्य पहले, कृषि और ग्रामीण विकास के मुद्दे, प्रमुख कार्यक्रम और योजनाएँ)

गरीबी की स्थिति

राज्य में गरीबी की स्थिति का अंदाजा इस बाद से लगाया जा सकता है वर्तमान में लगभग एक-तिहाई लोग गरीबी के नीचे रहने को महबूर है।

वर्ष 2011-12 में रंगराजन समिति के अनुसार झारखंड की कुल निर्धनता अनुपात का प्रतिशत 42.4 थी। सर्वाधिक गरीबी के पांच राज्यों में झारखंड का स्थान पांचवां है।

रंगराजन विशेषज्ञ समूह (2014) विधि पर आधारित झारखंड राज्य की निर्धनता अनुपात तथा निर्धनों की संख्या (लाख में)

 

ग्रामीण

शहरी

कुल

निर्धनता अनुपात % में

45.9

31.3

42.4

निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या अनुपात % में

117.0

25.5

142.5

राज्य में जिलावार प्रतिशत की गणना यह प्रकट करती है कि सर्वाधिक गरीबी चतरा जिले (79.85%) है और सबसे कम धनबाद जिले में है। केवल लोहरदगा और बोकारो को छोड़कर राज्य के प्रत्येक जिलों में आधे लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। यह संख्या व्यक्तियों की नहीं परिवारों की है।

झारखंड मानव विकास सूचकांक : मानव विकास सूचकांक किसी भी देश/राज्य/जिले में निवास कर रही जनसंख्या के विकास की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करता है। मानव विकास सूचकांक का मापन अधिकतम 10 अंकों के पैमाने पर किया जाता है। किसी देश अथवा राज्य की निर्धनता केवल वहां की आबादी की आर्थिक स्थिति (व्यय योग्य आय) को दर्शाता है, वहीं मानव विकास सूचकांक की गणना उच्च जीवनस्तर, ज्ञान अथवा शिक्षा की स्थिति, स्वास्थ्य या स्वस्थजीवन और विकास के अन्य सूचक, यथा-नगरीकरण की दर, घरों की बैंक तक पहुंच, है। झारखंड राज्य में वर्ष 2011 की जनगणना तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation, NSSO) के 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर मानव विकास सूचकांक तैयार किये गये हैं। आंकड़ों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि झारखंड राज्य के जिलों में निर्धनता तथा विकास की खाई बहुत चौड़ी है। एक ओर राज्य में पाकुड़, गोड्डा, साहेबगंज जैसे अत्यल्प विकसित जिले हैं जिनका HDI 5 अंक से भी नीचे है तो दूसरी ओर राज्य में पूर्वी सिंहभूम, धनबाद, रांची जैसे विकसित जिले भी है जिनका HDI 10 अंकों (पूर्ण विकसित) के करीब है।

राज्य के प्रयास

खाद्य सुरक्षाः राज्य के लगभग 80% से अधिक आबादी को खाद्य सुरक्षा से जोड़ा गया है। खाद्य सुरक्षा कानून से राज्य के लगभग 52 लाख परिवारों को लाभ पहुँचा है। आँकड़ों के अनसार राज्य की लगभग 86.48 प्रतिशत ग्रामीण तथा लगभग 64% शहरी आबादी को इस कानून के दायरे में लाया गया है।

मनरेगा जाबकार्ड: गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लगभग 39 लाख ग्रामीण परिवारों को सरकार ने मनरेगा के तहत जॉब कार्ड दिया है।

बेरोजगारी

झारखंड में बेरोजगारी है इसे प्रमाणित करने की आवश्यकता इसलिए नहीं है कि यहां आए दिन रोज खबर प्रकाशित होती रहती हैं कि अन्य राज्यों में झारखंड की महिलाओं का शोषण होना, दिल्ली में हजारों आदिवासी महिलाएं और बच्चियां आया का काम करती हैं। ईंट भट्टे में काम के लिए झारखंड से मजदूरों का पलायन, असम के चाय बगानों में झारखंड के आदिवासियों की बढ़ती संख्या इत्यादि। ये पंक्तियां अपने आप में प्रमाण है कि झारखंड में बेरोजगारी बहुत अधिक है।

वर्तमान में राज्य में बेरोजगारी की दर लगभग 7% के आस-पास बनी हुई है। राज्य में बेरोजगारी के मुख्य कारण है- पिछड़ी कृषि अर्थव्यवस्था, निरक्षरता, औद्योगिक पिछड़ापन।

झारखंड में रोजगार से संबंधित योजनाएं

तेजस्विनी योजना

झारखंड सरकार ने 4 अक्टूबर, 2016 को राज्य की 11 से 17 साल तक की किशोरियों एवं 24 साल तक की आयु की युवा महिलाओं के कौशल प्रशिक्षण एवं रोजगार प्राप्ति के लिए 'तेजस्विनी योजना' शुरू करने की घोषणा की। इसके लिए विश्व बैंक की मदद से 540 करोड़ रुपये व्यय करने की स्वीकृति दी गयी है। विश्व बैंक संपोषित यह योजना राज्य के 17 जिलों में चलेगी। इस अवधि में किशोरियों तथा युवतियों के लिए अनौपचारिक शिक्षा, कौशल विकास, रोजगारपरक पाठ्यक्रम जैसी कई योजनाएं चलाई जाएंगी। 32.40 लाख में से 27 फीसद आबादी अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य समूहों की किशोरियों तथा युवतियों की है। शेष सात जिलों में सबला योजना के तहत इस आयु वर्ग के लाभार्थियों के सशक्तिकरण की योजनाएं चल रही है। प्रथम चरण में रामगढ़, दुमका, चतरा तथा खूटी, दूसरे चरण में देवघर, बोकारो, धनबाद, पलामू तथा गोड्डा तथा तीसरे चरण में लातेहार, कोडरमा, जामताड़ा, लोहरदगा, सरायकेला-खरसावां, सिमडेगा, पांकुड तथा पूर्वी सिंहभूम जिले में यह योजना चलेगी।

व्यावसायिक पायलट प्रशिक्षण योजना

पूर्णतः राज्य संचालित इस योजना का उद्देश्य राज्य के अनुसूचित जनजाति के लड़कों तथा लड़कियों को नि:शुल्क कॉमर्शियल पायलट प्रशिक्षण दिलाना है, ताकि उनकी नियुक्ति कॉमर्शियल पायलट के पद पर हो सके। इस योजना के लाभुक के साथ यह शर्त जुड़ी होती है कि सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त कर नौकरी पाने के बाद उसे एक शिक्षित बेरोजगार युवक को पायलट प्रशिक्षण हेतु खर्च वहन करना होगा।

टेक्नीकल इनपुट कार्यक्रम

ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वरोजगार के अवसर सृजित कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण एवं न्यूनतम पौष्टिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में दुग्ध उत्पादन व्यवसाय की महत्वपूर्ण भूमिका के मद्देनजर इस योजना की शुरुआत की गयी है। इस योजना के अंतर्गत कृषकों को निम्नांकित सुविधाएं दी जाती हैं-(1) अनुदानित दर पर संतुलित पशु आहार की बिक्री (2) मिनरल फिड सप्लीमेंट, औषधि का वितरण (3) दुग्ध संग्रहण एवं गुणवत्ता जांच हेतु समितियों को आवश्यक साज सज्जा तथा अन्य इनपुट का वितरण (4) चारा काटने की मशीन, मिल्क बकेट एवं हाइजीन कोट का वितरण (5) ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादकता वृद्धि शिविर का आयोजन (6) हरा चारा बीज का वितरण (7) अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए अन्य इनपुट्स की व्यवस्था। इस योजना में राज्य सरकार की 100% भागीदारी है।

पहाड़िया आदिम जनजाति हेतु वोकेशनल प्रशिक्षण योजना

राज्य सरकार द्वारा 100% यह पूर्णतः राज्य संचालित योजना है जिसके तहत पहाड़िया आदिम जनजाति के लोगों के अत्यन्त निम्न श्रेणी के जीवन स्तर के मद्देनजर झारखंड सरकार ने उनके उत्थान के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग योजना की शुरुआत की है। इसमें कल्याण विभाग अर्द्ध सरकारी संस्थानों तथा स्वैच्छिक संस्थानों के सहयोग से रोजगारोन्मुख प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करवाता है। इस योजना के तहत लोगों को कम्प्यूटर मरम्मती, लौह की वस्तुओं का निर्माण, टेलीविजन मरम्मती, इलेक्ट्रिक रिपेयरिंग, मोटर पंप मरम्मती आदि का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है।

शहरी रोजगार कार्यक्रम (यू.एस.ई.पी.)

इस कार्यक्रम के तीन प्रमुख भाग हैं-

(i) लाभप्रद स्वरोजगार उद्यम लगाने हेतु शहरी निर्धन लाभार्थियों की सहायता करना।

(ii) शहरी निर्धन महिलाओं के समूह को लाभप्रद उद्यम लगाने हेतु सहायता करना। इस उप योजना को शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों के लिए विकास योजना (डी.डब्ल्यू.सी.यू.ए.) कहा जाता है।

(iii) व्यावसायिक और उद्यम कौशल प्राप्त करने और उसका उन्नयन करने हेतु शहरी रोजगार कार्यक्रम के लाभार्थियों, संभावित लाभार्थियों और इससे जुड़े अन्य लोगों को प्रशिक्षण देना इसका प्रमुख उद्देश्य है।

इस कार्यक्रम का लक्ष्य समय-समय पर गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले के रूप में परिभाषित शहरी निर्धन लोगों को लाभ पहुँचाना है।

महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजातियों के व्यक्तियों, असहाय व्यक्तियों और सरकार द्वारा समय-समय पर इंगित ऐसी अल्प अन्य श्रेणियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाभार्थी महिलाओं की संख्या 30 से कम नहीं होगी।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाभार्थियों के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान नहीं है। तथापि प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पी.एम. आर.वाई.) कार्यक्रम की पुनरावृत्ति से बचने हेतु स्वरोजगार के लिए यह योजना कक्षा 12 से अधिक शिक्षित लाभार्थियों के लिए लागू नहीं होगी।

खाद्य सुरक्षा (Food Security)

झारखंड की कुल आबादी 3.29 करोड़ है जिसके लिए प्रति व्यक्ति औसत 455 ग्राम प्रति दिन की दर से 50 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता पड़ती है। राज्य में सामान्य वर्षा एवं फसल की बोआई अच्छी होने पर औसत 24 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन होता है। इस प्रकार प्रति वर्ष लगभग 26 लाख टन खाद्यान्न कम पड़ जाता है। 26 लाख टन में से मात्र 12.28 लाख टन भारत सरकार द्वारा खाद्यान्न दिया जाता है एवं शेष की आपूर्ति खुले बाजार से होती है। खाद्यान्न वितरण के लिए 21946 दुकानें आवंटित हैं जिनके माध्यम से ए.पी.एल., बी.पी.एल., अन्त्योदय और अन्नपूर्णा योजना के लाभार्थियों को अनाज उपलब्ध कराया जाता भारत सरकार द्वारा भारत खाद्य निगम के माध्यम से खाद्यान्न भेजा जाता है।

कुपोषण

कुपोषण एक ऐसी अवस्था या दशा है, जो एक साथ कई गंभीर समस्याओं की तरफ इशारा करती है। इसे सामान्यतया बच्चे अथवा वयस्क के वजन, शारीरिक व मानसिक वृद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में देखा जाता है। कहा जा सकता है कि मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कुछ अथवा सभी पोषक तत्वों के अभाव की स्थिति कुपोषण है।

झारखंड में जिलावार कुपोषित बच्चे

जिला

कुपोषित बच्चे (% में)

जिला

कुपोषित बच्चे (% में)

प. सिंहभूम

66.9

खूटी

53.8

दुमका

53.5

सरायकेला

52.6

चतरा

51.3

बोकारो

50.8

गढ़वा

50.7

पूर्वी सिंहभूम

 49.8

साहेबगंज

 49.7

जामताड़ा

48.8

लोहरदगा

48.1

सिमडेगा

47.9

गुमला

47.7

हजारीबाग

47.1

पाकुड़

46.9

रामगढ़

46.3

देवघर

46.0

गोड्डा

46.0

लातेहार

44.2

पलामू

43.9

राँची

43.8

धनबाद

42.6

कोडरमा

 42.2

गिरिडीह

40.6

झारखंड में कुपोषित बच्चों का औसत 47.8% है।

शिक्षा, स्वास्थ्य व आर्थिक उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले इस कुपोषण से मानव विकास के समक्ष गंभीर खतरा उत्पन्न होता है जो झारखंड के जनांकिकीय लाभांश पर गहरा प्रभाव डालता है और अन्तत: झारखंड की आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करता है। लड़कियों, ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धन लोगों, अनुसूचित जाति के लोगों, आदिवासियों आदि सामाजिक-आर्थिक समूहों में कुपोषण की दर अपेक्षाकृत अधिक है।

बच्चों व महिलाओं को कुपोषण से बचाने की रणनीति : शिशु सुरक्षा व मातृ सुरक्षा के समक्ष कुपोषण एक बड़ी चुनौती के रूप में विद्यमान है। झारखंड की कुछ जनजातियों में तो बच्चों में कुपोषण की दर 80 प्रतिशत तक है। कुपोषण व अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 1974 में विस्तारित टीकाकरण अथवा प्रतिरक्षण कार्यक्रम शुरू किया था। चूंकि वर्ष 1997 में टीकाकरण कार्यकलाप राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण घटक था। इसे 2005 में शुरू किया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के द्वारा टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने 7 वैक्सीन अनिवार्य रोगों, जैसे-डिप्थीरिया, कुक्कुर खांसी, टिटनेस, पोलियो, खसरा, क्षय रोग एवं हेपेटाइटिस-बी के तीव्र से बचाव के चला रही हैं।

एक टीकाकरण अभियान 'इंद्रधनुष अभियान' का उद्देश्य वर्ष 2020 तक उन सभी बच्चों का टीकाकरण करना है, जिन्हें टीके नहीं लगे या जिन्हें सात प्रकार की बीमारियों (डिप्थीरिया, काली खांसी, हेपेटाइटिस-बी, धनुस्तंभ, पोलियो, यक्ष्मा, खसरा) को रोकने वाले टीके ठीक से नहीं लगे।

टीकाकरण का अभाव तथा कुपोषण जैसे स्थितियों के चलते शिशु मृत्यु दर की स्थितियां अत्यधिक गंभीर रूप धारण कर चुकी हैं।

समेकित बाल विकास योजना (ICDS)

1974 में "बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति बनाई गई थीं। इसी नीति के अन्तर्गत वर्ष 1975 में देश के 33 ब्लॉक में ICDS योजना प्रारंभ की गई। इस योजना के अन्तर्गत 0-6 वर्ष के बच्चे का चयन किया जाता है। आज इस योजना के अन्तर्गत 10.5 मिलियन बच्चों (3-6 वर्ष) को स्कूल पूर्व शिक्षा उपलब्ध कराई जा चुकी है। देश के बच्चों के लिए यह सबसे बड़ा एक मात्र कार्यक्रम है, जिसके अन्तर्गत संतुलित पालन पोषण आहार पहुंचाना भी शामिल है।"

इस योजना का उद्देश्य बच्चों को पर्याप्त पालन-पोषण आहार, विभिन्न जानलेवा बीमारियों से मुक्तिकरण (Immunization) स्वास्थ्य रक्षा एवं मां के लिए पालन-पोषण शिक्षा की (Nutrition Education For Mother), बच्चों की शिक्षा (Pre-School Education) उपलब्ध कराना रहा है।

ग्राम स्तर पर क्रियान्वयन के लिए 1000 की आबादी वाले गांवों के शहरी गरीब परिवार के (Slum Area) लिए एक आंगनबाड़ी केन्द्र स्थापित किये गये हैं। वनवासी एवं गिरीवासी क्षेत्रों में 700 तक की आबादी वाले गांव में एक आंगनबाड़ी केन्द्र स्थापित किये गये हैं। एक आंगनबाड़ी केन्द्र पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा एक उसकी सहायिका की नियुक्ति की गई है तथा प्रोजेक्ट विकास खण्ड स्तर पर इन आंगनबाड़ी केन्द्रों के निरीक्षण एवं क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने के लिए बाल विकास प्रोजेक्ट अधिकारी के अधीन निरीक्षक कार्यरत हैं। जिला स्तर पर एक प्रोग्राम अधिकारी नियुक्त है, जिनका प्रमुख कार्य जिले में चलाये जा रहे समस्त ICDS कार्यक्रम की देखभाल, मूल्यांकन एवं कुशल मार्गदर्शक करना है।

शिक्षा

आजादी के बाद संविधान में अनुच्छेद 45 के अन्तर्गत 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से नीति निर्धारण किया गया। संविधान की धारा 46 में राज्य सरकार को निर्देशित किया गया है कि समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षिक हितों को ध्यान में रखकर उसे अत्यंत सावधानीपूर्वक उन्नत करने का प्रयास करें। यह कहां तक सफल हुआ है इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2001 में इस राज्य में साक्षरता दर 54.13 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 66.41 प्रतिशत हो गयी।

राज्य के 24 जिलों की कुल आबादी 3.29 करोड़ है जबकि साक्षरता दर 66.41 प्रतिशत। पुरुषों में जहा साक्षरता दर 76.8 प्रतिशत है वहीं महिलाओं में यह मात्र 55.4 प्रतिशत है। वर्ग 1-5 तक नामांकन का प्रतिशत अधिक होते हैं लेकिन वर्ग 9-10 तक जाते-जाते इसका प्रतिशत कम होने लगता है। सामान्य बालिका श्रेणी में वर्ग 5 में 37.45 प्रतिशत नामांकन होता है जो 9-10 तक घटकर 27.20 रह जाता है। अनुसूचित जनजाति में उसी तरह वर्ग 1-5 के बीच नामांकन 35.56 प्रतिशत है, जो उच्च वर्ग 9-10 तक घटकर 24.49 रह जाता है।

झारखंड में प्राथमिक विद्यालयों के अन्तर्गत कुल नामांकन 38,73,212 है जिसमें अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं की संख्या 5,04,912 है तथा अनुसूचित जनजाति के छात्रों की संख्या 11,78,582 है। इसमें छात्राओं की संख्या 3,60,117 राज्य में है। महिला साक्षरता 55.4 प्रतिशत है जो साहेबगंज, गोड्डा पाकुड़ में और भी कम है। इन तीनों जिलों में महिलाओं का साक्षरता मात्र 40 प्रतिशत के आस-पास है। अत: प्राथमिक शिक्षा के प्रोत्साहन के उद्देश्य से राज्य सरकार ने सभी प्राथमिक विद्यालयों में निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों के वितरण की योजना बनाई है। इन प्राथमिक विद्यालयों में पेय जल की भी सुविधा उपलब्ध कराने की योजना केन्द्र सरकार के सहयोग से बनाई गई है।

इस नवोदित राज्य में कुल 1235 माध्यमिक विद्यालय हैं। इसके अतिरिक्त 6 राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय, 12 राजकीयकृत संस्कृत उच्च विद्यालय हैं। राज्य में 26261 प्राथमिक विद्यालय, 9550 माध्यमिक विद्यालय एवं 849 अल्पसंख्यक विद्यालय (प्राथमिक शिक्षा) हैं।

ग्रामीण शिक्षा

झारखंड सृजन के समय राज्य में ऐसे 12000 राजस्व ग्राम थे जिनकी । कि.मी. की परिधि में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं थे। अगस्त, 2002 के बाद से सर्व शिक्षा अभियान ग्राम शिक्षा अभियान के अन्तर्गत 11,500 वैकल्पिक विद्यालय खोले गये हैं।

सर्व शिक्षा अभियान (एस.एस.ए.) 2001-02 में सर्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा को लक्ष्य में रखकर प्रारम्भ किया गया था ताकि सभी 6-14 वर्ष उम्र के बच्चों को लाभकारी एवं सुसंगत शिक्षा दी जा सके। एस.एस.ए. के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

1. समस्त बच्चे का विद्यालय में या सुनिश्चित शिक्षा योजना (ई.जी. एम) में या वैकल्पिक विद्यालय सुविधा में या "बैक टू स्कूल" कैम्प में होना।

2. सभी बच्चों को पांच वर्षों की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित होना।

3. समस्त बच्चों को आठ वर्षों की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना।

सर्व शिक्षा अभियान (एस.एस.ए.) का संगठनात्मक ढांचा

प्रधान सचिव, मानव संसाधन विभाग योजना कार्यान्वयन के नोडल अधिकारी होते हैं। एक राज्य स्तरीय कार्यान्वयन समिति यथा झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद् होता है, जिसके राज्य परियोजना होते हैं। सामान्य परिषद् नीतिगत मामलों में मार्ग दर्शन हेतु उत्तरदायी हैं। जिला स्तर पर उपायुक्त (डी.सी.), जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डी.पी.ओ.) और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (बी.ई.ओ) के सहयोग से इसके कार्यकलापों की निगरानी करते हैं। जिला शिक्षा पदाधिकारी (डी.ई.ओ.) या शिक्षा अधीक्षक (डी.एस.ई.) जिला कार्यक्रम पदाधिकारी के रूप में कार्य करते हैं। ग्रामीण स्तर पर ग्राम शिक्षा समिति (वी.ई.सी.) कार्यरत हैं जिसमें विद्यालय के प्रधानाध्यापक सचिव के रूप में एवं ग्रामीणों में से 15 से 21 सदस्यगण सहकारी एवं स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।

कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय

यह योजना शैक्षणिक रूप से पिछड़ी 203 प्रखण्डों में चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत 75 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जाति की छात्राओं को आवासीय शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाती है। यह योजना 2006-2007 में लागू हुई थी और राशि 55: 45 अनुपात में केन्द्र राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है।

मध्यान्ह भोजन योजना

दोपहर भोजन की शुरुआत मानव संसाधन विकास मन्त्रालय (शिक्षा विभाग) ने 15 अगस्त 1995 से की थी, ताकि 2368 ब्लॉकों में प्राथमिक विद्यालयों के छान लाभान्वित हो सकें। इस योजना के तहत सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकायों द्वारा चलाए जा रहे प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा एक से पांच तक के विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन देने की व्यवस्था है। अक्टूबर, 2007 से इसका विस्तार माध्यमिक स्तर के बच्चों के लिए भी शैक्षणिक रूप से पिछड़े प्रखंडों में किया गया। इसके उपरांत सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन का कार्यक्रम 2008-2009 से प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के सभी बच्चों के लिए लागू कर दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत् लाभ प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को कम से कम 80% उपस्थिति विद्यालयों में दर्ज कराना अनिवार्य है।

2002 से यह कार्यक्रम शिक्षा गारण्टी योजना और अन्य वैकल्पिक एवं प्रयोगात्मक शिक्षा के केन्द्रों पर पढ़ रहे बच्चों के लिए भी लागू किया गया है।

कहने का तात्पर्य यह है कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को 450 कैलोरी एवं 12 ग्राम प्रोटीन वाला दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है तथा माध्यमिक स्तर के बच्चों को 700 कैलोरी एवं 20 ग्राम प्रोटीन वाला दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है।

राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकार

यह केन्द्र प्रायोजित योजना 2010-11 से प्रारंभ हुई, जिसका नाम 'साक्षर भारत' है। यह योजना 50 से कम महिला साक्षरता वाले जिलों में संचालित होगी। 15 वर्ष या उससे ऊपर की महिलाएं इस अवसर का लाभ प्राप्त करेंगी। ये योजना केन्द्र तथा राज्य के 75 : 25 आनुपातिक राशि से चलाया जायेगा। 2010-11 में रांची, हजारीबाग, धनबाद और दुमका को इसमें शामिल किया गया था। इसके अंतर्गत एस.सी., एस.टी. एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। इसके उद्देश्य निम्नवत हैं-

(i) प्रौढ़ असाक्षरों को साक्षर बनाना।

(ii) असाक्षरों/नव साक्षरों की आय वृद्धि एवं कौशल विकास हेतु प्रयास करना।

(iii) नव साक्षरों के लिए शिक्षा का अवसर देते हुए शिशु समाज को बढ़ावा देना।

माध्यमिक शिक्षा

झारखंड में माध्यमिक शिक्षा अभी अपर्याप्त स्थिति में है क्योंकि यह राज्य आबादी के बड़े हिस्से की पहुंच से बाहर है। प्रत्येक 18,000 जनसंख्या एवं उपलब्ध आकड़ों के अनुसार 61 किलोमीटर की परिधि वाले भौगोलिक क्षेत्र में औसतन एक माध्यमिक विद्यालय है, परन्तु इसका विस्तार एक समान नहीं है। रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, आदि में एक ही स्थान पर कई माध्यमिक विद्यालय हैं। ग्रामीण इलाकों में यातायात और परिवहन की सुविधा के अभाव में छात्र 5 किमी. से ज्यादा की दूरी पर अवस्थित विद्यालयों में आना-जाना नहीं कर सकते।

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान

सर्व शिक्षा अभियान के अनुरूप माध्यमिक शिक्षा के विस्तार एवं सर्वव्यापीकरण के दृष्टिकोण से भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत नये माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना, पुराने विद्यालयों का सुदृढ़ीकरण, अपस्कर, उपकरण, प्रयोगशाला, खेल का मैदान, कम्प्यूटर कक्षा की व्यवस्था, शिक्षकों का सेवाकालीन प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था की जायेगी। इस योजना का कार्यान्वयन विद्यालयों के लिए विद्यालय विकास समिति गठित कर किया जायेगा।

यह योजना राज्य के 1074 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में लागू की जा रही है तथा राज्य सरकार द्वारा जैप आई.टी. को इसके लिए कार्यकारी एजेंसी बनाते हुए इसका कार्यान्वयन किया जा रहा है।

केन्द्र प्रायोजित योजना के अन्तर्गत मॉडल विद्यालयों की स्थापना भारत सरकार द्वारा केन्द्र प्रायोजित योजनान्तर्गत शैक्षिक रूप से पिछड़े 203 प्रखण्डों में केन्द्रीय विद्यालय के पैटर्न पर मॉडल विद्यालयों की स्थापना की स्वीकृति दी गई है। इन विद्यालयों में वंचित वर्ग के छात्रों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान की जायेगी। भारत सरकार द्वारा प्रथम चरण में 41 विद्यालयों की स्थापना हेतु राशि स्वीकृत कर दी गई है। यह योजना 75 : 25 केन्द्रांश एवं राज्यांश के आधार पर 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में संचालित हुई थी। वर्तमान माध्यमिक विद्यालयों के सुदृढीकरण की भी योजना बनाई गई है। सरकार ने 212 प्रखण्डों में प्लस टू विद्यालयों की स्थापना का निर्णय लिया है। सरकार ने प्रारम्भिक विद्यालयों में बढ़ती संख्या और कक्षा 8 में छात्रों की अधिक उत्तीर्ण होने के कारण नौंवी कक्षा में छात्रों की संख्या बढ़ रही है। माध्यमिक विद्यालयों की उपलब्धता 8.9 कि.मी. के दायरे में उपलब्ध नहीं है, वहां वैसे मध्य विद्यालय जहां आठवें वर्ग में छात्रों की उत्तीर्णता अधिक है, उन्हें माध्यमिक विद्यालय में उत्क्रमित करने का लक्ष्य रखा गया है।

राज्य सरकार द्वारा सरकारी विद्यालयों के गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले छात्र छात्राओं को वर्ग 8 से 10 तक अनवरत और सुचारू रूप ये शिक्षा ग्रहण करने हेतु निर्धनता सह मेधा छात्रवृत्ति नाम से योजना चलाई जा रही है।

उच्च शिक्षा

झारखंड में 3 विश्वविद्यालय रांची, विनोबा भावे विश्वविद्यालय (हजारीबाग) और सिद्धू-कानू विश्वविद्यालय (दुमका) पूर्व में स्थापित हैं। दो अन्य विश्वविद्यालय "नीलाम्बर-पीताम्बर" डालटेनगंज (मेदिनीनगर) में एवं कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा में स्थापित किया गया है। रांची में एक राष्ट्रीय विधि विद्यालय (नेशनल लॉ स्कूल) की स्थापना की गयी है।

राज्य में एक बिरसा कृषि विश्वविद्यालय भी है जिसमें कृषि, वानिकी और पशुपालन की पढ़ाई होती है।

राज्य में अवस्थित विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों में आधारभूत संरचनाओं के सुदृढीकरण हेतु सरकार द्वारा सहायक अनुदान विमुक्त किया गया है।

सरकार द्वारा छात्राओं को स्नातकोत्तर स्तर तक नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध करने की घोषित नीति के अनुरूप विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों में अध्ययनरत छात्राओं की संख्या के आधार पर शिक्षण एवं परीक्षा शुल्क आदि का वहन किया जा रहा है।

छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा

राज्य में महिला साक्षरता दर 55.4 है जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है अतः महिलाओं को साक्षरता दर को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। छात्राओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करने तथा इनके लिए शिक्षा के अधिकाधिक अवसर सृजित करने की आवश्यकता है। राज्य सरकार द्वारा छात्राओं की स्नातकोत्तर स्तर तक शिक्षा हेतु शिक्षण शुल्क एवं परीक्षा शुल्क में माफी योजना स्वीकृत है।

तकनीकी शिक्षा

इस क्षेत्र में राज्य में 6 अभियंत्रण महाविद्यालय हैं। इसमें सरकारी क्षेत्र में दो-बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सिन्दरी (राज्य सरकार) और दूसरा रीजनल (नेशनल) इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, जमशेदपुर (केन्द्र सरकार) का है। निजी क्षेत्र में बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, (मेसरा). कैम्ब्रीज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (टाटीसिल्वे), रामगोविन्द कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, (कोडरमा), आर.बी.एस. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (जमशेदपुर) हैं। सरकार द्वारा रामगढ़, चाईबासा और दुमका में तीन नये अभियंत्रण महाविद्यालय स्थापित किये जा रहे हैं।

केन्द्र सरकार के वित्तीय सहयोग से साहेबगंज, देवघर, गुमला, गढ़वा, गोड्डा, पाकुड़, लोहरदगा, सिमडेगा, जामताड़ा, गिरिडीह, मेदिनीनगर, चतरा, चाईबासा, रामगढ़, खूटी, हजारीबाग और दुमका में राजकीय पॉलीटेक्निक का निर्माण चल रहा है। राज्य सरकार द्वारा सिल्ली, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम और धनबाद में पॉलीटेक्निक का निर्माण कराया जा रहा है।

संयुक्त क्षेत्र में विनोबा भावे विश्वविद्यालय के अन्तर्गत यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी एवं बी.आई.टी. विस्तार पटल, देवघर की स्थापना की गयी है। बी.आई.टी. के सहयोग से दुमका में प्रबंधन संस्थान स्थापित करने की योजना है।

प्रबंधन संस्थानों में एक्स.एल.आर.आई., (जमशेदपुर), एक्स.आई.एस. एस, (रांची), आई.आई.एस.एम, (रांची), एस.एन, सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट, नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, (जमशेदपुर) प्रमुख

अन्य योजनाएं

साइकिल वितरण योजना

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक समुदाय तथा गरीबी रेखा के नीचे (बी.पी.एल.) जीवन व्यतीत कर रहे परिवार की छात्राओं को विद्यालय जाने तथा अपनी पढ़ाई जारी रखने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने हेतु झारखंड सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत की गयी। राज्य सरकार द्वारा यह योजना निम्नलिखित दो कारणों से शुरू की गयी थी-

(i) स्कूल तथा घर के बीच अधिक दूरी के कारण लोगों को अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने में काफी दिक्कत होती है।

(ii) मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद समुचित परिवहन सुविधा नहीं होने के कारण बहुत सी लड़कियां आगे की पढ़ाई छोड़ देती हैं।

पहाड़िया जनजाति के छात्रों के लिए मध्यान्ह भोजन योजना

पहाड़िया आदिम जनजातियों की साक्षरता दर काफी कम है। उनका जीवन स्तर भी काफी निम्न कोटि का है। इन तथ्यों के मद्देनजर झारखंड सरकार के कल्याण विभाग ने पहाड़िया जनजाति के बच्चों हेतु मध्याह्न भोजन योजना संचालित की है, जिसके तहत पहाड़िया दिवा विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र मुफ्त में मध्याह्न भोजन प्राप्त करते हैं इस पर प्रति छात्र 10.90 रुपये खर्च आता है। मध्याह्न भोजन साल में 300 दिन तक दिया जाता है। इस योजना के कारण पहाड़िया जनजाति के लोग अपने बच्चों को इन विद्यालयों में भेजने लगे हैं।

अनुसूचित जनजाति के छात्रों हेतु यूनिवर्सिटी पॉलिटेक्निक

अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं में तकनीकी शिक्षा के विकास हेतु बी.आई.टी. मेसरा, रांची में पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी का संचालन किया जा रहा है। इसमें (1) ऑटोमोबाईल इंजीनियरिंग (2) इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग (3) कम्प्यूटर विज्ञान (4) प्रोडक्सन इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों को सम्मिलित किया गया है। प्रत्येक की अवधि तीन वर्षों की है। प्रत्येक पाठ्यक्रम में स्वीकृत कुल सीटों का 5% सीट अनुसूचित आदिम जनजाति के लिए आरक्षित हैं। उपरोक्त पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त मेडिकल लैब टेक्नीशियन पाठ्यक्रम को भी सम्मिलित करने की कारवाई की जा रही है।

बिरसा मुण्डा तकनीकी छात्रवृत्ति

इस योजना का उद्देश्य झारखंड राज्य की अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थी जो राज्य के बाहर मान्यता प्राप्त मेडिकल तथा इंजीनियरिंग संस्थानों में अध्ययनरत हैं, को उच्च स्तरीय तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने हेतु सहायता प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों को 12 माह की छात्रवृत्ति, शिक्षण शुल्क, प्रवेश शुल्क, परीक्षा शुल्क एवं विश्वविद्यालय को दिया जाने वाला अनिवार्य शुल्क।

प्राथमिक, मध्य एवं उच्च विद्यालय छात्रवृत्ति योजना

योजना का विवरण-यह योजना मैंट्रिक-पूर्व स्तर की छात्रवृत्ति अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के माता-पिता को विद्यालय जाने वाले अपने बच्चों को विद्यालय भेजने, विद्यालयी शिक्षा का वित्तीय भार हल्का करने तथा विद्यालयी शिक्षा को पूरा करने में बच्चों को सहारा देने के उनके प्रयासों को बल देने हेतु प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह योजना उनकी शैक्षणिक उपलब्धि की आधारशिला सृजित करती है। शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण जिसमें अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों की सामाजिक-आर्थिक-दशा को उन्नयन की ओर ले जाने की क्षमता है, इस योजना के लक्ष्यों में से एक है। छात्रवृत्ति उन अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को पढ़ाई हेतु दी जाती है, जो झारखंड सरकार के विद्यालयों प्राइवेट विद्यालय सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में अध्ययन करते हैं। इस योजना के अन्तर्गत छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए आय की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। यह पूर्णतः राज्य प्रायोजित योजना है।

मुख्यमंत्री विद्या-लक्ष्मी योजना

मुख्यमंत्री विद्या लक्ष्मी योजना के तहत एस.टी./एस.सी. बालिका जैसे ही छठी कक्षा में जाएगी, उसके नाम से दो-दो हजार रुपए का एफडी सरकार कराएगी, पर राशि नौवीं कक्षा में जाने के बाद ही छात्रा निकाल सकेगी। सरकार यह व्यवस्था इसलिए कर रही हैं, ताकि बीच में पढ़ाई न छोड़ी जाए। यदि छात्रा सातवों या आठवों में पढ़ाई छोड़ देती है, तो वह इस योजना से वंचित रह जाएगी। नवीं या दसवीं कक्षा में जाने के बाद एफडी पर उस उक्त अवधि तक जितना ब्याज होगा. ब्याज समेत छात्रा वह राशि निकाल सकेगी। इस वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए 18 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 15 नवम्बर, 2015 को मुख्यमंत्री ने सांकेतिक रूप से पाँच छात्राओं को एफडी के कागजात सौंपे।

स्वास्थ्य

राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन के लिए विभाग को मुख्यतः सात अंगों में बाँटा गया है। ये सात अंग (1) चिकित्सा सेवा, अस्पताल एवं औषधालय, (2) जन-स्वास्थ्य, (3) चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण, (4) देशी चिकित्सा प्रणाली, (5) औषधि नियंत्रण, (6) खाद्य अपमिश्रण निवारण कार्यक्रम, (7) परिवार कल्याण हैं।

चिकित्सा सेवा, अस्पताल एवं औषधालय के अन्तर्गत 3 मेडिकल कॉलेज अस्पताल, 21 जिला अस्पताल, 15 अनुमंडलीय अस्पताल, 32 रेफरल अस्पताल, 330 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और 3958 अतिरिक्त स्वास्थ्य उप केन्द्र हैं।

देशी चिकित्सा प्रणाली के अन्तर्गत अभी राज्य के 110 राज्य सम्पोषित आयुर्वेदिक अस्पताल, 42 होम्योपैथिक औषधालय तथा 19 यूनानी औषधालय चल रहे हैं। इस सेवा में चुस्ती लाने के उद्देश्य से 12 जिला मुख्यालयों में 12 जिला देशी चिकित्सा पदाधिकारियों की पदस्थापना की गई है। राज्य विभाजन के पश्चात यहाँ कोई राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल, राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज या राजकीय तिब्बती कॉलेज नहीं है। इसी कारण चालू वित्तीय वर्ष में चाईबासा में एक आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय, खुलने जा रहा है जिसके लिए निधि का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार एक होम्योपैथिक महाविद्यालय गोड्डा में तथा यूनानी चिकित्सा महाविद्यालय गिरिडीह में खोलने का प्रस्ताव है। देशी चिकित्सा पद्धति को दवाओं की खोज और शोध हेतु देवघर में एक क्षेत्रीय शोध संस्थान खोलने का प्रस्ताव है।

परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत परिवार कल्याण की सुविधा हर व्यक्ति को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य के स्वास्थ्य उपकेन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, शहरी परिवार कल्याण केन्द्रों, रेफरल/अनुमंडलीय अस्पताल, सदर अस्पताल तथा चिकित्सा महाविद्यालय अस्पतालों में परिवार कल्याण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अलावा स्वैच्छिक संस्थानों का भी परिवार कल्याण कार्यक्रम चलाने में सहयोग लिया जा रहा है।

विभाग द्वारा चार अतिरिक्त कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-(1) राष्ट्रीय मलेरिया रोधी कार्यक्रम, (2) राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम, (3) राष्ट्रीय कुष्ट उन्मूलन कार्यक्रम, (4) एड्स नियंत्रण कार्यक्रम।

राष्ट्रीय मलेरिया रोधी कार्यक्रम

वर्ष 1953 में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में 50 प्रतिशत भारत सरकार (दवा एवं सामान) तथा 50 प्रतिशत (स्थापना व्यय) राज्य सरकार वहन करती है।

झारखंड में योजना एवं गैर-योजना मद के अन्तर्गत काम चल रहा है। योजनान्तर्गत पलामू (आंशिक) राँची, गुमला, सिमडेगा, सरायकेला, लातेहार, दुमका, पाकुड़, लोहरदगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, साहेबगंज, गोड्डा एवं गढ़वा जिले शामिल हैं। गैर-योजना के अन्तर्गत पलामू, जामताड़ा (आंशिक), धनबाद. बोकारो, देवघर, गढ़वा, गोड्डा गिरीडीह, हजारीबाग, चतरा एवं कोडरमा हैं।

विश्व बैंक की सहायता से जनजातीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष परियोजना चलाई जा रही है। जिसके अन्तर्गत 10 जिलों का चयन किया गया है। गढ़वा, पलामू, लोहरदगा, गुमला, राँची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, दुमका, गोड्डा एवं साहेबगंज इसमें शामिल हैं।

राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम

यह कार्यक्रम राज्य में वर्ष 1966 से लागू है। झारखंड में यक्ष्मा रोगियों की चिकित्सा के लिए इटकी आरोग्यशाला, राँची में 415 शैय्या उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त राज्य में गैर सरकारी एवं निजी संस्थानों द्वारा लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

यह कार्यक्रम राज्य के 18 जिलों में चल रहा है। अन्य जिलों (राँची, पलामू, हजारीबाग एवं चतरा) में संशोधित राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम भारत सरकार के सहयोग से चल रहा है। यह संशोधित राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम पूर्व में चल रहे कार्यक्रम को बेहतर बनाने हेतु प्रारम्भ किया गया है।

एड्स नियंत्रण कार्यक्रम

राज्य सरकार द्वारा सभी चिकित्सा महाविद्यालयों में एड्स टेस्टिग लेबोरेटरी स्थापित किया जा चुका है। आम जनता के बीच एड्स के कारणों की जानकारी रेडिया, दूरदर्शन, समाचार पत्रों के माध्यम से दी जाती है।

कुष्ठ नियंत्रण

भारत में सबसे अधिक कुष्ठ रोगी झारखंड राज्य में 8 प्रतिशत हैं। राज्य के जिलों में जामताड़ा, चाईबासा, दुमका, राँची, जमशेदपुर, गोड्डा, बोकारो एवं देवघर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। गणना के आधार पर प्रति हजार की आबादी में 10.8 मरीज इस राज्य में हैं, जबकि भारत में 4.2 मरीज प्रति दस हजार पर हैं। राज्य में सबसे अधिक 24.13 मरीज प्रति हजार जामताड़ा में और सबसे कम 3.9 मरीज प्रति दस हजार गुमला में हैं। कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता लाने के लिए पोस्टर, बैनर, होर्डिंग, दीवार लेखन, सिनेमा स्लाइड, रेडियो, टी.वी., समाचार पत्रों आदि का सहारा लिया जा रहा है। राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों और सभी स्वास्थ्य उपकेन्द्रों में मरीजों की जाँच एवं मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है।

राष्ट्रीय अन्धापन नियंत्रण कार्यक्रम

यह शत-प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित कार्यक्रम है। इसका कार्यान्वयन उपायुक्त की अध्यक्षता में जिला अन्धापन नियंत्रण समिति द्वारा किया जाता है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत नेत्र जाँच, मोतियाबिन्द ऑपरेशन, लेंस प्रत्यारोपण एवं मानक नेत्र अधिकोष स्थापना का कार्य किया जाता है। झारखंड में अन्धापन दर 1.80 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय दर 1.49 प्रतिशत से अधिक है। रिम्स और एम.जी.एम. में नेत्र वार्ड का सुदृढीकरण किया जा रहा है। गुमला, देवघर, हजारीबाग, दुमका, लातेहार, पलामू, लोहरदगा, गढ़वा और सरायकेला के सदर अस्पताल में 10 शैय्या वाले नेत्र वार्ड एवं शल्य कक्ष का निर्माण करने की योजना है।

राष्ट्रीय घंघारोग नियंत्रण कार्यक्रम

यह कार्यक्रम बौनापन, गूंगापन, बहरापन दूर करने के लिए चलाया गया है. जो आयोडीन की कमी से होता है। राज्य में दुमका, गोड्ड, साहेबगंज, पलामू, राँची, गुमला एवं लोहरदगा में इस रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। नए सर्वेक्षण में कुछ अन्य जिलों धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, पूर्वी सिंहभूम एवं पश्चिमी सिंहभूम को शामिल किया गया हैं। इस रोग से बचने हेतु आयोडीन युक्त नमक के प्रयोग हेतु जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।

कृषि और ग्रामीण विकास के मुद्दे

झारखंड मूलतः एक कृषि प्रधान राज्य है। राज्य की कुल जनसंख्या 3.29 करोड़ है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में कुल आबादी का लगभग 80 प्रतिशत व्यक्ति निवास करते हैं। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 79.714 हजार वर्ग कि.मी. है। जिसमें कुल कृषि योग्य भूमि 25.95 लाख हेक्टेयर है। राज्य की आबादी को भोजन के लिए लगभग 50.00 लाख मैट्रिक टन खाद्यान्न की आवश्यकता है जिसमें वर्तमान उत्पादन लगभग 30 लाख मैट्रिक टन है। कुल क्षेत्रफल के लगभग 22.68 प्रतिशत क्षेत्र में हो खेती होती है। परती भूमि का प्रतिशत भी लगभग 25 फीसदी है। वन क्षेत्र 23.32 लाख हेक्टेयर और खेती योग्य भूमि 25.95 लाख हेक्टेयर हैं।

झारखंड सरकार ने कृषि को उद्योग का दर्जा देने का लक्ष्य रखा

केन्द्र व राज्य सरकार के केन्द्र बिन्दु गाँव व किसान हैं। किसानों को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए सहकारी बैंकों, महिला समूहों को मजबूत करने तथा तकनीक का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने का फैसला सरकार ने लिया है, साथ ही किसानों को जैविक कृषि, पशुपालन व बागवानी अपनाने की सलाह दी है। राज्य के 25 फीसदी कृषि भूमि पर 70 प्रतिशत आबादी निर्भर है। कृषि को रोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से कृषि के संस्थागत संसाधनों की मजबूती और सहकारी संस्थाओं को शक्तिशाली बनाया जा रहा है। बंजर भूमि को उर्वर बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य में मत्स्य उत्पादन की भी अपार सम्भावनाएँ है। बिना कृषि के गाँवों का विकास सम्भव नहीं दिखता। सरकार का भी पूरा ध्यान गाँव, गरीब व कृषि पर है। किसानों तक पहुँचना सरकार का लक्ष्य है। कृषि को रोजगार के साथ जोड़कर इसे शक्तिशाली बनाया जा सकता है। राज्य में कृषि को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से इसे अब उद्योग का दर्जा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

झारखंड कृषि कार्ड योजना

किसानों को उसकी पहचान दिलाने के उद्देश्य से झारखंड कृषि कार्ड योजना की शुरुआत हुई है। इस योजना के तहत किसानों को मिलने वाला कार्ड, आधार नम्बर या वोटर कार्ड जैसा होगा। इसमें प्रत्येक किसान का एक यूनिक नम्बर दर्ज होगा, जिसके आधार पर भविष्य में किसानों को मिलने वाली अनुदान राशि सीधे उसके बैंक खाते में दी जाएगी। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य बिचौलियों पर लगाम लगाना है, वहीं इससे किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।

किसान कॉल सेन्टर

कृषि सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए किसान कॉल सेन्टर की शुरुआत हुई। एक फोन कॉल पर प्रश्नों का जवाब किसान कॉल सेन्टर में मिलता है। इसके तहत खेती-किसानी सम्बन्धित समस्याएँ उनकी क्षेत्रीय भाषा में विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध करायी जाती हैं। विशेष टॉल फ्री नम्बर 1551 या 1800-1800-1551 पर फोन कर नि:शुल्क जानकारी प्राप्त की जा सकती है। झारखंड के किसान कृषि भवन, राँची स्थित किसान कॉल सेंटर के दूरभाष संख्या 0651-2230541 पर एवं बिरसा कृषि 0651-2450698 से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

सिंगल विंडो सिस्टम

रघुवर दास सरकार ने वर्ष 2017 में पहली बार पृथक कृषि बजट पेश किया था। कृषि बजट में सरकार ने वादा किया था कि वह सभी 24 जिलों व 100 प्रखण्डों में प्रथम चरण से सिंगल विंडो सिस्टम की स्थापना करेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 'ग्राम उदय से भारत उदय' के समापन कार्यक्रम में शामिल होने जमशेदपुर पहुँचे थे तभी उन्होंने राँची में गत वर्ष के अनगड़ा प्रखंड के गेतलसूद में बने पहले सिंगल विंडो सिस्टम का ऑनलाइन उद्घाटन किया था। इस दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अब तक उद्योग के लिए सिंगल विंडो सिस्टम सुना था, लेकिन कोई सरकार पहली बार किसानों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की स्थापना कर रही है।

झारखंड में खेती के लिए सिंगल विंडो सिस्टम दूसरे राज्यों के लिए अनुकरणीय होगा। सिंगल विंडो सिस्टम के तहत किसानों को एक छत के नीचे सारी सुविधाएँ मिलेंगी। किसान इसके तहत अपनी मिट्टी की जाँच करा सकेंगे। उन्हें मुफ्त सॉयल हेल्थ कार्ड मिलेगा। किसान यहाँ अपने बीजों का ट्रीटमेंट करा सकेंगे। सीड ग्रेडर के माध्यम से किसानों की बीजों की ग्रेडिंग होगी। व्यापारी खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए इसके तहत ऑनलाइन आवेदन भी कर सकेंगे। यहाँ पर प्रधानमंत्री सूक्ष्म सिंचाई योजना का आवेदन भी जमा होगा। किसानों को पशुपालन, सहकारिता व अन्य सेक्टर की जानकारी भी दी जाएगी। चैक, डैम, डोभा, तालाब आदि के लिए आवेदन भी जमा होंगे। कृषि क्लीनिक में फसलों की बीमारियों की जानकारी दी जाएगी। सरकार जल्द दूसरे जगहों पर भी ऐसे ही सिंगल विंडो सिस्टम खोलेगी। कृषि विभाग ने हाल ही में 100 सिंगल विंडो सिस्टम स्थापित करने के लिए जगह चिह्नित करने का निर्देश जिला कृषि पदाधिकारियों को दिया है। इसके तहत प्रत्येक जिले में चार से पाँच सिंगल विंडो सिस्टम की स्थापना होनी है।

डोभा निर्माण

झारखंड सरकार सूखे व जल संकट से निबटने के लिए एक लाख डोभा निर्माण के प्रति संकल्पित है। अगर प्रति जिले के हिसाब से देखा जाए तो औसतन चार हजार के आसपास डोभा एक जिले पर पड़ते हैं। कृषि भूमि पर इतनी बड़ी संख्या में छोटे जलकुंड बनने से राज्य में जल संचय में क्रान्ति आ सकती है। अच्छी बात यह है कि जलछाजन के प्रयासों के लिए इस बार समय-समय प्रयास हो रहा है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए सम्बन्धित किसान को फॉर्म भर कर ब्लॉक में सम्बन्धित अफसर को देना होगा। कृषि सचिव के निर्देशानुसार प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी व सहकारिता पदाधिकारियों को इसके लिए पंचायतों को प्रभावी बनाया जाना है और उनका यह कार्य होगा कि लाभुक का आवेदन भरवा कर लाएँ और फिर अपनी देख-रेख में डोभा खुदवाएँ। इस योजना को सख्ती से लागू करने के लिए सरकार दिन-प्रतिदिन के डाटा पर नजर रख रही है। योजना के तहत लाभुक किसान के खाते में पैसा सीधे सरकार ट्रांसफर करेगी, ऐसे में बिचौलियों द्वारा गड़बड़ी की सम्भावना नहीं रह जाएगी।

इसके अलावा सरकार हर जिले में 80 से 100 नए तालाब भी खुदवाएगी। सरकार इस कार्य को स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से कर रही है। माइक्रो ड्रिप इरीगेशन के माध्यम से छोटे किसानों व महिला किसानों के द्वारा हॉर्टिकल्चर को राज्य सरकार बढ़ावा देने का काम कर रही है। ध्यान रहे कि इस बार झारखंड सरकार ने विधायकों की निधि तीन करोड़ रुपए से बढ़ाकर चार करोड़ रुपए कर दी है। इस बढ़ी हुई एक करोड़ रुपए की राशि के लिए सरकार ने शर्त रखी है कि इस पैसे का उपयोग सिर्फ सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए किया जा सकेगा। यह बात कृषि व ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों पर लागू होती है। यानी विधायक इस पैसे का रणनीतिक व समुचित उपयोग कर अपने क्षेत्र में सिंचाई सुविधा के विस्तार में अहम योगदान दे सकते हैं। इनके अलावा भी सरकार ने किसानों के लिए कई अहम योजनाओं की शुरुआत की है।

दुग्ध उत्पादकों हेतु प्रशिक्षण एवं प्रसार कार्यक्रम

इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के दुग्ध उत्पादकों को विभिन्न तरीकों से प्रशिक्षित करना है। इसके तहत उन्हें शिक्षित करने हेतु लघु प्रशिक्षण दिया जाता है और उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं का वितरण किया जाता है। उनके लिए कार्यशाला/सेमीनार प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाता है, जहाँ वे बहुत-सी नयी तकनीकों से अवगत होते हैं। उन्हें अन्य राज्यों के भ्रमण पर भी ले जाया जाता है, जहाँ वे दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के नए तरीकों को देखने का अवसर पाते हैं। प्रशिक्षण अवधि के दौरान उन्हें मुफ्त भोजन तथा आवास तथा अतिरिक्त वृत्ति (Stipend) भी दी जाती है। राज्य के बाहर के दौरे हेतु प्रशिक्षुओं को किराए की वास्तविक राशि प्रदान की जाती है। इस योजना में राज्य सरकार की 100% भागीदारी है।

लाह विकास योजना (अनुसूचित जनजाति हेतु)

यह योजना गरीब आदिवासी परिवारों को अतिरिक्त आय दिलाने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गयी है। इसकी गतिविधियाँ किसानों की सहभागिता से संचालित की जाती हैं। इस योजना का क्रियान्वयन कल्याण विभाग, भारतीय लाह अनुसन्धान संस्थान और कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGOS) एक साथ मिलकर कर रहे हैं। यह कार्यक्रम उन मेसो क्षेत्रों में संचालित है, जहाँ लाह के होस्ट वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ कार्यरत एजेंसी सर्वप्रथम लाभुक परिवारों तथा प्रसार कैडर को चिह्नित करती है। प्रसार कैडर को पहले प्रशिक्षित किया जाता है, तब वे किसानों को प्रशिक्षित करते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के मेसो परियोजना पदाधिकारी परिसम्पत्तियों तथा कीटनाशक का वितरण करते हैं। लाह एकत्रित करने का कार्य मई-जून के महीनों में किया जाता है। लाह की बिक्री में जरूरत के अनुसार आवश्यक सहायता भी दी जाती है।

'आर्या योजना'

राज्य में हरित क्रान्ति लाने के लिए एक नई शुरुआत की गई है। ग्रामीण युवकों को कृषि की ओर आकर्षित करने के लिए नई योजना 'अटरैक्टिग रूरल यूथ इन एग्रीकल्चर (आर्या)' शुरू की गई है। कृषि को बढ़ावा देने तथा राज्य को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि प्रक्षेत्र में युवाओं के कौशल का निर्णय लिया गया है। एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट तथा प्रशिक्षण (आत्मा) जैसी संस्थाओं के माध्यम से प्रत्येक गाँव में ही कृषि को बढ़ावा देने के लिए सेवा ली जाएगी। 'आर्या' कार्यक्रम के तहत प्रत्येक गाँव से दो युवकों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। वे गाँव की परती भूमि को चिह्नित कर उसे कृषि योग्य बनाने तथा किसानों को दलहन की खेती के लिए प्रोत्साहित करेंगे। मुख्यमंत्री ने विभाग को निर्देश दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को कृषि व उससे सम्बन्धित क्षेत्र से जोड़ें ताकि शहरों की ओर पलायन करने वाले युवाओं को उनके ही गाँव में कृषि आधारित रोजगार एवं नियमित आय मिल सके।

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि युवाओं का एक नेटवर्क स्थापित किया जाए, ताकि कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण, विपणन एवं मूल्य संवर्द्धन जैसे कार्यों को गति दी जा सके। श्री दास ने निर्देश दिया कि विभिन्न कार्यरत हितधारियों के साथ समन्वय स्थापित कर कृषि के क्षेत्र में उपलब्ध सम्भावनाओं का उपयोग सुनिश्चित कराएँ। उन्होंने चयन में महिलाओं को प्राथमिकता देने का भी निर्देश दिया।

मुख्यमंत्री जन-वन योजना

इस योजना के तहत पौधरोपण करने वाले नागरिकों को पौधों के रख-रखाव पर तीन साल तक होने वाले खर्च के 50 प्रतिशत का भुगतान सरकार करेगी। राज्य में अब तक पौधारोपण की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की थी। सरकार का मानना है कि जनभागीदारी के बिना पौधारोपण के काम को सही तरीके से नहीं किया जा सकता है। इसलिए इस योजना की शुरुआत की गयी है। योजना के तहत किसी व्यक्ति के द्वारा न्यूनतम एक एकड़ और अधिकतम 50 एकड़ जमीन पर फलदार या लकड़ी के लिए पौधारोपण करने पर उसे अनुदान दिया जाएगा। पौधारोपण करने से तीन साल तक उसके रख-रखाव पर होने वाले कुल खर्च की 50 फीसदी राशि सरकार उसे लौटा देगी। इन वृक्षों पर राज्य सरकार का किसी तरह का कोई दावा नहीं होगा।

स्वतंत्रता के उपरान्त वर्तमान का झारखंड राज्य दक्षिण बिहार का हिस्सा था। 15 नवम्बर, 2000 को संवैधानिक रूप से यह हिस्सा झारखंड राज्य के नाम से जाना जाने लगा। यह क्षेत्र प्रारम्भ से ही प्राकृतिक संसाधनों का भंडार रहा है, जिसके कारण यह क्षेत्र आर्थिक रूप से सम्पन्न माना जाता है एवं इसे देश का रूर कहा जाता है। बावजूद इसके, यह क्षेत्र दशकों से उपेक्षित रहा, किन्तु विभाजन के फलस्वरूप करीब 67 प्रतिशत राजस्व स्रोत झारखंड में आ गए, जिससे राज्य के आर्थिक विकास की सम्भावना प्रबल हुई है।

प्रकृति ने लोगों को समान रूप से जन्म दिया है एवं समान अवसर भी प्रदान किए हैं। परन्तु सभी को संसाधनों की समान उपलब्धता नहीं होती है। ऐसे में समाज के चिन्तनशील वर्ग, प्रशासन एवं प्रशासन के मुखिया का यह दायित्व हो जाता है कि वैसे लोग, जिन्हें संसाधनों के अभाव ने गरीबी रेखा के नीचे ला खड़ा किया है, को सम्मानपूर्व जीवन निर्वहन हेतु वातावरण तैयार करें ताकि वैसे लोग भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके।

राज्य में समूहों को संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करना राज्य शासन का उत्तरदायित्व है। इस तथ्य के मद्देनजर झारखंड की राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार की सहायता से प्रदेश की जनता के लिए बड़े कदम उठाए हैं। यह कदम योजनाओं व कार्यक्रम के रूप में देखने को मिले हैं। ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनता के लिए बहुत-सी योजनाओं का शुभारम्भ किया गया है।

गोकुल ग्राम विकास योजना

इस योजना का उद्देश्य है झारखंड के सभी गाँव स्वच्छ, सुन्दर, सुविधायुक्त तथा समृद्ध ग्राम के रूप में विकसित हों। इसके अन्तर्गत 4 5 ग्रामों के क्लस्टर में दूध उत्पादन व बिक्री व्यवस्था के लिए आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, चारागाह का विकास, दूध उत्पादन हेतु फीड सप्लीमेंट वितरण, सघन प्रशिक्षण तथा गोबर एवं गोमूत्र से जैविक खाद उत्पादन प्रशिक्षण हेतु संरचनाओं के निर्माण की योजना क्रियान्वित की जाती है।

आदिम जनजातियों हेतु बिरसा मुण्डा आवास योजना

झारखंड राज्य की आबादी में आदिवासी समुदायों की एक बड़ी हिस्सेदारी है। उनमें से कुछ आदिवासी समुदायों जिनका सामाजिक-आर्थिक स्तर काफी न्यून है, को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं-असुर, बिरहोर बिरजिया, कोरबा, हिल खड़िया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाडिया और सबर। ये आदिम जनजातियाँ झारखंड के लगभग सभी 24 जिलों में पायी जाती हैं तथा पिछली जनगणना में इनकी कुल संख्या 193,827 थी। साहेबगंज (35,129) तथा दुमका (31,550) में इनकी संख्या सर्वाधिक है, जबकि धनबाद (137) तथा गिरिडीह (258) में इनको संख्या अत्यन्त कम है। कुछेक आदिम जनजातियाँ यथा असुर, बिरहोर, बिरजिया तो आज भी आदिम काल की तरह जीवनयापन कर रही हैं। इनकी दयनीय स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने बिरसा मुण्डा आवास योजना की शुरुआत की है। इसके तहत आदिम जनजातियों के परिवारों को चरणबद्ध तरीके से आवास उपलब्ध कराया जाना है। इस योजना में प्रति इकाई आवास निर्माण हेतु ₹ 70,500 निर्धारित की गयो थी, जिसे संशोधित कर ₹ 1,34,000 कर दी गयी है। इसमें आवास निर्माण का कार्य लाभुक के द्वारा स्वयं कराया जाता है।

बिरसा आवास योजना

राज्य की आदिम जनजातियों को आवास उपलब्ध कराने के लिए बिरसा आवास योजना का प्रारम्भ 2008 ई. में किया गया था। इसमें राज्य की 9 आदिम जनजातियों असुर, बिरहोर, बिरजिया, कोरबा, हिल खड़िया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, परहिया और सबर को शामिल किया गया है। ये आदिम जनजाति राज्य के 22 जिलों में पाई जाती हैं। जिनकी संख्या 1,93,827 है। इसमें सर्वाधिक संख्या साहेबगंज में 35,129 और दुमका में 31,550 है। जबकि सबसे कम धनबाद में 137 और गिरिडीह में 258 है। इनमें से कुछ आदिम जनजातियाँ जैसे-असुर, बिरहोर और बिरजिया घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करती हैं। अत: इन लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए बिरसा मुंडा आवास योजना शुरू की गयी है। इस योजना के तहत 70,500 रुपए की दर से राशि उपलब्ध करायी जाती है।

मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति ग्राम विकास योजना

झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने 30 जून, 2015 को इस योजना की शुरुआत दुमका जिला से की। इस योजना के तहत 5 साल में 5000 गाँवों का समग्र विकास किया जाएगा। इसमें वैसे गाँवों को शामिल किया गया है, जहाँ 80 प्रतिशत से अधिक आबादी जनजातियों की होगी। इस योजना में ग्राम प्रधान के नेतृत्व में विकास की योजनाएँ बनायी जाएंगी। कल्याण विभाग द्वारा चयनित महिला स्वयं सहायता समूह को प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रत्येक चयनित गाँव में ग्राम सभा द्वारा पाँच शिक्षित बेरोजगार युवक-युवतियों को स्वरोजगार के लिए 2 लाख रुपए या इतनी राशि का उपक्रम मुहैया कराया जाएगा। योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक शिखर समिति बनेगी। योजना क्रियान्वयन के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति का गठन किया जाएगा और जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में कमिटी गठित होगी। इन गाँवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवार कल्याण आदि से सम्बन्धित कार्य किए जाएंगे और लोगों का जीवन स्तर सुधारा जाएगा।

जोहार

2011-12 में 'जोहार' नाम की नई योजना 5 वर्षों के लिए शुरू की गयी। जोहर योजना का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है, ताकि गरीबों की जिन्दगी में बदलाव आ सके। इस योजना के तहत महिलाओं को अपना व्यापार, कुटीर और लघु उद्योग स्थापित करने के लिए राशि उपलब्ध करायी जाती है। इसके लिए राँची, रामगढ़, कोडरमा, बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, लातेहार, देवघर तथा जामताड़ा जिलों को चिह्नित किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत मुख्यतः गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों को कृषि आधारित व्यवसायों के जरिए जीवन स्तर को समुन्नत करना है।

मुख्यमंत्री स्मार्ट ग्राम योजना

वर्ष 2015 से संचालित मुख्यमंत्री स्मार्ट ग्राम योजना में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए शुरुआत की है। इस योजना के तहत सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा, कृषि, ई-गवर्नेस आदि के बारे में उन्नत प्रौद्योगिकी प्रदान करेगी। झारखंड सरकार ने 5 गाँवों जिनमें से 4 गाँवों, को पहले ही पायलट परियोजना के तहत सरकार द्वारा चयनित किया जाचुका है, का चयन करके शामिल करना है, फिर इस योजना का लाभ प्रदान किया जाना है।

मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना (MMGSY)

प्रखण्ड मुख्यालय से जोड़ने वाले पथों में पड़ने वाले पुल-पुलिया का निर्माण कर आवागमन सुगम बनाने के उद्देश्य से की गई थी। इस योजना का कार्यान्वयन ग्राम्य अभियंत्रण संगठन द्वारा किया जाता है।

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम

पुरा (PURA): यह योजना वर्ष 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की प्रेरणा से सरकार द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए लाई गई। इस योजना का उद्देश्य गाँव में शहरों जैसी सुविधा उपलब्ध कराना था। इसमें सड़क परिवहन, बिजली आपूर्ति, नॉलेज कनेक्टिविटी, बाजार कनेक्टिविटी आदि शामिल हैं।

भारत निर्माण योजनाः वर्ष 2005 06 के केंद्रीय बजट के दौरान राष्ट्रपति ने अपने पार्लियामेंट में दिए गए भाषण में भारत निर्माण को एक रूपरेखा सामने रखी, जिसे उन्होंने भारत निर्माण कहा। इसे दिसंबर, 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थापना तथा आधारभूत सुविधाओं के निर्माण के लिए शुरू किया गया। भारत निर्माण के छः अंग है- सिंचाई, सड़क, जल आपूर्ति, भवन निर्माण, ग्रामीण विद्युतीकरण तथा ग्रामीण टेलिकॉम कनेक्टिविटी।

मनरेगा: नेशनल रूरल एम्प्ल्वायमेंट गारंटी एक्ट (नरेगा) सितम्बर, 2005 में पारित हुआ तथा 2 अक्टूबर, 2006 को इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट कर दिया गया। इसमें इच्छुक व्यक्ति को वर्ष में एक निश्चित अवधि तक ही रोजगार सुरक्षा प्रदान की जाती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाः इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों को सड़कों द्वारा जोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आवगमन सुगम बनाना तथा विकास के मुख्य धारा में लाना है। यह योजना ग्राम्य अभियंत्रण संगठन द्वारा कार्यान्वित की जाती है। राज्य में कुल 37 हजार के आस-पास छोटे-बड़े गाँवों को सड़कों से जोड़ना है।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजनाः यह एक स्वरोजगार कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य इसके अंतर्गत सहायता प्राप्त परिवारों को बैंक ऋण तथा सब्सिडी के द्वारा आय सृजक सम्पतियां उपलब्ध कराना है जिससे वे गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकें। यह स्वरोजगार के कई घटकों को समाहित किए हुए हैं, यथा- गरीबों को स्वसहायता समूहों में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण, तकनीक आदि। इसे वर्ष 1999 में शुरू किया गया था।

इन्दिरा आवास योजनाः 1985-86 से प्रारंभ तथा 1999-2000

में पुनर्गठित यह योजना गांवों में गरीबों के लिए मुफ्त में मकान के निर्माण की प्रमुख योजना है। इस योजना का कार्यान्वयन जिला ग्रामीण अभिकरण के द्वारा प्रखंड स्तर पर प्रखंड विकास पदाधिकारी के माध्यम से किया जाता है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को वर्ष 2011 में शुरू किया गया, इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को सक्षम और प्रभावशाली संस्थागत मंच प्रदान कर उनकी आजीविका में निरंतर वृद्धि कर उनकी पारिवारिक आय को बढ़ाना है। इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय को विश्व बैंक से सहायता मिल रही है।

खाद्य सुरक्षा योजना

जन वितरण प्रणाली

राज्य के सृजन के पूर्व से ही यहाँ जन वितरण प्रणाली की संगठित व्यवस्था है। इसे बाजार मूल्य नियंत्रित करने और घरेलू स्तर पर खाद्यान्न की व्यवस्था सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में उचित मूल्य की दुकानों के द्वारा खाद्यानन, जैसे गेहूँ, चावल एवं अन्य आवश्यक सामग्री यथा, चीनी, खाद्य तेल, कैरोसिन तेल आदि को उचित मूल्य पर आपूर्ति एवं वितरण का प्रावधान और व्यवस्था शामिल है।

पुनर्गठित जन वितरण प्रणाली

जून, 1992 में जन वितरण प्रणाली को पुनर्गठित कर उसका नया नाम 'पुनर्गठित जन वितरण प्रणाली' रख दिया गया। इसे एकीकृत बिहार के सभी जिलों में लागू नहीं करके मात्र 15 जिलों के 189 प्रखण्डों में लागू किया गया। इन 15 जिलों में में झारखंड के 11 जिले-राँची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, सिमडेगा, पलामू, गढ़वा, दुमका, पाकुड़ और साहेबगंज शामिल थे। खाद्यान्नों की अधिप्राप्ति और पी.डी.एस. दुकानों के परिवहन का दायित्व केन्द्र सरकार पर और उसके उठाव एवं वितरण की जिम्मेवारी राज्य सरकार पर थी।

ए.पी.एल. योजना

ए.पी.एल. योजना लक्षित जनवितरण प्रणाली के अन्तर्गत वैसे परिवारों के लिए लागू की गयी है, जिनकी आबादी गरीबी रेखा के ऊपर है। ए.पी. एल. परिवारों को प्रति परिवार प्रतिमाह 10 कि.ग्रा. की दर से खाद्यान्न दिया जाता है। गेहूँ ₹ 6.63 प्रति किलोग्राम की दर से एवं चावल प्रतिमाह ₹ 9.00 प्रति किलोग्राम की दर से चावल देने का प्रावधान है।

बी.पी.एल. (मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता) योजना

लक्षित जन वितरण प्रणाली के अन्तर्गत बी.पी.एल. योजना वैसे परिवारों के लिए प्रारम्भ की गयी है, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। भारत सरकार के द्वारा लक्षित जन वितरण प्रणाली के अन्तर्गत 23,94,000 बी.पी.एल. परिवारों को लक्षित किया गया है। अन्त्योदय अन्न योजना के अन्तर्गत सम्मिलित 91,77,900 परिवारों को छोड़कर वर्तमान में झारखंड राज्य के 14,76,100 बी.पी.एल. परिवारों के लिए खाद्यान्न का आवंटन भारत सरकार के द्वारा दिया जाता है। बी.पी.एल. एवं अन्त्योदय परिवारों को र 1.00 प्रति किलोग्राम की दर से क्रमश: 34 किलोग्राम एवं 35 किलोग्राम प्रति माह खाद्यान्न दिया जाता है।

पुनर्सर्वेक्षित ग्रामीण बी.पी.एल. परिवारों को खाद्यान्न वितरण

राज्य सरकार ने वैसे बी.पी.एल. परिवारों को भी मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना में शामिल करने का निर्णय लिया है जिनका नाम पुनरीक्षित सर्वेक्षण में दर्ज है। राज्य में ऐसे 11,44,860 परिवार हैं जिन्हें र 1.00 प्रति किलोग्राम की दर से 20 किलो चावल उपलब्ध कराया जा रहा है।

अन्नपूर्णा योजना

झारखंड राज्य में अन्नपूर्णा योजना 15 अगस्त, 2002 को पहली अप्रैल, 2002 के भूतलक्षी प्रभाव से प्रारम्भ किया गया। इस योजना के अन्तर्गत राज्य के कुल 2,00,000 वैसे व्यक्तियों का चयन किया गया है जिनकी आयु 65 वर्ष या उससे अधिक है तथा जो वृद्धावस्था पेंशन पाने की योग्यता रखते हैं, परन्तु उन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन का लाभ नहीं मिल रहा है। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक लाभान्वित व्यक्ति को 10 किलोग्राम चावल प्रति माह मुफ्त दिया जाता है। लाभान्वितों को चावल का वितरण वृद्धावस्था पेंशन की भाँति जिला प्रशासन के द्वारा शिविर लगा कर दिया जाता है। इस योजना के लिए चावल का मूल्य, हथालन, परिवहन आदि का व्यय भार का वहन राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है।

मुख्यमंत्री दाल-भात योजना ( मुख्यमंत्री कैंटीन योजना)

विगत कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहे झारखंड प्रदेश के गरीबों को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री दाल-भात योजना का शुभारम्भ किया गया। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवन बसर कर रहे परिवार के सदस्यों को दाल-भात-सजी महज ₹ 5 में रेलवे स्टेशनों, बस स्टैण्डों, अस्पतालों तथा सार्वजनिक स्थलों पर उपलब्ध करायी जा रही है।

कैबिनेट ने राज्य में गरीबों के लिए पहले से चल रही दाल-भात योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री कैंटीन योजना करने का फैसला किया। इस योजना को संचालित करने हेतु मेसर्स टच स्टोन फाउंडेशन का चयन किया गया है। यह संस्था पाँच रुपए में दाल, भात, सब्जी, अचार उपलब्ध कराएगी। इस योजना के तहत एक प्लेट खाने की लागत ₹ 20 होगी जिसका ₹ 15 प्रति प्लेट के दर से राज्य सरकार अनुदान के रूप में भुगतान करेगी।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान (एनएफएसएम)

इस अभियान का प्रधान उद्देश्य बढ़ती हुई खाद्यान्न उपभोग आवश्यकता को पूरा करना था। साथ ही, तुलनात्मक रूप से पिछड़े लक्षित जिलों से मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना, रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना तथा कृषि स्तर की अर्थव्यवस्था में किसानों का आत्मविश्वास बनाए रखना भी इस अभियान के उद्देश्य हैं।

राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (एन.एम.एफ.पी)

12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना, खाद्य प्रसंस्करण की क्षमता को बढ़ाने, पूँजी और कौशल विकास को सुनिश्चित करने, खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के मानदण्डों को लागू करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा प्रयोजित राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन की शुरुआत की गई।

आदिम जनजातियों में अत्यन्त निम्न जीवन स्तर के मद्देनजर मुख्यमंत्री आदिम जनजाति खाद्य सुरक्षा योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के तहत खाद्य सामग्री यथा-चावल और गेहूँ आदिम जनजाति के लोगों को मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है। इसके तहत प्रत्येक आदिम जनजाति परिवार को प्रतिमाह 35 किलोग्राम खाद्यान्न दिया जाता है।

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