(सामाजिक और आर्थिक रूप में हाशिए के समूहों जैसे अनुसूचित जनजाति, जाति, धार्मिक अल्पसंख्यक, पिछड़ी जाति और महिलाओं के विकास की स्थिति और संबंधित मुद्दे, केन्द्र/राज्य सरकारों द्वारा इनके विकास के लिए जारी योजनाएँ, जनजातीय उपयोजना, अनुसूचित जाति उपयोजना और अल्पसंख्यकों सहित)
विश्व
स्तर पर यदि देखा जाये तो महिलाएं, बच्चे, शरणार्थी, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग,
राज्यविहीनता (जिस व्यक्ति या समूह के पास किसी भी राज्य की नागरिकता का न होना)
की स्थिति में जी रहे व्यक्ति/ समुदाय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक
(नृजातीय/धार्मिक/भाषायी), प्रवासी श्रमिक, निःशक्त व्यक्ति, वृद्ध, एच.आई.वी.
पॉजिटिव एड्स पीड़ित लोग, यायावर खानाबदोश, लैंगिक अल्पसंख्यक (लेस्बियन/गे और
ट्राइसजेंडर्स) आदि समूह असुरक्षित, हाशिये पर स्थित और उपेक्षित वर्ग के अंतर्गत
आते हैं।
भारत
में असुरक्षित, हाशिये पर स्थित तथा उपेक्षित समूहों के अंतर्गत अनुसूचित जाति,
अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक (नृजातीय/धार्मिक). महिला एवं बालिका शिशु, बेघर लोग,
श्रमिक, अक्षमता से पीड़ित लोग,
शराब
व मादक द्रव्य के व्यस्नी, समाज में विस्थापित प्रवासी लोग, सेक्स वर्कर एवं उनका
परिवार, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग,
सामान्यतः भेदभाव के शिकार लोग (एचआईवी एड्स तथा अन्य यौन संक्रमित रोगों से
पीड़ित, कैंसर रोगी, मस्तिष्क आपात से पीड़ित) ऐसे कैदी जो अपनी सजा काट चुके हैं
लैंगिक अल्पसंख्यक (लेसिबयन, गे, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर्स) जिन्हें
समेकित रूप में एक शब्द 'क्वीर कम्युनिटी' के नाम से जाना जाता है, शामिल हैं। इसके
अतिरिक्त पिछड़े वर्ग, भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तान के
मछुआरे, श्रीलंकाई शरणार्थी, पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी, तिब्बती शरणार्थी, एकल
अभिभावक तथा घरेलू कामगार इत्यादि भी असुरक्षित या वंचित समूह के अंतर्गत आते हैं।
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के रक्षोपाय हेतु संवैधानिक
प्रावधान
A.
अनुच्छेद 341 - अनुसूचित जाति (SC)
अनुच्छेद
342
- अनुसूचित जनजाति (ST)
अनुच्छेद
366(24)
- परिभाषा (अनुसूचित जाति)
अनुच्छेद
366(25)
- परिभाषा (अनुसूचित जनजाति)
B.
अनुच्छेद 17 - अस्पृश्यता का अंत।
अनुच्छेद
25
- अंत:करण की ओर धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने
की स्वतंत्रता।
C.
शैक्षणिक,
आर्थिक
व लोक नियोजन, संबंधी रक्षोपाय अनुच्छेद 15 - धर्म मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध।
अनुच्छेद
16 -
लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता।
अनुच्छेद
46
- SC, ST और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों
को अभिवृद्धि।
अनुच्छेद
320
- लोक सेवा आयोगों के कृत्य।
अनुच्छेद
335
- सेवाओं और पदों के लिये अनुसूचित जातियों और जनजातियों के
दावे।
D.
राजनीतिक रक्षापाय
अनुच्छेद
330
- लोक सभा में SC और ST के लिये स्थानों का आरक्षण।
अनुच्छेद
332
- राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों
के लिये स्थानों का आरक्षण।
अनुच्छेद
243(घ)
- पंचायतों में आरक्षण।
अनुच्छेद
243(ट) -
नगरपालिकाओं में आरक्षण।
E.
रक्षोपायों की निगरानी के लिये एजेंसी
अनुच्छेद
338 - राष्ट्रीय अनुसूचित जाति
आयोग।
अनुच्छेद
338(क)
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति संबंधित मुद्दे
2011
की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में 16.6% अनुसूचित
जातियां और 8.6% अनुसूचित जनजातियाँ हैं अर्थात् दोनों मिलाकर कुल जनसंख्या का
एक-चौथाई हैं।
अनुसूचित जातियों की समस्याएं :
अनुसूचित जातियों के लगभग 90% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। यह
लोग भूमिहीन होने के कारण बड़े भू-स्वामियों के अधीन कार्य करते
हैं जिससे कम पारिश्रमिक प्राप्त होने एवं बेगार करने का उत्पीड़न भी इन्हें सहन
करना पड़ता है। कर्ज लेने की स्थिति में यह लोग बंधुआ मजदूर के रूप में काम करके उधार
अदा करते हैं। देश में कहीं कहीं दलितों को हाथ से मैला ढोने जैसे घृणित कार्य भी
करने पड़ते हैं। विभिन्न स्थानीय प्रशासनिक संरचनाओं ने अस्पृश्यता तथा भेदभाव
संबंधी व्यवहारों को और भी सहज बना दिया है।
अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याएं : अनुसूचित
जनजाति की जनसंख्या का मानव विकास सूचकांक (IIDI) शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आय जैसे सभी
मापदण्डों के आधार पर शेष जनसंख्या से बहुत कम है। सिंचाई बांधों, जलविद्युत एवं
तापीय ऊर्जा संयंत्रों, कोयला खानों तथा खनिज आधारित उद्योगों जैसी वृहद् विकास
परियोजनाओं के चलते भारत में एक बड़ी संख्या में जनजातियां विस्थापित होती रही
हैं।
हमारे
देश में लगभग 461 अनुसूचित जनजातियां हैं जिनमें से 75 की अति पिछड़े आदिम जनजाति
समुदायों के रूप में पहचान की गयी है। सांस्कृतिक संपर्क, औद्योगिकीकरण तथा
नगरीकरण के कारण जनजातियों के दैनिक जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
इसके
अतिरिक्त, चूंकि जनजातियां दूर-दराज के क्षेत्रों में रहती है, जिस कारण उन्हें
विकास कार्यों से संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने में समय भी बहुत लगता हैं। इस
तरह जनजातियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो पाती हैं और साथ ही ये अपने
कई विकास कार्यक्रमों के प्रति भी अनभिज्ञ रहती हैं। इन संवैधानिक प्रावधानों के
अतिरिक्त समय-समय पर कानून निर्मित करके इन वर्गों के साथ होने वाले भेदभाव तथा
अत्याचार को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है।
मुख्य विधिक प्रावधान निम्नलिखित हैं-
•
नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1955
•
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण, संशोधन अधिनियम,
2015
•
हाथ से ढोने वालों के नियोजन का प्रतिषेध तथा उनका पुनर्वास अधिनियम,
2013
•
अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की
मान्यता) अधिनियम, 2006
•
अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पारंपरिक वन निवासी संशोधन नियम, 2012
•
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार अधिनियम 1996-पेसा)
•
पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (पेसा), 1996
प्रमुख बिन्दु :
•
राज्य द्वारा जो भी कानून बनाए जाएं, वे पारंपरिक कानून, समाज और
धार्मिक रिवाजों और सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों के अनुरूप
हो।
•
हर गांव में ग्राम सभा हो जो लोगों की परंपराओं, रिवाजों को
संरक्षित और सुरक्षित रखने में सक्षम हो तथा जिसे सामाजिक और आर्थिक विकास के
कार्यक्रमों को स्वीकृति देने और इन कार्यक्रमों के लाभार्थियों को चिन्हित करने
का अधिकार भी प्राप्त हो।
•
गौण व उत्पादों पर पंचायतों का स्वामित्व और इनके बारे में लाइसेंस या खनन पहले देने के लिये ग्राम सभा या उचित स्तर की सलाह लेना।
•
विकास परियोजनाओं और इनसे प्रभावित आदिवासियों को पुनर्वास करने से
पहले ग्राम सभा या उचित स्तर की पंचायत की पूर्ण संस्तुति लेना।
•
ग्राम सभा के पास अनुसूचित क्षेत्र में जमीन के हस्तांतरण को
रोकने या अवैध रूप से हस्तांतरित जमीन को वापस लाने हेतु उचित कार्यवाही करने की
शक्ति होना।
•
ग्राम सभा को अनुसूचित जनजातियों को उधार लेने की प्रक्रिया को नियमित
करने, गांव के बाजारों का प्रबंधन करने, किसी भी मादक पदार्थ के उपयोग या विक्रय
को प्रतिबंधित या नियमित करने की शक्ति।
•
राज्य की विधानसभा पंचायतों के विभिन्न स्तरों के अधिकारों को स्पष्ट
रूप से परिभाषित करने तथा ऊपरी स्तर की पंचायतों द्वारा निचले स्तर की पंचायतों या
ग्रामसभाओं के अधिकार को हड़पने से रोकने के लिये सुरक्षा के उचित उपाय करें।
अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की
मान्यता अधिनियम), 2006
यह
कानून वन अधिकारों की पहचान से कुछ अधिक है। यह कानून
'वन निवासी एवं वन पृथक नहीं है' की सोच पर आधारित है। यह वन भूमि
स्वामियों, ग्रामसभाओं और स्थानीय संस्थाओं को अधिकार देता है कि अपने वनों को
संरक्षित करें। यह कानून 01 जनवरी, 2008 से अपने सभी प्रावधानों के साथ लागू हो
गया। इसके अंतर्गत प्रमुख वन अधिकारों की प्राप्ति हुई है।
प्रमुख बिन्दु :
•
वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियां और अन्य परंपरागत वन निवासियों के किसी सदस्य या किन्हीं सदस्यों द्वारा निवास के लिये या जीविका के लिये
स्वयं खेती करने के लिये व्यक्तिगत या सामूहिक अधिभोग के अधीन वन भूमि को धारित
करने और उसमें रहने का अधिकार।
•
लघु वनोपज का संग्रहण, उसका उपयोग करने और बेचने का अधिकार।
•
जंगल क्षेत्र में पानी, सिंचाई, मछली पालन एवं पानी से अन्य उपज प्राप्त
करने का अधिकार।
•
जहां वन भूमि से लोगो को अवैधानिक तरीके से बिना पुनर्वास को हटा
दिया गया हो, वहां उसे जमीन पर या दूसरी जमीन पर अधिकार।
•
13 दिसम्ब, 2005 से पहले वन भूमि पर काबिज लोगों को उसी भूमि पर
अधिकार और पट्टा मिलेगा।
•
कोई ऐसा पारंपरिक अधिकार जिसका वनवासियों द्वारा रूढ़िगत रूप से उपयोग
किया जा रहा हो, किन्तु जंगली जानवरों के शिकार का अधिकार नहीं होगा।
•
जैव विविधता तथा सांस्कृतिक विविधता से संबंधित बौद्धिक संपदा और
पारंपरिक ज्ञान का समुदायिक अधिकार।
वर्तमान परिदृश्यः अनुसूचित जाति एवं जनजाति
यद्यपि
भारत में समाजिक है, परन्तु व्यवहार में जाति व्यवस्था एवं जातिवाद के कारण समाज
में अत्यधिक असमानता व्याप्त है। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय समाज में जातिवाद
की जड़ें बहुत गहरी हैं, क्योंकि जातीय भेदभाव तथा अस्पृश्यता के विरुद्ध कानूनी
प्रतिबंध होने के बावजूद भी जाति आधारित अपराध एवं हिंसा आज भी जारी है। शिक्षा
एवं समृद्धि के स्तर में निरंतर होती वृद्धि भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के
प्रति समाज का दृष्टिकोण परिवर्तित करने में विफल रही है। इसका जीवंत उदाहरण है
भारत में सर्वाधिक साक्षरता दर एवं 7वां सर्वाधिक प्रतिव्यक्ति आय वाला राज्य केरल
जो कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विरुद्ध उच्च अपराध दर वाले राज्यों में से एक
है।
राष्ट्रीय
अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित
जनजातियों के विरुद्ध होने वाले पंजीकृत अपराधों की संख्या बढ़ रही है। राष्ट्रीय
स्तर पर एनसीआरबी आंकड़ें दर्शाते हैं कि पंजीकृत विशेष मामलों में दोष सिद्ध दर
आईपीसी मामलों की तुलना में कम है। इसके पीछे कई कारकों को उत्तरदायी माना जा सकता
है।
अनुसूचित जातियों/जनजातियों से संबद्ध संरचनात्मक कदमः राष्ट्रीय
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग (संवैधानिक निकाय)-
संविधान
के अनुच्छेद 338 के तहत वर्ष 1990 में स्थापित किये गये राष्ट्रीय अनुसूचित जाति
एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के बाद दो आयोगों
में बांट दिया गया। ये आयोग अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों को प्रदत्त रक्षोपायों
की निगरानी करने और कल्याण से संबंधित मुद्दों की समीक्षा करने के लिये जिम्मेदार
है।
इसके
अतिरिक्त राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान, बाबू जगजीवन राम
राष्ट्रीय प्रतिष्ठान जैसी संस्थाओं के माध्यम से भी अलाभान्वित वर्गों के विकास
के लिये सरकार प्रयासरत हैं।
राष्ट्रीय
अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम : इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा फरवरी, 1989
में की गयी। निगम का वृहद उद्देश्य रियायती ऋण के रूप में सभी अनुसूचित जातियों के
परिवारों, जो उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं, के आर्थिक विकास,
उत्थान एवं आर्थिक सशक्तीकरण के लिये विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहयोग
प्रदान करना है।
राष्ट्रीय
अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम : जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधीन
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम की स्थापना 2001 में की गयी थी।
निगम लक्षित समूह को कौशल उद्यम विकास हेतु वित्तीय मदद भी देता है। इसका उद्देश्य
अर्हता प्राप्त अनुसूचित जनजातियों की आय सामाजिक-आर्थिक स्तर में वृद्धि करना है।
निगम आवंटन और लघु वन उत्पादों के वितरण हेतु भी वित्तीय मदद प्रदान करता है ताकि
अनुसूचित जनजातियों द्वारा उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहन दिया जा सके।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं वंचित समूहों के कल्याण से
संबंधित योजनाएं
स्टैंड-अप
इंडिया : 6 जनवरी, 2016 को केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति: अनुसूचित जनजाति एवं
महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये 'स्टैंड-अप इंडिया' योजना को
मंजूरी दे दी गयी है। 5 अप्रैल . 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
नोएडा में एक वेब पोर्टल के साश्च स्टैंड अप इंडिया योजना को
लॉन्च किया।
प्रमुख बिन्दु : ₹10,000 करोड़ की
प्रारम्भिक राशि के साथ भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के जरिये पुनर्वित्त
खिड़की स्थापित करना।
•
राष्ट्रीय क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) के जरिये एक ऋण गारंटी तंत्र का सृजन करना।
•
इसका समग्र उद्देश्य आबादी के सुविधाविहीन क्षेत्रों तक बैंक ऋण की
सुविधाएं प्रदान करने के लिये संस्थागत ऋण संरचना का लाभ उठाना है।
रोशनी
: नक्सलवाद से ग्रसित 24 जिलों के गरीब परिवारों के युवाओं को इस योजना के माध्यम
से हुनरमंद बनाना।
हाथ
से मैला ढोने वालों के पुनर्वास हेतु स्वरोजगार योजना : भारत सरकार ने जनवरी, 2007
में हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास हेतु स्वरोजगार योजना आरम्भ की। चिन्हित
किये गये हाथ से मैला ढोनं वालों एवं उनके आश्रितों को स्वरोजगार उद्यम अपनाने के
लिये रु. 20,000 तक की पूंजी एवं रियायती दरों पर ऋण प्रदान किया जाता है। साथ ही
कौशल विकास हेतु एक वर्ष की अवधि तक का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
अनुसूचित जातियों की बालिकाओं हेतु शिक्षा विकास कार्यक्रम : इसका
उद्देश्य अत्यंत कम साक्षरता वाले क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों की बालिकाओं
हेतु आवासीय विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा की बहुमुखी सेवाएं प्रदान करना है;
जहां उनकी शिक्षा के अनुकूल परंपराएं एवं परिवेश नहीं हैं। योजना संबंधित जिले की
जिला परिषद् द्वारा क्रियान्वित होती हैं।
जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र :
इस योजना कामुख्य उद्देश्य विभिन्न
पारंपरिक/आधुनिक व्यवसायों में जनजातीय युवाओंश्रके कौशल
को बढ़ाना है। इसका आधार उनकी शैक्षणिक योग्यता, मौजूदा आर्थिक प्रतिरूप प्रचलन और
बाजार क्षमता है जो कि उन्हें संपोषणीय रोजगार देने में अथवा स्वरोजगार प्राप्त
करने में सक्षम बनाएंगे।
कम साक्षरता वाले जिलों में अनुसूचित जनजाति की लड़कियों की शिक्षा
को मजबूत बनाना-यह योजना 54 चिन्हित जिलों को अपने
दायरे में लाती है जहां अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 25% या उससे अधिक हो और
अनुसूचित जनजाति की महिला साक्षरता 35% से कम हो। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को
प्राथमिकता दी जाती है और मंत्रालय बालिका छात्रावासों हेतु उन विद्यालयों को
वित्तीय मदद देता है जो 'सर्व शिक्षा अभियान', 'कस्तूरबा गांधी विद्यालय' या अन्य
उपलब्ध शैक्षणिक योजनाओं के अंतर्गत आते हैं।
लघु वन-उत्पादक क्रियाओं हेतु अनुदान :
यह एक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसमें 100% अनुदान राज्य जनजातीय सहकारी
विकास निगम, वन विकास निगम और लघु वन-उत्पाद (व्यापार और विकास) संघों को दिया
जाता है ताकि वे लघु वनोत्पाद क्रियाएं संचालित कर सकें।
एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय :
इसका उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों के अनुसूचित जनजाति के छात्रों को गुणवत्तायुक्त
माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिससे उन्हें न केवल उच्च और व्यावसायिक
पाठ्यक्रमों में आरक्षण और सहकारी व निजी क्षेत्रों में नौकरी मिले, बल्कि
गैर-अनुसूचित जनसंख्या से तुलना करने पर भी शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोत्तम अवसर
मिले।
आदिवासी महिला सशक्तीकरण योजना :
यह आदिवासी महिलाओं के कल्याण के लिये एक विशिष्ट योजना है जिसमें ब्याज की दर
बेहद कम रखी गयी है। योजना के तहत, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम
लक्षित परियोजनाओं के लिये सावधि ऋण देता है।
जनजातीय उप योजना (टीएसपी)
जनजातीय
उप योजना, केन्द्र राज्य सरकार का घटक है जो अनुसूचित क्षेत्रों के जनजातियों के
विकास से जुड़ा है। केन्द्र/राज्य सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों द्वारा जनजातियों
के विकास के लिए क्षेत्रीय आवंटन का प्रावधान है। यह आवंटन जनजातियों के जनसंख्या
के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 275(1)
के तहत भी विशेष केन्द्रीय सहायता के रूप में जनजातीय उप योजना के लिए अतिरिक्त राशि
के आवंटन का भी प्रावधान है।
जनजातीय उप योजना संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :
1.
जनजातीय उप योजना रणनीति जनजातीय विकास की एक अवधारणा है जो
जनजातीय क्षेत्रों के पिछड़ेपन की समस्या के समाधान को ध्यान में रखते हुए इनके
लिए आनुपातिक जनसंख्या के आधार पर राशि आवंटन का प्रावधान बजट में करता है। यह एक
कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा जनजातियों के सर्वांगीण विकास के लिए यह निश्चित
किया जाता है कि निम्नतम राशि का प्रवाह इन जनजातीय क्षेत्रों में होता रहे। इस
सिद्धान्त पर केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के सभी विभागों को राशि के आवंटन का
प्रावधान करना पड़ता है। यह रणनीति भारत की 5वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत लागू
किया गया था। इससे पूर्व इस तरह के राशि के प्रवाह के मापन का कोई सिद्धान्त नहीं
था। इस अवधारणा के पीछे यह उद्देश्य है कि राष्ट्र के साधनों का वितरण इस प्रकार
किया जाए कि समाज के सभी लोगों का विकास समरूप हो और जनजातीय समाज के लोगों के
विकास में गतिशीलता बनी रहे।
2.
विभिन्न विकास विभागों द्वारा जनजातीय उप योजनाओं वाले क्षेत्रों के लिए आम आवंटन से विभिन्न योजनाओं, उनकी प्रासंगिकता, निरंतर
मूल्यांकन एवं सुधारात्मक क्रिया हेतु जनजातीय क्षेत्रों के विकास की मोनिटरींग की
जाती है। 1990 के दशक में कुछ ही सरकारों ने TSP के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया
है। जनजातीय कल्याण विभाग के बजट की मांगों के अनुसार TSP के लिए बजट के आवंटन का
प्रावधान किया जाता है और विकास विभाग जनजातीय कल्याण विभाग के प्रशासनिक अनुमोदन
प्राप्ति के उपरान्त योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लागू करती है। यह साधारणतः महाराष्ट्र
मॉडल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम यह महाराष्ट्र में ही लागू की गयी
थी। इसका अभिप्राय था-(a) TSP के लिए आवंटित राशि दूसरे क्षेत्र के किसी विभाग को
न जाए, (b) जनजातीय क्षेत्रों के सभी विभागों द्वारा विकास के प्रयासों का एक अभिकरण में समाकलन।
3.
राज्य में, जनजातीय कल्याण विभाग नॉडल विभाग है जो विभिन्न विभागों
द्वारा लागू की गयी योजनाओं का समन्वयन, मानीटरिंग तथा देखरेख करती है। वास्तव
में, जनजातीय कल्याण विभाग किसी योजना को अंतिम रूप देने से पूर्व, सभी विभाग के
योजनाओं एवं कार्यक्रमों को अंतिम रूप देती है तथा प्रत्येक विभागों के लिए अलग-अलग
राशि का आवंटन करती है। फिर भी व्यावसायिक रूप से एक या दो राज्यों की सरकारों को
छोड़कर अन्य इसका अनुसरण नहीं कर रही हैं।
4.
TSP के अंतर्गत राशि का प्रवाह यह दर्शाता है कि 8वीं योजना के दौरान
केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों को दी जाने वाली राशि 9% से कुछ ही अधिक थी, जबकि
कुछ राज्यों में जनजातीय आबादी के अनुसार आवंटित राशि कम थी। 5वीं से 8वीं योजनाओं
के दौरान इस स्थिति में सुधार आया।
5.
देश में TSP रणनीति के 20 वर्षों के बाद भी, कुछ नीति विशेषज्ञों का मत है कि कई राज्यों में अभी भी जनजातियों के रहन सहन के स्तर तथा
जनजातीय क्षेत्रों में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इसका परिणाम यह हुआ कि-(a)
जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासनिक दबाव बढ़ा है, (b) जनजातीय नीति के लिए नये
मूल्यांकन की आवश्यकता है। (c) सुधार हेतु राजनैतिक मांग बढ़ी है। जनजातियों के
क्रोध या कुंठा को विकास संकेतक के माध्यम से TSP तथा TPS रहित क्षेत्रों के
लोगों के साथ सहानुभूति व्यक्त की जा सकती है।
अनुसूचित जाति उप-योजना (एससीएसपी)
अनुसूचित
जाति विकास ब्यूरो के तहत सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय अनुसूचित जाति उप
योजना (SCSP) का क्रियान्वयन करता है, जो अनुसूचित जातियों के लाभों के लिए सभी
सामान्य विकास क्षेत्रों से लक्षित वित्तीय तथा भौतिक लाभों के प्रवाह को
सुनिश्चित करने वाली रणनीति है। इस रणनीति के तहत राज्य केन्द्र शासित प्रदेशों को
उनकी वार्षिक योजनाओं के एक हिस्से के रूप में अनुसूचित जातियों की विशेष घटक
योजनाओं का संचालन तथा क्रियान्वयन करना होगा।
विशेष प्रोत्साहन योजना : अनुसूचित
जातियों के विकास का अन्य नीतिगत प्रयास है, विशेष घटक योजना को विशेष केंद्रीय
सहायता, जिसमें राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों की अनुसूचित जाति उपयोजनाओं को
शत-प्रतिशत सहायता दी जाती है, जिसके कुछ आधार हैं, जैसे-राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों
में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या, राज्य केन्द्र शासित प्रदशों में अनुसूचित जाति
का तुलनात्मक पिछड़ापन, राज्य/ केन्द्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जाति के परिवारों
को गरीबी रेखा के नीचे से ऊँचा उठाने के लिए लागू समेकित आर्थिक विकास कार्यक्रमों
की प्रतिशतता के मुकाबले वार्षिक योजना के लिए अनुसूचित जाति उप योजना की
प्रतिशतता।
इस
मंत्रालय के तहत गठित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त तथा विकास निगम गरीबी की रेखा
से दोगुना नीचे जीवन बसर करने वाली अनुसूचित जातियों के लोगों की आय सृजन
गतिविधियों के लिए ऋण सुविधा प्रदान करता है।
अन्य पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्गों से संबंधित मुद्दे
पिछड़े
वर्ग के लिए संवैधानिक प्रावधान : अनुच्छेद 340 के तहत गठित द्वितीय पिछड़ा वर्ग
आयोग (मंडल आयोग) ने वर्ष 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। अगस्त, 1990 में
इस रिपोर्ट के आलोक में भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने सामाजिक तथा
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए केन्द्र सरकार के पदों पर 27% आरक्षण प्रदान करने
का आदेश जारी किया।
1992
में उच्चतम न्यायालय द्वारा 'इंदिरा साहनी बनाम भारत संघवाद' में
सिविल पदों और सेवाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण का अनुमोदन किया
गया, बशर्ते क्रीमीलेयर को छोड़ दिया जाए। अनुच्छेद 15 (4) व 16 (4) के प्रावधानों
के तहत सरकार सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों हेतु
विशेष प्रावधान कर सकती है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग:
उच्चतम न्यायालय द्वारा इंदिरा साहनी बनाम भारत संघवाद (1992) में दिय गए निर्देश
के अनुसरण में भारत सरकार ने 'राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग' स्थापित करने के लिए
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम वर्ष 1993 अधिनियमित किया। आयोग 'अन्य पिछड़े वर्गों
की ऐसी सूचियों में नागरिकों के किसी वर्ग को अन्य पिछड़े वर्गों की सूची में
शामिल करने के अनुरोधों या शामिल करने संबंधी शिकायतों की जांच करेगा और केन्द्र
सरकार को, जैसा यह उचित समझे सलाह देगा। अधिनियम की सलाह सामान्यतः केन्द्र सरकार
पर बाध्यकारी होगी।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग :
गृह मंत्रालय के प्रस्ताव पर वर्ष 1978 में अल्पसंख्यक आयोग का निर्माण हुआ। इसे
'राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992' द्वारा वैधानिक दर्जा दिया गया तथा
इसका नामकरण राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कर दिया गया।
अल्पसंख्यक समूहों के कल्याण हेतु योजनाएं :
केन्द्र सरकार अल्पसंख्यकों एवं अन्य वंचित समूहों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है।
इन वर्गों को समान रूप से विकसित किये जाने के लिए हर संभव प्रयास भी किये जा रहे
हैं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अंतर्गत मुस्लिम,
सिक्ख, बौद्ध, पारसी एवं जैन अर्थात् कुल 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक वर्ग
जो कि देश की लगभग 20 प्रतिशतजनसंख्या की संरचना करते हैं, को
अल्पसंख्यक के रूप में अभिव्यक्त किया गया है।
2006
में गठित अपसंख्यक कार्य मंत्रालय के माध्यम से सरकार ने अल्पसंख्यकों
के कल्याण के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख योजनाओं का संक्षिप्त
विवरण निम्नलिखित हैं-
नया सवेरा : इस योजना के अंतर्गत
अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों को उनके ज्ञान, कौशल व
क्षमता में वृद्धि का अवसर देकर, उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं/चयन प्रक्रियाओं के
माध्यम से सरकारी निजी क्षेत्र में नौकरियों एवं प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश
प्राप्त करने में सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
नई उड़ान : इस योजना के अंतर्गत
अल्पसंख्यक समुदायों के उम्मीदवारों, जिन्होंने संघ लोक सेवा आयोग, एस.एस.सी.,
राज्य लोक सेवा आयोग आदि द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली है. को मुख्य
परीक्षा की तैयारी हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
नई रोशनी : नई रोशनी योजना का
उद्देश्य सभी स्तर पर सरकारी प्रणालियों, बैंकों और अन्य संस्थाओं के साथ
कार्य-व्यवहार करने हेतु जानकारी, साधन व तकनीकी शिक्षा मुहैया कराकर अल्पसंख्यक
समुदायों की महिलाओं सहित उसी गांव-मोहल्ले में रहने वाले अन्य समुदायों की महिलाओं
को भी सशक्त व साहसी बनाना है। योजना के अंतर्गत 18-65 वर्ष की आयु वर्ग की
महिलाएं लड़कियां ही हिस्सा ले सकती हैं।
सीखो और कमाओ योजना : इस योजना का
उद्देश्य अल्पसंख्यक युवाओं के कौशलों का मॉड्यूलर रोजगार योग्य कौशलों और
परंपरागत कौशलों में उन्नयन करते हुए उन्हें बाजार से जोड़ना है, जिससे उनके लिये स्व
रोजगार रोजगार सुनिश्चित किया जा सके। यह शत प्रतिशत केन्द्रीय योजना है।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद् द्वारा अनुमोदित
पाठ्यक्रम के अनुसार इस योजना का क्रियान्वयन करेगा, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों
द्वारा अपनाए जा रहे बहुत से पारम्परिक कार्य, जैसे-कढ़ाई, चिकनकारी, जरदोजी, रत्न
एवं आभूषण, बुनाई, काष्ठ कार्य, चमड़े की वस्तुएं आदि शामिल हैं।
इस
मिशन के परिणामस्वरूप पारम्परिक कलाओं और शिल्पों का संरक्षण करने एवं अल्पसंख्यक
समुदायों को बाजार की चुनौतियों का सामना करने तथा अवसरों का लाभ उठाने में मदद
मिल सकेगी।
जियो पारसी : इस योजना का उद्देश्य
वैज्ञानिक नवाचार और ढांचागत हस्तक्षेप अपनाकर पारसी आबादी की गिरती जनसंख्या को
रोकने के साथ ही उनकी जनसंख्या को स्थिर रखना तथा जनसंख्या बढ़ाना है। यह योजना
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा प्रायोजित है।
पढ़ो परदेश : इस योजना का उद्देश्य
अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित मेधावी
छात्रों को शिक्षा ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान करना है, जिससे उनको विदेश में उच्च
शिक्षा के बेहतर अवसर दिये जा सकें और उनको रोजगार क्षमता में वृद्धि की जा सके।
नई मंजिल : यह योजना बीच में ही
पढ़ाई छोड़ चुके विद्यार्थीयों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से 10वीं और 12वीं
कक्षा के प्रमाणपत्र उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उन्हें विभिन्न कौशलों से भी लैस
करेगा।
महिलाओं के मुद्दे
शायद
ही कोई विषय शोधकर्ताओं, केन्द्रीय और राज्य सरकारों और समाज सुधारकों का ध्यान
इतना आकृष्ट करता हो जितना कि महिलाओं की समस्याएं। महिलाओं की स्थिति को
असुरक्षित एवं हाशिये पर दिखाने वाले प्रमुख कारक निम्नवत हैं-
•
भारत की पितृसत्तात्मक परंपराएं।
•
दहेज प्रथा, लड़की को बोझ समझना।
•
कन्या भ्रूण हत्या, बालिका शिशु हत्या।
•
बाल विवाह, बालिका शिशु का शारीरिक शोषण, बालिका शिशु का दुरुपयोग।
•
सेक्स वर्कर तथा र्दुव्यवहार से पीड़ित महिलाएं।
•
घरेलू महिला श्रमिक, अकेली माता, विधवाओं और किशोरियों के प्रति हिंसा,
तेजाब हमले से पीड़ित महिलाएं, ऑनर किलिग।
•
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, असमान वेतन।
•
रक्ताल्पता से पीड़ित महिलाएं और कुपोषिता बालिकाएं।
•
वर्तमान समय में सरोगेसी से जुड़ी महिलाओं के मुद्दे।
महिलाओं की उन्नति एवं रक्षोपाय :
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों, मौलिका कर्तव्यों तथा नीति निदेशक सिद्धांतो
में लैंगिक समानता के सिद्धांत को प्रतिष्ठापित किया गया है। महिलाओं को समान
अधिकार देने के उद्देश्य से भारत ने कई अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमयों तथा मानवाधिकार
दस्तावेजों की अभिपुष्टि की है जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण 1993 का महिलाओं के
विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन संबंधी अभिसमय है।
संविधान
के अनुच्छेद 14, 15(1), 15(3), 16, 39 (क), 42, 46, 47.51 क (1), 243 घ
(4), 243 (3) एवं 243 न (4) महिलाओं को सामाजिक न्याय उपलब्ध
कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। कानून एवं विधायन (महिलाओं के अधिकारों की
सुरक्षा के लिये) विशाखा दिशा-निर्देश : विशाखा दिशा निर्देश कार्यस्थल पर महिलाओं
के यौन उत्पीड़न को रोकने से संबंधित है। 'विशाखा बनाम राजस्थान राज्य' मामले में
सर्वोच्च न्यायालय ने महिला कर्मचारियों के सुरक्षित एवं स्वस्थ वातावरण में काम
करने के अधिकार को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कुछ नियम तय किये थे तथा
प्रत्येक नियोक्ता के लिये यह अपरिहार्य बना दिया कि वह महिलाओं को सुरक्षित एवं
उत्पीड़न रहित भारतीय संविधान में उल्लिखित अनुच्छेद 14 से 15 के मौलिक अधिकारों के
साथ-साथ अनुच्छेद 21 में वर्णित गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार का भी उल्लंघन
होता है।
सर्वोच्च
न्यायलय ने एक फैसले में घरेलू हिंसा कानून, 2005 में से
'वयस्क पुरुष' शब्द को हटाकर घरेलू हिंसा कानून का दायरा विस्तृत कर दिया है, जिसमें किसी महिला के साथ हिंसा या उत्पीड़न के मामले में
महिलाओं तथा गैर-वयस्कों पर भी अभियोजना चलाया जा सकेगा। शीर्ष अदालत ने घरेलू
हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के कानून 2005 की धारा 2 (क्यू) से दो शब्दों को
हटाने का आदेश दिया जो उन प्रतिवादियों से संबंधित है जिन पर ससुराल में किसी
महिला को प्रताड़ित करने के लिये अभियोग चलाया जा सकता है।
जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम :
1जून, 2011 को सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चि करने हेतु जननी शिशु सुरक्षा
कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके तहत गर्भवती महिला को प्रजनन के लिये सार्वजनिक
स्वास्थ्य केन्द्र तक मुफ्त दवाइयां, मुफ्त जांच, मुफ्त रक्त (जरूरत पड़ने पर) और
महिला व नवजात को मुफ्त पोषणयुक्त भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई) : 2010
में गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में
सुधार लाने के लिये उन्हें नकद राशि देकर उनके लिये अनुकूल वातावरण बनाने के
उद्देश्य से एक सशर्त नगद भुगतान योजना शुरू की गयी। यह योजना बच्चे के जन्म से
पहले और जन्म के पश्चात् गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली कामकाजी महिलाओं की
मजदूरी के घाटे की आशिक क्षतिपूर्ति का प्रयास करती है।
इस
योजना के अंतर्गत 19 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं को दो बच्चों के लिये यह
लाभ दिया जाएगा। सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी कर्मचारी इस योजना के हकदार नहीं होंगे,
क्योंकि उन्हें सर्वतन मातृत्व अवकाश दिया जाता है। इस प्रकार इस योजना में
गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव तथा स्तनपान के समय उपयुक्त पद्धतियों, देख-रेख और
सेवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना है। वर्ष 2013 में इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
के तहत लाया गया था।
इस
मातृत्व सहयोग योजना (MBP) में अब गर्भवती को 6 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी
जायेगी। योजना में जनवरी, 2017 के बाद गर्भवती महिलाओं को लाभ मिलेगा। 6000 रुपये
के इस लाभ को तीन किश्तों में पहले दो जीवित बच्चों के जन्म के लिये दिया जायेगा।
इसका विस्तार देश के सभी जिलों में होगा।
आयरन
और फॉलिक एसिड अनुपूरक साप्ताहिक कार्यक्रम : किशोर-किशोरियों हेतु इस कार्यक्रम
की शुरुआत वर्ष 2013 को की गयी। यह कार्यक्रम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत शुरू किया गया है। कार्यक्रम के
अन्तर्गत 10-19 वर्ष के आयु समूह के लगभग 13 करोड़ किशोर-किशोरियां शामिल होंगे। कार्यक्रम
के तहत सप्ताह में एक दिन किशोर-किशोरियों को आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां
प्रदान की जाएंगी। साथ ही, किशोरों और परिवारों को पौष्टिकता व स्वास्थ्य शिक्षा
संबंधी जानकारी भी दी जायेगी।
किशोर बालिकाओं के सशक्तीकरण हेतु राजीव गांधी योजना-'सबला':
केन्द्र द्वारा प्रायोजित इस योजना को वर्ष 2010 में प्रायोगिक तौर पर देश के 200
जिलों में शुरू किया गया। यह योजना ICDS प्रोजेक्ट के अंतर्गत चिन्हित उन सभी 200
जिलों में ।। से 18 वर्ष तक की उन सभी किशोर बालिकाओं पर केन्द्रित है, जो
विद्यालय नहीं जा पातीं।
योजना
के दो मुख्य घटक हैं-पोषण एवं गैर-पोषण। पोषण घटक के अन्तर्गत 11-14 आयु वर्ग की
विद्यालय न जाने वाली लड़कियों को राशन या गर्म पके भोजन के रुप में पोषण दिया
जाता है और 14-18 आयु वर्ग की सभी लड़कियां चाहे वे विद्यालय जाती हों या न जाती
हों, को भी इसी रुप में पोषण दिया जाएगा।
गैर-पोषण
घटक के अन्तर्गत 11-18 आयु वर्ग की विद्यालय न जाने वाली किशोरियों को आयरन और
फॉलिक एसिड का पूरक देना, स्वास्थ्य जांच सुविधा, पोषण व स्वास्थ्य शिक्षा, परिवार
कल्याण पर परामर्श, किशोर प्रजन्न, यौन स्वास्थ्य, बाल देखभाल क्रियाएं जीवन कौशल
शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित की जाती है। योजना के तहत विद्यालय
न जाने वाली किशोरियों को औपचारिक/ गैर- औपचारिक शिक्षा की मुख्य धारा की ओर
मोड़ना है। इस योजना को लागू करने के लिए गांव के आंगनबाड़ी केन्द्र को केन्द्र
बनाया गया है। पोषण प्रावधान के अतिरिक्त योजना के सभी प्रावधान केन्द्र की 100%
वित्तीय सहायता द्वारा लागू किये जाते हैं, जबकि पोषण प्रावधान के लिए 50%
केन्द्रीय सहायता राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को दी जाती है। योजना से प्रतिवर्ष
लगभग
1 करोड़ किशोरियों को लाभ मिलने की संभावना है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान :
प्रधानमंत्री ने हरियाणा के पानीपत से देश में विषम लैंगिक अनुपात की समस्या से
लड़ने के लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की। अभियान का
प्रारंभ हरियाणा से करने की वजह इसका देश में सबसे विषम
लिंगानुपात वाला राज्य होना है इस अभियान के माध्यम से लोगों को लड़कियों की सुरक्षा,
शिक्षा कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम और महिला सशक्तीकरण के प्रति जागरूक किया
जाएगा।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान :
यह अभियान भारत सरकार की एक नई पहल है, जिसके तहत प्रत्येक माह की निश्चित 9 तारीख
को सभी गर्भवति महिलाओं को व्यापक और गुणवत्तायुक्त प्रसवपूर्व देखभाल प्रदान करना
सुनिश्चित किया गया है। इस अभियान के तहत गर्भवति महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य
केन्द्रों उनकी गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही की अवधि के दौरान प्रसवपूर्ण
देखभाल सेवाओं का न्यूनतम पैकेज प्रदान किया जाएगा।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना :
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा |
मई, 2016 को श्रमिक दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से की गई। इस दिशा
में यह एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे के 5 करोड़ परिवारों
को मुफ्त में रसोई गैस कनेक्शन देना है। वर्तमान वित्त वर्ष में लगभग 1.5 करोड़
बीपीएल परिवारों को एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है। योजना के तहत
एलपीजी कनेक्शन परिवारों की महिलाओं के नाम पर दिया जाएगा, साथ ही गैस स्टोव और
सिलेंडर भरवाने की लागत को पूरा करने के लिए ईएमआई सुविधा भी प्रदान की जाएगी। इस
योजना को प्रभावी बनाने के लिए 'गिव-इट-अप' अभियान के प्रभाव से 1.13 करोड़ लोगों
द्वारा छोड़ी गई सब्सिडी से बचाए गए रुपयों का इस्तेमाल किया जाएगा।
डिजिटल जेन्डर एटलस : देश में लड़कियों
की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत स्कूली
शिक्षा और साक्षरता विभाग एवं भारत सरकार की संयुक्त पहल पर 'डिजिटल जेन्डर एटलस'
प्रस्तुत किया गया है।