इस सिद्धांत के प्रतिपादक डब्ल्यू. एम. थोम्पसन (1929) और फ्रेंक. डब्ल्यू. नोटेस्टीन (1945) हैं। इन्होंने यूरोप, आस्ट्रेलिया और अमेरिका में प्रजनन और मृत्यु-दर की प्रवृत्ति के अनुभवों के आधार पर यह सिद्धांत दिया। जनांकिकीविदों की नवीनतम सोच है कि जनसंख्या का विकास विभिन्न अवस्थाओं में होता है। प्रत्येक जनसंख्या को एक-एक करके इन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। इन जैसे-जैसे देश का आर्थिक विकास होता जाता है, लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठता जाता है, लोगों के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया जाने लगता है, वैसे-वैसे यहां की मृत्यु दर में कमी होती जाती है और जन्म दर लगभग यथावत् रहती है। परिणामस्वरूप जनसंख्या के आकार में परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। प्रो. सी. पी. ब्लेकर (C. P. Blacker) ने परिवर्तन की इन अवस्थाओं को मुख्यतः पांच भागों में विभाजित किया है। इनके अनुसार प्रत्येक देश की जनसंख्या को निम्न पांच अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है
1. सी. पी. ब्लेकर के अनुसार जनसंख्या परिवर्तन
की अवस्थाएं (Stages of Demographic Transition According to C. P. Blacker)
प्रथम अवस्था (First Stage)-प्रथम अवस्था में देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ तथा अर्द्धविकसित होता है। लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा उनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है और कृषि भी पिछड़ेपन की स्थिति में रहती है। उद्योग धन्धों का विकास नहीं हुआ होता है। कुछ थोड़े से उपभोक्ता वस्तु उद्योग ही रहते हैं। परिवहन, वाणिज्य, बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र बहुत पिछड़ी स्थिति में रहते हैं। इससे लोगों की आय का स्तर बहुत नीचा रहता है तथा देश में गरीबी व्याप्त रहती है। संयुक्त परिवार प्रणाली, अशिक्षा, बाल-विवाह तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों के कारण जन्म दर ऊंची रहती है। लोग अनपढ़, गंवार, बहमी तथा भाग्यवादी होते हैं उन्हें संतति निरोध के तरीकों से चिढ़ होती है। बच्चे भगवान की देन और किस्मत की बात समझे जाते हैं। बड़ा परिवार होना गर्व की बात समझी जाती है। सन्तानहीन मां-बाप को समाज में आदर की दृष्टि से नहीं देखा जाता। देश में जन्म दर में वृद्धि करने वाले सभी कारक मौजूद रहते हैं। ऊंची जन्म दर के साथ-ही-साथ मृत्यु दर भी ऊंची रहती है क्योंकि लोगों को घटिया स्तर का अपौष्टिक भोजन प्राप्त होता है, जिससे वे कुपोषण के शिकार रहते हैं, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव रहता है, तरह-तरह की बीमारियों, महामारी तथा प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार जनसंख्या को बनना पड़ता है। लोग गन्दे, स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक, सीलनयुक्त तथा रोशनदानहीन घरों में रहते हैं। परिणामस्वरूप रोगग्रस्त हो जाते हैं और उचित चिकित्सा सुविधा के अभाव में मर जाते हैं। शिशु मृत्यु दरें बहुत ऊंची रहती है। चूंकि इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही ऊँची रहती हैं अतः देश की जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है। इस प्रकार की स्थिति, अफ्रीका व एशिया महाद्वीप के पिछड़े देशों में देखने को मिलती है।
द्वितीय अवस्था (Second Stage)-दूसरी अवस्था में देश आर्थिक दृष्टि से कुछ विकास करने लगता है। कृषि की दशा में सुधार होने लगता है। कृषि में यन्त्रीकरण की जाने से उत्पादन बढ़ने लगता है। उद्योगों का विकास भी होना प्रारम्भ हो जाता है। पहले जो उपभोक्ता वस्तुएं विदेशों से आयात की जाती थीं वे अब देश में बनने लगती हैं। परिवहन के साधनों का विकास होने लगता है। श्रम की गतिशीलता बढ़ने लगती है। शिक्षा का विस्तार होने लगता है। चिकित्सा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं सुलभ होने लगती हैं। रहन-सहन का स्तर बढ़ने लगता है। इन सबका परिणाम यह होता है कि मृत्यु दर घटने लगती है। परन्तु सामाजिक सोच में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण जन्म दर में कोई कभी नहीं आती। लोग परिवार के आकार पर विशेष नियन्त्रण करने के लिए प्रयत्न नहीं करते क्योंकि परिवार नियोजन के विषय में धार्मिक अन्धविश्वास तथा सामाजिक निषेध मौजूद रहते हैं। मृत्यु दर में कमी होने और जन्म दर में परिवर्तन न होने से जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। परिणामस्वरूप जनसंख्या विस्फोट (population explosion) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या की ऊंची वृद्धि-दर जो हर वर्ष कुल आबादी में अच्छी वृद्धि कर देती है, के फलस्वरूप कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा रहता है। इस प्रकार जनसामान्य के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होता, लोग पिछड़े ही रहते हैं। सत्तर के दशक में भारत इस संक्रमण अवस्था से गुजर चुका है।
तृतीय अवस्था (Third Slage)- तृतीय अवस्था में औद्योगीकरण
पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उन्नत एवं आधुनिक प्रकार की कृषि होने लगती है। उद्योग
धन्धों की उन्नति के कारण नगरीकरण तेजी से होने लगता है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
होने लगती है लोगों का जीवन स्तर बढ़ता है। रोजगार हेतु ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों
की ओर पलायन होने लगता है। सामाजिक परिवर्तन तेजी से होता है। समाज में महिलाओं की
स्थिति में सुधार होता है। वे पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य में बराबर
का हिस्सा निभाने लगती हैं। शिक्षा में पर्याप्त होता है। लोगों का छोटे परिवार के
प्रति झुकाव होने लगता है। रूढ़िवादी, परम्परावादी, अन्धविश्वासी एवं पुराने रीति-रिवाजों
का लोग परित्याग करने लगते हैं। विभिन्न तरीकों से जनसंख्या को नियन्त्रित करने का
प्रयास किया जाने लगता है। पहले से कम मृत्यु दर और घट जाती हैं। जन्म दर में भी गिरावट
आती है। इससे जन्म दर एवं मृत्यु दर के बीच अन्तर कम हो जाता है। इससे जनसंख्या की
वृद्धि दर कम हो जाती है। इस अवस्था में भी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति कुछ हद तक विद्यमान
रहती है। इस समय भारत इसी अवस्था से गुजर रहा है।
चतुर्थ अवस्था (Fourth Stage)- इस अवस्था में देश उच्च विकसित
अवस्था में होता है। लोगों के रहन-सहन का स्तर काफी ऊंचा रहता है। पुरुष तथा स्त्री
देर से शादी करना पसन्द करते हैं। लोग स्वतः खुशी से परिवार नियोजन की विधियां अपनाते
हैं। इस अवस्था में जन्म क्रम एवं मृत्यु क्रम दोनों ही नियन्त्रित एवं नीचे रहते हैं
जिससे सन्तुलन बना रहता है और जनसंख्या के आकार में कोई अन्तर नहीं आता। जनसंख्या में
स्थिरता की स्थिति के बाद भविष्य में जनसंख्या घटने का ही डर रहता है। अतः जनसंख्या
में वृद्धि हेतु उपाय खोजे जाने लगते हैं। आज यूरोप के विकसित देशों में यह स्थिति
देखने को मिलती है।
पंचम अवस्था (Fifth Stage)-पांचवीं अवस्था आर्थिक विकास
की अन्तिम अवस्था है। इस अवस्था में मृत्यु की अपेक्षा उत्पत्ति कम होती है। फलस्वरूप
जनसंख्या का आकार घटता जाता है। देश में पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है। यह अवस्था
फ्रांस आदि अति विकसित देशों में देखने को मिलती है।
इन
अवस्थाओं को ऊपर के चित्र में प्रदर्शित किया गया है। सीधी रेखा द्वारा मृत्यु दर तथा
बिन्दु रेखा द्वारा जन्म दर को प्रदर्शित किया गया है। प्रथम अवस्था में जन्म दर तथा
मृत्यु दर दोनों ही ऊंची रहने के कारण जनसंख्या में लगभग स्थिरता की दशा में रहती है।
जनसंख्या में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। दूसरी अवस्था में मृत्यु दर बहुत तेजी
से गिरती है परन्तु जन्म दर लगभग स्थिर रहती है जिससे दोनों के मध्य तेजी से अन्तर
बढ़ता है और जनसंख्या विस्फोट की स्थिति आ जाती है। तीसरी अवस्था में मृत्यु दर के
साथ जन्म दर में भी कभी आने लगती है। परन्तु दोनों में पर्याप्त अन्तर रहने के कारण
जनसंख्या विस्फोट की स्थिति बनी रहती है। चौथी अवस्था में जन्म एवं मृत्यु दर दोनों
गिरती हैं एक स्थान पर दोनों समान हो जाती हैं। पांचवीं अवस्था में पहुंचने पर स्थिति
उलट जाती है। जन्म दर की अपेक्षा मृत्यू दर अधिक हो जाती है परिणामस्वरूप कुल जनसंख्या
के कार्यशील जनसंख्या घटने लगती है। समाज में वृद्धों की संख्या में वृद्धि होने लगती
है। श्रम पूर्ति की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
2. थॉम्पसन, बोग तथा नोत्स्तीन का विचार (Views of Thompson, Bogue
and Notestein)
डब्ल्यू.
एस.थॉम्पसन (W. S. Thompson), एफ. डब्ल्यू. नोटेस्टीन (F. W. Notestcin) तथा योग
(Bogue) आदि जनांकिकीविदों का विचार है कि सी. पी. लेकी द्वारा बताई गयी पांच अवस्थाओं
में से आज केवल बीच की तीन अवस्थाएं ही पाई जाती हैं। उन लोगों ने ब्लेकर की प्रथम
एवं अन्तिम अवस्थाओं को असाधारण बताया। उनके अनुसार न तो जनसंख्या उच्च स्तर पर स्थिर
होती है और न ही धटती दर में होती है। इसका कारण यह है कि आज भी विश्व का कोई देश न
तो पूर्णरूपेण अविकसित है और न ही पूर्णरूपेण विकसित। विश्व के सभी देश आज अनियन्त्रित
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों को जानते हुए सजग हो रहे हैं। अब स्थिति ऐसी हो गयी
है कि सभी देशों में जन्म दर से मृत्यु दर कम हो गयी है। इस तरह उन लोगों ने जनांकिकीय
संक्रमण की तीन व्यावहारिक अवस्थाओं का उल्लेख किया है जो निम्नांकित हैं :
(1) प्रथम अवस्था या परिवर्तन से पूर्व की अवस्था (First Stage or
Pre-transitional Stage)-इस अवस्था जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों पर ही
नियन्त्रण नहीं रहता, फलतः जनसंख्या वृद्धि की सम्भावना बहुत अधिक रहती है। यह अवस्था
सी. पी. ब्लेकर की प्रथम अवस्था के बाद वाली अवस्था से मिलती-जुलती है।
(2) द्वितीय अवस्था या परिवर्तन की अवस्था (Second Stage or
Transitional Stage)- यह जनसंख्या वृद्धि की वह अवस्था है जिसमें जन्म
एवं मृत्यु दोनों ही दरों में कमी आने लगती है। इस अवस्था में मृत्यु दर में अधिक कमी
आती है। जबकि जन्म दर पहले धीमे घटती है फिर तेजी से घटने लगती है। यह प्रक्रिया तब
तक जारी रहती है जब तक कि देश विकास की तीसरी अवस्था में नहीं पहुंच जाता। इस अवस्था
में जनसंख्या में धीरे-धीरे वृद्धि होती रहती है। बोग ने इस अवस्था को तीन अन्य उपखण्डों
में विभाजित किया है यथा—पहली, मध्य तथा बाद की अवस्था।
(3) तृतीय अवस्था या परिवर्तन के बाद की अवस्था (Third Stage or
Post-transitional Stage)- यह अवस्था जनसंख्या वृद्धि की वह अवस्था है
जिसमें जन्म एवं मृत्यु दोनों ही दरों में कमी रहती है। लोग संतति निग्रह के तरीकों
से परिचित होते हैं तथा उनका प्रयोग जनसंख्या में सन्तुलन बनाए रखने के लिए किया जाता
है। जनसंख्या वृद्धि की दर या तो शून्य होती है या उसके आस-पास रहती है। लोगों का जीवन-स्तर
ऊंचा रहता है। यह अवस्था ब्लेकर द्वारा बताई गयी चौथी अवस्था के समान है।
3. लाण्ड्री का मत (Landry's Views)
लाण्ड्री
ने खाद्यान्न आपूर्ति एवं आर्थिक विकास के आधार पर जनांकिकी परिवर्तन को तीन अवस्थाओं
में विभाजित किया है। उनके द्वारा बताई गई ये अवस्थाएं इस प्रकार हैं :
1. प्राथमिक अवस्था (Primitive Stage)- यह
जनसंख्या परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमें जनसंख्या की मात्रा खाद्यान्नों की आपूर्ति
द्वारा निर्धारित होती है। लाण्ड्री का मत था कि यदि उपलब्ध खाद्यान्नों की मात्रा
पर्याप्त है तो मृत्यु दर में कमी रहेगी और यदि उपलब्ध खाद्यान्नों की मात्रा, पर्याप्त
नहीं है तो मृत्यु दर अधिक होगी। इस तरह, खाद्यान्न बढ़ने से जनसंख्या बढ़ती है और
खाद्यान्न घटने से जनसंख्या घट जाती है।
2. माध्यमिक अवस्था (Intermediate Stage)-इस
अवस्था के अन्तर्गत खाद्यान्न के स्थान पर आर्थिक विकास जनसंख्या की मात्रा को निर्धारित
करने लगता है। इस अवस्था में लोग उच्च जीवन-स्तर के प्रति सजग होने लगते हैं। लोग संतति
निरोधक उपायों को अपनाते हैं, देर से विवाह करते हैं। इससे जन्म दर में गिरावट आने
के साथ-साथ मृत्यु दर में भी गिरावट आती है।
3. आधुनिक युग (Modern Epoch)- यह जनसंख्या परिवर्तन की वह
अवस्था है जिसमें जनसंख्या न तो खाद्यान्न पूर्ति से प्रभावित होती है और न ही विकास
की दर से प्रभावित होती है। इस समय देश आर्थिक विकास की उत्कर्ष अवस्था में रहता है।
इस अवस्था में जन्म दर गिरने के कारण जनसंख्या वृद्धि में ह्रास प्रारम्भ हो जाता है।
4. कार्ल सैक्स का मत (Karl Sax's Views)
कार्ल
सैक्स ने जनसंख्या विकास की अवस्थाओं को चार भागों में विभाजित किया है जो इस प्रकार
हैं :
(1) प्रथम अवस्था (First Stage)- इस अवस्था में जन्म
एवं मृत्यु दोनों ही दरें ऊंची रहती हैं तथा जनसंख्या में लगभग स्थिरता की दशा विद्यमान
रहती है। यह अवस्था सामान्यतया आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में पाई जाती है।
(2) द्वितीय अवस्था (Second Stage)- इस
अवस्था में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि के फलस्वरूप मृत्यु दर में
गिरावट आने लगती है। परन्तु सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा में परिवर्तन
नहीं आने से जन्म दर लगभग समान बनी रहती है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में बहुत तेजी
से वृद्धि होती है। यह अवस्था विकासशील देशों में पायी जाती है।
(3) तृतीय अवस्था (Third Stage)- इस अवस्था में मृत्यु
दर घटकर अपने निम्नतम स्तर पर स्थिर होने लगती है और जन्म दर घटने के क्रम में रहती
है, जिसके फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि की गति द्वितीय अवस्था की अपेक्षा कम रहती है।
यह अवस्था उन देशों में पायी जाती है जहां विकास पर्याप्त मात्रा में हो चुका होता
है।
(4) चतुर्थ अवस्था (Fourth Stage)- यह जनांकिकीय परिवर्तन
की वह अवस्था होती है जहां जन्म एवं मृत्यु दर अपने निम्नतम स्तर पर होती है और लगभग
समान रहती है। जहां जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है उसमें कोई विशेष वृद्धि दृष्टिगोचर
नहीं होती। यह अवस्था विकसित देशों में पाई जाती है।
कार्ल सैक्स की इन अवस्थाओं को नीचे के चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है : सैक्स का विचार था कि मध्य की दोनों अवस्थाएं जनसंख्या विस्फोट की अवस्थाएं हैं। प्रथम तथा चतुर्थ अवस्थाएं साम्य की अवस्थाएं हैं। जनसंख्या एक अवस्था से दूसरी अवस्था में समान समय में पहुचना आवश्यक है।
एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुंचने में कितना
समय लगेगा इसके बारे में सैक्स मौन है।
5. डोनाल्ड ओलेन काउगिल का विचार (Donald Olen Cowgill's Views)
काउगिल
के अनुसार जनसंख्या का विकास चक्रीय ढंग से होता है। उन्होंने विकास की अवस्थाओं को
विकास चक्र (Growth Cycles) का नाम दिया। उन्होंने बताया कि जनसंख्या विकास की अवस्थाएं
एक के बाद एक क्रमशः चक्रीय क्रम में आती रहती हैं। ये अवस्थाएं इस प्रकार हैं :
(1) प्राथमिक या माल्थूसियन चक्र (Primitive or Malthusian Cycle)—यह अवस्था वह होती है जिसमें जनसंख्या का विकास माल्थस द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार होता है। इसमें जन्म दर तो ऊंची और लगभग स्थिर रहती है परन्तु मृत्यु दर में उतार-चढ़ाव देखा जाता है। ऐसा प्राकृतिक विपत्तियों के कारण होता है। इस तरह मृत्यु दर में उतार-चढ़ाव से जनसंख्या में उच्चावचन होते रहते हैं। जब फसल अच्छी रहती है तो मृत्यु दर घट जाती है। फसल नष्ट होने से अकाल के प्रभाव में मृत्यु दर पुनः बढ़ जाती है। इस तरह कृषि में चक्रीय उतार-चढ़ाव आने से जनसंख्या में भी उतार-चढ़ाव आता है। इस अवस्था को नीचे के चित्र में दर्शाया गया है।
(2) आधुनिक चक्र (Modern Cycle)-इस चक्र में जन्म एवं मृत्यु दोनों ही दरें गिरती हैं परन्तु मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक तेजी से गिरती है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है। जब दोनों दरों में समान रूप से गिरावट आती है तब जनसंख्या स्थिर हो जाती है। यह अवस्था जनसंख्या वृद्धि का संक्रमण काल है। इस अवस्था को नीचे के चित्र में दर्शाया गया है।
ऊपर
के चित्र में बिन्दु 'A' को 'उच्च स्थिरांक' (High Stationary) तथा 'B' को 'निम्न स्थिरांक'
(Low Stationary) बिन्दु कहा जाता है जहां जन्म एवं मृत्यु दरें बराबर होने के कारण
जनसंख्या स्थिर है। 'A' बिन्दु पर दोनों दरें ऊंची और बराबर हैं तथा B बिन्दु पर दोनों
घटते-घटते निम्न बिन्दु पर स्थिर हो गयी हैं।
(3) भावी-चक्र (Future Cycle)-इस चक्र में मृत्यु दर के निम्नतम स्तर पर स्थिर हो जाने तथा जन्म दर में उतार-चढ़ाव के कारण देश में बच्चों की संख्या अधिक होने लगती है। जिसे काउगिल ने बच्चों की बाढ़ (Baby boom) आना कहा है। परन्तु जब जन्म दर कम हो जाती है तब पुनः स्थिति सामान्य हो जाती है। इस अवस्था को नीचे के चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
(4) संभावित-चक्र (Probable Cycle)-काउगिल ने एक ऐसे संभावित चक्र की कल्पना की है जिसमें जन्म दर में वृद्धि मृत्यु दर की अपेक्षा अधिक होती है। ऐसी स्थिति में जनसंख्या में वृद्धि होती है। राबर्ट बी. वान्स (Robert B. Vance) के अनुसार काउगिल की यह अवस्था ‘जनांकिकीय इतिहास' में कभी भी देखने में नहीं आयी। इस अवस्था को नीचे के चित्र में दर्शाया गया है।
(5) दीर्घकालीन जनसंख्या चक्र (Population Cycle in the Long Run)- काउगिल के अनुसार दीर्घकालीन जनसंख्या चक्र की अवस्था के अन्तर्गत जनसंख्या में वृद्धि साधारणतया मृत्यु दर के कम होने पर अथवा जन्म दर में वृद्धि होने के कारण होती है। इसके विपरीत स्थिति में जनसंख्या में कमी आती है। दीर्घकालीन जनसंख्या चक्र का स्वरूप 'S' वक्र के आकार की तरह होता है। इसे नीचे के चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of the Theory
of Demographic Transition)
जनांकिकीय
संक्रमण सिद्धान्त की निम्न आधारों पर आलोचना की जाती है :
(1)
यह सिद्धान्त जनसंख्या परिवर्तन की विभिन्न अवस्थाओं में लगने वाले समय के बारे में
कोई प्रकाश नहीं डालता।
(2)
यह सिद्धान्त आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं तथा जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाओं
के बीच किसी सम्बन्ध की चर्चा नहीं करता जबकि लीबिन्सटीन का विचार है कि आर्थिक विकास
की अवस्थाएं एवं जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाएं साथ-साथ चलती हैं।
(3)
आर्थिक विकास एवं जनांकिकीय संक्रमण दोनों एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। आर्थिक विकास
के ही फलस्वरूप जनसंख्या संक्रमण नहीं होता बल्कि जनसंख्या संक्रमण से भी आर्थिक विकास
होता है।
(4)
प्रथम अवस्था में जन्म दर ऊंचे स्तर पर स्थिर रहती है परन्तु मृत्यु दर में उतार-चढ़ाव
होते रहते हैं अतः इस अवस्था में भी जनसंख्या परिवर्तनशील होती है।
(5)
इस सिद्धान्त की पुष्टि आंकड़ों के आधार पर नहीं की जा सकती है अतः यह सांख्यिकी विश्लेषण
के लिए अनुपयुक्त है।
संक्रमण सिद्धान्त का मूल्यांकन (Evaluation of Transition Theory)
जनसंख्या
के संक्रमण सिद्धान्त की विवेचना एवं विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि यह सिद्धान्त
जनसंख्या वृद्धि का एक सर्वमान्य व्यावहारिक, यथार्थवादी एवं वैज्ञानिक सिद्धान्त है।
यह सिद्धान्त उन सब साधनों (सामाजिक, आर्थिक, संस्थागत एवं जैविकीय) पर विचार करता
है जो जनसंख्या वृद्धि दर को प्रभावित करते हैं। यह सिद्धान्त माल्थस के सिद्धान्त
से श्रेष्ठ है क्योंकि यह खाद्यपूर्ति पर जोर नहीं देता और न ही निराशावादी दृष्टिकोण
अपनाता है। यह अनुकूलतम सिद्धान्त से भी श्रेष्ठ है जो जनसंख्या वृद्धि के लिए एक मात्र
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि पर बल देता है तथा जनसंख्या को प्रभावित करने वाले अन्य
साधनों की उपेक्षा कर जाता है। जैविकीय सिद्धान्त भी एकांगी है। जनसंख्या सिद्धान्तों
में जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त इसलिए सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह यूरोप के विकसित
देशों की जनसंख्या वृद्धि की वास्तविक प्रवृत्तियों पर आधारित है। यह सिद्धान्त विकसित
देशों के साथ-साथ विकासशील देशों पर समान रूप से लागू होता है। अफ्रीका महाद्वीप के
कुछ बहुत पिछड़े देश अभी भी प्रथम अवस्था में हैं तथा विश्व के अन्य सभी विकासशील देश
दूसरी अवस्था में हैं। यूरोप के लगभग सभी देश प्रथम दो अवस्थाओं से गुजर कर तीसरी अवस्था
एवं चौथी अवस्था में पहुंच चुके हैं। इस तरह यह सिद्धान्त व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया
में लागू होता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक जनांकिकीय माडलों
(Economic Demographic Models) का विकास किया है जिससे विकासशील देश अन्तिम अवस्था
में पहुंचे तथा आत्म निर्भर बन सकें। इसी तरह का एक माडल कोल-हूवर माडल
(Coole-Hoover Model) भारत के लिए बनाया गया है, जो दूसरे विकासशील देशों पर भी लागू
किया जा रहा है।
जनांकिकीय
संक्रमण सिद्धान्त की विकासशील देशों के लिए सार्थकता पर कुछ विद्वानों ने प्रश्न चिह्न
भी लगाए हैं और यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों
से विकसित देश गुजर चुके हैं वे आज के विकासशील देशों की परिस्थितियों से भिन्न हैं।
उनका कहना है कि विकसित देशों में मृत्यु दर में कमी धीरे-धीरे व दीर्घकाल में आयी
जबकि आधुनिक विकासशील देशों में मृत्यु दर में कमी शीघ्रता से आयी। विकसित देशों में
मृत्यु में कमी विकास के कारण आयी जबकि विकासशील देशों में मृत्यु दर की कमी का विकास
से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। विकसित देशों में मृत्यु दर में कमी आने के साथ-साथ
ही जन्म दर में भी कमी आयी परन्तु विकासशील देशों में मृत्यु दर में कमी आने के बहुत
वर्षों बाद भी जन्म दर में कोई विशेष कमी नहीं आ पाई है। विकासशील देशों में जनसंख्या
का जितना अधिक घनत्व है उतना विकसित देशों में नहीं था। विकसित देश अपने प्रारम्भिक
चरण में उतने गरीब नहीं थे जितने कि आज के विकासशील देश हैं। अठारहवीं शताब्दी में
अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के जितने अवसर विद्यमान थे उतने बीसवीं शताब्दी में नहीं। आज
कोई देश अपनी जनसंख्या की समस्या के समाधान हेतु दूसरे देश की भूमि का सहारा नहीं लेता।
इस तरह यह कहा जा सकता है कि यह अनिवार्य नहीं है कि ऐसा प्रत्येक विकासशील देश जनसंख्या
संक्रमण की उन्हीं अवस्थाओं से गुजरेगा जिससे विकसित देश गुजर चुके हैं।
फिर भी यह कहा जा सकता है कि जनसंख्या विकास के इस सिद्धान्त को अर्थशास्त्रियों एवं जनसंख्याशास्त्रियों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। यह सरल, तर्कसंगत एवं जनसंख्या सिद्धान्तों में सर्वाधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला है।