व्यष्टिगत (सूक्ष्म) अर्थशास्त्र (Micro Economics)
माइक्रो शब्द ग्रीक भाषा के ‘मिक्रोस’
(Mikros) शब्द से बना है जिसका अर्थ
छोटा (Small)
होता है। इस प्रकार माइक्रो छोटी इकाइयों से सम्बन्धित है ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किसी अर्थव्यवस्था की भिन्न- भिन्न छोटी-छोटी इकाइयों
की आर्थिक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है । दूसरे शब्दों में व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशेष व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों, उद्योगों, विशेष
श्रमिक आदि का विश्लेषण किया जाता है । उदाहरण के लिए- एक
उपभोक्ता अपनी आय तथा व्यय में किस प्रकार सन्तुलन स्थापित करता है, एक उत्पादक अपनी फैक्ट्री में उत्पादन का प्रबन्ध किस
प्रकार करता । किसी एक वस्तु जैसे- गेहूँ या घी की कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है ? आदि ऐसी अनेक आर्थिक समस्याएँ हैं जिनका
अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है ।
प्रो बोल्डिंग(K.E.Boulding) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'आर्थिक
विश्लेषण' में लिखा है कि "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत
विशेष फर्मों, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आय, विशेष उद्योगों एवं विशेष वस्तुओं का
अध्ययन किया जाता है । (Micro economics is the study of
particular firms, particular households, individual prices, wages, incomes, individual
industries and particular commodities.)
हैण्डर्सन और क्वाण्ट (Henderson and
Quandt) के शब्दों में, "व्यष्टिगत, अर्थशास्त्र
व्यक्तियों और व्यक्तियों के सुपरिभाषित समूहों के आर्थिक कार्यों का अध्ययन है । (Micro
economics is the study of economic actions of individuals and well defined
group of individuals.)
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध
किसी एक इकाई से होता है, सभी
इकाइयों से नहीं । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में भी यद्यपि योगों का अध्ययन किया जाता
है किन्तु ये योग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित नहीं होते । संक्षेप में, जैसा विलियम फैलनर ने कहा है कि "व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत निर्णय निर्माता इकाइयों से है ।"
संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र
आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा है जो विशिष्ट आर्थिक इकाइयों तथा अर्थव्यवस्था के
छोटे भागों, उनके व्यवहार तथा
उनके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करती है । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कीमत
सिद्धान्त (Price Theory) भी
कहा जाता है । व्यष्टिगत आर्थिक इकाइयों और अर्थव्यवस्था के छोटे अंगों को 'सूक्ष्म चरो (Micro- variables) या सूक्ष्म मात्राएँ ' (Micro - quantities) भी कहते है । अत : व्यष्टिगत अर्थशास्त्र सूक्ष्म मात्राओं
व सूक्ष्म चरों के व्यवहार का अध्ययन करता है ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की विशेषताएँ (Characteristics of Micro Economics)
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित
हैं :-
(1) व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन (Study of Individual Units):- व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत
उत्पादन और व्यक्तिगत उपभोग की व्याख्या में सहायता करता है । इसका सम्बन्ध समूहों
या व्यापारिक स्थितियों से नहीं है ।
(2) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था
पर प्रभाव का अभाव (Absence of Effect on Whole Economy):- व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में एक इकाई का रूप इतना छोटा होता
है कि इसके द्वारा किये गये परिवर्तन का सम्पूर्ण व्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव
नहीं पड़ता ।
(3) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को स्थिर मान लेना (Assumption of Stationary Economy):- अर्थशास्त्र में किसी
एक इकाई के आर्थिक व्यवहार की जाँच और विश्लेषण करते समय देश की सम्पूर्ण
अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित बातों जैसे; राष्ट्रीय आय, कीमतों का स्तर, देश का कुल पूँजी विनियोग, कुल बचत तथा सरकार की
आर्थिक नीति आदि को स्थिर मान लिया जाता है ।
(4) कीमत सिद्धान्त (Price Theory) :- कुछ अर्थशास्त्री इसे
कीमत सिद्धान्त का नाम देकर बताते हैं कि इसके अन्तर्गत माँग एवं पूर्ति द्वारा
विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निर्धारित किये जाते हैं ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के प्रकार (Kinds or Types of Micro Economics)
व्यक्तिगत अर्थशास्त्र को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित
किया जा सकता है:-
(1) व्यष्टिगत स्थैतिक
(Micro Statics) :- व्यष्टिगत स्थैतिक यह
मानते हुए कि समय विशेष में साम्य की स्थिति रहती है, एक दिये हुए समय पर व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों का साम्य
की स्थिति में अध्ययन करता है । उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत एक बाजार में उस वस्तु की माँग और पूर्ति के साम्य
द्वारा निर्धारित होती है । व्यष्टिगत स्थैतिक दिये हुए समय पर इस वस्तु की साम्य
या सन्तुलन कीमत का अध्ययन करेगी और पूर्ति की शक्तियों को स्थिर मान लेगी ।
संक्षेप में, व्यष्टिगत स्थैतिक केवल विशिष्ट चरों के
सम्बन्ध के स्थिर या शान्त चित्रों का अध्ययन करती है । यह विधि आंशिक साम्य
विश्लेषण से सम्बन्धित होती है ।
(2) तुलनात्मक व्यष्टिगत स्थैतिक (Comparative Micro Statics) :- तुलनात्मक
व्यष्टिगत स्थैतिक व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों की संतुलन स्थितियों की तुलना करती
है । विश्लेषण की यह विधि सन्तुलन की दो स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करती है
परन्तु इस तथ्य पर प्रकाश नहीं डालती कि व्यष्टिगत सन्तुलन की एक स्थिति से दूसरी
स्थिति तक किस प्रकार पहुँचा गया है ।
(3) व्यष्टिगत प्रावैगिक (Micro Dynamic):- व्यष्टिगत प्रावैगिक
विश्लेषण उस समायोजन की प्रक्रिया का अध्ययन करती है जिसके द्वारा विशिष्ट चरों के
सम्बन्धों की एक सन्तुलन स्थिति से दूसरी सन्तुलन की स्थिति तक पहुँचा जाता है ।
उदाहरण के लिए- एक बाजार में एक वस्तु की कीमत माँग और पूर्ति के सन्तुलन
का परिणाम है । यदि मांग में वृद्धि हो जाती तो उस वस्तु के बाजार में असन्तुलन
उत्पन्न हो जायेगा और असन्तुलनों की एक श्रृंखला द्वारा उस वस्तु के बाजार में
कीमत की अन्तिम सन्तुलन स्थिति में पहुँचा जायेगा । व्यष्टिगत प्रावैगिक समायोजन
की इसी प्रक्रिया का अध्ययन करता है अर्थात् अन्तिम सन्तुलन की स्थिति तक पहुँचने
के लिए असन्तुलनों की श्रृंखलाओं का अध्ययन करता है ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Micro Economics)
ऐक्ले (Ackley) के शब्दों में, “कीमत और मूल्य सिद्धान्त, परिवार, फर्म एवं उद्योग का सिद्धान्त, अधिकतम उत्पादन और कल्याण सिद्धान्त व्यष्टिगत अर्थशास्त्र
के क्षेत्र हैं ।”
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत निहित अवयव हैं:-
(I) वस्तुओं की कीमत निर्धारण (Product Pricing):-
इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित दो बातों का अध्ययन
किया जाता है :-
(A) उपभोक्ता के सन्तुलन निर्धारण
की समस्या (Problem of Determination of
Consumers Equilibrium):- उपभोक्ता सन्तुलन की स्थिति में वहाँ होगा जहाँ वह अपने
सीमित साधनों को विभिन्न आवश्यकताओं के बीच इस प्रकार बाँटे जिससे उसे मिलने वाली
सन्तुष्टि अधिकतम हो (मार्शल) या वह उच्चतम तटस्थता वक्र पर हो (हिक्स) । न केवल
उपभोक्ता के सन्दर्भ में सीमित साधनों के अनुकूलतम आवंटन का अध्ययन व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है बल्कि इसी का अध्ययन उत्पादन के सन्दर्भ में
किया जाता है ।
(B) वस्तुओं की कीमत निर्धारण (Price Determination of Product):- इसके अन्तर्गत यह अध्ययन
करते हैं कि विभिन्न वस्तुओं, जैसे- चावल, चाय, दूध, घी, पंखे, स्कूटर, हजारों
अन्य वस्तुओं की सापेक्ष कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती हैं ।
(II) साधन की
कीमत निर्धारण या वितरण का सिद्धान्त (Factor Pricing):- इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि लगान (भूमि की
उपयोगिता की कीमत), ब्याज
(पूँजी के उपयोग की कीमत), लाभ (साहसी
का पारितोषिक) का निर्धारण किस प्रकार होता है । चूँकि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में
यह अध्ययन किया जाता है कि किसी वस्तु या सेवा की कीमत किस प्रकार निर्धारित की
जाती है,
इसलिए इसे कीमत सिद्धान्त भी कहते हैं ।
(III) साधनों के आबंटन की कुशलता (Efficiency of Allocation of Resources):– व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह भी अध्ययन करता है कि
अर्थव्यवस्था में कितनी कुशलता के साथ विभिन्न साधनों का विभाजन व्यक्तिगत
उपभोक्ताओं और उत्पादकों के मध्य होता है । साधनों के आबंटन में कुशलता को तब
प्राप्त किया जाता है जब विभिन्न साधनों का आबंटन इस प्रकार से किया जाये कि
व्यक्तियों को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो। इस आर्थिक कुशलता में तीन कुशलताएँ
सम्मिलित होती हैं- उपभोग में कुशलता, उत्पादन में कुशलता और उपभोग एवं उत्पादन में परिपूर्ण
कुशलता । उपभोग और उत्पादन कुशलताओं का सम्बन्ध व्यक्तिगत कल्याण से होता है तथा
परिपूर्ण कुशलता का सम्बन्ध सामाजिक कल्याण से है । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र से यह
पता चलता है कि इन कुशलताओं को किन दशाओं में प्राप्त किया जा सकता है ।
वस्तुत:
आर्थिक कुशलता की समस्या सैद्धान्तिक कल्याणवादी अर्थशास्त्र की विषय सामग्री है
जो व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है । प्रो. लर्नर ने उपयुक्त ही
लिखा है,
“व्यष्टिगत अर्थशास्त्र कुशलताओं की दशाओं को
बताता है और उनको प्राप्त करने के सम्बन्ध में सुझाव देता है ।”
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का महत्व और प्रयोग (Significance and Uses of Micro Economics)
अर्थशास्त्र में व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक और
व्यावहारिक दोनों ही महत्व है जैसा कि निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट है :
(1) अर्थव्यवस्था की कार्य प्रणाली को समझना (To Understand the Working of the Economy):- प्रो. वाट्सन के शब्दों में, "व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के विभिन्न उपयोग हैं इनमें सबसे
महत्वपूर्ण तो यह है कि इसमें हम स्वतन्त्र निजी उद्यम अर्थशास्त्र के कार्य-चालन को
भली प्रकार से समझ सकते हैं ।"
चूँकि
व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ ही परस्पर मिलकर एक अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं और
उन इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव भी पड़ता
है,
इसलिए सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह आवश्यक हो
जाता है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयों का व्यक्तिगत रूप से विश्लेषण किया जाये ।
(2) आर्थिक नीतियों का सुझाव (Suggestion for Economic Policies):- व्यष्टिगत आर्थिक सिद्धान्त केवल अर्थव्यवस्था के वास्तविक
कार्य-चालन का ही वर्णन नहीं करता बल्कि इसका कार्य आदर्शवादी भी है क्योंकि यह उन
नीतियों का भी सुझाव देता है जिससे व्यक्तियों के कल्याण या सन्तुष्टि को अधिकतम
करने के लिए आर्थिक व्यवस्था में अकार्यकुशलता को दूर किया जा सके ।
यह
राज्य की आर्थिक नीतियों का मूल्यांकन करने के लिए विश्लेषणात्मक उपकरण भी प्रदान
करता है । कीमत या मूल्य प्रणाली एक उपकरण है जो कार्य में सहायता देता है ।
(3) आर्थिक
कल्याण (Economic Welfare):- व्यष्टि अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक कल्याण की दशाओं का
ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । यह आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (Normative
Economics) का मुख्य विषय है ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र इस बात का सुझाव देता है कि आर्थिक कल्याण के आदर्श को कैसे
प्राप्त किया जा सकता है ।
(4) प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय (Managerial Decision):- व्यावसायिक फर्मे
व्यष्टि अर्थशास्त्र का प्रयोग प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय लेने के लिए करती है इस
सम्बन्ध में लागतों (Costs) तथा
माँग के विश्लेषण द्वारा बनायी गयी नीतियों का बहुत महत्व है ।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोग (Helpful in International Trade):- व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं, जैसे- व्यापार-शेष असन्तुलन, विदेशी विनिमय दर आदि को समझा जा सकता।
(6) राजस्व में उपयोग (Use in Public Finance):- व्यष्टिगत आर्थिक
विश्लेषण की सहायता से ही उन घटकों का विश्लेषण किया जाता है जो उत्पादकों तथा
विक्रेताओं या क्रेताओं के मध्य किसी वस्तु पर लगे कर के भार के वितरण को बताते
हैं । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को एक कर के कल्याणकारी परिणामों की व्याख्या करने
में उपयोग किया जाता है । यह कर साधनों को अपने अनुकूलतम स्तर से पुनर्विभाजन की
ओर ले जाता है । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह समझाने में सहायता करता है कि सामाजिक
कल्याण की दृष्टि से एक आय कर अच्छा है या बिक्री कर । आय कर की तुलना में बिक्री
कर सामाजिक कल्याण में कमी लाता है ।
(7) व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक निर्णय में सहायक (Useful for Decision making for Individual Units) :– व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों
आदि को अपने-अपने आर्थिक व्यवहार के सम्बन्ध में उचित निर्णय लेने की क्षमता
उपलब्ध कराता है, जैसे-
प्रत्येक उपभोक्ता सीमित साधनों से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है । आज
तो प्रत्येक फर्म लागत माँग विश्लेषण (Demand Cost Analysis) तथा रेखीय प्रोग्रामिंग (Linear Programming) का उपयोग करके अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करती है
। इन सब बातों का अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र में ही सम्भव है ।
(8) अन्य उपयोग
व महत्व (Other Uses and Significance):-
(A) व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यापार के
प्रबन्धकों को वर्तमान साधनों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होता है ।
वह इसी की सहायता से उपभोक्ता की माँग को जानने और अपनी वस्तु की लागतों का आकलन
करने में समर्थ होता है ।
(B)
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का उपयोग साधनों के अनुकूलतम उपयोग और स्थिरता के साथ विकास
प्राप्त करने के लिए किया जाता है ।
(C) यह
व्यक्तिगत आय, व्यय, बचत आदि के स्रोतों और स्वभाव पर प्रकाश डालता है जो
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विश्लेषण में भी सहायक होता है ।
(D)
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र हमें सप्रतिबन्ध भविष्यवाणियों में सहायता देता है ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के दोष एवं सीमाएँ (Defects and Limitations of Micro Economics)
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता
आया है और इसे आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण शाखा के रूप में
स्वीकार किया जाता रहा है किन्तु इसके निम्नलिखित दोष या सीमाएँ हैं :
(1) अर्थव्यवस्था का अधूरा चित्र (Partial Picture of Economy):- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र
में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है । इसमें सम्पूर्ण
अर्थव्यवस्था को स्थान नहीं दिया जाता है । फलतः देश व विश्व की अर्थव्यवस्था का
सही-सही चित्र नहीं मिल पाता । अन्य शब्दों में, व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र समष्टिगत दृष्टिकोण न अपनाकर संकुचित दृष्टिकोण अपनाता है ।
(2) अवास्तविक
मान्यताओं पर आधारित (Unrealistic Assumptions):- व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण कुछ ऐसी अवास्तविक मान्यताओं पर
आधारित है जो वास्तविक जीवन में कदापि देखने में नहीं आतीं, जैसे- पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता इत्यादि ।
(3) कुछ विशेष
प्रकार की समस्याओं के लिए अनुपयुक्त (Unuseful for
Certain Problems):- कुछ आर्थिक समस्याओं का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के
अन्तर्गत नहीं किया जा सकता है, जैसे- रोजगार, प्रशुल्क नीति, आय व साधन का वितरण, मौद्रिक-नीति, औद्योगीकरण, आयात-निर्यात तथा आर्थिक नियोजन से सम्बन्धित समस्याएँ । इस
प्रकार धीरे-धीरे व्यष्टिगत अर्थशास्त्र, वर्तमान आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए अनुपयुक्त सिद्ध
होता जा रहा है ।
(4) निष्कर्ष
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से ठीक नहीं होते (Conclusion not True for Whole Economy):- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अध्ययन पर आधारित निष्कर्ष एवं
निर्णय किसी व्यक्ति विशेष के लिए तो ठीक हो सकते हैं लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि ये
समस्त अर्थव्यवस्था के लिए भी सही हो । उदाहरण के लिए- व्यक्तिगत
दृष्टि से बचत करना आवश्यक उचित व वांछनीय है, परन्तु राष्ट्रीय दृष्टि से सामूहिक रूप से बचत अनुचित है ।
समष्टिगत अथवा व्यापक अर्थशास्त्र (Macro Economics)
'मेक्रो' (Macro) ग्रीक भाषा के 'मेक्रोस' (Makros) से बना है जिसका अर्थ है - बड़ा । इस प्रकार मेक्रो बड़े
समूह से सम्बन्धित है । अतः समष्टिगत अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से
सम्बन्धित समूहों, जैसे-
राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय बचत, राष्ट्रीय विनियोग, कुल रोजगार, कुल उत्पादन व सामान्य कीमत स्तर आदि का अध्ययन किया जाता है ।
समष्टिगत अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ (Definitions of Macro Economics)
(1) प्रो.
बोल्डिंग के अनुसार, “समष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध वैयक्तिक मात्राओं से नहीं होता, किन्तु इन मात्राओं के समूहों से होता है । इसका सम्बन्ध वैयक्तिक आय से
नहीं बल्कि राष्ट्रीय आय से होता है, वैयक्तिक मूल्यों से नहीं परन्तु मूल्य स्तर से होता है, वैयक्तिक उत्पादनों से नहीं किन्तु राष्ट्रीय उत्पादन से
होता है ।” (Macro Economics deals not with individual quantities as
such but with aggregates of these quantities; not with individual income but
with the national income; not with individual prices but with the prices levels;
not with individual outputs but with the national output. - K. E. Boulding)
( 2 ) इसी
प्रकार प्रो. गार्डनर ऐक्ले (Gardner Ackley) के शब्दों में, “व्यापक या समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक घटनाओं पर
व्यापक रूप में विचार करता है । इसका सम्बन्ध आर्थिक जीवन
के सभी पहलुओं से होता है । यह आर्थिक अनुभव के 'हाथी' के
कुल आकार एवं शक्ल तथा क्रियाओं का अध्ययन करता है, न कि उन पेड़ों का जो उस वन का निर्माण करते हैं । (Macro
Economics deals with economic affairs in the large. It concerns the overall
dimensions of economic life. It looks at the total size and shape and
functioning of the 'elephant' of economic experience, rather than the working
or articulation or dimensions of the individual parts. To alter the metaphor,
it studies the character of the forest, independently of the trees which
compose it. - Gardner
Ackley)
प्रो.
ऐक्ले ने व्यापक अर्थशास्त्र की तुलना एक वन से की है जिसका निर्माण विभिन्न
व्यक्तिगत इकाइयों या वृक्षों से होता है परन्तु व्यापक अर्थशास्त्र में उन
वृक्षों रूपी इकाइयों का व्यक्तिगत रूपों से अध्ययन नहीं किया जाता बल्कि सामूहिक
रूप (सम्पूर्ण वन) का अध्ययन किया जाता है । सरल शब्दों में, व्यापक अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था
का अथवा उससे सम्बन्धित बड़े योगों (Aggregates) एवं औसतों (Averages) का अध्ययन करता है ।
समष्टिगत अर्थशास्त्र की विशेषताएँ (Characteristics of Macro Economics)
उपर्युक्त
परिभाषाओं के आधार पर समष्टिगत अर्थशास्त्र की निम्नलिखित विशेषताएँ बतायी जा सकती
हैं :
(1) परिवर्तनशील समष्टि इकाइयाँ (Variable Macro Units):- समष्टिगत अर्थशास्त्र
में समष्टि इकाइयों, जैसे- राष्ट्रीय
आय, कुल उत्पादन, कुल रोजगार, सामान्य कीमत स्तर आदि को परिवर्तनशील माना जाता है ।
(2) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित (Related to Whole Economy):- समष्टिगत अर्थशास्त्र
में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित नीतियों का अध्ययन किया जाता है । इसके
साथ-साथ इन समष्टिगत नीतियों का प्रभाव किसी एक व्यक्तिगत इकाई पर नहीं देखा जाता
बल्कि सम्पूर्ण समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण ही समष्टिगत अर्थशास्त्र के
अन्तर्गत किया जाता है ।
(3) परस्पर निर्भरता (Inter-dependence):- व्यष्टिगत साम्य स्तर
के परिवर्तन का प्रभाव अन्य इकाइयों पर नहीं पड़ता, जबकि समष्टिगत मात्राएँ परस्पर इतनी सम्बद्ध होती है कि एक
में परिवर्तन करने पर अन्य मात्राओं के साम्य स्तर में भी परिवर्तन होंगे ।
उदाहरणार्थ- यदि एक देश अपने विनियोग को बढ़ाता है तो उसके गुणक प्रभाव
से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप कुल रोजगार, उपभोग, विदेशी व्यापार आदि में भी गुणक प्रभाव से परिवर्तन होगा ।
समष्टिगत अर्थशास्त्र की विषय सामग्री (Subject-matter of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र
का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है । इसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के बड़े समूहों, योगों व औसतों का अध्ययन किया जाता है । इसके अन्तर्गत कुल
उत्पादन,
राष्ट्रीय आय तथा रोजगार की स्थिति, सामान्य मूल्य-स्तर, मौद्रिक तथा बैंकिंग समस्याएँ, अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार, विदेशी विनिमय, राजस्व तथा आर्थिक विकास सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता
है । संक्षेप में, समष्टिगत
अर्थशास्त्र के निम्नलिखित पहलू हैं:
(1) आय, उत्पादन तथा रोजगार का सिद्धान्त (Theory of Income, Output and Employment):- इस सिद्धान्त के अन्तर्गत उपभोग क्रिया व विनियोग क्रिया के सिद्धान्त आते
हैं । व्यापार चक्र का सिद्धान्त भी इसी में शामिल किया जाता है ।
(2) सामान्य कीमत स्तर का सिद्धान्त (Theory of General Price Level):- समष्टि अर्थशास्त्र
में मुद्रा स्फीति (Inflation) अर्थात् कीमतों में होने वाली सामान्य वृद्धि तथा मुद्रा
विस्फीति (Deflation) अर्थात्
कीमतों में होने वाली सामान्य कमी से सम्बन्धित समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता
है ।
(3) आर्थिक विकास का सिद्धान्त (Theory of Economic Growth):- समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक विकास अर्थात् प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है । अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक विकास का अध्ययन किया जाता है । सरकार की राजस्व तथा मौद्रिक नीतियों का अध्ययन भी किया जाता है ।
(4) वितरण का समष्टिगत सिद्धान्त (Macro Theory of Distribution):- समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के वितरण से समष्टि सिद्धान्त का भी अध्ययन किया जाता है । इस सिद्धान्त से ज्ञात होता है कि राष्ट्रीय आय में उत्पादन के विभिन्न साधनों का हिस्सा किस प्रकार निर्धारित होता है अर्थात् मजदूरों को कितना भाग प्राप्त होता है तथा उद्यमियों तथा भूमिपतियों को कितना भाग प्राप्त होता है, इसका सम्बन्ध आय के असमान वितरण से भी है ।
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र और समष्टिगत अर्थशास्त्र में अन्तर (Distinction between Micro and Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र के विश्लेषण के प्रकार (Kinds of Macro Economics Analysis)
(1) व्यापक
अथवा समष्टि स्थैतिक (Macro Static):- इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन साम्य
अथवा स्थायी स्थिति में किया जाता है परन्तु इसमें यह बताने का प्रयत्न नहीं किया
जाता है कि आर्थिक दशा उस बिन्दु विशेष अथवा साम्य पर किस प्रकार पहुंची है ।
वस्तुतः यह तो साम्य अध्ययन है । आर्थिक संसार में परिवर्तन होता रहता है और
विभिन्न यौगिक (Aggregates) अपनी क्रिया या प्रतिक्रिया द्वारा नये-नये सन्तुलन स्थापित
करते रहते हैं । इन विभिन्न सन्तुलन स्थितियों का अध्ययन ही समष्टि स्थैतिक
विश्लेषण कहलाता है ।
(2) तुलनात्मक समष्टि स्थैतिक (Comparative Macro Static):- आर्थिक व्यवस्था में
सदैव परिवर्तन होते रहते हैं, परिणामतः वह कभी स्थिर नहीं रहती । अर्थव्यवस्था में इन
परिवर्तनों के कारण नये सन्तुलन बिन्दु स्थापित होते हैं कभी एक सतह पर तो कभी
दूसरी सतह पर सन्तुलन स्थापित होता रहता है । तुलनात्मक समष्टि स्थैतिक इन विभिन्न
सन्तुलन बिन्दुओं का तुलनात्मक अध्ययन करता है । संक्षेप में, इस अध्ययन प्रणाली में हम सन्तुलन की दो अलग-अलग स्थितियों
में एक-दूसरे से तुलना करते हैं । इसमें परिवर्तन के उस पथ का अध्ययन नहीं किया
जाता जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था एक सन्तुलन स्थिति से हटकर दूसरी सन्तुलन स्थिति
को प्राप्त होती है ।
(3) समष्टि प्रावैगिक (Macro Dynamic):- इसका विकास
अर्थशास्त्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है । टिनवर्जन, हिक्स, बोल्डिंग, फ्रिश्च, सैम्युलसन, रॉबर्ट्सन तथा हैरोड आदि प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों का
समष्टि प्रावैगिक विश्लेषण के विकास में भारी योगदान रहा है । इसके अन्तर्गत
अर्थव्यवस्था के विभिन्न घटकों, जैसे-
उपभोग, विनियोग
आदि में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण किया जाता है और उनके समायोजनों की भी व्याख्या
की जाती है । संक्षेप में, समष्टि
प्रावैगिक की मुख्य बातें इस प्रकार हैं :-
(i) यह विश्लेषण सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के परिवर्तनों के
चलचित्र का दृश्य प्रस्तुत करता है ।
(ii) इसके
अन्तर्गत आर्थिक घटकों के परिवर्तनों के असमान गुणों का अध्ययन किया जाता है ।
(iii) इसके
अन्तर्गत समायोजन की उस प्रक्रिया का भी विश्लेषण किया जाता है जिसके द्वारा
अर्थव्यवस्था नवीन सन्तुलन की अर्थव्यवस्था को प्राप्त होती है ।
(iv) इसके
अन्तर्गत आर्थिक घटकों में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करके कारण को
परिणाम से पृथक् किया जाता है ।
दोष व सीमाएँ (Demerits and Limitations)
यद्यपि
व्यापक अर्थशास्त्र विशिष्ट अर्थशास्त्र से अधिक उपयोगी व पूर्णतया वैज्ञानिक है
फिर भी इस अर्थशास्त्र की निम्नलिखित कुछ सीमाएँ हैं :
(1) सामान्यीकरण का दोष अर्थात् आर्थिक विरोधाभास (Defects of Generalisation or Economic Paradox):- व्यक्तिगत इकाइयों के अनुभव के आधार पर समष्टिगत अर्थशास्त्र के लिए निष्कर्ष निकालना खतरनाक सिद्ध होता है क्योंकि जब ये निष्कर्ष व्यक्ति विशेष पर लागू किये जाते हैं तो सत्य जान पड़ते हैं लेकिन जब सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू किये जाते हैं तो असत्य सिद्ध होते हैं । इस आर्थिक विरोधाभास (Economic Paradox) को निम्न उदाहरणों द्वारा भी समझा जा सकता है :
(i) व्यक्ति
और समाज की बचतें :- एक व्यक्ति की दृष्टि से बचत करना एक गुण माना जाता
है लेकिन यदि राष्ट्र के सभी व्यक्ति बचत करने लगें तो यह एक अभिशाप सिद्ध होता है
क्योंकि ऐसी बचत से उपभोग वस्तुओं की माँग में कमी आ जायेगी और उसके परिणामस्वरूप
उत्पत्ति, रोजगार एवं आय में
निरन्तर कमी आयेगी जिससे अन्त में समाज इतना गरीब हो जायेगा कि वह बचत नहीं कर
पायेगा । इस तथ्य को चित्र 1 द्वारा स्पष्ट किया गया है
उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि यदि समाज में एक विशेष
अवधि में बचत SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है (II अथवा विनियोग में कोई परिवर्तन नहीं होता) तो कुल आय Y से घटकर Y1 जाती है और इसकी बचत की मात्रा YE घटकर, Y1E1 तक
पहुँच जायेगी । इस प्रकार अधिक बचत के प्रयास के फलस्वरूप आय व बचत में कमी आती है
।
(ii) मजदूरी दर व रोजगार :- प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों, जैसे- पीगू आदि का मत था कि मौद्रिक मजदूरी में कटौती करके
बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है और रोजगार के स्तर को बढ़ाया जा सकता है । अपने
निष्कर्ष को सिद्ध करने के लिए प्रो. पीगू ने एक गणितीय सूत्र का उपयोग किया जो
निम्न प्रकार हैं :
जहाँ:-
N = कार्यरत श्रमिकों की संख्या
W = मजदूरी की दर
Y = राष्ट्रीय आय
QY = राष्ट्रीय आय का वह भाग जो मजदूरी के रूप में दिया जाता है ।
पीगू
का मत है कि श्रमिकों की संख्या (N) को सदा ही मजदूरी की दर (W) में कमी करके बढ़ाया जा सकता है । जिस किसी वस्तु का मूल्य
बहुत नीचा होने की स्थिति में उसकी समस्त पूर्ति बिक जाती है, ठीक इसी प्रकार मजदूरी की दर बहुत नीची होने की दशा में सभी
श्रमिकों को रोजगार मिल जाएगा,
परन्तु उपर्युक्त तर्क ठीक नहीं है क्योंकि सभी मजदूरों की मजदूरी में कटौती के
परिणामस्वरूप क्रय शक्ति (आय) के घट जाने से माँग में कमी आ जाती है और माँग में
कमी आने से उत्पादन में कमी आ जायेगी परिणामस्वरूप रोजगार घट जायेगा ।
(iii) एक व्यक्ति अपने
मुद्रा के परिमाण में संचय द्वारा वृद्धि कर सकता है किन्तु एक राष्ट्र नहीं । सम्पूर्ण आर्थिक व्यवस्था में
मुद्रा की मात्रा तभी लाई जा सकती है जबकि नई मुद्रा ढाली या छापी जाये ।
(iv) किसी विशिष्ट व्यक्ति या किसी विशिष्ट समूह की आय उसके व्यय से कम या अधिक हो सकती है किन्तु सम्पूर्ण समाज
की आय उसके व्यय से कम या अधिक नहीं हो सकती है ।
(v) एक देश का निर्यात (Export) उसके आयात (Import) से कम या अधिक हो सकता है लेकिन विश्व के सभी देशों को एक
साथ लेने से हम देखेंगे कि सब देशों का आयात बराबर होता है, सब देशों के निर्यात के ।
(vi) एक व्यक्ति द्वारा बैंक से रुपया निकालने में कोई खतरा नहीं
लेकिन यदि सभी खातेदार एक साथ अपना रुपया निकालने लग जायें तो बैंक व्यवसाय फेल हो
जायेगा ।
(2) समूह की आन्तरिक रचना महत्वपूर्ण (Internal Composition of Group is Important) :– व्यापक अर्थशास्त्र की एक आलोचना यह भी की जाती है कि समाज अथवा समूह
महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसकी रचना महत्वपूर्ण होती है । उदाहरण के लिए,
2001 और 2002 में सामान्य मूल्य स्तर सामान्य है और उसमें किसी प्रकार
का परिवर्तन दृष्टिगोचर नहीं होता । समान्य मूल्य स्तर अनेक वस्तुओं के मूल्यों का
औसत होता है । जब हम यह कहते हैं कि 2001 और 2002 में सामान्य मूल्य स्तर स्थिर रहा, तब यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मूल्यों के सम्बन्ध
में कोई नया कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है परन्तु ऐसा सोचना त्रुटिपूर्ण हो सकता
है क्योंकि सम्भव है कि कृषि सम्बन्धी उपजों के मूल्य गिर गये हों और उद्योगों के
उत्पादन के मूल्य बढ़ गये हो जिससे सामान्य स्तर में कोई परिवर्तन दृष्टिगोचर न
होता हो । अतः समूह या योग के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा जब तक
कि समूहों की रूपरेखा, प्रकृति
तथा बनावट आदि के बारे में पूर्ण जानकारी न प्राप्त कर ली जाये ।
(3) विजातीय
तत्व (Heterogeneous Elements) :– यह आवश्यक नहीं कि जिस समग्र का अर्थात् समष्टि का अध्ययन
किया जा रहा है, वह सजातीय (Homogeneous)
इकाइयों से बना हो । यदि समूहों की रचना विजातीय (Heterogeneous)
इकाइयों के आधार पर हुई है तो ध्यान रहे, ऐसे समूहों से सही निष्कर्ष नहीं निकल पायेंगे ।
बोल्डिंग
के अनुसार - 6 सेब + 7 सेब = 13
सेब अथवा 6 सेब +7 सन्तरे = 13 योग, यह दोनों सजातीय अर्थात् सार्थक योग हैं । हाँ ! 6 सेब +7
मकान = 0 विजातीय समूह माना जायेगा । विडम्बना तो यह है कि चूँकि
अर्थशास्त्र में ऐसे विजातीय समूहों का भी अध्ययन करना पड़ता है । इसलिए बोल्डिंग
का कहना है कि व्यापक अर्थशास्त्र में उपयोग किये जाने वाले समूह महत्वपूर्ण व
रोचक होने चाहिए । समूह बनाने वाले तत्व ऐसे नहीं होने चाहिए कि जिनमें परस्पर
सम्बन्ध ही न हो ।
(4) समूहों की माप सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Difficulties in Measurement of Aggregate):- आर्थिक समूह का निर्माण जिन इकाइयों से होता है, वे विभिन्न स्वभाव वाली होती है । भिन्न-भिन्न मात्राओं की मापक इकाइयाँ भिन्न-भिन्न होती हैं । दो मन गेहूँ को 2 मीटर कपड़े में नहीं जोड़ा जा सकता । इन सबकी एक साथ जोड़ने के लिए हम एक सामान्य मापदण्ड ‘मुद्रा’ का उपयोग करते हैं किन्तु मुद्रा का मूल्य निरन्तर बदलता रहता है, इसलिए आर्थिक योगों की तुलना कठिन हो जाती है ।
वास्तव में, जब हम विशिष्ट विश्लेषण से आगे बढ़कर सामान्य निष्कर्षो का प्रतिपादन करने जाते हैं तो भिन्न जातीय (Heterogeneous) आर्थिक घटकों के तत्वों के कारण जटिलताएँ पैदा हो जाती हैं । हमें माँग मूल्य के प्रत्येक स्तर पर पूर्ति के विभिन्न संयोग (Combinations) प्राप्त होते हैं और इसी तरह पूर्ति के प्रत्येक संयोग के लिए विभिन्न माँग मूल्य प्राप्त होते हैं । ऐसी स्थिति में हमें एक सामान्य माँग वक्र के स्थान पर माँग क्षेत्र (Demand Band) और एक पूर्ति क्षेत्र (Supply Band) प्राप्त होगा । ऐसी स्थिति में कटान बिन्दु पर विशेष सन्तुलन बिन्दु नहीं होगा बल्कि एक सन्तुलन क्षेत्र होगा । इसका अर्थ यह है कि सन्तुलन संदिग्ध और अनिश्चित होगा ।
उपर्युक्त चित्र में DD व D1D1 के बीच का क्षेत्र माँग क्षेत्र SS तथा S1 S1 के
बीच का क्षेत्र पूर्ति क्षेत्र है । रेखांकित माँग (MNQP)
सन्तुलन क्षेत्र प्रदर्शित करता है । सन्तुलन अनिश्चित है ।
इस कठिनाई के समाधान के लिए निर्देशांकों का सहारा लेना पड़ेगा परन्तु निर्देशांक
तैयार करने में अनेक सांख्यिकी कठिनाइयाँ, जैसे- आधार वर्ष का चुनाव, आँकड़ों के संग्रह, औसत और भार का चुनाव आदि सामने आती है । इन कठिनाइयों के
कारण निर्देशांक पूर्णतया सही नहीं रहता । अतः सम्भावना यही रहती है कि उससे
निकाले गये निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण होंगे । व्यापक अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में कुछ
विरोधाभास है जिन्हें भूतकाल में अर्थशास्त्रियों ने महत्व नहीं दिया ।
(5) व्यावहारिक नहीं (Not Practical):- समष्टिगत अर्थशास्त्र
से सम्बन्धित सम्पूर्ण विश्लेषण अधिकतर ऐसे सैद्धान्तिक मॉडलों का निर्माण करता है
जिनका नीति के निर्धारण में व्यावहारिक लाभ बहुत ही कम हो पाता है ।
समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण का महत्व (Significance of Macro Economics)
दुर्बलताएँ
एवं सीमाएँ होते हुए भी व्यापक आर्थिक विश्लेषण का प्रयोग आज के युग में निरन्तर
बढ़ता जा रहा है । उसके प्रमुख कारण इस प्रकार है :
(1) जटिल अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए आवश्यक (Importance in Complex Economy):- चूँकि व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ ही परस्पर
मिलकर एक अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं और उन इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव भी पड़ता है इसलिए सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को
समझने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयों का व्यक्तिगत रूप से
विश्लेषण किया जाये ।
(2) आर्थिक नीति के निर्धारण में महत्व (Importance in Economic Policy Formulations):– सामान्य आर्थिक विश्लेषण की सहायता से उचित आर्थिक नीतियों के बनाने में
सहायता मिलती है । बोल्डिंग के शब्दों में, “आर्थिक नीति की दृष्टि से व्यापक अर्थशास्त्र का महत्व बहुत
है क्योंकि सरकार की आर्थिक नीति किसी एक व्यक्ति के लिए न होकर सम्पूर्ण समुदाय
अथवा व्यक्तियों के एक समूह के लिए होती है । वस्तुतः आर्थिक दृष्टिकोण से राज्य
व्यक्तियों का समूह है इसलिए उनका अध्ययन सामान्य दृष्टिकोण से होना चाहिए ।”
(3) आर्थिक विकास का अध्ययन (Study of Economic Development):- आर्थिक विकास का
अध्ययन भी व्यापक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ही किया जाता है । व्यापक अर्थशास्त्र
के आधार पर ही एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के संसाधनों और क्षमताओं का
मूल्यांकन किया जाता है, राष्ट्रीय
आय उत्पादन और रोजगार में कुल वृद्धि की योजनाएं बनाई और कार्यान्वित की जाती है, ताकि अर्थव्यवस्था का बहुमुखी विकास किया जा सके ।
(4) मौद्रिक
समस्याओं का विश्लेषण (Analysis of Monetary Problem):- व्यापक अर्थशास्त्र की सहायता से ही मौद्रिक समस्याओं का
विश्लेषण किया जाता है और उन्हें ठीक से समझा जा सकता है । मुद्रा के मूल्य में
होने वाले उच्चावचन (अर्थात् मुद्रा प्रसार व मुद्रा संकुचन) अर्थव्यवस्था पर
प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं नियन्त्रण मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति व अन्य साधनों द्वारा किया जाता है
(5) कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynes' Employment Theory):- कीन्स का रोजगार
सिद्धान्त व्यापक अर्थशास्त्र का ही प्रयोग है कीन्स के अनुसार प्रभावपूर्ण माँग
में कमी के कारण देश में बेरोजगारी उत्पन्न होती है । इसको दूर करने के लिए आवश्यक
है कि कुल उपभोग व्यय और कुल विनियोग व्यय को बढ़ाया जाये । इस प्रकार व्यापक
अर्थशास्त्र का महत्व इस बात में है कि वह सामान्य बेरोजगारी के कारणों, प्रभावों व उपचारों का अध्ययन करता है ।
(6) व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए उपयोगी (Useful for Micro Economics Study):- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत जिन आर्थिक नियमों का प्रतिपादन किया
जाता है, उनकी जाँच करने के
लिए वृहत् अर्थशास्त्र की सहायता लेना जरूरी है । उदाहरणार्थ, उपयोगिता ह्रास नियम का निर्माण तभी सम्भव हो सका है जब
विभिन्न व्यक्तियों के समूहों के व्यवहार से उसकी पुष्टि कर ली गयी है ।
सूक्ष्म तथा व्यापक दोनों पद्धतियों की पारस्परिक
निर्भरता (Mutual Dependence of Micro and Macro
Economics)
व्यष्टिगत
व समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण एक - दूसरे के प्रति विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं, उन्हें एक - दूसरे से पूर्ण स्वतन्त्र समझना भूल है ।
वास्तव में, ऐसी परिस्थितियाँ किसी
अर्थव्यवस्था में अत्यधिक है, जबकि
(A) समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण करने के लिए
व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता पड़ती है और (B)
व्यष्टिगत आर्थिक समस्या को समझने के लिए समष्टिगत विश्लेषण की आवश्यकता होती है ।
इस तथ्य को कुछ उदाहरण देकर समझाया जा सकता है ।
(1) समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण में व्यष्टिगत आर्थिक
विश्लेषण की आवश्यकता :-
(i) यदि एक
अर्थशास्त्री सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन करना चाहता है, तब उसे इस अध्ययन के लिए व्यक्तियों, फर्मों, परिवारों
और उद्योगों का अध्ययन करना आवश्यक होगा क्योंकि वैयक्तिक इकाइयों के स्वरूप को
बिना समझे अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो सकेगी ।
(ii) जब
हम सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के बारे में कोई योजना बनाना चाहते है तो इसके लिए
व्यक्तिगत फर्मों तथा उद्योगों आदि की योजनाओं को ध्यान में रखना होगा । भारत में
जब योजना आयोग सम्पूर्ण देश के लिए पंचवर्षीय योजना की रचना करता है तो विभिन्न
विभागों तथा अन्य संस्थाओं से व्यक्तिगत रूप में लक्ष्यों की सूची मँगवाता है ।
(2) व्यष्टिगत आर्थिक समस्या को समझने के लिए
समष्टिगत विश्लेषण भी सहायक है:-
(i) एक फर्म अपने श्रमिकों की मजदूरी के सम्बन्ध में निर्णय
लेना चाहती है । यह एक व्यष्टिगत विश्लेषण की समस्या है क्योंकि इसका सम्बन्ध एक
फर्म - विशेष से है । इस समस्या का निर्धारण करते समय वह फर्म यह देखेगी कि अन्य
फर्मों की मजदूरी की दरें तथा राष्ट्रीय मजदूरी नीति क्या है ? अर्थात् व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की समस्या का समाधान करने के
लिए समष्टिगत अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ेगी ।
(ii) यदि
एक फर्म अपनी उत्पादित वस्तु का कीमत - निर्धारण करती है तो वह कीमत निर्धारण करने
से पहले दूसरी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की कीमतों की ओर भी ध्यान देती है ।
(iii)
यदि एक फर्म अपनी वस्तु के उत्पादन की मात्रा निर्धारित
करना चाहती है तो वह मात्रा निर्धारण करते समय समाज की कुल मांग एवं रोजगार की
स्थिति को ध्यान में रखती हैं ।
निष्कर्ष :-
इस प्रकार अर्थशास्त्र की ये दोनों ही शाखाएँ अर्थव्यवस्था के कार्य एवं कारण को सही रूप में समझने के लिए आवश्यक है । वस्तुतः विशिष्ट और व्यापक विश्लेषण के बीच कोई अति कठोर रेखा नहीं खीची जा सकती । अर्थव्यवस्था के एक सामान्य सिद्धान्त के अन्तर्गत दोनों आने चाहिए । वह ऐसा सिद्धान्त होना चाहिए जो कीमतों, उत्पादन, आय, व्यक्तियों, व्यक्तिगत फर्मो एवं उद्योगों के व्यवहार और व्यक्तिगत चरों के समूह की व्याख्या करे । जैसा कि प्रो. ऐक्ले ने कहा है – “वास्तव में, व्यापक अर्थशास्त्र और विशिष्ट अर्थशास्त्र में स्पष्ट अन्तर रेखा नहीं खींची जा सकती । अर्थव्यवस्था का एक सामान्य सिद्धान्त स्पष्टतया दोनों का आलिंगन करेगा, यह व्यक्तिगत व्यवहार, व्यक्तिगत प्रदाएँ, आय और कीमतों की व्याख्या करेगा और व्यक्तिगत परिणामों के जोड़ या औसत समूहों को बनायेंगे जिनसे समष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है । ऐसा सामान्य सिद्धान्त विद्यमान है परन्तु इसकी व्यापकता ही इसके पास बहुत कम मौलिक तत्व छोड़ती है । वास्तव में, हम यह पाते हैं कि यथार्थ परिणामों पर हमें व्यापक आर्थिक समस्याओं को व्यापक आर्थिक उपकरणों तथा विशिष्ट आर्थिक समस्याओं को विशिष्ट आर्थिक उपकरणों द्वारा पहुँचना चाहिए । इस प्रकार आवश्यकता इस बात की है कि दोनों मार्गों का उचित समन्वय किया जाये ।” उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों पद्धतियाँ प्रतियोगी न होकर एक दूसरे की पूरक हैं ।