सांख्यिकी का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र (MEANING, DEFINITION AND SCOPE OF STATISTICS)

सांख्यिकी का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र (MEANING, DEFINITION AND SCOPE OF STATISTICS)

यह तो सर्वविदित ही है कि आज विश्व प्रगति की ओर अग्रसर है। वैज्ञानिक उन्नति के कारण आर्थिक उन्नति और समृद्धि हमारा लक्ष्य बन गया है। आर्थिक समृद्धि का आधार सुनियोजित आर्थिक विकास है। सांख्यिकी विज्ञान का योगदान इस महान कार्य में प्रशंसनीय है। योजना-बद्ध आर्थिक विकास के लिये हमें अंकों का ज्ञान होना परमावश्यक है। मनुष्य, चाहे वह कितना ही तीक्ष्ण बुद्धि वाला क्यों न हो, सभी बातों को याद नहीं रख सकता। वह अपने जीवन में घाटेत महत्वपूर्ण घटनाओं को तो फिर भी याद रख सकता है, किन्तु अंकों का स्मरण रखना तो अत्यन्त ही दुष्कर है। इसीलिए समय-समय पर मानव-जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित अंकों को लिख लिया जाता है जो भविष्य में तुलनात्मक अध्ययन के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं। आज जब हम राष्ट्रीय आय, औद्योगीकरण, परिवहन के विकास आदि की बात करते हैं तो हमारा पथ-प्रदर्शन अंक ही करते हैं। मनुष्य के ज्ञान व अनुभव का अंकों में यह लिखित रूप ही हमारी सभ्यता व हमारे विकास का आधार है। यहीं से सांख्यिकी का प्रारम्भ होता है।

सांख्यिकी का प्रारम्भ

सांख्यिकी का जन्म राष्ट्रीय संगठन के साथ-साथ हुआ। जैसे-जैसे पुरातन जातियाँ संगठित होती गई वैसे-वैसे उनको शासकों एवं प्रबन्धकों के लिए प्रबन्ध सम्बन्धी अंक एकत्रित करना आवश्यक हो गया। राज्य की जन-शक्ति, धन-शक्ति, पशु-शक्ति आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिये समंकों का संकलन किया जाने लगा। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में शासन, सामाजिक व्यवस्था, युद्ध-व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में बहुत से तथ्य तथा अंक उपलब्ध है। इसी प्रकार रोम तथा अन्य देशों में भी इस प्रकार की प्रवृत्ति पाई जाती थी। प्राचीन समय में मुख्य रूप से यह कार्य शासकों द्वारा राज्य-संचालन के लिये ही किया जाता था। राज्य की नीति बहुत अंशों में अंकों पर निर्भर करती थी। इन्हीं कारणों से सांख्यिकी विज्ञान को उस युग में 'राज्य-तन्त्र का विज्ञान' (Science of Statecraft) या 'सम्राटों का विज्ञान' (Science of Kings) कहा गया।

इस प्रकार सांख्यिकी (Statistics) शब्द अंग्रेजी शब्द 'State' (राज्य) से निकला हुआ है। लेटिन भाषा में State को Status तथा सांख्यिक (Statistician) को Statista और रोमन भाषा में State को Stato तथा सांख्यिक को Statisticus कहा जाता था।

अंग्रेजी में Statistics शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में होता है। हिन्दी में इन तीन अर्थों को व्यक्त करने के लिये हम तीन भिन्न-भिन्न शब्दों का उपयोग करते हैं। ये तीन शब्द हैं-आँकड़े, सांख्यिकी और प्रतिदर्शज। साधारण प्रयोग में Statistics शब्द का प्रयोग आँकड़ों के अर्थ में होता है जैसे-भारत में खाद्य उत्पादन के आँकड़े या औद्योगिक आँकड़े। आँकड़े तथ्यों का अंकों के रूप में किया गया संग्रह मात्र है (इस अर्थ में Statistics का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है।

Statistics का दूसरा अर्थ उन विधियों से है जिनका उपयोग सांख्यिकी में किया जाता है। सांख्यिकीय विधियों के अन्तर्गत वे सब सिद्धान्त और युक्तियाँ (devices) आती हैं जिनका उपयोग तथ्यों के मात्रा सम्बन्धी विवरण का संकलन, विश्लेषण और निर्वचन करने में किया जाता है (इस अर्थ में भी Statistics का उपयोग अंग्रेजी में बहुवचन में होता है।

Statistics का तीसरा अर्थ सांख्यिकी है। इस अर्थ में यह एक विज्ञान है और गणित का एक भाग माना जाता है (अंग्रेजी में इस अर्थ में Statistics का प्रयोग एकवचन में किया जाता है)। Statistics का प्रयोग Statistic के बहुवचन के रूप में भी होता है। Statistic के लिये हिन्दी शब्द प्रतिदर्शज है। इसका अर्थ समष्टि के संख्यात्मक गुणों को बताने वाली संख्या या संख्याओं का प्राक्कलन (estimate) है। उदाहरणार्थ हम एक प्रतिदर्श (Sample) लें और इसके लिये माध्य (Average), विचलन (Deviation) या सहसम्बन्ध गुणक (Coefficient of Correlation) की गणना करें। अब अगर इनके मूल्यों को हम समष्टि (Universe) के मूल्यों का प्रावकलन मान लें तो ये प्रतिदर्शज कहलायेंगे।

सांख्यिकी का विकास

सांख्यिकीय विज्ञान के विकास को सुविधा के दृष्टिकोण से हम अग्रलिखित भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं-

(1) राज्य संचालन एवं व्यवस्था के लिये सांख्यिकी का प्रयोग (प्रारम्भ से लगाकर 1500 ई. तक),

(2) ज्योतिषशास्त्रियों द्वारा इस विज्ञान का उपयोग (1500-1600 ई.),

(3) सामाजिक उद्देश्यों के लिये सांख्यिकी का उपयोग (1600-1700 ई.),

(4) सांख्यिकी सिद्धान्तों का सुगमन (1700-1800 ई.),

(5) नये नियमों का प्रतिपादन (1800-1900 ई.),

(6) सांख्यिकी विज्ञान का नया व आधुनिक रूप (1900 से अब तक)।

(1) राज्य संचालन एवं व्यवस्था के लिये सांख्यिकी का प्रयोग- जैसा कि ऊपर लिखा है- सांख्यिकी 'सम्राटों का विज्ञान' कहलाता था। ईसा के लगभग 3,050 वर्ष पूर्व मिस्र के सम्राट ने संसार प्रसिद्ध पिरामिडों के निर्माण के लिये विभिन्न प्रकार के आँकड़े एकत्रित करवाये थे। मोजेज ने इजराइल के लोगों की गणना इनकी युद्ध-शक्ति का अनुमान लगाने के लिये की थी। इसी भाँति चीन, हॉलैंड, जर्मनी, यूनान, भारतवर्ष, आदि देशों के मुद्रा शासकों ने अपने यहाँ की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रगति संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिये सांख्यिकी का उपयोग किया था। भारतवर्ष में चन्द्रगुप्त मौर्य ने आय- व्यय, जन्म-मरण, सेना, भूमि व लगान सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित कराने के लिये अनेक समितियाँ बनाई थीं। जैसा की ऊपर लिखा गया है, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में शासन, सामाजिक व्यवस्था, युद्ध-प्रबन्ध आदि के सम्बन्ध में बहुत से तथ्य व आँकड़े उपलब्ध हैं। मुगल काल में लगान सुधार के सम्बन्ध में सांख्यिकी का उपयोग किया गया। इस प्रकार यह विज्ञान मुद्रा काल से ही मानव-जीवन का एक आवश्यक अंग रहा है, किन्तु इसका व्यवस्थित विकास सोलहवीं शताब्दी से ही हो पाया है।

(2) ज्योतिषशास्त्रियों द्वारा इस विज्ञान का उपयोग (1500-1600)- इस विज्ञान के लिये यह शताब्दी इसका बाल्यकाल कही जा सकती है। इस काल में ज्योतिषशास्त्रियों ने इस विज्ञान का उपयोग तारों व नक्षत्रों की गति, स्थान आदि के विषय में आँकड़े एकत्रित करने तथा ग्रहण के बारे में पूर्वानुमान लगाने के सम्बन्ध में किया। इनमें टीचो ब्राहे और जॉन्स कैपलर के नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं।

(3) सामाजिक उद्देश्यों के लिये सांख्यिकी का प्रयोग (1600-1700)- जन्म-मरण, अपराध व अन्य सामाजिक दशाओं के अध्ययन के लिये इस विज्ञान का प्रयोग इस शताब्दी में अधिक विस्तृत हुआ। जन्म-मरण सम्बन्धी आँकड़ों के आधार पर ही जीवन-सारणी (Life Table) और मृत्यु-सारणियाँ (Mortality Tables) बनाई गईं। सन् 1621 ई. में प्रो. जार्ज ओब्रेट ने अपराध सम्बन्धी आँकड़ों की सहायता से अपराधों में कमी लाने के उपायों पर विचार किया। इसी अवधि में आँकड़ों की सहायता से पेंशन व्यवस्था पर भी विचार किया गया। लन्दन के कैप्टेन जॉन ग्रान्ट ने 1661 ई. में जन्म-मरण के आँकड़ों का बहुत ही विश्लेषणात्मक अध्ययन किया और फलस्वरूप 1698 ई. में लन्दन में सर्वप्रथम जीवन-बीमा व्यवसाय की स्थापना हुई।

(4) सांख्यिकी के सिद्धान्तों का सुगमन (1700-1800)- इस काल में यह अनुभव किया जाने लगा कि अंकों के संकलन, विश्लेषण और निर्वचन के क्लिष्ट व अवैज्ञानिक तरीकों में विकास कर उन्हें वैज्ञानिक और सुगम बनाया जाये। इसी समय सांख्यिकी और 'गणितशास्त्र सिद्धान्त' के बीच समन्वय (Co-ordination) हुआ। इसी कारण 'सम्भावना सिद्धान्त' (Theory of Probability) की नींव पड़ी। प्रो. जैम्स बरनोली ने 'बड़ी संख्याओं का नियम' (Law of Large numbers) तथा डैनियल बरनोली ने 'नैतिक सम्भाविता' (Moral Expectation) का नियम गणित के ढंग पर स्पष्ट किया।

(5) नये नियमों का प्रतिपादन (1800-1900)- सन् 1812 ई. में लैपलेस नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने Theory of Probability पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी। बेल्जियम के महान् ज्योतिषाचार्य एवं गणितज्ञ श्री एल.ए.जे. क्वेट्लेट ने 'आधुनिक सांख्यिकी सिद्धान्त' (Modern Theoryof Statistics) का प्रतिपादन किया। महान् गणितज्ञ नैप, लैक्सिस, सर फ्रांसिस गॉलटन, गाँस चालियर और कार्ल पियर्सन आदि ने सांख्यिकी को उन्नति व विकास में नये नियमों के प्रतिपादन और पुराने नियमों के पुष्टिकरण व विश्लेषण द्वारा महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

(6) आधुनिक रूप (1900 से अब तक)- यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आधुनिक युग में विभिन्न विज्ञानों की उन्नति इस विज्ञान की सहायता से ही हो पाई है। इस विज्ञान को महत्वपूर्ण बनाने का श्रेय उन विद्वानों को है जिन्होंने अपने अथक प्रयास से इसको इतने उच्च स्थान पर आसीन किया। इस सम्बन्ध में प्रो. बाडिगटन, डॉ. बाउले, किंग, फिशर, प्रो. महालनबिस आदि के प्रयत्न विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत की योजनायें तो सांख्यिकी विज्ञान की ही देन हैं। आज तो यह स्थिति हो गई है कि सांख्यिकी को अर्थशास्त्र का ही एक अंग माना जाने लगा है।

सांख्यिकी का अर्थ (Meaning of Statistics)

जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है-सांख्यिकी (Statistics) शब्द का उपयोग बहुवचन और एकवचन में होता है। जब यह विज्ञान अविकसित अवस्था में था तब इस शब्द का प्रयोग बहुवचन में रूप में होता था और इसका अभिप्राय समंक या आँकड़ों से था। अब भी इसका प्रयोग बहुवचन में इसी अर्थ में होता है, किन्तु इस विज्ञान के विकसित होने पर इस शब्द का प्रयोग एकवचन के रूप में होने लगा जिसका प्रयोजन सांख्यिकी विज्ञान (Science of Statistics) से था। इस प्रकार सांख्यिकी शब्द की परिभाषा का अध्ययन हम दो विभिन्न रूपों में करेंगे-

(1) बहुवचन के रूप में- समंक या आँकड़े की परिभाषा (Definition of Statistical Data),

(2) एकवचन के रूप में- सांख्यिकी विज्ञान की परिभाषा (Definition of the Science of Statistics)

समंक या आँकड़े की परिभाषा (Definition of Statistical Data)

ए.एल. बाउले (A.L. Bowley)- Statistics are numerical statements of facts in any department of enquiry placed in relation to each other.

“समंक अनुसंधान के किसी भी विभाग में तथ्यों का संख्या के रूप में स्पष्टीकरण है, जिन्हें एक दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।"

यह परिभाषा आँकड़ों के स्वभाव को पर्याप्त मात्रा में व्यक्त करती है, किन्तु यह बहुत स्पष्ट नहीं है। समंकों के स्वभाव को उचित ढंग से व्यक्त करने के लिये इस परिभाषा में स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। प्रारम्भिक जानकारी के दृष्टिकोण से यह परिभाषा उपयुक्त है।

सांख्यिकी के मुख्य लक्षण (Chief Characteristics of Statistics)

इस प्रकार सांख्यिकी शब्द का प्रयोग जब बहुवचन में होता है तो सेक्रिस्ट के अनुसार उसके निम्नलिखित मुख्य लक्षण होते हैं-

(1) समंक तथ्यों के समूह है (Aggregates of facts)- समंक किसी एक व्यक्ति या सदस्य के बारे में नहीं बल्कि एक समूह के बारे में होते हैं। किसी व्यक्ति की लम्बाई 65 इंच हो तो यह संख्या समंक नहीं कहलायेगी। सांख्यिकी के दृष्टिकोण से किसी एक व्यक्ति से सम्बन्धित अध्ययन का कोई महत्व नहीं होता है। संख्यायें किसी समूह से सम्बन्धित होनी चाहिये, किसी एक सदस्य से नहीं।

(2) तथ्यों के संख्यात्मक विवरण होने चाहिये (They must be numerical statements of facts)- समंक की यह प्रमुख विशेषता है कि वे संख्या में व्यक्त किये गये हों। यदि कहा जाये कि अ बूढा है, ब युवा है और स बालक है तो इसे समंक नहीं कहा जायेगा, किन्तु इसी को हम इस प्रकार व्यक्त करें कि अ की आयु 70 वर्ष, ब की 35 वर्ष और स की 15 वर्ष है तो यह सूचना समंक हो सकती है।

(3) वे कई कारणों से पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होते हैं (They are affected to a marked extent by multiplicity of causes)- समंकों पर केवल किसी एक कारण का ही प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु अनेक कारणों का प्रभाव पड़ता है। यह निश्चितरूपेण नहीं कहा जा सकता है कि-अमुक घटना किस कारण का प्रभाव है। एक घटना कई कारणों के सम्मिलित प्रभाव से घटित हो सकती है। उदाहरण के लिये परीक्षा- फल अच्छा रहने के कई कारण हो सकते हैं-विद्यार्थियों का अध्ययन, अच्छी पढ़ाई, प्रश्न-पत्रों का सरल होना, परीक्षक का कृपालु होना, आदि।

(4) उचित मात्रा की शुद्धता (Reasonable standard of accuracy)- समंकों को संग्रहीत करने में प्राय: ऐसी स्थितियाँ आती हैं जब हम प्रत्येक मद (item) का निरीक्षण नहीं कर सकते हैं। अत: हम प्रतिदर्श (sample) लेते हैं और उसके आधार पर समष्टि (universe) के सम्बन्ध में ज्ञात करते हैं। यहाँ यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि समंकों के संग्रहण में 'पर्याप्त' सावधानी बरती जाये ताकि आवश्यक शुद्धता प्राप्त की जा सके। यदि अंक अनुमानित हैं तो अनुमान लगाते समय समस्या, साधनों व उद्देश्योंक्षका ध्यान रखते हुए शुद्धता का पालन होना चाहिये। उदाहरण के लिये एक नगर की जनगणना करते समय चार-पाँच मनुष्यों की कमी या अधिकता का प्रभाव नगण्य है, किन्तु एक परिवार की जनगणना करते समय सतर्कता रखना आवश्यक है क्योंकि यहाँ चार-पाँच मनुष्यों की भूल हमारे परिणाम को अशुद्ध बना देगी।

(5) पूर्व निर्धारित उद्देश्य (Pre-determined purpose)- जिस समय समंक संग्रहीत किये जाते उस समय उनके संग्रहण के पीछे उद्देश्य होना आवश्यक है। यह हम दो कक्षाओं के विद्यार्थियों की किसी एक परीक्षा में प्राप्तांकों को संग्रहीत करते हैं तो इस संग्रहण के पीछे दोनों कक्षाओं में विद्यार्थियों में किस कक्षा के विद्यार्थी अधिक चतुर हैं और किस कक्षा में कम, यह उद्देश्य होना चाहिये। यदि बिना किसी उद्देश्य के संख्याओं के रूप में हमारे पास सूचनायें हैं तो वे केवल मात्र संख्यायें कही जायेंगी, समंक नहीं।

(6) वे एक दूसरे से सम्बन्धित किये जाने योग्य होने चाहिये (Capable of being placed in relation to each other)- संख्याओं का समूह तभी समंक कहा जाता है जब संख्यायें सजातीय हों और उनमें स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित किया जा सके। उदाहरण के लिये यह कहना कि एक कक्षा में 50 विद्यार्थी हैं, स्कूल में 10 अध्यापक हैं और 5 पेड़ हैं ये सब संख्यात्मक तथ्य तो हैं, किन्तु एक दूसरे से सम्बन्धित किये जाने योग्य नहीं हैं इसलिये सांख्यिकीय समंक नहीं कहे जा सकते हैं।

(7) वे एक व्यवस्थित ढंग से संकलित किये गये हों (Collected in a systematic manner)- समंक व्यवस्थित ढंग से एकत्रित किये जाने चाहिये। संग्रहण के पहले एक निश्चित योजना बना लेनी चाहिए। निरुद्देश्य और बिना किसी योजना के संग्रहीत आँकड़े वास्तव में आँकड़े नहीं कहे जा सकते, क्योंकि उनसे हमारे अनुसंधान पर उचित प्रकाश नहीं पड़ता। यदि हम किसी स्कूल के विद्यार्थियों के प्राप्तांक संग्रहीत कर लें और इस बात का ध्यान न रखें कि वे किस वर्ग के, किस परीक्षा के, किस विषय के और किस वर्ष के हैं तो यह सूचना समंक नहीं कही जा सकती है और इससे कोई परिणाम नहीं निकल सकता है।

(8) समंकों को गणना या अनुमान द्वारा एकत्रित किया जाता है (Collected by enumeration orestimation)- गणना द्वारा समंक एकत्रित करना एक लम्बी क्रिया है। ऐसा तभी किया जाता है जबकि वह क्षेत्र जिसका अनुसंधान किया जा रहा है, सीमित हो। विस्तृत क्षेत्र में गणना द्वारा समंक एकत्रित करना असम्भव न सही, टुष्कर अवश्य है। इसलिये ऐसी परिस्थिति में समंक अनुमान द्वारा एकत्रित किये जाते हैं।

उपरोक्त लक्षणों से समंक का अर्थ स्पष्ट हो जाता है जो सांख्यिकी का बहुवचनीय रूप है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सभी सांख्यिकी समंक संख्यात्मक तथ्य होते हैं, लेकिन सभी संख्यात्मक तथ्य समंक नहीं होते हैं। केवल वे ही संख्यात्मक तथ्य समंक कहलाते हैं जिनमें उपर्युक्त लक्षण पाये जाते हैं। अब हम सांख्यिकी के एकवचनीय रूप की व्याख्या करेंगे।

सांख्यिकी का क्षेत्र (Scope of Statistics)

सांख्यिकी के क्षेत्र के विषय में जानने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर विचार करना होगा.

(अ) सांख्यिकी की विषय-सामग्री

(ब)  सांख्यिकी का स्वभाव।

(स) सांख्यिकी की सीमाएँ।

(अ) सांख्यिकी की विषय-सामग्री (Subject-matter of Statistics)

सांख्यिकी की विषय-सामग्री को हम दो भागों में बाँट सकते है-

(1) सांख्यिकीय सिद्धान्त अथवा सांख्यिकीय रीतियाँ (Principles of Statistics or Statistical Methods)

(2) व्यावहारिक सांख्यिकी (Applied Statistics)

(1) सांख्यिकी रीतियाँ- ये वे रीतियाँ हैं जिनका उपयोग सांख्यिकी में किया जाता है। इनकी सहायता से आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं तथा उन्हें समझने योग्य और तुलनात्मक बनाया जाता है। यह उचित निष्कर्ष निकालने में भी सहायता करती है। यूल और केन्डाल ने सांख्यिकीय रीतियों का आशय इस प्रकार स्पष्ट किया है:-

"By statistical methods we mean methods specially adopted to the elucidation of quantitative data effected by multiplicity of causes."

“सांख्यिकीय रीतियों से हमारा तात्पर्य उन रीतियों से है जिनका प्रयोग अनेक कारणों से प्रभावित समंकों की व्याख्या करने के लिये किया जाता है।"

सांख्यिकीय रीतियों के अन्तर्गत अग्रलिखित कार्यों को सम्मिलित किया जाता है-

(i) आँकड़ों का संग्रहण (Collection of Data)- यह प्रत्येक अनुसंधान के लिए पहला व आवश्यक कार्य है। अनुसंधान के विषय के अनुसार ही यह निश्चित किया जाता है कि कब, कहाँ से, कितने और किस ढंग से आँकड़े एकत्रित किये जायें जो कि इस विषय पर पूर्ण प्रकाश डाल सकें।

(ii) वर्गीकरण (Classification)- एकत्रित किये हुए आँकड़ों को अधिक सुगम और तुलना योग्य बनाने के लिये किसी गुण विशेष के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटते हैं। वर्गीकरण का आधार वजन, रंग, स्थान, धर्म, जाति आदि होते हैं।

(iii) सारणीयन (Tabulation)- वर्गीकरण से आँकड़े सुगम तो हो जाते हैं, किन्तु आकर्षक नहीं बन पाते हैं। इनको आकर्षक, नेत्रप्रिय और समझ में आने योग्य बनाने के लिए आँकड़ों को सारणी के रूप में रखा जाता है जिसमें शीर्षक लिखकर संख्याओं को विभिन्न खानों में भरा जाता है।

(iv) निरूपण (Presentation)- इसके द्वारा प्रयत्न किया जाता है कि आँकड़ो को बिन्दु रेखा या चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाये ताकि उनकी छाप मस्तिष्क पर सदैव के लिये पड़ सके। माध्य के द्वारा आँकड़ों को एक प्रतिनिधि समंक के रूप में प्रकट किया जाता है ताकि अन्य आँकड़ों से उसकी तुलना की जा सके। यदि हम दो कक्षाओं के विद्यार्थियों की योग्यता का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो माध्यम की सहायता लेनी ही पड़ेगी।

(v) दूसरी श्रेणियों से सम्बन्ध स्थापित करना (Establishment of relationship with other series)- माध्य निकालने के बाद जब तक उसकी अन्य आँकड़ों के माध्य से तुलना न की जाये उसका कोई महत्व या प्रयोजन नहीं रहता है। इस रीति द्वारा अलग-अलग आँकड़ों के माध्यों की तुलना करके उनमें सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। सहसम्बन्ध गुणक (Coefficient of Correlation) तथा कई अन्य तरीके इसके लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।

(vi) निर्वचन (Interpretation)- इस रीति का प्रयोग दो प्रकार के आँकड़ों की तुलना करने के बाद जो फल प्राप्त हो उनसे परिणाम निकालने के लिए किया जाता है। उस परिणाम को सरल शब्दों में व्यक्त किया जाता है जिससे साधारण व्यक्ति भी उसे समझ सके। यही निर्वचन की रीति है।

(vii) पूर्वानुमान (Forecasting)- यह एक विवादास्पद प्रश्न है कि इस रीति को सांख्यिकीय रीति माना जाये अथवा नहीं। यदि सावधानीपूर्वक देखा जाये तो यह सांख्यिकीय रीति ही है जिसके द्वारा हम पूर्व अनुभवों व परिणामों के आधार पर भावी गति की ओर निर्देश करते हैं।

(2) व्यावहारिक सांख्यिकी (Applied Statistics)- ऊपर वर्णित सांख्यिकीय रीतियाँ हमें सिद्धान्तों का ज्ञान कराती हैं। उन सिद्धान्तों का या रीतियों का प्रयोग व्यवहार में कैसे लाया जाता है- इस विषय का अध्ययन व्यावहारिक सांख्यिकी में किया जाता है। किसी अनुसंधान से सम्बन्धित अंकों का किस प्रकार संग्रहण, विश्लेषण, प्रदर्शन एवं निर्वचन किया जाये- यह व्यावहारिक सांख्यिकी का क्षेत्र है। अन्य शब्दों में इसके अन्तर्गत हम सांख्यिकी के नियमों व सिद्धान्तों को मूर्त रूप देकर किसी समस्या के समाधान में उनका प्रयोग करते हैं।क्षजैसे जनसंख्या, कृषि उत्पादन, जन्म-मृत्यु, आदि से सम्बन्धित आँकड़ों को कैसे क्रियात्मक रूप दिया जाये- इस विभाग की विषय-सामग्री है। इस सांख्यिकी के दो भाग किये जा सकते हैं-

(क) वर्णनात्मक व्यावहारिक सांख्यिकी (Descriptive Applied Statistics),

(ख) वैज्ञानिक व्यावहारिक सांख्यिकी (Scientific Applied Statistics)

प्रथम के अन्तर्गत भूत या वर्तमान काल में एकत्रित समंकों का अध्ययन किया जाता है। इन समंकों का ऐतिहासिक महत्व होता है। इसके द्वारा घटनाओं के संख्यात्मक विवरण को सरल बनाया जाता है। उदाहरणार्थ- दो भिन्न-भिन्न समय के मूल्य-स्तरों के अन्तर को निर्देशांक द्वारा सरल बनाया जाता है।

द्वितीय के अन्तर्गत समंकों को किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के उद्देश्य से एकत्रित किया जाता है और उसकी सहायता से कुछ विशेष सिद्धान्तों के प्रतिपादन का प्रयत्न किया जाता है। अन्य शब्दों में नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन के उद्देश्य से समंकों का संग्रहण, विश्लेषण व निर्वचन सांख्यिकी के विभाग का क्षेत्र है। इस प्रकार इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि सांख्यिकीय विधियों का उपयोग ज्ञानविज्ञान की विभिन्न शाखाओं में किस प्रकार किया जाता है।

व्यावसायिक सांख्यिकी (Business Statistics)- इसके अन्तर्गत व्यवसाय की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन, विश्लेषण और समाधान के लिये सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। उन्ड और विलियम्स के अनुसार, "आधुनिक युग में व्यावसायिक सांख्यिकी द्वारा किसी भी व्यवसाय के संचालन से सम्बन्धित सभी मामलों पर विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिये संख्यात्मक आधार प्रस्तुत किये जाते हैं।

व्यावसायिक सांख्यिकी में केवल समंको का संकलन करने तथा उन्हें सारणियों एवं चित्रों में प्रस्तुत करने की विधियों का ही समावेश नहीं होता अपितु ऐसी प्रक्रियाओं का भी उपयोग होता है जो यन्त्र एवं श्रम की कुशलता तथा उत्पादन, विपणन एवं विज्ञापन की नवीन विधियों का मूल्यांकन करके उपयुक्त विधियों के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायक हों। व्यावसायिक सांख्यिकी की प्रमुख विधियाँ इस प्रकार हैं-सांख्यिकीय गुण-नियन्त्रण, बजटरी नियन्त्रण, व्यावसायिक पूर्वानुमान, काल-माला विश्लेषण, परिकल्पना परीक्षण, रेखीय प्रक्रमन (Linear Programming) तथा क्रिया-शोध (Operations research) आदि।

सांख्यिकी का उद्देश्य (Object of Statistics)- सांख्यिकी का प्रमुख उद्देश्य तथ्यों एवं संख्याओं से उचित निष्कर्ष निकालना, अज्ञात घटनाओं के विषय में अन्वेषण करना तथा स्थिति पर प्रकाश डालना है। सांख्यिकीय रीतियों के उपयोग से ही किस समस्या के सम्बन्ध में भूतकालीन समंक संकलित किये जा सकते हैं और वर्तमान प्रवृत्तियों से उनकी तुलना की जा सकती है। इस सम्बन्ध में बाडिंगटन का यह कथन स्मरणीय है, “सांख्यिकीय अन्वेषण का मुख्य उद्देश्य भूतकालीन तथा वर्तमान समय के तथ्यों की तुलना करके यह मालूम करना है कि जो परिवर्तन हुए हैं उनके क्या कारण रहे हैं और उनके भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं।"

सांख्यिकी का स्वभाव या प्रकृति (Nature of Statistics)

हार्लोज तथा पर्सन ने सांख्यिकी को 'तथ्यों को प्रयोग में लाने का विज्ञान तथा कला' कहा है। इससे स्पष्ट होता है कि सांख्यिकी विज्ञान तथा कला दोनों ही है। सांख्यिकी एक विज्ञान है क्योंकि विज्ञानकी भांति इसकी विधियाँ क्रमबद्ध है। इसके नियम अन्य विज्ञान के नियमों की भाँति ही सुनिश्चित होते है। वे सभी जगह समान रूप से लागू किये जा सकते हैं। सांख्यिकीय निष्कर्ष आकस्मिक घटना के आधार पर न होकर उचित तथा व्यवस्थित अध्ययन के आधार पर निश्चित किये जाते हैं। यह सच है कि इसके द्वारा निकाले गये निष्कर्ष पूर्णतः खरे नहीं उतरते, किन्तु जहाँ तक विधियों का प्रश्न है वे उतनी ही निर्दोष है जितनी अन्य विज्ञानों की विधियाँ। निष्कर्षों के बिलकुल ठीक न होने के कारण अध्ययन-सामग्री की जटिलता है, विधियों की कमियाँ नहीं। सांख्यिकी को हम विज्ञानों का विज्ञान भी कह सकते हैं। क्राक्सटन तथा काउडन का कहना है, "सांख्यिकी एक विज्ञान नहीं है, वह एक वैज्ञानिक विधि है।" सांख्यिकी अनुसंधान की एक ऐसी विधि प्रस्तुत करती है जिसका उपयोग सभी विज्ञानों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार सांख्यिकी केवल स्वयं ही विज्ञान नहीं है, बल्कि सभी विज्ञानों का आधार है।

जहाँ तक हम इन सिद्धान्तों को व्यवहार में लाते हैं, यह एक कला भी है। इनका सफल प्रयोग सांख्यिकी के अनुभव और उसकी कुशलता पर निर्भर करता है। कला के रूप में सांख्यिकी हमें बतलाती है कि विभिन्न प्राकृतिक तथा सामाजिक समस्याओं में सबसे उत्तम समाधान क्या हो सकता है। सारणीयन तथा चित्रों द्वारा प्राप्त सामग्री के प्रदर्शन का कार्य स्पष्ट रूप से कला के अन्तर्गत ही आता है। अतएव यह स्पष्ट है कि सांख्यिकी विज्ञान तथा कला दोनों ही है।

(स) सांख्यिकी की सीमायें (Limitations of Statistics)

सांख्यिकी का क्षेत्र बहुत व्यापक है और आधुनिक युग में इसका प्रयोग बहुत बढ़ गया है, किन्तु इस विज्ञान की कुछ सीमाएँ हैं जिन्हें ध्यान में रखकर इस विज्ञान का प्रयोग किया जाना चाहिये। यदि इन सीमाओं को ध्यान में न रखा जाये तो परिणाम भ्रामक होंगे। न्यूज होम ने लिखा है-“सांख्यिकी को अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण साधन समझना चाहिये किन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं जिनको दूर नहीं किया जा सकता है और इसी कारण हमें सावधानी बरतनी चाहिए।' प्रसिद्ध संख्याशास्त्री टिपेट ने भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं। उनके अनुसार “किसी भी क्षेत्र में सांख्यिकीय नियमों का उपयोग कुछ मान्यताओं पर आधारित तथा कुछ सीमाओं से प्रभावित होता है, इसलिये प्राय: अनिश्चित निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।” सांख्यिकी की ये सीमायें निम्नलिखित हैं-

(1) सांख्यिकी इकाइयों का अध्ययन नहीं करती है- सांख्यिकी में किसी विशेष इकाई को लेकर उसके व्यक्तिगत गुणों का विवेचन नहीं किया जाता है। हम केवल उन्हीं गुणों का विवेचन करते हैं जो बहुत- सी इकाइयों में समान रूप से पाये जाते हैं। उदाहरण के लिये किसी स्थान में अ, ब और स रहते हैं और इनकी मासिक आय क्रमश: 2000, 1000 और 3000 रुपये है। इनकी औसत मासिक आय 1100 रुपया होती है जिससे यह परिणाम निकलता है कि उस स्थान के लोग मध्यमवर्गीय हैं, किन्तु वहाँ 'स' ऐसा व्यक्ति है जिसकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं कही जा सकती है किन्तु इसका कोई ध्यान नहीं रखा जायेगा और निष्कर्ष यही निकलेगा कि वहाँ के लोग मध्यवर्गीय हैं। प्रो. नीस्वैगर लिखते हैं, "सांख्यिकीय निष्कर्ष समूह के स्वभाविक व्यवहार का अनुमान करने में सहायक होते हैं, उस समूह की व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं।"

(2) सांख्यिकी संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है- प्रो. बाउले ने लिखा है, “अधिक से अधिक समंक किसी तथ्य के संख्यात्मक अंग को ही माप सकते हैं जबकि प्रायः उन्हें इच्छित तथ्यों के स्थान पर सम्बन्धित मात्रा को मापकर ही सन्तोष करना पड़ता है।" इस प्रकार सांख्यिकीय रीतियाँ उन तथ्यों के अध्ययन में प्रयुक्त नहीं होती हैं जो संख्याओं में न मापी जा सकें। ऐसे विषय जो संख्या में प्रकट नहीं किये जा सकते, इस विज्ञान के अध्ययन से परे होते हैं, जैसे ईमानदारी, सभ्यता, बुद्धिमानी, न्याय, आदि, परन्तु गरीबी व अमीरी का अध्ययन लोगों की आय से किया जाता है। इसके लिए हम विभिन्न तथ्यों को तीन भागों में बाँट सकते है- प्रथम, वे तथ्य जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से संख्या में व्यक्त किया जा सकता है, जैसे मनुष्य की आयु, वजन, आय, आदि। द्वितीय, वे तथ्य जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से संख्या द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से किसी अन्य साधन द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। जैसे विद्यार्थियों को बुद्धिमत्ता को प्रत्यक्ष रूप से संख्या द्वारा तो व्यक्त नहीं किया जा सकता है किन्तु उनकी परीक्षा के प्राप्तांक के आधार पर उनके बौद्धिक स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। तृतीय, वे तथ्य जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संख्या द्वारा व्यक्त नहीं किये जा सकते, जैसे चरित्र, संस्कृति, देश- प्रेम, इत्यादि। ये तथ्य सांख्यिकीय अध्ययन की सीमा में नहीं आते हैं।

(3) सांख्यिकीय निष्कर्ष पूर्णरूपेण प्रामाणिक नहीं होते हैं- प्रो. एफ.सी. मिल्स के अनुसार "साधन के रूप में सांख्यिकीय विधियों का उपयोग बहुत चतुराई से करना चाहिये तथा जो फल सांख्यिकीय विवेचन से प्राप्त होते हैं उनका अर्थ निकालने में बहुत सावधानी की आवश्यकता है।" सांख्यिकीय विवेचन से प्राप्त निष्कर्षों पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं कर लेना चाहिये। उचित विवेचन के अभाव में कभी-कभी भ्रमपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, आँकड़ों द्वारा यह ज्ञात हुआ कि परीक्षा में जो विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में आए उन सबकी आदत ताश खेलने की थी। अतएव प्रथम श्रेणी में उर्तीर्ण होने के लिये ताश खेलना आवश्यक है, ऐसा निष्कर्ष निश्चय ही भ्रमपूर्ण होगा क्योंकि इन दोनों का सम्बन्ध आकस्मिक हो सकता है। प्रो. बाउले का भी कथन, "जो विद्यार्थी समंकों का उपयोग करता है उसे अनुसन्धान के निष्कर्षों को प्रामाणिक मानकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिये, परन्तु उस विधि के समस्त अंगों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये।"

(4) सांख्यिकीय तथ्यों का समान और सजातीय होना आवश्यक है- आपस में तुलना के लिये यह आवश्यक है कि जो आँकड़े एकत्रित किये गये हों वे एक ही गुण को प्रकट करने वाले हों। उनमें आरम्भ से अन्त तक उच्च कोटि की स्थिरता आवश्यक है तभी निष्कर्ष ठीक होंगे, अन्यथा नहीं। उदाहरणार्थ, यदि हम किसी विशेष समय में विशेष प्रकार के गेहूँ का औसत मूल्य जानना चाहते हों तो उसी प्रकार के गेहूँ के मूल्यों को एकत्रित करना चाहिये। यदि ऐसा नहीं किया जाये तो परिणाम शुद्ध न होगा। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न जाति के आँकड़ों की तुलना नहीं की जा सकती है। उदाहरण के लिये गेहूँ की उपज और पशुओं की संख्या में कोई तुलना सम्भव नहीं है।

(5) सांख्यिकीय निष्कर्ष केवल माध्य रूप में लागू होते हैं- भौतिक विज्ञान व अंकगणित के नियमों की तरह सांख्यिकी के नियम पूर्ण रूप से सत्य नहीं होते हैं। ये केवल सन्निकट प्रवृत्तियों को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिये यदि यह कहा जाये कि भारतीय निर्धन होते हैं तो यह कथन एक प्रवृत्ति की ओर इंगित करता है। यह बात औसत रूप से ठीक है। प्रो. नीस्वैगर ने लिखा है, "यद्यपि यह कहना अत्यन्त कठिन है कि एक हजार व्यक्तियों के समूह में कौन-कौन एक निश्चित आयु तक जीवित रहेगा, फिर भी यह सरलता से बतलाया जा सकता है कि समस्त समूह में कितने उस आयु तक जीवित रहेंगे।"

(6) सांख्यिकीय अनुसन्धान के हेतु सांख्यिकीय नियमों का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है- यह बात किसी-न-किसी सीमा तक ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होती है। उदाहरण के लिये, दवाइयों का उपयोग वह कर सकता है जो उनके गुण तथा दोषों को पूर्ण रूप से जानता हो, किन्तु सांख्यिकी के लिये यह बात विशेष रूप से लागू होती है। प्रो. बाउले ने लिखा है, "अयोग्य व्यक्ति के हाथ में पड़कर समंक बहुत भयानक शस्त्र साबित हो सकते हैं।" इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि “समंक अयोग्य चिकित्सक

के हाथ में दवा के समान हैं जिनका दुरुपयोग अनजान या अयोग्य व्यक्ति द्वारा बड़ी सरलता से हो सकता है।"

(7) सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करती है, समाधान नहीं- सांख्यिकी की यह सीमा बाउले के कथन पर आधारित है यद्यपि कई विद्वान इससे सहमत नहीं हैं। उनका कथन है कि सांख्यिक का कर्तव्य समंकों को एकत्रित कर उन्हें उचित रीति से प्रदर्शित करना है, उनका कर्तव्य निष्कर्ष निकालना नहीं है। इस कथन का विरोध यह कहकर किया जाता है कि यदि सांख्यिक निष्कर्ष नहीं निकलता है तो सांख्यिकी विज्ञान का कोई प्रयोजन नहीं है। दोनों ही पक्षों के विचारों पर ध्यान देने के बाद यह निर्णय किया जा सकता है कि वास्तव में सांख्यिक का कार्य स्वार्थरहित रहकर आँकड़ों को एकत्रित करना और उन्हें आवश्यकतानुसार प्रदर्शित करना है ताकि उनके द्वारा उचित निष्कर्ष निकाले जा सकें और उनका दुरुपयोग न होने पाये। इसीलिये कहा जाता है, जैसे कि एक शराबी बिजली के खम्भे को सहारे के लिये प्रयोग करता है न कि इसकी रोशनी का उपयोग करने के लिये।

(8) सांख्यिकी के परिणामों का ससन्दर्भ अध्ययन किया जाना चाहिये- सांख्यिकी के परिणाम को ठीक प्रकार से जानने के लिये परिस्थितियों को भली-भाँति जानना आवश्यक है। यदि परिस्थितियों को स्पष्ट न किया जाये या सन्दर्भ न दिया जाये तो परिणाम अशुद्ध हो सकते हैं। उदाहरण के लिये 'अ' व्यवसाय में तीन वर्षों का लाभ क्रमश: 1000, 2000 व 3000 रुपये है और 'ब' व्यवसाय में उन्हीं वर्षों का लाभ क्रमश: 3000, 2000 व 1000 रु. है। दोनों का औसत लाभ 2000 रु. होता है। इससे यह परिणाम निकलता है कि दोनो व्यवसायों की एक-सी अवस्था है, किन्तु यह वास्तविकता नहीं है। सन्दर्भ से देखा जाये तो स्पष्ट होगा कि 'अ' व्यवसाय प्रतिवर्ष उन्नति कर रहा है और 'ब' व्यवसाय प्रतिवर्ष अवनति की ओर बढ़ रहा है।

सांख्यिकी का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Statistics with other Sciences)

सांख्यिकी विज्ञान का प्रयोग दिनों दिन बढ़ता जा है और लगभग सभी क्षेत्रों में संख्यात्मक तथ्यों का संग्रहण किया जाने लगा है। इसलिये सांख्यिकी का लगभग सभी महत्वपूर्ण शास्त्रों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया है। अब हम सांख्यिकी के कुछ अन्य विज्ञानों के साथ सम्बन्ध का अध्ययन करेंगे:

(1) सांख्यिकी और गणित (Statistics and Mathematics)- वास्तव में सांख्यिकी गणित का ही एक भाग है, क्योंकि गणित का मुख्यतया अंकों से ही सम्बन्ध है। कॉनर के शब्दों में, "सांख्यिकी व्यावहारिक गणित को एक शाखा है जो समंकों में विशिष्टीकरण प्राप्त करती है।" (Statistics is the branch ofapplied Mathematics which specializes in data.) सांख्यिकी में तथ्यों के संग्रहण के पश्चात् उनके तुलनात्मक अध्ययन के लिये विभिन्न माध्यों का उपयोग करना पड़ता है, सूचकांक निकालने पड़ते हैं तथा सहसम्बन्ध निकालना पड़ता है। यह सब गणित की सहायता से ही होता है। वास्तव में हम सांख्यिकी शास्त्र में जिन सूत्रों का प्रयोग करते हैं, वे गणित के ही हैं। गणित की सहायता से ही इस शास्त्र के नियमों को ठीक बनाया गया है। गणित के कई नियम जैसे सम्भावना सिद्धान्त (Law of Probability), जाँच और अशुद्ध रीति (Trial and Error method) पर आधारित सांख्यिकी के कई नियम जैसे 'सांख्यिकीय नियमितता नियम' (Law of Statistical Regularity), 'महांक जड़ता नियम' (Law of Inertia of Large Numbers) आदि बने हैं।

सांख्यिकी तथा गणित में केवल इतना अन्तर है कि गणित में जिन सूत्रों को निकाला जाता है उनका प्रयोग सांख्यिकी में किया जाता है। गणित जितना निश्चित विज्ञान है उतना सांख्यिकी नहीं है, क्योंकि उनमें अधिकांश तथ्य अनुमान पर ही आधारित होते हैं।

(2) सांख्यिकी और अर्थशास्त्र (Statistics and Economics)- सांख्यिकी और अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अटूट है। सांख्यिकी की सहायता के बिना अर्थशास्त्र का ज्ञान अधूरा है। नो, मार्शल ने इसी कथन की पुष्टि में यह लिखा है कि “समंक वह तृण है जिनसे प्रत्येक अन्य अर्थशास्त्री की भाँति मुझे भी ईंटें बनानी पड़ती हैं।" आजकल सभी आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन सांख्यिकी की सहायता से ही होता है। जनसंख्या का घनत्व, उत्पादन की दर, प्रति व्यक्ति वार्षिक आय आदि सभी सूचनायें आज के युग में भी आवश्यक हैं और इनमें सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग नितान्त आवश्यक है। एंजिल का नियम सैक्सनी के अनेक परिवारों के पारिवारिक आय-व्यय के अंकों के आधार पर स्थापित किया गया। इसी प्रकार अर्थशास्त्र की अनेक समस्यायें जैसे विदेशी व्यापार, बैंकों की साख-व्यवस्था, आदि का उचित नियम सांख्यिकी की सहायता के बिना सम्भव नहीं है।

योजना काल में आर्थिक विकास का समस्त आधार ही सांख्यिकीय तथ्य है। योजना बनाने के पूर्व वर्तमान स्थिति से सम्बन्धित सब अंकों का संग्रहण किये बिना आगे चलना असम्भव है। इसके अतिरिक्त योजना के तथ्यों को चित्रों अथवा रेखाओं द्वारा दिखाये बिना वह प्रत्येक व्यक्ति के लिये सुगम नहीं होते।

एक नये विषय 'अर्थमिति' (Econometrics) जो अर्थशास्त्र से ही सम्बन्धित है, में आर्थिक नियमों की पुष्टि सांख्यिकीय ढंग से ही होती है। इस प्रकार सांख्यिकी और अर्थशास्त्र में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(3) सांख्यिकी और जीवशास्त्र तथा प्राणीशास्त्र- योजना के आधुनिक युग में प्राणी विज्ञान में बहुत उन्नति हुई है। किस देश की भेड़ें कितनी वजनी होती हैं, कहाँ की गायें अधिक दूध देने वाली हैं- यह बातें सांख्यिकी से सम्बन्धित हैं। प्रत्येक की उन्नति अथवा अवनति की दशा जानने के लिये, विभिन्न स्थानों के जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों के अंक संग्रहीत करके यह निर्णय करना पड़ता है कि कहाँ किस प्रकार का भोजन अथवा खाद उपयुक्त होगा। इस प्रकार सांख्यिकी का जीवशास्त्र और प्राणीशास्त्र के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(4) सांख्यिकी व राजनीति- प्राचीनकाल में तो सांख्यिकी का सम्बन्ध राजनीति से ही था। राजा- महाराजा ही विभिन्न उद्देश्यों से अंकों का संग्रहण कराते थे, किन्तु आज यह कार्य केवल राज्य ही नहीं करते अपितु अनेक निजी संस्थायें, बैंक, परिवहन संस्थायें अथवा उद्योग मण्डल भी करते हैं। प्रत्येक देश में सरकार भी अनेक क्षेत्रों में समंक एकत्रित करने का कार्य करती है। प्रत्येक देश में एक सांख्यिकी विभाग होता है जो कर-व्यवस्था, पारिश्रमिक, जीवन निर्वाह तथा आयात-निर्यात सम्बन्धी अंक एकत्रित कर प्रकाशित करता है। जनगणना एवं मताधिकार की व्यवस्था आज के प्रजातन्त्र का प्राण है और इसमें सांख्यिकीय तथ्यों का सहयोग अनिवार्य है।

इसके अतिरिक्त सांख्यिकी का प्रयोग भौतिक तथा रसायन शास्त्रों में ही होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज के विकासवादी युग में इस विज्ञान का लगभग सभी प्रमुख विज्ञानों से सम्बन्ध है और इसीलिये कहा भी जाता है कि-

"समंकों के बिना विज्ञान निष्फल है, बिना विज्ञानों के समंक निर्मूल हैं।" (Science without statistics bear no fruit, statistics without science have no root)

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