सांख्यिकी के कार्य, महत्व एवं दुरुपयोग (FUNCTIONS, IMPORTANCE AND DISTRUST OF STATISTICS)

सांख्यिकी के कार्य, महत्व एवं दुरुपयोग (FUNCTIONS, IMPORTANCE AND DISTRUST OF STATISTICS)

सांख्यिकी के कार्य, महत्व एवं दुरुपयोग  (FUNCTIONS, IMPORTANCE AND DISTRUST OF STATISTICS)

सांख्यिकी के कार्य (Functions of Statistics)

सांख्यिकी के अन्तर्गत अपनाई गई रीतियों का विकास समाज की बढ़ती हुई जागृति, शिक्षा तथा अनुसंधान कार्य के साथ-साथ हुआ। इसलिये इस विज्ञान में केवल आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण ही नहीं होता अपितु प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं पर भी प्रकाश डाला जाता है। इस प्रकार सांख्यिकी का कार्य-क्षेत्र काफी बढ़ गया है। हम यहाँ सांख्यिकी के कार्यों का अध्ययन करेंगे-

(1) तथ्यों को संख्या के रूप में प्रकट करना (Expression of facts in numbers)- जैसा कि हमने ऊपर वर्णित किया है- सांख्यिकी का मुख्य कार्य तथ्यों को संबंधित संख्याओं को प्रकट करना है। कुछ तथ्य जैसे आयु, आय, आदि संख्या द्वारा सरलता से प्रकट किये जा सकते हैं। इनके लिये आँकड़े एकत्रित किये जा सकते हैं, लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिनके लिये आँकड़ों का प्रयोग कठिनाई से होता है, जैसे राष्ट्रीय आय। सांख्यिकी में इसे अप्रत्यक्ष रूप से आँकड़ों द्वारा प्रकट किया जाता है। तेजी, मन्दी, बेरोजगारी, आर्थिक उन्नति, अवनति, इत्यादि को अब गुणात्मक रूप के बजाय संख्यात्मक रूप में किया जाता है। इसके लिए विशेष रूप से निर्देशांकों की सहायता ली जाती है।

(2) अंक समूह की जटिलता को सुगम बनाना (Simplifies complexity of data)- सांख्यिकी जटिल व विपुल अंकों को सरल, संक्षिप्त एवं वर्गीकृत रूप में व्यक्त करती है ताकि वे सरलता से समझे जा सकें। यदि दो कालेजों के विद्यार्थियों के किसी एक परीक्षा में प्राप्तांक हमें दिये गये हैं तो उनकी सहायता से हम दोनों कालेजों के विद्यार्थियों की बुद्धिमत्ता के बारे में कुछ भी नहीं समझ सकेंगे या समझने में काफी समय लगेगा। यदि वे ही गुण सारणी (table) में दिये गये हों तो हमें कुछ कल्पना जल्द आ सकती है। इस प्रकार सांख्यिकी का प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह आँकड़ों को वर्गीकरण, सारणीयन तथा विश्लेषण द्वारा अत्यन्त सरल व समझने योग्य बनाये।

(3) व्यक्तिगत ज्ञान व अनुभव की वृद्धि करना (Enlarges individual experience and Knowledge)- प्रो. बाउले के अनुसार, "एक जटिल समूह के सांख्यिकीय अनुमान का यह उद्देश्य होता है कि साधारण प्रयत्न द्वारा मस्तिष्क समूह के महत्व को समझ सकें।" सांख्यिकी अन्य विज्ञानों की तरह मनुष्य के ज्ञान व अनुभव की वृद्धि करती है। कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर संख्यात्मक अभ्यास करने के लिये अपनी पूर्ण योग्यता व निर्णय-शक्ति का उपयोग कर सकता है, किन्तु इस विषय का विस्तारपूर्वक अध्ययन करते समय अनेक समस्यायें एवं कठिनाइयाँ सामने आती हैं। इन कठिनाइयों को हल करने के लिये सांख्यिकीय रीतियों की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिये, एक व्यक्ति किसी विशेष समय के लिये भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान लगा सकता है। यदि यह अनुमान सांख्यिकीय रीतियों की सहायता के बिना लगाया गया है तो यह अविश्वसनीय होगा। इसे जानने के लिये सांख्यिक (Statistician) अनुसन्धान करता है तो सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग करता है। इस प्रकार जो जानकारी प्राप्त होगी वह सत्य और विश्वसनीय होगी। श्री हिपस ने कहा है, "सांख्यिकी व्यक्ति के अनुभव व क्षितिज को व्यापक करने में मदद करती है।"

(4) तथ्यों की तुलना करना (Comparison of facts)- सांख्यिकी का यह भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। यथार्थ रूप में रखे गये तथ्यों का तब तक कोई महत्व नहीं होता जब तक कि उनकी तुलना दूसरे तथ्यों से नहीं की जाये। यदि केवल यह कहा जाये कि भारत में प्रति वर्ष 20 लाख टन इस्पात उत्पन्न किया जाता है तो कुछ व्यक्ति सोच सकते हैं कि भारत में बहुत कम इस्पात का उत्पादन होता है और कुछ यह सोच सकते है कि यह उत्पादन बहुत अधिक है। जब तक दूसरे देशों के इस्पात उत्पादन के अंक नहीं दिये जायें और भारत की आवश्यकता नहीं बताई जाये तब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि उत्पादन कम है या अधिक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही सांख्यिकी तुलना की विधियाँ बतलाती है। इन विधियों के प्रयोग से तथ्यों का अन्तर अथवा सम्बन्ध भली प्रकार समझ में आ सकता है। इसके अलावा बहुत से तथ्यों को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करना अनिवार्य है- जैसे मूल्य अथवा उत्पादन के देशनांक, श्रमिकों का वेतन, आदि।

(5) दूसरे विज्ञानों के नियमों की जाँच करना (Test of the Laws of other sciences)- विज्ञानों के प्राचीन नियम निगमन प्रणाली पर आधारित हैं। सांख्यिकी की सहायता से उन नियमों की सत्यता की जाँच आँकड़े एकत्रित करके की जाती है। आवश्यकतानुसार उन नियमों में परिवर्तन भी किये जाते हैं। सांख्यिकीय रीतियों से अन्य विज्ञानों में नये नियमों का निर्माण होता है। ये नियम सांख्यिकी की सहायता से अच्छी तरह जाँच लिये जाते हैं। उदाहरणार्थ अर्थशास्त्र का यह नियम कि प्रत्येक कुशल व्यापारी सस्ते बाजार में क्रय करता है और महँगे। बाजार में बेचता है सामान्यतया मान्य है; परन्तु इसे सिद्ध करने के लिये अंक एकत्रित किये जा सकते हैं और प्रमाण देकर सन्देह दूर किया जा सकता है। एंजिल का यह नियम कि कम आय वाले परिवार का भोजन पर प्रतिशत खर्च अधिक होता है, वास्तविक तथ्यों के अभाव में सर्वमान्य नहीं सकता। अत: सांख्यिकी द्वारा दूसरे शास्त्रों के नियमों का परीक्षण करके उनके नियमों की व्यावहारिकता तथ्यों द्वारा सिद्ध की जाती है।

(6) नीति-निर्धारण की सुविधा प्रदान करना (Guidance in the formation of policies)- प्रत्येक क्षेत्र में जहाँ आँकड़े मिलते हैं, नीति को निश्चित करने में सरलता होती है। सांख्यिकीय सामग्री के वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा नीति का निर्माण होता है। किसी देश में किसी विशिष्ट वर्ष में किसी वस्तु का कितना आयात किया जाये और किस वस्तु का कितना निर्यात किया जाये, यह समुचित आँकड़ों के उपलब्ध होने पर ही निश्चित किया जा सकता है। समंकों की सहायता से ही ऐंजिल ने पारिवारिक बजट बनाया और जीवन-स्तर के विषय में कई नीतियों का निर्धारण किया। आँकड़ों के आधार पर ही कर नीति, ब्याज नीति, बीमा प्रीमियम-नीति, आदि नीतियाँ निश्चित की जाती हैं।

(7) आयोजन तथा भविष्यवाणी करना (Planning and forecasting)- योजना के इस काल में वर्तमान तथ्यों के आधार पर भविष्य के लिये निर्धारित की जाती है। भारतवर्ष की जनसंख्या प्रतिवर्ष दो प्रतिशत के लगभग बढ़ जाती है। यह वृद्धि बहुत अधिक है। इसीलिये भारत में परिवार नियोजन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी प्रकार अन्न की उत्पत्ति, औद्योगिक उत्पादन तथा अन्य क्षेत्रों में वर्तमान तथ्यों के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है। यह कार्य बाह्यगणन (Extrapolation) और अन्तर्गणन (Interpolation) के द्वारा किया जाता है।

(8) तथ्यों के बीच सहसम्बन्ध की मात्रा ज्ञात करना (Extent of corelation between facts)- सांख्यिकी की सहायता से दो तथ्यों के मध्य सहसम्बन्ध (Corelation) का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। हमें यह विदित ही है कि भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर है। कृषि उत्पादन का अच्छा या खराब होना वर्षा के परिणाम पर निर्भर करता है। इस प्रकार हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत में वर्षा और कृषि- उत्पत्ति में सहसम्बन्ध है और एक का दूसरे पर प्रभाव होता है। इसी प्रकार मूल्य और पूर्ति या माँग के पारस्परिक सम्बन्ध हम सांख्यिकी की सहायता से ही ज्ञात कर सकते हैं।

(9) किसी भी समस्या को निश्चयात्मकता प्रदान करना- लार्ड केल्विन का कथन है- "जिस विषय की बात आप कर रहे हैं यदि आप उसे माप सकते हैं तथा संख्या में प्रकट कर सकते हैं तो आप उसके विषय में कुछ जान सकते हैं। जब आप उसे माप नहीं सकते, जब उसे संख्या में प्रकट नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान अल्प तथा अपर्याप्त है।" जब तक किसी समस्या को सांख्यिकीय रूप नहीं दिया जाता, तब तक उसका रूप अनिश्चित होता है। उदाहरण के लिये हम सब महंगाई की बात तो करते हैं परन्तु उसकी गुरुता का निश्चित अनुमान तब तक नहीं होता, जब तक मूल्यों के सूचकांक तैयार न कर लिये जायें। इसलिये प्रो. बाउले ने लिखा है, "एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा हो या बुरा, शुद्ध हो अथवा अशुद्ध, किन्तु प्राय: हर दशा में वह आकस्मिक दृष्टा के अनुमान से अधिक शुद्ध होगा तथा उनकी प्रकृति को केवल सांख्यिकीय विधियों द्वारा ही गलत सिद्ध किया जा सकता है।'

सांख्यिकी की उपयोगिता और महत्व (Uses and Importance of Statistics)

प्राचीन समय में सांख्यिकी की उपयोगिता राज्य तक ही सीमित थी, जबकि प्रशासन को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिये जनसंख्या, भूमि, लगान, आदि से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित किये जाते थे। धीरे- धीरे इसकी उपयोगिता बढ़ने लगी। नक्षत्र विज्ञान, समाजशास्त्र, गणित एवं अर्थशास्त्र आदि विषयों में इसका प्रयोग होने लगा। मानव ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में यह प्रयुक्त होती है। इसीलिये इसे मानव कल्याण का अंकगणित कहते हैं। निम्नलिखित पंक्तियों में हम सांख्यिकी की उपयोगिता और महत्व पर चर्चा करेंगे-

(1) मानव समृद्धि का गणित (Arithmetic of human-welfare)- मानवीय कल्याण को आँकने के लिये हम व्यापार की उन्नति व अवनति, लाभ-हानि, मुद्रा-प्रसार व संकुचन, मूल्यों के उतार-चढ़ाव, रोजगार की स्थिति, उत्पादन, आदि बातों पर विचार करते हैं। इन सब बातों का पता सांख्यिकी की सहायता से ही लगता है। बाउले के अनुसार, "सांख्यिकी का ज्ञान किसी विदेशी भाषा या बीजगणित की जानकारी तुल्य है। यह किसी भी समय किसी भी परिस्थिति में उपयोगी हो सकता है।

(2) योजना के लिये अनिवार्य (Essential for planning)- यह योजना युग है। संसार के सभी राष्ट्र चाहे वे विकसित, अविकसित या अर्द्धविकसित हैं, अपने आर्थिक विकास के लिये योजनाओं का सहारा ले रहे हैं। योजना के निर्माण के लिये सबसे पहली आवश्यकता होती है-देश के आर्थिक साधनों का समुचित ज्ञान। इसके लिये योजना विभाग के पास देश के उत्पादक साधनों-भूमि, श्रम, पूँजी, खनिज, इत्यादि के आँकड़े उपलब्ध होना आवश्यक हैं। योजना के निर्माण की दूसरी शर्त देश की आवश्यकताओं का उचित ज्ञान है जिसके लिये भी हमें आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा प्रत्येक योजना बनाते समय इस बात का सही अनुमान लगाना आवश्यक है कि उसमें कितना धन व्यय होगा, कितने व्यक्तियों को काम मिलेगा और राष्ट्रीय आय कितनी बनेगी। यहाँ पर हमें सांख्यिकी का सहारा लेना पड़ता है। भविष्य की स्थितियों को जानने का एकमात्र साधन भी सांख्यिकीय विधियों का उपयोग ही है।

हमारे देश की विशेषता इन वाक्यांशों में व्यक्त की जाती है, प्रचुरता में अभाव (Scarcity amidst plenty) और “धनी देश परन्तु निर्धन देशवासी" (Rich country but inhabited by the poor)। वास्तव में हमारे देश में अपार प्राकृतिक साधन हैं किन्तु उनका विदोहन उचित मात्रा में न हो सकने के कारण देश में दरिद्रता का तांडव नाच हो रहा है। कृषि पिछड़ी अवस्था में है। औद्योगीकरण अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही है। इसलिये सन्तुलित और व्यवस्थित आर्थिक ढाँचे के लिये, जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिये और देश की सर्वोन्मुखी उन्नति के लिये नियोजन का बहुत महत्व है। पर यह तभी सम्भव है जब समुचित आँकड़े मिलें। किसी भी योजना की सफलता के लिये राष्ट्र के आर्थिक स्रोतों का अध्ययन अनिवार्य है तथा यह भी अनिवार्य है कि कृषि, उद्योग, यातायात, राष्ट्रीय आय, क्रय, बचत और कर-सम्बन्धी आर्थिक क्रियाओं के नियोजन में समन्वय स्थापित किया जाये। इन सभी कार्यों के लिये समुचित आँकड़े अति आवश्यक है। आंकड़ों की सहायता के बिना नियोजन एक बिना पतवार एवं दिशा सूचक यंत्र वाले जाज के समान है। भारत के योजना आयोग ने यह स्वीकार किया है कि योजना के लिये प्रचुर व उपयुक्त सांख्यिकीय सामग्री अनिवार्य है।

(3) शासन प्रबन्ध में सहायक (Helpful in administration)- ऊपर यह बतलाया गया है कि सांख्यिकी का उपयोग आरम्भ में शासन-संचालन के लिये ही किया गया था। मुद्रा काल में राज्य को केवल राजकीय आय, सेना, आदि के आँकड़े एकत्रित करने पड़ते थे। वर्तमान काल में ज्यों-ज्यों राज्य के कार्यों की सीमा बढ़ती जा रही है त्यों-त्यों उसके लिये सांख्यिकी का उपयोग भी अधिकाधिक होता जा रहा है। बजट बनाने से पूर्व पिछले वर्ष के आय तथा व्यय के आँकड़े इकट्ठे किये जाते हैं तब उसके आधार पर चालू वर्ष के आय-व्यय का अनुमान किया जाता है। कर लगाते समय आँकड़ों द्वारा इस बात का ज्ञान आवश्यक होता है कि प्रस्तावित कर से सरकारी आय में कितनी वृद्धि होगी।

शासन प्रबन्ध में प्रगति अथवा अवनति का ठीक-ठीक अनुमान आँकड़ों द्वारा ही किया जाता है। स्वास्थ्य विभाग के कार्य की उत्तमता का पता बीमारियों तथा मृत्यु-सम्बन्धी आँकड़ों से लगता है, पुलिस विभाग की निपुणता की परख अपराधों की संख्या में वृद्धि अथवा कमी से जानी जा सकती है। कानून बनाते समय भी आँकड़ों द्वारा उसे लागू करने की आवश्यकता को जानना आवश्यक होता है। वर्तमान सरकारें आर्थिक क्षेत्र में अधिकाधिक भाग लेती जा रही है। आर्थिक क्षेत्र में आँकड़ों का बहुत बड़ा महत्व है। इसलिये सरकार के लिए सांख्यिकीय रीतियों के उपयोग की आवश्यकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

(4) वाणिज्य व व्यवसाय में सहायक (Helpful in business and commerce)- जिस प्रकार नियोजन और शासन प्रबन्ध के सफल संचालन के लिये सांख्यिकी आवश्यक है, उसी प्रकार वाणिज्य तथा व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के लिये सांख्यिकी अत्यन्त आवश्यक है। व्यापार के सफल संचालन के लिये व्यापारियों को यह जान लेना आवश्यक है कि वे जिन वस्तुओं का व्यापार कर रहे हैं उनकी माँग कहाँ और कैसी है? भविष्य में सरकार की नीति कैसी होगी? ये सभी बातें बहुत कुछ सांख्यिकी के आधार पर ही जानी जा सकती हैं।

व्यापार तथा व्यवसाय में सांख्यिकीय विधियों के उपयोग को हम दो भागों में बाँट सकते हैं। एक तो वे उपयोग जो सभी व्यवसायों में समान रूप से लागू होते हैं और दूसरे वे उपयोग जो विशेष प्रकार के व्यवसायों में लागू किये जाते हैं। दूसरे प्रकार के उपयोगों का हम अन्त में अध्ययन करेंगे। यहाँ हम पहले प्रकार के उपयोगों का अध्ययन करेंगे।

(i) सांख्यिकीय रीतियों के द्वारा व्यापारी सम्भावित माँग तथा मूल्यों का अनुमान लगा सकते है। माँग तथा मूल्यों में प्राय: मौसमी परिवर्तन भी होते रहते हैं। कई साल के आँकड़ों के आधार पर हम काफी शुद्धता के साथ इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि इस प्रकार के परिवर्तनों की सीमा क्या होगी?

(ii) सांख्यिकीय रीतियों द्वारा प्रबन्ध में भी सहायता मिलती है। किसी बड़े कारखाने में उत्पत्ति नियोजन (Production Planning) वैज्ञानिक प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण भाग है। श्रम की उत्पादकता, प्रति इकाई उत्पादन लागत इत्यादि पर नियन्त्रण रखने के लिये आँकड़ों का संकलन तथा विवेचन आवश्यक है। बिक्री विभाग की आवश्यकताओं का अनुमान लगाकर कच्चे माल, आवश्यक औजार, श्रम, आदि की पूर्ण व्यवस्था की जाती है ताकि कार्य बिना किसी बाधा के सुचारु रूप से चलता रहे। प्रबन्ध में किये जाने वाले किसी सुधार का क्या प्रभाव पड़ा, इसकी परख भी सांख्यिकीय रीतियों द्वारा ही सम्भव है।

(iii) सांख्यिकीय प्रणाली लागत के अनुमान में भी सहायक होती है। किसी वस्तु की लागत, उत्पादन की मात्रा, किस्म तथा संगठन के अनुसार बदलती रहती है। सांख्यिकीय विवेचन द्वारा पिछले समंकों के आधार पर काफी शुद्धता के साथ यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी विशेष प्रकार का माल, एक निश्चित मात्रा में तैयार करने पर लागत क्या होगी? इसे प्राय: 'बजटरी कन्ट्रोल' कहा जाता है।

(iv) बिक्री के कार्य में सांख्यिकीय विधियों का उपयोग होता है। इसके लिये सांख्यिकीय प्रणाली पर संगठित बाजार सर्वेक्षण (Market Surveys) किये जाते हैं जिनमें किसी वस्तु के सम्बन्ध में ग्राहकों की राय जानी जाती है तथा उनकी रुचि के अनुरूप ही वस्तु की किस्म में सुधार करने एवं विज्ञापन की योजना बनाई जाती है। नया माल तैयार करने के पहले उसकी सम्भावित माँग या किस्म में सुधार करने पर उसका प्रभाव जानने के लिये भी इस प्रकार के सर्वेक्षण किये जाते हैं।

(v) किस्म नियन्त्रण (Quality Control) में भी सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक कारखाना इस बात का प्रयत्न करता है कि उसका बनाया हुआ माल समान रूप से प्रमापित किस्म का हो। इसके लिये समय-समय पर नमूने निकालकर उनकी जाँच की जाती है। इस प्रकार के नमूने के चुनाव तथा उसके निष्कर्षों के प्रमाणीकरण में सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग ही प्रधान रहता है। सांख्यिकीय किस्म नियन्त्रण प्रणालियाँ उन्नतिशील देशों में अधिकाधिक लोकप्रिय होती जा रही हैं।

(5) कृषि व अन्य अनुसंधानों के लिये उपयोगी (Useful in the field of agriculture and other investigations)- कृषि-क्षेत्र में खाद, सिंचाई, प्रति एकड़ उपज, इत्यादि से संबंधित अनुसंधान सांख्यिकीय ज्ञान के बिना असम्भव है। इसी प्रकार वातावरण, वर्षा, ग्रहण, इत्यादि भौगोलिक व खगोल शास्त्र से सम्बन्धित सम्पूर्ण पूर्वानुमान सांख्यिकी पर ही आधारित हैं। प्रो. कार्ल पियर्सन ने सांख्यिकी का जीवशास्त्र में भी उपयोग किया है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया है कि विकास और जन्म परम्परा (Heredity) का सिद्धान्त पूर्णत: सांख्यिकी पर आधारित है।

(6) अर्थशास्त्र की दृष्टि से उपयोगी (Economic Utility)- इसी प्रकार किसी भी आर्थिक अनुसन्धान की दृष्टि से भी सांख्यिकी का अत्यन्त महत्व है। डॉ. मार्शल ने सांख्यिकी का अर्थशास्त्र की दृष्टि से महत्व इस प्रकार स्पष्ट किया है, "सांख्यिकी वह मिट्टी है जिससे मुझे भी अन्य प्रत्येक अर्थशास्त्री की भाँति ईंटें बनानी हैं।" सांख्यिकीय कसौटी पर अर्थशास्त्र के नियम जाँचने पर ही वे सब सच निकलते हैं। किसी भी वस्तु का मूल्य, माँग, पूर्ति, जीवन-परिव्यय (Cost of Living), जनसंख्या में वृद्धि, आदि ऐसे कई विषय हैं जिनके सम्बन्ध में पूरा ज्ञान समंकों के अध्ययन के द्वारा ही हो सकता है। अर्थशास्त्र के सिद्धान्त- उदाहरणार्थ द्रव्य परिमाण सिद्धान्त (Quantity Theory of Money), उपयोगिता ह्रास नियम (Law of Diminishing Utility), आदि का सांख्यिकी की सहायता के बिना प्रतिपादन संभव नहीं था।

(7) परिमाण सम्बन्धी अध्ययन में अनिवार्य (Essential in Quantitative Study)- वैसे तो सांख्यिकीय रीतियाँ किसी भी प्रकार के अध्ययन में, विचारों में स्पष्टता व दृढ़ता लाने के लिये प्रयोग में लाई जाती हैं। परन्तु जहाँ परिमाण सम्बन्धी या संख्या सम्बन्धी अध्ययन हों वहाँ इनका प्रयोग अनिवार्य होता जाता है। ऐसी दशा में बिना सांख्यिकीय विज्ञान की सहायता के अध्ययन असम्भव है।

(8) सांख्यिकीय रीतियों का वृहद् प्रयोग (Extensive Application of Statistical Methods)- सांख्यिकीय विज्ञान का प्रयोग आधुनिक युग में सर्वत्र होता है। सामान्य मनुष्य के दैनिक जीवन में इस विज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है और साथ साथ उच्च ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से काफी होता है। विद्वानों को अपने विचारों के पुष्टिकरण की आधार-भूमि इसी के प्रयोग से मिलती है। किसी भी विचारधारा को अधिक मान्य व लोकप्रिय बनाने के लिये तत्सम्बन्धी आँकड़ों का देना बहुत आवश्यक हो गया है और फलस्वरूप इस विज्ञान का प्रयोग बहुत हो रहा है।

(9) वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार (Extention of the scientific knowledge)- वैज्ञानिकों को अपने अनिश्चित व भ्रमपूर्ण अनुमानों व विचारों को शुद्ध करने तथा परिमाणात्मक विषयों में सम्बन्ध स्थापित करने में आँकड़ों की सहायता लेनी पड़ती है। लगभग सभी विज्ञानों के सिद्धान्तों के प्रतिपादन तथा पुष्टिकरण के लिये सांख्यिकीय रीतियों को प्रयोग में लाया जाता है और इस प्रकार सांख्यिकी वैज्ञानिक ज्ञान के विस्तार में बहुत सहायक है। अर्थशास्त्री राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, उत्पादन, व्यवसाय की मात्रा, द्रव्य की क्रय-शक्ति, आदि का अध्ययन करने के लिये आँकड़ों पर निर्भर रहता है। इस प्रकार अन्य विज्ञानों का बहुत कुछ विकास इस विज्ञान की सहायता से ही संभव हो सका है। एक समाजशास्त्रीय सांख्यिकीय सामग्री की सहायता से शराब की बिक्री व अपराधों के बढ़ने में सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार लगभग सभी विज्ञानों के लिये इस विज्ञान का ज्ञान अनिवार्य है।

(10) भूतकालीन ज्ञान व अनुभवों की सुरक्षा (Record of the past knowledge and experience)- सांख्यिकी भूतकालीन ज्ञान व अनुभव को सुरक्षित रखने में भी सहायक होती है। इसी के आधार पर भविष्य की रूपरेखा बनाई जाती है। इसी ज्ञान को अनुभव के आधार पर एक स्तर निश्चित किया जाता है और फिर तुलना की जाती है। यह अनुभव एक योग्य सलाहकार की भाँति सलाह देता है।

(11) निरीक्षण में सहायक (Aid to supervision)- आज के युग में प्रत्येक संस्था का यह प्रयत्न रहता है कि अल्प-व्यय में सुन्दरतम कार्य हो। सांख्यिकी इस कार्य में सहायक होती है। आँकड़ों की सहायता से निरीक्षण की योजना इस प्रकार बनाई जा सकती है कि कम व्यय में अधिक निरीक्षण हो सके। आज के युग में श्रमिक और मालिक का प्रत्यक्ष सम्बन्ध न रहने के कारण, कार्य की देखभाल के लिये इस विज्ञान की सहायता अनिवार्य हो गई है। सरकारी विभागों के कार्यों पर भी नियन्त्रण रखने के लिये सांख्यिकी की सहायता अति आवश्यक है।

(12) सार्वभौम उपयोगिता (Universal Utility)- इस प्रकार स्पष्ट है कि सांख्यिकी का महत्व किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इस विज्ञान की उपयोगिता तो सर्वव्यापी है। इसी सन्दर्भ में डॉ. बाउले का कथन है कि, 'सांख्यिकी का ज्ञान विदेशी भाषा अथवा बीजगणित के ज्ञान के समान है। यह किसी भी समय, किसी भी स्थिति में उपयोगी सिद्ध हो सकती है।" यहाँ हम उन परिस्थितियों का अध्ययन करेंगे जिनमें सांख्यिकी का उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है।

(i) अधिकोषण (Banking)- बैंकों के पास जनता का धन धरोहर के रूप में रहता है। यह धन कभी भी वापस माँगा जा सकता है। बैंकों को सम्बन्धित आँकड़ों के आधार पर यह निश्चित करना पड़ता है कि कितनी धनराशि माँगी जाने की सम्भावना है और कितनी अन्यत्र विनियोग की जा सकती है।

(ii) बीमा व्यवसाय (Insurance)- बीमा व्यवसाय के लिये भी सांख्यिकी की उपयोगिता कुछ कम नहीं है। बीमा कम्पनियाँ मृत्यु-संबंधी आँकड़ों के आधार पर ही प्रब्याजि (Insurance Premium) की दरें निर्धारित करती हैं। इन आँकड़ों के संकलन के अभाव में बीमा व्यवसाय का सफल संचालन कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव भी हो सकता है।

(iii) रेल यातायात (Rail-Transport)- रेल मन्त्रालय बजट बनाते समय, रेल-भाड़ों का निर्धारण करते समय तथा अन्य बहुत-सी दशाओं में आँकड़ों के आधार पर नीति का निर्धारण करता है। यदि किसी नवीन रेल-मार्ग का निर्माण करना है तो कार्य आरम्भ करने के पूर्व इस बात की जानकारी प्राप्त करनी आवश्यक हो जाती है कि इस मार्ग पर कितने यात्री साधारणतया रेल द्वारा यात्रा करेंगे और कितना माल मालगाड़ी द्वारा भेजे जाने की सम्भावना है? इन बातों की जानकारी के लिये आँकड़ों का अनुमान और उनका संकलन आवश्यक होता है। सांख्यिकी ने रेल-यातायात की बहुत सहायता की है।

(iv) स्कन्य-विनिमय व उपज विनिमय विपणियाँ (Stock and Produce Exchanges)- समंक का महत्व इन विपणियों के दलालों तथा विनियोक्ताओं के लिये भी किसी प्रकार कम नहीं हैं। इनके अभाव में भावों के उतार-चढ़ाव व माँग-पूर्ति का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यही इन लोगों की सफलता की प्रथम सीढ़ी है। परिकल्पकों (Speculators) के व्यवसाय के लिये भावी मूल्यों के सच्चे अनुमान बहुत जरूरी हैं और यह अनुमान विश्वसनीय आँकड़ों के आधार पर ही लगाये जा सकते हैं।

(v) अभिगोपन (Underwriting)- अभिगोपन का कार्य बड़ा जोखिम का है। उसके लिये ब्याज की दर का ज्ञान अति महत्वपूर्ण है और यह सांख्यिकी की सहायता से ही सम्भव है। भारत में इस व्यवसाय के न बढ़ने का कारण समंकों का उपलब्ध नहीं होना रहा है।

(vi) समाज सुधारक (Social Reformer)- समाज सुधारकों का कार्य भी इस विज्ञान के बिना आगे नहीं बढ़ सकता। सामाजिक दोषों जैसे निरक्षरता, बाल-विवाह, मद्य-पान, आदि के विषय में पूरे आँकड़े प्राप्त होने पर ही इन दोषों की भीषणता का अनुमान लग सकता है तथा उन्हें दूर करने की दिशा में सफल प्रयत्न किये जा सकते है।

(vii) राजनीतिज्ञ (Politician)- सरकार या देश की संसद एवं धारा सभाओं के सम्मुख जो विभिन्न समस्यायें राजनीतिज्ञों द्वारा प्रस्तुत की जाती है और जिनके लिये विधान बनाये जाते हैं, उन समस्याओं के अध्ययन के लिये तथा आवश्यक कानून की व्यवस्था के लिये आँकड़ों का ज्ञान व प्रयोग बहुत आवश्यक है।

उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि सांख्यिकी का उपयोग सर्वव्यापी है। आज हम आर्थिक प्रगति की ओर अग्रसर है और योजनाबद्ध आर्थिक विकास तथा औद्योगीकरण के लिये दृढ़ संकल्प है, तब सांख्यिकी का नव निर्माण में योगदान आवश्यक ही है। देश की समस्याओं के समाधान और अकंटक प्रगति के लिये सांख्यिकी का अध्ययन व उसकी उपयोगिता काफी महत्वपूर्ण है।

सांख्यिकी की अविश्वसनीयता (Distrust of Statistics)

आधुनिक समय में आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में सांख्यिकी का कितना महत्वपूर्ण स्थान है-यह तो उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट हो ही गया है फिर भी सांख्यिकी पर अविश्वास किया जाता है और उसे विभिन्न रूपों में प्रदर्शित किया जाता है। हमें इस पर विचार करना है कि सांख्यिकी के प्रति यह अविश्वास कैसे व्यक्त किया जाता है, वे क्या कारण हैं जो अविश्वास को जन्म देते हैं और कहाँ तक इसमें सत्यता है?

डिजराइली के मतानुसार, “झूठ तीन प्रकार का होता है-झूठ, सफेद झूठ और सर्मक।” (There are three kinds of lies-lies, damn lies and statistics-Disraeli) इसी प्रकार एक दूसरी उक्ति कही जाती है कि “सांख्यिकी में कुछ काले झूठ होते हैं, कुछ सफेद झूठ होते हैं और कुछ बहुरंगी झूठ होते हैं; वास्तव में सांख्यिकी झूठ का इन्द्रधनुष है।" (There are black lies, white lies and multi-coloured lies; Statistics is a rainbow of lies)। इन कथनों से यह मालूम होता है कि कुछ लोग यह मानते हैं कि समंक झूठे, भ्रमात्मक और अविश्वसनीय हैं। इसलिये जैसे एक झूठे व्यक्ति का विश्वास नहीं किया जा सकता; सांख्यिकी विज्ञान पर भी विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। बात ठीक भी है। सांख्यिकी विज्ञान के माध्यम से असत्य बात को भी सत्य प्रमाणित किया जा सकता है और कोई भी व्यक्ति साधारणतया समंकों (आँकड़ों) द्वारा प्रमाणित बात को सत्य मानने को तैयार हो जायेगा। उसकी यह धारणा हो जाती है कि आँकड़े झूठे नहीं हो सकते हैं (Figures do not tell a lie, or iffigures say so, it can not be otherwise.) इस प्रकार सांख्यिकी विज्ञान जादू का वह करिश्मा बन जाता है जिसकी सहायता से सही को गलत और गलत को सही किया जा सकता है। यही कारण है कि डिजराइली आदि व्यक्तियों ने सांख्यिकी विज्ञान को झूठ की श्रेणी में रखा है। आपको कुछ वर्षों इस पर लोकसभा में बहस के विषय में जानकारी होगी ही-जिसमें प्रति व्यक्ति आय को लेकर कितना विवाद हुआ था। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने प्रति व्यक्ति आय के आँकड़े कुछ दिए और शासन पक्ष ने कुछ और। किन को सत्य माना जाये और किनको झूठ-यह विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसी भाँति राष्ट्रीय आय, शिक्षण, बेकारी, उत्पादन, आदि के जो आँकड़े विभिन्न स्रोतों द्वारा प्राप्त होते हैं-वे भिन्न-भिन्न होते हैं। हरेक पक्ष अपने आँकड़ों को विश्वसनीय बतलाता है। देश में अनाज की परिस्थिति को ही लीजिए। सरकार की ओर से जो आँकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं उनमें यह बतलाया जाता है कि देश में उत्पादन बढ़ा है और खाद्यान्न की कोई समस्या नहीं है। विरोधी पक्ष द्वारा प्रस्तुत आँकड़े कुछ और ही बोलते हैं-वे उत्पादन में कमी बतलाकर ही भावों की वृद्धि का अपना पक्ष हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि "आँकड़े किसी भी बात को सिद्ध कर सकते हैं।" (Statistics can prove anything)।

कुछ लोगों का यह भी कथन है कि सांख्यिकी का कार्य-क्षेत्र किसी तथ्य को प्रमाणित करना नहीं है। इसका कार्य तो केवल तथ्यों को सत्य रूप में प्रकट करना है। इसलिए यह कहा जाता है कि "आँकड़े कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं।' (Statistics can prove nothing)।

उपरोक्त उक्तियाँ जो सांख्यिकी के प्रति अविश्वास प्रकट करती हैं, हमें उनके कारणों पर भी विचार करना है। सांख्यिकी के प्रति अविश्वास के कई कारण हैं-

(1) आँकड़ों को ऊपरी तौर पर देखना- आँकड़ों को केवल मात्र ऊपर से देखने पर कुछ पता नहीं लगता है कि आँकड़े बनावटी है, या सचमुच उन्हें एकत्रित करने में परिश्रम किया गया है। इस दुविधा के कारण ही लोग उन पर अविश्वास करने लग जाते हैं।

(2) परस्पर विरोधी आँकड़ों का प्राप्त होना- कई बार एक ही विषय पर (जैसा राष्ट्रीय आय के विषय में ऊपर बताया गया है) परस्पर विरोधी आँकड़े मिलते हैं। उन आँकड़ों को देखने वाला भ्रम में पड़ जाता है कि किन आँकड़ों को सत्य माना जाये। इस कारण आँकड़ों पर उसका विश्वास नहीं रहता।

(3) प्रत्यक्ष अनुभव का आँकड़ों द्वारा विरोधाभास- कभी-कभी ऐसा होता है कि जो बात प्रत्यक्ष रूप से हमारे सम्मुख स्पष्ट दिखती है-आँकड़े या तो उस बात की पुष्टि नहीं करते या उसके बिलकुल विपरीत बोलते हैं-तब स्वाभाविक है कि आँकड़ों पर विश्वास नहीं होता है। उदाहरण के लिये प्रत्येक उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से यह अनुभव कर रहा है कि भावों में प्रतिदिन वृद्धि हो रही है, लेकिन इसके विपरीत सरकारी आँकड़े यदि यह पुष्टि करें कि भावों में वृद्धि नहीं हुई है या भाव गिरे हैं, तो स्वाभाविक है कि लोग उस पर कैसे विश्वास करेंगे।

(4) समंक सामूहिक रूप से प्रस्तुत- समंक सामूहिक रूप से प्रस्तुत किये जाते हैं किन्तु यदि उन्हें व्यक्तिगत रूप से लागू किया जाये तो वे झूठे ही मालूम होंगे। यदि यह कहा जाये कि देश में खाद्यान्न के भाव 25% बढ़े हैं तो यह बात सामूहिक रूप से कही गई है। हो सकता है कि किसी विशिष्ट स्थान पर गेहूँ के भाव घटे हों। वहाँ के लोग यह मान सकते हैं कि जो आँकड़े दिये गये हैं, वे गलत हैं।

(5) समंकों की शुद्धता को नहीं जाँचना- कभी-कभी असावधानी के कारण तथा आँकड़ों की शुद्धता की ठीक जाँच न होने के कारण भी गलत परिणाम निकल सकते हैं। इसका दोष सांख्यिकी विज्ञान पर डाला जाता है।

(6) स्वार्थवश समंकों का दुरुपयोग करना- जो लोग स्वार्थवश अपना तर्क जन-साधारण के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहते हैं वे लोग अपने तथ्य की पुष्टि के लिए आँकड़ों का दुरुपयोग करते हैं जिसके कारण सामान्य जनता समंकों पर अविश्वास करने लगती है।

(7) सामान्य जनता की इस विषय में अज्ञानता और विशेष ज्ञान का अभाव- सामान्य जनता को इस विषय के महत्व, इसके नियमों और विधियों का ज्ञान नहीं है। यही नहीं कभी-कभी सांख्यि में विषय ज्ञान का अभाव होने के कारण उसके द्वारा गलत निष्कर्ष निकाल लिए जाते हैं जिसके कारण जनता का सांख्यिकी विज्ञान में अविश्वास हो जाता है।

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सांख्यिकी विज्ञान में कोई दोष नहीं है-दोष तो उसके दूषित उपयोग के कारण पैदा होते हैं। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु गलत औषधि खाने के कारण हो गई है तो कोई भी समझदार व्यक्ति उस औषधि को दोष देकर उसका सेवन करने से इन्कार नहीं करेगा। इसी प्रकार गलत समंक प्रस्तुत किये गये हैं तो वह दोष समंक का न होकर उस व्यक्ति का है जिसने उसका संकलन किया है। इसी प्रकार जो समंक हमारे सामने हैं उनकी सत्यता के विषय में एकदम नहीं जाना जा सकता है। इसका मुख्य कारण यह है कि उस पर सत्यता या असत्यता की मुहर नहीं रहती है। सच बात तो यह है कि "समंक मिट्टी के समान हैं जिनसे हम ईश्वर या राक्षस की मूर्ति, जो चाहें सो बना सकते हैं।" (Statistics are like clay, of which we can make a god or a devil, as we please.)। जैसे किसी वैज्ञानिक ने अणु का आविष्कार किया है; इसका उपयोग समस्त विश्व का नाश करने में भी किया जा सकता है और उसे औद्योगिक विकास के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि समंक दोषरहित एवं विश्वसनीय हैं। यह तो अनिपुण या पक्षपाती सांख्यिक हैं जो समंकों के प्रति अविश्वास बढ़ाते हैं। "अंक स्वयं झूठे नहीं होते, परन्तु झूठे समंक बनाये जा सकते है।" (Though figures would not lie, yet liers can figure.)। सत्य तो यह है कि अनिपुण व्यक्तियों के हाथ में सांख्यिकीय रीतियाँ भयानक उपादान हैं। (Statistical methods are the most dangerous tools in the hands of an inexpen.-Bowley)। वैसे यह एक अच्छे हथियार या औषधि की भाँति है जिसका ठीक उपयोग करना प्रयोगकर्ता के हाथ में है।

मार्शल ने भी सांख्यिकी के प्रति इस अविश्वास को अनुचित बतलाते हुए लिखा है, "आरम्भ में सांख्यिकीय तर्क प्राय: भ्रम उत्पन्न करने वाले होते हैं, किन्तु यदि उन पर स्वतन्त्र रूप से वाद-विवाद हो तो सांख्यिकीय अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं।” (Statistical arguments are often misleading at first but free discussion clears away statistical fallacies)

सांख्यिक तथा सांख्यिकी का कार्य किसी तथ्य को प्रमाणित करना नहीं होता, किन्तु तथ्यों का सही दिग्दर्शन कराना होता है। "सांख्यिक कोई रसविद नहीं हैं जिससे किसी बेकार धातु से सोना बनाने की आशा की जा सके।" (A Statistician is not an alchemist expected to produce gold from any worthless material)। सांख्यिकी का प्रयोग ऐसे नहीं होना चाहिए जैसे “एक अंधा व्यक्ति बिजली के स्तम्भ से प्रकाश न पाकर सहारा पाने का प्रयत्न करता है, जबकि वास्तविक कार्य प्रकाश देना होता है, न कि" (Statistics should not be used as a blind man uses a lamp-post for support rather than for illumination.)।

उपरोक्त व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि सांख्यिकी दोषरहित और विश्वसनीय है। जो कुछ दोष बतलाये जाते हैं-वह दोष सांख्यिकी के न होकर इस विज्ञान के दोष हैं। इसलिए सांख्यिकी के विषय में केवल इतना कहना ही उचित होगा कि इसका प्रयोग करते समय सावधानी रखी जाये और ईमानदारी को ही स्थान दिया जाये।

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