Geography Model Question Solution Set-1 Term-2 Exam. (2021-22)

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झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखंड)

Jharkhand Council of Educational Research and Training, Ranchi (Jharkhand)

द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021-2022

Second Terminal Examination - 2021-2022

मॉडल प्रश्नपत्र

Model Question Paper

सेट-5 (Set-5)

वर्ग- 12

(Class-12)

विषय - भूगोल 

(Sub - Geography)

पूर्णांक-40

(F.M-40)

समय-1:30 घंटे

(Time-1:30 hours)

सामान्य निर्देश (General Instructions) -

» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दें।

» कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।

» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।

» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।

» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।

1.जनसंख्या घनत्व से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: किसी भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। जनसंख्या के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है।

2.जनसंख्या प्रवास से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर: व्यक्तियों के एक स्थान से दूसरे स्थान में जाकर बसने की क्रिया को प्रवास कहते हैं।

3.हरित क्रांति क्या है ?

उत्तर: हरित क्रांति उच्च गुणवत्ता वाले बीज रसायनिक उर्वरक व गहरी सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन की एक नवीन प्रक्रिया थी। इस क्रांति को 'अधिक उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम' (High Yielding Varieties Programme - HYVP) के नाम से भी जाना जाता है। हरित क्रांति का दूसरा नाम 'सदाबहार क्रांति' भी है।

4.जल प्रदूषण से होने वाले किन्ही दो बीमारियों के नाम लिखें।

उत्तर: हैजा और टाइफाइड बुखार

5.जल संभर प्रबंधन के कोई दो उद्देश्य लिखिए।

उत्तर: जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है ताकि ‘जैव-मात्रा’ उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीय संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थतिक असुंतलन पैदा न हो।

6.धात्विक खनिज को दो उदाहरण लिखें।

उत्तर: जिन खनिजों से धातु प्राप्त होती है उन्हें धात्विक खनिज कहते हैं; जैसे लौह अयस्क, बॉक्साइट, आदि।

7.आधारभूत उद्योग क्या है ?

उत्तर: जिनका निर्मित सामान दूसरे उद्योगों के आधार का कार्य करता है  वे आधारभूत उद्योग कहलाते है।

8.जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दें।

उत्तर: जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं-

a. शासन द्वारा पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए कुछ नियम बनाये हैं । जिनका सभी नागरिकों, संस्थानों तथा उद्योग धंधों को अनिवार्यतः पालन करना चाहिए।

b. प्रत्येक घर में सेप्टिक टैंक होना चाहिए ।

c. शोधन के पूर्व औद्योगिक अपशिष्टों को जल में नहीं छोडना चाहिए। जल स्रोतों में पशुओं को भी नहीं धोना चाहिए।

d. कीटनाशियों, कवकनाशियों इत्यादि के रूप में निम्नीकरण योग्य पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए ।

f. खतरनाक कीटनाशियों के उपयोग में प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

g. जल स्रोतों के जल के शोधन पर विशिष्ट ध्यान देना चाहिए।

h. बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में जल शोधन संयन्त्रों को लगाना चाहिए, जिससे इनके द्वारा निकला जल शुद्ध होने के बाद ही जल स्रोतों में जा सके ।

i. नगरों के वाहित मल को आबादी से दूर छोड़ना चाहिए। वाहित मल में कार्बनिक पदार्थों को कम करने के लिए ऑक्सीकरण तालाब या फिल्टर बेड का प्रयोग करना चाहिए ।

j. पशुओं के प्रयोग के लिए अलग जल स्रोत का प्रयोग करना चाहिए ।

k.  समय-समय पर जल स्रोतों से हानिकारक पौधों को निकाल देना चाहिए ।

l. कीटनाशियों, खरपतवारनाशियों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए ।

m. ताप तथा परमाणु बिजली घरों से निकलने वाले जल को ठण्डा होने के बाद शुद्ध करके ही जल स्रोतों में छोड़ना चाहिए।

9.भारत में सड़क परिवहन को परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में अधिक उपयोगी क्यों माना जाता है ?

उत्तर: भारत में सड़क परिवहन को परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में अधिक उपयोगी निम्न कारणों से माना जाता है

1. सड़के अपेक्षाकृत अधिक उबड़-खाबड़ और ढलुआ भूमि पर भी बनाई जाती हैं।

2. सड़के एक द्वार से दूसरे द्वार तक सेवा प्रदान करती हैं।

3. सड़क परिवह अन्य परिवहन के साधनों की पूरक है।

4. शीघ्र खराब होने सामान जल्दी से ढोये जा सकते हैं।

5. थोड़ी दूरी की यात्रा के लिए अपेक्षाकृत अधिक सुविधा जनक है।

6. सड़को का निर्माझा एवं रखरखाव अपेक्षाकृत आसान है तथा लागत कम है।

10. आकार के आधार पर विनिर्माण उद्योग को वर्गीकृत कीजिए।

उत्तर: आकार के आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते हैं-

(अ) वृहद् उद्योग- औद्योगिक इकाइयाँ जिनमें पूँजी निवेश 10 करोड़ रुपये या उससे अधिक है, जैसे-टाटा आयरन स्टील कम्पनी।

(ब) मध्यम उद्योग- जिनमें कुल पूँजी निवेश 5 से 10 करोड़ रुपये के मध्य है, जैसे- चमड़ा उद्योग।

(स) लघु उद्योग- जिनमें कुल पूँजी निवेश 2 से 5 करोड़ रुपए तक है, जैसे- लाख उद्योग।

(द) कुटीर उद्योग- जिनमें पूँजी निवेश नाम मात्र का होता है तथा जो परिवार के सदस्यों की सहायता से चलाए जाते हैं। ग्राम में स्थित होने पर यह ग्रामीण उद्योग तथा नगर में स्थित होने पर नगरीय कुटीर उद्योग कहे जाते हैं।

11. गैरपरंपरागत ऊर्जा स्रोतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: ऊर्जा के ऐसे स्रोत जिनका प्रयोग हम दोबारा और बार-बार कर सकते हैं उन्हें हम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत या गैर परंपरागत स्रोत या पुनर्प्रयोगी स्रोत कहते हैं। ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत में निम्नलिखित है –

क. वायु ऊर्जा या पवन ऊर्जा -वायु की शक्ति से उत्पन्न की जाने वाली ऊर्जा पवन ऊर्जा कहलाती है । हवा के वेग से चलने वाली पवन चक्कियों के द्वारा धरती से जल खींचने और विद्युत पैदा करने का काम लिया जाता है जो ऊर्जा उत्पादन करने का अत्यन्त ही सस्ता एवं पूर्णतः प्रदूषणरहित उपाय है ।  अमेरिका में इस विधि से लगभग दो हजार मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन किया जाता है ।

ख. सौर ऊर्जा -सूर्य उर्जा का अक्षय एवं अनन्त भण्डार है सूर्य की समस्त ऊर्जा का सिर्फ 10% हिस्सा ही धरती पर आ पाता है । बावजूद इसके इससे अन्य सभी साधनों से प्राप्त ऊर्जा से 36 गुना अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है अकेले थार रेगिस्तान के 100 वर्गमील क्षेत्रफल पर पडने वाली धूप से ही उत्पन्न ऊर्जा से सम्पूर्ण भारत वर्ष को ऊर्जा के मामले में सन्तुष्ट किया जा सकता है । हमें सौर ऊर्जा प्रकाश एवं ताप दो रूपों में प्राप्त होती है ।

ग. जल ऊर्जा -नदियों पर बनाए गए पनबिजली एवं बाँधों तथा समुद्र में उठने वाले जार-भाटों को भी गैर-परम्परागत ऊर्जा के अच्छे स्रोत के रूप में देखा जा रहा है । एशियाई देशों में चीन जल-विद्युत विकास के क्षेत्र में अग्रणी है ।

भारत में भी आज प्रचालनरत कई पनबिजली सयन्त्र ऐसे हैं जिनका निर्माण अंग्रेजी शासनकाल के दौरान किया गया था । आज लघु जल ऊर्जा संयन्त्रों के माध्यम से देश में लगभग चार हजार मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन किया जा रहा है ।

भाखड़ा-नागल, दामोदर घाटी, चम्बल घाटी, हीराकुड जैसी परियोजनाओं की सफलता को नकारा नहीं जा सकता । पनबिजली का निर्माण बाँध का निर्माण करके नदियों के जल प्रवाह को रोककर और उसे तेज धारा के साथ ऊँचाई से गिराकर किया जाता है । नाइयों के अलावा समुद्रों से भी गैर-परम्परागत ऊर्जा प्राप्त की जाती है ।

घ. बायोगैस का प्रयोग -सूर्य और हवा की तरह बायोगैस भी बार-बार ऊर्जा उत्पन्न करने का साधन है जो मानव एवं पशुओं के मल, घरेलू कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों खरपतवारों जंगल के कच्चे माल, लकड़ी उद्योग के गौण उत्पादन आदि से प्राप्त किया जाता है । बायोमास से उत्यन्त बायोगैस एवं बायोडीजल आज वैश्विक स्तर पर ऊर्जा उत्पादन करने के प्रमुख साधन बन गए है ।

च. बायोडीजल का उत्पादन एवं प्रयोग -पेट्रोडीजल की तरह सभी वाहनों में स्वतन्त्र रूप से अथवा पेट्रोडीजल के साथ मिलाकर किया जा सकता है । साथ ही इसकी आपूर्ति पेट्रोल पम्पों पर भी पूर्व व्यवस्था में बिना किसी परिवर्तन के की जा सकती है । यदि थोडी-बहुत समस्याओं को दूर कर लिया जाए, तो बायोडीजल से विश्व में बड़े स्तर पर बाहन चलाए जा सकते है ।

आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व ही पेरिस में मूँगफली के तेल से तैयार डीजल से बाहन चलाने का प्रदर्शन किया जा चुका है जो बायोईंधन का ही एक रूप है । आज ऑस्ट्रिया, यूरोप सहित विश्व के अन्य देशों में भी बायोडीजल का व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है ।

12. वर्षा जल संरक्षण क्या है ? इसके चार उद्देश्य बताइए।

उत्तर: वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल रोकने और एकत्र करने की विधि है।

जल संग्रहण करने का उद्देश्य

1. जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है जिससे कि जैव मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके।

2.भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक अंसतुलन पैदा न हो।

3.जल संभर प्रबंधन न केवल जल संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढाता है।

4. जल संभर प्रबंधन सूखे एवं बाढ़ से भी लोगो को रहत देता है तथा निचले बाँध एवं जलाशयों का सेवा काल भी बढ़ाता है अर्थात् इसमें जल के स्तर को भी बढाता है।

13. भारत में कृषि की प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: भारत में कृषि की प्रमुख समस्या निम्नलिखित हैं-

a. पूर्व में कृषि क्षेत्र से संबंधित भारत की रणनीति मुख्य रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही है जिसके कारण किसानों की आय में बढ़ोतरी करने पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।

b. विगत पचास वर्षों के दौरान हरित क्रांति को अपनाए जाने के बाद, भारत का खाद्य उत्पादन 3.7 गुना बढ़ा है जबकि जनसंख्या में 2.55 गुना वृद्धि हुई है, किंतु किसानों की आय वृद्धि संबंधी आँकड़े अभी भी निराशाजनक हैं।

c. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है, जो कि इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है किंतु यह लक्ष्य काफी चुनौतिपूर्ण माना जा रहा है।

d. लगातार बढ़ते जनसांख्यिकीय दबाव, कृषि में प्रच्छन्न रोज़गार और वैकल्पिक उपयोगों के लिये कृषि भूमि के रूपांतरण जैसे कारणों से औसत भूमि धारण (Land Holding) में भारी कमी देखी गई है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1970-71 में औसत भूमि धारण 2.28 हेक्टेयर था जो वर्ष 1980-81 में घटकर 1.82 हेक्टेयर और वर्ष 1995-96 में 1.50 हेक्टेयर हो गया था।

e. उच्च फसल पैदावार प्राप्त करने और कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिये बीज एक महत्त्वपूर्ण और बुनियादी कारक है। अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन करना जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है उन बीजों का वितरण करना किंतु दुर्भाग्यवश देश के अधिकतर किसानों तक उच्च गुणवत्ता वाले बीज पहुँच ही नहीं पाते हैं।

f. भारत का कृषि क्षेत्र काफी हद तक मानसून पर निर्भर करता है, प्रत्येक वर्ष देश के करोड़ों किसान परिवार बारिश के लिये प्रार्थना करते हैं। प्रकृति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कभी-कभी किसानों को नुकसान का भी सामना करना पड़ता है, यदि अत्यधिक बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुँचता है और यदि कम बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुँचता है। इसके अतिरिक्त कृषि के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख समस्या के रूप में सामने आया है और उनकी मौसम के पैटर्न को परिवर्तन करने में भी भूमिका अदा की है।

g. आज़ादी के 7 दशकों बाद भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन व्यवस्था गंभीर हालत में है। यथोचित विपणन सुविधाओं के अभाव में किसानों को अपने खेत की उपज को बेचने के लिये स्थानीय व्यापारियों और मध्यस्थों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उन्हें फसल का सही मूल्य प्राप्त हो पाता।

14. जनसंख्या प्रवास को प्रभावित करने वाले अपकर्ष कारकों को लिखिए।

उत्तर: प्रवास के अपकर्ष कारक:

(1) अपकर्ष कारक वे कारक है जो किसी क्षेत्र के अनुकूल परिस्थितियों के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित या अपने क्षेत्र से प्रवास करने के लिए विवश करते हैं, अपकर्ष कारक कहलाते हैं। इसके अंतर्गत रहन-सहन की अच्छी दर्शाए, शांति व स्थायित्व जीवन , संपत्ति की सुरक्षा, काम के बेहतर अवसर व अनुकूल जलवायु जैसे कारक करते हैं।

(2) नगरों में अच्छे आर्थिक अवसरों, शिक्षा तथा मनोरंजनों के साधनों के कारण लोग चुंबक की तरह आकर्षित होते हैं।

(3) नगरों में उद्योग, परिवहन, संचार, व्यापार तथा वाणिज्य आदि की बेहतर सुविधाएं लोगों को प्रवास के लिए प्रेरित करती है। आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।

15. भारत में जनसंख्या वितरण घनत्व को प्रभावित करने वाले किन्हीं पांच कारकों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: जनसंख्या घनत्व का अर्थ:- जनसंख्या के घनत्व का आशय किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनूता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है। घनत्व ज्ञात करने के लिए किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। घनत्व से जनसंख्या के किसी क्षेत्र में संकेन्द्रण की मात्रा का बोध होता है।

जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण पर निम्नलिखित भौगोलिक एवं अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है।

1. स्थिति:- किसी प्रदेश की स्थिति का प्रभाव उसके समीपन्ती देशों परिवहन, व्यापार तथा मानव-इतिहास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए हिन्द महासागर में भारत की स्थिति केन्द्रीय होने के कारण मध्य-पूर्व के देशों तथा पूर्वी गोलार्द्ध के देशों के साथ समुद्री व्यापार की सुविधा रखने वाली है। विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या तटीय भागों तथा उनकी सीमा-पेटियों में निवास करती है। भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर प्राचीन काल से ही मानव-बस्तियों का विकास होता रहा है। यहाँ मछलियों की प्राप्ति, सम-जलवायु, समतल मैदानी भूमि आदि भौगोलिक विशेषताएँ हैं जिससे कृषि, उद्योग, परिवहन एवं मानूव-आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इसीलिए इन भागों में सघन जनसंख्या का संकेन्द्रण हुआ है।

2. जलवायु :- सभी कारकों में जलवायु महत्त्वपूर्ण साधन है जो जनसंख्या को किसी स्थान पर बसने के लिए प्रेरित करती है। विश्व के सबसे घने बसे भाग मानसूनी प्रदेश तथा सम- -शीतोष्ण जुलवायु के प्रदेश हैं। चीन, जापान, भारत, म्यॉमार, वियतनाम बाग्लादेश तथा पूर्वी-द्वीप समूह की जुलवायु मानसूनी है, जब कि पश्चमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य को जलवायु सम-शीतोष्ण है; अत: इन देशों में सघन जनसंख्या का निवास हुआ है। इसके विपरीत जिन प्रदेशों की जलवायु उष्ण एवं शुष्क है, वहाँ बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। उदाहरण के लिए, सहारा, कालाहारी, अटाकामा, अरब, थार एवं ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थलों में जनसंख्या का घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अति उष्ण एवं आर्द्र पूरदेशों में भी जनसंख्या कम है; जैसे- अमेज़न बेसिन के पर्वतीय एवं पुठारी क्षेत्रों में।

मानव-आवास के लिए स्वस्थ अनुकूलतम जलवायु वह हे जिसमें ग्रीष्म ऋतु का अधिकतम औसत तापमान 18° सेने से कम तथा शीत ऋतु के सबसे ठण्डे महीने का तापमान 3° सेग्रे से कम न हो। सामान्यतया 4°-21 सेग्रे तापमान के प्रदेश जनसंख्या के आवास के लिए सर्वाधिक अनुकूल माने जाते हैं। वर्षा की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या के घनत्व मे भी वृद्धि होती जाती है तथा उसके घटने के साथ-साथ जनसंख्या घनत्व में कमी होती जाती है।

3. भू-रचना:- भू-रचना का जनसंख्या से गहरा सम्बन्ध है। समतल मैदानी भागों में कृषि, सिंचाई, परिवहन, व्यापार आदि का विकास अधिक होता है; अत: मैदानी क्षेत्र सघन रूप से बस् जाते हैं। पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रो में कष्टदायक एवं विषम भूमि की बनावट होने के कारण बहुत कम लोग निवास करना पसन्द करते हैं। भारत के असम राज्य में केवल 340 मानव प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं, जब कि गंगा के डेल्टा में 800 से भी अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास कर रहे हैं।

4. स्वच्छ जल की पूर्ति:- जल मानव की मूल आवश्यकता है। जल की आवश्यकता मुख्यत: निम्नलिखित तीन प्रकार की है।

(i) घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल की पूर्ति,

(ii) औद्योगिक कार्यों के लिए जल की पूर्ति एवं

(iii) सिंचाई के लिए जल की पूर्ति।

अतः जिन प्रदेशों एवं क्षेत्रों में शुद्ध एवं स्वच्छ मीठे जल की पूर्ति की सुविधा होती है, वहाँ जनसंख्या भी अधिक निवास करने लगती है; जैसे-नदी-घाटियों एवं समुद्रतटीय क्षेत्रों में।

5. मिट्टियाँ:- जनसंख्या का मूल आधार भोजन है जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकती। शाकाहारी भोजन प्रत्यक्ष रूप से एवं मांसाहारी भोजन अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होते हैं। जिन प्रदेशों की मिट्टियाँ उपजाऊ होती हैं, वहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों में नदियों की घाटियों में मिट्टी की अधिक उर्वरा शक्ति के कारण संघन जनसंख्या निवास कर रही है।

16. भारत में गेहूं के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर: भारत में चावल के पश्चात गेहूं दूसरा प्रमुख अनाज है।भारत विश्व का 12.3 प्रतिशत गेहूं उत्पादन करता है( 2016 )। यह मुख्यता शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है।

गेंहू की पैदावार तथा उसकी उपज के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं निम्नलिखित है:

(1) तापमान :- गेहूं मूलतः शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है। यह साधारणतः ठण्डी जलवायु में होता है। इसको उगते समय औसतन 10o सेण्टीग्रेड तथा पकते समय 20o सेण्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।

(2) वर्षा :- गेहूं के पौधों को अधिक नमी की आवश्यकता नहीं होती इसके लिए साधारणतः वर्षा 50 से 75 सेण्टीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

(3) मिट्टी :- गेहूं के उपज के लिए बहुत ही उम्दा व उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए बलुई, दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है।

(4) समतल भूमि :- इसके खेती के लिए समतल या क्रमिक उतार-चढाव वाले मैदानी भाग अधिक अनुकूल होते है, क्योंकि इसके खेती में मशीनों का व्यापक प्रयोग होने लगा है।

(5) श्रमिक :- इसकी खेती के लिए श्रमिक पर्याप्त होना चाहिए परन्तु इस खेती में मशीनों का प्रयोग भी किया जाता हैं।

उत्पादन तथा वितरण - देश के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 14 प्रतिशत भाग पर गेहूं की कृषि की जाती है। यह भारत में रबी (शीतकालीन) की फसल है जो शीत ऋतु के समाप्त होने पर काट ली जाती है। हमारे देश में गेहूं के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पैकेज टेकनोलॉजी के कारण देश में 1967 में हरित क्रान्ति आई जिसके प्रभावाधीन भारत में कृषि उत्पादन बढ़ा परंतु हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूँ के उत्पादन पर पड़ा। सन् 1970-71 में 1960-61 की तुलना में गेहूं का उत्पादन दुगुने से भी अधिक हो गया। इसी अवधि में गेहूँ के क्षेत्रफल तथा प्रति हेक्टेयर उपज में लगभग डेढ़ गुना वृद्धि हुई। 2017-2018 में लगभग 986.1 लाख टन गेहूँ पैदा किया गया।

गेहूँ की कृषि मुख्यतः पंजाब, हरियाण तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है। राजस्थान और गुजरात के कुछ चयनित क्षेत्रों में कृषि की जाती है। देश में कुल गेहूँ उत्पादन का लगभग दो-तिहाई भाग पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता है गेहूँ के अन्तर्गत क्षेत्र को भी अब काफी बढ़ा दिया गया है, विशेष तौर पर बिहार और पश्चिमी बंगाल जैसे गैर- परम्परागत क्षेत्रों तक। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी गेहूँ की कृषि पर्याप्त बड़े क्षेत्र पर की जाती है। बिहार और पश्चिमी बंगाल दोनों मिलकर देश में गेहूं के कुल उप्पादन का 8% भाग उत्पन्न करते हैं। पश्चिमी बंगाल में गेहूं की उपज प्रति हेक्टेयर बहुत अधिक है।

17. मृदा प्रदूषण से आप क्या समझते हैं ? मृदा प्रदूषण के कारणों को लिखें।

उत्तर: डोक्याशेव के अनुसार ‘‘मृदा मात्र शैलों, पर्यावरण, जीवों व समय की आपसी क्रिया का परिणाम है।’’ मिट्टी में विविध लवण, खनिज, कार्बनिक पदार्थ, गैसें एवं जल एक निश्चित अनुपात में होते हैं, लेकिन जब इन भौतिक एवं रासायनिक गुणवत्ता में अतिक्रम आता है, तो इससे मृदा में प्रदूषण हो जाता है।

मृदा प्रदूषण के कारण

मृदा प्रदूषण के स्रोतों में विभिन्न तत्व होते हैं जो प्रदूषकों का उत्पादन करते हैं जैसे कि पेट्रोलियम, भूमिगत भंडारण टैंकों के टूटने से हाइड्रोकार्बन, शुष्क सफाई रसायनों का रिसाव, कचरा भराव क्षेत्र से प्रदूषकों की निक्षालन, सतही जल अपवाह, जो प्रदूषकों को ढोते हैं का खुले स्रोत से मिट्टी में रिसाव और कीटनाशक।

1. भूतल खनन

कोयला और धात्विक अयस्कों के खनन से भारी मात्रा में मृदा प्रदूषक उत्पन्न होते हैं। उद्योग जो अयस्कों को खोदते और उन पर प्रक्रिया करते हैं, तेल और गैस के लिए ड्रिल करते हैं या कोयले को जलाते हैं, बड़ी मात्रा में नमक युक्त कचरे का उत्पादन करते हैं। खनन से सोडियम, कैल्शियम, सल्फेट, क्लोराइड और कार्बोनेट आदि अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं जो मिट्टी के प्रदूषण का कारण बन गए हैं।

2. वनों की कटाई

वनों की कटाई से तात्पर्य पेड़ों के गिरने और कटाई और वन क्षेत्रों का दूसरे भूमि उपयोग में रूपांतरण से होता है। वनों की कटाई की प्रक्रिया से मिट्टी की स्थिरता और मिट्टी की गुणवत्ता पर कई अवांछनीय पर्यावरणीय प्रभाव पड़ते हैं। यह मिट्टी में अस्थिरता भी बढ़ाता है, क्षरण बढ़ाता है और जैव विविधता में कमी लाता है। वनों की कटाई की प्रक्रिया से मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता घट जाती है, मिट्टी के कण ढीले पड़ जाते हैं और मिट्टी को हटाने की क्षमता बढ़ जाती है।

3. लवणता

मिट्टी में अम्ल स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं लेकिन यह एसिड बढ़ाने वाले उर्वरकों के उपयोग से बढ़ रहा है। बढ़ी हुई मिट्टी की लवणता संरचना, सूक्ष्मजीवीय विविधता और पौधों के लिए उपयोगी मिट्टी पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। मिट्टी की लवणता को संतृप्त मिट्टी की विद्युत चालकता से मापा जाता है। नमक प्रभावित मिट्टी न केवल पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता और उत्पादकता को भी कम करती है।

4. कीटनाशक

आजकल कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए आमतौर पर सिंथेटिक कीटनाशकों का व्यापक उपयोग किया जाता है। यद्यपि उत्पादकता बढ़ती है लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता और संरचना बदल जाती है।

5. घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्ट

घरेलू तथा औद्योगिक संस्थानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ, जैसे-सीसा, ताँबा, पारा, प्लास्टिक, कागज आदि मृदा में मिलकर इसे दूषित करते हैं।

6. मरूस्थलीयकरण

मरूस्थलों की रेत हवा के साथ उड़ जाती है और दूर तक उर्वरक भूमि पर बिछ जाता है। इस प्रकार बलुई धूल के फैलाव से मरूस्थलों का विस्तार होता है। इस प्रकार धूल उर्वरा भूमि का विनाश कर उसकी उत्पादकता को घटाती है।

7. पशु अपशिष्ट

पशु कचरे का एकत्रीकरण मिट्टी को प्रदूषित करता है और कई बार पशुओं का एकत्रण मिट्टी की संरचना को चराई के माध्यम से कमजोर कर देता है।

18.उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या करें।

उत्तर: उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

1. कच्चे माल की उपलब्धता:- सामान्यत उद्योग वही स्थापित होते है जहाँ कच्चा माल उपलब्ध होता है । जिन उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का भार कच्चे माल के समीप लगाए जाते है।

2. शक्ति के साधन:- किसी भी उद्योग की स्थापना से पहले उसकी शक्ति की आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती है । एल्युमिनियम उद्योग शक्ति के साधन के नजदी लगाए जाते है क्योंकि इसमें बिजली का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है ।

3. परिवहन:- कच्चे माल को उद्योग केन्द्र तक लाने तथा निर्मित माल को बाजार तक ले जाने के लिए सस्ते तथा कुशल यातायात का प्रचुर मात्रा में होना आवश्यक है।

4. बाजार:- उद्योगों का सारा विकास निर्मित माल की खपत के बाजार पर निर्भर करता है। बाजार की निकटता से उपभोक्ता को औद्योगिक उत्पाद सस्ते दाम पर मिल जाते है।

5 श्रम:- सस्ते तथा कुशल श्रम की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता औद्योगिक विकास का मुख्य कारण है । कुछ उद्योग तो श्रम प्रधान ही होते है । इन्हें विशेष दक्षता वाले श्रमिकों की आवश्यकता होती है। जैसे - फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग श्रम प्रधान उद्योग है।

19. दिए गए भारत के मानचित्र के आधार पर 801 से अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. जनसँख्या घनत्व वाले राज्यों के नाम लिखें.

उत्तर:  801 से अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. जनसँख्या घनत्व वाले राज्यों के नाम निम्नलिखित हैं-

बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश




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