सामान्य निर्देश-(General Instruction)
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दो में उतर दें।
» कुल प्रश्नो की संख्या 19 है।
» प्रश्न 1 से
प्रश्न 7 तक अतिलघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पाँच प्रश्नों के उतर अधिकतम एक
वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 8 से
प्रश्न 14 तक लघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पॉच प्रश्नो के उतर अधिकतम 50 शब्दो
में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 15 से
प्रश्न 19 तक दीर्घउतरीय प्रश्न है। इनमें से किन्ही तीन प्रश्ना के उतर अधिकतम
100 शब्दो में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खण्ड-अ अतिलघुउतरीय प्रश्न
1. उद्वेश्य प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया था?
उत्तर: उद्वेश्य प्रस्ताव 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत
किया गया था
2. स्वराज्य पार्टी की स्थापना कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: जनवरी 1923 ई. में इलाहाबाद में चित्तरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर
और मोतीलाल नेहरू बिट्ठलभाई पटेल ने 'स्वराज्य पार्टी' नाम के दल की स्थापना की जिसके
अध्यक्ष चित्तरंजन दास बनाये गये और मोतीलाल उसके सचिव बनाये गये।
3. पूना पैक्ट कब हुआ था?
उत्तर: पूना पैक्ट अथवा पूना समझौता भीमराव आम्बेडकर एवं महात्मा गांधी के मध्य
पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में 24 सितम्बर, 1932 को हुआ था।
4. 1857 की क्रांति का प्रतीक चिन्ह क्या था?
उत्तर: रोटी और खिलता हुआ कमल
5. व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही कौन थे?
उत्तर: आचार्य विनोबा भावे
6. अकबर द्वारा जजिया कर कब समाप्त किया गया?
उत्तर: 1564 ईo
7. संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर: डॉ. भीमराव अंबेडकर
खण्ड–ब लघुउतरीय प्रश्न
8. तीनकठिया पद्धति रो क्या समझते हैं?
उत्तर: चंपारण में नील की खेती की प्रमुख प्रणाली तिनकठिया प्रणाली थी। इसमें
किसान को अपनी भूमि के तीन कट्ठे प्रति बीघा (1 बीघा = 20 कट्ठा), यानी अपनी भूमि के
3/20 हिस्से में नील की खेती करने की बाध्यता थी। इसके लिए कोई कानूनी आधार नहीं थे।
यह केवल नील फैक्टरी के मालिकों (प्लांटरों) की इच्छा पर तय किया गया था। इसके अतिरिक्त,
सन् 1900 के बाद, यूरोप के कृत्रिम नील से प्रतिस्पर्धा के कारण बिहार की नील फ़ैक्टरियों
को गिरावट का सामना करना पड़ा। नुकसान बचने के लिए, प्लांटरों ने नील उगाने के लिए
किसानों के साथ अपने समझौतों को रद्द करना शुरू कर दिया। किसानों को इस दायित्व से
मुक्त करने के लिए वे एक तावान, यानी हर्जाना वसूलते थे जो रु.100 प्रति बीघा तक पड़ता
था। यदि किसान नकद भुगतान नहीं कर पाते तो, प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत की ब्याज दर पर, हस्तांक-पत्र
और बंधक ऋण पत्र बनाए जाते थे।
9. कम्यूनल अवार्ड क्या था?
उत्तर: द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की समाप्ति के बाद इंग्लैंड के प्रधानमंत्री
सर रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा भारत की सांप्रदायिक समस्या के समाधान के लिए जो योजना
16 अगस्त 1932 को प्रकाशित की गई उससे ही सांप्रदायिक पंचाट अथवा कम्युनल एवार्ड कहा
जाता है
सांप्रदायिक पंचाट का सबसे मुख्य प्रावधान दलित वर्ग को हिंदू समुदाय से पृथक
कर विशिष्ठ अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में मान्यता दी गई
दलित वर्ग के लिए विधानसभा में सीटें आरक्षित कर दी गई है अथार्थ प्रत्येक अल्पसंख्यक
समुदाय के लिए विधानमंडलों में कुछ सीटें सुरक्षित कर दी गई जिनसे सदस्य का चुनाव पृथक
निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाना है इस समुदाय में मुसलमान और सिक्ख तो पहले से ही अल्पसंख्यक
माने जाते हैं अब इसमें नए कानून के तहत दलित वर्ग को भी अल्पसंख्यक माना गया है
10.खिलाफत आंदोलन से क्या समझते हैं?
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने खलीफा
का पद समाप्त कर दिया। इससे पूरे विश्व के मुसलमानों को आघात लगा और वे संगठित हो गए
तथा इसका विरोध प्रदर्शन किया। भारत में भी इसका विरोध हुआ और अली बंधु (मोहम्मद अली
और शौकत अली)द्वारा खिलाफत कमेटी का गठन 1920 में किया गया जिसे खिलाफत आंदोलन करते
हैं। इस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में महात्मा गांधी को चुना गया। महात्मा गांधी ने
खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों को सहयोग किया तथा अंग्रेजो को खलीफा का पद पुनः बहाल
करने के लिए जोर दिया गया।
11.रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय नेताओं का विरोध करने के लिए अंग्रेजी सरकार
ने रौलट-एक्ट लागू किया था। मजिस्ट्रेट के
पास ऐसा अधिकार था कि रौलट-एक्ट के अंदर इसी व्यवस्था की गई थी कि किसी भी संदेहास्पद स्थिति वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते थे साथ
में उसके ऊपर मुकदमा भी चला सकते थे।रौलट-एक्ट के अनुसार अंग्रेजी सरकार के लोग भारतीय
के निर्दोष व्यक्ति को दंडित कर सकते थे। कैदी को अदालत में साबित करके अंग्रेजी सरकार ने रौलट-एक्ट को हासिल कर लिया था।
साथ ही रौलट-एक्ट को
बिना अपील
बिना वकील
बिना दलील
काला अधिनियम
आतंकवादी अपराध अधिनियम
ऊपर दिए गए कानून भी कहा गया है।
12.धन के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: भारत में ब्रिटिश शासन के समय, भारतीय उत्पाद का वह हिस्सा जो जनता के
उपभोग के लिये उपलब्ध नहीं था तथा राजनीतिक कारणों से जिसका प्रवाह इंग्लैण्ड की ओर
हो रहा था, जिसके बदले में भारत को कुछ नहीं प्राप्त होता था, उसे आर्थिक निकास या
धन-निष्कासन की संज्ञा दी गयी। धन की निकासी की अवधारणा वाणिज्यवादी सोच के क्रम में
विकसित हुई। धन-निष्कासन के सिद्धान्त पर उस समय के अनेक आर्थिक इतिहासकारों ने अपने
मत व्यक्त किए। इनमें दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक" पावर्टी ऐन्ड अनब्रिटिश
रूल इन इन्डिया” में सर्वप्रथम आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होने धन-निष्कासन
को सभी बुराइयों की बुराई कहा है।
13. वैवेल प्लान क्या था?
उत्तर: तत्कालीन भारतीय वायसराय वेवेल भारत में व्याप्त गतिरोध को दूर करने
के लिए मार्च, 1945 ई. में इंग्लैण्ड गया। वहाँ उसने ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल एवं
भारतमंत्री एमरी से भारत के बारे में सलाह मशवरा किया। वेवेल 14 जून, 1945 ई. को भारत
वापस आया और यहाँ आकर उसने भारतीयों के समक्ष 'वेवेल योजना' को रखा। 'वेवेल योजना'
की मुख्य बातें इस प्रकार थीं-
a. वायसराय की कार्यकारणी परिषद को पुनर्गठित किया जाये तथा उसमें सभी दलों
को प्रतिनिधित्व दिया जाये।
b. परिषद में वायसराय या सैन्य प्रमुख के अतिरिक्त शेष सभी सदस्य होगें तथा
प्रतिरक्षा विभाग वायसराय के अधीन होगा।
c. कार्यकारिणी परिषद में मुस्लिम सदस्यों की संख्या सवर्ण हिन्दुओं के बराबर
होगी।
d. कार्यकारिणी परिषद एक अन्तरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी। गवर्नर-जनरल
बिना कारण निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं करेगा।
e. कांग्रेस के नेता रिहा किये जायेंगे तथा शीघ्र ही शिमला में एक सर्वदलीय
सम्मेलन बुलाया जायेगा।
f. युद्ध समाप्त होने के उपरान्त भारतीय स्वयं ही संविधान बनायेंगे।
14.आजाद हिन्द फौज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 21 अक्टूबर 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतंत्र
कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इंडियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन
किया गया। इस फौज का गठन जापान में हुआ था। इसकी स्थापना भारत के एक क्रान्तिकारी नेता
रासबिहारी बोस ने टोक्यो (जापान) में की थी। 28 से 30 मार्च तक उन्हें एक सम्मेलन में
आजाद हिन्द फौज के गठन को लेकर विचार प्रस्तुत करने के लिए बुलाया गया था।
खण्ड-स दीर्घउतरीय प्रश्न
15.1857 की क्रांति की असफलता के क्या कारण थे?
उत्तर: 1857 के विद्रोह की भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम माना जाता है।
क्रांति का संगठन करने के लिए छावनियों मे रोटी व कमल के प्रतीकों का व्यापक प्रचार
किया गया, यह एक मौलिक सूझ थी। रोटी के प्रचार का यह संकेत था कि भारतीय पेट के इतने
गुलाम बने है कि आजादी की रोटी को कमाने की बात भूल बैठे। कमल के प्रचार का यही अर्थ
था कि उन्हें अपने देश मे खुशहाली लाना है।
1857 की क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्म थे--
1. संगठन और एकता का अभाव- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के असफल रहने के
पीछे संगठन और एकता का अभाव प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहा। इस क्रांति की न तो कोई सुनियोजित
योजना ही तैयार की गई न ही कोई ठोस कार्यक्रम था। इसी कारण यह सीमित और असंगठित बन
कर रह गया।
2. नेतृत्व का अभाव- क्रांतिकारियों के पास यद्यपि नाना साहब, तात्याटोपे, झांसी
की रानी लक्ष्मीबाई जैसे आदि योग्य नेता थे, किन्तु फिर भी इस आंदोलन का किसी एक व्यक्ति
ने नेतृत्व नही किया जिस कारण से यह आंदोलन अपने उद्देश्य मे पूर्णतः सफल नही हो सका।
3. परम्परावादी हथियार- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे भारतीय सैनिकों के पास
आधुनिक हथियार नही थे जबकि अंग्रेज सैनिक पूर्णतः आधुनिक हथियार व गोला-बारूद का उपयोग
कर रहे थे। भारतीय सैनिक अपने परम्परावादी हथियार तलवार, तीर-कमान, भाले-बरछे आदि के
सहारे ही युद्ध के मैदान मे कूद पड़े थे जो उनकी पराजय का कारण बना।
4. सामन्तवादी स्वरूप- 1857 के संग्राम मे एक ओर अवध, रूहेलखण्ड आदि उत्तरी
भारत के सामन्तों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो दूसरी ओर पटियाला, जींद,
ग्वालियर हैदराबाद के शासकों ने विद्रोह के उन्मूलन मे अंग्रेजी हुकूमत को सहयोग किया।
इस तरह यह स्वतंत्रता संग्राम अपने उद्देश्य मे सफल नही हो सका।
5. बहादुरशाह द्वितीय की अनभिज्ञता- क्रांतिकारियों द्वारा बहादुरशाह द्वितीय
को अपना नेता घोषित करने के बावजूद भी बहादुरशाह के लिए यह क्रांति उतनी ही आकस्मिक
थी जितनी कि अंग्रेजों के लिए थी। यही कारण था कि अंततः बहादुरशाह को लेफ्टीनेण्ट हडसन
ने बंदी बना कर रंगून भेज दिया।
6. समय से पूर्व और सूचना प्रसार मे असफल क्रांति- 1857 की क्रान्ति का असफलता
का एक बड़ा कारण यह भी था कि यह क्रांति समय से पूर्व ही प्रारंभ हो गयी। यदि यह क्रांति
एक निर्धारित कार्यक्रम के तहत लड़ी जाती तो इसकी सफलता के अवसर ज्यादा होते। इसी तरह
आंदोलन के प्रसार-प्रचार मे भी क्रांतिकारी नेतृत्व असफल रहा। इसका असर 1857 के स्वतंत्रता
संग्राम पर गहराई से पड़ा।
7. स्थानीयता- 1857 की क्रान्ति मे स्थानीय उद्देश्य होने से आम भारतीयों का
व्यापक जुड़ाव इसमे नही हो सका। इस समय केवल उन्हीं शासकों ने क्रांति मे हिस्सा लिया
जिनके हित सामने आ रहे थे। 1857 की क्रान्ति की असफलता का यह भी एक कारण था।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे यद्यपि पराजय का सामना करना पड़ा किन्तु
इस क्रांति के बड़े गहरे व दूरगामी परिणाम सामने आये जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के
इतिहास मे भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। क्रांति ने अंग्रेजी साम्राज्य की
जड़ों को हिला दिया था।
16. भारत में कृषि के व्यवसायीकरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर: कृषि का वाणिज्यीकरण
> कृषि का वाणिज्यीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत खाद्यान्न फसलों
के स्थान पर बाजार आधारित फसलों को उपजाया जाता है जैसे कपास,तंबाकू आदि ।
> औपनिवेशिक सरकार ने भारत में उन्हीं फसलों को बढ़ावा दिया जिनकी उन्हें
जरूरत थी उदाहरण स्वरुप- कैरेबियाई देशों से आयात की निर्भरता को समाप्त करने के लिए
उन्होंने भारत में नील की खेती को बढ़ावा दिया, निर्यात करने के लिए भारत में अफीम
के उत्पादन पर जोर दिया गया, इटालियन रेशम पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए बंगाल में
मलबरी रेशम के उत्पादन पर जोर दिया गया।
> कृषि के वाणिज्यीकरण के व्यापक प्रभाव पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट
हो जाता है कि यह अधिकांश भारतीय किसानों पर थोपी गई प्रक्रिया थी । औपनिवेशिक सत्ता
के अंतर्गत लाई गई इस व्यवस्था में भारत में अकाल और भुखमरी की बारंबारता बढ़ा दी ।
किसान अब बिचौलियों और मध्यस्थों के बीच कठपुतली बनकर रह गए ऐसा इसलिए क्योंकि जब अंतरराष्ट्रीय
बाजार में व्यावसायिक फसलों की मांग में तेजी होती तो इसका लाभ मध्यस्थ और बिचौलियों
को प्राप्त होता लेकिन इसके विपरीत नुकसान की स्थिति में इसकी मार किसानों को ही झेलनी
पड़ती थी।
> रेलवे लाइन का निर्माण इस तरह किया गया था कि देश के भीतर कृषि समृद्धि
क्षेत्रों से बंदरगाहों को अच्छी तरह से जोड़ा जा सके । रेल किराया इस तरह निर्धारित
किया गया जिससे कि कच्चे माल को आसानी से सस्ती कीमत पर ढोया जा सके सरकार की कर नीति
भी कृषि निर्यात के पक्ष में थी।
> भारत के प्रथम मंत्री जेम्स विल्सन ने 1860 में प्रथम बजट के निर्माण के
समय कृषि निर्यात प्रोत्साहन की नीति को निर्धारित किया था। उसकी नीति यह थी कि भारत
एक कृषि प्रधान देश के रूप में कच्चे माल का निर्यात करके उद्योगों की समृद्धि में
इंग्लैंड के साथ योगदान करेगा।
> 1860 से 1890 के बीच भारत में मुंबई प्रेसिडेंसी में रूई, बंगाल में पटसन,
संयुक्त प्रांत में गन्ना, मद्रास में मूंगफली आदि ने विस्तार प्राप्त किया। इन फसलों
को नगदी फसल कहा जाता है तथा इनका उत्पादन रूप से विक्रय के लिए किया जाता था।
17. सविनय अवज्ञा आंदोलन का वर्णन करें।
उत्तर: महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की गयी
जिसका प्रारंभ गाँधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुआ| 12 मार्च, 1930 में साबरमती
आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 241 मील दूर
स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की।
1930 में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की गयी
जिसका प्रारंभ गाँधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुआ| 12 मार्च 1930 को साबरमती
आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 241 मील दूर
स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की। वे 6 अप्रैल
,1930 को दांडी पहुंचे,जहाँ उन्होंने नमक कानून तोड़ा| उस समय किसी के द्वारा नमक बनाना
गैर क़ानूनी था क्योंकि इस पर सरकार का एकाधिकार था| गाँधी जी ने समुद्री जल के वाष्पीकरण
से बने नमक को मुट्ठी में उठाकर सरकार की अवज्ञा की| नमक कानून की अवज्ञा के साथ ही
पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रसार हो गया।
इस आन्दोलन के प्रथम चरण में नमक बनाने की घटनाएँ पूरे देश में घटित हुई और
नमक बनाना लोगों द्वारा सरकारी अवज्ञा का प्रतीक बन गया| तमिलनाडु में सी.राजगोपालाचारी
ने दांडी मार्च जैसे ही एक मार्च का आयोजन तिरुचिरापल्ली से वेदारंयम तक किया| प्रसिद्ध
कवयित्री सरोजिनी नायडू,जो कांग्रेस की महत्वपूर्ण नेता थी और कांग्रेस की अध्यक्ष
भी रही थी, ने सरकार के धरसना (गुजरात) स्थित नमक कारखाने पर अहिंसक सत्याग्रहियों
के मार्च का नेतृत्व किया| सरकार द्वरा बर्बरतापूर्वक किये गए लाठी चार्ज में 300 से
अधिक लोग घायल हुए और दो लोगों की मौत हो गयी| धरना, हड़ताल व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
किया गया और बाद में कर देने से भी मना कर दिया गया| महिलाओं की बड़ी संख्या सहित लाखों
लोगों ने इस आन्दोलन में भाग लिया था।
18. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चन्द्र बोस की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर: सुभाष चंद्र बोस ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत देश में चल रहे असहयोग
आन्दोलन से की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता हासिल की। 20 जुलाई,
1921 को उनकी मुलाकात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी हुई। लेकिन, वैचारिक समानता
न होने के कारण उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर बंगाल आन्दोलन का नेतृत्व
किया। सुभाष चन्द्र बोस क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। उनके अन्दर असीम सासह,
अनूठे शौर्य और अनूठी संकल्प शक्ति का अनंत प्रवाह विद्यमान था। उन्हें वर्ष 1921 में
अपने क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों का संचालन करने के कारण पहली बार छह माह जेल
जाना पड़ा। इस के बाद तो जेल यात्राओं, अंग्रेजी अत्याचारों और प्रताड़नाओं को झेलने
का सिलसिला चल निकला। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उन्हें ग्यारह बार जेल जाना पड़ा।
इसके साथ ही उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा कई बार लंबे समय तक नजरबंद भी रखा गया। लेकिन,
सुभाष चन्द्र बोस अपने इरादों से कभी भी टस से मस नहीं हुए। इसके लिए, उन्होंने कई
बार अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंकी और अंग्रेजी शिकंजे से निकल भागे। 1939 में गान्धीजी
से मतभेद के कारण सुभाष चंद्र ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। फिर उन्होंने
आजाद हिन्द फौज और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना
में नेताजी की रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई।
19. अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें।
उत्तर: अकबर प्रथम सम्राट था, जिसके धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखायी
पड़ता है। उसके इस विकास को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है-
प्रथम काल (1556-1575 ई.)- इस काल में अकबर इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था।
जहाँ उसने इस्लाम की उन्नति हेतु अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया, वहीं दिन में पाँच
बार नमाज़ पढ़ना, रोज़े रखना, मुल्ला मौलवियों का आदर करना, जैसे उसके मुख्य इस्लामिक
कृत्य थे।
द्वितीय काल (1575-1582 ई.)- अकबर का यह काल धार्मिक दृष्टि से क्रांतिकारी
काल था। 1575 ई. में उसने फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। उसने 1578 ई.
में इबादतखाने को धर्म संसद में बदल दिया। उसने शुक्रवार को मांस खाना छोड़ दिया। अगस्त-सितम्बर,
1979 ई. में महजर की घोषणा कर अकबर धार्मिक मामलों में सर्वोच्च निर्णायक बन गया। महजरनामा
का प्रारूप शेख़ मुबारक द्वारा तैयार किया गया था। उलेमाओं ने अकबर को 'इमामे-आदिल'
घोषित कर विवादास्पद क़ानूनी मामले पर आवश्यकतानुसार निर्णय का अधिकार दिया।
तृतीय काल (1582-1605 ई.)- इस काल में अकबर पूर्णरूपेण दीन-ए-इलाही में अनुरक्त
हो गया। इस्लाम धर्म में उसकी निष्ठा कम हो गयी। हर रविवार की संध्या को इबादतखाने
में विभिन्न धर्मों के लोग एकत्र होकर धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद किया करते थे। इबादतखाने
के प्रारम्भिक दिनों में शेख, पीर, उलेमा ही यहाँ धार्मिक वार्ता हेतु उपस्थित होते
थे, परन्तु कालान्तर में अन्य धर्मों के लोग जैसे ईसाई, जरथुस्ट्रवादी, हिन्दू, जैन,
बौद्ध, फारसी, सूफ़ी आदि को इबादतखाने में अपने-अपने धर्म के पत्र को प्रस्तुत करने
के लिए आमंत्रित किया गया। इबादतखाने में होने वाले धार्मिक वाद विवादों में अबुल फ़ज़ल
की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी।