सामान्य निर्देश-(General Instruction)
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दो में उतर दें।
» कुल प्रश्नो की संख्या 19 है।
» प्रश्न 1 से
प्रश्न 7 तक अतिलघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पाँच प्रश्नों के उतर अधिकतम एक
वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 8 से
प्रश्न 14 तक लघूतरीय प्रश्न है। इनमे से किन्ही पॉच प्रश्नो के उतर अधिकतम 50 शब्दो
में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
» प्रश्न 15 से प्रश्न 19 तक दीर्घउतरीय प्रश्न है। इनमें से किन्ही तीन प्रश्ना के उतर अधिकतम 100 शब्दो में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खण्ड-अ अतिलघुउतरीय प्रश्न
1. मुगल वंश के संस्थापक कौन थे?
उत्तर: बाबर
2. हूल दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर: 30 जून
3. 1857 की क्रांति की शुरूआत कहाँ से हुई थी?
उत्तर: मेरठ
4. जालियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था?
उत्तर: 13 अप्रैल 1919
5. भारत का संविधान कब लागु हुआ?
उत्तर: 26 जनवरी 1950
6. दक्कन के गाँवो में रैयतों ने बगावत कब की?
उत्तर: 1875 ई.
7. मंगल पाण्डेय ने कहाँ विद्रोह किया था?
उत्तर: बैरकपुर की छावनी
खण्ड–ब लघुउतरीय प्रश्न
8. अकबरनामा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: अकबरनामा मुग़ल बादशाह अकबर के दरबारी विद्वान् अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखा
गया प्रसिद्ध ग्रंथ है। 'अकबरनामा' का शाब्दिक अर्थ है- "अकबर की कहानी"।
इसमें अकबर कालीन इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। यह तीन भागों में विभक्त है,
तीसरा भाग आईने अकबरी कहलाता है
9. 1857 के क्रांति के तत्कालिक कारण का वर्णन करें।
उत्तर: 1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारणों में यह अफवाह थी कि 1853 की राइफल
के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई है। यह अफवाह हिन्दू एवं मुस्लिम
दोनों धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। ये राइफलें 1853 के राइफल के
जखीरे का हिस्सा थीं। 29 मार्च, 1857 ई. को मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने 'बैरकपुर
छावनी' में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया
10. असहयोग आंदोलन के कारण बतायें ।
उत्तर: असहयोग आंदोलन के कारण निम्नलिखित हैं
1. रोलट एक्ट
2. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
3. खिलाफत आंदोलन
4. अकाल और प्लेग
5. मूल्य -वृद्धि
6. ‘माण्ड-फोर्ड’ सुधारों से असन्तोष
7. युद्धोत्तर भारत में असन्तोष
11. मौलिक अधिकारों के बारे में बताएँ।
उत्तर: भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है :-
1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
4. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28
तक।
5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद
29 से 30 तक।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32
12. स्थायी बंदोबस्त की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर: स्थायी बंदोबस्त की विशेषता निम्नलिखित हैं-
1. सरकार ने जमींदारों से सिविल और दीवानी संबंधित मामले वापस ले लिये।
2. जमींदारों को लगान वसूली के साथ-साथ भू- स्वामी के अधिकार भी प्राप्त हुये।
3. सरकार को दिये जाने वाले लगान की राशि को निश्चित कर दिया गया, जिसे अब बढ़ाया
नहीं जा सकता था।
4. जमींदारों द्वारा किसानों से एकत्र किये हुये भूमि कर का 10/11 भाग सरकारी
को देना पड़ता था। शेष 1/11 अपने पास रख सकते थे।
13. पानीपत के प्रथम युद्ध पर संक्षिप्त टिप्पनी लिखें।
उत्तर: भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर नवम्बर,
1525 में विशेष सैनिक तैयारियों के साथ भारत की ओर चल पड़ा। इस समय उसके पास
25,000 अश्वारोही तथा 700 तोपें थीं। उसने शीघ्रता से सिन्धु नदी को पार किया और पंजाब
जा पहुँचा। सूबेदार दौलत खाँ लोदी की सेना बाबर का नाम सुनते ही भाग खड़ी हुई। दौलत
खाँ लोदी बन्दी बना लिया गया, परन्तु मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई। पंजाब पर अपनी
स्थिति दृढ़ करने के पश्चात् बाबर ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। जब इब्राहीम लोदी
को बाबर के आक्रमण का पता चला, तो वह भी अपने 40,000 सैनिकों को साथ लेकर उसका सामना
करने के लिए चल पड़ा। 12 अप्रैल, 1526 को बाबर और इब्राहीम, दोनों की सेनाएँ पानीपत
के ऐतिहासिक मैदान में आमने-सामने आ डटीं।
बाबर ने अपनी सेना की व्यूह-रचना वैज्ञानिक ढंग से की थी। 21 अप्रैल को प्रात:काल
इब्राहीम की सेना ने युद्ध प्रारम्भ कर दिया। बाबर के घुड़सवारों और तोपखाने के आगे
इब्राहीम की विशाल सेना और हाथी न ठहर सके। मुगल सेना ने उजबेगी चाल 'तुलुगमा' पर चलते
हुए इब्राहीम की सेना को घेर लिया और इसके साथ ही तोपखाने का प्रयोग भी आरम्भ कर दिया।
इस भीषण तथा योजनाबद्ध आक्रमण से इब्राहीम की सेना में भगदड़ मच गई। हाथी तोपों के
गोलों की आवाज सुनकर भड़क गए और पीछे मुड़कर अपनी ही सेना को कुचलने लगे। यह युद्ध
दोपहर तक चलता रहा। अन्त में इब्राहीम पराजित हुआ और युद्धस्थल पर ही मारा गया। उसके
लगभग 15,000 अफगान सैनिक मारे गए।
बाबर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-बाबरी' (बाबरनामा) में इस युद्ध का वर्णन करते
हुए लिखा है, "जिस समय युद्ध आरम्भ हुआ, सूर्य आकाश में चढ़ चुका था और दोपहर
तक भीषण युद्ध होता रहा। अन्त में शत्रु सेना छिन्न-भिन्न हो गई और वह भाग गई। मेरे
सैनिकों ने युद्ध में विजय प्राप्त की। ईश्वर की कृपा तथा प्रताप से यह कठिन कार्य
मेरे लिए आसान बन गया और मध्याह्न में ही उस शक्तिशाली की पराजय हो गई।"
इस प्रकार पानीपत का युद्ध बड़ी शीघ्रता से समाप्त हो गया। पानीपत की विजय के
पश्चात् बाबर ने एक सेना अपने पुत्र हुमायूँ के नेतृत्व में आगरा पर अधिकार करने के
लिए भेजी और स्वयं उसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शुक्रवार 27 अप्रैल, 1526 को दिल्ली
में ही मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर के नाम का खुतवा पढ़ा गया।
इसके साथ ही दिल्ली की लोदी सल्तनत का अन्त हो गया और भारतीय इतिहास में एक नवीन अध्याय
का आरम्भ हुआ।
14. फरमिंगर की पाँचवी रिपोर्ट क्या है?
उत्तर: 19वीं शताब्दी में राजस्व के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए। इनमें से अनेक परिवर्तनों का विस्तृत विवरण 1813 ई० में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की जाने वाली फरमिंगर की रिपोर्ट में मिलता है। यह रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन एवं क्रियाकलापों के विषय में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्टों में पाँचवीं थी, इसलिए इसे 'पाँचवीं रिपोर्ट' अथवा 'फ़रमिंगर की पाँचवीं रिपोर्ट' के नाम से जाना जाता है। यह रिपोर्ट एक विस्तृत रिपोर्ट थी। इसमें 1002 पृष्ठ थे जिनमें से 800 से भी अधिक पृष्ठ परिशिष्टों के थे। इनमें ज़मींदारों एवं रैयतों के आवेदन पत्रों; भिन्न-भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्टों, राजस्व विवरणों की सांख्यिकीय तालिकाओं एवं बंगाल तथा मद्रास के राजस्व और न्यायिक प्रशासन पर अधिकारियों द्वारा लिखी गई टिप्पणियों को सम्मिलित किया गया था।
प्रस्तुति के कारण
रिपोर्ट को प्रस्तुत किए जाने के अनेक महत्त्वपूर्ण कारण थे :
1. 1760 ई० के दशक में बंगाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता स्थापित
होने के साथ-साथ इंग्लैंड में उसकी गतिविधियों पर सूक्ष्म नज़र रखी जाने लगी थी।
2. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत और चीन के साथ व्यापार करने का एकाधिकार
प्राप्त था। ब्रिटेन के अनेक समूह कंपनी के एकाधिकार के विरोधी थे। वे कंपनी को व्यापारिक
एकाधिकार प्रदान करने वाले शाही फ़रमान को रद्द करवाना चाहते थे।
3. ब्रिटेन में ऐसे निजी व्यापारियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही थी
जो भारत के साथ होने वाले व्यापार में भाग लेने के इच्छुक थे।
4. ब्रिटेन के उद्योगपति भारत के बाजारों को ब्रिटिश विनिर्मिताओं के लिए खुलवाना
चाहते थे। अनेक राजनैतिक समूहों का विचार था कि बंगाल-विजय का लाभ केवल ईस्ट-इंडिया
कंपनी को नहीं अपितु संपूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को मिलना चाहिए।
5. भारत में कंपनी के अराजक और अव्यवस्थित शासन की सूचनाएँ ब्रिटेन पहुँच रही
थीं। ब्रिटेन के समाचार पत्र, कंपनी के अधिकारियों के लोभ और भ्रष्टाचार की घटनाओं
का पर्दाफ़ाश कर रहे थे। अत: ब्रिटेन की सरकार के लिए कंपनी के शासन को विनियमित और
नियंत्रित करना आवश्यक हो गया।
इस उद्देश्य से ब्रिटिश संसद द्वारा 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में अनेक अधिनियम पारित किए गए। कंपनी को भारत के प्रशासन के विषय में अपनी नियमित रिपोर्ट भेजने के लिए बाध्य किया गया। कंपनी के काम-काज का निरीक्षण करने के लिए अनेक समितियों की नियुक्ति की गई। पाँचवीं रिपोर्ट एक ऐसी ही रिपोर्ट थी जिसे एक प्रवर समिति द्वारा तैयार किया गया था।
खण्ड-स दीर्घउतरीय प्रश्न
15. संथाल विद्रोह के बारे में विस्तार से बतायें ।
उत्तर: सरकारी अधिकारियों, जमींदारों, व्यापारियों तथा महाजनों द्वारा शोषित
होकर संथालों ने विद्रोह कर दिया।
यह विद्रोह 1855-56 में प्रारम्भ हो गया। इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्ध तथा कान्हू
ने किया था। विद्रोही गतिविधियों के तहत संथालों ने जींदारों तथा महाजनों के घरों को
लूटा, खाद्यान्न को छीना, सरकारी अधिकारियों ने विद्रोह को दबाने के लिये मार-पीट करके
उनका दमन प्रारम्भ किया जिससे ये विद्रोही और अधिक उग्र हो गये। सिद्धू तथा कान्हू
को संथालों ने ईश्वर के भेजे हुए दूत माना और इन्हें विश्वास था कि ये इन शोषणों से
मुक्ति दिलायेंगे।
संथाल अस्त्र-शस्त्र, तीर-कमान, भाला, कुल्हाड़ी आदि लेकर एकत्रित हुए और अंग्रेजों
(सरकारी अधिकारियों) तथा जींदारों से धमकी के साथ तीन माँगें प्रस्तुत की-
(i) उनका शोषण बन्द किया जाये,
(ii) उनकी जमीनें वापस की जायें,
(iii) उनको स्वतन्त्र जीवन जीने दिया जाये।
सरकारी अधिकारियों ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया तो संथालों ने जमींदारों,
साहूकारों तथा सरकारी अधिकारियों के विरोध में सशस्त्र विद्रोह आरम्भ कर दिया।
"23 फरवरी, 1856 के इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज में प्रकाशित चित्र में संथालों
को ब्रिटिश सिपाहियों से युद्ध करते हुए बताया गया था। शान्त दिखने वाले संथाल गाँव
अब बर्बरता का केन्द्र बन गये थे।" चित्र से स्पष्ट हो रहा था कि इस विद्रोह ने
संथालों के प्रति अंग्रेजों के विचार को बदल दिया था।
विद्रोह का दमन
संथाल परगनों में यह विद्रोह तीव्र गति से फैला जिसमें निम्न वर्ग के गैर संथालियों
ने संथालों के साथ विद्रोह में बढ़-चढ़कर भाग लिया। लेकिन सरकारी अधिकारियों द्वारा
यह विद्रोह दबा दिया गया क्योंकि अंग्रेजों के हथियार अधिक आधुनिक थे। अंग्रेजी दमन
को "23 फरवरी, 1856 के इलस्ट्रेटेड लन्दन न्यूज में प्रकाशित चित्र द्वारा समझ
सकते हैं कि विद्रोह को कैसे कुचलकर, सारे क्षेत्र की छानबीन कर, विद्रोह में लिप्त
व्यक्तियों को पकड़ लिया गया तथा गाँवों में किस प्रकार अधिकारियों ने आग लगा दी है।
ये चित्र ब्रिटेन की सामान्य जनता के बीच अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से
दिया गया था।"
अन्त में अंग्रेजों द्वारा संथालों का दमन कर दिया गया। इलस्ट्रेटेड लन्दन न्यूज,
1856 में छपे चित्र में संथाल कैदियों को बन्दी बनाकर ले जाया जा रहा है।
ब्रिटिश अधिकारी गर्व के साथ घोड़े पर बैठा हुक्का पी (गुड़गुड़ा) रहा है। छपा
चित्र इस बात की पुष्टि कर रहा था कि विद्रोह का दमन किया जा चुका है। अंग्रेज अधिकारी
निश्चित हो गये हैं। संथाल विद्रोहियों को कम्पनी के सैनिक चारों तरफ से घेरे हुए हैं।
यह चित्र ब्रिटेन की जनता को कम्पनी की ताकत व रुतबा बताने को काफी था।"
इस विद्रोह के पश्चात् संथालों को संतुष्ट करने के लिए (ताकि विद्रोह फिर से
न हो) अंग्रेज अधिकारियों ने कुछ विशेष कानून लागू किये। संथाल परगनों को पुनः निर्मित
करवा दिया जिसके अन्तर्गत 5,500 वर्गमील का क्षेत्र था जिसमें भागलपुर तथा वीरभूमि
जिला का हिस्सा था।
16. अकबर एक राष्ट्रीय शासक था कैसे?
उत्तर: निस्संदेह अकबर मध्यकालीन भारत के शासकों में एकमात्र शासक था जिसने
भारत में राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देने का प्रयास किया। वह कुछ हद तक सफल हुआ। हालांकि
बाद के मुगल शासक उसकी भावना को पकड़ने में विफल रहे। अधिकांश इतिहासकार अकबर को महान
सम्राट मानते हैं।
केटी शाह लिखते हैं, “अकबर मुगलों में सबसे महान थे और संभवतः एक हजार साल तक
सभी भारतीय शासकों में सबसे महान थे, अगर कभी शक्तिशाली मौर्यों के दिनों से नहीं।
लेकिन उनके जन्म की विरासत के आदमी की प्रतिभा से कम से कम अलग किए बिना, यह अभी तक
नहीं कहा जा सकता है कि अकबर इतना महान था, क्योंकि वह इतनी अच्छी तरह से भारतीयकृत
था। ”
अकबर के 'राष्ट्रीय राजा' होने के दावे का निम्नलिखित आधार पर समर्थन किया गया
है:
1. पूरे भारत को एक सम्राट के शासन में लाना।
2. प्रशासन की एकीकृत प्रणाली।
3. राजस्व प्रशासन की एकीकृत प्रणाली।
4. एकीकृत कराधान नीति।
5. सुलह की राजपूत नीति।
6. संश्लेषण और प्रसार की धार्मिक नीति।
7. फ़ारसी को दरबारी भाषा बनाना।
8. सभी भाषाओं में साहित्य के विकास में उदार मदद।
9. विभिन्न शैलियों के संश्लेषण को लाकर ललित कला की एक समान भारतीय शैली का
विकास करना।
10. सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और शिष्टाचार से संबंधित सद्भाव।
11. विभिन्न समुदायों से संबंधित उनके विषयों का कल्याण।
एडवर्डस और गेरेट ने लिखा:
“अकबर ने कार्रवाई के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता साबित की है। वह एक
निडर सिपाही, एक महान जनरल, एक बुद्धिमान प्रशासक, परोपकारी शासक, और चरित्र के ध्वनि
न्यायाधीश थे। वह पुरुषों का एक जन्मजात नेता था और इतिहास में ज्ञात सबसे शक्तिशाली
संप्रभु में से एक होने का दावा कर सकता है ... लगभग पचास वर्षों के शासनकाल में, उसने
एक शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण किया जो सबसे मजबूत हो सकता है और एक राजवंश की
स्थापना कर सकता है जिसकी भारत पर पकड़ है। लगभग एक शताब्दी तक किसी प्रतिद्वंद्वी
द्वारा चुनाव नहीं लड़ा गया था। उनके शासनकाल ने मुगलों के अंतिम परिवर्तन को केवल
एक स्थायी भारतीय राजवंश में सैन्य आक्रमणकारियों के रूप में देखा। "
1. भारत को मातृभूमि के रूप में देखते हुए: भारत के अधिकांश सुल्तान शासक स्वयं
को बगदाद के खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में मानते थे। बाबर को भारत के बाहर और अपने
देश में भी दफनाया जाना था। हुमायूँ ने भी काबुल और क़ंदर की ओर देखा। अकबर ने पूरी
तरह से भारत, उसके लोगों और मिट्टी आदि के साथ अपनी पहचान बनाई। उन्होंने भारत की समृद्धि
के लिए काम किया। वह अकेले भारत के प्रति निष्ठा रखते थे और कोई नहीं।
2. एक सिर के नीचे हिंदुस्तान संघ: मल्लेसन के अनुसार, "अकबर का सबसे महत्वपूर्ण
उद्देश्य एक सिर के नीचे हिंदुस्तान का मिलन था जिसे हासिल करना मुश्किल था क्योंकि
उसने सभी गैर-इस्लामिक धर्मों को सताया था। इसे पूरा करने के लिए, पहले जीतना जरूरी
था, दूसरा सभी विवेक और सर्वशक्तिमान की पूजा करने के सभी तरीकों का सम्मान करना।
" इस प्रकार भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने का अकबर का उद्देश्य एक
छत्र के नीचे बिखरे हुए राज्यों को एकजुट करना था। हालाँकि, डॉ। आरपी त्रिपाठी के अनुसार,
अकबर का उद्देश्य राष्ट्रीय राजा की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी था। अपने विचार में
अकबर पूरी दुनिया को अपने नियंत्रण में लाना चाहता था क्योंकि वह एक विस्तारवादी था।
3. सभी विषयों के साथ समान व्यवहार: प्रसिद्ध कलाकार फर्ग्यूसन ने लिखा है,
“अकबर के चरित्र में और अधिक उल्लेखनीय कुछ भी नहीं है क्योंकि उसकी सारी गतिविधियाँ
प्रभावित हुईं। उन्हें अपने सभी हिंदू विषयों के लिए उतना ही प्यार और सराहना मिली,
जितनी उनके सह-धर्मवादियों के लिए थी। ”
4. सभी धर्मों का संश्लेषण: अकबर ने सभी धर्मों के संश्लेषण के बारे में प्रयास
किया। 'इबादत खाना' धार्मिक चर्चाओं के लिए स्थापित किया गया था।
5. दीन-ए-इलाही की स्थापना: सभी धर्मों के अच्छे बिंदुओं के आधार पर, अकबर ने
एक नए धर्म की स्थापना की और ऐसा कदम वह एक राष्ट्रीय शासक द्वारा ही उठाया जा सकता
था।
6. योग्यता के आधार पर नियुक्ति और धार्मिक आधार पर नहीं: मेरिट सभी नियुक्तियों
का आधार था और इससे उनके प्रशासन में काफी दक्षता आई। इस नीति से अकबर ने हिंदुओं का
दिल जीत लिया। टोडर मल, को वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। भगवान दास, मान सिंह और
बीरबल उच्च पदों पर थे।
7. अकबर की 'नव-रत्न' (नौ ज्वेल्स): उनके दरबार के नौ प्रतिष्ठित व्यक्तियों
में से चार हिंदू थे।
8. हिंदुओं पर प्रतिबंध हटाने: अकबर ने तीर्थयात्रा कर के साथ-साथ जीजा कर को
भी समाप्त कर दिया। उन्होंने सभी को धार्मिक स्वतंत्रता दी।
9. हिंदुओं के साथ वैवाहिक गठबंधन: अकबर ने कई राजपूत परिवारों के साथ वैवाहिक
गठबंधन में प्रवेश किया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि शाही परिवार की किसी लड़की की
हिंदू परिवार में शादी क्यों नहीं की गई।
10. हिंदू और मुसलमानों का सांस्कृतिक संश्लेषण: अकबर ने हिंदू और मुस्लिम कला
और साहित्य के संलयन को लाने के लिए जोरदार प्रयास किए।
(ए) आर्किटेक्चर: फ़ारसपुर सीकरी, आगरा और दिल्ली में बनी उनकी इमारतों में
फ़ारसी और भारतीय कला दोनों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
(ख) चित्र: ऐसा कहा जाता है कि उनके दरबार के 17 महत्वपूर्ण चित्रकारों में
से 13 से कम हिंदू नहीं थे।
(ग) साहित्य: अकबर ने संस्कृत से फारसी में हिंदुओं की पवित्र पुस्तकों के अनुवाद
के उद्देश्य से एक विशेष अनुवाद विभाग की स्थापना की।
उपसंहार: ऊपर दिए गए खातों से, यह स्पष्ट है कि अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।
जवाहरलाल नेहरू ने उनका सही वर्णन किया है, "भारतीय राष्ट्रवाद का जनक।"
17. स्वतंत्रता आंदोलन में माहत्मा गाँधी की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की भूमिका को महत्वपूर्ण
माना जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए आंदोलन की अगुवाई की थी। महात्मा
गांधी की शांतिपूर्ण और अहिंसक नीतियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संघर्ष
का आधार बनाया। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। दक्षिण अफ्रीका
से भारत वापस आने के बाद, गोपाल कृष्ण गोखले ने महात्मा गांधी को भारत में चिंताओं
और संघर्ष से परिचित कराया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन के अहिंसक अभियानों की एक श्रृंखला शुरू की गई थी। विरोध
मुख्य रूप से नमक कर, भूमि राजस्व, सैन्य खर्चों को कम करने आदि के खिलाफ थे।
चंपारण और खेड़ा आंदोलन 1918 में खेड़ा सत्याग्रह और चंपारण आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता
प्राप्त करने के लिए गांधी के पहले महत्वपूर्ण कदमों में से एक था। महात्मा गांधी गरीब
किसानों के अनुरोध पर 1917 में चंपारण (बिहार) गए, जहां उन्होंने ब्रिटिश नील उत्पादकों
से अपनी जमीन के 15% हिस्से पर नील उगाने और किराए पर पूरी फसल के साथ हिस्सा लेने
की मांग की। एक विनाशकारी अकाल की पीड़ा में अंग्रेजों ने एक दमनकारी कर लगाया जो उन्होंने
बढ़ाने पर जोर दिया। साथ ही गुजरात के खेड़ा में भी यही समस्या थी। इसलिए, महात्मा
गांधी ने गांवों को सुधारना, स्कूलों का निर्माण, गांवों की सफाई, अस्पतालों का निर्माण
और कई सामाजिक कुरीतियों का खंडन करने के लिए गांव के नेतृत्व को प्रोत्साहित करना
शुरू कर दिया। ब्रिटिश पुलिस ने अशांति पैदा करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
सैकड़ों लोगों ने पुलिस थानों और अदालतों के बाहर विरोध और रैली की। उन्होंने उसकी
रिहाई की मांग की, जिसे अदालत ने अनिच्छा से मंजूर कर लिया। गांधी ने उन सभी जमींदारों
के खिलाफ सुनियोजित विरोध का नेतृत्व किया, जो गरीब किसानों का शोषण कर रहे थे। अंत
में महात्मा गांधी किसानों को सुधारने की अपनी मांगों से सहमत होने के लिए अंग्रेजों
को मजबूर करने में सफल हो गए। इस आंदोलन के दौरान लोगों ने मोहनदास करमचंद गांधी को
बापू कहकर संबोधित किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी को वर्ष 1920 में महात्मा की उपाधि
से सम्मानित किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी का पहला आंदोलन असहयोग आंदोलन
के साथ शुरू हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
ने किया था। यह अहिंसात्मक प्रतिरोध के देशव्यापी आंदोलन की पहली श्रृंखला थी। आंदोलन
सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक चला। अन्याय के खिलाफ लड़ाई में, गांधी के हथियार असहयोग
और शांतिपूर्ण प्रतिरोध थे। लेकिन नरसंहार और संबंधित हिंसा के बाद, गांधी ने अपना
ध्यान पूर्ण स्व-शासन प्राप्त करने पर केंद्रित किया। यह जल्द ही स्वराज या पूर्ण राजनीतिक
स्वतंत्रता में बदल गया। इस प्रकार, महात्मा गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी
को नए संविधान के साथ स्वराज के उद्देश्य से फिर से संगठित किया गया। महात्मा गांधी
ने स्वदेशी नीति को शामिल करने के लिए अपनी अहिंसा नीति को आगे बढ़ाया, जिसका अर्थ
था विदेशी निर्मित वस्तुओं की अस्वीकृति। महात्मा गांधी ने सभी भारतीयों को ब्रिटिश
निर्मित वस्त्रों के बजाय खादी पहनने के लिए संबोधित किया। उन्होंने सभी भारतीयों से
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने के लिए खादी की कताई के लिए कुछ समय बिताने
की अपील की। यह महिलाओं को आंदोलन में शामिल करने की नीति थी, क्योंकि इसे एक सम्मानजनक
गतिविधि नहीं माना जाता था। इसके अलावा, गांधी ने ब्रिटिश शैक्षिक संस्थानों का बहिष्कार
करने, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने और ब्रिटिश उपाधियों को छोड़ने का भी आग्रह
किया। जब आंदोलन को बड़ी सफलता मिली, तो उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में हिंसक झड़प
के बाद यह अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो गया। इसके बाद, महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार
कर लिया गया और 6 साल कैद की सजा सुनाई गई।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो खंडों में विभाजित थी। इसके अलावा, हिंदू और मुस्लिम
लोगों के बीच समर्थन भी टूट रहा था। दांडी मार्च महात्मा गांधी 1928 में फिर से सबसे
आगे लौट आए। 12 मार्च, 1930 को गांधी ने नमक पर कर के खिलाफ एक नया सत्याग्रह शुरू
किया। अहमदाबाद से दांडी तक पैदल चलकर, अपने नमक बनाने के अधिकार से गरीबों को वंचित
करने वाले कानून को तोड़ने के लिए, उन्होंने ऐतिहासिक दांडी मार्च की शुरुआत की। गांधी
ने दांडी में समुद्र तट पर नमक कानून तोड़ा। इस आंदोलन ने पूरे राष्ट्र को उत्तेजित
किया और इसे सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। 8 मई, 1933 को, उन्होंने
हरिजन आंदोलन में मदद करने के लिए आत्म-शुद्धि का 21 दिवसीय उपवास शुरू किया। 1939
में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रकोप के बाद भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी फिर से
राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए। 8 अगस्त, 1942 को गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का
आह्वान किया। गांधी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, देश के बाहर अव्यवस्थाएं फैल गईं और
कई हिंसक प्रदर्शन हुए। स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो सबसे शक्तिशाली आंदोलन बन
गया। पुलिस की गोलियों से हजारों स्वतंत्रता सेनानी मारे गए या घायल हुए, और सैकड़ों
हजारों को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों से परम स्वतंत्रता
प्राप्त करने के लिए अहिंसा और कारो यारो (करो या मरो) के माध्यम से अनुशासन बनाए रखने
का आह्वान किया। 9 अगस्त, 1942 को, महात्मा गांधी और पूरी कांग्रेस कार्य समिति को
मुंबई में गिरफ्तार किया गया। उनकी बिगड़ती सेहत के मद्देनजर, उन्हें मई 1944 में जेल
से रिहा कर दिया गया क्योंकि अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि वे जेल में मरें और राष्ट्र
को नाराज़ करें। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने के स्पष्ट संकेत
दिए जाने के बाद, गांधी ने लड़ाई बंद कर दी और सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया। विभाजन
और भारतीय स्वतंत्रता 1946 में, सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुनय-विनय पर, महात्मा गांधी
ने गृहयुद्ध से बचने के लिए भारत के विभाजन और ब्रिटिश कैबिनेट द्वारा पेश की गई स्वतंत्रता
के प्रस्ताव को अनिच्छा से स्वीकार कर लिया। स्वतंत्रता के बाद, गांधी का ध्यान शांति
और सांप्रदायिक सद्भाव में बदल गया। उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा को खत्म करने के लिए
उपवास किया और मांग की कि विभाजन परिषद ने पाकिस्तान को मुआवजा दिया। उनकी माँगें पूरी
हुईं और उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया। इस प्रकार, मोहनदास करमचंद गांधी अंग्रेजों
से लड़ने के लिए पूरे देश को एक छत्र के नीचे लाने में सक्षम थे। गांधी ने अपनी तकनीकों
को धीरे-धीरे विकसित और सुधार किया, यह आश्वासन देने के लिए कि उनके प्रयासों ने महत्वपूर्ण
प्रभाव डाला।
18. भारतीय संविधान के प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर: भारतीय संविधान बहुत विस्तृत तथा व्यापक है। हमारे लिखित भारतीय संविधान
की निम्नलिखित 19 विशेषताएँ हैं
1. लिखित एवं निर्मित संविधान: संविधान सभा ने नवनिर्मित संविधान 26 नवंबर
1949 को अधिनियमित, आत्मार्पित तथा अंगीकृत किया। नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद
से सम्बंधित उपबंधों तथा अस्थायी और संक्रमणकारी अपबंधों को तुरंत 26 नवम्बर 1949 को
लागू हुआ तथा इसी तिथि को संविधान को लागू होने की तिथि माना गया। इसी दिन भारत को
गणतंत्र घोषित किया गया। भारतीय संविधान का निर्माण एक विशेष संविधान सभा के द्वारा
किया गया है। भारतीय संविधान अमेरिका संविधान के समतुल्य है। जबकि ब्रिटेन और इजरायल
का संविधान अलिखित है। लिखित संविधान स्पष्ट तथा निश्चित होता है। जिससे संविधान की
व्याख्या अत्यंत सरलतापूर्वक से की का सकती है।
2. विश्व का सबसे बड़ा संविधान: भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान
है। इस संविधान में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, प्रशासनिक सेवाएं, निर्वाचन आयोग आदि
प्रशासन से संबंधित सभी विषयों पर विस्तार से लिखा गया है। प्रारम्भ में मूल संविधान
में 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियां थी। संविधान में निरंतर संशोधन होते रहते हैं जिससे
संविधान का आकार और भी विस्तृत होता जाता है। हमारे संविधान में यह जब से निर्मित हुआ
है तब से बहुत से उपबंध इस में जोड़े गए हैं तथा कुछ कुछ निष्कासित भी किए गए हैं।
1976 में हुए दो वे संविधान संशोधन के दौरान हमारे संविधान में विशेष रूप से वृद्धि
हुई है। इस संशोधन के दौरान इसमें भाग 4 ए तथा भाग 14 ए जोड़े गए हैं तथा अनेक अनुच्छेदों
का विस्तार किया गया है। बाद में और भी कई सारी चीजों को संविधान में जोड़ा गया है
या संशोधित किया गया है जैसे कि ग्राम पंचायत एवं नगरपालिका विषयक इत्यादि। भारतीय
संविधान का विस्तृत आकार ऐसे ही नहीं है बल्कि इसका मूल संविधान में संशोधन तथा परिवर्तन
करते हुए हुआ है। अब तक लगभग 100 संशोधन होना इसका प्रमाण है।
वर्तमान समय में मूल रूप से भारतीय संविधान में एक प्रस्तावना, 25 भागों में
विभाजित 465 से अधिक अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। विश्व के किसी भी संविधान में
इतने अनुच्छेद तथा अनुसूचियां नहीं हैं। संशोधन द्वारा भारतीय संविधान का स्थूल रूप
निरंतर बढ़ रहा है। इससे संविधान का विकास तो हुए है परन्तु श्रेष्ठ परंपराओं का मार्ग
अवरूद्ध हुआ है।
3. संविधान की प्रस्तावना: भारतीय संविधान में एक प्रभावशाली एवं प्रेरणा स्रोत
प्रस्तावना है। यह प्रस्तावना संविधान के उद्देश्य तथा लक्ष्यों को निर्धारित करती
है। प्रारंभ में प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना जाता था तथा ना ही इस में
परिवर्तन के लिए कोई प्रावधान था। प्रस्तावना का प्रयोग मुख्यत: वहां वहां किया जाता
था जहां पर संविधान की भाषा को
समझने में कठिनाई का अनुभव होता था। प्रस्तावना को न्यायालय में भी परिवर्तित
नहीं किया जा सकता था। प्रस्तावना को लेकर सदैव से प्रश्न विवादास्पद बना रहा था की
प्रस्तावना को संशोधित किया जा सकता है या नहीं तथा यह संविधान का अंग है या नहीं?
1973 में इस विवाद का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
में किया। इस निर्णय के बाद प्रस्तावना को संविधान का माना जाने लगा तथा इस प्रस्तावना
में परिवर्तन कर पाता भी संभव हुआ।
42वे संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में प्रस्तावना में संशोधन करते हुए 'समाजवादी',
'धर्मनिरपेक्ष' तथा 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़े गए।
4. भारतीय संविधान में विभिन्न संविधानों का समावेश:
संविधान के स्रोत - भारतीय संविधान निर्मित करने से पूर्व संविधान सभा ने विभिन्न
देशों के संविधान का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया तथा साथ ही साथ भारतीय स्वतंत्रता
से पूर्व बने अधिनियमों, राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रस्तावों का भी अध्ययन किया गया।
संपूर्ण चीजों के अध्ययन के पश्चात जहां से भी जो उपबंध अच्छा तथा उपयुक्त प्रतीत हुआ,
उसे ले लिया गया तथा भारतीय संविधान में उसे सम्मिलित कर लिया गया। संविधान के विभिन्न
प्रमुख उपबंधों के अग्रलिखित स्रोत हैं-
• ब्रिटेन - संसदीय प्रणाली, एकल नागरिकता, विधि निर्माण निर्माण प्रक्रिया,
मंत्रिमंडल का लोकसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व, विदाई राष्ट्रपति की संवैधानिक
स्थिति, विधि का शासन, संसदीय विशेषाधिकार, लोक सेवकों की पदावधि, संसद और विधानमंडल
प्रक्रिया।
• कनाडा - संघात्मक व्यवस्था, अपशिष्ट शक्ति, सबल केंद्रीकरण की व्यवस्था, केंद्र
द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति।
• अमेरिका - मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनर्विलोकन, उच्चतम न्यायालय, संविधान की
सर्वोच्चता, राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया, उपराष्ट्रपति का पद, स्वतंत्र निष्पक्ष
न्यायपालिका, वित्तीय आपातकाल, उपराष्ट्रपति एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने
की विधि।
• पूर्व सोवियत संघ - मौलिक कर्तव्य, प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
न्याय का आदर्श।
• आयरलैंड - राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति,
राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत होना।
• जापान - अनुच्छेद का प्रस्तावना।
• ऑस्ट्रेलिया - प्रस्तावना
समवर्ती सूची, शक्ति विभाजन, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक, प्रस्तावना की भाषा।
• दक्षिण अफ्रीका - संविधान
संशोधन प्रक्रिया, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन।
• फ्रांस - गणतंत्रतात्मक ढांचा, स्वतंत्रता, समानता बंधुता के आदर्श
• जर्मनी- आपातकालीन उपबंध।
इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान का पूरा मॉडल ब्रिटेन राज्य व्यवस्था को ध्यान
में रखकर बनाया गया है। यद्यपि ब्रिटेन में अलिखित संविधान है। भारत ने वहां स्थापित
परंपराओं को अपने अनुरूप संविधान में लिपिबद्ध किया है।
5. कठोर एवं लचीलापन का संविधान में समन्वय: संविधान में संशोधन प्रणाली के
आधार पर संविधान दो प्रकार का होता है कठोर या दुष परिवर्तनशील संविधान लचीला या सुपरिवर्तनशील
संविधान
कठोर संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया या प्रणाली जटिल
होती है। ये वे संविधान होते हैं। जिनमें संवैधानिक व साधारण कानून में मौलिक भेद समझा
जाता है तथा इनमें संवैधानिक कानूनों में संशोधन परिवर्तन के लिए साधारण कानूनों के
निर्माण से भिन्न प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो साधारण कानूनों के निर्माण की प्रणाली
से कठिन होती है। उदाहरण अमेरिकी संविधान।
लचीला संविधान वह होता है जिसमें संविधान की प्रक्रिया सरल होती है। यदि संवैधानिक
कानूनों और सामान्य कानूनों के बीच कोई अंतर न हो और संविधानिक कानून में सामान्य कानूनों
की प्रक्रिया से ही संशोधन एवं परिवर्तन क्या का सके, तो संविधान को लचीला या सुपरिवर्तनशील
कहा जाता है। उदाहरण इंग्लैंड का संविधान।
6. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य: संप्रभुता शब्द का अर्थ है यहां पर भारतीय
संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च या स्वतंत्र होना। भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति
के नियंत्रण से पूर्णत मुक्त संप्रभुता संपन्न राष्ट्र है अर्थात भारतीय संविधान में
यह व्यवस्था की गई है कि भारत एवं भारतीय लोग किसी भी बाहरी या विदेशी सत्ता के अधीन
अथवा दबाव में कार्य नहीं करेंगे। भारत किसी भी बाहरी शक्ति द्वारा शासन में नहीं आएगा
बल्कि यह सीधे जनता (भारतीय लोगों) द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार के द्वारा ही शासित
होगा। इसलिए भारत की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए ही गुट क्षता की विदेश नीति को
अपनाया गया है। एवं संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हर संभव उपाय किए गए हैं।
7. लोकतंत्रात्मक गणराज्य: भारत में ब्रिटेन के लोकतंत्र के अनुरूप ही लोकतंत्र
की स्थापना की गई है। संविधान द्वारा ही भारत में एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना
की गई है। लोकतंत्रात्मक शब्द का अभिप्राय है कि जनता की शासन प्रशासन में अधिक से
अधिक सहभागिता को सुनिश्चित करना। लोकतंत्रात्मक सरकार की शक्ति का स्रोत जनता में
ही निहित है, क्योंकि यहां जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा स्थापित सरकार होती है।
भारतीय संविधान में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना ना करके अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की
स्थापना की गई है। संविधान के निर्माताओं ने केवल राजनीतिक लोकतंत्र की ही स्थापना
नहीं की, अपितु सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की भी संकल्पना किया है। भारत
में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना की गई है जिसमें कि किसी विशेष या किसी विशेष वर्ग के हाथों
में सत्ता न हो।
8. सरकार का संसदीय रूप: भारत सरकार का स्वरूप संसदीय है, यहां दो सदनों लोकसभा
और राज्यसभा वाली विधायिका है। संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत संसद को अधिक महत्व प्रदान
है। कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदाई होती है। इस व्यवस्था के अंतर्गत दोहरी कार्यपालिका
होती है एक नाम मात्र की तथा दूसरी वास्तविक ककार्यपालिक। भारत में नाम मात्र की कार्यपालिका
राष्ट्रपति है तथा वास्तविक कार्यपालिका प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल है।
संविधान केवल केंद्र में ही नहीं, बल्कि राज्य में भी संसदीय प्रणाली की स्थापना करता
है।
भारत में संसदीय प्रणाली की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
. वास्तविक व नाम मात्र के कार्य पालकों की उपस्थिति
. बहुमत वाले दल की सत्ता
. विधायिका के समक्ष कार्यपालिका की संयुक्त जवाबदेही
. विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता
. प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का नेतृत्व
. निचले सदन का विघटन (लोकसभा तथा विधानसभा)
हालांकि भारतीय संसदीय प्रणाली बड़े पैमाने पर ब्रिटिश संसदीय प्रणाली पर आधारित
है फिर भी दोनों में कुछ मूलभूत अंतर है। उदाहरण के लिए ब्रिटिश संसद की तरह भारतीय
संसद संप्रभु नहीं है। इसके अलावा भारत का प्रधान निर्वाचित व्यक्ति होता है (गणतंत्र),
जबकि ब्रिटेन में उत्तराधिकारी व्यवस्था है।
9.सार्वभौम वयस्क मताधिकार: भारतीय संविधान द्वारा राज्य विधानसभाओं और लोकसभा
के चुनाव के आधार स्वरूप सार्वभौम वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है। हर वह व्यक्ति
जिसकी उम्र कम से कम 18 वर्ष, उसे धर्म, जाती, लिंग, साक्षरता अथवा सम्पदा आदि के आधार
पर कोई भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार है। वर्ष 1989 में 61वे संविधान संशोधन
अधिनियम, 1988 के द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया
था।
देश के वृहद आकार, जनसंख्या, उच्च गरीबी, सामाजिक असमानता, अशिक्षा आदि को देखते
हुए संविधान निर्माताओं द्वारा सार्वभौम वयस्क मताधिकार को संविधान में शामिल करना
एक साहसिक व सराहनीय प्रयोग था।
वयस्क मताधिकार लोकतंत्र को बड़ा आधार देने के साथ-साथ आम जनता के स्वाभिमान
में वृद्धि करता है, समानता के सिद्धांत को लागू करता है, अल्पसंख्यकों को अपने हितों
की रक्षा करने का अवसर देता है तथा कमजोर वर्ग के लिए नई आशाएं और प्रत्याशा जगाता
है।
19. भारत के विभाजन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर: भारत विभाजन के मुख्य कारण इस प्रकार है--
1. मुस्लिम लीग की स्थापना एवं मुस्लिम साम्प्रदायिकता : शिमला प्रतिनिधिमंडल
के समय मुस्लिम नेताओं ने एक केन्द्रीय मुस्लिम सभा बनाने की सोची जिसका उद्देश्य केवल
मुसलमानों के हित की रक्षा करना था। 30 दिसम्बर 1906 को "अखिल भारतीय मुस्लिम
लोग का गठन हुआ। मुस्लिम लीग का उद्देश्य और दृष्टिकोण साम्प्रदायिकता और हठधार्मिता
का रहा। लीग का उद्देश्य विदेशी हुकूमत के प्रति राजभक्ति मे वृध्दि और राष्ट्रीय आन्दोलन
के प्रवाह को रोकना था। सन् 1910 के समाप्त होते-होते मुस्लिम लीग की प्रतिक्रियावदी
नीति कुछ शिथिल पड़ गई थी। मुसलमानों की नई पीढ़ी राष्ट्रीयता की ओर झुकने लगी थी उनमे
राष्ट्रीय विचारों का विकास होने लगा था। लेकिन अब्दुल कलाम आजाद, मोहम्मद अली जिन्ना,
अली बिन्दुओं, अजमल खां डाॅ. अंसारी जैसे आदि मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिम राष्ट्रवाद
के उत्कर्ष करने और साम्प्रदायिकता मे महत्वपूर्ण योगदान रहा।
2. कांग्रेस की संतुष्टीकरण की दुर्बल नीति: भारत-विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण
के लिए कांग्रेस की संतुष्टीकरण की दुर्बल नीति भी उत्तरदायी रही थी। कांग्रेस ने मुस्लिम
लीग की अनुचित मांगो को भी स्वीकार कर लिया था। अनेक अवसरों पर कांग्रेस ने अपने सिद्धान्तों
को तक त्याग दिया था। 1916 ई. का "लखनऊ समझौता" में की गई भूल जिसके अन्तर्गत
कांग्रेस ने मुसलमानों के पृथक प्रतिनिधित्व और उनको उनकी जनसंख्या से अधिक अनुपात
में व्यवस्थापिका-सभाओं मे सदस्य भेजने के अधिकार को स्वीकार करना था। इससे मुसलमानों
को बढ़ावा मिला।
3. साम्प्रदायिक हिंसा: खिलाफत आन्दोलन और असहयोग आंदोलन के समाप्त हो जाने
के बाद साम्प्रदायिक विद्वेष की आग बढ़ने गली। सन् 1921 में मालाबार मे हुए मोपला विद्रोह
ने हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता को चिंगारी प्रदान की। सन् 1922 से लेकर 1927 ई. तक हिन्दू-मुस्लिम उपद्रवों
ने इतना भयावह रूप धारण कर लिया कि दोनों सम्प्रदाय की एकता का अतं होने लगा। मुस्लिम
लीग धीरे-धीरे प्रतिगामी नेतृत्व की अधीनता में चली गई और मुसलमानों के बीच हिन्दूराज
दिखा-दिखाकर अपनी जड़े मजबूत कर प्रारंभ कर दिया।
4. पाकिस्तान की माँग: डॉ. बृजेश कुमार श्री वास्तव की पुस्तक के अनुसार सन् 1930 में सर मुहम्मद इकबाल मुस्लिम लीग का सभापति बना उसने अपने भाषण मे कहा " मुस्लिम हितों की सुरक्षा एक पृथक राज्य की स्थापना के द्वारा ही सम्भव हो सकती हैं। इकबाल ने उन सभी मुसलमान बुध्दिजीवियों को गम्भीरता से प्रभावित किया जिन्होंने पाकिस्तान बनाये जाने की मांग की यद्यपि इकबाल ने पाकिस्तान शब्द को जन्म नहीं दिया था इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लन्दन मे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी चौधरी रहम अली और उनके तीन साथियों ने जनवरी 1933 ई. मे प्रकाशित किये गये छोटे पैम्पलेट "अब या फिर कभी नही" मे किया और दक्षिण में हैदराबाद, उत्तर-पूर्व में बंगाल और तीन मुसलमानी राज्यों को एक संघ राज्य में सम्मिलित करके उसका नाम पाकिस्तान रखने का विचार व्यक्त किया। सन् 1940 मे अपने लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने स्पष्टतया पाकिस्तान की माँग रखी। पाकिस्तान की पृष्ठभूमि का निर्माण पर्याप्त समय से पहले से ही हो चुका था।