खण्ड-अ अतिलघुउतरीय
प्रश्न
1. 1857 की क्रांति का नेतृत्व किसने किया था?
उत्तर: बहादुर शाह जफर
2. महात्मा गाँधी को महात्मा की उपाधि किसने दी थी?
उत्तर: रवींद्रनाथ टैगोर
3. काँग्रेस ने किस गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था?
उत्तर: द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर ,1931
4. अकबरनामा किसकी रचना है।
उत्तर: अबुल फज़ल
5. संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर: 11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना
गया।
6. महात्मा गाँधी के राजनैतिक गुरू कौन थे?
उत्तर: गोपाल कृष्ण गोखले
7. कैबिनेट मिशन योजना के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर: कैबिनेट मिशन योजना के अध्यक्ष लॉर्ड पैथिक लारेंस थे।
खण्ड–ब लघुउतरीय
प्रश्न
8. साइमन कमीशन पर प्रकाश डालें।
उत्तर: साइमन कमीशन की नियुक्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व
में की थी। इस कमीशन में सात सदस्य थे, जो सभी ब्रिटेन की संसद के मनोनीत सदस्य थे।
यही कारण था कि इसे 'श्वेत कमीशन' कहा गया। साइमन कमीशन की घोषणा 8 नवम्बर, 1927 ई.
को की गई। कमीशन को इस बात की जाँच करनी थी कि क्या भारत इस लायक़ हो गया है कि यहाँ
लोगों को संवैधानिक अधिकार दिये जाएँ। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया
गया, जिस कारण इसका बहुत ही तीव्र विरोध हुआ।
9. मांउटबेटन योजना क्या था?
उत्तर: भारत को दो भागों में बांटने वाली योजना का नाम था- माउंटबेटन योजना,
जिसे तीन जून 1947 को भारत के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने पेश किया था.
... लिहाजा, राजनीतिक और सांप्रदायिक गतिरोध को खत्म करने के लिए 'तीन जून योजना' आई,
जिसमें भारत के बंटवारे और भारत-पाकिस्तान को सत्ता के हस्तांतरण का विवरण था.
10. चौरी-चौरा हत्याकांड से क्या समझते हैं।
उत्तर: चौरी चौरा कांड 5 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में तत्कालीन संयुक्त प्रांत
(वर्त्तमान में उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग
आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों ने थाने में आग लगा दिया जिससे 21 पुलिस
कर्मी जल कर मर गये। इससे गांधी जी आहत हुए और उन्होंने फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन
स्थगित कर दिये।
11.1857 की क्रांति के सैनिक कारण का उल्लेख करें।
उत्तर: 1857 की क्रांति के सैनिक कारण निम्नलिखित हैं
a. अंग्रेज सिपाही को भारतीय सिपाहियों से ज्यादा सुविधा एवं वेतन मिलता था।
b. सिपाहियों के लिए पत्राचार मुफ्त था जो बाद में बंद कर दिया गया।
c. भारतीय सिपाहियों को दाढ़ी मूछ साफ करने के लिए अंग्रेजो के द्वारा दबाव
दिया गया।
d. बिना पूछे भारतीय सिपाहियों को सात समुंदर पार युद्ध में भेज दिया जाता था
,भारत में सात समंदर पार जाने पर उनको अछूत समझा जाता था।
12. कैबिनेट मिशन योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वर्ष 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय
उच्च-स्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा की। इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन
सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव), सर स्टेफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष)
तथा ए.वी. अलेक्जेंडर थे। इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिये गये थे तथा इसका कार्य भारत
को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिये, उपायों एवं संभावनाओं को तलाशना था।
13. सहायक संधि क्या थी? इसकी किन्ही तीन विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर: सहायक संधि (Subsidiary alliance) भारतीय उपमहाद्वीप में लार्ड वेलेजली
(1798-1805) ने भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार के लिए सहायक संधि का प्रयोग किया।
यह प्रकार की संधि है जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय रियासतों के बीच में
हुई थी। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी गवर्नर जनरल मार्किस डुप्लेक्स ने किया
था।
1)अंग्रेजों के साथ सहायक गठबंधन करने वाले भारतीय शासक को अपने स्वयं के सशस्त्र
बलों को भंग करना पड़ा और अपने क्षेत्र में ब्रिटिश सेना को स्वीकार करना पड़ा।
2) भारतीय शासकों को ब्रिटिश सेना का भुगतान करना पड़ेगा। अगर वह भुगतान करने
में असफल हुआ तो उनके क्षेत्र में से एक भाग को अंग्रेजों को सौप दिया जायेगा।
3) इसके बदले में अंग्रेजों विदेशी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह से भारतीय रियासतों
की रक्षा करेगा।
4) अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का
वादा किया। लेकिन वे इसका पालन कम ही करते थे।
5) भारतीय शासक किसी भी अन्य विदेशी शक्तियों से संधि नहीं करेगी। इसके अलावा
बिना अंग्रेजों की अनुमति के एक रियासत किसी अन्य रियासत से राजनीतिक संपर्क स्थापित
नहीं करेगा।
14.क्रिप्स मिशन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: क्रिप्स मिशन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल द्वारा ब्रिटिश संसद सदस्य
तथा मजदूर नेता सर स्टेफ़र्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च 1942 में भारत भेजा गया
था, जिसका उद्देश्य भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर करना था। हालांकि इस मिशन का वास्तविक
उद्देश्य युद्ध में भारतीयों को सहयोग प्रदान करने हेतु उन्हें फुसलाना था। सर क्रिप्स,
ब्रिटिश युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य भी थे तथा उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का
सक्रियता से समर्थन किया था। कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू तथा मौलाना अबुल कलाम
आज़ाद को क्रिप्स मिशन के संदर्भ में परीक्षण एवं विचार विमर्श हेतु अधिकृत किया था।
खण्ड-स दीर्घउतरीय
प्रश्न
15. जहाँगीर की राजपूत नीति का उल्लेख करें।
उत्तर: जहाँगीर ने उसी तरह अपने पिता की नीति को जारी रखा। वह राजपूतों के प्रति
उदार थे, हालांकि उनके शासनकाल में उच्च पदों पर राजपूतों की संख्या में कमी आई। उन्होंने
मेवाड़ को भी प्रस्तुत करने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया जिसने अब तक इसे मना
कर दिया था। उसने अपने शासनकाल की शुरुआत से ही मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए एक के
बाद एक कई मुग़ल सेनाएँ भेजीं।
राणा अमर सिंह ने अपने पिता की तरह उत्साह के साथ मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उन्होंने यह बताने से इंकार कर दिया कि पूरा मेवाड़ व्यावहारिक रूप से नष्ट हो गया
था और मुगलों ने हर जगह सैन्य चौकियों की स्थापना की।
लेकिन, आखिरकार, उन्होंने प्रिंस करन और उनके कुछ रईसों की सलाह पर शांति के
लिए सहमति व्यक्त की और 1615 ई। में मुगलों के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
1. राणा ने मुगुल सम्राट की संप्रभुता को स्वीकार किया और खुद के बजाय, अपने
बेटे और उत्तराधिकारी, राजकुमार को मुगुल अदालत में उपस्थित होने के लिए प्रतिनियुक्त
किया।
2. मुगल सम्राट के साथ राणा को वैवाहिक गठबंधन में प्रवेश करने के लिए नहीं
कहा गया था।
3. जहाँगीर चित्तौड़ के किले सहित मेवाड़ के सभी क्षेत्रों में इस शर्त पर लौट
आया कि इसकी मरम्मत नहीं की जाएगी।
इस प्रकार मेवाड़ और मुगुल के बीच लंबे समय तक संघर्ष समाप्त हुआ। मेवाड़ के
राणाओं ने इस संधि को तब तक मनाया जब तक औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान मेवाड़ को
जीतने का प्रयास नहीं किया।
यह निष्कर्ष करना गलत होगा कि राणा अमर सिंह ने मेवाड़ के सम्मान की रक्षा करने
की कोशिश नहीं की थी और मुगलों के साथ शांति संधि को स्वीकार करके अपने पिता, राणा
प्रताप के नाम को अपमानित किया था। अमर सिंह ने भी मुगलों के खिलाफ राणा प्रताप के
रूप में बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अपने बेटे और उत्तराधिकारी, प्रिंस करन और उनके कुछ
रईसों द्वारा सलाह दी गई थी।
उसके बाद भी, वह संतुष्ट नहीं था और शीघ्र ही प्रशासन को अपने बेटे को सौंप
दिया और अपना शेष जीवन एकांत स्थान, नौचंदी पर गुजरा। इसके अलावा, राणा के विषयों को
शांति की आवश्यकता थी।
मुगुल और मेवाड़ के बीच लड़ाई इतनी लंबी और कठिन थी कि मेवाड़ व्यावहारिक रूप
से तबाह हो गया था। इसके पुनर्निर्माण के लिए शांति आवश्यक थी। जहाँगीर ने अपनी ओर
से राणा को बहुत उदार शर्तें पेश कीं। उन्होंने किसी भी तरह से राणा को बदनाम करने
की कोशिश की। इसके विपरीत, उसने मेवाड़ के सभी क्षेत्रों और चित्तौड़ के किले को उसे
वापस कर दिया।
16. रैयतवाड़ी व्यवस्था पर विस्तार से प्रकाश डालें।
उत्तर: सन् 1802 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था
आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई। इसमें रैयतों या किसानों
को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया। अब किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के
लिये उत्तरदायी थे। इस व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि
भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
रैयतवाड़ी व्यवस्था 1792 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी के बारामहल जिले में सर्वप्रथम
लागू की गई। थॉमस मुनरो 1820 ई. से 1827 ई. के बीच मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवाड़ी
व्यवस्था के प्रारंभिक प्रयोग के बाद कैप्टन मुनरो ने इसे 1820 ई. में संपूर्ण मद्रास
में लागू कर दिया। इसके तहत कंपनी तथा रैयतों (किसानों) के बीच सीधा समझौता या संबद्ध था। राजस्व के निधार्रण तथा लगान वसूली
में किसी जमींदार या बिचौलिये की भूमिका नहीं होती थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था में भूमि का स्वामी - कैप्टन रीड तथा थॉमस मुनरो द्वारा
प्रत्येक पंजीकृत किसान को भूमि का स्वामी माना गया। वह राजस्व सीधे कंपनी को देगा
और उसे अपनी भूमि के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था लेकिन कर न देने की स्थिति
में उसे भूमि देनी पड़ती थी। इस व्यवस्था के सैद्धांतिक पक्ष के तहत खेत की उपज का
अनुमान कर उसका आधा राजस्व के रूप में जमा करना पड़ता था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था 30 वर्षों तक चली। इन वर्षों में 1820 ई. के बाद यह व्यवस्था
उन क्षेत्रों में लागू की गई जहाँ कोई भू-सर्वे नहीं हुआ था। (सर्वे से तात्पर्य जमीन,
उपज, लागत का आकलन) रैयत को इच्छानुसार खेत न देकर कंपनी के पदाधिकारी उन्हें अन्य
खेत में काम करवाने लगे। भूमि कर भी बढ़ा दिया जिससे कृषक वर्ग अपनी भूमि साहूकार के
पास रखकर ऋण ले लेते थे और ऋणग्रस्तता के जाल में फँस जाते थे। यदि कृषक वर्ग कर नहीं
दे पाते थे तो उनसे भूमि छीन ली जाती थी तथा राजस्व वसूली करने के लिए कंपनी के अधिकारी
रैयतों पर अत्याचार करते थे। मद्रास यातना आयोग ने 1854 ई. में इन अत्याचारों का विवरण
दिया था। इसके पश्चात भूमि का सर्वे पुन: प्रारंभ
किया गया तथा करों में भी कमी लाई गयी।
यह व्यवस्था कृषकों के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर
प्रभाव पड़ा। कृषक गरीब तथा भूमिहीन हुये तथा ऋणग्रस्तता में फँसकर रह गये। एक सर्वे
के अनुसार मद्रास में कंपनी ने पाया कि 1855 ई. में रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत
एक करोड़ पैंतालीस लाख एकड़ जमीन जोती गई और एक करोड़ अस्सी लाख एकड़ जमीन परती रह
गयी। इस प्रकार इस व्यवस्था से कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ा।
17.1857 की क्रांति के स्वरूप पर प्रकाश डालें।
उत्तर: 1857 के विद्रोह का स्वरूप क्या था? इस पर इतिहासकारों में मतभेद है।
विभिन्न इतिहासकारों ने इस विद्रोह पर भिन्न भिन्न मत दिये। जैसे--सीले, जान लारेंस,
ट्रेविलियन, मालसेन आदि विद्वानों के अनुसार "यह पूर्णतया सिपाही विद्रोह था।"
चार्ल्स रेक्स के अनुसार "यह एक सैनिक विद्रोह था जिसने कुछ क्षेत्रों
में जन विद्रोह का रूप ले लिया।
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने कहा कि "यह स्वतन्त्रता संग्राम था।"
मिस्टर के. और एस. बी. चौधरी ने इसे "एक सामन्तवादी प्रतिक्रिया"
माना।
जबकि डॉ. राम विलास शर्मा ने इस विद्रोह को "जनक्रांति" कहा।
जेम्स आउट्रम एवं डब्ल्यू टेलर ने 1857 के विद्रोह को अंग्रेजों के विरुद्ध
"हिन्दू मुस्लिम षड्यंत्र" माना। जबकि एल. आर. रीस ने कहा कि "यह ईसाई
धर्म के विरुद्ध एक धर्म युद्ध था।" वहीं सर जे. केयी ने इसे "श्वेतों के
विरुद्ध काले लोगों का संघर्ष कहा।"
टी. आर. होम्स के अनुसार "यह सभ्यता
एवं बर्बरता का संघर्ष था।" वीर सावरकर तथा पट्टाभि सीता रमैया ने इसे "सुनियोजित
स्वतंत्रता संग्राम" माना। जबकि कार्ल मार्क्स ने "राष्ट्रीय क्रान्ति"
कहा।
आर. सी. मजूमदार के अनुसार "यह तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम
न तो प्रथम, न ही राष्ट्रीय तथा न ही स्वतंत्रता संग्राम था।"
डॉ. एस. एन. सेन के अनुसार "जो कुछ धर्म की लड़ाई के रूप में शुरू हुआ
वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में समाप्त हुआ।"
उपर्युक्त विवेचनाओं से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह विद्रोह एक राष्ट्रीय
विद्रोह था, क्योंकि इसमें सैनिकों के साथ साथ आम लोगों ने भी भाग लिया। इस बात की
पुष्टि आधुनिक इतिहासकारों में विपिनचन्द्र के कथन से होती है। उनके अनुसार
"1857 का विद्रोह विदेशी सता को पुराने ढंग से हटाने की आखिरी लड़ाई थी, इसे विद्रोह
भी कह सकते हैं और आजादी की लड़ाई भी, खास बात यह है कि इसमें हार मिली, इससे बुद्धिजीवी
वर्ग ने सबक ली वे समझ गये कि यह पुराने किस्म का विदेशी शासक नहीं है, इसलिए इसके
खिलाफ लड़ाई दूसरे ढंग से लड़ी जाए| 1857 के विद्रोह के बाद भारत की आजादी की लड़ाई
में इसने बहुत योगदान दिया, विद्रोहियों की बहादुरी की गाथाएं जनता को प्रेरित करती
रहीं।"
18.महात्मा गाँधी की लोकप्रियता के क्या कारण थे?
उत्तर: भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ने भारत को अंग्रेजों से आजाद
करवाने के लिए अनेक आंदोलन किए, आंदोलन के कारण वह कई बार जेल भी गये। गांधी जी ने
अपने आंदोलनों के कारण भारत की जनता को एकजुट किया। जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों
को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। गांधी जी को सबसे पहले सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में
रंगून रेडियो से 'राष्ट्रपिता' कहकर सम्बोधित किया था। गांधी जी ने जीवन भर अहिंसा
और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इसका पालन करने के लिये कहा था। गांधी जी ने भारत
को आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन किए आइये उनके जन्मदिन के मौके पर उनके द्वारा किए
गए कुछ ऐसे आंदोलन के बारे में जानते है जिनके द्वारा उन्हें भारत का राष्ट्र पिता
का सम्मान मिला और उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम मानते है
महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन
क. चम्पारण सत्याग्रह 1917
ख. खेड़ा सत्याग्रह 1918
ग. अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 1918
घ. खिलाफत आन्दोलन 1919
ड. असहयोग आंदोलन 1920
च. सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930
छ. भारत छोड़ो आंदोलन 1942
19.भारत छाड़ो आंदोलन का वर्णन करें।
उत्तर: 'भारत छोड़ो आंदोलन' द्वितीय
विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था, जिसका मकसद भारत मां को अंग्रेजों
की गुलामी से आजाद कराना था। ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से
चलाया गया था। बापूने इस आंदोलन की शुरुआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन
से की थी। गांधी और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध के प्रयासों का समर्थन
तब तक नहीं देंगे जब तक कि भारत को आजादी न दे दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस
बार यह आंदोलन बंद नहीं होगा। उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के
साथ 'करो या मरो' के जरिए अंतिम आजादी के लिए अनुशासन बनाए रखने को कहा।
लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की शुरुआत हुई, 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले
ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी
संस्था घोषित कर दिया गया था, यही नहीं अंग्रेजों ने गांधी जी को अहमदनगर किले में
नजरबंद कर दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और
1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी।लेकिन लोग ब्रिटिश शासन के प्रतीकों
के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर निकल पड़े और उन्होंने सरकारी इमारतों पर कांग्रेस
के झंडे फहराने शुरू कर दिये। लोगों ने गिरफ्तारियां देना और सामान्य सरकारी कामकाज
में व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया। विद्यार्थी और कामगार हड़ताल पर चले गये। बंगाल
के किसानों ने करों में बढ़ोतरी के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने
भी काम करना बंद कर दिया, यह एक ऐतिहासिक क्षण था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही डॉ.
राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली जैसे नेता उभर कर सामने आये।
भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली थी लेकिन इस आंदोलन
ने 1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया। युद्ध के अंत में, ब्रिटिश सरकार ने संकेत
दे दिया था कि संता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। इस समय
गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक
बंदियों को रिहा कर दिया गया।
सन् 1857 के पश्चात देश की आजादी के लिए चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में सन् 1942 का 'भारत छोड़ो आंदोलन' सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन साबित हुआ। जिसके कारण भारत में ब्रिटिश राज की नींव पूरी तरह से हिल गई थी। आंदोलन का ऐलान करते वक़्त गांधी जी ने कहा था मैंने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया। यह जो लड़ाई छिड़ रही है वह एक सामूहिक लड़ाई है। सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में 'अगस्त क्रांति' के नाम से भी जाना जाता रहा।