Class 10 Economics All Chapter MVVI Objective & Subjective Questions Answer

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अर्थशास्त्र : अर्थव्यवस्था की समझ

1. विकास

विषयनिष्ठ (Subjective) प्रश्नोत्तर

प्रश्न : लोगों के विकास के लक्ष्य भिन्न होते हैं। एक कारण बताइए।

उत्तर : लोगों के विकास के लक्ष्य उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों के अनुसार निर्धारित होते हैं। चूँकि विभिन्न लोगों की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं अतः उनके विकास के लक्ष्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। एक भूमिहीन मजदूर के सामने बेहतर मजदूरी प्राप्त करने का लक्ष्य होता है जबकि एक समृद्ध किसान कम मजदूरी दे कर उच्च आय के लक्ष्य को सामने रखता है।

प्रश्न : विकास से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : एक सम्मानपूर्ण, स्वस्थ तथा अधिकारपूर्ण जीवन जीने की क्षमता तथा इन सभी के लिए अनिवार्य वस्तुओं को प्राप्त करने की योग्यता को विकास कहा जाता है।

व्यक्ति का विकास सिर्फ उसकी आय पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि साक्षरता, नागरिक अधिकार आदि विकास के अन्य महत्त्वपूर्ण आधार हैं।

▶ प्रश्न : सामान्यतः किसी देश का विकास किस आधार पर निर्धारित किया जाता है?

उत्तर : प्रति व्यक्ति आय के आधार पर।

प्रश्न : प्रतिव्यक्ति आय क्या है?

अथवा, प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : किसी देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देने पर प्राप्त आय को प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न: राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में विदेशों से प्राप्त आय को जोड़ने से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न : औसत आय क्या होती है?

उत्तर : देश की कुल आय को जनसंख्या से भाग कर निकाली गयी आय औसत आय होती है। इसको प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है।

प्रश्न : हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं?

अथवा, एक उदाहरण दीजिए, जहाँ स्थितियों की तुलना के लिए औसत. का प्रयोग किया जाता है।

उत्तर : किसी समूह में व्यक्ति की स्थिति अलग-अलग होती है। एक समूह की तुलना दूसरे समूह से करने के लिए हम औसत का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी देश में व्यक्तिगत आय अलग-अलग होते हैं। सम्पूर्ण जनसंख्या की औसत आय जान कर हम दूसरे देश की औसत आय से तुलना कर सकते हैं। >

प्रश्न : औसत के प्रयोग करने की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर : (i) औसत आय घनी और निर्धन के बीच अन्तर नहीं बताती। अर्थात् आय के वितरण का ज्ञान नहीं हो पाता।

(ii) इसे विकास का समुचित माप नहीं माना जा सकता।

उदाहरण के लिए, यह हो सकता है कि किसी देश की औसत आय में वृद्धि हुई हो। लेकिन इसमें यह भी हो सकता है कि घन और आय के वितरण में असमानता अधिक बढ़ी हो।

प्रश्न: उत्पादन क्या है?

उत्तर : किसी वस्तु में आर्थिक उपयोगिता का सृजन करना 'उत्पादन' कहलाता है। अर्थात, श्रम, तकनीक, बौद्धिक प्रक्रिया, कौशल आदि द्वारा किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि कर उसे उपयोगी बनाने की प्रक्रिया को उत्पादन कहते हैं।

प्रश्न: उपभोग का क्या अर्थ है?

उत्तर : आय का वह भाग जो विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय किया जाता है, उसे उपभोग कहते हैं।

प्रश्न : विकसित तथा अविकसित देशों में तुलना का मुख्य आधार क्या है?

उत्तर : विकसित तथा अविकसित देशों में तुलना का मुख्य आधार औसत आय अथवा प्रति व्यक्ति आय है।

प्रश्न : प्रति व्यक्ति आय के माप के अतिरिक्त, आय के कौन से अन्य लक्षण हैं जो दो या दो से अधिक देशों की तुलना के लिए महत्त्व रखते हैं?

उत्तर : प्रति व्यक्ति आय के माप के अतिरिक्त कुल आय, स्वास्थ्य सम्बन्धी माप, साक्षरता, नागरिक सुविधाओं सम्बन्धी मापों आदि के आधार पर भी दो या दो से अधिक देशों की तुलना की जा सकती है।

▶ प्रश्न : विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदण्ड का प्रयोग करता है? इस मापदण्ड की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर : विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए अर्थात् विभिन्न देशों के वर्गीकरण हेतु प्रति व्यक्ति आय के मापदण्ड का प्रयोग करता है। विश्व बैंक ने प्रति व्यक्ति आय के आधार पर देशों को समृद्ध एवं निम्न आय वर्गों में बाँटा है।

वे देश जिनकी 2019 में प्रतिव्यक्ति आय $ 49,300 प्रति वर्ष या उससे अधिक है, उसे समृद्ध देश या उच्च आय देश और वे देश जिनकी प्रतिव्यक्ति आय $ 2500 प्रति वर्ष या उससे कम है, उन्हें निम्न आय वाला देश कहा गया है। भारत मध्य आय वर्ग के देशों में आता है क्योंकि उसकी प्रतिव्यक्ति आय 2019 में केवल $ 6700 प्रति वर्ष थी।

इस मापदण्ड की ये सीमाएँ हैं :

प्रति व्यक्ति आय से यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस तरह वितरित है। दो देशों को प्रति व्यक्ति आय समान होने पर भी एक देश दूसरे से अधिक समृद्ध हो सकता है।

प्रति व्यक्ति आय से देश के आर्थिक विकास का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

प्रश्न : विकास मापने का यू.एन.डी.पी. (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) का मापदंड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदंड से अलग है?

उत्तर : विकास को मापने के लिए, जहाँ विश्व बैंक सिर्फ प्रतिव्यक्ति आय पर विचार करता है वहीं यू.एन.डी.पी. प्रतिव्यक्ति आय के अतिरिक्त साक्षरता दर तथा स्वास्थ्य स्तर आदि पर भी विचार करता है।

▶ प्रश्न : मानव विकास का क्या उद्देश्य है?

उत्तर : मानव विकास का उद्देश्य ऐसी परिस्थितियों का विकास करना है, जिसमें व्यक्ति आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उच्चतर स्थिति को प्राप्त कर सके। इसका उद्देश्य मानव को एक सम्मानजनक तथा सृजनात्मक जीवन के पथ पर अग्रसर करना है।

▶ प्रश्न : मानव विकास सूचकांक क्या है? इसमें किन बातों को शामिल किया जाता है?

उत्तर : किसी देश के नागरिकों के समग्र विकास की वास्तविक स्थिति को अभिव्यक्त करने के लिए, प्रयुक्त सूचकांक को मानव विकास सूचकांक कहा जाता है। इसमें निम्नांकित बातों को शामिल किया जाता है-

(i) प्रति व्यक्ति आय, अमरीकी डॉलर में।

(ii) जन्म के समय संभावित आयु या औसत आयु।

(iii) 15 वर्ष से ऊपर के आयु की जनसंख्या की साक्षरता दर।

(iv) प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा स्तर पर सकल नामांकन अनुपात ।

(v) शिशु मृत्यु दर।

प्रश्न 'शिशु मृत्यु दर' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों के अनुपात को 'शिशु मृत्यु दर' कहा जाता है।

प्रश्न: साक्षरता दर से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: 7 वर्ष और इससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या के अनुपात को 'साक्षरता दर' के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न: निवल उपस्थिति अनुपात क्या है?

उत्तर : निवल उपस्थिति अनुपात 6 से 10 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत बताता है।

प्रश्न : प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर भी केरल का मानव विकास क्रमांक पंजाब और हरियाणा से ऊँचा हैं, क्यों?

अथवा, केरल को पंजाब से अधिक विकसित मानने के क्या कारण हैं?

उत्तर : निम्नांकित कारणों से प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर भी केरल का मानव विकास क्रमांक ऊँचा है-

(i) बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता।

(ii) शिक्षा की मौलिक सुविधाओं की उपलब्धता।

(iii) बेहतर लिंगानुपात

(iv) अच्छी सामाजिक सुविधाएँ।

प्रश्न : केरल में शिशु मृत्यु दर कम क्यों है?

उत्तर : बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता के कारण।

प्रश्न : हमारे देश के विकासात्मक लक्ष्य क्या होने चाहिए?

उत्तर : उच्च प्रतिव्यक्ति आय, उच्च साक्षरता दर तथा स्वास्थ्य स्तर, पूर्ण रोजगार एवं उत्तम संरचनात्मक सुविधाएँ।

▶ प्रश्न : 'धारणीय विकास' क्या है?

▶ अथवा, धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

उत्तर : धारणीयता का विषय विकास के लिए विशेष महत्त्व रखता है। विकास ऐसा होना चाहिए जिससे, भावी पीढ़ी के सामने संसाधनों की कमी की समस्या नहीं उत्पन्न हो तथा पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। संसाधनों की कमी तथा पर्यावरण का ह्रास भावी पीढ़ी के समक्ष गंभीर परिणामों को जन्म देगा। अतः विकास के क्रम में यह आवश्यक है कि संसाधनों का न्यायसंगत प्रयोग किया जाय तथा पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान रखा जाय। इसके बिना विकास अधूरा है। यह देश की भावी उन्नति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न : सतत् पोषणीय विकास से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : सतत् पोषणीय विकास से अभिप्राय यह है कि अर्थव्यवस्था का विकास तो हो लेकिन पर्यावरण को क्षति न पहुँचे तथा आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधन सुरक्षित रहें।

प्रश्न : वर्तमान में भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन स्त्रोतों का प्रयोग किया जाता है?

उत्तर : मुख्यतः गैर-नवीकरणीय (समाप्य) ऊर्जा स्रोत जैसे, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस आदि। आजकल असमाप्य स्रोत जैसे, सोलर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा का उपयोग भी बढ़ रहा है।

प्रश्न : पर्यावरण में गिरावट के कुछ उदाहरण बताएँ जो आप अपने आस-पास देखते हैं?

उत्तर :

(i) बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण पेड़ों की बेरोकटोक कटाई

(ii) प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का प्रयोग

(iii) शहरों की नालियों को नदियों या तालाबों में बहाना

(iv) यातायात के साधनों और कारखानों से निकलते धुएँ

प्रश्न : गैर-नवीकरणीय साधन क्या होते हैं?

उत्तर : ये वह साधन है जो प्रयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं और इनकी पुनः पूर्ति नहीं हो सकती क्योंकि इनके निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं; जैसे पेट्रोलियम तेल।

▶ प्रश्न : सार्वजनिक सुविधाएँ क्या हैं?

उत्तर : सार्वजनिक सुविधाएँ बड़े पैमाने पर समुदाय के लिए आवश्यक सुविधाएं हैं और सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।

▶ प्रश्न : सार्वजनिक सुविधाएँ क्यों महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर : सार्वजनिक सुविधाएँ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि कई सेवाएँ हैं जो सामूहिक रूप से प्रदान की जाने पर सस्ती और सस्ती हो गई है। उदाहरण के लिए, रेल, सरकारी स्कूल आदि।

▶ प्रश्न : बाँधों का क्या लाभ है?

उत्तर : सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए जल की व्यवस्था आदि।

▶ प्रश्न : शहरीकरण किसे कहते हैं?

उत्तर : ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का शहरी क्षेत्रों में जा कर बसना शहरीकरण कहलाता है। शहरीकरण की प्रक्रिया में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग रोजगार, शिक्षा, आधुनिक जीवन-शैली जैसे सामाजिक-आर्थिक कारणों से शहरों में बसते हैं जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के बजाय शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि होती है।

वस्तुनिष्ठ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर (MCQ)

लोगों के लिए विकास का अर्थ किस प्रकार के होते हैं?

(1) समान

(2) भिन्न

(3) सामूहिक

(4) सामान्य

लोगों के विकास के लक्ष्य ------- होते हैं।

(1) समान

(2) भिन्न या परस्पर विरोधी

(3) अपरिवर्तित

(4) इनमें से कोई नहीं

आर्थिक विकास के अन्तर्गत सम्मिलित लक्ष्य है -

(1) नियमित रोजगार

(2) स्वतंत्रता

(3) बेहतर मजदूरी

(4) इनमें से सभी

भूमिहीन ग्रामीण मजदूरों के लिए विकास का लक्ष्य क्या हो सकता है?

(1) रोजगार और बेहतर मजदूरी

(2) स्थानीय स्कूल में बच्चों की उत्तम शिक्षा

(3) कोई सामाजिक भेद-भाव न हो

(4) इनमें से सभी

एक उद्योगपति के लिए विकासात्मक लक्ष्य क्या हो सकता है?

(1) बेहतर मजदूरी पाना

(2) फसल का उचित मूल्य पाना

(3) अधिक बिजली प्राप्त करना

(4) इनमें से सभी

एक समृद्ध किसान के लिए विकासात्मक लक्ष्य क्या हो सकता है?

(1) उपज का अधिक समर्थन मूल्य

(2) उच्च पारिवारिक आय

(3) बच्चों को विदेश में बसाना

(4) इनमें से सभी

विकासात्मक लक्ष्य क्या हो सकता है? एक अमीर परिवार की लड़की के लिए

(1) अधिक दिनों तक काम मिले।

(2) उसके भाई को जितनी स्वतंत्रता मिलती है उतनी ही स्वतंत्रता उसे भी मिले।

(3) बेहतर मजदूरी मिले।

(4) अधिक बिजली प्राप्त हो।

भारत में राष्ट्रीय आय का आकलन कौन करता है?

(1) राष्ट्रीय प्रतिदर्श संगठन

(2) केंद्रीय सांख्यिकी संगठन

(3) राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान

(4) इनमें से सभी

राष्ट्रीय आय के अंतर्गत क्या शामिल है?

(1) वस्तुओं का मूल्य

(2) सेवाओं का मूल्य

(3) वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य

(4) इनमें सभी

प्रति व्यक्ति आय को क्या कहा जाता है?

(1) औसत आय

(2) कुल आय

(3) राष्ट्रीय आय

(4) सकल आय

औसत आय को --------- के रूप में भी जाना जाता है।

(1) राष्ट्रीय आय

(2) कुल आय

(3) प्रति व्यक्ति आय

(4) मानव विकास सूचक

जिस देश की प्रति व्यक्ति आय अधिक होता है वह क्या कहलाता है?

(1) विकसित देश

(2) विकासशील देश

(3) अर्द्धविकसित देश

(4) इनमें से कोई नहीं

किसी देश की राष्ट्रीय आय को उसकी कुल जनसंख्या से भाग देने पर निम्नलिखित में से क्या प्राप्त होता है?

(1) प्रति व्यक्ति आय

(2) सकल घरेलू उत्पाद

(3) मानव विकास सूचकांक

(4) सकल राष्ट्रीय उत्पाद

किसी देश की कुल आय को उसकी कुल जनसंख्या से भाग देने पर हमें प्राप्त होता है -

(1) प्रति व्यक्ति आय

(2) औसत आय

(3) (1) और (2) दोनों

(4) मानव सूचकांक

औसत आय (प्रति व्यक्ति आय) की गणना किस प्रकार की जाती है?

(1) देश की कुल आय ÷ देश की कुल जनसंख्या

(2) देश की कुल आय × देश की कुल जनसंख्या

(3) देश की कुल आय + देश की कुल जनसंख्या

(4) देश की कुल आय - देश की कुल जनसंख्या

हम किसी देश की प्रति व्यक्ति आय की गणना कैसे कर सकते हैं?

(1) किसी व्यक्ति की कुल आय से

(2) किसी देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देकर

(3) सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से

(4) देश के कुल निर्यात से

मान लीजिए कि किसी देश में 4 परिवार हैं। इन परिवारों की प्रति व्यक्ति आय रु. 5000 है। अगर 3 परिवारों की आय क्रमशः रु. 4000 से रु. 7000 और रु. 3000 है, तो चौथे परिवार की आय क्या है?

(1) रु. 7500

(2) रु. 3000

(3) रु. 2000

(4) रु. 6000

यदि एक देश की प्रतिव्यक्ति आय रु. 500 है तथा जनसंख्या 5000 है तो उस देश की कुल आय निम्न में से कौन होगी?

(1) 2500000

(2) 50000

(3) 250000

(4) 25000

सामान्यतः किसी देश का विकास किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता है?

(1) प्रति व्यक्ति आय

(2) औसत साक्षरता दर

(3) लोगों की स्वास्थ्य स्थिति

(4) उपर्युक्त सभी

विभिन्न देशों के वर्गीकरण के लिए विश्व बैंक किस मापदंड का प्रयोग करता है?

(1) प्रति व्यक्ति आय

(2) मानव विकास सूचकांक

(3) सकल घरेलू उत्पाद

(4) जनसंख्या

मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना किस आधार पर करती है?

(1) स्वास्थ्य

(2) शिक्षा

(3) प्रति व्यक्ति आय

(4) उपर्युक्त सभी

देशों के विकास की तुलना करने का सबसे महत्वपूर्ण आधार क्या है?

(1) जनसंख्या

(2) औसत आय

(3) उद्योग

(4) तकनीक

वे देश जिनकी 2017 में प्रतिव्यक्ति आय 12,056 डॉलर प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी तो वह देश निम्न में से किस श्रेणी के अतंर्गत होगा?

(1) अविकसित

(2) विकसित

(3) अर्द्धविकसित

(4) विकासशील

2017 में प्रति वर्ष 995 डॉलर. या उससे कम प्रतिव्यक्ति आय वाले देशों को क्या कहा जाता है?

(1) समृद्ध देश

(2) मध्य आय वाला देश

(3) निम्न आय वाला देश

(4) विकासशील

2017 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1820 डॉलर प्रतिवर्ष थी, अतः उसे किस श्रेणी में रखा गया?

(1) समृद्ध देश

(2) मध्य आय वाला देश

(3) निम्न आय वाला देश

(4) विकसित

भारत किस वर्ग के देशों में आता है?

(1) निम्न मध्यम आय

(2) गरीब

(3) विकसित

(4) कम जनसंख्या

जी.डी.पी. का क्या अर्थ है?

(1) सकल घरेलू उत्पाद

(2) प्रति व्यक्ति आय

(3) कुल आय

(4) सकल लाभ

निम्न में से कौन अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है?

(1) सकल घरेलू उत्पाद

(2) विश्व व्यापार संगठन

(3) विश्व स्वास्थ्य संगठन

(4) विश्व बैंक

हरियाणा, केरल, पंजाब और बिहार में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य कौन है?

(1) हरियाणा

(2) बिहार

(3) केरल

(4) पंजाब

हरियाणा की प्रति व्यक्ति आय केरल से ------- है।

(1) अधिक

(2) कम

(3) बराबर

(4) इनमें से कोई नहीं

भारत के किस राज्य में गरीबी का प्रतिशत सबसे अधिक है?

(1) छत्तीसगढ़

(2) ओडिसा

(3) मणिपुर

(4) बिहार

मानव विकास रिपोर्ट कौन जारी करता है?

(1) यूनेस्को

(2) विश्व बैंक

(3) विश्व स्वास्थ्य संगठन

(4) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम

• मानव विकास सूचकांक का संक्षिप्त नाम क्या है?

(1) HDF

(2) HDI

(3) HFC

(4) UNO

यूएनडीपी (United Nations Development Programme) के अनुसार किसी देश के विकास को आँकने का आधार निम्नलिखित में से कौन-सा है?

(1) प्रति व्यक्ति आय

(2) लोगों की शिक्षा का स्तर

(3) लोगों का स्वास्थ्य स्तर

(4) उपर्युक्त सभी

निम्न में से मानव विकास का क्या अर्थ है?

(1) मानव की सोच में वृद्धि करना

(2) मानव में गुणात्मक सुधार नहीं करना

(3) मानव में गुणात्मक सुधार करना

(4) इनमें से कोई नहीं

मानव विकास का मुख्य उद्देश्य क्या है?

(1) सामाजिक विकास

(2) जीवन-स्तर में सुधार

(3) आय में वृद्धि

(4) इनमें से कोई नहीं

मानव विकास रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत का मानव विकास रैंकिंग क्या है?

(1) 76

(2) 130

(3) 148

(4) 149

निम्नलिखित पड़ोसी देशों में से मानव विकास के लिहाज़ से किस देश की स्थिति भारत से बेहतर है?

(1) बांग्लादेश

(2) श्रीलंका

(3) नेपाल

(4) पाकिस्तान

निम्नलिखित में से किस राज्य की साक्षरता दर सबसे अधिक है?

(1) पंजाब

(2) बिहार

(3) केरल

(4) उड़ीसा

निम्नलिखित में से किस राज्य में साक्षरता दर सबसे कम है?

(1) पंजाब

(2) बिहार

(3) केरल

(4) हरियाणा

निम्नलिखित में से सर्वाधिक मानव विकास सूचकांक वाला राज्य कौन है?

(1) पश्चिम बंगाल

(2) पंजाब

(3) केरल

(4) हरियाणा

एक वर्ष में पैदा हुए प्रति 1000 जीवित बच्चों में से 1 वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों की संख्या क्या कहलाती है।

(1) शिशु मृत्यु दर

(2) मातृत्व मृत्यु दर

(3) मृत्यु दर

(4) औसत जन्म दर

शिशु मृत्यु दर क्या सूचित करता है?

(1) 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या।

(2) किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से 1 वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात।

(3) स्कूल जाने वाले कुल बच्चों की संख्या।

(4) एक वर्ष में जन्म लेने वाले कुल बच्चों की संख्या।

निम्नलिखित में से किस राज्य में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है?

(1) पंजाब

(2) बिहार

(3) केरल

(4) छत्तीसगढ़

• केरल में शिशु मृत्यु दर कम होने का एक कारण निम्नलिखित में से कौन-सा है?

(1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सही क्रियान्वयन

(2) उत्तम परिवहन व्यवस्था

(3) शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मौलिक सुविधाओं की पर्याप्त उपलब्धता

(4) उच्च प्रतिव्यक्ति आय

7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात कहलाता है -

(1) मानव विकास

(2) साक्षरता दर

(3) निरक्षरता

(4) ये सभी

स्कूलों में शुद्ध उपस्थिति अनुपात की गणना के लिए बच्चों के किस आयु वर्ग को शामिल किया गया है?

(1) 6-10

(2) 7-11

(3) 5-9

(4) 14-15

14 तथा 15 वर्ष की आयु के स्कूल जानेवाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत क्या कहलाता है?

(1) निवल उपस्थिति अनुपात

(2) निवल अनुपस्थिति अनुपात

(3) साक्षरता दर

(4) सकल उपस्थिति अनुपात

• इनमें से शरीर का पोषण स्तर ज्ञात करने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?

(1) शरीर द्रव्यमान सूचकांक (BMI)

(2) मानव विकास सूचाकांक

(3) मृत्यु दर

(4) प्रति व्यक्ति आय

 ............कम कीमत पर भोजन उपलब्ध करके गरीब लोगों के पोषण स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।

(1) बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स)

(2) पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली)

(3) जीडीपी (सकल राष्ट्रीय उत्पाद)

(4) एचडीआई (मानव विकास सूचकांक)

इनमें से कौन भावी पीढ़ी के कल्याण को परिभाषित करता है?

(1) आर्थिक विकास

(2) संवृद्धि

(3) धारणीय विकास

(4) जीवन की गुणवत्ता

वर्तमान और भविष्य के उपयोग के विकास करना लिए प्राकृतिक संसाधनों को बनाए रखना और आर्थिक .............कहलाता है।

(1) सतत पोषणीय विकास

(2) नियोजित विकास

(3) मानव विकास सूचकांक

(4) विकास

सतत विकास का उद्देश्य है-

(1) विकास केवल अपने लिए

(2) विकास वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ी दोनों के लिए

(3) विकास केवल दूसरों के लिए

(4) विकास केवल आने वाली पीढ़ी के लिए

निम्नलिखित में से ऊर्जा के मुख्य स्त्रोत कौन-कौन-से हैं?

(1) कोयला

(2) पेट्रोलियम

(3) विद्युत

(4) उपर्युक्त सभी

2. भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

विषयनिष्ठ (Subjective) प्रश्नोत्तर

प्रश्न: क्षेत्रक किसे कहते हैं?

उत्तर : आर्थिक गतिविधियों को महत्त्वपूर्ण मानदंडों के आधार पर जिन विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया जाता है उन समूहों को क्षेत्रक कहते हैं।

प्रश्न : आर्थिक गतिविधियों को कितने क्षेत्रकों में वर्गीकृत किया जाता है?

उत्तर : तीन - प्राथमिक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक और तृतीयक क्षेत्रक (सेवा क्षेत्रक)।

प्रश्न : प्राथमिक क्षेत्रक क्या है और इसकी गतिविधियाँ कौन-सी हैं?

उत्तर : प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन किया जाए तो यह प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि होती है; जैसे कृषि, डेयरी, खनन, लकड़ी काटना, वनोत्पाद इकट्ठा करना, पशु-पालन, मत्स्य पालन आदि।

प्रश्न : द्वितीयक क्षेत्रक क्या है? इसकी गतिविधियाँ कौन-सी हैं?

उत्तर : द्वितीयक क्षेत्रक के अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है; जैसे-कपास से धागे बनाना और कपड़े का निर्माण करना, गन्ने से चीनी बनाना, मिट्टी से ईंट बनाना, भवन निर्माण आदि। इसे 'औद्योगिक क्षेत्रक' भी कहा जाता है।।

प्रश्न : द्वितीयक क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?

उत्तर : द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया आवश्यक है और प्रक्रिया किसी कारखाने या उद्योग में होती है इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न: तृतीयक क्षेत्रक किसे कहते हैं?

उत्तर : तृतीय क्षेत्र का संबंध वस्तुओं के उत्पादन से नहीं होता वरन् सेवाओं के निर्माण से होता है।

प्रश्न : तृतीयक क्षेत्रक के कुछ उदाहरण लिखें।

उत्तर : वकालत, शिक्षक, डॉक्टर, बैंक, व्यापार, यातायात, संचार इत्यादि।

प्रश्न : तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कौन-सी होती हैं?

उत्तर : तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता देती हैं जैसे उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं को ट्रकों द्वारा थोक और खुदरा व्यापारियों तक पहुँचाना।

प्रश्न : तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?

उत्तर : यह गतिविधियाँ जैसे परिवहन, भंडारण व संचार वस्तुओं के बजाय सेवाओं का सृजन करती हैं इसलिए इस क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न : 'भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।' ये लोग कौन हैं?

उत्तर : भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।

(1) वे लोग जिनकी सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। यह सहायता प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रकों को प्राप्त होती है। जैसे-परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंकिंग, व्यापार में नियोजित लोग।

(2) वे लोग जिनकी सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती हैं, जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, धोबी, मोची, नाई, इण्टरनेट कैफे, ए.टी.एम. बूथ, कॉल सेन्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि।

प्रश्न : सेवा क्षेत्रक में ऐसी गतिविधियों के उदाहरण दीजिए जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करतीं।

उत्तर : शिक्षक, डॉक्टर, वकील, धोबी, नाई, मोची।

प्रश्न: भारत में तृतीयक क्षेत्रक के महत्त्व के कारण बताएँ।

▶ अथवा, भारत में तृत्तीयक क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हो गया है?

▶ अथवा, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्पष्ट करें?

उत्तर : भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तृतीयक क्षेत्र, आधुनिक अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। इसके बिना प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र का विकास अधूरा है। इसके महत्व के निम्नांकित तर्क दिये जा सकते हैं-

(i) प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक में उत्पादित वस्तुओं का वितरण तृतीयक क्षेत्रक द्वारा उपलब्ध परिवहन व्यवस्था पर निर्भर करता है।

(ii) वस्तुओं के त्वरित स्थानांतरण में संचार की प्रमुख भूमिका है. जो तृतीयक क्षेत्र का विषय है।

(iii) तृतीयक क्षेत्रक व्यापार के लिए अवसंरचनात्मक आधार प्रदान करता है।

(iv) राष्ट्रीय आय में सेवा क्षेत्रक के योगदान में लगातार वृद्धि हो रही है।

यद्यपि तृतीयक क्षेत्रक को रोजगार के क्षेत्र में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली हैं, परंतु भविष्य में रोजगार के क्षेत्र में भी तृतीयक क्षेत्रक की भागीदारी बढ़ने की प्रबल संभावना है।

▶ प्रश्न : उत्पादन में तृतीय क्षेत्र का बढ़ता महत्व के बारे में वर्णन करें।

उत्तर : उत्पादन में तृतीय क्षेत्र का बढ़ता महत्व निम्नलिखित हैं-

1. सरकार द्वारा बुनियादी सेवाएं जैसे-अस्पताल, शिक्षा संस्थाएँ, डाक, बैंक, परिवहन, बीमा को बढ़ावा देना।

2. कृषि एवं उद्योग के विकास में व्यापार, परिवहन भंडार आदि क्षेत्र की भूमिका।

3. जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ी लोगों ने विभिन्न प्रकार की सेवाओं का अधिक प्रयोग किया।

4. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के आधार पर नवीन सेवाओं में तीव्र वृद्धि।

5. तृतीय क्षेत्र की जीडीपी में बढ़ती महत्वता।

6. लोगों का तृतीय क्षेत्र में हस्तांतरण।

▶ प्रश्न: तृतीयक क्षेत्र, अन्य क्षेत्रों से भिन्न कैसे हैं? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

उत्तर : तृतीयक क्षेत्र, अन्य क्षेत्रों से इस अर्थ में भिन्न है कि अन्य क्षेत्रों में किसी न किसी वस्तु का उत्पादन स्थान होता है, वहाँ तृतीयक क्षेत्र में वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन होता है। जैसे गन्ने का उत्पादन प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है, गन्ने से चीनी बनाना द्वितीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है तथा चीनी का भंडारण, विभिन्न स्थानों पर उसे पहुँचाना तथा फसल के उत्पादन के लिए ऋण की व्यवस्था आदि तृतीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत आते हैं।

▶ प्रश्न: क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?

उत्तर : आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक में विभाजन की उपयोगिता निम्नांकित दो महत्त्वपूर्ण कारणों से है-

(1) रोजगार पद्धति का विश्लेषण : आर्थिक गतिविधियों के विभाजन के आधार पर यह विश्लेषण किया जा सकता है कि किस क्षेत्रक में अधिक लोग कार्य कर रहे हैं, किस क्षेत्र में बेरोजगारी अधिक है तथा अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र में अप्रत्यक्ष बेरोजगारी कितनी मात्रा में है। इस विश्लेषण के आधार पर सरकार रोजगार नीति का निर्धारण करती है।

(2) जी.डी.पी. की गणना : आर्थिक गतिविधियों के विभाजन के आधार पर जी.डी.पी अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद की गणना आसानी से की जा सकती है। इससे यह पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद में किस क्षेत्र का योगदान कितना है।

▶ प्रश्न : सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) क्या है?

उत्तर : एक देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (GDP) होता है। जी.डी.पी. अर्थव्यवस्था की विशालता प्रदर्शित करता है।

▶ प्रश्न: अंतिम उत्पाद क्या होता है?

उत्तर : जो बस्तु उपभोक्ताओं तक पहुँचती है या जो बस्तु उपभोक्ता प्रयोग करते हैं वह अंतिम उत्पाद होती है।

प्रश्न : एक क्षेत्रक की एक वर्ष में कुल उत्पादन की जानकारी कैसे प्राप्त की जाती है?

उत्तर : किसी विशेष वर्ष में एक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, उस वर्ष में क्षेत्रक के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।

प्रश्न : एक क्षेत्रक की वस्तुओं और सेवाओं की गणना करते समय केवल 'अंतिम वस्तुओं और सेवाओं' की ही गणना क्यों की जाती है?

उत्तर : क्योंकि अंतिम वस्तुओं के मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य पहले से ही शामिल होता है।

प्रश्न : बाजार का क्या अर्थ है?

उत्तर : बाजार एक ऐसे स्थान को कहते हैं जहाँ पर किसी वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता एकत्रित होते हैं और वस्तुओं का क्रय विक्रय करते हैं। अर्थशास्त्र में बाजार का अर्थ एक ऐसे स्थान से है जहाँ किसी बस्तु के क्रेता विक्रेता फैले होते हैं उनमें स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है जिसके कारण वस्तु के मूल्य में समानता पायी जाती है।

बेरोजगारी

प्रश्न: बेरोजगारी से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : योग्य एवं सक्षम व्यक्तियों को काम करने की इच्छा के बावजूद काम नहीं मिलना बेरोजगारी कहलाता है। ऐसे व्यक्ति किसी उत्पादक गतिविधि में संलग्न नहीं होते हैं।

प्रश्न: खुली बेरोजगारी क्या होती है?

उत्तर : खुली बेरोजगारी वह है जहाँ योग्य और सक्षम व्यक्ति को कार्य करने की इच्छा के बावजूद काम नहीं मिलता है।

प्रश्न : अल्प बेरोजगारी या प्रच्छन्न (छुपी हुई) बेरोजगारी क्या होती है?

उत्तर : अल्प बेरोजगारी या प्रच्छन्न (छुपी हुई) बेरोजगारी बह है जहाँ लोग प्रत्यक्ष रूप से काम में लगे दिखाई देते हैं परन्तु उन्हें पूर्ण रूप से रोजगार प्राप्त नहीं होता है तथा उनमें से कुछ लोगों के काम से हट जाने पर उत्पादन प्रभावित नहीं होता है।

▶ प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी और ग्रामीण इलाकों से उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर : वह स्थिति, जब लोग ऊपर से या प्रत्यक्ष रूप से किसी कार्य में संलग्न दिखाई देते हैं, परन्तु किसी को भी पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं होता है, प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी के नाम से जाना जाता है।

ग्रामीण इलाके में एक परिवार के सभी सदस्य अपनी भूमि पर वर्ष भर कार्य करते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य काम पर होता है लेकिन कोई भी पूर्ण रूप से रोजगार प्राप्त नहीं होता है। यह प्रच्छन्न बेरोजगारी की स्थिति है। इसी प्रकार शहरी इलाके में एक व्यक्ति सड़कों पर ठेला खींचते हुए दिन व्यतीत 'कर देता है फिर भी वह अपनी आवश्यकता भर नहीं कमा पाता है। वह यह काम इसलिए कर रहा होता है, क्योंकि उसके पास कोई वैकल्पिक अवसर नहीं है।

▶ प्रश्न : खुली बेरोजगारी तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।

उत्तर : खुली बेरोजगारी तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-

खुली बेरोजगारी वह है जहाँ योग्य और सक्षम व्यक्ति को कार्य करने की इच्छा के बावजूद काम नहीं मिलता है। इसके विपरीत प्रच्छन्न बेरोजगारी वह है जहाँ लोग प्रत्यक्ष रूप से काम में लगे दिखाई देते हैं परन्तु उन्हें पूर्ण रूप से रोजगार प्राप्त नहीं होता है तथा उनमें से कुछ लोगों के काम से हट जाने पर उत्पादन प्रभावित नहीं होता है।

खुली बेरोजगारी तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं -

खुली बेरोजगारी

प्रच्छन्न बेरोजगारी

1. खुली बेरोजगारी वह है जहाँ योग्य और सक्षम व्यक्ति को कार्य करने की इच्छा के बावजूद काम नहीं मिलता है।

1. प्रच्छन्न बेरोजगारी वह है जहाँ लोग प्रत्यक्ष रूप से काम में लगे दिखाई देते हैं परन्तु उन्हें पूर्ण रूप से रोजगार प्राप्त नहीं होता है तथा उनमें से कुछ लोगों के काम से हट जाने पर उत्पादन प्रभावित नहीं होता है।

2. इसके अन्तर्गत काम करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को काम नहीं उपलब्ध होता है।

2. इसके अन्तर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं।

3. इस प्रकार की बेरोजगारी औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक पायी जाती है

3. प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में अधिक पायी जाती है

4. इस प्रकार के बेरोजगार लोगों की गणना स्पष्ट रूप से की जा सकती है।

4. इस प्रकार के लोगों की गणना स्पष्ट रूप से नहीं की जा सकती है।

▶ प्रश्न: कृषि क्षेत्रक में अल्पवेरोजगारी तथा प्रच्छन्न वेरोजगारी क्यों है?

उत्तर : कृषि क्षेत्र में अभी आवश्यकता से अधिक लोग संलग्न हैं लेकिन किसी को भी पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं है। इसलिए से कहा जाता है कि कृषि क्षेत्रक में अल्प बेरोजगारी अथवा प्रच्छन्न वेरोजगारी है।

▶ प्रश्न : मौसमी बेरोजगारी एवं छिपी हुई बेरोजगारी में अंतर लिखें।

उत्तर: मौसमी बेरोजगारी

(1) जब लोगों को वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार उपलब्ध नहीं होता है, तो उसे मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।

(2) कृषि पर आश्रित लोग इस तरह की समस्या से जूझते हैं।

(3) जब कृषि कार्य होता है जैसे बुवाई, कटाई के समय काम मिलता है, बाकी समय काम नहीं मिल पाता।

छिपी हुई बेरोजगारी :

(1) किसी काम को करने के लिए 5 लोगों की आवश्यकता होती हैं लेकिन वहाँ 8 लोग काम करते हैं जो 3 लोग अतिरिक्त हैं ऐसी स्थिति को छिपी हुई बेरोजगारी कहा जाता है।

(2) अतिरिक्त श्रमिकों के काम न करने से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़‌ता है।

(3) ग्रामीण क्षेत्र में अन्य रोजगार उपलब्ध न होने के कारण सभी लोग अपने खेतों पर काम करते हैं।

▶ प्रश्न : हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में क्यों विचार करना चाहिए?

उत्तर : भारत में कई क्षेत्रों में अल्प बेरोजगारी पाई जाती है विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में अल्प बेरोजगारी पाई जाती है। अल्प बेरोजगारी में लोगों को उनकी क्षमता के अनुरूप रोजगार नहीं मिलता है, वे रोजगार पर लगे हुए तो प्रतीत होते हैं किन्तु उत्पादन में उनका बहुत ही कम योगदान होता है। ऐसे लोगों को यदि रोजगार से हटा भी दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

यदि ऐसे लोगों को अन्य क्षेत्रों में लगाया जाए तो वे अधिक उत्पादक बन जाते हैं जिससे राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तथा बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्या का भी समाधान होगा। अतः अल्प बेरोजगारी पर विचार करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

▶ प्रश्न : महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, 2005 के उद्देश्यों की व्याख्या करें।

▶ अथवा, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को कार्यान्वित करने के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : रा. ग्रा. रो. गा. अ.-2005 (नरेगा-2005) के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) यह अधिनियम देश के 200 जिलों में 'काम का अधिकार' लागू करने के लिए बनाया गया है। इसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण बेरोजगारी और गाँवों से पलायन को कम करना है।

(2) उन सभी लोगों को, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को वर्ष में 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना।

(3) गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की आय में वृद्धि कर उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने के उद्देश्य से रोजगार नहीं उपलब्ध करा सकने पर उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना।

(4) भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने वाले कामों को वरीयता देना।

(5) गाँवों में सड़क, तालाब आदि के निर्माण में तेजी लाना।

▶ प्रश्न: आपके विचार से एन. आर. ई. जी. ए. को 'काम का अधिकार' क्यों कहा गया है?

उत्तर : महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम, कानून का निर्माण काम के अधिकार को लागू करने के लिए 2005 ई. में किया गया था। इस एक्ट के अन्तर्गत बेरोजगारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गयी है।

रोजगार नहीं उपलब्ध कराने की स्थिति में सरकार उन्हें बेरोजगारी भत्ता देगी।

इस प्रकार, इस अधिनियम के द्वारा नागरिकों के 'काम के अधिकार' को सुरक्षित बनाया गया है, अतः इस अधिनियम को 'काम के अधिकार' के नाम से भी जाना जाता है।

संगठित तथा असंगठित क्षेत्र

▶ प्रश्न : अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?

उत्तर : अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर निम्न दो भागों में विभाजित की जा सकती हैं -

संगठित क्षेत्रक : इनमें वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं व जहाँ नियमों एवं विनियमों का पालन किया जाता है।

असंगठित क्षेत्रक : इसमें छोटे-छोटे एवं बिखरे हुए उद्यमों को शामिल किया जाता है जहाँ सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनिमय तो होते हैं, परन्तु उनका अनुपालन नहीं किया जाता है।

▶ प्रश्न : संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।

▶ अथवा, संगठित और असंगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे?

उत्तर :

संगठित क्षेत्र

असंगठित क्षेत्र

(1) इस क्षेत्र के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा का लाभ मिलता है।

(1) इस क्षेत्र में काम करने वालों को रोजगार-सुरुराजा का लाभ नहीं मिलता है।

(2) इस क्षेत्र में कर्मचारियों से एक निश्चित समय तक ही काम करने की आशा की जाती है। इस समय से अधिक काम करने पर उन्हें अतिरिक्त वेतन दिया जाता है।

(2) इस क्षेत्र में काम करने वालों को अतिरिक्त समक के लिए अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है।

(3) संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को सवेतन अवकाश की सुविधा प्राप्त होती है।

(3) असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को सर्वेतन अवकाश की सुविधा प्राप्ता नहीं होती है। उन्हें उतने दिनों का वेतन दिया जाता है जितने दिन के काम करते हैं।

(4) इस क्षेत्र के कर्मचारियों की नियुक्ति औपचारिक होती है, और उन्हें काम से हटाया नहीं जा सकता है।

(4) इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों की नियुक्ति अनौपचारिक होती है तथा उन्हें कमी भी काम के हटाया जा सकता है।

(5) इस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को भविष्यनिधि सेवा अनुदान, पेंशन, चिकित्सीय सुविधा आदि प्राप्त होते हैं।

(5) असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले लोगों को इल प्रकार की सुविधा प्राप्त नहीं होती है।

▶ प्रश्न : संगठित तथा असंगठित क्षेत्रक से आप क्या समझते हैं?

▶ अथवा, संगठित और असंगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे? अपने शब्दों में व्याख्या करें।

▶ अथवा, संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।

उत्तर : रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियाँ दो भागों में वर्गीकृत की जाती हैं -

(1) संगठित क्षेत्रक : वैसे उद्यम अथवा कार्य-स्थान जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है, संगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आते हैं। संगठित क्षेत्रक के उद्यम सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं तथा उन्हें सरकारी नियमों एवं विनिमयों का अनुपालन करना पड़ता है। इस क्षेत्र के कर्मचारियों को रोजगार-सुरक्षा का लाभ मिलता है।

(2) असंगठित क्षेत्रक : वैसे उद्यम अथवा कार्य स्थान जहाँ रोजगार की अवधि अनियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम नहीं होता, असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे उद्यमों का सरकार द्वारा पूँजीकरण नहीं किया जाता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं, परन्तु उनका अनुपालन नहीं किया जाता है।

▶ प्रश्न : 'असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।' क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।

उत्तर : असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं (1) इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण के लिए बनाए गए सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है। (2) इस क्षेत्रक में श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी/वेतन दिया जाता है और वह भी नियमित रूप से नहीं दिया जाता है। (3) इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है, लेकिन अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है। (4) इस क्षेत्रक में रोजगार की सुरक्षा भी नहीं होती है। नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को बिना किसी कारण के काम से निकाला जा सकता है। (5) इस क्षेत्रक में सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।

▶ प्रश्न : असंगठित क्षेत्रक के सदस्य कौन हैं जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है?

उत्तर : भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, फसल बटाईदार और कारीगर।

▶ प्रश्न : शहरी क्षेत्रों में असंगठित क्षेत्रक के लोग कौन हैं?

उत्तर : लघु उद्योगों के श्रमिक, निर्माण, व्यापार एवं परिवहन में कार्यरत आकस्मिक श्रमिक, सड़कों पर विक्रेता का काम करने वाले, सिर पर बोझा ढोने वाले श्रमिक, वस्त्र निर्माण करने वाले और कबाड़ उठाने वाले।

सार्वजनिक क्षेत्रक और निजी क्षेत्रक

प्रश्न: स्वामित्व के आधार पर आर्थिक क्षेत्रक को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?

उत्तर : (1) सार्वजनिक क्षेत्र      (2) निजी क्षेत्र।

▶ प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?

▶ अथवा, सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता है?

उत्तर : सार्वजनिक क्षेत्र की मुख्य गतिविधियाँ एवं योगदान -

(1) इस क्षेत्र द्वारा उन सभी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो समाज के सभी वर्गों के लिए आवश्यक होती हैं। सरकार इन वस्तुओं का उत्पादन सामाजिक कल्याण के लिए करती है।

(2) इस क्षेत्र द्वारा आवश्यक ढाँचागत विकास के कार्य किये जाते हैं। जैसे सड़क, रेलमार्ग, बाँध, अस्पताल, विद्युत, जल आपूर्ति, शिक्षा आदि। इन सेवाओं का उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा नहीं किया जाता है। अतः सरकार इनका निर्माण करती है।

(3) सार्वजनिक क्षेत्र में अनेक समाज कल्याण की योजनाएं चलाई जाती हैं जो देश के विकास में सहायक हैं। सार्वजनिक क्षेत्र कम मूल्य पर वस्तुएँ तथा सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं, क्योंकि इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता है।

(4) कृषि क्षेत्र में किसापों से उचित मूल्य पर अनाज खरीदना तथा राशन प्रणाली के अन्तर्गत निघ्न आप वर्ष में उपका वितरण करना, सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करना आदि महत्वपूर्ण कार्य सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा सम्भव होता है।

(5) सार्वजनिक क्षेत्रक अधिक पूँजी निवेश द्वारा देश में पूँजी निर्माण में वृद्धि करने में सहायक है। देश में औद्योगिक छाँचे के विकास में भी सार्वजनिक क्षेत्रक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न: सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्रक में अंतर लिखें।

उत्तर :

सार्वजनिक क्षेत्र

निजी क्षेत्र

(1) सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है, और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं, जैसे भारतीय रेलवे, सेल इत्यादि।

(1) निजी क्षेत्र की परिसंपत्तियों पर स्वामित्व और सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है। जैसे डाबर इंडिया लिमिटेड, हीरो साइकिल्स लिमिटेड इत्यादि।

(2) सार्वजनिक क्षेत्र का उद्देश्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना होता है।

(2) निजी क्षेत्र की गतिविधियों का उद्देश्य केवल लाभअर्जित करना होता है।

(3) सरकार समाज के लिए आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं में बहुत अधिक पैसे निवेश करती है, जैसे-सड़क, पुल, बंदरगाह आदि के निर्माण पर निवेश।

(3) निजी क्षेत्र अपने लाभ एवं उद्देश्य के कारण ऐसे लंबी एवं बड़ी पूँजी वाली परियोजनाओं में। नहीं करती है।

(4) कई क्रियाओं को पूरा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है, है, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली इत्यादि

(4) निजी क्षेत्र का ऐसा कोई दायित्व नहीं होता है। यदि यह ऐसी सेवाएं प्रदान करता है तो इसके लिए काफी पैसा लेता है। जैसे-प्राइवेट स्कूल, प्राइवेट अस्पताल इत्यादि।


वस्तुनिष्ठ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर (MCQ)

• भारतीय अर्थव्यवस्था को कितने क्षेत्रों में बाँटा गया है?

(1) 1

(2) 2

(3) 3

(4) 4

• एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन ........... क्षेत्रक की गतिविधि है।

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) संचार

• इनमें से कौन प्राथमिक क्षेत्रक से संबंधित है?

(1) खनन

(2) चीनी

(3) वकालत

(4) कोई नहीं

• कृषि, डेयरी खेती निम्नलिखित में से किस क्षेत्र से संबंधित गतिविधियाँ हैं?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) माध्यमिक

• वनोत्पाद का संग्रह करना किस क्षेत्रक की गतिविधि है?

(1) द्वितीयक

(2) प्राथमिक

(3) तृतीयक

(4) चतुर्थक

• निम्नलिखित में से कौन-सी गतिविधि प्राथमिक क्षेत्र से संबंधित नहीं हैं?

(1) मत्स्य पालन

(2) बैंकिंग

(3) खनन

(4) वानिकी

• किस क्षेत्र में सर्वाधिक श्रमिक कार्यरत है?

(1) तृतीयक

(2) द्वितीयक

(3) प्राथमिक

(4) उपर्युक्त सभी

• प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण के द्वारा उपयोगी वस्तु में बदलना किस क्षेत्रक में आता है?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) माध्यमिक

• विनिर्माण की क्रिया किस क्षेत्रक का भाग है?

(1) सेवा

(2) कृषि एवं सहायक

(3) द्वितीयक

(4) प्राकृतिक

• निम्नलिखित में से कौन-सी गतिविधि द्वितीयक क्षेत्र की गतिविधि है?

(1) दूध दूहना

(2) मछली पकड़ना

(3) चीनी बनाना

(4) खेती

• निम्न में से कौन-से क्रियाकलाप द्वितीयक क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं?

(1) इस क्षेत्रक में वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का उत्पादन होता है।

(2) प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण के द्वारा बदला जाता है।

(3) वस्तुओं को प्राकृतिक संसाधन के दोहन द्वारा उत्पादित किया जाता है।

(4) इसके अंतर्गत कृषि, वन तथा डेयरी आते हैं।

• इनमें से कौन द्वितीयक क्षेत्रक में शामिल हैं?

(1) कुम्हार

(2) बुनकर

(3) दियासलाई कारखाना में श्रमिक

(4) उपर्युक्त सभी

• कौन-सी गतिविधि द्वितीय क्षेत्र से संबंधित है?

(1) बैंक सेवाएँ

(2) कपास की खेती

(3) डेयरी

(4) भवनों का निर्माण

• वे गतिविधियाँ जो स्वयं वस्तु का उत्पादन नहीं करतीं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग देती हैं ......... क्षेत्रक में आती है।

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) माध्यमिक

• कौन-से क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) चतुर्थक

• इनमें से कौन तृतीयक क्षेत्रक से संबंधित है?

(1) खनन

(2) कृषि

(3) बैंकिग

(4) कोई नहीं

सेवा क्षेत्र में इनमें से किस तरह की गतिविधियाँ शामिल हैं?

(1) कृषि, डेयरी, मछली पालन और वानिकी

(2) चीनी, गुड़, ईंट बनाना

(3) परिवहन, संचार और बैंकिंग

(4) इनमें से कोई नहीं

सेवा क्षेत्रक में शामिल गतिविधियों के उदाहरण हैं -

(1) परिवहन

(2) भंडारण एवं व्यापार

(3) संचार एवं बैंकिंग

(4) ये सभी।

परिवहन, भंडारण, संचार, बैंक सेवाएँ एवं व्यापार किस क्षेत्रक की गतिविधियों के प्रमुख उदाहरण हैं?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) ये सभी।

अध्यापक वर्ग किस क्षेत्र से संबंधित है?

(1) असंगठित

(2) तृतीयक

(3) प्राथमिक

(4) द्वितीयक

इस क्षेत्रक के श्रमिक माल का उत्पादन नहीं करते हैं?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) चतुर्थक

• उत्पादन और उपभोक्ता के बीच संबंध कौन स्थापित करता है?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) चतुर्थक

• प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ .......... हैं।

(1) परस्पर निर्भर

(2) अस्पष्ट

(3) परस्पर विरोधी

(4) ये सभी

• भंडारण को किस क्षेत्रक में शामिल किया जाता है?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) तृतीयक

(4) चतुर्थक

• जीवन बीमा की एक गतिविधि है -

(1) प्राथमिक क्षेत्र

(2) द्वितीयक क्षेत्र

(3) सेवा क्षेत्र

(4) इनमें से कोई नहीं

• निम्नलिखित में से कौन-सी आर्थिक गतिविधियाँ तृतीयक क्षेत्रक में नहीं आती?

(1) बैंकिंग

(2) मधुमक्खी पालन

(3) अध्यापन

(4) किसी कॉल सेंटर में काम करना

• रमेश, सुरेश, नरेश और राकेश चार भाई हैं। रमेश खेतों में काम करता है, सुरेश किसी फैक्ट्री में मजदूरी करता है, नरेश एक शिक्षक और राकेश एक टैक्सी ड्राइवर है। इनमें से किसके कार्य सेवा क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं?

(1) सुरेश, नरेश

(2) सुरेश, राकेश

(3) नरेश, राकेश

(4) चारों भाई

कौन-सा क्षेत्र भारत में सबसे बड़े रोजगार उत्पादक क्षेत्र के रूप में उभरा है?

(1) द्वितीयक क्षेत्र

(2) तृतीयक क्षेत्र

(3) प्राथमिक क्षेत्र

(4) विज्ञान-प्रौद्योगिकी

भारत के सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा भाग कौन-सा क्षेत्र प्रदान करता है?

(1) उत्पादन, निर्माण, बिजली और गैस

(2) सेवा क्षेत्र

(3) कृषि और संबद्ध क्षेत्र

(4) रक्षा और लोक प्रशासन

उत्पादन के उद्देश्य से इनमें से प्रथम स्थान पर आता है?

(1) पूंजी

(2) भूमि

(3) श्रम

(4) औजार

जी. डी. पी. का विस्तारित रूप निम्न में से कौन-सा है?

(1) सकल डेयरी उत्पाद

(2) सकल घरेलू उत्पाद

(3) सकल विकास परियोजना

(4) सकल मूल्य उत्पाद

निम्न में से कौन अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है?

(1) सकल घरेलू उत्पाद

(2) विश्व व्यापार संगठन

(3) विश्व स्वास्थ्य संगठन

(4) विश्व बैंक

किसी वर्ष में उत्पादित ........ के कुल मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।

(1) सभी वस्तुओं और सेवाओं

(2) सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं

(3) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं

(4) सभी मध्यवर्ती तथा अंतिम वस्तुओं और सेवाओं

रामू एक किसान है जिसने अधिशेष गेहूँ को एक आटा मिल के मालिक को 10 रु प्रति कि.ग्रा. की दर से बेचा। मिल मालिक ने बिस्कुट कंपनी को आटा 15 रु प्रति कि.ग्रा. की दर से बेच दिया। बिस्कुट कंपनी ने आटे के साथ चीनी एवं तेल जैसी चीजों का उपयोग कर बिस्कुट के चार पैकेट बनाई और बाजार में उपभोक्ताओं को 80 रु में (20 रु प्रति पैकेट) बिस्कुट बेचा। सकल घरेलू उत्पाद की गणना में उपर्युक्त में से किस वस्तु के मूल्य को लिया जाएगा?

(1) गेहूँ

(2) आटा

(3) चीनी एवं तेल

(4) बिस्कुट

अन्तिम वस्तुओं के मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य होता है।

(1) पहले से ही शामिल

(2) बाद में शामिल

(3) शामिल नहीं

(4) उपर्युक्त में से कोई नहीं

सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) ज्ञात करने के लिए अर्थव्यवस्था में प्रत्येक क्षेत्र के अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य की ही गणना क्यों की जाती है?

(1) संसाधन बढ़ाने के लिए

(2) दोहरी गणना की समस्या से बचने के लिए

(3) लागत कम करने के लिए

(4) इनमें से कोई नहीं

जी. डी. पी. के मदों में वर्ष 2013-14 के बीच तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी ....... प्रतिशत है।

(1) 20 से 30

(2) 30 से 40

(3) 50 से 60

(4) 60 से 70

जब एक काम पर आवश्यकता से अधिक श्रमिक लगे हों उसे ......... कहा जाता है।

(1) बेरोजगारी

(2) मौसमी बेरोजगारी

(3) प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी

(4) इनमें से सभी

• प्रच्छन्न बेरोजगारी का मतलब ऐसी स्थिति से है जहाँ लोग-

(1) बेरोजगार हैं

(2) नियोजित हैं लेकिन कम वेतन अर्जित करते हैं।

(3) नियोजित हैं लेकिन उत्पादकता शून्य है।

(4) वर्ष के कुछ महीनों में बेरोजगार हैं।

सामान्यतः भारत के किस क्षेत्र में छुपी हुई (प्रछन्न) बेरोजगारी पायी जाती है?

(1) औद्योगिक क्षेत्रक

(2) कृषि क्षेत्रक

(3) सेवा क्षेत्रक

(4) इनमें से कोई नहीं

कृषि क्षेत्र में किस प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है?

(1) स्वैच्छिक बेरोजगारी

(2) अल्प बेरोजगारी

(3) संरचनात्मक बेरोजगारी

(4) चक्रीय बेरोजगारी

एक खेत में लक्ष्मण और उसके परिवार के चार व्यक्ति काम करते हैं, जिसमें सालाना 20 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन होता है। लक्ष्मण के चचेरे भाई करन ने एक वर्ष तक लक्ष्मण और उसके परिवार के साथ मिलकर कार्य किया परन्तु उस वर्ष कुल उत्पादन में कोई वृन्द्धि नहीं हुई। करन की परिस्थिति को किस श्रेणी में रखा जाएगा?

(1) मौसमी बेरोजगारी

(2) प्रच्छन्न बेरोजगारी

(3) शहरी बेरोजगारी

(4) शिक्षित बेरोजगारी

अल्प बेरोजगारी उस अवस्था में पायी जाती है ........

(1) जब लोग सुस्त ढंग से कार्य कर रहे हैं।

(2) उनके कार्य के लिए भुगतान नहीं किया जाता।

(3) अपनी कार्य क्षमता से कम कार्य कर रहे होते हैं।

(4) कार्य करना नहीं चाहते।

रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने के लिए निम्न में से कौन-से उपाय किए जाते हैं?

(1) सिंचाई की सुविधा में वृद्धि

(2) विद्यालय एवं अस्पताल की स्थापना

(3) खाद्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना

(1) केवल 1

(2) 1 तथा 2

(3) 2 तथा 3

(4) 1, 2 तथा 3

वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कौन-सा कार्यक्रम शुरू किया गया?

(1) जवाहर रोजगार योजना

(2) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना

(3) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना

(4) इनमें से कोई नहीं

मनरेगा का विस्तारित रूप चुनें-

(1) मोहन गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम

(2) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम

(3) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय गारंटी समूह

(4) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कब लागू किया गया?

(1) 2005 ई.

(2) 2006 ई.

(3) 2007 ई.

(4) 2008 ई.

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कितने जिलों में लागू किया गया।

(1) 100 जिला

(2) 150 जिला

(3) 200 जिला

(4) 250 जिला

• नरेगा 2005 (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005) के अनुसार सरकार द्वारा गारंटीकृत रोजगार के दिनों की संख्या ...... है।

(1) 120 दिन

(2) 80 दिन

(3) 150 दिन

(4) 100 दिन

'नरेगा' में काम नहीं मिलने पर कितने दिनों के भीतर बेरोजगारी भत्ता मिलती है?

(1) 10 दिन

(2) 12 दिन

(3) 15 दिन

(4) 20 दिन

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 का उद्देश्य क्या हैं?

(1) श्रमिकों की अवस्था में सुधार

(2) ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार अवसर बढ़ाना

(3) (1) और (2) दोनों

(4) इनमें से कोई नहीं

• रोहन एक अकुशल बेरोजगार युवक है। वह रोजगार की गारंटी देने वाली सरकारी योजना मनरेगा के तहत अपना पंजीयन करवाता है। रोहन को वर्ष में कितने दिनों के रोजगार की गारंटी मिलेगी?

(1) 200

(2) 365

(3) 100

(4) 250

• रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियाँ कितने क्षेत्रक में बाँटा हुआ है?

(1) एक

(2) दो

(3) तीन

(4) कोई नहीं

• वे क्षेत्रक जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और उन्हें सरकारी नियमों और विनियमों का अनुपालन करना होता है ............ कहलाते हैं।

(1) संगठित क्षेत्र

(2) असंगठित क्षेत्र

(3) संगठित और असंगठित दोनों

(4) इनमें से कोई नहीं

• संगठित क्षेत्र का सही अर्थ चुनें-

(1) यह उन उद्यमों को शामिल करता है जहाँ रोजगार की शर्तें नियमित हैं।

(2) यह सरकार के नियंत्रण से बाहर है।

(3) यह कम वेतन प्रदान करता है।

(4) इस क्षेत्र में नौकरियाँ नियमित नहीं हैं।

• निम्नलिखित में से किसे संगठित क्षेत्र में नियोजित कहा जा सकता है?

(1) कृषि मजदूर

(2) बहुराष्ट्रीय कंपनी का स्थायी कर्मचारी

(3) लघु उद्योग के श्रमिक

(4) कबाड़ीवाला

• सलमा एक सरकारी अस्पताल में नर्स का कार्य करती हैं। सलमा किस क्षेत्रक की गतिविधि में संलग्न है?

(1) प्राथमिक

(2) द्वितीयक

(3) असंगठित

(4) संगठित

• किस कार्य-क्षेत्र में श्रमिक कार्य सुरक्षा का आनंद उठाते हैं?

(1) प्राथमिक

(2) संगठित

(3) गैर-संगठित

(4) उपर्युक्त सभी

• अनीता एक साड़ी की दुकान में काम करती है जहाँ सवैतनिक अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है, जबकि सीता एक सरकारी अस्पताल में नर्स है, जहाँ उसे वर्ष में कुछ दिन सवैतनिक अवकाश मिलता है। इन दोनों में से किसका कार्य क्षेत्र संगठित है और किसका असंगठित ?

(1) अनीता - असंगठित तथा सीता- संगठित

(2) अनीता - संगठित तथा सीता - असंगठित

(3) अनीता - संगठित तथा सीता - संगठित

(4) अनीता - असंगठित तथा सीता - असंगठित

• सवेतन छुट्टी का प्रावधान किस क्षेत्रक में होता है?

(1) असंगठित क्षेत्रक

(2) संगठित क्षेत्रक

(3) ग्रामीण क्षेत्रक

(4) इनमे से कोई नहीं

• इनमें से कौन संगठित क्षेत्रक में कार्यरत है -

(1) पर्यटन-निर्देशक

(2) धोबी

(3) दर्जी

(4) कुम्हार

• इनमें से कौन संगठित क्षेत्रक में कार्यरत नहीं है -

(1) शिक्षक

(2) डॉक्टर

(3) सब्जी विक्रेता

(4) वकील

• इनमें से कौन निजी क्षेत्रक है?

(1) रेलवे

(2) डाकघर

(3) रिलायंस इंडस्ट्रीज

(4) इसरो

• इनमें से कौन सार्वजनिक क्षेत्र का उदाहरण है?

(1) रेलवे

(2) बीएसएनएल

(3) डाकघर

(4) उपर्युक्त सभी

• सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक किस आधार पर विभाजित हैं?

(1) रोजगार की शर्तों के आधार पर

(2) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव के आधार पर

(3) उद्यमों के स्वामित्व के आधार पर

(4) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या

3. मुद्रा और साख

विषयनिष्ठ (Subjective) प्रश्नोत्तर

प्रश्न : वस्तु विनिमय किसे कहते हैं?

उत्तर : किसी वस्तु के बदले वस्तु द्वारा आवश्यकता की वस्तुओं के लेन-देन को वस्तु विनिमय कहते हैं। उदाहरण : किसान द्वारा लोहार को धान देकर हल या कुदाल लेना।

प्रश्न : वस्तु विनिमय प्रणाली से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : वह प्रणाली जिसमें मुद्रा का उपयोग किये बिना लोग अपनी आवश्यकता की वस्तुओं की पूर्ति वस्तुओं के विनिमय (अर्थात वस्तु के बदले वस्तु) के माध्यम से करते हैं, वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानी जाती है। यह प्रणाली उस समय प्रचलित थी जब मुद्रा का प्रचलन प्रारंभ नहीं हुआ था।

प्रश्न : जब एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता है, वही वस्तु दूसरा व्यक्ति ख़रीदने की भी इच्छा रखता हो, इसे ........... कहा जाता है।

उत्तर : आश्यकताओं का दोहरा संयोग

प्रश्न : वस्तु विनिमय प्रणाली में, आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना ......... विशिष्टता है।

उत्तर : अनिवार्य

प्रश्न : 'वस्तु विनिमय प्रणाली' के दोष/कठिनाइयाँ बताएँ।

उत्तर : वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष अथवा कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं -

(1) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कमी

(2) मूल्य के समान मापन की कमी

(3) स्थगित भुगतान के मानक की कमी

(4) मूल्य संचय की कमी।

प्रश्न : वस्तु विनिमय की कठिनाइयों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष अथवा कंठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं -

(1) वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यमान के इकाई का अभाव, अर्थात यदि एक व्यक्ति को पाँच मीटर कपड़े की आवश्यकता है तथा उसे वह अपने पास के गेहूँ से बदलना चाहता है, तब प्रति मीटर कपड़े के लिए उसे कितना गेहूँ देना होगा निश्चित नहीं कर पाता।

(2) वस्तु विनिमय प्रणाली आवश्यकता के दोहरे संयोग पर आधारित प्रक्रिया है अर्थात् एक व्यक्ति, किसी ऐसे दूसरे व्यक्ति की तलाश में रहता है जो वही चीज बेचना चाहता है, जिसे पहला व्यक्ति खरीदना चाहता है। यह विनिमय को अधिक जटिल तथा समय लेने वाली बना देती है।

(3) ऐसा विनिमय जिसमें भुगतान, भविष्य में किया जाना होता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के गंभीर दोष को व्यक्त करता है। भविष्य में दी जाने वाली वस्तु के मूल्यमान में उतार-चढ़ाव का जोखिम बना रहता है, जिससे किसी एक पक्ष को हानि की संभावना बनी रहती है।

(4) वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य या धन संचय का कोई स्थान नहीं होता। इसमें सिर्फ वस्तुओं का भंडारण किया जा सकता है। अतः वस्तुओं के खराब होने की संभावना बनी रहती है।

प्रश्न : मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत कैसे आती है?

उत्तर : वस्तु विनिमय प्रणाली से विनिमय दर निर्धारण में अत्यन्त कठिनाई आती है। जबकि मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं का मूल्य निर्धारण किया जा सकता है तथा दोहरे संयोग की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है जिससे आसानी से विनिमय हो जाता है।

प्रश्न : मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस प्रकार सुलझाता है?

उत्तर : मुद्रा के प्रयोग में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या नहीं होती। अगर किसी व्यक्ति के पास गेहूँ है, वह उसे बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा अपनी आवश्यकता की अन्य कोई भी वस्तु खरीद सकता है।

प्रश्न : मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस प्रकार सुलझाता है? उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर : वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत एक वस्तु के मूल्य का भुगतान दूसरे वस्तु के रूप में किया जाता था। इसके लिए आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का होना आवश्यक था। अर्थात् दो व्यक्तियों के पास ऐसी वस्तु अवश्य होनी चाहिए, जो एक-दूसरे की आवश्यकता को पूरा कर सके।

लेकिन व्यावहारिक स्तर पर ऐसा संयोग, यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। यदि, एक व्यक्ति के पास गेहूँ है तथा वह कपड़े खरीदना चाहता है तथा दूसरे व्यक्ति के पास जूते हैं तथा वह चावल खरीदना चाहता है, तो ऐसी स्थिति में वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत दोनों की आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं हो सकती।

मुद्रा के प्रयोग से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। जिस व्यक्ति के पास गेहूँ है, वह उसे बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा कपड़े खरीद सकता है।

प्रश्न : मुद्रा को परिभाषित कीजिए ?

उत्तर : कोई भी वस्तु जिसे विनिमय के माध्यम, मूल्य के सामान्य मापक, धन के संचय के साधन के रूप में अथवा भविष्य में किये जाने वाले भुगतानों के रूप में, कानूनी मान्यता अथवा शक्ति प्राप्त होती है, 'मुद्रा' कही जाती है। सामान्य स्वीकृति, मुद्रा का प्रधान गुण है।

प्रश्न : मुद्रा के प्रयोग के दो तरीके या ढंग बताएँ।

उत्तर : विनिमय एवं मूल्य-संचय।

प्रश्न : 'विनिमय का माध्यम' किसे कहा जाता है?

उत्तर : जिस माध्यम द्वारा वस्तु या सेवाओं का क्रय-विक्रय या लेन-देन होता है उसे विनिमय का माध्यम कहा जाता है। उदाहरण मुद्रा, करेंसी नोट, चेक, ड्राफ्ट, एटीएम आदि।

प्रश्न : चूँकि मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, इसे विनिमय का...... कहा जाता है।

उत्तर : माध्यम

प्रश्न : मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में ......... का काम करती है।

उत्तर : मध्यस्थता

प्रश्न : मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों कहा जाता है?

उत्तर : मुद्रा को विनिमय का माध्यम कहा जाता है, क्योंकि मुद्रा के बदले आसानी से किसी भी प्रकार की वस्तु या सेवा का विनिमय संभव होता है। इसमें आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की जरूरत नहीं होती है।

प्रश्न : मुद्रा के आधुनिक रूप कौन से हैं?

उत्तर : मुद्रा के आधुनिक रूप

(i) करेंसी नोट तथा सिक्के ।

(ii) बैंकों में निक्षेप अथवा जमा।

(iii) क्रेडिट कार्ड एवं इंटरनेट बैंकिंग।

प्रश्न : मुद्रा के कोई दो कार्यों को लिखें।

उत्तर : मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं -

(i) विनिमय का माध्यम

(ii) मूल्य का मापक।

प्रश्न : मुद्रा के किन्हीं तीन कार्यों को लिखिए।

उत्तर :

(1) मूल्य का मापन : मुद्रा मूल्य के मापन का कार्य करती है। मुद्रा के रूप में विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का निर्धारण किया जा सकता है।

(2) विनिमय का माध्यम : मुद्रा के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय आसानी से हो जाता है। सर्वग्राह्य होने के कारण सभी व्यक्ति मुद्रा को किसी कठिनाई के बगैर ही स्वीकार कर लेते हैं।

(3) मूल्य का संचय : मुद्रा की सहायता से धन को भविष्य के लिए इकट्ठा किया जा सकता है। मुद्रा का प्रयोग के द्वारा भविष्य के लिए क्रय-शक्ति का संचय किया जा सकता है।

(4) विलम्बित भुगतान का मान : आज के युग में साख का सर्वाधिक महत्त्व है। ऋण के लेन-देन का कार्य मुद्रा के माध्यम से आसानी से होता है।

प्रश्न: एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर : एक अर्थव्यवस्था में मद्रा की प्रमुख भूमिका निम्नलिखित है-

(1) विनिमय में मंद्रा की भूमिका : मुद्रा विनिमय का प्रमुख माध्यम है। इसलिए हम अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए मुद्रा के बदले वस्तुओं तथा सेवाओं को आसानी से क्रय-विक्रय कर सकते हैं।

(2) व्यापार में मुद्रा की भूमिका : मुद्रा के द्वारा व्यापारिक क्रियाएँ सरलतापूर्वक पूरी की जाती हैं, क्योंकि मुद्रा की सहायता से एक स्थान से वस्तुओं का क्रय करके इन्हें दूसरे स्थान पर कि किया जा सकता है।

(3) उत्पादन में मुद्रा की भूमिका : उत्पादन प्रक्रिया में एक उद्यमी उत्पादन के विभिन साधनों को उनकी सेवाओं के बदले एक समय के बाद भी मुद्रा में आसानी से. और विश्वसनीय तरीके से भुगतान करता है, जैसे - भूमि पर लगान, मजदूरों को मजदूरी एवं पेंशन, पूँजी पर ब्याज तथा उद्यम पर लाभ आदि।

(4) बजट निर्माण में मुद्रा की भूमिका : सरकारी व्यय तथा प्राप्तियों का माप मुद्रा के रूप में किया जाता है। इसके द्वारा करों की दर, ऋण पर ब्याज संबंधित आर्थिक नीतियाँ सरलतापूर्वक बनाई जाती हैं।

(5) राष्ट्रीय आय के मापन में मुद्रा की भूमिका : देश की राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा में की जाती है जो कि देश के निवासियों का जीवन स्तर प्रदर्शित करती है। मुद्रा के बिना प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय की गणना कठिन है।

प्रश्न : बैंक मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर : बैंक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

(1) व्यावसायिक बैंक (2) केन्द्रीय बैंक

प्रश्न : व्यावसायिक अथवा व्यापारिक बैंक किसे कहते हैं?

अथवा, वाणिज्यिक बैंक से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : व्यावसायिक बैंक वह संस्था है जो लाभ के उद्देश्य से मुद्रा के जमा, लेन-देन तथा ऋण की सेवाएँ प्रदान करता है। इसके लिए वह जनता, फर्मों तथा सरकार से जमा स्वीकार करता है। उनके चेक या आदेश पर भुगतान (आहरण) करता है। जमा का प्रयोग ऋण या निवेश के लिए करता है।

प्रश्न : 'केन्द्रीय बैंक' से क्या अभिप्राय है? हमारे देश के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखें।

उत्तर : देश की मौद्रिक व्यवस्था के शीर्ष पर स्थित बैंक को केन्द्रीय बैंक कहा जाता है, जिसका मुख्य कार्य देश की मौद्रिक नीतियों की रचना, संचालन, नियमन, निर्देशन और नियंत्रण होता है। हमारे देश के केन्द्रीय बैंक का नाम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है।

प्रश्न: भारत में करेंसी नोट जारी करने का अधिकार किसे है?

उत्तर : भारत में करेंसी नोट जारी करने का अधिकार, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को है।

प्रश्न: ........... केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।

उत्तर : भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न : दस रुपये के नोट लिखा है 'मै धारक को दस रुपये अदा करने का वचन देता हूँ।' इसका क्या अर्थ है?

उत्तर : दस रुपये के करेंसी नोट पर लिखे इस पंक्ति के नीचे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर होता है। इसका अर्थ यह है कि दस रुपये के नोट के साथ किसी भी दस रुपये की वस्तु का मूल्य संग्रहित है। सरकार इन नोटों के निर्गमन से पहले उतना ही मूल्यमान, जैसे-सोना, प्रतिभूति आदि को अर्थव्यवस्था में संचित रखती है।

प्रश्न : प्लास्टिक मुद्रा क्या है?

उत्तर : यह मुद्रा का आधुनिकतम रूप है जिसके माध्यम से महानगरों में खरीदारी की जाती है अथवा ए.टी.एम से पैसे की निकासी की जाती है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि ढेर सारी कागजी मुद्रा ढोने की जरूरत नहीं पड़ती। जरूरत के हिसाब से इसका प्रयोग कर भुगतान किया जा सकता है एवं वस्तुओं का क्रय किया जा सकता है। छोटे शहरों में भी इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा है, (ATM) ए.टी.एम. कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि इसी के उदाहरण है।

प्रश्न: देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका का वर्णन करें।

→ अथवा, देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की क्या भूमिका रहती है?

उत्तर: देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका-

(1) बैंकों में लोग अपनी बचत को जमा करते हैं जहाँ उस पर व्याज भी प्राप्त होता है तथा पैसा सुरक्षित भी रहता है।

(2) बैंक, अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच कार्य करता है। बैंक जरूरतमंदों को ऋण देकर उनके आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

(3) बैंक देश में मुद्रा के परिचालन को नियंत्रित करते हैं। व्यावसायिक बैंक व्यापारिक लन-देन थी प्रक्रिया को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाते हैं।

(4) रिजर्व बैंक देश की मौद्रिक नीति बनाता है। अन्य बैंकों की उनका पालन करना अनिवार्य होता है। इसके द्वारा देश में तेजी और मंदी पर नियन्त्रण किया जाता है।

(5) व्याज-दर, बैंक दर, नकद रिजर्व अनुपात (C.R.R), रेपो रेट इत्यादि का निर्धारण रिजर्व बैंक के द्वारा किया जाता है।

(6) बैंकों में अधिक लोग काम में लगे होते हैं। इस प्रकार बैंक बेरोजगारी की समस्या को हल करने में भी मदद करते हैं।

प्रश्न: बैंक ........ पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज लेते हैं।

उत्तर: जमा राशि

प्रश्न: कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिये गये व्याज के बीच का अंतर बैंकों की .........का प्रमुख स्रोत है।

उत्तर : आय

प्रश्न : बैंकों की आय का मुख्य स्त्रोत क्या है?

उत्तर : बैंक अपने यहाँ जमा राशि पर जो ब्याज देते हैं उससे अधिक ब्याज दिये गये ऋण पर लेते हैं। कर्जदारों से लिये गये ब्याज तथा जमाकर्ताओं को दिये गये व्याज में अंतर, बैंकों की आय का प्रमुख खोत है।

प्रश्न: बैंक ............ के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

उत्तर: जमा राशि

प्रश्न : मांग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?

उत्तर : माँग जमा मुद्रा के समान ही है क्योंकि इसे आवश्यकता पड़ने पर कभी भी बैंक से निकलवाया जा सकता है या अन्य व्यक्ति को चेक देकर भी भुगतान किया जा सकता है। अतः माँग जमा को मुद्रा के समान समझा जाता है।

प्रश्न : चेक क्या है?

उत्तर : चेक एक विशिष्ट कागजी दस्तावेज होता है, जिस पर बैंक को निर्देश दिया जाता है कि वह चेक देने वाले व्यक्ति या संस्था के खाते से निर्देशित व्यक्ति को भुगतान करे।

प्रश्न : ऋण से क्या समझते हैं?

उत्तर: आसान भाषा में ऋण का अर्थ है साख या कर्ज जो कुछ शर्तों पर जरूरतमंद लोगों को दिया जाता है, ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।

प्रश्न : ऋण की शर्तों से क्या समझते हैं?

उत्तर : व्याज दर, संपत्ति और कागजात की मांग, भुगतान के तरीके आदि को मिलाकर इन शब्दों का नाम दिया जाता है।

प्रश्न : ऋण की शर्तों में किन बातों को शामिल किया जाता है?

अथवा, ऋण की शर्तों से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : ऋण की शर्तों में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जाता है -

(i) ब्याज दर

(ii) समर्थक ऋणाधार

(iii) आवश्यक कागजात

(iv) भुगतान के तरीके

(v) ऋण की अवधि

प्रश्न : उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाधार की माँग क्यों करता है?

उत्तर : उधारदाता उधार देने समय समर्थक ऋणाधार की माँग, ऋण-वापसी की सुनिश्चित करने के लिए करता है। यदि निर्धारित समय सीमा के अंदर, कर्ज दाता, समर्थक ऋणाधार को बेचकर अपना पैसा वापस प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न : ऋण की शर्तों का उल्लेख करें।

उत्तर :

(i) ब्याज दर ऋण पर वार्षिक या मासिक ब्याज दर निश्चित की जाती है।

(ii) समर्थक ऋणाधार कर्ज लेने बाला व्यक्ति उधारदाता को गारंटी देने के रूप में सम्पत्ति जमानत के रूप तय करता है। यदि निर्धारित समय सीमा के अंदर ऋण लेने वाला पैसे नहीं चुकाता है, कर्ज दाता, समर्थक ऋणाधार को बेचकर अपना पैसा वापस प्राप्त कर लेता है।

(iii) आवश्यक कागजात ऋण लेने वाला अपनी आर्थिक स्थिति के आवश्यक कागजात ऋण देने वाले को देता है।

(iv) भुगतान के तरीके भुगतान एकमुश्त करना है या समय-समय पर कब करना है, यह तय किया जाता है।

(v) ऋण की अवधि ऋण दीर्घकालिक है या कम समय का है, यह निश्चित किया जाता है।

प्रश्न : व्याज दर, समर्थक ऋणाधार, आवश्यक कागजात और भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से ........... कहा जाता है।

उत्तर: ऋण की शर्तें

प्रश्न : ............ कर्जदार की वह सम्पत्ति है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारंटी के रूप में इस्तेमाल करता है, जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।

उत्तर: ऋणाधार

प्रश्न: साख क्या है?

उत्तर : साख एक प्रकार का समझौता है जिसमें ऋणदाता कर्जदार को धन, वस्तु या सेवा इस वादे पर देता है कि वह भविष्य में उसका भुगतान कर देगा।

प्रश्न: औपचारिक ऋण क्या है?

उत्तर : औपचारिक प्रक्रियाओं को पूरा कर बैंकों या सहकारी संगठनों से लिये गये ऋण को औपचारिक ऋण कहते हैं।

प्रश्न : अनौपचारिक ऋण क्या है?

उत्तर : अनौपचारिक ऋण साहूकार, व्यापारी, भूस्वामी, रिश्तेदार या अन्य अनौपचारिक स्रोतों से लिये गये ऋण होते हैं। इस प्रकार के ऋण को लेने में कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं पूरी करनी पड़ती। ये सामान्यतः औपचारिक ऋणों से महँगे होते हैं।

प्रश्न : साख के प्रमुख स्त्रोतों का उल्लेख करें। ऋण के औपचारिक तथा अनौपचारिक स्त्रोतों में क्या अन्तर हैं?

अथवा, ऋण के औपचारिक तथा अनौपचारिक स्त्रोतों में क्या अन्तर है?

उत्तर : साख के प्रमुख स्त्रोत हैं औपचारिक एवं अनौपचारिक स्रोत।

ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों के अन्तर :

(1) बैंकों तथा सहकारी समितियों द्वारा दिये गये ऋण को औपचारिक ऋण कहते है। साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, मित्र आदि द्वारा दिये गये ऋण को अनौपचारिक ऋण कहा जाता है।

(2) औपचारिक ऋणदाता कर्जदार से समर्थक ऋणाधार की माँग करते हैं जबकि अनौपचारिक ऋण में किसी प्रकार के समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता नहीं पड़ती।

(3) औपचारिक ऋणदाता एक निश्चित तथा निम्न व्याज दर पर ऋण देते हैं जबकि अनौपचारिक ऋणदाता मनमानी तथा उच्च व्याज दर पर ऋण देते हैं।

(4) औपचारिक ऋण देने वाली संस्थाओं का नियंत्रण एवं अधीक्षणं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है जबकि अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है।

(5) औपचारिक स्रोतों द्वारा कर्जदारों का शोषण नहीं किया जाता है। अनौपचारिक स्रोतों द्वारा कर्जदारों का शोषण किया जाता है।

 प्रश्न: साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि

उत्तर : अनौपचारिक उधारदाता होते हैं।

प्रश्न: औपचारिक क्षेत्रक ऋण का नियंत्रण कौन करता है?

उत्तर : औपचारिक क्षेत्रक ऋण का नियंत्रण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है।

प्रश्न : अनौपचारिक ऋण, औपचारिक ऋण की तुलना में महँगा क्यों होता है?

उत्तर : अनौपचारिक ऋण पर औपचारिक ऋण की तुलना में अधिक ब्याज लिया जाता है इसलिए अनौपचारिक ऋण, औपचारिक ऋण की तुलना में महँगा होता है।

प्रश्न : हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। क्या यह उनके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है?

उत्तर : निर्धन व्यक्ति की निर्धनता कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है क्योंकि निर्धन व्यक्ति की कर्ज चुकाने की क्षमता भी कम होती है तथा पर्याप्त ऋणाधार न होने के कारण उसे आसानी से ऋण प्राप्त नहीं हो पाता है।

प्रश्न : सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण क्यों उपलब्ध होना चाहिए?

उत्तर : सभी लोगों के लिए यथोचित दरों पर ऋण उपलब्ध होना चाहिए ताकि वे उस ऋण से अपत्ती आय को बढ़ा सकें तथा समय पर ऋण का भुगतान कर पाएँ।

प्रश्न : भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?

उत्तर : भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर निम्नलिखित प्रकार से नजर रखता है-

(i) देश की मौद्रिक नीति का निर्माण रिजर्व बैंक के द्वारा होता है।

(ii) प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को एक निश्चित अनुपात में नगदी रिजर्व भारतीय रिजर्व बैंक में रखनी पड़ती है।

(iii) ब्याज-दर, बैंक दर, नकद रिजर्व अनुपात (C.R.R), रेपो रेट इत्यादि का निर्धारण रिजर्व बैंक के द्वारा किया जाता है।

(iv) रिजर्व बैंक इस बात पर नजर रखता है कि बड़े उद्योगपतियों के अतिरिक्त छोटे किसानों एवं उद्यमियों को भी कर्ज मिले।

यह इसलिए जरुरी है कि यदि भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नजर नहीं रखे तो देश में मुद्रा एवं साख की मात्रा में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। नियन्त्रण के अभाव में बैंक भी अपनी मनमानी करने लगेंगे तथा अधिक लाभ लेने हेतु लोगों का शोषण करेंगे। अतः अन्य बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं पर रिजर्व बैंक का नियंत्रण आवश्यक है।

प्रश्न : अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस प्रकार मध्यस्थता करते हैं?

उत्तर :- साधारणतया दो श्रेणी के लोग बैंक जाते हैं, एक वे जिनके पास अतिरिक्त धन होता है और दूसरे वे जिन्हें धन की आवश्यकता होती है।

- बैंक इन दोनों प्रकार के लोगों को मध्यस्थता प्रदान करता है।

- जिनके पास अतिरिक्त घन होता है उस जमाकर्ता को बैंक सूद देते हैं और जिन्हें घन की जरूरत होती है उनसे बैंक सूद प्राप्त करता है।

- इस प्रकार बैंक में जो अतिरिक्त धन बच जाता है उससे बैंक निजी काम चलाता है। बैंक की मध्यस्थता से सभी वर्गों का कल्याण होता है।

प्रश्न : हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है?

उत्तर : निम्नलिखित कारणों से, हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है-

(1) औपचारिक स्रोतों द्वारा कम ब्याज दर पर तथा आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। अनौपचारिक स्रोतों से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेकर लोग ऋण जाल में फँस जाते हैं

(2) आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को औपचारिक स्रोतों से ऋण मिलने से उनकी आय बढ़ेगी तथा बहुत से लोग अपनी विभिन्न जरूरतों के लिए सस्ता कर्ज ले सकेंगे।

(3) देश के विकास के दृष्टिकोण से सस्ता और सामर्थ्य के अनुकूल औपचारिक कर्ज आवश्यक है। अनौपचारिक स्रोतों द्वारा ऊँची दर पर ऋण दिए जाते हैं तथा कई तरीकों से लोगों का शोषण किया जाता है।

(4) औपचारिक स्रोतों से दिये गये ऋणों का पर्याप्त लेखा-जोखा रखा जाता है, जिससे कर्ज लेने वाल बेवजह परेशानी में नहीं पड़ता।

प्रश्न: आर्थिक विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

अथवा, विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर :

(1) प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि : देश के आर्थिक विकास में ऋण एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका निभाता है। व्यापारी, उद्यमी, किसान तथा आम जनता बैंकों से ऋण लेकर अपना आर्थिक विकास करने का प्रयास करते हैं। उनके आर्थिक विकास से प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

(2) रोजगार के सृजन तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास में सहायक : ऋण लेकर व्यापारी अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है, उद्यमी नये कारखाने लगाता है जिसमें लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

(3) कृषि एवं कृषि आधारित आर्थिक गतिविधियों के विकास में सहायक : किसान अपने उत्पादन को बढ़ाता है इससे देश के खाद्यान की जरूरतों की पूर्ति होती है।

(4) आम जनता अपनी छोटी-मोटी आवश्यकताओं को पूर्ण करती है : आय बढ़ाने तथा आवास खरीदने के लिए लोग बैंकों से ऋण लेते हैं।

(5) उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए सफल छात्रों के अपनी शिक्षा को पूर्ण कर उत्तम रोजगार पाने में आज बैंक ऋण बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

इस तरह ऋण आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न: उँची जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : यद्यपि, कर्जदार अपनी आय बढ़ाने तथा बेहतर परिस्थितियों के निर्माण के लिए कर्ज लेता है, लेकिन जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर देता है।

जैसे मान लें एक व्यक्ति फसल उत्पादन के लिए ऋण लेता है। यदि किसी कारणवश उसकी फसल मारी जाती है तो वह ऋण को वापस नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में वह कर्ज चुकाने के लिए पुनः कर्ज लेता है अथवा अपनी जमीन बेचने के लिए विवश हो जाता है। इस प्रकार परिस्थिति के खतरे इस बात को तय करते हैं कि ऋण उपयोगी होगा अथवा नहीं।

प्रश्न: क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?

उत्तर :

(1) बैंक अपने द्वारा दिये गये ऋण पर समर्थक ऋणाधार की माँग करता है ताकि ऋण वापसी की अनिश्चितता समाप्त हो सके।

(2) एक गरीब व्यक्ति के पास, समर्थक ऋणाधार के रूप में बैंक के पास रखने के लिए कुछ नहीं होता है। अतः समर्थक ऋणाधार के अभाव के कारण वह बैंकों से ऋण प्राप्त नहीं कर पाता है।

(3) भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक मौजूद नहीं हैं।

(4) बैंक से कर्ज लेने में विशेष कागजी कारवाई करनी पड़ती है तथा एक गरीब व्यक्ति शिक्षित नहीं होने के कारण स्वयं को कागजी कारवाई से दूर रखना चाहता है।

(5) बैंक भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण को ज्यादा जोखिम वाला मानते हैं क्योंकि ऋण को वसूलना कई बार कठिन हो जाता है।

वस्तुनिष्ठ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर (MCQ)

• निम्न में से कौन वस्तु विनिमय का उदाहरण है?

(1) एक गाय के बदले पाँच बकरी का सौदा

(2) एक गाय को दस हजार में बेचना

(3) बैंक से गाय प्राप्त करना

(4) गाय का दूध बेचना

• वस्तु के बदले वस्तु के आदान-प्रदान की प्रणाली को कहा जाता है -

(1) मौद्रिक प्रणाली

(2) क्रेडिट सिस्टम

(3) वस्तु विनिमय प्रणाली

(4) विनिमय प्रणाली

• किस विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना अनिवार्य विशिष्टता है?

(1) वस्तु विनिमय प्रणाली

(2) मुद्रा अर्थव्यवस्था

(3) वैश्विक अर्थव्यवस्था

(4) इनमें से कोई नहीं

मुद्रा का कार्य है:

(1) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग को समाप्त करता है

(2) मूल्य के एक सामान्य मापक के रूप में कार्य करता है

(3) स्थगित भुगतान के मानक के रूप में कार्य करता है

(4) उपर्युक्त सभी

मुद्रा का प्राथमिक कार्य है?

(1) मूल्य का हस्तांतरण

(2) विलंबित भुगतान का मान

(3) मूल्य का संचय

(4) विनिमय का माध्यम

निम्नलिखित में से कौन महत्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं दोहरे संयोग की जरूरत को समाप्त कर देती है?

(1) मुद्रा

(2) विदेश व्यापार

(3) निर्यात

(4) विकास

मुद्रा में सम्मिलित होते हैं-

(1) सिक्के, कागज के नोट तथा वस्तुएँ और सेवाएँ

(2) कागज के नोट, सिक्के तथा माँग जमा पूँजी

(3) कागज के नोट, चेक तथा बैंक जमा पूंजी

(4) सावधि जमा पूँजी, कागज के नोट तथा संचार में मुद्रा

कागज से बनी मुद्रा क्या कहलाती है?

(1) पत्र मुद्रा

(2) मुद्रा

(3) धातु मुद्रा

(4) साख मुद्रा

करेंसी मुद्रा का कौन-सा रूप है?

(1) आधुनिक

(2) प्राचीन

(3) आधुनिक तथा प्राचीन

(4) इनमें से कोई नहीं

वर्तमान में कागज के पैसे के अलावा किस रूप में धन का उपयोग बढ़ता जा रहा है?

(1) कमोडिटी मनी

(2) धातु पैसे

(3) प्लास्टिक मनी

(4) उपर्युक्त सभी

धन के आधुनिक रूप हैं-

(1) मुद्रा

(2) प्लास्टिक मनी

(3) डिमांड डिपॉजिट

(4) सभी

भारत में करेंसी नोट कौन जारी करता है?

(1) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

(2) सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया

(3) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

(4) पंजाब नेशनल बैंक

• भारत में मुद्रा जारी करने का अधिकार किसको है?

(1) वाणिज्यिक बैंक

(2) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

(3) राष्ट्रीयकृत बैंक

(4) भारतीय रिजर्व बैंक

भारत के समस्त व्यापारिक बैंकों की कार्यप्रणाली के निरीक्षण का कार्य कौन करता है?

(1) विश्व बैंक

(2) भारत सरकार

(3) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

(4) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

व्यापारिक बैंक के क्या कार्य हैं?

(1) साख निर्माण

(2) ऋण देना

(3) जमा स्वीकार करना

(4) इनमें से सभी

बैंकों की आय का प्रमुख स्त्रोत क्या है?

(1) निकासी

(2) ऋण

(3) जमा

(4) इनमें से कोई नहीं

बैंक अपने पास जमा राशि के एक बड़े भाग का उपयोग किस लिए करते हैं?

(1) लोगों को ऋण देने

(2) जमा राशि पर ब्याज देने

(3) अपने पास बचत के रूप में रखने

(4) अपनी संपत्ति खरीदने

कुल जमा का वह हिस्सा जो एक बैंक अपने पास नकद में रखता है?

(1) शून्य

(2) एक छोटा अनुपात

(3) एक बड़ा अनुपात

(4) 100 प्रतिशत

बैंक निम्नलिखित में से किस खाते पर अधिक ब्याज दर प्रदान करते हैं?

(1) बचत खाता

(2) करंट खाता

(3) लंबी अवधि के लिए सावधि जमा

(4) बहुत कम समय के लिए सावधि जमा

• ऋण के औपचारिक स्त्रोतों में शामिल नहीं है-

(1) बैंक

(2) सहकारी समिति

(3) नियोक्ता

(4) इनमें कोई नहीं

• निम्न में से कौन गरीब ग्रामीण परिवारों के लिए ऋण का औपचारिक स्रोत है?

(1) वाणिज्यिक बैंक

(2) साहूकार

(3) व्यापारी

(4) जमींदार

• निम्न में से साख की शर्तों में कौन-कौन शामिल हैं?

(1) ब्याज दर

(2) समर्थक ऋणाधार

(3) आवश्यक कागजात

(4) इनमें से सभी

• ऋण के अनौपचारिक स्त्रोत में शामिल है -

(1) व्यापारी तथा साहूकार

(2) सहकारी समितियाँ

(3) बैंक

(4) इनमें से कोई नहीं

• 'साहूकारों द्वारा लिया गया ब्याज' बैंकों द्वारा लिए गए ब्याज की दर की तुलना में है:

(1) निम्न

(2) बराबर

(3) थोड़ा अधिक

(4) बहुत अधिक

• स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण संबंधित अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं-

(1) बैंक द्वारा

(2) सदस्यों द्वारा

(3) गैर सरकारी संस्था द्वारा

(4) उपर्युक्त सभी

• राम और श्याम दो छोटे किसान हैं जिन्होंने अलग-अलग स्त्रोतों से 20,000 रुपया कर्ज लिया है। राम ने 1.5% ब्याज प्रतिमाह की दर से एक व्यापारी से कर्ज लिया है जबकि श्याम ने यह कर्ज बैंक से प्रतिवर्ष 8% ब्याज पर लिया है। ऊपर्युक्त आधार पर निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?

(1) राम ने सही किया क्योंकि उसे किसी प्रकार की कागजी कार्यवाही नहीं करनी पड़ी।

( 2) श्याम की हालत ज्यादा खराब है क्योंकि उसे ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है।

(3) राम की हालत ज्यादा खराब है क्योंकि वो ज्यादा ब्याज दे रहा है।

(4) श्याम बेहतर है क्योंकि उसे ज्यादा ब्याज मिल रहा है।

4. वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

विषयनिष्ठ (Subjective) प्रश्नोत्तर

प्रश्न : वैश्वीकरण क्या है?

उत्तर : वैश्वीकरण का अर्थ होता है- घरेलू बाजार को विश्व बाजार के साथ व्यापार, पूँजी, तकनीक, श्रम एवं सेवाओं के मुक्त प्रवाह के साथ जोड़ना या समन्वय करना। इसका घनिष्ठ संबंध उदारीकरण तथा निजीकरण की नीतियों के साथ है।

प्रश्न : वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

अथवा, 'वैश्वीकरण' से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण की अवधारणा किन तथ्यों पर निर्भर करती है?

अथवा, भूमंडलीकरण के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख करें।

उत्तर : वैश्वीकरण का अर्थ होता है कि घरेलू बाजार को विश्व बाजार के साथ व्यापार, पूँजी, तकनीक, श्रम एवं सेवाओं के मुक्त प्रवाह के साथ जोड़ना या समन्वय करना। इसका घनिष्ठ संबंध उदारीकरण तथा निजीकरण की नीतियों के साथ है।

वैश्वीकरण की अवधारणा निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करती है-

(i) उदारीकरण एवं विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का मुक्त प्रवाह,

(ii) विदेशी निवेश अथवा पूँजी का मुक्त प्रवाह,

(iii) टेक्नोलॉजी का मुक्त प्रवाह,

(iv) विश्व के विभिन्न देशों के बीच श्रम का मुक्त प्रवाह।

(v) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ तथा संचार प्रौद्योगिकी वैश्वीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

1991 ई. की नयी आर्थिक नीति के बनने के बाद भारत में वैश्वीकरण को प्रोत्साहन मिला है।

प्रश्न: विदेश व्यापार के उदारीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर : अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतियोगी बनाने के लिए आर्थिक नीतियों में ढील अथवा अवरोधों एवं प्रतिबंधों को हटाये जाने की प्रक्रिया उदारीकरण कहलाता है। उदारीकरण से तात्पर्य है, सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष या भौतिक आर्थिक नियंत्रणों से अर्थव्यवस्था को मुक्त करना।

प्रश्न: विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही....... है।

उत्तर : वैश्वीकरण

प्रश्न: सरकार द्वारा अवरोधों या प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया के नाम से जानी जाती है।

उत्तर : उदारीकरण

प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन (WTO) क्या है?

उत्तर : विश्व व्यापार संगठन की स्थापना में संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए की गई है, इसका मुख्यालय स्विट्‌जरलैंड जेनेवा में है।

प्रश्न : विश्व व्यापार संगठन (WTO) के किन्हीं तीन उद्देश्यों को लिखें।

अथवा, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्रमुख कार्यों को बताइए।

उत्तर :

(1) विश्व व्यापार संगठन का प्रमुख उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अवरोध मुक्त अथवा उदार बनाकर, उसके तीव्र विकास को सुनिश्चित करना है।

(2) यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों का निर्धारण करता है तथा विभिन्न देशों के द्वारा इन नियमों के अनुपालन पर नजर रखता है।

(3) इस संगठन का उद्देश्य विश्व के देशों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को इस प्रकार संचालित करना है कि उसमें समानता हो, खुलापन हो और वह बिना किसी भेदभाव के हो।

प्रश्न : विश्व व्यापार संगठन........ देशों की पहल पर शुरू हुआ था।

उत्तर : विकसित

प्रश्न : विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) का ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को ....... बनाना है।

उत्तर : उदार

प्रश्न : विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण क्यों चाहते हैं? क्या विकासशील देशों को भी बदले में ऐसी माँग करनी चाहिए?

उत्तर : निम्नलिखित कारणों से विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण चाहते हैं -

1. विकासशील देशों में मध्य श्रेणी जनसंख्या एवं मांग तथा पूर्ति में बड़ा अन्तर होने के कारण अधिक विकास की योग्यता होती है।

2. विकसित देश विकासशील देशों को अपने देश की वस्तु और सेवाओं के लिए बड़ा बाजार और आय की संभावना के रूप में देखते हैं।

3. विकसित देशों में संरचनात्मक विकास हो चुका होता है। उनकी तकनीक और मानव संसाधन का उपयोग करने के लिए वे विकासशील देशों में निवेश करने को इच्छुक होते हैं।

4. विकासशील देशों में रेल, सड़क, बिजली निर्माण आदिम्संरचना के विकास की आवश्यकता होती है। विकसित देश इन विकास कार्यों में लाभ कमाने के उद्देश्य से शामिल होना चाहते हैं।

हाँ, हम मानते हैं कि विकासशील देशों में भी ऐसी मांग करनी चाहिए। विकासशील देशों को विकसित देशों के बाजार तक की पहुँच होनी चाहिए तथा साथ ही इन देशों को निवेश में तकनीक की मांग भी करनी चाहिए। !

प्रश्न : 'बहुराष्ट्रीय कंपनी' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर :

(1) ऐसी कंपनी, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती है, बहुराष्ट्रीय कंपनी कहलाती है।

(2) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय तथा उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य संसाधन मिल सकते हैं।

(3) ये कंपनियाँ ऐसा उत्पादन लागत में कमी करने तथा अधिक लाभ कमाने के लिए करती हैं।

(4) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर करती हैं।

(5) ये कंपनियाँ सरकारी नीतियों पर भी नजर रखती हैं, जो उनके हितों पर प्रभाव डालती हैं।

प्रश्न : एक ........... कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व  रखती है।

उत्तर : बहुराष्ट्रीय

प्रश्न : बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, अन्य कम्पनियों से किस प्रकार अलग हैं?

उत्तर : बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तथा अन्य कम्पनियों में अन्तर :

बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ

अन्य कम्पनियाँ

1. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक से अधिक देशों में अपनी औद्योगिक इकाइयाँ व कार्यालय स्थापित करती हैं।

1. अन्य कम्पनियाँ एक ही देश में औद्योगिक इकाइयाँ व कार्यालय स्थापित करती हैं।

2. इन कम्पनियों में पूँजी निवेश अधिक होता है।

2. इन कम्पनियों में पूँजी निवेश कम होता है।

3. इन कम्पनियों के उत्पादन की माँग और पूर्ति बड़े पैमाने पर होती है।

3. अन्य कम्पनियों के उत्पादन की माँग व पूर्ति छोटे पैमाने पर होती है।

4. इन कम्पनियों की उत्पादन की लागत कम होती है। इसलिए ये अधिक लाभ कमाती है।

4. इन कम्पनियों के उत्पादन की लागत अधिक होने के कारण ये  कम लाभ कमा पाती हैं।

5. इनका आकार विशाल होता है।

5. इनका आकार छोटा होता है।

प्रश्न : वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?

उत्तर :

(1) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रायः विश्व में ऐसे स्थानों की तलाश में रहती हैं जहाँ उनके उत्पादन की लागत कम हो ताकि अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सके।

(2) विभिन्न देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही विभिन्न देशों के बीच विदेश व्यापार में भी वृद्धि हुई है।

(3) विदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होता है।

(4) इस प्रकार, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, विभिन्न देशों के बीच संबंधों को तेजी से बढ़ा रही हैं।

(5) इसके कारण विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों का भी तेजी से एकीकरण हो रहा है।

अतः कहा जा सकता है, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

प्रश्न : दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पाद या उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती हैं?

उत्तर : दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ निम्नांकित प्रकार से उत्पादन या उत्पाद पर नियंत्रण स्थापित करती हैं -

(1) बाजार के निकट ऐसी जगह उत्पादन इकाई स्थापित करना जहाँ कच्चा माल एवं कुशल श्रमिक प्रचुरता में उपलब्ध हों।

(2) भूमि, भवन, मशीन तथा अन्य उपकरणों की खरीद के रूप में मुद्रा निवेश कर स्थानीय कंपनियों के साथ मिलकर कार्य करना।

(3) स्थानीय कंपनियों के अधिग्रहण के द्वारा।

(4) छोटे उत्पादकों को ऑर्डर देकर वस्तुओं का निर्माण कराना तथा इन्हें अपने ब्रॉण्ड नाम से बेचना ।

(5) अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उच्च अनुसंधान द्वारा जटिल तकनीक वाली वस्तुओं का डिजाइन तैयार करती हैं और उसके विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग स्थानीय उत्पादकों द्वारा बनवा कर अपने विशेषज्ञों द्वारा एसेम्बल करवा कर बिक्री के लिए तैयार माल बनाती हैं।

प्रश्न : विदेश व्यापार के उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?

अथवा, 'उदारीकरण' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : उदारीकरण से आशय है, सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष या भौतिक नियंत्रणों से अर्थव्यवस्था को मुक्त करना। अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतियोगी बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को नौकरशाह के शिकंजे से मुक्त करना या आर्थिक नीतियों में ढील अथवा प्रतिबंधों को हटाये जाने की प्रक्रिया उदारीकरण कहलाता है।

1991 ई. से पहले भारत में अर्थव्यवस्था पर कई प्रकार का नियंत्रण था, जैसे औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था, वस्तुओं पर मूल्य नियंत्रण, आयात-निर्यात लाइसेंस, विदेशी मुद्रा पर नियंत्रण, बड़े औद्योगिक घरानों के निवेश पर प्रतिबन्ध आदि। उदारीकरण के द्वारा इन नियंत्रणों को दूर या कम किया गया है, जिसके लिए विभिन्न आर्थिक नियमों में संशोधन किया गया है।

उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत न सिर्फ विदेश व्यापार को अवरोधमुक्त बनाया गया, बल्कि 'लाइसेंस पद्धति' में भी व्यापक परिवर्तन किये गये। उद्यमियों को उन व्यवसायों को अपनाने की छूट दी गयी जो अभी तक सरकार द्वारा संचालित होते थे।

प्रश्न: व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में कैसे सहायता पहुँचाती है?

उत्तर: व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में निम्नलिखित प्रकार से सहायता पहुँचाती हैं -

(1) व्यापार में उदारीकरण की नौतियों से वैश्वीकरण की प्रक्रिया सुदृढ़ होती है उदारीकृत व्यापार नीति के कारण विदेशी माल पर आयात शुल्क या मात्रात्मक प्रतिबंध हटा दिया जाता है इससे मुक्त व्यापार का वातावरण बनता है।

(2) व्यापार अवरोधक समाप्त हो जाने से आयात और निर्यात में आसानी होती है।

(3) निवेश की नीति में उदारीकरण के कारण विदेशी निवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता है। विदेशी पूँजीपति भारत में तथा भारतीय पूँजीपति विदेशों में बिना किसी प्रतिबंध के निवेश कर सकते हैं। विदेशी निवेश के उदारीकरण से वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है।

(4) बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कई देशों में अपने उद्योग और कार्यालय खोल पाती हैं इससे सभी देशों के लोगों को रोजगार और आर्थिक लाभ मिलता है।

(5) व्यापार और निवेश नीतियों के उदारीकरण से पूरी दुनिया एक बाजार बन जाती है जहाँ हर देश अपनी वस्तु या सेवा बेच सकता है। इससे दुनिया के बाजार में देशों की प्रतिस्पर्धा क्षमता का विकास होता है और वस्तु या सेवा की गुणवत्ता में सुधार होता है।

प्रश्न : 'आयात शुल्क' से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : एक देश द्वारा दूसरे देशों से आने बाली चीजों पर लगाया गया शुल्क आयात शुल्क के नाम से जाना जाता है। इस शुल्क का भुगतान बंदरगाहों, सीमाओं हवाई अड्डों आदि जैसे स्थानों पर किया जाता है जहाँ से दूसरे देशों की चीजें स्थानीय बाजारों में प्रवेश करती हैं।

प्रश्न : व्यापार अवरोधक से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : किसी देश में, बाहर से आयात की गयी बस्तुओं पर, सरकार द्वारा लगाये गये 'आयात कर' को 'व्यापार अबरोधक' के नाम से जाना जाता है। इसका प्रयोग सरकार द्वारा, आयातों को हतोत्साहित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न : 'व्यापार अवरोधक' से क्या अभिप्राय है? व्यापार अवरोधक से क्या लाभ है?

उत्तर : किसी देश में, बाहर से आयात की गयी वस्तुओं पर, सरकार द्वारा लगाये गये आयात कर को 'व्यापार अवरोधक' के नाम से जाना जाता है। इसका प्रयोग सरकार द्वारा, आयातों को हतोत्साहित करने के लिए किया जाता है। इसे अवरोधक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्यापार पर कुछ प्रतिबंध लगाता है।

सरकार, व्यापार अवरोधक लगाकर देश में नये स्थापित और नबविकसित उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से बचा सकती है।

प्रश्न : आयात पर कर, व्यापार .......... का एक उदाहरण है।

उत्तर : अवरोधक

प्रश्न : भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती थी?

उत्तर : भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के निम्नलिखित कारण थे

(1) विदेश व्यापार मात्रात्मक प्रतिबंधों के माध्यम से घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना;

(ii) देश में विदेशी पूँजी व विदेशी तकनीक के प्रवाह पर प्रतिबंध लगाकर घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से मुक्त करना;

(iii) औद्योगिक गतिविधियों में सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देने के लिए तथा,

(iv) विदेशी मुद्रा के विनिमय पर नियंत्रण हेतु अवरोधक।

सन् 1991 के प्रारंभ में उपर्युक्त नीतियों में कुछ दूरगामी परिवर्तन किये गये। सरकार ने यह निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों के लिए विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करने का समय आ गया है। अतः उद्यमों को संरक्षण की सीमा से निकालकर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के दायरे में लाया गया। व्यापार अवरोधक कम किये गये। इन सभी का उद्देश्य देश में उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार करना तथा आयात-निर्यात को प्रोत्साहन देना था जिसका लाभ सरकार को आय-वृद्धि के रूप में मिल सके।

प्रश्न: श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों की कैसे सहायता (मदद) करता है?

उत्तर : एक संगठित क्षेत्र की कंपनियों को सरकार द्वारा निर्धारित कुछ नियमों एवं विनियमों का पालन करना पड़ता है। परन्तु, विदेशी निवेशों को आकर्षित करने के लिए सरकार ने कुछ नियमों से छूट लेने की अनुमति देती है।

श्रम कानूनों का लचीलापन कंपनियों को निम्नांकित रूप से मदद करता है -

(1) श्रम कानूनों के लचीलेपन के परिणामस्वरूप, कंपनियों को श्रमिक अधिकारों का पालन नहीं करना पड़ता है। जैसे - पेंशन की सुविधा, सेवा अनुदान की सुविधा, सवेतन छुट्टी की व्यवस्था आदि से उन्हें मुक्ति मिल जाती है।

(2) कंपनी अपनी श्रम लागत में कटौती करने के लिए लोचदार ढंग से छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को कार्य पर रखती है।

(3) इन कंपनियों में रोजगार की सुरक्षा नहीं होती अर्थात् श्रमिकों को कभी-भी काम से हटाया जा सकता है।

(4) कंपनियों को कानूनी झंझटों एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं से निजात मिलता है और वे बेझिझक अपने व्यवसाय पर ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं।

(5) श्रम कानूनों में रियायत के कारण वे स्थानीय श्रम शक्ति का उपयोग बिना किसी शर्त या कठिनाई के कर पाते हैं।

प्रश्न: कंटेनरों से क्या लाभ हो रहा है?

उत्तर : कंटेनर के कारण जहाँ ढुलाई लागत में भारी बचत हुई है वहीं माल को बाजारों तक पहुँचाने की गति में भी काफी वृद्धि हुई है।

प्रश्न : 'वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : वैश्वीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव सभी वर्गों तथा क्षेत्रों पर एक समान नहीं पड़ा है।

(i) इस प्रक्रिया का विशेष लाभ शहरी क्षेत्रों के घनी उपभोक्ताओं को ही प्राप्त हुआ है जबकि ग्रामीण क्षेत्र तथा गरीब उपभोक्ता इसके लाभ से वंचित रहे हैं।

(ii) कुछ भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने का अवसर प्राप्त हुआ। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष दक्षता के कारण भारतीय को भारी मात्रा में रोजगार एवं आय प्राप्त हुए।

(iii) किसान एवं लघु उद्यमियों को वैश्वीकरण से नुकसान ही अधिक हुआ है। इससे देश की विशाल जनसंख्या गरीबी, महँगाई तथा बेरोजगारी से ग्रसित हो गयी।

(iv) वैश्वीकरण की प्रक्रिया में ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं का विस्तार हुआ है जो शहरी क्षेत्र के धनी उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। जैसे सेल फोन, मोटरगाड़ियाँ, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, ठंडे पेय पदार्थ, जंक खाद्य पदार्थ, बैंकिंग सुविधाएँ आदि।

(v) खुदरा बाजार में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने से छोटे खुदरा व्यापारियों पर अस्तित्व का संकट आ गया है।

प्रश्न: भारत में वैश्वीकरण का क्या अनुकूल / सकारात्मक प्रभाव हुआ है?

उत्तर : भारत में वैश्वीकरण के निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव हुए -

(i) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारी मात्रा में पूँजी निवेश किया गया।

(ii) कुछ भारतीय कंपनियों को बहराीय कंपनियों के रूप में उभरने का अवसर प्राप्त हुआ।

(iii) कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष दक्षता के कारण भारतीय को भारी मात्रा में रोजगार एवं आय प्राप्त हुए।

(iv) नवीन प्रौद्योगिकी का तीव्र गति से विकास हुआ।

(v) भारत के निर्यात-व्यापार में वृद्धि हुई।

(vi) विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई।

प्रश्न : भारत में वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख करें।

उत्तर :

(1) लघु उद्यमी प्रतिस्पर्धा में ठहर नहीं पाये और अनेक लघु-उद्योग बन्द हो गये।

(2) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वर्चस्व। कई देशी कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने खरीद कर अपने में मिला लिया।

(3) चीन जैसे देशों से आयतित वस्तुओं का बाजार में अधिपत्य।

(4) लघु उद्योगों के बन्द होने से बेरोजगारी बढ़ी। बेरोजगार लोग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उद्योगों में प्रतिकूल स्थितियों में कार्य करने को विवश।

(5) विश्व मुद्रा बाजार में उथल-पुथल से भारतीय बाजार भी प्रभावित।

प्रश्न : प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?

उत्तर :

(1) प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप. उत्पादों की गुणवत्ता में निखार आया।

(2) इससे लोगों को अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की वस्तुएँ प्राप्त हुई।

(3) भारतीय कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुँचीं तथा उनकी आय में वृद्धि हुई।

(4) भारतीय कंपनियों को नवीन प्रौद्योगिकी का भी लाभ प्राप्त हुआ।

(5) कई भारतीय कंपनियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनी के रूप में स्थापित हुई।

(6) इससे राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि हुई तथा सरकार को लोक कल्याण के क्षेत्र में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ।

प्रश्न : विदेशी व्यापार का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर : विदेशी व्यापार का मुख्य उद्देश्य है, अपने देश में उत्पादित अधिशेष को विदेशों में पहुँचाना, जहाँ उसकी अधिक माँग है तथा अपने देश में जिस वस्तु की कमी है उसे विदेशों से आयात करना।

प्रश्न : ........ विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है।

उत्तर : विदेश व्यापार

प्रश्न : विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में किस प्रकार मदद करता है?

अथवा, विदेशी व्यापार का क्या लाभ होता है?

उत्तर :

(1) सभ्यताओं के प्रारंभ के समय से ही विदेशी व्यापार विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का महत्त्वपूर्ण साधन रहा है। विदेशी व्यापार उत्पादकों को घरेलू बाजारों से अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुँचने का एक अवसर प्रदान करता है।

(2) इस प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।

(3) विदेशी व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है तथा बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं।

(4) दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है।

(5) देश के उत्पादकों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलता है।

(6) विदेशी व्यापार के कारण बाजारों का विस्तार हो जाता है, जिससे अतिरिक्त उत्पादन को विदेशी मंडियों में आसानी से बेचा जा सकता है।

इस प्रकार, विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है।

प्रश्न: निवेश किसे कहते हैं?

उत्तर : भूमि, भवन, मशीनें और अन्य उपकरणों आदि परिसंपत्तियों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं।

प्रश्न : सरकारें अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने का प्रयास क्यों करती हैं?

उत्तर: सरकार के द्वारा विदेशी निवेश आकर्षित किये जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

(1) अधिक राजस्व की प्राप्ति

(2) देशी तकनीक का विकास

(3) स्थानीय कंपनियों के विकास का अवसर

(4) रोजगार के अवसरों में वृद्धि

(5) वैश्वीकरण को प्रोत्साहन।

प्रश्न: विदेशी निवेश से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा व्यापार के लिए परिसंपत्तियों, जैसे भूमि, भवन, मशीन तथा अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गयी मुद्रा को बिदेशी निवेश कहा जाता है।

विदेशी निवेश से देश की आय एवं रोजगार में वृद्धि होती है।

प्रश्न: विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर : विदेशी निवेश बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा परिसंपत्तियों, जैसे भूमि भवन, मशीन तथा अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गयी मुद्रा को विदेशी निवेश कहा जाता है।

सरकार अपने देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करतीं हैं क्योंकि इससे देश की आय एवं रोजगार में वृद्धि होती है।

विदेशी व्यापार : विदेशी व्यापार वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उत्पादित माल को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विक्रय के लिए पहुँचाया जाता है। इसके अन्तर्गत आयात एवं निर्यात दोनों ही होता है।

किसी भी देश का यह प्रयास होता है कि विदेशी व्यापार के अन्तर्गत निर्यात बढ़े और आयात कम हो। इससे विदेशी मुद्रा में वृद्धि होती है।

प्रश्न: भूमि, भवन, मशीन और उपकरणों की खरीद में व्यय की गयी मुद्रा को ........... कहते हैं।

उत्तर : निवेश

प्रश्न: बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अन्य देशों में किए गए निवेश को ............ कहते हैं।

उत्तर: विदेशी निवेश

प्रश्न: इंटरनेट से क्या लाभ हो रहा है?

उत्तर : इंटरनेट से लाभ इंटरनेट ने हमारे जीवन को अत्यंत सरल और सुविधाजनक बना दिया है। इंटरनेट के माध्यम से हम दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

इंटरनेट से संचार, शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, और सामाजिक संपर्क, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, और मनोरंजन भी इंटरनेट के माध्यम से सुलभऔर संभव हो गए हैं।

वस्तुनिष्ठ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर (MCQ)

• घरेलू अर्थव्यवस्था और विश्व अर्थव्यवस्था को जोड़ना कहलाता है-

(1) वैश्वीकरण

(2) राष्ट्रीयकरण

(3) उदारीकरण

(4) निजीकरण

• वैश्वीकरण ने प्रोत्साहित किया है-

(1) पूँजी प्रवाह

(2) विश्व बाजार में भारतीय श्रमिक प्रवाह

(3) पूँजी प्रवाह एवं श्रम प्रवाह

(4) इनमें से कोई नहीं

• कौन-सा संगठन विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश के उदारीकरण पर बल देता है?

(1) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

(2) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

(3) विश्व स्वास्थ्य संगठन

(4) विश्व व्यापार संगठन

• विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?

(1) 1991 ई.

(2) 1993 ई.

(3) 1992 ई.

(4) 1995 ई.

• वर्तमान में कितने देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं?

(1) 150

(2) 164

(3) 261

(4) 264

• विश्व की किस संस्था ने व्यापार और निवेश के उदारीकरण के लिए विकासशील देशों पर दबाव डाला है?

(1) विश्व व्यापार संगठन

(2) विश्व बैंक

(3) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

(4) इनमें से कोई नहीं

• भारत में विदेशी व्यापार और निवेश पर बाधाओं को हटाने के लिए सरकार ने किस वर्ष निर्णय लिया? या, नयी आर्थिक नीति कब बनी?

(1) 1993

(2) 1992

(3) 1991

(4) 1990

• वैश्वीकरण की शुरुआत किस वित्त मंत्री द्वारा किया गया?

(1) डॉ. मनमोहन सिंह

(2) पी. चिदंबरम

(3) यशवंत सिन्हा

(4) जसवंत सिंह

• सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?

(1) वैश्वीकरण

(2) निजीकरण

(3) राष्ट्रवाद

(4) उदारीकरण

• निम्नलिखित में से कौन विदेशी व्यापार पर एक 'अवरोध' है?

(1) आयात पर कर

(2) गुणवत्ता नियंत्रण

(3) सेल्स टैक्स

(4) स्थानीय व्यापार पर कर

• घरेलू बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश किनके लिए हानिकारक हो सकती है -

(1) बड़े पैमाने पर निर्माता

(2) सभी घरेलू उत्पादक

(3) घटिया घरेलू उत्पादक

(4) सभी छोटे पैमाने के उत्पादक

• निम्न में से किसको वैश्वीकरण में सबसे कम लाभ हुआ है?

(1) कृषि क्षेत्र

(2) सेवा क्षेत्र

(3) द्वितीय क्षेत्र

(4) उद्योग

• विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्माता कम्पनी कौन हैं?

(1) टाटा मोटर

(2) सुजूकी

(3) फोर्ड मोटर्स

(4) इनमें से कोई नहीं

• फोर्ड मोटर किस देश की कंपनी है?

(1) भारत

(2) जापान

(3) अमेरिका

(4) चीन

• वैश्वीकरण अब तक किस प्रकार के देशों के पक्ष में अधिक रहा है :

(1) विकसित देश

(2) विकासशील देश

(3) गरीब देश

(4) इनमें कोई नहीं

• वैश्वीकरण ने जीवन स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई है?

(1) सभी लोगों के

(2) विकसित देशों के श्रमिकों के

(3) विकासशील देशों के श्रमिकों के

(4) उपर्युक्त में से कोई नहीं

• बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ......... देशों में उत्पादन पर नियंत्रण होता है। (1) केवल एक (2) एक

(1) केवल एक

(2) एक

(3) एक से अधिक

(4) किसी भी देश में नहीं

• सामान्यतः बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं -

(1) जो बाजार के नजदीक हो

(2) जहाँ कम लागत पर अच्छे श्रमिक उपलब्ध हो

(3) उत्पादन के अन्य कारक उपलब्ध हों

(4) उपर्युक्त सभी

• वैश्वीकरण के विगत दो दशकों में द्रुत आवागमन देखा गया है -

(1) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और लोगों का

(2) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों का

(3) देशों के बीच वस्तुओं, निवेशों और लोगों का

• विश्व के देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश का सबसे अधिक सामान्य मार्ग है -

(1) नये कारखानों की स्थापना

(2) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना

(3) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना

• विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में निम्न में कौन सहायक होता है?

(1) बैंक

(2) विदेशी व्यापार

(3) उद्योग

(4) कृषि

• बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा परिसंपत्तियों जैसे भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गयी मुद्रा को क्या कहते है?

(1) बचत

(2) निवेश

(3) नियंत्रण

(4) व्यापार

5. उपभोक्ता अधिकार

विषयनिष्ठ (Subjective) प्रश्नोत्तर

प्रश्न : वे कौन-से तरीके हैं जिनके द्वारा बाजार में लोगों का शोषण हो सकता है?

उत्तर : उपभोक्ताओं के शोषण के विभिन्न तरीके -

(1) विक्रेता द्वारा उचित वजन से कम तौलना

(2) नकली या घटिया सामान देना

(3) वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य से अधिक कीमत वसूलना

(4) ऐसे गुप्त या छुपी हुई मदों को कीमत में जोड़ना, जिनका उल्लेख नहीं किया गया हो

(5) वस्तुओं में मिलावट करना

(6) वस्तुओं के बारे में गलत या अधूरी जानकारी देना

(7) गारंटीवाली वस्तुओं को सही समय पर सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराना

(8) बढ़-चढ़कर भ्रमित करने वाले विज्ञापन करना

(9) विक्रय के उप्रान्त सन्तोषजनक सेवाएँ नहीं देना।

(10) उपभोक्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करना।

प्रश्न : कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।

उत्तर : उपभोक्ता के शोषण हेतु निम्नलिखित कारक जिम्मेदार हैं -

(1) उपभोक्ता की अज्ञानता, अशिक्षा तथा लापरवाही उपभोक्ताओं के शोषण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है।

(2) आज भी अधिकांश उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों एवं अधिनियमों की जानकारी नहीं है जिससे उनक शोषण होता है।

(3) उपभोक्ता संरक्षण से सम्बन्धित नियम एवं विनियमों का भी सही क्रियान्वयन नहीं किया जाता है तथा प्रायः इनकी प्रक्रिया भी लम्बी होती है अतः उपभोक्ता अपील करने में रुचि नहीं रखते।

प्रश्न : दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।

अथवा, उपभोक्ता जागरूकता क्यों आवश्यक हैं?

उत्तर : अनेक उदाहरण हैं जिनमें उत्पादक तथा विक्रेता उपभोक्ताओं का कई प्रकार से शोषण कर रहे हैं। जैसे - आज भी अनेक दुकानदार तथा विक्रेता अपने उपभोक्ताओं को खराव, कम वजन की वस्तुएँ तथा अप्रमाणित वस्तुएँ बेच देते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य एवं धन का नुकसान होता है।

आज भी हम अखबार में कई नीम-हकीमों के विज्ञापन देखते हैं जो लोगों को भ्रमित करने हेतु कई असंभव दावे करते हैं जो वास्तव में चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से संभव नहीं हैं।

ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं को जागरूक बनाना निम्न कारणों से अत्यन्त आवश्यक है -

(i) उपभोक्ता की सुरक्षा के लिए सिर्फ नियमों एवं विनियमों का निर्माण ही काफी नहीं है बल्कि, इन नियमों के प्रति उपभोक्ता को जागरूक भी रहना चाहिए, तभी उसकी सुरक्षा वास्तविक रूप से हो सकती है।

(ii) उपभोक्ता जागरूकता से उत्पादकों तथा विक्रेताओं द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण पर लगाम लगायी जा सकती है। माप-तौल में गड़बड़ी, गलत सामान या गलत सूचना देकर सामान बेचने की स्थिति में उपभोक्ता को अपने यथोचित अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए।

(iii) उपभोक्ता के जागरूक होने से ही उपभोक्ता सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा तथा विक्रेताओं के अनैतिक एवं अनुचित व्यवस्था शैली पर रोक लगेगी।

प्रश्न : 'विश्व उपभोक्ता दिवस' कब मनाया जाता है?

उत्तर : विश्व उपभोक्ता दिवस प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को मनाया जाता है।

प्रश्न : भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की प्रगति की समीक्षा करें।

अथवा, भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई?

अथवा, भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरूआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।

उत्तर : उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत एवं उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम-1986 के निर्माण की आवश्यकता निम्नांकित कारणों से पड़ी -

(1) उत्पादकों तथा विक्रेताओं द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध उपभोक्ताओं का असंतोष।

(2) उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए सरकारी स्तर पर कानूनी व्यवस्था एवं संस्थाओं का अभाव।

(3) विक्रेताओं द्वारा जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट आदि अनैतिक एवं अनुचित व्यावसायिक कार्यों के विरुद्ध व्यापक जनाक्रोश।

इन कारणों को लेकर भारत में 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ तथा 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहद् स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकार से सम्बन्धित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने कई उपभोक्ता दलों का निर्माण किया जिनकी संख्या में निरन्तर वृद्धि होती गई।

अन्ततः उपभोक्ता आन्दोलन के फलस्वरूप सरकार ने 1986 में उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु सबये महत्वपूर्ण 'उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986' कानून बनाया जो COPRA के नाम से विख्यात है। भारत में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के तहत उपभोक्ता अदालतों का गठन किया गया।

आज देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं किन्तु उनमें से मात्र 20-25 ही पूर्ण संगठित एवं मान्यता प्राप्त हैं। अभी भी लोगों को उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के सम्बन्ध में पूरी जानकारी का अभाव है।

प्रश्न : बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।

उत्तर : बाजार में उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने हेतु विभिन्न नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता होती है क्योंकि

(1) प्रायः देखा जाता है कि विभिन्न नियोक्ता एवं उत्पादकों द्वारा श्रमिकों का शोषण किया जाता है। विक्रेताओं तथा दुकानदारों द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है। अतः उपभोक्ताओं, श्रमिकों आदि को शोषण से बचाने के लिए नियम एवं विनियमों की आवश्यकता होती है।

(2) अधिकतर बड़ी कम्पनियाँ बाजार की क्रियाओं का उल्लंघन करती हैं। उदाहरण के लिए एक कम्पनी ने दावा किया कि उनका डिब्बाबन्द दूध का पाउडर माता के दूध से बेहतर है। यह सफेद झूठ है। अतः ऐसे विज्ञापनों से उपभोक्ता को बचाने के लिए नियम एवं विनियम आवश्यक हैं।

प्रश्न : उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम-1986 के निर्माण की आवश्यकता क्यों पड़ी?

अथवा, उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1986 क्यों बनाया गया?

उत्तर : उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम-1986 के निर्माण की आवश्यकता निम्नांकित कारणों से पड़ी -

(1) उत्पादकों तथा विक्रेताओं द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण को रोकना।

(2) उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए सरकारी स्तर पर कानूनी संस्थाओं का अभाव दूर करना।

(3) उपभोक्ता आंदोलनों का दबाव।

(4) उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करना तथा विक्रेताओं के अनैतिक एवं अनुचित व्यवस्था शैली पर रोक लगाना।

प्रश्न : उपभोक्ता के किन्हीं चार अधिकारों के नाम बताएँ।

उत्तर : (i) चुनाव का अधिकार

(ii) सूचना पाने का अधिकार

(iii) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार

(iv) प्रतिनिधित्व का अधिकार

प्रश्न : उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।

अथवा, उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1986 में दिये गये उपभोक्ताओं के अधिकारों का वर्णन करें।

उत्तर : उपभोक्ताओं के अधिकार -

(1) सूचना पाने का अधिकार : उपभोक्ता को खरीदी गयी वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में सूचना पाने का अधिकार है। यह सूचना उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, निर्माण की तारीख, खराब होने की तारीख, बैच संख्या, उत्पादक के पते के बारे में होती है।

(2) चुनने का अधिकार : उपभोक्ता को अपनी इच्छानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदने का अधिकार होता है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि कई बार ग्राहकों को उन वस्तुओं को खरीदने के लिए भी दबाव डाला जाता है। जिनको खरीदने की इच्छा उन्हें नहीं होती। जैसे विक्रेता द्वारा, गैस कनेक्शन लेने पर गैस चूल्हा भी लेने के लिए ग्राहक पर दबाव डालना। यह ग्राहक के चुनने के अधिकार का उल्लंघन हैं।

(3) सुरक्षा का अधिकार : कुछ वस्तुएँ गंभीर आघात पहुँचा सकती हैं, जैसे प्रेशर कुकर, गैस सिलिंडर, विद्युत की वस्तुएँ आदि। यदि इन वस्तुओं में कोई भी निर्माण की खराबी पाई जाती है तो उपभोक्ता के पास इन घातक खतरों के विरुद्ध संरक्षण के अधिकार प्राप्त हैं।

(4) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार : उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है। उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित अदालतों में क्षतिपूर्ति संबंधित मामलों की सुनवाई की जाती है।

(5) प्रतिनिधित्व का अधिकार : उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम उपभोक्ता को उपभोक्ता अदालत में प्रतिनिधित्व का अधिकार प्रदान करता है। कई स्वयंसेवी संगठन, उपभोक्ता अदालत में, उपभोक्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें उपभोक्ता संरक्षण परिषद् महत्त्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न : बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।

उत्तर : उपभोक्ता के कर्तव्य -

(1) उपभोक्ता को अपने अधिकारों की जानकारी रखनी चाहिए और उसके प्रति सचेत रहना चाहिए।

(2) कोई भी वस्तु या सेवा खरीदते समय उसकी गुणवत्ता के बारे में अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। वस्तु या सेवा से सम्बन्धित सभी शर्तों को ध्यान से पढ़ कर जान लेना चाहिए।

(3) वस्तु अथवा सेवा की कीमत, उत्पादन तिथि, समाप्ति तिथि, कम्पनी, ट्रेडमार्क आदि की पूरी जानकारी लेनी चाहिए।

(4) उपभोक्ता को I.S.I मार्क वाली वस्तुओं तथा एगमार्क लगे खाद्य पदार्थों को ही खरीदना चाहिए।

(5) खरीदी गयी वस्तु की रसीद अवश्य लेनी चाहिए।

(6) वस्तु या सेवा की गारन्टी अथवा वारन्टी की पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए।

(7) खरीदने के क्रम में यदि उसके अधिकारों का उल्लंघन होता है तो अदालत में अवश्य जाना चाहिए।

प्रश्न : 'उपभोक्ता सुरक्षा' से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : बाजार में दुकानदारों द्वारा, उपभोक्ताओं का शोषण विभिन्न तरीकों से किया जाता है, जैसे-कम तौलना, मिलावटी वस्तु बेचना, ऐसे शुल्कों को जोड़ना जिनका उल्लेख पहले नहीं किया गया हो, मूल्य से अधिक लेना, गलत जानकारी देना आदि। इस प्रकार के शोषण से, उपभोक्ताओं के बचाव को 'उपभोक्ता संरक्षण' के नाम से जाना जाता है। उपभोक्ता सुरक्षा में शोषण के शिकार उपभोक्ता को क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार भी शामिल है।

प्रश्न : उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए सरकार की क्या भूमिका होनी चाहिए?

उत्तर : उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु सरकार को उपभोक्ता सम्बन्धी कानूनों का व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहिए तथा उपभोक्ता कानूनों का कड़ाई से पालन करवाने का प्रयास करना चाहिए।

सरकार उत्पादकों के लिए यह अनिवार्य करे कि प्रत्येक उत्पाद पर कीमत, निर्माण तिथि, प्रयोग की अन्तिम तिथि, गारण्टी/वारण्टी अवधि, उत्पाद के गुण, उत्पादक का नाम, पता तथा टेलीफोन नम्बर भी हो।

प्रश्न: उपभोक्ता संरक्षण परिषद् एवं उपभोक्ता अदालत में क्या अंतर है?

उत्तर : उपभोक्ता संरक्षण परिषद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार केन्द्रीय, राज्य तथा जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद् का गठन किया जाता है। केन्द्रीय स्तर पर केन्द्र के उपभोक्ता मामलों के मंत्री, राज्य में राज्य के उपभोक्ता मामलों के मंत्री तथा जिला स्तर पर जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में इनका गठन किया जाता है। इनमें सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों तरह के सदस्य होते हैं। ये परिषदें विभिन्न तरीकों से उपभोक्ता के हितों की रक्षा का कार्य करती हैं।

उपभोक्ता अदालत: उपभोक्ता विवादों के निपटारे हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है। इन्हें जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर 'उपभोक्ता अदालत' कहा जाता है।

प्रश्न : उपभोक्ता संरक्षण परिषद् उपभोक्ताओं की किस प्रकार मदद करता है? किन्हीं तीन तरीकों का उल्लेख करें।

उत्तर : उपभोक्ता संरक्षण परिषद् निम्नलिखित तरीकों से उपभोक्ताओं की मदद करता है -

(1) उपभोक्ता संरक्षण परिषद् उपभोक्ताओं जागरूक करने और उनके संरक्षण का कार्य करती हैं।

(2) ये उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराएँ।

(3) अनेक अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष (उपभोक्ता) का प्रतिनिधित्व भी करती हैं।

प्रश्न : जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता न्यायालयों के नाम बताएँ।

उत्तर :

जिला : जिला फोरम।

राज्य : राज्य उपभोक्ता कमीशन।

राष्ट्रीय : राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन।

प्रश्न: उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के तहत स्थापित त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : उपभोक्ता सरक्षा अधिनियम के तहत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र स्थापित किया गया है।

जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है।

राज्य स्तरीय अदालत 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के मुकदमे देखती है।

राष्ट्रीय स्तर की अदालत 1 करोड़ से ऊपर के मुकदमे देखती है।

यदि कोई मुकदमा जिला स्तर से खारिज कर दिया जाता है तो उसकी अपील राज्य स्तर पर तथा उसके पश्चात् राष्ट्रीय स्तर पर अपील की जा सकती है।

प्रश्न : भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए?

उत्तर : भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा, निम्नांकित कानूनी मानदंडों को लागू किये जाने की आवश्यकता है -

(1) उपभोक्ताओं के 'सूचना प्राप्त करने के अधिकार' को कानूनी अधिकार बनाना

(2) उपभोक्ता अदालतों की संख्या में वृद्धि करना तथा उनके कार्यों को सरल बनाना

(3) विक्रेताओं के लिए 'ISI मार्क' तथा 'एगमार्क' का प्रयोग अनिवार्य घोषित करना

(4) क्षतिपूर्ति से संबंधित मामलों का त्वरित निष्पादन करना

(5) उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति सचेत एवं जागरूक बनाना।

वस्तुनिष्ठ बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर (MCQ)

भारत का राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस किस तिथि को मनाया जाता है?

(1) 15 अगस्त

(2) 24 दिसंबर

(3) 26 जनवरी

(4) 5 जून

अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है?

(1) 17 मार्च

(2) 15 मार्च

(3) 19 अप्रैल

(4) 22 अप्रैल

बाजार में उपभोक्ता का शोषण किन रूप में होता है?

(1) अनुचित व्यापार

(2) कम वजन

(3) शुल्कों का जोड़

(4) उपर्युक्त सभी

1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय निम्न में से किन कारणों से हुआ?

(1) अत्यधिक खाद्य की कमी

(2) खाद्यात्रों की जमाखोरी एवं कालाबाजारी

(3) खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेलों में मिलावट

(4) इनमें से सभी

उपभोक्ता शोषण के प्रमुख कारण हैं -

(1) सूचना का अभाव

(2) वस्तुओं की सीमित आपूति

(3) उपभोक्ताओं की अज्ञानता

(4) इनमें सभी

खुद को बचाने के लिए उपभोक्ताओं में क्या होना चाहिए?

(1) उपभोक्ता मंच

(2) उपभोक्ता संरक्षण परिषदें

(3) उपभोक्ता आंदोलन

(4) उपभोक्ता जागरूकता

भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (COPRA) की घोषणा कब हुई?

(1) 1986

(2) 1980

(3) 1987

(4) 1988

उपभोक्ता सुरक्षा कानून, 1986 के अनुसार, उपभोक्ताओं को निम्न में से कौन-से अधिकार प्रदान किए गए हैं?

(1) सुरक्षा का अधिकार

(2) सुनवाई का अधिकार

(3) सूचना का अधिकार

(4) इनमें से सभी

वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सा कानून लागू किया गया था?

(1) सूचना का अधिकार अधिनियम

(2) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

(3) शिक्षा का अधिकार अधिनियम

(4) संपत्ति का अधिकार अधिनियम

उत्पादक के घटकों की विस्तृत जानकारी निम्न में से किसके द्वारा सुनिश्चित की जाती है।

(1) सुरक्षा पाने का अधिकार

(2) सूचना पाने का अधिकार

(3) प्रतिनिधित्व का अधिकार

(4) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार

कोपरा का अर्थ किससे है?

(1) सभी के लिए समान कार्यक्रम

(2) भ्रष्टाचार रोकथाम करने वाला प्राधिकरण

(3) उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम

(4) सभी उपभोक्ताओं का संरक्षण

उपभोक्ता जागरण के लिए भारत सरकार का सबसे प्रचलित नारा है?

(1) 'जागो ग्राहक जागो'

(2) 'धोखाधड़ी से बचो'

(3) 'सजग उपभोक्ता बनो'

(4) 'अपने अधिकारों को पहचानो'

जिला स्तर की अदालतों में कितनी राशि तक के मुकदमों की सुनवाई होती है?

(1) 10 लाख रुपये तक

(2) 20 लाख रुपये तक

(3) 1 करोड़ रुपये तक

(4) 1 करोड़ रुपये से अधिक

यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य 20 लाख रुपये से अधिक तथा 1 करोड़ रुपये से कम है, तो उपभोक्ता कहाँ शिकायत करेगा?

(1) जिला अदालत

(2) राज्य आयोग

(3) राष्ट्रीय आयोग

(4) इनमें कोई नहीं

उपभोक्ता द्वारा शिकायत करने के लिए आवेदन शुल्क कितना लगता है?

(1) 50 रु०

(2) 70 रु०

(3) 10 रु०

(4) कोई शुल्क नहीं

निम्नलिखित में से कौन नियमों और विनियमों के माध्यम से बाजार में संरक्षित है?

(1) दुकानदार

(2) उत्पादक

(3) उपभोक्ता

(4) आपूर्तिकर्ता

आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत कौन जानकारी प्राप्त कर सकता है?

(1) व्यक्तियों का समूह

(2) कोई भी नागरिक

(3) एक पंजीकृत कंपनी

(4) एक संघ / समाज

भारत सरकार ने सूचना का अधिकार (RTI) नामक कानून कब लागू किया?

(1) अक्टूबर 2005

(2) अगस्त 2006

(3) जनवरी 2005

(4) नवम्बर 2007

सूचना का अधिकार किस प्रकार का अधिकार है?

(1) वैधानिक

(2) ऐच्छिक

(3) धार्मिक

(4) परम्परागत

निम्नलिखित में से कौन सार्वजनिक सेवाओं के अंतर्गत आता है?

(1) डाक सेवाएँ

(2) मोबाइल मरम्मत सेवाएँ

(3) वॉशिंग मशीन बिक्री के बाद सेवाएँ

(4) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उपभोक्ता आंदोलन कब प्रारम्भ हुआ?

(1) 1950

(2) 1951

(3) 1960

(4) 1965

उपभोक्ता जागरूकता आन्दोलन का प्रारंभ हुआ-

(1) अमेरिका में

(2) फ्रांस में

(3) इंगलैण्ड में

(4) जर्मनी में

उपभोक्ता आन्दोलन के प्रवर्तक माने जाते हैं.-

(1) राष्ट्रपति रूजवेल्ट

(2) प्रो० मोहम्मद युनूस

(3) रॉल्फ नादर

(4) डॉ० कलाम

उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम किस देश में हुई?

(1) जर्मनी

(2) रूस

(3) इंग्लैंड

(4) संयुक्त राज्य अमेरिका

संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए दिशा-निर्देशों को कब अपनाया?

(1) 1983

(2) 1984

(3) 1985

(4) 1986

उपभोक्ता कल्याण संगठन के विश्व स्तरीय संस्थान को कहते है?

(1) उपभोक्ता इंटरनेशनल

(2) जिला उपभोक्ता न्यायालय

(3) कोपरा

(4) संयुक्त राष्ट्र

एक उत्पाद पर MRP का अर्थ है :

(1) न्यूनतम खुदरा मूल्य

(2) अधिकतम खुदरा मूल्य

(3) सूक्ष्म खुदरा मूल्य

(4) उपरोक्त में से कोई नहीं

वह संगठन जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादों के मानक तय करता है, उसे कहा जाता है:

(1) ISI

(2) ISRO

(3) ISO

(4) WCF

निम्नलिखित में से कौन-सा भारत में मानकीकरण प्रमाण-पत्र प्रदान नहीं करता है?

(1) आईएसआई

(2) एगमार्क

(3) हॉलमार्क

(4) कोपरा

सोने के आभूषण की शुद्धता की पहचान किस चिह्न से की जाती है?

(1) ट्रेड मार्क

(2) हॉल मार्क

(3) एगमार्क

(4) उल मार्क

हालमार्क किस प्रकार की वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रमाणक चिह्न है?

(1) खाद्य तेल

(2) हेलमेट

(3) आभूषण

(4) कपड़ा

वह प्रक्रिया जिसमें किसी खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता को किसी अन्य पदार्थ की मिलावट के माध्यम से कम किया जाता है :

(1) दो पदार्थों का मिश्रण

(2) मिलावट

(3) उप-मानक गुणवत्ता

(4) उपर्युक्त सभी

खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता हेतु किस निशान का प्रयोग किया जाता है?

(1) WCF

(2) ISI

(3) ISO

(4) एगमार्क

शहद खरीदते समय हमें कौन-सा निशान देखना चाहिए?

(1) ISI

(2) WCF

(3) एगमार्क

(4) ISO

ISI शब्द चिह्न (लोगो) देखा जा सकता है -

(1) सोने के आभूषणों पर

(2) खाद्य तेलों पर

(3) अनाजों पर

(4) बिजली के सामान पर

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इतिहास

भारत और समकालीन विश्व- 2

1.

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

2.

भारत में राष्ट्रवाद

3.

भूमंडलीकृत विश्व का बनना

4.

औद्योगीकरण का युग

5.

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

भूगोल

समकालीन भारत- 2

1.

संसाधन और विकास

2.

वन एवं वन्य जीव संसाधन

3.

जल संसाधन

4.

कृषि

5.

खनिज तथा उर्जा संसाधन

6.

विनिर्माण उद्योग

7.

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

नागरिक शास्त्र

लोकतांत्रिक राजनीति-2

1.

सत्ता की साझेदारी

2.

संघवाद

3.

लोकतंत्र और विविधता

4.

जाति, धर्म और लैंगिक मसले

5.

जन-संघर्ष और आंदोलन

6.

राजनीतिक दल

7.

लोकतंत्र के परिणाम

8.

लोकतंत्र के चुनौतियाँ

अर्थशास्त्र

आर्थिक विकास की समझ

1.

विकास

2.

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

3.

मुद्रा और साख

4.

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

5

उपभोक्ता अधिकार

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