झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021 2022)
मॉडल
प्रश्न पत्र सेट - (3)
कक्षा-9 |
विषय - हिन्दी (ए) |
समय- 1 घंटा 30 पूर्णांक 40 मिनट |
पूर्णांक-40 |
सामान्य
निर्देश:-
→
परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा शैली में उत्तर दें |
→ इस
प्रश्न पत्र के तीन खण्ड हैं | सभी खण्ड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य
→ सभी
प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
→ प्रश्नों
के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें|
→
2 अंक के प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में, 3 अंक के प्रश्नों के उत्तर लगभग 50 शब्दों में, 5 अंक के प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 शब्दों में
एवं 6 अंक के प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों मे दें।
खंड - क (अपठित बोध)
नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए। 3 X 2 = 6
संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है। कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दो महत्वपूर्ण तथ्य स्मरणीय है - प्रत्येक समस्या अपने साथ संघर्ष लेकर आती है और प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। एक अध्यापक ने विद्यालय छोड़ने वाले अपने छात्रों को यह संदेशा दिया था - तुम्हें जीवन में सफल होने के लिए समस्याओं से संघर्ष करना होगा। सफलता हमें कभी निराश नहीं करेगी। समस्त ग्रंथों और महापुरूषों के अनुभवों का निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है। आप जागिए, उठिए दृढ़ संकल्प और उत्साह एवं साहस के साथ संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़िए और अपने जीवन के विकास की बाधा रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कीजिए।
प्रश्न - 1 संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़ने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर: संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़ने के लिए दृढ़ संकल्प, उत्साह एवं साहस आवश्यक है ।
प्रश्न - 2 समस्त ग्रंथों और अनुभवों का क्या निष्कर्ष है ?
उत्तर: समस्त ग्रंथों और महापुरुषों के अनुभवों का निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है।
प्रश्न- 3 (क) "मानवीय" शब्द से प्रत्यय अलग करें।
उत्तर: मानव (मूल शब्द) + ईय (प्रत्यय)
(ख) "विजय" का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर: पराजय ।
अथवा
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखें
साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं ?
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं ?
हैं, हमीं प्रकम्पित कर चुके सुरपति का भी हृदय
फिर एक बार हे विश्व तुम, गाओ भारत की विजय
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके
सदा हमें पैरों द्वारा ।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।
बस युद्ध मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय !
फिर एक बार हे विश्व ! तुम गाओं भारत की विजय !
प्रश्न - 1 इतिहास किस बल का गवाह है ?
उत्तर: इतिहास गवाह है कि हमारा भारत देश हमेशा से ही जाग्रत रहा है। जब भी आवश्यकता हुई है हमारे देश के वीरों ने जान की बाजी लगाने में पहल की है।
प्रश्न - 2 कवि विश्व के लोगों से क्या आह्वान कर रहे हैं और क्यों ?
उत्तर: कवि विश्व के लोगों से आह्वान कर रहे हैं कि भारत की विजय पर विश्व गीत गाओ। विश्व में ऐसा कौन है जो हमसे नहीं हारा, हम भारतवासियों का प्रकाश सर्वत्र फैला है इसलिए विश्व गीत गाओ।
प्रश्न - 3 (क) "भारतीय" शब्द से प्रत्यय अलग करें।
उत्तर: भारत (मूल शब्द) + ईय (प्रत्यय)
(ख) "शत्रु" का पर्यायवाची शब्द लिखें।
उत्तर: दुश्मन।
खण्ड ख (पाठ्य पुस्तक) 4X3 = 12
प्रश्न-4 निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
(क) सर टॉमस 'हे' के मैना पर दया-भाव के क्या कारण थे?
उत्तर: पहले तो सर टॉमस 'हे' नाना के महल को तोड़ना चाहते थे, पर बाद में वे नाना की पुत्री मैना पर दया भाव दिखाने लगे। इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किए। इसका कारण यही था कि मैना उनकी मृत पुत्री मेरी की सहेली थी। उसका मैना के साथ प्रेम संबंध था। मेरी उस मकान में आती-जाती रहती थी। खुद 'हे' भी वहाँ बराबर आते थे। वे मैना को अपनी पुत्री के समान प्यार करते थे। मैना के पास अभी तक मेरी के हाथ से लिखी चिट्ठी सुरक्षित थी। इन सब बातों से जनरल 'हे' भावुक हो उठे होंगे और उन्होंने मैना पर दया भाव दिखाने का निश्चय किया होगा |
(ख) लेखिका महादेवी वर्मा के बचपन के समय लड़कियों के प्रति समाज की सोच कैसी थी ? मेरे बचपन के दिन पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लड़कियों के जन्म के संबंध आज परिस्थितियाँ काफी बदल चुकीं हैं। आज लड़कियों व लड़कों में सामाजिक-पारिवारिक अंतर नहीं किया जाता। उन्हें ज्ञान प्राप्ति के समान अधिकार प्रदान किए जाते हैं। रोजगार के उचित अवसर प्रदान किए जाते हैं। आज लड़कियाँ किसी भी कार्य में लड़कों से पीछे नहीं । वह उनके कंधे से कंधा मिलाकर समाज व देश की प्रगति में सहयोग दे रही हैं । लेखिका का उपर्युक्त कथन इस बात को प्रमाणित करता है कि आज लड़की के जन्म पर उसकी हत्या न करके उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रयास के लिए हम उन्मुख होते हैं ।
(ग) एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार हैं?
उत्तर: एक लकुटी (लाठी) और कम्बल (छोटा कंबल) पर कवि रसखान जी तीन लोकों का राज्य वैभव भी न्यौछावर करने को तैयार हैं, क्योंकि वह लाठी ग्वाले और चरवाहे के रूप में सदैव ही कृष्ण के कर कमलों में रहती है, दूसरी ओर कम्बल भी कृष्ण के कंधों पर ही दिखाई देता है। श्रीकृष्ण द्वारा प्रयुक्त दोनों ही वस्तुओं से कवि का विशेष लगाव है।
(घ) अर्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है?
उत्तर: अर्द्ध-रात्रि में कोयल की चीख से कवि को अंदेशा है कि भारत में क्रांति का आह्वान हो गया है। देश अपनी गुलामी से मुक्त होने के लिए तत्पर हो रहा है।
(ड.) 'मेघ आए' कविता में बादलों को किसके समान बताया गया है?
उत्तर: 'मेघ आए' कविता में क़वि सर्वेश्वर दयाल ने बताया है कि आकाश में बादल अपने नये रंग-रूप के साथ इस प्रकार छा गए हैं जैसे कोई शहरी दामाद बड़ा सज-धजकर अपनी ससुराल जाता है। मेघ रूपी मेहमान के आने पर पूरा गाँव उल्लास से भर उठता है। ठण्डी हवा मेहमान के आगे नाचती- गाती हुई चलती है। सभी ग्रामीणों ने पाहुन के दर्शन करने के लिए खिड़की-दरवाजे खोल लिए हैं। पेड़ एड़ियाँ उठा उठा कर उसे देख रहे हैं। नदी तिरछी नजरों से मेघं की सज-धज को देख रही है और हैरान हो रही है। गाँव के पुराने पीपल ने मानो झुककर अभिवादन किया हो । लता संकोच के मारे दरवाजे की ओट में सिकुड़ गई है। तालाब मेहमान के चरण पखारने के लिए पानी लेकर आता है। ऊँचें भवनों पर लोग खड़े हैं। बिजली भी चमकने लगी। इस तरह सम्पूर्ण गाँव खुशी से झूम उठा।
(च) बच्चों को किस समय और कहाँ जाते हुए देखकर कवि को पीड़ा हुई है? बच्चे काम पर जा रहें है कविता के आलोक में लिखिए।
उत्तर: कवि की पीड़ा यह है कि इन बच्चों का बचपन जबरदस्ती छीना जा रहा है। इन्हें खेलने और पढ़ने का अवसर नहीं दिया जा रहा है और काम पर जाने को विवश किया जा रहा है। कवि बच्चों के काम पर जाने के कारण चिंतित है। उसे लगता है कि बच्चों को खेल-कूद और पढ़ाई-लिखाई में मस्त रहना चाहिए । बचपन अपने सुख और विकास के लिए होता है। बच्चों पर रोजी-रोटी कमाने का बोझ नहीं डालना चाहिए।
प्रश्न- 5 निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 2X3 = 6
(क) गोपाल प्रसाद ऐसा क्यों चाहते थे कि उनकी बहू ज्यादा से ज्यादा दसवीं ही पास हो ?
उत्तर: गोपाल प्रसाद स्वयं उच्च शिक्षित थे। वे वकालत के पेशे से जुड़े थे। उनका बेटा शंकर मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था। इसके बाद भी वे चाहते थे कि उनकी बहू ज्यादा से ज्यादा दसवीं ही पास हो। उनकी ऐसी चाहत के पीछे यह सोच रही होगी कि उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ अधिक जागरूक होती हैं। इससे वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होती हैं। उनमें सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। ऐसी लड़कियों को बहू बनाने से उन पर अत्याचार नहीं किया जा सकता, उन्हें डरवाया नहीं जा सकता और अपने ऊपर हुए अत्याचार पर मुँह बंद नहीं रखती हैं।
(ख) अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार व्यवहार की अपेक्षा कर रहें हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
उत्तर: अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप अपनी बेटी उमा से इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे थे कि वह सीधी-सादी, चुप रहने वाली, कम पढ़ी-लिखी लगने वाली लड़की की तरह व्यवहार करें। उनका ऐसा सोचना उचित नहीं है। लडकी कोई भेड़-बकरी या. मेज-कुर्सी नहीं है। उसका भी दिल होता है। उसका उच्च शिक्षा पाना कोई अपराध नहीं है। वह पढ़ी-लिखी लड़की जैसा ही व्यवहार करेगी।
(ग) भूख तो अपने में एक साग होती है- ऐसा किसने कब और क्यों कहा?
उत्तर: "भूख तो अपने में एक साग होती है" का आशय यह है कि यदि भूख लगी हो और सामने रोटियाँ हों तो व्यक्ति साग होने, न होने की परवाह नहीं करता है बल्कि खाना शुरू कर देता है। भूख उसे सूखी रोटियाँ खाने पर विवश कर देती है। उक्त वाक्य घर की मालकिन ने तब कहा जब माटी वाली उनकी दी हुई एक रोटी को चबा-चबाकर चाय के साथ गले के नीचे उतार रही थी। माटी वाली ने मालकिन से कहा कि चाय तो बहुत अच्छा साग बन जाती है, ठकुराइन जी ! तब यह बात उन्होंने कही थी क्योंकि उन्होंने बुढ़िया को चाय देने से पहले सूखी रोटियाँ चबाते हुए देख लिया था ।
खण्ड-ग (रचना)
प्रश्न-6- अपने प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अपना मासिक शुल्क कम कराने की प्रार्थना कीजिए । 1X5=5
उत्तर: सेवा में,
प्रधानाचार्य
उच्च विद्यालय, चतरा
दिनांक- 15.03.2022
विषय- मासिक शुल्क कम कराने के लिए प्रार्थना पत्र |
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं एक निर्धन परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिताजी की कपड़े की एक छोटी-सी दुकान है जिससे इतनी आमदनी नहीं हो पाती कि परिवार का भरण-पोषण सुचारु रूप से हो सके। मेरे पिताजी मेरी पढ़ाई- लिखाई के बोझ को उठाने में असमर्थ हैं।
मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे मासिक शुल्क कम करने की कृपा करें जिससे मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ । मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाता हूँ कि अपने आचरण और पठन-पाठन में आपको किसी शिकायत का मौका न दूँगा ।
धन्यवाद ।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
राकेश
नवमीं कक्षा
अथवा
झारखण्ड के किसी ऐतिहासिक स्थल का वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।
उत्तर: राँची
दिनांक- 20 मई, 2022
प्रिय रवि, सप्रेम नमस्ते ।
अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुमलोग स्वस्थ एवं प्रसन्न हो। हमलोग भी यहाँ सकुशल हैं। तुमने झारखण्ड के किसी ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट की है। मैं इसी सन्दर्भ में तुम्हें बताने जा रहा हूँ। राँची शहर से मात्र 10 कि०मी० दूरी पर प्रकृति के सुन्दर वातावरण में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्वामी जगन्नाथ जी का प्राचीन मंदिर अवस्थित है। यह मंदिर यहाँ के राजा शाहदेव जी द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। यह प्राचीन मंदिर झारखण्ड की धरोहर हैं। प्रतिदिन यहाँ दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता है। पहाड़ी पर मंदिर पास खड़ा होकर देखने पर राँची का मनोहारी विहंगम दृश्य हृदय को स्पर्श करता है। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास में यहाँ रथ यात्रा का आयोजन होता है। इस अवसर पर झारखण्ड का सबसे बड़ा मेला भी लगता है। इस अवसर पर तुम एक बार अवश्य आओ । पूज्य चाची जी को मेरा प्रणाम निवेदित करना ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
राकेश
प्रश्न - 7 निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए। ( शब्द सीमा 150 ) 1X6 = 6
हमारा राज्य झारखण्ड -(संकेत बिन्दु - परिचय, इतिहास, सीमा, निवासी, संसाधन, उपसंहार )
उत्तर: परिच- हमारा नया राज्य झारखंड है। झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 ई० को हुआ । बिहार के दक्षिणी भाग को अलग करके झारखंड राज्य बनाया गया है। झारखंड का अर्थ होता है । 'झार-झंखारो और खनिज संपदाओं का क्षेत्र । जहाँ झार-झंखार और खनिज फैला हो, उसे झारखंड कहते हैं। झारखंड राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में झार-झंखार और खनिज फैले हैं। झारखंड भारत का 28वां राज्य है।
इतिहास - अबुल फजल ने आइने अकबरी में इस प्रदेश को झारखण्ड नाम से संबोधित किया और आज नवोदित राज्य का नाम झारखण्ड हो गया। इसका इतिहास भी अत्यंत प्राचीन है। ईसा से लाखों वर्ष पूर्व के पत्थर के हथियार, बर्त्तन उपकरण आदि मिले हैं।
सीमा- झारखंड राज्य के उत्तर में बिहार है। इसके दक्षिण में उड़ीसा राज्य है। इसके पूरब में पश्चिम बंगाल है। इसके पश्चिम में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश राज्य हैं। इस राज्य की लंबाई पूरब से पश्चिम की ओर 463 किलोमीटर है। इसकी चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की ओर 380 किलोमीटर है ।
जिला- झारखंड राज्य की राजधानी राँची है। राँची एक बहुत बड़ा शहर है। झारखंड में कुल 24 जिला हैं। झारखंड राज्य में राँची, जमशेदपुर, दुमंका, बोकारो, धनबाद आदि बड़े शहर हैं। झारखंड आदिवासियों का क्षेत्र है। यहाँ उराँव, संथाल, मुण्डा आदि आदिवासी जातियाँ रहती हैं। यहाँ संथाली, मुण्डारी, हो, बंगला एवं हिंदी भाषाएँ बोली जाती हैं।
संसाधन एवं विशेषता- झारखंड राज्य की जमीन पठारी और पथरीली है। यह एक पुराना पठार है। यहाँ पर खेती के लायक जमीन बहुत ही कम हैं। यहाँ धान और गेहूँ की खेती होती हैं । धान यहाँ की प्रमुख फसल । झारखंड राज्य में खनिजों का भंडार है । भारत में सबसे अधिक खनिज झारखंड में पाया जाता है। कोयला, लोहा, मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, काइनाइट, यूरेनियम, ताँबा आदि यहाँ के प्रमुख खनिज हैं। यहाँ लोहे के बड़े-बड़े उद्योग फैले हैं । जमशेदपुर में लोहे का सबसे बड़ा कारखाना है। झारखंड में बहुत से धर्मशाला भी है। देवघर, वासुकीनाथ, आंजन धाम, चुटिया का मंदिर, बोड़ेया का वैष्णव मंदिर, रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर, रामरेखा धाम (सिमडेगा) आदि प्रमुख धर्मस्थान है। हुंडरू और दसम के जल प्रपात देखने योग्य हैं। इसके अलावे नेतरहाट, काँके, हटिया, जमशेदपुर आदि दर्शनीय स्थल है।
उपसंहार- संसाधनों से भरा-पूरा हमारा झारखंड त्वरित विकास की राह पकड़ रहा है। आशा है वह दिन दूर नहीं जब हमारा राज्य देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाएगा। सभी सुखी होंगे, समृद्ध होंगे तथा सर्वत्र शांति, समरसता एवं सुशासन का साम्राज्य होगा।
अथवा
मेरे जीवन का लक्ष्य - (संकेत बिन्दु - भूमिका, लक्ष्य निर्धारण क्यों, आदर्श मानव के गुण, लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास,उपसंहार )
उत्तर: भूमिका: प्रत्येकं मानव का कोई-न-कोई लक्ष्य होना चाहिए। बिना लक्ष्य के मानव उस नौका के समान है जिसका कोई खेवनहार नहीं है। ऐसी नौका कभी भी भँवर में डूब सकती है और कहीं भी चट्टान से टकराकर चकनाचूर हो सकती है। लक्ष्य बनाने से जीवन में रस आ जाता है।
लक्ष्य- मैंने यह तय किया है कि मैं पत्रकार बनूँगा। आजकल सबसे प्रभावशाली स्थान है- प्रचार माध्यमों का समाचार पत्र, रेडियों, दूरदर्शन आदि चाहें तो देश में आमूल-चूल बदलाव ला सकते हैं। मैं भी ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थान पर पहुँचना चाहता हूँ जहाँ से मैं देशहित के लिए बहुत कुछ कर सकूँ । पत्रकार बनकर मैं देश को तोड़ने वाली ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करूँगा, समाज को खोखला बनाने वाली कुरीतियों के खिलाफ जंग छेडूंगा और भ्रष्टाचार का भण्डाफोड़ करूँगा।
लक्ष्य क्यों- मेरे पड़ोस में एक पत्रकार रहते हैं- श्री प्रभात मिश्र । वे इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता तथा भ्रष्टाचार विरोधी विभाग के प्रमुख पत्रकार हैं। उन्होंने पिछले वर्ष गैस एजेंन्सी की धाँधली को अपने लेखों द्वारा बंद कराया था। उन्हीं के लेखों के कारण हमारे शहर में कई दीन-दुखी लोगों को न्याय मिला है। उन्होंने बहू को जिन्दा जलाने वाले दोषियों को जेल में भिजवाया, नकली दवाई बेचने वाले का लाइसेंस रद्द करवाया, प्राइवेट बस वालों की मनमानी को रोका तथा बस-सुविधा को सुचारु बनाने में योगदान दिया। इन कारणों से मैं उनका बहुत आदर करता हूँ। मेरा भी दिल करता है कि मैं उनकी तरह श्रेष्ठ पत्रकार बनूँ और नित्य बढ़ती समस्याओं का मुकाबला करूँ । मुझे पता है कि पत्रकार बनने में खतरे हैं तथा पैसा भी बहुत नहीं है। परन्तु मैं पैसा के लिए या धन्धे के लिए पत्रकार नहीं बनूँगा। मेरे
जीवन का लक्ष्य होगा- समाज की कुरीतियों और भ्रष्टाचार को समाप्त करना। यदि मैं थोड़ी-सी बुराइयों को भी हटा सका तो मुझे बहुत संतोष मिलेगा। मैं हर दुखी को देखकर दुखी होता हूँ, हर बुराई को देखकर उसे मिटा देना चाहता हूँ। मैं स्वस्थ समाज देखना चाहता हूँ। इसके लिए पत्रकार बनकर हर दुख-दर्द को मिटा देना मैं अपना धर्म समझता हूँ ।
तैयारी - केवल सोचने भर से लक्ष्य नहीं मिलता है। मैंने इस लक्ष्य को पाने के लिए कुछ तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। मैं दैनिक समाचार-पत्र पढ़ता हूँ, रेडियो- दूरदर्शन के समाचार तथा अन्य सामाजिक विषयों को ध्यान से सुनता हूँ। मैंने हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा का गहरा अध्ययन करने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं ताकि लेख लिख सकूँ । वह दिन दूर नहीं, जब मैं पत्रकार बनकर समाज की सेवा करने का सौभाग्य पा सकूँगा।
अथवा
प्रकृति पर्व सरहुल (संकेत बिन्दु - पर्व का परिचय, कैसे मनाया जाता है, क्यों मनाया जाता है, उपसंहार )
उत्तर: परिचय: सरहुल एक प्रकृति पर्व है, जो की वसंत ऋतु में मनाया जाता है। सरहुल उराँव समुदाय का सर्वप्रमुख पर्व है। उराँव आदिवासियों का एक समुदाय है। यह पर्व खेती बारी करने के पहले मनाया जाता है। यह खेती प्रारम्भ करने का ही पर्व है। यह हँसी-खुशी और आनन्द का पर्व है। यह एक रंगारंग पर्व है।
सरहुल कैसे मनाया जाता है: सरहुल के दिन सभी सुबह-सवेरे स्नान आदि करके और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर 'सरना' की पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं। 'सरना' वह पवित्र कुंज है जिसमें कुछ शाल के वृक्ष होते हैं । इस त्योहार को 'सरना' के सम्मान में ही मनाया जाता है । यह आदिवासियों का पूजा-स्थल है। वहीं पर गाँव का पुरोहित, जिसे 'पाहन' कहा जाता है, आकर सबों से सरना की पूजा कराता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि दी जाती है तथा . 'हड़िया' का अर्ध्य दिया जाता है। हड़िया एक प्रकार का नशीला पेय पदार्थ है जो चावल से बनाया जाता है। उसके बाद लोग गीत गाते हुए घर लौटते हैं। फिर दोपहर के बाद लोग नृत्य के मैदान में जमा होते हैं। युवक और युवतियाँ मांदर और अन्य वाद्यों के ताल पर पंक्तिबद्ध होकर नाच में भाग लेते हैं। जिधर देखें उधर ही चहल-पहल है, आनन्द उल्लास है, मौज-मस्ती है। इस दिन इन लोगों का नाचना-गाना. अविराम चलता है। इस अवसर को देखकर ऐसा लगता है, मानो जीवन में सुख ही सुख है। नाच गाने से गाँव-गाँव गली-गली, डगर-डगर का वातावरण झूम उठता है। जितने ये सरल, निश्छल और निष्कपट मनुष्य हैं, वैसा ही इनका सरल, उल्लासपूर्ण एवं मनोरम त्योहार है।
सरहुल क्यों मनाया जाता है: यह त्योहार कृषि आरंभ करने का त्योहार है। इस त्योहार को 'सरना के सम्मान में मनाया जाता है। सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है। इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। आदिवासियों का मानना है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है। चूंकि यह पर्व रबी की फसल कटने के साथ ही शुरू हो जाता है, इसलिए इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है ।
निष्कर्ष: जैसे हिन्दुओं की होली, मुसलमानों की ईद और ईसाइयों की क्रिसमस है, वैसे ही सरहुल उराँव लोगों का पर्व है। सरहुल हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है। यह पर्व हमें आपसी भाईचारा और प्रेम से रहना भी सिखाता है। इस पर्व से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपने प्रकृति को नष्ट नहीं करना चाहिए।
प्रश्न- 8 परीक्षा के एक दिन पूर्व दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए। 1X5 = 5
उत्तर:
पहला मित्र: नमस्कार दोस्त । कैसे हो ?
दूसरा मित्र: मैं अच्छा हूँ, तुम बताओ परीक्षा की तैयारी कैसी है ?
पहला मित्र: इस बार की मेरी तैयारी अच्छी है। इस बार मैं पिछली बार से भी अधिक अंक लाने का प्रयास करूँगा।
दूसरा मित्र: परंतु कोविड महामारी की वजह से हमारी पढ़ाई पर काफी असर हुआ है।
पहला मित्र: हाँ मित्र, यह तो सही कहा आपने।
दूसरा मित्र: मैंने अपने सभी विषयों के नोट्स बना लिए हैं, और अध्यापक के निर्देशन से तैयारी भी कर रहा हूँ।
पहला मित्र: हाँ, मैं भी यही कर रहा हूँ ।
दूसरा मित्र: परंतु मित्र, मैं परीक्षा को लेकर थोड़ा चिंतित हूँ।
पहला मित्र: चिंतित क्यों हो मित्र ?
दूसरा मित्र: तुम्हें पता है मेरे घर में एक ही स्मार्टफोन है। जिसके कारण ऑनलाइन पढ़ाई करने में परेशानी होती है।
पहला मित्र: कोई बात नहीं मित्र, तुमको पढ़ाई में कोई समस्या हो तो मेरे नोट्स की मदद ले सकते हो।
दूसरा मित्र: धन्यवाद मित्र। समस्या होने पर मैं तुम्हारे घर पर आकर पढ़ लूँगा।
अथवा
सब्जी खरीदने आई महिला और सब्जी वाले के मध्य हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर:
महिला: भैया प्याज कैसे किलो दिया ?
सब्जीवाला: 20 रुपए किलो।
महिला: दो किलो तौलना। टमाटर कैसे दिए ?
सब्जीवाला: तीस रुपए किलो।
महिला: इतने महँगे 25 रुपए दो, दो किलो लूँगी।
सब्जीवाला: ठीक है मैडम ले लो
महिला: ठीक है दो किलो टमाटर दे दो। रुको मुझे चुनने दो।
सब्जीवाला: सब ताजा ही है देख लो।
महिला: ठीक है। कितना हुआ ?
सब्जीवाला: नब्बे रुपए ।
महिला: थोड़ा धनिया पत्ती और थोड़ा-सा हरी मिर्च दे दो।
सब्जीवाला: ठीक है।