छठ पूजा कथा 2025 |
सूर्य देव और छठी मइया की दिव्य कथा |
संतान सुख और समृद्धि देने वाली पवित्र कहानी
हिंदू
धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस
पुत्री है और सूर्यदेव की बहन मानी जाती है। उनकी छठ व्रत में षष्ठी मैया की पूजा
की जाती है। इसलिए इस व्रत का नाम छठ पड़ा। पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी
ने सृष्टि की रचना करने का विचार किया तो उन्होंने स्वयं को दो भागों में विभाजित
किया। दाएं भाग में पुरुष तत्व और बाएं भाग में प्रकृति का रूप प्रकट हुआ। इसी
प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न देवी को देवसेना कहा गया जिन्हें षष्ठी देवी या छठी
मैया के नाम से जाना जाता है। अब सुनिए सूर्यदेव भगवान से जुड़ी प्रेरणादायक कथा।
एक ब्राह्मण था जो सूर्य भगवान का परम भक्त था। वह प्रतिदिन स्नान कर सूर्यदेव की
पूजा करता और कथा कहता परंतु कमाई के नाम पर कुछ नहीं करता था। उसकी पत्नी बार-बार
उसे धन अर्जन के लिए प्रेरित करती परंतु जब भी वह कहीं जाता तो लोग उसका उपहास
उड़ाते। सबके ताने सुनकर वह ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ।
एक
दिन वह भोर में स्नान कर पूजा की सामग्री लेकर जंगल चला गया और वहां एक सूखे पीपल
के पेड़ के नीचे बैठकर सूर्यदेव की उपासना करने लगा। समीप ही एक सूखा तालाब था
जिसमें थोड़ा सा जल था। उसने उसी जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दिया। जैसे ही उसने
अर्घ्य अर्पित किया वह जल बहकर पीपल की जड़ों और तालाब में पहुंचा, तुरंत सूखा
पीपल हरा भरा हो गया और तालाब जल से भर गया। उसी क्षण सूर्य भगवान स्वयं प्रकट हुए
और बोले ब्राह्मण मैं तुझसे प्रसन्न हूं वर मांग। यह सुन ब्राह्मण भयभीत हो गया।
उसे लगा जैसे कोई भूत बोल रहा हो। वो कुछ न समझ पाया और दुबला पतला हो गया। जब कई
दिन बीत गए तो ब्राहणी चिंतित होकर उसकी खोज में जंगल पहुंची। पति को देखकर बोली
स्वामी आपको क्या हो गया? तब ब्राह्मण ने सब बताया। ब्राह्मण ही बोली आपको जो आवाज
सुनाई देती है वह स्वयं सूर्य भगवान की है। कल जब वे फिर आए तो उनसे सब कुछ मांग
लेना। ब्राह्मण बोला पर मैं क्या मांगू? मुझे तो शब्द ही नहीं आते।
तब
ब्राहणी मुस्कुराए और बोली बस यह कह देना नौ खंडे के महल में सोने के पालने में
अपने परपोतों को दास दासियों द्वारा खेलते खिलाते अपनी आंखों से देखो। यही कह देना
इससे तुम्हें धन, पुत्र, बहुएं, लंबी उम्र सब कुछ मिल जाएगा। अगले दिन ब्राह्मण ने
स्नान पूजन कर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया। जैसे ही दिव्य आवाज आई, उसने वैसा ही कहा
जैसा ब्राह्मणी ने सिखाया था। सूर्यदेव हंसकर बोले, तू देखने में तो भोला लगता है
पर एक ही बार में सब मान लिया। तथास्तु तेरी सभी इच्छाएं पूर्ण हो। आशीर्वाद पाकर
ब्राह्मण जब लौटा तो देखा जहां झोपड़ी थी वहां नौ खंडों का महल खड़ा था। दास
दासियां सेवा में लगी थी। तभी सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजी ब्राह्मणी बाहर आए
और बोली स्वामी यह सब सूर्य भगवान का वरदान है। ब्राह्मण बोला इतना धन लेकर क्या
करेंगे? ब्राह्मणी ने कहा धन से धर्म होता है। हम यज्ञ करेंगे दान देंगे। भूखों को
भोजन कराएंगे, धर्मशालाएं बनाएंगे। उन्होंने वैसा ही किया और शीघ्र ही सारी प्रजा
उस ब्राह्मण की प्रशंसा करने लगी।
जब
राजा को यह समाचार मिला तो उसने ब्राह्मण को दरबार में बुलाकर पूछा, कल तक तो तुम
निर्धन थे। अचानक इतना वैभव कहां से आया? क्या तुमने चोरी की है या डाका डाला है?
मुझे सब कुछ सच सच बताओ। तो ब्राह्मण ने कहा महाराज मैंने ना तो चोरी की है और ना
ही डाका डाला है। यह सब तो सूर्य भगवान की कृपा से मुझे प्राप्त हुआ है। यह सुनकर
ब्राह्मण ने सारी बात राजा को बता दी। तब राजा ने कहा, ब्राह्मण देव मेरे कोई
संतान नहीं है। अब आप ही बताइए मुझे क्या करना चाहिए? तब ब्राह्मण ने राजा को
सूर्य भगवान की पूजा विधि बताई। राजा ने वही विधि अपनाई और कुछ ही समय बाद 10वें
महीने रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। तब सारे राज्य में सूर्य भगवान की जय
जयकार होने लगी। हे सूर्य भगवान जैसे आपने ब्राह्मण और राजा की मनोकामना पूर्ण की
वैसे ही सबकी मनोकामनाएं पूर्ण कीजिए। कहानी कहने वाले की, सुनने वाले की और
हुंकारा भरने वाले की। बोलिए सूर्यदेव भगवान की जय। अब आइए श्रवण करते हैं छठी
मैया की लोक कथा।
फिर
उसके बाद सुनेंगे छठ पूजा की पौराणिक कथा। जय छठी मैया बहुत समय पहले की बात है।
एक विधवा वृद्धा रहती थी जिसका एक बेटा था। वह छठी मैया की परम भक्त थी। हर वर्ष
वह श्रद्धा और विश्वास से छठी माता का व्रत करती थी। धीरे-धीरे समय बीता। उसका
बेटा बड़ा हुआ और उसने उसकी शादी कर दी। बहू नई सोच वाली थी। आधुनिक विचारों से
भरी हुई और पूजा पाठ में उसका बिल्कुल भी विश्वास नहीं था। एक बार बूढ़ी अम्मा छठी
मैया की पूजा की तैयारी कर रही थी। उनका बेटा आम की लकड़ी काट कर ला रहा था और
पूजन की सामग्री बाजार से लेकर आ रहा था। यह सब देखकर बहू जोर-जोर से हंसने लगी और
बोली, "अम्मा, दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है और आप आज भी इन पुरानी बातों
में पड़ी हैं। लोग आसमान छू रहे हैं और आप अंधविश्वासों में उलझी हुई हैं। इन व्रत
पूजाओं में कुछ नहीं रखा। सब व्यर्थ है।
पढ़ी
लिखी बहू की बातें बूढ़ी माता पर कोई असर नहीं डाल सकी। बूढ़ी अम्मा अपने भक्ति
भाव में मग्न थी। जब वे छठ पूजा की विधि से तैयारी करने लगी, तो बहू फिर बोली, यह
सब व्यर्थ है अम्मा। इस उम्र में तीन दिन भूखी रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी। अपनी
सेहत बिगाड़ लोगी। अपनी बहू की बातें सुनकर बूढ़ी अम्मा मुस्कुरा उठी और बोली,
बहू, जब मेरे विवाह के बाद मुझे संतान नहीं हुई थी, तब मैंने यही छठ व्रत किया था।
छठी मैया ने प्रसन्न होकर मुझे पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया था। तुझे पता है तेरा
पति छठी मैया का ही प्रसाद है। यह अंधविश्वास नहीं आस्था है। माता का वास कण कण
में है। मेरी बात मान और तू भी मेरे साथ व्रत कर।
मैं
चाहती हूं कि तेरी गोद भी शीघ्र भर जाए। अगर तू श्रद्धा से व्रत करेगी तो छठी मैया
अवश्य तुझे संतान सुख देंगी। परंतु आधुनिक विचारों वाली बहू पर सास की बातों का
कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, "मुझे कौन सी कमी है जो
मैं व्रत करूं?" मेरे पास सुंदर पति है, धन संपत्ति है, आलीशान घर है और सुख
सुविधाएं हैं। पूरे गांव में मुझसे अधिक सुखी कोई नहीं। फिर मैं जानबूझकर तीन दिन
भूखी क्यों रहूं? सास ने बहुत समझाया पर वह नहीं मानी। बार-बार छठी मैया की निंदा
करती रही। तभी उसका पति वहां आया और बोला देवी देवताओं का अपमान करना पाप है।
अहंकार मत करो। मां के साथ पूजा में सहयोग दो और यदि चाहो तो तुम भी व्रत कर सकती
हो। लेकिन उसने अपने पति की बात भी ठुकरा दी। पति समझाते समझाते थक गया और बोला
ठीक है तुम्हें जो करना है करो। मैं घाट सजाने जा रहा हूं ताकि मां छठी मैया के
श्री चरणों में शीश झुका सके। फिर वह बेटे हाथ में कुंडलीय घाट की ओर चला गया।
वहां जाकर बड़ी श्रद्धा से मां के साथ छठ पूजा की तैयारी में लग गया। उसने आम की
लकड़ियां जलाकर प्रसाद बनाया और दोनों मां बेटे पूरे भक्ति भाव से छठ पर्व मनाने
लगे। बूढ़ी अम्मा ने पूरे घर को गाय के गोबर से लेप दिया। यह देखकर बहू फिर चिढ़ने
लगी और बोली ना जाने यह कौन सा त्यौहार है। पूरे घर में गोबर की बदबू फैला दी है।
अब
इस घर में रहना मुश्किल है। वो अपने पति से बोली तुम अपनी अम्मा को समझाते क्यों
नहीं? यह सब व्यर्थ की बातें हैं। लेकिन बहू यह नहीं जानती थी कि जो गोबर से लिपा
गया घर है, वही अब मैया का मंदिर बनने वाला है। और जिसके मन में श्रद्धा नहीं,
उसकी जिंदगी में जल्द ही एक ऐसी घटना घटने वाली है जो उसे भी झकझोर कर रख देगी। इस
तरह वह दोनों मां बेटे से झगड़ा करने लगती है। तब उसका पति कहता है, तुम माता से
झगड़ा मत करो। जो कुछ कहना है मुझसे कह लो। अब जल्दी से जाकर तैयार हो जाओ। छठ
माता की पूजा के लिए घाट पर जाने का समय हो गया है। जैसे ही वह तीनों घाट पर पूजा
के लिए जाते हैं, बूढ़ी अम्मा गीत गाते हुए चलती है, पर उसकी बहू को इन बातों में
बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। वह अपनी ही दुनिया में मग्न होकर चलती रहती है। जैसे ही
वह तीनों घाट पर पहुंचते हैं, उसका पति कहता है, यहां मां के साथ पूजा में बैठ
जाओ। लेकिन वह तुनत कर कहती है, मैं यहां नहीं बैठने वाली। मैं तो मेला देखने
जाऊंगी।
तुम
ही अपनी मां के साथ बैठो। ऐसा कहते हुए वह वहां से चली जाती है और सामने ही एक
हलवाई की दुकान पर जाकर जलेबी खाने लगती है। उसका पति चिंतित होकर कहता है, तुम यह
क्या कर रही हो? तो उसकी पत्नी गुस्से में बोल उठती है, मैं पूजा पाठ में नहीं
बैठी हूं। मैं तो तुम्हारी पूजा के लिए घाट पर आने ही नहीं वाली थी। तुम जबरदस्ती
मुझे लाए हो। अब मैं तो मेले में ही घूमूंगी। यह कहकर वह रूठ कर बैठ जाती है। तभी
उसका पति स्नान करने के लिए घाट की ओर चला जाता है। जैसे ही वह डुबकी लगाता है, वह
गहरे पानी में चला जाता है और डूबने लगता है। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगता है। कोई
मुझे बचाओ। कोई है। लेकिन जब तक कोई पहुंचता वह नदी में डूब चुका था। जब बूढ़ी
अम्मा को यह समाचार मिलता है कि उसका बेटा डूब गया है तो वह छाती पीट-पीट कर विलाप
करने लगती है। वह रोते हुए कहती है, हे छठी मैया तूने मेरे साथ यह क्या किया? मैं
कितनी श्रद्धा पूर्वक तेरी पूजा करती आई हूं। मैंने कभी तेरी पूजा में कोई भूल
नहीं की।
फिर
आज मुझे यह सजा क्यों दी? तूने मेरा बेटा क्यों छीन लिया? इससे अच्छा तो तू मुझे
संतान ही ना देती। मैं भी एक मां हूं और तू भी मां कहलाती है। कैसी मां है तू
जिसने एक मां की गोद सुनी कर दी। हे छठी माया जब से मेरी शादी हुई है तब से मैं
तेरी पूजा करती आई हूं। पूरे 30 साल से तेरी सेवा कर रही हूं। फिर मेरी पूजा में
ऐसी कौन सी कमी रह गई कि तूने मेरा संसार उजाड़ दिया। हे मां जाने अनजाने में
मुझसे यदि कोई गलती हो गई हो तो क्षमा कर दे। मेरी गलती की सजा मेरे बेटे को मत
दे। मेरा लाल मुझे लौटा दे। अगर आज तूने मेरी पुकार नहीं सुनी तो मैं इसी नदी में
कूदकर प्राण त्याग दूंगी। अब तेरे हाथ में है। या तो मेरे बेटे को लौटा दे या मेरे
प्राण ले ले। इधर मेले में यह घोषणा होने लगती है। सभी श्रद्धालुओं से अनुरोध है
कि गहरे पानी में ना जाएं।
अभी-अभी
सूचना मिली है कि एक व्यक्ति नदी में डूब गया है। कृपया सभी सतर्क रहें। यह सुनकर
बहू का दिल कांप उठता है। वह घबरा कर दौड़ती हुई घाट की ओर आती है और देखती है कि
उसकी सास जमीन पर गिरगिर कर रो रही है। तभी किसी ने कहा तेरा पति अब नहीं रहा। यह
सुनते ही बहू के होश उड़ जाते हैं। वह विलाप करती हुई पागलों की तरह पूजा के सामान
फेंकने लगती है और कहती है, मां मैंने पहले ही कहा था कि यह सब अंधविश्वास है।
तुमने
मेरा कहना नहीं माना। देखो आज क्या हो गया। तुम्हारी इस पूजा ने मेरा जीवन बर्बाद
कर दिया। यह सुनकर वहां खड़े लोगों के दिल दहल उठते हैं। सबकी आंखें भर आती हैं और
सभी छठी मैया को पुकारते हैं। हे मां इस दुखी मां की पुकार सुन लो। इसे इसका पुत्र
लौटा दो और कहते हैं छठी मैया तुम दयालु हो। अपने भक्तों को कभी निराश मत करो। तभी
बूढ़ी अम्मा नदी की ओर बढ़ती है और कहती है, हे मां अब मैं तेरे चरणों में आ रही
हूं। जैसे ही वह नदी में कूदने वाली होती है, अचानक एक तेज लहर उठती है और किनारे
से जोर से टकराती है।
उसी
लहर के साथ उसका बेटा बाहर निकल आता है। यह दृश्य देखकर सबकी आंखें खुली की खुली
रह जाती हैं। वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आंखों से आंसू झरने लगते हैं। बूढ़ी
अम्मा अपने बेटे को गले से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगती है और बहू भी दौड़कर अपने
पति को देखती है। तभी आकाश में गर्जना होती है और एक दिव्य आकाशवाणी सुनाई देती
है। हे पुत्री मैं किसी का भी अहित नहीं करती। मैंने तेरी आंखों से अज्ञान का
पर्दा हटाने के लिए यह किया था। मैं सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हूं। जो भी
सच्चे मन से मेरी आराधना करेगा, मैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूंगी। यह सुनकर
बहू के हृदय में पश्चाताप की आग जल उठती है।
वह
छठी मैया से हाथ जोड़कर कहती है, हे मां, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मुझे क्षमा
करो। आज से मैं भी सच्चे मन से तेरी पूजा और व्रत करूंगी। यह कहते हुए वह अपनी सास
के चरणों में गिर पड़ती है। वहां उपस्थित लोग छठी मैया की जय के नारों से घाट
गूंजा देते हैं। बूढ़ी अम्मा अपने बेटे और बहू के साथ हर्ष आनंद से छठ माता की
पूजा करती है। उसके बाद से बहू हर वर्ष श्रद्धा और विश्वास के साथ छठ व्रत करती
है। छठी मया की कृपा से उसे भी पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और वह परिवार सुख
शांति से रहने लगता है। प्रेम से बोलिए छठी माई की जय। सूर्य भगवान की जय। प्रिय
भक्तों यह व्रत 36 घंटे निर्जला उपवास करने वाला तथा कठोरतम नियमों से परिपूर्ण
है। यह व्रत यदि जो भी मनुष्य पूर्ण विधि विधान निष्ठा पवित्रता से करें तो शत
प्रतिशत मन मांगी मुरादे पूरी करने वाला होता है। ब्रह्मा की पुत्री सूर्यदेव की
बहन छठी मया की कृपा बरसती है।
सूर्य
देवता की भी कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से रोगी रोग मुक्त हो जाते
हैं। पुत्र पुत्री दीर्घ आयु वाले होते हैं। वैवाहिक स्त्रियां अखंड सौभाग्य वाली
होती हैं। घर में अन्न, धन, यश, वैभव, मान, प्रतिष्ठा, संतान, सुख, रोग मुक्त काया
की प्राप्ति होती है। व्रती व्यक्ति पर छठी मया की ऐसी कृपा बरसती है कि बारंबार
छठी मया का गुणगान गाते नहीं थकता। अब हम सुनेंगे छठ व्रत की बड़ी ही दुर्लभ तथा
पौराणिक कथा। मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रध और उसकी पत्नी मालिनी संतान सुख से
वंचित थे। इस बात से राजा रानी काफी दुखी थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के
लिए महर्षि कश्यप से पुत्रष्टि यज्ञ करवाया। महर्षि ने यज्ञ संपन्न करने के बाद
मालिनी को खीर दी। खीर का सेवन करने के बाद मालिनी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद
उनसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन दुर्भाग्य से उनका पुत्र मृत पैदा हुआ। यह
देखकर राजा और रानी बहुत ही दुखी हो गए और निराशा की वजह से राजा ने आत्महत्या
करने का मन बना लिया।
परंतु
जैसे ही राजा आत्महत्या करने लगे तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना
प्रकट हो गई और उन्होंने कहा कि हे राजन मैं सृष्टि देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र
सुख प्रदान करती हूं। जो व्यक्ति सच्चे मन से मेरी पूजा करता है, उसकी मैं सभी
मनोकामनाएं पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे, तो मैं
तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करने का वरदान दूंगी। अब देखिए देवी के कहे अनुसार राजा
प्रियवर्त ने कार्तिक शुक् की सृष्टि तिथि को देवी सृष्टि की पूजा की। इसी पूजा के
फल स्वरूप रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुई और ठीक 9 महीने बाद उन्हें एक
सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। हे छठ माता हे सूरज देव जिस प्रकार आपने राजा को
पुत्र रत्न की प्राप्ति की उसी प्रकार सभी माताओं का गोद भरना। सभी के घर में
बच्चों की किलकारी गूंजे।
जय
छठी मैया। ओम नमः शिवाय। प्रिय भक्तों अब आइए सुनते हैं दूसरी पौराणिक कथा। एक
राजा थे। उनके सात रानी, सात बहुएं और सात बेटे थे। उन्होंने तालाब खुदवाया। तालाब
में पानी नहीं आया। उन्होंने बहुत ही प्रयत्न करके देखे कि इसमें पानी क्यों नहीं
आया? उन्होंने ज्योतिषियों से पूछा तो ज्योतिषी बोले, इसमें नाती की बलि चढ़ाओगे
तो पानी आसानी से आ जाएगा। अब क्या था? राजा बड़ी ही दुविधा में पड़ गए क्योंकि वह
राजा थे।
नगर
का पालन पोषण करना उनकी जिम्मेदारी थी। नगर में अकाल पड़ा था। नगर में पानी की
त्राहित त्राही थी। लोग राजा को दोष देने लगे कि राजा ने तालाब खुदवाया। पानी ही
नहीं आया। हम तो प्यास से मर जाएंगे। यह सब देखते हुए राजा बड़े ही दुखी हुए। रानी
ने अपनी बड़ी बहू से कहा, हे पुत्री मैं तुमसे एक चीज मांग रही हूं। वह बोली,
बोलिए सासू मां। तो सास ने कहा कि अपना लड़का हमें दे दो। उसकी बलि चढ़ा दें। तो
बहू ने इंकार कर दिया कि लड़का खिला पिलाकर पालपस कर बड़ा किया है। वह कैसे दे
दें? इस तरह दूसरी, तीसरी, सभी छह बहुओं ने इसी तरह कहा कि नहीं हम अपने पुत्र को
नहीं देंगे। कि इतना बड़ा पालपस कर किया है।
लड़का
हम नहीं देंगे। अब क्या था? रानी ने सोचा कि सातवीं बहू के पास जाने की कोई जरूरत
नहीं क्योंकि वह भी मना कर देगी। लेकिन इसी असमंजस में वह सातवीं बहू के पास गई।
सातवीं बहू से बोली कि हे बहू कुछ मांगने आई हूं। बहू बोली सब आपका है। जो चाहे वह
मांग ले। सास बोली बहू तुम अपना पुत्र मुझे दे दो। हम उसकी बलि देंगे तो तालाब में
पानी आ जाएगा। बहू ने आंखों में आंसू भरकर लड़का दे दिया। अब तालाब में इतना पानी
आ गया कि वह भर गया। तब कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आई। महिला तालाब
पर नहाने गई। उसने उसी दिन से छठ मया का व्रत उठाया। नहाए खाए किया। अब क्या था?
जैसे ही एक दिन बीता राजा के घर की सभी महिलाएं ताल पर नहाने गई। सब जा ही रही थी
तो ससुर सातवीं बहू से बोली कि तुम भी बेटा चली जाओ।
बहू
ने सोचा हमारे तो लड़का है ही नहीं। पर ससुर कह रहे हैं तो उनके आदेश से ताल नहाने
चली जाऊंगी। सब महिलाएं ताल में नहा रही थी तो एक छोटा सा बालक खेलते हुए गोदी में
आ गया। सब ने कहा कि यह किसका लड़का है? सब ने इंकार कर दिया तो बहू ने देखा कि
लड़का उसका है। उसने बालक को आंचल में उठाया और घर आकर छठमया की पूजा बड़ी श्रद्धा
के साथ किया। एक बार प्रेम से बोलिए जय छठी मैया हे छठ माता जिस प्रकार आपने सबसे
छोटी बहू को दिया वैसा सबको देना सबके पुत्रों की रक्षा करना कथा कहानी कहने वाले
सुनने वाले तथा मुरा भरने वालों को देना ओम नमः शिवाय प्रिय भक्तों अब आइए सुनते
हैं छठ माता की तीसरी कथा एक बहू थी उसकी एक बालक था वो हर कार्तिक माह के छठ को
छठ मया का व्रत करती थी। एक दिन वह अपने बालक को दूध पिलाकर वह सुलाकर छठ पूजा के
लिए बाहर गई।
वह
पड़ोस की महिला से बताकर गई कि वह मेरे बालक का ध्यान रखना। दुर्भाग्यवश उस महिला
की कोई संतान नहीं थी। उस महिला के मन में पाप आ गया। उसने बालक के बलि चढ़ाकर भठी
में उस बालक को डाल दिया। ऊपर से बंद कर दिया। इधर महिला जब लौटी तो अपने बालक को
ना पाकर विलाप करने लगी। हर जगह अपने बालक को ढूंढने लगी। तभी किसी अन्य से उस
पड़ोसी महिला की क्रूरता का पता चला तो वह पूरे गांव व पंचों के साथ उस महिला के
घर गई। बहू ने रोते हुए छठमया को याद करते हुए उस भट्ठी का ढक्कन खोला तो उसके
अचरज का ठिकाना ना रहा। उसका बालक यथावत भट्ठी में हंसता हुआ खेल रहा था। झट से
बहू ने अपने बालक को आंचल में भर लिया और दुलार करने लगी। वह तुरंत ही घर लौट आए।
पूरी श्रद्धा भाव से छठ मया की पूजा अर्चना की और उनका पारण किया। विनती की कि हे
छठ मया जिस तरह तुमने मेरे बालक की रक्षा की है उसी तरह सबके बालक की रक्षा करना।
जय हो छठी मैया जय सूर्यदेव।
छठी
मैया जिस प्रकार आपने इस बालक की रक्षा की उसी प्रकार सदैव हमारे बालकों व सभी के
बालकों की रक्षा करना व सभी पर कृपा बनाए रखना। प्रिय भक्तों अब आइए सुनते हैं छठ
मया की चौथी कथा। छठ पर्व के लिए कई प्रथाएं प्रचलित हैं। किंतु पौराणिक शास्त्रों
में इसे देवी द्रोपदी से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि सर्वप्रथम पांडवों
ने छठ का व्रत किया था। मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए।
तब द्रोपदी ने छठ का व्रत रखा। द्रोपदी के व्रत के फल से पांडवों को अपना राजपाठ
वापस मिल गया था। इसी तरह छठ का व्रत करने से लोगों के घरों में समृद्धि और सुख
आता है। एक और पौराणिक कथा के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज की स्थापना के लिए
कार्तिक शुक्ष्टि को भगवान राम और सीता जी ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना
की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त
किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।
सबसे
पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम
भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देता था।
सूर्य की कृपा से वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घदान की यही पद्धति चली
आ रही है। कई कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा सूर्य की पूजा करने का
उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए
नियमित सूर्य पूजा करती थी।
सूर्य देव की रहस्यमय उत्पत्ति। ब्रह्मा, शिव और छठी मइया का गूढ़ संबंध।
भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग का रहस्य
आखिर किसने बनवाया था केदारनाथ धाम मंदिर
गरुण पुराण का रहस्य- मृत्यु के बाद आत्मा 13 दिन तक घर में क्यों रहती है
हे केशव मेरे 100 पुत्र मारे गए और मैं अंधा क्यों हुआ
मेघनाथ की मृत्यु के बाद पत्नी सुलोचना का क्या हुआ
