आखिर किसने बनवाया था केदारनाथ धाम मंदिर
केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले
में स्थित हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में बना
केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ-साथ चार धाम और पंच केदार
में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर के मध्य
ही दर्शन के लिए खुलता है। केवल देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हर साल लाखों श्रद्धालु
श्री केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए आते हैं।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस प्राचीन और पवित्र तीर्थ
स्थल का निर्माण किसने और कब करवाया था। केदारनाथ धाम मंदिर के निर्माण के बारे में
कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है, लेकिन पिछले लगभग 1000 वर्षों से यह एक महत्वपूर्ण
तीर्थ स्थल रहा है। कट्यूरी शैली में पत्थरों से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता
है कि इसका निर्माण पांडवों ने अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए करवाया था।
कुरुक्षेत्र की भूमि पर 18 दिनों तक चले महाभारत के भीषण
युद्ध के बारे में कौन नहीं जानता। इस युद्ध में सभी रिश्ते दांव पर लग गए — गुरु-शिष्य
का रिश्ता, भाई-भाई का और चाचा-भतीजे का भी। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात
पांडव अवश्य विजयी हुए, लेकिन तब तक बहुत विनाश हो चुका था। युद्ध समाप्ति के कुछ समय
बाद जब पांडव भगवान श्रीकृष्ण के पास बैठकर परिणामों पर चर्चा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण
ने उन्हें पश्चाताप करने को कहा।
श्रीकृष्ण के अनुसार पांडवों पर ब्रह्महत्या, गोत्रहत्या,
कुलहत्या, गुरुहत्या आदि कई पाप चढ़ चुके थे। इन पापों की मुक्ति केवल भगवान भोलेनाथ
ही दे सकते थे। अतः पांडव भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान शिव से मिलने के लिए काशी
नगरी की ओर चल पड़े।
भगवान शिव को पांडवों के आने की सूचना पहले ही मिल गई थी।
वे उनसे मिलना नहीं चाहते थे क्योंकि वे उनके पापों से अत्यधिक क्रोधित थे। इसलिए भगवान
शिव पांडवों से बचकर वहां से चले गए। पांडवों ने काशी में बहुत खोज की, लेकिन भगवान
शिव उन्हें नहीं मिले। माता पार्वती ने उन्हें बताया कि महादेव अत्यधिक क्रोधित हैं
और हिमालय की ओर चले गए हैं।
इसके बाद पांडव हिमालय के पहाड़ों पर, वर्तमान उत्तराखंड
के गढ़वाल क्षेत्र में पहुँचे। भगवान शिव यहां छिपने के लिए बैल का रूप धारण कर पशुओं
के बीच में जा मिले। पांडवों को जब यह आभास हुआ कि भगवान शिव उन्हीं पशुओं में हैं,
तो भीम ने एक उपाय निकाला। उन्होंने अपने दोनों पैरों को पहाड़ के छोरों पर रखकर सभी
पशुओं को नीचे से निकलना शुरू किया। सभी पशु भाग गए, परंतु एक बैल वहां स्थिर खड़ा
रहा।
भीम समझ गए कि यही बैल महादेव हैं। जैसे ही उन्होंने बैल
की पीठ को पकड़ा, भगवान शिव पृथ्वी में समा गए। भगवान शिव का पीठ भाग वहीं रह गया जो
आज केदारनाथ के रूप में प्रसिद्ध है। उनके शरीर के अन्य अंग उत्तराखंड के चार अन्य
स्थानों पर प्रकट हुए — मुख रुद्रनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में
और जटा कल्पेश्वर में। इन पाँचों स्थानों को मिलाकर “पंच केदार” कहा जाता है।
भीम द्वारा भगवान शिव के बैल रूप की यह पीठ पकड़े जाने के
बाद पांडवों ने उन सभी स्थलों पर शिवलिंग की स्थापना की और मंदिरों का निर्माण करवाया।
इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें समस्त पापों से मुक्त किया। बाद में पांडवों
के पौत्र जन्मेजय ने केदारनाथ मंदिर के निर्माण को और आगे बढ़ाया तथा आम जन को पूजा
करने की अनुमति प्रदान की।
समय के साथ पांडवों द्वारा बनाया गया मंदिर जर्जर हो गया।
जब भारत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ, उन्होंने चारों दिशाओं में चार धाम की स्थापना
की। इसी क्रम में उन्होंने केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, जिसे आज हम देखते
हैं। अपने जीवन के अंतिम समय में आदि शंकराचार्य ने इसी मंदिर के पास ध्यान लगाया और
समाधि ली। उनकी समाधि आज भी मंदिर के निकट स्थित है।
दसवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच कई भारतीय राजाओं ने मंदिर
का जीर्णोद्धार करवाया। किंतु कहा जाता है कि तेरहवीं शताब्दी के बाद यह क्षेत्र बर्फ
से ढक गया और केदारनाथ मंदिर लगभग 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा। वाडिया इंस्टीट्यूट
ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के अनुसार तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच यहां इतनी
भीषण बर्फबारी हुई थी कि पूरा क्षेत्र जमी हुई बर्फ में दब गया था।
सत्रहवीं शताब्दी में जब बर्फ पिघली, तब मंदिर फिर से प्रकट
हुआ और यात्राएं पुनः प्रारंभ हुईं। मंदिर की दीवारों पर आज भी उस समय के बर्फ के निशान
देखे जा सकते हैं।
सन् 2013 की विनाशकारी प्राकृतिक आपदा में मंदिर परिसर को
भारी क्षति पहुँची, हालांकि मुख्य मंदिर सुरक्षित रहा। बाद में केंद्र और उत्तराखंड
सरकार ने केदारनाथ धाम और आदि शंकराचार्य समाधि क्षेत्र का पुनर्निर्माण करवाया। आज
केदारनाथ धाम फिर से करोड़ों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है।
पुराणों में यह भी कहा गया है कि भविष्य में जब नारायण की
शक्ति से पहाड़ आपस में मिल जाएंगे, तब यह धाम लुप्त हो जाएगा। किंतु उसके बाद एक नया
धाम बनेगा, जिसे भविष्य के “भविष्य केदार” के रूप में जाना जाएगा।
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आखिर किसने बनवाया था केदारनाथ धाम मंदिर
