पर्यावरणीय अध्ययन : क्षेत्र कार्य (ENVIRONMENTAL STUDIES : Field Work)

पर्यावरणीय अध्ययन : क्षेत्र कार्य (ENVIRONMENTAL STUDIES : Field Work)

पर्यावरणीय अध्ययन : क्षेत्र कार्य (ENVIRONMENTAL STUDIES : Field Work)

पर्यावरणीय अध्ययन : क्षेत्र कार्य (ENVIRONMENTAL STUDIES : Field Work)

पृष्ठभूमि

किसी प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित अध्ययन के विवरण से मानव मात्र को अत्यधिक लाभ पहुँचता है। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र की दूसरे तंत्र से भिन्न विशेषताएँ होती हैं और वह हमें कुछ विशिष्ट प्रकार की जानकारी प्रदान करता है। पारिस्थितिकी तंत्र के अपने प्राकृतिक संसाधन स्रोत होते हैं। इन संसाधनों पर स्थानीय लोगों का जीवन निर्भर होता है।

प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र के महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी कार्य होते हैं। इनका पर्यटनात्मक एवं मनोरंजनात्मक महत्त्व भी हो सकता है अथवा इनका केवलं सौन्दर्यात्मक महत्त्व होता है। किसी प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के सौन्दर्यात्मक मूल्य का आकलन अर्थशास्त्रीय मानदण्डों घर कर पाना सम्भव नहीं है। पारिस्थितिकी तंत्र से वैश्विक, राष्ट्रीय या स्थानीय स्तर पर बहुविध लाभ प्राप्त होते हैं। किसी पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग भिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि के समुदायों के द्वारा विभिन्न प्रकार से किया जाता है। इनका व्यक्ति-विशेष की जीवनशैली के सन्दर्भ में अलग-अलग प्रकार का महत्त्व होता है। बनों में रहनेवाली जनजातियाँ, कृषि क्षेत्रों के किसान और चरागाहों के चरवाहे तथा मछुआरे अपने-अपने परिवेश के पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हैं। वे जिस नजरिये से इसे देखते हैं एक नगरवासी की दृष्टि उससे भिन्न होती है। वे तो उनका मूल्यांकन जल और वायु की गुणवत्ता अथवा सड़ी-गलो वस्तुओं एवं कूड़े-कचरे के निष्पादन मात्र की दृष्टि से करते हैं। अपनी-अपनी संस्कृति के अनुरूप स्त्री और पुरुष पारिस्थितिकी तंत्र से सम्बन्ध स्थापित करते हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियाँ हौ संसाधनों को इकट्ठा करती हैं और वे पारिस्थितिकी तंत्र के अवनयन को अपने परिवरार के लिए घोर संकट के रूप में देखती हैं। इसलिए वे अपने संसाधनों को क्षतिग्रस्त करनेवाली कार्यवाहियों के विरूद्ध संघर्ष के लिए शीघ्र उठ खड़ी होती है।

जिन जनजातियों का जीवन आखेट एवं वन-वस्तुओं के संग्रह पर निर्भर होता है, प्रकृति के प्रति उनकी समझ अत्यन्त गहरी एवं परिपक्व होती है। वे यह भी भली-भाँति जानते हैं कि प्रकृति उनकी जीविका के लिए क्या प्रदान करती है। किसान खेत और जल संसाधन के उपयोग से परिचित होते हैं और उन्हें इस बात का भी ठीक-ठीक ज्ञान होता है कि बाढ़ और सूखा उनके जीवन को बर्बाद करनेवाले होते हैं। एक गड़ेरिया अथवा मवेशी पालक चरागाह के महत्त्व और मूल्य ठीक-ठाक जानता है। इसके विपरीत शहर के निवासियों का जीवन जिन प्राकृतिक संसाधनों से चलता है, वे उनसे बहुत दूर रहते हैं। इतना ही नहीं इन संसाधनों को प्रदान करनेवाले पारिस्थितिकी तंत्र से भी वे अपरिचित होते हैं। संसाधन दूरस्थ क्षेत्रों में होते हैं और गाँव के लोगों के द्वारा एकत्र किये जाते हैं। इसलिए नगरवासियों को संसाधन जिस पारिस्थितिकी तंत्र से उपलब्ध होते हैं, वे उसकी सुरक्षा के मूल्य को कभी नहीं समझ पाते।

छात्र को जिस पारिस्थितिकी तंत्र का मूल्यांकन करना है उसके लिए केवल उसकी संरचना और कार्यविधि पर दृष्टि डालना पर्याप्त नहीं होगा अपितु उसके लिए यह देखना भी जरूरी होगा कि इसका उपयोग कौन करते हैं और ये संसाधन उपभोक्ताओं तक किस प्रकार पहुँचते हैं। आकलनकर्त्ता को यह भी जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि तंत्र-विशेष का व्यक्ति विशेष के लिए क्या अर्थ है? यह सर्वविदित तथ्य है कि वनस्थल हमें व्यक्तिगत रूप से आश्चर्य में डालते हैं। इस अभिभूति का यह भाव हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की प्रेरणा प्रदान करता है।

पर्यावरणीय सम्पदाओं के अध्ययनार्थ दिशा-निर्देश

पर्यावरणीय सम्पदाओं के अध्ययन के दो भाग होते हैं-

1. दृष्टि (देखे गये) का विवरण या संलेख तैयार करना,

2. स्थानीय उपभोक्ता समुदाय से पूछताछ के आधार पर निष्कर्षों का विवरण या संलेख तैयार करना।

किसी पारिस्थितिकी तंत्र के प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन के लिए अनेक मूलभूत प्रश्न हो सकते हैं, जिनका उत्तर छात्रों को ढूँढना चाहिए :

1. पारिस्थितिकी के प्राकृतिक संसाधन कौन-कौन से हैं?

2. इनका उपभोग कौन और किस तरह करते हैं?

3. क्या पारिस्थितिकी का ह्रास अथवा अवनयन हुआ है? यदि हाँ, तो कैसे?

4. किस प्रकार उसका संरक्षण किया जाता है?

इन मूलभूत वार प्रश्नों के उत्तरों के विस्तार में जाया जा सकता है।

आप क्षेत्रीय अध्ययन का आरम्भ पारिस्थितिकी के जैविक एवं अजैविक घटकों (आयामों) के पर्यवेक्षण से आरम्भ कर सकते हैं। अपने अध्ययन को अपने पर्यवेक्षण के आधार पर विवरणबद्ध कर लें। उपभोक्ता समुदायों से उनके पर्यावरण से सम्बन्धित प्रश्न पूछें। उनसे पूछिए कि आपका उपभोग क्षयात्मक है अथवा संपोषणात्मक? उसके पश्चात् अवनयन के लक्षणों को विवरणबद्ध करें। अन्ततः उन आयामों का अध्ययन करें जो उसके संरक्षण में सहायक बन सकते हैं।

[1] जिस रूप में आपने पारिस्थितिकी को देखा है, उसका यथातथ्य विवरण तैयार करना चाहिए। पारिस्थितिकी की प्राकृतिक संरचना, उसकी गुणवत्ता एवं उसकी दूसरे तंत्र से अलग करनेवाली भौगोलिक विशेषताएँ एवं वनस्पतियों तथा पशुओं की जीवनचर्या सम्बन्धी अपने अनुभवों को भी लिपिबद्ध करें। इन कामों के लिए पर्याप्त धैर्य एवं समय चाहिए। सूक्ष्म अबलोकन में जो जितना अधिक समय लगायेगा, वह उतना ही अधिक पारिस्थितिकी की जटिलता को समझ भी पायेगा।

[2] पारिस्थितिकी किस प्रकार काम करती है? विभिन्न प्रजातियों के बीच कैसा अन्तः सम्बन्ध है? अपने सहजीवियों (मध्वासियों) के साथ उनका कैसा सम्बन्ध है? इसके बाद उनकी खाद्य श्रृंखला पर गौर करें।

किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली अत्यन्त सूक्ष्म एवं एक जटिल मशीन की तरह होती है। अतः उसकी कार्यप्रणाली एक मशीन जटिल की कार्य प्रणाली की तरह देखना और विचार करना चाहिए।

[3] स्थानीय निवासियों एवं बहुविध उपभोक्ता समुदाय से घुलमिल कर यह जानने का प्रयास करें कि उनका उपभोग क्षयात्मक है या सम्पोषणात्मक? यदि पारिस्थितिकी के साथ कोई छेड़छाड़ नजर नहीं आती है तो इसका कारण क्या है? यदि उपभोग सम्पोषणात्मक है तो उपभोग को किस तरह नियंत्रण में रखा गया है? यदि पारिस्थितिकी में अवनयन आया है तो इसके कारण क्या हैं? यह अवनयन कब से प्रारम्भहुआ है? यदि पारिस्थितिकी के अवनयन की प्रकृति गम्भीर हैं तो आप इसके सुधार के लिए किन उणयों को सुझायेंगे? अवनयित तंत्र का किस सीमा तक उपभोग करने से उपभोग राम्पोषणीय बन सकता है?

किसी पारिस्थितिकी स्थल के एक बार के भ्रमण में शायद आप इन सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं पा सकें। इसलिए इस सम्बन्ध में स्थानीय लोगों से पूछताछ उपादेय सिद्ध हो सकता है क्योंकि उन्हें इसकी अच्छी जानकारी होती है। आपको पर्यावरणविदों, वनस्पतिशास्त्रियों, प्राणिशास्त्रियों, भूगर्भशात्रियों या वन पदाधिकारियों की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है। इनकी सहायता से आपको गहरी अन्तर्दृष्टि (समझ) प्राप्त हो सकती है। चूँकि भूदृश्य स्थायी नहीं होते और वे समय के साथ बदलते रहते हैं इसलिए स्थल विशेष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी से इन प्रश्नों के उत्तर को साफ-साफ समझने में सहायता मिल सकती है।

प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र की पर्यावरणीय सम्पदा से सम्बन्धित आलेख तैयार करना

क्षेत्रीय सर्वेक्षण की सामान्य जानकारियों का आलेख तैयार करना: क्षेत्रीय कार्य के प्रपत्रानुसार स्थल की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में करें-

लक्ष्य एवं उद्देश्य,

कार्य प्रकृति,

स्थल-पर्यवेक्षण,

स्थानीय लोगों की अन्तर्वीक्षाओं पर आधारित निष्कर्ष एवं परिणाम।

किसी विशेष पारिस्थितिकी के संसाधनों की विशेषताओं को आलेखबद्ध करना

पारिस्थितिकी विशेष की सामान्य विशेषताओं को लिपिबद्ध करने के उपरांत उसकी विशिष्ट विशेषताओं से सम्बन्धित पर्यवेक्षणों को अवश्य लिपिबद्ध करें।

प्रत्येक पारिस्थितिकी के लिए आप एक जाँच-सूची (check list) तैयार करें। इस जाँच-सूची से पर्यावरण के पार्श्वचित्र को समझने एवं उसके पदार्थों और सेवाओं का सही-सही मूल्यांकन करने में आपको मदद मिलेगी। जाँच-सूची केवल दिशा-निर्देशिका का काम कर सकती है। आप अपने पर्यवेक्षण के निष्कर्षों से सम्बन्धित टिप्पणियाँ (notes) तैयार करें। स्थानीय लोगों से पारिस्थितिकी के संसाधनों से सम्बन्धित विस्तृत, आवश्यक एवं संगत प्रश्न पूछें और उनके उत्तर को भी लिपिबद्ध कर लें। विभिन्न क्षेत्रों में जाकर बहाँ की पारिस्थितिकी का बार-बार पर्यवेक्षण किये बिना उसके बारे में समुचित जानकारी नहीं मिल सकती। इस प्रकार की जानकारियों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर ही पारिस्थितिकियों के बारे में उचित निष्कर्षों पर पहुँचा जा सकता है।

[4] प्रत्येक पारिस्थितिकी की पर्यावरणीय सम्पदा के स्थल-सर्वेक्षण से सम्बन्धित प्रपत्र

आप क्षेत्रीय कार्यों के विश्लेषण और विवेचन के लिए निम्नलिखित प्रपत्र का दिशा-निर्देश के रूप में उपयोग कर सकते हैं। प्रत्येक पारिस्थितिकी की विविध समस्याओं और प्रश्नों के उत्तर भरने के लिए यह प्रपत्र दिशा-निर्देश की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है।

1. क्षेत्रीय कार्य के उद्देश्य

(i) पारिस्थितिकी से प्राप्त पदार्थ एवं सेवाएँ

(ii) पदार्थों एवं सेवाओं के उपभोक्ता कौन हैं? वे किस प्रकार उनका उपभोग करते हैं?

(iii) उपभोग क्षयी है या सम्पोषणीय है? (अवनयन के लक्षण?)

(iv) पारिस्थितिकी का सम्पोषणीय उपभोग किस प्रकार सम्भव है?

2. कार्य-पद्धति

(i) पारिस्थितिकी का परिवेक्षण

(ii) स्थानीय लोगों से संसाधनों के उपभोग के बारे में पूछताछ तथा संसाधनों के सम्पोषणीयता सम्बन्धी प्रश्ने

(iii) विचार-विमर्श: क्षेत्रीय कार्यों के समय संसाधनों के उपभोग स्तर का परिवेक्षण

(iv) निष्कर्ष : स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर सम्पोषणीय उपभोग से सम्बन्धित अध्ययनगत विशिष्ट प्रश्न।

नदी की पारिस्थितिकी का अध्ययन

स्थानीय लोग, नदी, तालाब या आर्द्र भूमि का उपयोग कैसे करते हैं, इस पर गौर करें।

वे नदी (या तालाब) से पीने एवं अन्य घरेलू कामों के लिए पानी एकत्र करते हैं। वे नदी (या तालाब) में मछली मारते हैं। केकड़े पकड़ते हैं। अपने पशुओं और भैंसों को नदी किनारे चराते हैं। झील से पम्प के द्वारा अपने खेतों की सिंचाई हेतु पानी निकालते हैं।

खेतों के उपयोग का नक्शा जल स्त्रोतों ( संसाधनों) के सन्दर्भ में तैयार करना:

नदी, तालाब या झील के निकटवर्ती क्षेत्रों में भूमि के उपयोग के ढाँचों का आलेख तैयार करना। पारिस्थितिकी के अन्तर्गत जल-स्रोत (संसाधन) के महत्त्व का आकलन करना। इस बात पर अवश्य ध्यान देना कि उक्त जल-स्त्रोत के समीप घरेलू एवं वन्य पशु दोनों आते हैं या नहीं अथवा उन तक किस प्रकार पानी पहुँचता है।

नदी के समक्ष स्थलीय पर्यवेक्षण

1. निर्जन क्षेत्र में नदी की स्वच्छ बहती धारा का अवलोकन करें। आप पायेंगे कि पानी स्वच्छ है और वह नदी अनेक जीवों से भरी हुई है। नदी-जल में मछली बाणों की तरह तैरती दिखायी पड़ रही है। मेंढक तैर रहे हैं और केकड़े नदी के तल में रेंग रहे हैं।

2. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पानी का विभिन्न उद्देश्यों से किस प्रकार उपयोग करते हैं, इस तथ्य का भी अवलोकन करें।

3. किसी शहरी नदी का अवलोकन करें। इस नदी के पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि शहरी नदी का पानी पूर्णतः प्रदूषित एवं अस्वच्छ है। शहरी नदी के पानी को एक ग्लास में भरकर देखें। ग्लास का पानी रंगीन (गंदला/मटमैला) दिखायी देगा। क्या इस पानी को हम पी सकते हैं? इस नदी को किसने और कैसे प्रदूषित किया? यह प्रश्न रोचक है। दरअसल शहरी नदी को शहरी उपभोक्ताओं द्वारा ही गंदा किया जाता है। इस तरह के क्षयी उपभोग का उदाहरण एक शहरी नदी है।

सम्भव अवलोकन/पर्यवेक्षण

1. वन की नदी के तट पर विभिन्न पशुओं के पद-चिह्न दिखायी पड़ेंगे। सभी वन-पशु अपने दैनिक जीवन (या अस्तित्व) की रक्षा के लिए इस नदी के जल-स्रोत पर निर्भर हैं।

2. स्थानीय मछुआरों द्वारा विभिन्न प्रकार की पकड़ी गयी मछलियों को पहचानिये। मछुआरों से जानने की कोशिश कीजिये कि मछलियों की प्राप्ति में अगर कमी आयी है या कि मछलियाँ पूर्ववत् मात्रा में उन्हें उपलब्ध हो रही हैं या उसकी मात्रा विगत एक या दो दशक में घट गयी है? तो इसके कारण क्या हैं?

3. स्रोत उपयोग: विभिन्न प्रकार की मछलियों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी कर उन्हें लिपिबद्ध कर लें। इसके साथ इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करें कि स्थानीय लोग किस अन्य स्रोत का उपयोग करते हैं? स्थानीय लोग मछलियाँ उपभोग के लिए पकड़ते हैं अथवा उत्पादन के लिए?

4. पारिस्थितिकी के उपभोग का अवलोकन करें तथा निम्नलिखित तथ्यों को विवरणबद्ध करें- जल-वितरण, मछली, पर्पटी, नरकुल, वृक्षों का खाद्य-पदार्थों की तरह उपभोग या उनके अन्य स्रोत।

अपने प्रतिवेदन में आप स्वच्छ (अप्रदूषित) एवं प्रदूषित जल स्रोत का तुलनात्मक अध्ययन कीजिये। आप पायेंगे कि गंदे और प्रदूषित जल में अत्यधिक तगड़े जीव ही जीवित रह पाते हैं जबकि संवेदनशील जीव विलुप्त हो जाते हैं। जल : सभी स्रोतों (या संसाधनों) में सबसे बड़ा है। एक दिन में आपने पानी का क्या उपयोग किया?

एक दिन में आपने कितनी मात्रा में पानी का उपयोग किया?

क्या आप पानी की बर्बादी उसको सावधानीपूर्वक उपयोग करके रोक सकते हैं?

किस प्रकार नहाने एवं अन्य उपयोगों के लिए आप पानी की मात्रा में कमी ला सकते हैं?

इस पहलू पर विचार करें कि किस प्रकार अपशिष्ट जलों का बाग बगीचों में उपयोग किया जा सकता है?

पानी का पुनर्चक्रण किस प्रकार सम्भव है?

स्थलीय पर्यवेक्षण पर आधारित तथ्यालेख

[1] प्रकार: स्थायी प्रवाह। मौसमी (ऋतुवी) प्रवाहः मंद-प्रवाह/तीव्र प्रवाह; गहरी/छिछली

गुणवत्ता के आयाम: नदी के जैविक एवं अजैविक आयामों का उल्लेख करें। यह बतायें कि नदी का प्रवाह प्राकृतिक है अथवा किसी ऊँचे बाँध के कारण उसके प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हुआ है?

[2] नदी की जलीय वनस्पतियों एवं पशुओं के जीवन का वर्णन करें।

[3] नदी के विभिन्न अंगों की विशेषताएँ क्या हैं : तट, छिछले क्षेत्र, गहरे क्षेत्र, मध्य-प्रवाह क्षेत्र, टापू? नदी क्षेत्र का उपयोग किस प्रकार किया जाता है?

स्थलीय अन्तर्वीक्षाओं पर आधारित निष्कर्षों का उल्लेख

[1] जल का उपयोग किस उद्देश्य से होता है: घरेलू उपयोग/कृषीय उपयोग औद्योगिकीय उपयोग। इन समस्त उपयोगों का अनुपात क्या है?

[2] पर्पटी, नरकुल, बालू इत्यादि संसाधनों में से कौन-सा संसाधन उपयोग में आता है? इन साधनों के उपयोग के पारिस्थितिकी तंत्र पर कैसा प्रभाव पड़ा है? उसका उल्लेख करें।

[3] क्या नदी का पानी वर्तनों में जमाकर रखने योग्य है?

[4] यदि पानी प्रदूषित है तो बताइये कि प्रदूषण का स्त्रोत क्या है? नदी के प्रदूषण का कारण घरेलू मल-जल, खेत का जल-प्रवाह अथवा औद्योगिक बहिर्साव में से कौन है? इनमें से किस प्रदूषण का प्रभाव ज्यादा खतरनाक कहा जा सकता है?

[5] प्रदूषण की सीमा क्या है - प्रचण्ड/उच्च/मध्यम/निम्न/शून्य कोटि का है? वर्णन कीजिये।

[6] जल की गुणवत्ता की परख करें। इस परख के परिणाम का उल्लेख करें।

[7] नदी को साफ-सुथरा रखने के लिए कौन-सा प्रयास किया गया है? यदि अभी तक कोई प्रयास नहीं हुआ तो कौन-से नदी का जल स्वच्छ बन सकता है।

[8] क्या नदी का उपयोग क्षयात्मक है या सम्पोषणात्मक?

[9] स्थानीय लोगों से पूछताछ कर यह स्पष्ट करें कि नदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है? इसका पर्यावरणीय स्तर क्या है?

[10] क्या इस नदी के कारण बाढ़ आती है? यदि हाँ तो बाढ़ आने का स्थानीय लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है? नदी की बाढ़ के प्रतिकूल प्रभावों से स्थानीय लोगों को बचाने के लिए कौन-कौन सा कदम उठाया जाना आवश्यक है?

[11] आप किस तरह स्थानीय लोगों को नदी को साफ-सुथरा रखने के लिए जागरुक बना सकते हैं?

[12] आप स्वयं नदी की पारिस्थितिकी पर किस प्रकार निर्भर हैं? नदी आपके जीवन से किस प्रकार जुड़ी हुई हैं? इस पर प्रकाश डालें।

वन

वन-संसाधन पर दृष्टिपात करने के निमित्त निर्देश

[1] जल के विश्लेषण का उल्लेख करें।

[2] वन के उपयोग का मूल्यांकन

स्थानीय लोगों विशेषकर स्थानीय महिलाओं से यह पूछें कि वे किन-किन वनोत्पाद का संग्रह करती हैं? वन के किस-किस उत्पाद का वे अपने घरों में इस्तेमाल करती है? किस-किस वनोत्पाद को वे स्थानीय हाटों में बेचती हैं? किस-किस उत्पाद को वे बाहरी क्षेत्रों में बेचती है? यह ज्ञातव्य है कि वनोत्पादों में फल, पत्ते, घास, मधु, रेशे, गोंद, राल (धूना), औषधीय पौधे इत्यादि सभी बहुत अधिक महत्त्व और मूल्य के हैं।

[3] वनोपयोग के चिह्नों का अवलोकन

वनों को देखते ही इस बात का पता चल जाता है कि लोग बनों का उपयोग किस प्रकार करते हैं? लोगों के पदचिह्न, पालतू पशुओं के खुरों के निशान जंगलों में स्पष्ट दिखायी देते हैं। इन चिह्नों को देखने से पता चल जाता है कि स्थानीय लोग और उनके पालतू जानवर वन की बनस्पतियों पर निर्भर हैं।

मवेशियों के पद-चिह्न और गोबर के ढेर को देखने से पता चल जाता है कि स्थानीय लोग इस बन का उपयोग अपने पालतू पशुओं को चराने के लिए करते हैं। मवेशियों के उन पदचिह्नों का विशेष तौर पर अवलोकन करें जो जंगलों के मध्य पानी वाले स्थल हैं। पहाड़ी तलहटियों की ढाल के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर यदि बहुत कम हरियाली (वनस्पति) दिखायी पड़े तो यह स्पष्ट है कि इन पर मवेशियों की चराई बहुत अधिक हो चुकी है।

स्थानीय लोग जंगली पेड़ों की डालियों और झाड़ियों को जलावन के लिए काटा करते हैं। ठूंठों की संख्या जलावन के लिए काटी गयी लकड़ियों के स्तर के बारे में जानकारी दे देगी। यदि वन के चारों तरफ से बुरी तरह कटाई हुई है तो स्पष्ट है कि वन का अवनयन गम्भीर रूप से हो चुका है। जाड़ों में अलाव के तथा भोजन पकाने के लिए स्थानीय लोग जंगल पर ही निर्भर होते हैं। स्थानीय महिलाओं से पूछकर पता लगाइये कि वे जलावन की लकड़ी काटने के लिए घर से कितनी दूर जाती हैं? दूंठों की अधिक संख्या को देखने से ही पता चल जाता है कि अधिक से अधिक वृक्षों का उपयोग भवन-निर्माण के लिए हुआ है अथवा उन्हें इमारती लकड़ियों के रूप में बेचने के लिए काटा गया है।

वन के निकटवर्ती गाँवों के पर्यावरण का पर्यवेक्षण करें। बन के निकटवर्ती गाँव के ग्रामीण विविध प्रकार के वनोत्पादों का उपभोग (या उपयोग) स्वयं करते हैं या फिर उसे बाजारों/हाटों में बेचा करते हैं।

स्थानीय लोग अपने उपयोगार्थ पानी कहाँ से लाते हैं? झरने में जल की विद्यमानता (अथवा उसका अस्तित्व) जंगल पर ही निर्भर करती है।

[4] वन की क्षति का आकलन

आस पास के उन गाँवों का पर्यवेक्षण करें जहाँ वन का अधिक उपयोग होता है और इसकी तुलना राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों की सुरक्षित वनस्पतियों या हरियालियों से करें। क्या इसके आच्छादन में ह्रास के चिह्न दिखलायो देते हैं? क्या वन में बंजरभूमि भी की सृष्टि हुई है? क्या वन में भू-क्षरण के लक्षण दिखायी देत हैं?

[5] उन वनोत्पादों का उल्लेख करें जिनका उपयोग आप अपने दैनिक जीवन में करते हैं?

उदाहरणतः पानी, कागज, लकड़ी और औषधि। जिस ऑक्सीजन को हम साँसों द्वारा ग्रहण करते हैं, यह ऑक्सीजन वृक्षो (वनस्पतियों) द्वारा ही उत्सर्जित किया जाता है। उन सभी वस्तुओं की एक सूची तैयार करें जिसका मूल स्त्रोत वन है।

उन तथ्यों का उल्लेख करें जिसे स्थल पर्यवेक्षण के क्रम में आपने देखा है।

[6] वन के प्रकार की पहचान करें-सदाबहार/अर्ध-सदाबहार/पर्णपाती/शुष्क पर्णपाती / काँटेदार वन।

[7] क्या यह वन प्राकृतिक है अथवा लगाया हुआ है?

[8] वन की गुणवत्ता की जाँच करें: निर्बाधित/आंशिक रूप से बाधित / थोड़े पैमाने पर/अवनयनित, गंभीर रूप से अवनयनित।

[9] अन्तर्वीक्षा के माध्यम से स्थलीय निरीक्षण के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों का उल्लेख

[10] इसके प्राकृतिक संसाधनों, वस्तुओं एवं सेवाओं की एक सूची तैयार करें।

वस्तुएँ : खाद्य-समाग्री, ईंधन की लकड़ियाँ, चारा, पानी इत्यादि।

सेवाएँ : जल क्षेत्र, जलवायु नियंत्रण, ऑक्सीजन, कार्बन डॉय ऑक्साइड का विस्थापन, नाइट्रोजन चक्र इत्यादि।

[11] वन की पारिस्थितिकी के प्राकृतिक संसाधनों के उपभोगकर्ता कौन हैं? इसके पाकृतिक संसाधनों के उपयोग उपभोग के स्तर की सूची तैयार करें (क्षयात्मक/पोषणात्मक उपयोग की अलग-अलग सूची बनायें) क्या इनका उपयोग निज के लिए होता है या बेचने अथवा दोनों के लिए? स्थानीय लोगों को फल, चारा, लकड़ी आदि की बिक्री से कितनी आय होती है? उस आय का अनुपात क्या है?

[12] अध्ययन क्षेत्र का एक नक्शा तैयार करें जिसमें विभिन्न उद्देश्यों के लिए वन-भूमि के उपयोग से सम्बन्धित आँकड़े या तथ्य शामिल हों। इस नक्शे में यह भी दर्शायें कि ये संसाधन कहाँ से इकट्ठे किये जाते हैं?

[13] वन के उपभोग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार करें। स्थानीय लोगों से उन पर्यावरणीय परिवर्तनों के बारे में पूछताछ करें जिन परिवर्तनों के कारण वन के संसाधनों पर उनकी निर्भरता प्रभावित हुई है।

[14] क्या पारिस्थितिकी का अधिक उपयोग इस पर लोगों की निर्भरता के कारण हुआ है या कुछ लोगों के लालच के कारण या दोनों के कारण?

[15] न्क्या पारिस्थितिकी तंत्र (वन) सुरक्षित क्षेत्र है? यदि हाँ, तो किस प्रकार?

[16] क्या वन को ह्रास से उबार कर उसे पुरानी हालत में लाया जा सकता है? यदि हाँ, तो व्यक्ति विशेष इस काम को कैसे कर सकता है?

[17] आप अपने दैनिक जीवन में किन-किन बनोत्पादों का उपयोग करते हैं?

तृणभूमि

तृणभूमि-संसाधन के पर्यवेक्षण सम्बन्धी दृष्टिकोण से सम्बन्धित निर्देश

[1] तृणभूमि के उपभोगीय ढाँचा

स्थानीय लोगों से पूछें कि वे तृणभूमि का उपयोग किस रूप में करते हैं? क्या वे उसमें अपने मवेशियों को चराते हैं? या अपने पालतू पशुओं के लिए चारा काटते हैं अथवा ईंधन हेतु उसका संग्रह करते हैं?

[2] तृणभूमि की वहन-क्षमता

इस बात पर गौर करें कि पालतू शाकाहारी मवेशियों के लिए तृष्णभूमि पर्याप्त हैं? यदि इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में हो तो स्पष्ट है कि उक्त तृणभूमि में पर्याप्त वहन क्षमता है। इससे इस बात का भी पता चल जायेगा कि इस तृणभूमि में कितने पालतू एवं घरेलू मवेशियों को चराया जा सकता है।

तृणभूमि के उपयोग-क्षेत्र का नक्शा बनाना

उस निकटवर्ती गाँव का नक्शा बनायें और उसमें पानी वाले क्षेत्रों एवं मवेशियों के चराई-स्थलों को अलग-अलग दर्शायें।

[1] तृणभूमि के अवनयन का प्रलेख तैयार करना

स्थानीय लोगों से पूछताछ के आधार पर विगत कुछ दशकों में तृणभूमि के उपयोग-क्षेत्र में आये परिवर्तन के ढाँचों का आकलन कर तत्सम्बन्धी प्रलेख तैयार करें। सुरक्षित तृणभूमि और अवनयनित तृणभूमि की तुलना के आधार पर उनकी भिन्नताओं को रेखांकित करें।

[2] तृणभूमि के किन उत्पादों का आप उपयोग करते हैं? उदाहरणतः दूध, माँस इत्यादि।

स्थलीय पर्यवेक्षण पर आधारित तथ्यों का विवरण तैयार करना

[3] तृणभूमि के प्रकार की पहचान बतायें हिमालय क्षेत्रीय/तराई क्षेत्रीय/अर्घ शुष्क क्षेत्रीय/शोला / घास के लिए विकसित क्षेत्र/सामान्य चराई स्थल/जंगलों की सफाई।

[4] गुणवत्ता के आयाम इसकी अजैविक एवं जैविक विशेषताओं का उल्लेख करें। तृणभूमि की मिट्टी (मृदा), पौधों वृक्षों, पशु प्रजातियों (वन्य एवं पालतू) के प्रकारों का वर्णन करें। ये पशु अपने प्राकृतिक वास-स्थल का उपयोग किस तरह करते हैं?

[5] ऋतु-परिवर्तन के अनुसार तृणभूमि में कौन-सा परिवर्तन घटित होता है?

[6] स्थलीय निरीक्षण के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों का आलेखन

[7] इसका उपयोग कौन और किस सीमा तक करते हैं?

[8] मवेशियों, भेड़ों, बकरों आदि की मुक्त चराई के अनुपातों का आकलन प्रस्तुत करें।

[9] चारा-संग्रह का आकलन प्रस्तुत करें।

[10] तृणभूमि की उत्पादकता कितनी है? स्थानीय लोगों से पूछकर तृणभूमि से चारा के बारे में यह जानकारी प्राप्त करें कि उससे प्राप्त चारा उनके पालतू मवेशियों के लिए पर्याप्त है। अपर्याप्त है अथवा उनके मवेशियों के लिए तो पर्याप्त है ही, जरूरतमंद क्षेत्रों में बेचने के लिए भी पर्याप्त है।

[11] तृणभूमि का यह उपभोग क्षयात्मक है पोषणात्मक?

[12] क्या तृपाभूमि जल्दी-जल्दी जलायी जाती है? इस बात का पता कर उल्लेख करें कि स्थानीय लोग तृणभूमि क्यों जलाते हैं?

[13] क्या वे तृणभूमि का सामान्य तौर पर बारी-बारी से उपयोग करते हैं? क्या वे इसका प्रबंध ठीक ढंग से करते हैं?

[14] आप अपने दैनिक जीवन में इस तृणभूमि के किन उत्पादों का उपयोग करते है?

नोट: इस प्रकार पहाड़ी ढाल का भी अध्ययन किया जा सकता है।

प्रदूषित क्षेत्रों का भ्रमण

प्रदूषण कई स्रोतों से फैलता है। प्रदूषण हमारे पर्यावरण के कई पहलुओं को विभिन्न रूपों में प्रभावित करता है। प्रदूषण के कारण हमारा स्वास्थ्य और सम्पूर्ण जीवन ही प्रभावित हो जाता है। प्रदूषित क्षेत्र नगर, गाँव, कृषि क्षेत्र एवं औद्योगिक, किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। भ्रमण-स्थल किस तरह का है और उसके प्रदूषण के स्रोत क्या हैं। इसके बारे में जानकारी इकट्ठी करें।

प्रदूषण से प्रभावित हो सकता है:

- वायु (धुआँ गैस),

- जल (नगरीय मल-जल, औद्योगिक रासायनिक बहिर्भाव, कृषीय कीटनाशी एवं रासायनिक उर्वरक), मृदा (रासायनिक उद्योगों के ठोस अपशिष्ट/नगरों के' ठोस अपशिष्ट),

- जैव विविधता : पौधों और पशुओं पर प्रभाव (प्रदूषण सम्बन्धी क्षेत्रीय अध्ययन के क्रम उपर्युक्त सभी पहलुओं पर विचार करें)

क्षेत्रीय कार्य के लिए प्रपत्र

1. लक्ष्य एवं उद्देश्य : स्थलीय निरीक्षण के आधार पर प्रदूषण के कारणों और प्रभावों का अध्ययन करना

2. कार्य-पद्धति : प्रदूषण-स्थलों के अध्ययन से सम्बन्धित निम्नलिखित मुख्य प्रश्न हो सकते हैं। स्थल को देखकर आप स्वयं प्रश्नावली तैयार कर सकते हैं जिनका उत्तर ढूँढना है।

3. स्थल क्या है?

ग्रामीण - कृषि क्षेत्र, प्रदूषित जल स्रोत, प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र।

नगर - स्थल पर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र।

4. आपने प्रदूषित-स्थल पर क्या देखा?

ठोस अपशिष्ट कचरों का ढेर, नदी या झील का प्रदूषित पानी, गैसीय बहिर्लाव या किसी औद्योगिक कारखाने से बाहर निकलता धुआँ?

5. प्रदूषण के कारणों की पड़ताल करें। कंचरे के अवयवों को देखें और उसका उल्लेख करें। इसी प्रकार प्रदूषित जल स्रोत एवं औद्योगिक चिमनियों का सूक्ष्म अवलोकन करें और उसके बारे में लिखें।

6. पूरे इलाके पर नजर डालें और कच्चरों के बेर का निरीक्षण करें तथा कचरे की वस्तुओं की सूची बनायें।

7. अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में विभाजित करें -

(क) अपघटीय अपशिष्ट जो सरलतापूर्वक सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटित किये जा सकते हैं। ऐसे अपशिष्टों में खाद्यान्नों, पौधों या जानवरों की सड़ी लाशें हो सकते हैं।

(ख) अनअपघटीय अपशिष्ट जो आसानी से अपघटित नहीं होते, जिनमें प्लास्टिक और शीशे हो सकते हैं।

(ग) विषैले अपशिष्ट वे हैं जो जहरीले होते हैं और जिनका असर दीर्घकालिक होता है, जैसे - रसायन, पेण्ट्स और स्प्रे इत्यादि।

निष्कर्ष :

प्रदूषण का प्रभाव किस प्रकार का है?

सामान्य निरीक्षण:

निम्नलिखित पहलुओं की जाँच की जानी चाहिए और उसके बारे में उल्लेख होना चाहिए-प्रदूषित क्षेत्र की भूमि या जल के उपयोग का प्रकार, इसकी भौगोलिक विशेषताएँ, इस क्षेत्र के उपयोगकर्ता कौन हैं, क्षेत्र का स्वामित्व किसके अधीन है?

अध्ययन क्षेत्र का नक्शा बनाइये।

प्रदूषित हो रही चीजों की पहचान करें- वायु, जल, ठोस, प्रदूषक के कारण और प्रदूषक अभिकर्ता।

प्रदूषण की सीमा का मूल्यांकन करें- तीव्र/मध्यम/हल्का/शून्य/प्रदूषण वायु का है, जल का है अथवा जैव विविधता का?

प्रदूषण के साथ जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की पहलुओं की जाँच करें।

नजदीक में रहने वाले लोगों से उनके जीवन पर प्रदूषण के पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी हासिल करें।

उपर्युक्त निष्कर्षों से सम्बन्धित एक प्रतिवेदन तैयार करें।


पर्यावरणीय अध्ययन(Environmental Studies)






















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