ClassXII_विषय- हिंदी (ऐच्छिक),सेट-4 टर्म-2

ClassXII_विषय- हिंदी (ऐच्छिक),सेट-4 टर्म-2

झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)

द्वितीय सावधिक परीक्षा (2021-2022)

प्रतिदर्श प्रश्न पत्र                                         सेट- 04

कक्षा-12

विषय- हिंदी (ऐच्छिक)

समय- 1 घंटा 30 मिनट

पूर्णांक- 40

 

सामान्य निर्देश:

» परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।

» इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।

» सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।

» प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।

खंड - 'क' (अपठित बोध)

01. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 02+02+02= 06

जीवन का सबसे बड़ा कलाकार और सबसे सफल व्यक्ति वह है जो उपयुक्त चुनाव करना जानता है । चुनाव करने में तनिक भी भूल-चूक हो गई तो असफलता, पतन और हानि सुनिश्चित है । कुछ चुनाव हमारे वश में नहीं हैं, जैसे माता-पिता का, देश-काल का, जन्म-मृत्यु का; किंतु कुछ चुनाव हमारे अपने वश में है, जिन पर हमारी सफलता और असफलता निर्भर है; जैसे काम करने या ना करने का चुनाव, आलस्य और परिश्रम का चुनाव और अच्छी-बुरी संगति का चुनाव । इन सब चुनावों में अच्छी - बुरी संगति का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है ; क्योंकि इस चुनाव पर हीहमारा आचरण, हमारा कर्म, हमारे विचार, हमारी कर्मशैली और हमारी भाषा का स्तर निर्भर है । इन्हीं बातों पर हमारे जीवन की सफलता-असफलता की संभावनाएँ टिकी हैं।

(क) सबसे सफल व्यक्ति किसे कहा गया है ?

उत्तर: जीवन का सबसे बड़ा कलाकार और सबसे सफल व्यक्ति वही है जो विधि और संगति का चुनाव करना जानता है।

(ख) किनका चुनाव करना हमारे वश में नहीं है ?

उत्तर: माता-पिता, देश-काल और जीवन-मृत्यु का चुनाव हमारे वश में नहीं है।

(ग) जीवन की सफलता - असफलता किस पर टिकी हुई है ?

उत्तर: जीवन की सफलता-असफलता, अच्छी-बुरी संगति पर टीकी हुई हैं।

अथवा

नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए -

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

आगे-आगे नाचते-गाती बयार चली,

दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गर्दन उचकाए

आँधी चली,धूल भागी घाघरा उठाये,

बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की ।

'बरस बाद सुधि लीन्ही'-

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,

(क) पद्यांश में किस ऋतु का वर्णन है ?

उत्तर: पद्यांश में वर्षा ऋतु का वर्णन है।

(ख) मेघों के आगमन की तुलना किससे की गई है ?

उत्तर: मेघों के आगमन की तुलना सज-धजकर शहर से आनेवाले अतिथि से की है जो गाँव में हैं।

(ग) मेघों के आगमन पर पीपल ने क्या किया ? उसके लिए 'बूढे' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है ?

उत्तर: मेघों के आगमन पर पीपल ने उसका स्वागत किया। पीपल का वृक्ष बहुत पुराना था। इसी करण उसे बूढ़ा कहा गया है।

खंड - 'ख' (अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन)

02. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 05+05=10

(क) 'आज का भारत' अथवा 'कम्प्यूटर साक्षरता का महत्त्व' विषय पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर:  'आज का भारत'

'हम होंगे कामयाब एक दिन'। दृढ़ संकल्प हर भारतवासी के मन में गूंजता हुआ यह कह रहा है कि हमारा भारत इक्कीसवीं सदी में कदम रखते-रखते विश्व की महाशक्तियों में अपने लिये स्थानान्तरण कर चुका है।

आज भारत की स्थिति विश्व में अत्यन्त महत्वपूर्ण है और आज भारत की स्थिति ऐसी है कि आज वह किसी से दबा हुआ नहीं। उसे दब्बू बनने की आवश्यकता नहीं अपितु आज तो हमारे सामने दूसरे देश झुकते हैं, क्योंकि अब भारतवासियों का मानना है कि-

'छीनता तो स्वत्व कोई, और तू तप, त्याग से काम ले, यह पाप है। पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे, बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है।' शत्रु का हाथ यदि आपकी गर्दन की ओर बढ़ रहा है, तो क्या आप खामोश रह सकते हैं ? उस समय ऐसा लगेगा कि हम इतने शक्तिशाली हो जाएँ ताकि शत्रु का सामना कर सके। अपनी सुरक्षा अनुचित नहीं है।

आज हम आर्थिक, औद्योगिक एवं सैन्य बल के आधार पर विश्व में अपने कदम टिकाए हुए हैं। यह हमारे महाशक्तिशाली होने का स्पष्ट प्रमाण हैं। अपने हर क्षेत्र में इतनी तरक्की की है कि हमारे यहाँ सूई जैसी छोटी चीज है लेकर, अंतरिक्ष यान जैसी बड़ी चीज का भी निर्माण भारत के अन्दर ही हो रहा है। स्पष्ट है कि इक्कीसवीं सदी में हम विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरने जा रहे हैं।

महाशक्तिशाली होने के मूल में विज्ञान की अहम भूमिका रही है और विज्ञान का दिनों-दिन विकास का वरदान की भांति समाने आया है। आज विज्ञान की बदौलत हम विश्व में एक समृद्धशाली औद्योगिक राष्ट्र के रूप में दमक रहे हैं। सबसे अच्छी बात कि हमने जो विकास किया उसमें संतुष्टि तो की, परन्तु ऐसी संतुष्टि न की है विकासशील कार्य ही रोक दिये हों।

शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व संचार आदि सभी क्षेत्रों में हमने प्रगति का उद्घोष किया। प्रतिवर्ष यहाँ के आई.टी. स्पेशलिस्ट हजारों की संख्या में यहाँ से प्रभुत्व-सम्पन्न देशों के की मांग को वहाँ जाकर पूरा करते हैं। प्रतिवर्ष यहाँ से हजारों की संख्या में ऐसे ऑफिसर विश्व के विभिन्न देशों में फैल जाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यहाँ भरपूर प्रगति चल रही है। प्रतिवर्ष शिक्षा के स्टैण्डर्ड को ऊपर उठाने का प्रयत्न किया जा रहा है। हर क्षेत्र में हम विकासशील हैं। हमने बहुत सफलता पाई परन्तु और पाना चाहते हैं।

जहाँ तक इतना विकास करते चले जा रहे हैं, इसका एक कारण भारतवासियों के दिलों में बसा जोश भी है, परन्तु इस जोश को सही दिशा नहीं मिल पा रही है। हम दिशाहीन भी हो रहे हैं, जिसके फलस्वरूप कई गंभीर समस्याएँ महमारी की भांति हमारे इक्कीसवीं सदी के विकासशील भारत को निगलने का प्रयल कर रही हैं।

ऐसी कुछ समस्याएँ हैं जैसे भ्रष्टाचार, जात-पात, मजहब के नाम पर लड़ाइयाँ, हमारी राजनीति में बढ़ता अपरधीकरण आदि।

भारतीय राजनीति को लकवा मार गया है। कर्णधार निर्णय लेने से घबराने लगे हैं और रही-सही कसर हड़ताल पूरी कर देती है। आज हम अपनी सुनहरी अतीत स्मरण कराने में लगे हैं। आज हम अनुदानों पर निर्भर होकर रह गये हैं। अपने आत्मस्वाभिमान को हम पुरुषार्थ में ढूँढ रहे हैं।

मेरा तो मानना है कि 'सम्पन्नता की इक्कसवीं सदी' में पहुँचते हुए भी हम मानसिक गुलामी की अठारहवीं शताब्दी में होंगे।

यदि हम चाहते हैं कि वर्तमान युग में हम पूर्ण रूप से सफल हों तो अपनी आवश्यकतानुसार वनों को काटे, भ्रष्टाचार रूपी समस्याओं की जड़ से उखाड़ फेंके, बढ़ती हुई आबादी को रोकने का प्रयास करें तथा अपर आचार-व्यवहार को परिवर्तित करें।

'कर रहा साजिश अंधेरा, सीढ़ियों पर बैठकर

रोशनी के चेहरे पर क्यों कोई हरकत नहीं।'

भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का इक्कीसवीं सदी के भारत का नारा भारत को जिन ऊंचाइयों तक ले जाने वाला बारा था, सोचना यह है कि सचमुच हम उनके कितने निकट पहुँच पाये हैं। हम अपने देश की स्वतंत्रता की 72वीं वर्षगाँठ मना चुके हैं पर गरीब किसान का बेटा आज भी यही कहता

'हम क्या जाने आजादी क्या

आजाद देश की बातें क्या?

उस गरीब की तो विरासत में कर्जा, टूटी-फूटी झोपड़ी और भूख ही मिली है। सदियों की गुलामी से आजाद कराने वाले नेताजी ने एक सुन्दर, सुखद, विकसित भारत की कल्पना की थी, उसे साकार रूप देना आने वाले पीढ़ियों का काम था और है। पर दुर्भाग्य से, हीन ग्रंथि से ग्रसित भारतवासी स्वार्थपरता के शिकार हो गये। नतीजतन, त्याग एवं परोपकार का संदेश देने वाले भारतीयों का सिद्धान्त यों बदल गया है-

'अन्धा बाँटे रेवड़ी, अपने-अपने को दे।'

भाई-भतीजावाद की प्रवृत्ति ने देश के लिये बलिदान होने वाले देशभक्तों, देश को आजादी दिलवाने वाले नेताओं की भावनाओं और सपनों को चकनाचूर

कर दिया। यह सच है कि भौतिक प्रगति के क्षेत्र में भारत निरन्तर आगे बढ़ रहा है, पर सोचना यह है कि जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ी है क्या उसी अनुपात में आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, जगदीश चन्द्र बोस, भाभा आदि जैसे महन वैज्ञानिक भी बढ़ रहे हैं ? साहित्य हो या विज्ञान, कला हो या भाषा, किसी भी क्षेत्र में हम अपने पैरों पर खड़े होने का सच्चा प्रयास कर रहे हैं? यदि नहीं, जो सच है, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि इक्कीसवीं सदी का भारत शयद तकनीकी क्षेत्र में तो आगे बढ़ता रहेगा, किन्तु उसकी रीढ़ अर्थात् उसकी आध्यात्मिक एवं नैतिक शक्ति इतनी क्षीण हो जायेगी कि उसका पूर्णतः अपने पैरों पर खड़े रहना ही असंभव हो जायेगा।

अत: इक्कीसवीं सदी के भारत को सच्चे अर्थों में यदि शक्तिशाली राष्ट्र बनाना है, प्रगति के सशक्त सोपान पर आगे बढ़ाना है, ऊँचा उठाना है तो भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा का सहारा लेकर 'कलयुगी' पथ पर आगे बढ़ना होगा। वही भारत की सच्ची तस्वीर होगी, सच्चा रूप होगा। हमें गर्व से कहना चाहिए-

आओ मिलकर भारत को एक ऐसा देश बनाएँ।

फिर से भारतवासी जग में ऋषि, मुनि, गुरु कहलाएँ।

अथवा

       'कम्प्यूटर साक्षरता का महत्व'

वर्तमान युग-कंप्यूटर युग : वर्तमान युग कंप्युटर युग है । यदि भारतवर्ष पर नजर दौड़ाकर देखें तो हम पाएँगे कि आज जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रवेश हो गया है। बैंक, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, डाकखाने, बड़े-बड़े उद्योग, कारखाने, व्यवसाय, हिसाब-किताब, रुपये गिनने की मशीनें तक कंप्यूटरीकृत हो गई हैं। अब भी यह कंप्यूटर का प्रारंभिक प्रयोग है। आने वाला समय इसके विस्तृत फैलाव का संकेत दे रहा है।

कंप्यूटर की उपयोगिता : आज मनुष्य-जीवन जटिल हो गया है। सांसारिक गतिविधियों, परिवहन और संचार-उपकरणों आदि का अत्यधिक विस्तार हो गया है। आज व्यक्ति के संपर्क बढ़ रहे हैं, व्यापार बढ़ रहे हैं. गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, आकांक्षाएँ बढ़ रही हैं, साधन बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप सब जगह भागदौड़ और आपाधापी चल रही है।

स्वचालित गणना-प्रणाली : इस 'पागल गति' को सुव्यवस्था देने की समस्या आज की प्रमुख समस्या है। कंप्यूटर एक ऐसी स्वचालित प्रणाली है, जो कैसी भी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदल सकती है । हड़बड़ी में होने वाली मानवीय भूलों के लिए कंप्यूटर रामबाण औषधि है। क्रिकेट के मैदान में अंपायर की निर्णायक भूमिका हो, या लाखों-करोड़ों-अरबों की लंबी-लंबी गणनाएँ, कंप्यूटर पलक झपकते ही आपकी समस्या हल कर सकता है । पहले इन कामों को करने वाले कर्मचारी हड़बड़ाकर काम करते थे । परिणामस्वरूप काम कम, तनाव अधिक होता था । अब कंप्यूटर की सहायता से काफी सुविधा हो गई है।

कार्यालय तथा इंटरनेट में सहायक : कंप्यूटर ने फाइलों की आवश्यकता कम कर दी है। कार्यालय की सारी गतिविधियों चिप में बंद हो जाती हैं। इसलिए फाइलों के स्टोरों की जरूरत अब नहीं रही । अब समाचार-पत्र भी इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने की व्यवस्था हो गई है। विश्व के किसी कोने में छपी पुस्तक, फिल्म, घटना की जानकारी इंटरनेट पर ही उपलब्ध है । एक समय था जब कहते थे कि विज्ञान ने संसार को कुटुंब बना दिया है। कंप्यूटर ने तो मानों उस कुटुंब को आपके कमरे में उपलब्ध करा दिया है।

नवीनतम उपकरणों में उपयोगिता : आज टेलीफोन, रेल, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों के बिना नागरिक जीवन जीना कठिन हो गया है। इन सबके निर्माण या संचालन में कंप्यूटर का योगदान महत्त्वपूर्ण है । रक्षा-उपकरणों, हजारों मील की दूरी पर सटीक निशाना बाँधने, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तुओं को खोजने में कंप्यूटर का अपना महत्त्व है । आज कंप्यूटर ने मानव-जीवन को सुविधा, सरलता, सुव्यवस्था और सटीकता प्रदान की है। अत: इसका महत्त्व बहुत अधिक है।

कम्प्यूटर के प्रचलन के साथ व्यापक बेरोजगारी की सम्भावना व्यक्त की गयी थी। लेकिन यह आशंका निर्मूल साबित हुई है । कम्प्यूटर ने असीमित संभावनाओं के द्वारा खोल दिये हैं । किन्तु इसके प्रयोग में सतर्क, सचेत और सावधान रहने की आवश्यकता है । यह एक ऐसा साधन है जिसका राष्ट्र की प्रगति में अमूल्य योगदान है । लेकिन, एक बात स्मरणीय है कि कम्प्यूटर साधन भर है साध्य नहीं । मानव के ऊपर इसे महत्व देना अनुचित होगा।

(ख) अपने क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादक को एक पत्र लिखिए।

उत्तर: सेवा में,

         संपादक, दैनिक 'आज

          राँची

विषय : कानून-व्यवस्था/चोरी में वृद्धि।

महाशय,

           आपके सम्मानित पत्र के माध्यम से मैं भारत सरकार के गृह विभाग का ध्यान अपने क्षेत्र की दयनीय शान्ति-व्यवस्था के सम्बन्ध में आकर्षित करना चाहता हूँ।

हमलोग मधुपुर क्षेत्र के रहनेवाले हैं। मधुपुर से दो मील की दूरी पर अपौया-बैजलपुर नामक गाँव है, जहाँ दो वर्ग के लोगों में पिछले तीन वर्षों से बेहद तनाव रहता है। इस अवधि में करीब पच्चीस लोग मारे जा चुके हैं। आस-पास के गाँवों पर भी इसका असर पड़ रहा है। घर-घर में लोग देशी पिस्तौल रखने लगे हैं। राह चलते लोगों पर खतरा बढ़ गया है। दिन को भी रास्ता चलते लोगों की जान सुरक्षित नहीं है। हत्या, डकैती और लूट-पाट, रोजमरे की बातें हो गयी हैं।

मधुपुर में एक थाना लगा है, लेकिन यहाँ से इस क्षेत्र की व्यवस्था को बनाये रखना संभव नहीं है। होना तो यह चाहिए कि स्वयं अमैया-बैजलपुर के बीच में एक पुलिस फांडी हो। साथ ही, कल्याणपुर से जो सड़क उन गांवों से होकर गुजरती है उस पर पुलिस का गश्ती पहरा हो और पास के सभी गांवों से तलाशी लेकर अवैध हथियारों को खोज निकाला जाय। जिला प्रशासन तो पूरी तरह सचेष्ट है, लेकिन राजय सरकार के स्तर पर जब तक ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे तब तक कुछ नहीं होने को है।

आशा है, सरकार अविलम्ब इस दिशा में ध्यान देगी।

20.03.2020

आपका विश्वासी

अंकित राज

(ग) अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए जिले के स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखें।

उत्तर: सेवा में,

          अध्यक्ष,

            नगर निगम, राँची।

विषय- नगर के विभिन्न क्षेत्रों में गंदगी एवं मच्छरों की समस्या तथा नगर में मलेरिया और डायरिया का बढ़ता प्रकोप।

महोदय,

          विदित है कि राँची नगर क्षेत्र में मच्छरों का प्रकोप निरन्तर बढ़ता जा रहा है। बरसात तो बरसात ही है, अन्य मौसमों में भी इस घनी आबादी वाले क्षेत्र की नालियाँ गंदे जल से भरी रहती हैं। जमा हुआ पानी तो मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। हमारे क्षेत्र में अनेक लोग मलेरिया से ग्रस्त हैं। अब तो डेंगू भी अपनी लीला दिखाने को तत्पर है।

पिछले वर्ष राँची नगर के अनेक लोगों के जीवन को मलेरिया लील गया। इसी तरह डायरिया के कारण भी अनेक मौतें हुई हैं। इन सबका एकमात्र कारण नगरीय क्षेत्रों में यत्र-तत्र-सर्वत्र फैली गन्दगी एवं नाले-नालियों आदि के पानी का जमाव है। बजबजाती नालियाँ और गढ्ढों के पानी में पनपते मच्छरों के कारण मलेरिया ने इस शहर में आतंक फैलाया है। डायरिया का भी मुख्य कारण अनेक प्रकार की गंदगी, प्रदूषण एवं दूषित पेयजल है।

धन्यवाद

भवदीय

अविनाश कुमार

दिनांक-20 मार्च, 2022

अशोक नगर राँची।

(घ) समाचार लेखन के छ: ककार क्या हैं?

उत्तर: समाचार लिखते समय पत्रकार मुख्यत: छह ककारों का उत्तर देने का प्रयत्न करता है।

ये छह ककार हैं- क्या हुआ', 'किसके साथ हुआ', 'कहाँ हुआ', 'कब हुआ', 'कैसे हुआ' और 'क्यों हुआ?

इस- क्या, किसके (कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे को छः ककरों के रूप में जाना जाता है। किसी समाचार या घटना की रिपोटिंग करते समय इन छह ककारों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

खंड - 'ग' (पाठ्यपुस्तक)

03. निम्नलिखित काव्यांश में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या लिखिए- 05

(क) राघौ! एक बार फिरी आवौ।

ए वर वाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।

जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार-वार चुचुकारे।।

उत्तर: प्रस्तुत काव्यावतरण तुलसीदास की गीतावली से अवतरित है। इस पद में राम के अश्वों के बहाने कौशल्या के दुःसह्य पुत्र वियोग का वर्णन हुआ है।

कौशल्या कहती है-हे राम एक बार तुम वापस लौट आओ। तुम्हारे द्वारा प्यार-दुलार से पाले गये घोड़े को देखो। ये घोड़े तुम्हारे वियोग में कैसे जीवित रहेंगे।

अथवा

(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।

धनि सारस होइ ररि मुई, आई समेटहु पंख।।

उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित 'बारहमासा' से लिया गया है। नागमती अपने पति रत्नसेन के वियोग में अत्यन्त दुर्बल हो गयी है। अपने पति के पास संदेश भेजती हेकि उसके शरीर का रक्त, मांस तथा हड्डियाँ सभी लगभग नष्ट हो चुके हैं। वह मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है।

04. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06

(क) भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है?

उत्तर: यद्यपि सभी अनर्थ की मूल कैकेयी थी, उसी के कारण दशरथ ने प्राण त्यागे, राम-सीता और लक्ष्मण को वन जाना पड़ा एवं अनेक दु:खद घटनाएँ घंटी तथापि भरत इन सभी अनर्थों के लिए स्वयं को ही जवाबदेह मानते हैं। वे समझते हैं कि यदि वे नहीं होते तो उनकी माँ उनके लिए न तो राज्य की माँग करती, न ही राम को चौदह वर्षों के लिए वनवास मिलता। भरत के हृदय की ग्लानि का यह भाव उनके शुद्ध, सात्विक संत हृदय का परिचायक है जिसमें राम के लिए अनन्य श्रद्धा एवं भक्ति का भाव भरा हुआ है।

(ख) 'तब तो छवि पीवत जीवित हे, अब सोचन लोचन जात जरे' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यहाँ प्रियतम अपनी प्रेयसी का स्मरण करके कह रहा है कि जब हम लोग आस-पास थे, तब मैं तुम्हें देख-देखकर जीवित था। अब तुम पास पानी कल्पना में सोच रहा हूँ। इस दशा में मेरे नेत्र मानो जले जा रहे हैं।

(ग) माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?

उत्तर: माघ महीने में पाला पड़ने के कारण विरहिणी नायिका पिया-वियोग में जड़वत् हो जाती है। पति के बिना भयानक ठंड रजाई ओढ़ने से भी दूर नहीं होती। विरहिणी कहती है कि मेराजिया पिया बिन काँपता रहता है। वह कहती है कि विरह के कारण मेरी आँखों में आँसू बहते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे बादल जल बरसा रहे हों। उनका पानी शरीर के अन्य अंगो पर बाण के चीरने के समान कष्टदायी लगता है। इस पद में विरहिणी की वेदना का मार्मिक‌चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

05. निम्नलिखित में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06

(क) आँखें बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले?

उत्तर: आँखें बंद रखने का परिणाम यह निकला कि प्रजा ने पहले की में अधिक और अच्छा काम किया इससे राजा की सुख-समृद्धि में पहले की अपेक्षा अधिक वृद्धि हुई । प्रजा ने आँखें खोलकर जब एक दूसरे की ओर पहचान भी नहीं सके। उन्हें केवल राजा ही दिखायी दिया अर्थात् आँखें रखे-रखे प्रजा अपनी पहचान भूल चुकी थी तथा उनकी एकजुटता समाप्त हो गयी थी।

(ख) सिंगरौली को कालापानी क्यों कहा जाता है?

उत्तर: सिंगरौली घने जंगलों और दुर्गम पर्वतमालाओं से घिरा क्षेत्र था। इस क्षेत्र में प्रवेश करना जितना कठिन था उतना ही कठिन वहाँ से बाहर निकल पाना भी था। यही कारण है कि यहाँ के निवासी कभी बाहर नहीं गये और यदि किसी परिस्थितिवश यहाँ आना पड़ गया तो वह लगभग इस जगह के बंदी होकर रह गये । यही कारण है कि सुरम्य प्राकृतिक दृश्यावलियों के बावजूद एक जमाने में सिंगरौली को कालापानी कहा जाता था क्योंकि उस जमाने में वहाँ आवागमन के लिए यातायात का कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था। किन्तु वर्तमान समय में स्थितियाँ बहुत अधिक बदल चुकी हैं।

(ग) मंसा देवी जाने के लिए केविलकार में बैठे हुए सम्भव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उसका वर्णन कीजिए।

उत्तर: मंसा देवी जाने के लिए जब संभव केबिल-कार में बैठा, तो उसके मन में निम्नलिखित कल्पनाएँ उठ रही थीं-

(i) उसे गुलाबी के सिवा 'कोई रंग सुहा नहीं रहा था। वह गुलाबी कार में बैठ गया।

(ii) उसने नवविवाहित दंपत्ति को चढ़ावे की बड़ी थैली लिए बैठे हुए देखा, तो उसका मन भी अनायास उस नवयौवना की तरफ गया, जिसे उसने कल देखा था और अपने भविष्य को लेकर सोचने लगा।

(iii) संभव की कल्पना में केवल वही नवयुवती थी, उसका सौंदर्य था, जो उसने कल देखा।

06. प्रभाष जोशी अथवा मलिक मुहम्मद जायसी की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखें। 02

उत्तर: प्रभाष जोशी ! कागद कारे, लुटियन के टीले का भूगोल ।

         मलिक मुहम्मद जायसी : पद्मावत, अखरावट ।

07. हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले जमाने के लोग कुछ नहीं जानते थे 03

उत्तर: आज के इंजीनियर पश्चिमी शिक्षा पद्धति से शिक्षित किये गये। उन्हें घुट्टी देकर यह बात समझायी गयी कि पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश पश्चिमी पुनर्जागरण (रेनासा) के कारण फैला। इससे पूर्व भारत में ज्ञान का लवलेश नहीं था। इसी मानसिकता के कारण वे यह समझते हैं कि वे पानी का बेहतर प्रबंधन जानते हैं । इससे पूर्व के भारतीयों को इसका ज्ञान ही नहीं था।

अथवा

बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है- टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: लेखक ने इस कथन का अभिप्राय यह है कि बच्चे का माँ का दूध पीना और माँ द्वारा दूध पिलाना, दोनों ही क्रियाएँ शिशु और जननी के अनादि और जीवन-पर्यंत सम्बन्धों का परिचायक है। ये क्रियाएँ दोनों को ममता के अति सूक्ष्म और अदृश्य डोर से बाँधे रहती हैं। माँ जब आँचल में छिपाकर बच्चे को दूध पिलाती है, तब वह माँ के पेट का स्पर्श और गंध का भोग करता रहता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो वह माँ के पेट में अपनी जगह ढूँढ़ता रहता है। बच्चा सुबुकता है, रोता है, माँ को मारता है, कभी-कभी माँ भी उसे मारती है फिर भी बच्चा माँ के पेट से चिपका रहता है और माँ अपने नन्हें शिशु को चिपटाये रहती है। बच्चा दाँत निकलते वक्त माँ के स्तनों को काट भी लेता है। माँ झुंझलाती है किन्तु दूध पिलाना बंद नहीं करती हैं। बच्चा माँ के अंग से लिपटकर केवल माँ का दूध ही नहीं पीता अपितु वह जड़ से चेतन होने अर्थात् अपने मानव-जन्म लेने की सार्थकता को पा लेता है । दूध पिलाकर माँ भी असीम आनंद और पुलक से भर जाती है। उसका मातृत्व भी सार्थक हो जाता है। अतः लेखक के इस कथन में तनिक-सी भी अतिशयोक्ति नहीं है कि बच्चे का माँ का दूध पीना, सिर्फ दूध पीना नहीं है, अपितु वह माँ से बच्चे के सारे सम्बन्धों का जीवन-चरित होता है।

08. 'बिस्कोहर की माटी शीर्षक पाठ में लेखक ने किन फूलों और फलों की चर्चा की है? 02

उत्तर: बिस्कोहर की माटी शीर्षक पाठ में लेखक ने कोइया, नीम के फूल, बेर का फूल तथा फलों में आम, सिंघाड़े की चर्चा की है।

अथवा

मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज ने पानी के रख-रखाव के लिए क्या प्रबंध किए?

उत्तर: (क) तालाबों तथा बावड़ियों का निर्माण : मालवा के विक्रमादित्य, भोज और मुंज आदि राजा इस बात से परिचित थे कि इस पठारी क्षेत्र में पानी को रोक कर रखना अति आवश्यक है। इसलिए उन्होंने तालाबों और बावड़ियों का निर्माण किया।

(ख) भूमिगत जल का संरक्षण : इन राजाओं ने तालाबों तथा वावड़ियों का निर्माण करके बरसात के पानी को एकत्रित किया ताकि उस पानी का उचित प्रयोग किया जा सके और भूमिगत जल को जीवंत रखा जा सके। इससे भूमिगत पानी का बचाव हुआ और बरसात के व्यर्थ वह जाने वाले पानी का प्रयोग भी ठीक ढंग से हो सका।

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