झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021-2022)
प्रतिदर्श
प्रश्न पत्र सेट- 05
कक्षा-12 |
विषय- हिंदी (ऐच्छिक) |
समय- 1 घंटा 30 मिनट |
पूर्णांक- 40 |
सामान्य
निर्देश:
»
परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।
»
इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।
»
सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
»
प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।
खंड
- 'क' (अपठित बोध)
01. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
02+02+02= 06
भविष्य का भार आपके कंधों पर है । संसार का सारा इतिहास, मानव के सारे पूर्वज
उत्सुकता से आप सब युवकों की ओर देख रहे हैं । मानव-जीवन के चरम विकास को, पृथ्वी पर
स्वर्ग को या गाँधीजी के रामराज्य को स्थापित करना आपके हाथ में है। उसी की स्थापना
में मानव जीवन की सफलता है। जीवन को 'सत्यं, शिवं, सुंदरम्' बनाने का भार अपने कंधों
पर लेकर आप आगे बढ़ रहे हैं ।
(क) मानव जीवन की सफलता किसमें है ?
उत्तर:
मानव जीवन की सफलता रामराज्य को स्थापित करने में है।
(ख) उत्सुकता से कौन किसकी और देख रहा है ?
उत्तर:
संसार का इतिहास, पूर्वज युवाओं की ओर देख रहे हैं।
(ग) प्रस्तुत गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए |
उत्तर:
युवाओं पर निर्भर भविष्य।
अथवा
नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल-थल में
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,
अवनि और अंबर-तल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी,
मंद पवन के झोंकों से ।
(क) 'अवनि' का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अवनि का अर्थ है-धरती।
(ख) तरु क्यों झूम रहे हैं ?
उत्तर:
मंद पवन के कारण तरू झूम रहे हैं।
(ग) धरती किस प्रकार प्रसन्नता प्रकट करती है ?
उत्तर:
स्वच्छ चाँदनी फैलने से धरती नवयौवन की तरह अंगड़ाई से प्रसन्न हो रही है। हरी घास
उसपर मखमली अहसास कराती है।
खंड - 'ख' (अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन)
02. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए. 05+05=10
(क) झारखंड और पर्यटन' अथवा 'जीवन में खेलों का महत्त्व' विषय पर एक
निबंध लिखिए।
उत्तर: "झारखण्ड और पर्यटन"
झारखण्ड
में प्रकृति की असीम कृपा रही है। पर्यटकों के लिए झारखण्ड स्वर्ग है। हर ओर प्राकृतिक
दृश्य बिखरे पड़े हैं। आबादी से पाँच किलोमीटर दूर किसी दिशा में जाने पर इतने नयनाभिराम
दृश्य मिलते हैं कि मन मुग्ध हो जाता है।
पर्यटन
की दृष्टि से झारखण्ड अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ ऐतिहासिक और भौगेलिक दोनों प्रकार
के पर्यटन स्थल हैं। जलप्रपात एवं अभ्यारण्य से भरे पड़े हैं। धार्मिक श्रद्धालुओं
के लिए वैद्यनाथ मंदिर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। देवघर स्थित इस मंदिर में सावन के
महीने में शिवलिङ्ग पर जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। यहाँ जल
चढ़ाने का बड़ा महात्म्य है। जैन मतावलम्बियों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण पारसनाथ भी
झारखण्ड में ही है।
झारखण्ड
के नृत्य, संगीत और कला की अलग पहचान है। यहाँ के रीति रिवाजों और करमा सरहुल आदि पर्वो
की समृद्ध परम्परा है।
बेतला
में राष्ट्रीय अभ्यारण्य है। पलामू स्थित इस अभ्यारण्य में कई तरह के वन्यपशु हैं।
रात को रुककर वहाँ वन्यपशुओं का अवलोकन अत्यन्त मुग्धकारी होता है। नेतरहाट नैसर्गिक
रूप से एवं शैक्षिक रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यहाँ एक उत्कृष्ट स्कूल है जहाँ
से पढ़कर विद्यार्थियों ने आज भारत में अपनी अलग पहचान बनायी है। यहाँ का सूर्योदय
एवं सूर्यास्त पर्यटकों का मन मोह लेता है।
झारखण्ड
में पर्यटन स्थलों की भरमार है। आज जरूरत इन जगहों पर पर्यटकों के लिए सुविधाएँ बढ़ाने
की है। इससे राज्यकोष में वृद्धि होगी और झारखण्ड सम्पन्न होगा।
अथवा,
"जीवन में खेलों का महत्त्व"
खेल
अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ खेल मैदान में खेले जाते हैं, कुछ घरों में और कुछ जल
में। क्रिकेट, वॉली बॉल, फुटबॉल, कबड्डी, पोलो, हॉकी आदि खेल मैदान में खेले जाते हैं
और कैरम, लूडो, शतरंज आदि प्रायः घरों में खेले जाते हैं । बैडमिंटन, टेनिस आदि मैदान
में भी खेले जाते हैं, इनडोर स्टेडियम में भी
खेल
का महत्त्व अनेक दृष्टियों से है। पहली बात तो यह कि इसमें भाग-दौड़ करने से शरीर चुस्त-दुरुस्त
होता है और चपलता आती है जो कि स्वस्थ रहने के लिए अत्यावश्यक है। दूसरी बात यह है
कि खेल से प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है जो जीवन में भी जरूरी है। तीसरी बात यह
है कि इससे परस्पर सहयोग की. भावना उत्पन्न होती है और त्याग की भावना का भी विकास
होता है क्योंकि खिलाड़ी अपने लिए ही नहीं, पूरी टीम के लिए खेलता है और कभी अपने नगर,
राज्य और देश के लिए भी। उसका सम्मान स्थान या देश से भी जुड़ जाता है। सबसे बड़ी बात
यह है कि खेल से समय और आत्म-नियंत्रण का भाव उत्पन्न होता है।
स्पष्ट
है कि खेल का हमारे जीवन में, व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए, महत्त्वपूर्ण
स्थान है। यही कारण है कि राज्य सरकारें इस पर ध्यान देने लगी हैं। राष्ट्रीय स्तर
पर खेल नीति बनने लगी है। इसके फलस्वरूप खेल धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप लेने लगे हैं।
क्रिकेट, टेनिस और फुटबॉल के खिलाड़ी करोड़ों का वारा-न्यारा करने लगे हैं। क्रिकेट,
टेनिस में जीत-हार पर जुआबाजी होने लगी है और खिलाड़ी जीत और हार के लिए पैसे लेने
लगे हैं। कुछ खिलाड़ी तो जीत के लिए नशीली दवाएँ भी लेते हैं। यह दुःखद स्थिति है और
खेल-भावना के विपरीत और शर्मनाक है। वस्तुतः खेलों को खेल के
रूप
में, स्वास्थ्य एवं जीवन विकास की सीढ़ी के रूप में ही लेना चाहिए । इसी में इसकी सार्थकता
है।
(ख) अपने गाँव में कोरोना जाँच कैंप लगवाने हेतु संबंधित अधिकारी को
एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में,
स्वास्थ्य पदाधिकारी, बोकारो
विषय
: कोरोना जाँच कैंप हेतू।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मेरा गाँव बोकारो
जिले के अति सुदूर क्षेत्र में अवस्थित है। यहाँ हर घर में कोरोना के लक्षण वाले मरीज
मिल रहे हैं किन्तु जाँच के अभाव में साबित नहीं होता है कि वह मरीज कोरोना संक्रमित
है या नहीं। वे लोग गाँव में घूमते हुए नजर आते हैं इससे आशंका बनी रहती है कि पूरा
गाँव कहीं कोरोना संक्रमित नहीं हो जाए।
अत:
आपसे अनुरोध है कि यथाशीघ्र इस गाँव में कोरोना जाँच की शिविर लगाया जाए ताकि अधिक-से-अधिक
लोगों की जाँच हो सके और कोरोना संक्रमण के दर को रोका जा सके।
सधन्यवाद। भवदीय
दिनांक:
21 फरवरी, 2022 रमेश
(ग) 'उल्टा पिरामिड शैली का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उलटा पिरामिड शैली में किसी घटना, विचार या समस्या का विवरण कालानुक्रम से प्रस्तुत
नहीं किया जाता अपितु महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना की सर्वप्रथम जानकारी देकर उसका आरंभ
किया जाता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि खबर का चरम (क्लाइमेक्स) अंत में नहीं खुलकर
बिलकुल शुरू में ही सामने आ जाता है। इसके बाद घटते हुए महत्त्व क्रमानुसार तथ्यों
या सूचनाओं का विवरण लिखा जाता है।
उल्य
पिरामिड-शैली पर आधारित समाचार लिखना एक अत्यनत लोकप्रिय तथा लाभदायक तरीका है। उलटा
पिरामिड शैली में समाचार को तीन हिस्सों में बाँटकर लिखा जाता है। सामाचार का पहला
अंग इंट्रो (Intro) है। जिसे हिन्दी में मुखड़ा' कहते हैं, होता है। इंट्रो के अंतर्गत
समाचार के मूल तत्व को दो-तीन पंक्तियों में बताया जाता है। इसके बाद इस शैली का दूसरा
अंग 'बाडी' कहलाता है। 'बाडी' के अंतर्गत समाचार के विस्तृत विवरण को घटते हुए महत्त्व
क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। यद्यपि उलटा पिरामिड शैली में 'समापन' जैसी कोई चीज
नहीं होती। इसमें और केवल प्रासंगिक सूचनाओं और तथ्यों पर रहता है। अगर जरूरत पड़े
तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ पंक्तियों या अनुच्छेदों को हटाया भी
जा सकता है। और वहीं पर समाचार समाप्त हो जाता है।
(घ) समाचार पत्र के कार्य को कितने और कौन-कौन से भागों में बाँटा जा
सकता है?
उत्तर:
"समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक
लोगों की रूचि हो और उसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।" लेखन द्वारा
किसी समाचारपत्र या अन्य माध्यम से जनता को इस प्रकार की सूचना देना, जागरूक और शिक्षित
बनाना तथा मनोरंजन करना समाचार लेखन होता है। पत्रकारीय लेखन का सम्बन्ध वास्तविक घटनाओं,
समस्याओं या मुद्दों से होता है। यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और पाठकों की रूचियों
और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है।
समाचार
लेखन की विशेषताएँ-
समाचार
के तत्त्व : समाचार में रोचकता, नवीनता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता का होना अपेक्षित
है।
विशाल
समुदाय के लिए लेखन : अखबार और पत्रिका के लिए लेखक और पत्रकारों को ध्यान में रखना
होता है कि वह ऐसे विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है, जिसमें एक विद्वान से लेकर कम पढ़े-लिखे
मजदूर और किसान सभी शामिल हैं।
सहज,
सरल और रोचक भाषा-शैली : पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता
का विशेष ध्यान रखते हुए समाचार लेखक जटिल से जटिल एवं गूढ़ से गूढ विषयों को भी अत्यन्त
सहज, सरल और रोचक भाषा-शैली में लिखता है ताकि उसकी बात सबकी समझ में आसानी से आ सके।
'उलटा
पिरामिड-शैली': समाचार लेखन 'उलटा पिरामिड-शैली' में किया जाता है। इस शैली में किसी
समाचार, घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे
पहले अनुच्छेद (पैराग्राफ) में लिखा जाता है। इसके बाद महत्त्व के घटते क्रम से महत्त्वपूर्ण
बातें लिखी जाती हैं।
छह
ककार : समाचार लिखते समय पत्रकार मुख्यत: छह ककारों का उत्तर देने का प्रयत्न करता
है। यह छह ककार हैं-'क्या हुआ', किसके साथ हुआ', 'कहाँ हुआ', 'कब हुआ', 'कैसे' और
'क्यों हुआ? किसी समाचार या घटना की रिपोर्टिंग करते समय इन छह ककारों पर ध्यान देना
आवश्यक होता है।
'इन्ट्रो'
: समाचार के 'इन्ट्रो' या 'मुखड़े' का आशय यह है कि समाचार का पहला पैराग्राफ सामान्यत:
समाचार का मुखड़ा (इन्ट्रो) कहलाता है। इसमें आरम्भ की दो-तीन पंक्तियों में सामान्यतः
तीन या चार ककारों को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है। यह चार ककार हैं- 'क्या, कौन,
कब और कहाँ?
समाचार
की बॉडी : समाचार के मुखड़े' यानी 'इन्ट्रो' को लिखने के बाद समाचार की बॉडी आर समापन
आता है जिसमें छ: में से दो शेष ककारों-'कैसे और क्यों' जबाब दिया जाता है।
खंड
- 'ग' (पाठ्यपुस्तक)
03. निम्नलिखित काव्यांश में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- 05
(क) घर-घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रंग लै गा नाहू।।
पलटि न बहुरा गा जो बिछोई।
अबहूँ फिरै फिरै रंग सोई।।
उत्तर:
प्रस्तुत पञ्च-खंड मलिक मुहम्मद जायसी विरचित 'पद्मावत' के 'बारहमासा' पाठ के अंतर्गत
संकलित किया गया है। इसमें कवि से विरहाग्नि में जलती हुई नायिका की मनोदशा का वर्णन
किया है।
व्याख्या
: कवि कहता है विरहिणी नायिका ठंड के मौसम में वियोगातुर होकर कह रही है कि अगहन के
महीने में निशा (रात) में काली-काली घटाएँ बढ़ी आ रही है। घर-घर में हर एक व्यक्ति
चीर (वस्त्र) लेकर मौज मना रहा है। हे मेरे नाथ । मेरे मालिक ! तुम जल्दी से आ जाओ।
मेरी सुंदरता किस कामक्षकी ? तुम जो गए, तो लौट के फिर नहीं आए। अब तो लौटकर आ जाओ।
मेरी सुंदरता किस काम की? तुम जो गए, तो लौट के फिर नही आए। अब तो लौटकर आ जाओ।
(ख) भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे।
तदपि दिनहिं दिन होत
झावरे मनई कमल हिममारे।।
उत्तर:
प्रस्तुत पद 'अंतरा' (भाग-2) के 'तुलसीदास' शीर्षक पाठ के 'पद' से अवतरित है। उक्त
पद 'गीतावली' से उद्धृत है। यहाँ माता कौशल्या राम-वन-गमन से दुःखीघोड़े को देखकर अपने
हृदय की व्यथा को इस प्रकार व्यक्त कर रही है।
व्याख्या
: माता कौशल्या राम के वन-गमन के बाद दुःखी हैं। वे राम से संबंधित सभी वस्तुओं और
प्राणियों में उनकी विरह-वेदना का अनुभव कर रही हैं। यह तुम्हारा अति प्रिय घोड़ा है।
यह विचार कर भरत उसकी सौ गुनी देखभाल करते हैं। फिर भी यह दिनों-दिन मुरझाता जा रहा
है, सुस्त होता जा रहा है। यह ऐसा शिथिल हो गया है मानो कमल पर हिमपात हो गया हो।
04. निम्नलिखित से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06
(क) राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं?
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राम की भावुकता, सहृदयता, कोमलता, क्षमाशीलता और अपने प्रति उनके अतिशय स्नेहशील भावों
की ओर संकेत कर भरत राम के प्रति अपने श्रद्धा भाव को व्यक्त करते हैं।
(ख) पूस महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?
उत्तर:
पूस के महीने में दारुण ठंड पड़ती है, जिस कारण विरहिणी का शरीर थरथर काँपता है। सूरज
की ठंड को दूर करने में समर्थ नहीं होता, क्योंकि इस मास में वह बहुत कम दर्शन देता
है। वह दक्षिण दिशा में जाता है। दक्षिण में लंका है, वहाँ वह ताप और प्रकाश विशेष
रूप से प्रदान करता है। विरहिणी कहती है कि हे मेरे प्रीतम, तुम मेरे पास हो जाओ, ताकि
मेरी ठंढ दूर हो सके।
इस
पद में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति का व्यापक प्रयोग किया गया है तथा विरहिणी की व्याकुल
मनोदशा का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
(ग) घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
घनानंद की भाषा ब्रजभाषा से प्रभावित है। ब्रजभाषा की सरसता जगजाहिर है। भाषा में लक्षणा
तथा व्यंजना का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है। इनकी भाषा व्याकरण-सम्मत है।
फारसी काव्य से अनुप्राणित होते हुए भी कवि ने भाषा में उसका बेमेल मिश्रण नहीं होने
दिया है। कवि ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग में निपुण है।
रामचंद्र
शुक्ल ने कवि को रोमांटिक धारा का श्रेष्ठ कवि माना है।
05. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06
(क) पुजारी ने लड़की के हम' को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया
और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों
आया?
उत्तर:
पुजारी ने 'हम' को युगल अर्थ में लेकर जो आर्शीवाद युवती और युवक को दिया, वह आशीर्वाद
दोनों के लिए अकल्पित और अप्रत्याशित था। वे दोनों एक-दूसरे के लिए बिल्कुल अनजान और
अपरिचित थे। वे एक-दूसरे का नाम तक नहीं जानते थे। स्वभावतः किसी अनजान युवक-युवती
में पुजारी द्वारा पति-पली भाव की स्थापना ने उनके मन में एक प्रकार के संकोच और झिझक
का भाव उत्पन्न कर दिया। यह भाव रागानुभूति के प्रथम स्फुरण, आनंद और पुलक से भी भरा
हुआ था। परंतु वे अपने इस भाव को न तो शीघ्र पहचान पाये और न ही लोक-व्यवहार की मर्यादा
के कारण प्रकट कर पाये। इसलिए उन दोनों के व्यवहार में अचानक अटपटापन आ गया था।
(ख) 'जहाँ कोई वापसी नहीं' पाठ के लेखक के अनुसार आजादी के बाद भारत
की सबसे बड़ी 'ट्रेजडी' क्या है?
उत्तर:
स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजड़ी यह है कि पश्चिम की देखा-देखी और नकल
में योजनाएँ बनाते समय प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह
नष्ट होने से बचाया जा सकता है-इस तरफ हमारे पश्चिम-शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान
कभी नहीं गया।
(ग) आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बॉटी?
उत्तर:
गन्ने की फसल तैयार हो जाने पर किसान ने हाथी से आधी आधी फसल बाँट लेने का अनुरोध किया।
किसान की बात सुनकर हाथी को क्रोध आ गया और उसने कहा कि अपने-पराए की बात करना अच्छी
बात नहीं है। हम दोनों ने मिलकर खेती की है। हम दोनों मालिक हैं । आओ हम मिलकर गन्ने
खाएँ।
इसके
बाद हाथी ने एक गन्ना उखाड़ लिया । गन्ने का एक छोर हाथी की सूड में था और दूसरा किसान
के मुँह में । गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुंह की तरफ खींचने लगा तो उसने गन्ना
छोड़ दिया। तत्पश्चात् हाथी ने कहा कि हमने एक गन्ना खा लिया। इस तरह हाथी और किसान
के बीच साझे की खेती हो गयी।
06. महाकवि तुलसीदास अथवा विश्वनाथ त्रिपाठी की किन्हीं दो रचनाओं के
नाम लिखे- 02
उत्तर:
महाकवि तुलसीदास- रामचरित मानस, विनय पत्रिका ।
विश्वनाथ त्रिपाठी- बदलते समय के रूप, अंतिम
दो।
07. ऐसी कौन-सी स्मृति है जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर
से जुड़ा मिलता है?
उत्तर:
वैसे तो लेखक को अनेक अप्राप्तियों की स्मृति है, जो उसे कभी-कभी पीड़ा पहुँचती रहती
है। लेकिन जिस औरत को देखकर वह समस्त प्रकृति के सौन्दर्य को ही भूल गया था, परन्तु
उससे अपनी भावनाओं का इजहार न कर पाया-यह एक ऐसी स्मृति है, जिसके साथ लेखक को मृत्यु
का बोध अजीब तौर से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है।
अथवा
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था। उसके क्या कारण
हैं?
उत्तर:
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता है, जिसका मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i)
औद्योगिक विकास : आज मानव विकास के नए-नए प्रतिमान छू रह है। वैसे तो विकास हर क्षेत्र
में हुआ है, लेकिन उद्योगों के क्षेत्र में ये विकास अत्यन्त तीव्र गति से हुआ। लगातार
बढ़ते उद्योगों ने वातावरण पर बुरा प्रभाव डाला। इन उद्योगों से निकलने वाली गैसों
ने पृथ्वी के तापमान को तीन डिग सेल्सियस बढ़ा दिया है, जिससे मौसम में काफी परिवर्तन
आ गया। सर्दी, गर्मी से काफी कम रह गई है। पाठ में भी कहा गया है कि हम जिसे विकास
की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं, वह उजाड़ की उपसभ्यता है।
(ii)
वायु-प्रदूषण : मनुष्य के विकास के साथ प्रदूषण भी काफी अधिक बढ़ गया है, जिसमें वायु-प्रदूषण
तो बहुत अधिक फैल रहा है, फैक्ट्रियों तथा वाहनों के धुएँ ने वातावरण को दूषित कर दिया
है। ये धुएं वायुमंडल में जाकर वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं।
08. आधुनिक युग में विकास की औद्योगिक सभ्यता किस प्रकार उजाड़ की अपभ्यता
में बदल रही है? 02
उत्तर:
लेखक की औद्योगिक सभ्यता केविकास से होने वाले विनाश के कारण यह सभ्यता उजाड़ की उपसभ्यता
लगती है। इस विकास के कारण कई खतरे उत्पन्न हुए हैं-
(i)
वातावरण में परिवर्तन : औद्योगिक सभ्यता के विकास के परिणामस्वरूप वातावरण में काफी
परिवर्तन हुआ है। उद्योगों से निर्माण कार्य के दौरान निकलने वाली दूषित गैसों के कारण
धरती का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। ठंडे प्रदेशों में भी गर्मी होने लगी
है तथा मानसून अनियमित हो गया जिससे बाढ़ तथा सूखे जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई और कई
बार मानव सभ्यता उजड़ी।
(ii)
नदी-तालावों की दुर्दशा : उद्योगों के तीव्र विकास से नदियों तथा तालाबों का पानी दूषित
हो गया है। उद्योग-धंधों से निकलनेवाले अवशिष्ट पदार्थ इन जल-स्रोतों में बहा दिए जाते
हैं जिससे पानी सुचारु रूप से नहीं बह पाता और वह अपनी सीमाएँ तोड़कर बाढ़ आदि की स्थिति
पैदा करता है। इन उद्योगों का कूड़ा-कचरा नदियों में वह जाने से वे गंदे नालों के रूप
में परिवर्तित हो गई हैं। हमारे मत में यह बात बिल्कुल सही है कि जिसे हम विकास की
औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की उपसभ्यता है।
अथवा
'विस्कोहर की माटी' के लेखक माँ की ममता का वर्णन किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
ममता सभी जीव जन्तुओं में उपस्थित है। मानव या पशु-पक्षी, सभी अपनी संतान के प्रति
समर्पित रहते हैं। माँ जन्म के उपरान्त अपने बच्चे का पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार
से करती हैं। बच्चा अपनी माँ के पेट का स्पर्श, गंध भोगता है, आँचल का सुख पाता है।
माँ अपने बच्चे पर आने वाले संकटों के प्रति सतर्क रहती है। वह उसे अपनी ममता और स्नेह
निःस्वार्थ देती रहती है।