HOME SCIENCE MODEL QUESTION PAPER Set-2

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 झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)

द्वितीय सावधिक परीक्षा (2021-2022)

प्रतिदर्श प्रश्न पत्र                                         सेट- 02

कक्षा-12

विषयगृह विज्ञान

समय- 1 घंटा 30 मिनट

पूर्णांक- 40

सामान्य निर्देश:

» परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।

» इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।

» सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।

» प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक

प्रश्न 1. शालापूर्व अवस्था किसे कहते हैं ?

उत्तर-बच्चे के जन्म के बाद से लेकर उसके स्कूल जाने के पूर्व की अवस्था को शालापूर्व अवस्था कहा जाता है। यह अवस्था 1 से 3 वर्ष के बीच की होती है।

प्रश्न 2. संवेग क्या है?

उत्तर-व्यक्ति के व्यवहार में किसी-न-किसी अंश में संवेग अवश्य मौजूद रहते हैं। संवेग एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे की प्रसन्नता को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी क्रियाशीलता को भी बढ़ाते हैं।

प्रश्न 3. ज्वर कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर-ज्वर उसे कहते हैं जब एक व्यक्ति के शरीर का तापमान 98.4°F

से अधिक हो जाता है । ज्वर का मुख्य कारण संक्रामक रोग तथा कुपोषण ही होता है। ज्वर तीन प्रकार का होता है-

(i) अल्पकालीन ज्वर : यह ज्वर कम समय के लिए परन्तु तेज होता है। जैसे-इन्फ्लूएंजा, खसरा, निमोनिया, गलशोध सामान्य सरा आदि ।

(ii) दीर्घकालीन ज्वर : ऐसा ज्वर लंबे समय तक चलता है पर तापमान अधिक नहीं होता है।

(iii) अन्तरकालीन ज्वर : यह ज्वर अन्तराल पर चढ़ता है, जैसे-मलेरिया, टायफायड आदि।

प्रश्न 4.3 साल के बालक की औसत लम्बाई क्या है ?

उत्तर-तीन साल के बालक की औसत लम्बाई 34-36 ईंच होती है।

प्रश्न 5. शिशुओं के लिए सर्वोत्तम आहार क्या है ?

उत्तर-शिशुओं के लिए सर्वोत्तम आहार माता का दूध है।

प्रश्न 6. टीकाकरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-टीकाकरण: व्यक्ति को रोग व मृत्यु से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए तथा संक्रामक रोगों के प्रभावों से बचाने के लिए, समय से पूर्व ही प्रतिरक्षित करना टीककरण कहलाता है।

प्रश्न 7. क्रियात्मक विकास का महत्त्व बताएँ।

उत्तर-शिशुिओं में मांसपेशियों और हड्डियों द्वारा विभिन्न कार्य करने की क्षमता का विकास होना क्रियात्मक विकास कहलाता है। क्रियात्मक विकास का महत्व बच्चे के लिए विशेष रूप से अधिक है, क्योंकि इस विकास से बच्चों में मांसपेशियों और हड्डियों के कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होती है । क्रियापक विकास से शिशुओं में धीरे-धीरे समुचित रूप से कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।

प्रश्न 8. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष आय में अन्तर स्पष्ट करें तथा दोनों का एक-एक साधन बताइए।

उत्तर-प्रत्यक्ष वास्तविक आय : सेवाओं के बदले में प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाली सुविधाएँ तथा वस्तुएँ प्रत्यक्ष वास्तविक आय कहलाती है। उदाहरण के लिए रहने के लिए घर, टेलीफोन, यूनिफॉर्म । गाँवों में कई बार जमींदार, भूस्वामी गरीब किसानों को खेत के लिए अपनी जमीन दे देते हैं तथा बदले में उपज का एक निश्चित हिस्सा ले लेते हैं । यह प्रत्यक्ष वास्तविक आय का उदाहरण है।

अप्रत्यक्ष वास्तवकि आय : यह आय परिवार के सदस्यों के गुणों द्वारा प्राप्त होती है। किसी विशय-विशेष का ज्ञान अथवा किसी कार्य में निपुणता भी घर में होने वाले खर्चों में कटौती कर देती है और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से आय प्राप्ति होती है। उदाहरण के लिए गृहिणी का किचन का ज्ञान गार्डेन का शौक, सब्जियों में हुए खर्चों की कटौती तो करता ही है साथ ही परिवार को ताजी तथा पौष्टिक सब्जियाँ भी उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 9. किशोरावस्था में ऊर्जा की आवश्यकता क्यों बढ़ जाती है?

उत्तर-किशोरावस्था तीव्र गति से वृद्धि तथा विकास की अवस्था है। यह अवस्था लगभग 12 वर्ष से 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था के बाद बच्चे युवावस्था में आ जाते हैं। उनके मानसिक और शारीरिक स्थिति में विकास होने लगता है। इस अवस्था में शारीरिक और मानसिक होने से उनमें ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। शरीर में ऊर्जा में वृद्धि करने के लिए संतुलित भोजन का सेवन करना आवश्यक है। ऊर्जा में वृद्धि करने के लिए समुचित रूप से आहार का आयोजन होना चाहिये। संतुलित भोजन करने से किशोर बच्चे में उर्जा बढ़ती है। परिणामस्वरूप उसका शारीरिक और मानसिक विकास सही ढंग से होता है।

प्रश्न 10. भोजन पकाने, परोसने और खाते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए?

उत्तर-खाद्य स्वच्छता के नियम (Rules of food hygiene) : संदूषण केवल घर ही में नहीं अपितु खेतों में जहाँ पर खाद्य-पदार्थ उगते हैं, संग्रहालयों अथवा गोदामों में जहाँ पर खाद्य-पदार्थ संग्रह किये जाते हैं, दुकानों, भोजनालयों आदि में भी होता है। अत: इन सी जगहों पर भी खाद्य-स्वच्छता का अत्यधिक महत्त्व है। भारत में सभी स्थानों पर स्वच्छता का स्तर बहुत ही शोचनीय है-

(i) खेतों में उत्पादन के समय स्वच्छता,

(ii) संग्राहलयों अथवा प्रदामों में स्वच्छता,

(iii) बाजार में दुकानों की स्वच्छता,

(iv) घर में खाद्य भण्डारों की स्वच्छता,

(v) रसोईघर की स्वच्छता,

(vi) बर्तनों की स्वच्छता,

(vii) भोजन पकाने में स्वच्छता,

(viii) भोजन परोसने में स्वच्छता,

(ix) भोजन खाते समय स्वच्छता।

प्रश्न 11. कौन-से खनिज लवणों का माता के आहार में रहना आवश्यक है?

उत्तर-माता के आहार में खनिज लवणों का रहना आवश्यक है। खनिज लवण शरीर की मांसपेशियों के उचित संगठन और शरीर की क्रियाओं को नियमित रखने के लिए आवश्यक है। गर्भावस्था में कैल्शियम लौह पदार्थ की आवश्यकता अधिक हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, माँस, कैल्शियसम और फॉस्फोरस युक्त पदार्थ, दूध, पनीर, मछली, अण्डा, रसदारफल शलजम और सोयाबीन माता के आहार में रखने से खनिज लवणों की पूर्ति होती है।

प्रश्न 12. तरलता के सिद्धांत से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-गृह विज्ञान में मानवीय जीवन के आहार के बारे में भी अध्ययन किया जाता है। बच्चे, युवक, तथा बूढ़े सभी लोगों को भोजन की आवश्यकता पड़ती है। शरीर को स्वस्थ और कार्यशील बनाये रखने के लिये संतुलित भोजन का होना आवश्यक है। भोजन में तरल पदार्थों के सेवन के संबंध में तरलता के सिद्धांत को अपनाया जाता है। भोजन में तरल पदार्थों के सेवन के संबंध में तरलता के सिद्धांत को अपनाया जाता है। भोजन में तरल पदार्थों के मौजूद रहने के नियम को ही तरलता का सिद्धांत कहा जाता है। तरलता के सिद्धांत के अंतर्गत पानी, दूध तथा जूस पदार्थों को शामिल किया जाता है। ताकि वह पदार्थ शीघ्र सुपाच्य हो आयु और शरीर की बनावट के आधार पर तरलता के सिद्धांत का पालन किया जाता है।

प्रश्न 13. खाद्य पदार्थों में मिलावट के दुष्परिणाम लिखिए।

उत्तर-आज के महँगाई के युग में मिलावट करना एक साधारण-सी बात बन गयी है। व्यापारी वर्ग अपने थोड़े से लाभ के लिए कितने ही मनुष्यों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट करना एक सामाजिक एवं अनैतिक कार्य है जिसके कारण कई बार मनुष्यों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ जाता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट होने के कारण उपभोक्ता पर निम्न कुप्रभाव पड़ते हैं-

(i) खाद्या पदार्थ के क्रय के लिए उपभोक्ता को अधिक मूल्य देना पड़ता है क्योंकि शुद्ध खाद्य पदार्थ में उससे मिलते-जुलते सस्ते पदार्थ मिलाए जाते हैं।

(ii) उपभोक्ता जब मिलावटी खाद्य खरीदता है तो मिलावट के कारण उस खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता भी कम हो जाती है, उदाहरण के लिए दूध में पानी मिलाने से उस मिलावटी दूध की मात्रा तो बढ़ जाती है लेकिन उसकी पौष्टिकता कम हो जाती है।

(iii) कई बार मिलावट किये जाने वाले पदार्थ के संदूषित होने के कारण खाद्य पदार्थ भी विषाक्त हो जाता है। जैसे शराब में विषैली स्पिरिट या वार्निश मिलाने से वह शराब विषाक्त हो जाता और मृत्यु का कारण बनती है।

प्रश्न 14. लेबल क्या होता है ? एक अच्छे लेबल के गुण लिखिए।

उत्तर-डिब्बाबंद भोज्य पदार्थों, औषधियों श्रृंगार सामग्री पर स्पष्ट लेबल होने चाहिए जिसमें उसकी संख्या तौल, बजन आदि का पूर्ण विवरण अंकित हो। लेबल की परिभाषा है-"लिखित, मुद्रित, छिद्रित, स्तेंसिल की गयी खोदकर लिखी गयी अथवा मोहर लगी हुई सामग्री किसी भी डिब्बा या पैकिंग पर लेबल लगाते हैं। इससे उपभोक्ता को उस भोज्य-पदार्थ के बारे में स्पष्ट शब्दों में जानकारी दी जाती है जो उस डिब्बे पैकेज में बंद है।

एक अच्छे लेवल के विभिन्न गुण होते हैं जो निम्नलिखत हैं-

(i) लेबल स्पष्ट शब्दों में होना चाहिए।

(ii) लेबल भोज्य पदार्थों और औषधियों तथाशृंगार सामग्रियों के अनुकूल होना चाहिए।

(iii) लेबल ऐसा होना चाहिए जो वस्तु स्थिति को सही जानकारी देता हो।

(iv) लेबल में सही सूचना प्रदर्शित होना चाहिए।

(v) लेबल की पैकिंग साफ-सुथरा और स्पष्ट होना चाहिए।

प्रश्न 15.माता को किन-किन खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए?

उत्तर-माता को विभिन्न खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए, जो निम्नलिखित हैं-

(1) अनाज : इससे माता को कार्बोहाइड्रेड की प्राप्ति होती है। माता को कार्बोहाइड्रेड प्राप्त करने के लिए आटा, चावल, चना इत्यादि का प्रयोग करना चाहिये।

(ii) दल: माता को अपने भोजन में विभिन्न दालों का उपयोग करना चाहिए। जैसे-अरहर, मूंग, मसूर तथा चना-दाल इत्यादि ।

(iii) सब्जियाँ : माता को हरी पत्तेदार सब्जियों तथा जड़ वाली सब्जियों का उपयोग अधिक करना चाहिए। जैसे-पालक का साग, भिण्डी, परवल, लौकी, गाजर तथा मूली का प्रयोग करना चाहिए।

(iv) माता को समुचित मात्रा में प्रोटीन और कैलोरीज प्राप्त करने के लिए समुचित खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए ।

(v) गुड़ और चीनी का समुचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए ।

(vi) आयोडीनयुक्त नमक का प्रयोग करना चाहिए ।

(vii) रसदार फलों का उपयोग करना चाहिए।

(viii) समय-समय पर गाय के दूध का भी सेवन करना चाहिए।

प्रश्न 16. रंग व्यक्तित्व को कैसे प्रभावित करते हैं?

उत्तर-रंग (Colour): रंगों से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर गहरी छाप और प्रभाव पड़ता है। उनसे आपको खुशी, दुःख, उदासीनता, आदर, गांभीर्य और आनन्द का भरपूर अनुभव होता है। आप रंग की किसी व्यक्ति विशेष से तुलना कर सकते हैं। हो सकता है आपने अपना परिधान किसी विशेष अवसर पर पहना हो और भरपूर आनन्द उठाया हो। आप उस परिधान को अपना सबसे भाग्यवान परिधान और रंग को अपना पसंदीदा रंग कहेंगी।

रंगों का मनोविज्ञान (Psychology of Colour) : दूसरे शब्दों में इसका अर्थ है रंगों का भावनाओं पर प्रभाव ।

पीला : खुशी, आत्मीयता और रूपहलापन ।

लाल : उत्तेजक, जिन्दादिल, रोमांचक ।

नारंगी : प्रसन्नचित, हर्षयुक्त ।

हरा : मैत्रीपूर्ण, हर्षित, शांति देने वाला।

नीला : गम्भीर, शांत, चुपचाप, ठहरा हुआ।

जामुनी : प्रतिष्ठित, प्रभावशाली, वैभवशाली।

सफेद : साफ, स्वच्छ, विकाररहित ।

काला : प्रतिष्ठित, पुराना और वैभवशाली ।

क्या आप जानते हैं कि सुरक्षा के साथ कौन-सा रंग जुड़ा है। लाल बत्ती ठहरने की जबकि हरी बत्ती चलने का संकेत देती है।

परिधानों में रंगों का महत्त्व (Significance of colours in clothes): रंग का महत्त्व प्रत्येक विषय में रहा है। यह महत्त्व रंगों का संवेग से सीधा संबंध होने के कारण होता है। रंगों के उचित चयन द्वारा व्यक्तित्व के शालीन, चंचल आदि भाव आसानी से दर्शाए जा सकते हैं। रंगों का चयन करते समय निम्नलिखित तत्त्वों के प्रभाव को नहीं भूलना चाहिए-

(i) आयु

(ii) त्वचा का रंग

(ii) आकृति

(iv) स्वभाव

(v) अवसर

(vi) व्यक्तित्व

(vii) फैशन

रंगों के उपलब्ध : विभिन्न शेड में से हम सभी को कोई-कोई शेड अपनी रुचि-भाव तथा व्यक्तित्व के अनुरूप मिल ही जाता है।

प्रश्न 17. वस्त्रों को घर पर धोने के चरण लिखें।

उत्तर-वस्त्रों की धुलाई के सामान्य चरण (General steps of washing clothes): (1) मैला होने पर वस्त्रों को शीघ्र धोना चाहिए विशेषकर त्वचा के सम्पर्क में आने वाले वस्त्रों को हर बार पहनने के पश्चात् धोना चाहिए । मैले वस्त्रों को दोबार पहनने से उनमें उपस्थित मैल कपड़े पर जम जाती है और फिर उसे साफ करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त कपड़े द्वारा सोख पसीना भी उसके रेशों को क्षति पहुँचाता है।

(2) मैले वस्त्रों को उतार कर किसी एक जगह पर टोकरी अथवा थैले में डालकर रखना चाहिए । मैले वस्त्रों को इधर-उधर फेकना नहीं चाहिए अन्यथा धोते समय इकट्ठा करने में परेशानी होती है और समय भी लगता है।

(3) धोने से पूर्व कपड़ों को उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग कर लेना चाहिए, जैसे सूती, रेशमी व ऊनी कपड़ों को अलग-अलग विधि द्वारा धोया जाता है इसी प्रकार सफेद व रंगीन कपड़ों को भी अलग-अलग करना आवश्यक है क्योंकि यदि थोड़ा-बहुत रंग भी निकलता हो तो सफेद कपड़े खराब हो जाते

(4) धोने से पूर्व फटे कपड़ों की मरम्मत कर लेनी चाहिए तथा उन पर लगे धब्बों को दूर कर लेना चाहिए।

(5) धोने के लिए वस्त्र के कपड़े की प्रकृति के अनुरूप साबुन अथवा डिटरजेन्ट का चयन करना चाहिए।

(6) वस्त्र को अधिक आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग में आने वाली अन्य सामग्री का चयन भी कर लेना चाहिए, जैसे रेशमी वस्त्रों के लिए सिरका, गोंद आदि।

(7) वस्त्रों को धोने से पूर्व धोने के लिए प्रयोग में आने वाले सभी सामान को एकत्रित कर लेना चाहिए।

(8) वस्त्रों की प्रकृति के अनुरूप धोने में सही-सही विधि का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए कुछ कपड़े जैसे रेशम अधिक रगड़ सहन नहीं कर पाते हैं अत: इन्हें हाथों के कोमल दबाव से ही धोना चाहिए।

प्रश्न 18. साबुन और डिटरजेन्ट के लाभ और हानियाँ लिखें।

उत्तर-रासायनिक रूप में साबुन : वसीय अम्लों के सोडियम लवण होते हैं। यह सोडियम ऐसिटेट, सोडियम ओलिएट, सोडियम पर्शमटेट के रूप में पाये जाते हैं। ये कठोर जल के साथ पर्याप्त झाग नहीं उत्पन्न करते।

डिटरजेन्ट की रासायनिक संरचना सोडियम लोच सल्फेट अथवा सल्फोनिक अम्ल के सोडियम लवण होते हैं। ये कठोर जल के साथ भी पर्याप्त झाग देते हैं। इनके लाभ व हानियाँ निम्नलिखित है-

साबुन डिटरजेन्ट

(अपमार्जक)

1. रासायनिक रूप में यह वसीय अम्लों के सोडियम लवण होते हैं।

1. यह सल्फोनिक अम्ल के सोडियम लवण होते हैं। (सोडियम लाटैल सल्फेट)

2. यह कठोर जल के साथ पर्याप्त झाग नहीं देते।

2. ये कठोर जल के साथ भी पर्याप्त झाग देते हैं।

3. यह त्वचा को अधिक संक्षारित (प्रभावित) करते हैं।

3. यह त्वचा को कम संक्षारित (प्रभावित) करते हैं।

4. ये वस्त्रों के तानों (रेशे) में जम जाते हैं।

4. ये वस्त्र के रेशों में नहीं जमते हैं।

5. ये जैव विघटीय होते हैं।

 5. ये जैव विघटीय नहीं होते हैं।

प्रश्न 19. जीवन बीमा और पोस्ट ऑफिस में निवेश करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? वर्णन करें।

उत्तर-जीवन बीमा (Life Insurance): जीवन बीमा अनिवार्य बचत करने का एक उत्तम साधन है । इसके अंतर्गत बीमादार अपनी आय में से कुछ बचत करके अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक धन विनियोजित करता है । अवधि पूरी होने पर बीमादार को जमा धन और उस पर अर्जित बोनस प्राप्त होता है । इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि यदि बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो बीमादार द्वारा नामांकित व्यक्ति को बीमे की पूरी राशि बोनस सहित मिल जाती है। इसलिए यह योजना जोखिम (Risk) उठाती है, अनिचितता को निश्चितता में बदल देती है।

जीवन बीमा के लाभ : बीमादार जीवन बीमा को निम्न लाभों के कारण अपनाता है-

(1) परिवार संरक्षण (Family Protection) : जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमादार के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। विशेष तौर पर जब बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए।

(2) वृद्धावस्था में आर्थिक सहायता हेतु (Economic Help in old Age) : अवकाश प्राप्ति या वृद्धावस्था में इस योजना से प्राप्त धन का विनियोजन कर ब्याज इत्यादि से बीमादार आर्थिक दृष्टि से सक्षम हो जाता है।

(3) बच्चों की शिक्षा या विवाह हेतु (For Child Education or Marriage) : इस योजना में लगाया गया धन बच्चों के बड़ा होने पर उनकी शिक्षा एवं विवाह हेतु आर्थिक सहायता के रूप में प्राप्त होते हैं।

(4) सम्पत्ति कर की व्यवस्था (For Property Tax) : बीमादार की मृत्य के बाद संपत्ति कर देने के लिए बीमा योजना द्वारा मिला धन राहत देता है।

(5) आयकर में छूट (Relief in Income Tax): बीमादार अपनी आय का जो अंश बीमा योजना पॉलिसी की किश्त चुकाने के लिए देता है उस पर उसे आयकर में छूट मिलती है।

डाकघर बचत बैंक (Post office Saving) : बैंक की सुविधा देश के प्रत्येक गाँव तक नहीं पहुँची है परन्तु डाकघर की सुविधा देश के प्रत्येक राज्य के गाँव-गाँव में होने के कारण डाकघर बचत खाता चालू किया गया । भारत सरकार ने इसके द्वारा बचत की आदत को प्रोत्साहित किया है। दो व्यक्ति परन्तु उनमें से एक बालिग अवश्य संयुक्त रूप से अपना खाता खुलवा सकते हैं । डाकघर बचत खाते का स्थानान्तरण भी करवाया जा सकता है। इस खाते पर ब्याज पर आयकर नहीं देना पड़ता है। डाकघर के नियम सम्पूर्ण भारत में एक समान है। खाते की न्यूनतम रकम 5 रु० है। यह कम राशि से खोला जा सकता है।

(1) डाकघर में छपे फॉर्म को भरकर कोई भी व्यक्ति या अधिक व्यक्ति संयुक्त खाता पाँच रुपये जमा कर खोल सकता है।

(2) 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए अभिभावक यह खाता खोल सकता है

(3) डाकघर खाते में भी चेक की सुविधा दी जा सकती है । चेक बुक लेते समय जमाकर्ता के खाते में कम-से-कम 100 रुपये होने चाहिए तथा कभी भी खाते में 50 रुपये से कम नहीं होने चाहिए।

(4) खाता खोलने पर एक पास बुक (Pass Book) दी जाती है जिसमें जमा की गई तथा निकाली गई राशि का पूरा लेखा-जोखा होता है। यदि यह पासबुक खो जाती है तो 5 रुपये देकर दूसरी पासबुक ली जा सकती है।

(5) डाकघर में पैसा बैंक, मनीऑर्डर, ड्रॉफ्ट तथा नकद के रूप में जमा करवाया जा सकता है। इस खाते की एक विशेषता यह है कि मुख्य डाकघर के अधीन जिस डाकघर में खाता खोला गया हो उसके अधीन किसी भी डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है। यदि किसी उप-डाकघर में खाता खोला हो तो मुख्य डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है परन्तु पैसा केवल उसी डाकघर/उप-डाकघर से निकलवाया जा सकता है जहाँ पर खाता खोला गया

(6) डाकघर खाते में वर्तमान ब्याज की दर 5.5% है।

(7) धन निकलवाते समय निश्चित फॉर्म भर कर पासबुक के साथ डाकघर में दिया जाता है। लिपिक फॉर्म पर किए गए हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मिलान करने पर राशि का भुगतान करता है । यदि हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न हो तो राशि का भुगतान नहीं किया जाता तब तक कि कोई व्यक्ति जो डाकघर में जमाकर्ता को पहचानता हो, गवाही न दे।

(8) खाता खोलने के तीन मास बाद यह खाता किसी भी डाकघर में स्थानान्तरित किया जा सकता है।

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