झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय सावधिक परीक्षा (2021-2022)
प्रतिदर्श प्रश्न पत्र सेट- 03
कक्षा-12 | विषय- गृह विज्ञान | समय- 1 घंटा 30 मिनट | पूर्णांक- 40 |
सामान्य निर्देश:
» परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।
» इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।
» सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
» प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक
प्रश्न 1. कठोर साबुन क्या होता है ?
उत्तर-कठोर
साबुन वसा और क्षार से बना होता है। इसमें सोडियम सिलिकेट मंड नामक और कुछ रेसिन होते
हैं। यह पर्याप्त भाग नहीं देता है।
प्रश्न 2. तौलिये धाने के लिए किस विधि का प्रयोग करते हैं ?
उत्तर-तौलिये
धोने के लिए अपमार्जक का प्रयोग करते हैं। ये गन्दगी शीघ्र हटा देते हैं और चिकनर्ट
भी हटा देते हैं।
प्रश्न 3. रेडीमेड वस्त्रों की लोकप्रियता के दो कारण लिखें।
उत्तर-रेडिमेड
वस्त्रों की लोकप्रियता का पहला कारण है समय की बचत । दूसरे विभिन्न डिजाइनों में उपलब्धता
।
प्रश्न 4. वक्र रेखाएँ क्या होती हैं ?
उत्तर-ये
घुमावदार तथा गोलाई वाली रेखाएँ होती है। इनका प्रयोग परिधान को कोमलता, सौम्यता तथा
नारीत्व का भाव देता है।
प्रश्न 5. आमचूर और बिस्कूटों पर मानक चिह्नों के नाम बताइये ।
उत्तर-आमचूर-एग्मार्क
बिस्कुटों-ISI
प्रश्न 6. बजट की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-बजट
घरेलू आय-व्यय को एक निश्चित अवधि के लिए लिखित विवरण के रूप में परिभाषित किया जाता
है। यह विवरण वस्तुओं पर खर्च तथा परिवार द्वारा आवश्यक सामाग्री को प्रस्तुत करता
है।
प्रश्न 7. स्वास्थ्यकर भोज्य-सामग्री खरीदने से आपका क्या तात्पर्य
है?
उत्तर-स्वास्थ्यकर
भोज्य से हमारा तात्पर्य है ऐसे भोज्य पदार्थ जिसमें स्वास्थ्य प्रदान करने वाले सभी
तत्व हों, यथा कार्बोहाइड्रेट, वसा, लवण, खनिज, विटामिन आदि सभी तत्व विद्यमान हैं।
एक गृहिणी को स्वास्थ्यकर भोजन खरीदने समय इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए। साथ मौसम
के अनुसार भी स्वास्थ्यकर भोजन की खरीददारी करनी चाहिए ताकि परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य
ठीक बना रहे।
प्रश्न 8. 'विनियोग' की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-आय
का वह भाग जो हम प्रतिमाह या प्रतिवर्ष, आय में से बचाकर किसी ऐसी सुव्यवस्थित योजना
में लगाते हैं जिससे हमें आनेवाले समय में कुछ-न-कुछ लाभ मिलता रहे. विनियोग या निवेश
(Investment) कहलाता
प्रश्न 9.आई०एस०आई० का मान चिह्न देने वाले ब्यूरो का नाम लिखें तथा
यह किन-किन चीजों पर दिया जाता है?
उत्तर-मान
चिह्न देने वाले इंडियन स्टैण्डर्ड्स इंस्टीटयूट (indian Standard Institute) यह मार्क
कई पदार्थो को दिया जाता है, जैसे-वनस्पति, सीमेंट, LPG स्टोव, 'प्रेशर कुकर, बिजली
के उपकरण आदि। इस संस्था का कार्य कारखानों में बने पदार्थों एवं उपकरणों के लिए नियमित
गुणवत्ता प्रदान करना है।
प्रश्न 10. ज्वर किसे कहते हैं ?
उत्तर-ज्वर
उसे कहते हैं जब एक व्यक्ति के शरीर का तापमान 98.4°F से अधिक हो जाता है । ज्वर का
मुख्य कारण संक्रामक रोग तथा कुपोषण ही होता है। ज्वर तीन प्रकार का होता है।
(i) अल्पकालीन ज्वर : यह ज्वर कम समय के लिए परन्तु
तेज होता है। जैसे--इन्फ्लुएंजा, खसरा, निमोनिया, गलशोध सामान्य सरा आदि।
(ii) दीर्घकालीन ज्वर : ऐसा ज्वर लंबे समय तक चलता
है पर तापमान अधिक नहीं होता है।
(iii) अन्तरकालीन ज्वर : यह ज्वर अन्तराल पर चलता है
जैसे-मलेरिया, टायफाइड आदि।
प्रश्न 11. स्वास्थ्य के लिए शुद्ध जल का क्या महत्व है ?
उत्तर-प्रत्येक
व्यक्ति अपने शरीर को भली-भाँति चलाने के लिए काफी मात्रा में जल पीता है। पीने वाला
पानी स्वच्छ व साफ और ढंका हुआ होना चाहिए ताकि कोई भी संक्रामक रोग न फैल सके क्योंकि
गंदा और संक्रमित पानी हैजा, पेचिश, गैस्ट्रो, टाइफायड आदि रोगों का कारण होता है।
प्रश्न 12. गर्भावस्था में रक्तहीनता को रोकने के लिये क्या-क्या उपाय
करने चाहिये ?
उत्तर-यदि
माता के आहार में लौह-तत्व की कमी होगी तो यह अनीमिया या अरक्तता से पीड़ित हो जायेगी,
उसके रक्त में हीमोग्लोबिन का मात्रा कम हो जायेगी क्योंकि गर्भावस्था में माता के
रक्त में 25% बढ़ोत्तरी होती है। लोहे की कमी से माता रक्तहीनता से पीड़ित हो जायेगी
। परिणामस्वरूप जन्म से पूर्ण शिशु के यकृत में लोहे के भण्डार नहीं हो पायेंगे और
बच्चा भी जन्म लेने के बाद अरक्तता से पीड़ित हो जायेगा।
प्रश्न 13. शिशु को स्तनपान के दो लाभ बताइये।
उत्तर-माता
का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है, क्योंकि-
(i)
यह पचने में सरल और स्वच्छ होता है, यह संक्रमण का कारण नहीं बन सकता ।
(ii)
आरम्भिक दूध रोग निरोधक क्षमता प्रदान करता है।
(iii)
सरलता से उपलब्ध होता है ।
(iv)
यह संपूर्ण आहार है और भावात्मक सुरक्षा भी देता है।
प्रश्न 14. अतिसार तथा निर्जलीकरण में क्या सम्बन्ध है? इसे किस प्रकार
रोका जा सकता है?
उत्तर-अतिसार
खाद्य विषाक्तता के कारण होता है। इसमें भोजन पचता नहीं है तथा पहला दस्त मगर पेट में
दर्द भी होता है। दस्त के कारण शरीर का जलीय अंश काफी मात्रा से बाहर निकला जाता है
जिससे निर्जलीकरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
बच्चे
में निर्जलीकरण की स्थिति को रोकने हेतु ओ०आर०एस० जीवन रक्षक घोल बनाना चाहिए। यह बाजार
से बना हुआ लिया जा सकता है या घर पर उबले हुए पानी में एक चुटकी नमक और एक चम्मच चीनी
डाल कर भी बनाया जा सकता है।
बच्चे
को भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ जैसे शिकंजी, लस्सी, छाँछ, हल्की चाय, रयल पानी, चावल
का मॉड़ या फटे दूध का पानी थोड़ी-थोड़ी देर से देते रहना चाहिए।
प्रश्न 15. सामाजिकता के क्या-क्या गुण हैं?
उत्तर-"सामाजिक,
विकास का अर्थ है जिस समाज में बच्चा रहता है उस समाज के अनुसार अपने व्यवहार को ढालने
की बच्चे की क्षमता"।
सामाजिक
विकास से ही समाजीकरण आरम्भ होता है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चा, खाना,
बोलना और खेलना सीखता है। इसका अर्थ अपने समूह के साथ अच्छा व्यवहार करना भी है।
क्रीड़ा
सामाजीकरण का एक आवश्यक अंग है। विकलांग बच्चे अधिकतर अपने आपको ऐसे सामूहिक कार्यक्रमों
से अलग पाते हैं। ऐसा भेदभाव से बच्चों के सामाजीकरण पर कुप्रभाव पड़ता है। इससे बच्चा
निराश और खिन्न रहने लगता है तथा स्वयं को उपेक्षित महसूस करता है। सामाजिक भेदभाव
व लांछन बच्चे के सामूहिक व्यवहार में विघ्न उत्पन्न करते हैं। माता-पिता तथा मित्रों
की दयादृष्टि के कारण बच्चे का आत्मसम्मान क्षीण हो जाता है। सामाजिक मत जैसे
"विकलांग मस्तिष्क, विकलांग शरीर की देन हैं। बच्चे के स्वरूप को चोट पहुँचाते
हैं।
ऐसे
बच्चे अधिकतर उग्र व जिद्दी स्वभाव के होते हैं। स्वतंत्र तथा स्वावलम्बी बनाने के
लिए विकलांग बच्चों को स्नेह, सौहाई त उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। समाज इन
गुणों को विकसित करना चाहिए।
प्रश्न 16. बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर-संवेगों के प्रकार (Types of emotions) : व्यक्ति के
व्यवहार में किसी-न-किसी अंश में संवेद अवश्य विद्यमान होते हैं। जिस प्रकार सुगन्ध
दिखाई न देने पर भी फूल में विद्यमान रहती है, ठीक उसी प्रकार हमारे व्यवहार में संवेग
व्याप्त रहते हैं। संवेग बच्चे की प्रसन्नता को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी क्रियाशीलता
को भी बढ़ाते हैं।
विभिन्न
संवेदों को दो वर्ग में बाँटा जाता है-
(1)
दु:खद संवेद (unpleasent emotions) : क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि ।
(2)
सुखद संवेद (pleasent emotions): हर्ष, स्नेह, जिज्ञासा आदि।
(1) दुःखव संवेग-(i) क्रोध (Anger) : शैशवकाल
में प्रदर्शित होने वाले सामान्य संवेदों में क्रोध सर्वप्रमुख है क्योंकि शिशु के
पर्यावरण में क्रोध करने वाले उद्दीपन होते हैं। शिशु को बहुत जल्दी ही यह मालूम हो
जाता है कि दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए या फिर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने
के लिए जोर से रोकर, चीखकर या चिल्ला कर अपना क्रोध प्रकट करना सबसे आसान तरीका है।
यही कारण है कि शिशु केवल भूख या प्यास लगने पर ही नहीं रोता अपितु जब वह चाहता है
कि उसकी माता उसे गोद में उठाए तब भी जोर-जोर से रोता है।
जैसे-जैसे
बच्चा बड़ा होता है तब वह अपने कार्य में बाधा डालने के परिणामस्वरूप भी गुस्सा करने
लगता है. जैसे जब वह खिलौनों से खेलना चाहे उस समय उसे कपड़े पहनना, उसे कमरे में अकेला
छोड़ देना, उसकी इच्छा की पूर्ति न करना आदि।
प्रायः
सभी बच्चों ने गुस्सा होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु गुस्सा होने पर सभी
एक-सा व्यवहार करते हैं; जैसे रोना, चीखना, हाथ-पैर पटकना, अपनी साँस रोक लेना, जमीन
पर लेट जाना, पहुँच के अन्दर जो भी चीज हो उसे उठाकर फेकना या फिर ठोकर मारना आदि ।
(ii) भय (Fear): क्रोध के विपरीत, शिशु में भय पैदा करनेवाले
उद्दीपन अपेक्षाकृत कम होते हैं। शैशवावस्था में शिशु प्राय: निम्न स्थितियों में डरता
है। अंधेरे कमरे, ऊँचे कमरे, ऊँचे स्थान, तेज शोर, दर्द, अपरिचित लोग हव 'जगह, जानवर
आदि।
(iii) ईर्ष्या (Jealousy): ईर्ष्या का अर्थ है-किसी के
प्रति गुस्से से भरा विरोध करना । ईर्ष्या प्रायः सामाजिक स्थितियों द्वारा उत्पन्न
होता है । जब परिवार में नया शिशु आता है तब छोटे बच्चे में उस शिशु के प्रति ईर्ष्या
का भाव उत्पन्न होता है क्योंकि उसे लगता है कि उसके माता-पिता जो पहले केवल उससे प्यार
करते थे, अब उस शिशु से भी प्यार करने लगे हैं।
(2) सुखद संवेद-हर्ष (Joy or pleasure): हर्ष
का अर्थ है खुशी अथवा प्रसन्नता । सभी बच्चे अपनी खुशी मुस्कुरा कर या हँस कर प्रकट
करते हैं । इस आयु में बच्चा हंसने के साथ बाँहों और टाँगों को भी हिलाता है। बच्चा
जितना अधिक खुश होता है, उतनी ही अधिक उसकी शारीरिक गतियाँ होती हैं । डेढ़ वर्ष का
बच्चा अपनी ही चेष्टाओं पर मुस्कुराता है। दो वर्ष का होने पर यह दूसरों के साथ मिलकर
हँसने लगता है।
स्नेह (Affection) : बच्चे में लोगों के प्रति स्नेह
की अनुक्रियाएँ धीरे-धीरे विकसित होती हैं । बच्चे का किसी के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार
उस व्यति की ओर आकर्षित होकर उसकी गोद में आने का प्रयास से दिखाई देता है।
जिज्ञासा (Curiosity) : जन्म के दो-तीन माह पश्चात्
तक शिशु की आँखों का समन्वय भली-भाँति विकसित नहीं होता है और उसका ध्यान केवल तीव्र
उद्दीपन से ही आकर्षित होता है। लेकिन आयु वृद्धि के साथ जैसे ही शिशु साफ-साफ और अलग-अलग
देख सकता है वैसे ही कोई भी नई या असाधारण बात से आकर्षित होता है बशर्ते उसका नयापन
इतना अधिक न हो कि भय पैदा कर सके । शिशु का भय कम होने के साथ उसकी जिज्ञासा बढ़ती
है।
प्रश्न 17. परिधान के डिजाइन में संतुलन किस प्रकार पैदा किया जा सकता
है?
उत्तर-किसी
भी परिधान को रखने पर, देखने वाले की दृष्टि सबसे पहले उसके रंग पर जाती है, फिर बाह्य
आकृति (figure) की ओर तथा अंत में परिधान के डिजाइन अथवा नमूने पर । परिधान पर डिजाइन
विभिन्न रेखाओं द्वारा बनाए जाते हैं। वस्त्रों को काट-छाँट कर उन पर झालर, गोटा, प्लीट,
पाइपिंग, बटन, कटाई तथा सिलाई इत्यादि द्वारा विभिन्न नमूने बनाए जाते हैं। नमूने विभिन्न
रंगों के कपड़ों को जोड़कर, या चेकदार, लाइनदार, वस्त्रों को मैच करके भी बनाए जाते
हैं। नमूनों को कढ़ाई (embroidery) पेच (applique work), पेंट (Fabric paint) रंगों
तथा छापों द्वारा भी बनाया जाता है। सभी परिधानों के डिजाइन (Designs) रेखाओं व वक्रों
(lines & curves), डिजाइन के आकार (form), रंग (colour) तथा संरचना (texture) के
सम्मिश्रण से ही तैयार किये जाते हैं। एक डिजाइन (design) में रेखाओं, डिजाइनों के
आकार, रंग तथा संरचना (texture) के सम्मिश्रण की आवश्यकता इस प्रकार होती है कि ये
सब मिलकर व्यवस्थित तथा सुंदर लगे । वस्त्रों के नमूनों में रेखाओं, आकार, रंग तथा
संरचना को सुंदर लगने के लिए व्यवस्थित करना एक कला है। इस कला के मूलभूत सिद्धांत
है-
संतुलन
(Balance) : संतुलन परिधान में आकर्षण उत्पन्न कर देता है। संतुलन वस्त्र की मध्य-रेखा
(Centre line) द्वारा रखा जाता है। गोल्डस्टीन के अनुसार-"Balance is
composure or or equilibrium of forces, It is rest or repose, Balance is
necessary for a sense of equilibrium, stability and permanance. This restful
effect is obtained by grouping shapes and colours around a centre in such a way
that there is equal attraction on each side of the centre." परिधान की मध्य
रेखा के दोनों भागों में आकर्षण, रचना तथा अलंकरण लगभग समान है तो वह संतुलन औपचारिक
कहलाता है। जब दोनों भागों की रचना, अलंकरण और आकर्षण में औपचारिक कहलाता है। जब दोनों
भागों की रचना, अलंकरण और आकर्षण में भिन्नता होती है, परिधान में संतुलन होता है तब
ऐसे परिधान में अनौपचारिक (informal) संतुलन होता है। संतुलित नमूनों वाले परिधान नीरस
तथ्ज्ञा एकरसता वाले होते हैं।
प्रश्न 18. घरेलू हिसाब-किताब रखने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-परिवार
चाहे किसी भी वर्ग का क्यों न हो हरपरिवार की यह इच्छा होती है कि उसकी आर्थिक क्षमता
अधिक-से-अधिक बढ़े ताकि वह दिन-प्रतिदिन की अनगिनत बढ़ती हुई भौतिक आवश्यकताओं को पूरी
कर सके । जैसे रहने के लिए सुन्दर घर, घूमने-फिरने के लिए कार, पहनने के लिए सुन्दर
वस्त्र, खाने के लिए उत्तम आहार आदि । परन्तु परिवार की आय के साधन सीमित होने के कारण
तथा बढ़ती हुई महँगाई के कारण इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त
कई बार पारिवारिक आय व व्यय में तालमेल स्थायी नहीं हो पाता। नौकरी-पेशा लोगों के लिए
तो यह आवश्यक हो गया है कि वे ऐसे साधनों का प्रयोग करें जिससे आय बढ़ सके।
इसलिए
पारिवारिक आय की सम्पूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(1) लगातार बढ़ती महँगाई : दिन-प्रतिदिन महँगाई इतनी
बढ़ती जा रही है कि पारिवारिक आय में वृद्धि करना आवश्यक हो गया है। दैनिक जीवन में
प्रयोग में लाए जाने वाले आवश्यक पदार्थों की कीमतें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं, जैसे-दाल,
चावल, घी, चीनी, कपड़ा आदि । आम व्यक्ति के लिए जीवन बसर करना कठिन हो गया है क्योंकि
उसकी मासिक आय इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है जितनी तेजी से कीमतें बढ़ती जा रही हैं।
ऐसी स्थिति में पारिवारिक आय को सम्पूर्ति करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।
(2) पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए : विभिन्न
परिवार के जीवन-लक्षण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे-उच्च शिक्षा, रहने के लिए अपना
मकान, अपनी मोटर-कार आदि । इन लक्ष्यों की प्राप्ति सीमित साधनों से नहीं हो पाती है,
इसलिए धन की आवश्यकता होती है । पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करके ही इन लक्ष्यों को
पूरा किया जा सकता है।
(3) बड़ा परिवार : वैसे तो आजकल बड़े परिवार
कम होते जा रहे हैं। परन्तु अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बड़े परिवारों में ही रहते हैं;
जैसे निम्न आय वर्ग के तथा कृषि वर्ग के लोग आदि । अभी भी लोग छोटे परिवार के महत्त्व
को नहीं समझ पाए हैं। यदि परिवार बड़ा हो तथा आमदनी कम हो तो परिवार के सदस्य को बहुत
ही कठिनाई से जीवन बिताना पड़ता है। उनकी मूलभूत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती हैं।
ऐसी अवस्था में भी आय की सम्पूर्ति करना आवश्यक हो जाता है।
(4) परिवार का विस्तारशील जीवन-चक्र : पारिवारिक
जीवन-चक्र को मुख्यतः चार भागों में बाँटा जा सकता है। (1) 25-30, (ii) 35-40,
(iii)40-45, (iv) 55 वर्ष के बाद की आयु ।
इन
चारों जीवन-चक्रों से सबसे ज्यादा विस्तार वाला चक्र 40-45 वर्ष की आयु का है। इस अवस्था
में आय की मांग सबसे अधिक होती है। इसी समय बच्चों को पढ़ा-लिखा कर उनको अपने पैरों
पर खड़ा होने लिए तैयार किया जाता है तथा उनकी शादी-ब्याह भी इसी समय कराए जाते हैं।
इसी क्रम में सम्पत्ति खरीदी या बनाई जाती है। यही कारण है कि इस समयावधि में पारिवारिक
आय की सम्पूर्ति करना अत्यधिक अनिवार्य हो जाता है । इसके बाद के समय में यह माँग फिर
कम हो जाती है।
(5) इच्छित जीवन-स्तर व्यतीत करने के लिए : परिवार
का प्रत्येक सदस्य चाहता है कि उसका जीवन स्तर ऊँचा हो । इसके लिए वह अपने घर में हर
ऐसी चीज को जुटाना चाहता है जिससे उसे आराम भी मिले और समाज में उसका स्तर ऊंचा भी
होता रहे जैसे-मन बहलाने के लिए रेडियो, टेपरिकार्डर, टेलीविजन आदि का प्रयोग, आराम
पाने के लिए समय तथा श्रम बचाऊ उपयोगी यन्त्रों का प्रयोग जैसे मिक्सी, ग्राइन्डर,
टोस्टर, रेफ्रिजरेअर आदि । इन सबको पाने के लिए अर्थात् आर्थिक क्षमता को बढ़ाने के
लिए पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करना अति आवश्यक है।
(6) सुरक्षित भविष्य के लिए : जिस प्रकार वर्तमान स्थिति
में जीवन निर्वाह के लिए मकान की आवश्यकता होती है उसी प्रकार भविष्य के लिए धन को
आवश्यकता होती है। भविष्य को तभी सुरक्षित बनाया जा सकता है जब वर्तमान अवस्था से कुछ
बचत की जाए। यह बचत भविष्य में आने वाली आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए जरूरी होती है,
जैसे गृह-स्वामी का निधन हो जाना, बच्चों का ब्याह-शादी रचना, दुर्घटनाएँ तथा बीमारी
आदि । बंधी-बंधाई अथवा कम आय में बचत करना तो क्या परिवार के सदस्यों का खर्चा ही पूरा
नहीं हो पाता । इसलिए सुरक्षित भविष्य के लिए भी आय की सम्पूर्ति करना बहुत आवश्यक
है।
प्रश्न 19. भोजन पकाने, परोसने और खाने में किन-किन नियमों का पालन
करना चाहिए?
उत्तर-(1) भोजन पकाने में स्वच्छता (Clealiness in cooking): भोजन
पकाते समय स्वच्छता का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए-(i) भोजन पकाने से पहले हाथों को
स्वच्छ पानी और साबुन से धोना चाहिए विशेषतः शौचादि जाने, धूल वाले डिब्बाके, बर्तनों
आदि को पकड़ने, नाक साफ करने, बालों या शरीर के अन्य अंगों में खुजली करने के बाद अवश्य
धोने चाहिए। (ii) भोजन पकाने तथा परोसने वाले बर्तनों को राख से, साबुन के घोल से या
विम से साफ करना चाहिए । बर्तनों को कभी भी मिट्टी से साफ नहीं करना चाहिए क्योंकि
मिट्टी में रोगाणु होते हैं । (iii) कभी-कभी प्रयोग आने वाले उपकरण जैसे कदुकस, छलनी
आदि का प्रयोग करके उसी समय साफ कर देनी चाहिए अन्यथा इनमें रोगाणु अपना घर बना लेते
हैं । (iv) परोसने वाले बर्तनों को ऐसे पकड़ना चाहिए कि भोजन से सम्पर्क में आने वाली
सतह पर हाथ न लगे । (v) दाल, चावल, सब्जियों तथा फल आदि धोने के लिए केवल स्वच्छ जल
का हो प्रयोग करना चाहिए। गन्दे पानी से सम्भव है कि हम इन्हें और दूषित कर दें ।
(vi) पकाने के लिए भी सदैव स्वच्छ जल का ही प्रयोग करना चाहिए। (vii) झाड़न आदि प्रतिदिन
साबुन से धोने चाहिए। (viii) सब्जियाँ धोकर पकाएँ, भोजन को ढंककर रखना चाहिए जिससे
मक्खी-मच्छरों से सुरक्षित रहें।
(2) भोजन परोसने में स्वच्छता : भोजन परोसने के लिए
स्वच्छ बर्तनों तथा स्वच्छ स्थान का प्रयोग करना चाहिए । सफाई से परोसा गया भोजन सुरक्षित
होने के साथ-साथ आकर्षक भी होता है। भोजन को हमेशा ढककर रखना चाहिए जिससे मक्खी-मच्छरों
से सुरक्षित रहें।
(3) भोजन खाते समय स्वच्छता : भोजन खाने से पूर्व हमेशा
साबुन तथा पानी से हाथ धोने चाहिए। नोटों तथा सिक्कों को छूकर अधिकांश लोग बिना किसी
हिचकिचाहट के खाना खाते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता है कि उनमें
असंख्य रोगाणु होते हैं। भोजन खा चुकने के बाद भी हाथ धोकर कुल्ला करना चाहिए।