HOME SCIENCE MODEL QUESTION PAPER Set-5

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झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)

द्वितीय सावधिक परीक्षा (2021-2022)

प्रतिदर्श प्रश्न पत्र                                         सेट- 05

कक्षा-12

विषय- गृह विज्ञान

समय- 1 घंटा 30 मिनट

पूर्णांक- 40

सामान्य निर्देश:

» परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।

» इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।

» सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।

» प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक

प्रश्न 1. संवेग क्या होते हैं?

उत्तर-संवेग एक भावात्मक प्रक्रिया है। संवेग का अंग्रेजी में Emotion कहते हैं। जो लैटिन शब्द 'Emovere' से बना है, जिसका अर्थ उत्तेजित करना होता है। इसे ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संवेग व्यक्ति के उत्तेजित अवस्था का नया नाम है।

प्रश्न 2. रोग प्रतिरोधक क्षमता क्या होती है ?

उत्तर-व्यक्ति की रोग तथा रोगों से लड़ने की क्षमता को रोग प्रतिरोधक क्षमता कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि शरीर को रोगों से बचाने की क्षमता को ही रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं । वस्तुतः रोगों को फैलाने वाले कीटाणुओं का प्रतिकार करने की शक्ति को रोग प्रतिरोधकता या रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।

प्रश्न 3. पोशाक बनाते समय कौन-कौन-सी रेखाएँ बनती हैं ?

उत्तर-पोशाक बनाते समय विभिन्न प्रकार की रेखाएँ बनती हैं जो निम्नलिखित हैं- (i) सीधी या खड़ी रेखाएँ, (ii) आड़ी रेखाएँ, (iii) तिरछी रेखाएँ, (iv) वक्र रेखाएँ, (v) आकार की रेखाएँ, (vi) खण्डित रेखाएँ ।

प्रश्न 4. क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-क्रियात्मक विकास का अर्थ है-"शिशु में माँसपेशियों व हड्डियों द्वारा विभिन्न कार्य करने में सामर्थ्य ।"

प्रश्न 5. वैकल्पिक देखरेख से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-माता और पिता दोनों की उपस्थिति में बच्चे की मूल आवश्यकताएँ पूरी करना और उसकी उचित देखभाल करना वैकल्पिक देखरेख कहा जाता है

प्रश्न 6. डी0पी0टी0 तथा बी0सी0जी0 किसे कहते हैं ?

उत्तर-D.T.P. एक ट्रिपल वैक्सीन है। यह बच्चे व अन्य व्यक्तियों को निम्न रोगों से सुरक्षा हेतु दिया जाता है-D- डिपथीरयिा (गल-घोंटू), P- काली खाँसी, T- टेटनस । BCG एक प्रकार का टीका है जो शिशु को तीन माह की आयु पर लगाया जाता है। यह टीका बच्चों को T.B. रोग से बचाता है।

प्रश्न 7. पूरक आहार क्या है?

उत्तर-स्तन्यमोचन की प्रक्रिया के अनुसार माता के दूध या ऊपरी दूध के अतिरिक्त जो भी भोज्य-पदार्थ शिशु को खिलाया जाता है वह पूरक आहार कहलाता है।

प्रश्न 8. रंगों की तीन विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं?

उत्तर- रंगों को तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) कपड़ों पर रंग करने से वे आकर्षक लगते हैं । उपर्युक्त रंग का उपयोग होने से कपड़े आकर्षक दिखायी पड़ते हैं।

(ii) कपड़ों पर रंग करने से उसकी गुणवत्ता में वृद्धि होती है लेकिन पक्के रंग का प्रयोग कपड़ों को रंगने में करना चाहिए।

(iii) कपड़ों पर रंग करने से वे आकर्षक तो दिखायी देते ही हैं। साथ ही कपड़ों का जीवन-काल भी बढ़ता है । कपड़े अधिक दिनों तक उपयोग में लाए जा सकते हैं। कपड़ों में कुछ खराबी होने से रंग द्वारा वे छिप जाते हैं।

प्रश्न 9.आहार आयोजन से समय, श्रम तथा धन की बचत कैसे होती है?

उत्तर-समय, ऊर्जा व ईंधन की बचत : पहले से आयोजित आहार से एक ही बार में खरीदारी व्यवस्थित रूप से हो सकती है तथा समय एवं ऊर्जा की बचत हो जाती है। खरीदारी एक ही बार बड़ी मात्रा में करने से धन भी कम खर्च होता है। भोजन पकाने के सही तरीके अपनाने से ईंधन की बचत होती है। प्रेशर कूकर का अधिक-से-अधिक प्रयोग करना चाहिए। एक समय में एक से अधिक पदार्थ बनाने के लिए कूकर के कन्टेमेंटों का उपयोग कीजिए। इससे ईंधन की बचत हो सकती है जो अत्यधिक सीमित स्रोत हैं।

प्रश्न 10. किशोरों के आहार में आयोडीन का क्या महत्त्व है?

उत्तर-आयोडीन एक प्रकार का खनिज-लवण है जो हमारे शरीर की थॉयराइड ग्रन्थि से निकलने वाले थॉयरोक्सिन हारमोन का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसकी शरीर में 100 से 200 मि० ग्राम तक दैनिक आवश्यकता है। आहार में आयोडीन का होना थॉयरॉक्सिन के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक है। आहार

में इसकी कमी होने पर इस कमी को पूरा करने के लिए आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग किया जाता है जिससे शरीर में आयोडीन की कमी ग्वायटर के रूप में न दिखने लगे। आयोडीन की विशेष आवश्यकता बढ़ते हुए किशोर व किशोरियों अर्थात् 15-16 वर्ष की आयु-वर्ग के लड़के-लड़कियों व गर्भवती स्त्रियों को अधिक होती है। गर्भवती स्त्रियों को इसकी मात्रा बढ़ा दी जानी चाहिए ताकि गर्भ के शिशु को मानसिक विकार या क्रेटिनिज्म जैसे रोगों से बचाया जा सके।

प्रश्न 11. स्कूल जाने वाले बच्चों की भूख को प्रभावित करनेवाले कारकों को लिखिये।

उत्तर-जो बच्चा स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त करता है ऐसे बच्चों को स्कूली बच्चे कहा जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों की भूख को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक हो सकते हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) जो बच्चे स्कूल जाते हैं और शिक्षा प्राप्त करते हैं उन्हें मानसिक श्रम के साथ-साथ शारीरिक श्रम भी करना पड़ता है। इसलिए ऐसे बच्चों को भूख अधिक लगती है।

(ii) बच्चे अधिकतर सुबह 10 बजे से स्कूल जाते हैं और 4 बजे लौटकर घर आते हैं। लगभग 6 घंटा वे परिश्रम करते हैं जिससे उन्हें अधिक भूल लगती है। वे पढ़ाई के साथ-साथ खेलते भी हैं जिससे उनकी भूख बढ़ जाती है।

(iii) स्कूल जाने वाले बच्चों की पाचन शक्ति अधिक हो जाती है जिससे उन्हें अधिक भूख का अनुभव होता है।

(iv) स्कूल जाने वाले कुछ बच्चे बाजार का सामान भी खरीदकर खाते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ऐसी हालत में उनकी भूख कम हो जाती है और वे रोग से ग्रसित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में पाचन शक्ति कम हो जाती है जिससे उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है।

प्रश्न 12. किन परिस्थितियों में बच्चे को माँ का दूध नहीं दिया जा सकता?

उत्तर-माँ का दूध बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार होता है, लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिनमें बच्चे को माँ का दूध नहीं दिया जा सकता है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) जब माता गर्भवती रहती है तो ऐसी परिस्थिति में बच्चे को माँ का दूध नहीं देना चाहिए।

(ii) जब माँ का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है और जब वह रोगग्रस्त हो जाती है तो ऐसी हालत में भी बच्चे को माँ का दूध नहीं देना चाहिए ।

(iii) बच्चे के एक निश्चित आयु व्यतीत होने के बाद उसे माँ का दूध नहीं पिलाना चाहिए बल्कि तरल अनाज के पदार्थ को देना चाहिए।

(iv) जब बच्चा स्वयं किसी रोग से ग्रसित हो जाता है तो उसे डॉक्टर की सलाह पर ही माता का दूध दिया जा सकता है अन्यथा नहीं ।

(v) यदि माता को किसी खराब पदार्थ के सेवन की आदत पड़ जाती है तो ऐसी हालत में माँ का दूध बच्चे को नहीं देना चाहिए ।

(vi) जिस समय बच्चे को DPT और BCG का टीका लगाया जाता है, उसी समय बच्चे को माँ का दूध नहीं देना चाहिए।

(vii) जब माता या बच्चा ज्वर से पीड़ित रहता है तो दवाई दी जाती है। उस समय बच्चे को माँ का दूध नहीं देना चाहिए।

प्रश्न 13. आहार में नवीनता कैसे लायी जा सकती है?

उत्तर-शारीरिक अवस्था तथा आवश्यकता के अनुसार आहार में परिवर्तन करना पड़ता है। शारीरिक परिवर्तन तथा विकास की अवस्थाओं में आहार की संरचना में परिवर्तन किया जाता है। जैसे किशोरी, गर्भवती, महिलाधात्री माता तथा रुग्न अवस्था में परिवर्तन आहार। भोजन की सामग्री में परिस्थिति के अनुसार नयापन लाकर ही नवीनता लाई जा सकती है। आहार में नवीनता समय और परिस्थिति के अनुसार नयापन रखने से संतुलित भोजन की व्यवस्था की जा सकती है। मौसम में परिवर्तन के अनुसार खाद्यान्न पदार्थों में परिवर्तन लाने से आहार में नवीनता लाई जा सकती है। आहार में नवीनता लाने से मनुष्य का स्वास्थ्य इच्छा बना रह सकता है। अत: स्पष्ट है कि आवश्यकता, परिस्थिति, मौसम के अनुकूल आहार की व्यवस्था होने से आहार में नवीनता लाई जा सकती है।

प्रश्न 14. सामाजिकता के कौन-कौन से गुण हैं ?

उत्तर-सामाजिक विकास का अर्थ है-'जिस समाज में बच्चा रहता है उस समाज के अनुसार अपने व्यवहार को ढालने की बच्चे की क्षमता ।' सामाजिक विकास से ही समाजीकरण आरंभ होता है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चा खाना, बोलना और खेलना सीखता है। इसका अर्थ अपने समूह के साथ अच्छा व्यवहार करना भी है।

व्यक्तियों के सामाजिक वातावरण में जीवन-यापन करने की स्थिति को ही सामाजिकता कहते हैं। सामाजिकता के विभिन्न गुण हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं- (i) सामाजिकता की स्थिति में लोगों का जीवन-यापन और पालन-पोषण अच्छे ढंग से होता है। (ii) सामाजिक वातावरण में रहने से बच्चे और अन्य व्यक्तियों का शारीरिक, बौद्धिक, शैक्षणिक विकास होता है। (iii) सामाजिकता की स्थिति रहने से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति सदा करते रहते हैं जिससे उनका जीवन नित्य-क्रम से चलता रहता है। (iv) सामाजिकता में लोगों के बीच प्रेम और भाईचारा की स्थिति बनती है। लोगों के बीच सहयोग और समन्वय बना रहता है।

प्रश्न 15. जन्मजात तथा अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में बताइये।

उत्तर-रोगों के कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता को रोगप्रतिरोधक क्षमता कहा जाता है। यह प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं जो निम्नलिखित है-

(i) जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता : इसे प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कहा जाता है। जब शरीर बाहरी संक्रमण का सामना करता है तो श्वेत रक्त . कण इनका सामना करने के लिए अपने अंदर ऐसा विषरोधी पदार्थ उत्पन्न करते हैं जो बाहर के संक्रमण का डटकर सामना करते हैं। इसलिए इन्हें शरीर के किले का सजग प्रहरी कहा जाता है। प्रकृति द्वारा एक और व्यवस्था शिशुओं को रोगों से बचाने के लिए होती है। शिशु को माता से प्राप्त दूध के पूर्व भाग के कोलेस्ट्रम से वृहत रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है। यह सभी शिशुओं को मिलती है। अध्ययन में पाया गया है कि ऊपरी दूध पर पलने वाले बच्चों की अपेक्षा माता से प्राप्त दूध पर पोषित बच्चों में संक्रमणों का सामना करने की क्षमता अधित रहती है। इसके अतिरिक्त शरीर के कुछ और तत्व भी संक्रमण से शिशु की सुरक्षा करते हैं। जैसे-नासिका से, त्वचा से, बाह्य वातावरण के संपर्क के अंगों की श्लेष्मा से 1 जो भी सब रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रकृति की विलक्षण देन है और कई बार तो इन्हीं से बच्चे की सुरक्षा होती है और वह इसकी सहायता से कई रोगों से बच जाता है।

(ii) अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता : रोगों से बचाव के लिए वैज्ञानिकों के कई तरीके खोज निकाले हैं। इन्हें बड़े पैमाने पर जाँच कराने के बार विश्वभर में प्रयोग के लिए अनुशंसित किया गया है। इससे संबंधित अनुसंधान बराबर जारी हैं जिनसे मानवता के हित में नवीन उपायों की खोज की जाती है जो सभी के लिए कल्याणकारी होते हैं। अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता इन्जेक्शन के द्वारा मुख से (oral) ड्रॉप के रूप में या वैक्सीनेशन के द्वारा दी जाती है। कुछ रोगों से बचाव के लिए वैक्सीन मिलते हैं। इनमें से कुछ ड्रॉप्स के रूप में दिए जाते हैं और कुछ ठीके के रूप में दिए जाते हैं। वैसे इस विज्ञान में अनुसंधान होते रहते हैं, जिससे इनका दिया जाना भी आसान हो गया है और संख्या भी कम हो गयी है। शिशु और छोटे बच्चों के अंदर रोगों के लिए प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के लिए और उन्हें रोगों से बचाने के लिए इनका प्रयोग सहज और सरल बनाने के प्रयत्न भी निरंतर हो रहे हैं। यह भी प्रयास होते हैं, कि इनमें एक से अधिक रोगी की प्रतिरोधकता उत्पन्न करने के लिए दवाइयाँ मिला दी जाएँ। इनके लिए समय सारणी भी प्राय: बदलती रहती है। अत: चिकित्सक से परामर्श करके इन्हें आरंभ कर देना चाहिए । टीकों की क्षमता मात्र एक बार दे देने से पूर्ण नहीं होती है। अत: इनकी बूस्टर डोज दी जाती है । बूस्टर डोज दिलवाना जरूरी है तब ही प्रयास सफल होता है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अर्जित करने के लिए विभिन्न प्रकार के टीके लगाए जाते हैं, जैसे-BCG, DPT, MR, हेपेटाइटिस की वैक्सीन तथा पोलियो इत्यादि ।

प्रश्न 16. भोजन को सुन्दर ढंग से परोसना क्यों आवश्यक है ?

उत्तर- भोजन को सुंदर ढंग से परोसना बहुत आवश्यक है, क्योंकि सुंदर ढंग भोजन परोसने से देखने में वे आकर्षक लगते हैं। इससे खाने वाले की रुचि में वृद्धि होती है। साथ ही सुंदर ढंग से भोजन को परोसने से भोजन आकर्षणशीलता उत्पन्न होती है जिससे उपयोग करने की रुचि में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप लोग अच्छे ढंग से परोसे गये भोजन बड़े भाव से खाते हैं। साथ ही सुंदर ढंग से भोजन परोसने की गृहिणी की योग्यता और कार्य-क्षमता की जानकारी होती है । भोजन को संतुलित ढंगसे बना होना आवश्यक है जिसे सुंदर ढंग से परोसा जा सकता है। भोजन को सुंदर ढंग से परोसने से गृहिणी की पाक-कला की कुशलता की भी जानकारी होती है।

प्रश्न 17. वयस्क अवस्था में कौन-कौन-से शारीरिक परिवर्तन होते हैं और पोषण आवश्यकताओं को कैसे प्रभावित करते हैं?

उत्तर-जब बच्चा बढ़कर वयस्क अवस्था में आ जाता है तो उसमें बहुत-से शारीरिक परिवर्तन होते हैं। शारीरिक परिवर्तन में उसके शरीर की लंबाई और चौड़ाई बढ़ जाती है। वयस्क अवस्था में उसक शरीर का वजन बढ़ जाता है। एक वयस्क सभी प्रकार के कार्यों को करने में समक्षम होता है। शारीरिक परिवर्तन होने से उसके भोजन की मात्रा में भी परिवर्तन होता है। एक वयस्क युवक को संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। संतुलित भोजन करने से ही एक वयस्क का शरीर स्वस्थ रहता है।

वयस्क अवस्था में शारीरिक परिवर्तन होने से अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। भोजन में पर्याप्त मात्रा में पोषक पदार्थों का होना आवश्यक है। सुबह के नास्ते, दोपहर के भोजन और रात के भोजन का पर्याप्त मात्रा में रहने से शरीर का पोषण अच्छे ढंग से होता है और शरीर नीरोग रहात है। उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने से उसका जीवन सुखमय बनता है। संतुलित भोजन में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, दूध, सब्जी तथा मांस-मछली का होना आवश्यक है। शरीर की स्थिति के अनुसार संतुलित भोजन एक वयस्क आदमी ग्रहण करता है। तभी उसका शरीर अच्छा बनता है। पोषक तत्व की आवश्यकता पूरी होने से ही मनुष्य अपने जीवन का सारा काम-काज अच्छे ढंग से कर सकता है। संतुलित भोजन पोषण आवश्यकताओं को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 18. क्रेश में बच्चों को कौन-कौन-सी सुविधाएँ प्राप्त होती है?

उत्तर-सभी महानगरों में और औद्योगिक शहरों में कामकाजी महिलाओं के बच्चे को रखने के लिए क्रेश की व्यवस्था हो रही है। यह सुविधाजनक वैकल्पिक माध्यम है। अत: इसका प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है और अनेक केन्द्र इसके अंतर्गत खोले जा रहे है। ये सार्वजनिक और निजी दोनों स्तरों पर होते हैं। इनमें निश्चित धनराशि देकर अपनी गैरहाजिरी में शिशु या बच्चे को सुरक्षित रखा जाता है। वेश में प्रशिक्षित कर्मी रहते हैं जो बच्चे को देखरेख सही तरीके से करते हैं। फिर भी अपने बच्चे के हित में जरूरी है कि माता-पिता सब तरह से क्रोश उसके कर्मी बच्चों के प्रति उनका प्यार और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार खेलने (झुलाने, फिसलने, बार पकड़कर चढ़ना, और उसी पर कुछ कदम बढ़ाना) का प्रबंध सुविधा साफ हवा, खुली जगह, बगीचा, शौचालय, आराम की व्यवस्था, सुरक्षित वातावरण खाना खाने का उचित स्थान, पौष्टिक आहार की व्यवस्था, प्राथमिक सरक्षा की व्यवस्था और खेल में छोटे बच्चों को ज्ञान कराना तथा अच्छी आदतों को डालने में सक्षम स्टॉफ आदि । इन सबके अलावा वे पूरी निगरानी भी रख सकें अर्थात् पूरा व्यवस्थित इन्फ्रास्टक्चर मौजूद रहना चाहिए। हो सकता है कि वे कुछ अधिक महँगे पड़ सकते हैं। परन्तु बच्चे का तो विकास, वृद्धि, समुचित देखरेख, प्रशिक्षण इन्हीं सबपर निर्भर करता है। यह उसको अधिकार मिले कि माँ ने उसे छोड़ा है तो उसी की बराबरी की सुविधाएँ उसे मिल सकें। मजदूर वर्ग की महिलाओं के बच्चे के लिए चलते-फिरते मोबाइल क्रेश भी चलाए जाते हैं। प्रायः ये अनुदार पर चलते हैं और साधारण रूप की देखरेख कार्य के घंटों के समय कर देते हैं । इनमें माँ को बहुत कम राशि चुकानी पड़ती है। ऐसे क्रेश प्रायः जनसेवा कार्य से जुड़ी सस्थाएँ करती हैं। जो भी हो उनके ये प्रयास भी सराहनीय होते हैं।

प्रश्न 19. संक्रामक रोगों से बचाव के सामान्य तरीके लिखिये।

उत्तर-शैशव काल में शिशु में विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोग पाए जाते हैं। जब रोगों के जीवाणु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शरीर में प्रवेश करके स्वस्थ शरीर में रोग उत्पन्न करते हैं तो उसे संक्रमण रोग शरीर के जीवाणु अथवा विषाणु द्वारा फैलते हैं। जीवाणु से फैलने वाले रोग डिप्थीरिया, क्षय, रोग, कुकुरखाँसी हैं। व्यक्ति की रोग व मृत्यु से लड़ने की क्षमता को रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है। प्राकृतिक और उपार्जित ।

शिशुओं की विभिन्न प्रकार के टीकाकरण लगाए जाते हैं जो इस प्रकार हैं- (i) BCG (ii) DPT (ii) पोलियो (iv) MMR. I

शैशवकाल के कुछ रोग हैजा, अतिसार, पेचिश, इन्फ्लुएंजा और सर्दी-जुकाम, कान-दर्द, आँख दुखना, शीतला, खुर्ज फोड़े, सूजकृमि-संक्रमण के माध्यम वायु. जल, भोजन संपर्क कीड़े हैं। रोगों से सुरक्षा के लिए नियमित समय पर टीका लगवाना व पूरी खुराक देना आवश्यक है। माता का दूध बच्चों को बीमारियों से बचाता है क्योंकि उसमें रोगाणुओं के प्रवेश होने की संभावना नहीं होती। इसलिए माता का दूध बच्चों के लिए अमृत माना जाता है। यह सर्वोत्तम आहार है।

संक्रामक रोगों से बचाव के विभिन्न तरीके हो सकते हैं। जैसे-शिशुओं को DPT, BCG तथा पोलियो ड्रॉप्स के खुराक दिए जा सकते हैं, शैशवकाल में जो रोग होते हैं उनसे बचाव के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए । हैजा, चेचक, मलेरिया तथा क्षयरोग से बचाव के लिए आवश्यक कदम के साथ-साथ समुचित दवाइयों का भी सेवन करना चाहिए । संक्रामक रोगों से बचाव के लिए स्वस्थ, स्वच्छ और साफ-सुथरा वातावरण रखना चाहिए। दूषित भोजन का व्यवहार नहीं करना चाहिए। सड़ी-गली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए । रोग से संबंधित दवाई डॉक्टर के परामर्श से प्रयोग करना चाहिए । वातावरण स्वच्छ रहने से संक्रामक रोग के फैलने की अशंका नहीं रहती है। रोगों से बचाव के लिए प्रतिदिन स्नान करना चाहिए तथा पहनने के कपड़ों और बिस्तर को साफ-सुथरा रखना चाहिए तभी संक्रामक रोग से सुरक्षा हो सकती है।

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