Model Question विषय- हिंदी (ऐच्छिक),सेट-1

Model Question विषय- हिंदी (ऐच्छिक),सेट-1



झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)

द्वितीय सावधिक परीक्षा (2021-2022)

प्रतिदर्श प्रश्न पत्र                                         सेट- 01

कक्षा-12

विषय- हिंदी (ऐच्छिक)

समय- 1 घंटा 30 मिनट

पूर्णांक- 40

सामान्य निर्देश:

» परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।

» इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।

» सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।

» प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।

खंड - 'क' (अपठित बोध)

01. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 02+02+02= 06

वृद्धावस्था का सच्चा आनंद है, आत्म संतोष। जिन्हें भविष्य की चिंता है वे वृद्ध नहीं हैं, वे तरुण ही हैं, क्योंकि उन्हें कर्म की चिंता है। जो कर्मशील होते हैं उन्हें सदा आत्म संतोष मिलता है। उदाहरण के लिए जो देश के भविष्य निर्माण के लिए चिंतित होते हैं उन्हें अपना कार्य समाप्त करके ही आत्म सुख मिलता है। जवाहरलाल नेहरू और गाँधी जी तरुण भारत के तरुण नेता थे। उनमें अदम्य साहस, स्फूर्ति एवं उत्साह था। वृद्धावस्था उनके शरीर को जीर्ण कर सकती थी- मन को नहीं, पर जो लोग एकमात्र शरीर-सुख को ही अपना लक्ष्य मानते हैं उनके जीवन में शारीरिक शक्ति की क्षीणता के साथ-साथ वृद्धावस्था आ जाती है। इस प्रकार के लोग वृद्धावस्था से असंतुष्ट होकर आत्मसंतोष से भी हाथ धो बैठते हैं।

(क) वृद्धावस्था किन्हें अपना शिकार नहीं बना सकती है ?

उत्तर: जिन्हें भविष्य की चिंता है, जो कर्मशील होते हैं, उनलोगों को वृद्धावस्था अपना शिकार नहीं बना सकती है।

(ख) कैसे लोग आत्म संतोष से हाथ धो बैठते हैं ?

उत्तर: जो लोग जीवनभर शरीर-सुख की साधना में लगे रहते हैं, कोई स्फूर्तिदायक कर्म नहीं करते वे आत्म संतोष से हाथ धो बैठते हैं।

(ग) गद्यांश में किन्हें 'तरुण 'कहा गया है ?

उत्तर: युवावस्था

अथवा

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए -

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही है

वह संध्या-सुंदरी, परी-सी,

धीरे, धीरे, धीरे

तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,

मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर

किंतु जरा गंभीर, नहीं है उनमें हास-विलास।

(क) पद्यांश में किस समय का वर्णन है ?

उत्तर: संध्या समय का वर्णन है।

(ख) यहाँ आसमान से किसके उतरने की बात कही गई है ?

उत्तर: यहाँ आसमान से संध्या सुन्दरी उतरने की बात कही गई है।

(ग) 'तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास' का आशय क्या है ?

उत्तर: तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास का आशय है-रात्रि काल में जीव-जन्तु की सभी क्रियाकलाप बंद होने से शांति छा जाती है।

खंड- 'ख'

(अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन)

02. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 05+05=10

(क) 'अनुशासन' अथवा 'महिला सशक्तिकरण' पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर:   "अनुशासन"

अनुशासन' का अर्थ है 'शासन में रहना । फिर यह शासन विवेक का हो-अपनी चिंतनशील बुद्धि का हो या अपनी सरकार अथवा अपने समाज का हो । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसमें संदेह नहीं कि उसके हाथ-पैर है, फिर भी वह अपने-आप में पूरा नहीं है। कदम-कदम पर, जन्म से मरण तक, उसे समाज के साथ की-उसकी सहायता की-आवश्यकता पड़ती है और साथ ही कुछ नियमों में बँधकर चलने को भी । समाज का नियम है कि हम माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान करें, स्वयं सानंद जिएँ और दूसरों को भी जीने दें, किसी के धन पर लोभभरी नजर न डालें, किसी को कष्ट न पहुँचाएँ, न तो सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करें और न सामाजिक शांति को ही। ये ही सभ्य समाज के शासन या नियम हैं एवं इनका तत्परता से पालन ही 'अनुशासन' कहलाता है। इसीलिए इसे नियमानुवर्तिता भी करते हैं।

यदि हम छात्र अपने माता-पिता एवं गुरुजनों की आज्ञा का पालन करते हैं और सामाजिक मर्यादाओं में बँधकर चलते हैं तो.कहा जाएगा कि हम अनुशासित हैं। इसके विपरीत, यदि हम अपने माता-पिता एवं गुरुजनों की आज्ञा का पालन नहीं करते, उलटे उनकी अवहेलना करते हैं, अन्य सामाजिकों को क्या कष्ट हो रहा है इसकी चिंता किए वगैर बस जलाते हैं, तार काट डालते हैं और दूकानों की लूटपाट करते हैं, जिस-जिस से बेमतलब झगड़ा मोल ले बैठते हैं, तो हम उच्छृखल कहे जाएँगे, अनुशासनहीन कहलाएँगे । आज आवश्यकता इस बात की है कि हम छात्र 'अनुशासनहीन' या 'उच्छृखल' न रहकर अनुशासित हों और रचनात्मक कार्यों में अपनी रुचि बढ़ाएँ।

शिष्टाचार अनुशासन का ही अधिक व्यावहारिक रूप है। 'शिष्टाचार' का अर्थ है 'शिष्ट आचरण' और 'शिष्ट' का अर्थ होता है । 'अनुशासन' । अतः जो अनुशासित होग्य वह शिष्ट आचरणवाला भी होगा। दोनों में अन्तर केवल इतना है कि अनुशासन जहाँ किसी व्यवस्था के नियमों या मर्यादाओं में बँधकर चलने की मांग करता है । शिष्टाचार दूसरों से यथायोग्य भद्र व्यवहार की। उदाहरण के लिए माता-पिता या गुरुजनों की आज्ञा का नहीं मानना जहाँ अनुशासन का उल्लंघन है वहाँ समुचित अवसर पर उनका अभिवादन न करना शिष्टाचार की अवहेलना ही रहती है।

सबसे बड़ा अनुशासन विवेक का होता है । सही और गलत का सही ज्ञान जिस बुद्धि से होता है उसी को 'विवेक' कहते हैं। विवेकशील व्यक्ति न तो प्रशासकीय अनुशासन का उल्लंघन करता है, पर नैतिक अनुशासन का ही। प्रशासकीय अनुशासन के उल्लंधन को रोकने के लिए दंड-व्यवस्था भी है, पर नैतिक अनुशासन का उल्लंधन रोकने एकमात्र सद्विवेक ही सहायक होता है। अनुशासनहीनता के विरुद्ध दंड-व्यवस्था के रहते हुए भी यदि किसी समाज में व्यापक उच्छृखलता है तो सद्विवेक का अभाव है। कारण, जो शिक्षा हमें दी जाती है और जिस प्रकार की दी जाती है, उससे हमलोग किताबी कीड़े भले हो जाएँ पर हमलोगों में सद्विवेक नहीं आ सकता । इसका एक बड़ा कारण संभवत: यह है कि हमारी शिक्षा-पद्धति में नैतिक शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। अब इसे शिक्षाशास्त्री एवं राष्ट्र के कर्णधार भी महसूस करने लगे हैं।

शिष्टाचार पारिवारिक एवं सामाजिक सुखों की कुंजी है। इसके पालन से व्यक्ति की लोकप्रियता बढ़ती है और जीवन में सुख तथा गरिमा का समावेश भी होता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज में स्वयं के लिए यथायोग्य सम्मान पाते रहना चाहता है, पर यह तो तभी संभव है जब हम परिवार एवं उसके बाहर समाज के अन्य सदस्यों को यथायोग्य सम्मान देते रहें, उनके साथ भला बर्ताव करते रहें। यदि हर व्यक्ति अनुशासन और शिष्टाचार के पालन को अपने जीवन का मूल-मंत्र मान ले तो क्या परिवार और क्या समाज-पूरे राष्ट्र का भी नैतिक उन्नयन हो सकता है, जो सभी प्रकार के विकास एवं प्रगति का मूल रहस्य है । इसीलिए हमें तत्परता से शिष्टाचार और अनुशासन का पालन करना चाहिए।

विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता-आज प्रतिदिन समाचारपत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में हम छात्र-अनुशासनहीनता की घटनाओं की चर्चा पढ़ते हैं । आए दिन विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में छात्रों द्वारा उत्पात, दंगों, हिंसात्मक वारदातो, छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार के नजारे देखने को मिलते हैं। आज छात्र शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना तो क्या सद्भाव भी नहीं रखते। छात्रों की उद्दण्डता तथा उच्छृखलता दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। रेलगाड़ियों, बसों, सिनेमाघरों, बाजारों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों में उदंड एवं अभद्र व्यवहार करना आज के छात्र के लिए एक आम फैशन की बात हो गयी है। अपने उद्दण्ड एवं उच्छृखल व्यवहार के कारण छात्र सर्वत्र निन्दा के पात्र होते जा रहे हैं। आज छात्रों की अनुशासनहीनता राष्ट्रीय स्तर पर एक विषम समस्या बन गयी है।

अनुशासनहीनता के कारण-हमारे छात्र आज ऐसा क्यों हो गये हैं ? उनके उद्दण्ड तथा उच्छंखल होने के क्या कारण हैं ? छात्रों में अनुशासनहीनता एक दिन या एक रात का परिणाम नहीं है और न ही किसी एक कारण विशेष से विद्रुपता का जन्म हुआ है। छात्र अनुशासनहीनता के अनेक कारण हैं।

अनुशासनहीनता के कुप्रभाव-छात्र अनुशासनहीनता के कुप्रभाव केवल शिक्षण संस्थाओं तक ही सीमित नहीं हैं। इसका कुप्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ रहा है । आज समाज के सभी अंग छात्रों की अनुशासनहीनता से त्रस्त हैं, पेरशान हैं । छात्रों की अनुशासनहीनता के कारण शिक्षा के स्तर में तो पतन हुआ ही है, अन्य क्षेत्रों में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई है। आज देश के नेतृत्व में जो ह्रास हुआ है, उसके पीछे भी छात्र अनुशासनहीनता ही है। अनुशासनहीनता एवं पथभ्रष्ट युवक या युवतियाँ सही नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकते हैं । आज अच्छे लोग राजनीति से संन्यास लेते जा रहे हैं, परिणामस्वरूप राजनीति पथभ्रष्टों एवं आसामाजिक तत्त्वों का अखाड़ा बनती जा रही है। गोली और डंडे के बल पर चुनाव जीतनेवाला कदापि सही नेत्व प्रदान नहीं कर सकता। सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की नौकरियों में आने वाली युवा पीढ़ी में अनुशासन का अभाव तो शाया हो जाता है, उनमें कार्यकुशलता का भी पूर्ण अभाव देखा जाता है । मात्र अनुशासनहीनता के कारण आज का छात्र न तो अच्छा नेता कर सकता है, न अच्छा पदाधिकारी बन सकता है और न ही अच्छा अध्यापक या अच्छा अभिभावक बन सकता है। शिक्षा का मूल उद्देश्य है सच्चा और अच्छा नागरिक पैदा करना परन्तु आज हम तुटेरे, अपराधी एवं कदाचारी नागरिक ही पैदा कर रहे हैं। छात्रों को अनुशासनहीनता से वर्तमान पीढी तो बाद हो हो रही है, आने वाली पीढ़ी भी भयानक रूप से ग्रसित हो रही है।

          "महिला सशक्तिकरण"

प्रस्तावना : इस सृष्टि के दोनों रूपों को निरंतर चलते रहने के लिए स्रष्टा ने सभी जीवधारियों में नर और मादा श्रेणी का निर्माण किया तथा तद्नुरूप उनका शारीरिक गठन किया। दोनों के परस्पर सहयोग से ही जीवन की गाड़ी सरलता और सुगमता से चलती रहती है। दोनों के ही कर्त्तव्य, अधिकार, कार्यक्षेत्र सुनिश्चित हैं । तद्नुसार स्रष्टा ने दोनों को स्वभाव प्रदान किए हैं। नारी कोमल. दयालु, सकोची, सेवाभावी होती है तो पुरुष कठोर एवं अधिक परिश्रमी होता है।

नारी का महत्त्व : समाज में नारी का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। वह पुरुष की सहचरी होती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह पुरुष से कंधा-से-कंधा मिलाकर उसे पूर्ण सहयोग प्रदान करती है। किन्तु मध्यकाल आते-आते नारी का स्थान पुरुषों की स्वार्थपरता, कामलोलुपता आदि के कारण अत्यंत निम्न स्तर पर आ गया। उसके अधिकारों पर कुठाराघात हुआ तथा उसका कार्यक्षेत्र सीमित हो गया। वह पुरुषों के मात्र भोग की वस्तु समझी जाने लगी। एक अंग्रेजी नाटककार ने तो यहाँ तक कह दिया, व्यभिचार, दुर्बलता तेरा नाम ही औरत है। विदेशियों को काम लोलुप निगाहों से बचने के लिए पर्दा प्रथा प्रारम्भ हुई। नारी घर की चारदीवारी में कैद हो गई तथा शिक्षा के प्रति भी नारी उपेक्षित रही।

समाज में नारी का स्थान : भारतीय दर्शन, संस्कृति, परम्पराओं में नारी को पुरुषों से भी ऊँचा स्थान दिया गया है- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।" नारी देवी है, वह माँ भी है, बहन भी है और पुत्री भी है। पत्नी के रूप में वह सहचरी है। परायी स्त्री को माता कहा गया है- 'मातृवत् परदारेषु' । भारतीय वाङमय में नारी को इतने ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है जबकि पाश्चात्य देशों में मात्र उसे उपभोग की वस्तु अथवा सुविधा की साझीदार माना गया है।

प्राचीन काल में नारी शिक्षित, विदुषी एवं कर्तव्यपरायण होती थी। ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्म, लोकाचार, सर्वत्र पुरुष से कम नहीं थी। गार्गी, अपाला, अरून्धती, सावित्री आदि अनेकों महान नारियों के नाम इतिहास के पन्नों में अंकित हैं

नारी जागरण एवं नारी शिक्षा हेतु प्रयास : आधुनिक काल आते-आते नारी पैरों की जूती समझी जाने लगी, उन पर अनेक अत्याचार होने लगे। लेकिन अब नारी जागरण, नारी-स्वातंत्र्य आंदोलन, नारी सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक प्रयास तथा इसके सुपरिणाम सामने आ रहे हैं । स्वामी दयानन्द का नारी शिक्षा, राजा राममोहन राय की सती प्रथा उन्मूलन तथा महात्मा गाँधी का नारी-उत्थान का अभियान काफी सफल रहा तथा नारी सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप नारी की सामजिक, शैक्षिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों में क्रांतिकारी परिवर्तन आए।

उपसंहार : सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा महिला उत्थान के, लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। परन्तु जब तक समाज जागरूक नहीं होगा और नारियों के प्रति सहिष्णुता का दृष्टिकोण नहीं बदलेगा तब तक पर्याप्त सफलता नहीं मिलेगी। आज आवश्यकता है कि पुरुष समाज अपने दृष्टिकोण को बदले । नारी को सच्चे हृदय से ऊपर उठकर समकक्ष लाने का प्रयास करें और उनकी प्रगति में अडंगा डालने में बाज आए। साथ ही नारियों का भी दायित्व है कि वे अपने दाम्पत्य और पारिवारिक जीवन को स्वच्छ और सफल बनाते हुए अपने त्याग, सहिष्णुता, लज्जा आदि दैवीय गुणों को न त्यागें, वरन् सेवाव्रती तथा कर्त्तव्यपरायण बनी रहें। अभी इस दिशा में काफी प्रयास करने की आवश्यकता है।

(ख) अर्थशास्त्र विषय की पढ़ाई न हो पाने से उत्पन्न कठिनाई को बतलाते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य को समाधान हेतु पत्र लिखें।

उत्तर: सेवा में,

          प्रधानाचार्य महोदय,

         +2उ० वि० गोपीकांदर,दुमका

विषय : अर्थशास्त्र विषय के पढ़ाई के संबंध में

महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि मैं सुरेश कुमार आपके विद्यालय के बारहवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं कला संकाय का विद्यार्थी हूँ और मेरा एक विषय कारण इस विषय की तैयारी अधूरी है। सभी छात्र इस विषय को लेकर परेशान अर्थशास्त्र है। अर्थशास्त्र की पढ़ाई विगत दो महीनों से नहीं हो रही है। जिसके हैं कि परीक्षा अच्छी नहीं जायेगी।

अतः आपसे विनती है कि यथाशीघ्र इस विषय की पढ़ाई शुरू की जाए ताकि परीक्षा की तैयारी हमारी हो जाए। आशा है आप शीघ्र कोई-न-कोई विकल्प निकाल लेंगे।

                                     आपका विश्वासी

                                       दीपक कुमार

(ग) दैनिक समाचार पत्र के संपादक को बढ़ते प्रदूषण एवं अनियंत्रित पेड़-पौधों की कटाई के बारे में पत्र लिखते हुए समाधान का अनुरोध करें।

उत्तर: सेवा में,

         संपादक, प्रभात खबर, राँची।

विषय : नगर में बढ़ते प्रदूषण का खतरा।

महोदय,

आपके सम्मानित दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से स्थानीय निकाय, उच्च प्रशासनिक पदाधिकारियों एवं अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, झारखण्ड का ध्यान झारखण्ड राज्य के नगरों में बढ़ते प्रदूषण तथा अनियंत्रित पेड़-पौधों की कटाई के खतरों की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।

विदित है कि पेड़ों की कटाई बेरोक-टोक जारी है। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण क्षेत्र वृक्षविहीन हो गया है। इससे पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा है।

नगरों में प्रदूषण के मुख्य कारण विभिन्न प्रकार की गंदगियाँ हैं। इनमें घरेलू कूड़े-कर्कटों पॉलीथीनों के यत्र-तत्र फैलाव, नाले-नालियों की बुरी हालत मलजल-स्राव, अस्पातालों एवं निजी नर्सिंग होम के जैव कचरे, गंदे पोखर और तालाब, कल-कारखानों के बहिवि, लोगों की गंदी आदतों एवं अन्य दृश्य और अदृश्य कारणों का योगदान है। वाहनों के कारण वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। इससे लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है।

अतः सभी सम्बद्ध पदाधिकारियों से आग्रह है कि झारखण्ड राज्य की प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए त्वरित कार्रवाई की जाया स्थानीय निकाय और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हरकत में आये और प्रदूषण रोकने के कारगर उपाय करे, अन्यथा यह दिन दूर नहीं जब प्रकृति की गोद में बसे इस राज्य के नागरिक प्रदूषणजनित व्याधियों से ग्रसित होकर असमय काल के गालम समाने लगेंगे।

सधन्यवाद।

                                       आपका विश्वासी

दिनांक:          प्रतिनिधि, जनचेतना संघ, झारखण्ड

28.03.2022 

(घ) समाचार लेखन से आप क्या समझते हैं? इसकी कौन-कौन-सी विशेषताएँ है?

उत्तर: "समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रूचि हो और उसका अधिक-से-अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।" लेखन द्वारा किसी समाचारपत्र या अन्य माध्यम से जनता को इस प्रकार की सूचना देना, जागरूक और शिक्षित बनाना तथा मनोरंजन करना समाचार लेखन होता है। पत्रकारीय लेखन का सम्बन्ध वास्तविक घटनाओं, समस्याओं या मुद्दों से होता है। यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और पाठकों की रूचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है।

समाचार लेखन की विशेषताएँ-

समाचार के तत्त्व : समाचार में रोचकता, नवीनता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता का होना अपेक्षित है।

विशाल समुदाय के लिए लेखन : अखबार और पत्रिका के लिए लेखक और पत्रकारों को ध्यान में रखना होता है कि वह ऐसे विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है, जिसमें एक विद्वान से लेकर कम पढ़े-लिखे मजदूर और किसान सभी शामिल हैं।

सहज, सरल और रोचक भाषा-शैली : पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखते हुए समाचार लेखक जटिल से जटिल एवं गूढ से गूढ़ विषयों को भी अत्यन्त सहज, सरल और रोचक भाषा-शैली में लिखता है ताकि उसकी बात सबकी समझ में आसानी से आ सके।

'उलटा पिरामिड-शैली' : समाचार लेखन 'उलटा पिरामिड-शैली' में किया जाता है। इस शैली में किसी समाचार, घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले अनुच्छेद (पैराग्राफ) में लिखा जाता है। इसके बाद महत्त्व के घटते क्रम से महत्त्वपूर्ण बातें लिखी जाती हैं।

छह ककार : समाचार लिखते समय पत्रकार मुख्यत: छह ककारों का उत्तर देने का प्रयल करता है। यह छह ककार हैं-'क्या हुआ', किसके साथ हुआ', 'कहाँ हुआ', 'कब हुआ', 'कैसे' और 'क्यों हुआ? किसी समाचार या घटना की रिपोर्टिंग करते समय इन छह ककारों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

'इन्दो': समाचार के 'इन्ट्रो' या 'मुखड़े' का आशय यह है कि समाचार का पहला पैराग्राफ सामान्यतः समाचार का मुखड़ा (इन्ट्रो) कहलाता है। इसमें आरम्भ की दो-तीन पंक्तियों में सामान्यतः तीन या चार ककारों को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है। यह चार ककार हैं- 'क्या, कौन, कब और कहाँ?

समाचार की बॉडी: समाचार के 'मुखड़े' यानी 'इन्ट्रो' को लिखने के बाद समाचार की बॉडी आर समापन आता है जिसमें छ: में से दो शेष ककारों-'कैसे और क्यों' जबाब दिया जाता है।

खंड - 'ग' (पाठ्यपुस्तक)

03. निम्नलिखित में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए - 05

(क) मैं जानऊँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ।।

      मो पर कृपा सनेहु विसेखी। खेलत खुनिस न कबहूँ देखी।।

उत्तर: 'भरत-राम का प्रेम' (तुलसीदास) शीर्षकांकित कविता के इस काव्यांश में भरत ने अपने प्रति राम के विशेष कृपालु स्वभाव पर प्रकाश डाला है। वे कहते हैं-हे स्वामी । मैं आपके स्वभाव से भली-भाँति परिचित हूँ। आपने अपराधियों पर भी कभी क्रोध नहीं किया। मुझ पर सदा आपने विशेष स्नेह और कृपा बनाये रखी । खेल-खेल में भी आपने मुझसे बदला लेने की बात कभी नहीं सोची।,

इस अवतरण की भाषा अवधी है। छंद चौपाई है। 'निज नाथ' और 'खेलत खुनिस' में शब्दानुप्रास अलंकार है। रस शांत है। आश्रय भरत और आलंबन राम हैं।

(ख) पिय सौ कहेहु सँदेसरा, ये भँवरा ये काग।

सो धनि विरहें जरि गई, तेहिक धुआँ हम लाग।।

उत्तर: प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश बारहामासा नामक कविता से उद्धृत इसके रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी जी हैं। इस काव्यांश में विरहिणी नायिका नागमती भ्रमर एवं कौए द्वारा अपने पति रत्नसेन को संदेश भेज रही है।

व्याख्या : नागमती कहती है कि इस अगहन मास की ठंडी एवं असहनीय आग से मुझ विरहिणी का हृदय जल-जलकर तुम्हारे विरह में सुलग रहा है और राख हुआ जा रहा है। मेरे इस विरह के दुख एवं कष्ट को मेरे कांत, मेरे स्वामी तुम नहीं समझ रहे हो । मेरा यौवन मेरे जीवन को भस्म किये डाल रहा है। विरह की आग को तुम क्यों नहीं समझ पा रहे हो।

विरहिणी प्रिय-मिलन में असमर्थ होने पर भौरे तथा कौए को अपना संदेशवाहक बनाकर अपने पति तक संदेश पहुँचाने हेतु कह रही है कि हे भ्रमर और कौए ! तुम मेरे पति से कहना कि तुम्हारी पत्नी विरह की आग में जलकर मर गयी है। उसकी आग से जो धुआँ निकला था, उसी के कारण हमारा रंग काला पड़ गया है।

04. निम्नलिखित में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03-06

(क) माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?

उत्तर: माघ महीने में पाला पड़ने के कारण विरहिणी नायिका पिया-वियोग में जड़वत् हो जाती है। पति के बिना भयानक ठंड रजाई ओढ़ने से भी दूर नहीं होती। विरहिणी कहती है कि मेराजिया पिया बिन काँपता रहता है। वह कहती है कि विरह के कारण मेरी आँखों में आँसू बहते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे बादल जल बरसा रहे हों। उनका पानी शरीर के अन्य अंगो पर बाण के चीरने के समान कष्टदायी लगता है। इस पद में विरहिणी की वेदना का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

(ख) राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर: राम के वन चले जाने के बाद उनकी एक-एक वस्तु को देखकर माँ कौशल्य का हृदय फटता है। उनसे जुड़ी प्रत्येक स्मृति उनके हृदय को सालती है। इन दोनों ही पदों में माता कौशल्य की व्याकुल मनोदशा-वियोग-वात्सल्य-का मार्मिक वर्णन हुआ।

(ग) कवि ने 'चाहत चलन ये सँदेर्शा ले सुजान को' क्यों कहा है?

उत्तर: इस उद्गार का तात्पर्य यह है कि कवि के प्राण प्रियतमा सुजान की दर्शन की प्यास में अटके हुए हैं। वे अब निकलने वाले ही हैं। इसलिए उसका प्राण चाहता है कि वह प्रिया का एक बार आने का संदेश तो सुन ले। उसके बाद वह विसर्जित होकर भी दु:खी नहीं होगा।

05. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06

(क) लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों चली जा रही थी?

उत्तर: लोमड़ी रोजगार पाने के लालच में स्वेच्छा से जा रही थी क्योंकि शेर ने यह प्रचार कर रखा था कि उसके मुँह के अंदर रोजगार का दफ्तर था। लोमड़ी का कहना था कि शेर के मुँह में समाकर वह रोजगार के दफ्तर में आवेदन-पत्र देगी और उसे रोजगार मिल जायेगा।

(ख) अमझर से आप क्या समझते हैं? अमझर गाँव में सूनापन क्यों है?

उत्तर: सिंगरैली के उस गाँव का नाम 'अमझर' पड़ गया था जो आमों से घिरा हुआ था और जहाँ आम झरा करते थे। जबसे नवागाँव के अठारह गाँवों को उजाड़ दिये जाने की सरकारी घोषणा हुई थी, तबसे वहाँ के आम के वृक्षों पर सूनापन छा गया था। वे अपने आप सूखने लगे थे और उनमें फल लगना बंद हो गया था। इसी कारण अमझर गाँव में सूनापन व्याप्त हो गया था।

(ग) उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

उत्तर: (i) उस छोटी से मुलाकात ने संभव के मनको झिंझोड़ दिया।

(ii) संभव का मन बेचैन हो गया। उसने उसका पीछा किया, परन्तु न मिली।

(iii) अगले दिन के लिए वह पंडित जी से कहकर गई थी।

(iv) संभव ने अगले दिन वह पंडित जी से कहकर गई थी।

(v) सारी रात उसने करवटें बदलते काटी, सुबह होने के इंतजार में न जाने किन-किन स्मृतियों में वह खोया रहा।

(vi) जीवन में इस प्रकार किसी लड़की से अकेले में वह पहली बार, वह कुछ भी क्षणों के लिए मिला, परन्तु इतना भाव-विभोर हो गया कि पुनः मिलने को उत्सुक व बेचैन सा हो गया। अगली दिन मिलने की तड़प उसे सता रही थी।

06. निर्मल वर्मा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखें? 02

उत्तर: निर्मल वर्मा-रात का रिपोर्टर, एक चिथड़ा सुख।

अथवा

असगर वजाहत का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: 5 जुलाई, 1946, फतेहपुर (उत्तरप्रदेश)।

07. कोइयाँ किसे कहते हैं? उसकी विशेषताएँ बताएँ। 03

उत्तर: कोइयाँ कमल की भांति ही एक जल-पुष्प है । इस पुष्प को कुमुद या कोकाबेली भी कहा जाता है। जहाँ कभी भी पानी का जमाव होता है-ताल-तलैया या गड्ढों में यह फूल खिलता है। यह फूल भारतवर्ष में सर्वत्र पाया जाता है। इस फूल के बारे में कहा जाता है कि वह चाँदनी रात में ही खिलता है। कोइयाँ और चन्द्रमा का एकनिष्ठ प्रेम एक मिथक के रूप में प्रचलित है। ज्योत्स्ना भरी रात में खिली हुई चाँदनी और कोइयाँ की पत्तियाँ मिलकर एकाकार हो जाती हैं। कोइयाँ की गंध विलक्षण होती है। उसकी मदमाती गंध को जानने वाला ही जान पाता है।

अथवा

'अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में' शीर्षक का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: खाऊ-उजाडू सभ्यता का आशय स्पष्ट है-आज की सभ्यता अधिकाधिक उपभोग आधारित सभ्यता है। उपभोग्य सामग्रियों के उत्पादन के लिए हमने नदी, नालों, तालाबों, कुओं को उजाड़ दिया। वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण में घोर असंतुलन आ गया है । वर्षा में कमी आ गयी है । भूगर्भ का जलस्तर तेजी से गिरता जा रहा है। धरती गर्म हो रही है। वातावरण गर्म हो रहा। ध्रुवों की बरफ पिघल रही है। लद्दाख में बर्फ जमने की बजाय पानी गिर रहा है। बाड़मेर डूब रहा है। यूरोप, अमेरिका में गर्मी बढ़ रही है। यह सब क्षयी विकास (Unsustainable development) का नतीजा है । हमने प्रकृति, पर्यावरण के संरक्षण की चिन्ता छोड़ दी है । जैव विविधता को नष्ट कर दिया। इसका परिणाम आज की दुनिया की तबाही की ओर बढ़ना है। पहले लोग प्रकृति से जितना लेते थे; उतना देने की कोशिश भी करते थे। वन के पेड़ काटते थे तो लगाते भी थे। उपभोग के साथ-साथ संरक्षण चलता था। आज यह बात भुला दी गयी है।

मालवा भी इस खाऊ उजाडू सभ्यता की मार से बच नहीं पाया है। जहाँ डग-डग रोटी और पग-पग नीर की बहुतायत थी, वहाँ भी अब दुष्काल पड़ने लगा है। प्रभाव जोशी ने रिकार्ड के आधार पर इस सच को उजागर किया है। इसलिए उनके द्वारा लिखित पाठ का शीर्षक अर्थपूर्ण है।

08. विसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया? 02

उत्तर: विसनाथ पर निम्नलिखित अत्याचार हुए-

(i) दूध छिन जाना : विसनाथ अभी कुछ ही बड़े हुए थे कि उनके छोटे भाई ने जन्म ले लिया। माँ छोटे भाई के दूध पिलाने लग गई और उनका दूध पीना बंद हो गया। छोटा भाई माँ का पौष्टिक दूध पीता और वह गाय का बेस्वाद दूध पीते।

(ii) दाई द्वारा पालन पोषण : छोटे भाई के जन्म लेने के बाद बिसनाथ का माँ का दूध पीना बंद हो गया था। साथ ही उन्हें पालन पोषण के लिए दाई को सौंप दिया गया। वह उनको जमीन पर एक बिछौने पर लेटा देती और वह चुपचाप चाँद को देखते रहते। माँ का दूध छूटना और दाई द्वारा पालन-पोषण विसनाथ को अत्याचार लगता है।

अथवा

अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरा करता था। उसके क्या कारण हैं?

उत्तर: (i) औद्योगिक विकास : आज मानव विकास के नए-नए प्रतिमान छू रहा है। वैसे तो विकास हर क्षेत्र में हुआ है, लेकिन उद्योगों के क्षेत्र में वे विकास अत्यन्त तीव्र गति से हुआ। लगातार बढ़ते उद्योगों ने वातावरण पर बुरा प्रभाव डाला। इन उद्योगों से निकलने वाली गैसों ने पृथ्वी के तापमान को तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया है, जिससे मौसम में काफी परिवर्तन आ गया। सर्दी, गर्मी तथा बरसात तीनों की मात्रा और समय में क्षी बदलाव हुआ। अब वर्षा की मात्रा बीते सालों से काफी कम रह गई है। पाठ में भी कहा गया है कि हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं, वह उजाड़ की अपसभ्यता है।

(ii) वायु-प्रदूषण : मनुष्य के विकास के साथ प्रदूषण भी काफी अधिक बढ़ गया है, जिसमें वायु प्रदूषण तो बहुत अधिक फैल गया है। फैक्ट्रियों तथा वाहनों के धुएँ ने वातावरण को दूषित कर दिया है। ये धुएँ वायुमंडल में जाकर वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं।

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