झारखण्ड शैक्षिक अनुसंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021-2022)
प्रतिदर्श प्रश्न पत्र सेट- 02
कक्षा-12 |
विषय- हिंदी (ऐच्छिक) |
समय- 1 घंटा 30 मिनट |
पूर्णांक- 40 |
सामान्य
निर्देश:
»
परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।
»
इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।
»
सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
»
प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।
खंड
- 'क' (अपठित बोध)
01. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
02+02+02= 06
'कमजोर' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- कम+ज़ोर। यानी जिस वर्ग के सदस्यों
में ज़ोर कम है, वह वर्ग कमजोर माना जाता है। 'ज़ोर' यानी शक्ति। वह कौन-सा तत्व है
जो किसी वर्ग को स्वयं ऊपर उठने की शक्ति प्रदान करता है-पूँजी? कौन-सी पूँजी? इसे
समझने के लिए हमें कोई पुस्तक पढ़ने की जरूरत नहीं है। अपने आस-पड़ोस का सूक्ष्म निरीक्षण
करना पर्याप्त है। ऐसे निरीक्षण से हमें स्पष्ट दिखाई देगा कि जो व्यक्ति, जो परिवार,
जो समूह नए ढंग के विद्योपार्जन को वरीयता देते रहते हैं, वे अपने को उन्नत करते जाने
की शक्ति पाते रहे हैं। जो व्यक्ति, परिवार और समूह नए ढंग से विद्योपार्जन से विमुख
रहे हैं या विद्या से वंचित रह गए हैं, वे नीचे गिरते गए हैं, भले ही उन्होंने किसी
सीधे या कुत्सित मार्ग से थोड़ा-बहुत धन अर्जित किया हो। विद्याविहीन के हाथ आया धन
वैसे ही निरूपयोगी है, जैसे बंदर के हाथ आया पुष्पहार।
(क) किसी वर्ग के ऊपर उठने में किसकी भूमिका सर्वोपरि है?
उत्तर:
किसी वर्ग के ऊपर उठने में विद्योपार्जन एवं पूँजी की भूमिका सर्वोपरि है।
(ख) विद्याविहीन व्यक्ति की क्या स्थिति होती है ?
उत्तर:
विद्याहीन व्यक्ति द्वारा अर्जित किया गया धन वैसे ही निरूपयोगी है जैसे बंदर के हाथ
आया फूलों की हार। अर्थात् वह धन का सदुपयोग नहीं कर पाता है।
(ग) किसे समझने के लिए पुस्तक पढ़ने की जरूरत नहीं है?
उत्तर:
पूँजी को समझने के लिए पुस्तक पढ़ने की जरूरत नहीं है।
अथवा
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए .
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का
नाम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का
नाम नहीं होता है देश।
देश नहीं होता है केवल
सीमाओं से घिरा मकान
देश नहीं होता है कोई
सजी हुई ऊँची दुकान।
देश नहीं क्लब जिसमें बैठे
करते रहे सदा हम मौज़
देश नहीं होता बंदूकें
देश नहीं होता है फौज।
जहाँ प्रेम के दीपक जलते
वहीं हुआ करता है देश
जहाँ इरादे नहीं बदलते
वहीं हुआ करता है देश ।
(क) पदयांश में कहाँ-कहाँ देश के नहीं होने की बात कही गई है ?
उत्तर:
पद्यांश में ग्राम, नगर, संसद, सड़क, आयोग, मकान, दुकान, बंदूक आदि जगहों पर देश के
नहीं होने की बात कही गई है।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि किसकी परिकल्पना पर अपना विचार व्यक्त
कर रहा है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि क्षमता, सहिष्णुता, प्रेम आदि परिकल्पना पर अपना विचार व्यक्त
कर रहा है।
(ग) पद्यांश में कवि ने देश के लिए किसे जरूरी माना है?
उत्तर:
पद्यांश में कवि ने देश के लिए प्रेम और इरादा को जरूरी माना है।
खंड
- 'ख' (अभिव्यक्ति और माध्यम)
02. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 05+05=10
(क) 'भारतीय किसान' अथवा 'नारी शिक्षा' विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
"भारतीय किसान"
गाँधी
जी का कथन : गाँधी जी ने कहा था-"भारत का हृदय गाँवों में बसता है । गाँवों में
ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। ये किसान ही नगरवासियों के अन्नदाता हैं,
सृष्टि-पालक हैं।"
सरल
जीवन : भारत के किसान का जीवन बड़ा सहज तथा सरल होता है। उसमें किसी प्रकार की कृत्रिमता
नहीं होती । वह अपने जीवन की आवश्यकताओं को सीमित रखता है । रूखा-सूखा भोजन करके भी
वह स्वर्गीय सुख का अनुभव करता है । माँ प्रकृति की गोद में उसे बड़ा संतोष मिलता है
। प्रकृति से निकट का संबंध होने के कारण भारतीय किसान हृष्ट-पुष्ट तथा स्वस्थ रहता
है । वह स्नेहशील, दयालु तथा दूसरों के सुख-दुख में हाथ बँटाता है । वह सात्त्विक जीवन
जीता है।
परिश्रमी:
भारत का किसान बड़ा परिश्रमी है। वह गर्मी-सर्दी तथा वर्षा की परवाह किए बिना अपने
कार्य में जुटा रहता है । जेठ की दोपहरी, वर्षा ऋतु की उमड़ती-घुमड़ती काली मेघ-मालाएँ
तथा शीत ऋतु की हाड़ कंपा देने वाली वायु भी उसे अपने कर्तव्य से रोक नहीं पाती । भारतीय
किसान का जीवन कठोर तथा कष्टपूर्ण है।
अभाव:
भारतीय कृषक का जीवन अभावमय है । दिन-रात कठोर परिश्रम करने पर भी वह जीवन की आवश्यकताएँ
नहीं जुटा पाता । न उसे पेट-भर भोजन मिलता है और न शरीर ढंकने के लिए पर्याप्त वस्त्र
। अभाव और विवशता के बीच ही वह जन्मता है तथा इसी दशा में मृत्यु को प्राप्त हो जाता
है।
दुरवस्था
के कारण : निरक्षरता भारतीय कृषक की पतनावस्था का मूल कारण है । शिक्षा के अभाव के
कारण वह अनेक कुरीतियों से घिरा है । अंधविश्वास और रूदियाँ उसके जीवन के अभिन्न अंग
बन गए हैं। आज भी वह शोषण का शिकार है। वह धरती की छाती को फाड़कर, हल चलाकर अन्न उपजाता
है कि उसके परिश्रम का फल व्यापारी लूट ले जाता है। उसकी मेहनत दूसरों को सुख समृद्धि
प्रदान करती है।
निष्कर्ष
: देश की उन्नति किसान के जीवन में सुधार से जुड़ी है। किसान ही इस देश की आत्मा है
। अतः उसके उत्थान के लिए हमें हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। किसान के महत्त्व को जानते
हुए ही लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था-'जय जवान जय किसान ।' जवान देश की सीमाओं
को सुरक्षित करता है, तो किसान उस सीमा के भीतर बस रहे जन-जन को समृद्धि प्रदान करता
है।
अथवा,
"नारी शिक्षा"
कभी
जगद्गुरु कहलाने वाला भारत आज शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ गया है। निरक्षरता
का प्रतिशत विश्व में सबसे अधिक भारत में है। नारी-शिक्षा की स्थिति तो और भी खराब
है।
प्राचीन
काल में पुरुषों के समान स्त्रियों को भी शिक्षा दी जाती थी लीलावती, गार्गो, अनुसूइया
आदि कई विदुषियाँ हुईं जिन्होंने अपने ज्ञान से समाज को प्रभावित किया। आक्रमणकारियों
के आक्रमण के कारण स्त्रियों को अपने घरों के चौखटों के भीतर ही दिन गुजारने पड़े।
फिर यह ध्यातव्य है कि भारतीय स्त्रियों ने पुरुष-समाज को सुसंस्कारित करने का बीड़ा
उठाया और उन्होंने किया भी। जीजाबाई और हुलसी शिवाजी और तुलसीदास के जीवन पर स्त्रियों
की अमिट छाप है।
स्त्री
और पुरुष समाजरूपी रथ के दो पहियों के समान हैं। दोनों को समान रूप से शिक्षित होना
चाहिए। लेकिन कुछ पोंगापंथी लोग इसके खिलाफ हैं। आज भी वे उन्हें पुरुषों के समकक्ष
नहीं आने देना चाहते । ऐसा करते समय यह भूल जाते हैं कि नारियाँ ही माँ बनकर बच्चों
को पालती हैं। बच्चों की प्रथम गुरु माँ ही होती है। माँ उसे देवतुल्य भी बना सकती
है और दानव भी।
नारी-शिक्षा
के महत्त्व को नहीं मानने वाले यह भूल जाते हैं कि एक पुरुष को शिक्षित करने से केवल
एक व्यक्ति शिक्षित होता है किन्तु एक स्त्री को शिक्षित करने से पूरा परिवार शिक्षित
बनता है। अरस्तू ने कहा था-"नारी की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति
या अवनति निर्भर है।"
प्रसिद्ध
दार्शनिक एवं लेखक जॉर्ज बर्नाड शॉ ने कहा है- "किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है,
यह उसकी माता को देखकर साफ बताया जा सकता है।"
आज
भारत में नारी-शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है, किन्तु आशाजनक अवश्य है। सरकार और
समाज के प्रयत्नों से नारी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अब लगभग हर क्षेत्र
में लड़कियाँ लड़कों से टक्कर ले रही हैं।
आज
नारी-शिक्षा की आवश्यकता सभी महसूस करते है, यह एक शुभ लक्षण है।
(ख) अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें, जिसमें अपने विद्यालय
की खेल संबंधी कठिनाइयों से उन्हें परिचित कराते हुए दूर करने के उपाय का वर्णन हो।
उत्तर:
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय
उच्च विद्यालय गोविन्दपुर, धनबाद
श्रीमान्
जी,
सविनय निवेदन है कि अगले ही मास अपने विद्यालय-बोर्ड
की खेल-कूद प्रतियोगिताएँ आयोजित होने जा रही है । इस बार अधिक वर्षा के कारण हमारे
क्रीड़ा स्थल की हालत बुरी हो गयी है। किसी भी खेल की समुचित तैयारी नहीं हो पाई है।
मैदान में कई स्थानों पर गड्ढे हो गए हैं। क्रिकेट की पिच पर तो काफी परिश्रम की आवश्यकता
है।
इस वर्ष अभी तक खेल का नया सामान खरीदा
नहीं गया है। इसलिए दस दिन से उसका अभ्यास बन्द है। पिछले वर्ष भी अभ्यास की कमी के
कारण हमारी टीमें परास्त हो गई थी। आपसे आग्रह है कि शीघ्र ही खेल के सामान और मैदान
की समुचित व्यवस्था कराएं, ताकि हम बेहतर खेल का प्रदर्शन कर सके।
धन्यवाद
सहित आपका आज्ञाकारी शिष्य
अविनाश कुमार
कक्षा-XII, अनुक्रमांक-2
दिनांक
: 20 मार्च, 2022
(ग) अपने गली मुहल्ले की नालियों की समुचित सफाई के लिए नगरपालिका के
अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
नगर
निगम अध्यक्ष, नगर निगम, राँची
विषय:
नगर के मुहल्लों में व्याप्त गंदगी की समस्या ।
महोदय,
आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम
से सम्बद्ध अधिकारियों
(आपके)
के ध्यान में यह बात लाना चाहता हूँ कि इस शहर के प्रत्येक क्षेत्र में गंदगी का ढेर
लगा हुआ है। नालियों का मुंह पॉलीथीनों के कचरों से बंद हो गया है। फलतः नालियाँ बजबजा
रही हैं और गंदा पानी सड़कों पर फैल गया है। होटलों आदि के निकट का स्थान उनके कचरों
के कारण और ज्यादा गंदा है। गंदगियों के कारण शहर की जलवायु प्रदूषित हो गयी है। नालियों
के बहते पानी से सड़कों परे गड्ढे बन गये हैं और कीचड़ फैल गये हैं। दुर्गन्ध के मारे
साँस लेने में भी कठिनाई होती है। गंदगी के कारण महामारी फैलने की तीव्र आशंका उत्पन्न
हो गयी है।
अत:
नगर निगम के अध्यक्ष गंदगी की इस समस्या पर अविलम्ब ध्यान दें और युद्ध-स्तर पर सफाई
का काम करायें। इसके अतिरिक्त कचरों के प्रबन्धन का ठोस उपाय करवायें तथा गंदगी फैलाने
वालों पर कानूनी कार्रवाई करें।
भवदीय
अविनाश कुमार
दिनांक : 20 मार्च,
2022
(घ) पत्रकारिता किसे कहते हैं? पत्रकारिता के प्रकारों को लिखिए।
उत्तर:
ज्ञान और विचारों का समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम
से जन-जन तक पहुँचा ही पत्रकारिता है।
पत्रकारिता
के निम्नलिखित प्रकार हैं-
(i)
खोजपरख या खोजी पत्रकारिता : खोजी पत्रकारिता द्वारा सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में
भष्टाचार, गड़बड़ी, अनियमितताओं और अनैतिकताओं को उजागर करने का प्रयल किया जाता है।
खोजी पत्रकारिता का ही नया रूप टेलीविजन में 'स्टिंग आपरेशन' के रूप में सामने आया
है।
(ii)
विशेषीकृत पत्रकारिता : इसके लिए पत्रकार से किसी व्यापक क्षेत्र में विशेषज्ञता की
अपेक्षता की जाती है। पत्रकारिता के विषयानुसार विशेषज्ञता के प्रमुख क्षेत्र हैं-'संसदीय
पत्रकारिता', 'न्यायालय पत्रकारिता', 'आर्थिक 'विज्ञान और विकास पत्रकारिता', 'अपराध
फैशन तथा फिल्म पत्रकारिता'।
(iii)
वाचडॉग पत्रकारिता : 'बॉचडॉग पत्रकारिता' का मुख्य काम और जवाबदेही सरकार के कामकाजों
और गतिविधियों पर पैनी नजर रखनी है। जहाँ कहीं भी कोई गड़बड़ी नजर आये वह उसको उद्घाटित
करें।
(iv)
एडवोकेसी पत्रकारिता : एडवोकेसी या पक्षधर पत्रकारिता का संबंध विशेश विचारधारा, मान्यता
या मुद्दों से होता है। एडवोकेसी पत्रकारिता के संचालक समाचार संगठन अपने विशेष उद्देश्यों,
मुद्दों और विचारधारा को जोर-शोर से उठाते हैं उनके पक्ष में जनमत की दिशा मोड़ने की
कोशिश करते हैं। कभी-कभी किसी विशिष्ट मुद्दे पर जनमत बनाकर उसके अनुकूल प्रतिक्रिया
करने या (निर्णय) लेने के लिए दबाव बनाते हैं।
(v)
वैकल्पिक पत्रकारिता : पत्रकारिता को जो रूप स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने
और उसकी सोच को अभिव्यक्त करने का प्रयल करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता
है। इस तरह की मीडिया को न तो पूँजीपतियों का बरदहस्त प्राप्त होता है और न ही सरकार
का रक्षा कवच ही उसे मिलता है। वह तो पाठकों के सहयोग पर ही साँस लेती है।
खंड
- 'ग' (पाठ्यपुस्तक)
03. निम्नलिखित काव्यांश में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए- 05
(क) पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढे।।
कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एही ते अधिक कहीं मैं काहा।।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश 'अंतरा' (भाग-2) के 'भरत राम का प्रेम' नामक शीर्षक से अवतरित है।
उक्त काव्यांश 'रामचरितमानस' के 'अयोध्या कांड से समाकलित है। उसके रचयिता हिन्दी के
लोकनायक, कवि-शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास है। श्रीराम को वन से लौटने के लिए भरत चित्रकूट
पहुँचे हुए हैं। मुनिवर वशिष्ठ जी के उद्बोधन के पश्चात् सपा में भरत की भावुकता छलक
उठती है। भरत अपने भाव इस प्रकार प्रकट कर रहे हैं-
व्याख्या
: चित्रकूट में सभा लगी हुई है। मुनिश्वर वशिष्ठ जी अपना वक्तव्य रख चुके हैं। वे भरत
को आदेश देते हैं कि तुम अपने मन की बात को संकोच मत करो। तब भरत भाव-विभोर हो उठते
हैं। उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। मुनि व स्वामी श्रीराम की अनुकूलता जानकर वे खड़े
हो जाते हैं। उनके (भरत के) कमल रूपी नेत्रों से जल की बाढ़ आ चुकी है। वे कहते हैं
कि में जो कहना चाहता था, वह सारा मुनिश्रेष्ठ (वशिष्ठ जी) कह चुके हैं। मैं (भरत)
इससे अधिक क्या कह सकता हूँ।
अथवा
(ख) घन आनँद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज समाज टरे।
तब हार पहार से लागत हे, अब आनि के बीच पहार पर।
उत्तर:
कवि ने इस सवैया में वर्णन किया है कि प्रिया के दर्शन से अमृतपान करने वाले हमें अनेक
वियोग में सोचते हैं। इसलिए 'नैन जल जाते
घनानंद
कहते हैं मेरी मित्र सुजान के बिना सुख के सभी साजो-सामान हट गए हैं, दूर हो गये हैं।
पहले तो हार प्रहार के समान लगते थे किन्तु अब तो प्रिया और हमारे बीच ऐसा लगता है
कि पहाड़ आकर खड़े हो गये हैं। पहाड़ के एक छोर हमारी सुजान है और दूसरी तरफ हम हैं।
दोनों का मिलन नहीं हो पाता और हम अपनी प्रेयसी के वियोग में तड़पते ही रहते हैं।
सौन्दर्य-बोध
: 'छबि पीवत' में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है। 'शोभारूपी अमृत का पान
करना' यही इस पंक्ति का अभिप्राय है 'जात जरे', 'प्रान पले', 'दुख दोष' तथा 'पहार परे'
में अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य देखने योग्य है। 'सुख-साज-समाज' में रूपक अलंकार का
प्रयोग किया गया है। 'पहार' में यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है। यही प्रथम 'पहार' का
अर्थ 'प्रहार' है तथा दूसरे ‘पहार' का अर्थ 'पहाड़' (पर्वत) है। भाषा विषय के अनुकूल
तथा सरस है। साहित्यशास्त्र के अनुसार इस पद में शृंगार के विप्रलम (वियोग) स्वरूप
का वर्णन किया गया है। यहाँ वियोग-वर्णन संयोग के वर्णन से ज्यादा मार्मिक माना जाता
है।
04. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06
(क) कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?
उत्तर:
कवि मौन होकर यह देखनाचाहता है कि उसकी प्रियतमा कब तक उसकी प्रेम-भरी पुकार को अनसूनी
करते रहने के प्रण का पालन करती है।
(ख) 'जीयत खाइ मुएँ नहिं छोड़ा' पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह
दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
'जीयत खाई मुएँ नहिं छाँडा' पक्ति में यह बताया गया है कि चील, कौए बाज आदि पक्षी मुर्दे
के माँस को नहीं छोड़ते अर्थात् मरे हुए आदमी तथा पशु इत्यादि का मांस खाते हैं, किन्तु
'विरह रूपी बाज पक्षी तो मुझे जीवित का ही मांस खाए जा रहा है। यहाँ विरह की उपमा बाज
पक्षी से की गई है। बाज पक्षी मरे हुए का माँस खाते हैं किन्तु विरह-दशा में आदमी जीते-जी
ही मरे हुए के समान बन जाता है। विरहिणी की मनोदशा को कवि ने चकवी और कोयल से उपमित
किया है। चकवी अपने साथी से रात को बिछुड़ जाती है और दिन में मिलती है। कोयल रात-दिन
वियोग में तड़पतो है। इसी तरह विरहिणी की दशा है।
(ग) रहि चकि चित्रलिखी-सी' पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीराम के वन-गमन की घटना का स्मरण करके कौशल्या पूर्णत: चकित व स्तंभित हो जाती है,
वे अवाक् रह जाती है। वे उस घटना पर विश्वास ही नहीं करना चाहती हैं। उनकी मार्मिक
दशा देखते ही बनतो है।
05. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03= 06
(क) गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है - इस कथन के आधार
पर गंगापुत्रों के जीवन परिवेश की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
गंगापुत्र से आशय माँझी जाति के लोगों से है। इनका जीवन दुःसाहस श्रम और कष्टों से
भरा हुआ होता है। प्रत्येक ऋतु की कठिनाइयों को झेलते हुए वे गंगापुत्र गंगा की धारा
में आरती के समय तैरते हैं और पूरे घाट का बीसों बार चक्कर लगाते हैं। भक्तगण गंगा
माता की प्रसन्नता के लिए मनौतियों के रूप में दोनों में प्रज्ज्वलित दीपक, फूल और
कुछ पैसे धारा में बहाते हैं। ये गंगापुत्र दोनों के पैसों को बटोरने के लिए तैरते
हुए उसे पकड़ते हैं। पैसे हाथ से उठाकर मुँह में दबाते है। फिर वे अन्य दोनों की तरफ
लपक पड़ते हैं। उनकी जीविका के साधन ये कुछ थोड़े-से पैसे ही हैं। उनकी स्त्रियाँ इन्हीं
रेजगारियों से नोटों को बदलकर थोड़ा बहुत उपार्जन कर लेती है। इसी तरह इनकी जीविका
चला करती है। अत: यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि गंगा मैया ही गंगापुत्रों
की जीविका और जीवन की स्रोत हैं। कहानी लेखिका के इस कथन के आधार पर उनके श्रमसाध्य
एवं कष्टपूर्ण जीवन-परिवेश की कल्पना करना अनुचित नहीं लगता।
(ख) प्रकृति के कारण विस्थापन और औद्योगीकरण के कारण विस्थापन में क्या
अंतर है?
उत्तर:
भूकम्प या बान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोगों को कुछ समय के लिए अपने मूल स्थान
से हटकर अन्यत्र शरण लेनी पड़ती है किन्तु ज्योंही प्राकृतिक आपदा टल जती है, वैसे
ही वे अपने मूल स्थान की ओर लौट आते हैं। प्राकृतिक आपदा की विवशता के कारण उत्पन्न
विस्थापन अस्थायी होता है। किन्तु बड़ी-बड़ी परियोजनाओं एवं उद्योगों आदि की स्थापना
आदि के लिए लोगों का जो विस्थापन होता है, वह स्थायी प्रकृति का होता है। ऐसे विस्थापित
कभी-भी अपने मूल निवास की ओर लौट नहीं पाते ।
(ग) शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर है?
उत्तर:
शेर के मुँह में समा जाने के पश्चात् जंगली जानवर उसके आहार बन जाते हैं । इसके बाद
उन्हें रोजगार की आवश्यकता ही नहीं रह जाती । इसी प्रकार सरकार द्वारा संचालित रोजगार
का दफ्तर बेकारों का नाम दर्ज कर उन्हें इस झांसे में रखते हैं कि वे नौकरी पा जायेंगे
किन्तु वास्तविकता इसके विपरीत होती है। शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर में बस इतना
ही फर्क है।
06. ममता कालिया अथवा तुलसीदास की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखें।
02
उत्तर:
ममता कालिया : छुटकारा, एक अदद औरत
तुलसीदास : कवितावली, दोहावली ।
07. लेखक विसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बतख से की है?
03
उत्तर:
लेखक बिसनाथ ने बत्तख को अंडे सेते हुए देखा था। वह पंख फुलाये अंडों को दुनिया की
क्रूर नजरों से बचाये हुए सेती रहती है। कभी-कभी कुछ अंडे बत्तख (माँ के) के डैनों
से (आँचल सरीखे) छिटकर दूर चले जाते हैं। बत्तख अपनी सख्त चोंच से इतनी सतर्कता और
कोमलता से साथ इन अंडों को अपने डैनों में पुनः छिपा लेती है कि इस अद्भुत दृश्य को
देखकर मनुष्य आश्चर्य से भर जाता है। वह अंडों को चट करने के लिए ताक लगाये कौवे पर
भी सतर्क निगाह टिकाये रहती है। बत्तख बड़ी सतर्कता से अंडे को उलटती और पलटती रहती
है।
लेखक
बिसनाथ सोचते हैं कि किसने उसकी माँ और बत्तख को एक जैसी ममता दी है? लेखक का मानना
है कि जिस तरह पानी बहता है, हवा चलती है, वैसे ही माँ में बच्चों की प्रकृति में ही
सब कुछ है। माँ की ममता पूर्णतः नैसर्गिक और प्रकृति-प्रदत्त होती है। माँ की ममता
निरुद्देश्य नहीं सोद्देश्य होती है। ममता ही वह एकमात्र सूत्र है जिसके आधार पर लेखक
बिसनाथ ने अपनी माँ और बत्तख की तुलना की है।
अथवा
धरती का वातावरण गर्म क्यों हो रहा है? इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या
भूमिका है?
उत्तर:
धरती के वातावरण के गर्म होने का मुख्य कारण वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसों
का अत्यधिक जमाव है। ये गैसें विभिन्न स्रोतों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्सर्जित की
जा रही हैं । कल-कारखाने, प्राकृतिक तेल एवं गैसों से चलने वाली गाड़ियाँ, सुख-सुविधाओं
के अनेक आधुनिक उपकरणों, यथा फ्रीजों और एयरकंडीशनरों आदि द्वारा वातावरण में बेहिसाब
कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसें छोड़ी जा रही हैं। इन्हीं गैसों के कारण पृथ्वी का वातावरण
गर्म होता जा रहा है। इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेवार अत्यंत समृद्ध राष्ट्र अमेरिका,
ब्रिटेन, फ्रांस आदि हैं।
08. 'अपना मालवा' में लेखक ने नर्मदा की स्थिति का वर्णन किस प्रकार
किया है? 02
उत्तर:
लेखक ने नर्मदा को दो जगहों में देखा इस पार, सामने से और उस पार ओंकारेश्वर में से
। नर्मदा नदी में सामने कंक्रीट का विशाल राक्षसी बाँध बनाया जा रहा था। संभवत: बाँध
के निर्माण से नर्मदा चिढ़ गयी थी। इसलिए तिन तिन फिनफिन बह रही थी। कहीं वह मटमैली
दिखती थी, कहीं अपने तल के पत्थर दिखाती छिछली दिखायी देती थी तो कहीं गहरी अथाह ।
अब वह तीर्थधाम नहीं लगता था। वहाँ निर्माण में लगे बड़े-बड़े टुके आदि खड़े थे। नेमवार
के पास बजवाड़ा में नर्मदा शांत, गंभीर और भरी-पूरी थी। शाम होने के बावजूद अपने अंदर
के मदे उजाले से वह गमक रही थी।
अथवा
"विस्कोहर की माटी के आधार पर ग्रामीण जीवन में आनेवाली विपत्तियों
का वर्णन कीजिए।
उत्तर: बिस्कोहर जैसे गाँव का जीवन बारहों महीना कष्टों से भरा होता है। गरीबी, अभाव, अशिक्षा, कुपोषण और अधविश्वास उन्हें कई प्रकार की विपत्तियों में डालते रहते हैं। ग्रामीण जनों को निरंतर प्रकृति की मार झेलनी पड़ती है। वर्षाकाल में उनका जीवन विषम हो जाता है। चारों तरफ गडढों में पानी भर जाता है जिसमें मलेरिया के मच्छर पलते हैं । मलेरिया से पीड़ित ग्रामवासियों को जान गंवानी पड़ती है। बाढ़ जैसी विपदा तो उनका सब कुछ छीन लेती है। गर्मी में वे लू, लहर के शिकार होत हैं। आँधी से तबाह होते हैं। गाँव में महामारियों यथा-कॉलरा (हैजा), मलेरिया, चेचक आदि की चपेट निरंतर आ जाया करती हैं। गाँवों में साँपों और बिच्छुओं का भी खूब प्रकोप होता है। प्रत्येक वर्ष सर्पदंश से अनेक लोगों की जानें जाती हैं।