द्वितीय
सावधिक परीक्षा - 2021-2022 (Second Terminal
Examination - 2021-2022)
मॉडल
प्रश्नपत्र (Model Question Paper) विषय - राजनीति शास्त्र
(Sub- Political Science),
वर्ग- 12 (Class-12), पूर्णांक-40 (F.M-40) समय-1:30 घंटे (Time-1:30
hours)
सेट-
2 (Set -2)
सामान्य
निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने
शब्दों में उत्तर दें।
» कुल प्रश्नों की संख्या
19 है।
» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न
संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक
निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न
संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित
है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न
संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक
निर्धारित है।
प्रश्न 1. पूँजीवादी
गुट का नेतृत्व कौन-सा देश कर रहा था ?
उत्तर-अमेरिका।
प्रश्न 2. संपूर्ण
क्रांति आंदोलन के साथ किस नेता का नाम जुड़ा
उत्तर-संपूर्ण क्रांति आंदोलन
के साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण का नाम जुड़ा हुआ है।
प्रश्न 3. सोवियत
संघ का विघटन कब हुआ?
उत्तर-1991.
प्रश्न 4. संयुक्त
राष्ट्रसंघ के वर्तमान महासचिव कौन हैं ?
उत्तर-बान की मून।
प्रश्न 5. व्यापक
परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि कब हुई ?
उत्तर-1996.
प्रश्न 6. भारत
ने शुरूआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें का विचार शामिल नहीं था।
उत्तर-उदारीकरण।
प्रश्न 7. पाँचवीं
लोकसभा निर्वाचन के समय गरीबी हटाओ का नारा किसने दिया?
उत्तर-श्रीमती इंदिरा गाँधी
ने।
प्रश्न 8. भारत
के पर्यावरणीय आंदोलनों में सबसे अधिक सफलता किसे मिली?
उत्तर-केरल का साइलेंस शैली
हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट ।
प्रश्न 9. ग्लासनोस्त
से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-ग्लासनोस्त का अर्थ है-खुलापन
। लोगों को राजनीति व आर्थिक विषयों के बारे में जानकारी तभी दी जा सकती है जब उन्हें
उन विषयों के बारे. में विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार तथा स्वतंत्रता प्राप्त हो।
प्रश्न 10. सार्क
के सिद्धांतों की चर्चा करें।
उत्तर-सार्क संगठन अपना कार्य
संचालन कुछ सिद्धांतों के आधार पर कर सकता है। वे सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(i) सार्क
संगठन द्वारा क्षेत्रीय सहयोग की प्राप्ति सदस्य राज्यों की प्रभुसत्ता, समानता, प्रादेशिक
अखण्डता, राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार पर होगी।
(ii) सार्क
संगठन के सदस्य अन्य राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
(iii) क्षेत्रीय
सहयोग-द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय सहयोग का स्थान न लेकर, उनके अतिरिक्त सहयोग प्राप्त
करने वाला तत्त्व होगा ।
(iv) क्षेत्रीय
सहयोग-द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय दायित्व से असंगत नहीं होगा।
प्रश्न 11. संयुक्त
राष्ट्र संघ के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र संघ
के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं-
(a) विश्व शांति व सुरक्षा
की स्थापना ।
(b) राज्यों के बीच सद्भावनापूर्ण
संबंधों को बढ़ावा देना।
(c) सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक
तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में संवृद्धि करना ।
(d) समस्त विश्व में मानव अधिकारों
के प्रति सम्मान में वृद्धि करना ।
(e) विभिन्न राष्ट्रों के हितों
को सामान्य हित के रूप में संगत
प्रश्न 12, परम्परागत
सुरक्षा व अपारंपरिक सुरक्षा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-परम्परागत सुरक्षा-(i)
हिंसा का इस्तेमाल यथा-संभव सीमित अर्थों में होता है। लक्ष्य तथा साधन दोनों से इनका
संबंध रहता है। (ii) राज्य के संदर्भो में माना जाता है।
अपारंपरिक सुरक्षा-(i) सैन्य
खतरों से संबद्ध न होकर मानवीय अस्तित्व के लिए खतरों और आशंकाओं को शामिल किया जाता
है । (ii) संदर्भो का दायरा बड़ा होता है।
प्रश्न 13. पंचशील
के सिद्धांत बताएँ।
उत्तर-पंचशील के सिद्धांत हैं-
(a) एक-दूसरे की क्षेत्रीय
अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(b) एक-दूसरे पर आक्रमण न करना
(c) एक-दूसरे के आंतरिक कार्यों
में हस्तक्षेप न करना
(d) समानता और परस्पर लाभ
(e) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
।
प्रश्न 14. किसी
राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए।
उत्तर-किसी राजनीतिक दल को
अपने अंदरुनी मतभेदों का समाधान निम्न तरीकों से करना चाहिए-
(i) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा
बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए। इससे पार्टी के अन्दर अनुशासन बना रहता है।
(ii) बहुमत की राय पर अमल करना
चाहिए। इससे लोकतंत्र की परंपरा बनी रहती है।
(iii) पार्टी के वरिष्ठ और
अनुभवी नेताओं से सलाह करना चाहिए। इससे पार्टी को अनुभव का फायदा होता है।
प्रश्न 15. राज्य
पुनर्गठन अधिनियम 1956 के लागू होने के बाद नए राज्यों के निर्माण पर नोट लिखें
उत्तर-राज्य पुनर्गठन अधिनियम
1956 के बाद नए राज्यों का निर्माण मुख्य रूप से भाषाई आधार पर किया गया और 16 राज्यों
तथा 6 संघीय क्षेत्रों की व्यवस्था की गई। परन्तु राज्यों की सीमाओं परिवर्तन और नए
राज्यों का निर्माण इसके बाद भी हुआ और आज भारत में 28 राज्य तथा 6 संघीय क्षेत्र हैं।
नए राज्यों के निर्माण की सूची
इस प्रकार है-
(i) 1960 में भाषा के आधार
पर बम्बई राज्य का विभाजन करके दो राज्य महाराष्ट्र और गुजरात बनाए गए।
(ii) 1963 में उत्तर- र-पूर्व
में नागालैंड नामक अलग राज्य बनाया गया।
(iii) 1966 में पंजाब का विभाजन
कर पंजाब और हरियाणा दो राज्य बनाए गए।
(iv) 1972 में असम के कई क्षेत्रों
को अलग करके मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय नामक राज्य बनाए गए।
(v) गोवा को जब भारतीय संघ
में शामिल किया गया तो इसे संघीय क्षेत्र का स्तर दिया गया था, बाद में इसे राज्य का
दर्जा दिया गया।
(vi) हिमाचल प्रदेश 1956 में
एक संघीय क्षेत्र था, बाद में इसे राज्य का स्तर प्रदान किया गया।
(vii) 1987 में अरुणाचल प्रदेश
और मिजोरम को राज्य का स्तर प्रदान किया गया।
(viii) सिक्किम को भारतीय संघ
में सम्मिलित किया गया और इसे राज्य का स्तर दिया गया।
(ix) 1999 में उत्तर प्रदेश,
मध्यप्रदेश और बिहार राज्य का विभाजन करके तीन और नए राज्य क्रमश: उत्तराखंड, छत्तीसगढ़
और झारखंड बनाए गए।
इसी प्रकार संघीय क्षेत्रों
की सूची बदली। कई संघीय क्षेत्रों में राज्य स्तर प्राप्त कर लिया और नए संघीय क्षेत्र
भी बने, जैसे-1966 से चंडीगढ़ बाद में पांडिचेरी, दादर-नागर हवेली, दमन-द्वीप, लक्षद्वीप
।
प्रश्न 16. क्या
1969 में काँग्रेस की टूट रोकी जा सकती थी ? विवेचना करें।
उत्तर-काँग्रेस का टूटना रोका
जा सकता था, अगर श्रीमती इंदिरा गाँधी काँग्रेस के प्रभावशाली नेताओं की बातें सुनतीं
और सिंडीकेट के विरुद्ध कार्य नहीं करतीं। काँग्रेस की टूट से श्रीमती गाँधी की सरकार
अल्पमत में आ गयी । DMK और CPI समेत कुछ अन्य दलों से प्राप्त मुद्दा-आधारित समर्थन
(issue based suupport) के बल पर श्रीमती गाँधी की सरकार सत्ता में बनी रहीं। इस दौरान
सरकार ने अपनी छवि को समाजवादी रंग में पेश किया। इसी दौर में श्रीमती गाँधी ने भूमि
सुधार के मौजूदा कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबर्दस्त अभियान चलाया। दूसरे राजनीतिक
दलों पर अपनी निर्भरता समाप्त करके, संसद में अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करके और
अपने कार्यक्रम के पक्ष में जनादेश हासिल करने की गरज से श्रीमती गाँधी की सरकार ने
दिसंबर, 1970 में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की। यह एक आश्चर्यजनक और साहसी कदम था।
लोकसभा के लिए पाँचवाँ आम चुनाव 1971 के फरवरी माह में हुआ, जिसमें उन्होंने 'गरीबी
हटाओ' का नारा जोर-शोर से लगाया और चुनाव में सफल रहीं। अगर काँग्रेस नहीं टूटती तो
इस प्रकार की सफलता श्रीमती गाँधी को नहीं मिलती।
प्रश्न 17. भारत
में नारी आंदोलन के विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-19वीं शताब्दी के आरंभ
में भारतीय समाज में महिलाओं को कन्या- वधु, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा, देवदासी प्रथा,
सती प्रथा जैसी धार्मिक कुरीतियाँ और यातनाएँ झेलनी पड़ती थीं।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में
महात्मा गाँधी के आगमन से महिलाओं की सहभागिता बढ़ी। स्वतंत्रता आंदोलन में देश की
साधारण महिलाएँ भी घर की चारदीवारी को छोड़कर निकलीं।
महर्षि दयानंद सरस्वती, राजा
राममोहन राय, लक्ष्मीबाई केलकर आदि समाज सुधारकों ने महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु
सामाजिक कुरीतियों, शैक्षिक पाबंदियों और स्री पर होने वाले अत्याचारों के विरोध में
स्वर मुखर किए।
महिलाए' अब हर क्षेत्र में
आगे हैं। अपने कुशल प्रशासन के बल पर प्रथम महिला पुलिस अधिकारी (IPS) के रूप में किरण
बेदी ने मिसाल कायम की है। राजनीति के क्षेत्र में श्रीमती इंदिरा गाँधी, श्रीमती सोनिया
गांधी, सुश्री मायावती, श्रीमती सुषमा स्वराज आदि का विशेष योगदान रहा।
कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स
अंतरिक्ष में अपनी प्रतिभा दिखा चुकी हैं। स्वर्गीय विजय लक्ष्मी पंडित को UNO की पहली
भारतीय अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त था। सुश्री अरुंधती घोष ने अमेरिका तक को UNO
की सभा में खरी-खोटी सुनाकर पुरी दुनिया को चौंका दिया।
खेलों की दुनिया में पी०टी०
उषा, डायना एदल्जी (क्रिकेट), सानिया मिर्जा ने कीर्तिमान स्थापित किया। प्रथम विमान
चालक मंगला जोशी, गीत संगीत में लता-मंगेशकर, प्रथम महिला पैराशूटर गीता छांड़ आदि
ने सराहनीय योगदान दिया है।
उपर्युक्त उदाहरणों के आधार
पर यह कहा जा सकता है कि महिलाओं की स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ है, परन्तु आज
भी महिलाओं को अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। पुरुष प्रधान
समाज में उन्हें संकीर्णता, रूढ़िवादिता से संघर्ष करना पड़ रहा है।
प्रश्न 18. शॉक
थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण के लिए यह तरीका उचित था?
उत्तर-सोवियत संघ के विघटन
के बाद सोवियत संघ के विभिन्न राष्ट्रों ने साम्यवादी विचारधारा को छोड़कर लोकतांत्रिक
समाजवाद व पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाना चाहा । रूस व मध्य एशिया के गणराज्यों ने पूर्वी
यूरोप के पूँजीवादी मॉडल को अपनाया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक द्वारा
निर्देशित इस मॉडल को "शॉक थेरेपी" कहा गया। इसका अर्थ है "पहले चोट
पहुँचाओ और बाद में इसका इलाज करो"।
साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ
संक्रमण के लिए यह तरीका उचित नहीं था, क्योंकि शॉक थेरेपी ने राज्यों की आर्थिक विचारधारा
को ही बदल डाला। सभी का मानना था कि व्यापार करके ही राष्ट्रीय व अंतरर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था
को बदला व विकसित किया जा सकता है।
सोवियत खेमे में शॉक थेरेपी
के निम्न परिणाम रहे-
(i) अर्थव्यवस्था का तहस-नहस
होना-शॉक थेरेपी के कारण पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई, क्योंकि अति
महत्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम-से-कम ऑकी गई तथा उन्हें सस्ते दामों पर बेच दिया गया।
कालाबाजारियों ने बड़ी चालाकी व धोखाधड़ी करके सबसे सहमति-पत्रों को खरीद लिया, क्योंकि
उन्हें धन की आवश्यकता थी।
(ii) रूसी मुद्रा (रूबल) में
गिरावट-सबसे खतरनाक प्रभाव मुद्रा रूबल पर पड़ा। इस गिरावट के कारण उसे भारी गिरावट
का सामना करना पड़ा । इस गिरावट के कारण मुद्रा स्फीति बढ़ गई । जो जमापूँजी थी वह
भी धीरे-धीरे समाप्त हो गई और लोग कंगाल हो गए। अब वे सामूहिक खेती-व्यवस्था भी छोड़
चुके थे, जिससे खाद्यान्न समस्या भी उत्पन्न होने लगी। इस कारण रूस ने खाद्यान्न का
आयात प्रारंभ किया।
(iii) समाजवादी व्यवस्था का
खात्मा-सोवियत संघ से विभाजित राज्यों ने पुरानी व्यवस्था को छोड़कर नई पूँजीवादी व्यवस्था
को अपना लिया था। इस व्यवस्था के कारण रूस तथा अन्य राज्य गरीबी के दौर से गुजर रहे
थे। मध्यम या शिक्षित वर्ग का पलायन हुआ और एक नया माफिया वर्ग उभरकर सामने आया, जिससे
अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ गई।
(iv) शासकों का सत्तावादी स्वरूप-मध्य
एशिया के देशों में सभी देशों ने संविधान का निर्माण बड़ी ही जल्दबाजी में किया था,
जिस कारण राष्ट्रपतियों को कार्यपालिका का प्रमुख बनाया गया तथा संसद को क्षीण बना
दिया गया। तुर्कमेनिस्तान तथा उजबेकिस्तान में राष्ट्रपतियों ने अपने को दस वर्षों
तक के लिए स्थायी कर लिया और इसके बाद दस वर्ष और बढ़ा लिया। इतनी लंबी अवधि में इन्होंने
विरोध व असहमति को कोई महत्त्व नहीं दिया।
प्रश्न 19. रियो-घोषणा पत्र
का कहना है कि-"धरती के पारिस्थतिकी तंत्र की अखंडता और गुणवत्ता की बहाली, सुरक्षा
तथा संरक्षण के लिए विभिन्न देश विश्व-बंधुत्व की भावना से आपस में सहयोग करेंगे। पर्यावरण
के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राज्यों का योगदान अलग-अलग है । इसे देखते हुए विभिन्न
राज्यों की साझी किन्तु अलग-अलग जिम्मेदारी होगी?"
(a) परिस्थितिकी तंत्र के दो
उदाहरण बताएँ।
(b) पर्यावरण की सुरक्षा के
लिये विश्व के किस भाग की ज्यादा जिम्मेदारी होती है? और क्यों ?
(c) कहाँ तक इस भावना को राज्यों
ने रियो-घोषणापत्र के बाद से पूरा किया है?
उत्तर-(a) (i) समुद्री और औद्योगिक
पारिस्थितिकी तंत्र एवं (ii) अंटार्कटिका के पर्यावरण और वैश्विक तापवृद्धि
(Global warming) पारिस्थितिकी तंत्र ।
(b) विश्व में पारिस्थितिकी
को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंचा है। यदि विकसित देशों
ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी
भी ज्यादा उठानी चाहिए।
(c) विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इन देशों के पास विपुल प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन है। इसे देखते हुए टिकाऊ विकास के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास में विकसित देश अपनी खास जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।