झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of Educational Research and Training, Ranchi
(Jharkhand)
द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021 2022
Second Terminal Examination - 2021-2022
मॉडल प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट-2 (Set-2)
वर्ग- 11 | विषय- अर्थशास्त्र | पूर्णांक-40 | समय - 1:30 घंटे |
सामान्यनिर्देश (General Instructions) -
→ परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दीजिए |
→ कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।
→ प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघुत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक निर्धारित है।
→ प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघुत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।
→ प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।
खंड- A अति लघुत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1. एक छात्र के द्वारा चार विषयों में प्राप्तांक 10, 20, 15 और 5 है। माध्य प्राप्तांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर: x : 10 20 15 5 = 50
ΣX = 50 n = 4 X̅ = ?
Mean (`\overline X`)=`\frac{\Sigma X}N=\frac{50}4=12.5`
2. लॉरेंज वक्र क्या है?
उत्तर: लॉरेंज वक्र अपकिरण ज्ञात करने की एक बिंदुरेखीय रीति है। इसे संचयी प्रतिशत वक्र (Cumulative Percentage Curve) भी कहते हैं। इसका प्रयोग सर्वप्रथम डॉ० मैक्स ओ. लॉरेंज ने आय और धन के वितरण का अध्ययन करने के लिए किया था।
3. आधार वर्ष को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: आधार-वर्ष से हमारा आशय उस वर्ष विशेष से होता है, जिसको आधार मानकर हम आर्थिक क्रियाकलापों की तुलना करते हैं। अतः आधार-वर्ष का चुनाव अत्यंत सतर्कतापूर्वक करना चाहिए।
4. निर्धनता निवारण के लिए सरकार द्वारा चलाए गए एक कार्यक्रम के नाम लिखिए।
उत्तर: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005
5. मानव पूँजी निर्माण के एक स्रोत का नाम लिखिए।
उत्तर: शिक्षा में निवेश
6. नाबार्ड की स्थापना कब हुई?
उत्तर: 12 जुलाई 1982 ई०
7. "द ग्रेट लीप फॉरवर्ड" नामक अभियान किस देश में शुरू किया गया था?
उत्तर: चीन 1958 ई० में
खंड-B लघूत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दीजिए
8. माध्यिका के दो गुण और दो दोष लिखिए
उत्तर:
माध्यिका के गुण और दोष निम्नलिखित हैं
माध्यिका के गुण
1. यह वितरण के मध्य मूल्य को व्यक्त करता है।
2. यह समझने तथा गणना करने में सरल
है।
3. इसे बिंदु रेखा द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
माध्यिका के दोष
1. माध्यिका ज्ञात करने के लिए आंकड़ों
को बढ़ते हुए अथवा घटते हुए क्रम में व्यवस्थित करना जरूरी है। ऐसा
करना कई बार कठिन समस्या बन जाती है।
2. यह श्रेणी के सभी आंकड़ों पर
आधारित नहीं होता है।
3. इसका प्रयोग अग्रिम बीजगणितीय
कार्यों में नहीं किया जा सकता।
9. निम्नलिखित आंकड़ों से समांतर माध्य से माध्य विचलन की गणना कीजिए-
अंक |
10 |
20 |
30 |
40 |
50 |
विद्यार्थिंयों की संख्या |
2 |
3 |
7 |
5 |
3 |
उत्तर:
X |
ƒ |
Xƒ |
dev=32 dx |
IdxI |
ƒIdxI |
10 |
2 |
20 |
-22 |
22 |
44 |
20 |
3 |
60 |
-12 |
12 |
36 |
30 |
7 |
210 |
-2 |
2 |
14 |
40 |
5 |
200 |
8 |
8 |
40 |
50 |
3 |
150 |
18 |
18 |
54 |
|
Σƒ=
20 |
Σƒx
= 640 |
|
|
ΣƒIdxI
= 188 |
उत्तर :-
Mean (X̅ ) = `\frac{\Sigma fx}{\Sigma f}` = `\frac{640}20` = 32
माध्य से माध्य विचलन (δX̅)
= `\frac{\sum f\|dx\|}{\sum f}``=\frac{188}20=9.4`
माध्य से माध्य विचलन गुणांक (δX̅ )
=`\frac{\delta Ẍ}Ẍ``=\frac{9.4}32= 0.29`
10. निम्नलिखित आँकड़ा से X और Y के मध्य सहसंबंध गुणांक की गणना कीजिए और उनके संबंध पर टिप्पणी कीजिए-
X |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
Y |
3 |
4 |
6 |
7 |
10 |
उत्तर:
X |
Y |
X2 |
Y2 |
XY |
1 |
3 |
1 |
9 |
3 |
2 |
4 |
4 |
16 |
8 |
3 |
6 |
9 |
36 |
18 |
4 |
7 |
16 |
49 |
28 |
5 |
10 |
25 |
100 |
50 |
ΣX=15 |
ΣY=30 |
ΣX2=55 |
ΣY2=210 |
ΣXY=107 |
r = `(sumXY - ((sumX)(sumY))/N)/(sqrt(sumX^2 - (sumX)^2/N) sqrt(sumY^2 - (sumY)^2/N))`
= `(107 - ((15) (30))/5)/(sqrt(55 - (15)^2/5)sqrt(210 - (30)^2/5))`
=`(107 - 450/5)/(sqrt(55 - 225/5)sqrt(210 - 900/5))`
=`(107 - 90)/(sqrt(55 - 45)sqrt(210 - 180))`
=`17/(sqrt10 sqrt(30))` =`17/((3.16) (5.47))` =`17/17.2852`
r = 0.98 (यह उच्च सहसंबंध है।)
जब दो श्रेणियों में सहसंबंध की काफी मात्रा हो,तो वह उच्च सहसंबंध कहलाता हैं। ऐसी स्थिति में r का मूल्य 1 से 0.75 के बीच पाया जाता है।
11. सूचकांक
के कोई तीन लाभ बताइए ।
उत्तर: सूचकांकों से निम्नलिखित
लाभ होते हैं
1. मुद्रा के मूल्य की माप :- सामान्य
मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया
जाता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन से मुद्रा की क्रय-शक्ति में
होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।
2. आर्थिक स्थिति की तुलना :- रहन-सहन
संबंधी सूचकांकों की तुलना करके समाज के किसी वर्ग के रहन-सहने में होने वाले
परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।
3. मजदूरी निर्धारण में उपयोगिता :- सूचकांक वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन का
सूचक होता है। अतः मजदूरी व वेतन के निर्धारण में इनसे बहुत अधिक सहायता मिलती है।
12. निरपेक्ष
एवं सापेक्ष निर्धनता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: सापेक्ष निर्धनता - सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय
विभिन्न वर्गों, प्रदेशों या दूसरे देशों के मध्य पाई जाने वाली
निर्धनता से है। जिस देश या वर्ग के लोगों का जीवन स्तर या निर्वाह स्तर नीचा होता
है वे उच्च जीवन स्तर या निर्वाह स्तर के लोगों या देश की तुलना में गरीब या
सापेक्ष रूप से निर्धन माने जाते हैं। सापेक्ष निर्धनता की व्याख्या देश के अंदर
आय में पाई जाने वाली असमानता के रूप में भी की जा सकती है। उदाहरण के लिए भारत
में निम्न स्तर के 20 प्रतिशत लोगों का राष्ट्रीय आय में केवल 8.1 प्रतिशत भाग है
जबकि ऊपरी स्तर के 20 प्रतिशत लोगों का राष्ट्रीय आय में 45.3 प्रतिशत भाग है।
निरपेक्ष निर्धनता - भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अनुमान लगाने
के लिए निर्धनता रेखा (Poverty Line) की अवधारणा का प्रयोग किया गया है। निर्धनता
रेखा से अभिप्राय उस सीमा बिंदु (Cut-off point) से है (प्रति व्यक्ति व्यय के रूप
में) जो किसी क्षेत्र के लोगों को निर्धन तथा अनिर्धन में विभाजित करता है। भारत
में ₹816 ग्रामीण क्षेत्र में तथा ₹1,000 शहरी क्षेत्र में प्रति माह उपभोग पर
खर्च करने वाले लोगों को निर्धनता रेखा से नीचे माना गया है। निर्धनता रेखा की नई
परिभाषा के आधार पर 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात 21.9 प्रतिशत है।
निरपेक्ष निर्धनों की कुल संख्या के रूप में भारत का 21.9
प्रतिशत निरपेक्ष निर्धन विश्व का लगभग 50 प्रतिशत है।
13. कृषि विपणन
से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर: कृषि
विपणन एक प्रक्रिया है जिसमें देशभर में उत्पादित कृषि उत्पादों का संग्रह, भंडारण,
प्रसंस्करण, परिवहन, बैंकिंग, वर्गीकरण और वितरण शामिल है। भारतीय कृषि बाजार
असक्षम और कुछ हद तक आदिमकाल के हैं। न्यूनतम समर्थन कीमत गेहूँ और चावल के पक्षों
में पक्षपाती है। व्यवसायीकृत भारतीय कृषि ने संसाधन पूर्ण क्षेत्रों को अधिक
लाभान्वित किया। पिछड़े क्षेत्रों में विपणन संरचनाएँ काफी हद तक व्यावसायिक रूप
से कार्य नहीं करते।
14. किसानों
को साख की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर: भारतीय
किसानों को निम्नलिखित तीन प्रकार की साख की आवश्यकता होती है—
(1) अल्पकालीन
साख - किसानों को बीज, खाद, सिंचाई, मजदूरी, भोजन आदि के लिए अल्पकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार की साख 6 महीने से लेकर
15 महीने तक की अवधि के लिये ली जाती है तथा फसल काटने पर प्रायः चुका दी जाती है।
अतः इसे मौसमी साख भी कहते हैं। All India Credit Review Committee ने 1969
से 1973-74 तक देश में अल्पकालीन साख की मात्रा 2000 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया
था। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में 1974-79 की अवधि के लिये कृषि
के लिए अल्पकालीन साख की आवश्यकता की मात्रा का 3000 करोड़ रुपये होने का अनुमान
लगाया गया था।
(2) मध्यकालीन
साख - किसानों को कृषि के महँगे औजार, पशु आदि खरीदने के लिए मध्यकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार की साख 15 महीने से
लेकर 5 वर्षों तक की अवधि के लिये ली जाती है | All India Credit Review Committee
ने चतुर्थ योजना काल के अन्त में मध्यकालीन साख की आवश्यकता 500 करोड़ रुपये होने
का अनुमान लगाया था ।
(3) दीर्घकालीन
साख - किसानों को कुआँ, तालाब, बाँध, मकान बनवाने तथा भूमि की जल-निकासी, घेराबन्दी (fencing), पुनरुद्धार (Reclamation), आदि स्थायी
सुधार कराने के लिये दीर्घकालीन साख की आवश्यकता पड़ती है । इस प्रकार की साख 5
वर्षों से अधिक अधिक की होती है | All India Credit Review Committee ने चतुर्थ
योजनाकाल के अन्त में दीर्घकालीन साख की आवश्यकता 1500 करोड़ रुपये होने का अनुमान
लगाया था।
15. निम्नलिखित आँकड़ा से बहुलक ज्ञात कीजिए-
वर्ग अंतराल |
0-5 |
5-10 |
10-15 |
15-20 |
20-25 |
25-30 |
30-35 |
35-40 |
बारबारता |
7 |
9 |
11 |
28 |
30 |
22 |
7 |
5 |
l1 =20, l2 = 25, ƒ1 = 30, ƒ2 = 22, ƒ0 = 28, Mode = ?
Mode = `l_1+\frac{f_1-f_0}{2f_1-f_0-f_2}(l_2-l_1)`
= 20+`\frac{30-28}{2(30)-28-22}(25-20)`
= `20+\frac{2}{60-50}(5)=20+\frac{10}{10}`
Mode = 20+1 = 21
16. पिता
(X) एवं उनके पुत्रों (Y) के कदों की माप नीचे इंचों में दिया गया है। इन दोनों के
बीच सहसंबंध गुणांक को परिकलित कीजिए-
X |
65 |
66 |
57 |
67 |
68 |
69 |
70 |
72 |
Y |
67 |
56 |
65 |
68 |
72 |
72 |
69 |
71 |
उत्तर:
X |
Y |
X2 |
Y2 |
XY |
65 |
67 |
4225 |
4489 |
4355 |
66 |
56 |
4356 |
3136 |
3696 |
57 |
65 |
3249 |
4225 |
3705 |
67 |
68 |
4489 |
4624 |
4556 |
68 |
72 |
4624 |
5184 |
4896 |
69 |
72 |
4761 |
5184 |
4968 |
70 |
69 |
4900 |
4761 |
4830 |
72 |
71 |
5184 |
5041 |
5112 |
ΣX=534 |
ΣY=540 |
ΣX2=35788 |
ΣY2=36644 |
ΣXY=36118 |
r = `(sumXY - ((sumX)(sumY))/N)/(sqrt(sumX^2 - (sumX)^2/N) sqrt(sumY^2 - (sumY)^2/N))`
= `(36118 - ((534) (540))/8)/(sqrt(35788 - (534)^2/8)sqrt(36644 - (540)^2/8))`
=`(36118 - 288360/8)/(sqrt(35788 - 285156/8)sqrt(36644 - 291600/8))`
=`(36118 - 36045)/(sqrt(35788 - 35644.5)sqrt(36644 - 36450))`
=`73/(sqrt143.5 sqrt(194))` =`73/((11.98) (13.93))` =`73/166.88`
r = 0.44 (यह मध्यम सहसंबंध
है।)
17. क्या निर्धनता
और बेरोजगारी के बीच कोई संबंध है? समझाइए ।
उत्तर: निर्धनता और बेरोजगारी के बीच प्रत्यक्ष संबंध है। बेरोजगारी के कारण गरीबी पैदा होती है तथा बेरोजगारी गरीबी का कारण बनती है। बेरोजगारी गरीबी का संकेत है जो भूख, अवसाद, ऋणग्रस्तता आदि की ओर ले जाता है| एक बेरोजगार व्यक्ति के पास पैसे कमाने का कोई साधन उपलब्ध नहीं होता और वो स्वयं और अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर सकता है | वह और उसका परिवार गुणवत्ता शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकता है तथा उसके पास आय-अर्जन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होता |
18. भारत में
मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: भारत जैसे देश में मानवीय
पूँजी निर्माण की विशेष भूमिका होती है। किन्तु इस मानव पूँजी के निर्माण में अनेक
समस्याएँ होती है जो कि निम्नानुसार हैं-
(1) निम्न प्राथमिकता
क्षेत्र- आर्थिक विकास के लिए कृषि, उद्योग, आधारित संरचना आदि को
सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने के कारण मानवीय पूँजी निर्माण पर पर्याय ध्यान नहीं दिया
जाता। परिणाम स्वरूप मानव पूँजी निर्माण उचित प्रकार से नहीं हो पाता।
(2) क्षेत्रीय
विषमताओं का होना- मानव पूँजी निर्माण में विस्तृत पैमाने पर क्षेत्रीय
विषमताएं विशेष बाधा पहुँचाती हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में इस तरह की विषमतायें
बहुतायत में देखी जाती हैं। जैसे कि शहरों में शिक्षा, स्वास्थ्य विशेष रूप में पायी
जाती हैं। जबकि ग्रामीण अधिकांशतः इन्हीं बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते रहते हैं।
(3) पर्याप्त
वित्त का ना होना- देश
में मानव पूँजी का निर्माण, उस देश के सर्वांगीण विकास के लिए विशेष भूमिका करते हैं।
लेकिन पर्याप्त वित्त के अभाव में मानव पूँजी के निर्माण में समस्या आ जाती हैं।
(4) निम्न उत्पादकता
का होना– चूँकि मानवीय पूँजी निर्माण के बिना उत्पादकता में वृद्धि
करना असंभव है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। इसमें विनियोजित
तरीके से शिक्षण-प्रशिक्षण देकर हम उत्पादकता में अभूतपूर्व सुधार कर सकते है।
(5) जनसंख्या
वृद्धि- देश मे व्याप्त जनसंख्या के लिए जितनी मानव पूँजी उपलब्ध करायी जाती है। जनसंख्या
इसके
अनुपात में कहीं ज़्यादा बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप यह समस्या, एक सबसे बड़ी समस्या बनकर
सामने उभर रही है।
19. धारणीय विकास
क्या है? इसकी अवधारणा की व्याख्या कीजिए
उत्तर: धारणीय विकास की अवधारणा
सर्वप्रथम ब्रैंटलैंड ने 1987 ई. में प्रस्तुत की थी। इस शब्द का पहली बार प्रयोग
IUCN ने अपनी रिपोर्ट "विश्व संरक्षण रणनीति" में किया था।
परिभाषाएँ; बुण्डलैण्ड
आयोग– "विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएँ, भावी पीढ़ी की क्षमता,
योग्यताओं से समझौता किये बिना पूरी की जाती हैं, धारणीय विकास कहलाती है। "
1987 ई. में WCED ने Our
Common Future नामक रिपोर्ट में इस शब्द की परिभाषा दी। इस रिपोर्ट के अनुसार
"धारणीय अथवा स्थायी विकास (Sustainable Development) वह विकास है जिसके अंतर्गत
भावी पीढ़ियों के लिए आवश्यताओं की पूर्ति करने की क्षमताओं से समझौता किये बिना वर्तमान
पीढ़ी की आवश्यताओं को पूरा किया जाता है।" अतः पर्यावरण सुरक्षा के बिना विकास
को सतत नहीं बनाया जा सकता।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार
पर धारणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
धारणीय विकास की प्रमुख विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं-
1. मानव को प्रमुख
स्थान- धारणीय
विकास की प्रक्रिया में व्यक्तियों को प्रमुख स्थान दिया गया है। इस प्रकार धारणीय
विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति भावी विकास से समझौता किये बिना ही करता है। इस
प्रकार धारणीय विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास का भी ध्यान
रखा जाता है।
2. समानता पर
जोर- यह
वितरणात्मक अन्तर्षीढ़ी ( विभिन्न पीढ़ियों के बीच) और अन्तर्पीढ़ी (एक ही पीढ़ी के
विभिन्न वर्गों के बीच समानता पर जोर देती है धारणीय विकास समानता तथा सामाजिक न्याय
के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस संकल्पना में प्रत्येक व्यक्ति को न केवल कुछ विशेषाधिकार
व्यक्तियों को उचित अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।
3. मानव विकास–
धारणीय
विकास में गरीबी को कम करने पर, रोजगार पर, सामाजिक एकीकरण, पर्यावरण के नवीनीकरण पर
जोर देने के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र, जैसे– शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर अधिक विनियोग
की आवश्यकता पर भी जोर दिया जाता है।
4. पर्यावरण
संरक्षण- विकास की लागत, विशेषकर पर्यावरण-हानि की लागत के बारे में
ध्यान दिया जाना चाहिए। अत: पर्यावरण के संरक्षण की बहुत बड़ी आवश्यकता है। आत: धारणीय
विकास प्रकृति तथा वातावरण के संरक्षण के अनुकूल होता है।
धारणीय
विकास की आवश्यकताएँ
धारणीय विकास की प्राप्ति के
लिए निम्नलिखित आवश्यकताएँ हैं
1. मानव जनसंख्या की पर्यावरण
की धारण क्षमता के स्तर तक स्थिर करना होगा।
2. प्रौद्योगिक प्रगति आगत-निपुण
हो, न कि आगत उपभोगी।
3. किसी भी स्थिर्सि में नव्यकरणीय
संसाधनों की निष्कर्षण की दर पुनर्सेजन की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
4. गैर-नवीकरणीय संसाधनों की
अपक्षय दर नवीनीकृत प्रतिस्थापकों से अधिक नहीं होनी चाहिए।
5. प्रदूषण के कारण उत्पन्न
अक्षमताओं को सुधार किया जाना चाहिए।
धारणीय अथवा सतत् विकास की शर्तें
धारणीय अथवा सतत् विकास की
प्रमुख शर्ते निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक
संसाधनों का संरक्षण– सतत् विकास की पहली शर्त यह है कि देश के गैर-
पुनरुत्पादनीय एवं पुनरुत्पादनीय प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणा करते हुए आर्थिक विकास
किया जाना चाहिए।
2. प्रदूषण रहित
विकास- उत्पादन
की ऐसी विधियों को अपनाया जाना चाहिए जो पर्यावरण (प्रकृति), व्यक्तियों तथा रोजगार
के अनुकूल (Pro-nature, Pro-people and Pro-job ) हो । वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण,
मिट्टी प्रदूषण व जल प्रदूषण आदि न्यूनतम सम्भावित स्तर पर होना चाहिए। वस्तुत: सतत्
विकास हरित जी. एन. पी. (Green G.N.P.) पर जोर देता है जिसमें प्राकृतिक पूँजी में
घिसावट को सम्मिलित किया जाता है।
3. जीवन की गुणवत्ता
में वृद्धि- सतत् विकास में जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु निम्नलिखित
कार्यक्रमों पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि दीर्घकालीन वास्तविक प्रति व्यक्ति आय की
दर में वृद्धि होने के साथ-साथ लोगों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके।
(i) सामाजिक क्षेत्र, जैसे-
शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण आदि।
(ii) मानवीय न्याय, सुरक्षा
व रोजगार के अवसरों की उपलब्धता।
(iii) भावी पीढ़ी को संरक्षण।
(iv) आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल विकास नीतियों का अनुपालन