झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021 2022)
सेट-
01
कक्षा- 11 |
विषय- हिंदी (ऐच्छिक) |
समय 1 घंटा 30 मिनट |
पूर्णांक - 40 |
सामान्य निर्देश-:
→ परीक्षार्थी
यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें ।
→ इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों
का उत्तर देना अनिवार्य है।
→ सभी प्रश्न के लिए निर्धारित
अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
→ प्रश्नों के उत्तर उसके साथ
दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।
खंड
- 'क'
(अपठित
बोध)
01.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 02+02+02=06
यदि व्यक्ति ईमानदारी के तरीकों का सहारा लेता है, तो उसकी विजय
अवश्य होगी। कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो उसे डिगा दे। वह स्वतः खतरे का सामना
करेगा। यह निश्चय ही जीवन की सर्वोत्तम नीति है। महान व्यक्तियों ने ईमानदारी की
कीमत को साबित कर दिया है। ईमानदार और सत्यवादी लोग निश्चय ही महान होते हैं।
गांधी और कबीर का उदाहरण हमारी आँखो के सामने है। ईमानदारी चरित्र में समन्वय लाती
है। यह आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है। एक बलवान व्यक्ति बलहीन को दबा सकता है,
किंतु उसकी आत्मा नहीं दबाई जा सकती। यदि मनुष्य अपने जीवन में सफल होना चाहता है
तो उसे ईमानदारी अपनानी चाहिए। यह मनुष्य के लिए सर्वोत्तम नीति है।
(क) जीवन की सर्वोत्तम नीति किसे कहा गया है?
उत्तर:
ईमानदारी।
(ख) गांधी और कबीर किसके उदाहरण हैं?
उत्तर:
सत्यवादी और ईमानदार के।
(ग) जीवन में सफल होने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
मनुष्य को ईमानदारी अपनानी चाहिए।
अथवा,
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
अपने हृदय का सत्य अपने-आप हमको खोजना |
अपने नयन का नीर अपने-आप हमको पोंछना |
आकाश सुख देगा नहीं
धरती पसीजी है कहीं?
जिसके हृदय को बल मिले हैं
ध्येय अपना तो वही।
सच हम नहीं, सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।
(क) पद्यांश में 'सच' किसे कहा गया है ?
उत्तर:
संघर्ष को
(ख) 'नयन का नीर का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
आंख के आंसू
(ग) उपर्युक्त पद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
सच
खंड
- 'ख'
(अभिव्यक्ति
और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन)
02.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 05+05=10
(क) 'अनुशासन का महत्व' अथवा 'मेरा प्रिय रचनाकार' विषय पर एक निबंध
लिखिए।
उत्तर: "अनुशासन का महत्व"
अनुशासन'
का अर्थ है 'शासन में रहना । फिर यह शासन विवेक का हो-अपनी चिंतनशील बुद्धि का हो या
अपनी सरकार अथवा अपने समाज का हो । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसमें संदेह नहीं
कि उसके हाथ-पैर है, फिर भी वह अपने-आप में पूरा नहीं है। कदम-कदम पर, जन्म से मरण
तक, उसे समाज के साथ की-उसकी सहायता की-आवश्यकता पड़ती है और साथ ही कुछ नियमों में
बँधकर चलने को भी । समाज का नियम है कि हम माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान करें, स्वयं
सानंद जिएँ और दूसरों को भी जीने दें, किसी के धन पर लोभभरी नजर न डालें, किसी को कष्ट
न पहुँचाएँ, न तो सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करें और न सामाजिक शांति को ही।
ये ही सभ्य समाज के शासन या नियम हैं एवं इनका तत्परता से पालन ही 'अनुशासन' कहलाता
है। इसीलिए इसे नियमानुवर्तिता भी करते हैं।
सबसे
बड़ा अनुशासन विवेक का होता है । सही और गलत का सही ज्ञान जिस बुद्धि से होता है उसी
को 'विवेक' कहते हैं। विवेकशील व्यक्ति न तो प्रशासकीय अनुशासन का उल्लंघन करता है,
पर नैतिक अनुशासन का ही। प्रशासकीय अनुशासन के उल्लंधन को रोकने के लिए दंड-व्यवस्था
भी है, पर नैतिक अनुशासन का उल्लंधन रोकने एकमात्र सद्विवेक ही सहायक होता है। अनुशासनहीनता
के विरुद्ध दंड-व्यवस्था के रहते हुए भी यदि किसी समाज में व्यापक उच्छृखलता है तो
सद्विवेक का अभाव है। कारण, जो शिक्षा हमें दी जाती है और जिस प्रकार की दी जाती है,
उससे हमलोग किताबी कीड़े भले हो जाएँ पर हमलोगों में सद्विवेक नहीं आ सकता । इसका एक
बड़ा कारण संभवत: यह है कि हमारी शिक्षा-पद्धति में नैतिक शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं
है। अब इसे शिक्षाशास्त्री एवं राष्ट्र के कर्णधार भी महसूस करने लगे हैं।
शिष्टाचार
पारिवारिक एवं सामाजिक सुखों की कुंजी है। इसके पालन से व्यक्ति की लोकप्रियता बढ़ती
है और जीवन में सुख तथा गरिमा का समावेश भी होता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने
परिवार एवं समाज में स्वयं के लिए यथायोग्य सम्मान पाते रहना चाहता है, पर यह तो तभी
संभव है जब हम परिवार एवं उसके बाहर समाज के अन्य सदस्यों को यथायोग्य सम्मान देते
रहें, उनके साथ भला बर्ताव करते रहें। यदि हर व्यक्ति अनुशासन और शिष्टाचार के पालन
को अपने जीवन का मूल-मंत्र मान ले तो क्या परिवार और क्या समाज-पूरे राष्ट्र का भी
नैतिक उन्नयन हो सकता है, जो सभी प्रकार के विकास एवं प्रगति का मूल रहस्य है । इसीलिए
हमें तत्परता से शिष्टाचार और अनुशासन का पालन करना चाहिए।
विद्यार्थियों
में अनुशासनहीनता-आज प्रतिदिन समाचारपत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में हम छात्र-अनुशासनहीनता
की घटनाओं की चर्चा पढ़ते हैं । आए दिन विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों
में छात्रों द्वारा उत्पात, दंगों, हिंसात्मक वारदातो, छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार
के नजारे देखने को मिलते हैं। आज छात्र शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना तो क्या
सद्भाव भी नहीं रखते। छात्रों की उद्दण्डता तथा उच्छृखलता दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही
है। रेलगाड़ियों, बसों, सिनेमाघरों, बाजारों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों में उदंड एवं
अभद्र व्यवहार करना आज के छात्र के लिए एक आम फैशन की बात हो गयी है। अपने उद्दण्ड
एवं उच्छृखल व्यवहार के कारण छात्र सर्वत्र निन्दा के पात्र होते जा रहे हैं। आज छात्रों
की अनुशासनहीनता राष्ट्रीय स्तर पर एक विषम समस्या बन गयी है।
अनुशासनहीनता
के कुप्रभाव-छात्र अनुशासनहीनता के कुप्रभाव केवल शिक्षण संस्थाओं तक ही सीमित नहीं
हैं। इसका कुप्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ रहा है । आज समाज के सभी अंग छात्रों की अनुशासनहीनता
से त्रस्त हैं, पेरशान हैं । छात्रों की अनुशासनहीनता के कारण शिक्षा के स्तर में तो
पतन हुआ ही है, अन्य क्षेत्रों में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई है। आज देश के नेतृत्व
में जो ह्रास हुआ है, उसके पीछे भी छात्र अनुशासनहीनता ही है। अनुशासनहीनता एवं पथभ्रष्ट
युवक या युवतियाँ सही नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकते हैं । आज अच्छे लोग राजनीति से संन्यास
लेते जा रहे हैं, परिणामस्वरूप राजनीति पथभ्रष्टों एवं आसामाजिक तत्त्वों का अखाड़ा
बनती जा रही है। गोली और डंडे के बल पर चुनाव जीतनेवाला कदापि सही नेत्व प्रदान नहीं
कर सकता। सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की नौकरियों में आने वाली युवा पीढ़ी में अनुशासन
का अभाव तो शाया हो जाता है, उनमें कार्यकुशलता का भी पूर्ण अभाव देखा जाता है । मात्र
अनुशासनहीनता के कारण आज का छात्र न तो अच्छा नेता कर सकता है, न अच्छा पदाधिकारी बन
सकता है और न ही अच्छा अध्यापक या अच्छा अभिभावक बन सकता है। शिक्षा का मूल उद्देश्य
है सच्चा और अच्छा नागरिक पैदा करना परन्तु आज हम तुटेरे, अपराधी एवं कदाचारी नागरिक
ही पैदा कर रहे हैं। छात्रों को अनुशासनहीनता से वर्तमान पीढी तो बाद हो हो रही है,
आने वाली पीढ़ी भी भयानक रूप से ग्रसित हो रही है।
(ख) अपने गाँव में कोरोना वैक्सीनेशन हेतु कैंप लगाने के लिए प्रखंड
चिकित्सा पदाधिकारी को एक आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में,
प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी, बोकारो
विषय
: कोरोना जाँच कैंप हेतू।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मेरा गाँव बोकारो
जिले के अति सुदूर क्षेत्र में अवस्थित है। यहाँ हर घर में कोरोना के लक्षण वाले मरीज
मिल रहे हैं किन्तु जाँच के अभाव में साबित नहीं होता है कि वह मरीज कोरोना संक्रमित
है या नहीं। वे लोग गाँव में घूमते हुए नजर आते हैं इससे आशंका बनी रहती है कि पूरा
गाँव कहीं कोरोना संक्रमित नहीं हो जाए।
अत:
आपसे अनुरोध है कि यथाशीघ्र इस गाँव में कोरोना जाँच की शिविर लगाया जाए ताकि अधिक-से-अधिक
लोगों की जाँच हो सके और कोरोना संक्रमण के दर को रोका जा सके।
सधन्यवाद। भवदीय
दिनांक:
21 फरवरी, 2022 रमेश
(ग) समाचार पत्र के संपादक के नाम पत्र लिखिए और बताइए कि आपके शहर
में अव्यवस्थित यातायात के कारण अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं।
उत्तर:
सेवा में,
संपादक, प्रभात खबर, राँची।
विषय
: हमारे शहर की अव्यवस्थित यातायात सुविधा से अवगत कराने हेतु।
महोदय,
मैं आपका ध्यान इस क्षेत्र की अव्यवस्थित
यातायात की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ। निवेदनपूर्वक
यह कहना चाहता हूँ कि हमारे यहाँ यातायात व्यवस्था काफी खराब है जिसके कारण आए दिन
दुर्घटनाएँ होती रहती है, साथ ही मैं यह भी बता देना चाहता हूँ कि यहाँ ट्रैफिक की
कोई उचित सुविधा अलब्ध नहीं है जिसके कारण आए दिन विभिन्न चौक चौराहों पर जाम - दुर्घटनाएँ,
सड़क हादसा जैसी घटनाएँ होती रहती है।
अत:
आपसे विनम्न निवेदन है कि आप अपने अखबार में हमारे क्षेत्र की लचर यातायात व्यवस्था
की खबर को प्रमुखता से छापे जिससे प्रशासन की नजर इस पर पड़े और इसमें कुछ सुधार हो
। इसके लिए मैं आपका सदैव आभारी बना रहूँगा ।
सधन्यवाद
।
दिनांक
: 20.03.2022
भवदीय
क्षेत्र निवासी
आदर्श रोड,राँची।
(घ) प्रतिवेदन का आशय स्पष्ट करते हुए उसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रतिवेदन को रिपोर्ट कहते हैं। किसी घटना या कार्य संबंधी छानबीन, पुछताछ आदि के बाद
तैयार किया गया वह जानकारी जो किसी के समक्ष प्रस्तुत करने योग्य हो, प्रतिवेदन कहलाता
है। वास्तव में प्रतिवेदन एक ऐसा लिखित विवरण है जो किसी कार्य का सही सीधा और सपाट
जानकारी देता है। इसके द्वारा किसी कार्य की जाँच स्तर, उनके परिणामो को स्पष्ट रूप
से व्यक्त किया जा सकता है।
इसकी
प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i)
यह तथ्यात्मक होता है।
(ii)
तथ्यों का प्रमाणिक होना अनिवार्य है।
(iii)
यह कानूनी या वैधानिक दस्तावेज का भी रूप ले सकता है।
(IV)
विषयनिष्ठता पाई जाती है।
(v)
संचित, सुगठित और उपयोगी होता है।
खंड - 'ग' (पाठ्यपुस्तक)
03.
निम्नलिखित में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए - 05
( क ) हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय का पताका
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी ।
है तुझे अंगार शैय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना।
जाग तुझको दूर जाना ।
उत्तर:
प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा-1 में महादेवी वर्मा द्वारा रचित
'जाग तुझको दूर जाना से लिया गया है । इसमें वह स्वाधीनता आंदोलन के समय स्वतंत्रता
सेनानी को प्रेरित करते हुए कहती है कि -
व्याख्या
:- अगर तुम हार भी जाओगे तो भी वह तुम्हारे विजय समान है। तेरा मान- सम्मान हारने के
बाद भी बना रहेगा तुमने
मेहनत जो की है। प्रेमी पतंग के बलिदान के बाद
उसका
राख ही उस दीपक के अमर प्रेम की निशानी है।
तुमको
तो अंगार रूपी शैय्या पर कोमल कालिन बिछाना
है।
उठो जागो तुमको अभी बहुत दूर जाना है।
काव्य
सौंदर्य :
(i) भाषा तत्सम प्रधान खड़ी बोली है।
(ii) कविता
में संगीतात्मकता है।
(iii) लाक्षणिकता,
चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रणं है।
(iv) त्यंग्य
प्रधान शैली का प्रयोग किया गया है।
(ख) छोटे-छोटे मोती जैसे,
उसके शीतल तुहीन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम,
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
उत्तर:
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक अंतरा -1 में नागार्जुन द्वारा रचित
'बादल को घिरते देखा है' से लिया गया है। इसमें कवि वर्षा ऋणु के आगमन के पश्चात होने
वाले परिवर्तन तथा मेघ की विभिन्न छवियों का प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन
करते हुए कहते हैं कि :-
व्याख्या:-
मैंने वर्षा की छोटी-छोटी मोती जैसी बूँदो को एकदम बर्फ के समान ठण्डे होते हैं उसे
सुनहरी प्यारी मानसरोवर झील में उगे कमल के फूल पर गिरते देखा है। मैने बादल को घिरते
देखा है | इस समय का दृश्य काफी आनंदमयी एंव मनमोहक लगता है।
काव्य
सौंदर्य,
(i) भाषा खड़ी बोली है।
(ii) छोटे-
छोटे' में पुनरुक्ति अनुप्रास अलंकार है।
(iii) कविता
की भाषा सरल एवं सहज है।
(iv) कविता
में संगीतात्मकता है।
04.
निम्नलिखित में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03-06
(क) सपनों को सत्य के रूप में ढालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण
स्थितियों का सामना करने के लिए कहा है?
उत्तर:
यह प्रश्न हमारी घाट्यपुस्तक अंतरा-1 मे महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'सब आँखो के आँसू
उजले' से अवतरित है। इसमें कवयित्री ने कहा है कि हर व्यक्ति के मन में एक सपना पलता
है और उसमें सत्य का अंश अवश्य होता है। अर्थात व्यक्ति अपनी लगन, हिम्मत एंव कर्मो
से सपनों को सत्य में ढाल सकता है। इसके लिए उन्होंने दीपक और फूल का उदाहरण दिया है।
दीपक जलकर रौशनी फैलाता है तो फूल खिल कर सुगंध फैलाता है। दोनो पक्के संगी है लेकिन
न तो दीपक खिल सकता है और न ही फूल जल सकता है। अर्थात सबकी अपनी अपनी विशेषता होती
है और उसी के आधार पर सपने को सच में डाल सकते हैं।
(ख) 'नींद उचट जाती है कविता के आधार पर बताइए कि कवि की दृष्टि में
बाहर का अंधेरा भीतरी दुस्वप्नों से अधिक भयावह क्यों है?
उत्तर:
कवि ने 'नींद उचट जाती है' कविता में बाहर की अंधेरा को भीतरी दुस्वपनो से अधिक भयावह
बताया है क्योंकि भीतरी दुस्वप्नों से तो केवल आँख खुलती हैं और उससे वे केवल चौंकते
हैं लेकिन बाहर का अंधेरा और अधिक भयावाह होता है। इसमें रौशनी नहीं आती केवल उसके
आने की आवाज आती है। अर्थात सुख काल्पनिक होता है। जीवन में केवल अंधेरा रूपी दुख ही
मिलता है।
(ग) पत्नी की आँखे आँखे नहीं हाथ हैं जो मुझे थामे हुए है से कवि का
क्या अभिप्राय है? 'घर में वापसी कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
पत्नी की आँखे आँखे नही हाथ है जो मुझे थामे हुए हैं से कवि का आशय यह है कि पत्नी
केवल देखती नहीं है बल्कि वे हर स्थिति में कवि को सहारा देती हैं, वह परिवार को गिरने
एवं टूटने से बचाती है। वह हर संकट में कवि का मदद करती हैं। तथा परिवार के उत्तरदायित्वों
को सबल बनाती है। अत: उसकी पत्नी ने कवि एवं उसके परिवार को थाम रखा है।
05.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दें- 03+03 06
(क) स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए ज्योतिबा फूले के अनुसार
क्या-क्या होना चाहिए?
उत्तर:
प्रस्तुत प्रश्न सुधा अरोड़ा द्वारा रचित ज्योतिबा फुले से लिया गया है जिसमें ज्योतिबा
ने स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करते हुए बताते है कि-
→
उन्होंने सर्वप्रथम नई विवाह पद्धति को जन्म दिया जिसमें ब्राह्मणो का स्थान हटा दिया
गया ।
→
पुरुषों
से यह शपथ लिया गया कि उसे उसका अधिकार दोगें तथा उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने
दोगे"
→ स्त्री शिक्षा पर अधिक बल देनी चाहिए।
(ख) 'चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।' सुकिया के इस कथन के आधार
पर खानाबदोश कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए
उत्तर:
खानाबदोश कहानी की मूल संवेदना है मजदूरों का शोषण मजदूर वर्ग शोषक वर्ग की यातना झेलने
को विवश है। समाज में सुबे सिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते हैं।
समाज में व्याप्त जातिवादी मानसिकता भी समाज को बांटने में अहम भूमिका निभाती है। शोषक
वर्ग इसे हथियार के रूप में अपने पक्ष में प्रयोग करता है। शोषित वर्ग अपने लिए कुछ
भी नहीं कर पाता है उनका जीवन रोटी रोजी की समस्या में उलझ कर रह जाता है। वे अपना
जीवन खानाबदोश बनकर ही बिताने को विवश है।
(ग) देश की सब प्रकार से उन्नति हो, इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए
उनमें से किन्ही तीन का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
देश की सब प्रकार से उन्नति के लिए लेखक ने निम्नलिखित उपाय सुझाए, -
(1)
आलस्य त्यागकर देश की उन्नति के कामों में जुट जाना।
(2)
लोगों में शिक्षा का प्रचार करना ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़कर आगे बढ़ें विदेशी पुस्तकों
से भी हितकारी ज्ञान लेना ।
(3)
आत्मनिर्भर बनना और सहायता के लिए दूसरों के मुंह की ओर न देखना।
(4)
अपने व्यक्तिगत सुख की होम करना धन और मान का बलिदान करके देशहित में लगना।
(5)
समाज में फैली कुरीतियों का मिटाना ।
(6)
देश की युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कार देना परिश्रम करने की शिक्षा देना।
(7)
हिंदू-मुसलमानों को आपस में सहयोग करना ।
06. ओमप्रकाश वाल्मीकि अथवा सुदामा पांडे 'धूमिल' की किन्हीं दो रचनाओं
के नाम लिखें। 02
उत्तर:
ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना :- 1. सलाम 2. झूठन
धूमिल की रचनाएं:- बांसुरी जल गई, कल सुनना
मुझे
07. 'लेखक जन्मजात कलाकार है।'- 'हुसैन की कहानी अपनी जबानी' आत्मकथा
में सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है। 03
उत्तर:
जब ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अतहर ने स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से एक बहुत बड़ी
चिड़िया बनाई तथा लड़को से उसकी नकल करने को कहा | तब मकबुल ने हू-ब-हू उस चिड़िया
को अपनी स्लेट पर उतार दिया, ऐसा लग रहा था मानो चिड़िया मकबुल के स्लेट पर आकर बैठी
हो। उसे 10 में 10 अंक मिले थें । इससे यह शाबित होता है कि लेखक जन्मजात कलाकार है।"
अथवा
लेखक ने अलग-अलग व्यक्तित्व वाले अपने पाँच मित्रों के शब्द -
चित्र प्रस्तुत किए हैं, अलग-अलग व्यक्तित्व के बावजूद ये घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे? 03
उत्तर:
प्रस्तुत प्रश्न हमारी पाठ्यपुस्तक अंतराल - 2 मे मकबूल फिदा हुसैन द्वारा रचित
" हुसैन की कहानी अपनी जबानी" से अवतरित है। इसमें लेखक के पाँच मित्र हैं
जिनका व्यक्तित्व काफी अलग है परंतु ये काफी घनिष्ठ मित्र हैं क्योंकि -
→
वे
सभी एक ही धर्म के मानने वाले लोग थे।
→
वे
सभी शाररिक दृष्टि से स्वस्थ और मजबूत थे।
→
वे
सभी खुशमिजाज थें ।
08. कला के प्रति लोगों का नजरिया पहले कैसा था ? 02
उत्तर:
पहले लोग कला को राजे-महाराजे और अमीरों का शौक मानते थे। गरीब व्यक्ति तो इस विषय
में सोच भी नहीं सकता था। उस समय कला आम आदमी का पेट नहीं भर सकती थी। यह केवल समय
काटने का साधन थी। लेकिन समय बदला है। आज कला तथा कलाकार का सम्मान किया जाता है। अब
तो शिक्षा में भी इसे अभिन्न बना दिया गया है। आज यह जीविका का मज़बूत साधन है। अब कलाकृतियाँ
बड़े घरों की ही नहीं, आम घरों के दीवारों की शोभा बनने लगी हैं।
अथवा
मकबूल बचपन में गुमसुम सा क्यों रहने लगा था ?
उत्तर:
लेखक को अपने दादा जी से बेहद लगाव था लेकिन दादा की मृत्यु के बाद वह गुमसुम रहने
लगा। वह दादा के कमरे में बंद रहता था। वह सोता भी दादा के बिस्तर में वह भी दादा की
भूरी अचकन ओढ़कर मानो दादा उसके साथ सो रहे हो। वह किसी से बातचीत भी नहीं करता था