वर्ग- 11 |
विषय- राजनीतिक शास्त्र |
पूर्णांक-40 |
समय - 1:30 घंटे |
प्रश्न 1. राजनीति
की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर - सामान्य शब्दों में
राजनीति से आशय 'निर्णय लेने की प्रक्रिया' है । यह प्रक्रिया सार्वभौमिक है। जीन ब्लान्डल
के अनुसार, “राजनीति एक सार्वभौमिक क्रिया है । " हरबर्ट जे० स्पेंसर के अनुसार,
"राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान
करता है। "
प्रश्न 2. राजनीति
क्या है ?
उत्तर - राजनीति शब्द यूनानी
भाषा के शब्द Polis से बना है जिसका अर्थ नगर राज्य है। प्राचीन काल में नगर राज्य
हुआ करते थे ।
प्रश्न 3. नागरिकता
से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - नागरिकता : नागरिकता
की वह विशेषता अथवा गुण है जिसके कारण उसे राज्य से राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं
और वह राज्य का नागरिक कहलाता है।
प्रश्न 4. निर्वाचन
आयोग के दो कार्य बताइए ।
उत्तर- चुनाव आयोग के दो कार्य
निम्नलिखित हैं-
1. मतदाता सूची तैयार करना
। 2. निष्पक्ष चुनाव कराना ।
प्रश्न 5. कार्यपालिका
किसे कहते हैं ?
उत्तर - सरकार के तीन अंगों
में दूसरा अंग कार्यपालिका है। कार्यपालिका ही विधायिका द्वारा पारित कानूनों को लागू
करती है। गार्नर के अनुसार " कार्यपालिका के अन्तर्गत वे सभी व्यक्ति और कर्मचारी
आ जाते हैं जिनका कार्य राज्य की इच्छा को जिसे विधायिका ने व्यक्त कर कानून का रूप
दिया है, कार्य रूप में परिणत करना है। "
प्रश्न 6. भारत
के उपराष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार की योग्यताएँ क्या हैं ?
उत्तर - उपराष्ट्रपति पद के
लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी आवश्यक हैं-
1. उम्मीदवार भारत का नागरिक
हो ।
2. उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष
हो ।
3. वह राज्य सभा का सदस्य चुने
जाने की योग्यता रखता हो ।
4. वह कोई लाभ का पद धारण न
किए हुए हो ।
प्रश्न 7. वित्तीय
आपातकाल पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- जब राष्ट्रपति को यह
विश्वास हो जाए कि भारत या उसके किसी भाग की वित्तीय साख खतरे में पड़ गयी है तो संविधान
के अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत वह वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। राष्ट्रपति संघ
राज्य के कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर सकता है। संघीय कार्यपालिका राज्य सरकार
को निर्देश दे सकती है। ऐसे निर्देश में यह भी व्यवस्था हो सकती है कि विधान मंडल द्वारा
पारित धन विधेयकों की राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जाए।
प्रश्न 8. भारत
के प्रधानमंत्री की नियुक्ति किस प्रकार से की जाती है ?
उत्तर - भारत के प्रधानमंत्री
की नियुक्ति औपचारिक रूप से राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। लोकसभा के चुनाव में
जिस राजनीतिक दल अथवा दलों के समूह को बहुमत प्राप्त होता है उसके नेता को राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करता है। अगर चुनाव में किसी को भी बहुमत नहीं मिले
तो राष्ट्रपति अपने विवेक के आधार पर तय करता है कि किस व्यक्ति को प्रधानमंत्री के
पद पर नियुक्त करें ।
प्रश्न 9. संविधान
क्या है ?
उत्तर- संविधान ऐसे नियमों
तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता
है, उनको शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है
तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को
ही संविधान कहा जाता है।
प्रश्न 10. भारत
में लोक सेवा की भूमिका बताइये ।
उत्तर भारत में अन्य राज्यों
के समान लोक सेवक वास्तविक कार्यपालिका के रूप में कार्य करते हैं। राज्य के विकास
के साथ लोक सेवकों की संख्या व महत्व भी बढ़ गया है। इन्हें आजकल नौकरशाही के नाम से
जाना जाता है नौकरशाही ने इन सदस्यों की निश्चित शिक्षा होती है व लंबा कार्यकाल होता
है । ये राजनीतिक रूप से तटस्थ होते हैं। सरकार की नीतियों को वफादारी के साथ लागू
करना इनका कर्त्तव्य होता है। राजनीतिक कार्यपालिका के सलाहकार के रूप में ये कार्य
करते हैं।
प्रश्न 11. स्थानीय
स्वशासन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- स्थानीय स्वशासन का
अर्थ है वह शासन जिसके द्वारा नगर और ग्राम में रहने वाले लोगों को अपने स्थानीय समस्याओं
का अपनी आवश्यकता तथा इच्छानुसार समाधान करने की स्वतंत्रता। यह छोटे-छोटे तथा सीमित
क्षेत्रों के लिए शासन है। स्थानीय जनता प्रतिनिधि स्थानीय निषयों का प्रबंध एक निश्चित
सीमा के अंतर्गत करते हैं।
प्रश्न 12. भाषण
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को समझाइए ।
उत्तर- प्रत्येक नागरिक को
भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। कोई भी नागरिक बोलकर या
लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। प्रेस की स्वतंत्रता भाषण देने तथा विचार प्रकट
करने की स्वतंत्रता का साधन है। परन्तु भाषण देने और विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता
असीमित नहीं है। संसद भारत की प्रभुसत्ता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक
व्यवस्था, शिष्टता अथवा नैतिकता, न्यायालय का अपमान, मान-हानि व हिंसा के लिए उत्तेजित
करना आदि के आधारों पर भाषण तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती
है।
प्रश्न 13. भारतीय
संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के नाम लिखें।
उत्तर- मौलिक अधिकार उन आधारभूत
आवश्यक तथा महत्वपूर्ण अधिकारों को कहा जाता है जिनके बिता देश के नागरिक अपने जीवन
का विकास नहीं कर सकते । जो स्वतंत्रताएँ तथा अधिकार व्यक्ति तथा व्यक्तित्व का विकास
करने के लिए समाज में आवश्यक समझे जाते हों, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। भारतीय
संविधान में मूल रूप से सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है परन्तु
44वें संशोधन के बाद 6 तरह के मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं। ये अधिकार है-
(i) समानता का अधिकार (ii) स्वतंत्रता का अधिकार (iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (v) सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार (vi) संवैधानिक
उपचारों का अधिकार ।
प्रश्न 14. मौलिक
स्वतंत्रताओं पर किन आधारों पर तार्किक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं ?
उत्तर- अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत
दी गई स्वतंत्रताएँ असीमित नहीं हैं। उन पर निम्नलिखित तार्किक प्रतिबंध लगाए हैं-
(1) संसद भारत की प्रभुसत्ता,
अखंडता और सुरक्षा के लिए इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा सकती है।
(2) संसद विदेशी राज्यों से
मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने के लिए इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा सकती है
।
(3) संसद सार्वजनिक व्यवस्था,
शिष्टता अथवा नैतिकता, न्यायालय का अपमान, मान हानि तथा हिंसा के लिए उत्तेजित करना
आदि के आधारों पर इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध लगा सकती है।
(4) राज्य जनता के हितों और
अनुसूचित कबीलों के हितों की सुरक्षा के लिए इन स्वतंत्रताओं पर उचित प्रतिबंध लगा
सकता है।
प्रश्न 15. मंत्रिमंडल
का गठन किस प्रकार से किया जाता है ?
उत्तर- मंत्रिमंडल वास्तविक
कार्यपालिका होता है जो कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करते हैं। मंत्रिमंडल
के सदस्यों की नियुक्ति औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा
की जाती है। यद्यपि वास्तविक रूप से मंत्रिमंडल में सदस्यों का चुनाव प्रधानमंत्री
करते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री का यह विशेषाधिकार यद्यपि व्यवहारिकता में प्रधानमंत्री
के इस निर्णय को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं। अपने दल के प्रभावशाली सदस्यों को उसे
अपने मंत्रिमंडल में लेना ही पड़ता है । इस प्रकार से मंत्रिमंडल के लिए बनी सूची प्रधानमंत्री
राष्ट्रपति को देता है जिसके सदस्यों को राष्ट्रपति गोपनीयता की शपथ दिलाता है। प्रधानमंत्री
की सिफारिश पर राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के सदस्यों को हटा सकता है। मंत्री बनने के लिए
यह आवश्यक है कि वह संसद का सदस्य हो अगर वह मंत्री बनते समय संसद के किसी सदन का सदस्य
नहीं है तो 6 महीने के अंदर उसे किसी एक सदस्य की सदस्यता अवश्य ही लेनी पड़ेगी।
प्रश्न 16. कैसे
हमारा संविधान सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का उपकरण है ?
उत्तर भारत का संविधान राजनीतिक
लोकतंत्र का प्रतिपादक तो है ही, इसके साथ-साथ यह सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र का भी
प्रतिपादक है। इसके निर्माताओं को यह भलीभाँति मालूम था कि सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र
की अनुपस्थिति में एक सच्चा और यथार्थ राजनीतिक लोकतंत्र कभी सफल नहीं हो सकता। अतएव
इस संविधान ने यदि एक ओर स्त्रियों और पुरुषों को समान रूप से वयस्क मताधिकार का अधिकार
दिया है तो दूसरी ओर छुआछूत जात-पात, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि आर्थिक और सामाजिक विषमताओं
और असमानताओं को भी दूर करने का प्रयास किया गया है जैसे संविधान के अनुसार अस्पृश्यता
को एक भीषण अपराध घोषित कर दिया गया है।
प्रश्न 17. राजनीति
विज्ञान विज्ञान और कला दोनों है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-यह एक सामान्य अभिमत
है कि कोई भी अध्ययन या तो विज्ञान की श्रेणी में आता है या कला की, लेकिन वस्तुतः
ऐसा सोचना त्रुटिपूर्ण है। विलियम एस. लिंगर के अनुसार,"विज्ञान और कला का परस्पर
विरोधी होना आवश्यक नहीं है । कला विज्ञान आधारित हो सकती है ।" राजनीतिशास्त्र
के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह विज्ञान और कला दोनों है । विज्ञान और कला दोनों
क ही रूपों में यह हमारे लिये उपयोगी है। गार्नर के अनुसार, "राजनीति विज्ञान
व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है, भ्रममूलक राजनीति दर्शन के सिद्धान्त का खण्डन करता
है तथा विवेकपूर्ण राजनीतिक क्रियाकलाप के आधार के रूप में सुदृढ़ सिद्धान्तों का प्रतिपादन
करता है। "
इस प्रकार राजनीतिशास्त्र एक
विज्ञान भी है और एक उच्चस्तरीय कला भी ।श्रजब हम राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों का
क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित विवेचन करते हैं तथा कुछ सामान्य एवं सार्वभौम निष्कर्षो की
खोज करते हैं तो यह एक विज्ञान है लेकिन जब हम इन सिद्धान्तों तथा व्यवहार के मध्य
भिन्नता व सापेक्षता पाते हैं तो राजनीति विज्ञान कला के निकट होती है। सिद्धान्तों
व व्यवहार का यह अन्तर ही कुशलता व कल्पना (कला) के विकास का अवसर प्रदान करता है।
प्रश्न 18. किसी
देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी
है ? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा ?
उत्तर- किसी भी देश के संविधान
में विभिन्न संस्थाओं की शक्तियों का सीमांकन करना अत्यन्त आवश्यक होता है। जब कोई
एक समूह या संस्था अपनी शक्तियों को बढ़ा लेती है तो वह पूरे संविधान को नष्ट कर सकती
है। इस समस्या के बचाव के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि संविधान में शक्तियों का सीमांकन
विभिन्न संस्थाओं को नष्ट कर सकती है। इस समस्या के बचाव के लिए अत्यन्त आवश्यक है
कि संविधान में शक्तियों का सीमांकन विभिन्न संस्थाओं में इस प्रकार किया जाए कि कोई
भी समूह या संस्था संविधान को नष्ट न कर सके । संविधान को इस प्रकार बनाया जाए अर्थात्
संविधान की रूपरेखा इस प्रकार से तैयार की जाए कि शक्तियों को ऐसी चतुराई से बाँट दिया
जाए कि कोई एक संस्था एकाधिकार प्राप्त न कर सके। ऐसा करने के लिए शक्तियों का विभाजन
विभिन्न संस्थाओं में किया जाए । उदाहरणार्थ, भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन
कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य तथा कुछ स्वतंत्र संवैधानिक निकायों
जैसे निर्वाचन आयोग आदि में किया जाता है। केन्द्र और राज्यों के बीच भी शक्तियों को
नष्ट करना चाहे तो अन्य संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में
अवरोध व सन्तुलन का सिद्धान्त भी इसीलिए अपनाया गया है । जव विधायिका अपने क्षेत्र
का अतिक्रमण करती है तो न्यायपालिका को यह अधिकार है कि वह उसके द्वारा निर्मित विधान
को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। कार्यपालिका की शक्तियों को असीम बनने से रोकने के
लिए विधायिका को उस पर विभिन्न प्रकार से अंकुश लगाने का अधिकार है। वह प्रश्न पूछकर,
काम रोको प्रस्ताव लाकर, अविश्वास प्रस्ताव आदि के द्वारा कार्यपालिका और न्यायपालिका
की शक्तियों का सीमांकन संविधान द्वारा पहले से ही किया है और ये सभी संस्थाएँअपने-अपने
कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं परन्तु अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं
कर सकतीं। दूसरी संस्थाएँ उनके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेती हैं।
यदि संविधान में इन शक्तियों
का बँटवारा या सीमांकन विभिन्न संस्थाओं में नहीं किया जाता तो कोई एक संस्था या सरकार
कोई एक अंग अपनी शक्तियों को बढ़ा लेता और वह संविधान को नष्ट कर सकता था तथा निरंकुशता
पूर्ण शासन करने लगता जिससे नागरिकों को स्वतंत्रता नष्ट हो जाती है ।
प्रश्न 19. भारतीय
संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की विशेषताओं की व्याख्या करें ।
उत्तर- भारत के संविधान के
तीसरे भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है और संविधान द्वारा
उनकी केवल घोषणा ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा भी की गई है। भारत के संविधान में मूल
अधिकारों का वर्णन केवल इसलिए नहीं किया गया कि उस समय यह कोई फैशन था बल्कि यह वर्णन
उस सिद्धान्त की पुष्टि के लिए किया गया है, जिसके अनुसार सरकार कानून के अनुसार कार्य
करे न कि गैर कानूनी तरीके से ।
संविधान में जो भी मौलिक अधिकार
घोषित किए गए हैं,उनकी कुछ अपनी ही विशेषताएँ हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
1. व्यापक और विस्तृत - भारतीय
संविधान में लिखित मौलिक अधिकार बड़े व्यापक तथा विस्तृत हैं। इनका वर्णन संविधान में
तीसरे भाग की 24 धाराओं (Art 12-35) में किया गया है । नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक
अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार की विस्तार से व्याख्या की गई है ।
2. मौलिक अधिकार सब नागरिकों
के हित के लिए हैं- संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की यह विशेषता है कि वे भारत
के सभी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध हैं । ये अधिकार सभी को जाति, धर्म, रंग,
लिंग आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं ।
3. मौलिक अधिकार असीमित नहीं
हैं- कोई भी अधिकार पूर्ण और असीमितनहीं हो सकता । भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक
अधिकार भी असीमित नहीं हैं । संविधान के अन्दर ही मौलिक अधिकारों पर अनेक प्रतिबन्ध
लगाए गए हैं।
4. मौलिक अधिकार केन्द्र तथा
राज्य सरकारों की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं - मौलिक अधिकार केन्द्र तथा राज्य
सरकारों की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं और उनके माध्यम से प्रत्येक ऐसी संस्था
जिसको कानून बनाने का अधिकार है, पर प्रतिबन्ध लगाते हैं । केन्द्रीय सरकार, राज्य
सरकारों तथा स्थानीय सरकारों को मौलिक अधिकारों के अनुसार ही कानून बनाने पड़ते हैं
तथा ये कोई ऐसा कानून नहीं बना सकतीं जो मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो ।
5. अधिकार न्याय योग्य हैं- मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू किए जा सकते हैं । यदि इन अधिकारों में से किसी का उल्लंघन किया जाता है तो वह व्यक्ति जिसको इनके उल्लंघन से हानि होती है, अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय संसद अथवा राज्य विधानमंडलों के द्वारा पास हुए कानून तथा आदेश को अवैध है यदि वह कानून अथवा आदेश संविधान के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो।