वर्ग- 11 | विषय- राजनीतिक शास्त्र | पूर्णांक-40 | समय - 1:30 घंटे |
प्रश्न 1. किसी
देश के संविधान का क्या महत्त्व है ?
उत्तर- संविधान में ही बताया
जाता है कि सरकार के विभिन्न अंगों की क्या-क्या शक्तियाँ और उनके क्या-क्या दायित्व
होते हैं ।
प्रश्न 2. संविधान
निर्मात्री सभा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- संविधान सभा उसे कहते
हैं जो किसी देश के संविधान का निर्माण करती है।
प्रश्न 3. भारत
के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है ?
उत्तर- अप्रत्यक्ष चुनाव- भारत
के राष्ट्रपति के चुनाव की मुख्य विशेषता यह है कि यह चुनाव जनता के द्वारा सीधा न
होकर अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों की विधानसभाओं तथा संसद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा
होता है ।
प्रश्न 4. प्रतिनिधित्व
के समानुपातिक पद्धति का वर्णन कीजिए ?
उत्तर - आनुपातिक प्रतिनिधित्व
पद्धति - इस पद्धति को हेयर पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति के अंतर्गत सामान्य पद्धति
की तरह उम्मीदवारों का चुनाव नहीं होता। इस पद्धति के अंतर्गत एक कोटा निश्चित किया
जाता है। इसमें निश्चत मत संख्या या उससे अधिक मत प्राप्त करने वाला व्यक्ति ही निर्वाचित
होता है।
प्रश्न 5. राजनीतिशास्त्र
शक्ति का विज्ञान' है व्याख्या करें ।
उत्तर- समकालीन राजनीतिक विद्वानों
में प्रमुख वे हैं जो 'शक्ति' को राजनीति की केन्द्रीय अवधारणा मानते हैं । शक्ति से
संबंधित विषयों और शक्ति संघर्षों का अध्ययन राजनीति मानी जाती है । इस सिद्धांत की
मुख्य रूप से पैरेटो, मोस्का, जॉर्ज कैटलिन, चार्ल्स ई० मेरियम, लासवेल, मॉरिगेन्थो,
रसेल और वाटकिन्स ने की है । रॉबट ए० डैल के शब्दों में राजनीति 'शक्ति की तलाश' है
। मैक्स वेबर ने कहा है कि "राजनीति शक्ति-विभाजन में हिस्सा लेने या उसे प्रभावित
करने का संघर्ष है, चाहे वह राज्यों के बीच हो या राज्य के अंदर समूहों के बीच ।
" लासवेल के अनुसार, राजनीति "शक्ति को बनाने तथा इसमें हिस्सा लेने का अध्ययन
है ।'' अब शक्तिशाली दृष्टिकोण की अनेक त्रुटियाँ सामने आई हैं । यह स्पष्ट हो गया
है कि शक्ति और प्रभाव पर निर्भर सभी संबंध 'राजनीतिक' नहीं होते । यह दृष्टिकोण अधूरा
है ।
प्रश्न 6. कानून
और स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे ?
अथवा, कानून और स्वतंत्रता
के संबंधों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर - 'राज्य का कानून' और
'मनुष्य की स्वतंत्रता' विषय पर अलग-अलग विद्वान अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।
कुछ विद्वानों ने राज्य का कानून और मनुष्य की स्वतंत्रता दोनों के मध्य स्वाभाविक
विरोध माना है। परंतु कुछ विद्वान ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि स्वतंत्रता के लिए कानून
का होना अत्यंत अनिवार्य है।
(i) कानून एक बुराई है- अराजकतावादी
के अनुसार राज्य और उसके कानून जन - स्वतंत्रता के विरोधी हैं। इन्होंने राज्य के अस्तित्व
को समाप्त करने पर बल दिया । यद्यपि इसके लिए
उन्होंने हिंसक क्रांति की प्रवृत्ति अपनाने के स्थान पर शांतिपूर्ण उपायों से राज्य
की समाप्ति पर जोर दिया। उनका कहना था कि समाज का संगठन ऐच्छिक सहयोग और स्वतंत्रता
के आधार पर किया जाए, राजनीतिक आधार पर नहीं ।
(ii) व्यक्तिवादी लेखक के अनुसार
राज्य के कानून और व्यक्ति की स्वतंत्रता में मौलिक विरोध है । ये भी राज्य को 'आवश्यक
बुराई' मानते हैं । अर्थात् इनके मतानुसार राज्य को कम से कम कार्य करने चाहिए । कहने
का स्पष्ट अर्थ यह है कि ये राज्य संस्था को समाप्त करने की बात नहीं करते अपितु इसके
अधिकार को सीमित करने की बात करते हैं । उपर्युक्त दोनों विचारधाराओं के अनुसार स्वतंत्रता
और कानून एक-दूसरे के विरोधी हैं ।
कानून और स्वतंत्रता एक-दूसरे
के पूरक - ऊपर की विचारधाराओं के ठीक विपरीत एक ऐसी विचारधारा भी है, जिसे 'आदर्शवाद'
की संज्ञा दी गई है, जो कानून और स्वतंत्रता को एक-दूसरे का पर्याय मानती है। ऐसी विचारधारा
के समर्थक हैं - रूसो और हीगल । रूसो कहते हैं, 'शासक' और 'प्रजा' के बीच कोई मौलिक
भेद नहीं है। उनके अनुसार लोगों को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का कोई अधिकार नहीं
है। उसी प्रकार हीगल भी इस विचार के समर्थन में कहते हैं, "शासक तो नैतिकता का
संरक्षक है।" स्वतंत्रता का चरम विकास राज्य द्वारा ही संभव है।
निष्कर्ष - उपर्युक्त तीनों
विचारधाराओं के अध्ययन से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उक्त तीनों विचारधाराओं में
कुछ न कुछ दोष विद्यमान हैं । प्रथम विचारधारा में कानून और व्यक्ति की स्वतंत्रता
में मौलिक विरोध बताया गया है। जो उचित प्रतीत नहीं होता । दूसरी विचारधारा जिसे 'आदर्शवाद'
कहा गया है, भी तर्कसंगत मालूम नहीं पड़ती। क्योंकि इनके अनुसार कानूनों का विरोध नहीं
करना चाहिए।
अतः निश्चित रूप से यह कहा
जा सकता है कि स्वतंत्रता के लिए कानून का होना अत्यंत जरूरी है। दोनों में घनिष्ठ
संबंध है। रफील एक ऐसे विचारक हैं जो स्वतंत्रता के समर्थक तो हैं, परंतु कुछ क्षेत्र
में कानून के प्रतिबंध को तर्कसंगत मानते हैं, जैसे-अपराध के क्षेत्र में समाज कल्याण
व्यवस्था के क्षेत्र में, दीवानी विवादों के क्षेत्र में आर्थिक नियंत्रण के क्षेत्र
में आदि। इस क्षेत्र में कानून अथवा प्रतिबंध 'सकारात्मक स्वतंत्रता' के अन्तर्गत आते
हैं, लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हम राज्य के हर कानून के आगे घुटने टेक दें
। हमें ऐसे कानून का सदैव विरोध करना चाहिए जो व्यक्ति या समाज की उन्नति में बाधा
न बने।
प्रश्न 7.
"स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है।" समीक्षा कीजिए ।
उत्तर - साधारणतः स्वतंत्रता
का अर्थ है-'प्रतिबंधों का अभाव' अर्थात् मनुष्य के व्यवहार पर किसी भी प्रकार का अंकुश
न होना । लेकिन इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता का एक दूसरा अर्थ है- व्यक्ति के कार्यों
पर उचित प्रतिबंध होना। अब उन दोनों अर्थों पर आगे विस्तार से प्रकाश डाला जा रहा है।
(i) स्वतंत्रता प्रतिबंधों
का अभाव है- कुछ विद्वानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति तभी स्वतंत्र कहा जा सकता है जब
उस पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबंध न हो, उसे अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता
हो । जे. एस. मिल इस स्वतंत्रता के समर्थन में कहते हैं, "व्यक्ति अपना भला-बुरा
स्वयं सोच सकता है और पूर्ण स्वतंत्रता मिलने पर वह अपना सर्वोत्तम विकास कर सकता है।"
स्वतंत्रता के अभाव में मनुष्य का संपूर्ण विकास नहीं हो सकता है। मनुष्य के किसी भी
व्यवहार अथवा कार्यों पर यदि कोई प्रतिबंध है तो उसे स्वतंत्रता की संज्ञा नहीं दी
जा सकती।
(ii) व्यक्ति के कार्यों पर
उचित प्रतिबंध होना- ऊपर के अध्ययन के आधार पर यदि यह कहा जाए कि मनुष्य के किसी भी
आचरण पर कोई प्रतिबंध न हो तो यह उचित नहीं । क्योंकि प्रतिबंध के अभाव में सर्वत्र
अराजकता फैल जाएगी। शक्तिशाली वर्ग निर्बलों और कमजोर वर्गों का शोषण करने लगेंगे ।
इसलिए स्वतंत्रता पर कुछ न कुछ प्रतिबंध अवश्य लगाने चाहिए। उचित प्रतिबंध अत्यंत जरूरी
है । उचित प्रतिबंधों के कारण ही समाज में शांति एवं व्यवस्था बनी रह सकती है । इस
संदर्भ में मैकेंजी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं, "स्वतंत्रता सभी प्रकार
के बंधनों का अभाव नहीं है, बल्कि अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की
स्थापना है।"
प्रश्न 8. इतिहास
और राजनीतिशास्त्र में अंतर बतलाएँ ।
उत्तर-यद्यपि इतिहास और राजनीतिशास्त्र
में घनिष्ठ संबंध है, फिर भी दोनों में कतिपय मौलिक अंतर है-
(i) क्षेत्र की दृष्टि से
- इतिहास का क्षेत्र बहुत व्यापक और विस्तृत होता है । इसके अंतर्गत युद्ध, क्रांतियों,
आर्थिक परिवर्तनों, धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलनों आदि का अध्ययन किया जाता है। लेकिन,
राजनीतिशास्त्र केवल उन बातों से संपर्क रखता है जिनका संबंध राज्य या अन्य राजनीतिक
संस्थाओं तथा उनपर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालने के तथ्यों से है। ।
(ii) उद्देश्य के दृष्टिकोण
से दोनों शास्त्रों के उद्देश्य में भी भिन्नता है । इतिहास वर्णनात्मक है । वह केवल
घटनाओं का वर्णन करता है, किसी घटना के दार्शनिक पहलू की जाँच नहीं करता । इसके विपरीत,
राजनीतिशास्त्र नैतिक भी है । यह केवल यह अध्ययन नहीं करता कि राज्य क्या है अपितु
यह भी बतलाता है कि राज्य को क्या होना चाहिए ।
(iii) अध्ययन-विधि के दृष्टिकोण
से - इतिहास एक वर्णनात्मक शास्त्र । यह घटनाओं का केवल क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करता
है । इसके विपरीत, राजनीतिशास्त्र विचारात्मक तथा आनुभविक विधियों का भी अनुसरण करता
है । इस प्रकार, राजनीतिशास्त्र और इतिहास की पद्धतियाँ, विषय, क्षेत्रों एवं उद्देश्यों
में पर्याप्त अंतर है ।
प्रश्न 9. न्यायिक
सक्रियता से आप क्या समझते हैं ? उसकी समीक्षा कीजिए ।
उत्तर - गणतंत्र का सबसे प्रथम
उद्देश्य था - नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय उपलब्ध कराना । न्यायिक
सक्रियता का अर्थ है- " संविधान, कानून और अपने दायित्वों के प्रसंग में कानूनी
व्याख्या से आगे बढ़कर सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों और सामाजिक आर्थिक न्याय की आवश्यकता
को दृष्टि में रखते हुए संविधान और कानून की रचनात्मक व्याख्या करते हुए जनसाधारण के
हितों की रक्षा के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना ।
इसके अंतर्गत यह बात सम्मिलित
है कि जन सामान्य के हित की दृष्टि से आवश्यक होने पर शासन को निर्देश देना और शासन
की स्वेच्छाचारिता पर रोक लगाना न्यायपालिका का दायित्व है । "
न्यायिक सक्रियता के विविध
पहलू -
(i) शासन की स्वेच्छाचारिता
पर नियंत्रण- न्यायिक सक्रियता का एक उद्देश्य स्वेच्छाचारिता पर नियंत्रण है । संविधान
द्वारा उच्च कार्यपालिका अधिकारों को कुछ विशेष स्वविवेकीय शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
इन स्वविवेकीय शक्तियों का औचित्य हो सकता है, लेकिन व्यवहार में देखा गया है कि कार्यपालिका
अपनी इन स्वविवेकी शक्तियों के आधार पर स्वेच्छाचारिता का मार्ग अपना लेती है। ऐसी
परिस्थिति में न्यायिक सक्रियता के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात का प्रतिपादन
किया कि विवेकात्मक शक्तियों के अन्तर्गत सरकार की कार्यवाही विवेकसम्मत होनी चाहिए
तथा इस कार्यवाही को सम्पन्न करने के लिए जो कार्यविधि अपनाई जाय, वह कार्य विधि भी
विवेक सम्मत उत्तम तथा न्यायपूर्ण होनी चाहिए।
(ii) जनहितकारी- न्यायिक सक्रियता
के अंतर्गत इस विचार को स्वीकार किया गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे समूह या वर्ग
की ओर से मुकदमा लड़ सकता है जिसको उसके कानूनी या संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया
जाता हो। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से वक्तव्य जारी किया कि गरीब,
विकलांग तथा आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर लोगों के मामले में कोई भी जनसाधारण
न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि जनहितकारी अभियोग न्यायिक
सक्रियता का एक प्रमुख पक्ष है न्यायिक सक्रियता की दृष्टि से 1996-2000 की कालावधि
अभूतपूर्व कही जा सकती है। जा सकती है। जिसमें जनहित याचिका के माध्यम से शीर्ष पर
व्याप्त भ्रष्टाचार को निशाना बनाया जाने लगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि सर्वोच्च
न्यायालय ने जनहितकारी विवादों में प्रत्येक व्यक्ति को भाग लेने का अधिकार देकर, औचित्यपूर्ण
कार्यविधि के सिद्धान्त की स्थापना एवं दुर्बल पक्षकारों को समान धरातल पर लाकर आम
जनता की काया पलट करने में भारी योगदान किया है और संसार के अन्य सभी सर्वोच्च न्यायालय
की तुलना में अद्वितीय तथा जनहितकारी बन गया है।
प्रश्न 10. लोकसभा
के अधिकारों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - संसद का निचला या पहला
सदन लोकसभा है। लोकसभा का मुख्य कार्य कानून बनाना है। संघ सूची तथा समवर्ती सूची के
सभी विषयों पर लोकसभा को कानून बनाने का अधिकार है। राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था पर
लोकसभा को पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। धन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता
है। यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। यह राज्यसभा में भी भेजा जाता
है जिसे वहाँ 14 दिनों के भीतर पारित होना चाहिए। यदि वह उसे स्वीकार नहीं करती है
तो 14 दिन बाद उसे दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। लोकसभा का मंत्रिमंडल
के ऊपर पूरा नियंत्रण होता है। मंत्रिमंडल अनेक कार्यकाल तथा कार्यों के लिए लोकसभा
के प्रति ही उत्तरदायी ठहराया गया है। लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक
प्रश्न पूछ कर, काम रोको प्रस्ताव पास करके, बजट में कटौती करके तथा अविश्वास का प्रस्ताव
पास करके उन पर अपना नियंत्रण रखते हैं। लोकसभा को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम
तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, महालेखा परीक्षक आदि पर महाभियोग चलाने का अधिकार
प्राप्त है। लोकसभा राज्य सभा के साथ मिलकर संविधान में संशोधन करती है।
प्रश्न 11. किसी देश के संविधान का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
संविधान में ही बताया जाता है कि सरकार के विभिन्न अंगों की क्या-क्या शक्तियाँ और
उनके क्या-क्या दायित्व होते हैं
प्रश्न 12. संविधान निर्मात्री सभा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संविधान सभा उसे कहते हैं जो किसी देश के संविधान का निर्माण करती है।
प्रश्न 13. भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष चुनाव- भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की मुख्य विशेषता यह है कि यह
चुनाव जनता के द्वारा सीधा न होकर अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों की विधानसभाओं तथा
संसद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा होता है।
प्रश्न 14. प्रतिनिधित्व के समानुपातिक पद्धति का वर्णन कीजिए ?
उत्तर-
आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति इस पद्धति को हेयर पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति
के अंतर्गत सामान्य पद्धति की तरह उम्मीदवारों का चुनाव नहीं होता। इस पद्धति के अंतर्गत
एक कोटा निश्चित किया जाता है। इसमें निश्चत "मत संख्या या उससे अधिक मत प्राप्त
करने वाला व्यक्ति ही निर्वाचित होता है।
प्रश्न 15. आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका यह अर्थ नहीं
है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान कर दिया जाए। इसका अर्थ है-सबको उन्नति के
समान अवसर प्रदान किये जाएँ । सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। प्रत्येक
व्यक्ति को काम मिले।
प्रश्न 16. सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार कानून बनाने और लागू करने बाली एक विशिष्ट संस्था है।
प्रश्न 17. धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
मनुष्य के नैतिक तथा सामाजिक जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अतः प्रत्येक मनुष्य
को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म के स्वीकार करने, इसका पालन करने, पाठ, उपासना आदि
की स्वतंत्रता को ही धार्मिक स्वतंत्रता कहते हैं। इसमें राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं
होना चाहिए और इसका किसी धर्म-विशेष के प्रति पक्षपात नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 18. 74वें संविधान संशोधन द्वारा बारहवीं सूची में सम्मिलित
आर्थिक सामाजिक विकास संबंधी कार्य का विवरण प्रस्तुत कीजिए जो नगर निगम व नगरपालिका
को सौंपे गये हैं।
उत्तर-
नगरों में स्वशासन की स्थापना के लिए नगरीय निकाय की स्थापना की गई है। जैसे-नगर पंचायत,
नगरपालिका परिषद्, नगर निगम आदि । संविधान के 74वें संशोधन, जो 1 जून, 1993 को लागू
हुआ, उसके द्वारा इन नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। संविधान के भाग 9-क
में अनुच्छेद 243-त से अनुच्छेद 243- च-छ तक नगरपालिका के लिए उपबंधों का समावेश किया
गया है । इसके साथ ही संविधान में बारहवीं अनुसूची का समावेश किया गया है जिसमें इसके
कार्य क्षेत्र से संबंधित 18 विषयों का समावेश किया गया है। नगरपालिका अथवा नगर निगम
द्वारा किए जाने वाले सामाजिक-आर्थिक कार्य निम्नलिखित हैं
(i)
सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाएँ तैयार करना ।
(ii)
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को लागू करना ।
(iii)
समाज के दुर्बल वर्गों के, जिनके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्ति भी
हैं, उनके हितों की रक्षा करना ।
(iv)
गंदी बस्तियों को उन्नत करना आदि।
प्रश्न 19. चुनावों में राजनीतिक दलों की भूमिका समझाइये।
उत्तर-
अधिकांश देशों में राजनीतिक दलों का उदय चुनावी प्रक्रिया में हो होता है, केवल कुछ
साम्यवादी देशों में राजनीतिक दलों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त होता है। चुनावी प्रजातंत्र
में राजनीतिक दलों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। वास्तव में राजनीतिक दल
ही चुनाव को अर्थ देते हैं व प्रजातंत्र को सफल बनाने में सहायक होते हैं। राजनीतिक
दल जनता के सम्मुख चुनावों में अलग-अलग पसंद व्यक्त करते हैं। अपनी नीतियों व कार्यक्रमों
से जनता को जागरूक करते हैं। राजनीतिक दल सरकारें बनाते हैं व विरोधी दलों के रूप में
भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दल स्वस्थ जनमत निर्माण करते हैं व सरकार व अधिकारियों
(नौकरशाही) पर नियंत्रण करते हैं। राजनीतिक दल जनता की राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी
को बढ़ाती है। राजनीतिक दलों की एक नकारात्मक भूमिका यह अवश्य रहती है कि ये जनता को
संकीर्ण आधार अर्थात जाति, धर्म व भाषा आदि पर बाँटते हैं व इन आधारों पर वोट प्राप्त
करने का प्रयास करते हैं जिससे देश की व समाज की एकता को खतरा पैदा होता है। चुनाव
प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों को भूमिका लगातार बढ़ रही है।
प्रश्न 20. राजनीति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
सामान्य शब्दों में राजनीति से आशय 'निर्णय लेने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया सार्वभौमिक
है। जीन ब्लान्डल के अनुसार, “राजनीति एक सार्वभौमिक क्रिया है। " हरबर्ट जे०
स्पेंसर के अनुसार, "राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानव समाज अपनी
समस्याओं का समाधान करता है।
प्रश्न 21. राजनीति क्या है ?
उत्तर-
राजनीति शब्द यूनानी भाषा के शब्द Polis से बना है जिसका अर्थ नगर राज्य है। प्राचीन
काल में नगर राज्य हुआ करते थे।
प्रश्न 22. नागरिकता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर
नागरिकता : नागरिकता की वह विशेषता अथवा गुण है जिसके कारण उसे राज्य से राजनीतिक अधिकार
प्राप्त होते हैं और वह राज्य का नागरिक कहलाता है।
प्रश्न 23. भारत कैसे एक गणतंत्र है ?
उत्तर
भारत एक गणतंत्र राज्य है। गणतंत्र राज्य वास्तव में वह होता है जिसमें सता राज्य के
हाथ में न होकर जनता के हाथ में रहती है और जिसमें राज्य का अध्यक्ष निर्वाचित व्यक्ति
होता है। भारत राज्य का सर्वोच्च अधिकारी वंशक्रमानुगत राजा न होकर भारतीय जनता द्वारा
अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति है।
प्रश्न 24. लोकसभा के संगठन के बारे में लिखिए ।
उत्तर
भारतीय संसद के निम्न या लोकप्रिय सदन को लोकसभा का नाम दिया गया है। लोकसभा की सदस्य
संख्या समय-समय पर परिवर्तित होती रही है। वर्तमान समय में इसकी सदस्य संख्या 545 है।
लोकसभा के सदस्य भारतीय जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित
होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
प्रश्न 25. समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
साधारण भाषा में समानता का अर्थ है-सब व्यक्तियों का समान दर्जा हो, सबकी आप एक जैसी
हो, सब एक ही प्रकार से जीवन यापन करें। पर यह सम्भव नहीं है। लास्की ने कहा है,
"समानता का अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाये, यदि ईंट
ढोनेवाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए, तो समाज
का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला
वर्ग न रहे। सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।"
प्रश्न 26. आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका यह अर्थ नहीं
है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान कर दिया जाए। इसका अर्थ है-सबको उन्नति के
समान अवसर प्रदान किये जाएँ। सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। प्रत्येक
व्यक्ति को काम मिले।
प्रश्न 27. धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मनुष्य के नैतिक तथा सामाजिक जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान के है। अतः प्रत्येक
मनुष्य को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म के स्वीकार करने, इसका पालन करने, पाठ, उपासना
आदि की स्वतंत्रता को ही धार्मिक स्वतंत्रता कहते हैं। इसमें राज्य का कोई हस्तक्षेप
नहीं होना चाहिए और इसका किसी धर्म-विशेष के प्रति पक्षपात नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 28. मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों के मुख्य अन्तर
क्या हैं ?
उत्तर-
मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं जबकि निर्देशक सिद्धान्त न्याय योग्य नहीं हैं। मौलिक
अधिकारों को न्यायालयों द्वारा लागू करवाया जा सकता है जबकि निर्देशक सिद्धान्तों को
न्यायालयों द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता है।
प्रश्न 29. मौलिक कर्तव्यों का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
नागरिकों के जिन कर्तव्य का वर्णन संविधान में किया गया है, उन्हें मौलिक कर्तव्य कहा
जाता है। भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई थी और मौलिक कर्तव्यों
की व्यवस्था नहीं थी। इस कमी को दूर करने के लिए 42वें संशोधन द्वारा एक नया भाग
IV-A 'मौलिक कर्तव्य' शामिल किया गया है।
प्रश्न 30. निर्वाचन व्यवस्था में तीन प्रस्तावित सुधार बताइए ।
उत्तर-
1. निर्वाचन की घोषणा तथा निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने तक मंत्रियों द्वारा सरकारी
तंत्र के प्रयोग पर पाबन्दी ।
2.
निर्वाचन से पूर्व अधिकारियों की नियुक्ति व स्थानान्तरण पर प्रतिबंध
3.
मतदाता पहचान पत्र के प्रयोग की अनिवार्यता ।
प्रश्न 31. भारत में वयस्क मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 में कहा गया है कि लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं के
सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। 18 वर्ष की आयु प्राप्त भारत का
नागरिक मताधिकार का प्रयोग करेगा। भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक को जाति, पंथ, धर्म,
लिंग, जन्म स्थान के भेदभाव के बिना समान मतदान का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 32. चुनाव घोषणा पत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- प्रायः आम चुनाव के समय प्रत्येक राजनीतिक दल लोगों के साथ कुछ ऐसे वायदे करता है कि यदि वह सत्तारूढ़ हो अर्थात् चुनाव में यदि जनता उसके दल को विजय दिलाती है तो वह दल देश व जनता के हित के लिए क्या-क्या कार्य करेगा। अतः जिस लेख में कोई राजनीतिक दल अपने कार्यक्रमों, नीतियों तथा उद्देश्यों को बतलाता है, उसे चुनाव घोषणा पत्र कहते हैं।