Class XI भूगोल सेट -3 मॉडल प्रश्नपत्र 2021-22 Term-2

Class XI भूगोल सेट -3 मॉडल प्रश्नपत्र 2021-22 Term-2
झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखंड)

Jharkhand Council of Educational Research and Training, Ranchi

(Jharkhand)

द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021 2022

Second Terminal Examination - 2021-2022

मॉडल प्रश्नपत्र

Model Question Paper

सेट-3 (Set-3)

वर्ग- 11

विषयभूगोल

पूर्णांक-40

समय - 1:30 घंटे

सामान्यनिर्देश (General Instructions) -

 परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर दीजिए |

 कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।

 प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न संख्या 7 तक अति लघुत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 1 अंक निर्धारित है।

 प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न संख्या 14 तक लघुत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित है।

 प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित है।

1. महासागरीय जल की औसत लवणता क्या है?

उत्तर: किसी जलाशय (महासागर, सागर, झील, नदी आदि) के जल में घुले हुए लवण की मात्रा जिसे प्रायः कुल जल के प्रति हजारवें भाग (%.) के रूप में व्यक्त किया जाता है। जल के भार और उसमें मिश्रित लवणीय पदार्थों के अनुपात को लवणता या खारापन कहते हैं। महासागरीय जल में लवणता का औसत 35% हैं

2. पृथ्वी के कितने प्रतिशत भाग पर जल है ?

उत्तर: 71% भाग

3. वर्तमान में भारत में कितने राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेश है?

उत्तर: 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

4. पश्चिमी घाट के किन्ही दो दर्रो के नाम लिखिए ?

उत्तर: 1. थाल घाट और 2. पाल घाट

5. अपवाह तंत्र किसे कहते हैं ?

उत्तर: निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को “अपवाह” कहते हैं। इसके अलावा उक्त वाहिकाओं के जाल को "अपवाह तन्त्र" कहा जाता है।

6. नर्मदा नदी का उद्गम स्थान कहाँ है?

उत्तर: नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक है।

7. भारत की तटीय रेखा की लंबाई कितनी है?

उत्तर: भारत की तट रेखा की लम्बाई 7516 किलोमीटर है

8. मौसम और जलवायु में अंतर स्पष्ट करें?

उत्तर: किसी स्थान के मौसम पर वहां के तापमान, आर्द्रता, वायुदाब, बादलों की स्थिति, पवन आदि का प्रभाव पड़ता है जबकि किसी स्थान की जलवायु पर इन सब चीज़ों के साथ साथ अक्षांश, सौरप्रकाश, महासागरीय धाराएं, वायुदाब पट्टियां, तूफान, ऊंचाई आदि कई अन्य चीज़ों का भी प्रभाव पड़ता है।

9. जलोढ़ मिट्टी से आपका क्या तात्पर्य है? यह भारत में कहाँ पाई जाती है?

उत्तर: जलोढ़ मिट्टी, अथवा अलूवियम उस मृदा को कहा जाता है, जो बहते हुए जल द्वारा बहाकर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया हो। यह भुरभुरा अथवा ढीला होता है अर्थात् इसके कण आपस में सख्ती से बंधकर कोई 'ठोस' शैल नहीं बनाते।

यह मिट्टी राजस्थान के उत्तरी भाग, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा असम के आधे भाग में पाई जाती है।

10. हिमालय से निकलने वाली नदियों की तीन विशेषताओं को लिखें।

उत्तर: 1. सालों भर बहती हैं ।

2. अधिकतर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं ।

3. इनमें जल प्रवाह की कभी कमी नहीं होती है। जैसे गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि नदियां ।

11. भारत में कर्क रेखा किन किन राज्यों से होकर गुजरती है ?

उत्तर: कर्क रेखा भारत के 8 राज्यों मिजोरम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से होकर गुज़रती है।

12. मृदा संरक्षण के तीन उपाय लिखे।

उत्तर: 1. मृदा संरक्षण के लिए आवश्यक है कि कीटनाषक रसायनों तथा रासायनिक खादों का उपयोग कम से कम किया जाये।

2. अधिक से अधिक वृक्ष लगाये जायें क्योंकि वृक्ष-मृदा के बहाव को रोकते हैं तथा मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता विकसित करते हैं।

3. ढलान वाले क्षेत्रों में घासें तथा पेड़ लगाना।

13. महासागरीय नितल के उच्चावच का वर्णन करें?

उत्तर: महासागर प्रथम श्रेणी का उच्चावच है। यह पृथ्वी के गहरे क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत है तथा इसमें पृथ्वी की विशाल जलराशि संचित है। महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे से स्वाभाविक रूप में इतने करीब हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है। फिर भी भूगोलविदों ने पृथ्वी के महासागरीय भाग को पांच महासागरों में विभाजित किया है। जिनके नाम हैं- प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, दक्षिणी एवं आर्कटिक।

जिस प्रकार स्थलीय भाग पर पर्वत, पठार व मैदान आदि पाए जाते हैं, उसी प्रकार महासागरीय नितल पर भी विभिन्न प्रकार की आकृतियां पाई जाती हैं।

महासागरीय नितल अथवा अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है-(i) महाद्वीपीय मग्नतट (ii) महाद्वीपीय मग्नढाल (iii) गहरे समुद्री मैदान तथा (iv) महासागरीय गर्त।

14. लाल मृदा के विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर:

लाल मिट्टी भारत के कुछ राज्यों जैसे उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में अधिक पायी जाती है।

इस मिट्टी में लौह तत्वों की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसका रंग लाल होता है।

यह मिट्टी कपास, दालें, चावल, बाजरा, गेहूं आदि के लिए अच्छी मानी जाती है।

हमारे देश के 18.6% भाग में यह मिट्टी पायी जाती है।

15. हिमालय अपवाह तंत्र एवं प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र में कोई पाँच अंतर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर:

क्र०सं०

आधार

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ

1.

उत्पत्ति

हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियों का जन्म एवं उत्पत्ति हिमानियों (glaciers) से हुई है।

प्रायद्वीपीय भारत की सभी नदियाँ वर्षाजल या भूमिगत जल पर निर्भर हैं, क्योंकि यहाँ हिमपात नहीं होता है।

2.

जल उपलब्धता

हिमाच्छादित प्रदेशों से निकलने के कारण हिमालय से निकलने वाली नदियाँ वर्षभर सततवाहिनी एवं सदानीरा रहती हैं।

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ निम्न पहाड़ियों तथा पठारों से निकलती हैं। अतः वर्षभर जल की आपूर्ति होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती हैं। इन नदियों में वर्षा ऋतु में ही जल रहता है जिस कारण ये सततवाहिनी एवं सदानीरा नहीं हैं।

3.

परिवहन

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ समतल मैदानी क्षेत्रों में बहुत ही मन्द गति से प्रवाहित होती है। ये नदियाँ जल परिवहन की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ असमतल, ऊबड़-खाबड़ पथरीले भागों में तीव्र गति से प्रवाहित होती हैं। अत: प्रवाह क्षेत्र की विषमता के कारण जल परिवहन की दृष्टि से अनुपयोगी हैं।

4.

अप्रवाह क्षेत्र

हिमालय से निकलने वाली नदियों का अपवाह क्षेत्र विशाल है; जैसे- गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों का।

प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के अपवाह क्षेत्र बहुत ही छोटे हैं; जैसेकृष्णा एवं कावेरी नदियो के।

5.

स्थलाकृति

ये नदियाँ काँप मिट्टी का निक्षेप कर विशाल, समतल तथा उपजाऊ मैदानों का निर्माण करती हैं।

ये नदियाँ छोटे-छोटे, परन्तु उपंजाऊ डेल्टाई मैदानों का निर्माण करती हैं।

 16. भारतीय जलवायु के मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: भारत की स्थिति भूमध्य रेखा के उत्तर में है और कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है। कर्क रेखा देश को दो भागों में विभाजित कर देती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबन्ध तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भारत में उत्तर की ओर हिमालय पर्वत-श्रेणी तथा दक्षिण-पूर्वी एवं दक्षिण-पश्चिमी दिशाओं में हिन्द महासागर की स्थिति है, जिन्होंने इसकी जलवायु को बहुत प्रभावित किया है। इसी कारण भारत में विविध प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। वस्तुतः भारत की जलवायु पूर्णतः मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। जिन भागों में मानसूनों के मार्ग में कोई अवरोध उपस्थित होता है, उन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है; जैसे–पश्चिमी घाट तथा हिमालय पर्वत के दक्षिणी ढालों पर।

एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में भारत के पश्चिम में स्थित थार मरुस्थल में इतनी प्रचण्ड गर्मी पड़ती है कि तापमान प्रायः 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, जब कि शीत ऋतु में कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र के लेह नगर में इतनी कड़ाके की ठण्ड पड़ती है कि तापमान जमाव बिन्दु से 45° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है; अर्थात् -45° सेल्सियस तक चला जाता है। केरल और अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में 7° या 8° सेल्सियस का अन्तर पाया जाता है। इसके विपरीत थार मरुस्थल में यदि दिन का तापमान 50° सेल्सियस रहता है तो रात में यह जमाव बिन्दु 0° तक पहुँच सकता है। जब हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में हिमपात होता है, तब शेष भारत में वर्षा की बौछारें पड़ती हैं। कुछ विदेशी विद्वानों ने भारत को अनेक जलवायु वाला देश बताया है। ब्लैनफोर्ड (Blanford) का कथन है कि “हम भारत की जलवायुओं के विषय में कह सकते हैं, जलवायु के विषय में नहीं, क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में जलवायु की इतनी विषमताएँ नहीं मिलतीं जितनी अकेले भारत में प्रसिद्ध जलवायु विज्ञानवेत्ता मार्सडेन ने भी कहा है कि “विश्व की समस्त जलवायु की किस्में भारत में पाई जाती हैं।” स्पष्ट है कि भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान, वायुदाब तथा पवनें एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारत में प्रमुख रूप से दो प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं—(1) सम और (2) विषम।

1. समजलवायु- सम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में न अधिक गर्मी पड़ती है। और ने सर्दियों में अधिक सर्दी। जहाँ तापमान वर्षभर लगभग समान रहता है। ऐसी जलवायु प्रायः . समुद्र के तटीय प्रदेशों में पाई जाती है। समुद्र के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्रों में सम जलवायु पाई जाती है। ऐसी जलवायु में दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर बहुत ही कम पाया जाता है। केरल के तिरुवनन्तपुरम् में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

2. विषम जलवायु- विषम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में अत्यधिक गर्मी तथा सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है। जहाँ तापमान वर्षभर असमान रहता है। ऐसी जलवायु महाद्वीपों के आन्तरिक भागों अथवा समुद्र से दूर के भागों में पाई जाती है। सूर्य की किरणों से जल की अपेक्षा धरती दिन में जल्दी गर्म और रात में जल्दी ठण्डी हो जाती है। अत: धरती के प्रभाव के कारण विषम जलवायु का जन्म होता है। ऐसी जलवायु में दैनिक तापान्तर और वार्षिक तापान्तर अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। जोधपुर (राजस्थान) तथा अमृतसर (पंजाब) में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

17. काली मिट्टी किसे कहते हैं ? इसके निर्माण एवं विशेषता का वर्णन करें ।

उत्तर: काली मिट्टी- इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी और कपास की मिट्टी भी कहा जाता है। इसमें लाइम, आयरन, मैग्नेशियम और पोटाश होते हैं लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम होते हैं। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) के कारण होता है।

निर्माण- इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है।

विशेषता- वर्षा होने पर यह चिपचिपी-सी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी का विस्तार दकन ट्रैप के उत्तर-पश्चिमी भागों में लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों में यह मिट्टी विस्तृत है। इस मिट्टी का विस्तार दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी है।

इस मिट्टी में कपास का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होने के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके प्रमुख पोषक तत्त्व हैं। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक तत्त्वों की कमी होती है। ग्रीष्म ऋतु में इस मिट्टी में गहरी दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी में कपास, गन्ना, मूंगफली, तिलहन, गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, तम्बाकू, सोयाबीन आदि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में किया जाता है।

18. महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए?

उत्तर: महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

सागरीय जल की सतही परतों की लवणता मुख्य रूप से वाष्पीकरण और वर्षा पर निर्भर करती है।

ताजा जल अंतः प्रवाह तटीय क्षेत्रों की लवणता नदियों से आने वाले ताजे जल के अंतः प्रवाह से प्रभावित  होती है।

ध्रुवीय क्षेत्रों में लवणता जल के जमने और बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया से प्रभावित होती है।

पवनें जैसे की स्थाई पवनें अन्य क्षेत्रों में पानी का स्थानांतरण कर किसी क्षेत्र की लवणता को प्रभावित करती है।

समुद्री धाराएं भी लवणता के परिवर्तन में योगदान देती है।

लवणता, तापमान और पानी का घनत्व जैसे कारक अंतर संबंधित है. इसलिए तापमान या घनत्व में परिवर्तन संबंधित क्षेत्र की लवणता को प्रभावित करता है।

19. भारत के मानचित्र में निम्नलिखित को दर्शाइए:

क. गोदावरी एवं कृष्णा नदी

ख. पश्चिमी घाट

ग. चिल्का झील

घ. अरब सागर

ड. कच्छ की खाड़ी

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare
Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.