झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021 2022)
सेट-
03
कक्षा- 11 |
विषय- हिंदी (कोर) |
समय 1 घंटा 30 मिनट |
पूर्णांक - 40 |
सामान्य
निर्देश-:
→ परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर
दें ।
→ इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों
का उत्तर देना अनिवार्य है।
→ सभी
प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
→ प्रश्नों
के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।
खंड 'क' (अपठित बोध)
01. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 02+02+02=
06
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस - वसंत जाने पर ?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।
(क) देह सुखी होने पर भी मन की क्या दशा रहती हैं?
उत्तर: “देह सुखी होने पर भी मन के दुख का अंत नहीं' कथन के द्वारा
कवि हमें अतीत की यादों से मिलने वाली पीड़ा की ओर ध्यान दिलवाना चाहते हैं। उनका मानना
है कि अतीत की सुखद यादों से मन को पीड़ा मिलती है और व्यक्ति के पास सुख-सुविधाएँ
होने पर भी केवल शारीरिक सुख तो प्राप्त हो जाता है, किंतु मन में अतीत की सुखद स्मृतियाँ
पीड़ा बनकर चुभती रहती हैं, जिनका अंत दिखाई नहीं देता।
(ख) कवि ने शरद ऋतु और बसंत का उदाहरण देकर क्या कहना चाहा है?
उत्तर: कवि के मन को इस बात का दुख है कि सर्द ठंडी रात में चाँद ने
अपनी चाँदनी नहीं बिखेरी और वो उसका आनंद नहीं ले पाया। कवि कहना चाहता है कि वसंत
ऋतु के बीच जाने पर यदि फूल खिले तो उनका कोई अर्थ नहीं रह जाता। जो सुख प्राप्त होना
है वह समय पर ही प्राप्त हो जाए तभी उसका सच्चा आनंद है। समय बीत जाने के बाद वस्तु
की उपलब्धि का कोई महत्व नहीं रहता और लेकिन कभी-कभी समय बीत जाने के बाद भी उपलब्धि
मनुष्य को सुख प्रदान करती है, लेकिन जो सच्चा सुख समय के भीतर ही प्राप्त हो जाए वही
सबसे श्रेष्ठ होता है।
(ग) कवि किस मनःस्थिति में रहता है ?
उत्तर: ऊपर से देखने पर तो कवि हँसने की मनःस्थिति में दिखाई देता है,
पर उसके अंदर दुख की भावना छिपी रहती है। यह भावना उसे भीतर ही भीतर रुलाती है। इसका
कार! यह है कि उसके हृदय में प्रेम की सुखद यादें बसी हैं। वे यादें उसे रुलाती हैं।
अथवा
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
पेट भरने और तन ढकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है।
पेट भरा और तन ढँका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ
सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना
पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों
से भी मिला है, जिन्होंने तथ्य- विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं,
बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को
देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।
(क) हमें अपनी सभ्यता का अंश कैसे आदमियों से मिलता है ?
उत्तर: हमें अपनी सभ्यता का
अंश संस्कृत आदमियों से मिलता है
(ख) मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान किसका परिचायक है?
उत्तर: मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान उनको ज्ञानेप्सा और सहज प्रवृत्ति
का परिचायक है।
(ग) 'आज के ज्ञान' का आशय क्या है?
उत्तर: आज हम जिस ज्ञान की बात करते हैं,यह जो आधुनिक सुख-सुविधा का
अपने जीवन में प्रयोग कर रहे हैं वह मनीषीयो की ही देन है, क्योंकि आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।
खंड - 'ख'
( अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन )
02. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
05+05=10
(क) 'पंचायत चुनाव' अथवा 'समाचार पत्र' विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर: (क) 'समाचार पत्र'
भूमिका-समाचार-पत्र वह कड़ी है जो हमें शेष दुनिया से जोड़ती है। जब
हम समाचार-पत्र में देश-विदेश की खबरें पढ़ते हैं तो हम पूरे विश्व के अंग बन जाते
हैं। इससे हमारे हृदय का विस्तार होता है।
लोकतंत्र का प्रहरी-समाचार-पत्र लोकतंत्र का सच्चा पहरेदार है। उसी
के माध्यम से लोग अपनी इच्छा, विरोध और आलोचना प्रकट करते हैं। यही कारण है कि राजनीतिज्ञ
समाचार-पत्रों से बहुत डरते हैं । नेपोलियन ने कहा था-"मैं लाखों विरोधियों की
अपेक्षा इन समाचार-पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ समाचार-पत्र जनमत तैयार करते हैं।
उनमें युग का बहाव बदलने की ताकत होती है। राजनेताओं को अपने अच्छे-बुरे कार्यों का
पता इन्हीं से चलता है।
प्रचार का उत्तम माध्यम-आज प्रचार का युग है। यदि आप अपने माल को, अपने
विचार को, अपने कार्यक्रम को या अपनी रचना को देशव्यापी बनाना चाहते हैं तो समाचार-पत्र
का सहारा लें। उससे आपकी बात शीघ्र सारे देश में फैल जाएगी। समाचार-पत्र के माध्यम
से रातों-रात लोग नेता बन जाते हैं या चर्चित व्यक्ति बन जाते हैं। यदि किसी घटना को
अखबार की मोटी सुर्खियों में स्थान मिल जाए तो वह घटना सारे देश का ध्यान अपनी ओर खींच
लेती है। देश के लिए न जाने कितने नवयुवकों ने बलिदान दिया, परन्तु जिस घटना को पत्रों
में स्थान मिला, वे घटनाएँ अमर हो गई।
व्यापार में लाभ-समाचार-पत्र व्यापार को बढ़ाने में परम सहायक सिद्ध
हुए हैं। विज्ञापन की सहायता से व्यापारियों का माल देश में ही नहीं विदेशों में भी
बिकने लगता है। रोजगार पाने के लिए भी अखबार उत्तम साधन है। हर बेरोजगार का सहारा अखबार
में निकले नौकरी के विज्ञापन होते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी या गैर-सरकारी फर्मे अपने
लिए कर्मचारी ढूँढ़ने के लिए अखबारों का सहारा लेती है। व्यापारी नित्य के भाव देखने
के लिए तथा शेयरों का मूल्य जानने के लिए अखबार का मुँह जोहते हैं।
जे, पार्टन का कहना है-'समाचार-पत्र जनता के लिए विश्वविद्यालय हैं।'
उनमें हमें केवल देश-विदेश की गतिविधियों की जानकारी ही नहीं मिलती, अपितु महान विचारकों
के विचार पढ़ने को मिलते हैं। उनसे विभिन्न त्योहारों में महापरुषों के महत्त्व का
पता चलता है। महिलाओं को घर-गहस्थी सम्हालने के नए-नए नुस्खों का पता चलता हैं । प्रायः
अखबार में ऐसे कई स्थायी स्तम्भ होते हैं जो हमें विभिन्न जानकारियाँ देते हैं।
आजकल अखबार मनोरंजन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ चले हैं। उनमें नई-नई
कहानियाँ, किस्से, कविताएँ तथा अन्य बालोपयोगी साहित्य छपता हैं। दरअसल, आजकल समाचार-पत्र
बहुमुखी हो गया है । उसके द्वारा चलचित्र, खेलकूद, दूरदर्शन, भविष्य-कथन, मौसम आदि
की अनेक जानकारियाँ मिलती हैं।
समाचार-पत्र के माध्यम से आप मनचाहे वर-वधू ढूँढ सकते हैं मकान, गाड़ी,
वाहन खरीद-बेच सकते हैं । खोए गए बन्धु को बुला सकते हैं। अपना परीक्षा-परिणाम जान
सकते हैं। इस प्रकार समाचार-पत्रों का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है।
(ख) कूड़े-कचरे के अंबार एवं बजबजाती नालियों से उत्पन्न खतरा को बतलाते
हुए नगरपालिका अध्यक्ष को एक पत्र लिखें।
उत्तर: सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकरी
राँची नगर निगम, राँची।
विषय-कूड़े-कचरे के अंबार एवं बजबजाती नालियों से उत्पन्न खतरा को बतलाने
के संबंध में ।
श्रीमान्
हम आपका ध्यान राँची
शहर के अशोक नगर महोल्ले की सफाई संबंधी दुर्व्यवस्था की आरे खींचना चाहते हैं। आपको
यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे मुहल्ले की सफाई नगर निगम का कोई सफाई-कर्मचारी गत
दस दिनों से काम पर नहीं आ रहा है। इस कारण आस-पास कूड़ा-कचरा डालने के लिए कोई निश्चित
स्थान नहीं है। जगह-जगह गंदगी, कूड़ा-कचरा का ढेर व बजबजाती नालियों से वाल्टरगंज कस्बा
के लोग ही नहीं आने-जाने वाले लोग भी परेशान हैं। जलनिकासी के लिए बनाई गई नालियां
सफाई न होने से बजबजाकर ओवरफ्लो हो रही हैं। नाली का पानी सड़क पर फैल जाता है। स्थिति
यह हो गई है कि यहाँ का वातावरण अत्यन्त दुर्गन्धमय एवं दूषित हो गया है। रोगों के
कीटाणु प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।
अतः हम सभी मुहल्ले वासी की सविनय प्रार्थना है कि सफाई का नियमित प्रबंध
करें। आपकी ओर से उचित कार्यवाही के लिए हम आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद
भवदीया
दीपक कुमार
दिनांक-20 मार्च, 2022
+2 उ०वि० गोपीकांदर
(ग) निकट के सरकारी अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार और सुधार
के लिए संबंधित अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर: सेवा में,
मुख्य स्वास्थ्य पदाधिकारी
........(स्थान का
नाम )।
महोदय,
मै आपका ध्यान सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था की ओर दिलाना चाहता
हूँ। अधिकांश अस्पतालो में सुविधाओं का घोर अभाव है। आकस्मिक सेवाएँ तो नहीं के बराबर
है। पिछले सपह ही हमारे मुहल्ले के एक युवक को दुर्घटना में गंभीर चोटें आयीं लोग उसे
स्थानीय चिकित्सा केन्द्र में ले गये। वहाँ कोई ड्यूटी डाॅक्टर नही मिला। रक्तस्त्र्राव
रोकने के लिए साफ बैंडेज और रूई भी परीजनों को बाजार से लाने को कहा गया। दवाएँ थीं
तो वे भी एक्सपायरी। डाक्टर के इन्तजार में जब मरीज की स्थिति बिगड़ने लगी तो आनन-फानन
उसे पास के शहर में प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया और किसी तरह उसकी जान बची।
महोदया से आग्रह है कि सरकारी अस्पतालोें की स्थिति में सुधार और सुविधाओं
कें विस्तार के लिए कारगर कदम उठाये जायँ। समर्थ लोगों के लिए तो प्राईवेट अस्पतालों
की कमी नहीं। बेचारे गरीब कहाँ जाएँ।
धन्यवाद।
भवदीय
दिनांक............
नाम..................
पता..............।
(घ) समाचार लेखन के लिए आवश्यक तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर: समाचार के प्रमुख तत्त्वों में नवीनता, निकटता, प्रभाव, जनरूचि,
टकराव, महत्त्वपूर्ण लोग, उपयोगी जानकारियाँ, विलक्षणता, पाठकवर्ग और नीतिगत ढाँचा
शामिल हैं। किसी घटना, विचार और समस्या के समाचार बनने की संभावना तब और बढ़ जाती है
जब उपर्युक्त तत्त्वों में से कुछ या सभी तत्त्व शामिल हों।
(i) नवीनता : किसी घटना, विचार और समस्या का समाचार बनने के लिए यह
आवश्यक है कि वह नया और ताजा हो। समाचार के संदर्भ में नवीनता का अभिप्राय उसका सम-सामयिक
अथवा समयानुकूल होना जरूरी
(ii) निकटता : यह सामान्य सी बात है कि सबसे निकट के लोग, वस्तु या
घटना से ही, मनुष्य का विशेष लगाव होता है, अथवा उसमें उसकी रूचि होती है। निकटता के
संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि समाचार के लिए केवल भौगोलिक निकटता ही महत्त्व की
नहीं है बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक निकटता का संबंध भी महत्त्वपूर्ण होता है।
(iii) प्रभाव : किसी धाटना से जितने ही अधिक लोग प्रभावित होंगे, उससे
उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
(iv) जनरूचि : कोई घटना तभी समाचार बनता है जब पाठकों/दर्शका या श्रोताओं
का एक बहुत बड़ा समूह उसके बारे में जानने में रूचि रखता है। यह जनरूचि समाचार का एक
ऐसा तत्त्व है जिसको लक्ष्य में रखकर ही का समाचारपत्र किसी घटना-विशेष को समाचार बनाकर
अपने समाचार पत्र छापते हैं।
(v) पाठक वर्ग: साधारणतया प्रत्येक समाचार संगठन, दूरदर्शन चैनल या
रेडियो आदि के एक खास वर्ग के पाठक/दर्शक और श्रोता होते हैं। समाचार माध्यम समाचारों
का चयन करते समय अपने पाठकों/दर्शकों और श्रोताओं का रूचियों का खास ख्याल रखते हैं।
खंड - ‘ग’ (पाठ्यपुस्तक)
03. निम्नलिखित में से किसी एक का काव्य-सौंदर्य लिखिए- 05
(क) थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास!
उत्तर: प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित
कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से उद्धृत है। यह कविता संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा
रचित है। यह कविता संथाली भाषा से अनूदित है। कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक
से बचाने का आहवान करती है।
व्याख्या-कवयित्री कहती है कि आज चारों तरफ अविश्वास का माहौल है। कोई
किसी पर विश्वास नहीं करता। अत: ऐसे माहौल में हमें थोड़ा-सा विश्वास बचाए रखना चाहिए।
हमें अच्छे कार्य होने के लिए थोड़ी-सी उम्मीदें भी बचानी चाहिए। हमें थोड़े-से सपने
भी बचाने चाहिए ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार कार्य कर सकें। अंत में कवयित्री कहती
है कि हम सबको मिलकर इन सभी चीजों को बचाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि आज आपाधापी
के इस दौर में अभी भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है। हमारी सभ्यता व संस्कृति
की अनेक चीजें अभी शेष हैं।
काव्य सौंदर्य:
1. कवयित्री का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है।
2. ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में खुला आहवान है।
3. ‘थोड़ा-सा’ की आवृत्ति से भाव-गांभीर्य आया है।
4. मिश्रित शब्दावली है।
5. भाषा में प्रवाह है।
6. काव्यांश छंदमुक्त एवं तुकांतरहित है।
(ख) कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं
शहर के लिए।
उत्तर: प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित
‘गजल’ से उद्धृत हैं। यह गजल दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है। यह उनके गजल संग्रह ‘साये
में धूप’ से ली गई है। इस गजल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा
है, उसे खारिज करना और नए विकल्प की तलाश करना।
व्याख्या-कवि कहता है कि नेताओं ने घोषणा की थी कि देश के हर घर को
चिराग अर्थात् सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करवाएँगे। आज स्थिति यह है कि शहरों में भी चिराग
अर्थात् सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। नेताओं की घोषणाएँ कागजी हैं। दूसरे शेर में, कवि
कहता है कि देश में अनेक संस्थाएँ हैं जो नागरिकों के कल्याण के लिए काम करती हैं।
कवि उन्हें ‘दरख्त’ की संज्ञा देता है। इन दरख्तों के नीचे छाया मिलने की बजाय धूप
मिलती है अर्थात् ये संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार
फैला हुआ है। कवि इन सभी व्यवस्थाओं से दूर रहकर अपना जीवन बिताना चाहता है। ऐसे में
आम व्यक्ति को निराशा होती है।
काव्य सौंदर्य:
1. कवि ने आजाद भारत के कटु सत्य का वर्णन किया है। नेताओं के झूठे आश्वासन
व संस्थाओं द्वारा आम आदमी के शोषण के उदाहरण आए दिन मिलते हैं।
2. चिराग, मयस्सर, दरखत, साये आदि उर्दू शब्दों के प्रयोग से भाव में गहनता
आई है।
3. खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
4. ‘चिराग’ व ‘दरख्त’ आशा व सुव्यवस्था के प्रतीक हैं।
5. अंतिम पंक्ति में निराशा व पलायनवाद की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
6. लक्षणा शक्ति का निर्वाह है।
7. ‘साये में धूप लगती है’ में विरोधाभास अलंकार है।
04. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
03+03= 06
(क) 'चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती' पाठ में पूर्वी प्रदेशों की
स्त्रियों की किस विडंब- नात्मक स्थिति का वर्णन है?
उत्तर: पूर्वी प्रदेश में स्त्रियों को ऐसा वातावरण ही नहीं मिलता कि
वे पढ़ाई-लिखाई के सही महत्त्व को समझ सकें। वे कूप मंडूक की भाँति अपने कामों में
ही लगी रहती हैं। वे बाहरी दुनिया से बेखबर हैं। उनकी समझ और सोच का विकास नहीं हो
पाता। कई बार अपनी इस कमजोरी के कारण उन्हें समाज और परिवार में वह मान-सम्मान नहीं
मिल पाता जो मिलना चाहिए।
(ख) दुष्यंत कुमार खुदा के संबंध में लोगों के किस विचार से प्रसन्न
हैं?
उत्तर: दुष्यंत कुमार खुदा के विचार से इसलिए प्रसन्न हैं, क्योंकि
उनका मानना है कि भले ही खुदा का अस्तित्व नहीं है, यह मात्र कल्पना है, लेकिन आम आदमी
खुदा यानी ईश्वर के बारे में लुभावनी कल्पनाएं कर करके उन्हीं कल्पना के सारे अपना
जीवन काट लेता है। इस तरह उसके जीवन में एक आशा बनी रहती है। भले ही खुदा ना मिले लेकिन
इस बहाने लोगों को एक सपना तो मिलता है। लोगों को सपना देखना नही छोड़ने चाहिये।
(ग) संथाल बस्तियों की किन विशेषताओं का ज्ञान आपको 'आओ मिलकर बचाएँ'
कविता के माध्यम से हुआ?
उत्तर: संथाल बस्तियाँ आदिवासियों की बस्तियाँ हैं। ये लोग अपनी मिट्टी
और प्रकृति से जुड़े हुए हैं। इनकी जिंदगी में आडंबर और दिखावे के लिए कहीं भी स्थान
नहीं है। ये मन से भोले, अक्खड़ और जुझारू होते हैं। गाना और नाचना इनकी दिनचर्या का
अभिन्न अंग है। परस्पर प्रेम और विश्वास इनकी जीवन-शैली है।
05. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
03+03= 06
(क) गाँव और शहर दोनों जगहों पर चलने वाली मोहन के जीवन संघर्ष में
क्या अंतर है?
उत्तर: गाँव और शहर दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में
बहुत फर्क है। गाँव का मोहन विद्या प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा था। गाँव में
उसका एक होनहार बालक के रूप में सम्मान था। उसने अपनी एक पहचान बनाई थी। मास्टर, पिताजी
तथा स्वयं उसको अपने से उम्मीदें थीं। उसे बस अपने सपनों को पाने के लिए प्रयास करना
था। वह प्रयास कर भी रहा था यदि उसके साथ प्राकृतिक आपदा के समय वह दुर्घटना नहीं घट
जाती। शायद वह गाँव के दूसरे विद्यालय में जाकर अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकता था मगर
ऐसा नहीं हुआ। उस एक घटना से उसके जीवन की दिशा बदलकर रख दी। उसके विद्यार्थी संघर्ष
को विराम लग गया और वह गाँव से निकलकर शहर आ गया। शहर में जो संघर्ष था, वह चारों ओर
से था। अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष दूसरों के घरों में दिए जाने वाले काम को करने का
संघर्ष, अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संघर्ष, दूसरे लोगों के घर में रहकर उनके द्वारा
किए जाने वाले खराब व्यवहार से संघर्ष, नौकरी प्राप्त करने का संघर्ष। इन संघर्षों
ने होनहार बालक मोहन का अंत कर दिया। जो बालक निकला, वह एक परिपक्व और दूसरी सोच का
बालक था। भविष्य के सुनहरे सपने कहीं हवा हो चुके थे। जीवन की परिभाषा बदल चुकी थी।
(ख) रजनी के चरित्र की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर: सामान्यतः स्त्री का चरित्र कोमल, सहनशील, कमजोर तथा शांत व्यक्तित्व
का माना जाता है| जबकि रजनी का चरित्र ठीक इसके विपरीत है | वह एक साहसी, शक्तिशाली
तथा अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाली महिला है| प्रायः घरेलू नारी अन्याय को सहन
कर चुप रहती है, लेकिन रजनी अन्याय के विरूद्ध अकेले लड़ जाती है | वह अध्यापकों द्वारा
ट्यूशन लेने जैसी सामाजिक समस्या को भी सबके सामने लाकर उसका समाधान निकालती है।
(ग) भारत माता के प्रति नेहरू जी की क्या अवधारणा थी ?
उत्तर: भारत माता के प्रति नेहरू जी की अवधारणा यह थी कि यहाँ की धरती,
पहाड़, जंगल, नदी, खेत आदि के साथ-साथ यहाँ के करोड़ों निवासी भी भारत माता हैं। भारत
जितना भी हमारी समझ था उससे भी परे जितना है उससे कहीं अधिक व्यापक है। ‘भारत माता
की जय’ से मतलब यहाँ के लोगों की जय से है।
06. 'मन्नू भंडारी' अथवा 'दुष्यंत कुमार की किन्हीं दो रचनाओं के नाम
लिखिए। 02
उत्तर: 'मन्नू भंडारी': 1. एक प्लेट सैलाब 2. आंखों देखा झूठ
'दुष्यंत कुमार:
1. सूर्य का स्वागत 2. आवाज़ों के घेरे
07. घरेलू नौकरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ? बेबी
हालदार की 'आलो आँधारि के आधार पर उत्तर दें। 03
उत्तर: इस पाठ से घरेलू नौकरों के घरों में काम करने वालों के जीवन
की निम्नलिखित जटिलताओं का पता चलता है –
1. इन लोगों को आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती।
2. इन्हें गंदे व सस्ते मकान किराए पर मिलते हैं क्योंकि ये अधिक किराया
नहीं दे सकते।
3. इनका शारीरिक शोषण भी किया जाता है।
4. इनके काम के घंटे भी अधिक होते हैं।
अन्य समस्याएँ
1. आर्थिक तंगी के कारण इनके बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं।
2. चिकित्सा सुविधा व खाने के अभाव में ये अशिक्षित रहते हैं।
अथवा,
तातुश ने बेबी हालदार को लेखन के लिए क्यों और कैसे बाध्य किया?
उत्तर: अब तातुश लेखिका का बहुत अधिक ध्यान रखने लगे। जब भी लेखिका
पुस्तकों की अलमारी की साफ – सफाई करती तो वह पुस्तकों को उत्सुकता बस देखने लगती थी।
उनकी पुस्तकों में रूचि देखकर तातुश उन्हें पढ़ने -लिखने के लिए उत्साहित करने लगे
और तरह-तरह की किताबें उन्हें पढ़ने को देने लगे।एक दिन तातुश ने लेखिका को एक कॉपी
और पेन ला कर दिया और उनसे कहा कि वो समय निकालकर इसमें रोज कुछ ना कुछ अवश्य लिखें
। उन्होंने लेखिका को अपने जीवन की कहानी लिखने के लिए भी प्रेरित किया। समय की कमी
के कारण हालांकि उनके लिए लिखना मुश्किल था लेकिन तातुश के कहने पर वो रोज कुछ ना कुछ
उस कॉपी में लिखने लगी। धीरे-धीरे यह उनकी आदत में शामिल हो गया।
तातुश हमेशा लेखिका को लिखने – पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने
लेखिका द्वारा लिखे गए कुछ लेख अपने मित्रों को भी दिखाये। इसके बाद उनके मित्र भी
लेखिका को लिखने के लिए प्रेरित करने लगे। तातुश की दरियादिली व सहायता के कारण अब
लेखिका का पूरा जीवन ही बदल गया था। अब वह एक साधारण धरेलू नौकरानी से लेखिका बन गई
।
08. जेठू ने बेबी को यह क्यों कहा कि तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती
हो ? 02
उत्तर: रचना संसार और इसमें रहने वाले लोगों की अपनी एक अलग ही जीवन-शैली
है। ये लोग लेखन कार्य के लिए सारी सारी रात जाग सकते हैं, जागते हैं। तुम दूसरी आशापूर्णा
देवी बन सकती हो’–जेठू का यह कथन बेबी को यही बात समझाने के लिए था। जेठू ने यह भी
समझाया था कि आशापूर्णा देवी भी सारा काम-काज निबटाकर रात-रात भर चोरी-चोरी लिखती थी,
जब लोग सो जाते थे। यह सच है रचना संसार में लेखन का एक नशा होता है, जैसा मुंशी प्रेमचंद
को भी था, जो कई मील पैदल चलकर आते, खाने-पीने का ठिकाना न था, फिर भी डिबरी की रोशनी
में कई-कई घंटे बैठकर लेखन कार्य करते थे। ऐसी ही बेबी हालदार ने भी किया। जब सारी
झुग्गी बस्ती सो जाती तो वह लेखन कार्य करती रहती थी।
अथवा
तातुश के घर काम करने वाली महिला ने लेखिका को गालियाँ क्यों दी?
उत्तर: बेबी जब तातुश के घर पहुँची तो उसे पता चला कि कोई महिला वहाँ काम कर रही है। तातुश ने उस महिला को काम से हटाकर बेबी को काम पर रख लिया। उस महिला ने बेबी के प्रति रोष प्रकट करते हुए गालियाँ देनी शुरू कर दीं। बेबी ने कहा भी कि उसे नहीं पता था कि यहाँ पहले से कोई काम कर रहा है। लेकिन वह बक बक करती चली गई।