12.औपनिवेशिक शहर - नगर-योजना, स्थापत्य
उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)
प्रश्न 1. औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे
?
उत्तर:
ब्रिटिश औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स शहरीकरण के विकास की गति को समझने के लिए सँभाल
कर रखे जाते थे। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं से समझ सकते हैं
1.
जनसंख्या में क्यों तथा किस गति से वृद्धि हो रही है?
2.
शहरी तथा ग्रामीण जनसंख्या का क्या प्रतिशत है? यदि इसमें कोई परिवर्तन हो रहा है तो
क्यों हो रहा है?
3.
शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ किस प्रकार संचालित हो रही हैं तथा उनमें क्या परिवर्तन
हो रहा है?
4.
व्हाइट तथा ब्लैक टाउन उस समय नस्लीय भेदभाव के प्रतीक थे। यहाँ किस प्रकार की गतिविधियाँ
हो रही हैं ? यह अवश्य ज्ञात किया जाता था।
5.
जनसंख्या के आँकड़े नागरिकों की मृत्यु दर तथा बीमारियों का पता लगाने में सहायक होते
हैं।
6.
ये आँकड़े स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते थे।
7.
इन आँकड़ों से कानून व्यवस्था बनाये रखने में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है।
8.
शहर में समाज का जीवन कैसा है तथा उसमें किस प्रकार का परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है?
9.
औपनिवेशिक शहरों के और अधिक विकास में क्या-क्या तथा किस प्रकार की योजनाएँ सहायक हो
सकती हैं ?
10.
यदि शहरों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है तो उनमें किस प्रकार की सहायता की आवश्यकता
है?
प्रश्न 2. औपनिवेशिक सन्दर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए
जनगणना सम्बन्धी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:
शहरीकरण के रुझानों को औपनिवेशिक सन्दर्भ में समझने के लिये जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े
बहुत उपयोगी होते हैं। इनके प्रमुख उपयोग अग्रलिखित हैं -
1.
जनगणना सम्बन्धी आँकड़े शहरीकरण की गति को दर्शाते हैं।
2.
इन आँकड़ों से हमें ज्ञात होता है कि 1800 ई. के उपरान्त शहरीकरण की गति अत्यधिक धीमी
रही।
3.
19वीं शताब्दी के प्रथम दो दशकों में शहरी जनसंख्या का अनुपात लगभग स्थिर ही रहा था।
4.
जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े नागरिकों के लिंग, जाति, धर्म, शिक्षा तथा जीवन-स्तर की सूचनाएँ
प्रदान करते हैं।
5.
ये आँकड़े हमें उस समय के व्यक्तियों के रोजगार तथा व्यवसायों के विषय में भी सूचनाएँ
प्रदान करते हैं।
6.
ये आँकड़े व्यक्तियों के स्वास्थ्य के स्तर को भी बताते हैं।
7.
आँकड़े नागरिकों की जन्म-दर तथा मृत्यु के प्रतिशत व परिवर्तन को भी दर्शाते हैं।
8.
जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े श्वेत व अश्वेत टाउन के निर्माण, विस्तार एवं उनके जीवन सम्बन्धी
स्तर, भयंकर बीमारियों के जनसंख्या पर पड़े दुष्प्रभाव आदि को जानने में भी उपयोगी
होते हैं।
प्रश्न 3. 'व्हाइट' और 'ब्लैक' टाउन शब्दों का क्या महत्व था ?
उत्तर:
वस्तुत: व्हाइट और ब्लैक नस्लीय भेदभाव तथा गोरे-काले के प्रतीक थे। इसमें अंग्रेज
अपने को व्हाइट तथा भारतीयों को ब्लैक कहते थे तथा उनके अनुसार उनके रहने के निवास
भी पृथक्-पृथक् थे।
व्हाइट
टाउन (White Town): औपनिवेशिक काल में व्हाइट टाउन अंग्रेजों के रहने की बस्तियों को
कहा जाता था तथा ये विधिवत् योजना के अनुरूप बनते थे। यहाँ गोरों के दैनिक जीवन से
सम्बन्धित महत्वपूर्ण एवं सांस्कृतिक तत्व इत्यादि होते थे। यहाँ जीवन की सभी मूलभूत
सुविधायें प्रदान की जाती थीं। इसके अतिरिक्त यहाँ अंग्रेज व्यापार से सम्बन्धित सभी
क्रियाकलापों को भी सम्पादित किया जाता था।
ब्लैक
टाउन (Black Town): ब्लैक टाउन औपनिवेशिक काल में भारतीयों की बस्ती होती थी। ब्लैक
टाउन परम्परागत भारतीय शहरों जैसा था जहाँ मन्दिर और बाजार के इर्द-गिर्द मकान बनाये
गये थे। शहर के मध्य से गुजरने वाली आड़ी-टेढ़ी संकरी गलियों में पृथक्-पृथक् जातियों
के मोहल्ले थे। चिन्ताद्रीपेठ इलाका केवल बुनकरों के लिए था। ब्लैक टाउन को अंग्रेज
हीन दृष्टि से देखते थे तथा इसे गन्दगी एवं अराजकता का केन्द्र मानते थे।
प्रश्न 4. प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को
किस तरह स्थापित किया ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी तक मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता का महत्वपूर्ण औपनिवेशिक शहरों के रूप
में विकास हो चुका था। प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने इन औपनिवेशिक शहरों में स्वयं
को स्थापित करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेंट के रूप में कार्य करना प्रारम्भ
कर दिया। ये बस्तियाँ व्यापारिक और प्रशासनिक कार्यालयों वाली थीं इसलिए भारतीय व्यापारियों
को ये शहर सुविधाजनक लगे। ये तीनों शहर बंदरगाह थे और इनमें सड़कें, यातायात, जहाजरानी
के साथ-साथ कालान्तर में रेलों की सुविधा भी प्राप्त हो गईं। भारतीय ग्रामीण व्यापारी
और फेरी वाले शहरों में माल गाँव से खरीद कर भी लाते थे। जब पुराने और मध्यकालीन शहर उजड़ गए तो बहुत से
भारतीय व्यापारी उन्हें त्यागकर वे बड़े शहरों में आ गए। उन्होंने व्यापारिक गतिविधियाँ
करने के साथ-साथ उद्योग-धन्धे भी लगाए तथा अपनी अतिरिक्त पूँजी शहरों में निवेश की।
वे
व्यापारिक गतिविधियों के विषय में रखे गए सरकारी रिकार्डों और विस्तृत ब्यौरों से कई
प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त करते थे। शहरों की समस्याओं के समाधान के लिए उन्होंने
नगरपालिकाओं तथा नगर निगमों से सहायता भी प्राप्त की तथा बहुत-से व्यापारी इन बड़े
शहरों के उपनगरीय क्षेत्रों में भी रहने लगे। उन्होंने घोड़ागाड़ी और नये यातायात के
साधनों का भी प्रयोग किया। भारतीय व्यापारी कम्पनी के व्यापार में मुख्य भूमिका निभाते
थे। मुम्बई के रहने वाले व्यापारी चीन को जाने वाली अफीम के व्यापार में भागीदार थे।
उन्होंने बम्बई की अर्थव्यवस्था को मालवा, राजस्थान और सिंध जैसे अफीम उत्पादक क्षेत्रों
से जोड़ने में सहायता प्रदान की। कम्पनी के साथ गठजोड़ एक मुनाफे का सौदा था जिससे
कालान्तर में एक पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ। भारतीय व्यापारियों में सभी समुदाय पारसी,
मारवाड़ी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती, बनिए, बोहरा, यहूदी आदि शामिल थे।
प्रश्न 5. औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल
गए थे ?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के मुख्य शहर मद्रास को अनेक गाँवों के ऊपर विकसित किया गया था। यहाँ
धीरे-धीरे भिन्न-भिन्न प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले विभिन्न समुदायों ने रहना
आरम्भ कर दिया। यहाँ यूरोपीय लोग व्हाइट टाउन में रहते थे जिसका केन्द्र फोर्ट सेन्ट
जॉर्ज अथवा सेन्ट जॉर्ज किला था। यूरोपीय निवासी अंग्रेजों की सत्ता के मजबूत होने
के साथ-साथ किले से बाहर भी जाने लगे जिसके परिणामस्वरूप अनेक भव्य इमारतों का निर्माण
आरम्भ हुआ। मद्रास में सबसे पहले गार्डन हाउस माउण्ट रोड तथा पूनामाली रोड पर बनना
आरम्भ हुए। मद्रास की ये सड़के किले से छावनी तक जाती थीं।
इस
दौरान सम्पन्न तथा धनी भारतीय भी यहाँ रहने लगे थे जिसके परिणामस्वरूप मद्रास के इर्द-गिर्द
स्थित गाँवों का स्थान बहुत-से नवीन उप-शहरी क्षेत्रों ने ले लिया। वस्तुत: यह इसलिये
भी सम्भव हो सका क्योंकि धनी लोग परिवहन सुविधाओं का लाभ उठा सकते थे, साथ ही उसका
व्यय भी वहन कर सकते थे, किन्तु गरीब लोग अपने काम की जगह के निकट स्थित गाँवों में
ही रहते थे। मद्रास के शहरीकरण का यह परिणाम हुआ कि इन गाँवों के मध्य वाले क्षेत्र
भी शहर में आ गये। अतः मद्रास में शहरी तथा ग्रामीण तत्व आपस में घुल-मिल गये और मद्रास
एक सघन शहर बन गया।
निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 230-300 शब्दों में)
प्रश्न 6. अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण किस तरह हुआ
?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में शहरी केन्द्रों में व्यापक परिवर्तन हुए। राजनीतिक तथा व्यापारिक
पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतनोन्मुख हुए और नए नगरों का विकास हुआ। मुगल शासन के
पतन के कारण ही उसके शासन से सम्बन्धित नगरों का भी पतन हो गया। मुगल राजधानी (दिल्ली
और आगरा) ने अपना राजनैतिक महत्व खो दिया तथा नयी क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय
राजधानियों लखनऊ, हैदराबाद, श्रीरंगपट्टनम, पूना, नागपुर, बड़ौदा एवं तंजौर के बढ़ते
महत्व के रूप में दृष्टिगोचर हुआ। विभिन्न प्रशासक, व्यापारी, शिल्पकार तथा अन्य लोग
पुराने मुगल केन्द्रों से इन नवीन राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की खोज में आने
लगे।
यहाँ
नवीन राज्यों के मध्य निरन्तर युद्धों का कारण यह था कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ
तैयार रोजगार मिलता था। कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य
से सम्बद्ध अधिकारियों ने भी इस अवसर का उपयोग कस्बे तथा गंज जैसी नवीन शहरी बस्तियों
को बसाने में किया। व्यापार तन्त्रों में परिवर्तन शहरी केन्द्र इतिहास में परिलक्षित
हुए। यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगलकाल में ही विभिन्न स्थानों पर आधार स्थापित
कर लिये थे, जिनमें से कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं -
1.
1510 ई. में पुर्तगालियों ने पणजी में अपनी कोठी स्थापित की,
2.
1605 ई. में डचों ने मछलीपट्टनम् पर अपना अधिकार किया
3.
1639 ई. में अंग्रेजों ने मद्रास में अपना अधिकार कियां
4.
1661 ई. में अंग्रेजों ने बम्बई प्राप्त कर लिया था तथा
5.
1673 ई. में फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी पर अपना अधिकार कर लिया था।
व्यापारिक
गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास नगर विकसित होने
लगे। 18वीं शताब्दी के अन्त तक स्थल आधारित साम्राज्य का स्थान शक्तिशाली जन-आधारित
यूरोपीय कम्पनियों ने ले लिया। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद की
शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को नवीन रूप से परिभाषित करने लगी थीं। 18वीं शताब्दी के
मध्य से परिवर्तनों का एक नवीन अध्याय आरम्भ होता है। यह वह समय था जब व्यापारिक गतिविधियाँ
अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगी, जबकि 17वीं शताब्दी में विकसित हुए सूरत जैसे
शहर पतन के गर्त में चले गये।
1757
ई. में प्लासी के युद्ध के उपरान्त अंग्रेजों ने राजनीतिक नियन्त्रणं प्राप्त कर लिया
तथा इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार फैला। मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे
औपनिवेशिक बन्दरगाह तीव्र गति से नवीन आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरे। इसके अतिरिक्त
इस समय नवीन भवनों तथा संस्थानों का भी विकास हुआ। नवीन रोजगार के अवसर सृजित होने
लगे और लोग इन
औपनिवेशिक
शहरों की ओर जाने लगे। सन् 1800 ई. तक ये जनसंख्या की दृष्टि से भारत के मुख्य शहर
के रूप में स्थापित हो चुके थे।
प्रश्न 7. औपनिवेशिक शहर के सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान
कौन-से थे ? उनके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान और उनके उद्देश्य निम्नलिखित
थे -
(i)
औपनिवेशिक शहर: मद्रास, बम्बई व कलकत्ता में कारखाने तथा व्यापारिक केन्द्र स्थापित
किए गए। उनसे व्यापारिक लेन-देन होता था तथा इन कारखानों एवं व्यापारिक केन्द्रों में
ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी व कर्मचारी भी रहते थे।
(ii)
इन औपनिवेशिक शहरों को बन्दरगाहों के रूप में इस्तेमाल किया गया, जहाँ पर जहाजों पर
सामान को लादने और उतारने का कार्य होता था। नदियों के किनारे अथवा समुद्र के किनारे
आर्थिक गतिविधियों से गोदियों एवं घाटियों का विकास हुआ तथा वहाँ गोदाम, वाणिज्यिक
कार्यालय व जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों
की स्थापना की गयी।
(iii)
शहरों के मानचित्र बनवाए गये, आँकड़े इकट्ठे किए गए तथा सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित की
गई। ये सभी दस्तावेज प्रशासनिक कार्यालयों में होते थे। शहरों में रख-रखाव के लिए नगरपालिकाएँ
अथवा नगर निगम बनाये गये जो शहरों में जलापूर्ति, सड़क निर्माण तथा स्वास्थ्य जैसी
सेवाएँ उपलब्ध कस्वाती थीं। नगर निगम लोगों की मृत्यु और जन्म के रिकॉर्ड भी रखता था।
(iv)
1853 ई. के पश्चात् से इन औपनिवेशिक शहरों में रेलवे स्टेशन, रेलवे वर्कशॉप व रेलवे
कॉलोनियाँ और रेलवे लाइनों के नेटवर्क बिछाए गए। इस प्रकार नवीन शहर बंदरगाहों, किलों,
सेवा केन्द्रों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों से जुड़ गए।
(v)
शहरों में बीमा एजेन्सियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना होने लगी।
इस प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ यातायात और लेन-देन के उद्देश्यों को पूरा करने में
सहायक सिद्ध हुईं। अनेक शहरों में ईसाई मिशनरियों ने चर्च, हिन्दुओं ने न्दिर और कुछ
स्थानों पर मुस्लिमों ने मस्जिदों का भी निर्माण किया।
(vi)
नए शहरों में घोड़ागाड़ी, ट्रामें, बसें, टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, सिनेमा हॉल, रंगशालाएँ
प्रत्येक क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले विभिन्न सेवक; जैसे-क्लर्क, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर,
शिक्षक, एकाउन्टेंट और शिक्षा से सम्बन्धित संस्थाएँ; जैसे—स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी
आदि उपलब्ध थे। कुछ सार्वजनिक सभा केन्द्र और समुदाय भवन भी थे जहाँ समाचार पत्र-पत्रिकाएँ
आदि लोगों को उपलब्ध होती थीं।
(vii)
19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया जिनको
क्रमशः सिविल लाइन्स या व्हाइट टाउन (जिसमें सफेद रंग वाले गोरे यूरोपीय रहते थे) तथा
ब्लैक टाउन (जिनमें देशी भारतीय लोग रहते थे) कहा गया। व्हाइट टाउन में यूरोपीय शैली
के महलनुमा मकान, बगीचा घर, क्लब, रेसकोर्स, रंगमंच आदि थे जो शासक वर्ग के लिए नस्लीय
विभेद पर आधारित थे।
(viii)
कुछ शहरों को औपनिवेशिक हिल स्टेशनों के रूप में विकसित किया गया; जैसे-शिमला, दार्जिलिंग,
माउण्ट आबू, मनाली आदि। इनका उद्देश्य गर्मी के दिनों में प्रशासनिक गतिविधियों को
चलाना और उच्च अधिकारियों को स्वास्थ्यवर्धक जलवायु व वातावरण वाला आवास प्रदान करना
था।
(ix)
औपनिवेशिक शहरों में स्वच्छता का ध्यान रखने के लिए भूमिगत पाइप-लाइन्स एवं ढकी हुई
नालियों की व्यवस्था की गई तथा इनकी सफाई हेतु लोगों की नियुक्ति की गई।
(x)
ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासकीय कार्यालय समुद्र त रे दूर बनाए गए। कलकत्ता में स्थित
राइटर्स बिल्डिंग इसी तरह का एक कार्यालय था। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते
कदम का संकेत था एवं समस्त दस्तावेजों को प्रशासनिक
कार्यालयों में सुरक्षित रखा जाता था।
प्रश्न 8. उनीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएं
कौन-सी थीं ?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में नगर-योजना को प्रभावित करने वाले अनेक कारक थे -
(1)
जनसंख्या में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि नगर-योजना में सबसे कठिन घटक है। 18वीं तथा
19वीं शताब्दी में नवीन नगरों के विकास के परिणामस्वरूप यहाँ बड़ी संख्या में लोग आकर
रहने लगे। विभिन्न कारीगर, प्रशासक, जमींदार इत्यादि सभी वर्गों ने नगरों में अपना
निवास बना लिया। अतः यह नगर-योजना का सबसे कठिन तत्व था।
(2)
महामारियों की समस्या-नगर-योजना में साफ-सफाई अथवा स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण घटक होता
है। 18वीं तथा 19वीं शताब्दियों में भारत में अकाल तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं
के साथ-साथ महामारियों की समस्या भी व्याप्त थी।
(3)
नस्लीय भेद भाव-भारत में 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव की नीति चरम
सीमा पर थी। प्रायः गोरे तथा काले लोगों के लिये क्रमशः व्हाइट तथा ब्लैक टाउन होते
थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेज किले तथा सिविल लाइन नाम के विशेष क्षेत्रों में रहते थे
तथा सार्वजनिक स्थलों पर भारतीयों से मिलने में रुचि नहीं रखते थे।
(4)
निर्माण-शैली: नगर की निर्माण-शैली भी नगर-योजना का महत्वपूर्ण तथा चिन्ताजनक घटक था।
अंग्रेज चूँकि यूरोप से आये थे इसलिए उनकी आवश्यकता और स्थापत्य की रुचि भी पृथक् थी।
अतः उन्होंने आवश्यकता के अनुरूप स्थापत्य शैली में अनेक यूरोपीय शैलियों का भारत में
उपयोग किया।
(5)
धन की समस्या-ब्रिटिश सरकार को शहर के रख-रखाव के लिये तथा अनेक निर्माण कार्यों के
लिये व्यापक धन की आवश्यकता थी। प्रारम्भ में तो सरकार इस व्यय को स्वयं वहन नहीं करना
चाहती थी इसलिए इस कार्य के लिये कमेटियों बनायी गयीं। शहर के प्रमुख नागरिकों को इसमें
सम्मिलित किया गया तथा जनता से धन माँगा गया। कहीं-कहीं तो लॉटरियां बेचकर भी धन इकट्ठा
किया गया, लेकिन बाद में जब अंग्रेज भारत में सुदृढ़ता से स्थापित हो गये तो उन्होंने
शहरों के रख-रखाव का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया।
(6)
अग्निकांड की घटनाएँ अंग्रेज आग लगने की घटनाओं से भी चिन्तित थे इसलिए 1836 ई. में
कलकत्ता में घास-फूस की झोंपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त मकानों
में ईंटों की छत अनिवार्य कर दी गई।
(7)
सुरक्षा प्रबन्ध: 1857 ई. के जन-विद्रोह के पश्चात् यूरोपीय विशेषकर महिलाओं और बच्चों
की सुरक्षा, उनके सम्मान की रक्षा, यूरोपीय सम्पत्ति, इमारतों एवं साजो-सामान की रक्षा
करना भी अंग्रेजों के लिए एक महत्वपूर्ण चिन्ता बन गई थी।
(8)
यातायात के साधन उपलब्ध करवाना-शहरों के अन्दर नए यातायात के साधन प्रदान करना भी एक
चिन्ता थी। समस्त लोगों को,कारखानों एवं शिक्षा संस्थानों में आने-जाने के लिए यातायात
की सुविधा प्रदान करनी थी।
(9)
शिक्षा का ढंग शिक्षा का प्रसार किस ढंग से किया जाए, शिक्षा पश्चिमी ढंग से दी जाए
या प्राचीन ढंग से, अंग्रेजी पढ़ाई जाए या नहीं, महिलाओं को शिक्षा दी जाए या नहीं
तथा समाज सुधार लागू किए जाएँ या नहीं। ये समस्त बातें ब्रिटिश सरकार के लिए चिन्ता
का विषय थीं।
(10)
गंदी बस्तियों की समस्या गंदी बस्तियों से समस्त यूरोपीय एवं भारतीय परेशान थे क्योंकि
इनमें शहरों के कारखानों एवं अन्य कार्यों में कार्यरत लोग विभिन्न स्थानों से आकर
रहते थे। भीड़भाड़ की वजह से कुछ शहरों में कुछ नए ढंग की इमारतों जैसे चॉल या बहुमंजिली
इमारतें बनाने की भी सरकार के समक्ष चिन्ता थी।
प्रश्न 9. नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध किस हद तक बदल गए थे ?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध काफी हद तक बदल गए, जिनका विवरण
निम्नलिखित है -
(i)
यातायात के नए साधनों का विकास-घोड़ागाड़ी जैसे नए यातायात के साधन एवं बाद में ट्रामों
तथा बसों के प्रचलन से लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय के साथ-साथ
कार्यस्थल एवं निवासस्थल दोनों एक-दूसरे से अलग होते चले गए। घर से कार्यालय या कारखाने
में जाना एक प्रकार का नया अनुभव बन गया।
(ii)
सार्वजनिक मेल-मिलाप के स्थलों में परिवर्तन यद्यपि अब तक पुराने शहरों में लोगों में
आपसी मेलजोल भी कम हो चुका था लेकिन फिर भी लोगों का मेल-मिलाप सार्वजनिक पार्को, टाउन
हॉल, रंगशालाओं एवं सिनेमाघरों के माध्यम से हो जाता था।
(iii)
नए सामाजिक समूहों का निर्माण-शहरों में अत नए सामाजिक समूह बनने लगे तथा लोगों की
पुरानी पहचानें लगभग समाप्त हो गईं। सभी वर्गों के लोग बड़े शहरों में आने लगे तथा
एक मध्यम वर्ग का शहरों में उदय होने लगा, जिनमें क्लर्क, डॉक्टर, वकील, शिक्षक, इंजीनियर,
एकाउंटेंट आदि सम्मिलित थे। मध्यम वर्ग की विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं पुस्तकालय
जैसे नए शिक्षा केन्द्रों तक अच्छी पहुँच थी। शिक्षित होने के कारण वे समाज और सरकार
के बारे में समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं एवं सार्वजनिक सभाओं में अपना मत व्यक्त कर सकते
थे। बहस एवं चर्चा का एक नया सामाजिक दायरा उत्पन्न हो गया था। सामाजिक रीति-रिवाज,
कायदे-कानून एवं तौर-तरीकों पर सवाल उठने लगे थे।
(iv)
महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन नए शहरों में महिलाओं के लिए नए अवसर उपलब्ध थे। समाचार
पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं एवं पुस्तकों के माध्यम से मध्यवर्गीय महिलाएं स्वयं को
अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही थीं। फलस्वरूप परम्परागत पितृसत्तात्मक नियम-कानून
बदलने लगे जिससे अनेक लोगों में असन्तोष व्याप्त हुआ। रूढ़िवादी लोगों को भय था कि
यदि महिलाएँ पढ़-लिख गईं तो वे सम्पूर्ण विश्व को परिवर्तित कर देंगी जिससे सम्पूर्ण
सामाजिक व्यवस्था का आधार खतरे में पड़ जाएगा।
यहाँ
तक कि महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करने वाले सुधारक भी महिलाओं को माँ और पत्नी की
परम्परागत भूमिकाओं तथा घर की चारदीवारी में ही देखना चाहते थे। समय बीतने के साथ-साथ
सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। वे नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका,
रंगकर्मी एवं फिल्म कलाकार के रूप में शहर के नए व्यवसायों में प्रवेश करने लगी, परन्तु
ऐसी महिलाओं को लम्बे समय तक सामाजिक रूप से सम्मानित नहीं माना जाता था जो घर से निकलकर
सार्वजनिक स्थानों पर जा रही थीं।
(v)
मेहनतकश गरीबों (कामगारों) के नये वर्ग का उभरना-शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों
का एक नया वर्ग उभर रहा था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से गरीब लोग रोजगार की तलाश में
शहर आ रहे थे। कुछ लोगों को शहर नए अवसरों का स्रोत दिखाई देते थे तो कुछ अन्य लोगों
को एक भिन्न जीवन-शैली का आकर्षण शहरों की ओर खींच रहा था।
उनके
लिए यह जीवन शैली एक ऐसी वस्तु थी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी। शहरों में जीने
की लागत पर नियन्त्रण रखने के लिए अधिकांश पुरुष अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे।
शहरी जिन्दगी संघर्षपूर्ण एवं नौकरी पक्की नहीं थी, खाना महँगा था, रहने का खर्चा भी
उठाना महँगा पड़ता था फिर भी गरीब कामगारों ने प्रायः अपनी एक शहरी संस्कृति रच ली
थी। वे धार्मिक त्यौहारों, लोक रंगमंच, स्वांग आदि में पूरे उत्साह से भाग लेते थे
जिनमें अधिकांशतः उनके भारतीय एवं यूरोपीय स्वामियों का मजाक उड़ाया जाता था।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10. भारत के नक्शे पर मुख्य नदियों और पर्वत श्रृंखलाओं को पारदर्शी कागज लगाकर रेखांकित करें। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास सहित इस अध्याय में उल्लिखित दस शहरों को चिह्नित कीजिए और उनमें से किन्हीं दो शहरों के बारे में संक्षेप में लिखिए कि उन्नीसवीं सदी के दौरान उनका महत्व किस तरह बदल गया (इनमें से एक औपनिवेशिक शहर तथा दूसरा उससे पहले का शहर होना चाहिए)।
उत्तर:
(1) बम्बई: 19वीं शताब्दी में बम्बई का महत्व अत्यधिक बढ़ गया जिसको 1661 ई. में अंग्रेजों
ने प्राप्त किया था। इसके उपरान्त एक बड़ा बन्दरगाह होने के कारण यहाँ से भारत के आयात-निर्यात
का 50 प्रतिशत भाग संचालित होने लगा। 19वीं शताब्दी के अन्त तक यह भारत के प्रमुख वाणिज्यिक
शहर के रूप में स्थापित हो चुका था।
(2)
दिल्ली: दिल्ली की स्थापना आठवीं शताब्दी में तोमरों ने की थी। तब से 1857 ई. तक यह
भारत का एक प्रमुख शहर बना रहा, किन्तु मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही इसका प्राचीन
महत्व खो रहा।
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11. पता लगाइए कि आपके कस्बे या गाँव में स्थानीय प्रशासन कौन-सी
सेवाएं प्रदान करता है ? क्या जलापूर्ति, आवास, यातायात तथा स्वास्थ्य एवं स्वच्छता
आदि सेवाएँ भी उनके हिस्से में आती हैं ? इन सेवाओं के लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे
की जाती है? नीतियाँ कैसे बनाई जाती हैं? क्या शहरी मजदूरों अथवा ग्रामीण इलाकों में
खेतिहर मजदूरों के पास नीति-निर्धारण में हस्तक्षेप का अधिकार होता है ? क्या उनसे
राय ली जाती है ? अपने निष्कर्षों के आधार पर रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
कस्बे अथवा गाँव का स्थानीय प्रशासन कई कार्य करता है, जिनमें स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति
करना, सड़कों का निर्माण व उनकी मरम्मत करवाना, मकानों व भवनों के मानचित्र स्वीकृत
करना, गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था करना, रोशनी की व्यवस्था करना, यातायात के साधनों
की व्यवस्था करना, स्वास्थ्य के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खुलवाना आदि प्रमुख
हैं। स्थानीय प्रशासन इन सेवाओं के कुशलतापूर्वक संचालन के लिए गृह कर, अग्निशमन कर,
मेले, चुंगी कर आदि लगाकर तथा जिला प्रशासन व राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान से संसाधनों
की व्यवस्था करता है।
स्थानीय
प्रशासन में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि ही नीतियों का निर्धारण करते हैं। प्रायः
शहरी मजदूरों या ग्रामीण इलाकों के खेतिहर मजदूरों के पास नीति निर्धारण में कोई भूमिका
नहीं होती और न ही अधिकार होते हैं। प्रायः वे स्थानीय सरकार या सरकारी अधिकारियों,
जिला अधिकारियों व राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की नीति निर्धारण एवं हस्तक्षेप से
प्रभावित होते हैं। हमारा मत है कि लोकतंत्र में शहरी मजदूरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों
के खेतिहर मजदूरों के कल्याण के लिए नीति निर्धारण करते समय उनसे बातचीत की जानी चाहिए
तथा उनके प्रतिनिधियों के विचारों को सुना जाना चाहिए।
प्रश्न 12. अपने शहर अथवा गाँव में पाँच तरह की इमारतों को चुनिए। प्रत्येक
के बारे में पता लगाइए कि उन्हें कब बनाया गया, उनको बनाने का फैसला क्यों लिया गया,
उनके लिये संसाधनों की व्यवस्था कैसे की गई, उनके निमाण का जिम्मा किसने उठाया और उनके
निर्माण में कितना समय लगा? उन इमारतों के स्थापत्य अथवा वास्तु-शैली सम्बन्धी आयामों
का वर्णन कीजिए और औपनिवेशिक स्थापत्य से उनकी समानताओं अथवा भिन्नताओं को चिह्नित
कीजिये।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने शहर की निम्नलिखित पाँच तरह की इमारतों को चुनकर तथा उनके बारे में
सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर अपना परियोजना कार्य पूर्ण कर सकते हैं -
1.
विद्यालय की इमारत
2.
अस्पताल
3.
मन्दिर की इमारत
4.
ग्राम पंचायत भवन/नगर पालिका/ नगर परिषद्/नगर निगम तथा
5. विद्युत विभाग की इमारत।