11.PGT विभिन्न बाजारों में मूल्य निर्धारण (Price Determination Under Various Markets)

विभिन्न बाजारों में मूल्य निर्धारण (Price Determination Under Various Markets)

👉 बाजार शब्द से अभिप्राय उस स्थान विशेष से होता है जहाँ वस्तुओं के क्रेता और विक्रेता दोनों परस्पर सौदा करने के लिए एकत्र हो ।

👉 प्रतियोगिता के आधार पर बाजार तीन प्रकार के होते हैं- पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार तथा अपूर्ण प्रतियोगिता (एकाधिकृत बाजार, द्वयाधिकार,अल्पाधिकार)।

👉 समयावधि के आधार पर बाजार चार प्रकार की होती है यथा-अतिअल्पकाल, अल्पकाल, दीर्घकाल तथा अति दीर्घकाल ।

👉 जिस बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की असंख्य संख्या हो, उत्पादित वस्तुओं में एकरूपता हो, नयी फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की पूर्ण छूट हो तथा फर्म का उद्देश्य लाभ को बढ़ाना हो उसे पूर्ण प्रतियोगिता बाजार कहते हैं।

👉 जिस बाजार में क्रेता तथा विक्रेताओं की अधिक संख्या हो, उत्पादित वस्तुओं में समानता हो, नयी फर्मों का प्रवेश तथा बहिर्गमन हो, लाभ को अधिकतम करना फर्म का उद्देश्य हो तथा सरकार का उत्पादन कार्य में हस्तक्षेप न हो उस बाजार को शुद्ध प्रतियोगिता (Pure Competition) कहते हैं।

👉 उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता तथा बाजार का पूर्ण ज्ञान की दशायें पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में पायी जाती है।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में फर्म का अल्पकालीन सन्तुलन तीन दशाओं में होता है। यथा— सामान्य लाभ की दशा, असामान्य लाभ की दशा तथा हानि की दशा।

👉 अल्पकाल में फर्म का साम्य उसी बिन्दु पर होगा जहाँ पर MR = MC तथा TR = TC तथा MC रेखा MR रेखा को नीचे से स्पर्श करें।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में प्रत्येक फर्म या विक्रेता सदैव मूल्य प्राप्त कर्त्ता तथा मात्रा नियोजक होती है।

👉 जहाँ पर MC = MR हो, वहाँ पर फर्म का अल्पकालीन साम्य ज्ञात हो जाता है ।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में उद्योग कीमत निर्धारक होता है तथा फर्म कीमत स्वीकार करने वाली होती।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में P = AR = MR

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में फर्म का संतुलन अल्पकाल तथा दीर्घकाल दो दशाओं में होता है, अल्पकाल में फर्म के लाभ की तीन अवस्थायें होती हैं

(1) असामान्य लाभ की दशा

(2) सामान्य लाभ

(3) हानि की दशा

👉 दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है।

👉 अल्पकाल में असामान्य लाभ की दशा

👉 संतुलन की दशा में MC = MR तथा MC का ढाल MR के ढाल से नीचे हो अतः बिन्दु B पर दोनों दशायें विद्यमान हैं, इसलिए B बिन्दु पर फर्म सन्तुलन प्राप्त करेगी।

👉 संतुलन की दशा में -

असामान्य लाभ = TR - TC

TR = AR ( Output) ; TC = AC (Output)

TR = OP(OM) ; TC = OD(OM)

TR = OPBM ; TC = ODCM

असामान्य लाभ = OPBM - ODCM = DPBC

👉 सामान्य लाभ की दशा में बाजार मूल्य फर्म की लागत दशाओं की तुलना में केवल इतना ही है कि फर्म की AC = AR । ऐसी दशा में फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

👉 हानि की दशा - इस दशा में AR < AC अतः फर्म को अल्पकालीन दशा में हानि प्राप्त होती है।

👉 फर्म की उत्पादन लागत के अन्तर्गत अल्पकाल में परिवर्तनशील लागत तथा स्थिर लागत (Fixed Cost) दोनों शामिल होते हैं।

👉 अल्पकाल में फर्म हानि की दशा में भी उत्पादन को जारी रखती है ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे उम्मीद रहती है कि दीर्घकाल में वह लाभ अर्जित करेगा।

👉 अल्पकाल के पूर्ण प्रतियोगी फर्म वस्तु की कीमत (P) औसत परिवर्तनशील लागत से कम होते हुए भी उत्पादन बन्द कर देगी। यह बिन्दु 'Shut down point' कहलाता है।

👉 अल्पकाल में AC = AFC + AVC

👉 फर्म अल्पकाल में P < AVC होते ही उत्पादन बन्द कर देगी।

👉 दीर्घकाल में उद्योग में काम कर रही प्रत्येक पूर्ण प्रतियोगी फर्म को सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है।

👉दीर्घकाल में संतुलन की दोहरी शर्त पूरी होनी चाहिए जैसे -

     MR = MC तथा

     AR = AC अर्थात्

    MR = MC = AR = AC

👉 अर्थात् दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ ही अर्जित कर रही है।

👉 पूर्ति स्थिर रहने पर माँग की वृद्धि साम्य कीमत को बढ़ायेगी जबकि मांग की कमी साम्य कीमत को घटायेगी।

👉 माँग के स्थिर रहने पर पूर्ति की वृद्धि कीमत को घटायेगी, जबकि पूर्ति की कमी, कीमत को बढ़ायेगी।

👉 यदि पूर्ति तथा माँग में वृद्धि एक समान अनुपात में होती है तब साम्य कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता।

👉 प्रो. मार्शल ने समय तत्व को कीमत निर्धारण में महत्वपूर्ण स्थान दिया।

👉 समय तत्व को इन्होंने तीन अवधियों में बांटा है यथा-अति अल्पकाल, अल्पकाल, दीर्घकाल ।

👉 अतिअल्प काल - पूर्ति पूर्णतया बेलोच, मूल्य केवल माँग दशाओं से प्रभावित ।

👉 अल्पकाल - पूर्ति में एक सीमा तक माँग के अनुरूप समायोजन।

👉 दीर्घकाल - उत्पत्ति के समस्त साधन परिवर्तनशील माँग के अनुरूप पूर्ति का समायोजन।

👉 रिकार्डो ने स्पष्ट किया कि श्रम लागत कीमत निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

👉 जेवन्स, वालरस अर्थशास्त्रियों ने उपयोगिता के आधार पर वस्तु कीमत निर्धारण पर बल दिया।

👉 सामान्य लाभ को सदैव स्थिर साधन लागत का एक अंग माना जाता है।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन बन्द बिन्दु तीनों स्थितियों को दर्शाता है -

P=AVC

TR = TVC

फर्म की हानि TFC

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की फर्म तथा उद्योग के लिए दीर्घकालीन साम्य की दशा के बारे में निम्नांकित स्थितियाँ हो सकती है -

P = MR = SMC = LMC

P = MR = LAC

P = MR = SMC = LMC

👉 प्रतिनिधि फर्म की अवधारणा (Representative Firm) प्रो० मार्शल ने विकसित की।

👉 प्रतिनिधि फर्म वह है जो लम्बे समय तक अस्तित्व में बनी रहे।

👉 प्रो० मेहता के अनुसार प्रविविधि फर्म वह फर्म है जो उद्योग के साथ-साथ उसी प्रकार के विस्तार अथवा संकुचन करने की प्रवृत्ति दिखलाती है।

👉 प्रो० पीगू ने साम्य फर्म की अवधारणा को विकसित किया।

एकाधिकार (Monopoly)

👉 एकाधिकार वह बाजार दशा है जिसमें एक फर्म उस वस्तु के उत्पादन को बेचती है जिसका स्थानापन्न न उपलब्ध हो, इस प्रकार वस्तु का सम्पूर्ण बाजार इस फर्म के लिए ही होता है। इसमें समीपस्थ वस्तुयें उपलब्ध नहीं होती जिनका मूल्य एवं विक्रय एकाधिकारी वस्तु के मूल्य एवं विक्रय को प्रभावित कर सके।

👉 एकाधिकार की दशा में AR Curve आयताकार अति अपरवलय होता है। जिसकी माँग की लोच इकाई के बराबर होती है।

👉 एकाधिकार में फर्म और उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता।

👉 एकाधिकारी मूल्य निर्माता होता है।

👉 एकाधिकारी के लिए MR < AR क्योंकि MR = AR `\left(\frac{e-1}e\right)`

अथवा AR = MR `\left(\frac{e-1}e\right)`

👉 एकाधिकार में AR तथा MR वक्रों का सम्बन्ध मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करता है।

👉 एकाधिकारी किसी वस्तु का अकेला उत्पादक होता है।

👉 वस्तु का निकट प्रतिस्थानापन्न उपलब्ध नहीं होता।

👉 नयी फर्मों के प्रवेश पर पाबन्दी ।

👉 एकाधिकार में पूर्ति वक्र की अनुपस्थित रहती है।

👉 एकाधिकारी का Demand Curve ऋणात्मक ढाल वाला होता है तथा MR <AR

👉 फर्म ही उद्योग तथा उद्योग ही फर्म है ।

👉 एकाधिकारी के साम्य के लिए MR = MC (Slope of MR < Slope of MC)

👉 एकाधिकार में एक ही पूर्ति पर भिन्न भिन्न कीमत उपस्थित हो सकती है ऐसी दशा में पूर्ति वक्र अर्थहीन हो जाता है।

👉 अल्पकाल में एकाधिकारी असामान्य लाभ, सामान्य लाभ तथा हानि तीनों स्थितियों में उत्पादन कार्य कर सकता है।

एकाधिकारी का असामान्य लाभ की दशा कीमत = OP

असामान्य लाभ = TR - TC

TR = AR ( Output) ; TC = AC (Output)

TR = OP(OM) ; TC = OQ(OM)

TR = OPRM ; TC = OQSM

असामान्य लाभ = OPRM - OQSM = QPRS

👉 सामान्य लाभ को शून्य लाभ भी कहते हैं। चूंकि इस दशा में AR = AC अत: एकाधिकारी को सामान्य लाभ या शून्य लाभ प्राप्त हो रहा है।

👉 दीर्घकाल में फर्मों के आगमन के प्रतिबन्ध के कारण एकाधिकारी को सदैव लाभ की स्थिति बनी रहती है।

👉 एकाधिकारी का दीर्घकालीन सन्तुलन =

     LMC = MR

or LMC = SMC = MR

👉 अनुकूलतम पैमाने के प्लाण्ट के अन्तर्गत सन्तुलन दशा

= LMC = QMC = LAC = SAC = MR

👉 एकाधिकार के अन्तर्गत एकाधिकारी बढ़ती सीमान्त लागत पर, स्थिर सीमान्त लागत पर तथा गिरती सीमान्त लागत पर सन्तुलन प्राप्त कर सकता है। जबकि पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में फर्म केवल बढ़ती सीमान्त लागत दशा में सन्तुलन प्राप्त कर सकती है।

👉 सीमान्त विश्लेषण रीति को सर्वप्रथम जान राबिन्सन ने रखा।

👉 ट्रिफिन ने एकाधिकारी शक्ति को कोटि को माँग की आड़ी लोच के अर्थ में स्पष्ट किया है।

👉 एक मुश्तकर (Lump Sum tax) बना कर सरकार एकाधिकारी का आंशिक अथवा कुल भाग छीन सकती है।

👉 विशिष्ट कर एकाधिकारी को परिवर्तनशील लागत (VC) के रूप में प्राप्त होता है। यह कर उत्पादन की प्रति इकाई पर लगाया जाता है।

👉 प्रो० लर्नर, प्रो० ट्रिफिन, श्रीमती जान राबिन्सन ने एकाधिकारी शक्ति की माप की विधियों का उल्लेख किया है।

विभेदात्मक एकाधिकार (Discriminating Monopoly)

👉 एक ही वस्तु जब दो या दो से अधिक कीमतों पर बेची जाती है तो इस क्रिया को मूल्य विभेद कहते हैं।

👉 मूल्य विभेद तभी संभव है जब उत्पादक के पास एकाधिकारी शक्ति हो।

👉 प्रो० पीगू ने मूल्य विभेद की श्रेणियों (Degree of Price discrimination) का उल्लेख किया।

👉 जब कोई एकाधिकारी अपनी वस्तु या सेवा का मूल्य उपभोक्ता की सामर्थ्य अथवा तत्पर्यता के अनुसार वसूल करता है तो इसे प्रथम श्रेणी का मूल्य विभेद कहते हैं।

👉 द्वितीय श्रेणी के मूल्य विभेद में एकाधिकारी बाजार को विभिन्न भागों में बाँट लेता है और विभिन्न उपभोक्ताओं से विभिन्न कीमतें वसूल करता है।

👉 तृतीय श्रेणी के मूल्य विभेद में एकाधिकारी क्रेताओं को उनकी मांग की लोच के आधार पर इस प्रकार दो या दो से अधिक वर्गों में बांटता है कि उन वर्गों में परस्पर सम्पर्क नहीं रहता।

👉 पृथक-पृथक बाजारों में माँग की लोच भिन्न-भिन्न होती है।

👉 कीमत विभेद में एकाधिकारी सन्तुलन की शर्तें हैं

     MRA = MRB

     MR = MC अर्थात्

MRA = MRB = MC

👉 श्रीमती जान राबिन्सन के अनुसार बाजार में वस्तु की मांग की लोच जितनी अधिक होगी उत्पादन का बड़ा भाग उसमें बेंचा जायेगा माँग की अधिक बेलोचता होने पर उत्पादन का कम भाग बाजार में बेचा जायेगा।

राशि पातन (Dumping)

👉 कीमत विभेद के संभव तथा लाभदायकता के लिए बाजारों का पृथक्कीकरण तथा माँग की लोच में भिन्नता आवश्यक है।

👉 बाजारों के पृथक्कीकरण से आशय वस्तु के दो या दो से अधिक बाजारों से है।

👉 विभेदीकरण एकाधिकार के विभिन्न बाजारों में कोई रिसन या टपकन नहीं होनी चाहिए।

👉 कीमत विभेदीकरण के लाभदायकता के लिए माँग की लोच एक बाजार से दूसरे बाजार में भिन्न होती है। वस्तुतः दो बाजारों में वस्तु की माँग की लोच में अन्तर होने से कीमत विभेदीकरण लाभदायक सिद्ध होता है।

👉 कीमत विभेद का एक विशिष्ट उदाहरण राशिपातन है।

👉 राशिपातन के अन्तर्गत एकाधिकारी के दो बाजार होते हैं जिसमें से एक में उसका एकाधिकार होता है तथा दूसरे में उसे प्रतिद्वन्द्रियों का मुकाबला करना पड़ता है। है ।

👉 राशिपातन के लिए एकाधिकारी को कोई सुरक्षित बाजार प्राप्त होनी चाहिए तथा सुरक्षित बाजार में माँग की लोच असुरक्षित बाजार की तुलना में नीची होनी चाहिए।

👉 Theory of Monopolistic Competition का प्रतिपादन प्रो० चैम्बरलिन ने किया (Harvard University Press Mass 1933 ) ।

👉 The Economics of Imperfect Compitition का प्रतिपादन श्रीमती जान राबिन्सन ने किया। (Macmillan 1933)।

👉 Selling Cost की अवधारणा को प्रो० चैम्बरलिन ने सर्वप्रथम फर्म के सिद्धान्त में विकसित किया।

👉 Selling Cost का आकार 'U' आकार का होता है।

एकाधिकृत प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)

👉 पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार दोनों ही काल्पनिक दशायें हैं वास्तविक जीवन में इनका मिलना कठिन है, वस्तुतः व्यवहारिक जीवन में इनके बीच की दशा पायी जाती है इसी को अपूर्ण प्रतियोगिता अथवा मध्यम बाजार की स्थिति (Intermediate Market Situation) की संज्ञा दी जाती है।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन ने एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता दोनों के चरम स्थितियों के मध्य की स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता (Imperfect Competition) कहा है।

👉 प्रो० चैम्बरलिन इस स्थिति को एकाधिकृत प्रतियोगिता (Monopolistic Competition) कहा है।

👉 अतिरिक्त क्षमता प्रयोग (Excess Capacity Theorem) का प्रतिपादन प्रो० लिप्सी ने किया है।

👉 अतिरिक्त क्षमता प्रयोग के अन्तर्गत प्रत्येक फर्म का उत्पादन अनुकूलतम मात्रा से कम होता है इसलिए औसत लागत निम्नतम से अधिक होती है।

👉 समूह सन्तुलन (Group Equilibrium) की अवधारणा को प्रो० चैम्बरलिन ने विकसित किया।

👉 समूह सन्तुलन का अभिप्राय एकाधिकृत प्रतियोगिता की स्थिति में चूंकि बहुत सी फर्में होती हैं परन्तु उनकी वस्तुयें निकटतम प्रतिस्थानापन्न होती हैं। अतः ऐसी फर्मों के समूह के लिए जिनके उत्पादन में विभिन्नतायें पायी जाती हैं समूह (Group) शब्द का प्रयोग किया हैं।

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में साम्य उस बिन्दु पर होगा जहाँ पर MC = MR तथा MR Curve की माँग वक्र को नीचे से बांटता है।

👉 एकाधिकार में विक्रय लागतों का अभाव रहता है तथा एकाधिकृत प्रतियोगिता में संख्या अधिक होने पर प्रतियोगिता के कारण विक्रय लागतों पर व्यय अनिवार्य होता है।

👉 एकाधिकृत प्रतियोगिता में वस्तुयें निकट प्रतिस्थानापन्न नहीं होती।

👉 एकाधिकृत प्रतियोगिता में वस्तुयें निकट स्थानापन्न होने के कारण माँग की आड़ी लोच ऊंची होती है।

👉 विक्रय लागतें = विज्ञापन पर व्यय + सेल्स मैनेजर का वेतन + शोरूम का खर्च + प्रदर्शनी + उपहार आदि पर खर्च ।

 👉 समूह सन्तुलन के लिए प्रो० चैम्बरलिन ने दो महत्वपूर्ण धारणायें मानी हैं जैसे- समता धारणा तथा संशति धारणा ।

👉 अतिरिक्त क्षमता का विचार (व्यवस्थित तथा विस्तृत) प्रो० चैम्बरलिन के स्पर्शी हल (Tangency Solution) में ही मिलता है।

द्विपक्षीय एकाधिकार (Bilateral Monopoly)

👉 द्विपक्षीय एकाधिकार के अन्तर्गत अकेला विक्रेता तथा अकेला क्रेता (Single Seller & Singale buyer) होता है।

👉 द्विपक्षीय एकाधिकार के अन्तर्गत फर्म का साम्य परम्परागत टूल्स (tools) की सहायता से नहीं होता।

👉 द्विपक्षीय एकाधिकार वस्तु बाजार में बहुत कम पायी जाती है यह श्रम बाजार में अक्सर पायी जाती है।

अल्पाधिकार (Oligopoly)

👉 यह अपूर्ण स्पर्धा का ही एक रूप है जिसमें थोड़े ही विक्रेता होते हैं।

👉 अल्पाधिकार के अन्तर्गत थोड़े विक्रेता, परस्पर निर्भरता, विज्ञापन तथा संघर्षपूर्ण प्रतियोगिता एवं माँग वक्र की अनिश्चितता होती है।

👉 कूर्नो ने 1938 में Duopoly Model को विकसित किया।

👉 यह मॉडल इस अवधारणा पर आधारित है कि प्रत्येक विक्रेता अपने विक्रेता प्रतिद्वन्द्वी की पूर्ति को स्थिर मान लेता है।

👉 कूर्नो ने इस द्वयाधिकार मॉडल को दो फर्मों की सहायता से विकसित किया।

👉 दोनों विक्रेता अपने उत्पाद को बाजार में straight line demand Curve की सहायता से बेचते हैं तथा एक विक्रेता यह मानकर चलता है कि दूसरा विक्रेता अपने उत्पाद को परिवर्तित नहीं करता।

👉 कूर्नो का मॉडल Stable equilibrium पर आधारित है।

👉 यह एक Closed Model है।

👉 Contract curve की अवधारणा को एजवर्थ ने विकसित किया।

👉 बरट्रेन्ड ने अपने द्वयाधिकार मॉडल को 1883 में विकसित किया।

👉 बरट्रेन्ड ने अपने मॉडल में यह मान्यता मानी है कि Each Firm expets that the rival will keep its price Constant.

👉 एजवर्थ का द्वयाधिकार मॉडल इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक विक्रेता अपने प्रतिद्वन्द्वी विक्रेता की कीमत को स्थिर मान लेता है।

👉 प्रो० चैम्बरलिन द्वयाधिकार की समस्या का समाधान दोनों विक्रेताओं के मध्य पारस्परिक निर्भरता के आधार पर किया।

👉 चैम्बरलिन ने द्वयाधिकार समस्या का स्थायी हल दिया है।

👉 एक ही उद्योग की स्वतंत्र फर्मों के संगठन को कार्टेल कहा जाता है।"

👉 अल्पाधिकार में फर्मों का अपूर्ण गठबन्धन कीमत नेतृत्व के आधार पर होता है। कीमत नेतृत्व वाले इस अपूर्ण कार्टेल मॉडल में उद्योग की सभी फर्मे एक चुनी हुई फर्म के द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करती हैं।

👉 अल्पाधिकार की कीमत दृढ़ता (Price rigidity) के सम्बन्ध में दो परिकल्पनायें पाल स्वीजी तथा हाल एवं हिर्च ने प्रस्तुत की।

👉 विकुंचित मांग वक्र के ऊपर वाला भाग अधिक लोचदार होता है जबकि नीचे वाला भाग अपेक्षाकृत कम लोचदार (Less Elestic) होता है।

👉 विकुंचित के बिन्दु पर MR वक्र टूट जाता है। MR वक्र की लम्बाई इस बात पर निर्भर करती है कि विकुंचित माँग वक्र के दोनों भागों की लोच में कितना अन्तर है। दोनों भागों की लोच में जितना अन्तर होगा उतना ही सीमान्त आगम वक्र के टूटे हुए भाग की लम्बाई अधिक होगी।

👉 हाल एवं हिच ने अपने निबन्ध "Price Theory & Business Behaviour" में कीमत दृढ़ता को AC की सहायता से स्पष्ट किया है। हाल एवं हिच के अनुसार फर्में अल्पकाल में लाभ को अधिकतम करने का प्रयास नहीं करतीं बल्कि दीर्घकाल में लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती हैं।

👉 स्टिगलर ने अपने अध्ययन में माँग वक्र के विकुंचित परिकल्पना को अस्वीकार किया है।

👉 बॉमोल की लाभ अधिकतम करने की विचारधारा को आय अधिकतमीकरण सिद्धान्त कहा जाता है।

👉 द्वयाधिकार, अल्पाधिकार की विशेष दशा है।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन ने अपूर्ण प्रतियोगिता के विचार को प्रस्तुत किया।

👉 प्रो० चैम्बरलिन ने समूह सन्तुलन की विचारधारा को विकसित किया।

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रय लागत आवश्यक है।

👉 एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में अल्पकालीन सन्तुलन वहीं होगा जहाँ SMC, MR को नीचे से काटे और P > AVC.

👉 समूह के विचार को प्रो० चैम्बरलिन ने सर्वप्रथम प्रयोग किया।

👉 विभेदीकृत उत्पादन का सम्बन्ध एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता से है।

👉 अल्पाधिकार में गुटबन्दी की संभावना अधिक होती है।

👉 उत्पत्ति वृद्धि नियम की स्थिति में एकाधिकारी फर्म अपनी वस्तु की कीमत कम करके निश्चित करती है।

👉 प्रो० लर्नर के अनुसार एकाधिकारी फर्म वह है जिसकी वस्तु की माँग वक्र गिरता हुआ हो तथा कम लोचदार हो।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में साम्य की दशा के लिए आवश्यक है कि MC = MR.

👉 एक फर्म अल्पकाल में एक वस्तु की AVC के बराबर कीमत ले सकती है।

👉 जब वस्तु की माँग की लोच अनन्त होती है ऐसी स्थिति में MR = AR.

👉 कूर्नो के माडल में दो स्वतंत्र विक्रेता हो जो सजातीय वस्तुओं का उत्पादन तथा विक्रय करते हों, वस्तु का संग्रह नहीं किया जाता है तथा क्रेताओं की संख्या पर्याप्त हो।

👉 माँग की आड़ी लोच जितनी अधिक होती है एकाधिकारी शक्ति उतनी ही कम होती है।

👉 प्रो० ट्रिफिन ने माँग की आड़ी लोच को मापने के लिए Cross elasticity of demand को आधार बनाया है।

👉 एकाधिकारी सत्ता माँग की लोच के विपरीत होती है।

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म की एकाधिकारी शक्ति को मापने के लिए

👉 कीमत विभेद की दशा में साम्य = MR1 = MR2 = MR = MC

👉 यदि MR1 > MR2 हो तो एकाधिकारी दूसरे बाजार का उत्पादन कम करके पहले बाजार में अधिक उत्पादन की बिक्री करेगा।

👉 विभेदात्मक एकाधिकार के अन्तर्गत उत्पत्ति वितरण का मूलभूत नियम = MR1 = MR2

👉 मूल्य विभेद के लिए पृथक बाजारों का होना, माँग की लोच में भिन्नता तथा क्रय शक्ति में भिन्नता आवश्यक है।

👉 मान लीजिए पूर्ण प्रतियोगी फर्म में बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति क्रमशः.

      D = 50 - 10 P

      S=5+5P

जिसमें P = Price

D = Demand ; S = Supply

तो बाजार की साम्य कीमत एवं उत्पत्ति = P = 3 तथा मात्रा = 20 इकाइयाँ ।

👉 प्रो० लर्नर के अनुसार एकाधिकार का अभिप्राय उस विक्रेता से है जिसकी वस्तु का माँग वक्र गिरता हुआ होता है।

👉 प्रो० मार्शल के अनुसार शुद्ध एकाधिकार आय प्राप्त करने के लिए शुद्ध एकाधिकार आय = कुल - कुल लागत।

👉 कीमत विभेद का परिमाण उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं लाता।

👉 प्रो० पीगू के अनुसार कीमत विभेद की तीन श्रेणियां हैं।

👉 कीमत विभेद एकाधिकार में संभव है।

👉 द्विपक्षीय एकाधिकार में एक क्रेता तथा एक विक्रेता होता है।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन के अनुसार एकाधिकारी की कोटि = `\frac1e` 
होती है।

👉 प्रो० लर्नर के अनुसार एकाधिकारी शक्ति की कोटि =

      

👉 दीर्घकाल में एकाधिकारी को सदैव असामान्य लाभ प्राप्त होता है।

👉 एकाधिकार में मांग वक्र की लोच इकाई होती है।

👉 एकाधिकार में AR वक्र का आकार आयताकार परिपरवलय (Recantgnlar hyperbala) वक्र होता है।

👉 एकाधिकार में मांग की आड़ी लोच शून्य होने का कारण वस्तु के निकट स्थानापन्न की उपलब्धता का अभाव है।

👉 एकाधिकार के माँग की आड़ी लोच शून्य होती है।

👉 प्रो० मार्शल के अनुसार कीमत निर्धारण में समय तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

👉 रिकार्डों के अनुसार कीमत निर्धारण में केवल पूर्ति पक्ष आवश्यक है।

👉 न्यूनतम लागत संयोग वाली फर्म को अनुकूलतम फर्म कहा जाता है।

👉 प्रतिनिधि फर्म की अवधारणा को प्रो० मार्शल ने विकसित किया।

👉 सैद्धान्तिक रूप से MR शून्य अथवा ऋणात्मक हो सकता परन्तु AR सदैव धनात्मक होता है।

👉 अर्थशास्त्र में साम्य फर्म की अवधारणा को प्रो० पीगू ने प्रतिपादित किया।

👉 प्रतिनिधि फर्म की प्रवृत्ति उद्योग के साथ बढ़ने तथा घटने की होती है।

👉 फर्म के साम्य के लिए MR=MC आवश्यक है।

👉 साम्य की अन्तिम दशा के लिए MR=MC तथा MC वक्र MR वक्र को नीचे से काटे ।

👉 एकाधिकारी वक्र में पूर्ति वक्र अर्थहीन होता है।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में कीमत का निर्धारण उद्योग करता है।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन के अनुसार पूर्ण प्रतियोगिता उस दशा में पायी जाती है जबकि प्रत्येक उत्पादक की उपज की माँग की लोच पूर्णतया लोचदार होती है।

👉 प्रो० चैम्बरलिन ने द्वयाधिकार की समस्या का समाधान दोनों विक्रेताओं के मध्य पारस्परिक निर्भरता की अवधारणा के आधार पर दिया।

👉 एक ही उद्योग की स्वतंत्र फर्मों के संगठन को कार्टेल कहा जाता हैं

👉 प्रो० बॉमोल के अनुसार फर्म के लिए लाभ अधिकतम करना अन्तिम उद्देश्य नहीं होता।

👉 बॉमोल की लाभ अधिकतम करने की विचारधारा को आय अधिकतम सिद्धान्त ( Revenue Maximisation theory) के रूप में भी जाना जाता है।

👉 विकुचित मांग वक्र परिकल्पना के अनुसार अल्पाधिकारी प्रतियोगी फर्मों में कीमत वृद्धि की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती जबकि प्रत्येक कीमत कमी की क्रिया के फलस्वरूप प्रतिक्रिया उपस्थित होती है।

👉 अल्पाधिकार में कीमत दृढता पायी जाती है।

👉 Price theory & Business Behaviour निबन्ध की रचना हाल एवं हिच ने की है।

👉 अल्पाधिकार में मूल्य = P=AC=AVC+AFC+Marginal Profit.

👉 प्रो० स्टिगलर ने विकुचित माँग वक्र की विचारधारा को अस्वीकार कर दिया।



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