12.PGT वितरण के सिद्धांत (Theory of Destribution)

वितरण के सिद्धांत (Theory of Destribution)

कुछ चुनी हुई परिभाषायें

👉 वितरण का प्रतिष्ठत सिद्धान्त के प्रतिपादक - डेविड रिकार्डो ।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त के प्रतिपादक - प्रो० जे० बी० क्लार्क

👉 'Distribution of 'wealth 1809 - जे० बी० क्लार्क

👉 'भूमि की जो कुछ भी उपज श्रम, मशीन एवं पूंजी के संयुक्त रूप से लागू करने पर इसके तल से प्राप्त की जाती है-समाज के तीन वर्गों में बांट दी जाती है-भूमिपति, पूँजीपति और श्रमिक। " - डेविड रिकार्डो

👉 “एकाधिकार की कोटि आकस्मिक घटकों का एक प्रकार का कूड़े-करकट का कनस्तर है और इसलिए कम व्याख्या करता है। " John Pann

👉 "वितरण का कीन्सवादी सिद्धान्त' या 'आय-वितरण का आधुनिक समष्टि भावी सिद्धान्त' या 'आय वितरण का कैल्डोर का सिद्धान्त' प्रतिपादक - प्रो० कैल्डोर

👉 "यदि श्रमिकों तथा पूँजीपतियों की बचत प्रवृत्तियां दी हुई हों तो आय में लाभ का अंश उत्पादन में विनियोग अंश के अनुपात पर निर्भर करता।"- प्रो० कैल्डोर

👉 'आय वितरण की संवेदनशीलता का गुणांक है।" - प्रो० कैल्डोर

👉 "किसी साधन को उसके 'सीमान्त उत्पादन के मूल्य' से कम पुरस्कार दिया जाता है तो उसका शोषण होता है जबकि सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त में कुल उत्पादन का उचित एवं न्यायपूर्ण वितरण होता है, अर्थात् प्रत्येक साधन कुल उत्पादन में अपने योगदान के बराबर हिस्सा पाता है।- Mrs. John Robinson

👉 उत्पादन, भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन सभी उपादानों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।

👉 उत्पत्ति के साधनों की मांग, संयुक्त मांग होती है।

👉 अवसर लागत वह न्यूनतम धनराशि है जो किसी साधन विशेष को उस व्यवसाय में बनाये रखने के लिए आवश्यक होती है।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त (Marginal Productivity theory) का प्रतिपादन जे०वी० क्लार्क, वालरस, विक्स्टीड आदि अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त को विस्तृत एवं सही रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय श्रीमती जान राबिन्सन तथा जे०आर० हिक्स को जाता है।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त हमें यह बताता है कि सन्तुलन की दशा में प्रत्येक उत्पादकीय साधन उसकी सीमान्त उत्पादकता के आधार पर पुरस्कृत होता है।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की कार्यशीलता के लिए पूर्ण प्रतियोगिता साधन की समरूप इकाइयाँ, परिवर्तनशील अनुपातों का नियम तथा दीर्घकाल में लागू होता है।

👉 भौतिक उत्पादकता (Physical Productivity) किसी साधन की भौतिक उत्पादकता उस साधन द्वारा उत्पादित वस्तु की भौतिक मात्राओं द्वारा मापी जाती है।

👉 जब इस भौतिक उत्पादकता को मुद्रा में व्यक्त किया जाता है तो हमें आगम उत्पादकता ( Revenue Productivity) प्राप्त हो जाती है।

👉 औसत उत्पादकता = कुल उत्पादकता / साधन विशेष की उत्पादन में लगी इकाइयों की संख्या (N)

सीमान्त भौतिक उत्पादन (MPP)

👉  अन्य साधनों के स्थिर रहने की दशा में परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई प्रयोग करने पर कुल उत्पादकता (TP) में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उत्पादकता कहते हैं।

👉 औसत आगम उत्पादकता (ARP)-

`ARP=\frac{TR}N`

A. R. P. = APP × AR

औसत आगम उत्पादकता = औसत भौतिक x औसत आगम उत्पादकता

सीमान्त आगम उत्पादकता (MRP)

👉 अन्य उत्पत्ति के साधन स्थिर रहने की दशा में परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से कुल आगम में जो वृद्धि होती है उसे MRP कहते हैं।

MRP = MPP x MR

👉 सीमान्त उत्पादकता का मूल्य (Value of Marginal Productivity) VMP = MPP x AR

👉 जी०वी० क्लार्क ने स्पर्धात्मक दशाओं एवं दीर्घकाल में स्थिर पूर्ति वाले उत्पत्ति के साधनों की कीमतें उनकी सीमान्त उत्पादकताओं द्वारा निर्धारित होती हैं।

👉 प्रो० मार्शल ने साधन की कीमत निर्धारण में मांग तथा पूर्ति दोनों शक्तियों का योगदान बताया है।

👉 अल्पकाल में फर्म को साधन बाजार में तीनों स्थितियों- असामान्य लाभ, सामान्य लाभ तथा हानि का सामना करना पड़ सकता है।

👉 दीर्घ काल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है।

👉 फर्म के दीर्घकालीन सन्तुलन की दशा में साधन कीमत = ARP. MRP = AFC = MFC

👉 श्रीमती जान राबिन्सन ने "Economics of Imperfect Competition की रचना की है।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन ने सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त को संशोधित किया ताकि वह अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में कार्यशील हो सकें।

VMP = MPP x AR

तथा MRP = MPP x MR

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में VMP > MRP

👉 Adding up Problem यूलर के नाम से सम्बन्धित है। इसे Product exhausting Theorem भी कहते हैं।

👉 साधन की मांग व्युत्पन्न मांग होती है। MRP वक्र एक व्यक्तिगत फर्म के लिए साधन का मांग वक्र होता है।

👉 साधन की पूर्ति उसकी अवसर लागत पर निर्भर करती है।

👉 साधन कीमत निर्धारण - मांग - पूर्ति संतुलन

वितरण के सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक उत्पत्ति के साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के आधार पर पुरुष्कार दिया जाता है।

👉 "The Coordination of the law & of Distribution" नामक पुस्तक की रचना प्रो० विक्स्टीड ने की।

👉 प्रो० विक्स्टीड के अनुसार यदि प्रत्येक साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के बराबर पुरुस्कार दिया जाता है तो सम्पूर्ण उत्पादन समाप्त हो जायेगा तथा कुछ भी अतिरेक शेष नहीं बचेगा।

👉 प्रो० यूलर द्वारा निर्मित प्रमेय की सहायता से यह दिखाया गया कि यदि उत्पादन फलन कॉव- डगलस की प्रकृति का है तब प्रत्येक उत्पत्ति के साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के बराबर भुगतान देने पर सम्पूर्ण उत्पादन परिसमाप्त हो जायेगा।

👉 यूलर प्रमेय के अनुसार स्थिर पैमाने का प्रतिफल हो, साधन पूर्णतया विभाज्य हो तथा पूरक हो तथा पूर्ण प्रतियोगिता की दशा के साथ-साथ दीर्घकालीन अवस्था हो ।

लगान (Rent)

Classical Definition –

👉 'लगान' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम प्रकृतिवादियों ने किया था। "लगान एक ऐसी बचत है जो कि कृषि उत्पादन में प्रकृति की उदारता के कारण प्राप्त होती है।

👉 " लगान के वैज्ञानिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। - David Ricardo

👉 "लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूस्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है। - David Ricardo

👉 “भूमि तथा प्रकृति के अन्य निःशुल्क उपहारों के स्वामित्व से प्राप्त होने वाली आय को लगान कहते हैं।" - Marshal

👉 "लगाने को भूमि तथा प्रकृति के अन्य निःशुल्क उपहारों के स्वामित्व से प्राप्त होने वाली आय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। " - Thomas.

👉 "भूमि के प्रयोग के बदले दी जाने वाली कीमत को लगान कहते हैं।"

👉 "किसी प्रकृति प्रदत्त साधन के प्रयोग से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपज ही लगान है। " - Seniour

Modern Definition :

👉 "लगान के विचार का सार वह आधिक्य है जो कि एक साधन की इकाई उस न्यूनतम आय के ऊपर प्राप्त करती है जो कि उस साधन को अपना कार्य करते रहने के लिए प्रेरित करने हेतु आवश्यक है। - Mrs. John Robinson

👉 " आर्थिक लगान वह अतिरेक है जो साम्य की स्थिति में वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिए उसके न्यूनतम पूर्ति कीमत अथवा अवसर लागत पर प्राप्त होता है।“ - Boulding

👉 'लगान एक बड़ी जाति की प्रमुख उपजाति है। " - Marshal

👉 “लगान सिद्धान्त की शक्ति और शिक्षात्मकता किसी भी प्रकार नष्ट नहीं हुई है।'

👉 'लगान का आधुनिक सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। "- Mrs John Robinson

👉 "एक प्रकार से सब लगान दुर्लभता लगान होते हैं और सब लगान भेदक लगान होते हैं। "-  Marshal

👉 "मुद्रा की वह मात्रा जो किसी साधन विशेष की एक इकाई अपने सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग से प्राप्त करती है, कभी उसकी हस्तान्तरण आय कहलाती है। " - Pro. Benham

👉 'अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं है क्योकि लगान दिया जाता है। बल्कि लगान इसलिए दिया जाता है क्योंकि अनाज का मूल्य ऊँचा है । " - David Ricardo

👉 Quasi Rent - आभास लगान –

👉 'आभास लगान' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। - Marshal

👉 'आभास लगान मानव द्वारा बनायी गयी मशीनों और उपकरणों से प्राप्त आय है। - Marshal

 👉 "स्थिर उपकरणों के प्रतिस्थापन और अनुरक्षण की गुंजाइश छोड़कर उसका शुद्ध प्रतिफल आभास लगाना होता है। - Marshal

👉 "आभास लगान मौद्रिक लागत पर कुल प्राप्तियों का यह आधिक्य है जो कि कमोवेश उस समय विशेष साधन में साधन की मांग व पूर्ति के आकस्मिक सम्बन्ध के द्वारा शासित होता है।" – Marshal

👉 "आभास लगान तकनीकी रूप में उत्पत्ति के उन साधनों को किया गया अतिरिक्त भुगतान है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर तथा दीर्घकाल में परिवर्तनशील होती है। " - Pro. Silverman

👉 "आय कम हो या अधिक, मशीनों की पूर्ति अल्पकाल में निश्चित होता है, एक प्रकार का लगान अर्जित करती है। दीर्घकाल में यह लगान समाप्त हो जाता है। क्योंकि यह पूर्ण अथवा शुद्ध लगान नहीं होता, बल्कि एक समाप्त हो जाने वाली आय अर्थात् अर्ध-लगान ही होता है।" - A.W. Stonier And D. C. Hague

👉 प्रकृतिवादियों के अनुसार लगान, प्रकृति प्रदत्त निःशुल्क उपहार है।

👉 डेविड रिकार्डों के अनुसार लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के बदले भूमिपति को प्राप्त होती है।

👉 प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान केवल भूमि से ही दीर्घकाल में प्राप्त होता है।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान भूमि के अतिरिक्त उत्पादन के किसी अन्य साधन से प्राप्त हो सकता है।

👉 प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री के अनुसार लगान प्रकृति की कंजूसी (Scarety) के कारण उत्पन्न होता है तथा यह एक भेदात्मक बचत है।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्री लगान के उत्पन्न होने का कारण साधन की पूर्ति की मांग के सापेक्ष दुर्लभ होना मानते हैं।

👉 श्रीमती जान राबिन्सन के शब्दों में लगान के विचार का सार वह आधिक्य है जो एक साधन को न्यूनतम आय के अतिरिक्त प्राप्त होता है जिसके कारण वह साधन अपना कार्य करने के लिए प्रेरित होता है

👉 कुल लगान = आर्थिक लगान + भूमि पर लगी पूंजी का लाभ + भूमि सुधार में भू स्वामी द्वारा किये गये प्रयास के लिए पारिश्रमिक +  भू स्वामी द्वारा उठाये गये जोखिम के लिए लाभ

👉 आर्थिक लगान- केवल भूमि के प्रयोग के बदले जो भुगतान भू-स्वामी को प्राप्त होता है उसे आर्थिक लगान कहा जाता है।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक लगान एक साधन हो अवसर लागत के ऊपर बचत है।

👉 ठेके के लगान- यह लगान भू स्वामी और काश्तकार के बीच आपसी समझौते द्वारा निश्चित होता है।

👉 भूमि की स्थिति के अन्तर के कारण जो लगान उत्पन्न होता है उसे स्थिति लगान कहते हैं।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान साधन की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होता है।

👉 प्रकृतिवादियों के अनुसार कृषि ही एकमात्र क्षेत्र है जहाँ अतिरेक उत्पन्न होता है। अतः उनके अनुसार प्रकृति का दयालु होना लगान का प्रमुख कारण है।

👉 डैविड पहले अर्थशास्त्री थे जिनका यह विश्वास था कि प्रकृति मानव पर दयालु नहीं अपितु कृपण है।

👉 "Principle of Political Economy & Taxation" (1817) नामक पुस्तक की रचना डेविड रिकार्डो ने किया।

👉 रिकार्डों के अनुसार भूमि की हस्तान्तरण आय (Transfer income) शून्य होती है।

👉 कृषि में ह्रासमान पैमाने का प्रतिफल क्रियाशील रहता है।

👉 रिकार्डों के अनुसार लगान भूमि की सीमितता के कारण उत्पन्न होता है।

👉 रिकार्डों के अनुसार लगान उत्पादन, लागत के ऊपर आधिक्य है।

👉 भेदात्मक लगान = अधिसीमान्त भूमि की उत्पादकता- सीमान्त भूमि की उत्पादकता ।

👉 अनाज कीमत में लगान सम्मिलित नहीं होता-रिकार्डो

👉 रिकार्डो के अनुसार- अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं होता क्योंकि लगान दिया जाता है बल्कि लगान इसलिए दिया जाता है क्योंकि अनाज का मूल्य ऊँचा होता है।

👉 रिकार्डो के लिए मूल्य कारण है तथा लगान उसका परिणाम है।

👉 रिकार्डो के अनुसार कीमत लगान को निर्धारित करती है न कि लगान कीमत को ।

👉 रिकार्डो के अनुसार लगान का सम्बन्ध केवल भूमि से है।

👉 रिकार्डो के अनुसार दो प्रकार का लगान उत्पन्न होता है।

1.  सीमितता का लगान

2. भेदात्मक लगान

👉 1. सीमितता का लगान - जब तक भूमि सीमित नहीं होती तब तक कोई अतिरेक उत्पन्न न होने के कारण लगान उत्पन्न नहीं होता।

2. भेदात्मक लगान - सीमांत भूमि की तुलना में अधिसीमान्त भूमियां अतिरेक उत्पन्न करती है और यही अतिरेक भेदात्मक लगान है।

आधुनिक लगान का सिद्धान्त

👉 लगान का आधुनिक सिद्धांत रिकार्डो के लगान सिद्धान्त पर एक सुधार है।

👉 लगान के आधुनिक सिद्धांत की व्याख्या करने का श्रेय प्रो० जे० एस० मिल को जाता है। परन्तु इसका विकास जेवन्स, पैरेटो, मार्शल तथा श्रीमती जान राबिन्सन आदि ने किया।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार वास्तविक आय एवं हस्तान्तरण आय का अन्तर ही लगान है।

👉 लगान = वास्तविक आय - हस्तान्तरण आय

👉 स्टोनियर तथा हेग के शब्दों में लगान वह भुगतान है जो हस्तान्तरण आय से अधिक होता है।

👉 वान वीजर ने उत्पत्ति के साधनों को दो भागों में विभाजित किया है - विशिष्ट तथा अविशिष्ट ।

👉 साधन की विशिष्टता लगान उत्पन्न करती है।

👉 पूर्ण बेलोच पूर्ति वाले साधन की समस्त आय लगान होती है।

👉 जब उत्पत्ति के साधन की पूर्ति पूर्ण बेलोच होती है तब उसकी सम्पूर्ण आय आर्थिक लगान होती है।

👉 जब उत्पत्ति के साधन की पूर्ति पूर्ण लोचदार होती है तब उसकी सम्पूर्णआय हस्तान्तरण आय के बराबर हो जाती है। ऐसी दशा में आर्थिक लगान का कोई तत्व उपस्थित नहीं होता।

👉 पूर्ति में बेलोच का अंश जितना अधिक होगा उतना ही आर्थिक लगान अधिक होगा।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान सीमितता के कारण उत्पन्न होता है अतः इसका सम्बन्ध उत्पादन के प्रत्येक साधन से है।

👉 रिकार्डो के अनुसार लगान भेदात्मक आधिक्य है।

👉 रिकार्डो के अनुसार एक अनार्जित आय है।

👉 आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान कीमत में सम्मिलित होता है।

आभास लगान (Quasi Rent)

👉 आभास लगान का प्रतिपादन प्रो० मार्शल ने किया।

👉 प्रो० मार्शल के अनुसार वह आधिक्य जो अल्पकाल में भूमि को छोड़कर मानव निर्मित साधन प्राप्त करते हैं उसे आभास लगान कहते हैं।

👉 प्रो० बिलास के शब्दों में कुल आगम तथा कुल परिवर्तनशील लागतों के अन्तर को ही आभास लगान कहते हैं।

👉 कुल आभास लगान = कुल आगम - कुल परिवर्तनशील लागत

Quasi Rent = TR-TVC

👉 औसत आभास लगान = औसत आगम - औसत परिवर्तनशील लागत = AR-AVC

👉 आभास लगान कभी ऋणात्मक नहीं हो सकता।

आभास लगान =TR - TVC

= OPEQ - ONDQ = PMDE

👉 आभास लगान सदैव शून्य के बराबर या उससे अधिक होगा।

मजदूरी (Wage)

👉 श्रम के लिए श्रमिक को प्राप्त होने वाला पुरस्कार मजदूरी कहलाता है।

👉 श्रम के उपयोग के लिए चुकायी गयी कीमत को मजदूरी कहते हैं।

👉 नगद मजदूरी वह मजदूरी होती है जिसे श्रमिक को एक निश्चित समयावधि के लिए मुद्रा में चुकाया जाता है।

👉 वास्तविक मजदूरी किसी श्रमिक की वास्तविक मजदूरी में वे सभी लाभ, सुविधायें शामिल होती हैं जो उसे नगद मजदूरी के अलावा प्राप्त होते हैं।

👉 वास्तविक मजदूरी को ज्ञात करने के लिए हमें नगद मजदूरी में मुद्रा की क्रयशक्ति का गुणा कर देना चाहिए।

👉 वास्तविक मजदूरी = `\frac{W_m}P`

जिसमें Wm= श्रमिकों की नगद मजदूरी।

P = सामान्य कीमत स्तर

👉 जब मजदूरी दर बढ़ती है तो श्रमिकों को अधिक कार्य के लिए प्रेरित करती है जिसके कारण वे श्रमिक अपने आराम के घण्टों का अपने कार्य के घण्टों से प्रतिस्थापन करने लगते हैं।

👉 पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मजदूरी का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ श्रमिक की माँग श्रमिक की पूर्ति के बराबर हो जाये।

👉 श्रम के शोषण के सम्बन्ध में प्रो० पीगू, प्रो० राबिन्सन तथा प्रो० चैम्बरलिन आदि अर्थशास्त्रियों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं।

👉 प्रो० चैम्बरलिन के अनुसार श्रम का शोषण तब उपस्थित होता है जब श्रमिक की मजदूरी दर सीमान्त आय उत्पादन से कम हो जाये।

👉 प्रो० पीगू तथा राबिन्सन के विचार में दो प्रकार का शोषण उपस्थित होता है जैसे- एकाधिकारिक शोषण तथा क्रेता एकाधिकारिक शोषण।

👉 वास्तविक मजदूरी = मौद्रिक मजदूरी/सामान्य मूल्य स्तर

👉 अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत मजदूरी सीमान्त मजदूरी के बराबर नहीं होती।

👉 सामूहिक सौदेबाजी मजदूरी और सेवायोजकों के संगठित दलों द्वारा कार्य की सम्पूर्ण शर्तों के सन्दर्भ में सौदा करने की क्रिया का नाम हैं।

ब्याज (Intrest)

👉 'ब्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार " - J.M. Keynes

👉 "ब्याज वह आय है जो पूँजी के स्वामी को प्राप्त होती है।" - Carver

👉 'ब्याज केवल उपयोग से परहेज (या विरत रहने) का पुरस्कार है।" - J.S Mill

👉 "ब्याज वह कीमत है जो ऋण देय कोषों के प्रयोग के बदले दी जाती है। - Pro. Meyers

👉 'ब्याज ऐसे भुगतान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कि पूँजी उधार लेने वाला पूँजीपति को उसके ब्याज और पूँजी की उत्पादकता के पुरस्कार स्वरूप प्रदान करता है। - Pro. Knut Wicksel

👉 "ब्याज प्रतिरक्षा का पुरस्कार है। " - Marshal

👉 "ब्याज समय अधिमान का पुरस्कार होता है। " - Pro. Fisher

👉 "ब्याज के त्याग अथवा प्रतिक्षा सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। " Senior ने

"ब्याज का मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त का विचार सर्वप्रथम दिया। - John Rae ने

👉  "समय-अधिमान सिद्धान्त के प्रतिपादक - Fisher

👉 'ब्याज का प्रतिष्ठित सिद्धान्त' - Classical Economists

👉 "ब्याज का ऋणदेय कोष सिद्धान्त' - Knut Wicksel

👉 "सर्वप्रथम ब्याज दर के विश्लेषण में बैंक साख के रूप में एक मौद्रिक तत्व का समावेश किया" - Knut Wicksel

👉 'ब्याज के तरलता अधिमान सिद्धान्त या द्रवता पसन्दगी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया' - J.M. Keynes

👉 "ब्याज एक विशुद्ध मौद्रिक घटना है। " J.M. Keynes

👉 "ब्याज वह कीमत है जो कि धन को नकद रूप में रखने की इच्छा तथा उपलब्ध नकदी की मात्रा के मध्य संतुलन स्थापित करती है। " - Keynes

👉 "सट्टा उद्देश्य" भविष्य में बाजार में होने वाले उतार-चढ़ावों के सम्बन्ध में सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक जानकारी रखने के कारण लाभ प्राप्त किया जा सकें। " - J. M. Keynes

👉 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त सर्वप्रथम पेश किया। J. R. Hicks

👉 पहला अर्थशास्त्री जिसने संतुलन ब्याज दर तथा बाजार ब्याज दर के बीच के सम्बन्ध को बताया। - Knut Wicksel

👉 पहला अर्थशास्त्र जिसने संतुलक ब्याज दर तथा बाजार ब्याज दर के बीच के सम्बन्ध को बताया। - Knut Wicksel

👉  "प्राकृतिक ब्याज दर वह दर है जिस पर पूँजी या बचतों की मांग उसकी पूर्ति के बराबर होती है। - Knut Wicksel

👉 ब्याज, पूंजी कोष के बदले में मिलने वाला परितोषण है।

👉 ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० मार्शल तथा प्रो० पीगू ने किया है।

👉 प्रतिष्ठित ब्याज के सिद्धान्त के अनुसार ब्याज, पूंजी के उपयोग के बदले में दिया जाने वाला भुगतान है।  ब्याज के समय पसन्दगी सिद्धान्त का प्रतिपादन आस्ट्रियन अर्थशास्त्री वाम वार्वक तथा प्रो० इरविंग फिशर ने की है।

👉 ब्याज के ऋण योग्य कोष या नव परम्परावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन विक्सैल, ओहलिन, मिर्डल तथा अंग्रेज अर्थशास्त्री प्रो० रार्बटसन ने की है।

👉 ऋण योग्य कोष सिद्धान्त के अनुसार ब्याज की दर ऋण योग्य कोष की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।

👉 ब्याज के तरलता अधिमान सिद्धान्त का प्रतिपादन लार्ड कीन्स ने किया है।

👉 General Theory of Employment intrest & money नामक पुस्तक की रचना कीन्स ने 1936 में किया।

👉 कीन्स के अनुसार- ब्याज एक निश्चित समय के लिए तरलता परित्याग का पुरस्कार है।

👉 प्रो० कुरी हारा के अनुसार मुद्रा की माँग तथा मुद्रा की पूर्ति के द्वारा ब्याज की दर निर्धारित होती है।

👉 सट्टेबाजी उद्देश्य के लिए माँगी गयी मुद्रा की मात्रा ब्याज दर से प्रभावित होती है।

👉 कीन्स के अनुसार मुद्रा की माँग तीन उद्देश्यों के लिए की जाती है - लेने-देन उद्देश्य, सतर्कता उद्देश्य तथा सट्टा उद्देश्य ।

लाभ (Profit)

👉 "लाभ साहसी के कार्य का पुरस्कार है। अथवा यह जोखिमों, अनिश्चिताओं तथा नव प्रवर्तनों के लिए किया गया भुगतान है। - Pro. Shumpitn

👉 "सामान्यतया लाभ जोखिम उठाने का पुरस्कार है।" Pro. Splight

👉 "लाभ को मिश्रित तथा विवादग्रस्त आय बताया" - Taussing

👉 "लाभ निश्चित रूप से आर्थिक सिद्धान्त के सबसे कम संतोषजनक भागों में से एक है। " - Pro. Gordon

👉 "लाभ वह औसत परिश्रमिक है जो उद्यमियों की पर्याप्त पूर्ति को अस्तित्व में लाने तथा अस्तित्व में रखने के लिए आवश्यक है।' - Marshal

👉 "लाभ दूसरों की अपेक्षा अधिक निष्ठ योग्यता वाले उद्यमी के "उत्पादन कार्य का निश्चित प्रतिफल है।" - Pro Walker

👉 "लाभ उस जोखिम का पुरस्कार है जो उद्यमी उठाता है। जोखिम जितनी अधिक होगी लाभ उतना ही अधिक होगा। - Hawley

👉 सामान्य लाभ " औसत व्यापार योग्यता और शक्ति की पूर्ति कीमत है। " - Marshal

👉 "किसी उद्योग में उद्यमी के सामान्य लाभ वे हैं जो उसे उद्योग में लगाये खाने के लिए आवश्यक होते हैं। " - Stonier and Haguie

👉 "समान्य लाभ से तात्पर्य उस भुगतान से है जो कि साधनों को उत्पादन विशेष में बनाये रखने के लिए देना आवश्यक है। " - Hanson

👉 लाभ के लगान सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। - Walker

👉 "लाभ योग्यता का लगान है।" - Walker

👉 'लाभ केवल प्रवैगिक अर्थव्यवस्था में पाये जाते हैं। स्थैतिक अर्थव्यवस्था में नहीं। " - Pro. J. B. Clark

👉 "श्रम के प्रयोग के बदले दी गयी कीमत मजदूरी कहलाती है। " - Marshal

👉 "श्रम का वेतन मजदूरी है। "

👉 "मजदूरी मुद्रा के रूप में भुगतान की गयी वह मात्रा है जो एक सेवायोजक समझौते के आधार पर श्रमिक को उसकी सेवाओं के बदले प्रदान करता है।" - Pro Benham

BOOKS AND WRITER

👉 The stage of economic growth. - W.W. Rostow

👉 Choice of the Technique - A. K. Sen

👉 A Theory of Low Level Equilibrium - R.R. Nelzon

👉 Economic Progress in Underdeveloped Countries - H.W. Singher

👉 Essays on Value and Distribution -  M. Kaldore

👉 The Accumulation of Capital - J. Robinson

👉 Capital Theory and Rate of Interest - R. M. Soloo

👉 Economic Policy and development - D. R. Gadgil

👉 Income Saving and the Theory of Consemer behaviour - S. Duesenbury

👉 Investment in Human capital - T.W.schultz

👉 Education capital in India - P.R. Panchmukl

👉 Economic Policy and Development - D. R. Godgil

👉 उत्पादन साधन के रूप में उद्यमी या साहसी को जोखिम उठाने के लिए जो प्रतिफल मिलता है उसे लाभ कहा जाता है।

👉 कुल लाभ = शुद्ध आय + साहसी के निजी साधनों का प्रतिफल + मशीन आदि की घिसावट व बीमा व्यय + आकस्मिक लाभ + एकाधिकार लाभ। शुद्ध लाभ = कुल लाभ - साहसी के निजी साधनों का प्रतिफल + मशीन आदि की घिसावट व बीमा व्यय + आकस्मिक लाभ + एकाधिकारी लाभ।

👉 प्रो० नाइट (Knight) के अनुसार जोखिम दो प्रकार के होते हैं- ज्ञात जोखिम तथा अज्ञात जोखिम।

👉 सामान्य लाभ ज्ञात जोखिम का तथा असामान्य लाभ अज्ञात जोखिम का परिणाम है।

👉 Total Profit = Total Revenue - explicit Costs

👉 लाभ के लगान सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० वाकर ने किया है।

👉 प्रो० वाकर के अनुसार, लाभ योग्यता का लगान है।

👉 व्यवत लागतें (Explicit Costs) से अभिप्राय उन मौद्रिक लागतों से है जो उत्पादन के बाह्य साधनों को चुकाई जाती हैं जैसे मजदूरी, कच्चा माल, पूँजी का ब्याज, भवन का किराया इत्यादि।

👉 अव्यक्त लागतें या अन्तर्निहित लागतें (Implicity Cots) से आशय उन अकल्पित लागतों से हैं जो किसी बाहरी साधनों को तो नहीं चुकाई जाती किन्तु उत्पादक अथवा साहसी के स्वयं के साधनों के प्रतिफल के रूप में देय होती है।

👉 लाभ का जोखिम सहन सिद्धान्त (Risk Bearing theory of profit) का प्रतिपादन प्रो० हाले (Howley) ने किया।

👉 प्रो० नाइट के अनुसार लाभ सभी प्रकार के जोखिमों का पुरस्कार नहीं है बल्कि यह केवल अज्ञात जोखिम उठाने का पुरस्कार है।

👉 लाभ का अनिश्चितता सहन सिद्धान्त (Uncertainty Bearing Theory of Profit) का प्रतिपादन प्रो० नाइट ने किया है।

👉 लाभ के प्रावैगिक प्रगतिशीलता के सिद्धान्त का प्रतिपादन (The Dynamic theory of Profit) प्रो० जे० बी० क्लार्क ने किया है।

👉 प्रो० जे० बी० क्लार्क ने समाज की परिस्थितियों को दो भागों में बांटा है - स्थैतिक अथवा गतिहीन स्थिति तथा प्रावैगिक अथवा गतिशील स्थिति।

👉 सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त (Marginal Productivity theory) का प्रतिपादन प्रो० मार्शल ने किया।

👉 लाभ के नव प्रवर्तन सिद्धान्त (Innovation theory of profit) का प्रतिपादन प्रो० शुम्पीटर ने किया है।

👉 प्रो० शुम्पीटर का नये आविष्कारों से तात्पर्य नयी पद्धतियों से है और उन्होंने नई पद्धतियों को तीन भागों में बांटा जैसे- नयी मशीन की योजना, अन्य साधनों का संग्रह तथा जोखिम के साथ मशीन को लगाना।

👉 लाभ का माँग एवं पूर्ति सिद्धान्त लाभ निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त है।

👉 लाभ का समाजवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने किया।

👉 मार्क्स के अनुसार लाभ, श्रम शक्ति के शोषण के कारण उत्पन्न होता है।

👉 कुल लगान = कुल उत्पादन - कुल उत्पादन लागत

👉 कार्ल मार्क्स का आय वितरण सिद्धान्त मूल रूप से रिकार्डो के अधिशेष सिद्धान्त (Surplus theory) का ही संशोधित रूप है।

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