➡️ भारत में योजनाबद्ध
विकास के लिए सर्वप्रथम सर एम० विश्वेश्वरैया ने 1934 में भारतवासियों का ध्यान आकर्षित
किया।
➡️ ``Planned economy
for India" नामक पुस्तक की रचना सर एम० विश्वेश्वरैया ने 1934 में की।
➡️ 1934-35 के भारतीय आर्थिक
सम्मेलन की वार्षिक बैठक में इस पुस्तक में दिये गये आर्थिक सुझावों पर विचार व चर्चा
की गयी।
➡️ भारत में आयोजन के कर्णधार
पं० जवाहरलाल नेहरू है।
➡️ 1938 में पं० जवाहरलाल
नेहरू की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया।
➡️ राष्ट्रीय नियोजन समिति
की स्थापना योजनाबद्ध विकास की ओर एक कदम था।
➡️ 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध
(1939-45) के छिड़ जाने के कारण तथा कांग्रेस मन्त्रिमण्डल द्वारा त्याग पत्र दे देने
के कारण यह योजना कार्यान्वित न हो सकी।
➡️ जनवरी, 1944 में बम्बई
के आठ उद्योगपतियों ने मिलकर एक योजना तैयार की जिसे (Bombay Plan) के नाम से जाना
जाता है।
➡️ बाम्बे प्लान 15 वर्षीय योजना थी जिस पर 10,000 करोड़ रुपये
व्यय का प्रावधान था।
➡️ आचार्य श्रीमन्नानारायण
जो गाँधी जी के अनुयायी थे, इन्होंने गाँधीवादी योजना (Gandhian Plan) जनवरी, 1944
में प्रारम्भ की।
➡️ इस योजना में कृषि और
उद्योग के एक साथ एवं संतुलित विकास पर बल दिया गया।
➡️ विश्व प्रसिद्ध क्रान्तिकारी
श्री एन० राय ने 1944 में जनयोजना की (People's Plan) शुरुआत की।
➡️ इस योजना में सामूहिक
या सहकारी खेती पर जोर दिया गया। इसके लिए भूमि के राष्ट्रीयकरण की सिफारिश की गयी।
➡️ विश्वेश्वरैया योजना-1946 में अखिल निर्माणक संगठन द्वारा
प्रकाशित की गयी।
स्वतन्त्रता के पश्चात् नियोजन
➡️ स्वतन्त्रता के पूर्व
किये गये सरकारी प्रयासों में कोई भी योजना स्तर की मांग को पूर्ण करने में असमर्थ
रही।
➡️ सरकार ने 6 अप्रैल,
1948 को देश की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की, जिसमें मिश्रित अर्थव्यवस्था पर जोर
दिया गया।
➡️ सर्वोदय योजना- यह योजना मनुष्य के सर्वांगीण विकास, आर्थिक,
सामाजिक व राजनीतिक उद्देश्य से भी जय प्रकाश नारायण द्वारा 30 जनवरी, 1950 को प्रकाशित
की गयी।
➡️ इस योजना का प्रमुख
उद्देश्य अहिंसात्मक, स्वायत्तशासी, शोषण विहीन सरकारी समाज की स्थापना करना था ।
➡️ कोलम्बो योजना- युद्धोपरान्त
विश्व के राष्ट्रों ने यह अनुभव किया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक नियोजन संभव
बनाया जायें। अतः राष्ट्र मण्डल की राष्ट्रीय सरकारों के एक सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रों
की तत्कालीन समस्याओं को सुलझाने के उद्देश्य से एक सलाहकार समिति की स्थापना करके
जनवरी, 1950 को कोलम्बों योजना का निर्माण किया गया।
➡️ दिसम्बर, 1946 में श्री
के०सी० नियोगी की अध्यक्षता में सलाहकारी समिति तथा योजना आयोग की स्थापना के प्रमुख
सुझाव दिये गये।
➡️ 15 मार्च, 1950 को भारत
में योजना आयोग की स्थापना की गयी।
➡️ राष्ट्रीय विकास परिषद
का गठन 1952 में किया गया।
➡️ कार्ल मार्क्स और एंजल्स
ने समाजवाद को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।
➡️ बोलसेविक को 1917 में
सोवियत रूस में सत्ता प्राप्त हुई थी उन्होंने मार्क्स तथा एंजल्स के विचारों को व्यवहार
रूप देने का प्रयास किया। अतः सोवियत रूस में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के
लिए समग्र राष्ट्रीयकरण पर आधारित आयोजन अपनाया गया।
➡️ आयोजन का सर्वप्रथम
विकास सोवियत रूस में हुआ।
➡️ मानव जाति के इतिहास
में यह पहला अवसर था जब समाज ने निर्धनता, भूख और बेरोजगारी मिटाने के लिए आयोजन के
अनुसार संगठित प्रयास किया गया।
➡️ स्वतन्त्र होने पर भारत
को पश्चिम के समून्नत राष्ट्रों की तुलना में भिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करना
था।
➡️ व्यापक निर्धनता, व्यापक
बेरोजगारी और अल्प बेरोजगार में डूबा हुआ भारत था जिनका स्वरूप संरचनात्मक था, उसके
श्रमिक निरक्षर और अप्रशिक्षित थे, उनकी कृषि अवरुद्ध थी और अर्द्ध सम्बन्धों में जकड़ी
हुई थी तथा उसके उद्योग अपेक्षाकृत पिछड़े हुए थे।
➡️ अतः भारत की समस्याओं
के समाधान के लिए विशाल राष्ट्रीय प्रयास आवश्यक थी, फलत: भारत ने सामाजिक और आर्थिक
आन्दोलन के रूप में 'आयोजन' का सहारा लिया।
➡️ समाजवादी आयोजन से प्रभावित
होने के कारण मार्क्सवादियों से समाज की संकल्पना ग्रहण की किन्तु साथ ही हमारे विचारकों
ने न्यायोचित समाज के पूर्व विकास के लिए पूंजीवाद समाज के लोक तांत्रिक मूल्यों को
भी अपरिहार्य माना।
➡️ इस प्रकार हमने दो चरम
समाजों के गुणों का लाभ उठाते हुए जिस समाज की संकल्पना की, वह लोकतान्त्रिक समाजवाद
के नाम से विख्यात हैं।
➡️ लोकतान्त्रिक समाजवाद
का दर्शन समाज को समग्र कल्पना पर आधारित है।
➡️ मिश्रित अर्थव्यवस्था
दो बिल्कुल विरोधी विचारधाराओं में समझौते का परिणाम है। इनमें से एक विचारधारा प्रबल
पूंजीवाद का समर्थन करते है तो दूसरी इस बात में प्रबल विश्वास रखती हैं कि समग्र अर्थव्यवस्था
के उत्पादन के साधनों का समाजीकरण होना चाहिए और इसका नियन्त्रण राज्य द्वारा किया
जाना चाहिए।
➡️ 18वीं और 19वीं शताब्दी
के अर्थशास्त्रियों की कृतियों में मिश्रित अर्थव्यवस्था की धारणा का कोई जिक्र नहीं
था, क्योंकि उन दिनों आर्थिक स्वतन्त्रता और आर्थिक मानवों में राज्य द्वारा अहस्तक्षेप
मूल सिद्धान्त माने जाते थे।
➡️ प्रतिष्ठित और नव प्रतिष्ठित
अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक प्रणाली विनिर्वहन रूप से कार्य करती थी और ऐसा माना
जाता था कि जो क्रिया व्यक्ति के लिए लाभदायक हैवह समग्र समाज के आर्थिक कल्याण को
प्रोन्नत करते हैं।
➡️ आर्थिक प्रणाली में पूर्ण समन्वय निजी हित की आदृश्य शक्ति
द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
➡️ इन विचारधाराओं को कार्लमार्क्स
ने स्वीकार नहीं किया और विकास का समाजवादी सिद्धान्त प्रतिपादित किया। कार्ल मार्क्स
चाहते थे कि राज्य अर्थव्यवस्था का निदेशन करें।
➡️ सोवियत रूस, हंगरी,
चकोस्लाविया, पोलैम्ड, बुल्गारिया, युगोस्लाविया, साम्यवादी चीन, वियतनाम, क्यूबा,
आदि में साम्यवादी राज्यों की स्थापना मार्क्सवादी विचार का परिणाम थी।
➡️ 1929 के महामंदी में
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लोकहित को प्रोन्नत करने में विफल हुई।
➡️ प्राचीन पूंजीवादी व्यवस्था
की विफलता की सीधी प्रतिक्रिया समाजवादी अर्थव्यवस्था के समर्थन के रूप में व्यक्त
हुई।
➡️ प्रो० पीगूं जो परम्परागत अर्थशास्त्री थे, उनका कहना था,
समाजवादी केन्द्रीय आयोजन की प्रणाली को यदि प्रभावी रूप से व्यवस्थित किया जाये तो
वह कई प्रकार से हमारी वर्तमान पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से बेहतर है।
➡️ पूँजीवादी मिश्रित अर्थव्यवस्था,
की अवधारणा में निजी क्षेत्र एवं सामाजिक क्षेत्र के सह अस्तित्व को स्वीकार किया जाता
है।
➡️ ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी एवं सार्वजनिक उद्यमों का
सह- अस्तित्व होता हो, के लिए हेन्सन ने द्वैत अर्थव्यवस्था (Dual Economy) का प्रयोग
किया है।
➡️ ऐसी अर्थव्यवस्था को
प्रो० लर्नर ने नियोजित अर्थव्यवस्था (Controlled Economy) का प्रयोग किया है।
➡️ भारत मिश्रित अर्थव्यवस्था
का सर्वोत्तम उदाहरण समझा जाता है।
➡️ मिश्रित अर्थव्यवस्था
अनिवार्यतः आयोजित अर्थव्यवस्था (Planned Economy) है।
योजना आयोग का गठन
➡️ योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है।
➡️ योजना आयोग में अध्यक्ष एक, उपाध्यक्ष एक, एक मंत्री तथा
चार अन्य सदस्य होते हैं।
➡️ राष्ट्रीय विकास परिषद को स्थापना अगस्त, 1952 में की गयी।
योजना आयोग के कार्य
1. प्राथमिकता का निर्धारण
2. उपर्युक्त मशीनरी का निर्धारण
3. प्रगति का मूल्यांकन
4. बाधक तत्त्वों को हटाना
5. सुझाव देना
6. साधनों का आवंटन लगाना
7. योजना आयोग और राज्यों के
बीच समन्वय करने हेतु राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया गया। लोकसभा के सामने योजना
को पेश करने से पूर्व राष्ट्रीय विकास परिषद से योजना का अनुमोदन होता है।
8. योजना आयोग एवं राज्यों
के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय विकास परिषद का संगठन किया गया।
राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्य
1. आर्थिक व सामाजिक नीति सम्बन्धी
पहलुओं पर विचार।
2. निर्धारित उपयोग को अपनाना।
3. समय-समय पर राष्ट्रीय योजना
की समीक्षा करना।
4. विभिन्न प्रकार की आलोचनाओं
एवं सुझावों को ध्यान में रखते हुए सितम्बर, 1967 में योजना आयोग का पुनर्गठन किया
गया।
विभिन्न पंचवर्षीय योजनायें
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 से 31 मार्च 1956)
➡️ प्रथम पंचवर्षीय योजना
का प्रारूप जुलाई, 1951 में प्रस्तुत किया गया तथा अन्तिम रिपोर्ट दिसम्बर, 1952 में
प्रकाशित हुई।
प्रथम योजना के प्रमुख उद्देश्य
1. द्वितीय विश्वयुद्ध और फिर
देश के विभाजन के बाद बरबाद हुई अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान
2. खाद्यान्न संकट का समाधान
3. स्फीतिकारी प्रवृत्तियों
को रोकना
4. ढाँचागत सुविधाओं का विस्तार
5. प्रथम योजना काल में सार्वजनिक
क्षेत्र में 1960 करोड़ रुपये व्यय किये गये।
6. इस योजना में सर्वोच्च वरीयता
कृषि क्षेत्र को प्रदान की गयी।
7. राष्ट्रीय आय में वार्षिक
वृद्धि दर पर 3.6 प्रतिशत
8. प्रति व्यक्ति आय वृद्धि
दर 1.6 प्रतिशत
9. वास्तविक व्यय 1960 करोड़
रुपये जबकि प्रस्तावित व्यय 2378 करोड़ रुपये।
10. खाद्यान्न उत्पादन में
20 प्रतिशत वृद्धि हुई।
11. अनिवार्य रूप से प्रथम
योजना एक पुनरुत्थान योजना थी।
द्वितीय योजना (1 अप्रैल, 1956 से 31 मार्च 1961)
➡️ द्वितीय योजना की परिकल्पना आर्थिक स्थायित्व के
वातावरण में हुई।
➡️ यह योजना 1 अप्रैल,
1956 से 31 मार्च, 1961 की अवधि के लिए लागू की गयी।
➡️ द्वितीय योजना का मॉडल
प्रो० पी० सी० महालानोविस ने तैयार किया था।
➡️ द्वितीय पंचवर्षीय योजना
के साथ अखिल भारतीय आयोजकों ने विकास की स्पष्ट रणनीति निर्माण की।
➡️ प्रो० महालोनोविस वस्तुतः
इस योजना के निर्माता समझे जाते हैं। ये रूसी अनुभव के आधार पर विकास की रणनीति निर्धारित
की।
➡️ भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री
पं० नेहरू के अनुसार भारी उद्योगों का विकास औद्योगीकरण का पर्यायवाची है।
➡️ दूसरी योजना में सर्वोच्च
वरीयता भारी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना पर दिया गया।
➡️ द्वितीय पंचवर्षीय योजना पर कुल परिव्यय 4600 करोड़ रुपये
व्यय किये गये।
तृतीय योजना (1961-66)
➡️ तीसरी योजना 1 अप्रैल,
1961 से 31 मार्च, 1966 की अवधि के लिए तैयार की गयी।
➡️ इस योजना में 7500 करोड़
रुपये के कुल व्यय की व्यवस्था की गई।
इस योजना के प्रमुख उद्देश्य
➡️ अर्थव्यवस्था की स्वावलम्बी
व आय स्फूर्ति वाली अर्थव्यवस्था बनाना।
➡️ राष्ट्रीय आय की वृद्धि
दर का लक्ष्य 5 प्रतिशत करना।
➡️ खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता ।
➡️ देश की मानव शक्ति का अधिकतम इस्तेमाल करना।
➡️ कृषि उत्पादन में 6
प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य।
➡️ औद्योगिक उत्पादन में
14 प्रतिशत का लक्ष्य।
वार्षिक योजनायें (1966-67 से 1968-69)
➡️ योजनाओं में इतिहास
में 1966-67, 1967-68, 1968-69 को योजना अवकाश की संज्ञा प्रदान की जाती है।
➡️ सन् 1962 का भारत चीन
युद्ध 1965 का भारत पाक युद्ध तथा 1965-66 के भयंकर सूखे ने देश का आर्थिक स्थिति को
कमजोर कर दिया। परिणामस्वरूप चौथी पंचवर्षीय योजना अपने निर्धारित समय से नहीं हो सकती।
चौथी योजना (1969-74)
➡️ चौथी योजना का कार्यक्रम
1 अप्रैल, 1966 से 31 मार्च 1974 रही।
➡️चौथी पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा श्री अशोक मेहता ने
1966 में तैयार की।
➡️ चौथी योजना के प्रमुख
उद्देश्य स्थिरता के साथ विकास (Growth with Stability) और आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक
प्राप्ति।
➡️ इस योजना में 5.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से राष्ट्रीय
आय प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
➡️ आत्मनिर्भरता की दृष्टि
से चौथी योजना 1971 में PL 480 के अधीन खाद्य आयात को पूर्णतया बन्द करने का लक्ष्य
रखा गया।
➡️ इस योजना में 24882
करोड़ रुपये का कुल परिव्यय निर्धारित किया गया।
पांचवी योजना (1974-79)
➡️ पांचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1 अप्रैल, 1974 में
31 मार्च, 1979 निर्धारित किया गया।
➡️ योजनाओं के इतिहास में
पांचवी योजना ही एक ऐसी योजना थी जिसे निर्धारित समय से पूर्व समाप्त कर दिया गया।
➡️ इस योजना के 1979 के स्थान पर एक वर्ष पूर्व 1978 में ही
समाप्त कर दिया गया।
➡️ "श्रीधर के नेतृत्व में" पांचवी योजना का एक नया
प्रलेख (Apporach to fifth plan) तैयार किया गया। जिसे लोक सभा ने स्वीकार कर लिया।
➡️ पांचवी योजना के प्रमुख उद्देश्य "गरीबी का उन्मूलन
और आत्मनिर्भरता" जिन्हें पूरा करने के लिए देश ने संकल्प किया।
➡️ पांचवी योजना में 5.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य
को व्यावहारिक समझा गया।
➡️ 1978-83 की अवधि के
लिए एक परिभ्रामक योजना (Rolling Plan) तैयार की गयी, इसके तैयार करने का श्रेय गुननार
मिर्डल को जाता है।
➡️ परिभ्रामक योजना को
6वी योजना की संज्ञा दी गयी लेकिन बाद में कांग्रेस के सत्ता में आ जाने पर इसे समाप्त
कर दिया गया।
छठवीं योजना (1980-85 )
➡️ इस योजना को कार्यकाल
1 अप्रैल, 1980 से 31 मार्च, 1985 निर्धारित किया गया।
➡️ इस योजना में 158710
करोड़ रुपये का कुल परिव्यय किया गया।
➡️ इस योजना में यह कल्पना
की गयी था कि विनियोग जो 1979-80 में 21.8 प्रतिशत था, बढ़ाकर 1984-85 में 23.1 प्रतिशत
किया जायेगा।
➡️ बचत दर जो 1979-80 में
21.2 प्रतिशत थी, बढ़कर 1984-85 में 24.5 प्रतिशत हो जायेगी।
➡️ छठवीं योजना में देशीय
उत्पाद में 5.2 प्रतिशत की वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर कल्पित की गई है और प्रति व्यक्ति
आय को 3.3 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर
सातवीं योजना
➡️ सातवीं पंचवर्षीय योजना
का प्रारूप 9 नवम्बर, 1985 को राष्ट्रीय विकास परिषद के द्वारा स्वीकृत किया गया।
➡️ इस योजना का कार्यकाल 1 अप्रैल, 1985 से 31 मार्च, 1990
निर्धारित किया गया।
➡️ इस योजना के लिए अपनायी
गयी रणनीति में निर्धनता, बेरोजगारी और क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या पर सीधा प्रहार
करने का संकल्प किया गया।
➡️ सातवीं योजना में
1.80,000 करोड़ रुपये परिव्यय की व्यवस्था की गयी।
➡️ सातवीं पंचवर्षीय योजना
में साधन लागत में शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में 1984-85 और 1989-90 के दौरान 5.5 प्रतिशत
की औसत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त हुई।
➡️ खनन विनिर्माण उद्योग
में 8.3 प्रतिशत, परिवहन में 8% सामाजिक सेवाओं में 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर का लक्ष्य
निर्धारित किया गया।
➡️ इस योजना में कुल परिव्यय
348148 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान किया गया। इस योजना में कृषि उत्पादन अपने
निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका।
दो वर्षों का अन्तराल (1990-91, 1991-92)
➡️ आठवीं योजना 1990 से ही प्रारम्भ होने वाली थी लेकिन राजनैतिक
अस्थिरता की वजह से इसमें दो वर्षों का विलम्ब हुआ। इस दो वर्षों के अन्तराल के लिए
वार्षिक योजनायें बनायी गयी।
➡️ वर्ष 1990-91 में कुल
वास्तविक व्यय 105316 करोड़ रुपये हुआ जिसमें से योजना व्यय 29118 करोड़ रुपये तथा
गैर योजना व्यय 76198 करोड़ रुपये था।
➡️ जबकि 1991-92 के लिए
कुल व्यय का अनुमान 113422 करोड़ रुपये था।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)
➡️ इस योजना की अवधि 1 अप्रैल, 1992 से 31 मार्च, 1997 रही।
➡️ इस योजना में कुल परिव्यय
798000 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय पूंजी निवेश तथा सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 434100
करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान था।
इस योजना के प्रमुख उद्देश्य
➡️ सन् 2000 तक पूर्ण रोजगार
के स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से रोजगार के पर्याप्त स्तर उपलब्ध कराना।
➡️ प्राथमिक शिक्षा को
सर्वसुलभ बनाना तथा 15 से 35 वर्ष के लोगों में निरक्षरता को पूर्णतः समाप्त करना।
➡️ सभी के लिए स्वच्छ पेयजल
➡️ स्थायी विकास के लिए
आधारभूत ढांचा को विकसित करना।
➡️ आठवीं योजना के दौरान
5 प्रतिशत को औसत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
➡️ आठवीं योजना में
789000 करोड़ रुपये के विनियोग की व्यवस्था की गयी।
➡️ जिसमें सकल देशीय उत्पाद
में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की जा सकेगी।
➡️ विनियोग दर 23.2 प्रतिशत
होगी जबकि वर्द्धमान पूंजी उत्पाद अनुपात 4 : 1 होगा।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997 से 2002)
➡️ इस योजना की कार्यविधि
1 अप्रैल, 1997 से 31 मार्च, 2002 है।
➡️ 9 जनवरी, 1999 को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने इस योजना के
मसौदे को मंजूरी प्रदान की।
➡️ इस योजना में विकास
का लक्ष्य 6.5 प्रतिशत निर्धारित किया गया पहले यह 7 प्रतिशत था।
➡️ पूरी योजना अवधि में 859000 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान
है।
➡️ कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों
के लिए विकास का लक्ष्य घटाकर 3.9 प्रतिशत कर दिया गया।
➡️ वृद्धि के साथ सामाजिक
न्याय और समानता नौवी योजना का लक्ष्य है।
➡️ कीमतों में स्थिरता
के साथ विकास की गति को त्वरित करना।
➡️ नौवीं योजना सहकारी
संघवाद पर आधारित है जिससे राज्यों को अधिकार सम्पन्न बनाया जा सके।
➡️ विश्व व्यापी मंदी के
वातावरण में नौवीं योजना को प्रारम्भ किया गया है।
➡️ नौवीं योजना के विकास की
दर 7 प्रतिशत वार्षिक का लक्ष्य रखा गया था, जिसे भाजपा गठबंधन सरकार ने संशोधित कर
6.5 प्रतिशत कर दिया।
➡️ कीमतों में स्थिरता
बनाये रखते हुए विकास की दर को त्वरित करना।
➡️ कृषि एवं ग्राम विकास को पर्याप्त प्राथमिकता देना ताकि
रोजगार को पर्याप्त अवसर सृजित किया जा सकें।
➡️ सभी नागरिकों को पौष्टिक सुरक्षा प्रदान करना, सहभागिता
को विकसित एवं उन्नति करना।
➡️ स्त्रियों और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को अधिक
अधिकार सम्पन्न बनाकर सामाजिक परिवर्तन लाना। आत्मनिर्भरता के प्रयासों को सबल बनाना।
➡️ नौवीं योजना में बृद्धिमान
पूँजी उत्पाद अनुपात (Incremental Capital output ratio) 4.03 आंका गया है।
➡️ नौवीं योजना में देशी
बचत सकल घरेलू उत्पाद का 26.2 रखी गयी है तथा विनियोग दर को 28.3 प्रतिशत।
➡️ नौवीं योजना में राजस्व
घाटे के शून्य हो जाने का लक्ष्य रखा गया है।
➡️ नौवीं योजना में कृषि
की औसत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य 3.5 प्रतिशत रखा गया है।
➡️ सबसे अधिक वृद्धि का
लक्ष्य संचार क्षेत्र के लिए निर्धारित किया गया है। उसके बाद विनिर्माण तथा वित्तीय
सेवाएं हैं।
➡️ नौवीं योजना का सार्वजनिक
क्षेत्र का परिव्यय आठवीं योजना के परिव्यय से 35.7 प्रतिशत अधिक है।
➡️ सार्वजनिक क्षेत्र के
कुल परिव्यय में केन्द्र का भाग 508021 करोड़ रुपये हैं तथा राज्यों का भाग 366979
करोड़ रुपये हैं।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007)
➡️ दसवीं पंचवर्षीय योजना
का उद्देश्य देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना तथा अगले 10 वर्षों में प्रतिव्यक्ति
आय दुगुनी करना प्रस्तावित किया गया है।
➡️ सकल घरेलू उत्पाद में
8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य।
➡️ 5 वर्षों में
78,000 करोड़ रुपये विनिवेश का लक्ष्य।
➡️ 10वीं पंचवर्षीय योजना
में 5 करोड़ रोजगार के अवसरों के सृजन का लक्ष्य।
➡️ सार्वजनिक क्षेत्र का
परिव्यय 15,92,300 करोड़ रुपये।
➡️ 2007 तक शिशु मृत्यु
दर घटाकर 45 प्रति हजार करने का लक्ष्य।
➡️ निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 28.4 प्रतिशत का लक्ष्य।
➡️ कर GDP अनुपात बढ़ाकर
2007 तक 8.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 10.3 प्रतिशत करने का लक्ष्य।
11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)
➡️11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दृष्टिकोण पत्र को
योजना आयोग की पूर्ण बैठक में 15 अक्टूबर, 2006 को स्वीकृति प्रदान की गयी जिसे 9 दिसम्बर,
2006 को राष्ट्रीय विकास परिषद ने भी स्वीकृत दे दी। इस योजना में योजना आयोग ने मूल
रूप से 9% वार्षिक की विकास दर का लक्ष्य रखा है जिसे प्रधानमन्त्री के पहल पर वर्ष
2011-2012 के लिए बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है। कृषि क्षेत्र के लिए योजना आयोग
ने 4 प्रतिशत की औसत विकास दर का लक्ष्य रखा है। 11 वीं योजना के दृष्टिकोण पत्र के
प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-
➡️ 11 वीं योजना में 9 प्रतिशत
वार्षिक की संवृद्धि दर का लक्ष्य जिसे अन्ततः 11वीं योजना के अन्तिम वर्ष में 10 प्रतिशत
किया जाना है।
➡️ तीव्रतर विकास के साथ
अधिक संहित संवृद्धि की दुतरफा रणनीति ।
➡️ सन् 2001 से 2011 तक के दशक में जनसंख्या वृद्धि की दशकीय
वृद्धि दर को घटाकर 16.2 प्रतिशत के स्तर पर लाना।
11 वीं योजना में साक्षरता दर को बढ़ाकर 75 प्रतिशत करना।
➡️ सन् 2012 तक देश के
सभी गांवों में स्वच्छ पेय जल की अविरत पहुँच सुनिश्चित करना।
➡️ योजनावधि में रोजगार
के 7 करोड़ नये अवसर सृजित करना ।
➡️ 11 वीं योजना के दौरान
सन् 2009 तक देश के सभी गांवों एवं निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले सभी परिवारों/घरों
में विद्युत संयोजन सुनिश्चित करना तथा सन् 2012 तक 24 घण्टे विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था
करना ।
➡️ नवम्बर 2007 तक देश
के प्रत्येक गांव में टेलीफोन सुविधा तथा सन् 2012 तक प्रत्येक गाँव को ब्रॉडबेण्ड
सुविधा से जोड़ना ।
11वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य
➡️ GDP वृद्धि दर का लक्ष्य
बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया। है।
➡️ वर्ष 2016-17 तक प्रति
व्यक्ति आय दोगुनी हो जायेगी।
➡️ 7 करोड़ नये रोजगार
सृजन किया जायेगा।
➡️ शिक्षित बेरोजगार दर
घटाकर 5 प्रतिशत से कम कर दिया जायेगा।
➡️ वर्तमान में स्कूली बच्चों के पढ़ाई छोड़ने की दर 52 प्रतिशत
है। इसे घटाकर 20 प्रतिशत किया जायेगा।
➡️ साक्षरता दर में वृद्धि
75 प्रतिशत तक किया जायेगा।
➡️ जन्म के समय नवजात शिशु
मृत्यु दर को घटाकर 28 प्रति हजार किया जाएगा।
➡️ मातृ मृत्यु दर को घटाकर प्रति हजार जन्म पर 1 करने का लक्ष्य
है।
➡️ सभी के लिए वर्ष 2009 तक स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराना।
➡️ लिंगानुपात दर को सुधारते
हुए वर्ष 2011-12 तक प्रति हजार 935 और वर्ष 2016-17 तक 950 प्रति हजार करने का लक्ष्य।
➡️ वर्ष 2009 तक सभी गांवों एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले
परिवारों तक बिजली पहुँचायी जायेगी।
➡️ नवम्बर 2009 तक प्रत्येक
गांव में दूरभाषा की सुविधा उपलब्ध होगी।
➡️ 2009 तक 1000 की जनसंख्या
वाले गाँवों को सड़क की सुविधा होगी।
➡️ वनीकरण की अवस्था में 5 प्रतिशत की वृद्धि की जायेगी।
आयोजन के 50 वर्षो की समीक्षा
➡️ भारत में आयोजन आरम्भ
हुए लगभग 50 वर्ष हो चुके है। अतः इनकी उपलब्धियों एवं विफलताओं की चर्चा आवश्यक है।
पंचवर्षीय योजना में विकास निष्पाद (प्रतिशत प्रतिवर्ष) |
||
योजना |
लक्ष्य |
वास्तविक |
पहली योजना (1951-56) |
2 |
3.61 |
दूसरी योजना (1956-61) |
4.5 |
4.27 |
तीसरी योजना (1961-66) |
5.6 |
2.84 |
चौथी योजना (1969-74) |
5.7 |
3.30 |
पाँचवीं योजना (1974-79) |
4.4 |
4.80 |
छठवीं योजना (1980-85) |
5.2 |
5.66 |
सातवीं योजना (1985-90) |
5.0 |
6.01 |
आठवीं योजना (1992-97) |
5.6 |
6.5 |
नौवीं योजना
(1997-2002) |
6.5 |
5.4 |
दसवीं योजना (2002-07) |
8% |
|
ग्यारहवीं योजना (2007-12) |
9% |
|
आत्मनिर्भरता एवं पंचवर्षीय योजनायें
➡️ स्वतन्त्रता प्राप्ति के
पश्चात् पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य यह रहा है कि आत्मनिर्भरता प्राप्त की जाये।
➡️ प्रथम पंचवर्षीय योजना में
(1951-56) में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी ताकि खाद्य उत्पादन में स्वावलम्बिता
प्राप्त हो सके ।
➡️ दूसरी पंचवर्षीय योजना में
(1956-61) में तीव्र औद्योगिकीकरण विशेषकर पूँजीवस्तु क्षेत्र पर बल दिया गया।
➡️ आत्मनिर्भरता के लक्ष्य
की स्पष्ट घोषणा पहली बार तृतीय योजना में (1961-66) में इन शब्दों में की गयी।
"तीसरी योजना काल गहन विकास के दशक या कुछ अधिक समय की प्रथम अवस्था है जिसका
उद्देश्य आत्मनिर्भरता एवं स्वयं स्फूर्ति अर्थव्यवस्था की स्थापना है।"
➡️ चौथी योजना (1969-74) के
प्रलेखों में आत्मनिर्भरता की धारणा निखर कर उभरी।
➡️ चौथी योजना की रूपरेखा
1966 में श्री अशोक मेहता के निर्देशन में तैयार की गयी।
➡️ दूसरी पंचवर्षीय योजना की
रूपरेखा श्री पी०सी० महालोनोविस ने तैयार की गयी।
➡️ पांचवी पंचवर्षीय में
(1974-79) में यह उल्लेख किया है “निर्धनता की समाप्ति और आत्मनिर्भरता की प्राप्ति
।”
➡️ छठवीं पंचवर्षीय योजना
(1980-85) में निर्धनता की समाप्ति और आत्मनिर्भरता की प्राप्ति के दो उद्देश्य माने
गये।
➡️ सातवीं योजना (1985-90)
का मुख्य उद्देश्य आयोजन के मार्गदर्शी सिद्धान्त होंगे विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता
और सामाजिक न्याय ।
➡️ आठवीं पंचवर्षीय योजना
(1992-97) में वृद्धि दर की स्थापित प्रवृत्ति को ही बनाये रखा जाय ताकि विदेशी संसाधनों
पर कम निर्भरता हो ।
➡️ नौवीं की कार्यावधि सन्
1997 से 2002 तक है।
समय- समय पर भारत में गठित समितियाँ
समिति का नाम |
कार्य क्षेत्र |
1. के० एन० राय |
कृषि जोतकर |
2. महालनोविस समिति |
राष्ट्रीय आय |
3. गोस्वामी समिति |
औद्योगिक रुग्णता |
4. टण्डन समिति |
औद्योगिक रुग्णता |
5. तिवारी समिति |
औद्योगिक रुग्णता |
6. भगवती समिति |
बेरोजगारी |
7. वांचू समिति |
प्रत्यक्ष कर |
8. स्वामीनाथन समिति |
जनसंख्या नीति |
9. दन्तवाला समिति |
बेरोजगारी के अनुमान |
10. चक्रवर्ती समिति |
मौद्रिक प्रणाली पर पुनर्विचार |
11. सरकारिया समिति |
केन्द्र राज्य सम्बन्ध |
12. हजारी समिति |
औद्योगिक नीति |
13. दत्त समिति |
औद्योगिक लाइसेंस |
14. चलैया समिति |
कर सुधार |
15. खुसरो समिति |
कृषि साख |
16. नरसिम्हम समिति |
बैंकिंग सुधार |
17. जानकीरमन समिति |
प्रतिभूति घोटाला |
18. रेखी समिति |
अप्रत्यक्ष कर |
19. रंग राजन समिति |
भुगतान सन्तुलन |
20. सोधनी समिति |
विदेशी मुद्रा बाजार |
21. ज्ञान प्रकाश समिति |
चीनी घोटाला |
22. के० आर० वेणु गोपाल समिति |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली |
23. शंकर लाल गुरु समिति |
कृषि विपणन |
24. डी० के० गुप्ता समिति |
दूर संचार विभाग |
25. भण्डारी समिति |
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की पुनर्संरचना |
26. केलकर समिति |
प्राकृतिक गैस मूल्य |
27. मल्होत्रा समिति |
बीमा क्षेत्र में सुधार |
28. बाथुल समिति |
म्यूच्युअल फण्ड स्कीम |
29. नन्द कर्बी समिति |
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिभूतियों |
30. वैद्यनाथन समिति |
सिंचाई के पानी |
31. राकेश मोहन समिति |
आधारिक संरचना वित्तीयन |
32. मिर्धा समिति |
सहकारिता आन्दोलन |
33. मीरा सेठ समिति |
हथकरघा क्षेत्र में ऋण कोष |
34. जालान समिति |
इण्टरनेट सेवा में निजी हिस्सेदारी |
35. रामकृष्ण समिति |
एअर इंडिया में सहकारी भागीदारी की सिफारिश के लिए |
36. आचार्य समिति |
प्राथमिक पूँजी बाजार में सुधार |
37. वांचू समिति |
प्रत्यक्ष कर |
38. एल० के० झा समिति |
अप्रत्यक्ष कर |
39. स्वामीनाथन समिति (1994) |
जनसंख्या नीति |
40. वैद्यनाथन समिति |
सिंचाई के पानी |
41. महालनोबिस समिति |
राष्ट्रीय आय |
42. राजा चेलैया समिति |
कर सुधार |
43. चेलैया समिति |
काला धन की समाप्ति |
44. भानुप्रताप सिंह समिति |
कृषि |
45. जी०वी० रामकृष्णा समिति |
सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के शेयरों का विनिवेश |
46. नरेशचन्द समिति |
कॉरपोरेट गवर्नेस |
47. बलवन्त राय मेहता समिति |
विकेन्द्रीकरण के लिए सुझाव |
48. ज्योति बसु समिति |
ऑक्ट्रॉई समाप्ति पर रिपोर्ट |
49. खुसरो समिति |
कृषि साख |
50. गोइपोरिया समिति (1991) |
बैंक में ग्राहक सेवा सुधार |
51. तिवारी समिति (1984) |
औद्योगिक रुग्णता |
52. डॉ० मेहता समिति |
आई० आर० डी०पी० की प्रगति पर पुनर्विचार |
53. रंगराजन समिति (1991) |
भुगतान सन्तुलन |
54. वाघुल समिति |
म्यूचुअल फंड स्कीम |
55. नादकर्णी समिति |
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिभूतियां |
56. मल्होत्रा समिति |
बीमा क्षेत्र में सुधार |
57. सेन गुप्ता समिति |
शिक्षित बेरोजगारी |
58. डॉ० विजय केलकर समिति |
प्राकृतिक गैस मूल्य |
59. बी० एन० युगांधर समिति (1995) |
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना |
60. नन्जुन्दप्पा समिति (1993) |
रेलवे किराये भाड़े |
61. भण्डारी समिति (1994) |
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्संरचना |
62. सुन्दर राजन समिति (1995) |
(खनिज) तेल क्षेत्र में सुधार |
63. डी०के० गुप्ता समिति (1995) |
दूरसंचार विभाग की पुनर्सरचना |
64. शंकरलाल गुरु समिति |
कृषि विपणन |
65. के० आर० वेणुगोपाल समिति (1994) |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् केन्द्रीय निर्गम मूल्य निर्धारण |
66. एम०जी० जोशी समिति (1994) |
दूरसंचार में निजी क्षेत्र के प्रवेश सम्बन्धी दिशा-निर्देश |
67. राकेश समिति (1995) |
आधारिक संरचना वित्तीयन |
68. ज्ञान प्रकाश समिति (1994) |
चीनी घोटाला |
69. मालेगाँव समिति (1995) |
प्राथमिक पूँजी बाजार |
70. सुधानी समिति (1995) |
विदेशी मुद्रा बाजार |
71. के० एन० काबरा समिति |
फ्यूचर ट्रेडिंग |
72. पिन्टो समिति (1997) |
नौवहन उद्योग |
73. चंद्रात्रे समिति (1997) |
शेयर व प्रतिभूतियों की स्टॉक एक्सचेंजों में डोलिस्टिंग |
74. यू०के० शर्मा समिति (1998) |
नाबार्ड द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की देखरेख |
75. अजीत कुमार समिति (1997) |
सेना के वेतनों की विसंगतियाँ |
76. सी०बी० भावे समिति (1997) |
कम्पनियों द्वारा सूचनाएं प्रस्तुत करना |
77. धानुका समित्ति |
प्रतिभूति बाजार से सम्बन्धित नियम |
78. दवे समिति (2000) |
असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन को सिफारिश |
79. चक्रवर्ती कमेटी (1985) |
मौद्रिक पद्धति के कार्यों की समीक्षा |
80. चक्रवर्ती समिति-2 |
बैंकिंग क्षेत्र सुधार |
81. ओ०पी० सोधानी विशेषज्ञ दल (1995) |
विदेशी विनिमय बाजार का विकास |
82. एस०एस० तारापोर समिति (1997) |
पूँजी खाते की परिवर्तनशीलता |
83. पी०सी० अलेक्जेण्डर समिति (1978) |
आयात-निर्यात नीतियों का उदारीकरण |
84. महाजन समिति (मार्च 1997) |
चीनी उद्योग |
85. आर०बी० गुप्ता समिति (दिसम्बर 1997) |
कृषि साख |
86. तारापोर समिति (जुलाई 2001) |
यू०टी०आई० के शेयर सौदों की जाँच |
87. माशेलकर समिति (जनवरी 2002) |
ऑटो फ्यूल नीति |
88. माशेलकर समिति (अगस्त 2003 में रिपोर्ट) |
नकली दवाओं का उत्पादन |
89. एन०एस० वर्मा समिति (1999) |
वाणिज्यिक बैंकों की पुनर्संरचना |
90. पार्थ सारथी शोम समिति |
कर नीति |
91. वाई० वी० रेड्डी समिति (अक्टूबर 2001) |
आयकर छूटों की समीक्षा |
92. भूरेलाल समिति |
मोटर वाहन करों में वृद्धि |
93. अभिजीत सेन समिति (जुलाई 2002) |
दीर्घकालीन अनाज नीति |
94. एन० आर० नारायण मूर्ति समिति (2003) |
कार्पोरेट गवर्नेस |
95. एन०के० सिंह समिति |
विद्युत क्षेत्र में सुधार |
96. सुशील कुमार समिति |
बीटी कपास की खेती की समीक्षा |
97. वी० एस० व्यास समिति (दिसम्बर 2003) |
कृषि एवं ग्रामीण साख विस्तार |
98. सच्चर समिति-2 (2005) |
मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन |
99. मालेगाँव समिति (2006) |
लेखा मानकों पर सुझाव हेतु |
100. मिस्त्री समिति (2007) |
वित्तीय गतिविधियों के सुधार हेतु सुझाव |
101. दीपक पारिख समिति (2007) |
आधारिक संरचना के वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु |
102. तेन्दुलकर समिति (2008) |
गरीबी रेखा के नीचे की लाइन की समीक्षा हेतु |
103. बी० के० चतुर्वेदी समिति (2008) |
तेल कम्पनियों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा हेतु |
104. केलकर समिति |
पिछड़ी जातियों पर पहली समिति |
105. मण्डल कमीशन |
पिछड़ा जातियों के लिए सीटों का आरक्षण |
106. आबिन्द हुसैन समिति |
छोटे पैमाने के उद्योगों के सुझाव हेतु |
107. नरहसिंहम समिति |
बैंकिंग सुधार |
108. तेंदुलकर समिति |
निर्धनता रेखा के आकलन हेतु |
109. अभिजीत सेन समिति (मार्च 2007 में गठित) |
कृषिगत उत्पादों के थोक एवं खुदरा मूल्यों पर फ्यूचर ट्रेडिंग की समीक्षा |
110. सुब्बा राव समिति (जुलाई 2009) |
मौद्रिक नीति पर तकनीकी सलाह हेतु |
111. डॉ० कीर्ति एस० पारीक समिति (अगस्त, 2009) |
पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्य प्रणाली पर सुझाव देने हेतु |
112. डॉ० सी० रंगराजन समिति (अप्रैल 2010) |
सार्वजनिक व्यय के बेहतर प्रबन्धन के लिए |