कृषि (Agriculture)
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कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
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भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान काफी अधिक
है, किन्तु यह धीरे-धीरे कम हो रहा है। 1950-51 में यह 55.4% था जो 2009-10 में
औसत आधार पर घटकर 16.4% रह गया।
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कुल श्रम शक्ति का लगभग 59.7% भाग कृषि क्षेत्र में लगा
है। निजी क्षेत्र का यह अकेला सबसे बड़ा व्यवसाय है।
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देश का लगभग 56% कृषि वर्षा पर निर्भर है।
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भारत के प्रमुख उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त
होता है।
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भारत के विदेशी व्यापार का अधिकांश मात्र कृषि से जुड़ा
हुआ है।
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भारत की मुख्य फसल चावल है।
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वर्ष 2007-08 में देश में खाद्यान्न उत्पाद 230.78
मिलियन टन अनुमानित किया गया था। वर्ष 2008-09 के दौरान कृषि उत्पादन का अनुमान
234.47 मि० टन लगाया गया था। जबकि लक्ष्य 233 मिलियन टन था। वर्ष 2009-10 के लिए
अन्तिम अनुमान कुल खाद्यान्न 218.11 मि० टन अनुमानित किया गया।
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वर्ष 2010-11 के चतुर्थ अग्रिम अनुमानों में खाद्यान्न
उत्पादन का 241.56 मि० टन का अनुमान लगाया गया है।
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देश
में हरित क्रान्ति 1960 के दशक के मध्य (1966-67) से प्रारम्भ हुई मानी जाती है।
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हरित
क्रान्ति के परिणामस्वरूप कुल खाद्यान्न उत्पादन में गेहूँ का भाग काफी बढ़ गया है,
चावल का भाग लगभग स्थिर रहा है, जबकि मोटे अनाज व दालों के भाग घटे हैं।
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कृषि
क्षेत्र की औसत विकास दर 2007-08 में 5.8%, 2008-09 में (-) 0.1%, 2009-10 में
0.4% तथा वर्ष 2010-11 में 6.6% अनुमानित की गई है। 11वीं योजना की लक्षित वार्षिक
औसत 4% की दर प्राप्त करने के लिए 2011-12 में 8.5% की वृद्धि दर प्राप्त करने की आवश्यकता
है।
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वर्ष
2009 में खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 444 ग्राम प्रति दिन थी जिसमें 37
ग्राम दालें व 407 ग्राम अनाज था।
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मोटे
अनाज के घटकों में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी (Ragi), 2 छोटे मंडले (Small
Millets) तथा जौ आते हैं।
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वर्ष
2009-10 के लिए वास्तविक अनुमानों में मोटे अनाजों का उत्पादन 33.35 मिलियन टन आकलित
किया गया था, जो 2010-11 के चतुर्थ अग्रिम अनुमान में 42.22 मि० टन बताया गया है।
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भारत
में उत्पादित तिलहनों में 9 प्रमुख तिलहन हैं-मूँगफली, सरसों और तोरिया, सोयाबीन, सूरजमुखी,
तिल (Sesamum), अरण्डी (Castor), नाइजर (Niger), अलसी (Linseed) और कुसुम्ब
(Safflower)।
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2009-10 के दौरान दालों का उत्पादन 14.66 लाख टन था। 2010-11 में इसके 18.09 लाख टन
हो जाने का चतुर्थ अग्रिम अनुमान है।
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2009-10 के दौरान 55.1 लाख टन मूंगफली उत्पादन का अनुमान है। 2010-11 के चतुर्थ अग्रिम
अनुमान में इसका 75.4 लाख टन उत्पादन का अनुमान है।
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2009-10 में 100.5 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ, जिसका 2010-11 में 126.6 लाख टन
होने का चतुर्थ अग्रिम अनुमान है।
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भारत
में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। 2009-10 में गेहूं का उत्पादन
80.80 मिलियन टन का अनुमान लगाया गया, जबकि वर्ष 2010-11 के लिए चतुर्थ अग्रिम अनुमानों
में गेहूँ का उत्पादन 85.93 मिलियन टन लगाया गया है।
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चावल का उत्पादन 2009-10 के दौरान 921.7 लाख टन हुआ। 2010-11 में इसके 953.2 लाख टन
होने का अग्रिम अनुमान है।
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उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार विश्व में चीनी का सर्वाधिक उत्पादन ब्राजील में व सर्वाधिक
खपत भारत में होती है।
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2009-10 के दौरान गन्ने का 29.24 करोड़ टन का उत्पादन हुआ 2010-11 में इसका उत्पादन
33.92 करोड़ टन होने का अनुमान लगाया गया है।
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2009-10 में कपास का उत्पादन 242.2 लाख गाँठों (170 किया की एक गाँठ ) का था।
2010-11 में 334.2 लाख गाँठों के उत्पादन का तृतीय अग्रिम अनुमान है।
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जूट एवं मेस्ता का उत्पादन 2009-10 में 118.2 लाख गाँठों (180 किया० की प्रत्येक गाँठ)
का हुआ, जबकि 2010-11 में 100.8 लाख गाँठों के उत्पादन का चतुर्थ अग्रिम अनुमान है।
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भारत में गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। दूसरे व तीसरे स्थान
पर क्रमशः पंजाब व हरियाणा हैं।
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चावल का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य प० बंगाल है, दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमशः
उत्तर प्रदेश व पंजाब हैं।
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मोटे अनाज का सर्वाधिक उत्पादन राजस्थान में होता है। दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमशः
महाराष्ट्र और कर्नाटक है।
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दालों का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमशः
उत्तर प्रदेश व राजस्थान है।
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कुल तिलहनों का सर्वाधिक उत्पादक राज्य गुजरात है। मध्य प्रदेश और राजस्थान क्रमशः
दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
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काली चाय के उत्पादन एवं उपभोग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है।
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भारत विश्व में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है और यहाँ विश्व का उत्पादन
27% उत्पादन और विश्व व्यापार का 13% व्यापार होता है। चाय का निर्यात घरेलू उत्पादन
का लगभग 20% है।
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वर्ष 2008 के दौरान 2050 करोड़ किया० चाय का भारत से निर्यात किये जाने का अनुमान है।
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नारियल के उत्पादन, उपभोग तथा निर्यात में भारत का विश्व में पहला स्थान है, जबकि प्रति
हेक्टेयर उत्पादकता के मामले में मैक्सिको का पहला स्थान है।
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विश्व के कुल कॉफी उत्पादन के 4.0 प्रतिशत भाग का उत्पादन भारत में होता है तथा भारत
का छठवाँ स्थान है।
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भारत में कॉफी के कुल उत्पादन का 56.5% केवल कर्नाटक राज्य में होता है।
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उत्तर प्रदेश में फलोत्पादन में क्रान्ति लाने के लिए राज्य का पहला उद्यान शोध केन्द्र
मथुरा में स्थापित किया जायेगा।
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अण्डों के उत्पादन में भारत का विश्व में पाँचवाँ स्थान हैं, यहाँ प्रति वर्ष लगभग
42 अरब अण्डों का उत्पादन होता है। अण्डा उत्पादन में विश्व के पहले तीन राष्ट्रग क्रमश:
अमरीका, चीन व ब्राजील है।
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विश्व में अफीम का सर्वाधिक उत्पादन अफगानिस्तान में होता है, जहाँ शेष विश्व की तीन
गुना अफीम उत्पादन होती है।
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2008-09 के आँकड़ों के अनुसार देश में रबड़ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1867 किया
है, जो कि विश्व में सर्वाधिक है, केरल रबड़ उत्पादक राज्यों में प्रमुख है। जहाँ देश
का 90% रबड़ उत्पादन होता है। विश्व में रबड़ उत्पादन में थाइलैण्ड का प्रथम स्थान
है।
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1998 से भारत विश्व का पहला सबसे बड़ा दूध उत्पादक राष्ट्र हो गया है। 1950-51 में
भारत में दूध का उत्पादन 17 मिलियन टन था, जो 2008-09 में 108.5 मिलियन टन हो गया।
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1950-2010 की अवधि में भारत में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धि 124 ग्राम प्रतिदिन से
बढ़कर 263 ग्राम प्रतिदिन हो गई। है, जबकि न्यूनततम आवश्यकता 211 ग्राम प्रतिदिन है।
पंजाब प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता सर्वाधिक 800 ग्राम है। विश्व में दूध की प्रति
व्यक्ति उपलब्धता 265 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति अनुमानित की गई है। इसी अवधि में
अण्डों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि 10 प्रतिवर्ष से बढ़कर 42 प्रतिवर्ष हो गई है।
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वृहद् फसल बीमा योजना (Comprehensive Crop Insurance Scheme) अप्रैल 1985 में की गयी
थी।
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केन्द्र सरकार के पास खाद्यान्नों का कुल आरक्षित भण्डार अक्टूबर 2010 में 46.22 मिलियन
टन था। जो बफर के निर्धारित न्यूनतम 21.2 मिलियन टन के मानकों से अधिक था।
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भारत विश्व में सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र और फलों का दूसरा सबसे बड़ा
उत्पादक राष्ट्र है।
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भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
देश है। मत्स्यिकी क्षेत्र में 11 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
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फरवरी 2004 में सरकार ने राष्ट्रीय कृषक आयोग गठित किया था।
➡️ कृषि को संस्थागत ऋणों के
प्रवाह में सबसे बड़ा हिस्सा 61% वाणिज्यिक बैंकों का, उसके बाद सरकारी बैंक (28%)
तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (11%) है वर्ष 2010-11 के दौरान 375000 करोड़ रुपये के
ऋण के लक्ष्य के विरुद्ध वास्तविक ऋण वितरण 426531 करोड़ रुपये का रहा है, इसमें
314182 करोड़ रुपये वाणिज्यिक बैंकों द्वारा 69076 करोड़ रुपये सहकारी बैंकों द्वारा
तथा शेष 43273 करोड़ रुपये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) द्वारा उपलब्ध कराये गये
हैं।
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वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए कृषि क्षेत्र को 475000 करोड़ रुपये के संस्थागत ऋण उपलब्ध
कराये जाने का लक्ष्य है।
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विश्व में तम्बाकू के सबसे बड़े उत्पादक व उपभोक्ता राष्ट्र चीन में 1 मई, 1997 से
सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रमान निषिद्ध किया हुआ है।
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भारत में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने तथा तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन पर
1 मई, 2004 में प्रतिबन्ध लगा हुआ है।
मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना
★
आर्थिक मामलों पर मंत्रिमण्डलीय समिति ने चाय, कॉफी, रबर व तम्बाकू के मूल्यों में
उतार-चढ़ाव को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से 'मूल्य स्थिरीकरण कोष' (Price
Stabilsation Fund-PSF) स्थापित करने के प्रस्ताव को अनुमोदन 20 फरवरी, 2003 को प्रदान
कर दिया था।
★
मृत्यु स्थिरीकरण की इस अनूठी योजना के तहत् कोष में सरकार द्वारा 300 करोड़ रुपये
का योगदान 150-150 करोड़ रुपये की दो किश्तों में क्रमश: 2002-03 व 2003-4 के दौरान
किया गया मूल्य स्थिरीकरण के लिए बैचमार्क (Benchmark) मूल्य का निर्धारण विगत सात
वर्षों के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य के चल माध्य (Seven Yearly Moving Average of
International Price) के द्वारा निर्धारित किया जायेगा। बाजार मूल्य के 20 प्रतिशत
तक अधिक या कम होने पर कोई कदम नहीं उठाया जायगा, किन्तु मूल्य में 20 प्रतिशत से भी
अधिक कमी आने की स्थिति में उत्पादकों को राहत इस कोष से प्रदान की जायेगी। इस प्रकार
बाजार मूल्य के बैंचमार्क मूल्य के 20 प्रतिशत से भी अधिक होने पर उत्पादकों को अतिरिक्त
राशि कोष में जमा करनी होगी।
देश में वनों की स्थिति
★ देश में वनों की स्थिति पर
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की द्विवार्षिक रिपोर्ट फरवरी 2008 में जारी की
गयी। रिपोर्ट के अनुसार 2003-05 की अवधि में देश में वनाच्छादित क्षेत्रों में कमी
आई है। सन् 2003 में देश ने कुल भू-भाग की जहाँ 20.64 प्रतिशत भाग वनाच्छादित था, वहीं
2005 में 20.60 प्रतिशत ही वनाच्छादित रह गया था, जबकि राष्ट्रीय वन नीति में 33 प्रतिशत
भू-भाग को वनाच्छादित करने का लक्ष्य है।
★
वन मंत्रालय की इस रिपोर्ट के अनुसार 2005 में देश वनाच्छादित क्षेत्र 6,77,088 वर्ग
कि०मी० था, जबकि दो वर्ष पूर्व 2003 यह 6,78,333 वर्ग कि०मी० था, इस प्रकार दो वर्षों
में वन क्षेत्र में 1245 वर्ग कि०मी० की कमी आई है, रिपोर्ट में बताया गया है कि
2005 में देश में कुल 677088 वर्ग किमी वन क्षेत्र में 54,569 वर्ग कि०मी० में घने
वन (Dense Forests ) 3,32,647 वर्ग कि०मी० में मझोले वन (Moderately Dense) व
2,89,872 वर्ग कि०मी० क्षेत्र में खुले/छितरे वन (Open/Degraded Forests) शामिल थे,
इस प्रकार देश के कुल भू-भाग का 1.7 प्रतिशत घने वनों से 10.12 प्रतिशत मझोले वनों
से तथा 8.82 जवाहर भाग खुले वनों से आच्छादित
था।
रोजगार अथवा जवाहर ग्राम समृद्धि योजना
★
इसे
1 अप्रैल, 1989 से लागू किया गया था।
★
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का मुख्य उद्देश्य गाँवों में रहने वाले निर्धन परिवारों
के लोगों का जीवन स्तर सुधारना उनको लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है।
★
इस योजना के क्रियान्वयन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
★
जवाहर
ग्राम समृद्धि योजना के अन्तर्गत वित्त पोषण केन्द्र तथा राज्यों के द्वारा 80.20 में
किया गया था।
★ योजना
के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत को जनसंख्या के आधार पर धन आवंटित किया जाता है।
गंगा कल्याण योजना
★
गंगा
कल्याण योजना की शुरुआत 1 फरवरी, 1997 को की गयी थी।
★
इस
योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की सहायता करना है। जिससे वे आर्थिक सहायता रख रखाव
तथा ऋण सम्बन्धी व्यवस्था के माध्यम से भूमिगत जल तथा भूतल के लिए योजनाएँ बन सके।
★
गंगा
कल्याण योजना के अन्तर्गत 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से वित्तीय सहायता कृषकों
को दी जाती है।
★
निर्धनता
रेखा के नीचे के लघु तथा सीमांत कृषक इस योजना के लक्षित समूह हैं।
★
गंगा
कल्याण रोजगार योजना का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। अप्रैल, 1999 को शुरु स्वर्ण जयन्ती
ग्राम रोजगार योजना में इसका विलय कर दिया गया है।
राष्ट्रीय कृषक नीति, 2007
★
भारत
सरकार ने राष्ट्रीय कृषक आयोग की सिफारिशों को मानते हुए और राज्य सरकार से परामर्श
करने के बाद राष्ट्रीय कृषक नीति 2007 को अपनाया है। राष्ट्रीय कृषक नीति में अन्य
बातों के साथ-साथ फार्म क्षेत्र के विकास के लिए सम्पूर्ण पहँच प्रदान कर दी है। इसकी
कवरेज में व्यापक क्षेत्र शामिल हैं-
(1)
उत्पादन और उत्पादकता पर ही किसानों के आर्थिक स्थिति में सुधार करने पर ध्यान केन्द्रित
रहेगा।
(2) परिसम्पत्ति में सुधार - यह परिवार के पास उत्पादक
परिसम्पत्ति अथवा विपणन योग्य धारक है अथवा प्राप्त करनी है।
(3)
कुशलता पूर्वक जल का उपयोग-नयी प्रौद्योगिकियाँ जैव प्रौद्योगिकी सहित आसूचना और संचार
प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुप्रयोग और नैनो प्रौद्योगिकी
इत्यादि भूमि और जल की यूनिट उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
(4)
राष्ट्रीय कृषि जैव-सुरक्षा कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए स्थापित किया जायेगा।
(5)
बीज और मृदा स्थिति लघु कृषि उत्पादन को बढ़ाने में अच्छी गुणवत्ता के बीज, बीमारी
मुक्त रोपण सामग्री व मृदा किस्म में सुधार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। प्रत्येक किसान
को मृदा स्थिति पास बुक जारी की जानी है जिसमें फार्म की मिट्टी की समेकित जानकारी
और अनुवर्ती परामर्श दिये जाने चाहिए।
(6)
महिलाओं के लिए साक्षरता सेवाएँ
(7)
ऋण व बीमा-किसानों को उचित ब्याज दरों पर वित्तीय सेवाएँ समय पर, पर्याप्त मात्रा में
और आसानी से मुहैया करायी जायेगी।
(8)
विस्तार सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिए राज्य सरकारों के माध्यम से आई सीटी की सहायता
के साथ ग्राम स्तर पर ज्ञान चौपाल और उत्कृष्ट कृषकों के क्षेत्र में कृषक को बढ़ावा
देने के लिए फार्म स्कूल स्थापित किया जायेंगे।
(9)
पूरे देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य कार्य-प्रणाली प्रभावी रूप से क्रियान्वित होगी
ताकि कृषि उत्पादों के लाभकारी मूल्य प्रदान किया जा सके।
(10)
शुष्क भूमि कृषि क्षेत्र में मुख्यतः उगने वाले बाजरा, ज्वार, रागी, मिलेट जैसी पोषक
फसलों को शामिल कर भोजन सुरक्षा का विस्तार किया जायेगा।
कृषि प्रणालियाँ
★
कृषि
प्रणाली से आशय कृषि करने के ढंग से होता है। अन्य शब्दों में कृषक द्वारा जिस ढंग
से खेती की जाती है उसे कृषि प्रणाली कहते हैं।
★
पारिवारिक
कृषि में कृषक भूमि का स्वामी होता है तथा भूमि पर खेती स्वयं तथा परिवरा की सहायता
से करता है। यदि कृषक के पास भूखण्ड बड़ा होता है तो अधिक श्रमिक रखकर भी कार्य कर
लेता है।
★ जब
सरकार द्वारा सभी भूमियों का स्वामित्व अपने हाथ में ले लिया जाता है तो भूमियों पर
खेती श्रमिकों की सहायता से सरकारी कर्मचारी करते हैं। इस प्रकार की खेती को राजकीय
कृषि कहा जाता है। इस कृषि में भूमि का स्वामित्व सरकार के पास रहता है।
★
संयुक्त
कृषि संगठन का वह स्वरूप है जिसमें दो या अधिक कृषक साझेदारी के आधार पर अपने कृषि
साधनों को करके कार्य करते हैं।
★
सामूहिक
कृषि से आशय उस कृषि से है, जिसमें किसी राजनीति के अन्तर्गत छोटे-छोटे भूखण्डों को
मिलाकर एक बड़ा भूखण्ड बना लिया जाता है जो इस भूखण्ड का स्वामी माना जाता है।
★
सामूहिक कृषि का प्रचलन सबसे पहले सोवियत संघ में किया गया था।
★
पूँजीवादी
कृषि के अन्तर्गत पूँजीपतियों, कम्पनियों तथा निगमों के पास बड़े-बड़े भूखण्ड होते
हैं जो या तो स्वयं क्रय करते हैं या सरकार द्वारा उनको अधिग्रहीत कर दे दी जाती है।
यह पूँजीपति उन भूखण्डों पर मजदूरों को सहायता से एवं आधुनिक तकनीक एवं साधनों को काम
में लाकर भूमि का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।
★
पूँजीवादी कृषि ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जाता है।
★ सहकारी
कृषि से आशय खेती की उस प्रणाली से है जो कृषक अपने छोटे-छोटे खेतों तथा उपज से प्राप्त
आय का वितरण भूमि के अनुपात एवं श्रम के आधार पर करते हैं।
★
सहकारी
कृषि की प्रकृति ऐच्छिक होती है तथा सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।
★
सहकारी
खेती में पारिश्रमिक तथा मजदूरी भूमि में अनुपात दी जाती है।
विशेष कृषि पद्धतियाँ
★
गहन
कृषि से आशय अधिक फसल की प्राप्ति हेतु उस भूमि को अधिक से अधिक बोया जाना गहन कृषि
है। गहनता प्रतिशत = कुछ बोया गया क्षेत्र/शुद्ध बोया गया क्षेत्र x 100
★
गहन
खेती में भूमि की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिये फसल के प्रकार को चक्रानुसार बदल
दिया जाता है।
★
जहाँ
जनसंख्या अपेक्षाकृत कम होती है तथा कृषि योग्य भूमि अधिक होती है, उन देशों में विस्तृत
खेती की जाती है। व्यापार करना तथा अधिकाधिक अन्न का उत्पादन करना विस्तृत खेती का
उद्देश्य होता है।
★
विस्तृत
खेती बड़े जोत वाले कृषकों द्वारा की जाती है।
★
जल
की उपलब्धता के आधार पर कृषि प्रणाली को चार भागों में विभाजित किया जाता है शुष्क
कृषि, आर्द्र कृषि, तर कृषि तथा सिंचित कृषि।
★
जलाभाव
के कारण 50 से०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क खेती की जाती है।
★
शुष्क
खेती करने के लिए गहन जुताई की जाती है, जिसमें जल को गहरे भागों में सुरक्षित रखा
जा सके।
★
जहाँ
औसत वर्षा 100 से 200 से०मी० होती हैं, उन क्षेत्रों में आर्द्र कृषि की जाती है। विश्व
के कुल कृषि योग्य क्षेत्र का सर्वाधिक 60 से 70 प्रतिशत आर्द्र कृषि के अन्तर्गत आता
है।
★
जहाँ
अधिक सिंचाई वाली फसलों की खेती की जाती है उसे तर कृषि कहते हैं । तर कृषि सामान्यतः
200 से०मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।
★
जहाँ वर्षा की कमी होती हैं। अर्थात् मौसमी वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचित कृषि की
जाती है।
★
बागानी
कृषि में अधिक पूँजी एवं विशिष्ट श्रम की आवश्यकता होती है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य
निर्यात पर आधारित फसल का उत्पादन करना होता है।
★
झूमिंग
खेती पहाड़ी तथा जंगली क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इसके अन्तर्गत वनस्पतियों को
काटकर एकत्र किया जाता है, इसके बाद उसे जलाकर उसकी राख को पूरे खेती में फैला दिया
जाता है और उसकी राख पर बीज बोया जाता है।
★
भारत
में झूमिंग कृषि प्रतिबन्धित है।
★
बहुफसली
खेती दो से अधिक फसलें निश्चित क्रम में उगाने की प्रणाली है। इसके अन्तर्गत शीघ्र
पकने वाली फसलें बोयी जाती हैं। जिन क्षेत्रों में बहुफसली खेती की जाती है, वहाँ प्राय:
उर्वरक तथा सिंचाई की सुविधा होती है।
★
मृदाक्षरण
तथा उर्वरा शक्ति समाप्त होने से रोकने के लिए सर्वोच्च खेती (सीढ़ीनुमा खेती) की जाती
है।
मिट्टी या मृदा संसाधन
★
मिट्टी
सजीव एवं निर्जीव ठोस पदार्थों, गैस एवं तरल पदार्थों का मिश्रित स्वरूप है। मिट्टी
में सम्मिलित ठोस पदार्थों का निर्जीव भाग चट्टानों से तथा सजीव पदार्थ पेड़-पौधों,
बैक्टीरिया तथा फलों से प्राप्त होता है।
★
जलवायु,
वर्षा, वनस्पति तथा धरातल की बनावट के अनुसार मिट्टी का गुण विकसित होता है।
★
भारत
में 5 प्रकार की मिट्टी पायी जाती है। जलोढ़ मिट्टी 2. काली मिट्टी, 3. लाल मिट्टी,
4. पर्वतीय मिट्टी, 5. लैटराइट मिट्टी।
★
जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक क्षेत्रों पर पायी जाती है तथा यह विश्व की सर्वाधिक उपजाऊ
मिट्टी है।
★
मिट्टी
के मूल तत्त्व चट्टानों से प्राप्त होता है। काली मिट्टी को रेगुर कहा जाता है।
★
काली
मिट्टी कपास के लिए सर्वाधिक ऊपजाऊ है।
★
दक्कन
के पठार का अधिकांश भाग काली मिट्टी से बना है। काली मिट्टी में मैग्नीशियम, ऐल्युमिनियम
तथा लौह खनिज विद्यमान होते हैं।
★
लाल
मिट्टी का जन्म रबेदार रूपांतरित चट्टानों से हुआ है। * लोहांश की अधिकता के कारण लाल
मिट्टी का रंग लाल होता हैं।
★
लाल
मिट्टी नाइट्रोजन, फास्फोरस, जीवांश तथा चूने के दृष्टि से निर्धन होती है।
★
भारत
में लाल मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, दक्षिणी बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर
प्रदेश के झांसी डिवीजन में पायी जाती है।
★
लेटेराइट
मिट्टियाँ फसलों के लिए गैर उपजाऊ होती हैं।
★
मिट्टी
के सबसे ऊपरी परत में जैव पदार्थों की अधिकता होती
★
सामान्यतः
उपजाऊ मिट्टी की गहराई 3 से 6 मी० होता है।
नई राष्ट्रीय कृषि नीति
★
28
जुलाई, 2000 को केन्द्र सरकार ने इस नीति की घोषणा संसद में की।
★
इस
नीति में सरकार ने अगले दो दशकों के लिए कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य
है।
★
इस
नीति में घोषणा की गई है कि ठेका खेती द्वारा निजी क्षेत्र का अधिक सहयोग लिया जायेगा।
किसानों के लिए कृषि सम्बन्धी उत्पादों के मूल्यों को संरक्षित किया जायेगा।
★
सभी
किसानों एवं फसलों के लिए राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना चालू की जायेगी तथा देशभर में
कृषि वस्तुओं की गतिविधि पर लगायी गयी पाबन्दियों को समाप्त कर दिया जायेगा।
★
नई
कृषि नीति का वर्णन इन्द्रधनुषी क्रान्ति के रूप में किया गया है। इसमें सभी क्रान्तियों
जैसे हरित, (खाद्यान्न उत्पादन) श्वेत (दुग्ध उत्पादन में) पीली (तिलहनों) नीली (मत्स्य),
लाल (मांस टमाटर), सुनहरी फलों के उत्पादन को एक साथ लेकर चलना होगा।
राष्ट्रीय कृषक आयोग एवं नई राष्ट्रीय कृषि नीति
★ किसानों
और कृषि क्षेत्र के लिए कार्य योजना का सुझाव दने के लिए 2004 में डॉ० एम०एस० स्वामीनाथन
की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय कृषक आयोग ने दिसम्बर 2004, अगस्त 2005 दिसम्बर
2005, अप्रैल 2006 तथा अक्टूबर 2006 में अपनी अन्तरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
★
आयोग
ने अपनी पहली अन्तरिम रिपोर्ट में गंभीर रूप से मुसीबत में फंसे कृषक परिवारों के लिए
एकीकृत जीवन रक्षक सहायता कार्यक्रम, वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उत्पादकता एवं आजीविका
में बढ़ोत्तरी, बागवानी में क्रान्ति को सुदृढ़ करना कपास की गुणवत्ता बनाये रखने को
कहा है।
★
चौथी
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना
चाहिए।
★
कृषिगत
उपजों के मूल्यों में उतार चढ़ाव में किसानों को सुरक्षा के लिए मार्केट रिस्क स्टेबलाइजेशन
फण्ड के गठन को आयोग ने कहा है।
★
कृषि सम्बन्धी बीमा योजनाओं को लागू करने के लिए भी आयोग ने कहा है।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना एवं कृषि
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ग्यारहवीं
पंचवर्षीय योजना में 4 प्रतिशत की कृषि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य
को प्राप्त करने के लिए और साथ ही साथ मूल्यों व लाभ प्रदत्ता के स्थायित्व को सुनिश्चित
करने के लिए जहाँ एक ओर कृषि उत्पादों की मांग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है,
वहीं दूसरी ओर उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से उपलब्धता सुनिश्चित कराना भी जरूरी
है।
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ग्यारहवीं
पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र की अपेक्षित वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए योजना
की युक्ति निम्न तत्त्वों पर आधारित होगी-
(a)
सिंचित क्षेत्र की वृद्धि दर को दो गुना करना।
(b)
जल प्रबन्धन, वर्षा, जल कटाई और जल संभर विकास में सुधार करना।
(c)
खराब भूमि में सुधार करना और भूमि की गुणवत्ता में सुधार पर बल देना।
(d)
प्रभावी विस्तार योजना के माध्यम से ज्ञान के अन्तराल को कम करना
(e)
कृषि विविधीकरण को प्रोत्साहित करते हुए फल, सब्जियों, फूल, जड़ी बूटियां, मसालों,
औषधीय पौधों, बायोडीजल फसलों को बढ़ावा देना।
(f)
पशुपालन और मत्स्य पालन को प्रोत्साहित करना।
(g)
बाजारों की कार्य प्रणाली व प्रोत्साहन संरचना में सुधार करना।
(h)
योजनाकाल में कृषि क्षेत्र में निवेश को कृषि जी०डी०पी० को 16 प्रतिशत तक बढ़ाना जिसमें
सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा 4 से 5 प्रतिशत होगा।
विविध तथ्य-
★ काश्तकारी
व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने लगान का नियमन, पट्टे की सुरक्षा, पट्टेदार को
स्वामित्व का अधिकार प्रदान करना तथा कृषि का पुनर्गठन प्रमुख है।
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कृषि
पुनर्गठन के अन्तर्गत चकबन्दी, भूदान तथा सहकारी खेती आदि कार्यों का समावेश किया गया
है।
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कृषि
जोत से आशय प्रत्येक परिवार के पास भूमि के उस क्षेत्रफल से होता है जो उसके पास परिवार
के भरण-पोषण के लिये उसके पास होता है।
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भारत
में कृषि जोत को अलाभकर जोत, पारिवारिक जोत या अनुकूलतम जोत आदि क्षेत्रों में विभक्त
किया गया है।
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लाभकर
जोत का आशय लाभप्रद कृषि के लिए आवश्यक न्यूनतम क्षेत्र से है।
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पारिवारिक
जोत का आशय उस जोत से है जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कृषि के प्रचलित तौर तरीकों
से एक औसत आकार वाले परिवार को एक हल इकाई कार्य उपलब्ध करा सके।
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अनुकूलतम
जोत वह जोत है जो जोत का वह अधिकतम आकार जिस पर एक परिवार का स्वामित्व होना चाहिए।
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1
हेक्टेयर से कम आकार वाले जोत को सीमान्त जोत कहा जाता है।
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भारत
में सर्वाधिक सीमान्त जोत है जिनकी संख्या 6.34 करोड़ है।
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छोड़े गये तथा मध्यम आकार के कृषि जोत की सीमा 1 2 हेक्टेयर वाले खेतों/जोतों को लघु
तथा 4 से 10 हेक्टेयर वाले जोत को मध्यम जोत कहा जाता है।
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भारत
में राजस्थान राज्य में जोतों का आकार अधिकतम है। जो 4.34 हेक्टेयर है तथा केरल में
न्यूनतम 0.36 हेक्टेयर है।
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भारत
में कार्यशील जोतों का 58 प्रतिशत सीमांत जोत है।
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बिहार में दीर्घ आकार के जोतें अधिक हैं।
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भारत
में कृषि जोत का औसत आकार 1.57 हेक्टेयर है।
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जोतों का उपविभाजन- जोतों का विभिन्न लोगों में विभाजित होना उप-विभाजन कहलाता है।
अन्य शब्दों में पारिवारिक विघटन के कारण जोतों को परिवार के सदस्यों में पैतृक आधार
पर विभाजन करना है।
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कृषि
जोतों को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होना जोतों का उपखंडन कहलाता है।
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भारत
में उप-विभाजन एवं उपखण्डन की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा चकबन्दी तथा सहकारी
खेती को प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
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चकबन्दी
वह प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत कृषकों के इधर-उधर बिखरे हुये खेती का मालियत के आधार
पर एक आधार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।
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भारत
में चकबन्दी का स्वरूप शुरू में ऐच्छिक था परन्तु वह अनिवार्य हो गया है।
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भारत
में चकबन्दी कार्यक्रम का उद्देश्य कृषकों के अनार्थिक खेतों को आर्थिक जोतों में परिवर्तित
करके कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना है।
★ भारत में भूदान आन्दोलन की शुरुआत आचार्य विनोबा भावे ने की।