भारतीय
कृषि क्षेत्र की प्रमुख क्रान्तियाँ (Major Revolutions in
Indian Agriculture Sector)
हरित क्रान्ति
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कृषि
क्षेत्र में उत्पादकता में क्रान्तिकारी परिवर्तन करने के लिए अपनाये गये कार्यक्रम
को हरित क्रान्ति कहा जाता है।
★ हरित क्रान्ति का प्रमुख उद्देश्य
कृषि उत्पादन में वृद्धि है।
★ हरित क्रान्ति का द्वितीय
उद्देश्य कृषि क्षेत्र की परम्परागत उत्पादन तकनीक में संरचनात्मक परिवर्तन करने का
प्रयास है।
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हरित क्रान्ति का जनक नॉरमन ई० वोरलाग को माना जाता है।
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हरित
क्रान्ति की शुरूआत भारत में चौथी पंचवर्षीय योजना में की गयी।
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हरित क्रान्ति के प्रमुख घटक उच्च उपज वाले बीज,
रासायनिक उर्वरक तथा नयी तकनीक है।
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हरित
क्रान्ति का सर्वाधिक सकारात्मक परिणाम/प्रभाव गेहूँ की फसल पर
हुआ।
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भारत में हरित क्रान्ति का समग्र रूप में परिणाम भारत
खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता की अवस्था में पहुँच गया है।
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हरित
क्रान्ति की भारत में सीमायें - क्षेत्रीय असन्तुलन, सिंचित भूमि
तक ही केन्द्रित होना, बड़े कृषकों को लाभ, असंतुलित कृषि विकास, आय की असमानताओं
में वृद्धि आदि हरित क्रान्ति की सीमाएँ रही हैं।
श्वेत क्रान्ति
★ श्वेत क्रान्ति का सम्बन्ध
दुग्ध उत्पादन से है।
★ श्वेत क्रान्ति की भारत में
शुरुआत 1964-65 में सघन पशु विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत दुग्ध
के क्षेत्र में क्रान्तिकारी उत्पादन करके उत्पादकता बढ़ाने के लिए शुरू की गयी।
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श्वेत क्रान्ति की गति और अधिक त्वरित करने के उद्देश्य से 1970 में आपरेशन फ्लड
कार्यक्रम चलाया गया।
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ऑपरेशन
फ्लड कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ० वर्गीज कुरियन थे।
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ऑपरेशन
फ्लड योजना को तीन चरणों में लांच किया गया ऑपरेशन फ्लड का पहला चरण 1971 से 1975 तक,
दूसरा चरण 1975-82 तक तथा तीसरा चरण 1982-94 तक चला।
★ ऑपरेशन फ्लड के द्वितीय चरण
में यूरोपीय आर्थिक समुदाय के सहयोग से शंकर गाय तथा उन्नत भैस तैयार करने की योजना
बनायी गयी थी।
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उक्त योजना का लाभ देश के 12 राज्यों में उत्तर प्रदेश,
पंजाब, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा, पं०
बंगाल, महाराष्ट्र बिहार तथा कर्नाटक को मिला।
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दुग्ध
के विपणन सुविधाओं में वृद्धि की योजना ऑपरेशन का तीसरे चरण में
बनायी गयी थी।
★ ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम का
संचालन भारत में राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड द्वारा संचालित किया जाता है।
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भारत
का दुग्ध उत्पादन में विश्व में पहला एवं संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरा स्थान है।
★ भारत में पंजाब राज्य में
800 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपलब्धता सर्वाधिक है।
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पूर्वोत्तर भारत में दुग्ध की उपलब्धता 20 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति है।
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भारत
में दुग्ध उत्पादन निजी क्षेत्र में सर्वाधिक है।
पीली क्रांति
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पीली क्रान्ति का सम्बन्ध खाद्य तेलों तथा तिलहन से है।
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पीली क्रान्ति से आशय खाद्य तेलों तथा तिलहन के फसलों के उत्पादन क्षेत्र में अनुसन्धान
तथा विकास की रणनीति को पीली क्रान्ति का नाम दिया गया है।
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तिलहनों के समर्थन मूल्य के साथ-साथ भण्डारण तथा वितरण की सुविधा प्रदान करने के लिए
सरकार दो राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की गयी- 1. भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन
संघ तथा 2. राष्ट्रीय तिलहन एवं वानस्पतिक बोर्ड।
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भारतीय भोजन में प्रति व्यक्ति वसा तेल की वार्षिक उपलब्धता 6 किग्रा ० है, जबकि विदेशों
मेंर 18 किग्रा ० है ।
नीली क्रान्ति
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नीली क्रान्ति का सम्बन्ध, मत्स्य उत्पादन से है।
भारत में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए चलाये गये कार्यक्रम
गहन कृषि जिला कार्यक्रम
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भारत में सर्वप्रथम गहन कृषि जिला
कार्यक्रम की शुरूआत 1960-61 में हुई।
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उक्त
कार्यक्रम का उद्देश्य कृषकों को ऋण, बीज, खाद्य, औजार आदि उपलब्ध कराना एवं केन्द्रीय
प्रयासों द्वारा दूसरे क्षेत्रों के लिए गहन खेती का ढांचा तैयार करना, गहन कृषि जिला
कार्यक्रम का उद्देश्य रहा है।
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गहन
कृषि क्षेत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत 1964-65 में हुई।
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गहन
कृषि क्षेत्रीय कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विशिष्ट कृषि फसलों के विकास एवं प्रसार
को बढ़ावा देना था।
सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम (DPAR)
★ सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम
का शुभारम्भ 1973 में किया गया।
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यह
कार्यक्रम केन्द्र द्वारा प्रायोजित था परन्तु वित्त की व्यवस्था केन्द्र तथा राज्यों
द्वारा बराबर की जाती है।
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सूखा
संभाव्य क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य सूखे की संभावना वाले क्षेत्रों में भूमि, जल एवं
प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित विकास करके पर्यावरण सन्तुलन को बढ़ावा देना था।
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इस
कार्यक्रम का क्रियान्वयन केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
★ सूखा क्षेत्रों के लिए 25
वर्षीय भावी योजना तैयार करने के लिए एक उच्च शक्ति प्राप्त समिति का गठन जयन्ती पाटिल
की अध्यक्षता में किया गया।
मरुस्थल विकास कार्यक्रम
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मरुस्थल
विकास कार्यक्रम का शुभारम्भ 1977-78 में किया गया।
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मरुस्थल
विकास कार्यक्रम का प्रयोजक केन्द्र सरकार है।
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इस
कार्यक्रम का उद्देश्य मरुभूमि को बढ़ाने से रोकना, मरुभूमि में सूखे के प्रभाव को
समाप्त करना, प्रभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिक सन्तुलन बहाल करने तथा इन क्षेत्रों
में उत्पादकता बढ़ाने से था।
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मरुस्थल
विकास कार्यक्रम 7 राज्यों में 36 जिलों में चलाया जा रहा है।
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कृषि
सेवा केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य तकनीकी श्रमिकों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना,
कृषि आगतों की व्यवस्था करना तथा कृषकों की समस्याओं के समाधान के लिए उपर्युक्त सलाह
देना है।
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम
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समन्वित
ग्रामीण विकास कार्यक्रम की शुरुआत 1976-77 में की गयी, परन्तु पूरे प्रदेश में यह
कार्यक्रम 2 अक्टूबर, 1980 को लागू किया गया।
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समन्वित
ग्रामीण विकास कार्यक्रम का प्रायोजक केन्द्र सरकार है।
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समन्वित
ग्रामीण विकास कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है।
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इस
कार्यक्रम का वर्तमान में स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। इस कार्यक्रम का अप्रैल,
1999 में शुरू की गयी स्वर्ण जयन्ती ग्राम रोजगार योजना में मिला दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास कार्यक्रम
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राष्ट्रीय
रोजगार कार्यक्रम 1977-78 में शुरू किये गये खाद्य कार्यक्रम का बदला हुआ रूप है।
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राष्ट्रीय
ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीबों के लिए लाभकारी रोजगार
के लिए नये अवसर सृजित करना तथा ग्रामीण अधो संरचना को मजबूत करने के लिए सामुदायिक
परिसम्पत्तियों का सृजन करना रहा है।
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यह
कार्यक्रम वर्तमान में स्वतन्त्र अस्तित्व में नहीं है। 1 अप्रैल, 1989 को जवाहर रोजगार
योजना के शुरू होने पर उसमें इसका विलय कर दिया गया।
ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम
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भूमिहीन
श्रमिकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए 15 अगस्त, 1983 को ग्रामीण भूमिहीन
रोजगार गारण्टी कार्यक्रम की घोषणा की गयी। इसका मुख्य उद्देश्य भूमिहीन श्रमिकों के
परिवारों के लिए वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना था।
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इस
कार्यक्रम का प्रायोजक केन्द्र सरकार थी।
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यह
कार्यक्रम अब स्वतन्त्र अस्तित्व में नहीं है। 1 अप्रैल, 1989 को है। शुरु जवाहर रोजगार
योजना में इसका विलय कर दिया गया
कृषि कीमत एवं लागत उद्योग
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कृषि
जिन्सों की कीमत नीति के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए सरकार ने जनवरी, 1995 में प्रो०
एस० एल० दांतवाला की अध्यक्षता में तीन वर्ष के लिए एक कृषि कीमत आयोग की स्थापना की
थी। परन्तु इसकी स्थापना सम्बन्धी प्रस्ताव में कहा गया था कि आवश्यकता पड़ने पर इसके
कार्यकाल में वृद्धि की जा सकती है। कालान्तर में इसे स्थायी रूप दे दिया गया।
1985 में कृषि कीमत आयोग का नाम बदलकर कृषि कीमत तथा लागत आयोग कर दिया गया। इसका मुख्य
कार्य देश में निर्धारित कृषि कीमत नीति के क्रियान्वयन के लिए सरकार को समय-समय पर
सुझाव देना एवं कीमत नीति के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में सरकार
को सूचना देना, विभिन्न कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए
उचित सुझाव एवं सहयोग देना है। परन्तु केन्द्र सरकार इसकी संस्तुतियों को मानने के
लिए बाध्य नहीं है।
कृषि श्रमिक (Agriculture Labour)
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कृषि
श्रमिक वह व्यक्ति है जो केवल श्रमिक की तरह नकद व फसल के एक भाग के रूप में मजदूरी
के भुगतान के बदले कार्य करता है। भूमि के सम्बन्ध उसका कोई अधिकार नहीं होता है। और
न फसलों के बोने आदि के सम्बन्ध में निर्णय कर सकता था तथा कास्त के सम्बन्ध में कोई
जोखिम नहीं उठाता है।
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राष्ट्रीय श्रम आयोग ने कृषि श्रमिकों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया है। भूमिहीन
श्रमिक तथा सीमांत श्रमिक।
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ऐसे
श्रमिक जिनके पास बहुत थोड़ी मात्रा में अपनी सी जमीन होती है तथा अपना अधिकांश समय
श्रमिकों के रूप में व्यय करते हैं, उनको सीमान्त श्रमिक कहा जाता है। जिनके पास अपनी
भूमि नहीं होती है। उन्हें भूमिहीन श्रमिक कहा जाता है।
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वर्तमान
में कृषि श्रमिकों की संख्या देश की कुल श्रम शक्ति के 26 प्रतिशत है जो बारह करोड़
के तुल्य है।
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भारत
में कृषि श्रमिकों की प्रमुख समस्या मजदूरी का निम्न दर, आवास की समस्या, स्त्री एवं
बाल श्रमिकों का शोषण, ऋण, मौसमी बेरोजगार आदि है।
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कृषि
श्रमिकों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने कदम उठाये हैं। न्यूनतम मजदूरी का
निर्धारण, बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन, भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भूमि देना, श्रम कल्याण
केन्द्रों की स्थापना तथा रोजगार परक कार्यक्रमों को चलाये जाना प्रमुख है।
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कृषि
श्रमिकों के रोजगार के लिए कुछ प्रमुख कार्यक्रम चलाये गये हैं, जिनमें एकीकृत ग्रामीण
विकास कार्यक्रम चलाये गये हैं, जिनमें एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय
रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन गारण्टी कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, खेतिहर
मजदूर बीमा योजना, अन्तोदय अन्न योजना इन्दिरा आवास योजना, वाल्मीकी आवास योजना प्रमुख
है।
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समन्वित
ग्रामीण विकास कार्यक्रम 1970-77 में शुरू किया गया परन्तु 2 अक्टूबर, 1980 को पूरे
देश में लागू किया गया।
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निर्धन
ग्रामीण परिवारों तथा कृषि श्रमिकों को निर्धनता रेखा के ऊपर उठाने के लिए समर्थ बनाना
आई०डी०पी० का प्रमुख उद्देश्य है।
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भूमिहीन श्रमिकों के लिए रोजगार गारण्टी योजना की शुरुआत 15 अगस्त, 1980 को की गयी
थी। इसका उद्देश्य भूमिहीन श्रमिकों को वर्ष भर में कम से कम 100 दिन का रोजगार कराना
रहा हैं।
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ग्रामीण
भूमिहीन रोजगार कार्यक्रम अप्रैल, 1984 तक स्वतन्त्र अस्तित्व में था। ध्यातव्य है
कि अप्रैल, 1989 में जवाहर रोजगार , योजना शुरू होने पर उसमें इसका विलय कर दिया गया।
