प्रश्न :- बाजार से आप क्या समझते हैं? बाजार की प्रमुख विशेषताएं लिखिए ?
उत्तर
:- उत्तर :
सामान्य अर्थ में “बाजार” शब्द से तात्पर्य एक ऐसे स्थान या
केन्द्र से होता है, जहाँ पर वस्तु के क्रेता और विक्रेता भौतिक रूप से उपस्थित
होकर क्रय-विक्रय का कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए शहरों में स्थापित व्यापारिक
केन्द्र जैसे कपड़ा बाजार या गाँवों में लगने वाले हाट।
प्रो. ऐली के अनुसार : “बाजार से तात्पर्य उस सामान्य क्षेत्र से होता है,
जहाँ पर किसी वस्तु विशेष के मूल्य को निर्धारित करने वाली शक्तियां क्रियाशील
होती हैं।”
बाजार की विशेषताएं (आधार) निम्नलिखित है -
1.
एक क्षेत्र- अर्थशास्त्र
में बाजार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से नहीं होता बल्कि उस समस्त क्षेत्र से होता
है जिसमें क्रेता और विक्रेता फैले होते हैं।
2. क्रेताओ और विक्रेताओं
की उपस्थिति दूसरी बाजार की प्रमुख विशेषता है।
3.
प्रत्येक वस्तु के लिए एक अलग बाजार होता है जैसे गेहूं का
बाजार
4. बाजार में क्रेता और विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा पाये जाने के कारण समस्त क्षेत्र में एक ही मूल्य होता है
प्रश्न :- मांग
आपूर्ति सारणियों को एक चित्र के माध्यम से बाजार संतुलन का निर्धारण समझाएं ?
मूल्य निर्धारण में मांग और पूर्ति में कौन अधिक प्रभावशाली होता
है स्पष्ट करें ?
> एक उपयुक्त चित्र की सहायता से पूर्ण प्रतियोगी
बाजार में किसी वस्तु के संतुलन मूल्य निर्धारण की व्याख्या कीजिए ?
> किसी वस्तु की संतुलन कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है ?
> एक उपयुक्त चित्र की सहायता से पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मूल्य
निर्धारण को समझाएं ?
उत्तर
:- बाजार संतुलन से अभिप्राय बाजार की उस दशा से है जिसमें वस्तु
की मांग व आपूर्ति बराबर होती है। कीमत बढ़ाने व घटाने वाली शक्तियां शांत हो जाती
है। इसे निम्न सारणियों द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
तालिका से
सेब
की कीमत |
18 |
19 |
20 |
21 |
22 |
मांग
की मात्रा |
90 |
80 |
70 |
60 |
50 |
आपूर्ति
की मात्रा |
50 |
60 |
70 |
80 |
90 |
उपर्युक्त तालिका से जब सेब की कीमत ₹20 प्रति किलो है, उस दशा में मांग और पूर्ति 70 किलो है।
चित्र
में DD मांग वक्र तथा SS आपूर्ति वक्र है। दोनों E
बिंदु पर बराबर होते हैं। अतः बाजार में संतुलन कीमत OP(20
तथा मांग और पूर्ति की
मात्रा OQ(70) है।
संतुलन
कीमत निर्धारण में मांग और पूर्ति दोनों का बराबर योगदान है।
प्रश्न :- एकाधिकार से
आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं की व्याख्या करें ? इसके अंतर्गत
मूल्य निर्धारण को समझाऐ ? क्या एक एकाधिकारी
ऊंची कीमत पर अधिक वस्तुएं बेच सकता है ? स्पष्ट करें
?
उत्तर :- अंग्रेजी के मोनोपोली शब्द का अर्थ एक विक्रेता से होता है अंग्रेजी
के मोनो का अर्थ है एक और पोली का अर्थ है विक्रेता।
अतएव एकाधिकार बाजार की
वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु या सेवा का केवल एक ही उत्पादक होता है तथा उस वस्तु
का कोई निकटतम प्रतिस्थापन नहीं होता।
विशेषताएं
1. एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता :- एकाधिकार में एक ही फार्म होती है परंतु वस्तु के
क्रेता काफी संख्या में होते हैं जिसके फलस्वरूप वस्तु की
कीमत को कोई एक क्रेता प्रभावित नहीं कर सकता।
2. नई फर्मों के प्रवेश पर बाधायें :- प्राय एकाधिकारी उद्योग
में नई फर्मों के प्रवेश पर कुछ बाधाएं या प्रतिबंध होते हैं
जैसे पेटेंट अधिकार।
3. निकटतम स्थानापन्न का अभाव :- एक विशुद्ध एकाधिकारी फर्म
वह है जो ऐसी वस्तु का उत्पादन कर रही है जिसका कोई प्रभावशाली स्थानापन्न नहीं होता।
4. कीमत नियंत्रण
:- चूंकि एकाधिकारी अकेला ही बाजार में वस्तु की
पूर्ति करता है इसलिए वस्तु की कीमत पर एकाधिकारी का नियंत्रण होता है। अतएव वह अपने
उत्पादन की कीमत कम या अधिक निर्धारित कर सकता है।
5. कीमत विभेद की संभावना :- एकाधिकार की स्थिति में कीमत
विभेद की संभावना हो सकती है। एकाधिकारी एक वस्तु को विभिन्न
क्रियाओं को अलग-अलग कीमतों पर बेच सकता है।
मूल्य निर्धारण
एकाधिकार में मूल्य निर्धारण को दो अर्थशास्त्रियों ने बतलाया है।
मार्शल के अनुसार, "एकाधिकारी उस बिंदु पर मूल्य निर्धारण करेगा जहां कुल आगम तथा कुल लागत का अंतर अधिक होगा।"
चित्र
से स्पष्ट है की TR और TC का अंतर AB अधिक है अतः वह OQ मात्रा का उत्पादन करके अधिक लाभ कमाऐगा।
श्रीमती रॉबिंसन के अनुसार," एकाधिकार में संतुलन
या कीमत निर्धारण
उस बिंदु के आधार पर होता है जहां
(1) MR = MC
(2) MC की रेखा MR रेखा को
नीचे से ऊपर जाते हुए काटे
हम जानते हैं की
π = R – C
जहां , π = लाभ , R = आय , C = लागत
We find first derivatives with Respect to X
`\frac{d\pi}{dx}=\frac{dR}{dx}-\frac{dC}{dx}`
लाभ अधिकतम करने पर ;`\frac{d\pi}{dx}=` 0
`or,\frac{dR}{dx}=\frac{dC}{dx}`
⸫ MR = MC
We find Second derivatives With Respect To X
`\frac{d^2\pi}{dx^2}=\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}`
लाभ अधिकतम करने पर ; `\frac{d^2\pi}{dx^2}`< 0
`or,\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}<0`
`or,\frac{d^2R}{d^2x}<\frac{d^2C}{d^2x}`
`or,\frac{d^2C}{d^2x}>\frac{d^2R}{d^2x}`
`or,\frac d{dx}\left(\frac{dC}{dx}\right)>\frac d{dx}\left(\frac{dR}{dx}\right)`
अतः , Slope of (MC) > Slope of (MR)
चित्र में, MR = MC , E बिंदु पर है। उससे खड़ी रेखा AR तक खींचने से पता
चलता है कि एकाधिकार में मूल्य OP तथा उत्पादन की मात्रा OQ निर्धारित होगी।
AC वक्र चूंकि मूल्य से कम है अतः फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होगा।
We Know that
असामान्य लाभ = TR - TC
TR
= AR ( output ) TC = AC ( output )
TR
= QR ( OQ ) TC = MQ ( OQ )
TR
= OPRQ TC = OSMQ
असामान्य लाभ = OPRQ - OSMQ. = PRMS
एकाधिकारी के कीमत पर पूर्ण नियंत्रण से यह अभिप्राय
नहीं है कि एकाधिकारी वस्तु की कितनी भी मात्रा को
किसी भी कीमत पर बेच सकता है। एकाधिकारी जब किसी वस्तु की
कीमत को एक बार निर्धारित कर देता है तो मांगी गई मात्रा पूरी तरह से क्रेताओं पर निर्भर करती
है।
यदि क्रेता या अनुभव करते हैं की कीमत अधिक
है तो वस्तु की कम मात्रा मांगी जाती है। इसके विपरीत यदि
वे अनुभव करते हैं कि कीमत कम है तो वस्तु की अधिक मात्रा मांगी जाती है। इसलिए एकाधिकारी द्वारा निर्धारित कीमत
तथा उसके द्वारा बेची जाने वाली मात्रा या उसके उत्पादन की मांगी गई मात्रा में विपरीत
संबंध है।
एकाधिकारी फर्म का मांग वक्र
चित्र
में Dm एकाधिकारी के उत्पादन की मांग वक्र है जो
ऊपर से नीचे की ओर झुकी होती है।
जब एकाधिकारी OP कीमत निर्धारित करता है तो मांगी गई मात्रा OQ है। इसके विपरीत यदि वह कीमत कम करके OP1 कर देता है तो मांगी
गई मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि एकाधिकारी
की मांग वक्र नीचे की ओर झुकी होती है अर्थात वह कम कीमत पर
अधिक मात्रा बेच सकता है।
प्रश्न :- एकाधिकारी प्रतियोगिता से क्या समझते
हैं ? इसकी विशेषता का उल्लेख करें उत्तर :- जे.एस. बेन के
अनुसार," एकाधिकारी प्रतियोगिता उस उद्योग में पाई जाती
है जहां काफी मात्रा में छोटे-छोटे विक्रेता हो ,जो विभिन्न परंतु साथ ही निकट स्थानापन्न
बेच रहे हो।"
विशेषताएं
1. फर्मों तथा क्रेताओं की अधिक संख्या :- इसमें
वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मो तथा क्रेताओ की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की तरह काफी अधिक होती है तथा छोटे
छोटे आकार की होती है।
2. वस्तु विभेद :- विक्रेताओं
की वस्तुएं आपस में किसी न किसी तरह भिन्न होती है परंतु ये वस्तुएं एक दूसरे के निकटतम स्थानापन्न होती
है। जैसे सिबाका, कांलगेट, फोरहेन्स आदि टूथपेस्ट
3. फर्मों के प्रवेश होने और छोड़ने की स्वतंत्रता
:- फर्म को उद्योग में प्रवेश और
छोड़ने की स्वतंत्रता पूर्ण प्रतियोगिता की तरह ही
होता है। परंतु नई फर्मो को उद्योग
में प्रवेश करने की निरपेक्ष स्वतंत्रता नहीं होती।
4. विक्रय लागत :- एकाधिकारी प्रतियोगिता में विक्रय लागतो का बहुत महत्व होता है। विक्रय लागतो की सहायता से एक फर्म अपनी वस्तु
को उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय बना सकती
हैं और ऊंची कीमत वसूल सकती है।
5. गैर कीमत प्रतियोगिता :- एकाधिकारी
प्रतियोगिता की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत विभिन्न
फर्म वस्तु की कीमत में परिवर्तन किए बिना ग्राहकों को विभिन्न
प्रकार की सुविधाएं तथा उपहार प्रदान करके अपनी ओर आकर्षित करके एक दूसरे से प्रतियोगिता
करती है।
प्रश्न :- पूर्ण प्रतियोगिता
बाजार से आप क्या समझते हैं ? इसकी मान्यताओं का उल्लेख करें
? इसकी विशेषता का उल्लेख करें ? इसके अंतर्गत
मूल्य निर्धारण को समझाएं ?
उत्तर
:- बोल्डिग के शब्दों में," पूर्ण प्रतियोगिता
बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु के बहुत से क्रेता तथा विक्रेता होते हैं।
विक्रेता समरूप वस्तु को एक समान कीमत पर बेचते हैं। फर्म द्वारा कीमत निर्धारित नहीं
की जाती बल्कि उद्योग द्वारा निर्धारित होती है।"
पूर्ण
प्रतियोगिता के अंतर्गत काम कर रही फर्म उत्पादन की अतिरिक्त इकाइयां समान कीमत पर
बेचती है
, इसलिए इसका सीमांत आय (MR) वक्र औसत आय
(AR) वक्र के समान ही होता है।
`MR=\frac{\Delta TR}{\Delta Q}`
ΔTR = Δ
(P.Q)
एक
प्रतियोगी फार्म के लिए पदार्थ की कीमत दी हुई तथा स्थिर रहने के कारण यह उसके उत्पादन
मात्रा से स्वतंत्र होती है अतः
ΔTR = PΔQ
`\therefore MR=\frac{\Delta TR}{\Delta Q}=\frac{P\Delta Q}{\Delta Q}=P`
⸫
P = AR ;
⸫ P= AR = MR
मान्यताएं
1. वस्तुएं
समरूप होती है तथा वस्तु का मूल्य बाजार में एक समान होता है।
2. बाजार
एवं उद्योग वस्तु की कीमत निर्धारित करता है जिसे फर्मों को स्वीकार करना होता है अर्थात
प्रत्येक फर्म 'कीमत स्वीकारक' होती है।
3. क्रेताओं
और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
4. बाजार
में नयी फर्मो के प्रवेश तथा पुरानी फर्मो के पलायन की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
1. फर्मो या विक्रेताओं की अधिक संख्या :- किसी वस्तु को बेचने
वाले विक्रेताओं की संख्या इतनी अधिक होती है कि किसी एक फर्म द्वारा पूर्ति में की जाने वाली वृद्धि या कमी का बाजार
की कुल पूर्ति पर बहुत ही कम प्रभाव पड़ता है। अतएव कोई अकेला फर्म वस्तु की कीमत
को प्रभावित नहीं कर सकती।
2. क्रेताओ की
अधिक संख्या :- क्रेताओं
की संख्या बहुत अधिक होती है। इसलिए कोई
एक क्रेता कीमत को प्रभावित करने के योग नहीं होता।
3. एक सामान या
समरूप वस्तुएं :- पूर्ण
प्रतियोगिता की दूसरी शर्त यह है कि सभी विक्रेता एक जैसी ही इकाइयां बेचते उनमें रुप, रंग, गुण या किस्म में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं होता। सभी वस्तुएं समरूप होती है।
4. फर्मों का
स्वतंत्र प्रवेश व छोड़ना :- पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में
किसी उद्योग में कोई भी फर्म प्रवेश कर सकती है अथवा पुरानी फर्म उस उद्योग को छोड़
सकती है।
5. पूर्ण ज्ञान
:- क्रेता और विक्रेताओं को कीमत
की पूरी - पूरी जानकारी होती है।
6. पूर्ण गतिशीलता
:- उत्पादन के साधन पूर्णतया गतिशील होते हैं। एक
क्रेता उसी फर्म से वस्तुएं खरीदेगा जहां वे सस्ती मिलेगी तथा एक साधन वही अपनी सेवाएं
बेचेगा जहां उसे अधिक कीमत मिलेगी।
मूल्य निर्धारण
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में जहां मांग और पूर्ति बराबर होती है, मूल्य वही निर्धारित होता है। मूल्य प्राय स्थिर रहती है।
चित्र
में मांग
(DD)तथा पूर्ति (SS) दोनों E बिंदु पर बराबर है। अतः मूल्य OP तथा मात्रा
OQ निर्धारित होगी।
D = α
– aP
S = β
+ bP
संतुलन
करने पर
S = D
β + bP = α – aP
bP + aP = α
– β
P ( b+ a ) = α – β
`\therefore P=\frac{\alpha-\beta}{b+a}`
यही निर्धारित मूल्य है।
प्रश्न. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में एक फर्म का अल्पकालीन
और दीर्घकालीन पूर्ति वक्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर–
अल्पकाल में जब कीमत औसत
परिवर्तनशील लागत से अधिक या बराबर रहती है, तब एक फर्म हानि होते हुए भी उत्पादन
जारी रखता है, लेकिन जब कीमत औसत परिवर्तनशील लागत से कम हो जाती है तो एक उत्पादक
उत्पादन बंद कर देता है। अतः अल्पकाल में औसत परिवर्तनशील लागत के न्यूनतम बिन्दु
से सीमांत लागत वक्र का बढ़ता भाग फर्म का अल्पकालीन पूर्ति वक्र होता है। जैसा कि
चित्र से दर्शाया गया है।
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता हैं।
इसे संलग्न रेखा-चित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:
प्रश्न :- अपूर्ण प्रतियोगिता
किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं की व्याख्या करें
उत्तर
:- प्रो. चेम्बरलीन तथा श्रीमती रॉबिंसन
के अनुसार बाजार की वास्तविक स्थिति अपूर्ण प्रतियोगिता की होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता
बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं अथवा उत्पादकों की संख्या सीमित रहती है तथा
उत्पादन में विभिन्नता पायी जाती है।
अपूर्ण प्रतियोगिता के निम्नलिखित विशेषताएं हैं
1. विक्रेताओं की सीमित संख्या :- इसमें
न तो एकाधिकारी की तरह एक विक्रेता होता है और न पूर्ण प्रतियोगिता की तरह विक्रेताओं
की संख्या असंख्य होती है,वरन बाजार में किसी वस्तु के चंद
विक्रेता अथवा उत्पादक होते हैं
2. वस्तु विभेद :- अपूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषता
यह है कि इसके अंतर्गत उत्पादक रंग ,रूप ,गुण ,आकार आदि के आधार पर अपनी वस्तुओं का विभेद
करते हैं।
3. बाजार का अपूर्ण ज्ञान
:-
क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का अपूर्ण ज्ञान होता है। उन्हें
बाजार की मांग एवं पूर्ति, मूल्य इत्यादि के संबंध में पूरी
जानकारी नहीं होती।
4. विज्ञापन :- चूंकी अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में वस्तु विभेद पाया जाता है,
इसलिए उपभोक्ताओं को अपनी-अपनी वस्तुओं की ओर आकर्षित करने के लिए
विक्रेता विज्ञापन पर काफी खर्च करते हैं।
5. मूल्य में अन्तर :- वस्तु विभिन्नता,
विज्ञापन पर खर्च एवं विभिन्न ढुलाई व्यय के कारण अपूर्ण प्रतियोगिता
में विभिन्न विक्रेताओं की वस्तुओं में मूल्यों में विभिन्नता पायी जाती है।
6. स्वतंत्र प्रवेश एवं बहिर्गमन :- अपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत उद्योग में नए उत्पादकों को प्रवेश करने
एवं पुराने उत्पादकों को उद्योग छोड़कर बाहर जाने की पूरी स्वतन्त्रता रहती है।
प्रश्न :- एकाधिकार का
उदय कैसे होता है ?
उत्तर
:- एकाधिकार बाजार का उदय निम्नलिखित कारण से हो सकता है
-
1. सरकार द्वारा लाइसेंस देना या नियंत्रण करना :- सरकार किसी विशेष वस्तु के उत्पादन के लिए केवल एक उत्पादक को लाइसेंस दे
सकती है। इसके फलस्वरूप एकाधिकार का उदय होता है जैसे - भारतीय
रेलवे
2. पेटेंट अधिकार :- वस्तु
के आकार, डिजाइन अथवा अन्य विशेषता के संबंध में एकाधिकार का अधिकार प्राप्त करना।
इसके प्रयोग का अधिकार केवल नवप्रवर्तकों को ही होता है।
3. व्यापार गुट :- प्रतियोगी फर्म मोटे तौर पर
कीमत तथा उत्पादन नीति संबंधी एक समझौता कर लेती है जिससे उनमें आपस में प्रतियोगिता
नहीं होती और एक प्रकार की संयुक्त एकाधिकारी बाजार संरचना का उदय होता है।
4. प्राकृतिक घटना :- किसी द्विप में पानी का केवल एक तालाब है जो एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में है और जिसके पानी की कीमत पर भी उसका, बिना किसी स्पर्द्धा के पूरा नियंत्रण है।
प्रश्न :- पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी प्रतियोगिता
तथा एकाधिकार बाजार में अन्तर स्पष्ट करें ?
अंतर का आधार |
पूर्ण
प्रतियोगिता |
एकाधिकारी प्रतियोगिता |
एकाधिकार |
विक्रेताओं तथा क्रेताओं की संख्या |
बहुत
अधिक |
अधिक
विक्रेता |
एक विक्रेता परन्तु अनेक क्रेता |
वस्तु |
एक समान |
वस्तु
विभेद |
एक समान हो सकता है नहीं भी हो सकता |
कीमत |
एक कीमत |
विभिन्न कीमत |
कीमत
विभेद के कारण कीमत समान नहीं होती |
फर्मो
का प्रवेश |
प्रवेश
की स्वतंत्रता |
प्रवेश
की स्वतंत्रता का अभाव |
प्रवेश
पर रुकावट |
बाजार
की दशाओं का ज्ञान |
पूर्ण
ज्ञान |
अपूर्ण
ज्ञान |
अपूर्ण
ज्ञान |
फर्म
की मांग वक्र |
पूर्णतया लोचदार |
लोचदार |
बहुत
कम लोचदार |
फर्म
की मांग विक्रय का ढलान |
पड़ी हुई सरल रेखा |
नीचे
की ओर झुकी हुई अधिक लोचदार |
नीचे
की ओर झुकी हुई कम लोचदार |
विक्रय
लागत |
नहीं होता |
अधिक
होता |
बहुत
कम |
कीमत
नियंत्रण |
कीमत
पर कोई नियंत्रण नही |
आंशिक
नियंत्रण |
पूर्ण
नियंत्रण |
प्रश्न :- उपभोक्ता की आय में वृद्धि का बाजार संतुलन पर
क्या प्रभाव होगा ? रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तथा यदि उपभोक्ता की आय में
वृद्धि हो
जाती है तो बाजार माँग में वृद्धि हो जाती है जिससे मांग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट
हो जाता है जिससे संतुलन कीमत में तथा संतुलन मात्रा में
वृद्धि होती है, इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र में DD तथा SS क्रमश: बाजार मांग वक्र एवं पूर्ति वक्र है जहाँ दोनों एक - दूसरे को A बिन्दु पर काटते हैं वहाँ संतुलन कीमत Op तथा संतुलन मात्रा Oq निर्धारित होती है। यदि उपभोक्ता की आय बढ़ जाती है तो इस कारण माँग वक्र DD से बढ़कर DIDI हो जाता है तथा नया संतुलन बिन्दु B प्राप्त होता है जिस पर संतुलन कीमत बढ़कर Op1 तथा संतुलन मात्रा बढ़कर Oq1 हो जाती है।
प्रश्न - रेखाचित्र
से स्पष्ट कीजिए कि बाजार में किसी वस्तु की माँग बढ़ने से उस वस्तु की कीमत बढ़ जाती
है।
उत्तर–
रेखा चित्र में प्रारंभिक संतुलन की स्थिति e बिंदु है जहां बाजार मांग DD पूर्ति SS को काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा मात्रा oq है। मान लिया कि बाजार मांग वक्र DD, पूर्ति SS के स्थिर रहने पर दायी ओर शिफ्ट होकर D2D2 हो जाती है। दी गई कीमत पर मांगी गई मात्रा पहले से qq3 के बराबर अधिक है। इस अधिमांग के कारण कुछ व्यक्ति ऊंची कीमत पर भुगतान करने को तैयार होंगे और कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति होगी। नया संतुलन बिंदु e2 पर होगा जहां संतुलन मात्रा q2 पहले से अधिक है और संतुलन कीमत p2 भी पहले से अधिक है।
प्रश्न - रेखाचित्र
से स्पष्ट कीजिए कि बाजार में किसी वस्तु की माँग घटने से उस वस्तु की कीमत घट जाती
है।
उत्तर- पूर्ति स्थिर रहते हुए, यदि वस्तु की
माँग घट जाती है,
तो सन्तुलन कीमत तथा उत्पादन घट जाएगा। इसे चित्र में दर्शाया गया-
चित्र में मांगी गई मात्रा तथा
पूर्ति की मात्रा को X-
अक्ष पर तथा कीमत को Y-
अक्ष पर दिखाया गया। DD
मूल माँग वक्र तथा SS
मूल पूर्ति वक्र है। E संतुलन बिन्दु है। मांग में कमी को DD वक्र से D1D1 बाई ओर
खिसकाव द्वारा दर्शाया जाता है। यह EA इकाईयों की कम मांग उत्पन्न करता है। विक्रेताओं के बीच
प्रतियोगिता होगी। इससे कीमत गिरकर OP से OP1
हो जाती है। तथा संतुलन उत्पाद OQ से OQ1 हो
जाएगा। इसलिए,
जब मांग वक्र बाई ओर खिसकता है संतुलन कीमत तथा उत्पादन दोनों गिरता(घटता) है।
प्रश्न - क्या
होगा जब बाजार में किसी वस्तु की माँग अपरिवर्तित तथा पूर्ति में वृद्धि हो ?
उत्तर–
बाजार में किसी वस्तु की माँग
अपरिवर्तित तथा पूर्ति में वृद्धि होने से वस्तु की कीमत में कमी एवं मात्रा में
वृद्धि होती है।
चित्र में DD मांग
वक्र है तथा SS पूर्ति वक्र
है। दोनों E बिंदु पर बराबर है अतः मूल्य OP तथा
मांग और पूर्ति की मात्रा OQ निर्धारित होती है। माँग अपरिवर्तित (DD) तथा
पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र SS से S1S1 हो जाता है । दोनों E1
बिंदु पर बराबर है अतः मूल्य OP से घटकर OP1 तथा मांग और पूर्ति की
मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 निर्धारित
होती है।
प्रश्न :- मांग एवं पूर्ति
दोनों के परिवर्तन का मूल्य पर क्या प्रभाव पड़ता है
उत्तर
:- मांग एवं पूर्ति दोनों के परिवर्तन का मूल्य पर निम्न प्रभाव है
-
(1) मांग और पूर्ति में एक साथ वृद्धि
मांग तथा पूर्ति में एक साथ परिवर्तन कीमत पर प्रभाव के संबंध में तीन स्थितियां हो सकती है -
1. चित्र
(A) में जब मांग पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है।
2. चित्र (B) में जब मांग और पूर्ति में बराबर की वृद्धि होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन
नहीं होता परंतु संतुलन मात्रा में परिवर्तन होता है अर्थात यह बढ़ जाती है।
3. चित्र (C) में जब पूर्ति
में वृद्धि मांग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन
मात्रा बढ़ जाती है।
(2) मांग और पूर्ति में एक साथ कमी
मांग और पूर्ति में एक साथ कमी के कीमत तथा मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
1. चित्र
(C) में जब मांग, पूर्ति की तुलना में अधिक
कम होती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा घट जाती है।
2. चित्र
( D) में जब मांग और पूर्ति में बराबर की कमी होती है तो संतुलन कीमत
में कोई परिवर्तन नहीं होता परंतु संतुलन मात्रा में घट जाती है ।
3. चित्र
(E) में जब पूर्ति की कमी मांग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन
कीमत बढ़ जाती है
तथा संतुलन मात्रा घट जाती है।
प्रश्न :- निम्न स्थितियों का बाजार संतुलन पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए :
a) माँग में कमी
b) पूर्ति में वृद्धि
c) माँग और पूर्ति में एक समान दर से कमी।
उत्तर -
a) माँग में कमी : यदि माँग में कमी होती है, तो बाजार में उत्पादों की उपलब्धता बढ़ जाती है, जिससे उनकी कीमतें घट सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप, उत्पादों की आपूर्ति और माँग के बीच कीमत संतुलन बिगड़ सकता है।
b) पूर्ति में वृद्धि : यदि पूर्ति में वृद्धि होती है, तो बाजार में उत्पादों की उपलब्धता बढ़ सकती है, जिससे उनकी कीमतें घट सकती हैं।
c) माँग और पूर्ति में एक समान दर से कमी : यह स्थिति बाजार में संतुलन को अधिक सुदृढ़ बना सकती है। उत्पादों की माँग और पूर्ति के बीच संतुलित रहने से कीमतों में बड़ी ही कमी होती है और बाजार में स्थिरता बनी रहती है।
प्रश्न :- एक पूर्ण-प्रतियोगी बाज़ार में फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करने
वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर - एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके सीमांत लागत वक्र का भाग है। अतः कोई भी
कारक, जो एक फर्म के सीमांत लागत वक्र को प्रभावित करता हो, इसके पूर्ति वक्र का
निर्धारक होता है।
प्रौद्योगिकीय प्रगति- मान
लीजिए, एक फर्म निश्चित वस्तुओं के उत्पादन के लिए उत्पादन के दो कारकों-पूँजी तथा
श्रम का उपयोग करती है- फर्म द्वारा संगठनात्मक नवप्रवर्तन के पश्चात्, पूँजी तथा
श्रम के उसी स्तर से अब निर्गत की अधिक इकाइयों का उत्पादन होता है। दूसरे शब्दों
में, एक निश्चित निर्गत स्तर का उत्पादन करने के लिए संगठनात्मक नव प्रवर्तन के
कारण फर्म आगतों की कम इकाइयाँ उपयोग करती है। यह अपेक्षित है कि निर्गत के किसी
भी स्तर पर यह फर्म की सीमांत लागत को कम करेगा। कुल सीमांत लागत वक्र की दाहिनी
ओर (अथवा नीचे की ओर) शिफ्ट है। चूँकि फर्म का पूर्ति वक्र अनिवार्य रूप से सीमांत
लागत वक्र का एक भाग है, प्रौद्योगिकीय प्रगति फर्म के पूर्ति वक्र को दाहिनी ओर
शिफ्ट करती है। किसी भी दी हुई बाजार कीमत पर, फर्म अब निर्गत की अधिक इकाइयों की
पूर्ति करती है।
आगत कीमतें - आगत
कीमतों में परिवर्तन फर्म के पूर्ति वक्र को भी प्रभावित करता है। यदि एक आगत की
कीमत (जैसे, श्रम की मजदूरी दर) में वृद्धि होती है, उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की औसत लागत के परिणामस्वरूप वृद्धि, सामान्यतः
निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की सीमांत लागत में वृद्धि के साथ होती है,
अर्थात् अब सीमांत लागत वक्र में बायीं ओर (अथवा ऊपर की ओर) शिफ्ट करती है। इससे
अभिप्राय है कि फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाता है: किसी भी बाजार
कीमत पर अब फर्म निर्गत की कम इकाइयों की पूर्ति करती है।
प्रश्न :- बाजार की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए
उत्तर :- बाजार का आशय किसी
वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं के ऐस समूहो की उपस्थिति से होता है जिसमें स्वतंत्र
एवं पूर्ण प्रतियोगिता हो, जिसके फलस्वरूप उस वस्तु की बाज़ार में एक कीमत हो ।
बाजार की विशेषताएं (आधार)
निम्नलिखित है
(i) एक क्षेत्र:- अर्थशास्त्र
में बाजार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से नही होता बल्कि उस समस्त क्षेत्र से होता
है जिसमे क्रेता और विक्रेता फैले होते हैं।
(ii) क्रेताओं और विक्रेताओं
की उपस्थिति दूसरी बाजार की प्रमुख विशेषता है।
(iii) प्रत्येक वस्तु के लिए
एक अलग बाजार होता है जैसे गेहूं का बाजार।
(iv) बाजार मे क्रेता और विक्रेताओं मे प्रतिस्पर्द्धा पाये जाने के कारण समस्त क्षेत्र मे एक ही मूल्य होता है।
प्रश्न. एक प्रतियोगी फर्म के बाजार में कीमत ₹ 15 है।
(a) इसकी कुल आगम तालिका का निर्माण करें यदि उत्पादन 0 से 10 इकाई
तक हो ।
(b) मान लो कि कीमत ₹17 हो जाती है। क्या नए TR वक्र का ढाल पहले वाले
से अधिक तीखा होगा या कम ?
उत्तर
:
(a)
उत्पादन
(इकाइयाँ) |
TR
(₹) |
0 |
0 |
1 |
15 |
2 |
30 |
3 |
45 |
4 |
60 |
5 |
75 |
6 |
90 |
7 |
105 |
8 |
120 |
9 |
135 |
10 |
150 |
उत्तर
: (b) यदि बाजार कीमत बढ़कर ₹ 17 हो जाती है, तब नया TR वक्र पहले वाले से अधिक तीखा
होगा क्योंकि अब नया TR वक्र इस प्रकार होगा
उत्पादन
(इकाइयाँ) |
TR
(₹) |
0 |
0 |
1 |
17 |
2 |
34 |
3 |
51 |
4 |
68 |
5 |
85 |
6 |
102 |
7 |
119 |
8 |
136 |
9 |
153 |
10 |
170 |