Class XII 8.विदेशी विनिमय-भुगतान शेष (Foreign Exchange- Balance of Payment)

विदेशी विनिमय-भुगतान शेष (Foreign Exchange- Balance of Payment)

Class XII 8.विदेशी विनिमय-भुगतान शेष (Foreign Exchange- Balance of Payment)

प्रश्न :- आयात-प्रतिस्थापन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : आयात प्रतिस्थापन का अभिप्राय आयात की जाने वाली किसी वस्तु का कुल या आंशिक रूप से देश के कच्चे माल तथा तकनीकी ज्ञान द्वारा उत्पादित उसी प्रकार का कार्य करने वाली वस्तु द्वारा प्रतिस्थापन करने से है।

प्रश्न :- विदेशी विनिमय के अर्थ को स्पष्ट रुप से समझाएं ?

उत्तर :- विदेशी विनिमय दर उस दर को कहते हैं जिस पर किसी देश की करेंसी की एक इकाई के बदले में दूसरे देश की मुद्रा की कितनी इकाइयां मिल सकती है। उदाहरण -

1 डाॅलर = 50 रुपये या 1 रुपया = `\frac1{50}` डाॅलर = 2 सेंट्स

 ( 100 सेंट्स का एक डाॅलर होता है )

प्रश्न. भारत में विदेशी मुद्रा की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - भारत में विदेशी मुद्रा की प्राप्ति निम्नलिखित प्रकार से हो सकती है -

(क) विदेशों को वस्तुओं व सेवाओं का निर्यात,

(ख) गृह-देश में विदेशियों द्वारा निवेश,

(ग) शेष संसार में भेंट-उपहार प्राप्त करना,

(घ) विदेशी विनिमय के सौदागरों एवं सट्टा करने वालों के कारण विदेशी मुद्रा का देश की ओर आना,

(ङ) अन्तर्राष्ट्रीय सौदों से सम्बन्धित प्राप्तियाँ।

प्रश्न :- मुद्रा के अवमूल्यन का क्या अर्थ है ?

उत्तर : जब किसी देश द्वारा मुद्रा की विनिमय दर अन्य देशों की मुद्राओं से कम कर दिया जाये ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके तो उसे अवमूल्यन कहते हैं।

प्रश्न :- वित्तीय बाजार को परिभाषित कीजिए।

उत्तर- गेन्ट के शब्दों में, "वित्त बाजार एक ऐसा संयन्त्र है जो कि उधारकर्ताओं को ऋण उपलब्ध कराता है तथा ऋणदाताओं को वित्त लगाने का अवसर प्रदान करता है। "

प्रश्न :- तैरती विनिमय दर को परिभाषित कीजिए।

उत्तर - तैरती विनिमय दर एक मुद्रा की कीमत है जो अन्य मुद्राओं के साथ मांग और आपूर्ति द्वारा तय की जाती हैइसमें एक मुद्रा की कीमत अन्य मुद्राओं के सहयोग से मांग और आपूर्ति द्वारा तय की जाती हैयह एक अस्थायी विनिमय दर होती है जो बाजार की मांग और आपूर्ति पर आधारित होती है। 

प्रश्न :- विदेशी विनिमय के मांग तथा पूर्ति के चार स्त्रोतो का उल्लेख करें ?

> विदेशी विनिमय दर से आप क्या समझते हैं ? इसका निर्धारण कैसे होता है ?

> विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन की प्रकिया समझाइए ?

उत्तर :- विनिमय की संतुलन दर वह दर है जिस पर विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है

मांग

विदेशी विनिमय की मांग निम्न उद्देश्यों के लिए की जाती है

1. विदेशों से वस्तुओं अथवा सेवाओं के उपभोग के लिए

2. विदेशों में अपने संबंधियों को उपहार भेजने में

3. विदेशों में वित्तीय परिसंपत्तियों खरीदने में

4. विदेशों में पर्यटन के लिए

5. विदेशी मुद्राओ के मूल्यों में परिवर्तन के आधार पर सट्टेबाजी में

6. अंतरर्राष्ट्रीय ऋणों के भुगतान में

विदेशी मुद्रा की मांग तथा विनिमय दर में विपरीत संबंध पाया जाता है। इसका कारण यह है कि जब विनिमय दर अधिक होगी तो आयात कम किये जाएंगे। यदि आयात कम होगे तो विदेशी विनिमय की मांग भी कम होगी। इसके विपरीत जब विनिमय दर कम होगी तो आयात अधिक किये जायेंगे। यदि आयात अधिक होंगे तो विदेशी विनिमय की मांग अधिक होगी।अतएव विदेशी विनिमय की मांग वक्र ऊपर से नीचे की ओर झुकी होती है।

पूर्ति

विदेशी विनिमय की पूर्ति के निम्न स्त्रोत है

1.  देश में, विदेशियों द्वारा की गयी खरीददारी

2. देश में, विदेशी निवेश का आगमन

3. विदेशी पर्यटकों द्वारा देश में पर्यटन

4. सट्टेबाजी तथा व्यापारियों द्वारा

5. अप्रवासियों द्वारा विदेशी विनिमय का हस्तांतरण

सामान्यता विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। विनिमय दर मे वृद्धि होने पर विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ती है एवं विनिमय दर कम होने पर विनिमय दर की पूर्ति कम होती है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय विनिमय बाजार में विदेशी विनिमय की पूर्ति वक्र का ढलाऊपर की ओर अर्थात धनात्मक होता है

 संतुलन

विनिमय की संतुलन दर को चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। OX अक्ष पर विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति तथा OY अक्ष पर विनिमय दर को प्रकट किया गया है।

DD विदेशी करेन्सी की मांग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र है। बिन्दु E पर संतुलन होगा जहां मांग और पूर्ति बराबर है। अतः विनिमय दर OR निर्धारित होगी।

D = α – a R

S = β + b R

  β + b R = α – a R

b R + a R = αβ

`\therefore R=\frac{\alpha-\beta}{b+a}`

यही निर्धारित विनिमय दर है

प्रश्न :- लोचशील विनिमय दर प्रणाली के गुण तथा दोषों की व्याख्या करें ?

उत्तर :- लोचशील ( नम्न ) विनिमय दर वह दर है जो विदेशी मुद्रा बाजार में विभिन्न करेंसियो की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।

गुण

लोचशील विनिमय दर प्रणाली के मुख्य गुण निम्न हैं

1. अन्तर्राष्ट्रीय निधि की कोई आवश्यकता न होना :- लोचशील विनिमय दर प्रणाली को अन्तर्राष्ट्रीय निधि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इस प्रणाली के सदस्य देशों में ' परिवर्तनीय ' करेसियाॅ चलन में नहीं होती।

2. संसाधनों का अनुकूलता आवंटन :- लोचशील विनिमय दर प्रणाली के कारण संसाधनों के आवंटन की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है तदनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में संसाधनों के आवंटन की प्रवृत्ति अनुकूलता होने की होती है।

3. पूंजी का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आवागमन :- लोचशील विनिमय दर प्रणाली के फलस्वरूप संसार के विभिन्न देशों के बीच पूंजी कि आदान-प्रदान बहुत बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सदस्य देशों को अब बहुत अधिक अन्तर्राष्ट्रीय विधियां रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

4. जोखिम पूंजी :- लोचशील विनिमय दर से जोखिम पूंजी को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में प्रोत्साहन प्राप्त होता है। अन्तर्राष्ट्रीय करेंसियो में व्यापार स्वंय एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्रिया बन जाती है।

दोष

लोचशील विनिमय दर प्रणाली के निम्न दोष है

1. अस्थिरता :- इसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती हैविनिमय दर में उसी प्रकार उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति पाई जाती है जिस प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की कीमत में

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार :- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में स्थिरता अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता का कारण बनती हैआयातथा निर्यात संबंधित दीर्घकालीनीतियां बनाना कठिन हो जाता है

3.  समष्टिगत नीतियां :- जहां स्थिर विनिमय दर समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करने में सहायक होती है वहां लोचशील विनिमय दर इसमें कठिनाई उत्पन्न कर देती हैदिन प्रतिदिन विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण द्विपक्षीय व्यापार समझौते एक कठिन समस्या बन जाते हैं

प्रश्न. माल-सूची से आप क्या समझते हैं ? नियोजित माल-सूची संचय तथा अनियोजित माल-सूची अपसंचय में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तरअर्थशास्त्र के अन्तर्गत अबिक्रीत निर्मित वस्तुओं तथा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं अथवा कच्चे मालों का वह स्टॉक जो कोई फर्म एक वर्ष से अगले वर्ष तक रहती है, वह माल-सूची (Inventory) कहलाता है। माल सूची एक स्टॉक परिवर्तन होता है।

यदि वर्ष के आरम्भ में इसका मूल्य कम हो तथा वर्ष के अन्त में अधिक हो तो इस स्थिति को माल सूची में वृद्धि कहेंगे। यदि वर्ष के आरम्भ की तुलना में वर्ष के अन्त में माल सूची का मूल्य कम हो तो इसे माल सूची में ह्रास कहेंगे।

एक वर्ष के दौरान किसी फर्म की माल सूची में परिवर्तन ज्ञात करने का सूत्र निम्न है

सूत्र - माल सूची = वर्ष के दौरान फर्म का उत्पादन -वर्ष के दौरान फर्म की बिक्री है।

नियोजित माल-सूची संचय और अनियोजित माल-सूची अपसंचय में अंतर निम्नलिखित है:

1.    परिभाषा

नियोजित माल-सूची संचय : यह कंपनियों द्वारा जानबूझकर किया गया माल-सूची (इन्वेंटरी) का संग्रह है। इसमें फर्में भविष्य की मांग को ध्यान में रखते हुए वर्तमान उत्पादन को बिक्री से अधिक रखती हैं, ताकि भंडार तैयार रहे।

उदाहरण: त्योहारी सीजन से पहले कंपनियों द्वारा अतिरिक्त स्टॉक जमा करना।

अनियोजित माल-सूची अपसंचय : यह अनपेक्षित रूप से माल-सूची में कमी आने की स्थिति है। इसमें फर्मों की बिक्री उनके अनुमान से अधिक हो जाती है, जिससे उत्पादन से जमा किया गया स्टॉक अनपेक्षित रूप से खत्म हो जाता है। 

उदाहरण: अचानक मांग बढ़ने पर दुकानों का स्टॉक समय से पहले खाली हो जाना।

2. कारण

नियोजित संचय :

  - भविष्य की मांग का पूर्वानुमान लगाकर तैयारी करना। 

  - उत्पादन लागत या आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की आशंका। 

अनियोजित अपसंचय :

  - बाजार में मांग का अनुमान से अधिक होना। 

  - उत्पादन योजना में त्रुटि या बाजार के रुझानों का गलत आकलन। 

3. आर्थिक प्रभाव

नियोजित संचय : 

  - अर्थव्यवस्था में निवेश का संकेत देता है। 

  - फर्मों की स्थिरता और योजनाबद्ध विकास को दर्शाता है। 

अनियोजित अपसंचय : 

  - मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन को दिखाता है। 

  - यदि लंबे समय तक रहे, तो उत्पादन बढ़ाने या कीमतें समायोजित करने का दबाव बनता है। 

प्रश्न :- भुगतान संतुलन को परिभाषित करें।

उत्तर: प्रो. बेनहेम के अनुसार," किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि मे किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है, जबकि एक देश का व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि मे उसके आयातों एवं निर्यातों के बीच संभव है।"

प्रश्न. भुगतान संतुलन के पूँजी खाते के मुख्य मदों को लिखिए।

उत्तर-

1. निजी ऋण

2. बैंक पूँजी का प्रवाह

3. सोने का प्रवाह

4. सरकारी पूँजी

5. मौद्रिक सोने का सुरक्षित भण्डार आदि।

प्रश्न :- भुगतान शेष क्या है ? यह किस प्रकार व्यापार शेष से भिन्न है ?

> व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन में क्या अन्तर है ?

उत्तर :- व्यापार संतुलन का अर्थ :- व्यापार संतुलन के अंतर्गत आयातो और निर्यातका विस्तृत विवरण रहता हैजब एक देश के आयातो की तुलना में उसके निर्यात अधिक होते हैं तो उसे अनुकूल व्यापार संतुलन कते हैं और जब निर्यात की तुलना में आयात अधिक होते हैं तो उसे प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहते हैं

भुगतान संतुलन का अर्थ :- भुगतान संतुलन से आशय देश के समस्त आयातो एवं निर्यातएवं अन्य सेवाओं के मूल्य के संपूर्ण विवरण से होता हैइसके अंतर्गत लेन-देन के दो पक्ष होते हैंएक ओर तो देश की विदेशी मुद्रा की लेनदारियो  का विवरण रहता है जिसे धनात्मक पक्ष कते हैं तथा दूसरी ओर उस देश की समस्त देनदारियों का विवरण रहता हैजिसे ऋणत्मक पक्ष कहते हैं

अंतर

व्यापार संतुलन

भुगतान संतुलन

व्यापार शेष में केवल दृश्य वस्तुओं जैसे खाद्यान्न, मशीन, खनिज आदि के आयात निर्यात का आकलन होता है।

भुगतान शेष में दृश्य वस्तुओं के साथ-साथ अदृश्य मदो जैसे सेवाओं, मनोरंजन, साॅफ्टवेयर आदि के आयात-निर्यात का आकलन होता है।

यह एक सूक्ष्म अवधारणा है। यह भुगतान शेष खाते का एक अंग है।

यह एक व्यापक अवधारणा है क्योंकि इसमें समस्त विदेशी लेन - देन का लेखा होता है।

व्यापार शेष में कमी या आधिक्य हो सकता है।

भुगतान शेष सदा संतुलित होता है।

प्रश्न :- भुगतान शेष खाते की चालू खाते और पूंजी खाते में अंतर बताएं ?

उत्तर :-     चालू खाता

चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात एवं एकपक्षीय भुगतानका हिसाब किताब रखा जाता है

  चालू खातों के निम्नलिखित घटक है

1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात (अथवा दृश्य मदे)

2.  सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अथवा अदृश्य मदे)

3.  एक देश से दूसरे देश को एकपक्षीअंतरण

पूंजी खाता

पूंजीगत खाता वह खाता है जो एक देश के निवासियों एवं शेष संसार के निवासियों के द्वारा किए गए उन सब लेन-देनो से संबंधित है जिसमें किसी देश की सरकार और निवासियों की परिसंपत्तियों और दायित्वों में परिवर्तन होता है

पूंजी खाते के सौदों की मुख्य मदे निम्न है -

(a) सरकारी सौदे :-  उन अन्तर्राष्ट्रीय सौदों को कहते हैं जिनके कारण किसी देश की सरकार या उसकी एजेंसी की परिसंपत्तियों तथा दायित्वकी स्थिति प्रभावित होती हैजैसे A देश द्वारा B देश से ऋण प्राप्त करना

(b) गैर सरकारी या निजी सौदे :- निजी सौदे गैर सरकारी सौदे होते हैं। इसमें व्यक्ति, घरेलू क्षेत्र तथा निजी व्यापारी उद्यम के सौदे शामिल होते हैंजैसे A देश के किसी व्यक्ति द्वारा B देश में निवेश करना

(c) प्रत्यक्ष निवेश :- इसका अर्थ है विदेशों में परिसंपत्तियों का खरीदना तथा उन पर नियंत्रण रखना जैसे B देश की किसी कंपनी द्वारा A देश की किसी कंपनी की परिसंपत्तियों खरीदना

(d) पोर्टफोलियो निवेश :- विदेशों में परिसंपत्तियों का खरीदना किंतु उन पर कोई नियंत्रण न होना जैसे B देश के निवासियों द्वारा A देश की किसी कंपनी के शेयर्स या बाॅड्स का खरीदना

प्रश्न :- भुगतान संतुलन को परिभाषित करें।

उत्तर: प्रो. बेनहेम के अनुसार," किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि मे किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है, जबकि एक देश का व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि मे उसके आयातों एवं निर्यातों के बीच संभव है।" 

प्रश्न :- भुगतान संतुलन क्या है ? प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने के किन्हीं चार तरीकों का वर्णन करें ?

उत्तर :- भुगतान संतुलन से आशय देश के समस्त आयातो एवं निर्यात एवं अन्य सेवाओं के मूल्य के सम्पूर्ण विवरण से होता है। इसके अंतर्गत लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। एक ओर तो देश की विदेशी मुद्रा की लेनदारियो का विवरण रहता है जिसे धनात्मक पक्ष कहते हैं तथा दूसरी ओर उस देश की समस्त देनदारियों का विवरण रहता है जिसे ऋणात्मक पक्ष कहते हैं

 प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने के निम्न तरीके हैं -

1. मुद्रा संकुचन :- मुद्रा संकुचन के फलस्वरूप देश में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में कमी आ जाती हैजिससे निर्यात में वृद्धि हो जाती हैआय के कम होने के कारण लोगों की आयात करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है

2. विनिमय ह्रास :- किसी देश के विनिमय ह्रास से विदेशियों के लिए घरेलू वस्तुएं सस्ती हो जाती है और आयात महंगे हो जाते हैं अतः निर्यात में वृद्धि तथा आयातो मे कमी आ जाती है

3. विनिमय नियंत्रण :- विनिमय नियंत्रण पूंजी के निर्यात एवं बहिर्गमन को रोक कर भुगतान संतुलन को ठीक करने में सहायता देता है

4. अवमूल्यन :- अवमूल्यन के अंतर्गत सरकारी घोषणा के अनुसार देश के मुद्रा के बाह्य  मूल्य को कम कर दिया जाता हैजिससे देश के निर्यात विदेशों में सस्ते पड़ते हैं जबकि आयात महंगे हो जाते हैं

5. मौद्रिक उपाय :- (a) आयात में कमी करना (b) निर्यात को प्रोत्साहन (c) विदेशी निवेश को प्रोत्साहन (d) सरकार की आर्थिक नीतियों में परिवर्तन (e) विदेशी ऋण (f) विदेशी पर्यटकों को प्रोत्साहन।

प्रश्न :- भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के कारणों को बताइए ?

उत्तर :- भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के निम्नलिखित कारण है

(A) आर्थिक कारण

 (a) सरकार द्वारा विकास पर अत्यधिक खर्च :- इस कारण से बड़े पैमाने पर आयात किये जाते हैं। फलस्वरुप भुगतान शेष में घाटे का असंतुलन उत्पन्न हो जाता है

(b)  व्यापार चक्र :- मंदी तथा तेजी के रूप में व्यापार चक्रो का चलना तेजी के समय देश में बड़ी मात्रा में निर्यात किए जाते हैं। फलस्वरुप भुगतान शेष में 'बचत' का असंतुलन पाया जाता है

(c)  मुद्रास्फीति की ऊंची दर :- घरेलू बाजार में मुद्रास्फीति की ऊंची दर के कारण बड़ी मात्रा में आवश्यक वस्तुओं का आयात करना पड़ता हैइससे अर्थव्यवस्था में भुगतान शेष में घाटे का असंतुलन उत्पन्न हो जाता है

 (B) राजनीतिक कारण

(a) राजनीतिक स्थिरता :- देश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण विदेशों से प्रत्यक्ष निवेश तथा पोर्टफोलियो निवेश में कमी आती है जिसके कारण भुगतान शेष के जमा पक्ष कम हो जाता है

(b)  लोकप्रिय नीति :- चुनाव के समय सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली लोकप्रियवादी नीतियों के परिणामस्वरूप आयाशुल्कमें भारी कमी की जाती है जिससे आयातो को प्रोत्साहन प्राप्त होता है तथा भुगतान शेष के घाटे में वृद्धि होती है

 (C) सामाजिक कारण

(a) रुचि एवं प्राथमिकताओं में अंतर :- विश्व के विभिन्न भागों में लोगों की रुचियो तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन के कारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मांग का स्वरूप भी बदल जाता हैयदि परिवर्तन अनुकूल है तो बचत का और यदि प्रतिकूल है तो घाटे का भुगतान शेष हो जाता है

(b) विभिन्न देशों में पूर्वाग्रह :- विभिन्न देशों में पूर्वधारणाएं या पूर्वाग्रह कई बार देशों (जैसे भारत तथा पाकिस्तान) को महंगे आयात खरीदने तथा सस्ते निर्यात बेचने पर विवश कर देते हैंऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था को भुगतान शेष के घाटे वाले असंतुलन का सामना करना पड़ता है

प्रश्न :- "भुगतान संतुलन सदा संतुलित रहता है" - व्याख्या करें ?

उत्तर :- लेखांकन संदर्भ तथा व्यावहारिक संदर्भ में भुगतान संतुलन की धारणा को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है।

तालिका

लेनदारी (Credits)

करोड़ रु.

देनदारी (Debits)

करोड़ रु.

वस्तुओं का निर्यात

550

वस्तुओं का आयात

800

सेवाओं का निर्यात (बैंकिंग, शिपिंग,बीमा, टूरिज्म आदी)

150

सेवाओं का आयात (बैंकिंग, शिपिंग,बीमा, टूरिज्म आदी)

50

शेष विश्व से हस्तांतरण भुगतान (उपहार, सहायता आदी)

100

शेष विश्व को हस्तांतरण भुगतान (उपहार, सहायता आदी)

80

पूंजीगत प्राप्तियां (करते; विदेशियों को संपत्ति की बिक्री, विदेशियों से पूंजी की प्राप्ति आदि)

200

पूंजीगत भुगतान (विदेशियों को ऋण, विदेशियों से संपत्ति का क्रय, विदेशियों को पूंजी का भुगतान आदी)

70

कुल प्राप्तियां

1000

कुल देनदारियां

1000

उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि लेखांकन की दृष्टि से भुगतान शेष सदैव संतुलित होता है क्योंकि कुल प्राप्तियां तथा कुल देनदारियां एक दूसरे के बराबर (1000) है।

परंतु व्यवहारिक दृष्टि से यह असंतुलित हो सकता है। तालिका का विश्लेषण करने से निम्नलिखित तथ्य प्रकट होते हैं -

1. व्यापार शेष :- व्यापार शेष (वस्तुओं के निर्यात तथा आयात का अंतर) है। यह सदैव बराबर अर्थात संतुलित नहीं होता

व्यापार शेष = वस्तुओं के निर्यात - वस्तुओं के आयात

= 500 करोड़ - 800 करोड़ = (-250 करोड़) (प्रतिकूल)

अर्थात व्यापार शेष घाटे का या प्रतिकूल है। यह व्यापार शेष के असंतुलन का उदाहरण है

2. चालू खाते का भुगतान शेष :- रह 130 करोड़ रुपये के घाटे को प्रकट करता है।

चालू खाते का भुगतान शेष = व्यापार शेष (वस्तुओं का निर्यात - वस्तुओं का आयात) + सेवाओं का शेष (सेवाओं का निर्यात - सेवाओं का आयात) + हस्तांतरण शेष (हस्तांतरण प्राप्तियां - हस्तांतरण भुगतान)

= (550 - 800) + (150 - 50) + (100 - 80)

= (-) 250 + 100 +20

= (-) 130 करोड़ रुपये

अतएव चालू खाते का भुगतान शेष घाटे (-130 करोड़ रुपये) का है अर्थात असंतुलित है।

3. पूंजीगत खाते का भुगतान शेष :- यह 130 करोड़ रुपए के आधिक्य को प्रकट करता है। पूंजीगत खाते का भुगतान शेष = 200 - 70 = 130 करोड़ रुपये

4. समुचित भुगतान शेष संतुलित होता है :- (1000 करोड़ रुपये की प्राप्तियां = 1000 करोड़ रुपये का भुगतान) क्योंकि पूंजी खाते का 130 करोड़ रुपये का आधिक्य चालू खाते के ऋणत्मक शेष 130 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति करता है

पूंजी खाते में 130 करोड़ रुपये का आधिक्य कहां से आयादरअसल 130 करोड़ रुपये विदेशी ऋणो के रूप में प्राप्त हुए हैंपूंजी खाते का यह आधिक्य हमारी ऋणग्रस्तता को प्रकट करता है, जो सुदृढ़ वित्तीय स्थिति का सूचक नहीं है

प्रश्न :- व्यापार शेष में 300 करोड़ रु० का घाटा है। निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रु० है। आयात का मूल्य कितना है ?

उत्तर: व्यापार शेष = निर्यात – आयात

         -300 = 500 – आयात

          आयात = 500 + 300 = 800 करोड़ रु० 

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