HINDI (CORE) MODEL (Mock) TEST 2022

HINDI (CORE) MODEL (Mock) TEST 2022

HINDI MOCK MODEL TEST 2022

विषय - हिन्दी कोर

कक्षा -XII

दिनांक - 28.11.2022

पूर्णांक - 30 अंक

उत्तीर्णांक - 10 अंक

समय - 01 घंटे

निर्देश :- सभी प्रश्न अनिवार्य है।

खण्ड -अ  02X05 = 10

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दें:-

जर्मनी के सुप्रसिद्ध विचारक नीटरो जो विवेकानन्द के समकालीन थे का कहना था कि ईश्वर मर चुका है। नीटरो के प्रभाव में कई लोगों ने ईश्वर का अस्तित्व मानने से इनकार कर दिया परन्तु स्वामी विवेकानन्द द्वारा धर्म की नवीन व्याख्या ने ईश्वरवादियों को पुनः विकसित होने का सुअवसर प्रदान किया। उन्होंने धर्म को नया अर्थ प्रदान किया। उनका कहना था कि ईश्वर की सेवा का वास्तविक अर्थ गरीबों की सेवा है। उन्होंने धर्म की परंपरागत सोच को नकार दिया। उनका कहना था कि ईश्वर की प्राप्ति दरिद्रनारायण की सेवा करने से होती है।

1. जर्मनी का प्रसिद्ध विचारक कौन था, उसने क्या घोषना की?

उत्तर : जर्मनी का प्रसिद्ध विचारक नीटरो था। उसने कहना था कि ईश्वर मर चुका है।

2. नीटसे किसका समालीन था, उसके प्रभाव में आकर लोगों ने क्या किया?

उत्तर : नीटसे स्वामी विवेकानन्द का समालीन था, उसके प्रभाव में कई  लोगों ने ईश्वर का अस्तित्व मानने से इनकार कर दिया

3. स्वामी विवेकानन्द की नवीन व्याख्या का क्या प्रभाव हुआ?

उत्तर : स्वामी विवेकानन्द द्वारा धर्म की नवीन व्याख्या ने ईश्वरवादियों को पुनः विकसित होने का सुअवसर प्रदान किया।

4. किसने धर्म को नया अर्थ प्रदान किया?

उत्तर : स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को नया अर्थ प्रदान किया।

5. हम ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

उत्तर : हम ईश्वर को दरिद्रनारायण की सेवा कर के प्राप्त कर सकते हैं

खण्ड ब. 05X04 = 20

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखें

1. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है, कविता के आधार पर दिन की समाप्ति का वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर : इस गीत के रचयिता हरिवंशराय बच्चन है। इस गीत में कवि ने एकाकी जीवन की कुंठा तथा प्रेम की व्याकुलता का वर्णन किया है।

कवि जीवन की व्याख्या करता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि कहीं रास्ते में रात ना हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण यह थकान होने के बावजूद जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढ़लता प्रतीत होता है।

2. कवि हरिवंश राय बच्चन का साहित्यिक परिचय दें।

उत्तर : बच्चन जी ने अपनी रचना प्रक्रिया के संबंध में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था, “काव्य चेतना एक प्रकार की भाव प्रवणता है। मैं जीवन के प्रति अत्यन्त संवेदनशील रहा हूँ ……मेरे जीवन की परिस्थिति के परिवर्तनों के साथ ही उनका भी रूप परिवर्तित होता रहा है।” बच्चन के काव्य का जन्म छायावाद के उत्कर्ष के समय हुआ। यद्यपि कुछ कविताओं में छायावाद का प्रभाव दिखाई देता है, परन्तु कवि के स्वाभिमान को छायावादियों का पिछलगुआ बने रहना इष्ट न था। अतः शीघ्र ही ‘मधुशाला’ के साथ हिन्दी काव्याकाश में धूमकेतु की तरह उदय हुए।

‘मधुशाला’ में हिन्दी पाठकों को वह मस्ती मिली जिसकी उन्हें बहुत दिन से तलाश थी। अपने मधु-काव्य में, जिसकी प्रेरणा कदाचित् उन्हें उमर खैय्याम से निली बच्चन ने अपने सौन्दर्योपासक हृदय के उल्लास, आनन्द और भावावेश को रसमुग्ध प्याली में उडेलने का प्रयत्न किया है। मधु-काव्य की राम-भावना को पारकर बच्चन मानव जीवन की निराशा और मृत्यु-विछोह-दुःख से कंटकित अपनी काव्य यात्रा के दूसरे सोपान पर चरण बढ़ाते हैं। निशा निमंत्रण, एकांत संगीत ओर आकुल-अन्तर इस काल की रचनाएं हैं। इनके गीतों का आकार भले ही लघु हो, पर उनमें भावों की आकुलता, संगीत का माधुर्य पाठक को सहज ही ‘देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर’ की अनुभूति करा देता है।

टी. एस. इलियट के समान बच्चन जी का भी मत है कि साहित्यकार की प्रत्येक पंक्ति, प्रत्येक रचना, सर्प की काया के समान सुसम्बद्ध होना चाहिए, आदि से अंत तक समग्न गतिमय, प्रत्येक अंश परिपूर्ण को और परिपूर्ण प्रत्येक अंश को प्रस्फुरणशील रखे। अभिव्यंजना के नये प्रयोगों के लिए लिखना उन्हें अस्वाभाविक लगता है। उनकी कविता का विशेष गुण है– अनुभूतिमूलक सत्यता, सहजता और संवेदनशीलता। उन्होंने साहस, सहन, धैर्य और ईमानदारी के साथ अपने अनुभवों, सुख-दुःख की भावना, यौवन के उल्लास और सामाजिक कुरीतियों के प्रति अपने विक्षोभ को सीधी-सादी भाषा, सहज कल्पनाशीलता और सजीव बिग्यों में सजाकर हिन्दी को सुकुमार गीत दिये हैं।

बच्चन की भाषा बोलचाल की साहित्यिक भाषा है । यह सहज, सरस, अर्थयुक्त, उर्दू शब्दों से युक्त है। इनकी शैली रोचक वर्णन प्रधान, भावमयी तथा आत्म कथात्मक है।

3. कैमरे में बंद अपाहिज कविता के आधार पर दिव्योंगो को होने वाली कठिनाईयों का वर्णन करें।

उत्तर : प्रश्नकर्ता अपाहिज से उसके विकलांगपन व उससे संबंधित कष्टों के बारे में बार-बार पूछता है, परंतु अपाहिज उनके उत्तर नहीं दे पाता। वास्तविकता यह है कि उसे अपाहिजपन से उतना कष्ट नहीं है जितना उसके कष्ट को बढ़ाचढ़ाकर बताया जाता है। प्रश्नकर्ता के प्रश्न भी अस्पष्ट होते हैं तथा जितनी शीघ्रता से प्रश्नकर्ता जवाब चाहता है, उतनी तीव्र मानसिकता अपाहिज की नहीं है। उसने इस कमी को स्वीकार कर लिया है लेकिन वह अपना प्रदर्शन नहीं करना चाहता।

4. किसी एक विषय पर निबंध लिखें :-

1. मेरे प्रिय साहित्यकार

उत्तर : मुंशी प्रेमचंद मेरे प्रिय एवं आदर्श साहित्यकार हैं । वे हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभ थे जिन्होंने हिंदी जगत को कहानियाँ एवं उपन्यासों की अनुपम सौगात प्रस्तुत की । अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए मुंशी प्रेमचंद उपन्यास सम्राट कहे जाते हैं ।

केवल साहित्यकार ही नहीं अपितु सच्चे अर्थों में समाज सुधारक भी कहे जा सकते हैं क्योंकि अपनी रचनाओं में उन्होंने भारतीय ग्राम्य जीवन के शोषण, निर्धनता, जातीय दुर्भावना, विषाद आदि विभिन्न रंगों का जो यथार्थ चित्रण किया है उसे कोई विरला ही कर सकता है ।

भारत के दर्द और संवेदना को उन्होंने भली-भाँति अनुभव किया और उसके स्वर आज भी उनकी रचनाओं के माध्यम से जन-मानस में गूँज रहे हैं । प्रेमचंद जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में सन् 1880 ई॰ को एक कायस्थ परिवार में हुआ था । उनके पिता श्री अजायब राय तथा माता आनंदी देवी थीं । प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था । परंतु बाद में साहित्य जगत में वे ‘मुंशी प्रेमचंद’ के रूप में प्रख्यात हुए ।

प्रेमचंद जी ने प्रारंभ से ही उर्दू का ज्ञान अर्जित किया । 1898 ई॰ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् वे सरकारी नौकरी करने लगे । नौकरी के साथ ही उन्होंने अपनी इंटर की परीक्षा भी उत्तीर्ण की । बाद में स्वतंत्रता सेनानियों के प्रभाव से उन्होंने सरकारी नौकरी को तिलांजलि दे दी तथा बस्ती जिले में अध्यापन कार्य करने लगे । इसी समय उन्होंने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

मुंशी प्रेमचंद ने आरंभ में उर्दू में अपनी रचनाएँ लिखीं जिसमें सफलता भी मिली परंतु भारतीय जनमानस के रुझान को देखकर उन्होंने हिंदी में साहित्य कार्य की शुरुआत की । परिवार में बहुत गरीबी थी, बावजूद इसके उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता से कभी मुख न मोड़ा । वे अपनी अधिकतर कमाई साहित्य को समर्पित कर दिया करते थे । निरंतर कार्य की अधिकता एवं खराब स्वास्थ्य के कारण वे अधिक समय तक अध्यापन कार्य जारी न रख सके ।

1921 ई॰ में उन्होंने साहित्य जगत में प्रवेश किया और लखनऊ आकर ‘माधुरी’ नामक पत्रिका का संपादन प्रारंभ किया । इसके पश्चात् काशी से उन्होंने स्वयं ‘हंस’ तथा ‘जागरण’ नामक पत्रिका का संचालन प्रारंभ किया परंतु इस कार्य में उन्हें सफलता नहीं मिल सकी । घर की आर्थिक विपन्नता की स्थिति में कुछ समय के लिए उन्होंने मुंबई में फिल्म-कथा लेखन का कार्य भी किया ।

अपने जीवनकाल में उन्होंने पत्रिका के संचालन व संपादन के अतिरिक्त अनेकों कहानियाँ व उपन्यास लिखे जो आज भी उतने ही प्रासंगिक एवं सजीव लगते हैं जितने उस काल में थे । मात्र 56 वर्ष की अल्पायु में हिंदी साहित्य जगत का यह विलक्षण सितारा चिरकाल के लिए निद्रा निमग्न हो गया ।

मुंशी प्रेमचंद जी ने अपने अल्प साहित्यिक जीवन में लगभग 200 से अधिक कहानियाँ लिखीं जिनका संग्रह आठ भागों में ‘मानसरोवर’ के नाम से प्रकाशित है । कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने चौदह उपन्यास लिखे जिनमें ‘गोदान’ उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है । इसके अतिरिक्त रंगभूमि, सेवासदन, गबन, प्रेमाश्रम, निर्मला, कायाकल्प, प्रतिज्ञा आदि उनके प्रचलित उपन्यास हैं ।

ये सभी उपन्यास लेखन की दृष्टि से इतने सजीव एवं सशक्त हैं कि लोग मुंशी जी को ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित करते हैं । कहानी और उपन्यासों के अतिरिक्त नाटक विद्‌या में भी प्रेमचंद जी को महारत हासिल थी ।‘चंद्रवर’ इनका सुप्रसिद्‌ध नाटक है । उन्होंने अनेक लोकप्रिय निबंध, जीवन चरित्र तथा बाल साहित्य की रचनाएँ भी की हैं ।

उर्दू भाषा का सशक्त ज्ञान होने के कारण उन्होंने अपनी प्रारंभिक रचनाएँ उर्दू भाषा में लिखीं परंतु बाद में उन्होंने हिंदी में लिखना प्रारंभ कर दिया । उनकी रचनाओं में उर्दू भाषा का प्रयोग सहजता व रोचकता लाता है ।

प्रेमचंद जी की उत्कृष्ट रचानाओं के लिए यदि उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ के स्थान पर साहित्य सम्राट की उपाधि दी जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । मुंशी प्रेमचंद के पात्रों के वर्ग प्रतिनिधित्व को सहजता से देखा जा सकता है । वे समाज का चित्रण इतने उत्कृष्ट ढंग से करते थे कि संपूर्ण यथार्थ सहजता से उभर कर मस्तिष्क पटल पर चित्रित होने लगता था ।

ऐसे महान उपन्यासकार, नाटककार व साहित्यकार के लिए इससे बढ़कर और बड़ी श्रद्‌धांजलि क्या होगी कि उनकी मृत्यु के आठ दशकों बाद भी उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता पूर्ववत् बनी हुई है । हजारों की संख्या में लोग उनकी रचनाओं व शैली पर शोध कर रहे हैं । वह निस्संदेह हमारे हिंदी साहित्य का गौरव थे, हैं और सदैव ही रहेंगे ।

प्रेमचंद जी की रचनाओं में समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग की समस्याओं को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत किया गया है । गोदान का पात्र ‘होरी’ भारतीय किसानों की दु:ख-सुख से भरी संपूर्ण जीवन यात्रा का आदर्श प्रतिनिधित्व करता है । प्रेमचंद तत्कालीन समाज की सभी समस्याओं, उसके सभी पक्षों को छूने वाले समर्थ रचनाकार कहलाते हैं ।

2. इन्टरनेट वर्तमान युग की आवश्यकता ।

उत्तर : 1960 के दशक के अंत में, एक वैश्विक वाइड-एरिया नेटवर्क बनाया गया था जिसे अब इंटरनेट के रूप में जाना जाता है। इसकी जड़ें उद्योगों में फैली हुई हैं, मानव जाति के साथ रहने के लिए यह एक सर्वोत्कृष्ट आवश्यकता बन गई है। केवल संचार स्थापित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कोई वित्तीय लेनदेन कर सकता है, फिल्में देख सकता है, संगीत सुन सकता है, पाठ्यक्रम कर सकता है और इंटरनेट की मदद से खरीदारी कर सकता है।

इंटरनेट के नुकसान से ज्यादा फायदे हैं। ऑनलाइन खरीदारी से लेकर ऑनलाइन सीखने तक, इंटरनेट ने मानव जाति को मोटा और पतला करने में मदद की है। इसी तरह, व्यावसायिक इकाइयों से लेकर स्कूलों, स्वास्थ्य सेवा और सरकारी विभागों तक, इंटरनेट समय की आवश्यकता बन गया है। इंटरनेट के उद्भव के कारण उपग्रहों और अंतरिक्ष स्टेशनों से कनेक्टिविटी, संचार और सूचना का प्रसार भी संभव हो गया है। इसके अलावा, मनोरंजन उद्योग ने इंटरनेट की मदद से बड़े पैमाने पर गति प्राप्त की है।

हालाँकि इसके कई फायदे हैं, लेकिन इंटरनेट भी एक दोधारी तलवार है जिसके नुकसान भी हैं। इंटरनेट के उद्भव और लोकप्रियता ने बदमाशी और ऑनलाइन पीछा करने और ट्रोलिंग के लिए जगह दी है। इसके अलावा, इंटरनेट पर हिंसक और अश्लील छवियों तक आसान पहुंच ने भी अपराधों को जन्म दिया है। एक प्रमुख व्यसन और व्याकुलता के कारण के रूप में देखा जाता है, विशेष रूप से किशोरों में, यह न केवल मानसिक परेशानी का कारण बनता है बल्कि शारीरिक बीमारियों को भी जन्म देता है।

प्रत्येक नए आविष्कार के फायदे और नुकसान हैं, हालांकि, उचित सावधानियों जैसे सुरक्षित ब्राउज़िंग का अभ्यास करना, आपके द्वारा साझा किए जाने वाले डेटा के साथ सतर्क रहना, बार-बार पासवर्ड बदलना, गोपनीयता सेटिंग्स को अपडेट करना, और दूसरों के साथ अपनी साख साझा न करने से आपको इंटरनेट का उपयोग करने में मदद मिल सकती है। अत्यंत आसानी और बिना किसी चिंता के।

पहले के समय में जब लोग के पास इंटरनेट की सुविधा नही थी, तो उन्हें कई प्रकार के सामान्य कार्यों के लिये भी कई घंटों तक लाइनों में लगे रहमा पड़ता था जैसे रेलवे का टिकट लेने, बिजली का बिल जमा करने तथा आवेदन पत्र जमा करने जैसे कार्यों के लिए काफी दिकक्तों का सामना करना पड़ता था। इंटरनेट का जन्म सन् 1969 में अमेरिका में किया गया था। इसे सबसे पहले सन् 1969 में अमेरिका के प्रतिरक्षा विभाग द्वारा एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी नेटवर्क नाम गुप्त आंकड़ों और सूचनाओं को दूर दराज के विभिन्न राज्यों तक भेजने व प्राप्त करने में लाया गया था। हमारे भारत देश में इंटरनेट 80 दशक में आया था।

इंटरनेट एक वर्ल्ड वाइड वेब है जिसकी सहायता से हम दुनिया के किसी भी कोने में अपनी मेल या जरूरी दस्तावेजों को पलक झपकते ही भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं। इंटरनेट मनोरंजन का एक बहुत अच्छा माध्यम है। इंटरनेट के माध्यम से संगीत, गेम्स, फिल्म आदि को बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के डाऊनलोड कर सकते हैं और अपनी बोरियत को दूर कर सकते हैं।

इंटरनेट की सहायता से बिजली, पानी और टेलीफोन के बिल का भुगतान घर पर बैठे बिना किसी परेशानी के और बिना लंबी लाईनों में खड़े हुए किया जा सकता है। इंटरनेट से हमें घर बैठे रेलवे टिकेट बुकिंग, होटल रिसर्वेशन, ऑनलाइन शौपिंग, ऑनलाइन पढाई, ऑनलाइन बैंकिंग, नौकरी, खोज आदि सुविधाएँ मिल जाती हैं।



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