खनिज
संसाधन की बहुलता के कारण झारखण्ड में अनेक खनिज आधारित उद्योगों का विकास हुआ है।
कुल खनिज सम्पदा का 40 प्रतिशत से अधिक भाग झारखण्ड राज्य में विद्यमान है। आर्थिक
समीक्षा 2011-12 के अनुसार राज्य की कुल आय में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान (स्थिर
मूल्य 2004-05 पर) लगभग 41 प्रतिशत है। यहाँ स्थापित अधिकांश उद्योग खनिज आधारित
हैं। अतः यहाँ खनिजों पर आधारित अनेक उद्योग-धंधों का विकास हुआ है। टाटा आयरन एंड
स्टील कम्पनी (TISCO), टाटा इंजीनियरिंग एवं लोकोमोटिव कम्पनी (TELCO), सिंदरी
फर्टिलाइजर, हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (HEC) राँची यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं।
यहाँ उत्पादित किए जाने वाले खनिज पदार्थों में लौह-अयस्क, मैंगनीज, कोयला और
डोलोमाइट की बहुलता ने लौह-इस्पात उद्योग के विकास के लिए ठोस आधार प्रदान किया
है। यहाँ ताँबा, गंधक, एस्बेस्टस, बॉक्साइट, अभ्रक, यूरेनियम तथा जस्ता आदि के
उत्पादन के फलस्वरूप ताँबा उद्योग, विद्युत यंत्र उद्योग तथा एल्यूमीनियम उद्योग
जैसे अनेक उद्योगों की स्थापना संभव हुई है।
उद्योगों
के विकास के आधार पर झारखण्ड प्रदेश मुख्यतः निम्नलिखित चार औद्योगिक क्षेत्रों
(Industrial Belts) में बंटा है —
अभ्रक संबंधी उद्योग क्षेत्र
भारत
के सबसे बड़े अभ्रक के खनन तथा इससे संबंधित उद्योग इस क्षेत्र में विकसित हुए
हैं। इसका अधिकांश औद्योगिक केन्द्र छोटानागपुर पठारी भाग के उत्तरी भाग में
विशेषकर झुमरीतलैया, हजारीबाग, कोडरमा और गिरिडीह में विकसित हुआ है। पहले यहाँ
अभ्रक संबंधी कार्य मानवीय श्रम पर आधारित था परन्तु अब अनेक कार्य यंत्रीकृत होता
है। इसके बावजूद प्रबंधन की अकुशलता और भ्रष्टाचार के साथ ही प्रशासनिक लापरवाही
के चलते खनन कार्य स्तरीय नहीं हो पाया है। फलतः यह घरेलू स्तर तक ही विकसित है।
दामोदर घाटी औद्योगिक क्षेत्र
यह
औद्योगिक पट्टी सबसे विस्तृत क्षेत्र में है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के
उद्योग विकसित हुए हैं। इस क्षेत्र के उद्योगों के लिए आवश्यक शक्ति का स्रोत जल
विद्युत तथा उच्च कोटि के कोयले से संचित विपुल भण्डार है। इन दोनों स्रोतों ने
उद्योगों को यांत्रिक शक्ति की सुविधा प्रदान कर इन्हें विकसित होने की ओर
अग्रसारित किया है। यहाँ अनेक कोयला साफ करने के कारखाने (Coal Washeries) तथा ताप
गृह (Thermal Power Station) स्थापित हुए हैं। मुख्य केन्द्र बोकारो तथा
चन्द्रपुरा है। इनके अतिरिक्त विशाल ताप गृह (Super Thermal Power Plant) पतरातू
में बना है, जिसकी उत्पादन क्षमता 840 MW है, भारत का सबसे बड़ा लौह तथा इस्पात
उद्योग बोकारो में केन्द्रित है। बोकारो लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना तृतीय
पंचवर्षीय योजना में पूर्व सोवियत संघ के सहयोग से की गई। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना
में बोकारो लौह-इस्पात उद्योग ने उत्पादन प्रारम्भ कर दिया। प्रारम्भ में इसकी
उत्पादन क्षमता 10 लाख टन प्रतिवर्ष थी, जो अब बढ़कर 100 लाख टन प्रतिवर्ष हो गई
है। इस क्षेत्र में गोमिया के निकट विस्फोटक कारखाना, सिंदरी में खाद का कारखाना
और सीमेंट उद्योग, खेलारी में सीमेंट उद्योग, हजारीबाग के भरकुंडा क्षेत्र में
शीशा तथा सेरामिक उद्योग, झरिया के निकट फायर ब्रिक तथा रिफ्रक्ट्री के उद्योग
स्थापित हैं। दामोदर घाटी परियोजना से जल आपूर्ति व जल शक्ति की प्राप्ति, निकट के
कोयला क्षेत्रों से कोयले की प्राप्ति तथा यातायात के विकसित होने से यहाँ इन
औद्योगिक केन्द्रों का तीव्र गति से विकास हुआ है।
स्वर्णरेखा घाटी औद्योगिक क्षेत्र
यह
औद्योगिक पट्टी छोटानागपुर पठार के दक्षिणी तथा पूर्वी भाग में विकसित है, विशेष
रूप से सिंहभूम जिले में। यहाँ अनेक धात्विक खनिज खास तौर से लौह अयस्क ताँबा,
मैंगनीज आदि मिलते हैं। जमशेदपुर इस औद्योगिक पट्टी का मुख्य केन्द्र है। इस पट्टी
के प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण टाटा लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना और विकास है।
यहाँ इस्पात केन्द्र से संबंधित अनेक उद्योग विकसित हो गए हैं। जिनमें टिन प्लेट,
इलैक्ट्रिक केबल्स, रेलवे वैगन, ट्रक तथा इंजीनियरिंग तथा कृषि संबंधी यंत्रों का
उत्पादन हो रहा है। इस पट्टी का दूसरा मुख्य केन्द्र घाटशिला के निकट मौउभण्डार
में है। चाईबासा के निकट झिकपानी में सीमेन्ट उद्योग, जमशेदपुर के निकट कांड्रा
में शीशा एवं सेरामिक उद्योग का विकास हुआ है।
राँची औद्योगिक क्षेत्र
झारखण्ड
प्रदेश का चौथा प्रमुख उद्योग केन्द्र राँची के निकट हटिया (Hatia) में विकसित हुआ
है। इसका विकास मुख्यतः हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (Heavy Engineering
Corporation या H.E.C.) की स्थापना तथा उससे संबंधित उद्योगों के विकास के कारण
हुआ है। यह केन्द्र विशाल यंत्र और औजार आदि के उत्पादन के चलते भी काफी प्रसिद्ध
हुआ है।
झारखण्ड में प्रमुख उद्योग निम्नलिखित उद्योग हैं
खनिज आधारित उद्योग
खनिज
आधारित उद्योगों का विवरण इस प्रकार है
लौह
एवं इस्पात उद्योग
भारत
में स्थित लौह एवं इस्पात उद्योग की 9 बड़ी इकाइयों में से 2 इकाइयाँ झारखण्ड में
हैं—टिस्को एवं बोकारो स्टील प्लांट।
(i)
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी—टिस्को (Tata Iron and Steel Company-TISCO)
: यह भारत का प्रथम एवं सबसे बड़ा लौह एवं इस्पात कारखाना है। इसकी स्थापना जमशेदजी
टाटा द्वारा 1907 ई. में की गई। इसमें 1911 ई. से लोहे का उत्पादन तथा 1914 ई. से इस्पात
का उत्पादन शुरू हुआ। इसकी स्थापना पूर्वी सिंहभूम जिले में स्वर्णरेखा व खरकई नदी
के संगम पर साकची नामक गाँव में की गई। बाद में जब यह गाँव एक नगर के रूप में विकसित
हो गया तो इसे जमशेदजी टाटा के नाम पर जमशेदपुर या टाटा नगर कहा जाने लगा। यहाँ लौह
व इस्पात उद्योग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान हैं। टिस्को को लौह व अयस्क उत्पादन
के लिए जरूरी सभी कच्चा माल जमशेदपुर के आस-पास ही मिल जाते हैं, जैसे लौह अयस्क नौवामुंडी,
गुआ, बादाम पहाड़ आदि क्षेत्रों से; कोकिंग कोयला झरिया की खानों से; मैंगनीज व क्रोमाइट
चाईबासा खान से; चूना पत्थर व डोलोमाइट उड़ीसा के सुन्दरगढ़ जिला स्थित पांगपोस की
खानों से; स्वच्छ जल व बालू की आपूर्ति स्वर्णरेखा व खरकई नदी क्षेत्रों से हो जाती
है। निकटतम बंदरगाह कलकत्ता बंदरगाह के जरिए इसके निर्मित उत्पाद के लिए बाजार मिल
जाता है। जमशेदपुर धीरे-धीरे एक औद्योगिक संकुल के रूप में विकसित हो गया है। 1948
ई. में यहाँ टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी (TELCO) की स्थापना की गई। इसके
अलावा एग्रिको (AGRICO)—जहाँ कृषि संबंधी उपकरणों व मशीनों का निर्माण होता है, टिन
प्लेट फैक्ट्री, वायर फैक्ट्री आदि की स्थापना की गई। यहाँ रेलवे वैगन, वॉयलर, मोटरगाड़ी
की चेसीस एवं मोटरकार बनाने के कारखाने भी स्थापित किये गए हैं। टिस्को
का नाम बदल कर टाटा स्टील कर दिया गया है।
(ii)
बोकारो स्टील प्लान्ट (Bokaro Steel Plant) : झारखण्ड क्षेत्र
का यह दूसरा लौह-इस्पात उद्योग है। इसकी स्थापना 1964 ई. में की गई। इसमें 1974 ई.
से उत्पादन शुरू हुआ। इसकी स्थापना बोकारो जिला के माराफरी नामक स्थान में की गई। यह
देश का चौथा बड़ा लौह-इस्पात कारखाना है। इसकी स्थापना सोवियत रूस के सहयोग से की गई
है। यह कारखाना सेल (Steel Authority of India Limited-SAIL) के अन्तर्गत कार्यरत है।
यहाँ फिश प्लेट, गर्डर, एंगल पाइप, छड़ें, इस्पात की चादर आदि का निर्माण होता है।
एल्यूमीनियम
उद्योग
इंडियन
एल्यूमीनियम कम्पनी लिमिटेड ने 1938 ई. में राँची के मुरी नामक स्थान में
एल्यूमीनियम उद्योग की स्थापना की। यह भारत का दूसरा सबसे पुराना एवं दूसरा सबसे
बड़ा कारखाना है। यह कच्चा माल (बॉक्साइट) लोहरदगा, पलामू क्षेत्र से प्राप्त करता
है। विद्युत की पर्याप्त आपूर्ति न होने के कारण यह कारखाना बॉक्साइट से अंतिम
उत्पाद नहीं बना पाता बल्कि मध्यवर्ती उत्पाद एलुमिना बनाता है और फिर इसे अलपुरम
व अलवाय (केरल), बेलूर (कोलकाता), लेई (मुंबई) स्थित कारखानों में भेज देता है,
जहाँ इससे अंतिम उत्पाद एल्यूमीनियम की चादरें, बर्तन, बिजली के तार, मोटर, रेल व
वायुयानों की बॉडी आदि बनाये जाते हैं। यही कारण है कि बॉक्साइट के संचित भण्डार
की दृष्टि से चौथा स्थान एवं उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान रखने वाले झारखण्ड
का एल्यूमीनियम के उत्पादन में कोई महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं है। हाँ इतना
जरूर है कि भारत में तैयार होने वाले कुल एलुमिना का 16% से अधिक भाग झारखण्ड
प्रदान करता है।
ताँबा
उद्योग
भारत
में पहला ताँबा उत्पादन कारखाना झारखण्ड के सिंहभूम जिले में घाटशिला क्षेत्र में
1924 ई. में स्थापित किया गया। 1930 ई. में घाटशिला के निकट ही ताँबा खनिज शोधन
कारखाना इण्डियन कॉपर कारपोरेशन कम्पनी ने स्थापित किया। 1930 ई. में ही पीतल
बनाने का एक कारखाना भी यहाँ स्थापित किया गया। ताँबा की खानें मुसाबनी एवं बेदिया
में है। यहाँ खान से अयस्क निकालकर उसे चूरा किया जाता है और फिर उसे रज्जू मार्ग
द्वारा 6 मील दूर मउभण्डार की विद्युत् चालित भट्टी में भेज दिया जाता है, जहाँ इस
चूरे से शुद्ध ताँबा निकाला जाता है।
इण्डियन
कॉपर कॉरपोरेशन (घाटशिला) के अलावा झारखण्ड में ताँबा उद्योग के महत्त्वपूर्ण
केन्द्र हैं—हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (जादूगोड़ा) एवं इण्डियन केबल कम्पनी
लिमिटेड (टाटा नगर)।
सीमेन्ट
उद्योग
झारखण्ड
में सीमेन्ट उद्योग के लिए आवश्यक कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। झारखण्ड
में सीमेन्ट कारखाने जपला (पलामू), खेलारी (राँची), कुमारधुबी (धनबाद), सिंदरी
(धनबाद), बोकारो, झींकपानी (पश्चिमी सिंहभूम), जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम) में है।
उल्लेखनीय है कि झारखण्ड में अधिकतर सीमेन्ट कारखाने कच्चे माल के रूप में
चूना-पत्थर का उपयोग करते हैं, जबकि सिंदरी, बोकारो, झींकपानी एवं जमशेदपुर के सीमेन्ट
कारखाने, कारखानों से निकलने वाले स्लैग (Slag) एवं स्लज (Sludge) का। स्लैग की
प्राप्ति लौह-इस्पात कारखानों से एवं स्लज की प्राप्ति खाद कारखानों के कचड़े से
होती है। झारखण्ड में स्थापित सीमेन्ट कारखानों में झींकपानी (लौह-इस्पात उद्योग
के अवशिष्ट पर आधारित) एवं जमशेदपुर (लाफार्ज सीमेन्ट कारखाना-लौह-इस्पात उद्योग
के अवशिष्ट पर आधारित) के कारखाने ही अपनी क्षमता का भरपूर दोहन कर रहे हैं। अन्य
कारखानों का उत्पादन उनकी स्थापित क्षमता से काफी कम है। एसोसिएटेड सीमेन्ट कम्पनी
– ए.सी.सी. (Associated Cement Company-A.C.C.) द्वारा स्थापित खेलारी सीमेन्ट
संयंत्र की वर्तमान स्थिति अत्यंत जर्जर है।
इंजीनियरिंग
उद्योग
(i)
हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन—एच.ई.सी. (Heavy Engineering Corporation_H.E.C.) :
विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीनों, कल-पुर्जे जैसी इंजीनियरिंग वस्तुओं की आपूर्ति
के लिए राँची के हटिया में हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन—ए.सी.सी. की स्थापना 1958 ई.
में की गई। इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा रूस एवं चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से की
गई। 1963 ई. से यहाँ उत्पादन आरंभ हुआ। कॉरपोरेशन के द्वारा हैवी मशीन बिल्डिंग प्लान्ट,
हैवी मशीन टूल्स प्लान्ट एवं फाउण्ड्री फोर्ज प्लान्ट की स्थापना की गई है।
👉
हैवी मशीन बिल्डिंग प्लान्ट–एच.एम.बी.पी. (Heavy Machine
Building Plant-H.M.B.P.) : यह रूस की सहायता से स्थापित किया गया है। यहाँ किसी
भी उद्योग की संरचना डिजाइन करने की क्षमता है। यह लौह-इस्पात संबंधी उपकरण,
क्रेन, एस्कैवेटर, ऑयल-ड्रिलिंग उपकरण आदि का निर्माण करता है।
👉
हैवी मशीन टूल्स प्लान्ट–एच.एम.टी.पी. (Heavy Machine Tools
Plant- H.M.T.P.) : यह चेकोस्लोवाकिया की सहायता से स्थापित किया गया है। यह भारी
मशीनों के औजारों का निर्माण करता है।
👉
फाउंड्री फोर्ज प्लान्ट–एफ.एफ.पी. (Foundry Forge Plant F.F.P.)
: यह चेकोस्लोवाकिया की सहायता से स्थापित किया गया है। यह ढलाई भट्टी (Foundry
Forge) संयंत्र है। यहाँ भारी मशीन या औजार के निर्माण के लिए लोहा गलाने एवं
विशेष आकृतियों में ढालने का काम होता है।। इस प्लान्ट के द्वारा कॉरपोरेशन के
अन्य दो प्लान्ट—एच.एम. बी.पी. एवं एच.एम.टी.पी.की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती
है। यह किसी दूसरे प्रतिष्ठान की माँग पर भी इसकी आपूर्ति करता है।
(ii)
अन्य इंजीनियरिंग इकाइयाँ (Other Engineering Units) : झारखण्ड में इंजीनियरिंग उद्योग
का विकास मुख्य रूप से राँची, जमशेदपुर, बोकारो एवं धनबाद में हुआ है।
इंजीनियरिंग
इकाइयों का क्षेत्रवार विवरण इस प्रकार है
👉
राँची : गार्डेनरीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स लिमिटेड
(धुर्वा), उषा मार्टिन ब्लैक वायर रोप्स लिमिटेड (टाटी सिलवई), श्रीराम बॉल
बेयरिंग (रातू), भारत वेस्टफालिया लिमिटेड (नामकुम) आदि।
👉
जमशेदपुर : टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी (TELCO)* लिमिटेड (जमशेदपुर), इंडियन
स्टील एण्ड वायर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (टाटानगर), इंडियन ट्यूब कम्पनी लिमिटेड (जमशेदपुर),
रेलवे इंजीनियरिंग वर्कशाप (जमशेदपुर), टाटा रॉबिन्स फ्रेजर लिमिटेड (जमशेदपुर), टाटा
योडोगवा लिमिटेड (जमशेदपुर) आदि।
👉
बोकारो : एशियन रिफ़ैक्ट्रीज लिमिटेड (बोकारो), इंडियन
एक्सप्लोसिव फैक्ट्री (गोमिया) आदि।
👉
धनबाद : इंजीनियरिंग वर्क्स (कुमारधुबी), हिन्दुस्तान स्टील
लिमिटेड (धनबाद), न्यू स्टैंडर्ड इंजीनियरिंग (धनबाद) आदि। टेल्को का नाम बदल
कर टाटा मोटर्स कर दिया गया है।
कोयला
धोवन उद्योग
प्राकृतिक
अवस्था में कोयले में अनेक अशुद्धियाँ होती हैं। कोयला धोवन गृहों द्वारा कोयले से
शेल, फायरक्ले आदि अशुद्धियों को दूर किया जाता है। झारखण्ड में कोयला धोवन उद्योग
के प्रमुख केन्द्र हैं—जामादोबा, वेस्ट बोकारो, लोदना, करगाली (बोकारो के निकट),
दुगदा, भोजुडीह, पाथरडीह, कर्णपुरा, जारगंडी, कथारा आदि। करगाली कोल वाशरी एशिया
की सबसे बड़ी कोल वाशरी है।
रिफ्रैक्ट्री
उद्योग
झारखण्ड
में रिफ़ैक्ट्री उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं—चिरकुण्डा, मुग्मो (चिरकुण्डा के
पश्चिम में स्थित), कुमारधुबी व धनबाद (धनबाद जिले में), झरिया, राँची रोड आदि।
अभ्रक
उद्योग
झारखण्ड
में अभ्रक उद्योग के कारखाने कोडरमा, हजारीबाग एवं गिरिडीह जिले में केन्द्रित
हैं।
उर्वरक
उद्योग
झारखण्ड
में उर्वरक का प्रथम कारखाना सिन्दरी (धनबाद के निकट) में 1951 ई. में भारत सरकार
द्वारा स्थापित किया गया। इस कारखाने में अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट एवं यूरिया का
उत्पादन किया जाता है। यह कारखाना पूर्वी भारत का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना है। इस
कारखाने में 5 प्लान्ट स्थापित हैं। अमोनिया प्लान्ट, सल्फेट प्लान्ट, पावर
प्लान्ट, गैस प्लान्ट एवं कोक ओवन प्लान्ट सिंदरी के अलावा बोकारो, धनबाद एवं
जमशेदपुर उर्वरक उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं।
काँच
उद्योग
झारखण्ड
में काँच उद्योग का विकास मुख्यतः रामगढ़ के आस-पास के क्षेत्रों में हुआ है।
जापान के सहयोग से भुरकुंडा में अत्याधुनिक काँच कारखाना स्थापित किया गया है। इसे
इण्डो आशाई ग्लास फैक्ट्री (Indo-Ashai Glass Factory) के नाम से जाना जाता है।
झारखण्ड
में काँच उत्पादन के प्रमुख केन्द्र हैं :
👉
भदानीनगर/भुरकुण्डा (रामगढ़) : जापान के सहयोग से अत्याधुनिक
काँच कारखाना—इण्डो आशाई फैक्ट्री—स्थापित।
👉
रामगढ़ छावनी क्षेत्र (रामगढ़) : इस क्षेत्र में काँच के 6
कारखाने स्थापित किये गये हैं।
👉
कतरासगढ़ (धनबाद) : काँच उत्पादन का एक प्रमुख केन्द्र
👉
अम्बोना (धनबाद) : काँच उत्पादन का एक प्रमुख केन्द्र
👉
कान्द्रा (सिंहभूम) : काँच उत्पादन का एक प्रमुख केन्द्र
कृषि पर आधारित उद्योग
चीनी
उद्योग
चीनी
उद्योग भारत का सर्वाधिक पुराना उद्योग है। यह गन्ने पर आधारित उद्योग है। झारखण्ड
के पलामू, हजारीबाग, संथाल परगना आदि गन्ना के उत्पादन क्षेत्र हैं।
वस्त्र
उद्योग
वस्त्र
उद्योग के अंतर्गत तीन तरह के वस्त्र उद्योग शामिल हैं
1.
सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Industry) : प्राचीनकाल से ही भारत
का प्रमुख उद्योग रहा सूती वस्त्र उद्योग का झारखण्ड प्रदेश में कोई खास स्थान
नहीं है। राज्य के राँची, गिरिडीह और जमशेदपुर में सूती वस्त्र उद्योग की
छोटी-छोटी इकाइयाँ हैं। राज्य में होजियरी की छोटी-बड़ी इकाइयाँ अपने उद्योग के
लिए कानपुर और अहमदाबाद से सूत मंगाती हैं।
2.
रेशमी वस्त्र उद्योग (Silk Industry) : झारखण्ड में केवल तसर और
अंडी रेशम का उत्पादन है। तसर रेशम के उत्पादन में यह प्रदेश पूरे भारत में प्रमुख
स्थान रखता है। राँची, धनबाद, हजारीबाग, दुमका, साहेबगंज, पलामू आदि स्थानों पर
तसर रेशम का उत्पादन है। राज्य के राँची, दुमका, गिरिडीह तथा डाल्टेनगंज आदि में
रेशमी वस्त्रों का उत्पादन होता है।
3.
कृत्रिम रेशा वस्त्र उद्योग (Synthetic Fibre Industry) : राज्य
में कृत्रिम रेशा वस्त्र के प्रमुख उत्पादन क्षेत्र हैं- हजारीबाग, दुमका, राँची,
साहेबगंज, धनबाद तथा पलामू।
वन
पर आधारित उद्योग
झारखण्ड
में वनों की बहुलता के फलस्वरूप वन आधारित उद्योगों का अच्छा विकास हुआ है। यहाँ
के वनों में कई तरह की लकड़ियाँ, बाँस, सवाई घास और जड़ी-बूटियाँ पायी जाती हैं।
इन उपजों से कई तरह के उद्योगों का यहाँ विकास हुआ है
(i)
लकड़ी उद्योग (ii) कागज एवं लुगदी उद्योग (iii) लाख उद्योग।
(i)
लकड़ी उद्योग : इस प्रदेश के वनों से तथा नेपाल के सीमांत
प्रदेश से प्राप्त लकड़ी से यहाँ लकड़ी चीरने के कारखाने, प्लाईवुड बनाने के कारखाने
और फर्नीचर बनाने के कारखाने विकसित हुए हैं।
प्लाईवुड
उद्योग – विनिर्माण क्षेत्र के विकसित होने के साथ-साथ भारत में प्लाईवुड का उपयोग
बढ़ता जा रहा है। झारखण्ड प्रदेश के उद्योगपतियों द्वारा चाकुलिया तथा राँची में
प्लाईवुड बनाने के कारखाने स्थापित किए गए हैं।
(ii)
कागज एवं लुग्दी उद्योग : झारखण्ड के वनों से प्राप्त होने वाले
बाँस, सवाई घास और मुलायम लकड़ी से यहाँ कागज और लुगदी उद्योग का अच्छा विकास हुआ है।
कागज एवं लुग्दी की इकाईयाँ यहाँ पर संथाल परगना में स्थापित हैं।
(iii)
लाख उद्योग : वन्य पदार्थों पर आधारित उद्योगों में लाख उद्योग का महत्त्वपूर्ण
स्थान है। लाख के कीड़े पलास, बेर, कुसुम आदि के वृक्षों पर पाले जाते हैं। ये कीड़े
विशेष तरह के लसीले पदार्थ छोड़ते हैं जो जमने पर ठोस हो जाता है तथा इससे लाख तैयार
होता है। उपरोक्त वृक्ष राज्य के राँची, संथाल परगना, हजारीबाग तथा सिंहभूम जिलों में
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अत: यहाँ लाख उद्योग के विकास की अच्छी संभावना है।
झारखण्ड में लाख उद्योग का विकास कुटीर उद्योग के रूप में हुआ
है।
अन्य उद्योग
झारखण्ड
में खनिज आधारित उद्योगों के अलावा कृषि एवं वन आधारित उद्योग हैं, जिनका विवरण इस
प्रकार है
लाह
उद्योग
भारत
के कुल लाह उत्पादन का 60% भाग झारखण्ड क्षेत्र से प्राप्त होता है। झारखण्ड
क्षेत्र में कुसुम, पलाश, बेर के पेड़ों की भरमार है, जिनकी पत्तियों पर लाह के
कीड़े पलते हैं। लाह के कीड़े से लाह लसीले रूप में प्राप्त होता है, जो बाद में
जमकर ठोस हो जाता है। लाह उत्पादन की दृष्टि से राज्य में पलामू प्रमण्डल का प्रथम
स्थान है। राँची एवं पश्चिमी सिंहभूम को राज्य में क्रमशः दूसरा एवं तीसरा स्थान
प्राप्त है। गुमला, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, धनबाद एवं पाकुड़ में भी लाह का
उत्पादन होता है। कुल लाह उत्पादन का 90% से अधिक भाग विदेशों को निर्यात किया
जाता है। लाह के निर्यात से राज्य को विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। लाह के विकास
के लिए 1925 ई. में राँची जिले के नामकुम में भारतीय लाह अनुसंधान संस्थान (Indian
Lac Research Institute) की स्थापना की गई।
रेशम
उद्योग
भारत
द्वारा उत्पादित कुल तसर रेशम का 60% से अधिक झारखण्ड से प्राप्त होता है। राज्य
के कुल उत्पादन का 40% सिंहभूम, 26% संथाल परगना एवं 13% हजारीबाग में उत्पादित
होता है। झारखण्ड में तसर रेशम का मुख्य उत्पादक क्षेत्र चाईबासा, राजखरसावां, हाट
गम्हरिया, टाटा नगर, मेदिनीनगर, हजारीबाग, गोविन्दपुर, गिरिडीह, लोहरदगा एवं दुमका
है। अधिकतर तसर रेशम का कच्चा माल भागलपुर एवं अन्य वस्त्र उत्पादक केन्द्रों को
बेच दिया जाता है।
तंबाकू
उद्योग
झारखण्ड
में तंबाकू उद्योग का विकास मुख्यतः बीड़ी उद्योग के रूप में हुआ है। बीड़ी का
निर्माण केन्दु पत्ते एवं तम्बाकू से होता है। बीड़ी उद्योग का विकास मुख्य रूप से
चाईबासा, सरायकेला, जमशेदपुर, चक्रधरपुर एवं संथाल परगना में हुआ है।
शराब
उद्योग
यह
उद्योग चावल, महुआ, गन्ने के रस पर आधारित है। शराब के उद्योग मुख्यतः राँची में
है। झारखण्ड के आदिवासियों द्वारा अपने घरों में चावल सड़ाकर देशी शराब बनाई जाती
है जिसे हंड़िया’ कहा जाता है।
झारखण्ड की नयी औद्योगिक नीति-2012
नयी
नीति की आवश्यकता
👉
आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण एवं लोक निजी भागीदारी के वर्तमान बदले
परिदृश्य में नयी नीति की आवश्यकता।
👉
कम भू-खण्ड पर अधिक रोजगार सृजन की आवश्यकता।
👉
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम अधिनियम-2006 का लागू होना।
👉
ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने हेतु रेशम आधारित टेक्सटाइल
उद्योग, रेडीमेड गारमेन्ट एवं हस्तशिल्प उद्योग को बढ़ावा देना।
👉
अधिक रोजगार सृजित करने वाले उद्योग तथा आईटी, खाद्य प्रसंस्करण,
ऑटो कम्पोनेन्ट आदि को बढ़ावा देना।
👉
उद्योगों का क्लस्टर के रूप में विकास।
नयी
नीति का मुख्य प्रावधान
औद्योगिक
क्षेत्र विकास प्राधिकार
👉
लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए नये औद्योगिक क्षेत्र में
भू-स्वामित्व खोने वाले इच्छुक उद्यमियों के लिए आवंटन योग्य भूमि का 10 प्रतिशत
भू-भाग वर्णांकित करना।
👉
उद्यमियों के द्वारा नए उद्यमी को भूमि हस्तांतरण की सुविधा कुछ
शर्तों के साथ।
👉
लीजधारियों के द्वारा अपने उद्योगों में 50 प्रतिशत रोजगार
झारखण्ड के सामान्य निवासियों को उपलब्ध कराने का प्रावधान ।
👉
एम.एस.एम.ई. क्षेत्र हेतु 40 प्रतिशत भू-खण्ड आरक्षित रखना।
निजी
औद्योगिक क्षेत्र
👉
कम-से-कम 75 एकड़ भूमि पर निजी औद्योगिक इस्टेट स्थापित करने का
प्रावधान।
👉
विकासक के द्वारा ऐसे इस्टेट में कम-से-कम 40 प्रतिशत भू-खण्ड
अन्य सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों को देने का प्रावधान।
👉
ऐसे इस्टेट/पार्क में आधारभूत संरचना विकास हेतु खर्च का 50 प्रतिशत
(अधिकतम रु. 10.00 करोड़) सरकार के द्वारा दिए जाना।
रेशम,
हस्तशिल्प एवं हस्तकरघा
👉
लोक निजी भागीदारी में रिलिंग, स्पिनिंग, विभिंग एवं अन्य
सुविधाओं के विकास का प्रावधान।
👉
रेशम हस्तकरघा एवं हस्तशिल्प, इन तीनों में से एक के लिए 250
प्रत्यक्ष रोजगार के साथ तथा एक से अधिक के लिए 1000 प्रत्यक्ष रोजगार वाली इकाई
प्रत्येक जिले में स्थापित करने का लक्ष्य
👉
इस क्षेत्र में विपणन की व्यवस्था झारक्राफ्ट द्वारा किए जाने का
प्रावधान है।
👉
10 या उसके अधिक सदस्यों वाली एस.एच.जी. को 2 प्रतिशत कम ब्याज दर पर कार्यशील पूंजी
उपलब्ध कराना।
👉
नये तकनीकी/मशीन का विकास।
👉
भारत सरकार से पूर्ण सहायता प्राप्त करना।
कौशल
विकास
👉
झारक्राफ्ट के द्वारा एपेरेल प्रशिक्षण हेतु स्थापित संस्थानों
को परियोजना लागत के 75 प्रतिशत (अधिकतम रु. 5 करोड़) अनुदान का प्रावधान।
👉
ऐसे दूसरे संस्थानों को भी, जो झारक्राफ्ट के साथ संयुक्त
क्षेत्र में अथवा लोक निजी भागीदारी में स्थापित किए जाते हैं, लाभ देय होगा।
👉
कम-से-कम 2000 प्रशिक्षु प्रतिवर्ष वाले कौशल विकास संस्थानों को
रु. 5000 प्रति प्रशिक्षु की दर से संस्थान को दिए जाने का प्रावधान।
👉
अनुसूचित जाति/जनजाति/विकलांग/महिलाओं के प्रशिक्षण लागत का 90
प्रतिशत एवं अन्य को 75 प्रतिशत अनुदान दिए जाने का प्रावधान।
👉
एपेरेल ट्रेनिंग के लिए 50 प्रतिशत (अधिकतम रु. 5000) प्रति
प्रशिक्षु प्रति कोर्स विमुक्ति का प्रावधान।
👉
प्रशिक्षक को भी प्रति प्रशिक्षक प्रति सप्ताह अधिकतम रु. 5000
देय होगा।
👉
ऐसी सुविधाएं मेगा ऑटोमोबाइल उत्पादक इकाइयों को भी देय होगा।
प्रोत्साहन
एवं रियायतें
👉
समेकित परियोजना निवेश अनुदान (सी.पी.आई.एस.) की सुविधा मेगा
इकाईयों को छोड़कर सभी प्रकार के उद्योगों को देने का प्रावधान।
👉
यह अनुदान क्षेत्रों के वर्गीकरण के आधार पर 7, 10 एवं 15
प्रतिशत होगा।
👉
यह प्रोत्साहन संयत्र और मशीनरी में निवेशार्थ-50% प्रदूषण
नियंत्रण-20% वैकल्पिक विद्युत उत्पादन-20% एवं कर्मचारी कल्याणार्थ-10%
👉
प्रोत्साहन की राशि अधिकतम रु. 5 करोड़ होगी।
👉
सी.पी.आई.एस. अनु. जाति/जनजाति/विकलांग एवं महिलाओं को 5%
अतिरिक्त देय होगा।
👉
इसी प्रकार नियुक्ति में राज्य आरक्षण नीति का पालन करने वाले
उद्योगों को 5% अतिरिक्त सी.पी.आई.एस. देने का प्रावधान।
👉
उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में उद्योग लगाने वाले को जिनकी
कम-से-कम लागत रु. 5 करोड़ है और जिन्होंने कम-से-कम 100 लोगों को रोजगार दिया है,
5% अतिरिक्त सी.पी.आई.एस देने का प्रावधान।
वैट
सब्सिडी
👉
राज्य के सभी उद्योगों को वर्गीकरण के आधार पर नेट वैट 50% से
75% तक देने का प्रावधान।
👉
वैट सब्सिडी की अधिकतम सीमा वृहद और मेगा उद्योगों के लिए कुल
अचल पूंजी निवेश की अधिकतम 75%, हस्तकरघा, रेशम, हस्तशिल्प एवं खादी एवं
ग्रामोद्योग के लिए अधिकतम 100% तथा कुछ खास उद्योगों (आई.टी., ऑटोमोबाइल, खाद्य
प्रसंस्करण आदि) के लिए अधिकतम 75% है।
स्टाम्प
शुल्क एवं निबंधन
👉
ऐसे उद्योग जिसमें 100 लोगों को रोजगार दिया गया है, उन्हें 50%
प्रतिपूर्ति की सुविधा।
👉
प्रति एकड़ 100 लोगों को रोजगार देने वाले इकाई को 100%
प्रतिपूर्ति की सुविधा।
👉
टैक्सटाइल एवं एपेरेल को 100% प्रतिपूर्ति की सुविधा।
👉
आइटी इकाई को पहली बार 100% प्रतिपूर्ति की सुविधा एवं दूसरी बार
50% प्रतिपूर्ति की सुविधा (प्राधिकार के जमीन के लिए नहीं)।
👉
औद्योगिक पार्क के लिए 50% प्रतिपूर्ति की सुविधा।
पेटेन्ट
निबंधन
👉
पेटेन्ट निबंधन में किए गए 50 प्रतिशत व्यय (अधिकतम रु. 2.00 लाख
प्रति पेटेन्ट) की प्रतिपूर्ति का प्रावधान। टेक्सटाइल, एपेरेल,
आई.टी./आई.टी.ई.एस., बायोटेक, जेम्स ज्वेलरी, हर्बल, फार्मास्टिकल, फूड,
ऑटोमोबाइल, बेण्डर आधारित पार्कों के आधारभूत संरचना विकास में किए गए व्यय का 50
प्रतिशत (अधिकतम रु. 10.00 करोड़) देने का प्रावधान।
कलस्टर
विकास
👉
कलस्टर के अनुमोदित परियोजना लागत का 10 प्रतिशत राज्य सरकार के
द्वारा दिए जाने का प्रावधान।
कैप्टिव
पावर प्लांट
👉
कैप्टिव पावर प्लांट के लिए विद्युत शुल्क का 50 प्रतिशत की छूट
5 वर्ष के लिए।
सोलर/रिनियुएबल
ऊर्जा
👉
विद्युत शुल्क में 10 वर्षों की छूट।
कृषि-खाद्य
प्रसंस्करण उद्योग
👉
सरकारी भूमि/औद्योगिक क्षेत्र की भूमि पर फूड पार्क के डेवलपर को
सरकारी/औद्योगिक क्षेत्र के परामर्श से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग हेतु सब-लीज पर
भूमि देने की अनुमति का प्रावधान।
👉
एम.एस.एम.ई. कलस्टर के रूप में काजू, आम, कटहल आदि विशिष्ट फलों
को प्रोत्साहित किया जाना।
👉
निजी भूमि पर निजी निवेश को प्रोत्साहित कर पूंजी निवेश के 25
प्रतिशत (अधिकतम 50 लाख रु.) की सुविधा उपलब्ध कराना, बशर्ते अन्य योजना के
अन्तर्गत लाभ नहीं लिया गया।
झारखण्ड में उद्योगों का स्वामित्व भारत सरकार द्वारा संचालित
(i)
पाइराइट्स, फॉस्फेट्स एण्ड कैमिकल्स लिमिटेड, सिंदरी (1951)इस कारखाने की स्थापना सिन्दरी
में की गई है। यहाँ पाइराइट्स, फॉस्फेट्स आदि रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं। इसकी
कुल जमा पूंजी 5 करोड़ रुपये है।
(ii)
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड, घाटशिला-नवम्बर, 1967 में स्थापित इस कारखाने का मुख्य उद्देश्य
भारत में ताँबे के उत्पादन की वृद्धि कर इसके आयात को कम करना था। घाटशिला में स्थित
इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 16,500 टन वार्षिक है। इसकी एक इकाई राजस्थान के खेतड़ी
में भी स्थापित है।
(iii)
इंडियन एल्यूमीनियम कंपनी, मुरी–हिन्दुस्तान एल्यूमीनियम कॉर्पोरेशन ने स्वर्णरेखा
नदी घाटी के मुरी नामक स्थान पर एल्यूमीनियम कारखाने की स्थापना की थी, जो झारखण्ड
प्रदेश में प्राप्त होनेवाले बॉक्साइट पर आधारित है। इसकी उत्पादन क्षमता 70,000 टन
वार्षिक एल्यूमीनियम उत्पादित करना है।
(iv)
माइनिंग एण्ड एलाइड इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड-1 अप्रैल, 1965 में स्थापित यह
संस्थान कोयला और अन्य खनिजों के उत्खनन करने के काम आने वाले उपकरणों का निर्माण करता
है। पूर्व में यह संस्थान हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन का ही भाग था।
(v)
हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड, राँची—इसकी स्थापना 31 दिसंबर, 1958 को राँची
में की गई थी। इसकी तीन इकाईयाँ हैं—(a) भारी मशीन उपकरण संयंत्र, (b) भारी मशीन निर्माण
संयंत्र और (c) फाउण्ड्री फोर्ज संयंत्र।
(vi)
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, धनबाद झारखण्ड प्रदेश के धनबाद जिले के टुंडू में स्थापित
यह संस्थान, भारत में इस प्रकार के स्थापित पाँच संस्थानों में से एक है। यहाँ पर जस्ता
पिघलाने का संयंत्र लगाया गया है। इस संस्थान की वार्षिक उत्पादन क्षमता 116 लाख टन
जस्ता प्रगलन (Melting) है।
(vii)
फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड, सिंदरी (F.C.I.)भारत के सार्वजनिक क्षेत्र
में स्थापित होने वाला पहला कारखाना फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड, सिंदरी
ही है। यहाँ पर पोटाश, नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस आदि ऊर्वरकों को तैयार किया जाता है।
राज्य शासन द्वारा संचालित
1.
बिहार माइका सिंडीकेट लिमिटेड, हजारीबाग : इस संस्थान का मुख्य
कार्य अभ्रक का उत्पादन, इसका श्रेणीबद्ध वर्गीकरण और विपणन है।
2.
बिहार स्टेट सुपर फॉस्फेट फैक्टरी लिमिटेड, धनबाद : यह झारखण्ड
प्रदेश के धनबाद जिले में स्थित है। इसमें उच्च कोटि का फॉस्फेट तैयार किया जाता
है।
निजी
प्रबंध के उद्योग
1.
टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी लिमिटेड (TELCO)
जमशेदपुर : यह झारखण्ड प्रांत का निजी क्षेत्र का उपक्रम है। इसमें रेल के लिए
इंजीनियरिंग सामान और लोकोमोटिव का निर्माण होता है।
2.
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड (TISCO) टाटानगर : यह भी
निजी प्रबंधन का उपक्रम है। इसकी स्थापना जमशेद जी टाटा ने 1907 में की थी।
3.
यूरेनियम प्रोसेसिंग प्लांट, घाटशिला (1967)
पंचवर्षीय
योजना के तहत स्थापित कारखाने
👉
सिन्दरी खाद कारखाना – प्रथम पंचवर्षीय योजना
👉
सिन्दरी सुपर फास्फेट – द्वितीय पंचवर्षीय योजना
👉
गोमिया विस्फोटक कारखाना – द्वितीय पंचवर्षीय योजना
👉
भारी मशीन प्लांट एवं फाउंड्री फोर्ज फैक्ट्री – द्वितीय
पंचवर्षीय योजना
👉
राँची हाइटेंशन इन्सुलेटर फैक्ट्री – द्वितीय पंचवर्षीय योजना
महत्वपूर्ण जानकारी
➧ झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्य है। भारत
के कुल खनिज भंडार का 40% झारखंड राज्य में पाया जाता है।
➧ खनिजों की उपलब्धता के कारण राज्य में औद्योगिक विकास
की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। उद्योगों के विकास से आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित
होने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
राज्य के प्रमुख उद्योगों का वर्गीकरण
➧ वन संसाधन आधारित उद्योग :- झारखंड में लाह, गोंद,
साल के बीच, महुआ के फूल एवं बीज, तेंदूपत्ता आदि लघु वनोत्पाद हैं।
➧ इसके अतिरिक्त राज्य में कागज, अखबारी कागज, लुगदी
आदि उद्योगों की भी अपार संभावनाएं हैं।
➧ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग :- झारखंड भारत में
सबसे अधिक सब्जी उत्पादक राज्यों में से एक है झारखंड में सब्जियों में टमाटर, आलू,
भिंडी, गोबी, शकरकंद तथा फलों में अमरूद, आम आदि का उत्पादन होता है।
➧ पापड़, चटनी, तंबाकू आदि प्रसंस्करणयुक्त उत्पादों
के लिए भी यह राज्य उपयुक्त है।
➧ कृषि सहायक उद्योग :- इसके अंतर्गत अचार, चटनी,
फलों का मुरब्बा, पिसा अनाज आदि उत्पाद पर आधारित उद्योग आते हैं।
➧ सूती वस्त्र उद्योग :- झारखंड में विशेष जाति
समुदाय द्वारा हथकरघे से कपड़े बुनने का कार्य किया जाता है।रांची जिले में ओरमांझी
गांव में सूत का कारखाना तथा इरबा रांची का 'छोटानागपुर रीजनल हैंडलूम वीवर्स
सोसाइटी' इसके लिए प्रसिद्ध है।
➧ रेशमी वस्त्र उद्योग :- देश भर में सबसे
अधिक तसर उत्पादन झारखंड में होता है। इसका सबसे अधिक उत्पादन पलामू, रांची, हजारीबाग
आदि जिलों में होता है। राज्य में नगड़ी रांची में तसर अनुसंधान केंद्र एवं गोड्डा में
तसर कोआपरेटिव सोसाइटी कार्यरत है।
➧ झारखंड की तसर रेशम गुणवत्ता को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन
भी दिया गया है।
➧ वस्त्र उद्योग :- वस्त्र उद्योग के
अंतर्गत कपड़ों की सिलाई, क्रय-विक्रय, कपड़ा बुनना, रंगना, धागा कातना आदि उद्योग
आते हैं।
➧ लकड़ी उद्योग :- इस उद्योग के
अंतर्गत लकड़ी की कटाई (चिराई), फर्नीचर बनाना, लकड़ी का क्रय-विक्रय करना और लकड़ी
के खिलौने बनाना आदि आता है।
➧ अन्य उद्योग :- राज्य में अन्य उद्योगों
में धातु उद्योग, चर्म उद्योग, साबुन बनाना, चूड़ियां बनाना, अगरबत्ती, मोमबत्ती
बनाना, शहद इकट्ठा करना आदि शामिल है।
झारखंड के प्रमुख वृहद उद्योग
➧ झारखंड की अर्थव्यवस्था में वृहद उद्योगों का महत्वपूर्ण
योगदान है।
➧ प्रमुख वृहत उद्योगों का वर्णन निम्नलिखित है:-
1- लौह-इस्पात उद्योग
टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी-टिस्को)
➧ टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी यानी टिस्को की स्थापना
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के साकची नामक स्थान दोराब जी टाटा ने की थी।
➧ दरअसल टिस्को की स्थापना का प्रारंभिक विचार जमशेदजी
नौसेरवान जी टाटा का था, परंतु 1904 में इनका निधन हो गया । परंतु जमशेदजी
टाटा को ही टिस्को कंपनी का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
➧ जमशेदजी टाटा के नाम पर साकची का नाम बाद में बदलकर
जमशेदपुर कर दिया गया। यह संयंत्र की स्थापना स्वर्णरेखा और खरकई नदी के संगम
पर की गई।
➧ टिस्को कंपनी की स्थापना 1907 में की गई । परन्तु
यहाँ लौह उत्पादन का कार्य 1911 में शुरू हुआ।
टिस्को कंपनी को
(i) कच्चे लोहे की प्राप्ति - नोवामुंडी,
गुआ, होक्लातबुरु से होती है।
(ii) कोयले की आपूर्ति - झरिया खदान तथा रानीगंज
(बंगाल) खदान से होती है।
(iii) मैग्नीज एवं क्रोमाइट - चाईबासा खान से होती
है।
(iv) चूना पत्थर एवं डोलोमाइट - सुंदरनगर (उड़ीसा)
से होती है।
(v) जल - स्थानीय नदियों से होता है।
➧ रेलवे के द्वारा माल की ढुलाई बंदरगाह तक होने की
सुविधा है।
➧ सन 1948 में टाटा मोटर्स के द्वारा यहां 'टाटा इंजीनियरिंग
एंड लोकोमोटिव कंपनी' (टेल्को) की स्थापना की गई।
➧ यहां ट्रक, रेलवे वैगन, बॉयलर तथा अन्य गाड़ियों की
चेचिस बनाई जाती है।
➧ 2005 में टिस्को कंपनी का नाम बदलकर टाटा स्टील कर
दिया गया।
➧ इस औद्यौगिक नगर को 'टाटानगर' भी कहा जाता
है।
➧ झारखंड की औद्यौगिक राजधानी मानी जाती
है।
2- बोकारो लौह स्टील प्लांट (Bokaro
Steel Plant)
➧ सन 1964 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण एवं सोवियत
संघ (वर्तमान रूस) के सहयोग से भारत सरकार ने बोकारो लौह इस्पात कंपनी की स्थापना की।
➧ यहां उत्पादन कार्य 1972 में शुरू हो गया । यह झारखंड
का दूसरा महत्वपूर्ण लौह इस्पात उद्योग केन्द्र है।
➧ यह कारखाना बोकारो जिले के माराफारी नामक
स्थान पर गर्गा डैम और तेनुघाट (दामोदर घाटी) के निकट स्थापित किया गया है।
➧ यह भारत का पहला स्वदेशी स्टील संयंत्र है
तथा देश का चौथा सबसे बड़ा लौह इस्पात संयंत्र है।
➧ यह कारखाना सैल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया-सेल)
के अधीन कार्यरत है।
➧ इस प्लांट से माल ढुलाई के लिए दिल्ली-कोलकाता मार्ग
सबसे उपयुक्त है। यह मार्ग उत्पाद को बंदरगाह तक पहुंचाने में मदद करता है।
➧ इस प्लांट को सस्ती बिजली और जल की आपूर्ति दामोदर
बिजली परियोजना से की जाती है।
➧ इस संयंत्र को
(i) लौह अयस्क - क्योंझर खान से प्राप्त होती
है।
(ii) कोयला - झरिया
खान से प्राप्त होती है।
(ii) चूना पत्थर - पलामू एवं मध्य प्रदेश से प्राप्त
होता है।
➧ यहां हॉट रोल्ड कॉयल, रोल्ड प्लेट, रोल्ड
शीट, कोल्ड रॉल्ड कॉयल आदि उपकरण तैयार किए जाते हैं।
3- रसायनिक उर्वरक उद्योग (Chemical
Industry)
➧ वर्ष 1951 में भारत सरकार ने भारत उर्वरक उद्योग निगम
के अंतर्गत सिंदरी (धनबाद) में एक उर्वरक कारखाने की स्थापना की।
➧ दामोदर घाटी परियोजना से बिजली एवं जल की आपूर्ति
तथा बोकारो स्टील प्लांट से कच्चे माल की आपूर्ति की जाती है।
➧ यह कारखाना नाइट्रेड, अमोनियम सल्फेट और यूरिया
का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है।
4- तांबा उद्योग (Copper Industry)
➧ देश का पहला तांबा उत्पादक कारखाना भारत सरकार ने
वर्ष 1924 में 'इंडियन कॉपर कारपोरेशन' के माध्यम से झारखंड के घाटशिला में स्थापित
किया था।
➧ घाटशिला के बेदिया एवं मुसाबनी की खानों से कच्चा
चूर्ण निकाला जाता है, जिसका चूर्ण बनाकर रोपवे के माध्यम से मउभंडारा कारखाने
तक लाया जाता है।
➧ वहां उस चूर्ण को भट्टी में डालकर तांबे से गंधक
को अलग किया जाता है।
➧ इंडियन कॉपर कारपोरेशन ने 1930 में घाटशिला के पास
तांबा शोधन केंद्र स्थापित किया है।
➧ झारखंड में इसके अलावा दो अन्य स्थानों से भी तांबा
उद्योग का संचालन होता है।
(i) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के द्वारा जादूगोड़ा से।
(ii) इंडियन केबल कंपनी लिमिटेड के द्वारा जमशेदपुर
से।
5- एल्युमिनियम उद्योग (Aluminum
Industry)
➧ राज्य में एलुमिनियम उद्योग के लिए बॉक्साइट की अनेक
खाने हैं। यहां भारत में कुल एलुमिनियम अयस्क (एलुमिना) उत्पादन का
16% भाग उत्पादित होता है।
➧ राज्य में बॉक्साइट का विशाल भंडार है, जिसमें सबसे
अधिक भंडार लोहरदगा में है।
➧ सन 1938 ईस्वी में रांची के निकट मुरी में इंडियन एलुमिनियम कंपनी
की स्थापना की गई।
➧ बिरला समूह द्वारा इस कंपनी को खरीदने जाने के पश्चात
का वर्तमान नाम 'हिंडालको' (Hindustan Aluminium And Corporation- Hindalco
Ltd) है।
➧ यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा एलुमिनियम संयंत्र
है।
➧ हिंडालको संयंत्र को ऑक्साइड के रूप में कच्चे माल
की आपूर्ति लोहरदगा एवं पलामू से होती है।
➧ राज्य में निर्मित होने वाले एलुमिना को केरल के अलमपुरम
एवं अलवाय, कोलकाता के बेलूर तथा मुंबई के लेई करखानों में भेजा जाता
है।
➧ एलुमिनियम का उपयोग बर्तन, बिजली के तार, मोटर, रेल
और वायुयान बनाने में किया जाता है।
6- सीमेंट उद्योग (Cement Industry)
➧ झारखंड में सीमेंट के कारखाने सिंदरी (धनबाद), कुमारडूबी
(धनबाद), जलपा (पलामू), चाईबासा (पश्चिमी सिंहभूम), झींकपानी (पश्चिमी सिंहभूम),
खेलारी (रांची), बोकारो आदि स्थान पर स्थित है।
➧ राज्य में पर्याप्त चूना पत्थर एवं कोयले के भंडार
होने के कारण सीमेंट उद्योग के लिए अनुकूल स्थिति बनती है।
➧ झारखंड में प्रथम सीमेंट उद्योग की स्थापना 1921 में
जपला (पलामू) में की गई थी।
➧ झींकपानी, जमशेदपुर, बोकारो एवं सिंदरी में सीमेंट
का उत्पादन स्लैग (Slag) एवं स्लेज (Sludge) से होता है।यह सीमेंट कारखानों का
उत्पादन है।
➧ जमशेदपुर का लाफार्ज सीमेंट कारखाना में लौह-इस्पात
उद्योग के अवशिष्ट का प्रयोग होता है।
➧ सीमेंट एक वजन ह्रास वाला उद्योग है तथा इसका
सबसे अधिक प्रयोग भवन निर्माण, सड़क निर्माण जैसे कार्यों में किया जाता है।
7- कांच उद्योग (Glass Industry)
➧ राज्य में कांच का कारखाना रामगढ़ जिले में भुरकुंडा
नामक स्थान पर 'इंडो आसई ग्लास' नाम से स्थापित किया गया है।
➧ कांच उद्योग में कई सारे खनिजों को कच्चे माल के रूप
में उपयोग किया जाता है, जैसे :- सीसा, सिलीका, चूना-पत्थर, सुरमा, शीरा, पोटेशियम
कार्बोनेट, सुहागा, सल्फेट आदि ।
➧ इस सभी पदार्थों की आपूर्ति राजमहल की पहाड़ी मंगल
घाट और पत्थर घाट से होती है।
8- अभ्रक उद्योग
➧ झारखंड अभ्रक उत्पादन में कभी देश का प्रथम राज्य
हुआ करता था, तथा यहां अभ्रक की सबसे उन्नत किस्म की रूबी अभ्रक पाया जाता था।
➧ परंतु वर्तमान समय में अभ्रक उत्पादन झारखंड में लगभग
बंद है तथा अभ्रक उत्पादन में भारत का प्रथम राज्य आंध्रप्रदेश बन गया है।
➧ झारखंड में अभ्रक का सबसे प्रसिद्ध खान कोडरमा खान
है। अभ्रक उत्पादन कोडरमा के अलावा गिरिडीह और हजारीबाग जिले में किया जाता है।
9- कोयला उद्योग
➧ राज्य में कोयले का अनुमानित भंडार 82,439 मिलियन
टन है, जो भारत में सबसे अधिक है। यह भारत के कुल कोयला भंडार का लगभग 26 पॉइंट
16% है कोयला उत्पादन में राज्य का तीसरा स्थान है।
➧ झारखंड में झरिया, बोकारो, रांची, उत्तरी कर्णपुरा, धनबाद
की खानों में कोयला उत्पादन का कार्य किया जाता है।
➧ झारखंड में कोयला निकालने वाली प्रथम कंपनी बंगाल
कोल थी।
➧ वर्त्तमान में कोल इंडिया की दो बड़ी इकाइयां
झारखंड में कार्यरत है :-
(i) सेंट्रल कोल फील्ड ,रांची।
(ii) भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद।
➧ केंद्रीय खनन अनुसंधान केंद्र धनबाद में स्थित है। इसकी
स्थापना 1926 में लॉर्ड इरविन के समय की गई थी।यह भारत का सबसे प्राचीन खनन शोध केंद्र
है तथा वर्तमान में आई.आई.टी. का दर्जा प्राप्त है।
10- इंजीनियरिंग उद्योग
➧ झारखंड में मुख्य रूप से रांची और जमशेदपुर में इंजीनियरिंग उद्योग
कार्यरत है।
हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन-एच.ई.सी. (Heavy Engineering
Corporation)
➧ हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन की स्थापना वर्ष
1958 (31 दिसंबर) में भारत सरकार ने रूस और चेकोस्लोवाकिया की सहायता
से रांची, (झारखंड) में की थी।
➧ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने
रांची यात्रा के दौरान 15 नवम्बर, 1963 को एच.ई.सी. को आधुनिक उद्योगों का
मंदिर कहा था।
➧ यह एशिया का सबसे बड़ा हैवी इंजीनियरिंग करखाना
था।
➧ इस संयंत्र में 1964 ई.में उत्पादन शुरू हुआ।
➧ एच.ई.सी. स्टील, खनन, रेलवे, बिजली, रक्षा, अंतरिक्ष
अनुसंधान, परमाणु और रणनीति क्षेत्रों के लिए भारत में पूंजी उपकरणों के प्रमुख
आपूर्तिकर्ताओं में से एक हैं।
➧ एच.ई.सी. की कुल 3 शाखाएँ हैं।
➧ जो रांची के समीप हटिया नामक स्थान पर कार्यरत हैं।
(i) भारी मशीन निर्माण संयंत्र (Heavy Machine
Building Plan-HMBP) :- यह रूस के सहयोग से स्थापित की गई है।
➧ यह संयंत्र किसी भी उद्योग की संरचना डिजाइन करने का छमता
रखता है।
➧ यह इस प्लांट में लौह-इस्पात संबंधी भारी उपकरण
जैसे एस्केवेटर, क्रेन, ऑयल, ड्रिलिंग, उपकरण आदि बनाते हैं। साथ ही सीमेंट,
खाद्य तेल, खनन, ड्रिलिंग मशीन आदि का भी कार्य होता है।
(ii) फाउंड्री फ़ार्ज़ संयंत्र (Foundry Forge
Plant-FFT) - इस सयंत्र की स्थापना की चेकोस्लोवाकिया की सहायता
से की गई है। यह एक ढलाई भट्टी है।
➧ यहां भारी मशीनों एवं उपकरणों के निर्माण के लिए बड़े-बड़े
उच्चता तापीय बॉयलोरो में गलाकर आवश्यक आकृतियों में ढाला जा रहा है।
यह अन्य दो शाखाओं की मांग को पूरा करने का काम करता है।
(iii) हैवी मशीन टूल प्लांट (Heavy Machine Tools
Plants-HMTP) - इसकी स्थापना रूस की सहायता से की गई है। यहां विभिन्न प्रकार
के मशीन के पुर्जे बनाए जाते थे। बोकारो लौह-इस्पात कंपनी के लिए आवश्यक मशीन
और उपकरण की आपूर्ति यहीं से की जाती है।
11- यूरेनियम उद्योग
➧ झारखंड में यूरेनियम प्रोसेसिंग प्लांट पूर्वी सिंहभूम
जिले में घाटशिला के निकट बादूंहुडांग गांव में लगाया जाना है।
➧ इसका इसका औपचारिक नाम तुरामडीह यूरेनियम प्रोजेक्ट होगा।
➧ राज्य सरकार ने इस कारखाने के निर्माण की मंजूरी दे
दी है। परंतु यह कारखाना अभी आरंभ नहीं हुआ है।
➧ एक अनुमान के तहत झारखंड में 40 लाख टन यूरेनियम
का भंडार है।
12- विस्फोटक उद्योग
➧ झारखंड में विस्फोटक उद्योग की स्थापना आई.सी.आई द्वारा
गोमिया (बोकारो) में किया गया।
13- कोयला धोवन उद्योग(Coal
Washeries Industry)
➧ कोयला धोवन गृहों के द्वारा कोयले से शेल,फायरक्ले आदि
अशुद्धियों को दूर किया जाता है।
➧ झारखंड में जामादोबा, बोकारो, लोदला, करगाली,
दुगदा, पाथरडीह, कर्णपुरा आदि प्रमुख कोयला धोवन केंद्र हैं।
➧ करगाली कोल वाशरी (बोकारो) एशिया की सबसे बड़ी कॉल
वाशरी है।
14- रिफैक्ट्री उद्योग (Refractory
Industry)
➧ इस उद्योग के अंतर्गत उच्च ताप सहन करने वाले धमन
भट्टियों का निर्माण किया जाता है जिसका प्रयोग लौह-इस्पात उद्योग सहित विभिन्न
उद्योगों में किया जाता है।
➧ झारखंड में चिरकुंडा, कुमारधुबी, धनबाद, रांची
रोड, मुग्मा आदि में इस प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है।
➧ दामोदर घाटी क्षेत्र में पायी जाने वाली मिट्टी
इस उद्योग की स्थापना हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है।
15- उर्वरक उद्योग (Fertilizer
Industry)
➧ भारत का प्रथम उर्वरक कारखाना 1951 ईस्वी में सिंदरी (धनबाद)
में फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया दवारा स्थापित किया गया है।
➧ यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना है।
➧ यहाँ से अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट एवं यूरिया का उत्पादन
किया जाता है।
अन्य करखाने
➧ भारत सरकार ने झारखंड में केंद्रीय प्रबंधन के अंतर्गत
कुछ बड़े कारखाने खाले हैं।
(i) सी.सी.एल. (रांची)
(ii) बोकारो इस्पात लिमिटेड (बोकारो)
(iii) ई.सी.एल. (संथाल परगना)
(iv) बी.सी.सी.एल. (धनबाद)
(v) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (पूर्वी सिंहभूम)
(vi) एच.ई.सी. (रांची)।
➧ राज्य में बिरला समूह के दो कारखाने
स्थित है
(i) 'हिंडालको' (मुरी) - एलुमिनियम उत्पादन हेतु।
(ii) बिहार कास्टिक सोडा एवं केमिकल्स फैक्ट्री
रेहला (पलामू) है।
➧ झारखंड राज्य के 12 जिलों में जिला उद्योग केंद्र
(District Industry Center) कार्यरत हैं।
➧ झारखंड में वृहद उद्योग की संख्या 167 है, जो राज्य
के 15 जिला में स्थापित है।
➧ पूर्वी सिंहभूम जिले में सबसे अधिक 85 उद्योगों
की स्थापना हुई है।
झारखंड में वन आधारित उद्योग
(1) लौह उद्योग
➧ लाह उत्पादन की दृष्टि से भारत में झारखंड का स्थान
प्रथम है। यहां भारत के कुल उत्पादन का 60% उत्पादन होता है।
➧ लाह के कीड़ों को पालने का कार्य कुसुम, पलास, बेर के
पौधों पर किया जाता है।
➧ झारखंड अपने कुल लाह उत्पादन का 90% निर्यात
करता है।
➧ लातेहार टोरी लाह निर्यात की दृष्टि से विश्व
में प्रथम स्थान रखता है।
➧ सबसे अधिक लाह का उत्पादन खूंटी जिले में किया
जाता है।
➧ भारतीय लाह अनुसंधान संस्थान रांची जिले के नामकुम
में 1925 में स्थापित किया गया था।
(2) रेशम उद्योग
➧ भारत में 70% तसर रेशम का उत्पादन अकेले झारखंड करता
है।
➧ राज्य में 40% रेशम उत्पादन सिंहभूम क्षेत्र
में तथा 26% रेशम उत्पादन संथाल परगना क्षेत्र में होता है।
➧ तसर अनुसंधान केंद्र राँची के नगड़ी में स्थापित किया
गया है।
(3) तंबाकू उद्योग
➧ झारखंड में तंबाकू उद्योग का मुख्य उत्पाद बीड़ी उद्योग
में है।
➧ बीड़ी का निर्माण एवं केन्दु पत्ता एवं तंबाकू
से किया जाता है।
➧ राज्य में बीड़ी निर्माण का कार्य सरायकेला, जमशेदपुर,
चक्रधरपुर, संथाल परगना क्षेत्र में किया जाता है।