मुद्रा और बैंकिंग (Money and Banking)

मुद्रा और बैंकिंग (Money and Banking)

पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1. वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?

उत्तर: वस्तु विनिमय वह प्रणाली होती है जिसमें वस्तुओं व सेवाओं का विनिमय एक-दूसरे के लिए किया जाता है उसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

वस्तु विनिमय की कमियाँ –

1. वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापन करने के लिए एक सामान्य इकाई का अभाव। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में लेखे की कोई सामान्य इकाई नहीं होती है।

2. दोहरे संयोग का अभाव-यह बड़ा ही विरला अवसर होगा जब एक वस्तु या सेवा के मालिक को दूसरी वस्तु या सेवा का ऐसा मालिक मिलेगा कि पहला मालिक जो देना चाहता है और बदले में लेना चाहता है दूसरा मालिक वही लेना व देना चाहता है।

3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई-वस्तु विनिमय में भविष्य के लिए निर्धारित सौदों का निपटारा करने में कठिनाई आती है। इसका मतलब है वस्तु के संबंध में, इसकी गुणवत्ता व मात्रा आदि के बारे में दोनों पक्षों में असहमति हो सकती है।

4. मूल्य के संग्रहण की कठिनाई-क्रय शक्ति के भण्डारण का कोई ठोस उपाय वस्तु विनिमय प्रणाली में नहीं होता है क्योंकि सभी वस्तुओं में समय के साथ घिसावट होती है तथा उनमें तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण निम्न स्तर का होता है।

प्रश्न 2. मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है?

उत्तर: मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं-

1. मूल्य की इकाई

2. विनिमय का माध्यम

3. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मानक

4. मूल्य का संचय

मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कमियाँ निम्न प्रकार से दूर हो जाती है –

1. विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग को तलाशने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। दोहरे संयोग को तलाशने में प्रयुक्त ऊर्जा व समय की बचत होती है।

2. लेखे की इकाई के रूप में मुद्रा का प्रयोग होने पर वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को मापने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

3. मूल्य संचय के लिए मुद्रा के प्रयोग से धन व संपत्ति संग्रह करने में कठिनाई समाप्त हो जाती है। मुद्रा में घिसावट नहीं होती है। मुद्रा में तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण उच्च स्तरीय होता है।

4. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मुद्रा का प्रयोग करने से मात्रा, गुणवत्ता आदि के संबंध में कोई असहमति नहीं होती है।

प्रश्न 3. संव्यवहार के लिए मुद्रा की मांग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?

उत्तर: लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग-रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और सतत् विनिमय के लिए मुद्रा की मांग को लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग कहते हैं। मुद्रा की मांग और लेन-देन के मूल्य में संबंध सामान्य रूप मे एक अर्थव्यवस्था में लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग का समीकरण है –

`M_t^d` KT अथवा  `\frac1kM_t^d=T`

अथवा V.`M_t^d` = 

जहाँ V = `\frac1k`प्रवाह का वेग

T ⇒ मुद्रा की मांग का प्रवाह चर

V.`M_t^d` ⇒ निश्चित समय बिन्दु पर इच्छुक लोगों द्वारा संग्रह की गई मुद्रा का स्टॉक चर समय की माप का प्रयोग होता है। इसका अभिप्राय है इकाई समयावधि में मुद्रा की विभिन्न हाथों में मुद्रा की हस्तांतरणीयता की आवृत्ति।

प्रश्न 4. मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु. के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है । यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?

उत्तर: यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है और बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रुपये का वहन करता है, तो बंधपत्र की कीमत ( मार्केट विक्रेता द्वारा प्रदान की जाने वाली कीमत) निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके पता किया जा सकता है:

`5\%=5\times\frac1{100}`

बंधपत्र की कीमत =`\frac{500}{\left(1+0.05\times2\right)}=\frac{500}{\left(1.1\right)}`

तो बंधपत्र की कीमत 454.54 रुपये होगी।

प्रश्न 5. मुद्रा की सट्टा मांग और ब्याज की दर में विलोभ संबंध क्यों होता है?

उत्तर: एक व्यक्ति भूमि, बाँडस, मुद्रा आदि के रूप में धन को धारण कर सकता है। अर्थव्यवस्था में लेन-देन एवं सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग का ब्याज की दर के साथ उल्टा संबंध होता है। जब ब्याज की दर ऊँची होती है तब सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऊँची ब्याज पर सुरक्षित आय बढ़ने की आशा हो जाती है। परिणामस्वरूप लोग सट्टा उद्देश्य के लिए जमा की गई मुद्रा की निकासी करके उसे बाँडस खरीदने पर लगाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति सट्टा उद्देश्य के लिए नियोजित मुद्रा को बाँडस में परिवर्तित करने की इच्छा करने लगता है। इसके विपरीत जब ब्याज दर घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती है तो लोग सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग असीमित रूप से बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 6. तरलता पाश क्या है?

उत्तर: तरलता पाश वह स्थिति होती है जहाँ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पूर्णतया लोचदार हो जाती है। तरलता पाश की स्थिति में ब्याज दर बिना बढ़ाये या घटाये अतिरिक्त अन्तः क्षेपित मुद्रा का प्रयोग कर लिया जाता है।

प्रश्न 7. भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?

उत्तर: एक निश्चित सयम बिन्दु पर जनता के बीच प्रवाहित मुद्रा स्टॉक को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की आपूर्ति को निम्नलिखित चार विकल्पों के रूप में परिभाषित करता है –

M1 ⇒ जनता के पास मुद्रा (नोट + सिक्के) + व्यापारिक बैंकों के पास शुद्ध जमाएं

M2 ⇒ M1 + डाकघर बचत खाते में जमाएं

M3 ⇒ M1 + व्यापारिक के पास शुद्ध समय जमाएं

M4 ⇒ M3 + डाकघर संगठन की सभी जमाएं (राष्ट्रीय बचत-पत्र को छोड़कर)

प्रश्न 8. वैधानिक पत्र क्या है? कागजी मुद्रा क्या है?

उत्तर: करेन्सी नोट एवं सिक्के के मूल्य का निर्धारण मुद्रा जारी करने वाली सत्ता द्वारा दी जाने वाली गारंटी के आधार पर होता है। इस प्रकार जारी किए गए नोटों एवं सिक्कों को कानूनी/वैधानिक मुद्रा कहते हैं। वह मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उनके निहित (वास्तविक मूल्य) से अधिक होता है उसे फ्लैट मुद्रा भी कहते हैं।

प्रश्न 9. उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?

उत्तर: एक देश की मौद्रिक सत्ता के कुल दायित्त्व को मौद्रिक आधार अथवा ‘हाइ-पावरड मनी’ कहते हैं। भारत में RBI मौद्रिक आधार है। इसमें जनता के पास प्रवाह में करेन्सी नोटस एवं सिक्के, एवं व्यापारिक बैंक के पास नकद कोष तथा सरकार एवं व्यापारिक द्वारा RBI के पास जमा करायी गई राशि।

प्रश्न 10. व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: व्यावसायिक बैंक के कार्य नीचे लिखे गए हैं –

1. जनता से जमाएं स्वीकार करना-व्यावसायिक बैंक तीन प्रकार की जमाएं जनता से स्वीकार करता है:

👉 चालू खाते में जमाएं स्वीकार करना

👉सावधि जमा खाते में जमाएं स्वीकार करना

👉बचत बैंक खाते में जमाएं स्वीकार करना

2. ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित प्रकार के ऋण एवं अग्रिम जनता को प्रदान करता है।

👉नकद साख

👉मांग ऋण

👉अल्पकालीन ऋण आदि

3. बैंक के अभिकर्ता के रूप में कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य अभिकर्ता के रूप में करता है।

👉फंड्स का हस्तांतरण

👉फंडस् का संग्रह

👉विभिन्न मदों का भुगतान

👉लाभांश का संग्रह

👉संपत्ति का ट्रस्टी एवं कार्यापालक आदि

4. विदेशी व्यापार को वित्त प्रदान करना।

5. तरलता की आपूर्ति करना।

6. सामान्य उपयोगी सेवाएं प्रदान करना।

प्रश्न 11. मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किस अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?

उत्तर: मुद्रा गुणक को मुद्रा स्टॉक तथा हाई पावर्ड मनी (आधार मुद्रा) के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

मुद्रा गुणक का मूल्य सामान्यतः 1 से अधिक होता है।

मुद्रा गुणक ज्ञात करने की विधि –

मुद्रा की पूर्ति मुद्रा अधिकारियों द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित की जाती है। मुद्रा की पूर्ति के दो निर्धारक तत्व हैं - व्यावसायिक बैंकों की जमा राशि तथा लोगों द्वारा रखी जाने वाली मुद्रा की मात्रा

 सूत्र से ,

M = D + C ------------------------(1)

जहां , M = मुद्रा की मात्रा , D = बैंको की मांग जमा राशि, C = लोगों के पास मुद्रा की मात्रा।

शक्तिशाली मुद्रा तीन तत्त्वो से निर्धारित होती है - लोगों द्वारा नद मुद्रा की मांग (C) बैंकों द्वारा रिजर्व अनुपात की मांग (RR), एवं बैंको द्वारा अतिरिक्त रिजर्व की मांग (ER)

सूत्र से,

H = C + RR + ER --------------------(2)

यदि हम `\frac CD` को Cr ,`\frac{R}D` को RRr तथा `\frac{ER}D` ERr से प्रतिस्थापित कर दे तो सूत्र निम्न प्रकार होगा -

प्रश्न 12. भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण –

1. खुले बाजार की क्रियाएं: अर्थव्यवस्था आधार मुद्रा (High Powered Money) के स्टॉक को बढ़ाने अथवा घटाने के लिए रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को आम जनता को बेचता है अथवा उससे क्रय करता है। प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

2. बैंक दर: बैंक दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करके उनका निपटारा करता है।

3. परिवर्तित आरक्षित आवश्यकताएँ: न्यूनतम आरक्षित जमा अनुपात (CRR) अथवा संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) की ऊँची या नीची दर से केन्द्रीय बैंक की आधार मुद्रा प्रभावित है। इनकी दर बढ़ाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं इनकी दर घटाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है।

सामान्यतः भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा सृजन के उपकरणों का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा भण्डार को स्थिर करने के लिए करता है। इनके माध्यम से केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था विदेशी प्रतिकूल प्रभावों से बचाकर स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 13. क्या आप जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं?

उत्तर: गुणित जमा विस्तार एवं साख सृजन का अभिप्राय संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली से है। सभी बैंक सामूहिक आधार पर मांग जमाएं सृजित करते हैं और आरंभिक जमा से कई गुना साख सृजन करते हैं। मुद्रा सृजन की प्रक्रिया को नीचे समझाया गया है।

मुद्रा की वह मात्रा जिसे बैंक सुरक्षित रूप से आधार दे सकता है अधिशेष आरक्षित कोष कहलाती है। माना एक व्यक्ति 1000 रु. मूल्य का एक चैक, बैंक A में जमा करवाता है। बैंक A की मांग जमा 1000 रु. है। न्यूनतम आरक्षित कोष (CRR) अनुपात 10% की स्थिति में यह बैंक 1000 का 10% अर्थात् 100 रु. CRR के रूप में अपने पास नकद कोष रखेगा तथा शेष 900 रु. ऋण देने में प्रयोग कर सकता है। वह बैंक ऋणी के नाम से अपनी शाखा में बचत खाता खोलेगा। इस प्रकार बैंक के मांग जमा खाते में अधिक राशि जमा हो जायेगी। अर्थात् ऋण देकर बैंक मांग जमाओं का सृजन करता है। मांग जमाओं के द्वारा मुद्रा सृजन में वृद्धि होती है। मृदा सृजन बैंक की एक सतत् प्रक्रिया है। इस बात को नीचे तालिका में तथा गया-

बैंक का नाम

अतिरिक्त जमा

अतिरिक्त ऋण

अतिरिक्त आवश्यक कोष

A

1000

900

100

B

900

8100

90

C

810

729

81

D

729

656.90

72.90

E

656.10

590.44

65.61

-

 

 

 

-

 

 

 

 

10000

9000

1000


प्रश्न 14. भारतीय रिजर्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। आपदा अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में यह व्यापारिक बैंकों के साथ खड़ा होता है। और ऋणों का विस्तार करता है ताकि व्यापारिक बैंकों की प्रतिष्ठा बची रहे। गारंटी की पद्धति व्यक्तिगत खातेदार को आश्वस्त करती है कि विपदा के समय बैंक उसकी मुद्रा का वापिस भुगतान करने में समर्थ होगा और इस बारे में चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की यह भूमिका उसे अन्तिम ऋणदाता बनाती है।

अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. भारत की मुद्रा है

(A) पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा

(B) प्रतिनिधि मूर्तिमान मुद्रा

(C) साख मुद्रा

(D) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2. भारत की मुद्रा को किस वर्ग में रखा जा सकता है

(A) अपरिवर्तनीय

(B) पूर्णतः परिवर्तनीय

(C) तो परिवर्तनीय ही अपरिवर्तनीय

(D) परिवर्तनीय एवं अपरिवर्तनीय दोनों

प्रश्न 3. भारत का केन्द्रीय बैंक है

(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

(B) भारतीय रिजर्व बैंक

(C) भारत का वित्त मंत्रालय

(D) इलाहाबाद बैंक ऑफ इंडिया

प्रश्न 4. भारत में एक रुपये का नोट जारी करता है

(A) भारतीय रिजर्व बैंक

(B) भारत का वित्त मंत्रालय

(C) भास्तीय रिवर्ज बैंक

(D) भारत का रेल मंत्रालय

प्रश्न 5. भारत प्रतिनिधि सिक्कों की ढलाई कौन करता है

(A) भारत वित्त मंत्रालय

(B) भारत का गृह मंत्रालय

(C) भारतीय रिजर्व बैंक

(D) भारत का रेल मंत्रालय

प्रश्न 6. एक रुपये के नोट के अलावा भारतीय रुपयों पर हस्ताक्षर कौन करता है

(A) वित्त मंत्री

(B) प्रधान मंत्री

(C) भारत का राष्ट्रपति

(D) भारतीय रिवर्ज बैंक का गवर्नर

प्रश्न 7. एक रुपये के नोट के अलावा अन्य नोटों को कौन जारी करता है

(A) भारतीय रिवर्ज बैंक

(B) भारतीय स्टेट बैंक

(C) वित्त मंत्रालय

(D) प्रधान मंत्री।

प्रश्न 8. बढ़ते क्रम में मुद्रा की आपूर्ति के चार स्टॉक हैं

(A) M1, M2, M3 व M4

(B) M4, M3, M2 व M1

(C) a b दोनों

(D) a b में कोई नहीं

प्रश्न 9. भारत में सामान्यतः बहुप्रचलित मुद्रा आपूर्ति स्टॉक है

(A) M1

(B) M2

(C) M3

(D) M4

प्रश्न 10. भारत में अंतिम ऋण आश्रयदाता है

(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

(B) सिंडिकेट बैंक

(C) भारतीय रिजर्व बैंक

(D) कृषि मंत्रालय

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. मुद्रा का एक प्रमुख कार्य लिखो।

उत्तर: मुद्रा का प्रमुख कार्य विनिमय का माध्यम है। विनिमय माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है।

प्रश्न 2. ‘मुद्रा विकल्पों की धारक है। इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मुद्रा विकल्पों की धारक है इसका अभिप्राय है कि यह धारक को चयन करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसका सर्वोत्तम विकल्प का चयन कर सकता है तथा अवांछनीय वस्तुओं एवं सेवाओं को स्वीकार करने की मजबूरी समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 3. व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य लिखिए।

उत्तर: व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य –

1. जनता से जमाएं स्वीकर करना।

2. जनता को ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना।

प्रश्न 4. केन्द्रीय बैंक का अर्थ लिखिए।

उत्तर: एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रणाली की सर्वोच्च संस्था को केन्द्रीय बैंक कहते हैं। केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति बनाता है और उसका क्रियान्वयन करवाता है। यह ऋणदाताओं का अन्तिम आश्रयदाता होता है।

प्रश्न 5. खुले बाजार की क्रियाओं का अर्थ लिखिए।

उत्तर: केन्द्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंकों को बेचना अथवा उनसे वापिस खरीदने की क्रियाओं को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

प्रश्न 6. नकद जमा अनुपात (CRR) का अर्थ लिखिए।

उत्तर: वह दर जिस पर व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंकों के पास जमा करवाना पड़ता है उसे नकद जमा अनुपात (CRR) कहते हैं।

प्रश्न 7. संवैधानिक तरलता अनुपात का अर्थ लिखो।

उत्तर: वह दर जिस पर व्यापारिक बैंकों की मांग जमाओ की मांग को पूरा करने के लिए न्यूनतम आरक्षित नकद कोष रखना पड़ता है उसे बैंक दर कहते हैं

प्रश्न 8. वैधानिक या कानूनी मुद्रा होती है?

उत्तर: वह मुद्रा जो सरकार के आदेश पर जारी की जाती है उसे वैधानिक कानूनी मुद्रा कहते हैं। कानूनी मुद्रा की स्वीकार्यता के बारे में किसी को कोई सन्दर्भ नहीं होता है।

प्रश्न 9. कानूनी दायित्व अथवा फीयट मनी (Fiat Money) का क्या अर्थ है?

उत्तर: सरकार के आदेश पर जारी की गई मुद्रा कानूनी दायित्व धारण करती है। इसके माध्यम से सभी प्रकार के ऋणों को चुकाया जा सकता है। यदि कोई इस मुद्रा को स्वीकार करने से मना कर देता है तो उसको बदले में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 10. ‘मूल्य संग्रह के रूप में मुद्रा’ के आश्य को स्पष्ट करो।

उत्तर: मुद्रा का धारक कहीं भी किसी भी समय वांछित वस्तु अथवा सेवा को क्रय कर सकता है क्योंकि मुद्रा में कानूनी स्वीकार्यता गण विद्यमन होता है। इसलिए मुद्रा में मूल्य संग्रह की क्षमता/धारणीयता होती है।

प्रश्न 11. पूर्णकाय मुद्रा की परिभाषा लिखो। अथवा संपूर्ण मूर्ति मान मुद्रा का अर्थ लिखो।

उत्तर: पूर्णकाय मुद्रा वह है जिसका गैर आर्थिक मूल्य मुद्रा के मूल्य के समान होता है। अथवा वह मुद्रा जिसका अंकित और वास्तविक मूल्य दोनों एक-समान होते हैं पूर्णकाय मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 12. बैंक दर क्या होती है?

उत्तर: वह दर जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करने उनका निपटारा करता है।

प्रश्न 13. साख का अर्थ लिखिए।

उत्तर: किसी दूसरे व्यक्ति, फर्म, बैंक अथवा संगठन आदि को ऋण या वित्त उपलब्ध कराना साख कहलाता है।

प्रश्न 14. बैंक किस प्रकार व्यावसायिक समुदाय की मदद करती हैं?

उत्तर: बैंक आर्थिक क्रियाओं के मामले में विशेषज्ञ होते हैं। बैंक वित्त संबंधी सूचनाओं को एकत्रित करते हैं और उन्हें अपने ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।

प्रश्न 15. व्यापारिक बैंक द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को मुद्रा (कोष) हस्तांतरित करने की विधि लिखो।

उत्तर: बैंक ड्रॉफ्ट के माध्यमों से कोष हस्तांतरित एक स्थान से दूसरे स्थान किए जाते हैं।

प्रश्न 16. सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का क्या अर्थ है?

उत्तर: व्यापारिक बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कहते हैं।

प्रश्न 17. व्यापारिक बैंक का अर्थ लिखो।

उत्तर: व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करता है। व्यापारिक जमाएं स्वीकार करते हैं तथा जनता को उधार देकर साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 18. मांग जमा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता अपनी सुविधा अनुसार कभी भी मांग सकता है मांग जमाएं कहलाती है। व्यापारिक बैंकों में बचत बैंक खाते तथा चालू खाते की जमाओं को मांग जमा कहते हैं।

प्रश्न 19. समय जमा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता किसी निश्चित समय अवधि के लिए व्यापारिक बैंकों में जमा करवाते हैं उन्हें समय जमा कहते हैं। जैसे समयावधि खाते में जमाएं, आवृत्ति जमाएं। इन जमाओं की राशि समय अवधि पूर्ण होने पर ही ब्याज सहित निकाली जा सकती है।

प्रश्न 20. ओवर ड्राफ्ट का अर्थ लिखो।

उत्तर: वह सुविधा जिसके द्वारा खातेदार जमा करवायी राशि से अधिक निकासी कर सकता है उसे ओवर ड्रॉफ्ट की सुविधा कहते हैं।

प्रश्न 21. ऋण अग्रिम का अर्थ लिखिए।

उत्तर: ऋणी को बैंक द्वारा प्रदत्त ऋण या अग्रिम से अभिप्राय, निश्चित मात्रा में उसके खाते में हस्तांतरित की गई राशि से है जिसे ऋणी अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग में ला सकता है।

प्रश्न 22. भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए कौन उत्तरदायी होता है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक व्यापारिक मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 23. व्यापारिक बैंक के साथ जमा करायी जाने वाली दो प्रकार की बचतों के नाम लिखो।

उत्तर: व्यापारिक बैंक के साथ/पास जमा करायी जाने वाली दो बचते हैं

1. मांग जमाएं एवं

2. समय जमाएं

प्रश्न 24. मुद्रा की आपूर्ति में किसको शामिल किया जाता है?

उत्तर: मुद्रा की आपूर्ति में करेंसी नोटस्, सिक्कों साख को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 25. आधुनिक अर्थव्यवस्था में दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं उन्हें लिखो।

उत्तर: जिन दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं वे हैं

1. दैनिक लेन-देन के लिए

2. सट्टा उद्देश्य के लिए

प्रश्न 26. प्राथमिक जमा का अर्थ लिखो।

उत्तर: लोगों द्वारा बैंक में जमा करायी गई नकद राशि को प्राथमिक जमा कहते हैं।

प्रश्न 27. द्वितीयक जमा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: जब बैंक ऋणी को नकद ऋण देने के बजाय, ग्राहक के खाते में राशि जमा करवाता है इसे द्वितीयक जमा कहते हैं।

प्रश्न 28. नकद जमा अनुपात साख गुणक का संबंध लिखिए।

उत्तर: नकद जमा अनुपात तथा साख गुणक में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 29. भारतीय अर्थव्यवस्था के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखो।

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक हमारी अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक है।

प्रश्न 30. साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में क्या संबंध है?

उत्तर: साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 31. क्या वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन है?

उत्तर: नहीं, वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन नहीं है।

प्रश्न 32. सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का मौद्रिक मूल्य उसमें निहित वस्तु के मूल्य के समान होता है। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान मौद्रिक प्रयोग मान के समान ही होता है। उदाहरण के लिए बहुमूल्य धातुएं सोने चाँदी के सिक्के। पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का चलन पुराने समय में किया जाता था। आजकल ऐसी मुद्राओं का चलन लगभग बन्द है।

प्रश्न 33. विनिमय के माध्यम का क्या अर्थ है?

उत्तर: विनिमय के माध्यम से अभिप्राय है कि मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है तथा दूसरी वस्तुओं को खरीदता है इस लेन-देन में मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।

प्रश्न 34. विदेशी/बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति कौन संरक्षित करता है?

उत्तर: (RBI) भारतीय रिजर्व बैंक बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति को संरक्षित करता है।

प्रश्न 35. वस्तु विनिमय प्रणाली का अर्थ लिखिए।

उत्तर: यदि वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन मुद्रा के बिना वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले होता है तो इसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग परंपरागत अर्थव्यवस्थाओं में किया जाता था। ऐसी अर्थव्यस्थाओं को वस्तु-वस्तु अर्थव्यस्था कहते हैं।

प्रश्न 36. मुद्रा की परिभाषा लिखिए।

उत्तर: मुद्रा की निम्नलिखित दो परिभाषाएं दी जा सकती है

1. कानूनी परिभाषा-ऐसी कोई भी वस्तु मुद्रा हो सकती है जिसको कानून द्वारा मुद्रा घोषित कर दिया जाता है।

2. कार्यात्मक परिभाषा-ऐसी वस्तु जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के माप, मूल्य के संचय एवं स्थगित भुगतान के मान का कार्य करती है, मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 37. मुद्रा के कार्य लिखिए।

उत्तर: मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं

1. मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।

2. मुद्रा मूल्य के माप का कार्य करती है।

3. मुद्रा स्थगित भुगतानों का माप है।

4. मुद्रा से मूल्य का संचय होता है।

प्रश्न 38. वाणिज्य बैंक का आशय लिखिए।

उत्तर: व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करते हैं। इन्हें मिश्रित पूंजी वाले बैंक कहते हैं। ये मुद्रा साख में लेन-देन करते हैं।

प्रश्न 39. वस्तु विनिमय प्रणाली में ‘प्रतीक्षा की अनुपयोगिता’ को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: उपयुक्त व्यक्ति जो वस्तु को खरीदने के लिए सहमत हो जो आप बेचना चाहते हैं और उस वस्तु को बेचना चाहते हो जिसे आप खरीदने के लिए तैयार हैं। ऐसे उपयुक्त व्यक्ति को तलाशने में प्रतीक्षा करनी पड़ती है, प्रतीक्षा में असुविधा उत्पन्न होती है। असुविधा में अनुपयोगिता छिपी होती है।

प्रश्न 40. वस्तु विनिमय में अन्वेषण की लागत लिखिए।

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसे विकल्प की तलाश होती है जिसमें एक व्यक्ति की जरूरत की वस्तु दूसरे व्यक्ति के पास होती है तथा दूसरे व्यक्ति की जरूरत की वस्तु पहले व्यक्ति के पास है। ऐसे विकल्प को तलाशने में समय एवं ऊर्जा दोनों खर्च होते हैं। इसी को अन्वेषण की लागत कहते हैं।

प्रश्न 41. साख मुद्रा को संक्षेप में बताइए।

उत्तर: ऐसी मुद्रा का मौद्रिक मूल्य इसमें निहित वस्तु मूल्य से अधिक होता है। अन्य शब्दों का इस मुद्रा पर अंकित मूल्य उस वस्तु के मूल्य से अधिक होता है, जिससे यह वस्तु बनायी जाती है। साख मुद्रा निम्न प्रकार की होती है

1. सांकेतिक सिक्के

2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा

3. केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी/प्रचलित नोट

4. बैंकों के पास जमाएं

प्रश्न 42. विनिमय के रूप में मुद्रा की परिभाषा का आधार बताइए।

उत्तर: वस्तु विनिमय की अव्यवहारिकता एवं अप्रभाव के कारण मुद्रा की खोज विनिमय की जरूरत को पूरा करने के लिए की गई थी। इसलिए मुद्रा की परिभाषा ऐसी वस्तु के रूप में की जाती है।

प्रश्न 43. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था की अवधारणा लिखिए।

उत्तर: वह अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से होता है, वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था कहलाती है। वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तु प्रणाली काम करती है।

प्रश्न 44. नकद कोष अनुपात का अर्थ लिखिए।

उत्तर: बैंक कुल जमा राशि में से कुछ भाग अपने पास नकद कोष के रूप में रख लेते हैं ताकि उससे जमाकर्ताओं की आवश्यकता को पूरा कर सकें। कुल जमा का जो अनुपात बैंक अपने पास नकदी के रूप में रखते हैं, उसे नकद कोष अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 45. प्राथमिक जमा गौण जमा का अर्थ लिखो।

उत्तर: जो धनराशि बैंकों में नकदी के रूप में लोगों द्वारा जमा करायी जाती है, उसे ही प्राथमिक जमा कहते हैं। जब बैंक नकदी में उधार देकर ऋणी के नाम खाता खोल कर उसमें जमा कर देते हैं तो इसे गौण जमाएं कहते हैं।

प्रश्न 46. साख का अर्थ लिखिए।

उत्तर: जब कोई व्यक्ति, फर्म या बैंक किसी अन्य व्यक्ति फर्म या बैंक को उधार या वित्त प्रदान करता है तो वह साख कहलाती है।

प्रश्न 47. बैंक किस तरह व्यापारियों की सहायता करते हैं?

उत्तर: बैंक आर्थिक स्थिति में परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों में सलाह देते हैं।

प्रश्न 48. चालू जमा समय अवधि जमा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: चालू खाते में जमा रकम जमाकर्ता द्वारा मांग करने पर तुरन्त भुगतान करना पड़ता है। बैंकों में ऐसी जमा जिसकी अवधि जितनी लम्बी होती है ब्याज पर भी उतनी ही अधिक होती है।

प्रश्न 49. नकद साख से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: इस ऋण के अन्तर्गत बैंक उधार लेने वाले व्यक्ति के नाम खाता खोला जाता है और उस खाते में मुद्रा की एक निश्चित मात्रा जमा कर देता है। व्यक्ति आवश्यकतानुसार इसमें से मुद्रा निकाल सकता है।

प्रश्न 50. ओवर ड्रॉफ्ट का अर्थ बताइए।

उत्तर: जो ग्राहक बैंक में चालू खाता रखते हैं आवश्यकता पड़ने पर जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की अनुमति बैंक से प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न 51. ऋण तथा अग्रिम का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ये ऋण एक निश्चित राशि के रूप में दिए जाते हैं। बैंक इस ऋण राशि को नकदी में देकर ऋणी के नाम खाता खोल देता है। ऋणी कभी भी इसमें से रूपया निकाल सकता है।

प्रश्न 52. सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का अर्थ लिखिए।

उत्तर: बैंक जब सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदते हैं तो यह भी सरकार को उधार देने की एक विधि है। बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपये भेजने की व्यवस्था बैंक ड्राफ्ट द्वारा की जाती है।

प्रश्न 53. दोहरे संयोग की आवश्यकता को समझाइए।

उत्तर: दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रायः विभिन्न लोग आपस में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का लेन-देन करते हैं। अतः किसी एक व्यक्ति की वस्तु दूसरे व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है तथा दूसरे व्यक्ति की वस्तु पहले व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है।

प्रश्न 54. साख मुद्रा के रूप लिखिए।

उत्तर: साख मुद्रा के निम्नलिखित रूप हैं

1. प्रतीक सिक्के

2. प्रतिनिधि प्रतीक सिक्के

3. केन्द्रीय बैंक के प्रोनोट नोटों का प्रचलन

4. बैंक की माँग जमाए

प्रश्न 55. मुद्रा के सहायक कार्य लिखिए।

उत्तर: मुद्रा के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं

1. स्थगित भुगतानों का मान

2. मूल्य का संचय

3. मूल्य का हस्तांतरण

प्रश्न 56. मुद्रा के प्रमुख कार्यों की सूची बनाइए।

उत्तर: मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

1. विनिमय का माध्यम

2. मूल्य की इकाई अथवा मूल्य का मापदण्ड

प्रश्न 57. मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में क्या-क्या शामिल किया जात है?

उत्तर: मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में मुद्रा परिसपंत्तियों एवं निकट मुद्रा परिसंपत्तियों को शामिल किया जाता है।

मुद्रा = मौद्रिक परिसंपत्तियां + निकट मौद्रिक परिसंपत्तियां

प्रश्न 58. करेन्सी मुद्रा एवं बैंक मुद्रा की परिभाषा लिखिए।

उत्तर: करेन्सी मुद्रा:

नोटों सिक्कों के रूप में प्रचलित मुद्रा को करेन्सी मुद्रा कहा जाता है। इस मुद्रा के लिए कानूनी रूप में स्वीकार करने की बाध्यता होती है।

बैंक मुद्रा:

बैंक द्वारा साख निर्माण को बैंक मुद्रा कहा जाता है। बैंक साख को ऋणियों के खातों में जमा कर देते हैं। वे चेक के माध्यम से उसे निकलवा सकते हैं।

प्रश्न 59. मुद्रा के कार्यों को कितने वर्गों में बांटा जाता है?

उत्तर: मुद्रा के कार्यों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जाता है

1. मुद्रा के मुख्य या प्राथमिक कार्य।

2. मुद्रा के सहायक या गौण कार्य।

3. आक्समिक कार्य।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. वस्तु विनिमय व्यापार की लागतों को समझाइए।

उत्तर: वस्तु विनिमय के द्वारा व्यापार करने में अनावश्यक रूप से जो लागते उत्पन्न होती हैं उन्हें विनिमय की व्यापार लागते कहते हैं। ये लागतों निम्न प्रकार की होती है

1. तलाश लागत: क्रेता अपने उत्पाद के बदले वांछित वस्तु देने वाले व्यक्ति की खोज करता है। इस खोज में लगे समय को तलाश लागत कहते हैं।

2. प्रतीक्षा की अनुपयोगिता: व्यापार करने वाला जिस वस्तु को बेचना चाहता है। उसे उस व्यक्ति की तलाश में इन्तजार करना पड़ता है जो उसे खरीदना चाहता है। यह काम बहुत जटिल और समय लेने वाला होता है क्योंकि बहुत सारे लोगों में उपयुक्त व्यक्ति एवं संयोग की तलाश बहुत मुश्किल है।

प्रश्न 2. मूल्य मान की इकाई के रूप में मुद्रा का कार्य उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर: अर्थव्यवस्था में मुद्रा ही वह इकाई होती है जिसके रूप में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई भी कहा जाता है। अर्थव्यवस्था की मुद्रा के रूप में वस्तु अथवा सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाता है। वस्तु या सेवा की कीमत से अभिप्राय वस्तु की एक इकाई के बदले प्राप्त होने वाला मौद्रिक इकाइयों की संख्या होती है। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 125 रुपये है तो इसका अभिप्राय है कि 125 रुपयों के बदले एक कमीज मिल सकती है।

मौद्रिक इकाइयों में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अभिव्यक्त करने से वस्तुओं एवं सेवाओं के आपस में मूल्य निश्चित करने में मदद मिलती है। जैसे यदि कमीज एवं पेन्ट की कीमत क्रमशः 125 रुपये एवं 250 रुपये है तो एक पेन्ट का मूल्य मान दो कमीज का होगा। इससे लेखांकन का कार्य सरल हो जाता है। मुद्रा का मूल्यमान क्रय शक्ति होती है जो कीमत स्तर के विलोम होती है।

प्रश्न 3. आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में विशिष्टिकरण का लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा विनिमय आवश्यक है? समझाइए।

उत्तर: मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार लागतें न्यूनतम हो जाती हैं। आजकल फर्मों में भौगोलिक क्षेत्रों तथा पूंजी के प्रकारों के स्तर पर विशिष्टिकरण पाया जाता है। विशिष्टिकरण के द्वारा व्यक्तिगत योग्यताओं एवं क्षमताओं, भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषताओं एवं पूंजी के विशाल भण्डारों का उचित प्रयोग हो पाता है। विशिष्टिकरण के लाभों का प्रयोग करके उत्पादकता एवं जीवन निर्वाह के स्तर को उच्च किया जाता है। विशिष्टकरण का लाभ वस्तु विनिमय के द्वारा कदाचित नहीं उठाया जा सकता है। परन्तु मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार व्यवस्था का विकास करके विशिष्टिकरण का भरपूर फायदा उठाया जा सकता है।

प्रश्न 4. नकद साख पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: ग्राहक की साख सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक द्वारा ग्राहक के लिए उधार लेने की सीमा के निर्धारण को नकद साख कहते हैं। बैंक का ग्राहक तय सीमा तक की राशि का प्रयोग कर सकता है। इस राशि का प्रयोग ग्राहक की आहरण क्षमता से तय किया जाता है। आहरण क्षमता का निर्धारण ग्राहक की वर्तमान परिसंपत्तियों के मूल्य, कच्चे माल के भण्डार, अर्द्ध निर्मित एवं निर्मित वस्तुओं के भण्डार एवं हुन्डियों के आधार पर किया जाता है। ग्राहक अपने व्यवसाय एवं उत्पादक गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों का पूरो ब्यौरा बैंक के पास दस्तावेज के रूप में जमा कराता है। उधार की राशि चुकाए जाने पर बैंक दस्तावेज में दिखाई गई परिसंपत्तियों पर अपना कब्जा करने की कार्यवाही शुरू कर सकता है। ब्याज केवल प्रयुक्त ब्याज सीमा पर चुकाया जाता है। नकद साख व्यापार एवं व्यवसाय संचालन में चिकनाई का काम करती है।

प्रश्न 5. सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मान, वस्तु मान के समान होता है सम्पूर्ण पूर्ति मान मुद्रा कहलाती है। पुराने समय में परंपरावादी अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा होती थी। सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना, चांदी, तांबा आदि से बनायी जाती थी। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान, मौद्रिक प्रयोग में मान के बराबर होता था। इस प्रकार की मुद्रा की ढलाई एक अथवा दो या अधिक प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य सिक्कों के रूप में बनायी जाती थी। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य धातुओं से बने भारी सिक्कों को फिजूल में इधर से उधर ले जाना पड़ता था। आधुनिक युग में इस मुद्रा का प्रचलन खत्म हो गया है।

प्रश्न 6. मुद्रा की विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: व्यापार में विभिन्न पक्षों के बीच मुद्रा विनिमय या भुगतान के माध्यम का काम करती है। भुगतान का काम लोग किसी भी वस्तु से कर सकते हैं परन्तु उस वस्तु में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए कोई भी वस्तु अलग-अलग समय, काल एवं परिस्थितियों में अलग हो सकती है। जैसे पुराने समय में लोग विनिमय के लिए कोड़ियों मवेशियों, धातुओं अन्य लोगों के ऋणों को प्रयोग करते थे। इस प्रकार के विनिमय में समय एवं श्रम की लागत बहुत ऊँची होती थी। विनिमय के लिए मुद्रा को माध्यम बनाए जाने से समय एवं श्रम की लागत की बचत होती है। आदर्श संयोग तलाशने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने से व्यापार प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

प्रश्न 7. मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा की भूमिका बताइए।

उत्तर: मूल्य की इकाई एवं भुगतान का माध्यम लेने के बाद मुद्रा मूल्य के भण्डार का कार्य भी सहजता से कर सकती है। मुद्रा का धारक इस बात से आश्वस्त होता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मालिक उनके बदले मुद्रा को स्वीकार कर लेते हैं। अर्थात् मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण मुद्रा का धारक उसके बदले कोई भी वांछित चीज खरीद सकता है। इस प्रकार, मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में कार्य करती हैं। मुद्रा के अतिरिक्त स्थायी परिसपत्तियों जैसे भूमि, भवन एवं वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे बचत, ऋण पत्र आदि में भी मूल्य संचय का गुण होता है और इनसे कुछ आय भी प्राप्त होती है। परन्तु इनके स्वामी को इनकी देखभाल एवं रखरखाव की जरूरत होती है, इनमें मुद्रा की तुलना में कम तरलता पायी जाती है। और भविष्य में इनका मूल्य कम हो सकता है। अतः मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप अन्य चीजों से बेहतर हैं।

प्रश्न 8. अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों से कमीशन लेकर निम्न सेवाएं प्रदान करता है

1. नकद कोषों का अंतरण-बैंक अपने ग्राहकों के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक उनकी धनराशियों को सस्ती दर पर आसानी से अंतरण कर देते हैं। अंतरण का कार्य बैंक धनादेश, डाक धनादेश तथा तार धनादेशों के जरिए करता है।

2. नकद संग्रहण-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए चैक, हुण्डियों आदि की रकम उनके अदा करने वालों से वसूलने का कार्य भी करता है।

3. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अंशपत्रों एवं अन्य प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय करता है।

4. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लाभांश और ब्याज वसुलने का कार्य भी करता है।

5. अपने ग्राहकों के निवेदन पर व्यापारिक बैंक उनके विभिन्न प्रकार के बिलों एवं बीमा किस्तों के भुगतान का काम भी करता है।

6. अपने ग्राहकों की वसीयतों के ट्रस्ट्री और प्रबन्धक का कार्य भी करता है।

7. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को आयकर के सम्बन्ध में सलाह देता है और आय कर के दायित्वों का भुगतान करता है आदि।

प्रश्न 9. मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा M1 की तुलना में अधिक विस्तृत है। इसका प्रतिपादन मिल्टन फ्रिडमैन में किया था। M3 को समग्र मुद्रा साधन भी कहते हैं क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के समग्र मौद्रिक संसाधन (AMR) को व्यक्त करता है। इसमें M1 तथा बैंकों की शुद्ध समय अवधि जमाएं शामिल की जाती हैं। अर्थव्यवस्था में M3 मुद्रा की तरलता M1 से कम परन्तु M2 से ज्यादा होती है। जनता द्वारा धारित करेंसी, बैंकों के पास मांग जमा तथा बैंक जमाओं में निबल परिवर्तन के द्वारा M3 में भी परिवर्तन होते हैं। संक्षेप में M3 = M1 – बैंक के पास जमा निबल सावधि जमाएं।

प्रश्न 10. मुद्रा की आपूर्ति क्या होती है?

उत्तर: अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं के योग मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। मुद्रा की आपूर्ति में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

1. मुद्रा की आपूर्ति एक स्टॉक है। यह किसी समय बिन्दु पर उपलब्ध मुद्रा की सारी मात्रा को दर्शाती है।

2. मुद्रा के स्टॉक से अभिप्राय जनता द्वारा धारित स्टॉक से है। जनता द्वारा धारित स्टॉक समस्त स्टॉक से कम होता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा की आपूर्ति के चार वैकल्पिक मानों के आंकड़े प्रकाशित करता है। ये मान क्रमशः (M1, M2, M3, M4) हैं।

जहाँ M1 = जनता के पास करेन्सी + जनता की बैंकों में मांग जमाएं

M2 = M1 + डाकघरों के बचत बैंकों में बचत जमाएं

M3 = M3 + बैंकों की निबल समयावधि योजनाएं

M4 = M3 + डाकघर बचत संगठन की सभी जमाएं

प्रश्न 11. वस्तु विनिमय की कठिनाइयां क्या हैं?

उत्तर: वस्तु विनिमय की कठिनाइयां निम्नलिखित हैं

1. वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के मापन की सर्वमान्य इकाई का अभाव। इससे लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

2. विनिमय का आधार द्विपक्षीय संयोग होता है। व्यापार में हमेशा और सर्वत्र दो पक्षों के बीच वांछित संयोग का तालमेल होना असंभव होता है।

3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के संदर्भ में निम्न कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती है

a. भविष्य में भुगतान के रूप में दी जाने वाली वस्तुओं-सेवाओं के गुणधर्मों को लेकर दोनों पक्षों के बीच झगड़ा हो सकता है।

b. भविष्य में भुगतान की वस्तु पर असहमति हो सकती है।

c. भुगतान अनुबन्ध के समय अन्तराल में भुगतान की जाने वाली वस्तु का मूल्य कम ज्यादा हो सकता है।

4. सामान्य क्रय शक्ति के भण्डारण में कठिनाई।

प्रश्न 12. अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति के घटक M4 के बारे में समझाइए।

उत्तर: M4 की अवधारणा मुद्रा आपूर्ति की सभी अवधारणाओं में अधिक विस्तृत है। दूसरे शब्दों में, M4 मुद्रा से ज्यादा व्यापक है। M4 मुद्रा में M3 के अलावा डाकघर बचत संगठन की सभी जमाओं को शामिल किया जाता है। (राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर) संक्षेप में, M4 = M3 – राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर डाक घर बचत संगठन की सभी जमाएं। M4 की तरलता सबसे कम होती है अर्थात् M4 को नकदी में परिवर्तित करने की क्षमता सबसे कम होती है।

प्रश्न 13. किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के मुख्य कार्य क्या होते हैं?

उत्तर: किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के निम्नलिखित कार्य होते हैं

1. मूल्यमान की इकाई या लेखे की इकाई का काम चलाना।

2. मुद्रा विभिन्न प्रकार के लेन-देन में विनिमय के माध्यम का कार्य करती है।

3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के मानक का काम करती है।

4. क्रय शक्ति एवं मूल्य का भण्डार।

प्रश्न 14. व्यावसायिक बैंक के क्या कार्य हैं?

उत्तर: व्यावसायिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं

1. आम जनता के जमाएं स्वीकर करना।

2. ग्राहकों को अग्रिम एवं उधार देना।

3. अधिविकर्ष।

4. हुन्डियों की कटौती।

5. जमा राशियों का निवेश।

6. बैंक अभिकर्ता (एजेन्ट) के रूप में कार्य करते हैं।

7. अन्य कार्य जैसे

a. विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय।

b. पर्यटक चैक, उपहार चैक जारी करना।

c. कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना।

d. नए शेयर आदि के निर्गमन पर अविक्रित अंश को खरीदने का आश्वासन देना तथा निजी आधार पर चुनिंदा निवेशकों के बीच प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

प्रश्न 15. भारत में किस प्रकार की मौद्रिक व्यवस्था का अनुसरण होता है?

उत्तर: भारत में इस समय कागजी मुद्रा मान या प्रबन्धित मुद्रा मान की व्यवस्था का अनुसरण किया जा रहा है। भारत की मानक मुद्रा विधि ग्राहिय मुद्रा है। इसी के प्रयोग से हमारी सरकार सभी दायित्वों को निपटाती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कागज से बनी मानक मुद्रा को स्वीकर किया है। करेंसी मुद्रा के माध्यम से बड़े लेन-देन किये जाते हैं। परन्तु छोटे-छोटे भुगतानों के लिए सस्ती धातुओं के बने सिक्कों का प्रयोग होता है। सिक्कों की कानूनी स्वीकार्य सीमित होती है। भारत में एक रुपये के नोट और सिक्कों को छोकर सभी करेंसी नोटों का निर्गमन रिजर्व बैंक करता है। एक रुपये के नोट एवं सिक्के भारत सरकार जारी करती हैं। भारत में करेंसी निर्गमन व्यवस्था न्यूनतम सुरक्षित निधि व्यवस्था है। कागजी मुद्रा को सोने जैसी मूल्यवान धातु में नहीं बदला जा सकता है अर्थात् भारत की करेंसी अपरिवर्तनीय हैं।

प्रश्न 16. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव का आशय संक्षेप में स्पष्ट करें।

उत्तर: आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है। क्रेता एवं विक्रेता की परस्पर आवश्यकता की संतुष्टि को आवश्यकता का दोहरा संयोग कहते हैं। सरल शब्दों में क्रेता तथा विक्रेता परस्पर वस्तुओं का आदान प्रदान करते हैं और एक-दूसरे से प्राप्त की गई वस्तु से अपनी-अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करते हैं इसको आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में दोहरे संयोग की कमी या अभाव पाया जाता है। उदाहरण के लिए गेहूँ उत्पादक को गेहूँ के बदले में कपड़ों की आवश्यकता है लेकिन ऐसा ढूँढना बड़ा मुश्किल काम है कि ऐसा वस्त्र उत्पादक मिल जाए जो बदले में गेहूँ स्वीकार कर सकता है। आवश्यकताओं के ऐसे संयोगों की अनुपस्थित या कमी को ही दोहरे संयोग के अभाव की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 17. मुद्रा स्टॉक (भण्डार) के विभिन्न मापक क्या है?

उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा की माप के लिए संकुचित व्यापक दोनों दृष्टिकोण अपनाएं हैं। ये निम्नलिखित हैं–

1. M1 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं

a. जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के।

b. मांग जमाएं।

c. रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं।

2. M2 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है

a. M1

b. डाकघरों के पास बचत जमाएं

3. M3 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है

a. M1

b. व्यापारिक एवं सहकारी बैंको की अवधि जमाएं। यह मुद्रा का व्यापक दृष्टिकोण है।

4. M4 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं

a. M3

b. डाकघर बचत संगठन की कुल जमाएं (NSC को छोड़कर)

प्रश्न 18. मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयां समाप्त हो जाती हैं?

उत्तर: मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयाँ निम्नलिखित ढंग से समाप्त हो जाती है

1. वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मापने के लिए कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है अत: व्यवस्थित लेखांकन प्रणाली का विकास नहीं हो पाता है परन्तु मुद्रा के रूप में वस्तुओं का मूल्य मापन सर्वमान्य है। लेखांकन की प्रणाली का विकास हुआ है।

2. वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव होता है। वांछित संयोग को तलाशने में श्रम एवं समय दोनों की बर्बादी होती है। मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है। अतः श्रम समय दोनों की बचत होती है।

3. वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में वस्तु की किस्म, मात्रा, गुणवत्ता आदि के बारे में विवाद स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों को निपटाने में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है।

4. वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के मूल्य का संग्रहण करने के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त वस्तु नहीं होती है। परन्तु मुद्रा के माध्यम से मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।

प्रश्न 19. मूल्य मापन की सामान्य इकाई का अर्थ लिखो। यह भी बताओ कि यह किस प्रकार से वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है?

उत्तर: अर्थव्यवस्था में मुद्रा वह इकाई होती हैं जिसके रूप में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई कहा जाता है। मुद्रा के रूप में वस्तु या सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाती है। वस्तु की कीमत से अभिप्राय वस्तु के बदले में प्राप्त होने वाली मुद्रा या किसी वस्तु की इकाइयां। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 250 रु. है तो क्रेत 250 रु. के बदले में एक कमीज प्राप्त कर सकता है। मूल्यमापन की सामान्य इकाई होने पर विनिमय में कठिनाइयां उत्पन्न नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य मापन की कोई सामान्य इकाई नहीं होती जिसमें सभी वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य अंकित किए जा सकें और सर्वसमत्ति से स्वीकार किए जा सके।

प्रश्न 20. वस्तु विनिमय की कठिनाइयां लिखिए।

उत्तर: वस्तु विनिमय की कठिनाइयां

1. इस प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापने की कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। अतः वस्तु विनिमय लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में एक बाधा है।

2. आवश्यकताओं का दोहरा संयोग विनिमय का आधार होता है। व्यवहार में दो पक्षों में हमेशा एवं सब जगह परस्पर वांछित संयोग का तालमेल होना बहुत मुश्किल होता है।

3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई आती है। दो पक्षों के बीच सभी लेन-देनों का निपटारा साथ के साथ होना मुश्किल होता है अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों के संबंध में वस्तु की किस्म, गुणवत्ता, मात्रा आदि के संबंध में असहमति हो सकती है।

प्रश्न 21. वस्तु विनिमय प्रणाली में पाए जाने वाले प्रमुख अभाव लिखिए।

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में निम्नलिखित अभाव पाए जाते हैं

1. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तुओं का उत्पादन केवल अत्यधिक तीव्र आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही किया जाता है।

2. उत्पादन में विशिष्टीकरण का अभाव पाया जाता है।

3. उत्पादन छोटे स्तर पर होता है।

4. आर्थिक संवृद्धि एवं विकास कल्पना की चीजें हो जाती है।

प्रश्न 22. वस्तु विनिमय प्रणाली में विशिष्टिकरण का अभाव पाया जाता है। स्पष्ट करें।

उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में फैक्टरी प्रणाली का अभाव पाया जाता है। इस प्रणाली में उत्पादन बड़े पैमाने के बजाय छोटे स्तर पर किया जाता है। इस प्रणाली में विलासिता एवं विशिष्टता की वस्तुएँ उत्पन्न नहीं की जाती हैं। इस प्रणाली में केवल जीवन निर्वाह के लिए ही वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 23. जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो कौन-सी समस्याएँ पैदा होती है?

उत्तर: जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो निम्नलिखित समस्याएँ पैदा होती हैं

1. वस्तुओं के चयन की समस्या अथवा उन वस्तुओं के प्रकार की समस्या पैदा होती है जिनका भुगतान भविष्य में किया जाता है।

2. विशिष्ट वस्तुओं की गुणवत्ता की समस्या।

3. वस्तुओं के बाजार मूल्य की समस्या जो बाजार में दूसरी वस्तुओं की तुलना में घट-बढ़ सकती है।

प्रश्न 24. भारत में मुद्रा की पूर्ति कौन करता है?

उत्तर: भारत में मुद्रा की पूर्ति करते हैं

1. भारत सरकार।

2. केन्द्रीय बैंक।

3. व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 25. भारत में न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था के बारे में बताइए।

उत्तर: भारत में मुद्रा जारी करने के लिए न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था को अपनाया जाता है। सुरक्षित निधि में 115 करोड़ रुपए का सोना तथा 85 करोड़ रुपए की विदेशी प्रतिभूतियाँ। इस प्रकार कुल 200 करोड़ रुपए की सुरक्षित निधि के बाद भारत का केन्द्रीय बैंक समस्त मुद्रा जारी करता है।

प्रश्न 26. भारत में नोट जारी करने की क्या व्यवस्था है?

उत्तर: भारत में नोट जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था कहा जाता है। जारी की गई मुद्रा के लिए न्यूनतम सोना विदेशी मुद्रा सुरक्षित निधि में रखी जाती है।

प्रश्न 27. न्याय मुद्रा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: न्याय मुद्रा से अभिप्राय उस मुद्रा से है जो प्राप्तकर्ता एवं अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है। जैसे-चैक न्याय मुद्रा का उदाहरण है। इसे भुगतान के लिए करना प्राप्तकर्ता अदाकर्ता के आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

प्रश्न 28. मुद्रा के अंकित वस्तु मुल्य का अर्थ लिखिए।

उत्तर: अंकित मूल्य-किसी पत्र धातु मुद्रा पर जो मूल्य लिखा होता है, उसे मुद्रा का अंकित मूल्य कहते हैं। जैसे 500 रुपये के नोट का अंकित मूल्य 500 रु. होता है। वस्तु मूल्य-उस पदार्थ के मूल्य को वस्तु मूल्य कहते हैं जिससे मुद्रा बनायी जाती है। जैसे-चाँदी के सिक्के का धातु-मूल्य, उस सिक्के के निर्माण में प्रयुक्त धातु के मूल्य के समान होता है।

प्रश्न 29. साख मुद्रा का अर्थ लिखिए।

उत्तर: ऐसी मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उसके धातु मूल्य से अधिक होता है, साख मुद्रा कहलाती है। जैसे- भारतीय मुद्रा के 100 रु. के नोट का वस्तु मूल्य उसके अंकित मूल्य से बहुत कम है।

प्रश्न 30. भारत में सिक्के सीमित विधि ग्राह्य हैं जबकि कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य है। इस कथन का आशय लिखिए।

उत्तर: भुगतानों का निपटारा करने के लिए भारत के सिक्कों का प्रयोग केवल एक सीमा तक किया जा सकता है, जबकि भुगतानों की निपटारा करने के लिए नोटों का प्रयोग असीमित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 31. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का आशय नष्ट कीजिए।

उत्तर: 2 अक्टूबर, 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए। इनका कार्यक्षेत्र एक, राज्य के एक या दो जिले तक सीमित रखा गया। ये छोटे और सीमित किसानों, खेतीहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु-उद्योगों, वाणिज्य, व्यापार तथा अन्य क्रियाओं के विकास में सहायोग करते हैं।

प्रश्न 32. कृषि क्षेत्र को वाणिज्य बैंकों की ओर से प्रदत्त प्रत्यक्ष सहायता के बारे में लिखिए।

उत्तर: प्रत्यक्ष सहायता-वाणिज्य बैंक कृषि साख को अल्पकालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। अल्पकालीन ऋण का भुगतान फसल तैयार होने के तुरन्त बाद करना होता है। मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण विकास कार्यों अथवा पूंजी गहन कार्यों के लिए अधिकतम 15 वर्षों के लिए दिए जाते हैं।

प्रश्न 33. बैंकिंग का अर्थ लिखिए।

उत्तर: वाणिज्य बैंक वह संस्था है जो कि लाभ के उद्देश्य से कार्य करती है। जनता से जमा स्वीकार करती है, गृहस्थों, फर्मों तथा सरकार को ऋण प्रदान करती है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

1. जनता से जमा स्वीकार करना।

2. ऋण निवेश के लिए जमा का प्रयोग करना।

3. चैक या अन्य आदेश के द्वारा आहरण करना।

प्रश्न 34. बचत खाता क्या होता है?

उत्तर: बचत खाता-इसमें जनता की निष्क्रिय राशियाँ जमा की जाती हैं। इस खाते में सबसे कम ब्याज प्राप्त होता है, क्योंकि जमाकर्ता इस खाते में से किसी भी समय रुपया निकाल सकते हैं। सामान्य रूप से जमाकर्ता एक वर्ष में 100 बार इस खाते में जमा राशि निकाल सकते हैं।

प्रश्न 35. वाणिज्य बैंक कोषों का अन्तरण किस प्रकार करते हैं?

उत्तर: वाणिज्य बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन राशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों, जैसे-चैक, ड्रॉफ्ट, विनिमय, बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

प्रश्न 36. वाणिज्य बैंक के कुछ कार्यों के नाम लिखिए।

उत्तर: वाणिज्य बैंक अपने ग्राहकों के लिए पैंशन, लाभांश, बीमे की किस्तों का भुगतान, बिजली-पानी के बिलों का भुगतान, टेलीफोन की किस्तों का भुगतान जैसे कार्यों को करता है। ग्राहकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है। लॉस की सुविधा, यात्री चैकों को जारी करना, उद्यमियों को आवश्यक सलाह देना जैसे-कार्यों को सम्पन्न करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. मुद्रा की परिभाषा किस प्रकार की जाती है?

उत्तर: मुद्रा की परिभाषा कई तरह से की जाती है

1. मुद्रा की कानून आधारित परिभाषा-“मुद्रा वह है जिसे कानूनी रूप से मुद्रा घोषित कर दिया गया है।” इन परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा में सामान्य स्वीकार्यता का गुण जाता है। मुद्रा को विधि संगत देयता भी घोषित कर दिया जाता है। कानून आधारित मुद्रा प्रादिष्ट मुद्रा भी होती है। क्योंकि मुद्रा का होना सरकारी आदेश से तय होता है। इसे स्वीकार करने में देने वाले के विश्वास की जरूरत नहीं होती है।

2. कार्य आधारित परिभाषाएं-इन परिभाषाओं में कोई भी ऐसी वस्तु जो मुद्रा के चारों कार्य कर सकती है मुद्रा हो सकती है। जैसे जिस वस्तु से मूल्य मान तय हो सकता है, विनिमय का काम हो सकता है, स्थगित भुगतानों का मानक तय हो सकता है एवं मूल्य का भण्डारण हो सकता है मुद्रा बन सकती है। जैसे भारत में सिक्के-नोट कानूनी मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं परन्तु बैंकों के पास जमाओं को भी मुद्रा में शामिल किया जाता है।

3. मुद्रा की संकुचित एवं विस्तृत परिभाषाएं-मुद्रा की संकुचित परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा वह है जो विनिमय भुगतान के माध्यम का काम करती है। विस्तृत परिभाषाओं में अन्य चीजें भी मुद्रा में शामिल कर ली जाती हैं जिनमें मुद्रा की तरह के प्रबल गुण होते हैं। संकुचित परिभाषाओं में केवल करेंसी को ही मुद्रा माना जाता है परन्तु परिभाषाओं में करेंसी के साथ-साथ, बैंकों एवं डाकघरों के पास जमाओं को भी मुद्रा की श्रेणी में शामिल कर लिया जाता है।

प्रश्न 2. भारत में केन्द्रीय बैंक के कार्य संक्षेप में समझाइए।

उत्तर: भारत में ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ केन्द्रीय बैंक है। इसका निम्नलिखित कार्य हैं

1. मुद्रा निर्गमन करना-भारत में मुद्रा जारी करने का अधिकार केवल RBI के पास है। केवल भारत सरकार का वित्त मंत्रालय एक रुपये के नोट जारी करता है बाकी सभी प्रकार के नोटों को जारी करने एवं सिक्कों की ढलाई का काम RBI करता है। सिक्कों एवं सभी प्रकार के नोटों को प्रचलन में लाने का काम RBI को ही करना पड़ता है। न्यूनतम संरक्षित कोष (200 करोड़ रुपये के सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य धातुएं एवं विदेशी मुद्रा के रूप में) रखकर RBI मुद्रा जारी करता है।

2. सरकार का बैंकर-RBI, केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों का बैंकर है। सभी सरकारी चालू खाते के नकद कोष RBI के पास जमा होते हैं। RBI सरकार की ओर से भुगतान भी करता है और भुगतान स्वीकार भी करता है। इसके अतिरिक्त विनिमय लेन-देन के काम भी RBI निपटाता है। RBI जरूरत पड़ने पर सरकार को अल्पावधि ऋण भी देता है सरकारी ऋण पत्रों के प्रबन्धन का काम भी केन्द्रीय बैंक को ही करना पड़ता है। ऋण के आकार, ब्याज दर, समय एवं अन्य शर्तों के संबंध में यह बैंक सलाहकार के रूप में कार्य करता है। संक्षेप में, केन्द्रीय बैंक बैंकिग एवं वित्तीय मामलों में सरकार का परामर्शदाता है।

3. बैंकों का बैंक तथा पर्यवेक्षक-बैंकों के बैंक के रूप में RBI सभी बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास सुरक्षित रखता है, बैंकों को कम समय अवधि के लिए नकदी प्रदान करता है, केन्द्रीयकृत समाशोधन और धन विप्रेष का काम करता है। नकद कोष में जमा राशि का प्रयोग करके RBI अन्तिम आश्रयदाता के रूप में व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। RBI सभी बैंकों के व्यावसायिक कामों का पर्यवेक्षण, नियमन और नियंत्रण करता है। बैंकों को लाइसेंस देना, शाखाओं का विस्तार करना, परिसंपत्तियों की तरलता, प्रबंधन, विलप आदि कार्य भी RBI करता है।

4. मुद्रा की आपूर्ति तथा साख का नियंत्रण-RBI भारत में मुद्रा और साख की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इस काम के लिए RBI मौद्रिक नीति की रचना करता है। मौद्रिक नीति उपकरणों के रूप में निम्नलिखित उपाय करता है

👉 बैंक दर नीति-बैंक को उधार देने के लिए ब्याज दर का निर्धारण करना।

👉खुले बाजार की क्रियाएं-सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंक के साथ क्रय-विक्रय करना।

👉सुरक्षित कोष अनुपातों में परिवर्तन-सुरक्षित कोष अनुपात दो प्रकार के होते हैं –

👉नकद जमा अनुपात (CRR)।

👉संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR)।

👉साख की राशनिंग अथवा प्रोत्साहन।

👉नैतिक आग्रह।

प्रश्न 3. मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त हो जाता है?

उत्तर: मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त निम्न प्रकार से होता है –

1. वस्तु विनिमय में सेवाओं एवं वस्तुओं का मूल्य मापने के लिए सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को मापने के लिए मुद्रा का प्रयोग सर्वमान्य इकाई के रूप में होता है। अतः मुद्रा के प्रयोग से लेखांकन का विकास हुआ है।

2. वस्तु विनिमय में संयोग तलाशने में अनावश्यक रूप से धन एवं समय की हानि होती है। लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग करने से विनिमय प्रक्रिया सरल बन जाती है। मुद्रा विनिमय में संयोग तलाशे बिना प्रत्यक्ष रूप से विनिमय का कार्य कम समय में एवं सरलता से हो जाता है।

3. वस्तु विनिमय में भविष्य में स्थगित भुगतानों पर वस्तु के गुण धर्म, वस्तु के प्रकार एवं वस्तु के मूल्य मान के संदर्भ में असहमति उत्पन्न होती है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों की माप मुद्रा के द्वारा की जाती है।

4. वस्तु विनिमय में क्रय शक्ति का भण्डारण संभव नहीं होता है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से मूल्य के भण्डार का काम आसानी से हो जाता है। मुद्रा का प्रयोग कभी भी वस्तुओं एवं सेवाओं को खरदीने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य को संचय करने में भण्डारण का काम करती है।

प्रश्न 4. मुद्रा का वर्गीकरण कैसे होता है?

उत्तर: मुद्रा का वर्गीकरण मुद्रा स्वरूपी मान तथा वस्तु स्वरूपी मान के आधार पर किया जाता है। ये वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं –

1. सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मान वस्तु मान के बराबर होता है। इनका गैर-मौद्रिक प्रयोग मान भी मौद्रिक प्रयोग मान के बराबर रहता है जैसे सोने एवं चांदी के सिक्के, इस प्रकार की मुद्रा का प्रचलन पुराने समय में होता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण मूर्ति मान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा कागजी होती है। यह मुद्रा पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा या सोने चांदी को भण्डार में जमा कराने परे प्रचलन में आती हैं। दूसरे शब्दों में, यह पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा अथवा सोने चाँदी जैसे बहुमूल्य धातुओं को भण्डार गृह में जमा कराने की रसीद होती है। इस रसीदी कागज का अपना कोई मूल्य नहीं होता है। परन्तु इस मुद्रा पर अंकित राशि उतनी ही मुद्रा को व्यक्त करती है जितना उस मुद्रा का वस्तु मान होता है। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग से बहुमूल्य एवं भारी धातुओं को इधर-उधर ले जाना नहीं पड़ता है।

3. साख मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से ज्यादा होता है। दूसरे शब्दों में, जिस चीज का इस्तेमाल करके मुद्रा बनाई जाती है उसका मूल्य अंकित मौद्रिक मूल्य से बहुत कम होता है। साख मुद्रा के निम्नलिखित प्रकार हैं –

👉सांकेतिक सिक्के

👉प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा

👉केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट

👉बैंकों के पास जमाएं

प्रश्न 5. साख मुद्रा क्या है? साख मुद्रा के विभिन्न प्रकार संक्षेप में समझाइए।

उत्तर: साख मुद्रा, मुद्रा का वह प्रकार है जिसका मौद्रिक मूल्य, वस्तु मूल्य से अधिक होता है। जिस चीज से मुद्रा बनायी जाती है उसका मूल्य साख मुद्रा के मूल्य से कम होता है। साख मुद्रा कई प्रकार की होती है। जैसे –

1. सांकेतिक सिक्के-भारत में 25 पैसे, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये एवं 5 रुपये के सिक्के सांकेतिक सिक्के हैं। इन सिक्कों का मौद्रिक मूल्य इनमें लगी धातु के मूल्य से कम होता है। जैसे 2 रुपये के सिक्के को पिघलाकर प्राप्त धातु को बेचकर 2 रुपये प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।

2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा-यह सांकेतिक सिक्कों या चांदी के भण्डार की पावती रसीद होती है। सिक्के और चांदी के भण्डार का वस्तुमान, कागज पर लिखे मौद्रिक मान से कम होता है।

3. केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट-आजकल विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं में इस प्रकार की मुद्रा का चलन ज्यादा है। भारत में करेंसी नोट जारी करने का काम (RBI) करता है। भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर धारक को नोट में अंकित राशि अदा करने का वचन अदा करता है।

4. बैंकों के पास जमाएं-सामान्य जनता बैंकों में विभिन्न प्रकार के खातों में जमाएं कराती है। ये जमाएं बैंको के लिए दायित्व होते हैं। ग्राहक चैक के माध्यम से परस्पर इनका अन्तरण कर सकते हैं। बैंक चैक वाले जमा खातों के बराबर मुद्रा अपने पास सुरक्षित निधि कोष में निधि रखते हैं। इस प्रकार चैक जमाओं से बैंक मुद्रा का काम चलाते हैं।

प्रश्न 6. अर्थव्यवस्था में व्यापारिक बैंकों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: बैंकिंग व्यवसाय का मुख्य काम जमा स्वीकार करना एवं उधार देना है। बैंक जन सामान्य से चैक द्वारा आहरणीय जमा भी स्वीकार करते हैं। व्यापारिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं –

1. जमा स्वीकार करना: व्यापारिक बैंक आम जनता से तीन तरह के खातों में जमाएं स्वीकार करता है। ये खाते इस प्रकार हैं –

👉चालू खाता जमा-इस प्रकार के खाते व्यावसायिक लोगों के लिए होते हैं इनमें जमा राशि पर बैंक को ब्याज का भुगतान नहीं करना पड़ता है। इन खातों में जमा मांग देय होती है। बैंक इन पर प्रशुल्क लेता है।

👉सावधि जमाएं-इस प्रकार की जमाएं निश्चित समय अवधि के लिए स्वीकार की जाती है। ये मांग जमाएं नहीं होती हैं। इन जमाओं पर बैंकों को ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।

👉बचत खाता जमाएं-निश्चित चैकों के साथ में भी मांग जमाएं होती हैं। इन जमाओं पर ब्याज का भुगतान भी किया जाता है।

2. ऋण देना: व्यापारिक बैंक सुरक्षित कोष के अलावा अन्य जमाओं का प्रयोग उधार देने के लिए करता है। इससे बैंकों को आमदनी प्राप्त होती है। व्यापारिक बैंक निम्न प्रकार के उधार या ऋण प्रदान करते हैं।

👉नकद साख-ग्राहक की सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को उधार देने की सीमा तय करते हैं। नकद साख का निर्धारण ग्राहकों की परिसंपत्तियों एवं स्टॉक के आधार पर होता है। ग्राहक प्रयुक्त पर ब्याज का भुगतान करते हैं। ऋण न चुकाए जाने पर बैंक ग्राहक की परिसंपत्ति पर कब्जा कर सकता है।

👉मांग उधार-ऐसे ऋण बैंक कभी वापिस मांग सकता है। ऋण की राशि एकमुश्त उधार लेने वाले के खाते में जमा करा दी जाती है। ब्याज भी तुरन्त लगाया जाता है। इस प्रकार के ऋण प्रायः शेयर दलाल लेते हैं।

👉अल्पावधि ऋण-इस प्रकार के ऋणों में व्यक्तिगत उधार, कामचलाऊ पूंजी उधार तथा वरीयता प्राप्त क्षेत्रों को प्रदान किए जाते हैं। इस ऋण की राशि पर खातेदार के खाते में अन्तरण होने के बाद तुरंत ब्याज लगाया जाता है।

3. अधिविकर्ष: चालू खाते के ग्राहक जमा राशि से निश्चित सीमा तक अधिक राशि का चैक जारी करने की सुविधा प्राप्त करते हैं। इस पर ब्याज दर नकद साख से कम होती है क्योंकि इस कार्य के लिए वित्तीय परिसंपत्तियों को प्रतिभूति के रूप में स्वीकार किया जाता है जिनका नकदीकरण सरल होता है।

4. हुन्डियों की कटौती: प्राप्त हुई वस्तुओं के मूल्य को चूकाने के दायित्व को स्वीकार करने को हुन्डी कहते हैं। बैंक हुन्डी की राशि पर कुछ कमीशन लेकर शेष राशि हुन्डी धारक को अदा कर देता है।

5. जमा राशियों का निवेश: व्यापारिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों, अनुमोदित प्रतिभूतियों आदि में निवेश करते हैं। ये प्रतिभूतियों सरल होती हैं और इनका नकदीकरण आसान होता है।

6. अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक आजकल कमीशन एजेन्ट का काम भी बखूबी निभा रहे हैं। कमीशन लेकर बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक सेवाएं उपलब्ध कराते हैं जैसे-नकद कोषों का अन्तरण, नकद संग्रहण, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय, बिल एवं किश्तों का भुगतान, ट्रस्टी एवं प्रबन्धकीय सेवाएं, सलाहकार सेवाएं आदि।

7. अन्य कार्य:

👉विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय

👉पर्यटक एवं उपहार चैक जारी करना

👉कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना आदि

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