पाठ के साथ
प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों
तक काफी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन के विषय में अभी पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जायेगा। क्योंकि चार्ली
ने भारतीय जन-जीवन पर कितना प्रभाव छोड़ा है, इसका अभी तक मूल्यांकन नहीं हुआ है तथा
चार्ली की कुछ फिल्में या रीलें ऐसी मिली हैं, जो अभी तक प्रदर्शित नहीं हुई हैं। इस
कारण उनकी भी चर्चा होगी
प्रश्न 2. 'चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाया बल्कि
दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा।' इस पंक्ति में लोकतान्त्रिक बनाने का
और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन ने दर्शकों के किसी वर्ग-विशेष या वर्ण-विशेष को महत्त्व न देकर अपनी
फिल्मों को आम आदमी से जोड़कर लोकतान्त्रिक रूप दिया। इस तरह चैप्लिन ने फिल्म जगत्
में चल रही वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। चैप्लिन का किसी राजनीतिक विचारधारा, वाद या उच्च
जाति-वर्ग आदि से लगाव नहीं था। इस कारण कलाकारों की रूढ़ मान्यताओं को न मानकर चैप्लिन
ने ऐसी फिल्में बनायीं, जो समाज के सर्वसाधारण लोगों एवं सभी देशों में लोकप्रिय हुईं।
प्रश्न 3. लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और
नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
उत्तर
: लेखक ने राजकपूर द्वारा बनाई गई 'आवारा' फिल्म को चार्ली का भारतीयकरण कहा। राजकपूर
ने 'दि ट्रैम्प' का शब्दानुवाद किया था। 'आवारा' एवं 'श्री 420' फिल्म में राजकपूर
ने चार्ली की परम्परा का अनुकरण कर दर्शकों को खूब हँसाया। इसी क्रम में देवानन्द,
दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन तथा श्रीदेवी ने भी स्वयं पर हँसने-हँसाने की
परम्परा को आगे बढ़ाया। महात्मा गाँधी और नेहरूजी भी कभी-कभी चार्ली की तरह अपने पर
हँसते थे। गाँधीजी चैप्लिन के साथ रहकर प्रसन्न होते थे। वे चाली की इस कला के बड़े
प्रशंसक भी थे।
प्रश्न 4. लेखक ने कलाकृति और रस के सन्दर्भ में किसे श्रेयस्कर माना
है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
उत्तर
: लेखक ने माना है कि कलाकृति में एक से अधिक रस हों। इससे कलाकृति समृद्ध और रुचिकर
बनती है। जीवन में हर्ष और विषाद के क्षण तो आते रहते हैं। उसी प्रकार काव्यों में
भी शृंगार और वीर, रौद्र और वीर, हास्य और शृंगार आदि रसों का समावेश एक साथ किया जाता
है। परन्तु रसशास्त्र में हास्य और करुण को तथा श्रृंगार और शान्त रस को परस्पर विरोधी
बताया गया है। संस्कृत के नाटकों में एक रस मुख्य तथा अन्य रस सहयोगी रूप में रखे गये
हैं।
प्रश्न 5. जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे सम्पन्न
बनाया?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन को बचपन में परित्यक्ता माँ के साथ बहुत गरीबी में रहना पड़ा। बीमार
होने पर माँ ने उसे स्नेह, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ाया। बाद में माँ पागल हो गई
तो उसे भी संभालना पड़ा। चार्ली को बड़े-बड़े पूँजीपतियों, सामन्तों तथा उद्योगपतियों
ने बहुत दुत्कारा-अपमानित किया। जटिल परिस्थितियों से सतत संघर्ष करके तथा साथ ही घुमन्तू
रहने पर बड़े-बड़े लोगों, शासकों एवं पूँजीपतियों के जीवनगत यथार्थ को नजदीक से देखा
और बाद में करोड़पति हो जाने पर भी अपने मूल्यों पर स्थिर रहा।
प्रश्न 6. चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य
का सामंजस्य भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर
: भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र रस को महत्त्व देता है, परन्तु इसमें हास्य और करुण
रस को परस्पर विरोधी मानकर दोनों को एकसाथ नहीं रखा जाता है। इसके विपरीत चार्ली चैप्लिन
की फिल्मों में त्रासदी, करुणा और हास्य का सामंजस्य दिखाई देता है। भारतीय काव्यशास्त्र
में हास्य दूसरों को लेकर होता है, हँसी में करुणा की स्थिति नहीं रहती है। इसी कारण
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी, करुणा एवं हास्य भारतीय कला एवं सौन्दर्यशास्त्र
की परिधि में नहीं आता है।
प्रश्न 7. चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
उत्तर
: चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है. जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास
से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से अधिक शक्तिशाली
तथा श्रेष्ठ रूप में दिखाता है। तब वह ऐसा अवसर निर्मित कर देता है कि सारी गरिमा को
त्याग कर हास्य का पात्र बन जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1. आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा
परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर
: हमारे विचार से मूक फिल्मों में ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है। मूक फिल्मों
के सभी भावों को शारीरिक चेष्टाओं द्वारा ही व्यक्त किया जाता है, जो कि अत्यधिक श्रम-साध्य
है। जबकि सवाक् फिल्मों में वाणी अथवा संवादों के द्वारा करुणा, स्नेह, शोक आदि भावों
को व्यक्त करना काफी सरल रहता है।
प्रश्न 2. सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते
हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब
(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
उत्तर
: एक बार मैंने अपने मित्र को मजाक में बेवकूफ बनाने का प्रयास किया, परन्तु उसने बातों-बातों
में मुझे ही बेवकूफ बना दिया। तब मैं अपने आप पर ही हँसने लगा।
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
उत्तर
: एक बार एक भिखारी जैसा व्यक्ति नशे में धुत्त होकर घूम रहा था।
उसकी वेशभूषा और बोलने के ढंग पर सब बच्चे खूब हँस रहे थे और उसे चिढ़ा रहे थे। तभी
एक कुत्ता उसे देखकर भौंकने लगा, तो वह भागने लगा। उसी समय वह एक गाड़ी से टकरा गया
और बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा। ऐसा लगा कि उसके जीवन का अन्त हो गया है। तब सारा
हास्य करुणा में बदल गया।
प्रश्न 3. 'चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न'-आप इन
दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में हमारे जीवन की वास्तविकता का वर्णन है। उसका अभिनय
हमारे जीवन से। जुड़ा हुआ है, उसमें हम अपना रूप देखते हैं। सुपरमैन की संकल्पना तो
एक स्वप्न है कल्पनाएँ, जिसकी पूर्ति यथार्थ जीवन में सम्भव नहीं है। अतः हम स्वयं
को सुपरमैन के रूप में नहीं देख पाते हैं।
प्रश्न 4. भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन
रूपों में उपयोग किया है? कुछ फिल्में (जैसे-आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर
इंडिया और विज्ञापनों (जैसे चैरी ब्लॉसम) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर
: भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली चैप्लिन की कई छवियों का प्रयोग किया। उसके
कई रूपों को हमारे सामने प्रस्तुत किया है। कहीं वह बंजारे के रूप में हमारे सामने
आता है तो कहीं अस्पताल में सफ़ाई करते नजर आता है, कहीं पालिश करते दिखाई देता है,
तो कहीं सीढ़ी खींचता नज़र आता है। स्वर्गीय राजकपूर जी ने उनकी हू-ब-हू नकल अपनी फ़िल्मों
में की। इसी प्रकार अनिल कपूर ने भी चार्ली चैप्लिन की भूमिका को ‘मिस्टर इंडिया’ नामक
फ़िल्म के माध्यम से निभाया। वास्तव में जीवन और समाज से जुड़े प्रत्येक पात्र को अभिनय
चार्ली ने किया था। इन्हीं विविध पात्रों को भारतीय सिनेमा और विज्ञापन जगत ने भुनाया।
चैरी पालिश का विज्ञापन हमारे सामने है।
प्रश्न 5. आजकल विवाह आदि उत्सव समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली
चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाजार ने
चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर
: आजकल विवाहोत्सवों, समारोहों एवं होटलों में चार्ली के रूप एवं वेशभूषा में सुसज्जित
व्यक्ति को मेहमानों के स्वागतार्थ रखा जाता है। लोगों के ध्यानाकर्षण एवं हँसी-मजाक
के लिए भी बाजार ने चाल चैप्लिन की सहायता को अनदेखा करके उसके नकली रूप का उपयोग किया
है।
भाषा की बात
प्रश्न 1..... तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। वाक्य में चाली शब्द
की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों
का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में
विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है?
उत्तर
: 'चार्ली-चार्ली' प्रयोग से पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार प्रयुक्त हुआ है। इसमें चार्ली
का अर्थ वास्तविकता है। चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है, का आशय है - चेहरे पर वास्तविकता
का भाव उजागर होना।
पुनरुक्त-प्रयोग
के तीन वाक्य -
1.
क्रोध में चेहरा लाल-लाल दिखाई दे रहा था।
2.
नौकर रोज-रोज छुट्टी कर देता है।
3.
यहाँ डाल-डाल पर फल लगे हैं।
प्रश्न 2. नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को
पाठ के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना।
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन की फिल्मों का प्रभाव काल, स्थान एवं संस्कृति आदि की सीमाओं से खिलवाड़
कर भविष्य को रेखांकित कर रहा है।
(ख) समाज से दुरदुराया जाना।
उत्तर
: नानी खानाबदोश, माँ साधारण कलाकार और परिवार अत्यन्त गरीब होने से चार्ली का प्रारंभिक
जीवन घुमन्तू बना, इस कारण वह उच्च वर्ग द्वारा दुत्कारा गया था।
(ग) सुदूर रूमानी सम्भावना।
उत्तर
: स्ववंशानुगत पूर्व सम्बन्धों के कारण चार्ली की फिल्मों के दृश्य आँखों के सामने
सुन्दर रूमानी सम्भावना प्रकट करते हैं।
(घ) सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।
उत्तर
: चार्ली ने सामन्तों, शासकों एवं उद्योगपतियों का सारा बड़प्पन एकदम ऐसे निकाल दिया
जैसे सुई चुभने से गुब्बारा फुस्स हो जाता है।
(ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
उत्तर
: चार्ली की फिल्मों में ऐसे प्रसंगों का चित्रण हुआ है, जिनमें रोमांस
किसी-न-किसी हास्यास्पद घटना से मजाक में बदल जाता है।
गौर करें
(क) दरअसल सिद्धान्त कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धान्त
या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
उत्तर
: कला तो हृदयगत भावों की सहज अभिव्यक्ति होती है। कला पहले साकार होती है, उसके सिद्धान्त
बाद में गढ़े जाते हैं।
(ख) कला में बेहतर क्या है-बद्धिको प्रेरित करने वाली भावना या भावना
को उकसाने वाली बन्दि?
उत्तर
: भावना को उकसाने वाली बुद्धि कला में बेहतर है।
(ग) दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या
साइड किक है।
उत्तर
: मनुष्य ईश्वर या नियति के अनुसार ही जीवन में सभी भावों एवं क्रियाओं को अपनाता है।
(घ) सत्ता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम
आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चाली हो जाता है।
उत्तर
: जीवन-जगत् में वास्तविकता का बोध होने पर प्रत्येक व्यक्ति अपना यथार्थ परिचय पा
लेता है।
(ङ) मॉडर्न टाइम्स, द ग्रेट डिक्टेटर आदि फिल्में कक्षा में दिखाई जाएँ
और फिल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।
उत्तर
: शिक्षक के सहयोग से फिल्म देखकर चर्चा करें।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'चार्ली' की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
: चार्ली सार्वभौमिक कलाकार है। वह अपनी फिल्मों में चिर युवा अथवा युवकों जैसा दिखाई
देता है। वह किसी भी संस्कृति में विदेशी नहीं लगता है। एक प्रकार से वह सभी दर्शकों
को अपना और जाना-पहचाना लगता है। उसमें समाज के साधारण जनों की छवि दिखाई देती है,
किसी सुपरमैन की नहीं। वह स्वयं पर हँसने में हास्य और करुणा में अद्भुत सामञ्जस्य
रखता है।
प्रश्न 2. चार्ली चैप्लिन ने भारतीयों को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन ने भारतीय फिल्मों एवं अभिनेताओं को भी प्रभावित किया। राजकपूर ने
चार्ली चैप्लिन की नकल पर 'आवारा' और 'श्री 420' फिल्में बनाईं। इसके पश्चात् तो हिन्दी
फिल्म अभिनेताओं में जानी वाकर, दिलीप कुमार, देवानन्द, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन तथा
श्रीदेवी आदि ने चार्ली के किसी-न-किसी रूप का प्रभाव ग्रहण किया तथा स्वयं को हँसी
का पात्र बनाया। चार्ली चैप्लिन ने भारतीयों को अपने अभिनय से काफी प्रभावित किया।
प्रश्न 3. अन्य कामेडियनों से बढ़कर क्या विशेषताएँ चार्ली चैप्लिन
में हैं, जिनसे वह हमें 'हम' लगते हैं? बताइये।
उत्तर
: चार्ली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।
क्योंकि चार्ली आम आदमी की पीड़ा व दर्द को व्यक्त करता है। स्वपीड़ा से जुड़ाव व संवेदना
ही चार्ली को 'हम' में परिवर्तित कर देता जो व्यक्ति को देश-सीमाओं से परे ले जाकर,
मैं और तुम की परिधि से निकालकर 'हम' बना देता है। यही विशेषता चार्ली के व्यक्तित्व
और उसके अभिनय में है।
प्रश्न 4. किन परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक 'बाहरी' तथा 'घुमन्तू'
चरित्र बना दिया था?
उत्तर
: चार्ली की नानी खानाबदोश और माँ परित्यक्ता व सांधारण कलाकार थी। उसका बचपन भयानक
गरीबी में बीता जिसमें उसे माँ के पागलपन से भी संघर्ष करना पड़ा। वह समाज के उच्च
वर्ग द्वारा सदा दुत्कारा गया। इन सभी जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक 'बाहरी'
और 'घुमन्तू' चरित्र बना दिया था।
प्रश्न 5. चार्ली के मन पर हास्य और करुणा के संस्कार कैसे पड़े?
उत्तर
: लेखक के अनुसार चार्ली के घर के पास कसाईखाने में रोज सैकड़ों जानवर लाये जाते थे।
एक दिन एक ह वहाँ से भाग निकली। उसे पकडने वाले लोग उसका पीछा करते हए कई बार फिसले
और गिरे। तब देखने वाले सभी लोग सड़क पर ठहाके लगाने लगे। बाद में भेड़ पकड़ी गई। तब
उसका अन्त समझ चार्ली का मन रो पड़ा। इस घटना से पहले तो हास्य तथा फिर करुणा का संस्कार
चार्ली के मन में पड़ गया।
प्रश्न 6. चार्ली की फिल्मों का चमत्कार क्या है? बताइये।
उत्तर
: चार्ली की फिल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं। उनका चमत्कार यही है
कि वे पागलखाने के मरीजों से लेकर महान् वैज्ञानिक आइन्स्टाइन जैसे प्रतिभाशाली तक
को आनन्द प्रदान करती हैं। चार्ली ने फिल्म कला को लोकतान्त्रिक बनाया तथा समाज की
वर्ण एवं वर्ग-व्यवस्था को तोड़ा। चार्ली ने अपनी फिल्मों में उच्च वर्ग तथा शासक वर्ग
की कमजोरियों पर सशक्त व्यंग्य किये।
प्रश्न 7. 'पश्चिम में तो बार-बार चाली का पुनर्जीवन होता है।' इसका
आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: चार्ली की फिल्में कला स्थान. काल. संस्कति एवं जाति-वर्ग की सीमाओं से मक्त रहीं।
पश्चिम में सभी फिल्म निर्माता चार्ली की कला से प्रभावित रहे हैं। इस कारण वे अपनी
फिल्मों में चार्ली के विभिन्न रूपों का चित्रांकन करते रहे हैं। वहाँ पर नये अभिनेताओं
ने चार्ली के प्रभाव को ग्रहण करने के प्रयास किये हैं। यही कारण है कि वहाँ चार्ली
बार-बार जन्म लेता रहा है।
प्रश्न 8. चार्ली की फिल्मों के पूरे विश्व में सफल होने के क्या कारण
रहे हैं?
उत्तर
: चार्ली ऐसे सार्वभौमिक कलाकार रहे, जिनके लिए काल एवं भूगोल की बाध्यता नहीं रही
है। चार्ली की फिल्मों में संवादों का प्रयोग अत्यल्प है, उनमें मानवीय भावों की अधिकता
है। उनकी क्रियाएँ एवं अभिनय के दृश्य अतीव सहज एवं सम्प्रेप्य हैं। संवाद न होने से
दर्शकों पर गहरा प्रभाव पड़ता है तथा हास्य एवं करुणा का संयोग ही उनकी फिल्मों की
सफलता का प्रमुख कारण रहा है।
प्रश्न 9. भारतीय परम्परा के हास्य और चाली के हास्य में क्या अन्तर
बताया गया है?
उत्तर
: भारत में अपने आप पर हँसने अथवा जानबूझकर स्वयं को हास्यास्पद बनाने की परम्परा नहीं
है। यहाँ हास्य दूसरों पर किया जाता है। चार्ली का हास्य भारतीय परम्परा से इसलिए भिन्न
है क्योंकि चार्ली के पात्र अपनी कमजोरियों एवं विकृतियों पर स्वयं हँसते हैं और दूसरों
को भी हँसाते हैं। वे करुणाजनक दृश्य के साथ हँसा भी देते हैं या हँसाते-हँसाते रुला
भी देते हैं। इस तरह चार्ली ने भारतीय परम्परा से अलग हटकर करुणा और हास्य का मेल कराया
है, यही उसकी विशेषता है।
प्रश्न 10. चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व को लेकर लेखक ने क्या धारणा
व्यक्त की है? बताइये।
उत्तर
: लेखक की यह धारणा है कि चार्ली का प्रभाव सारे संसार पर रहा है और आगे भी काफी वर्षों
तक रहेगा। चार्ली का भारतीय फिल्म जगत् पर भी काफी प्रभावी रहा है। अनेक अभिनेताओं
ने उसके अभिनय का अनुसरण भी किया। चार्ली का जीवन कठिनाइयों एवं संघर्षों से भरा रहा,
फिर भी उसने दुनिया को अपने आप पर हँसना सिखाया तथा हास्य एवं करुण रस में अनोखा सामंजस्य
स्थापित किया।
प्रश्न 11. "हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते।"
इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: लेखक का अभिप्राय है कि चार्ली चैप्लिन को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा, काफी
अपमान झेलना पड़ा और अनेक संकटों का सामना करना पड़ा तथा जमीन से जुड़ा रहा। इसी प्रकार
प्रत्येक मनुष्य को जीवन में संघर्षों का सामना करना पड़ता है। इस कारण हम भी चार्ली
हैं, जबकि 'सुपरमैन' एक काल्पनिक चरित्र या एक महत्त्वाकांक्षी सपना है, वास्तविक रूप
में हम सुपरमैन नहीं हो सकते।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. चाली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली मुख्य घटनाएँ कौन-सी थीं?
उत्तर
: चार्ली के जीवन में प्रथम घटना उस समय की है जब चार्ली बीमार थे और उसकी माँ उन्हें
ईसा मसीह की जीवनी पढ़कर सुना रही थी। ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसंग तक आते-आते माँ-बेटा
दोनों रोने लगे। इस घटना ने चार्ली को स्नेह, करुणा और मानवता जैसे उच्च जीवन मूल्य
दिए। दूसरी घटना बालक चार्ली कसाईखाने में रोज सैकड़ों जानवरों को कटते देखता था।
एक
दिन एक भेड़ कसाई की पकड़ से छूट भागी। उसे पकड़ने की कोशिश में कसाई कई बार फिसला,
जिसे देखकर लोग हँसने लगे, ठहाके लगाने लगे। जब भेड़ को कसाई ने पकड़ लिया तब उसके
मरने की सोच कर बालक चार्ली रोने लगा। इन्हीं दो घटनाओं ने उसकी भावी फिल्मों में त्रासदी
और हास्योत्पादक तत्त्वों की भूमिका तय कर दी।
प्रश्न 2. चार्ली चेप्लिन के फिल्मों की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर
: चार्ली की फिल्मों में हास्य और करुणा का अदभत सामंजस्य है। उनकी फिल्मों में भाषा
का प्रयोग बहुत कम है। चार्ली की फिल्मों में बुद्धि की अपेक्षा भावना का महत्त्व अधिक
है। उनकी फिल्मों में सार्वभौमिकता है। चार्ली किसी को भी विदेशी नहीं लगते वरन् सभी
उनमें अपनी छवि देखते हैं।
चार्ली
ने फिल्मों को लोकतांत्रिक बनाया और फिल्मों में व्याप्त वर्ण तथा वर्ग व्यवस्था को
तोड़ा। चार्ली सदैव अपनी फिल्मों में युवा दिखते हैं और यह युवापन उनके जोश, साहस,
बुद्धि व अद्भुत समझ का भी प्रतीक बनता है। कालस्थिति को बदलने का सामर्थ्य भी युवाओं
द्वारा ही संभव माना जाता है। यही कारण है कि उनकी फिल्मों में उनकी सामर्थ्यपूर्ण
भूमिका एक नवीन संदेश प्रसारित करती है।
प्रश्न 3. चार्ली चैप्लिन व उनकी फिल्में दर्शक वर्ग पर क्या छाप छोड़ती
हैं?
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन ने हास्य कलाकार के रूप में पूरी दुनिया के बहुत बड़े दर्शक वर्ग
को हँसाया है। उनकी फिल्मों ने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाने के साथ-साथ दर्शकों
की वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था को भी तोड़ा। चार्ली ने कला में बुद्धि की अपेक्षा भावना
को महत्त्व दिया है। बचपन के संघर्षों ने चार्ली के भावी फिल्मों की भूमि तैयार कर
दी थी।
भारतीय
कला और सौन्दर्यशास्त्र में करुणा का हास्य में परिवर्तन भारतीय परम्परा में नहीं मिलता
लेकिन चार्ली का जादुई अभिनय हर देश, संस्कृति व सभ्यता को अपना लगता है। भारतीय जनता
ने भी चार्ली को सहज भाव से स्वीकार किया है। भारतीय सिनेमा जगत के सुप्रसिद्ध कलाकार
राजकपूर को चार्ली का भारतीयकरण कहा गया है। चार्ली की फिल्मों ने करुणा और हास्य में
सामंजस्य स्थापित कर फिल्मों को सार्वभौमिक रूप प्रदान किया
प्रश्न 4. चार्ली चैप्लिन के भारतीयकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
: चार्ली ने स्वयं पर हँसना सिखाया है जबकि भारतीय हास्य परम्परा में सदैव दूसरों पर
हँसा जाता है। इसमें दूसरों को पीड़ित करने वालों की प्रायः हँसी उड़ाई जाती है। जबकि
चार्ली स्वयं अपनी कमजोरियों, अपनी फजीहतों, अपनी विवशताओं तथा अपनी नाकामियों पर हँसता
और हँसाता है। भारतीय हास्य परम्परा में करुण और हास्य रस का मेल नहीं दिखाया जाता
जबकि चार्ली करुण दृश्य के फौरन बाद एकाएक हँसा देते हैं और हँसते हुए को पलभर बाद
रुला देते हैं। ऐसा कर वे करुण और हास्य रस में समन्वय करा देते हैं। चार्ली ने भारतीयों
को अपने पर हँसना सिखाया और यही चार्ली का भारतीयकरण है।
प्रश्न 5. चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
: चार्ली चैप्लिन का व्यक्तित्व मुखर, प्रभावशाली एवं सुलझा हुआ था। वह हँसमुख आदमी
थे। प्रत्येक व्यक्ति के लिए दूसरों पर हँसना आसान कार्य है लेकिन स्वयं को हँसी का
पात्र बनाना उतना ही मुश्किल होता है। चार्ली के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यही
रही कि उन्होंने इस कठिन कार्य को आसान कर दिखाया। वह फिल्मों में गंभीर से गंभीर विषयों
पर स्वयं हँसते थे और कब करुणा को हास्य में परिवर्तित कर देते थे, पता ही नहीं चलता
था।
चार्ली
ने अपने जीवन में इतनी बेहतरीन फिल्में बनाईं कि आज भी आम आदमी आनन्द का अनुभव करता
है। चार्ली चैप्लिन हास्य फिल्मों का महान अभिनेता और निर्देशक था। उसका चमत्कार था
कि पागलखाने के मरीज से लेकर आईंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति भी उसकी
फिल्मों को सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते थे।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1. लेखक विष्णु खरे के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
: हिन्दी कविता और आलोचना में विष्णु खरे एक विशिष्ट हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म 1940
ई. में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हुआ। ये विश्व सिनेमा के अच्छे जानकार हैं।
ये फिल्मों को समाज, समय और विचारधारा के आलोक में देखते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ कविता
संग्रह-एक गैर रूमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज पर्दे में, पिछला बाकी।
आलोचना-आलोचना की पहली किताब, सिनेमा पढ़ने के तरीके आदि। इनको रघुवीर सहाय सम्मान,
शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान, नाइट ऑफ द ऑर्डर
ऑफ दि व्हाइट रोज आदि से सम्मानित किया किया जा चुका है।
चार्ली चैप्लिन यानी हम सब (सारांश)
लेखक-परिचय
- समकालीन हिन्दी कविता और आलोचना के विशिष्ट साहित्यकार विष्णु खरे का जन्म सन्
1940 ई. में छिंदवाड़ा (म.प्र.) में हुआ। इन्होंने हिन्दी जगत् को गहरी विचारात्मक
कविताएँ दी हैं, तो साथ ही बेबाक आलोचनात्मक लेख भी लिखे हैं। ये विश्व-सिनेमा के गहरे
जानकार हैं और पिछले कई वर्षों से सिनेमा की विधा पर लगातार गम्भीर लेखन करते रहे हैं।
विदेश प्रवास के दौरान प्राग के प्रतिष्ठित फिल्म क्लब की सदस्यता प्राप्त कर संसार
भर की सैकड़ों फिल्में देखीं।
यहीं
से इन्होंने सिनेमा-लेखन प्रारम्भ किया। 'दिनमान', 'जनसत्ता', 'हंस', 'कथादेश', 'नवभारत
टाइम्स' आदि पत्र-पत्रिकाओं में इनका सिनेमा-विषयक लेखन प्रकाशित होता रहा है। इन्होंने
फिल्म को समाज, समय और विचारधारा की कसौटी पर कसने का प्रयास किया है तथा अभिनय, निर्देशन
आदि का सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण किया है। अपने लेखन से इन्होंने हिन्दी में सिनेमा-विश्लेषण
के अभाव को दूर किया है।
इनकी
प्रमुख रचनाएँ हैं - 'एक गैर-रूमानी समय में', 'खुद अपनी आँख से',
'सबकी आवाज के पर्दे में', 'पिछला बाकी' (कविता संग्रह); 'आलोचना की पहली किताब' (आलोचना),
'सिनेमा पढ़ने के तरीके', 'मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ', 'यह चाकू समय', 'कालेवाला'
अनुवाद आदि। इन्हें हिन्दी अकादमी सम्मान, शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, रघुवीर
सहाय सम्मान. आदि से पुरस्कृत होने का सुअवसर मिला है।
पाठ-सार
- यह पाठ हास्य फिल्मों के महान् अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन के कलाकर्म की
विशेषताओं पर आधारित है। इसका सार इस प्रकार है -
1.
चार्ली का कलाकर्म - सन् 1989 ई. में चार्ली चैप्लिन की जन्मशती
मनाई गई। उनकी पहली फिल्म 'मेकिंग ए लिविंग' के पिचहत्तर वर्ष पूरे हो गये। अब टेलीविजन
और वीडियो के प्रसार से सारा संसार चार्ली की फिल्में देख रहा है। फिर भी उनकी कई फिल्में
दर्शकों को देखने को नहीं मिली हैं। इस कारण चैप्लिन के कलाकर्म का सही आकलन अभी नहीं
हो पाया है।
2.
चाली की फिल्मों का आधार - चार्ली चैप्लिन की फिल्में भावनाओं पर
टिकी हैं, बुद्धि पर नहीं। इस कारण पागल से लेकर महान् प्रतिभा वाले व्यक्ति उनकी फिल्मों
का रसास्वादन ले सकते हैं। चैप्लिन ने फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाया तथा उनसे वर्ण-व्यवस्था
को भी तोड़ा। चैप्लिन ने अपनी फिल्मों के द्वारा यह भी बताया कि कोई भी व्यक्ति अपने
ऊपर हँसना पसन्द नहीं करता और कमियाँ सभी के जीवन में रहती हैं।
3.
चार्ली का परिचय - चार्ली की माँ एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे
की स्टेज अभिनेत्री थी। वह बाद में पागल हो गई थी। चार्ली के पिता यहूदी थे तो नानी
खानाबदोश। बचपन में घर में निर्धनता थी। बड़ा होने पर धनपतियों तथा सामन्तों से चार्ली
को अनादर ही मिला। उसका जीवन घुमन्तू जैसा था। इस तरह का परिवेश पाने से चार्ली ने
करोड़पति हो जाने पर भी अपने जीवन में बदलाव नहीं किया। इसी कारण उनकी फिल्मों में
उसी छवि का समावेश हुआ है।
4.
चैप्लिन की लोकप्रियता - चार्ली चैप्लिन पर कई फिल्म समीक्षकों तथा
विद्वानों ने कुछ लिखना चाहा, परन्तु उनका मूल्यांकन आसान नहीं है। खुद को चार्ली में
देखना और नियत सीमाओं में बाँधना सम्भव नहीं है। इस कारण चार्ली सभी दर्शकों को अपना
और जाना-पहचाना लगता है। यह स्थिति उसकी लोकप्रियता को सिद्ध करती है।
5.
बचपन की घटनाओं का प्रभाव - चार्ली पर बचपन की घटनाओं का प्रभाव
ऐसा रहा कि उसने बुद्धि की अपेक्षा | भावना को चुना। एक बार अत्यधिक बीमार रहने पर
उसकी माता ने बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन-वृत्त पढ़कर सुनाया। सूली पर चढ़ने के प्रसंग
से चार्ली में स्नेह और करुणा का भाव जागा। दूसरी घटना घर के समीप चलने वाले कसाईखाना
से सम्बन्धित थी, जिसमें भेड़ों को काटा जाता था। एक भेड़ के भागने तथा पकड़े जाने
के दृश्य से चार्ली का हृदय हास्य के साथ करुणा से भर गया। यही घटना उनकी फिल्मों में
त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों के सामंजस्य का आधार बनी।
6.
भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र - भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र
का सम्बन्ध रस से है। इस सिद्धान्त में करुणा हास्य में नहीं बदलती। जीवन में हर्ष
और विषाद आते रहते हैं, परन्तु हास्य व करुणा में निकटता नहीं दिखाई देती है। रामायण,
महाभारत आदि रचनाओं में करुणा का समावेश हास्य के विपरीत हुआ है, उनमें सामंजस्य नहीं
है। चैप्लिन ने इस सिद्धान्त को बदला, इस कारण उसका हास्य कब करुणा में और कब करुणा
हास्य में बदल जायेगा, यह भारतीयों के लिए अपरिचित ही है।
7.चाली
के सौन्दर्यशास्त्र का प्रभाव - चार्ली का हास्य एवं करुणा
के इस सिद्धान्त का काफी प्रभाव रहा है। इससे प्रभावित होकर राजकपूर ने 'आवारा' फिल्म
बनायी, जो 'दि टैम्प' का शब्दानुवाद ही नहीं, अपितु चार्ली का भारतीयकरण था। फिल्मों
में नायकों को अपने पर हँसने की परम्परा चलने से देवानन्द, दिलीपकुमार, शम्मी कपूर,
अमिताभ तथा श्रीदेवी ने भी चार्ली जैसे किरदार निभाये। इससे चार्ली की अभिनय-कला का
सहज स्मरण हो जाता है।
8.
चाली की फिल्मों की विशेषताएँ - चार्ली चैप्लिन द्वारा निर्मित
फिल्मों की अनेक विशेषताएँ हैं। चार्ली की फिल्मों में -
प्रायः
भाषा का प्रयोग न होना
मानवीय
व्यक्तित्व का प्रदर्शन
चित्रण
की सार्वभौमिकता
चिर-युवा
स्वरूप का प्रदर्शन
अद्भुत
प्रदर्शन की क्षमता
सार्वदेशिक
संस्कृति का समावेश तथा
सार्वजनिक
वेशभूषा, स्वरूप आदि प्रमुख बातों का समावेश सुन्दर कलात्मक रूप से किया गया है।
9.
चैप्लिन का भारत में महत्त्व - भारत में स्वयं पर हँसने की, स्वयं को
हास्य का पात्र बनाने की परम्परा नहीं है। चार्ली स्वयं पर सबसे अधिक हँसता है। भारत
में चार्ली का महत्त्व इस कारण है कि वह बड़े-बड़े व्यक्तियों पर हँसने का मौका देता
है। जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, ज्यादा शक्तिशाली और सभ्यता-संस्कृति एवं समृद्धि
की प्रतिमूर्ति के रूप में दिखाता है, तब हास्य की नयी सृष्टि करता है। वह महानतम क्षणों
में अपमानित होना जानता हैं। हम भी उसके प्रभाव से शूरवीर क्षणों में क्लैव्य और पलायन
के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए भी विजयी बन जाते हैं। इन सब कारणों
से हम सब सुपरमैन नहीं, चार्ली हैं, हमारा चेहरा भी चार्ली जैसा हो जाता है।
सप्रसंग महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ
1.
चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों
से लेकर आइन्सटाइन जैसे महान् प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम
रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतान्त्रिक बनाया
बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा।
कठिन-शब्दार्थ
:
विकल
= व्याकुल, असन्तुलित।
रसास्वादन
= रस का आनन्द।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक चार्ली चैप्लिन के कलाकर्म की विशेषता को बता रहे हैं।
व्याख्या
-
लेखक बता रहे हैं कि अभिनेता चार्ली चैप्लिन अपनी अभिनेयता द्वारा एक अद्भुत प्रभाव
छोड़ते हैं। उनका चमत्कार यही है कि उनके अभिनय का आनन्द पागलखाने के मरीजों, व्याकुल
एवं व्यथित लोगों से लेकर तेज व तीव्र दिमाग का कहे जाने वाले आइन्सटाइन जैसे महान
प्रतिभा वाले व्यक्ति भी अपने-अपने स्तर अनुसार ले सकते हैं। कहने का आशय है कि दिमागी
स्तर पर हर तरह का व्यक्ति उनकी फिल्मों से आनन्द प्राप्त करता है।
चाली
चैप्लिन एक ऐसे अभिनेता रहे हैं जिन्होंने फिल्म कला को लोकतांत्रिक अर्थात् जन-जन
तक पहुँचाया। उनकी फिल्मों का संदेश, हास्य, करुणा सभी लोगों की संवेदनाओं से जमीनी
स्तर पर जुड़ती रही। चार्ली की फिल्मों ने दर्शकों के वर्ग-वर्ण व्यवस्था को तोड़ा।
कहने का अभिप्राय है कि केवल उच्च स्तर या उच्च वर्ण के लोगों के लिए ही उनकी कला नहीं
थी, उन्हें देखने, समझने व महसूस करने का समान अधिकार निम्न वर्ग एवं वर्ण तक भी उतना
ही समान था। चार्ली की प्रतिभा विभिन्न रसों में ढल कर समान रूप से सभी के लिए सम्प्रेषित
थी।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली चैप्लिन की अभिनेयता के गुण एवं विशेषताओं की चर्चा की है।
2.
भाषा शैली सरल-सहज व भाव प्रेषणीय है, हिन्दी-संस्कृत शब्दों की बहुलता है। खड़ी बोली
हिन्दी का प्रयोग है।
2.
यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तन्त्र गैर-बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह
अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह
बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़
हँस देती है। कोई भी शासक या तन्त्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसन्द नहीं करता।
कठिन-शब्दार्थ
:
अकारण
= बिना कारण।
तन्त्र
= शासन।
प्रसंग
-
प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से लिया
गया है। चार्ली के अभिनेय द्वारा लोकतंत्र की शक्ति के प्रभाव को स्पष्ट किया गया है।
व्याख्या
-
लेखक बताते हैं कि चार्ली चैप्लिन के अभिनय में लोकतन्त्र की शक्ति का आभास होता है
और यही कारण है कि जो व्यक्ति सत्ता में रहकर समूह या शासन की असमानता को खत्म नहीं
करना चाहता है या जो स्वयं के स्वार्थ हेतु कार्य करता है वह उन संस्थाओं पर तो हमला
करता ही है साथ ही चार्ली चैप्लिन की फिल्मों पर भी अपनी आलोचनाओं के तीखे प्रहार करता
है। कारण, वे सामाजिक संस्थाएँ और चार्ली की फिल्में लोकतंत्र के हितभाव से जुड़ी होती
हैं। उनका कार्य और संदेश जनकल्याण के कार्यों से सम्बद्ध रहता है।
फिर
भी चार्ली सबसे अलग होते हुए भी जनहित से जुड़ा होने के कारण जनता का एक बच्चा जैसे
है जो बोल नहीं सकता लेकिन अपने इशारे से सत्ता पर आसीन राजा की सच्चाई को सबके सामने
व्यक्त कर देता है। वह कहता है कि बच्चे के समान मैं जिस तरह नंगा हूँ, राजा भी पूरी
अपनी स्वार्थलोलुपता के कारण जनता के समक्ष नंगा अर्थात् पूरी तरह से बेपरदा है। चार्ली
के इस अभिनय पर जनता हँसती है लेकिन सत्ता में आसीन शासक या शासन तंत्र अपनी खुलती
पोल पर, सच्चाई पर किसी का भी हँसना पसंद नहीं करता है।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली के अभिनय की खूबी को व्यक्त किया है।
2.
भाषा सरल-सहज व सारगर्भित है।
3.
एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी
और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रान्ति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही
से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना - इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो
करोड़पति हो जाने के बावजूद अन्त तक उनमें रहे।
कठिन-शब्दार्थ
:
परित्यक्ता
= त्यागी हुई, तलाकशुदा।
दर्जे
= स्तर, क्लास, कक्षा।
मगरूर
= अभिमानी, घमण्डी।
दुरदुराया
= तिरस्कृत करना, दूर-दूर करना।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक ने चार्ली की माँ व जीवन संघर्ष के विषय में बताया है।
व्याख्या
-
लेखक बताते हैं कि चार्ली चैप्लिन की माँ तलाकशुदा थी। वे अपने समय में स्टेज की दूसरे
स्तर की अभिनेत्रियों में गिनी जाती थी। कहने का आशय है कि चार्ली का बचपन पिता से
अलग होकर जीना तथा माँ द्वारा दूसरे दर्जे पर कार्य करना मानसिक यातना के कारण थे।
इन सबके ऊपर भयानक रूप से गरीब होना और ऐसी स्थिति होने की वजह से माँ का पागल हो जाना
सभी विपरीत परिस्थितियाँ चार्ली को झेलनी पड़ी।
चार्ली
ने पारिवारिक कठिनाइयों के साथ-साथ शासन की ज्यादतियाँ, औद्योगिक क्रांति के बढ़ने
की वजह से बेरोजगारी, पूँजीवाद तथा सामंतों के घमंडी वर्ग द्वारा तिरस्कृत किया जाना
लगातार झेला था। इन सारी परिस्थितियों से मिले जीवन-मूल्य या सीख को चैप्लिन ने करोड़पति
हो जाने के पश्चात् भी नहीं छोड़े। तात्पर्य है कि प्रारम्भिक जीवन की विसंगतियों से
मिली सीख ने उसे कभी घमंडी, अभिमानी नहीं बनने दिया और यही कारण रहा कि वे सारी अवहेलनाएँ
हास्य के माध्यम से अपने अभिनय द्वारा व्यक्त करते रहे।
विशेष
:
1.
लेखक ने बहुत ही कम शब्दों में चार्ली के अभिनय व उनके जीवन मूल्यों को व्यक्त किया
है।
2.
भाषा सरल-सहज व भावगर्भित है।
4.
अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी सम्भावना
बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रही हो, क्योंकि यूरोप के जिप्सी
भारत से ही गए थे और अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने
चाली को हमेशा एक 'बाहरी', 'घुमंतू' चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ या
उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके।
कठिन-शब्दार्थ
:
खानाबदोश
= जिनका कोई ठिकाना न हो, घूमन्तु जाति, यायावरी जाति।
जिप्सी
= रोमा लोग, जिन्हें रोमानी भी कहा जाता था।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक ने चार्ली के पूर्वजों के बारे में बताया है।
व्याख्या
-
लेखक ने बताया कि चार्ली चैप्लिन की नानी खानाबदोश जाति से थी अर्थात् जो एक जगह घर
बना कर नहीं रहते, घूमन्तु प्रवृत्ति के होते हैं। माना जाता है ये रोमानी जाति के
लोग दक्षिण एशिया (भारत) से ही यूरोप गये थे, संभवतः इसी कारण चार्ली में भी भारतीय
संस्कारों की छाप नजर आती है। यूरोप में ये जिप्सी जाति के माने जाते थे। इस तरह नानी
के संस्कार, पिता से मिले यहदी संस्कार इन सारी परिस्थितियों ने चार्ली को बाहरी या
घुमन्तू प्रवृत्ति का बना दिया था।
एक
जगत् स्थायित्व न होने की वजह से वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ अर्थात् अमीर तथा उच्चवर्गीय
जीवन-मूल्यों को नहीं अपना सके। कहने का आशय है कि उच्च अमीरों के गुणों को अपने व्यक्तित्व
में नहीं ढाल सके और जीवनपर्यन्त निम्नवर्गीय सोच पर ही चलते रहे।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली के भारतीय एवं यहूदी संस्कारों पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि पैसे
वाला होने के बाद भी चार्ली में कभी अमीरों का अभिमान नहीं आया।
2.
भाषा सरल-सहज व खड़ी बोली हिन्दी युक्त है।
5.
चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फिल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों
ने सिर धुने हैं और उन्हें नेति-नेति कहते हुए भी यह मानना पड़ता है कि चाली पर कुछ
नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धान्त कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं
अपने सिद्धान्त या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
कठिन-शब्दार्थ
:
सिर
धुनना = (मुहावरा) कुछ समझ नहीं आना।
नेति-नेति
= अन्त नहीं, अन्त नहीं।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक ने चार्ली की अभिनय कला पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या
- लेखक बताते हैं कि चार्ली की फिल्मों के विषय में, उसकी अभिनय कला के बारे में अनेक
समीक्षकों ने लिखा है, अपनी-अपनी राय व्यक्त की है। लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं कला के
उस्तादों एवं विद्वानों ने अपने सिर धुने हैं अर्थात् इस बात से हार मान ली है कि क्या
कहे और इनके विषय में?
सभी
कला समीक्षक एवं विद्वान इस बात को मानते हैं कि चार्ली की अभिनय क्षमता का अन्त नहीं
है, इतना कुछ लिखा जा चुका है कि अब और नया लिखना कठिन है। दरअसल मनुष्यों द्वारा बनाए
गए सिद्धान्त या नियम कला को जन्म नहीं देते हैं बल्कि कला स्वयं अपने सिद्धान्त या
नियम या तो लेकर आती है या उन्हें गढ़ना पड़ता है। पहले कला जन्म लेती है फिर सिद्धान्त
बनाये जाते हैं।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली की अभिनय कला के विषय में नेति-नेति कह कर उनकी सर्वश्रेष्ठता पर मोहर
लगा दी है।
2.
भाषा सरल-सहज व मुहावरेयुक्त है।
6.
वे चाली को समय और भूगोल से काट कर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों
बनी हुई है। यह कहना कि वे चाली में खुद को देखते हैं दूर की कौड़ी लाना है, लेकिन
बेशक जैसा चाली वे देखते हैं वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है, जिस मुसीबत में वह अपने
को हर दसवें सेकेण्ड में डाल देता है, वह सुपरिचित लगती है।
कठिन-शब्दार्थ
:
दूर
की कौड़ी लाना = (मुहावरा) समझ-बूझ कर बात करना या लाना।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक ने चार्ली के व्यक्तित्व को हर आम आदमी से जुड़ा होना बताया
है।
व्याख्या
- लेखक ने बताया है कि लोग चार्ली को समय और भूगोल अर्थात् भूतकाल और क्षेत्र सीमा
से काट कर यानि अलग करके देखते हैं और वे उसे जिस क्षेत्र सीमा व समय के अन्तर्गत देखते
हैं उसकी ताकत, शक्ति आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। कहने का आशय है कि चार्ली के
अभिनय की शक्ति, संदेश, सीख, शिक्षा सब उतनी ही आज भी प्रभावशाली हैं जितनी चार्ली
के अभिनय के समय थीं।
लोगों
का यह कहना कि वे स्वयं में देखते हैं तो यह उनकी गजब की सूझ-बूझ की बात है। बेशक या
जरूर चार्ली में स्वयं को देखते हैं क्योंकि चार्ली का चेहरा जाना-पहचाना है। चार्ली
जिस तरह से स्वयं को समय के हर दसवें सेकेण्ड में मुसीबत में डाल लेता है वह स्थिति
प्रत्येक को सुपरिचित या जानी-पहचानी लगती है। कहने का आशय है कि आम आदमी के जीवन में
हर समय परेशानी, कठिनाई या दुःख लगे रहते हैं और उन्हीं का चित्रण चार्ली के अभिनय
में हमें मिलता है।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली के अभिनय को आम आदमी की परेशानियों से जोड़ा है। चार्ली के अभिनय में
आम आदमी जीवन्त हो उठता है।
2.
भाषा सीधी-सरल व खड़ी बोली युक्त है।
7.
भारतीय कला और सौन्दर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति
में साथ साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते
हैं। यह संसार की सारी सांस्कृतिक परम्पराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में
बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धान्त की माँग करता है जो भारतीय परम्पराओं में नहीं मिलता।
कठिन-शब्दार्थ
:
रस
= काव्यरस, सौन्दर्य, भाव।
श्रेयस्कर
= सबसे उत्तम।
विषाद
= दुःख, पीड़ा।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्ण खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। लेखक ने इस प्रसंग में भारतीय कलाओं एवं सौन्दर्य शास्त्र में व्यक्त
रसों पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या
-
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में व्यक्त भावों पर विचार करते हुए लेखक ने कहा है कि भारतीय
कलाओं और सौन्दर्यशास्त्र में कई रसों के बारे में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।
उनमें से कुछ रस, ऐसे हैं जो किसी भी कलाकृति में साथ-साथ पाये जाते हैं तो उत्तम माना
जाता है। जिस प्रकार जीवन में खुशी और गम आते-जाते रहते हैं, उसी प्रकार एक ही कृति
में ये दोनों रस भी मिल सकते हैं। और यह बात संसार की सारी परम्पराओं को मालूम है कि
एक साथ दो रसों का होना आश्चर्य नहीं है।
आश्चर्य
की बात तो तब होती है जब करुणा अर्थात् दुःख-दर्द का अचानक हास्य या हँसी में परिवर्तित
हो जाना रहता है। भारतीय परम्पराओं अर्थात् संस्कृति की किसी भी कलाओं में एक ऐसे अनोखे
सिद्धान्त की आवश्यकता की माँग है जिसमें करुण हास्य में तथा हास्य करुणा में बदल जाये।
अभी तक तो भारतीय परम्पराओं में ऐसा कोई नियम या सिद्धान्त नहीं बना है।
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली के अभिनय द्वारा सौन्दर्यशास्त्र के रस-सिद्धान्त में आश्चर्यजनक सिद्धान्त
की माँग प्रस्तुत की है।
2.
भाषा सरल-सहज व सारगर्भित है।
8.
'रामायण' तथा 'महाभारत' में जो हास्य है वह 'दूसरों' पर है और अधिकांशतः वह परसंताप
से प्रेरित है। जो करुणा है वह अक्सर सद्व्यक्तियों के लिए और कभी-कभार दुष्टों के
लिए है। संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है वह राज-व्यक्तियों से कुछ बदतमीजियाँ अवश्य
करता है, किन्तु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों
में भी वैसा ही माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नजर आती है।
कठिन-शब्दार्थ
:
परसंताप
= दूसरों की पीड़ा, दुःख।
सद्व्यक्ति
= सज्जन (व्यक्ति)।
सामंजस्य
= मेल जोल।
माद्दा
= योग्यता, समझ।
विदूषक
= मसखरा, हँसी-मजाक उड़ाने वाला।
प्रसंग
-
प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से लिया
गया है। इसमें लेखक ने हास्य की शक्ति के विषय में बताया है।
व्याख्या
- लेखक कहते हैं कि रामायण और महाभारत जैसे कालजयी ग्रंथों में जो हास्य मिलता है वह
अधिकतर दूसरों पर होता है अर्थात् हास्य या हँसी का भाव दूसरों का मजाक उड़ाने में
मिलता है। और यदि करुणा का भाव मिलता के दुःख-संताप से ही उत्पन्न होती है। करुणा का
भाव सज्जनों व दुष्टों दोनों के लिए होता है। करुणा व्यक्ति को देखकर नहीं वरन् दु:खों
के कारण उत्पन्न होती है।
संस्कृत
नाटकों में एक पात्र विदूषक होता है, उसका कार्य राज-व्यक्तियों से बदतमीजियाँ या हँसी-मजाक
उड़ाने का रहता है। किन्तु हास्य और करुणा दोनों का मेल विदूषक के कार्य में भी नहीं
मिलता है। स्वयं पर हँसने और दूसरों को भी वैसी ही समझ या योग्यता पैदा कर सकने की
शक्ति भारतीय विदूषकों में नजर नहीं आती है। आशय यह है चार्ली का अभिनय, संदेश स्वयं
पर हँसने के साथ करुणा का भाव भी प्रेरित करता है जो कि भारतीय मसखरों में नहीं मिलता
है। . .
विशेष
:
1.
लेखक ने चार्ली के हास्य और करुणा के अद्भुत समन्वय पर प्रकाश डाला है।
2.
भाषा सरल, सहज व भावप्रेषित है।
9.
चार्ली का चिर-युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता
शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आसपास जो भी चीजें,
अइंगे, खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत 'विदेश' या 'परदेस' बन जाते हैं
और चैप्लिन 'हम' बन जाते हैं। चार्ली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह
'मैं' भी हो सकता हूँ, लेकिन 'मैं' से ज्यादा चार्ली हमें 'हम' लगते हैं।
कठिन-शब्दार्थ
:
चिर
= हमेशा।
अडंगा
= रुकावट।
सतत
= लगातार।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें लेखक ने चार्ली की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या
-
लेखक बताते हैं कि चार्ली के अभिनय में सदैव युवाओं का जोश व हिम्मत का होना तथा बच्चों
जैसा खिलदंड स्वभाव का मिलना उनकी एक विशेषता ही है। उनके अभिनय की सबसे बड़ी विशेषता
यह मानी जाती है कि वे किसी भी देश की संस्कृति को विदेशी या दूसरे देश के नहीं लगते
हैं। उनके आसपास के झगड़े, दुष्ट व्यक्ति, औरतें सभी लगातार विदेश या परदेश में परिवर्तित
हो जाते हैं और हम स्वयं चैप्लिन की जगह ले लेते हैं।
कहने
का भाव है चार्ली में हम स्वयं को पाते हैं और वातावरण भले ही विदेशी क्यों न हो। चार्ली
द्वारा व्यक्त परिस्थितियाँ, संकट सभी में लगता है कि इसकी जगह मैं भी हो सकता हूँ
अर्थात् वे सारी परिस्थितियाँ, संकट हमें अपने लगते हैं, क्योंकि हम सब उसी दौर से
गुजर रहे होते हैं। लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि हमें चार्ली 'मैं' की जगह
'हम' के ज्यादा करीब लगता है क्योंकि चाली हम सब में किसी न किसी रूप में व्यक्त है।
विशेष
:
1.
चार्ली की सर्वश्रेष्ठ विशेषता उसका हमारे साथ 'हम' में परिवर्तित होना है।
2.
भाषा सीधी, सरल, सजीवतापूर्ण व भावप्रेषणीय है।
10.
चैप्लिन का भारत में महत्त्व यह है कि वह 'अंग्रेजों जैसे' व्यक्तियों पर हँसने का
अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त,
आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों
से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने 'वज्रादपि कठोराणि' अथवा 'मृदूनि कुसुमादपि'
क्षण में दिखलाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा सुई-चुभे
गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।
कठिन-शब्दार्थ
:
गर्वोन्मत्त
= गर्व में उन्नत।
लबरेज
= ऊपर तक भरा हुआ।
प्रसंग
- प्रस्तुत अवतरण लेखक विष्णु खरे द्वारा लिखित 'चार्ली चैप्लिन यानि हम सब' पाठ से
लिया गया है। इसमें चार्ली के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की मुख्य विशेषताओं के बारे में
बताया गया है।
व्याख्या
-
लेखक चार्ली के विषय में बताते हुए कहते हैं कि चार्ली का महत्त्व भारत में इसलिए है
कि वह हमें 'अंग्रेजों जैसे' अर्थात् अंग्रेजों जैसे रहन-सहन वाले व्यक्ति पर हँसने
का मौका देता है। यहाँ अंग्रेजों पर हँसने का कारण सदियों तक उनके द्वारा दी गई सजा-पीडा
की याद भी दिलाता है। जब 'अंग्रेज जैसे लोगों के साथ चाली अभिनय करता है. परेशान करता
है तो हमें हँसी आती है।
शायद
यह दिल से निकली हँसी होती है कि इनके साथ ऐसा ही होना चाहिए। चार्ली जब स्वयं को गर्व
से भरा हुआ, आत्मविश्वास से भरपूर, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समद्धि की प्रतिमूर्ति,
दूसरों से ज्यादा श्रेष्ठ दिखलाता है तब वह वज्र से कठोर और फूलों से भी कोमल प्रतीत
होता है या उन क्षणों को हमें महसूस करवाता है।
तब
ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेजों ने जो अपनी गरिमा या उच्चवर्गीय सामन्तों ने जो अपना
भव्य सत्ता का दिखावा है वह भरे गुब्बारे में सुई चुभोने पर फुस्स हुआ जैसा होने वाला
है। कहने का आशय है कि उच्चवर्गीय सत्ता की शानो-शौकत व प्रभाव को चार्ली अपने अभिनय
द्वारा इतना हास्यास्पद बना देता है जिससे सारा प्रभाव बिखर जाता है।
विशेष
:
1.
चार्ली की अभिनय क्षमता एवं सामन्ती सत्ता पर चोट को व्यक्त किया गया है।
2.
भाषा सरल-सहज व प्रभावपूर्ण है। संस्कृत शब्दों की प्रस्तुति है।