12th आरोह 2. आलोक धन्वा (पतंग)

12th आरोह 2. आलोक धन्वा (पतंग)

कविता के साथ

प्रश्न 1. 'सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया' के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर : भादों मास में बारिश की तेज बौछारें पड़ती हैं। भादों के बीतते ही बरसात का मौसम समाप्त हो जाता है। तब आकाश एकदम निर्मल और स्वच्छ बन जाता है। शरद् ऋतु प्रारम्भ हो जाती है और तब सवेरा खरगोश की लाल भूरी आँखों के समान खिला-खिला तथा चमकीला लगता है। धरती पर धूल और रास्तों में कीचड़ नहीं रहता है। आसपास का सारा वातावरण चमकने लगता है। हवा भी शीतल और सुगन्धित बहने लगती है और फूल-पौधों पर तितलियाँ मँडराने लगती हैं। और पतंगबाजी का मौसम आ जाता है।

प्रश्न 2. सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली. कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?

उत्तर : कवि ने पतंग की ऐसी विशेषता बतलाने के लिए सबसे हल्की, सबसे रंगीन और सबसे पतली का प्रयोग किया है। इन विशेषणों के द्वारा कवि ने पतंग के प्रति कौतूहल, जिज्ञासा और आकर्षण का भाव व्यक्त किया है तथा बताना चाहा है कि पतंग अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ही आकाश में दूर तक ऊँची उड़ पाती है।

प्रश्न 3. बिम्ब स्पष्ट करें -

सबसे तेज बौछारें गयीं भादो गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए

घंटी बजाते हुए जोर-जोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए

कि पतंग ऊपर उठ सके।

उत्तर :

तेज बौछारें - गतिशील दृश्य बिम्ब।

सवेरा हुआ - स्थिर दृश्य-बिम्ब।

खरगोश की आँखों जैसा लाल - स्थिर चाक्षुष बिम्ब।

पुलों को पार करते हुए - गतिशील दृश्य बिम्ब।

साइकिल तेज चलाते हुए - गतिशील दृश्य बिम्ब।

घंटी बजाते हुए - श्रव्य बिम्ब।

चमकीले इशारों से - गतिशील चाक्षुष बिम्ब।

आकाश को मुलायम बनाते हुए - स्पर्श बिम्ब।

पतंग ऊपर उठ सके - दृश्य बिम्ब।

इस प्रकार पूरी कविता में बिम्बों की सुन्दर सृष्टि की गई है।

प्रश्न 4. 'जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास'-कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या सम्बन्ध बन सकता है? .

उत्तर : कपास का दूसरा नाम रुई है। कपास बहुत हल्की, कोमल, गद्देदार तथा चोट सहने में समर्थ होती है। बच्चे भी हल्के-फुल्के, कोमल, नाजुक और चोट सहने में सक्षम होते हैं। इसी कारण वे पतंग उड़ाते समय या खेलते समय खूब भाग-दौड़ कर पाते हैं। इसमें बच्चे 'उपमेय' तथा कपास 'उपमान' होने से बच्चों का कपास से 'उपमेय-उपमान' सम्बन्ध बनता है।

प्रश्न 5. 'पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं'-बच्चों का उड़ान से कैसा सम्बन्ध बनता है?

उत्तर : जब पतंगें उड़ती हैं, तो बच्चों का मन भी उनके साथ उड़ने लगता है। उनमें गतिशीलता आ जाती है और उमंग-उत्साह से भरकर वे छतों की दीवारों पर खतरनाक होने पर भी चढ़ जाते हैं। उनके शरीर में पतंगों के समान हल्कापन आ जाता है। इसी कारण कहा गया है कि पतंगों के साथ बच्चे भी उड़ते हैं।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए -

(क) छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।

(i) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?

उत्तर : बच्चे पतंग उड़ाते हुए जब छतों पर उछल-कूद करते हैं, दीवारों से छतों पर कूदते हैं, तो उनके पदचापों से लगातार जो मनोरम ध्वनि निकलती है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चे आसपास सब ओर मृदंग बजा रहे हैं।

(ii) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?

उत्तर : पतंग उड़ाते समय मन पतंगों के साथ उमंग-उत्साह से भरा रहता है। इस कारण उस समय छतों पर दौड़ने पर भी उसकी कठोरता का आभास नहीं होता है। मन पतंग के साथ उड़ता रहता है, इस कारण उन्हें छत कठोर नहीं लगती है।

(iii) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?

उत्तर : खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद हम और अधिक निडर हो जाते हैं। तब हम चुनौतियों को छोटी मानकर आत्मबल का परिचय देते हैं तथा साहसी व तेजस्वी होने का अनुभव करते हैं।

कविता के आसपास

प्रश्न 1. आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए।

उत्तर : आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर हमारे मन में खयाल आता है कि काश हम भी उनकी तरह आकाश में उड़ते अथवा पक्षी के रूप में पतंगों के मध्य में उड़कर आनन्द लेते। आकाश में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर हम भी पतंगें उड़ाने के लिए उत्साहित होते तथा पतंग उड़ाने वालों की खुशियों में सहयोगी बनते।

प्रश्न 2. 'रोमांचित शरीर का संगीत' का जीवन के लय से क्या सम्बन्ध है?

उत्तर : जब कोई व्यक्ति किसी काम में पूरी तरह निमग्न हो जाता है, तब उससे उत्पन्न खुशी और उत्साह रोमांच में बदल जाता है और उस रोमांच के कारण उस काम में एक लय आ जाती है। उस रोमांचित क्षण में वह लय एक संगीत की तरह अतीव आनन्ददायक लगती है। अतएव शरीर का संगीत रोमांच से सम्बन्ध रखता है।

प्रश्न 3. 'महज एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ' उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चर्चा करें।

उत्तर : पतंग उड़ाते समय बच्चे डोरी को हिलाते और खींचते-छोड़ते रहते हैं। इससे पतंग ऊँची उठती जाती है। बच्चे पतंग और ऊँची जावे, इस प्रयास में रहते हैं। इस क्रम में बच्चे छतों के किनारे तक आ जाते हैं तब पतंगों के उठने बैठने का क्रम बच्चों को अनजान खतरों से दूसरी तरफ खींच कर ले जाती है। इसी कारण वे अपने हाथ में डोरी को थामे रखकर अतीव उत्साहित होते हैं।

आपकी कविता

प्रश्न 1. हिन्दी साहित्य के विभिन्न कालों में तुलसी, जायसी, मतिराम, द्विजदेव, मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों ने भी शरद ऋतु का सुन्दर वर्णन किया है। आप उन्हें तलाश कर कक्षा में सुनाएँ और चर्चा करें कि 'पतंग' कविता में शरद् ऋतु वर्णन उनसे किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर :  (क) तुलसी द्वारा कृत एक रचना-

जानि सरद रितु खंजन आए।

पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।

(ख) जायसी द्वरा कृत रचना का एक भाग-

भइ निसि, धनि जस ससि परगसी । राजै-देखि भूमि फिर बसी॥

भइ कटकई सरद-ससि आवा । फेरि गगन रवि चाहै छावा॥

तुलसीदास जी ने शरत ऋतु में खंजन पक्षी का वर्णन किया है और जायसी ने शरद ऋतु के समय चाँद तथा रात का वर्णन किया है। पतंग कविता में जहाँ सुबह का वर्णन मिलता है, वहीं इस ऋतु में बच्चों का पतंग उड़ाने का दृश्य दृष्टिगोचर होता है। तीनों की कविता में अलग-अलग वर्णन हैं।

प्रश्न 2. आपके जीवन में शरद ऋतु क्या मायने रखती है?

उत्तर : मेरे जीवन में शरद ऋतु बहुत मायन रखती है। शरद ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तरह अधिक गर्मी नहीं पड़ती। भादों के समान अधिक बारिश नहीं होती। इस समय ठंड होती है, जो बहुत अच्छी लगती है। वातावरण सुंदर तथा मस्ती से भरा होता है। धूप का मज़ा भी इस ऋतु में उठाया जाता है। शरद ऋतु अपने साथ त्यौहारों की बहार लेकर आती है। दीपावली, दशहरा, नवरात्र, दुर्गा पूजा, भईया दूज, क्रिसमिस इत्यादि इस ऋतु में आने वाले प्रमुख भारतीय त्यौहार हैं। इस ऋतु में खाने के लिए विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियाँ उपलब्ध हो जाती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु उत्तम होती है क्योंकि इस ऋतु में पाचन शक्ति मज़बूत होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 'पतंग' शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य या मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : शरद ऋतु में धरती एवं आकाश स्वच्छ हो जाते हैं। ऐसे में पतंग उड़ाते बच्चों का उल्लास एवं उत्साह देखने लायक हो जाता है। इस तरह प्रस्तुत कविता का प्रतिपाद्य ऋतु-सौन्दर्य के साथ बाल-मन के उल्लास व उत्साह का चित्रण करना रहा है।

प्रश्न 2. 'पतंग' कविता में शरद् ऋतु की क्या विशेषता बतायी गई है?.

उत्तर :'पतंग' शीर्षक कविता में शरद् ऋतु की यह विशेषता बतायी गयी है कि इस ऋतु में आकाश स्वच्छ रहता है, धरती भी धुली हुई-सी रहती है। हवा मन्द-मन्द चलती है और धूप में ताजी चमक रहती है। यह ऋतु सुहावनी एवं आनन्ददायी लगती है।

प्रश्न 3. ऐसा कब प्रतीत होता है कि पृथ्वी बालकों के पैरों के समीप स्वयं ही घूमती चली आती है? 'पतंग' कविता के आधार पर समझाइए।

उत्तर : जब बच्चे अत्यधिक तेज गति से बेसुध होकर दौड़ते हुए पतंग उड़ाते हैं, तब प्रतीत होता है कि पृथ्वी स्वयं आगे बढ़कर बच्चों के पैरों के समीप पहुँचने का प्रयत्न कर रही है। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चे दौड़ नहीं रहे हैं, अपितु पृथ्वी स्वयं ही उनके कोमल चरणों की ओर चली आ रही है।

प्रश्न 4. 'जब वे दौड़ते हैं बेसुध-बच्चे बेसुधी में क्या करते हैं?

उत्तर : बच्चे पतंग उड़ाते समय छतों पर सब ओर दौड़ते रहते हैं। उन्हें तब भूख-प्यास, गर्मी-धूप आदि की जरा भी परवाह नहीं रहती है। उस समय वे बिना खतरों की परवाह किये छतों की दीवारों और मुंडेरों पर भी चढ़ जाते हैं तथा धरती की कठोरता की परवाह न करके दौड़ते-कूदते रहते हैं।

प्रश्न 5. 'तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया-यह किसके लिए कहा गया है?

उत्तर :आकाश में रंग-बिरंगी पतंगें तितलियों की तरह उड़ती हैं। पतंग उड़ाते समय बच्चे सीटियों एवं किलकारियों का स्वर व्यक्त करते हैं । पतंगों की रंग-बिरंगी छटा तथा आकाश में उनके उड़ने के मनोरम दृश्य को लेकर कवि ने ऐसा कहा है।

प्रश्न 6. "किशोर और युवा वर्ग समाज का मार्गदर्शक होता है।''-'पतंग' कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : किशोर और युवा-वर्ग अपनी धुन में मनचाहा काम करता है। वे निडर होकर खतरों एवं बाधाओं का सामना कर साहस और हिम्मत के सहारे जीवन में उन्नति करना चाहते हैं। ऐसे निर्भीक, साहसी कार्य-कलापों से ही समाज को प्रगति का मार्गदर्शन मिलता है।

प्रश्न 7. बच्चे और भी निडर कब हो जाते हैं?

उत्तर : पतंग उड़ाते समय बच्चे जब कभी छत की खतरनाक दीवारों एवं मुंडेरों से नीचे गिर जाते हैं और उस दुर्घटना में चोटग्रस्त होने से बच जाते हैं, तब वे पूरी तरह निडर हो जाते हैं और फिर दुगुने जोश से पतंगें उड़ाने लगते हैं।

प्रश्न 8. 'पतंगों के साथ-साथं वे भी उड़ रहे हैं'-पतंगों के साथ कौन उड़ रहे हैं और कैसे?

उत्तर : बच्चों का मन पतंगों को उड़ाते समय ऐसा तल्लीन रहता है कि वे अपना सारा ध्यान आकाश की ओर ही रखते हैं और उसी ओर देखते हुए दौड़ते-भागते रहते हैं। तब ऐसा लगता है कि आकाश में पतंगों के साथ-साथ बच्चे भी उड़ रहे हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. कविता 'पतंग' के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर : 'पतंग' एक लम्बी कविता है। यह कविता आलोक धन्वा के एकमात्र काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' से ली गई है। पतंग के माध्यम से कवि ने बच्चों की पतंग उड़ाने की उत्साही प्रवृत्ति को बताया है। बाल-क्रीड़ाओं एवं प्रकृति में परिवर्तित सुंदर बिम्बों का उपयोग किया गया है। पतंग उड़ाना बच्चों का बहुरंगी सपना है। आसमान में उड़ती पतंगें बच्चों की इच्छाओं की उड़ान को गति देती हैं साथ ही निडर, सावधान व खतरों से खेलने के लिए उत्साही बनाती हैं।

गिर कर उठने का हौंसला तथा तुरंत तेज गति से फिर से अपने पतंगों के काटने, उड़ाने, ढील देने जैसे लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु तत्पर करती हैं। बच्चों का उत्साह प्रकृति को अपना साथ देने के लिए मजबूर कर देता है इसीलिए कवि ने कहा भी कि "पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है, उनके बेचैन पैरों के पास।"

प्रश्न 2. कविता 'पतंग' में बिम्बों के द्वारा काव्य-सौन्दर्य प्रकट किया गया है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इस कविता में सुंदर बिम्बों के माध्यम से बच्चों की बाल-सुलभ चेष्टाओं का प्रभावी चित्रण हुआ है। काव्य में बिम्ब वह मानसिक चित्र है जो कल्पना द्वारा अनुभूत किया जाता है। यह इन्द्रियों पर आधारित होता है जिनकी से हम काव्य के मूर्त रूप की अनुभूति करते हैं। कविता में व्यक्त बिंब सौंदये निम्न है-शरद ऋतु की सुबह की तुलना खरगोश की लाल-भूरी आँखों से की गई है। शरद ऋतु को उत्साही बालक के समान बताया गया है।

तितलियों की नाजुक दुनिया का बिम्ब पतंगों की रंग-बिरंगी कोमल दुनिया से बाँधा गया है। 'पतंग' कविता में बिंबों की रंगीन दुनिया चारों तरफ व्याप्त है, यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, दिशाओं में मृदंग बजते हैं। पतंग डोर के सहारे तथा बच्चे अपने रंध्रों के सहारे उड़ रहे हैं। बच्चों के भागते कदम डाल के लचीले वेग के समान हैं। इस तरह दृश्य, चाक्षुष, स्थिर, गतिशील और श्रव्य बिम्ब प्रस्तुत हुए हैं।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1. कवि आलोक धन्वा के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : सातवें-आठवें दशक के कवि आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में ही गिनी-चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित कर ली थी। इनका जन्म सन् 1948 में मुंगेर (बिहार) में हुआ था। सन् 1972 से लेखन आरंभ करने के बाद उनका पहला और अभी तक का एकमात्र काव्य संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' सन् 1998 में प्रकाशित हुआ।

ये देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। इनकी आरम्भिक कविताएँ हिन्दी के अनेक गंभीर काव्य-प्रेमियों को जुबानी याद रही हैं। इतनी व्यापक ख्याति के बावजूद भी कवि आलोक धन्वा ने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया। इन्हें राहुल सम्मान, साहित्य सम्मान, भोजपुरी सम्मान तथा पहल सम्मान से पुरस्कृत किया गया है।

पतंग

आलोक धन्वा

कवि परिचय - सातवें - आठवें दशक के प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा का जन्म सन् 1948 ई. में मुंगेर (बिहार) में हुआ। इन्होंने छोटी अवस्था में अपनी कविताओं की रचना करके अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-73 में प्रकाशित इनकी आरम्भिक कविताएँ हिन्दी के गम्भीर काव्य-प्रेमियों को अतीव प्रभावशाली लगीं। अल्पकाल में इतनी ख्याति मिल जाने पर भी कवि आलोक धन्वा ने थोक के भाव में लेखन नहीं किया।

इनकी पहली कविता 'जनता का आदमी' सन् 1972 में प्रकाशित हुई, उसके बाद 'भागी हुई लड़कियाँ', 'ब्रूनो की बेटियाँ' रचनाओं से इन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इनका एकमात्र काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है सन् 1998 में प्रकाशित हुआ। कवि आलोक धन्वा पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। इन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन-मण्डलियों का संचालन किया। साथ ही कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में सहयोग किया है। इन्हें राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसा प्रसाद भोजपुरी सम्मान तथा पहल सम्मान प्राप्त हुआ है।

कविता-परिचय - पाठ्यपुस्तक में आलोक धन्वा की 'पतंग' कविता समाविष्ट है। 'पतंग' एक लम्बी कविता है, इसके तीसरे भाग को ही यहाँ संकलित किया गया है। इस कविता में शरद् ऋतु की चमक और बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुन्दर चित्रण किया गया है। वर्षा-ऋतु के धारासार मौसम के बाद शरद ऋतु के आने से धरती पर चमकीली धूप छा जाती है और प्रकृति में परिवर्तन आने से सारा परिवेश सुहावना बन जाता है। ऐसे मनोरम परिवेश में बच्चे पतंग उड़ाने लगते हैं। रंग बिरंगी पतंगों के साथ बच्चों की उमंगें भी आसमान को छूने लगती हैं और सब ओर बच्चों की किलकारियाँ सुनाई देती हैं।

कविता में पतंग उड़ाने को लेकर कवि ने अनेक बिम्ब उपस्थित किये हैं। बच्चे छतों पर दौड़ते हैं, रंग-बिरंगी पतंगें तितलियों की तरह उड़ती हैं। बच्चों की भाग-दौड़ से दिशाएँ मानो मृदंग की तरह बजने लगती हैं। बच्चे गिरते-सँभलते रहते हैं, मानो पतंगों की ऊँचाइयाँ उन्हें गिरने से रोक लेती हैं। इस तरह की पतंगबाजी.से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे बार-बार नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लेकर मानो स्वयं भी हौसलों की उड़ान भरने लग जाते हैं।

सप्रसंग व्याख्याएँ

पतंग

सबसे तेज बौछारें गयीं भादों गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए

घंटी बजाते हुए जोर-जोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झंड को

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए

कि पतंग ऊपर उठ सके -

कठिन-शब्दार्थ :

शरद = सर्दी ऋत।

भादों = भाद्रपद हिन्दी महीना।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि आलोक धन्वा के काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' की कविता 'पतंग' से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रकृति की मनोरम छटा तथा बाल-मन की उमंगों का वर्णन किया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि प्रकृति के निरन्तर परिवर्तन के कारण वर्षा ऋतु अर्थात् भादों का महीना बीत गया है। तन-मन को भिगोने वाली बारिश की बौछारें समाप्त हो गई हैं। खरगोश की लाल आँखों के समान, लाल सवेरा अपनी चमक के साथ उदित हो गया है। सर्दी की ऋतु धूप की तेज चमकती हुई साइकिल को तेजी से चलाते हुए पुलों को पार करते हुए आ गयी है।

यहाँ शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए कवि कहते हैं कि शरद ऋतु अपनी चमकती साइकिल की घंटी बजाकर पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को चमकीले सुंदर इशारे कर-करके बुला रही है। कहने का भाव यह है कि शरद ऋतु आते ही बच्चे अपनी पतंग लेकर उड़ाने दौड़ पड़ते हैं। शरद् ऋतु ने अपने आगमन से आकाश को इतना कोमल और हल्का बना दिया है ताकि बच्चों की पतंगें आसानी से उपर की ओर उठ सकें।

विशेष :

1. कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन प्रस्तुत किया है कि शरद ऋतु आते ही आकाश साफ चमकीला और कोमल हो जाता है।

2. शरद ऋतु का मानवीकरण, तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग, दृश्य बिम्ब की प्रस्तुति शब्दावली को कोमल व सहज बना रही है।

दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके -

दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके

बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके -

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और

तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया।

कठिन-शब्दार्थ :

कमानी = बाँस की पतली लकड़ी जिसे पतंग बनाने में काम लिया जाता है।

किलकारी = बच्चों के हंसने की तेज आवाज।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि आलोक धन्वा द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' की कविता 'पतंग' से लिया गया है। पतंग की विशेषताओं को रंग-बिरंगी तितलियों के समान बताया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि शरद् ऋतु के आने से उत्साह, उमंग व खुशियों का माहौल बन गया है। सर्दी के मौसम में धूल रहित आकाश साफ और चमकीला दिखाई देता है ताकि पतंगों को उड़ने में आसानी रहे। दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज, पतंग उड़ सके, वह पतंग जो दुनिया के सबसे पतले कागज से बनती है। पतंग के साथ-साथ पतली लकड़ी की कमानी भी उड़ सके।

पतंगों की रंगबिरंगी दुनिया को देख कर कवि कल्पना करते हैं कि मानो नाजुक, कोमल व हलकी तितलियाँ आकाश में स्वच्छन्द विचरण कर रही हों। पतंगों को उड़ते देख बच्चों का उत्साह उनकी बजाई जा रही सीटियों व खिलखिलाने की आवाज से स्पष्ट प्रतीत हो रहा था। कहने का भाव है कि. अपनी पतंगों को आकाश छूते देख बच्चे अत्यधिक प्रसन्न थे। उस खुशी को वे आवाजें निकाल कर व्यक्त कर रहे थे।

विशेष :

1. कवि ने पतंगों से सजे सुन्दर आकाश की तितलियों के रंगीन संसार से तुलना की है।

2. सुन्दर भाव-वर्णन, उपमा अलंकार तथा सरल-सहज शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास

जब वे दौड़ते हैं बेसुध

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं

डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर

कठिन-शब्दार्थ -

बेसुध = जिन्हें कोई होश या कोई खबर नहीं हो।

मृदंग = वाद्य-यंत्र जो हाथों की थाप से बजाए जाते हैं।

पेंग = झूला झूलना।

लचीला = गति।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि आलोक धन्वा द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' की कविता 'पतंग' से लिया गया है। बच्चों का कोमल व लचीला होना तथा पतंग उड़ाते समय किसी बात का होश न रखना, का कवि ने वर्णन किया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि बच्चे जन्म के साथ ही अर्थात जब वे जन्म लेते हैं तभी से उनका शरीर कोमल रुई के समान हल्का होता है। उनकी कोमलता का स्पर्श करने के लिए स्वयं पृथ्वी भी उनके व्याकुल पैरों के पास आती है।

जब वे बेसुध होकर आस-पास की स्थिति को जाने बिना दौड़ते हैं, तब उनके पैरों के स्पर्श से कठोर छतें भी कोमल बन जाती हैं। उनके भागते पैरों की आवाज से प्रतीत होता है कि चारों दिशाएँ मृदंग की भाँति मधुर संगीत निकाल रही हों। वे पतंग उड़ाते हुए झूले की भाँति पेंग भरते हुए, आगे-पीछे होते हुए दौड़ते हैं। उस समय बच्चों का शरीर पेड़ की डालियों की तरह लचीलापन लिये हुए रहता है। झुकना, मुड़ना, दौड़ना, कूदना सारी क्रियाएँ वे शरीर के लचीलेपन के कारण ही कर पाते हैं।

विशेष :

1. कवि ने बच्चों की चेष्टाओं का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है।

2. मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा अलंकारों का प्रयोग तथा खड़ी बोली युक्त मिश्रित शब्दावली है।

छतों के खतरनाक किनारों तक

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें

सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं

अपने रंधों के सहारे

कठिन-शब्दार्थ :

किनारे = छत की मुंडेर।

रोमांच = खतरों से उत्पन्न उत्साह।

रंध्र = त्वचा पर बने छोटे-छोटे छिद्र जिनसे पसीना निकलता है।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि आलोकं धन्वा द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' की कविता 'पतंग' . से लिया गया है। इसमें कवि ने पतंग उड़ाते समय बच्चों के सामने आती छतों की खतरनाक स्थिति को बताया है।

व्याख्या - कवि बताते हैं कि पतंग उड़ाते समय बच्चे छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं, जहाँ अगर ध्यान न दिया जाये तो गिरने जैसी दुर्घटना का डर बना रहता है । यहाँ उन्हें कोई बचाने के लिए तेजी से प्रस्तुत नहीं हो सकता है। केवल गिरने के भय से उत्पन्न हुआ उत्साह ही रोमांच बन कर उन्हें बचाता है।

इस समय उनका ध्यान पतंग की डोर, उसकी ऊँचाई और उड़ान पर ही रहता है। जिस प्रकार डोर के सहारे 'पतंग की ऊँचाई निर्भर रहती है उसी प्रकार उसी धड़कती पतंग की ऊँचाई उन बच्चों को भी संभाल लेती है। उन्हें देख कर लगता है कि वे भी अपने रंध्रों के सहारे पतंग के साथ-साथ उड़ रहे हैं।

विशेष : 

1. कवि ने पतंग उड़ाते समय प्रस्तुत होती खतरनाक स्थितियों से अवगत कराया तथा बच्चे भी रंध्रों के सहारे उड़ते हैं, दृश्य उपस्थित किया है।

2. खड़ी बोली में भाव अनुकूल है। पतंग को कल्पना रूप में चित्रित किया गया है।

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं

पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है

उनके बेचैन पैरों के पास।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि आलोक धन्वा द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' की कविता 'पतंग' से लिया गया है। पतंग उड़ाते समय बच्चों का उत्साह व खतरों से बचने की निडरता को प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि आकाश में अपनी उड़ती पतंगों को देखकर बच्चे अत्यधिक उत्साही हैं मानो अपने रंध्रों के सहारे वे भी उड़ रहे हों। कभी-कभार वे छतों के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं। परंतु अपने लचीले शरीर के कारण बच भी जाते हैं। बचने के कारण उनके मन का बचा-खुचा भय भी समाप्त हो जाता है। फिर वे भयरहित होकर निडरता के साथ चमकते सूर्य के सामने फिर से आते हैं। उनकी गति और उत्साह और भी तेज हो जाता है। ऐसा लगता है मानो पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई बच्चों के भागते तेज कदमों के समीप स्वयं ही आ रही हो।

विशेष :

1. बच्चे खतरों को झेल कर साहसी बनते हैं तथा दुगुने मनोवेग से पुनः अपना कार्य शुरू कर देते हैं, इस भाव को प्रस्तुत किया गया है। 

2. मानवीकरण, अनुप्रास, उत्प्रेरक्षा अलंकारों का प्रयोग तथा मुक्त छन्द की प्रस्तुति है। भाषा में लाक्षणिकता व बिम्ब प्रयोग है।

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