12th आरोह 3. कुँवर नारायण (कविता के बहाने, बात सीधी थी पर)

12th आरोह 3. कुँवर नारायण (कविता के बहाने, बात सीधी थी पर)

12th आरोह 3. कुँवर नारायण (कविता के बहाने, बात सीधी थी पर)

कविता के साथ

प्रश्न 1. इस कविता के बहाने बताएँ कि 'सब घर एक कर देने के माने क्या हैं?

उत्तर : 'सब घर एक कर देने' का आशय है कि आपसी भेदभाव, अलगाव-बोध तथा आस-पड़ोस के अन्तर को समाप्त करके सभी के प्रति अपनत्व की भावना रखना और वैसा ही आचरण करना। इस तरह का व्यवहार खासकर बच्चे करते हैं। बच्चे खेल में अपने-पराये का भेद भूल जाते हैं, सभी घरों को अपना घर.जैसा मानते हैं। उसी तरह कवि अपनी कविता में सारे मानव-समाज को समान मानकर अपनी बात कहता है। कविता में शब्दों के खेल के साथ मानवीय भावना जुड़ी होती है, जिसमें सभी प्रकार की सीमाएँ स्वयं टूट जाती हैं।

प्रश्न 2. 'उड़ने' और 'खिलने' का कविता से क्या सम्बन्ध बनता है?

उत्तर : तितलियाँ उड़ती हैं और फूल खिलते हैं। इसी प्रकार कवि भी कविता-रचना में कल्पनाओं-भावनाओं की उड़ान भरता है। उसकी काल्पनिक उड़ान से कविता फूलों की तरह खिलती एवं विकसित होती है। अतः 'उड़ने' और 'खिलने' से कविता का मनोगत उल्लास से अनुभूतिमय सम्बन्ध है।

प्रश्न 3. कविता और बच्चे को समानान्तर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर : बच्चों के खेल में कौतुक की कोई सीमा नहीं रहती है। कविता में भी स्वच्छन्द शाब्दी-क्रीड़ा रहती है। बच्चे आनन्द-प्राप्ति के लिए खेलते हैं, वे खेल में अपने-पराये का भेदभाव भूल जाते हैं तथा खेल-खेल में उनका संसार विशाल हो जाता है। कवि भी कविता-रचना करते समय सांसारिक सीमा को त्यागकर आनन्द भरता है तथा कविता के बहाने सबको खुशी देना चाहता है। इसी कारण कविता और बच्चों को समानान्तर रखा गया है।

प्रश्न 4. कविता के सन्दर्भ में 'बिना मुरझाये महकने के माने क्या होते हैं?

उत्तर : फूल तो खिलकर कुछ समय बाद मुरझा जाते हैं, परन्तु कविता कभी नहीं मुरझाती है, वह सदा खिली रहती है तथा अपनी भावगत सुगन्ध को बिखेरती रहती है। वस्तुतः कविता अनन्त काल तक जीवित रहकर आनन्द का प्रसार कर सकती है, इस कारण उसकी सुगन्ध सदा बनी रहती है।

प्रश्न 5. 'भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है?

उत्तर : इसका अभिप्राय है. भाषा का सरलता, सादगी, सहजता एवं भावानुरूपता से प्रयोग करना । कविता में या लेखन में शब्दों का प्रयोग भावों के अनुरूप होना चाहिए, भाषा पूर्णतया सुबोध एवं सम्प्रेष्य होनी चाहिए।

प्रश्न 6. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किन्तु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे?

उत्तर : बात और भाषा का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। मानव द्वारा मन में उत्पन्न विचारों और भावों को भाषा या शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता एवं अनुभव करता है, वह उसे उसी रूप में सहजता से कह देता है। परन्तु कभी-कभी व्यक्ति अपनी बात को कलात्मक ढंग से, अलंकृत शब्दावली के द्वारा तथा सजा-सँवार कर कहना चाहता है।

तब वह भाषा के मोह में पड़ जाता है और ऐसे शब्द प्रयुक्त करने लगता है, जो कृत्रिम हो, भावानुकूल न हो तथा क्लिष्ट भी हो। इस तरह के चक्कर में पड़कर सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है जिससे उसकी सरल सहज अभिव्यक्ति तथा सम्प्रेष्यता बाधित होती है। ऐसी भाषा कठिन शब्द-चमत्कार बनकर रह जाती है। रचना-कर्म में इसे दोष ही मानते हैं।

प्रश्न 7. बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिम्बों/मुहावरों से मिलान करें -

बिंब / मुहावरा

विशेषता

(क) बात की चूड़ी मर जाना

कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना

(ख) बात की पेंच खोलना

बात का पकड़ में न आना

(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना

बात का प्रभावहीन हो जाना

(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना

बात में कसावट का न होना

(ङ) बात का बन जाना

बात को सहज और स्पष्ट करना

उत्तर :

बिंब / मुहावरा

विशेषता

(क) बात की चूड़ी मर जाना

बात का प्रभावहीन हो जाना

(ख) बात की पेंच खोलना

बात को सहज और स्पष्ट करना

(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना

बात का पकड़ में न आना

(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना

बात में कसावट का न होना

(ङ) बात का बन जाना

कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना


बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 'कविता के बहाने' कविता के लेखक कौन हैं ?

(अ) सुदामा पांडे

(ब) कुँवर नारायण

(स) सूर्यकांत त्रिपाठी

(द) मुक्तिबोध

 

2. बच्चे और कविता क्या जानते हैं ?

(अ) भेदों के बंधन से ऊपर उठकर एक होना

(ब) रचनात्मक खेल खेलना

(स) परस्पर बंधन में होना

(द) इनमें से कोई नहीं

 

3. कविता एक बार विकसित होकर क्या हो जाती है ?

(अ) अमर व अमिट हो जाती है

(ब) नष्ट हो जाती है

(स) संपूर्णता को प्राप्त कर लेती है

(द) इनमें से कोई नहीं

 

4. कवि के अनुसार कविता और चिड़िया की उड़ान में क्या भिन्नता है ?

(अ) चिड़िया की उड़ान की सीमा निश्चित है, जबकि कविता की कोई सीमा नहीं है

(ब) कविता की उड़ान की सीमा निश्चित है, जबकि चिड़िया की उड़ान की कोई सीमा नहीं है

(स) कविता मन के भावों में उड़ती है और चिड़िया आसमान में

(द) इनमें से कोई नहीं

 

5. कविता में बच्चों के खेल की तरह होती है-

(अ) विकास की असीम संभावनाएँ

(ब) अर्थ की व्यापक संभावनाएँ

(स) रचनात्मक ऊर्जा

(द) उपरोक्त सभी

 

6. कविता की उड़ान कौन नहीं जान सकता ?

(अ) चिड़िया

(ब) कवि

(स) स्वयं कविता

(द) पंख

 

7. कविता किसके खेल की तरह होती है ?

(अ) फूलों के

(स) युवाओं के

(ब) बच्चों के

(द) इनमें से कोई नहीं

 

8. कवि के अनुसार कविता की समता कौन नहीं कर सकते ?

(अ) कवि

(ब) फूल

(स) पक्षी

(द) मनुष्य

 

9. किसकी उड़ान सीमा या बंधनों से मुक्त है ?

(अ) चिड़िया की

(ब) कविता की

(स) राही की

(द) पुष्प की

 

10. 'बिना मुरझाए महकने के माने फूल क्या जाने' पंक्ति से क्या आशय है?

(अ) कविता के खिलने के मर्म को फूल भी नहीं जान सकता

(ब) कविता हर समय फूल की तरह खिलती रहती है।

(स) कविता फूल से अधिक समय तक खिली रहती है।

(द) कविता मुरझाती नहीं है

 

11. 'यह घर, वह घर' में कौन-सा अलंकार है ?

(अ) श्लेष

(ब) उपमा

(स) यमक

(द) अनुप्रास

 

12. कविता के अनुसार पंखों की समानता किससे नहीं की जा सकती है ?

(अ) पुष्प की पंखुड़ियों से

(ब) चिड़िया के पंखों से

(स) (अ) व (ब) दोनों

(द) फूलों से

 

13. कवि के अनुसार, कविता का खिलना किसकी तरह है ?

(अ) चिड़िया के उड़ने की तरह

(ब) मुरझाए हुए फूलों की तरह

(स) बच्चे की मुस्कान की तरह

(द) फूलों के खिलने की तरह

 

14. कविता की विशेषता है-

(अ) वह अनंत जीवन व आनंद युक्त है

(ब) वह फूलों की भाँति मुरझाती नहीं

(स) वह नए अर्थग्रहण करके विकासशील व जीवित बनी रहती है

(द) उपरोक्त सभी

 

15. कविता के अनुसार किसके पंख लगे होते हैं?

(अ) कवि की असीम कल्पना के

(ब) चिड़िया के

(स) बाज के

(द) इनमें से कोई नहीं

 

16. चिड़िया की उड़ान कैसी होती है ?

(अ) अपार

(ब) असीमित

(स) सीमित

(द) अनंत

 

17. "कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने" पंक्ति का आशय क्या है ?

(अ) कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान से कम होती है।

(ब) कविता की उड़ान असीमित है, इसे चिड़िया नहीं समझ पाती है

(स) कविता और चिड़िया दोनों की उड़ान अनन्त है

(द) कविता की उड़ान से चिड़िया भली-भाँति परिचित है

 

18. कविता के मर्म की तुलना कवि ने किससे की है ?

(अ) घर से

(ब) फूल से

(स) पक्षी से

(द) आवेश से

 

19. कवि ने फूल और कविता के खिलने में क्या अंतर बताया है ?

(अ) फूल क्षणिक होता है जबकि कविता अमर होती है

(ब) फूल में सुगंध होती है जबकि कविता में नहीं होती है।

(स) फूल में सौंदर्य होता है जबकि कविता में क्षणिक सौंदर्य होता है

(द) फूल और कविता दोनों में कोई समानता नहीं है

 

20. कविता के खिलने का मर्म कौन नहीं जान सकता ?

(अ) कवि

(ब) कलाकार

(स) सामान्य मनुष्य

(द) फूल

 

21. कवि के अनुसार फूल कविता की समता क्यों नहीं कर सकते हैं?

(अ) क्योंकि कविता अनंत जीवन एवं आनंद से युक्त होती है।

(ब) क्योंकि कविता से फूल अधिक समर्थवान है

(स) क्योंकि फूल का सानी कोई नहीं है

(द) क्योंकि फूल प्रकृति का अनुपम उपहार है

 

22. कविता को फूल के बहाने से किससे जोड़ा गया है ?

(अ) खिलने की प्रक्रिया से

(ब) मुरझाने की प्रक्रिया से

(स) जड़ हो जाने की प्रक्रिया से

(द) संवेदनशील हो जाने की प्रक्रिया से

 

23. 'कविता के बहाने ' कविता में कवि ने किसके अस्तित्व से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं?

(अ) कविता के

(ब) चिड़िया के

(स) उड़ान के

(द) यात्रा के

 

24. 'कविता के बहाने' कविता में कवि किसकी यात्रा के बारे में बता रहा है?

(अ) स्वयं की

(ब) कविता की

(स) सैनिकों की

(द) भाषा की

 

25. कवि ने कविता को किसकी उड़ान माना है ?

(अ) कल्पना की

(ब) शब्द की

(स) सीमाओं की

(द) प्रश्नों की

कविता के आसपास

 बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।

उत्तर : बात का धनी- सुरेन्द्र बात का धनी है, इसलिए मैं उसका विश्वास करता हूँ।

बात गाँठ में बाँधना- बेटा, तुम मेरी बात गाँठ में बाँध लोगे, तो जिन्दगी भर खुश रहोगे।

बातें बनाना- कुछ बातूनी लोग बातें बनाने में चालाक होते हैं।

बात बिगड़ जाना- तुम्हारे गुस्से के कारण आज बात बिगड़ गई।

बातों ही बातों में- बातों ही बातों में लुटेरों ने उसका सामान पार कर लिया।

व्याख्या करें

  जोर जबरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि हमें बोलते समय भाषा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मात्र अपनी बात कहने के लिए कुछ भी नहीं कहना चाहिए। भाषा में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग करने से बात का महत्व समाप्त हो जाता है। इस तरह बात बिगड़ जाती है। एक पेंच को कसते समय हमारे द्वारा की गई ज़बरदस्ती पेंच की चूड़ी को खराब कर देता है, वैसे ही बात करते समय भाषा में किए गए अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बात का सही अर्थ नहीं निकल पाता है। अपनी बात को समझाने के लिए हमें उचित शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए। इस तरह हमारी बात प्रभावी बनती है और लोगों को समझ में आती है। लेकिन ज़बरदस्ती भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में सही बात भी स्पष्ट नहीं हो पाती है।

चर्चा कीजिए

   आधुनिक युग में कविता की सम्भावनाओं पर चर्चा कीजिए।

उत्तर : आधुनिक युग में कविता का स्वरूप काफी प्रभावशाली बन गया है। आज कविता की विषय-वस्तु काफी व्यापक हो गई है। उसमें भावगत तथा शिल्पगत काफी परिवर्तन आने लगे हैं। जीवन के यथार्थ से जुड़ी कविताओं में अभिव्यक्ति की सहजता एवं प्रखरता बढ़ रही है। इसलिए आधुनिक युग में कविता की अनेक सम्भावनाएँ दिखाई दे रही हैं तथा इसके विकास की गति बढ़ रही है।

   चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कंथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें।

उत्तर :

(i) चूड़ी, कील, पेंच आदि उपमानों के प्रयोग से कथ्य कुछ कठिन हो गया है। कवियों को ऐसी उपमान योजना नहीं अपनानी चाहिए।

(ii) कविता-रचना में भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेष्य होना ही चाहिए, परन्तु इसके लिए सरल-सुबोध बिम्बों और उपमानों का प्रयोग करना उचित रहता है। इसलिए ऐसे बिम्बों और उपमानों को कविता में स्थान देना चाहिए, जो क्लिष्ट कल्पना एवं शब्दगत चमत्कार से रहित हों, तभी कविता आकर्षक बन सकती है।

आपसदारी

प्रश्न 1. सुंदर है सुमन, विहग सुंदर

             मानव तुम सबसे सुंदरतम।

पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुन्दर और समर्थ बताया गया है। कविता के बहाने' कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिन्दुओं की तलाश करें।

उत्तर : 'निम्नलिखित बिंदु दी गई कविता के आशय को अभिव्यक्त करते हैं-

(क) कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने?

(ख) बिना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने?

(ग) सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने!

प्रश्न 2. प्रतापनारायण मिश्र का निबंध 'बात' और नागार्जुन की कविता 'बातें' ढूँढ़ कर पढ़ें।

उत्तर :

प्रतापनारायण मिश्र का निबंध 'बात'

यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते। किंतु इन दोनों विषयों में हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। इससे केवल उसी बात के ऊपर दो चार बात लिखते हैं जो हमारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्थ भाव प्रकाशित करती रहती है। सच पूछिए तो इस बात की भी क्या बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफुल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं इसी से अन्य नभचारियों की अपेक्षा आद्रित समझे जाते हैं। फिर कौन न मान लेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को सब लोग निराकार कहते हैं तौ भी इसका संबंध उसके साथ लगाए रहते हैं। वेद ईश्वर का बचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड आफ गाड है यह बचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं सो प्रत्यक्ष में मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलंबियों ने "बिन बानी वक्त बड़ योगी" वाली बात मान रक्खी है। यदि कोई न माने तो लाखों बातें बना के मनाने पर कटिबद्ध रहते हैं।

यहाँ तक कि प्रेम सिद्धांती लोग निरवयव नाम से मुँह बिचकावैंगे। 'अपाणिपादो जवनो गृहीता' इत्यादि पर हठ करने वाले को यह कहके बात में उड़ावेंगे कि "हम लँगड़े लूले ईश्वर को नहीं मान सकते। हमारा प्यारा तो कोटि काम सुंदर श्याम बरण विशिष्ट है।" निराकार शब्द का अर्थ श्री शालिग्राम शिला है जो उसकी स्यामता को द्योतन करती है अथवा योगाभ्यास का आरंभ करने वाले कों आँखें मूँदने पर जो कुछ पहिले दिखाई देता है वह निराकार अर्थात् बिलकुल काला रंग है। सिद्धांत यह कि रंग रूप रहित को सब रंग रंजित एवं अनेक रूप सहित ठहरावेंगे किंतु कानों अथवा प्रानों वा दोनों को प्रेम रस से सिंचित करने वाली उसकी मधुर मनोहर बातों के मजे से अपने को बंचित न रहने देंगे।

जब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो "गात माहिं बात करामात है।" नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक ऐसी पाई जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जाने वाली अथच लोक परलोक में सब बात बनाने वाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइए तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइएगा।

बड़ी बात, छोटी बात, , सीधी बात, टेढ़ी बात, खरी बात, खोटी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बात ही तो है? बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति बैर, सुख दुःख श्रद्धा घृणा, उत्साह अनुत्साहादि जितनी उत्तमता और सहजतया बात के द्वारा विदित हो सकते हैं दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं। घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है।

हमारे तुम्हारे भी सभी काम बात पर निर्भर करते हैं - "बातहि हाथी पाइए, बातहि हाथी पाँव।" बात ही से पराए अपने और अपने पनाए हो जाते हैं । मक्खीचूस उदार तथा उदार स्वल्पव्ययी, कापुरुष युद्धोत्साही एवं युद्धप्रिय शांतिशील, कुमार्गी सुपथगामी अथच सुपंथी कुराही इत्यादि बन जाते हैं। बात का तत्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात बढ़ सकता भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने समझाने में व्यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनंद के आगे सारे संसार तुच्छ जँचता है। बालाकों की तोतली बातें, सुंदरियों की मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशाली बातें जिसके जी को और का और न कर दें उसे पशु नहीं पाषाण खंड कहना चाहिए। क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के 'तू तू' 'पूसी पूसी' इत्यादि बातें क दो तो भावार्थ समझ के यथा सामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान की बात का असर न हो ।

बात वह आदणीय है कि भलेमानस बात और बाप एक समझते हैं। हाथी के दाँत की भाँति उनके मुख से एक बार कोई बात निकल आने पर फिर कदापि नहीं पलट सकती। हमारे परम पूजनीय आर्यगण अपनी बात का इतना पक्ष करते थे कि "तन तिय तनय धाम धन धरनी । सत्यसंध कहँ तून सम बरनी" । अथच "प्रानन ते सुत अधिक है सुत ते अधिक परान। ते दूनौ दसरथ तजे वचन न दीन्हों जान ।" इत्यादि उनकी अक्षरसंवद्धा कीर्ति सदा संसार पट्टिका पर सोने के अक्षरों से लिखी रहेगी। पर आजकल के बहुतेरे भारत कुपुत्रों ने यह ढंग पकड़ रक्खा है कि 'मर्द की जबान (बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता ही फिरता रहता है।'

आज और बात है कल ही स्वार्थांधता के बंश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलंब की संभावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग ढंग परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है, पर कब? जात्योपकार, देशोद्धार, प्रेम प्रचार आदि के समय, न कि पापी पेट के लिए। एक हम लोग हैं जिन्हें आर्यकुलरत्नों के अनुगमन की सामर्थ्य नहीं है। किंतु हिंदुस्तानियों के नाम पर कलंक लगाने वालों के भी सहमार्गी बनने में घिन लगती है।

इससे यह रीति अंगीकार कर रखी है कि चाहे कोई बड़ा बतकहा अर्थात् बातूनी कहै चाहै यह समझे कि बात कहने का भी शउर नहीं है किंतु अपनी मति अनुसार ऐसी बातें बनाते रहना चाहिए जिनमें कोई न कोई, किसी न किसी के वास्तविक हित की बात निकलती रहे। पर खेद है कि हमारी बातें सुनने वाले उँगलियों ही पर गिनने भर को हैं। इससे "बात बात में वात" निकालने का उत्साह नहीं होता। अपने जी को 'क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने इत्यादि विदग्धालापों की लेखनी से निकली हुई बातें सुना के कुछ फुसला लेते हैं और बिन बात की बात को बात का बतंगड़ समझ के बहुत बात बढ़ाने से हाथ समेट लेना ही समझते हैं कि अच्छी बात है।

नागार्जुन की कविता 'बातें'

बातें–

हँसी में धुली हुईं

सौजन्य चंदन में बसी हुई

बातें–

चितवन में घुली हुईं

व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं

बातें–

उसाँस में झुलसीं

रोष की आँच में तली हुईं

बातें–

चुहल में हुलसीं

नेह–साँचे में ढली हुईं

बातें–

विष की फुहार–सी

बातें–

अमृत की धार–सी

बातें–

मौत की काली डोर–सी

बातें–

जीवन की दूधिया हिलोर–सी

बातें–

अचूक वरदान–सी

बातें–

घृणित नाबदान–सी

बातें–

फलप्रसू, सुशोभन, फल–सी

बातें–

अमंगल विष–गर्भ शूल–सी

बातें–

क्य करूँ मैं इनका?

मान लूँ कैसे इन्हें तिनका?

बातें–

यही अपनी पूंजी¸ यही अपने औज़ार

यही अपने साधन¸ यही अपने हथियार

बातें–

साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा

बना लूँ वाहन इन्हें घुटन का, घिन का?

क्या करूँ मैं इनका?

बातें–

साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा

स्तुति करूँ रात की, जिक्र न करूँ दिन का?

क्या करूँ मैं इनका?

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1."कविता एक खेल है बच्चों के बहाने''कविता के बहाने' पाठ में कविता और बच्चे मानव-समाज को क्या संदेश देते हैं?

उत्तर : आज के युग में यान्त्रिकता बढ़ गई है। कविता हमें यान्त्रिकता के दबाव से निकालने तथा उल्लास के साथ आगे बढ़ने का सन्देश देती है। बच्चों के सपने एवं खेल सदा आनन्ददायी होते हैं जो हमें भी सुनहरे भविष्य का सन्देश देते हैं उसी प्रकार कविता का भी यही कार्य है।

प्रश्न 2. 'कविता के बहाने' शीर्षक कविता का कथ्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कविता चिड़िया की उड़ान और फूलों के विकास से भी अधिक काल्पनिक उड़ान और भावात्मक सुगन्ध वाली होती है। कविता बच्चों के खेल जैसी आनन्ददायी होती है, लेकिन आज के युग में यान्त्रिकता के दबाव में कविता के अस्तित्व पर संकट आ रहा है।

प्रश्न 3. 'कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने'-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :कविता और चिड़िया दोनों की उड़ान काफी ऊँची होती है, परन्तु चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, जबकि कविता की कल्पनानभतियों की उडान असीमित होती है। अतः चिड़िया कविता की उड़ान का अर्थ नहीं समझ सकती है।

प्रश्न 4. 'कविता एक खिलना है फूलों के बहाने' इसका अभिप्राय क्या है?

उत्तर :जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुन्दरता, सुगन्ध एवं पराग को फैलाकर सभी को आनन्दित-उल्लसित करते हैं, उसी प्रकार कविता भी कल्पनाओं एवं कोमल अनुभूतियों से सभी को आनन्दित कर सन्देश रूपी सुगन्ध फैलाती है।

प्रश्न 5. 'कविता के बहाने' शीर्षक कविता में बच्चों और कविता की क्या समानता बतायी गई है?

उत्तर : बच्चों में भेदभाव की भावना नहीं होती है। वे अपने-पराये का अन्तर भूलकर खेल खेलते हैं तथा स्वयं आनन्दित होकर दूसरों को भी प्रसन्न करते हैं। इसी प्रकार कविता भी अपना-पराया भूलकर, मानवीय भावों की अभिव्यक्ति से सभी को आनन्द देती है।

प्रश्न 6. 'कविता एक खेल है बच्चों के बहाने'-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : बच्चों को खेल से आनन्द मिलता है, वे अपने-पराये का भेदभाव भूलकर खेल खेलते हैं। कवि भी खेल के समान आनन्ददायी होती है। उसमें काल्पनिक भाव-सौन्दर्य का चित्रण भेदभावरहित और अतीव आनन्ददायी होता है।

प्रश्न 7. 'सब घर एक कर देने के माने'-इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?

उत्तर : कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि बच्चे खेल में अपने-पराये घर का भेद नहीं करते हैं, वे सभी घरों में जाकर साथियों के साथ खेलकर आनन्दित होते हैं। उसी प्रकार कविता भी समानता का व्यवहार कर सभी को आनन्दित करती है।

प्रश्न 8. अच्छी बात कहने या अच्छी कविता-रचना के लिए क्या जरूरी बताया गया है?

उत्तर :इसके लिए यह जरूरी है कि सही शब्दों और सरल भाषा का प्रयोग किया जाये। चमत्कार के लिए शब्दों को जटिल एवं क्लिष्ट न बनाया जावे और कथ्य को सहजता से सरल भाषा में व्यक्त किया जावे।

प्रश्न 9. 'जरा टेढ़ी फँस गई'-सीधी बात कहाँ पर फँस गई?

उत्तर : कवि बताता है कि बात सीधी-सरल थी, परन्तु उसे व्यक्त करने के लिए जो भाषा या शब्दावली प्रयुक्त की गई, वह जटिल और चमत्कारपर्ण थी। इस तरह भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में सीधी बात उसमें फंस गई।

प्रश्न 10. 'भाषा को उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा'-कवि ने ऐसा क्यों किया?

उत्तर : भाषा को प्रभावी एवं क्लिष्ट बनाने के चक्कर में कंथ्य स्पष्ट नहीं हुआ तो कवि ने अपनी बात को समझाने के लिए शब्दों का उलट-फेर किया तथा उसे प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का प्रयास किया। परन्तु इससे कथ्य और पेचीदा हो गया। "

प्रश्न 11. 'बात और भी पेचीदा होती चली गई'-इसका आशय बताइये।

उत्तर : कवि ने अपनी सीधी-सरल बात को प्रभावी बनाने के लिए भाषा को सँवारने का प्रयास किया। इस हेतु शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा तथा उनमें घुमाव-फिराव किया। लेकिन इससे वह बात सरल ढंग से प्रकट न होकर जटिल हो गई।

प्रश्न 12. 'पेंच को खोलने के बजाय उसे बेतरह कसने' का क्या परिणाम रहा? बताइये।

उत्तर : प्रभावी अभिव्यक्ति हेतु कवि भाषा रूपी पेंच को खोलने अर्थात् भाषा को सरल बनाने के बजाय उसे सता रहा। इस प्रयास में पेंच की चूडी मरने के समान भाषा भी बेकार हो गई और बात सही ढंग से व्यक्त नहीं हो सकी।

प्रश्न 13. 'बात को कील की तरह ठोंक देना' का क्या परिणाम रहा?

उत्तर : चूड़ी मर जाने पर यदि पेंच को कील की तरह ठोक दिया जावे, तो मजबूत नहीं हो पाती है। इसी प्रकार सरल बात को भाषा के कसावट के चक्कर में उलट-पलटकर कहने से अभिव्यक्ति में ढीलापन आ जाता है।

प्रश्न 14. 'एक शरारती बच्चे की तरह खेल रही थी। इसमें बात को शरारती बच्चा कहने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर : कवि सीधी बात को कहने के लिए शब्दों की अदला-बदली कर रहा था। शरारती बच्चे को काबू में लाने की तरह वह भाषा में चमत्कार लाना चाहता था और बात को नये ढंग से कहना चाहता था, परन्तु कह नहीं पा रहा था।

प्रश्न 15. "आखिरकार वहीं हुआ, जिसका मुझे डर था।"-कवि को क्या डर था? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि को यह डर था कि भाषा में चमत्कार लाने हेतु वह जितने भी प्रयत्न कर रहा था वे सब निरर्थक हो गए। इस चक्कर में भाषा का सरल अर्थ चूड़ी के पेंच की तरह मर गया।

प्रश्न 16. "तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह" का क्या दुष्परिणाम रहता है?

उत्तर : तमाशबीन लोग जब सही-गलत किसी भी कार्य के लिए शाबाशी देते हैं, तो इससे व्यक्ति गलत काम को भी सही मानने लगता है और अपने लक्ष्य से भटककर वह सीधा-सरल काम भी सही ढंग से नहीं कर पाता है।

प्रश्न 17. "क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?" इस पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इसमें व्यंग्य यह है कि चमत्कार-प्रदर्शन के लोभ में कविता की सम्प्रेषणीयता एवं सहजता नष्ट हो जाती है। भाषा को तोड़ना-मरोड़ना उसके सीधे-सरल अर्थ को नष्ट करना है जिससे कविता के भाव-सौन्दर्य की हानि होती है। ऐसा आचरण उसकी नासमझी मानी जाती है।

प्रश्न 18. "मुझे पसीना पोंछते देखकर"- कवि को किस कारण पसीना आ गया?

उत्तर : सीधी-सरल बात को सहज अभिव्यक्ति न दे पाने से, भावों को क्लिष्ट से सरलता की ओर लाने का प्रयास करने से कवि को पसीना आ गया। काफी परिश्रम-प्रयास करने पर भी वांछित कार्य न हो पाने से पसीना आना स्वाभाविक ही लगता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. कविता के बहाने' कवि कुँवर नारायण क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर : 'कविता के बहाने' कविता में कवि ने एक यात्रा का वर्णन किया है। जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति का विशाल साम्राज्य है तथा दूसरी ओर भविष्य की तरफ कदम बढ़ाता बच्चा है। कवि ने चिड़िया के उड़ान के माध्यम से उसके उड़ने की सीमा बताई है कि एक सीमा तक ही वह अपनी उड़ान भर सकती है। उसी तरह फूलों के खिलने, सुगन्ध देने तथा मुरझाने की भी एक सीमा है। समयानुसार फूल खिलता है, रंग और खुशबू बिखेरता है और फिर मुरझा जाता है। लेकिन बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा या बंधन नहीं होता है।

उसी प्रकार कविता भी तो शब्दों का खेल ही है और इस खेल में जड़, चेतन, अतीत और वर्तमान-भविष्य सभी उसके उपकरण मात्र हैं। कविता की कल्पना अनन्त है। शब्दों का जाल अनन्त है। इसलिए जहाँ भी रचनात्मक क्रिया की बात आती है, वहाँ सीमाओं के बंधन स्वतः ही टूट जाते हैं। वह चाहे घर की सीमा हो, भाषा की हो या फिर समय की हो। इन्हीं भावों से संचित कविता कवि की राय को प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 2. 'कविता के बहाने' कविता में कवि ने कविता रचना को किसके समकक्ष बताया है और कैसे?

उत्तर :  कविता के बहाने' कविता में कवि ने कविता-रचना को बच्चों के खेल के समान बताया है। कवि बच्चों की खेल-क्रीडा को देख कर शब्द-क्रीडा करता है। आशय है कि बच्चे विभिन्न उनके खेलों का संसार असीमित एवं व्यापक है। उसी प्रकार कवि भी शब्दों के द्वारा नये-नये भावों एवं मनोरम कल्पनाओं के खेल खेलता है।

जिस प्रकार बच्चे खेल खेलते हुए सभी के घरों में समान रूप से खेल खेलते हैं और अपने-पराये का भेदभाव नहीं रखते उसी प्रकार कविता में भी शब्दों का खेल होता है। कवि शब्दों द्वारा आन्तरिक बाह्य भाव विचारों को, अपने-पराये सभी लागों के मनोभावों को कलात्मक अभिव्यक्ति देता है। वह सभी को समान मानकर सार्वकालिकं भावों को वाणी देता है।

प्रश्न 3. 'बात सीधी थी पर' कविता में कवि ने किस विषय पर ध्यान आकर्षित किया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :'बात सीधी थी पर' कविता में कवि ने भाषा की सहजता पर बात की है। कवि का कहना है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना जटिल बनाये आसान शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भ फेर में बात स्पष्ट नहीं हो पाती है तथा अभिव्यक्ति की सरलता में उलझाव आ जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता व अनुभव करता है उसे उसी रूप में सहजता से व्यक्त कर देना चाहिए। लेकिन कभी-कभी वाह-वाही पाने के लोभ में अपनी बात को सजा-सँवारकर, कलात्मक ढंग से अलंकृत शैली का प्रयोग करने लगता है। जिसके चक्कर में सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है। रचना-कर्म में इसे एक दोष माना जाता है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1. कवि कुँवर नारायण के रचनात्मक योगदान को बताते हुए उनके जीवन-चरित्र पर भी संक्षिप्त में प्रकाश डालिए।

उत्तर : 'तीसरा सप्तक' के प्रमख कवियों में अपना नाम दर्ज कराने वाले कवि कँवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर, सन् 1927 को फैजाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। अंग्रेजी में एम.ए. करने के पश्चात् इन्होंने कई देशों की यात्राएँ की। भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और सहज सौंदर्य भी।

'चक्रव्यूह', 'परिवेश', 'हम तुम', 'अपने सामने', 'कोई दूसरा नहीं', 'इन दिनों' (काव्य-संग्रह); 'आत्मजयी' (प्रबंध काव्य); 'आकारों के आस-पास' (कहानी-संग्रह); 'आज और आज से पहले' (समीक्षा); 'मेरे साक्षात्कार.' (सामान्य) आदि। व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, प्रेमचंद तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा कबीर सम्मान जैसे अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित कवि का जीवन सदैव सृजन-कर्म में लगा रहा।

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

कुँवर नारायण 

कवि परिचय - आधुनिक हिन्दी कविता में नागर संवेदना को अभिव्यक्ति देने वालों में कुँवर नारायण का विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म सन् 1927 में फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। यायावरी प्रवृत्ति के कारण इन्होंने पोलैण्ड, रूस, चीन आदि देशों की यात्रा कर अनेक अनुभव प्राप्त किये। सन् 1950 ई. के आसपास इन्होंने काव्य-लेखन प्रारम्भ किया तथा लम्बे समय तक 'युग चेतना' पत्रिका से जुड़े रहे।

कुँवर नारायण के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं-चक्रव्यूह, परिवेश : हम तुम, अपने सामने कोई दूसरा नहीं और इन दिनों। नचिकेता की पौराणिक कथा पर इन्होंने 'आत्मजयी प्रबन्ध-काव्य की रचना की। 'आकारों के आसपास' इनका कहानी-संग्रह तथा 'आज और आज से पहले इनका समीक्षा-ग्रन्थ है।

कुँवर नारायण की कविता में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुन्ध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है। भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनमें यथार्थ का खुरदरापन तथा भावगत सहज सौन्दर्य भी विद्यमान है। इस कारण इनकी रचनाएँ बहुआयामी हैं, विचार-पक्ष से समन्वित हैं। इनका शिल्प-सौन्दर्य बिम्ब, प्रतीक, अलंकार आदि से मण्डित है।

कविता-परिचय - पाठ में कुँवर नारायण की दो कविताएँ संकलित हैं। 'इन दिनों' काव्य-संग्रह से संकलित कविता 'कविता के बहाने' में बताया गया है कि आज यान्त्रिकता के दबाव के कारण कविता का अस्तित्व मिट सकता है। ऐसे में प्रस्तुत कविता कविता-लेखन की अपार सम्भावनाओं को समझने का अवसर देती है। कवि का मानना है कि यह ऐसी यात्रा का वर्णन है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की यात्रा है।

ये तीनों अपने-आप में सुन्दर होते हुए सीमाबद्ध हैं जबकि कविता का क्षेत्र असीम है। रचनात्मक ऊर्जा होने से कविता में सीमाओं के बन्धन स्वयं टूट जाते हैं। अतः कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक है। दूसरी कविता 'बात सीधी थी पर' शीर्षक से संकलित है। इस कविता में कथ्य और माध्यम के द्वन्द्व को उकेरते हुए शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के फेर में पड़ने से बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, कविता में जटिलता बढ़ जाती है तथा अभिव्यक्ति में उलझाव आ जाता है। अतएव अच्छी बात अथवा अच्छी कविता के लिए शब्दों का चयन या भाषागत प्रयोग सहज होना नितान्त अपेक्षित है। तभी हम कविता के द्वारा सीधी बात कह सकते हैं।

1. ‘बात सीधी थी पर कविता के कवि का नाम क्या है?

(A) रघुवीर सहाय

(B) मुक्तिबोध

(C) आलोक धन्वा

(D) कुँवर नारायण

 

2. ‘बात सीधी थी पर’ किस काव्य-संग्रह में संकलित है?

(A) इन दिनों

(B) कविता के बहाने

(C) कोई दूसरा नहीं

(D) चक्रव्यूह

 

3. ‘तीसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ?

(A) सन् 1961 में

(B) सन् 1958 में

(C) सन् 1959 में

(D) सन् 1957 में

 

4. ‘परिवेश : हम तुम’ के रचयिता का नाम क्या है?

(A) हरिवंश राय बच्चन

(B) रघुवीर सहाय

(C) आलोक धन्वा

(D) कुँवर नारायण

 

5. ‘परिवेश : हम तुम’ का प्रकाशन कब हुआ?

(A) सन् 1961 में

(B) सन् 1962 में

(C) सन् 1959 में

(D) सन् 1963 में

 

6. ‘इन दिनों का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?

(A) सन् 1962 में

(B) सन् 1963 में

(C) सन् 1965 में

(D) सन् 1964 में

 

7. ‘अपने सामने’ के रचयिता का नाम क्या है?

(A) रघुवीर सहाय

(B) कुँवर नारायण

(C) मुक्तिबोध

(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

 

8. ‘अपने सामने का प्रकाशन कब हुआ?

(A) सन् 1996 में

(B) सन् 1995 में

(C) सन् 1997 में

(D) सन् 1999 में

 

9. ‘आकारों के आस-पास’ के रचयिता कौन हैं?

(A) आलोक धन्वा

(B) रघुवीर सहाय

(C) मुक्ति बोध

(D) कुँवर नारायण

 

10. ‘आकारों के आस-पास’ किस विधा की रचना है?

(A) काव्य-संग्रह

(B) कहानी संग्रह

(C) निबंध संग्रह

(D) कविता संग्रह

 

11. ‘आज और आज से पहले किस विधा की रचना है?

(A) निबंध संग्रह

(B) उपन्यास

(C) एकांकी संग्रह

(D) समीक्षा

 

12. ‘कविता के पंख लगाने में कौन-सा अलंकार है?

(A) अनुप्रास

(B) रूपक

(C) उत्प्रेक्षा

(D) उपमा

 

13. सीधी बात भी किसके चक्कर में फंस गई थी?

(A) निपुणता

(B) शैतानी

(C) भाषा

(D) भय

 

14. ‘कवि की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में कौन-सा अलंकार है?

(A) रूपक

(B) उपमा

(C) श्लेष

(D) काकुवक्रोक्ति

 

15. ‘कविता के बहाने’ कविता में किस छंद का प्रयोग हआ है?

(A) कवित्त छंद

(B) सवैया छंद

(C) मुक्त छंद

(D) दोहा छंद

 

16. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में कौन-सा अलंकार है?

(A) श्लेष

(B) यमक

(C) अनुप्रास

(D) वक्रोक्ति

 

17. भाषा के क्या करने से बात और अधिक पेचीदा हो गई?

(A) तोड़ने-मरोड़ने

(B) उलटने-पलटने

(C) घुमाने-फिराने

(D) उपर्युक्त सभी

 

18. ‘बात की चूड़ी मर जाना’ का अर्थ है

(A) स्पष्ट होना

(B) प्रभावहीन होना

(C) प्रभावपूर्ण होना

(D) तर्कपूर्ण होना

 

19. ‘बात की पेंच खोलना’ का अर्थ है

(A) बात उलझा देना

(B) बात का प्रभावहीन होना

(C) बात को सहज और स्पष्ट करना

(D) बात को घुमाकर कहना

 

20. ‘बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना’ का अर्थ है

(A) बात का प्रभावहीन होना

(B) कोई ठीक उत्तर न देना

(C) बात द्वारा शरारत करना

(D) बात को सहज स्पष्ट करना

 

21. बिन मुरझाए महकना का अर्थ है

(A) कविता का प्रभाव अनंत काल तक रहता है

(B) कविता कभी नहीं मुरझाती

(C) कविता का प्रभाव शीघ्र नष्ट हो जाता है

(D) कविता को लोग पढ़ना नहीं चाहते

 

22. बात कवि के साथ किसके समान खेल रही थी?

(A) शरारती बच्चे के

(B) खिलौने के

(C) भाषा के

(D) पेंच के

 

23. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई थी?

(A) पेचीदा

(B) सरल

(C) वक्र

(D) व्यर्थ

 

24. ‘बात सीधी थी पर’ नामक कविता में कवि ने किस पर बल दिया है?

(A) भाषा की जटिलता

(B) भावों की सरसता

(C) भाषा की सहजता

(D) भावों की गरिमा

 

25. ‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने कौन-सी कोशिश नहीं की थी?

(A) उलटा पलटा

(B) तोड़ा मरोड़ा

(C) हिलाया सरकाया

(D) घुमाया फिराया

 

26. भाषा को घुमाने फिराने से बात कैसी हो जाती है?

(A) पेचीदा

(B) सरल

(C) दिव्य

(D) सौम्य

सप्रसंग व्याख्याएँ

कविता के बहाने

कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने?

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों' की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। चिड़िया को माध्यम बना कर कवि ने कविता के अस्तित्व पर अपनी बात रखी है।

व्याख्या - कवि बताता है कि कविता कल्पना की मोहक उड़ान होती है, वह चिड़िया की उड़ान के समान नयी नयी कल्पनाएँ प्रस्तुत करती है। उसमें नये-नये भाव एवं विचार आते हैं। कविता की उड़ान असीमित होती है। चिड़िया की उड़ान की एक सीमा होती है। चिड़िया बाहर, भीतर, इस घर से उस घर तक उड़कर आती-जाती रहती है, जबकि कविता को कल्पनाओं के ऐसे पंख लगे रहते हैं कि वह घर से बाहर सब जगह - सारी सृष्टि में उड़ान भर लेती है। चिड़िया अपनी सीमा में बँधी होने के कारण कविता की काल्पनिक उड़ान को नहीं जान पाती है। आशय यह है कि पक्षी की उड़ान सीमित है, परन्तु कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक एवं असीमित है।

विशेष :

1. कवि ने चिड़िया की उड़ान के बहाने कविता के असीमित क्षेत्र की व्याख्या की है।

2. भाषा सरल-सहज व अर्थपूर्ण है। प्रतीकात्मक एवं सांकेतिक शब्दावली प्रस्तुत है।

कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

बिना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने?

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। इसमें कवि कविता की यात्रा पर प्रकाश डाल रहे हैं जो चिड़िया से लेकर फूलों तक है।

व्याख्या - कवि बताते हैं कि कविता भी खिलती है अपने भाव-सौन्दर्य को लेकर, जिस प्रकार फल अपने रूप रंग व खुशबू को लेकर खिलते हैं । फूलों का खिलना, उसका वातावरण को सुगन्धित करना फिर तय समय पर मुरझा जाना, फूलों की प्रकृति व अवस्था को बताता है। लेकिन कविता फूलों की तरह खिलती तो है पर उसकी तरह मुरझाती - नहीं है। कविता अपने भावों के कारण, संदेश व प्रेरणा के कारण तथा अस्तित्व के कारण सदैव खिली रहती है और अपनी विशेषताओं की सुगन्ध फैलाती रहती है। फूल कविता के खिलने का अर्थ नहीं जानता है। फूल से कविता में रंग भाव आदि आते हैं लेकिन दोनों का खिलना अलग-अलग है।

विशेष :

1. कविता व फूल की तुलना प्रस्तुत की गई है।

2. शांत रस व मुक्त छन्द का प्रयोग है। सरल-सहज खड़ी बोली में अनुप्रास व प्रश्न अलंकार हैं।

कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर-भीतर

यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने।

कठिन शब्दार्थ :

माने = अर्थ।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों' की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। इसमें कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान असीमित व कल्पनाओं की उड़ान बताया है।

व्याख्या - कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानते हैं। जिस प्रकार बच्चे अपना खेल घर-बाहर कहीं भी खेल लेते हैं; इस घर, उस घर सभी घरों में खेलते हैं। उनके लिए अपने-पराये, छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं होता है। उसी तरह कविता भी बच्चों के खेल के समान अपने शब्दों से बाहरी व आंतरिक संसार को मनोभाव देती है। वह शब्दों के खेल द्वारा कहीं भी प्रकट हो जाती है। उसके लिए भी किसी तरह का कोई बंधन नहीं है। बच्चों की भावना के अनुरूप ही कविता की भावना भी सबके लिए एक समान है।

विशेष :

1. कविता की रचनात्मक व्यापकता को बच्चों के खेल व वृत्ति के बहाने प्रकट किया गया है। बच्चा व कवि एक समान हैं, को बताया गया है।

2. साहित्यिक खड़ी बोली, अनुप्रास अलंकार व मुक्त छंद की प्रस्तुति सरल व सहज शब्दों द्वारा व्यक्त हुई है।

बात सीधी थी पर

बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

जरा टेढ़ी फँस गई।

उसे पाने की कोशिश में।

भाषा को उलटा पलटा

तोड़ा मरोड़ा

घुमाया फिराया

कि बात या तो बने

या फिर भाषा से बाहर आए -

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

बात और भी पेचीदा होती चली गई।

कठिन-शब्दार्थ :

चक्कर = प्रभाव, प्रसंग।

पेचीदा = जटिल, कठिन।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। इसमें कवि ने भाषा की सहजता की बात कही है।

व्याख्या - कवि कहता है कि मेरे मन में एक सीधी-सरल-सी बात थी जिसे मैं कहना चाहता था, परन्तु उचित भाषा का प्रयोग करने से अर्थात् भाषायी प्रभाव दिखाने के प्रयास से उसकी सरलता समाप्त हो गई। आशय यह है कि शब्द-जाल में सरल बात भी जटिल हो गई। कवि कहता है कि तब उस बात को कहने के लिए मैंने भाषा को अर्थात् शब्दों को बदलने का प्रयास किया, भाषा को उल्टा-पलटा, शब्दों को काट-छाँटकर आगे-पीछे किया ताकि सीधी बात. सरलता से व्यक्त हो सके।

कोशिश की या तो मेरे मन की बात.सहजता से व्यक्त हो जाए, या फिर भाषा के जंजाल से छूटकर बाहर आ जाए। इस प्रयास में स्थिति खराब होती गई, भाषा और अधिक जटिल हो गई और मेरी बात उसके जाल में उलझकर रह गई। इस तरह भाषा का चमत्कार दिखाने के चक्कर में सीधी बात और भी जटिल हो गई।

विशेष :

1. कवि ने बताया है कि कथ्य को कहने के लिए शब्दों को तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहिए। सरल भावों एवं सुन्दर अभिव्यक्ति द्वारा व्यक्त करना चाहिए।

2. काव्यांश में उल्टा-पुल्टा, घुमाया-फिराया आदि शब्द युग्मों का सार्थक प्रयोग हुआ है।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाय

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्योंकि इस करतब पर मुझे

साफ़ सुनाई दे रही थी।

तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कवि ने इसमें उन कवियों पर व्यंग्य किया है कि वाह-वाही पाने के चक्कर में लोग भाषा के सीधे-सरल रूप को छोड़ पांडित्य दिखाने में फँस जाते हैं।

व्याख्या - कवि कहता है कि भाषा के चक्कर में फँसी सीधी बात को धैर्यपूर्वक सुलझाने की कोशिश करने पर वह और अधिक उलझ गई। जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे, तो उसे खोलकर बार-बार कसने से उसकी चूड़ियाँ मर जाती है। उसी प्रकार बेवजह भाषा का पेंच कसने से बात सहज और स्पष्ट होने के स्थान पर और भी क्लिष्ट व अर्थहीन हो जाती है। कवि कह रहे हैं कि इस तरह भाषा को सुलझाने के चक्कर में इसके उलझने को काव्य-चमत्कार समझ लोग वाह-वाह करने लगेंगे। जो कि मेरी उलझन को ज्यादा बढ़ाने वाली बात है। साथ ही उन लागों पर व्यंग्य है जो तमाशा देखने वालों की तरह अर्थ समझे बिना अनर्थ पर भी अपनी वाह-वाही की प्रतिक्रिया देने लगते हैं।

विशेष :

1. कवि ने व्यंग्य करते हुए बताया कि भाषा की जटिलता लोगों की वाह-वाही का कारण बनती है जो कि सही नहीं है।

2. उर्दू-मिश्रित शब्दों का प्रयोग है। पेंच, करतब, बेतरह, तमाशबीन आदि शब्द प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रहे हैं।

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था

जोर जबरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

हार कर मैंने उसे कील की तरह

उसी जगह ठोंक दिया।

कठिन-शब्दार्थ :

चूड़ी मर गई = पेंच कसने से चूड़ी नष्ट हो गई, प्रयास विफल रहना।

कसाव = कसावट।

सहूलियत = सरलता, आसानी।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कविता में भाषा की सहजता की बात पर जोर दिया गया है।

व्याख्या - कवि बताते हैं कि बात कहने के लिए उसे चमत्कारी स्वरूप देने के चक्कर में बनावटी भाषा का प्रयोग किया। आखिरकार परिणाम वही निकला जिसका कवि को डर था। जिस प्रकार पेंच के साथ जबरदस्ती करने, उसे ज्यादा घुमाने से उसकी चूड़ी खत्म हो जाती है, उसी प्रकार भाषा पर अत्यधिक कसाव देने व प्रयोग करने से बात का प्रभाव व अर्थ दोनों खत्म हो गया। जिस तरह चूड़ी खत्म होने पर पेंच को उसी तरह ठोक दिया जाता है कि अब परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं, उसी प्रकार कवि ने भी भाषा को उसी बनावटीपन के साथ वहीं छोड़ दिया जो व्यर्थ, बिना प्रभाव के अस्तित्वहीन भाषा बन कर रह गई।

विशेष :

1. कवि ने कविताओं की आडम्बरपूर्ण भाषा पर व्यंग्य किया है।

2. 'कील की तरह' में उपमा अलंकार तथा 'जोर-जबरदस्ती' में अनुप्रास अलंकार प्रस्तुत है।

3. खड़ी बोली व मुक्त छंद का प्रयोग है।

ऊपर से ठीक-ठाक

पर अंदर से

न तो उसमें कसाव था

न ताकत!

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

मुझसे खेल रही थी,

मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा -

"क्या तुमने भाषा को

सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?"

कठिन शब्दार्थ :

कसाव = कसावट।

सहूलियत = सरलता, आसानी।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कविता में भाषा की सहजता व सरलता के प्रयोग पर बल दिया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि भाषा की चूड़ी (अर्थ) मरने के पश्चात् उसे उसी अवस्था में (कील) ठोक दिया जाता है तब उस भाषा में ऊपर से तो सब ठीक-ठाक सुन्दर प्रतीत होता है लेकिन अन्दर से भाषा की अर्थपूर्ण कसावट तथा ताकत दोनों खत्म हो जाती हैं। जो बात कवि भाषा के माध्यम से कहना चाहते थे वह बात कवि को परिश्रम से आए पसीने को पौंछते देख एक शरारती बच्चे की तरह पूछती है कि तुमने भाषा को सरलता से, सहजता से उसके साथ व्यवहार करना नहीं सीखा?

यहाँ पर कवि व्यंग्य कर रहे हैं कि जिन्होंने भी भाषा की अर्थवत्ता व सरलता-सहजता को खोकर (नष्ट) बनावटीपन एवं कृत्रिमता का प्रयोग किया है उससे अर्थ तो अनर्थ होता ही है स्वयं भाषा भी उससे कभी खुश नहीं रहती है।

विशेष :

1. कवी ने व्यंग्य की दष्टि से भाषा की सरलता व सहजता को बनाये रखने पर जोर दिया है ताकि वह अर्थपूर्ण व सरल अभिव्यक्ति प्रदान करे।

2. भाषा सरल-सहज, खड़ी बोली युक्त, अलंकारों का समुचित प्रयोग एवं मुक्त छन्द की लयता से बद्ध कविता है।

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