Koderma PROJECT RAIL 2.0
MODEL QUESTION PAPER-2023
SET -1
वर्ग-12 |
विषय – इतिहास |
पूर्णांक- 40 |
समय- 1 घंटा 30 मिनट |
वस्तुनिष्ट प्रश्न :-
सामान्य
निर्देष :-
•
कुल 40 प्रश्न है। सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है।
•
सभी प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है।
•
प्रत्येक प्रश्न के लिए चार विकल्प दिये गये है ।
•
सही विकल्प का चयन कीजिए ।
•
गलत उत्तर के लिए कोई अंक नहीं काटे जाएँगें ।
क
1. सिन्धु घाटी के निवासियों को किस धातु का ज्ञान नहीं था?
क)
सोना
ख)
चाँदी
ग) लोहा
घ)
ताँबा
2. मोहनजोदडो की खोज 1922 ई0 में किसने की ?
क)
दयाराम साहनी
ख)
मोधोस्वरूप वरस
ग) राखलदास बनर्जी
घ)
रंगनाथ राव
3. यूरोप का समुद्रगुप्त कौन था ?
क)
हिटलर
ख) नेपोलियन
ग)
विस्कार्क
घ)
मुसोलिनी
4. किस अभिलेख से अशोक द्वारा कलिंग विजय का पता चलता है?
क)
प्रथम
ख)
पांचवे
ग)
दषवे
घ) तेरहवे
5. अभिज्ञान शाकुन्तलम् के रचनाकार है ?
क) कालिदास
ख)
वाणाभट्ट
ग)
स्कन्द्रगुप्त
घ)
कौटिल
6. ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में सर्वप्रथम किस वर्ण का उल्लेख मिलता
है ?
क) ब्राह्मण
ख)
क्षत्रिय
ग)
वैष्य
घ)
शूद्र
7. वीर शैव लिंगायत आंदोलन का जनक कौन है ?
क)
कबीर
ख)
गुरू नानक
ग) बास वन्ना
घ)
कराइकल
8. धर्मग्रन्थ सुत्रपिटक किस धर्म से संबंधित है?
क)
जैन
ख) बौद्ध
ग)
हिन्दु
घ)
शैव
9. तम्बाकू पर किस शासक ने प्रतिबंध लगाया?
क)
अकबर
ख)
बाबर
ग) जहांगीर
घ)
शाहजहाँ
10. मुगलकालीन चित्रकला किसके काल में चर्मोत्कर्स पर पहुँची ?
क)
हुमायू
ख)
अकबर
ग) जहांगीर
घ)
शाहजहाँ
11. भारत का अंतिम मुगल सम्राट कौन था?
क)
शाहजहाँ
ख)
औरंगजेब
ग)
मुहम्मद शाह
घ) बहादुर शाह जफर
12. स्थापत्य कला का सर्वाधिक विकास किसके समय में हुआ ?
क)
अकबर
ख) शाहजहाँ
ग)
जहांगीर
ग)
औरंगजेब
13. विजयनगर का महानतम शासक कौन था?
क)
वीरमर सिंह
ख)
अच्युतरात
ग) कृष्णदेव राय
घ) सदाषिवराय
14. पुष्टिमार्ग का जहाज किसे कहा जाता है?
क)
कबीर
ख) बल्लभाचार्य
ग)
नानक
घ)
रैदास
15. यात्रियों का राजकुमार किसे कहा गया है?
क)
फाहान
ख) ह्रानसांग
ग)
अलबरूनी
घ) इब्नबतूता
16. मध्ययुगीन यात्रियों का सरताज किस यात्री को कहा जाता है ?
क)
अलबरूनी
ख) मार्कोपोलो
ग)
बर्नियर
घ)
इब्नबतूता
17. महालवाडी बन्दोवस्त किसके द्वारा लागू किया गया?
क मार्टिन वर्ड
ख)
रीड़
ग)
मुनरो
घ)
बुकानन
18. उलगुलान विद्रोह का नेता कौन था ?
क)
सिद्ध
ख)
गोमधर कुंवर
ग)
चिन्तर सिंह
घ) बिरसामुण्डा
19. रैयतबाडी व्यवस्था में भूमि का स्वामी कौन होता था ?
क)
जमींदार
ख)
ब्रिटिष सरकार
ग) किसान
घ)
इनमें से कोई नहीं
20. इंग्लिश ईष्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना कब हुई ?
क) 1600
ख)
1605
ग)
1610
घ)
1615
21. 'द ग्रेट रिवोल्ट' नामक पुस्तक किसने लिखि?
क)
पटाभिसीतारमैया
ख) अषोक मेहता
ग)
जेम्स आउट्रम
घ)
रावर्ट्स
22. 1857 के गदर को किसने क्रांति कहा है?
क) कार्ल मार्क्स
ख)
आर.सी. मजुमदार
ग)
जवाहर लाल नेहरू
घ)
टी. आर. होम्स ने (T. R. Hom's )
23. सात द्वीपों का नगर कहा जाता है ?
क) बम्बई
ख)
शिमला
ग)
कलकत्ता
घ)
वैंगलौर
24. अखिल भारतीय स्तर पर पहली जनगणना कब हुई ?
क)
1871
ख) 1872
ग)
1891
घ)
1894
25. वास्कोडिगामा किस सन् में भारत पहुँचा ?
क) 17 मई 1498
ख)
17 मार्च 1498
ग)
17 मई 1598
घ)
17 मार्च 1598
26. भारत में रेलवे की शुरूआत हुई थी ?
क)
1753 ई०
ख)
1973 ई०
ग) 1853 ई०
घ) 1863 ई०
27. गेटवे ऑफ इण्डिया कहाँ स्थित है?
क) बाम्बे
ख)
दिल्ली
ग)
मद्रास
घ)
कलकत्ता
28. 'करो या मरो' का नारा किसने दिया?
क) गाँधीजी
ख)
तिलक
ग)
गोखले
घ)
सुभाषचन्द्र बोस
29. 'सर' की उपाधि किसने वापस की थी?
क)
महात्मा गाँधी
ख)
बाल गंगाधर तिलक
ग) रविन्द्रनाथ ट्रैगोर
घ)
जवाहरलाल नेहरू
30. गाँधीजी
ने असहयोग आंदोलन किस वर्ष आरंभ किया?
क) 1920 (1921)
ख)
1922
ग)
1930
घ)
1942
31. जालियावाला बाग हत्याकाण्ड कब हुआ?
क)
9 अप्रैल 1919
ख) 13 अप्रैल 1919
ग)
21 अप्रैल 1919
घ)
23 अप्रैल 1919
32. काला कानून किसे कहा गया?
क) रौलेट एक्ट
ख)
हण्टर रिपोर्ट
ग)
वुड डिस्पैच
घ)
1919 का अधिनियम
33. सुभाष चन्द्र बोस ने कहाँ पर आजाद हिन्द फौज का गठन किया?
क)
मलाया
ख)
वर्मा
ग)
थाइलैण्ड
घ) सिंगापुर
34. भारत का विभाजन ब्रिटिश शासन की किस योजना का परिणाम है?
क) माउण्टबेटन योजना
ख)
क्रिप्स योजना
ग)
बेवेल योजना
घ)
इनमें से कोई
35. भारतीस स्वतंत्रता अधिनियम कब बना?
क)
4 जुलाई 1947
ख)
26 जनवरी 1947
ग)
15 अगस्त 1947
घ) 18 जुलाई 1947
36. स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे?
क)
सी० राजगोपालचारी
ख) लार्ड माउण्टबेटन
ग)
लाल बहादुर शास्त्री
घ)
रेड क्लिप
37. भारतीय संविधान के अनुसार संप्रभुता निहित है ?
क)
प्रधानमंत्री में
ख)
न्यायपालिका में
ग) संविधान में
घ)
राष्ट्रपति में
38. भारत को गणतंत्र कब घोषित किया गया?
क)
26 जनवरी 1949 को
ख) 26 जनवरी 1950 को
ग)
15 अगस्त 1947 को
घ)
26 जनवरी 1952 को
39. निम्न में कौन महिला आयोग संविधान सभा की सदस्य थी?
क)
सरोजिनी नायडू
ख)
हंसा मेहता
ग)
दुर्गाबाई देशमुख
घ) इनमें से सभी
40. 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के कितने सदस्यों ने संविधान पर
हस्ताक्षर किये ?
क)
200
ख)
225
ग) 284
घ)
300
[ख]
विषयनिष्ठ प्रश्न :-
सामान्य
निर्देश :-
•
कुल प्रश्नों की संख्या 19 है।
•
प्रश्न संख्या 1 से 7 तक अतिलघु उत्तरीय प्रश्न है जिसका मानक 2 अंक है। इनमें से
किन्ही पाँच प्रश्नों का उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दे ।
•
प्रश्न संख्या 8 से 14 तक लघु उत्तरीय प्रश्न है। जिनका मानक अंक 3 है। इनमें से
किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दें ।
• प्रश्न संख्या 15 से 19 तक दीर्घ उत्तरीय
प्रश्न है । इनमें से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दें। जो
मानक अंक 5 होंगे ।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न ( 5 x 2 = 10 )
1. दो लिपियों का जिक्र करें, जिन्हें सम्राट अशोक के अभिलेखों में
उपयोग किया गया है?
उत्तर
: ब्रहमी लिपि और खरोष्ठी लिपि
2. महात्मा गाँधी के श्रीमद् भगवतगीता पर क्या विचार थे ?
उत्तर:
-
महात्मा गांधीजी ने गीता को लेकर एक गहरी बात कही थी। उन्होंने कहा था कि ''जब कभी
संदेह मुझे घेरते हैं और मेरे चेहरे पर निराशा छाने लगती है तो मैं गीता को एक
उम्मीद की किरण के रूप देखता हूं। गीता में मुझे एक छंद मिल जाता है, जो मुझे
सांत्वना देता है. मैं कष्टों के बीच मुस्कुराने लगता हूं।
-
महात्मा गांधी ने कहा कि मैं सनातनी होना का दावा करता हूं, लेकिन गीता के मुख्य
सिद्धांत के विपरीत जो भी हो, उसे मैं हिंदू धर्म से विरोध मानता हूं, और अस्वीकार
करता हूं. गीता में किसी धर्म या धर्म गुरु का विरोध नहीं है।
-
जो भी व्यक्ति गीता का भक्त होता है, उनके जीवन में कोई निराशा नहीं होती है. वह
आनंदमय रहता है। लेकिन इसके लिए बुद्धिवाद नहीं अव्यभिचारिणी भक्ति चाहिए।
-
महात्मा गांधी ने कहा कि मैं गीता की मदद से ट्रस्टी शब्द का अर्थ अच्छी तरह समझ
पाया हूं। ट्रस्टी करोंड़ों की संपत्ति रखते हैं, लेकिन उस पर हमारा अधिकार नहीं
होता। इस तरह मुमुक्षु यानी मोक्ष को अपना आचरण रखना चाहिए, यह मैंने गीता से
सीखा।
3. त्रिपिटक क्या है?
उत्तर
: त्रिपिटक बौद्ध धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है – त्रि +
पिटक। त्रि का अर्थ है तीन और पिटक का अर्थ है पिटारे या टोकरी। इस प्रकार
त्रिपिटक का अर्थ है तीन पिटारे। इसके अंतर्गत तीन ग्रन्थ – विनय पिटक, सुत्तपिटक
एवं अभिधम्म पिटक आते है।
4. 'खानकाह' से आप का क्या तात्पर्य है?
उत्तर
: मुसलमान, फकीरों, साधुओं अथवा धर्म-प्रचारकों के ठहरने या रहने का स्थान।
5. बंगाल के स्थायी भूमि बन्दोबस्त की कोई दो विषेषताएँ लिखिये ?
उत्तर
: 1. कंपनी की आय निश्चित हो गई। 2. कृषि में उत्पादन बढ़ा और बंगाल समृद्ध बना।
6. भारत छोड़ो आंदोलन कब व किसने आरम्भ किया?
उत्तर
: महात्मा गांधी द्वारा 9 अगस्त 1942 को।
7. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या है?
उत्तर
: न्याय, स्वंतंत्रता, समानता, बंधुत्व या राष्ट्र की एकता एवं अखंडता स्थापित
करना है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 X 3 = 15)
8. कार्बन - 14 विधि से आप क्या समझते है ?
उत्तर
: तिथि निर्धारण की वैज्ञानिक विधि को कार्बन-14 विधि कहा जाता है। इस विधि की खोज
अमेरिका के प्रख्यात रसायनशास्त्री बी. एफ. लिवी द्वारा सन् 1946 ई. में की गई थी।
इस विधि के अनुसार किसी भी जीवित वस्तु में कार्बन- 12 एवं कार्बन-14 समान मात्रा
में पाया जाता है। मृत्यु अथवा विनाश की अवस्था में C-12 तो स्थिर रहता है, मगर
C-14 का निरन्तर क्षय होने लगता है। कार्बन का अर्ध-आयु काल 5568 +- 30 वर्ष होता
है, अर्थात् इतने वर्षों में उस पदार्थ में C-14 की मात्रा आधी रह जाती है। इस
प्रकार वस्तु के काल की गणना की जाती है। जिस पदार्थ में कार्बन-14 की मात्रा
जितनी कम होती है, वह उतना ही प्राचीनतम माना जाता है। पदार्थों में C-14 के क्षय
की प्रक्रिया को रेडियोधर्मिता (Radio Activity) कहा जाता है।
9. गान्धार कला की विषेषताओं पर प्रकाष डाले?
उत्तर
: गान्धार कला की विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
1.
मानव शरीर के यथार्थ चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। इनमें मानव शरीर की
सुन्दर रचना एवं माँस-पेशियों की सूक्ष्मता परिलक्षित होती है। मूँछों एवं लहरदार
बालों का भी अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से प्रदर्शन हुआ है।
2.
बुद्ध की वेशभूषा यूनानी है, उनके पैरों में जूते दिखाये गये हैं, प्रभा - मण्डल
सादा तथा अलंकरण रहित है।
3.
शरीर से अत्यन्त सटे अंग-प्रत्यंग दिखाने वाले पारदर्शी वस्त्रों का अंकन हुआ है,
जिनमें सलवटें तक स्पष्ट देखी जा सकती हैं।
4.
अनुपम नक्काशी भी इस शैली की विशेषता है।
10. बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं का व्याख्या कीजिए ।
उत्तर
: 6 वर्ष की तपस्या के पश्चात् बोधगया में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुद्ध
कहलाए। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् सारनाथ में उन्होंने अपना प्रथम धर्मोपदेश दिया।
धर्मोपदेश ही धर्म चक्र प्रवर्तन कहलाता है।
गौतम
बुद्ध ने उपदेश दिया कि-
1.
संसार दुःखमय है।
2.
दुःख के कारण भी हैं।
3.
इन दुःखों से पीछा छुड़ाने के लिए तृष्णा का विच्छेद आवश्यक है।
4.
दु:ख निरोध मार्ग पर चल कर दुःखों से बचा जा सकता है।
गौतम
बुद्ध की शिक्षाएँ चार आर्य सत्य के नाम से जानी जाती हैं। दुःख निरोध हेतु गौतम
बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग पर चलने का उपदेश दिया।
11. बौद्ध धर्म के अस्टांगिक मार्ग के नाम बताए ?
उत्तर
: दुख से मुक्ति के आठ उपायों को बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग कहा है।
1.
सम्यक दृष्टि : इसका अर्थ है कि हमें हमेशा सही सही दृष्टि और दृष्टिकोण रखना
चाहिए। चार आर्य सत्य को समझते हुए सुख और दुख में यथार्थ दृष्टि रखें।
2.
सम्यक संकल्प: जीवन में आर्य मार्ग पर चलने का संकल्प लें। तभी दुखों से छुटकारा व
निर्वाण की प्राप्ति होगी।
3.
सम्यक वाक: मीठा, पवित्र और सत्य बोलें. ऐसा नहीं करने पर दुख जरूर आएगा।
4.
सम्यक कर्मांत: शुद्ध आचरण के साथ अच्छे कर्म करना। हिंसा, झूठ, चोरी,
पर-स्त्रीगमन जैसे कार्यों से दूर रहना।
5.
सम्यक आजीविका: धर्म पूर्वक कार्यों से आजीविका प्राप्त करना। दूसरों को हानि
पहुंचाने वाले शस्त्र, पशु, मांस, नशा और विष जैसे व्यापार से दूर रहें।
6.
सम्यक व्यायाम: ऐसी क्रिया व अभ्यास करना जिससे पापमय विचारों की समाप्ति और शुभ
विचारों का उदय हो।
7.
सम्यक स्मृति: राग- विवेक और सावधानी से काम करने की स्मृति रखना। स्मृति के चार
रूप कायानुपश्यना यानी शरीर के कार्य व चेतना के प्रति जागरुक रहना, वेदानुपश्यना
यानी सुख व दुख के प्रति सचेत रहना, चितानुपश्यना यानी चित्त के राग-द्वेष को
पहचानना और धर्मानुपश्यना यानी शरीर, मन और वचन की चेष्टा को समझना।
8.
सम्यक समाधि: ध्यान और चेतना के माध्यम से निर्वाण की प्राप्ति।
12. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए?
उत्तर
: अकबर प्रथम सम्राट था, जिसके धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखायी पड़ता है।
उसके इस विकास को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है-
प्रथम काल (1556-1575 ई.) - इस काल में अकबर इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था। जहाँ उसने इस्लाम की उन्नति हेतु अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया, वहीं दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना, रोज़े रखना, मुल्ला मौलवियों का आदर करना, जैसे उसके मुख्य इस्लामिक कृत्य थे।
द्वितीय
काल (1575-1582 ई.) - अकबर का यह काल धार्मिक दृष्टि से क्रांतिकारी काल था। 1575
ई. में उसने फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। उसने 1578 ई. में
इबादतखाने को धर्म संसद में बदल दिया। उसने शुक्रवार को मांस खाना छोड़ दिया।
अगस्त-सितम्बर, 1579 ई. में महजर की घोषणा कर अकबर धार्मिक मामलों में सर्वोच्च
निर्णायक बन गया। महजरनामा का प्रारूप शेख़ मुबारक द्वारा तैयार किया गया था।
उलेमाओं ने अकबर को ‘इमामे-आदिल’ घोषित कर विवादास्पद क़ानूनी मामले पर
आवश्यकतानुसार निर्णय का अधिकार दिया।
तृतीय
काल (1582-1605 ई.) - इस काल में अकबर पूर्णरूपेण दीन-ए-इलाही में अनुरक्त हो गया।
इस्लाम धर्म में उसकी निष्ठा कम हो गयी। हर रविवार की संध्या को इबादतखाने में
विभिन्न धर्मों के लोग एकत्र होकर धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद किया करते थे।
इबादतखाने के प्रारम्भिक दिनों में शेख़, पीर, उलेमा ही यहाँ धार्मिक वार्ता हेतु
उपस्थित होते थे, परन्तु कालान्तर में अन्य धर्मों के लोग जैसे ईसाई, जरथुस्ट्रवादी,
हिन्दू, जैन, बौद्ध, फ़ारसी, सूफ़ी आदि को इबादतखाने में अपने-अपने धर्म के पत्र
को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया। इबादतखाने में होने वाले धार्मिक वाद
विवादों में अबुल फ़ज़ल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी।
13. कबीर की शिक्षाओं की व्याख्या कीजिए?
उत्तर
: कबीर दास सबसे प्रभावशाली संतों में से एक थे। वह शायद पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी
में रहे। वे एक रहस्यवादी कवि थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म और भक्ति आंदोलन को
बहुत प्रभावित किया। उनके जीवन के बारे में अधिक प्रमाण या जानकारी नहीं है लेकिन
यह कहा जाता है कि उनका पालन-पोषण मुस्लिम जुलाहों या बुनकरों के परिवार में हुआ
था, जो बनारस (वाराणसी) शहर में या उसके पास बसे हुए थे। उनके छंद सिख धर्म के
ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब, पंच वाणी और बीजक में पाए जाते हैं। हमें उनके विचारों के
बारे में 'साखियों' और 'पाद' के रूप में जाने जाने वाले छंदों के विशाल संग्रह के
माध्यम से पता चलता है।
कबीर
की शिक्षाएँ प्रबल थीं और प्रमुख धार्मिक परंपराओं को अस्वीकार करती थीं। उनकी
शिक्षाओं ने ब्राह्मणवादी, हिंदू और इस्लाम दोनों की बाहरी पूजा के विभिन्न रूपों
का उपहास किया। वे हिन्दू, मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाते थे। उनका मानना था कि
ईश्वर एक है जिसके बस नाम अलग-अलग हैं। वह एक निराकार सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास
करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मोक्ष का एकमात्र मार्ग भक्ति या भक्ति के माध्यम
से था। उन्होंने मनुष्य के भाईचारे के पाठ का भी प्रचार किया। वे जाति व्यवस्था के
समर्थक नहीं थे। उनकी कविता बोली जाने वाली हिंदी का एक रूप थी जो आम लोगों के लिए
समझना आसान बनाती थी। हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में उनके अनुयायी हैं।
14. भारत में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के क्या कारण थे?
उत्तर
: यूरोपीय देशों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में उपनिवेशों की स्थापना की –
(i)
कच्चे माल की प्राप्ति
(ii)
निर्मित माल की खपत
(iii)
इसाई धर्म का प्रचार तथा
(iv)
समृद्धि की लालसा
कुल
मिलाकर यूरोपियन अपने उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल एवं इन कच्चे मालों से
तैयार सामानों के बाजार की तालाश में ही भारत की ओर आये और इसके माध्यम से उनका
उद्देश्य था-अपनी समृद्धि।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (3 x 5 = 15 )
15. हड़प्पा सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली की सविस्तार वर्णन करें
?
उत्तर
: हड़प्पा संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता इसका नगर नियोजन है। - हड़प्पा एवं
मोहनजोदड़ो की खुदाई में पूर्व तथा पश्चिम में दो टीले मिलते हैं। पूर्वी टीले पर
नगर तथा पश्चिमी टीले पर दुर्ग स्थित था। दुर्ग में सम्भवत: शासक वर्ग के लोग रहते
थे । प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर निचले स्तर पर ईंटों के मकानों - वाला नगर बसा
था जहाँ सामान्य लोग रहते थे।
1.
सड़क व्यवस्था - मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थीं। यहाँ की मुख्य
सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुराविदों ने राजपथ कहा है। अन्य सड़कों की चौड़ाई
2.75 से 3.66 मीटर तक थी। जाल पद्धति के आधार पर नगर नियोजन होने के कारण सड़कें
एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं जिनसे नगर कई खण्डों में विभक्त हो गया था। इस
पद्धति को 'ऑक्सफोर्ड सर्कस' का नाम दिया गया है।
2.
जल निकास प्रणाली - मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की
प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी। यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार
होते थे। भवन के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी
नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नाली को मुख्य सड़क के दोनों
ओर बनी पक्की - नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को
पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढँक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट 1
को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मोखे (मेन होल) भी बनाये गये थे । नालियों की इस
प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती।
3.
स्नानागार-मोहनजोदड़ो का एक प्रमुख सार्वजनिक स्थल है यहाँ के विशाल दुर्ग (54.86 x
33 मीटर) में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट (11.88 मीटर) लम्बा, 23 फुट (7.01
मीटर) चौड़ा एवं 8 फुट (2.44 मीटर) गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण
की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं।
स्नानागार
का फर्श पक्की ईंटों से बना है। सम्भवतः इस विशाल स्नानागार का उपयोग' आनुष्ठानिक
स्नान' हेतु होता होगा। स्नानागार से जल के निकास की भी व्यवस्था थी यह स्नानागार
उन्नत तकनीक का परिचायक है। मार्शल महोदय ने इसी कारण इसे तत्कालीन विश्व का
'आश्चर्यजनक निर्माण' बताया है।
4.
अन्नागार - मोहनजोदड़ो में ही 45.72 मीटर लम्बा एवं 22.86 मीटर चौड़ा एक अन्नागार
मिला है। हड़प्पा के दुर्ग में भी 12 धान्य कोठार खोजे गये हैं। ये दो कतारों में
छः-छः की संख्या में हैं। ये धान्य कोठार ईंटों के चबूतरों पर हैं एवं प्रत्येक का
आकार 15.23 मी. x 6.09 मी. है।
5.
ईंटें - हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग भी यहाँ के नगर
नियोजन की एक अद्भुत विशेषता है। ईंटें चतुर्भुजाकार होती थीं। मोहनजोदड़ो से
प्राप्त सबसे बड़ी ईंट का आकार 51.43 x 26.27 x 6.35 सेमी. है। सामान्यत: 27.94 ×
13.97 x 6.35 सेमी. की ईंटें प्रयुक्त हुई हैं।
16. इतिहास लेखन में अभिलेखों के महत्व पर प्रकाश डाले?
उत्तर
: अभिलेख प्राचीन काल के अध्ययन के लिए अत्यंत प्रमाणित और विश्वसनीय स्रोत होते
हैं क्योंकि यह समकालीन होते हैं। इनके अध्ययन करने समय तत्कालीन राजा के बारे में
उनके राज्य राज्य के विस्तार उनके चरित्र उपलब्धियां आदि की जानकारी मिलती है।
बहुत से अभिलेखों से हमें तत्कालीन धार्मिक संस्कृति रीति-रिवाजों की जानकारी
मिलती है। भारत में अब तक विभिन्न समय काल के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। इनमें
से सबसे प्राचीन अभिलेख पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व का पिप्रावा कलश लेख है। इस
प्रकार भाव भारत के विभिन्न स्थानों पर अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं. प्राचीन काल
के अभिलेख मुख्यता पाली संस्कृत और प्राकृत भाषा में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त
बहुत से अभिलेख तमिल, मलयालम, कन्नड़, और तेलुगु भाषा में भी मिले हैं. अधिकांश
अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है। बहुत से अभिलेखों के राजाओं ने लिखवाया था। इनमें
उनके आदेश, उपलब्धियां, विजय स्मारक, और अधिकारों की जानकारी दी गई है। इन सबसे
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए काफी मदद मिलती है।
अब
तक का सबसे ज्यादा सम्राट अशोक के द्वारा लिखवाए गए स्तंभ लेख तथा शिलालेख भारत के
विभिन्न स्थानों पर पाए गए हैं। सम्राट अशोक के अभिलेख मुख्य रूप से ब्राह्मी और
खरोष्ठी लिपि में पाई गई है। इस लिपि को दाई से बाई की ओर लिखी जाती थी। सम्राट
अशोक के अभिलेखों से हमें उसके व्यक्तित्व, उपलब्धियों आदि के साथ-साथ उस समय की
लिपि और भाषा की भी जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक के द्वारा लिखे गए अभिलेखों के
अलावा बहुत से सामान्य व्यक्तियों में भी जैसे कि कवियों के द्वारा भी लिखे गए
अभिलेख मिलते हैं। इन लोगों ने विभिन्न राजवंशों के इतिहास, उनके राज्य की सीमाओं
की विस्तार आदि पर बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां दी है। सामान्य व्यक्तियों के
अभिलेख मुख्य रूप से मंदिरों और मूर्तियों पर भी पाए जाते हैं। इन पर मंदिर अथवा
मूर्ति की स्थापना तिथि, मूर्ति कला, तत्कालीन भाषा और लिपि आदि की जानकारी मिलती
है। सम्राटों की प्रशस्ति में सम्राट समुद्रगुप्त का प्रयाग में अशोक स्तंभ में
उत्कीर्ण अभिलेख, कलिंगराज खारवेल की हाथी गुम्फ अभिलेख, गौतमी बालश्री का नासिक
अभिलेख, राजा भोज का ग्वालियर अभिलेख, गुप्तसम्राट स्कंदगुप्त का भितरी स्तंभ लेख और
नासिक अभिलेख, बंगाल नरेश विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख आदि प्रमुख हैं।
इसके
अतिरिक्त बहुत से विदेशी अभिलेख भी प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी देती है।
इनमें एशिया माइनर में बोगाजकोई का अभिलेख है। इसके अलावा पर्सिपोलस तथा नक्शे
रुस्तम के अभिलेखों से भी प्राचीन भारत और ईरान के पारंपरिक संबंधों के बारे में
महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है।
17. 1857 की क्रांति की असफलता के कारणो का वर्णन कीजिए?
उत्तर
: 1857 की क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्म थे-
1.
संगठन और एकता का अभाव : 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के असफल
रहने के पीछे संगठन और एकता का अभाव प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहा। इस क्रांति की न
तो कोई सुनियोजित योजना ही तैयार की गई न ही कोई ठोस कार्यक्रम था। इसी कारण यह
सीमित और असंगठित बन कर रह गया।
2.
नेतृत्व का अभाव :
क्रांतिकारियों के पास यद्यपि नाना साहब, तात्याटोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
जैसे आदि योग्य नेता थे, किन्तु फिर भी इस आंदोलन का किसी एक व्यक्ति ने नेतृत्व
नही किया जिस कारण से यह आंदोलन अपने उद्देश्य मे पूर्णतः सफल नही हो सका।
3.
परम्परावादी हथियार
: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे भारतीय सैनिकों के पास आधुनिक हथियार नही थे जबकि
अंग्रेज सैनिक पूर्णतः आधुनिक हथियार व गोला-बारूद का उपयोग कर रहे थे। भारतीय
सैनिक अपने परम्परावादी हथियार तलवार, तीर-कमान, भाले-बरछे आदि के सहारे ही युद्ध
के मैदान मे कूद पड़े थे जो उनकी पराजय का कारण बना।
4.
सामन्तवादी स्वरूप
: 1857 के संग्राम मे एक ओर अवध, रूहेलखण्ड आदि उत्तरी भारत के सामन्तों ने
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो दूसरी ओर पटियाला, जींद, ग्वालियर हैदराबाद
के शासकों ने विद्रोह के उन्मूलन मे अंग्रेजी हुकूमत को सहयोग किया। इस तरह यह
स्वतंत्रता संग्राम अपने उद्देश्य मे सफल नही हो सका।
5.
बहादुरशाह द्वितीय की अनभिज्ञता :
क्रांतिकारियों द्वारा बहादुरशाह द्वितीय को अपना नेता घोषित करने के बावजूद भी
बहादुरशाह के लिए यह क्रांति उतनी ही आकस्मिक थी जितनी कि अंग्रेजों के लिए थी।
यही कारण था कि अंततः बहादुरशाह को लेफ्टीनेण्ट हडसन ने बंदी बना कर रंगून भेज
दिया।
6.
समय से पूर्व और सूचना प्रसार मे असफल क्रांति : 1857 की क्रान्ति का असफलता का एक बड़ा कारण यह भी था
कि यह क्रांति समय से पूर्व ही प्रारंभ हो गयी। यदि यह क्रांति एक निर्धारित
कार्यक्रम के तहत लड़ी जाती तो इसकी सफलता के अवसर ज्यादा होते। इसी तरह आंदोलन के
प्रसार-प्रचार मे भी क्रांतिकारी नेतृत्व असफल रहा। इसका असर 1857 के स्वतंत्रता
संग्राम पर गहराई से पड़ा।
7.
स्थानीयता : 1857
की क्रान्ति मे स्थानीय उद्देश्य होने से आम भारतीयों का व्यापक जुड़ाव इसमे नही
हो सका। इस समय केवल उन्हीं शासकों ने क्रांति मे हिस्सा लिया जिनके हित सामने आ
रहे थे। 1857 की क्रान्ति की असफलता का यह भी एक कारण था।
8.
सम्पर्क भाषा का अभाव :
1857 की क्रान्ति की असफलता का एक महत्वपूर्ण कारण क्रान्तिकारियों मे सम्पर्क
भाषा का अभाव भी था। तत्कालीन समय मे अंग्रेजों की एक भाषा थी जिसका उद्देश्य वे
सूचना संदेश पहुँचाने मे करते थे किन्तु एक राष्ट्र भाषा के अभाव मे भारतीय
क्रान्तिकारियों के बीच आपसी सूचनाएँ समय पर पहुंचने के बाद भी संदेशों से वे
परिचित नही हो पाते थे। 1857 की असफलता का यह महत्त्वपूर्ण कारण था।
9.
सीमित क्षेत्र :
कुछ विद्वानों का मत है कि क्रांति का सीमित क्षेत्र था। नर्मदा के दक्षिण मे,
सिन्ध, राजपूताना और पूर्वी बंगाल मे उसका कोई प्रभाव नही था। यह प्रदेश ऐसे
प्रदेश थे जो दूर थे इनमे केवल पंजाब ही ऐसा था जो सहयोग प्रदान कर सकता था परन्तु
सिक्खों ने इस समय अंग्रेजों का साथ दिया और अधिकांश को शस्त्रहीन करवा दिया था।
परन्तु विद्वान इस असफलता के कारण पर एकमत नही है। उनकी दृष्टि मे अनुशासन और
संगठन आवश्यक था।
1857
के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे यद्यपि पराजय का सामना करना पड़ा किन्तु इस
क्रांति के बड़े गहरे व दूरगामी परिणाम सामने आये जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के
इतिहास मे भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। क्रांति ने अंग्रेजी साम्राज्य
की जड़ों को हिला दिया था।
1857
ई. का संग्राम ब्रिटिश राज के लिए एक बड़ी चुनौती था। इसे अन्ततः तत्कालीन गवर्नर
जनरल लाॅर्ड कैनिंग के द्वारा कुचल दिया गया, परन्तु इस संग्राम से अंग्रेजों को
गहरा झटका लगा। इस संग्राम ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया था
अतः ब्रिटिश सरकार ने भारत मे अनेक प्रशासनिक परिवर्तन किये।
18. स्वाधीनता आंदोलन में गाँधीजी की भूमिका प्रकाश डाले ?
उत्तर
: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता
है क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए आंदोलन की अगुवाई की थी। महात्मा
गांधी की शांतिपूर्ण और अहिंसक नीतियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता
संघर्ष का आधार बनाया। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था।
दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद, गोपाल कृष्ण गोखले ने महात्मा गांधी को
भारत में चिंताओं और संघर्ष से परिचित कराया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन के अहिंसक अभियानों की एक श्रृंखला
शुरू की गई थी। विरोध मुख्य रूप से नमक कर, भूमि राजस्व, सैन्य खर्चों को कम करने
आदि के खिलाफ थे।
चंपारण
और खेड़ा आंदोलन 1918 में खेड़ा सत्याग्रह और चंपारण आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता
प्राप्त करने के लिए गांधी के पहले महत्वपूर्ण कदमों में से एक था। महात्मा गांधी
गरीब किसानों के अनुरोध पर 1917 में चंपारण (बिहार) गए, जहां उन्होंने ब्रिटिश नील
उत्पादकों से अपनी जमीन के 15% हिस्से पर नील उगाने और किराए पर पूरी फसल के साथ
हिस्सा लेने की मांग की। एक विनाशकारी अकाल की पीड़ा में अंग्रेजों ने एक दमनकारी
कर लगाया जो उन्होंने बढ़ाने पर जोर दिया। साथ ही गुजरात के खेड़ा में भी यही
समस्या थी। इसलिए, महात्मा गांधी ने गांवों को सुधारना, स्कूलों का निर्माण,
गांवों की सफाई, अस्पतालों का निर्माण और कई सामाजिक कुरीतियों का खंडन करने के
लिए गांव के नेतृत्व को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश पुलिस ने अशांति
पैदा करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सैकड़ों लोगों ने पुलिस थानों और
अदालतों के बाहर विरोध और रैली की। उन्होंने उसकी रिहाई की मांग की, जिसे अदालत ने
अनिच्छा से मंजूर कर लिया। गांधी ने उन सभी जमींदारों के खिलाफ सुनियोजित विरोध का
नेतृत्व किया, जो गरीब किसानों का शोषण कर रहे थे। अंत में महात्मा गांधी किसानों
को सुधारने की अपनी मांगों से सहमत होने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने में सफल
हो गए। इस आंदोलन के दौरान लोगों ने मोहनदास करमचंद गांधी को बापू कहकर संबोधित
किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी को वर्ष 1920 में महात्मा की उपाधि से सम्मानित
किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी का पहला आंदोलन असहयोग आंदोलन के साथ
शुरू हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने
किया था। यह अहिंसात्मक प्रतिरोध के देशव्यापी आंदोलन की पहली श्रृंखला थी। आंदोलन
सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक चला। अन्याय के खिलाफ लड़ाई में, गांधी के हथियार
असहयोग और शांतिपूर्ण प्रतिरोध थे। लेकिन नरसंहार और संबंधित हिंसा के बाद, गांधी
ने अपना ध्यान पूर्ण स्व-शासन प्राप्त करने पर केंद्रित किया। यह जल्द ही स्वराज
या पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता में बदल गया। इस प्रकार, महात्मा गांधी के नेतृत्व
में, कांग्रेस पार्टी को नए संविधान के साथ स्वराज के उद्देश्य से फिर से संगठित
किया गया। महात्मा गांधी ने स्वदेशी नीति को शामिल करने के लिए अपनी अहिंसा नीति
को आगे बढ़ाया, जिसका अर्थ था विदेशी निर्मित वस्तुओं की अस्वीकृति। महात्मा गांधी
ने सभी भारतीयों को ब्रिटिश निर्मित वस्त्रों के बजाय खादी पहनने के लिए संबोधित
किया। उन्होंने सभी भारतीयों से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने के लिए
खादी की कताई के लिए कुछ समय बिताने की अपील की। यह महिलाओं को आंदोलन में शामिल
करने की नीति थी, क्योंकि इसे एक सम्मानजनक गतिविधि नहीं माना जाता था। इसके
अलावा, गांधी ने ब्रिटिश शैक्षिक संस्थानों का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों से
इस्तीफा देने और ब्रिटिश उपाधियों को छोड़ने का भी आग्रह किया। जब आंदोलन को बड़ी
सफलता मिली, तो उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में हिंसक झड़प के बाद यह अप्रत्याशित
रूप से समाप्त हो गया। इसके बाद, महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया और 6
साल कैद की सजा सुनाई गई।
भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस दो खंडों में विभाजित थी। इसके अलावा, हिंदू और मुस्लिम लोगों
के बीच समर्थन भी टूट रहा था। दांडी मार्च महात्मा गांधी 1928 में फिर से सबसे आगे
लौट आए। 12 मार्च, 1930 को गांधी ने नमक पर कर के खिलाफ एक नया सत्याग्रह शुरू
किया। अहमदाबाद से दांडी तक पैदल चलकर, अपने नमक बनाने के अधिकार से गरीबों को
वंचित करने वाले कानून को तोड़ने के लिए, उन्होंने ऐतिहासिक दांडी मार्च की शुरुआत
की। गांधी ने दांडी में समुद्र तट पर नमक कानून तोड़ा। इस आंदोलन ने पूरे राष्ट्र
को उत्तेजित किया और इसे सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। 8 मई,
1933 को, उन्होंने हरिजन आंदोलन में मदद करने के लिए आत्म-शुद्धि का 21 दिवसीय
उपवास शुरू किया। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रकोप के बाद भारत छोड़ो
आंदोलन महात्मा गांधी फिर से राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए। 8 अगस्त, 1942 को
गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया। गांधी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, देश
के बाहर अव्यवस्थाएं फैल गईं और कई हिंसक प्रदर्शन हुए। स्वतंत्रता संग्राम में
भारत छोड़ो सबसे शक्तिशाली आंदोलन बन गया। पुलिस की गोलियों से हजारों स्वतंत्रता
सेनानी मारे गए या घायल हुए, और सैकड़ों हजारों को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने
सभी कांग्रेसियों और भारतीयों से परम स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा और
कारो यारो (करो या मरो) के माध्यम से अनुशासन बनाए रखने का आह्वान किया। 9 अगस्त,
1942 को, महात्मा गांधी और पूरी कांग्रेस कार्य समिति को मुंबई में गिरफ्तार किया
गया। उनकी बिगड़ती सेहत के मद्देनजर, उन्हें मई 1944 में जेल से रिहा कर दिया गया
क्योंकि अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि वे जेल में मरें और राष्ट्र को नाराज़ करें।
अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने के स्पष्ट संकेत दिए जाने के
बाद, गांधी ने लड़ाई बंद कर दी और सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया। विभाजन और
भारतीय स्वतंत्रता 1946 में, सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुनय-विनय पर, महात्मा गांधी
ने गृहयुद्ध से बचने के लिए भारत के विभाजन और ब्रिटिश कैबिनेट द्वारा पेश की गई
स्वतंत्रता के प्रस्ताव को अनिच्छा से स्वीकार कर लिया। स्वतंत्रता के बाद, गांधी
का ध्यान शांति और सांप्रदायिक सद्भाव में बदल गया। उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा को
खत्म करने के लिए उपवास किया और मांग की कि विभाजन परिषद ने पाकिस्तान को मुआवजा
दिया। उनकी माँगें पूरी हुईं और उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया। इस प्रकार, मोहनदास
करमचंद गांधी अंग्रेजों से लड़ने के लिए पूरे देश को एक छत्र के नीचे लाने में
सक्षम थे। गांधी ने अपनी तकनीकों को धीरे-धीरे विकसित और सुधार किया, यह आश्वासन
देने के लिए कि उनके प्रयासों ने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
19. आधुनिक भारत के निर्माण में डॉक्टर बी0आर0 अम्बेडकर की देने का
मूल्यांकन कीजिए ?
उत्तर
: प्रख्यात विधिवेत्ता और अर्थशास्त्री बी. आर. अम्बेडकर संविधान सभा के सबसे
महत्त्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।
(i)
यद्यपि ब्रिटिश शासन के काल में अम्बेडकर कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी रहे थे
परन्तु विभाजन की हिंसा के पश्चात् डॉ.बी.आर. अम्बेडकर ने दलितों (हरिजनों) के लिए
पृथक निर्वाचिका की अपनी माँग छोड़ दी थी।
(ii) स्वतंत्रता के समय गाँधीजी की सलाह पर डॉ.बी.आर. अम्बेडकर को केन्द्रीय विधि मंत्री का पद दिया गया। इस भूमिका में उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया।
(iii) डॉ.बी.आर. अम्बेडकर के अथक प्रयास से इस समिति
ने अपनी
संस्तुतियाँ
21 फरवरी, 1948 ई. को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत की।
इन प्रस्तावों को विचार-विमर्श के पश्चात् 26 नवम्बर, 1949 ई. को संविधान सभा ने पारित कर दिया।
(iv) संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन 24 जनवरी, 1950 ई. को हुआ,
जिसमें
निर्णय लिया गया कि भारत में नवीन संविधान 26 जनवरी 1950. ई. से लागू किया जाय।
(v)
देश में कई दमित समूह सदियों से शोषण एवं सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के शिकार थे।
उन्हें मुख्य धारा में लाकर उनके साथ न्याय तथा उनका विकास अम्बेडकर के लिए एक
बड़ी चुनौती थी।
(vi)
उनके विचारों से एक आम सहमति बनी एवं संविधान सभा ने सुझाव दिया कि-
(a)
अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाय और हिन्दू मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया
जाय।
(b)
निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाय।
(vii)
संविधान निर्माण के इस दौर में डॉ. अम्बेदकर ने सदियों से दबे-कुचले दलित समाज के
अधिकारों को संरक्षण देने के लिए अनेक ठोस एवं दूरगामी प्रावधानों को संविधान में
सूचीबद्ध किया । इस प्रकार भारत के संविधान निर्माण तथा सामाजिक न्याय एवं समानता
के क्षेत्र में डॉ. अम्बेदकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।