12th History Set -3 Koderma PROJECT RAIL 2.0 MODEL QUESTION PAPER-2023

12th History Set -3 Koderma PROJECT RAIL 2.0 MODEL QUESTION PAPER-2023

Koderma PROJECT RAIL 2.0

MODEL QUESTION PAPER-2023

SET -3

वर्ग-12

विषयइतिहास

पूर्णांक- 40

समय- 1 घंटा 30 मिनट

सामान्य निर्देष :-

• कुल 40 प्रश्न है। सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है।

• सभी प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है।

• प्रत्येक प्रश्न के लिए चार विकल्प दिये गये है ।

• सही विकल्प का चयन कीजिए ।

• गलत उत्तर के लिए कोई अंक नहीं काटे जाएँगें ।

वस्तुनिष्ट प्रश्न :-1x40 = 40 

1. हडप्पा सभ्यता का स्वरूप क्या है?

क) ग्रामीण सभ्यता

ख) शहरी सभ्यता

ग) भोजन संग्राहक सभ्यता

घ) कबीलाई

 

2. गुजरात राज्य के कच्छ जिले में स्थित सुरकोटडा की सर्वप्रथम खोज की थी ?

क) मोधोस्वरूप वल्स

ख) एस. आर. राव

ग) जगपति जोषी ने

घ) एन.जी मजुमदार ने

 

3. एलोरा मंदिर के कैलाश मंदिर का निर्माण किस राजवंश ने किया ?

क) चालुक्य

ख) चोल

ग) पल्लव

घ) राष्ट्रकूट

 

4. किस शिलालेख से अशोक के कलिंग विजय का पता चलता है?

क) प्रथम

ख) पांचवें

ग) दसवें

घ) तेरहवें

 

5. भूमिदान का उल्लेख किसके अभिलेख में मिलता है ?

क) समुद्रगुप्त

ख) प्रभावती गुप्त

ग) अशोक

घ) इन  सभी में

 

6. महाभारत कालीन समाज था ?

क) पितृसत्तात्मक

ख) मातृसत्तात्मक

ग) कुल सत्तात्मक

घ) कुलीन सत्तात्मक

 

7. नाथमुनि का संबंध किस धर्म से है ?

क) जैन धर्म

ख) बौद्ध धर्म

ग) शैव धर्म

घ) वैष्णव धर्म

 

8. बौद्ध धर्म के मुख्य ग्रंथ है?

क) पिटक

ख) मत्स्य पुराण

ग) वामन

घ) प्रबुध काल्यायन

 

9. अशोक ने बौद्ध परम्परा में कितने स्तूप बनवाये ?

क) 50,000

ख) 64,000

ग) 10,000

घ) 84,000

 

10. किस तीर्थयात्री को यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है?

क) ह्नेनसांग

ख) फहियान

ग) इत्सिंग

घ) हवीली

 

11. रेहला पुस्तक के लेखक कौन थे?

क) अलबरूनी

ख) इब्नबतुता

ग) इब्न जुजाई

घ) मार्कोपोलो

 

12. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही है?

क) मुहम्मद गोरी अपने अधिकार के बारे में कोई निर्णय नहीं ले पाया था

ख) गोरी अपने कुटुम्ब के किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करता था

ग) गोरी को कोई बेटा नहीं था

घ) उपरोक्त सभी

 

13. भक्ति आन्दोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाने का श्रेय किस संत को दिया जाता है?

क) रामानुजाचार्य

ख) बल्लभाचार्य

ग) माधवार्य

घ) रामनंद

 

14. किस शैव संत का 'तवरम' नामक संकलन है?

क) ऊपरी सम्पदार

ख) सीर

ग) पीपा

घ) सुन्दर

 

15. किस विदेशी यात्री ने महानवमी के डिब्बे को विजय का भवन की संज्ञा दी है?

क) डेंमिगौस पाएस

ख) अब्दुर्रज्जाक

ग) निकोलो कोण्टी

घ) फनीओ नूनीज

 

16. विजयनगर की यात्रा पर आने वाले सर्वप्रथम विदेशी यात्री कौन था?

क) निकोली कोण्टी

ख) अब्दुर्रज्जाक

ग) डेमिंगौस पेइस

घ) फनीओ नूनीज

 

17. भारत विद्या का जनक रूस में किसे कहा जाता है?

क निकोली कोण्टी

ख) अफनासी

ग) जी. एस. लिवि देव

घ) डेंमिगौस पाएस

 

18. अबुल फजल की जीवनी 'आइन ए अकबरी' के किस भाग में वर्णित है ?

क) द्वितीय भाग

ख) तृतीय भाग

ग) चतुर्थ भाग

घ) पंचम भाग

 

19. पानीपत की पहली लडाई कब हुई ?

क) 1520 ई0

ख) 1525 ई0

(ग) 1526 ई0

ग) 1529 ई0

 

20. खानवां का युद्ध कब हुआ ?

) 1526 ई0 में

ख) 1527 ई0 में

ग) 1529 ई0 में

घ) 1530 ई0 में

 

21. बाबर चंगेज खाँ का कौन-सा वंश था?

क) पाचवाँ

ख) सातवाँ

ग) बारहवाँ

घ) चौदहवाँ

 

22. अकबर निम्नलिखित में से किस पर अधिकार नहीं कर सका

क) मखाड

ख) मेवाड

ग) जोधपूर

घ) चित्तौड

 

23. फतेहपुर सीकरी को राजधानी किसने बनाया?

क) अकबर

ख) जहांगीर

ग) शाहजहाँ

घ) बाबर

 

24. भूमि का स्वामी रैयतवाडी व्यवस्था में कौन होता था?

ख) जमींदार

ख) ब्रिटिश

ग) किसान

घ) इनमें से कोई नहीं

 

25. मुण्डा विद्रोह का नेता कौन था?

क) बिरसा मुण्डा

ख) कान्हु मुण्डा

ग) सिद्धू

घ) गोमधर मुण्डा

 

26. 1 जुलाई 1857 में सागर विद्रोह का आरंभ किसने किया?

क) शेख रमजान

ख) बख्तवली

ग) गर्दन सिंह

घ) बौदन दौआ

 

27. 1857 की क्रांति से पूर्व अफवाहे फैल रही थी निम्न में से कौन सी अफवाह सही है ?

क) कारतूसो में गाय एवं सुअर चर्बी भरी हुई

ख) घी, आटा व शक्कर में गाय व सुअर की हड्डियों का चूरा मिलता है

ग) गांवो में चपातियो एवं छावनी में कमल फूल भेजे रहे है

घ) उक्त सभी अफवाहे फैल रही थी

 

28. 1857 की क्रांति का आरंभ कब हुआ ?

क) 10 मई

ख) 13 मई

ग) 18 मई

घ) 21 मई

 

29. किस सन् में वास्कोडिगामा भारत पहुँचा ?

क) 20 मई 1498

ख) 17 मार्च 1948

ग) 17 मार्च 1598

घ) 17 मार्च 1598

 

30. 1854 में सूती वस्त्र की प्रथम मिल की शुरूआत किसने की ?

क) नानाभाई

ख) दादाभाई नौरोजी

ग) फोर्ट सेंट डेविट

घ) एडम स्मिथ

 

31. किस राज्य का संबंध चम्पारण सत्याग्रह से है ?

क) बिहार

ख) उत्तर प्रदेश

ग) मध्य प्रदेश

घ) महाराष्ट्र

 

32. दिल्ली चलो का नारा किसने दिया?

क) सुभाष चन्द्र बोस

ख) महात्मा गाँधी

ग) लाला लाजपतराय

घ) गोपाल कृष्ण गोखले

 

33. आजाद हिन्द फौज का गठन सुभाष चन्द्र बोस ने कहाँ पर किया ?

क) मलाया

ख) वर्मा

ग) थाइलैण्ड

घ) सिंगापुर

 

34. निम्न में से कौन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक थे?

क) ए. ओ. ह्युम

ख) रानी लक्ष्मीबाई

ग) तात्या टोपे

घ) कुवंर सिंह

 

35. भारतीस राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षता कौन थी?

क) एनी बेंसेट

ख) अरुणा आसफ अली

ग) सरोजनी नायडू

घ) विजया लक्ष्मी गोखले

 

36. मुस्लिम लींग द्वारा मुक्ति दिवस कब मनाया गया ?

क) 22 दिसम्बर 1938

ख) 20 दिसम्बर 1939

ग) 22 दिसम्बर 1929

घ) 22 दिसम्बर 1939

 

37. त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाषचन्द्र बोस ने किसको हराया?

क) पट्टाभि सीतारमैया

ख) मोहन सिंह

ग) लाल बहादुर

घ) दादा भाई नोरोजी

 

38. प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?

क) डॉ. भीवराव अम्बेडकर

ख) डाँ. राजेन्द्र प्रसाद

ग) सरदार पटेल

घ) जवाहर लाल नेहरू

 

39. पुना समझौता कब किया गया?

क) 24 सितम्बर 1932

ख) 25 दिसम्बर 1932

ग) 26 दिसम्बर 1934

घ) 26 दिसम्बर 1933

 

40. भारतीय संविधान के अनुसार सम्प्रभुता निहित है ?

क) राष्ट्रपति में

ख) न्यायपालिका में

ग) प्रधानमंत्री में

घ) संविधान में

[ख]

विषयनिष्ठ प्रश्न :-

इनमें से किन्ही पाँच प्रश्नों के उत्तर दें- 5x2 = 10

1. स्नानागार, अथवा अन्नागार के बारे में लिखें?

उत्तर : स्नानागार : यह मोहनजोदड़ो के निवासियों के लिए एक महत्व सार्वजनिक स्थल था। यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। इस स्नानागार के निर्माण में पक्की ईंटो का उपयोग किया गया है, इन ईंटों को जोड़ने के लिए जिप्सम और मोर्टार का उपयोग किया गया है।

अन्नागार बखारी या अन्नागार (grainary) में अन्न को भंडारित किया जाता है। प्राचीनकाल में मिट्टी के बर्तनों में अन्न भंडारित किया जाता था। कुछ किसान कच्ची मिट्टी को भूसे से प्रबलित (री-इनफोर्स) करके अन्नागार बनाते थे जिसको 'डेहरी' कहा जाता था।

2. गोदीवाडा, हडप्पा सभ्यता के किस स्थल से प्राप्त हुआ?

उत्तर : लोथल के पूर्वी भाग में गोदीवाड़ा (डाॅकयार्ड) का साक्ष्य मिला है।

3. महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम क्या था?

उत्तर : गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था

4. महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला?

उत्तर : 18 दिनों तक

5. बौद्ध धर्म का त्रिरत्न लिखें?

उत्तर : त्रिरत्न :- बुद्ध, धम्म और संघ

6. जैन धर्म का त्रिरत्न लिखें?

उत्तर : सम्यक विश्वास, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण

7. 1857 की क्रांति कहाँ से प्रारंभ हुआ?

उत्तर : उत्तर प्रदेश के मेरठ से

लघु उत्तरीय प्रश्न

इनमें से किन्ही पाँच प्रश्नों के उत्तर दें- 5x3= 15

8. हडप्पा सभ्यता की मुहरो का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।

उत्तर : हड़प्पा स्थलों से पुरातत्वविदों द्वारा हजारों मुहरों की खोज की गई है। अधिकांश मुहरें स्टीटाइट, जो एक प्रकार का नरम पत्थर होता है, की बनी हुई थीं। उनमें से कुछ टेराकोटा, सोना, सुलेमानी, चर्ट, हाथीदांत और फैयेंस से भी बनी हुई थीं। मानक हड़प्पा मुहर 2X2 आयाम के साथ चौकोर आकार की थी।

अथवा

हडप्पा सभ्यता की नगर योजना की विषेषता बतलाएँ ?

उत्तर : हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन व्यवस्थित था। ये नगर आयताकार या वर्गाकार आकृति में मुख्य सड़कों तथा चौड़ी गलियों के ग्रिड पर आधारित थे। नगरों की मुख्य सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। आमतौर पर सड़कें कच्ची होती थीं।

9. अशोक के शिलालेख किन स्थानो पर मिले है

उत्तर : शिलालेखों और स्तम्भ लेखों को दो उपश्रेणियों में रखा जाता है। 14 शिलालेख सिलसिलेवार हैं, जिनको चतुर्दश शिलालेख कहा जाता है। ये शिलालेख शाहबाजगढ़ी, मानसेरा, कालसी, गिरनार, सोपारा, धौली और जौगढ़ में मिले हैं।

अथवा

चन्द्रगुप्त मौर्य के विजयों का उल्लेख करें?

उत्तर : चन्द्रगुप्त मौर्य के विजय

(1) पंजाब विजय - सिकन्दर के स्वदेश लौट जाने तथा अकाल मृत्यु के कारण उसके सेनानायकों में कुहराम मच गया और वे राज्यों के लिए आपस में झगड़ने लगे। परिणामतः चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य ने विदेशी शासकों की फूट और जनता के असंतोष से लाभ उठाकर यूनानी सेनाओं को पंजाब से शीघ्र मार भगाया और भारत भूमि से विदेशी दासता के जुए को हमेशा के लिए उतार फेंका।

(2) मगध पर विजय - पंजाब पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेने के बाद चन्द्रगुप्त ने सैनिक संगठन किया। कश्मीर की पहाड़ियों के राजा पर्वतक से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किया । तत्पश्चात् पूरी तैयारी के साथ उसने नन्द सम्राट घनानन्द पर आक्रमण कर दिया । उपलब्ध प्रमाणों से विदित होता है कि घनानन्द सपरिवार मारा गया और सम्पूर्ण मगध पर चन्द्रगुप्त का अधिकार हो गया। 322 ई० पू० में चन्द्रगुप्त मगध के सिंहासन पर बैठ गया।

(3) सेल्यूकस से युद्ध (1987) - सिकन्दर के साम्राज्य को उसके सेनानायकों ने बाँट लिया था। भारतीय राज्य का भाग सेल्यूकस को मिला। इसलिए उसने पुनः भारत-विजय की सोची और 305 ई० पू० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। किन्तु अब पूरा उत्तरी भारत चन्द्रगुप्त जैसे योग्य शासक के अधिकार में था और उसके पास एक शक्तिशाली सेना थी । अतः सेल्यूकस की सेना के अभियान को चन्द्रगुप्त मौर्य ने कुचल दिया। सेल्यूकस को चन्द्रगुप्त के साथ अपमानजनक संधि करनी पड़ी। संधि की निम्नलिखित शर्ते थीं :-

(1) सेल्यूकस ने काबुल, कन्दहार, बिलूचिस्तान और हेरात के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दिये।

(2 ) सेल्यूकस ने अपनी कन्या का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया ।

(3) चन्द्रगुप्त ने 500 हाथी उपहारस्वरूप सेल्यूकस को भेंट किये।

(4) सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नामक राजदूत भी भेजा ।

(4) दक्षिण भारत की विजय - रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि चन्द्रगप्त ने सौराष्ट्र पर भी विजय पताका फहराई। मालवा और काठियावाड़ भी उसके अधिकार में आ गये थे। इसलिए दक्षिण विजय का श्रेय भी चन्द्रगुप्त को दिया जाता है।

10. इब्न बतुता द्वारा किए गए यात्रा का संक्षेप में विवरण दें?

उत्तर : इब्न बतूता ने अपनी यात्रा का विवरण अरबी भाषा में लिखा था। इब्न बत्तूता एक अरब यात्री, विद्धान् और लेखक था। इनका पूरा नाम था मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: इन्होंने लगभग 75,000 मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। अपनी यात्रा के दौरान भारत भी आया था।

इब्न बत्तूता आरंभ से ही बड़ा धर्मानुरागी था। उसे मक्के की यात्रा (हज) तथा प्रसिद्ध मुसलमानों का दर्शन करने की बड़ी अभिलाषा थी। इस आकांक्षा को पूरा करने के उद्देश्य से वह केवल 21 बरस की आयु में यात्रा करने निकल पड़ा। चलते समय उसने यह कभी न सोचा था कि उसे इतनी लंबी देश देशांतरों की यात्रा करने का अवसर मिलेगा।

11. कृष्णदेवराय के बारे में संक्षिप्त में विवरण दें?

उत्तर : कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के महानतम शासक थे। उन्होंने ईसवी वर्ष 1509 से 1529 तक शासन किया। संगम वंश के शासक कृष्णदेवराय के शासन काल में विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सामरिक शक्ति के रूप में उभरा। कृष्णदेव राय ने आंध्रभोज, आंध्र पितामह और अभिनव भोज उपाधियां धारण की थीं। मुगल सम्राट अकबर ने कृष्ण देवराय के जीवन से बहुत कुछ सीख लेकर अनुसरण किया था। कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में जहर दिए जाने के बाद बीमार पड़ने के कारण हुई।

विजयनगर साम्राज्य के सबसे यशस्वी सम्राट कृष्ण देवराय की ख्याति उत्तर के चंद्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन और महाराजा भोज से कम नहीं है। जिस तरह उत्तर भारत में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, बाजीराव और पृथ्वीराज चौहान ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, उसी तरह दक्षिण भारत में राजा कृष्ण देवराय और उनके पूर्वजों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा और सम्मान को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

अथवा

आयंगर व्यवस्था और नायंकर व्यवस्था के बारे में चर्चा करें?

उत्तर : आयंगर व्यवस्था : विजयनगर काल में ग्रामीण प्रशासन की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता आयंगर व्यवस्था थी । इस व्यवस्था के अनुसार एक स्वतंत्र इकाई के रूप में प्रत्येक ग्राम को संगठित किया जाता था जिस पर शासन के लिए बारह शासकीय व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था । इस बारह शासकीय अधिकारियों के समूह को 'आयंगर' कहा जाता था

नायंकर व्यवस्था : विजयनगर कालीन नायंकार व्यवस्था सामन्तवादी व्यवस्था का ही एक रूप था । कुछ विद्वानों के अनुसार ' नायक ' शब्द सेनापतियों के लिए प्रयुक्त होता था । ये भू - सामन्त निश्चित संख्या में सैनिक रखते थे जिसके व्यय के लिए राजा उन्हें भूखण्ड प्रदान करता था जिसे ' अमरम ' कहा जाता था ।

12. भक्ति और सूफी आन्दोलन के तीन-तीन अंतर बताएँ ?

उत्तर : भक्ति और सूफी आंदोलन के बीच अंतर

भक्ति आंदोलन

सूफी आंदोलन

1. इस आन्दोलन से हिन्दू अत्यधिक प्रभावित हुए।

1. इसका पालन ज्यादातर मुस्लिम करते थे।

2. भक्ति संतों ने देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए भजन गाए।

2. सूफी संतों ने कव्वाली की, एक प्रकार का संगीत जो धार्मिक भक्ति को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

3. भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत में सातवीं शताब्दी में शुरू हुआ।

3. सातवीं शताब्दी के अरब प्रायद्वीप में इस्लाम के शुरुआती दिनों में सूफीवाद की उत्पत्ति का पता लगाया जा सकता है।

 

13.1857 के क्रांति के पांच क्रांतिकारीयों का नाम लिखें?

उत्तर : बहादुरशाह जफर, तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा व नाना फड़नवीस

अथवा

भारत छोडो आन्दोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तीन महिलाओं का नाम लिखें?

उत्तर : भारत छोड़ो आंदोलन में निम्नलिखित महिला नेताओं ने अपना बहुमूल्य योगदान किया:

1. सरोजिनी नायडू:

सरोजिनी नायडू प्रारंभ से आज़ादी के संघर्ष में सक्रिय रहीं थीं। उन्होंने धरसाना नमक सत्याग्रह के दौरान गाँधीजी व सभी अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया था।

3 दिसंबर, 1940 को विनोबा भावे के नेतृत्व में हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह में हिस्सा लेने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्हें शीघ्र ही जेल से रिहा कर दिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए प्रमुख नेताओं में वो भी शामिल थीं। उन्हें पुणे के आगा खाँ महल में रखा गया था। 10 महीने के बाद जेल से वो रिहा हुई तथा फिर से राजनीति में सक्रिय हुईं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया तथा मार्च 1949 तक वो इस पद पर बनी रहीं एवं अपने कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

भारत में फैले प्लेग महामारी के दौरान लोगों की सेवा करने के लिये भारत सरकार ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि दी थी जिसे उन्होंने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद वापस कर दिया था।

सरोजिनी नायडू भारत में हिंदू-मुसलमान एकता की प्रबल समर्थक थीं और उन्हें उनकी कविताओं के लिये ‘भारत की बुलबुल’ (Nightingale of India) कहा जाता है।

2. ऊषा मेहता:

भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ होने के बाद जब सभी मुख्य कॉन्ग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गए तब जिन लोगों ने गुप्त तरीके से आंदोलन को चलाया उनमें से ऊषा मेहता प्रमुख नाम है।

कॉन्ग्रेस के कुछ सदस्यों ने मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान होने वाली सभी घटनाओं को जनता तक पहुँचाया। इस सदस्यों में ऊषा मेहता के अलावा, विट्ठलदास, चंद्रकांत झावेरी, बाबूभाई ठक्कर और शिकागो रेडियो, मुंबई के टेक्निशियन नानक मोटवानी शामिल थे।

इस रेडियो का प्रसारण मुंबई में विभिन्न स्थानों पर छिपाकर किया जाता था तथा प्रत्येक अगले दिन का प्रसारण किसी दूसरे स्थान से होता था। इसे कॉन्ग्रेस रेडियो के नाम से प्रसारित किया गया तथा 3 महीने तक चलने के बाद ही इसे पुलिस पकड़ पाई।

कॉन्ग्रेस रेडियो के माध्यम से ऊषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके द्वारा देश भर के विभिन्न स्थानों से आने वाली क्रांति की खबरें इस पर प्रसारित की जाती थीं जिसकी वजह से स्थानीय स्तर पर आंदोलन कर रहे सत्याग्रहियों को हौसला मिलता था।

इस रेडियो के माध्यम से चटगाँव बम ब्लास्ट, जमशेदपुर हड़ताल तथा अश्ती और चिमूर में पुलिस के बर्बरता को प्रसारित किया गया तथा इस रेडियो पर राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन एवं पुरुषोत्तम दास जैसे लोगों ने कॉन्ग्रेस रेडियो पर प्रसारण किया।

3. अरुणा आसफ अली:

अरुणा नमक सत्याग्रह के दिनों से ही राजनैतिक रूप से सक्रिय रहीं थीं लेकिन उनकी पहचान 9 अगस्त, 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में बनी जब सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने राष्ट्रीय ध्वजारोहण समारोह का नेतृत्व किया।

उस समय बहुत बड़ी संख्या में भीड़ एकत्रित हुई थी और पुलिस ने उस पर नियंत्रण हेतु लाठी, आँसू गैस तथा गोली चलायी फिर भी अरुणा ने उस सभा सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।

भारत छोड़ो आंदोलन में अरुणा आसफ अली ने भी अन्य नेताओं की भाँति ही भूमिगत तरीके से भागीदारी की और आंदोलन के प्रचार में अपना योगदान किया।

सितंबर 1942 में दिल्ली प्रशासन की तरफ से अरुणा को आत्मसमर्पण करने के लिये कहा गया था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस कारण उनका घर, संपत्ति, गाड़ी आदि को नीलाम कर दिया गया। इसके बावजूद भी अरुणा आसफ अली आंदोलन के लिये प्रचार करती रहीं, पत्रिकाओं में लेख लिखती रहीं तथा लोगों से लगातार मिलती रहीं।

उन्होंने राममनोहर लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया।

14. अकबर के व्यवस्था सुधार का विवरण दें?

उत्तर : अकबर ने व्यापक सुधारों की स्थापना करके उन प्रवृत्तियों का मुकाबला किया जिसमें दो मूलभूत परिवर्तन शामिल थे। सबसे पहले, प्रत्येक अधिकारी, कम से कम सिद्धांत रूप में, अपने तत्काल श्रेष्ठ के बजाय सम्राट द्वारा नियुक्त और पदोन्नत किया गया था। दूसरा, तलवार और कलम के बड़प्पन के बीच पारंपरिक अंतर को समाप्त कर दिया गया: नागरिक प्रशासकों को सैन्य रैंक सौंपी गई, इस प्रकार वे सेना अधिकारियों के रूप में सम्राट पर निर्भर हो गए।

अथवा

रैयतवाडी व्यवस्था एवं स्थायी बन्दोबस्त में अंतर बताएँ ?

उत्तर : स्थायी बंदोबस्त और रैयतवाड़ी व्यवस्था के बीच मुख्य अंतर यह है कि स्थायी बंदोबस्त प्रणाली के तहत, सरकार द्वारा जमींदार से भू-राजस्व वसूल किया जाता था; रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत सरकार सीधे किसानों से भू-राजस्व वसूल करती थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

इनमें से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर दें- 5x3=15

15. हडप्पा सभ्यता के पतन के कारणों का वर्णन करें?

उत्तर : सैंधव सभ्यता जिस द्रुतगति से प्रकाश में आयी उसी गति से ही यह विनष्ट हो गई। इसके पतन के लिए विद्वानों ने कई कारण बताएं हैं। जैसे – बाढ़, आर्यों का आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, भू-तात्विक परिवर्तन, व्यापार में गतिरोध, प्रशासनिक शिथिलता, महामारी एवं साधनों का अधिक उपभोग आदि।

1. बाढ़- सिन्धु सभ्यता के पतन का प्रधान कारण बाढ़ ही माना जाता है। मार्शल ने मोहनजोदड़ों मैके ने चन्हूदड़ों तथा एस.आर. राव ने लोथल के पतन का प्रमुख कारण बाढ़ माना है। मार्शल के अनुसार मोहनजोदड़ों में 7 बार बाढ़ आयी, क्योंकि इसकी खुदाई से इसके 7 स्तरों का पता चलता हैं धीरे-धीरे लोग नगर छोड़कर अन्यत्र चले गए। परन्तु इससे उन नगरों के पतन के कारणों पर प्रकाश नहीं पड़ता जो नदियों के किनारे स्थित नहीं थे।

2. आर्यों का आक्रमण- व्हीलर, गार्डन चाइल्ड, मैके, पिगनट आदि विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण आर्यों का आक्रमण माना है। अपने मत की पुष्टि में उन्होंने मोहनजोदड़ों से प्राप्त नर-कंकालों तथा ऋग्वेद के देवता इन्द्र का उल्लेख दुर्ग संहारक के रूप में किया है परन्तु अमेरिकी इतिहासकार केनेडी ने सिद्ध कर दिया है कि मोहनजोदड़ों के नर-कंकाल मलेरिया जैसी किसी बिमारी से ग्रसित थे। परवर्ती अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि व्हीलर की यह धारणा कि आर्य लोग हड़प्पाई सभ्यता का नाश करने वाले थे, मात्र एक मिथक थी। तथ्य यह है कि 5000 ई.पू. से 800 ई.पू. तक के समय में पश्चिमी या मध्य एशिया से सिन्धु या सरस्वती की घाटियों में किसी आक्रमण अथवा सामूहिक आप्रवास का कोई पुरातात्विक, जैविक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। इस अवधि में पाये गये सभी नर-कंकाल एक ही समूह के लोगों के थे।

ऋग्वेद में दुर्ग संहारक के रूप में इन्द्र को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ऋग्वेद की सही तिथि अभी निर्धारित नहीं की जा सकी है। अतः आर्यो के आक्रमण को पतन का प्रमुख कारण नहीं माना जा सकता।

3. जलवायु परिवर्तन – आरेल स्टाइन और अमलानन्द घोष आदि विद्वानों के अनुसार जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण जलवायु में परिवर्तन आया। राजस्थान के क्षेत्र में जहाँ पहले बहुत वर्षा होती थी, वहाँ वर्षा कम होने लगीं। अतः सभ्यता धीरे धीरे विनष्ट हो गई।

4. भू-तात्विक परिवर्तन- एम.आर. साहनी, आर. एल. राइक्स, जार्ज एफ.डेल्स. और एच.टी. लैम्ब्रिक सिन्धु सभ्यता के पतन में भू-तात्विक परिवर्तनों के प्रमुख कारण मानते हैं। भू-तात्विक परिवर्तनों के कारण नदियों के मार्ग बदल गए, जिससे लोगों में सिंचाई, पीने के पानी, आदि का अभाव हो गया। सारस्वत प्रदेश में तो इसका पतन मुख्य रूप से नदी धाराओं के बदलने अथवा स्थानान्तरण के कारण हुआ। इस कारण वे अपने अपने स्थानों को छोड़कर दूसरे स्थानों को चले गए।

5. विदेशी व्यापार में गतिरोध – सन् 1995 ई. में डब्ल्यू. एफ. अल्ब्राइट ने यह मत व्यक्त किया कि मेसोपोटामिया के साक्ष्यों के अनुसार सैन्धव सभ्यता का अन्त लगभग 1750 ई.पू. में माना जा सकता है। 2000 ई.पू. के बाद सैन्धव सभ्यता में ग्रामीण संस्कृति के लक्षण प्रकट होने लगे थे, उससे पता चलता है कि उनका आर्थिक ढाँचा लड़खड़ाने लगा था।

6. प्रशासनिक शिथिलता - मार्शल के अनुसार सिन्धु सभ्यता के अन्तिम चरण में प्रशासनिक शिथिलता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। अब मकान व्यवस्थित ढंग के नहीं थे तथा उनमें कच्ची ईंटों का प्रयोग भी अधिक होने लगा। अतः सभ्यता धीरे धीरे नष्ट हो गई।

7. महामारी – अमेरिकी इतिहासकार के.यू.आर. केनेडी का विचार है कि मलेरिया जैसी किसी महामारी से सैन्धव सभ्यता की जनसंख्या नष्ट हो गई।

8. साधनों का अतिशय उपभोग – एक आधुनिक मत यह है कि इस सभ्यता ने अपने साधनों का ज्यादा से ज्यादा व्यय कर डाला, जिससे उसकी जीवन शक्ति नष्ट हो गई। यह एक आकर्षक परिकल्पना है परन्तु इसकी जाँच के लिए विस्तृत अनुसंधान की

9. अदृश्य गाज के कारण – रूसी विद्वान एम. दिमित्रियेव का मानना है कि सैन्धव सभ्यता का विनाश पर्यावरण में अचानक होने वाले किसी भौतिक रासायनिक विस्फोट ‘अदृश्य गाज’ के कारण हुआ। इस अदृश्य गाज से निकली हुई ऊर्जा तथा ताप आवश्यकता 150000°C के लगभग मानी जाती है। जिससे दूर दूर तक सब कुछ विनिष्ट हो गया। उन्होंने इस सम्बन्ध में महाभारत में उल्लिखित इसी प्रकार के दृष्टिकोण की ओर संकेत किया है जो मोहनजोदड़ों के समीप हुआ था।

निष्कर्ष रूप से यही कहा जा सकता है कि उपर्युक्त सभी कारणों ने मिलकर सिन्धु सभ्यता को गर्त में मिला दिया, परन्तु विद्वानों में पतन का सर्वाधिक मान्य कारण बाढ़ है। हालांकि गुजरात में हाल ही में आए भूकम्पों ने इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण पर पुनः विचार करने को विवश कर दिया है।

16. संथाल विद्रोह के मुख्य कारणों का वर्णन करें?

उत्तर : संथाल विद्रोह आदिवासी विद्रोहों में सबसे शक्तिशाली व महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका प्रारम्भ 30 जून 1855 ई. में हुआ तथा 1856 के अन्त तक तक दमन कर दिया गया।

 इसे 'हुल आन्दोलन' के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल क्षेत्र के बीच केन्द्रित था। इस क्षेत्र को "दामन-ए-कोह" के नाम से जाना जाता था।

इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भू-राजस्व व्यवस्था तथा जमींदारों और साहूकारों का अत्याचार था।

संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू नामक दो आदिवासी नेताओं ने किया था। सरकार ने इस आन्दोलन का दमन करने के लिए विद्रोह ग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगा दिया।

एक बड़ी सैन्य कार्यवाही कर भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन तथा मेजर जनरल लायड ने 1856 ई. में क्रूरता पूर्वक इस विद्रोह का दमन कर दिया। किन्तु सरकार को शान्ति स्थापित करने के लिए इनकी मांग को स्वीकार कर सन्थाल परगना को एक नया जिला बनाना पड़ा।

संथाल विद्रोह के कारण

संथाल शान्तिप्रिय तथा विनम्र लोग थे। जो आरम्भ में मानभूम, बड़ाभूम, हजारीबाग, मिदनापुर, बांकुड़ा तथा बीरभूम प्रदेश में रहते थे और वहाँ की भूमि पर खेती करते थे।

1773 ई. में स्थायी भूमि बन्दोवस्त व्यवस्था लागू हो जाने के कारण इनकी भूमि छीनकर जमींदारों को दे दी गयी। जमींदारों की अत्यधिक उपज मांग के कारण इन लोगों को अपनी पैतृक भूमि छोड़कर राजमहल की पहाड़ियों के आसपास बस गये।

वहाँ पर कड़े परिश्रम से इन लोगों ने जंगलों को काटकर भूमि कृषि योग्य बनाई। जमींदारों ने इस भूमि पर भी अपना दावा कर दिया। सरकार ने भी जमींदारों का समर्थन किया और संथालों को उनकी जमींन से बेदखल कर दिया।

जमींदार उनका शोषण करने लगे अंग्रेज अधिकारी भी जमींदारों का पक्ष लेते थे। अतः अधिकारियों, जमींदारों और साहूकारों के विरोध में सिद्धू और कान्हू नामक दो आदिवासियों के नेतृत्व में 30 जून 1855 ई. में भगनीडीह नामक स्थान पर 6 हजार से अधिक आदिवासी संगठित हुए और विदेशी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

उन्होंने घोषणा कर दी कि "वे देश को अपने हाथ में ले लेंगे और अपनी सरकार स्थापित कर देंगे।" उन्होंने भागलपुर तथा राजमहल के बीच तार तथा रेल व्यवस्था भंग कर दी। महाजनों व जमींदारों के घर तथा पुलिस स्टेशन व रेलवे स्टेशनों को जला दिया।

17. अकबर के दरबार में उपस्थित नवरत्न के बारे में वर्णन करें?

उत्तर : बीरबल : राजा बीरबल बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे। बीरबल का सही नाम महेशदास था। बीरबल का जन्म 1528 में सीधी, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनकी मृत्यु 16 फरवरी 1586 को 57 वर्ष की आयु में हुई थी। बीरबल अकबर के प्रमुख नवरत्नो में से एक थे जिनका नाम अकबर के नवरत्नों में गिना जाता है।

बीरबल का काम : बीरबल एक कवि थे। वह अकबर के विशेष सलाहकार थे। हंसी-मजाक में अकबर के साथ बीरबल के किस्से आज भी सुनने को मिलते है। कवि बनकर बीरबल ने ब्रह्म के नाम एक कविताएं लिखी थी। बीरबल द्वारा लिखी गई कविताएं आज भी राजस्थान राज्य के भरतपुर संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई है।

अबुल फजल : अबुल फ़ज़ल का जन्म 14 जनवरी 1556 को भारत के आगरा में हुआ था। इनकी मृत्यु (कारण -हत्या) 12 अगस्त 1602 को हुई थी। आपको बता दे कि इनकी हत्या सलीम ने करवाई थी। अबुल फजल का पूरा नाम अबुल फजल इब्न मुबारक था। इनके पिता का नाम शेख मुबारक था। साथ ही फजल ने आईन-ए-अकबरी और अकबरनामा की रचना की थी। इसके अलावा अबुल फजल ने पंचतंत्र का भाषा अनुवाद कर फारसी में पंचतंत्र का अनुवाद कर अनवर ए सादात नाम दिया।

फैजी : फेज़ी का जन्म 24 सितंबर 1547 को आगरा में हुआ था। इनका पूरा नाम शेख अबु अल-फ़ैज़ था। और ज्यादा प्रचलित नाम फ़ैज़ी ही था। यह अबुल फ़ज़ल के भाई थे।

शेख अबु अल-फैजी के कार्य : फैजी शिक्षक और मध्यकालीन भारत का फारसी कवि था। आपको बता दें कि फैजी को मुगल सम्राट अकबर ने अपने पुत्र को गणित पढ़ाने के लिए शिक्षक के पद पर भी नियुक्त किया था। इन्होंने लीलावती ग्रंथ का फारसी भाषा में अनुवाद किया।

तानसेन : तानसेन अकबर के प्रमुख दरबारो में से एक है। यह एक महान विद्वान संगीतकार थे। आपको बता दें कि तानसेन के बचपन का नाम राम तनु पांडे और तन्ना मिश्रा था। इनके नाम के साथ मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर से एक कहावत जुड़ी हुईं है जो इस प्रकार है – ग्वालियर में बच्चे भी रोते है तो सुर में रोते है और पत्थर दुडकते (लुढ़कते) है तो ताल में लुढ़कते में। मियां का मल्हार भी इन्होंने ही बनाया था।

तानसेन के दरबार में कार्य : तानसेन एक संगीतकार थे। इनके नाम से आज ग्वालियर शहर की पहचान है। ग्वालियर को तानसेन नगरी के नाम से भी जाना जाता है।

टोडरमल : राजा टोडरमल का जन्म 1 जनवरी 1500 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लहरपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनकी मृत्यु 8 जनवरी 1589 को लाहौर पाकिस्तान में हुई थी। टोडरमल सम्राट अकबर के राजस्व की देख रैख हेतू वित्तमंत्री नियुक्त किए गए थे।

टोडरमल के दरबार में कार्य : इन्होंने भूमि पैमाईश के लिए दुनिया की पहली मापन प्रणाली तैयार की थी। राजा अकबर के पूरे राज्य कि पेमाइस तोडरमल ने ही की थी। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि यूपी राज्य का पहला और एक मात्र भूलेख प्रशिक्षण संस्थान का नाम हरदोई प्रशिक्षण संस्थान से राजा टोडरमल भूलेख प्रशिक्षण संस्थान रखा गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन्होंने भूराजस्व की दहसाला पद्धति का प्रारंभ किया था।

मानसिंह : राजा मानसिंह का जन्म 21 दिसंबर 1550 को राजस्थान के आमेर नामक स्थान पर हुआ था। इनकी मृत्यु 1614 अचलपुर नामक स्थान पर हुई थी। इनके पिता का नाम भगवानदास एवं माता का नाम रानी भगवती बाई था।

अकबर के नवरत्न राजा मानसिंह का काम : यह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। जो राज्य की रक्षा के लिए रणनीतियां बनाते थे एवं राज्य की रक्षा करते थे।

अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना : अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना का जन्म 17 दिसंबर 1556 को दिल्ली शहर में हुआ था। इनका निधन 1 अक्टूबर 1627 को भारत के आगरा शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम खान था।

काम : अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना अकबर के दरबार के बहुत ही लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित कवि थे। बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया एवं नगर शोभा नामक रचना की थी।

हकीम हूकाम : फकीर अजिओं-दिन सम्राट अकबर के चिकित्सक थे यानी हकीम थे। इनको भी अकबर के नवरत्नों में शामिल किया गया है।

मुल्लाह दो पिअज़ा : इनको प्याज खाने का बहुत शोक था। इसके साथ साथ यह एक रसोइया भी थे। इनको अकबर के अमात्य भी माना जाता है। इनको दूसरो की बात काटने के मामले में भी लोकप्रिय माना जाता था।

18. 1857 के विद्रोह के कारणों का वर्णन करें?

उत्तर : 1857 के विद्रोह के कारण निम्नलिखित हैं

राजनैतिक कारण : डलहौजी की राज्य हडप ने की नीति , भारतीयो के साथ अंग्रेजों का घृणित व्यवहार (रंगभेद करना अच्छा व्यवहार ना करना उच्च पदों पर केवल अंग्रेजों को ही आसीन किया जाता था और भारतीयोंको छोटे पदों पर आसीन किया जाता था )

आर्थिक कारण : अंग्रेजों की नीति की वजह से उद्योग धंधे भी बंद हो गये इससे बहुत लोग बेरोजगार व निर्धन हो गये उनकी कृषक योजनाएं भी सफल नहीं हो पायी

सामाजिक कारण : सामाजिक वजह जाति थी वे जातियों की अवहेलना करते थे सती प्रथा पर भी प्रतिबंध लगा दिया डाक तार चलाया रेल चलाई ये सब कार्य किया तो लोगों को लगा कि अंग्रेज इन सब के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते है

धार्मिक कारण : वे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मो की आलोचना करते थे उन्होंने ने गोद प्रथा को भी बंद करा दिया

तत्कालिक कारण : सूअर की चर्बी का बना कारतूस को मुँह से चबाना पडता था और हिंदू और मुस्लिम दोनो सैनिकों ने ही उसे मुँह से चबाने को मना कर दिया था

अथवा

1857 के विद्रोह के परिणामो का विवेचना कीजिए ?

उत्तर : 1857 के विद्रोह के परिणाम निम्नलिखित है

1857 की क्रांति से कंपनी शासन का अंत - 1857 के विद्रोह का प्रमुख परिणाम यह रहा कि 2 अगस्त, 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित किया जिसमें भारत में कंपनी के शासन का अंत कर दिया गया और ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश ताज (क्राउन) ने ग्रहण कर लिया था। इसके अलावा बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल एवं बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स समाप्त कर दिए गये और इसके स्थान पर भारत सचिव और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की इंडिया कौंसिल बनाई गई। कंपनी द्वारा भारत में किये गये सभी समझौतों को मान्यता प्रदान की गई। क्रांति के पश्चात भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा था। भारत में 1857 के विद्रोह के बाद जो परिवर्तन आए उससे सम्पूर्ण भारत में नए युग का सूत्रपात हुआ।

1857 की क्रांति के बाद महारानी का घोषणा पत्र - 1857 के विद्रोह के बाद जनसाधारण का जीवन अस्त- व्यस्त व अशांत हो गया इस दौरान जनता में शांति बनाने के लिए जनता के लिए निश्चित नीति एवं सिद्धांतों की घोषणा के लिए इलाहाबाद (वर्तमान में " प्रयागराज ") में धूमधाम से एक दरबार का आयोजन किया गया जिसमें 1 नवंबर, 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने महारानी द्वारा भेजा गया घोषणा-पत्र पढ़कर सुनाया गया। महारानी के इस घोषणा पत्र को मेग्नाकार्टा कहा जाता है। घोषणा पत्र में लिखी गई प्रमुख बातें निम्नलिखित है

1. भारत में जितना अंग्रेजों का राज्य विस्तार है वह पर्याप्त है, इससे ज्यादा अंग्रेजी राज्य - विस्तार नहीं होगा।

2. देसी राज्यों व नरेशों के साथ जो समझौते व प्रबंध निश्चित हुए हैं, उनका ब्रिटिश सरकार सदा आदर करेगी तथा उनके अधिकारों की सुरक्षा करेगी।

3. धार्मिक सहिष्णुता एवं स्वतंत्रता की नीति का पालन किया जायेगा।

4. भारतीयों के साथ स्वतंत्रता का व्यवहार किया जायेगा तथा उनके कल्याण के लिए कार्य किये जायेंगे।

5. प्राचीन रीति-रिवाजों, संपत्ति आदि का संरक्षण किया जायेगा।

6. सभी भारतीयों को निष्पक्ष रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त होगा।

7. बिना किसी पक्षपात के शिक्षा, सच्चरित्रता और योग्यतानुसार सरकारी नौकरियां प्रदान की जायेंगी।

8. उन सभी विद्रोहियों को क्षमादान मिलेगा, जिन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है।

1857 की क्रांति से सेना पुनर्गठन - शासन द्वारा पील आयोग की रिपोर्ट पर जाति और धर्म के आधार पर रेजीमेंट को बाँट दिया गया और सेना में भारतीयों की अपेक्षा यूरोपीयों सैनिकों की संख्या को बड़ा दिया गया। इसके अलावा उच्च पदों से भारतीयों को वंचित रखा गया और तोपखाना व अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को यूरोपियों के हवाले कर दिया गया।

फूट डालो राज करो नीति - 1857 की क्रांति में कई हिन्दू एवं मुसलमानों ने भाग लिया जिसमें मुसलमानों, हिन्दुओं की अपेक्षा अधिक उत्साहित थे। अंग्रेजों ने हिन्दुओं का पक्ष लेकर हिन्दुओं और मुस्लिमों के मध्य फूट डालो राज करो का माध्यम को अपनाया जिसका परिणाम यह हुआ की हिन्दू और मुसलमानों में मनमुटाव पैदा हो गया जिसका भावी राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

देसी रियासतों के लिए नीति में परिवर्तन - 1857 की क्रांति के पश्चात राज्यों को हड़पने की नीति को त्याग दिया गया और अधीनस्थ संघ की नीति प्रारम्भ करके देसी रियासतों को अधिनस्त किया गया। इसके अलावा भारतीय रजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर सरकार ने राजाओं को बच्चे गोद लेने की अनुमति प्रदान की जिससे वे अपने वंश को आगे बड़ा सकते थे।

19. भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन करें?

उत्तर : भारतीय संविधान की विशेषताएं निम्नलिखित हैं

1. भारतीय संविधान – लिखित संविधान : भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। इसका अर्थ है कि भारत के संविधान को लिखने के लिए एक समर्पित संविधान सभा का गठन किया गया था, जिसका कार्य मुख्य रूप से आपसी विचार विमर्श के माध्यम से भारत का संविधान लिखना था। कई देशों में संविधान तो होता है, लेकिन उस संविधान को लिखित संविधान नहीं कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में संविधान तो है, लेकिन वह लिखित संविधान नहीं है। इसका अर्थ यह है कि ब्रिटिश संविधान को लिखने के लिए विधिवत तरीके से किसी संविधान सभा का गठन नहीं हुआ था, बल्कि विभिन्न परंपराओं, न्यायिक निर्णयों और संसद के द्वारा पारित कानूनों के माध्यम से वहाँ का संविधान निर्मित हुआ है। इसलिए ब्रिटेन के संविधान को अलिखित संविधान कहा जाता है।

2. भारतीय संविधान – विशाल संविधान : भारत का संविधान एक अत्यंत विशाल संविधान है। इसका कारण यह है कि भारतीय संविधान में विभिन्न प्रावधानों को काफी सहज से तरीके से विस्तृत रूप में लिखा गया है, ताकि संविधान का पालन करने के दौरान शासन प्रशासन को अधिक कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े। यही कारण है कि भारतीय संविधान में वर्तमान में कुल 395 अनुच्छेद 25 भाग और 12 अनुसूचियां विद्यमान है। संख्यात्मक दृष्टि से भारतीय संविधान में अनुच्छेदों की संख्या बेशक 395 नजर आती है, लेकिन वास्तव में भारतीय संविधान में लगभग 450 के आसपास अनुच्छेद मौजूद हैं। इसीलिए कुछ विद्वान इसे दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान भी कहते हैं।

3. भारतीय संविधान – लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण : भारतीय संविधान के लचीले होने का अर्थ यह है कि भारतीय संविधान के कुछ प्रावधान ऐसे हैं, जिन्हें भारतीय संसद साधारण बहुमत के माध्यम से संशोधित कर सकती है। उदाहरण के लिए, राज्यों के नाम, उनकी सीमा इत्यादि में संशोधन भारतीय संसद साधारण बहुमत के माध्यम से ही कर सकती है। जबकि भारतीय संविधान के कठोर होने का अर्थ यह है कि इस संविधान के कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं, जिन्हें संशोधित करना भारतीय संसद के लिए आसान नहीं होता है। इन प्रावधानों के लिए न सिर्फ संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, बल्कि देश के आधे राज्यों के विधान मंडल के समर्थन की आवश्यकता भी होती है। देश की संघीय व्यवस्था से संबंधित तमाम प्रावधान इसी प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किए जा सकते हैं। इस प्रकार भारतीय संविधान लचीलेपन और कठोरता का सुंदर मिश्रण है।

4. भारतीय संविधान – संघात्मकता और एकात्मकता का मिश्रण : भारतीय संविधान संघात्मक व्यवस्था और एकात्मक व्यवस्था दोनों का एक सुंदर मिश्रण है। भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान इस आधार पर कहा जाता है कि यह एक लिखित संविधान है, इसमें सर्वोच्च व स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान किया गया है तथा इसमें केंद्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। जबकि भारतीय संविधान एकात्मक व्यवस्थाओं को भी समेटे हुए हैं, जो आपातकाल संबंधी प्रावधानों, केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में राज्यपालों की नियुक्तियों, वित्तीय प्रणाली पर केंद्र सरकार के प्रभावी नियंत्रण इत्यादि के माध्यम से परिलक्षित होती हैं।

5. भारतीय संविधान – लोकतांत्रिक गणराज्य : भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का लक्ष्य घोषित किया गया है। इसका अर्थ यह है कि भारत एक गणराज्य होगा और उसके राज्याध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से किया जाएगा। गणराज्य होने का अर्थ यह है कि भारत का कोई सामान्य व्यक्ति भी अपनी योग्यता के दम पर देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंच सकता है। यानी राष्ट्रपति बनने के लिए देश के किसी भी नागरिक को नहीं रोका जा सकता है। हालांकि संसद इसके लिए कुछ सामान्य शर्तें निर्धारित कर सकती है।

6. भारतीय संविधान – एकल नागरिकता : भारतीय संविधान भारत के नागरिकों के लिए एकल नागरिकता निर्धारित करता है। इसका अर्थ यह है कि भारत का नागरिक सिर्फ भारत का ही नागरिक होता है, वह किसी भी अन्य देश का नागरिक नहीं हो सकता है। यदि कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है, तो जिस समय वह अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है, ठीक उसी समय से वह भारत का नागरिक नहीं रहता है। इसके अलावा, एकल नागरिकता का एक अर्थ यह भी है कि भारत का नागरिक सिर्फ भारत का ही नागरिक होता है, वह किसी प्रांत का नागरिक नहीं होता है। यानी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर भारत में एकल नागरिकता को स्वीकार किया गया है।

7. भारतीय संविधान – संसदीय व्यवस्था : भारतीय संविधान में शासन की संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया गया है। इसका अर्थ है कि भारत में मंत्रिपरिषद विधानमंडल के प्रति उत्तरदाई होती है। इसके अलावा, सरकार तब तक ही अपना अस्तित्व बनाए रखती है, जब तक वह लोकसभा में अपना बहुमत रखती है। जिस क्षण सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है, उसी क्षण सरकार अपना अस्तित्व खो देती है। यानी सरकार को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए लोकसभा में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और किसी असमंजस की स्थिति में विपक्ष के द्वारा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को अनिवार्य रूप से इस्तीफा देना होता है।

8. भारतीय संविधान – संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य : भारतीय संविधान की प्रस्तावना में घोषित किया गया है कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य होगा। इसका अर्थ है कि भारत की सरकार किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के अंतर्गत कार्य नहीं करेगी। भारत की सरकार भारत के हित से संबंधित निर्णय लेने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र होगी। कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था या संगठन या अन्य देश की सरकार भारत पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बना सकते हैं।

इसके अलावा, भारतीय संविधान भारत को एक समाजवादी राज्य घोषित करता है। भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान है। भारत में संविधान की सर्वोच्चता स्थापित की गई है। भारत में संसदीय संप्रभुता और पंथनिरपेक्ष राज्य का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, भारतीय संविधान मौलिक कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्व और कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने के लिए भी संकल्पित है। ये समस्त भारतीय संविधान की ऐसी अनोखी विशेषताएं हैं, जो भारतीय संविधान को विश्व के अन्य संविधानों की अपेक्षा एक विशिष्ट स्वरूप प्रदान करता है।

अथवा

कैबिनेट मिशन योजना क्या है?

उत्तर : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन में मजदूर दल की सरकार बनी तथा मि. एटली प्रधानमंत्री बने । उन्होंने केबिनेट के 3 सदस्यों को भारत भेजा जिसे कैबिनेट मिशन कहा जाता है ।

1945-46 की शीत ऋतु में इंग्लैन्ड में चुनाव हुए वहाँ श्रमिक दल की सरकार बनी। प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली बने तथा भारत सचिव लाॅड पेथिक लाॅरेंस बने। नयी सरकार का भारत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण था।

भारतीय परिस्थितियों की वास्तविकता की जांच के लिये ब्रिटेन की सरकार ने एक शिष्ट मंडल की रिपोर्ट के आधार पर 19 फरवरी 1946 को भारत सचिव लाॅर्ड पेथिक लारेंस ने एक कैबिनेट मिशन को भारत भेजने की घोषणा की।

ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1946 में एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा कि भारतीय नेताओं से भारतीयों को सत्ता सौंपने की शर्तों के बारे में बातचीत की जाये।

15 मार्च, 1946 ई. को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की सम्राट की सरकार ने भारत को स्वतंत्रता दिये जाने का निर्णय लिया है। भारत को भी यह निर्णय करने का अधिकार होगा कि वह राष्ट्रमंडल से पृथक होना चाहता है या नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि अल्पसंख्यकों के हितों का पूरा ध्यान रखा जायेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे तीन मंत्रियों को भारत भेज रहे हैं जो समस्या का अध्ययन करेंगे और समाधान निकालेंगे। इसी घोषणा के आधार पर कैबिनेट मिशन 24 मार्च को दिल्ली आ पहुँचा। उसमें तीन सदस्य थे- भारत मंत्री पैथिक लारेंस, सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलैक्जेण्डर। भारत मंत्री ने उनके दो प्रमुख उद्देश्यों को स्पष्ट कर दिया था- स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने के लिये मशीनरी की स्थापना करना और केन्द्र में अंतरिम शासन की स्थापना करना।

कैबिनेट मिशन 1946 के सुझाव :

1. भारतीय संघ का निर्माण - समस्त भारत के लिए एक संघ का निर्माण किया जाए, जिसमें सभी ब्रिटिश भारत और देशी रियासतें शामिल हों ।

2. विदेश, रक्षा, यातायात पर केन्द्र का अधिकार- विदेश नीति, प्रतिरक्षा तथा यातायात आदि विषय केन्द्र के पास रखे जाएं और शेष विषय प्रान्तों के पास रहें ।

3. साम्प्रदायिक  समस्या- साम्प्रदायिक समस्याओं का निर्णय इस सम्प्रदाय के सदन में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से लिया जाएगा ।

4. प्रान्तों को अधिकार- प्रान्तों को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार होगा।

5. संविधान सभा का निर्माण- भारत के लिए 389 सदस्यों से युक्त संविधान सभा का निर्माण होगा ।

6. अन्तरिम सरकार की स्थापना- एक अन्तरिम सरकार का निर्माण होगा, जिसमें सभी दलों के सदस्य सम्मिलित किए जायेंगे ।

7. देशी रियासतों को अधिकार- देशी रियासतों का भी जनसंख्या के आधार पर संविधान सभा में प्रतिनिधित्व रहेगा ।

8. ब्रिटिश सत्ता का अंत- भारत के स्वतंत्र होते ही देशी रियासतों पर ब्रिटिश ताज की अधीश्वरता समाप्त हो जाएगी ।

कैबिनेट मिशन योजना अब तक ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत योजनाओं में सर्वश्रेष्ठ थी ।

अन्तरिम सरकार की स्थापना- कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत भारत का संविधान बनाने के लिए ‘संविधान सभा’ के लिए जो चुनाव हुए उसमें कांग्रेस को असाधारण सफलता प्राप्त हुई । उसे संविधान सभा के 296 स्थानों में से 212 स्थान प्राप्त हुए जबकि मुस्लिम लीग को केवल 73 स्थान मिले । इस प्रकार मि. जिन्ना की स्थिति बहुत कमजोर हो गई ।

माउण्ट बेटन योजना - 20 फरवरी, 1947 ई. को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा कर दी कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 ई. तक जिम्मेदार भारतीयों के हाथ सत्ता सौंपने का कार्य सम्पन्न कर लेगी । सत्ता हस्तान्तरण का कार्य सुगम बनाने के लिए वायसराय लार्ड वेवल के स्थान पर लार्ड माउण्ट बेटन को नियुक्त किया गया । यह परतंत्र भारत का अंतिम गवर्नर जनरल था । 3 जून, 1947 ई. को नये वाससराय माउण्टबेटन ने अपनी योजना प्रस्तुत की जो माउण्ट बेटन योजना कहलाती है- इस योजना के निर्णय थे-

1. भारत का पृथक एवं स्वतंत्र राज्यों में विभाजन- (a) भारतीय संघ और (b) पाकिस्तान।

2. पाकिस्तान पश्चिमी पंजाब (पंजाब विभाजित) पूर्वी बंगाल (बंगाल विभाजित) सिंध एवं उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रान्त (NWFP) को मिलाकर बनेगा ।

3. भारतीय देशी रियासतों को अपने भाग्य को स्वयं तय करने की छूट दी गई, अर्थात वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते थे ।

4. विभाजन की योजना को मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस दोनों ने स्वीकार कर लिया । 4 जुलाई, 1947 ई. को माउण्ट बेटन योजना के आधार पर भारतीय स्वतंत्रता का बिल ब्रिटिश संसद में पेश किया गया जो 18 जुलाई, 1947 ई. को पास हो गया । इसके आधार पर भारत से ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया । औपचारिक तौर पर भारत अगस्त, 1947 ई. को स्वतंत्र हुआ ।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम - 4 जुलाई 1947 ई. को पास ब्रिटने की संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया । इस अधिनियम की मुख्य धाराएं  हैं-

1. दो अधिराज्यों की स्थापना- 15 अगस्त, 1947 ई. काे भारत तथा पाकिस्तान दो स्वतंत्र राज्य बना दिये जायेंगे तथा ब्रिटिश सरकार उन्हें सत्ता सौंप देगी ।

2. संविधान सभाओं का निर्माण- दोनों राज्यों की संविधान सभाएं अपने-अपने देशों के लिए संविधान का निर्माण करेंगी ।

3. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता- भारत और पाकिस्तान दोनों राज्यों काे राष्ट्र मण्डल में बने रहने या छोड़ने की स्वतंत्रता रहेगी ।

4. भारत सचिव पद की समाप्ति- भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया जाएगा तथा दोनों देशों को ब्रिटिश नियन्त्रण से मुक्त कर दिया जाएगा ।

5. ब्रिटिश शक्ति का अत- भारत और पाकिस्तान के संबंध में ब्रिटिश सरकार की समस्त शक्तियां समाप्त कर दी गई ।

6. 1935 ई. के अधिनियम द्वारा अन्तरिम शासन- नये संविधान के बनने तक 1935 ई. के अधिनियम के अनुसार दोनों देशों का शासन चलेगा ।

7. ब्रिटिश की प्राचीन संधियों की समाप्ति- भारत के देशी राज्यों पर से ब्रिटिश सम्प्रभुता समाप्त कर दी गई तथा ब्रिटेन और उनके बीच की गई पुरानी सन्धियां समाप्त हो गई।

8. दोनों देशों में गवर्नर जनरल की व्यवस्था- भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में एक-एक गवर्नर जनरल होगा, जिसकी नियुक्ति उनके मंत्रिमण्डल की सलाह से की जाएगी । 15 अगस्त, 1947 ई. को देश का विभाजन हो गया और भारत तथा पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने ।

अथवा

असहयोग आन्दोलना के प्रमुख उद्देश्य का वर्णन करें ?

उत्तर : सितम्बर 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कलकत्ता में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पंजाब और खिलाफत के मुद्दे को हल किये जाने तथा स्वराज्य की स्थापना होने तक असहयोग आन्दोलन चलाने की स्वीकृति प्रदान की।

इस अधिवेशन में कांग्रेस ने निम्न उद्देश्य एवं कार्यक्रम तय किये -

1. सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार।

2. न्यायालयों का बहिष्कार तथा पंचायतों के माध्यम से न्याय का कार्य।

3. विधान परिषदों का बहिष्कार (यद्यपि इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेताओं में मतभेद थे तथा वे इस कार्यक्रम को असहयोग आन्दोलन में शामिल किये जाने का विरोध कर रहे थे। विरोध करने वालों में प्रमुख नाम सी.आर. दास का था।)

4. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा इसके स्थान पर खादी के उपयोग को बढ़ावा। चरखा कातने को भी प्रोत्साहन दिया गया।

5. सरकारी उपाधियों एवं अवैतनिक.पदों का परित्याग, सरकारी सेवाओं का परित्याग, सरकारी करों का भुगतान न करना, सरकारी तथा अर्द्धसरकारी उत्सवों का परित्याग तथा सैनिक, मजदूर व क्लर्कों का मेसोपोटामिया में कार्य करने के लिए न जाना।

6. एकता को प्रोत्साहित करने तथा अस्पृश्यता को दूर करने का सराहनीय प्रयास किया। पूरे कार्यक्रम में अहिंसा को सर्वोपरि रखा गया।

दिसम्बर 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ, इस अधिवेशन में -

1. असहयोग कार्यक्रम का अनुमोदन कर दिया गया।

2. कांग्रेस के सिद्धान्त प्राप्ति के अपने लक्ष्य के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्यायोचित तरीके से स्वराज्य प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया। इस प्रकार कांग्रेस ने संवैधानिक दायरे के बाहर जनसंघर्ष की अवधारणा स्वीकार किया।

3. कुछ महत्वपूर्ण संगठनात्मक परिवर्तन भी किये गये। अब कांग्रेस के प्रतिदिन के कार्यकलापों को देखने के लिए 15 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति गठित की गई। स्थानीय स्तर पर कार्यक्रमों के वास्तविक क्रियान्वयन के लिए भाषाई आधार पर प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का गठन किया गया। गाँवों और कस्बों में भी कांग्रेस समितियों का गठन किया गया। सदस्यता फीस चार आना साल कर दिया गया।

4. गाँधी जी ने घोषणा की कि यदि पूरी तन्मयता से असहयोग आन्दोलन चलाया गया तो एक वर्ष के भीतर स्वराज्य का लक्ष्य प्राप्त हो जायेगा।

क्रान्तिकारी आतंकवादियों के कई संगठनों मुख्यतया बंगाल के क्रान्तिकारी सगठनों ने कांग्रेस के कार्यक्रम को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। किन्तु इसी समय मो. अली जिन्ना, एनीबेसेन्ट, जी.एस. कापर्डे एवं बी.सी: पाल ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि वे संवैधानिक एवं न्यायपूर्ण ढंग से संघर्ष चलाये जाने के पक्षधर थे। जबकि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 'इण्डियन नेशनल लिबरल फेडरेशन' का गठन कर लिया तथा इसके पश्चात् राष्ट्रीय राजनीति में उनका योगदान नाममात्र का रह गया।

कांग्रेस द्वारा असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम का अनुमोदन करने तथा खिलाफत कमेटी द्वारा इसे पूर्ण समर्थन दिये जाने की घोषणा से इसमें नई ऊर्जा का संचार हो गया। इसके पश्चात् वर्ष 1921 और 1922 में पूरे देश में इसे अप्रत्याशित लोकप्रियता मिली।

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