Koderma PROJECT RAIL 2.0
MODEL QUESTION PAPER-2023
SET -1
CLASS-12 |
GEOGRAPHY |
FM-35+35=70 |
TIME 3 Hrs. |
सामान्य निर्देश :-
* इस प्रश्नपत्र में कुल दो खण्ड हैं-
'अ' और 'ब'
* खण्ड 'अ' में कुल 35 प्रश्न है और सभी अनिवार्य हैं।
* खण्ड 'ब' में कुल 19 प्रश्न है, जिनका उत्तर परीक्षार्थी
अपने शब्दो में देंगे।
*प्रश्न संख्या 19 अनिवार्य है [ खण्ड 'ब' ]
[ खण्ड 'अ' ]
1. ‘‘ मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल
के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।‘‘ मानव भूगोल की यह
परिभाषा किस भूगोलवेत्ता द्वारा दी गई थी?
(क) एलन सी0 सेंपल
(ख) रैटजेल
(ग) हम्बोल्ट
(घ) विडाल डी ला ब्लास
2. निम्नलिखित में से कौन मानव भूगोल की शाखा नहीं है
?
(क) जनसंख्या भूगोल
(ख) आर्थिक भूगोल
(ग) मृदा भूगोल
(घ) राजनीतिक भूगोल
3. ग्रिफिथ टेलर द्वारा निम्नलिखित में से किस
संकल्पना को दिया गया?
(क) नव निश्चयवाद
(ख) पर्यावरणवाद
(ग) संभववाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
4. निम्नलिखित में से कौन-सा भौतिक कारक जनसंख्या के
वितरण को प्रभावित करता है?
(क) खनिज
(ख) जल की उपलब्धता
(ग) नगरीकरण
(घ) औद्योगीकरण
5. निम्नलिखित में से कौन सा प्रवास का एक प्रतिकर्ष
कारक (Push Factor) है?
(क) रोजगार के अवसर
(ख) शांति एवं स्थायित्व
(ग) प्रतिकुल जलवायु
(घ) जीवन की सुरक्षा
6. जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का प्रतिपादन किसने
किया?
(क) डब्लू0 एम0 थॅामसन
(ख) जी0 टेलर
(ग) माल्थस
(घ) लॅास
7. निम्नलिखित में से कौन-से महाद्वीप में जनसंख्या
वृद्धि दर सर्वाधिक है?
(क) एशिया
(ख) अफ्रीका
(ग) यूरोप
(घ) अस्ट्रेलिया
8. विस्तारित जनसंख्या का पिरामिड किस आकार का होता
है?
(क) घंटी के आकार का
(ख) त्रिभुज के आकार का
(ग) वृत के आकार का
(घ) इनमें से कोई नहीं
9. निम्नलिखित में से किस देश का आयु लिंग पिरामिड
संकीर्ण आधार और शुंडाकार शीर्ष के आकार का है?
(क) अस्ट्रेलिया
(ख) नाईजीरिया
(ग) रुस
(घ) जापान
10. कार्यशील जनसंख्या को कौन-से आयु वर्ग में रखा
गया है?
(क) 15-65 वर्ष
(ख) 14-59 वर्ष
(ग) 15-59 वर्ष
(घ) 14-60 वर्ष
11. ब्राजील में कॅाफी के बागान को किस नाम से जाना
जाता है?
(क) एजेण्डा
(ख) फजेण्डा
(ग) बगीचा
(घ) इनमें से कोई नहीं
12. रुहर कोयला क्षेत्र कौन से देश में स्थित है?
(क) ब्रिटेन
(ख) फ्रांस
(ग) जर्मनी
(घ) इटली
13. किस क्षेत्र को संयुक्त राज्य अमेरिका का जंग का कटोरा
(Rust Bowl) कहते हैं?
(क) लोरेन
(ख) बफैलो
(ग) मोरिसविले
(घ) पिट्सवर्ग
14. सेवा क्षेत्र को कौन से क्रियाकलाप में शामिल
किया जाता है?
(क) प्रथम
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) इनमें से कोई नहीं
15. बिग इंच पाइपलाईन में कौन से पदार्थ का परिवहन
होता है?
(क) गैस
(ख) दूध
(ग) पानी
(घ) पेट्रोलियम
16. विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय कहाँ है?
(क) न्यूयार्क
(ख) वाशिंगटन डी0सी0
(ग) वियना
(घ) जैनवा
17. निम्नलिखित में से कौन सा दक्षिण अमेरिका देश
ओपेक (OPEC) का सदस्य है?
(क) अर्जेंटिना
(ख) ब्राजील
(ग) चीली
(घ) वेनेजुएला
18. निम्न में से किस प्रकार की बस्त्तियाँ सड़क या
नदी के किनारे विकसित होती है?
(क) वृत्ताकार
(ख) वर्गाकार
(ग) रैखीक
(घ) अर्द्ध वृत्र्ताकार
19. विश्वनगरी (Megalopolis) शब्द का प्रयोग
सर्वप्रथम किसने किया?
(क) जीन गैटमेन
(ख) पैट्रिक गैडिस
(ग) एडवर्ड उलमै
(घ) इनमें से कोई नहीं
20. प्रेयरी घास का मैदान कहाँ स्थित है?
(क) यूरोप
(ख) अफ्रीका
(ग) उत्तरी अमेरिका
(घ) दक्षिणि अमेरिका
21. भारत में विश्व की कितनी प्रतिशत जनसंख्या निवास
करती है?
(क) 2.4%
(ख) 25%
(ग) 17.5%
(घ) 45%
22. भारत की पहली जनगणना कब हुई थी?
(क) 1901
(ख) 1872
(ग) 1881
(घ) 1882
23. निम्नलिखित में से कौन से राज्य का लिंगानुपात
सबसे निम्नतम है?
(क) केरल
(ख) पंजाब
(ग) हरियाणा
(घ) राजस्थान
24. 2011 की जनगणना के अनुसार निम्न में से कौन से
राज्य में नगरीकरण का प्रतिशत सर्वाधिक है?
(क) महाराष्ट्र
(ख) गोवा
(ग) बिहार
(घ) हिमाचल प्रदेश
25. निम्न में से भारत में कौन सा सबसे छोटा भाषाई
समूह है?
(क) आस्ट्रिक
(ख) द्राविड़
(ग) किरात
(घ) भारोपीय
26. गाँव-से-गाँव प्रवास में महिलाओं की सर्वाधिक
संख्या का क्या कारण है?
(क) रोजगार
(ख) विवाह
(ग) शिक्षा
(घ) सुरक्षा
27. निम्नलिखित में से कौन से अर्थशास्त्री ने ‘मानव
विकास सूचकांक‘ का निर्माण किया?
(क) डॉ० महबूब उल हक
(ख) डॉ० अमत्र्य सेन
(ग) डॉ० मनमोहन सिंह
(घ) डॉ० रघुराम राजन
28. मानव विकास सूचकांक में भारत का कौन सा राज्य
सर्वोच्य स्तर पर है?
(क) तमिलनाडु
(ख) महाराष्ट्र
(ग) कर्नाटक
(घ) केरल
29. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के कौन से राज्य
में महिला साक्षरता दर सबसे कम है?
(क) बिहार
(ख) राजस्थान
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) केरल
30. निम्नलिखित में से कौन सा राष्ट्रीय जलमार्ग सबसे
लम्बा है?
(क) N.W.-1
(ख) N.W.-2
(ग) N.W.-3
(घ) N.W.-4
31. निम्नलिखित में से कौन सा एक प्राकृतिक पत्तन है?
(क) चेन्नई
(ख) एन्नोर
(ग) J.L.N. पतन
(घ) मुम्बई
32. निम्नलिखित में से कौन सा हैजा तथा पीलिया
बीमारियों का कारण है?
(क) जल प्रदूषण
(ख) ध्वनि प्रदूषण
(ग) भूमि प्रदूषण
(घ) वायु प्रदूषण
33. UNDP का पूरा नाम बताएँ।
(क) Union Nations Development Program
(ख) United nations Development Program
(ग) United National Developing Program
(घ) इनमें से कोई नहीं
34. TISCO इस्पात संयंत्र कहाँ अवस्थित है?
(क) पश्चिम बंगाल
(ख) उड़ीसा
(ग) कर्नाटक
(घ) झारखण्ड
35. दुर्गापुर इस्पात संयंत्र किस देश के सहयोग से
स्थापित किया गया?
(क) रुस
(ख) जर्मनी
(ग) यूनाइटेड किंगडम
(घ) स०रा० अमेरिका
[ खण्ड 'ब' ]
* प्रश्न संख्या 1 से 7 तक अतिलघु उत्तरीय प्रश्न है।
इनमे से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें। (1 X 5 = 5)
* प्रश्न संख्या 8 से 14 तक लघु उत्तरीय प्रश्न है।
इनमें से किन्ही 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दें। (3 X 5 = 15 )
* प्रश्न संख्या 15 से 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है।
इनमें से किन्ही 3 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 150 शब्दों में दीजिए । (5 X 3 =
15 )
* प्रश्न संख्या 19 अनिवार्य है।
1. मानव का प्रकृतिकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : मनुष्य के प्राकृतिककरण का अर्थ है मनुष्य और
प्रकृति के बीच पूर्ण सामंजस्य; मनुष्य अपने आप को प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल
बनाते हैं और जीने के लिए प्राकृतिक नियम का पालन करते हैं।
2. जनसंख्या वृद्धि के कौन-कौन से प्रमुख घटक हैं?
उत्तर : जनसंख्या वृद्धि के तीन प्रमुख घटक हैं:
• जन्म दर
• मृत्यु दर
• प्रवास
3. भूमध्य सागरीय कृषि में मूल रुप से कौन-से फसल की
कृषि की जाती है?
उत्तर : भूमध्यसागरीय क्षेत्र को 'विश्व के बागानों'
की भूमि के नाम से जाना जाता है। यह रसीले फलों के लिये विख्यात है जिनमें संतरा,
नींबू, सीट्रोंन, अंगूर, जैतून, अंजीर आदि प्रमुखता से पाए जाने वाले फल हैं।
सिट्रस फलों के कुल वैश्विक निर्यात का लगभग 70 प्रतिशत निर्यात इन्हीं क्षेत्रों
से होता है।
4. ब्राह्यस्त्रोतन (Out Sourcing) क्या है ?
उत्तर : जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों या अन्य कंपनियाँ
संबंधित नियमित सेवाएँ स्वयं अपनी कंपनियों के बजाय निजी बाहरी या विदेशी स्रोत या
संस्था या समूह में प्राप्त करती है तो उसे बाह्य स्रोत कहा जाता है ।
5. परिवहन के प्रमुख प्रकारों के नाम बताएँ ।
उत्तर : परिवहन चार प्रकार के होते हैं । जैसे (1)जल
परिवहन (2)थल परिवहन(3)हवाई मार्ग परिवहन और(4) भूमिगत मार्ग परिवहन।
6. जनसंख्या घनत्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : प्रति इकाई क्षेत्र पर निवास करने वाली
व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहा जाता है। दूसरे शब्दों में किसी
क्षेत्र मे कुल आबादी और कुल क्षेत्रफल के अनुपात को जनसंख्या घनत्व कहा जाता है।
इसे निम्न सूत्र से निकला जाता है।
जनसंख्या घनत्व = कुल आबादी / कुल क्षेत्रफल
7. लौह इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहते
हैं?
उत्तर : लोहा-इस्पात उद्योग का उपयोग मशीनें, रेलवे
लाइन, यातायात के साधन, रेल-पुल, जलयान, अस्त्र-शस्त्र एवं कृषि-यन्त्र आदि बनाने
में किया जाता है। इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहा जाता है।
8. परंपरागत और गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत में अंतर
स्पष्ट करें।
उत्तर :
परम्परगत स्रोत |
गैर-परम्परगत ऊर्जा के स्रोत |
(i) परम्परगत ऊर्जा के स्रोतों के भंडार सिमित होते
है l |
(i) गैर-परम्परगत ऊर्जा के स्रोतों के भंडार असीमित
होते है l |
(ii) परम्परगत ऊर्जा के स्रोत काफी लम्बे समय से
सामान्य प्रयोग में लाए जा रहे है l |
(ii) गैर-परम्परगत ऊर्जा के स्रोत कुछ वर्ष पहले ही
उपयोग में लाए जाने शुरू हुए है l |
(iii) उदाहरण- ईंधन, कोयला, पेट्रोलियम आदि l |
(iii) उदाहरण- सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा
आदि l |
9. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ कौन-कौन सी है ?
विवरण दें।
उत्तर : भारतीय कृषि को अनेक समस्याओं का सामना करना
पड़ता है। इन समस्याओं के कारण ही इसका
पिछड़ापन तथा गतिहीनता जारी है। कृषि द्वारा सामना की जाने वाली कुछ प्रमुख
समस्याएँ निम्नलिखित हैं:-
(1) सिंचाई के
स्थायी साधनों का अभाव :
भारत में फसल खेती अधिकांश रूप में वर्षा पर निर्भर है। सिंचाई के स्थायी साधनों का
अत्यंत अभाव है। वर्षा के जल पर निर्भरता भारतीय कृषि को बहुत अधिक असुरक्षित या संवेदनशील
बना देती है: अच्छी वर्षा होने से फसल भी अच्छी हो जाती है, जबकि सूखे के कारण उत्पादन
की काफी हानि होती है। कृषि उत्पादन में स्थिरता के लिए आवश्यक है कि देश के सभी भागों
में सिंचाई के स्थायी साधन विकसित किए जाएँ।
(2) वित्त का अभाव : भारतीय कृषि की एक अन्य बड़ी समस्या
वित्त का अभाव है।अपनी अधिकांश वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, छोटे किसान
गैरसंस्थागत (Non-Institutional) साधनों/स्रोतों पर निर्भर करते हैं; जैसे- महाजन
(Mahajans), साहूकार (Moneylender) तथा भू-स्वामी (Landlord)। ये बहुत अधिक ब्याज की
दर वसूल करते हैं। किसानों की जरूरतों की तुलना में संस्थागत वित्त (बैंकों तथा अन्य
वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिया जाने वाला वित्त) की उपलब्धि बहुत कम होती है। वित्त
का अभाव भारतीय कृषि की संवृद्धि में बहुत बड़ी बाधा है। उधार की उच्च लागत किसानों
को निर्धनता के दुश्चक्र में फंसा देती है।
(3) परंपरागत दृष्टिकोण : खेती संबंधी परंपरागत दृष्टिकोण भारतीय
कृषि की एक और समस्या है। नवीन फार्म-तकनीकी तथा फार्म-प्रबंधन व्यवहार के बावजूद,
भारतीय कृषक अभी भी पारंपरिक ज्ञान को अपनाए हुए हैं। उसके लिए खेती करना जीवन-निर्वाह
का एकमात्र साधन है, यह कोई व्यापार नहीं है। अतः उसका केंद्र-बिंदु उन फसलों को उगाना
है जिनसे उसे अनाज की प्राप्ति हो न कि जिनसे ऊँचा लाभ प्राप्त हो (तथा अधिक जोखिम
उठाना पड़े)। एक सामान्य भारतीय किसान में उद्यमशीलता का अभाव पाया जाता है और लाभ
प्राप्त करने हेतु वह कोई जोखिम उठाना नहीं चाहता।
(4) छोटी तथा बिखरी
जोतें : भारत में जोतें
न केवल छोटी हैं अपितु बिखरी हुई भी हैं। छोटी जोतें आधुनिक तकनीक के उपयोग की अनुमति
नहीं देती। बिखरी जोतों के कारण प्रबंध की लागत बहुत बढ़ जाती है। यह कृषि के पिछड़ेपन
तथा किसानों की निर्धनता में योगदान देती है।
(5) शोषक कृषक
संबंध : कृषक संबंधों
से अभिप्राय भू-स्वामियों (Landlords) तथा पट्टेदारों (Tenants) के बीच व्यावसायिक
संबंधों से है। अधिकतर भू-स्वामी ‘अनुपस्थित भू-स्वामी’ (Absentee Landlords) होते
हैं। वे स्वयं बहुत कम खेती करते हैं। लगान आय (Rental Income) पर निर्भर रहने से उनकी
प्रवृत्ति अपने पट्टेदारों का शोषण करना होता है। पट्टेदार जो वास्तव में भूमि पर खेती
करते हैं, भू-स्वामी को ऊँचा लगान (High Rent) तथा अन्य संबंधित भुगतान करते हैं। अत्यधिक
ऊँचा लगान अनुपस्थित भू-स्वामी को चुकाने के बाद पट्टेदार (जो भूमि पर स्वयं खेती करता
है) के पास बहुत कम अधिशेष/आधिक्य बचता है, जिनका वह आगे निवेश कर सके। तदनुसार, भूमि
का निरंतर उपयोग निर्वाह के साधन के रूप में किया जाता है न कि व्यावसायिक लाभ के साधन
के रूप में।
(6) व्यवस्थित
विपणन प्रणाली का अभाव
: कृषि उपज की विपणन प्रणाली बहुत ही अव्यवस्थित है। छोटे किसानों की बहुत बड़ी संख्या
आज भी अपने उत्पाद को स्थानीय मंडियों में कम कीमत पर बेच रहे हैं। ऐसा करना उनकी विवशता
भी है। वे महाजनों तथा साहूकारों को (स्थानीय बाजारों में) उनसे मध्यस्थों द्वारा लिए
ऋण के बदले अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर होते हैं। संक्षेप में, भारत में कृषि को उन
अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो फसलों के उत्पादन से लेकर विक्रय तक सामने
आती है। उत्पादन के स्तर पर आधुनिक आगतों का विवेकपूर्वक उपयोग नहीं किया जाता जिसके
कारण उत्पादकता निम्न बनी रहती है। विपणन स्तर पर, अधिकांश छोटे किसानों को उनकी फसल
की अच्छी कीमत प्राप्त नहीं हो पाती, क्योंकि व्यवस्थित विपणन प्रणाली का अभाव पाया
जाता है।
10. जल प्रदूषण क्या है? नदियों के प्रदूषण को कम
करने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा रहे हैं?
उत्तर : जल प्रदूषण से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि
तालाबों, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के प्राकृतिक रूप में कुछ अनावश्यक
तत्वों के मिश्रण से जल के संदूषित होने से है। प्रदूषित जल इन जल निकायों के
पादपों और जीवों को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जैविक तंत्र को प्रभावित करता है जिससे
प्रतिवर्ष लाखों जीवधारियों के लिए प्राणघातक सिद्ध होते होते हैं।
भारत में नदियों का प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए
निम्नलिखित उपाय किए जा रहे हैं:
1. बिना प्रक्रिया
किए धोवन जल के निर्वहन पर प्रतिबंध लगाना।
2. कारखाने का
दूषित जल प्रक्रिया द्वारा शुद्ध करके नदी में छोड़ना ।
3. नदी तट पर पर्यटन
के लिए आने वाले पर्यटकों द्वारा नदी का प्रदूषण न होने पाए, इस दृष्टि से मार्गदर्शक
सूचना का बोर्ड लगाना।
4. नदी के पानी
की गंदगी और कचरा निकालकर नदी के पात्र को स्वच्छ करना इत्यादि।
11. चावल उत्पादन के लिए कौन-कौन सी भौगोलिक दशाएँ
आवश्यक हैं? विवरण दें।
उत्तर : भारत में चावल की खेती ईसा से 3,000 वर्ष
पूर्व से की जा रही है। यहीं से इसका प्रचार विश्व के अन्य देशों में हुआ। यह भारत
में लगभग तीन-चौथाई जनसंख्या का खाद्यान्न है। चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन
में प्रथम स्थान है जहाँ विश्व उत्पादन का 21% चावल उत्पन्न किया जाता है। देश में
वर्ष 2012 में 42.1 हेक्टेयर भूमि पर 104.3 मिलियन टन चावल का उत्पादन हुआ। भारत
में चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2,372 किग्रा था। जापान में चावल को प्रति
हेक्टेयर उत्पादन 4,990 किग्रा है। हमारे यहाँ खाद्यान्नों के उत्पादन में लगी हुई
भूमि के 35% भाग तथा कुल कृषि-योग्य भूमि के 25% भाग पर इसका उत्पादन किया जाता
है।
चावल के उत्पादन के लिए निम्नलिखित भौगोलिक
परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं –
⦁ तापमान – चावल उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु
का पौधा है; अत: इसे ऊँचे तापमान की आवश्यकता होती है। बोते समय 20°सेग्रे तथा
पकते समय 27°सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। इसकी कृषि के लिए पर्याप्त प्रकाश
आवश्यक होता है, परन्तु अधिक मेघाच्छादित मौसम एवं तेज वायु हानिकारक होती है।
⦁ वर्षा – चावल की कृषि के लिए 150 सेमी वर्षा
आवश्यक होती है, परन्तु 60 से 75 सेमी वर्षा वाले भागों में सिंचाई के सहारे चावल
का उत्पादन किया जाता है; जैसे–पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं पंजाब राज्यों में। चावल
की खेती के लिए आवश्यक है कि खेतों में 75 दिनों तक जल भरा रहना चाहिए। भारत के
चावल उत्पादन का 39.5% भाग सिंचाई के सहारे पैदा किया जाता है।
⦁ मिट्टी – चावल उपजाऊ चिकनी, कछारी अथवा दोमट
मिट्टियों में उगाया जाता है। चावल का पौधा मिट्टी के पोषक तत्त्वों का अधिक शोषण
करता है; अत: इसमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते रहना चाहिए। हरी खाद,
हड्डियों की खाद, अमोनियम सल्फेट, सुपर फॉस्फेट आदि उर्वरक लाभकारी होते हैं।
⦁ मानवीय श्रम – चावल के खेतों की जुताई से लेकर
कटाई तक अधिक संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण विश्व में
चावल उत्पादक क्षेत्र सघन बसे क्षेत्रों में पाये जाते हैं, क्योंकि यहाँ श्रमिक
सस्ते एवं सरलता से पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हो जाते हैं।
12. प्रौद्योगिकी ध्रुव (Technology Poles) क्या है?
उदाहरण के साथ विवरण दें।
उत्तर : इस समय जो भी प्रादेशिक व स्थानीय विकास की
योजनाएँ बन रही हैं उनमें नियोजित व्यवसाय पार्क का निर्माण किया जा रहा है। वे
उच्च प्रौद्योगिक उद्योग जो प्रादेशिक संकेंद्रित है, आत्मनिर्भर एवं उच्च
विशिष्टता लिए होते हैं उन्हें प्रौद्योगिक ध्रुव कहा जाता है। सेन फ्रांसिस्को के
समीप सिलीकन घाटी एवं सियटल के समीप सिलीकन वन प्रौद्योगिक ध्रुव के अच्छे उदाहरण
हैं।
13. स्थानांतरित कृषि से आप क्या समझते हैं? उदाहरण
सहित विवरण दें।
उत्तर : भूमि के जंगली या पहाड़ी क्षेत्र की
वनस्पतियो को जलाकर उसे प्राप्त राख से उर्वर हुई मृदा पर दो-तीन वर्ष तक कृषि की
जाती है तत् पश्चात मृदा के अनुर्वर होने पर दूसरे स्थान पर समान विधि अपनाकर यह
कृषि चलती रहती है।
• बार-बार स्थान
परिवर्तन होने के कारण इसे स्थानान्तरित या झूम खेती भी कहा जाता है।
• कुछ स्थानों
पर इसे ‘काटो और जलाओ' तथा 'बुश फेलो कृषि' भी कहा जाता है।
स्थानीय रूप से
इस कृषि को पूर्वोत्तर राज्यों में झूम, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में ' पौद : केरल में
'ओनम', मध्य प्रदेश तथा छत्तीशगढ में 'बीवर', 'मशान', 'पेडा' तथा 'बीरा' और दक्षिणी-पूर्वी
राजस्थान में 'वालरा' कहा जाता है। इस प्रकार की कृषि पद्धति में फसलों को उगाने के
लिये वन भूमाग को साफ किया जाता है। कुछ वर्षों तक ही यहाँ फसलों को उगाया जाता है।
मिट्टी की उर्वरता कम होने तथा खर पतवार के उग आने के साथ ही इस भू भाग को छोड़ दिया
जाता है तथा नये साफ भूभाग की ओर किसान चले जाते हैं। भारत में इस प्रकार की कृषि मेघालय,
मणीपुर, त्रिपुरा, नागालैण्ड तथा मिजोरम में की जाती है। कम घने आबाद क्षेत्रों में
इस प्रकार की कृषि मुख्य रूप से स्थानीय जन जातियों के लोगों द्वारा की जाती है। इसे
स्थानीय भाषा 'झूम' कृषि कहते हैं।
14. भारत मध्यम मानव विकास वाला देश क्यों है ? कारण
सहित विवरण दें।
उत्तर : Human Development Index 2021: संयुक्त
राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के तहत 2021 की 191 देशों के मानव विकास सूचकांक
(Human Development Index 2021) की रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें भारत (India) की
स्थिति अच्छी नहीं है। मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 132वें स्थान पर है।
इससे पहले 2020 में भारत इस मामले में एक पायदान आगे यानी 131वें स्थान पर था।
हालांकि, 2020 में 189 देशों की सूची साझा की गई थी। मौजूदा सूचि में भारत का
एडीआई मान 0.6333 है। इस मानदंड के मुताबिक, भारत मध्यम मानव विकास श्रेणी में है।
यह एचडीआई मान 2020 की रिपोर्ट में इसके मान 0.645 से कम है।
स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं, जबकि इसे 11.9
वर्ष होना चाहिए :
2019 में भारत का एचडीआई मान 0.645 था जो 2021 में
0.633 तक आ गया, इसके लिए औसत आयु में गिरावट को कारण माना जा रहा है। भारत में
औसत आयु 69.7 वर्ष से घटकर 67.2 वर्ष हो गई है। रिपोर्ट और जिन मानकों के आधार पर
तैयार की जाती है, उनमें एक मुद्दा स्कूली शिक्षा का भी है। भारत में स्कूली
शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं जबकि इसे 11.9 वर्ष होना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा और
औसत आय के आधार पर मानव विकास सूचकांक में 2020 और 2021 में गिरावट दर्ज की गई
जबकि इससे पहले के पांच वर्षों में काफी विकास हुआ।
15. खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? कारण सहित
विवरण दें।
उत्तर : खनिज ऐसे संसाधन हैं जो हमारे जीवन के हर
क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। खनिज संसाधनों में धात्विक, अधात्विक और
ऊर्जा खनिज शामिल हैं। खनिज संसाधनों के कुछ उदाहरण लौह अयस्क, बॉक्साइट, कोयला,
पेट्रोलियम, चूना पत्थर, सोडियम, पोटेशियम, सल्फर आदि हैं।
खनिज संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित
कारणों से हैं:
1. खनिज संसाधनों
का सीमित भंडार है और यह पृथ्वी की पर्पटी का लगभग एक प्रतिशत है।
2. खनिज संसाधनों
के निर्माण में लाखों वर्षों की आवश्यकता होती है, लेकिन , खनिजों की पुनःपूर्ति दर
की तुलना में खपत दर बहुत अधिक है। खनिज संसाधनों के खपत दर पुनःपूर्ति दर से बहुत
ज्यादा होने से बहुत ही तेजी से खनिज संसाधन कम हो रहे हैं।
3. खनिज संसाधन
परिमित और गैर-नवीकरणीय हैं और यह देश के विकास और जीवित जीवों के लिए अत्यंत मूल्यवान
हैं। लगभग सभी जैविक और अजैविक जीवों में खनिजों का कुछ हिस्सा होता है और वे इसका
उपयोग भी करते हैं, चाहे वह भोजन हो, सुई हो या हवाई जहाज। अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र,
चाहे वह कृषि, उद्योग या सेवा क्षेत्र हों, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खनिजों
पर निर्भर हैं।
4. कोयला और पेट्रोलियम
जैसे ऊर्जा संसाधन आर्थिक विकास के लिए बुनियादी हैं और इन संसाधनों की समाप्ति दर
बहुत अधिक है, इसलिए संरक्षण की बहुत आवश्यकता है।
16. भारत में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने
वाले प्रमुख कारकों का विस्तार से विवरण करें।
उत्तर : सन् 1881 में पहली बार भारत में जनगणना की
गयी जिसके अनुसार जनसंख्या 25 करोड़ थी। तत्पश्चात् प्रति दशाब्दी में जनगणना होती
रही है। वर्ष 1991 मे कुल जनसंख्या 84.63 करोड़ थी जो सन् 1921 की तुलना में लगभग
3.4 गुना अधिक हो गयी थी।
वर्ष 1921 से
1951 के मध्य यह वृद्धि 11 करोड़ रही, वहीं स्वतन्त्रता के पश्चात् वर्ष 1951 से होने
वाली वृद्धि दर ने पूर्व सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया। वर्ष 1951 और वर्ष 1961 के
बीच 7.8 करोड़ की वृद्धि हुई। वर्ष 1961 से 1971 के बीच वृद्धि की मात्रा 10.8 करोड़
एवं वर्ष 1971 से 1981 के मध्य 13.7 करोड़ एवं वर्ष 1981-91 के बीच यह वृद्धि
16.66 करोड़ हुई जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। सन् 2011 में देश की जनसंख्या
121.02 करोड़ हो गयी। इस प्रकार वर्ष 2001-2011 में दशकीय वृद्धि 17.64% रही।
सन् 2011 की जनगणना
के अनुसार भारत की जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, परन्तु विभिन्न
क्षेत्रों में इसमें भारी भिन्नता पायी जाती है। एक ओर दिल्ली राज्य में जनसंख्या का
घनत्व 11297 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में मात्र
17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं ।
भारत में जनसंख्या
वितरण को प्रभावित करने वाले / भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं।
1. धरातल या भू-आकृति : धरातल की प्रकृति या भू-आकृति जनसंख्या
के वितरण को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। समतल मैदानी भागों में
मनुष्य के लिए आजीविका के साधन (विशेषत: कृषि) तथा परिवहन के साधन आदि पर्याप्त विकसित
होते हैं। इसलिए भारत में सर्वाधिक जनसंख्या मैदानों (नदी घाटियों तथा डेल्टाओं) में
निवास करती है। गंगा घाटी तथा डेल्टा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी के डेल्टा
प्रदेश इसीलिए घने आबाद हैं। इसके विपरीत पठारी, पहाड़ी तथा मरुस्थलीय क्षेत्रों में
कम आबादी मिलती है। हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा थार मरुस्थल विरल आबाद हैं
। प्रायद्वीप के पठारी क्षेत्रों में मध्यम सघन आबादी मिलती है।
2. स्वास्थ्यप्रद
जलवायु : अनुकूल जलवायु
मानव को क्षेत्र विशेष में रहने को आकर्षित करती है। भाबर, तराई, गंगा का निम्न डेल्टा
आदि क्षेत्रों में दलदल व वनों की अधिकता तथा आर्द्र जलवायु के कारण विषैले कीड़े-मकोड़े
तथा जंगली जीवों एवं बीमारी के कारण बहुत कम घने बसे हैं, जबकि भारत के मैदानी क्षेत्रों
में अच्छी जलवायु के कारण सर्वत्र अधिक जनसंख्या पायी जाती है।
3. तापमान : अधिक ऊँचे तापमान जनसंख्या के जमाव में
बाधा डालते हैं, जबकि सामान्य तापमान इसको आकर्षित करते हैं। बहुत ही नीचे तापमान,
जैसे ऊँचे हिमालय प्रदेश शीत के कारण जनसंख्या से शून्य होते हैं, किन्तु निचले पहाड़ी
ढाल ग्रीष्म ऋतु में मैदानी भागों की अपेक्षा ठण्डे रहते हैं। अत: शिमला, नैनीताल,
मसूरी, आदि की ग्रीष्म ऋतु में जनसंख्या बढ़ जाती है, किन्तु शीत ऋतु में ठण्ड के कारण
फिर से घट जाती है।
4. वर्षा की मात्रा : भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जनसंख्या
का वितरण एवं घनत्व वर्षा की मात्रा अथवा जल उपलब्धता से विशेष रूप से प्रभावित है।
100 सेन्टीमीटर वर्षा रेखा के पश्चिमी भाग, वर्षा की कमी के कारण कम घने हैं, जबकि
इसके पूर्वी भागों में घनत्व अधिक पाया जाता कम वर्षा वाले भागों में भी पश्चिमी उत्तर
प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, आदि राज्यों में सिंचित क्षेत्रों के कारण
जनसंख्या अधिक पायी जाती है। इसके विपरीत, असोम तथा हिमाचल प्रदेश में जल का निकास
ठीक न होने से अधिक वर्षा होने पर भी जनसंख्या कम पायी जाती है।
17. वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत कौन-कौन से हैं?
इनका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर : प्रो० डॉ० सविन्द्र के अनुसार,"
प्राकृतिक तथा मानव जनित स्त्रोतों से उत्पन्न बाहरी तत्वों के वायु में मिश्रण के
कारण वायु की असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण कहते हैं।"
प्रदूषकों के स्रोत के आधार पर वायु प्रदूषण को निम्न
प्रकार में विभाजित किया जाता है-
1. स्वचालित वाहनों से प्रदूषण
2. औद्योगिक वायु प्रदूषण
3. तापी प्रदूषण
4. नगरीय प्रदूषण
5. ग्रामीण हवा प्रदूषण
6. नाभिकीय वायु प्रदूषण
मानव अपने जीवन को बनाये रखने हेतु औसतन 8,000 लीटर
वायु अंदर एवं बाहर करता है । अत: यदि वायु में अशुद्धि है अथवा उसमें प्रदूषक
तत्वों का समावेश है तो वह श्वास द्वारा शरीर में पहुँच कर विभिन्न प्रकार से
प्रभावित करती है और अनेक भयंकर रोगों का कारण बन जाती है ।
जैसा कि ए.जे.डे.
विलिर्स ने अपने अध्ययन की समीक्षा में स्पष्ट किया है कि- ”इसके पर्याप्त प्रमाण हैं
कि स्वास्थ्य को वायु मण्डलीय प्रदूषण विविध मात्रा में विपरीत रूप में प्रभावित करता
है । इससे मृत्यु में अधिकता होती है, रोगों की संभावना अधिक होती है तथा अत्यधिक श्वास
संबंधी बीमारियाँ होने लगती है ।”
वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य के
श्वसन तंत्र पर पड़ता है क्योंकि श्वास के साथ ग्रहण की गई वायु रक्त प्लाज्मा में घुलती
नहीं अपितु हीमोग्लोबिन के साथ मिश्रित होकर संपूर्ण शरीर में भ्रमण करती रहती है ।
वायु में प्रदूषण वाली कणिकाएँ आदि आकार में
कुछ बड़ी होती हैं तो वे नासिका द्वार पर रुक जाती हैं किंतु अतिसूक्ष्म कणिकायें फेफड़ों
तक पहुँच जाती हैं और शरीर के विभिन्न भागों तक में पहुँच कर रोगों का कारण बन जाती
हैं । प्रदूषित वायु से श्वास संबंधी रोग जैसे ब्रोंकाइटिस, बिलिनोसिस, गले का दर्द,
निमोनिया, फेफड़ों का कैंसर आदि हो जाते हैं ।
श्वास रोगों के अतिरिक्त वायु में सल्फर-डाई-ऑक्साइड
और नाइट्रोजन-डाई- ऑक्साइड की अधिकता से कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह आदि हो जाते हैं ।
सल्फर-डाई-ऑक्साइड से एम्फॉयसीमा नामक रोग होता है, यह प्राणलेवा बीमारी है जिससे अमेरिका
में हजारों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है ।
वाहनों के धुएँ में उपस्थित सीसा कण शरीर में
पहुँच कर यकृत, आहार नली, बच्चों में मस्तिष्क विकार, हड्डियों का गलना जैसे रोगों
का कारण बनते हैं । बहु-केन्द्रित हाइड्रो कार्बन भी कैंसर का कारण बनते हैं । इस संदर्भ
में ‘धूम कुहरा’ का उल्लेख आवश्यक है, जिसके कारण सैकड़ों व्यक्तियों की अब तक मृत्यु
हो चुकी है । यह मुख्यतया उद्योगों एवं परिवहन की अधिकता वाले नगरों पर छा जाता है
।
इसमें सल्फर-डाई-ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड
का अंश मिश्रित रहता है जो न केवल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है अपितु मौत का कारण
बन जाता है । वर्तमान विश्व में जैसे-जैसे वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है उससे
फैलने वाली बीमारियाँ एवं मृत्यु संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है ।
वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर क्रमश:
प्रभाव पड़ता है, जो प्रदूषण की मात्रा एवं सघनता पर निर्भर करता है । प्रारंभिक अवस्था
में इसका प्रभाव परिलक्षित भी नहीं होता, तत्पश्चात् मानव उसे अनुभव करने लगता है,
फिर उसे श्वास में या अन्य अंगों में तकलीफ होने लगती है ।
यही क्रम यदि चलता रहता है तो बीमारी में वृद्धि होकर वह अंतिम अवस्था में मृत्यु का कारण बन जाता है। वास्तव में यदि हमें वायु प्रदूषण से सुरक्षित रहना है तो प्रयत्न यही होना चाहिये कि यह प्रदूषण हो ही नहीं ।
18. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले
प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? उदाहरण सहित विवरण दें।
उत्तर : उद्योग हर जगह पर विकसित नहीं हो पाते। उनकी
स्थापना ऐसे स्थानों पर की जाती है जहाँ उत्पाद के निर्माण और विक्रय पर लागत
कम-से-कम आए और अधिक-से-अधिक लाभ हो। ऐसी अवस्थिति का चयन काफी सोच-विचार के
उपरान्त किया जाता है। किसी भी उद्योग की अवस्थिति अनेक प्रकार के कारकों द्वारा
नियन्त्रित होती है।
उद्योगों की अवस्थिति
को प्रभावित करने वाले कारक उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित
हैं :
1. बाजार – उद्योगों की स्थापना में सबसे महत्त्वपूर्ण
कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होना है। बाजार से अभिप्राय
उस क्षेत्र से होता है जहाँ तैयार माल की माँग हो और वहाँ के निवासियों में उन वस्तुओं
को खरीदने की क्षमता भी हो।
2. कच्चे माल की
प्राप्ति – उद्योग के लिए
कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं आसानी से परिवहन योग्य होना चाहिए। कच्चे माल के स्रोत
के समीप स्थित होने वाले उद्योग हैं
⦁ ह्रासमान भार वाले कच्चे माल का प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-चीनी उद्योग।
⦁ भारी कच्चा माल प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-लौह-इस्पात उद्योग।
⦁ कच्चे माल का भार कम होने वाले उद्योग, जैसे-ताँबा उद्योग।
⦁ शीघ्र नष्ट होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योग, जैसे-दुग्ध पदार्थ, डिब्बाबन्द
फल आदि
3. शक्ति के साधन – वे उद्योग जिन्हें अधिक शक्ति की आवश्यकता
है, शक्ति स्रोतों के समीप ही लगाए जाते हैं, जैसे-ऐलुमिनियम उद्योग।
4.श्रम आपूर्ति – कम्प्यूटरों के बढ़ते उपयोग, यन्त्रीकरण,
स्वचालन एवं औद्योगिक प्रक्रिया के लचीलेपन के कारण उद्योगों की श्रमिकों पर निर्भरता
थोड़ी कम हुई है। फिर भी औद्योगिक विकास के लिए उचित वेतन पर सही श्रमिकों का महत्त्व
आज भी बना हुआ है।
5. परिवहन एवं
संचार की सुविधा
– कच्चे माल को कारखाने तक लाने के लिए और उत्पादित माल को खपत केन्द्रों तक पहुँचाने
के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ उद्योगों की अवस्थिति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
कारक हैं। उद्योगों के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं प्रबन्धन के लिए संचार की महत्त्वपूर्ण
आवश्यकता होती है।
6. सरकारी नीति – सरकारी नीति में उद्योगों के अवस्थितिकरण
को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण कारक है।
उपर्युक्त सभी कारक सम्मिलित रूप से किसी उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित व नियन्त्रित करते हैं।
19. भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित महानगरों को
दर्षाएँ -
(क) चेन्नई
(ख) राँची
(ग) नई दिल्ली
(घ) बैंगलुरु
(ड.) कोलकाता